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Bahut hi amazing Writing hai aapkiअध्याय 4छोटू मन ही मन सोच रहा था बच गया, हालांकि उदयभान की मृतक लुगाई को उसके कारण क्या क्या सुनना पड़ रहा था , पर छोटू ने मन ही मन उससे माफी मांगी की तुम तो मर ही गई हो मुझे ज़िंदा रहना है तो तुम्हारा सहारा लेना पड़ेगा। छोटू को मन ही मन ये उपाय ही ठीक लगा क्योंकि कौनसा उदयभान की लुगाई अपनी सफाई पेश करने आ रही थी। अब आगे...
छोटू बिस्तर पर आंखें मूंदे पड़ा था, और बाकी परिवार वाले उसके चारो ओर उसे घेर कर बैठे थे, छोटू का मन अभी भी धक धक कर रहा था पर वो नाटक को जारी रखे हुए था और बिना किसी हलचल के लेता हुआ था,
पुष्पा: अम्मा हमें तो बड़ी चिंता हो रही है का हो गया है हमारे लाल को?
पुष्पा पल्लू के पीछे से ही बोलती है क्योंकि ससुर और जेठ आदि के आगे चेहरा ढकने की परंपरा थी
सुधा: अरे दीदी कुछ नहीं हुआ है, तुम चिंता मत करो सुबह तक ठीक हो जायेगा छोटू।
सुधा ने अपनी जेठानी को समझाते हुए कहा,
फुलवा: और बहुरिया कल ही हम उस छिनाल का भी इलाज़ करवा देंगे, कुछ नही होगा लल्ला को।
राजेश: अरे अम्मा कोई छिनाल नहीं चढ़ी है, हो सकता है नींद में चल रहा हो।
सुभाष: हां राजेश सही कह रहा है, सपना देख रहा होगा कोई।
संजय: पर पजामा छप्पर पर अटका हुआ था, और छोटू जगाने से जाग भी नहीं रहा, ये समझ नहीं आ रहा।
नीलम: अरे पापा मैं तो कहती हूं अभी सुबह तक सोने दो इसे नींद पूरी हो जायेगी तो खुद उठ जायेगा।
सुधा: हां ऐसा ही करो अरे दीदी देखो तो इसके सिर पर कोई चोट वागेरा तो नहीं दिख रही।
पुष्पा तुरंत छोटू का सिर इधर उधर घुमा कर देखती है
पुष्पा: चोट तो नहीं नज़र आ रही।
सोमपाल: तो ऐसा करो फिर सब लोग सो जाओ सुबह देखेंगे,
सब उठ कर चलने लगते हैं, अपने अपने बिस्तर की ओर।
राजेश: अम्मा तुम भी सो जाओ अब नहीं आ रही उदयभान की लुगाई, इतनी गालियां जो सुनाई हैं तुमने उसे।
इस पर सबके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है पर फुलवा भड़क जाती है इस बार उद्दयभान की लुगाई पर नहीं बल्कि अपने नाती राजेश पर।
फुलवा: आ नासपीटे, तुझे बड़ी ठिठोली सूझ रही हैं, हमारी बात को मज़ाक उड़ा रहा है,
राजेश: अरे नहीं अम्मा हम तो बस ऐसे ही बोल रहे थे,
फुलवा: ऐसे बोलो चाहे वैसे, कल हम लल्ला को दिखाने जायेंगे पेड़ पर।
संजय: अरे ठीक है अम्मा ले जाना, अभी सो जाओ।
तब जाकर फुलवा भी लेट जाती हैं, और फिर सब सोने लगते हैं, सिवाए छोटू के जो यही सोच रहा था कि सुबह क्या होगा, वो सुबह सब को क्या जवाब देगा अगर किसी ने पूछा तो क्या कहानी बताएगा।
जहां छोटू अलग उधेड़बुन में व्यस्त था वहीं कमरे में आते ही उसके चाचा ने दोबारा से उसकी चाची को बाहों में भर लिया।
सुधा: अरे क्या कर रहे हो, अब रहने दो सो जाओ।
संजय: अरे ऐसे कैसे सो जाएं, छोटू के चक्कर में हमारा अधूरा ही रह गया, निकला ही नहीं, देखो अभी भी खड़ा है।
संजय ने लुंगी हटाकर अपना खड़ा लंड अपनी पत्नी को दिखाते हुए कहा।
सुधा: ओह्ह्ह हो तुम भी ना, इसे खड़ा करके सब के सामने घूम रहे थे, कोई देख लेता तो,
सुधा ने पति के लंड को हाथ में लेकर सहलाते हुए कहा,
संजय: तो और क्या करता ये ऐसे बैठता भी नहीं है, आह इसे बैठाना तो तुम्हारा काम है,
संजय ने ये कहकर सुधा की पीठ सहलाते हुए अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़ दिया, सुधा भी अपने पति का साथ देने लगी, संजय उसके होंठों को चूसते हुए धीरे धीरे उसके कपड़े भी उतारने लगा,
सुधा ने संजय का हाथ अपनी साड़ी पर रोक लिया और होंठों को अलग करके कहा: अरे कपड़े मत उतारो ना, देखा न कितनी मुश्किल से पहनी थी अभी,
संजय: अरे यार पर तुम्हें तो पता है ना तुम्हारा बदन देखे बिना हमें मज़ा नहीं आता।
संजय उसके हाथ से साड़ी खींचते हुए बोला तो सुधा भी अपने पति को रोक नहीं पाई,
सुधा: पता नहीं तुम्हें क्या मज़ा मिलता है, इतने बरस हो गए ब्याह को रोज तो नंगा देखते हो आज क्या नया मिल जायेगा।
संजय: अरे तुम हमारी नज़र से देखोगी तो पता चलेगा कि तुम क्या चीज़ हो, और जितने बरस बीत रहें हैं तुम और गदराती जा रही हो, तुम्हारा बदन भरता जा रहा है। और मस्त होती जा रही हो।
सुधा ने अपनी तारीफ सुनी तो अंदर ही अंदर शरमाते हुए पति के छाती पर हल्का सा मुक्का मारते हुए बोली: धत्त झूठ बोलना तो कोई तुमसे सीखे, बूढ़ी होती जा रही हूं और तुम्हें मस्त लग रही हूं।
संजय: अरे तुम और बूढ़ी, ज़रा एक बार नज़र भर के खुद को देखो तो पता चले, कि क्या चीज़ हो तुम।
संजय ने झटके से साड़ी खींचते हुए कहा तो सुधा घूमते हुए नीचे से बिल्कुल नंगी हो गई, क्योंकि जाते हुए जल्दबाजी में उसने पेटीकोट नहीं पहना था। वैसे संजय का कहना भी गलत नहीं था सुधा कुछ भी हो रही थी बूढ़ी तो बिल्कुल नहीं, अभी तो उसके बदन पर जवानी छा रही थी, उसका बदन जैसा संजय ने कहा गदराता जा रहा था, और गदराए भी क्यों न दो जवान बच्चों की मां जो थी, अब इस उमर में नहीं गदरायेगी तो कब?
संजय ने हाथ आगे बढ़ा कर उसका ब्लाउज भी खोल दिया और सुधा ने उसे अपनी बाजुओं से निकल फेंका और पूरी नंगी अपने पति के सामने खड़ी हो गई, संजय एक कदम पीछे रख कर उसे देखने लगा, सुधा उसके ऐसे देखने से शर्मा गई,
सुधा: ऐसे क्या देख रहे हो जी?
संजय: अपनी पत्नी की सुन्दरता को देख रहा हूं।
जैसे हर स्त्री को अपनी सुंदरता की तारीफ सुनकर अच्छा लगता है वैसे ही सुधा को भी लग रहा था, वो मन ही मन हर्षित हो रही थी, कुछ लोग स्त्री को प्रसन्न करने के लिए झूठी तारीफ करते हैं ताकि उससे अपना स्वार्थ निकल सकें पर संजय सच कह रहा था उसे झूठ का सहारा लेने की आवश्यकता ही नहीं थी, उसकी पत्नी थी ही इतनी कामुक और सुंदर।
तीखे नैन नक्स से सजा हुआ सुंदर गोरा चेहरा रसीले लाल होंठ मानो जैसे हर पल ही रस से भरे रहते हो, नागिन जैसे गर्दन के नीचे सीने पर मानो दो रसीले खरबूजे रखे हो, ऐसी भरी हुई चूचियां जो देखने में खरबूजे से बड़ी और चखने में उससे भी मीठी थी, उनके नीचे गोरा सपाट पेट सिलवटें पड़ी हुई कामुक कमर और पेट के बीच में गहरी नाभी, नाभी के नीचे हल्का सा झांटों का झुरमुट और उसके नीचे उसके बदन का स्वर्ग द्वार, उसकी रसीली बुर, जिसके होंठों पर अभी भी चासनी लगी हुई थी, जिसे देख कर संजय का लंड बिलबिलाने लगा, पर उसने खुद को रोका और सुधा को घूमने का इशारा किया, सुधा भी पति का इशारा पाकर एक हिरनी की तरह मादकता से घूम गई, सुधा के घूमने से संजय के सामने उसकी पत्नी की बवाल धमाल और कामुकता से मालामाल गांड आ गई, सुधा की गांड बहुत बड़ी नहीं थी पर उसकी गोलाई और उभार बड़ा मादक था,गोलाई ऐसी जैसे कि आधा कटा हुआ सेब और उभार ऐसा कि दोनों चूतड़ों को अच्छे से फैलाकर ही गांड का छेद नज़र आए।
संजय ने आगे होकर यही किया, एक हाथ से सुधा की पीठ पर दबाव दिया तो वो भी हाथ के सहारे आगे झुकती चली गई और खाट को पकड़ कर झुक गई जिससे उसकी गांड और खिल कर संजय के सामने आ गई, संजय ने फिर अपने दोनो हाथों से दोनों चूतड़ों को फैलाया तो सुधा की गांड का वो भूरा छुपा हुआ कामुक छेद सामने आ गया, जिसे देख कर ही संजय के तन मन और लंड में तरंगे उठने लगीं, संजय ने अपना हाथ सरकाते हुए अपने अंगूठे को उसकी गांड के छेद पर स्पर्श कराया तो सुधा बिलबिला उठी।
सुधा: अह्ह्ह्हह क्या कर रहे हो जी, वो गंदी जगह है। हाथ हटाओ।
संजय: अरे तुम्हारे बदन में कुछ भी गंदा नहीं है मेरी रानी एक बार मान जाओ ना और अपने इस द्वार की सैर करने दो, और मेरे इस लंड को धन्य कर दो।
सुधा: अह्ह्ह्ह समझा करो ना पहले भी कहा है वो सब बहुत गंदा होता है, मुझे नहीं करना राजेश के पापा।
सुधा ने अपनी गांड से संजय का हाथ हटाते हुए कहा।
संजय: पर मेरे इस लंड के बारे मे तो कुछ सोचो न ये कितना बेसबर है तुम्हारी इस गांड के लिए।
संजय ने अपनी कमर आगे कर अपने लंड को सुधा की गांड की दरार में घिसते हुए साथ ही उसकी गांड के छेद पर दबाव डालते हुए कहा,
सुधा: इसकी बेसबरी मिटाना मुझे बहुत अच्छे से आता है जी।
ये कहते हुए सुधा अपनी टांगों के बीच हाथ लाई और संजय का लंड पकड़ कर उसे अपनी गीली चूत के द्वार पर रख दिया, संजय ने भी सोचा गांड तो मिलने से रही कहीं चूत भी न निकल जाए हाथ से तो इसी सोच से आगे बढ़ते हुए उसने सुधा की गदराई कमर को थाम लिया और फिर धक्का देकर अपना लंड एक बार फिर से अपनी पत्नी की चूत में उतार दिया, दोनों के मुंह से एक घुटी हुई आह निकल गई, और फिर संजय ने थपथप धक्के लगाते हुए सुधा की चुदाई शुरू कर दी।
सुबह हो चुकी थी पर ये सुबह सूरज के निकलने से पहले वाली थी जैसा कि अक्सर गांव में होता है लोग सूरज उगने से पहले ही उठ जाते हैं, तो उसी तरह भूरा और लल्लू उठ चुके थे और दोनों अभी छोटू के घर के बाहर थे और उसे बुला रहे थे, छोटू तो रोज की तरह ही गहरी नींद में था और हो भी क्यों न आखिर बदन की प्यासी आत्मा ने उस पर रात में हमला जो किया था, खैर लल्लू ने छोटू को आवाज लगाई तो छोटू की जगह फुलवा ने किवाड़ खोले।
लल्लू: प्रणाम अम्मा।
फुलवा: प्रणाम लल्ला जुग जुग जियो।
भूरा ने भी प्रणाम किया, और फिर छोटू को बुलाने को कहा।
फुलवा: अरे लल्ला उसकी थोड़ी तबीयत खराब हो गई है रात से ही।
भूरा: अच्छा कल शाम तो ठीक था जब भैंस चराके आए थे तो।
फुलवा: अच्छा पर पता नहीं का हुआ रात को अचानक से बिगड़ गई।
लल्लू: अच्छा, चलो कोई नहीं अम्मा उसे आराम करने दो। हम जाते हैं जब जाग जायेगा तो मिलने आयेंगे।
फुलवा: ठीक है लल्ला,
दोनों जाने के लिए मुड़ते हैं कि तभी फुलवा उन्हें रोकती है।
फुलवा: अच्छा एक बात बताओ रे।
भूरा: हां अम्मा।
फुलवा: तुम लोग कल कहां गए थे भैंस लेकर।
लल्लू: हम कहीं दूर नहीं बस जंगल के थोड़ा अंदर तक।
फुलवा: अरे दईया, तुम नासपीटों से कितनी बार कहा है कि जंगल में मत जाया करो पर तुम्हारे कानों में तो गू भरा है सुनते ही नही।
भूरा: अरे अम्मा ऐसी बात न है, वो जंगल के बाहर की घास तो पहले ही चर चुकी इसलिए आगे जाना पड़ा।
ये सुन कर फुलवा का चेहरा लाल पड़ने लगा।
फुलवा: हमारी बात ध्यान से सुनलो, आगे से जंगल की तरफ बड़ मत जाना कोई सा भी, नहीं तुम्हारी टांगे छटवा दूंगी।
भूरा: क्या हो गया अम्मा।
फुलवा: कछु नहीं हो गया, अब जाओ यहां से पर ध्यान रखना जंगल की ओर गए तो टांगे तोड़ दूंगी सबकी।
भूरा और लल्लू तुरंत निकल लिए,
लल्लू: अरे क्या हो गया ये डोकरी(बूढ़ी) ?
भूरा: हां यार कुछ तो हुआ है, वैसे तो अम्मा इतना गुस्सा कभी नहीं देखी मैने।
लल्लू: कह तो सही रहा है, कोई तो बात है और वो भी छोटू की, तभी उसकी तबीयत खराब हुई है।
भूरा: डोकरी ने तो जंगल में घुसने से भी मना किया है, दोपहर का कांड कैसे करेंगे फिर?
लल्लू: अरे दोपहर की दोपहर को सोचेंगे पहले अभी का देखते हैं,
भूरा: हां चल।
दोनों एक रास्ते पर थोड़ा आगे की ओर जाते हैं फिर थोड़ा आगे जाकर एक बार इधर उधर देखते हैं कोई देख तो नहीं रहा और फिर जल्दी से एक अरहर के खेत में घुस जाते हैं और उसके बीच से आगे बढ़ने लगते हैं, बड़ी सावधानी से आगे बढ़ते हुए दोनों वो खेत पर कर जाते हैं, और खेत के बगल में बने रास्तों पर न चलकर दोनों खेतों के बीच से होते हुए आगे बढ़ते हैं, आगे बढ़ते हुए चलते जाते हैं और जैसे ही एक और खेत पर करते हैं दोनों को एक झटका लगता है और दोनों बापिस मुड़ कर खेत में घुस जाते हैं।
लल्लू: अबे भेंचों ये क्या हुआ।
भूरा: मैय्या चुद गई दिमाग की और क्या हुआ।
लल्लू: ये रामविलास ने तो खेत ही कटवा दिया, भेंचो।
भूरा: हमारी खुशी नहीं देखी गई धी के लंड से। भेंचाे एक ही खेत था जिसमें औरतें आराम से हगने आती थी और हम देख पाते थे आराम से बिना किसी के पकड़ में आए, साले ने वो भी हमसे छीन लिया।
वैसे हर गांव में ये नियम होता था कि गांव में एक तरफ के खेतों में औरतें शौच के लिए जाती थी और एक ओर आदमी। तो ये लोग छुपक कर औरतों वाली तरफ जाते थे और उन्हें शौच करते हुए उनकी नंगी गांड का दर्शन करते थे दोनों का ही रोज का ये प्रोग्राम रहता था वैसे तो तीनों का ही होता था पर पिछले कुछ दिनों से छोटू नहीं आ पा रहा था तो ये दोनों ही कार्यभार संभाले हुए थे।
लल्लू: चोद हो गई भोसड़ी की सवेरे सवेरे।
भूरा: वोही तो यार।
लल्लू: एक काम करें, बाग के पीछे वाले खेतों में चलें वहां भी खूब औरतें जाती हैं।
भूरा: हां जाती तो हैं और अब हो सकता है जो इधर आती थीं वो भी उधर ही गई हो।
लल्लू: तो चल फिर चलते हैं।
भूरा: पर साले पकड़े गए तो जो गांड छिलेगी, जिंदगी भर आराम से हग नहीं पाएंगे।
लल्लू: अरे कुछ नहीं होगा एक काम करेंगे नदी नदी जायेंगे और फिर कौने से बाग में घुस जायेंगे और फिर बाग में तो पेड़ों के बीच कौन देख रहा है।
भूरा: हां यार साले का गांड फाड़ तरीका सोचा है, चल चलते हैं।
और दोनों तुरंत भाग पड़ते हैं। खेतों को पार कर दोनों तुंरत नदी के किनारे पहुंच जाते हैं और फिर किनारे किनारे चलते हुए आगे बाग तक, बाग में घुसकर दोनों आगे बढ़ने लगते हैं, जैसे ही दोनों बाग के किनारे पहुंचने वाले होते हैं धीरे हो जाते हैं और सावधानी से पेडों की ओट लेकर आगे बढ़ने लगते हैं और फिर अच्छी सी जगह देख कर छिप कर बैठ जाते हैं और खेत में इधर उधर देखने लगते हैं।
लल्लू: अभी तो कोई नहीं दिख रही यार।
भूरा: हां भेंचाें इतनी दूर भागते आए और यहां तो कोई नहीं है।
लल्लू: दूसरी तरफ देखें बाग के?
भूरा: अरे मेरे हिसाब से तो अगर कोई यहां आयेगी भी तो यहां नहीं बैठती होगी।
लल्लू: क्यूं?
भूरा: खुद ही देख उन्हें भी पता होगा कि बाग मे से कोई भी उन्हें देख लेगा इसलिए।
लल्लू: हां यार ये बात तो है फिर अब का करें?
भूरा: ये खेत में घुस के देखते हैं अगले खेत में ज़रूर होगी।
लल्लू: चल इतनी दूर आ ही गए हैं तो एक खेत और सही।
दोनों फिर और आगे बढ़ते हैं, धीरे धीरे अरहर के खेत को पार करते हुए, और जैसे ही किनारे पर पहुंचने वाले होते हैं उन्हें आभास होता है कि कोई मेड़ के दूसरी ओर बैठा है, दोनों सजग हो जाते हैं और दबे हुए कदमों से आगे आकर झांकते हैं और झाड़ियों के बीच से आंख टिकाकर देखते हैं तो दोनों की आंखें चमक जाती हैं, दोनों जिस दृश्य के लिए इतनी भागा दौड़ी कर रहे थे वो उनके सामने होता है, देखते हैं एक औरत उनकी ओर पीठ किए हुए बैठी है साड़ी कमर तक चढ़ाए उसके नंगे गोरे भारी और गोल मटोल चूतड़ देख दोनों के लंड ठुमकने लगते हैं और पूरे अकड़ जाते हैं,
दोनों की नज़र उसकी गांड पर ऐसे चिपक जाती है जैसे गोंद पर मक्खी।
कुछ पल बाद ही वो औरत अपने लोटे से पानी लेकर अपने पिछवाड़े पर मार कर धोने लगती है, अपने चूतड़ों को थोड़ा उठाकर हथेली में पानी भर सीधा अपनी गांड के छेद पर मारती है जिससे इन दोनों को भी उसकी गांड का भूरा छेद नज़र आता है गोरे चूतड़ों के बीच गांड का भूरा छेद बहुत कामुक लग रहा था औरत बार बार पानी लेकर अपनी गांड पर मारती है तो उसके भरे हुए चूतड़ थरथरा जाते हैं जिससे पता चल रहा था कि उसके चूतड़ कितने मांसल हैं। इन दोनों का तो ये देख बुरा हाल हो जाता है, दोनों के लंड अकड़ जाते हैं जिन्हें दोनो ही अपनी सांसों को थामे पजामे के उपर से ही मसल रहे होते हैं।
अपनी गांड धोने के बाद औरत खड़ी होती है और दोनों को चूतड़ों का आखिरी दर्शन देकर उन पर अपनी साड़ी और पेटीकोट का परदा कर लेती है और फिर खेत के बाहर की ओर निकल जाती है, लल्लू और भूरा तो अपनी सांसे थामे देखते रह जाते हैं, उसके निकलते ही भूरा फुसफुसा कर कहता है: यार क्या चूतड़ थे भेंचों।
लल्लू: सही में यार ऐसी गांड तो अभी तक नहीं देखी मैंने, इतने भरे हुए चूतड़ गोल मटोल और साली का गांड का छेद भी इतना मस्त था मन कर रहा था अभी जा कर लंड घुसा दूं।
भूरा: सही में यार लंड तो लोहे के हो गया उसे देख कर।
लल्लू: थी कौन ये यार, इतनी मस्त गांड वाली।
भूरा: क्या पता यार चेहरा तो दिखा नहीं पल्लू डाल रखा था मुंह पर लेकिन यार जो दिखा वो बड़ा मजेदार था।
लल्लू: देखें कौन है?
भूरा: देखें कैसे?
लल्लू: भाग कर चलते हैं ज्यादा दूर नहीं पहुंची होगी, और साड़ी का रंग याद है पहचान जाएंगे आराम से।
भूरा: पूरा बाग घूम कर बापिस किनारे से आना पड़ेगा इधर से तो गए तो पिट जायेंगे।
लल्लू: तभी तो कह रहा हूं चल जल्दी।
दोनों फिर से सरपट दौड़ लगा देते हैं बाग को पार करके फिर से नदी के किनारे होते हुए जल्दी ही गांव के मुख्य रास्ते पर आ जाते हैं, रास्ते में तो वो औरत नहीं दिखती थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तो एक नल लगा था जो कि पूरे गांव का ही था जिस पर लोग सुबह आकर अपने हाथ पैर धोते थे वो लोग भी वहीं पहुंच गए, वहां एक दो औरत और भी थी जो अपने हाथ पैर धो रही थी बातें करते हुए तभी लल्लू भूरा को कुछ इशारा करता है, और भूरा लल्लू के इशारे पर देखता है तो उसे वो औरत दिखती है जो कि झुककर अपने हाथ पैर धो रही होती है।
भूरा: अरे ये तो वोही है ना।
लल्लू: हां साड़ी तो वोही है अब बस चेहरा दिखे तो पता चले कौन है।
दोनों बेसब्री से इंतज़ार करने लगते हैं, औरत जल्दी ही अपने हाथ धोकर पानी अपने चेहरे पर मारती है और फिर पल्लू से अपना चेहरा पौंछते हुए उनकी ओर घूमती है, दोनों सांसें रोक कर उसका चेहरा देखने के लिए आंखे टिका देते हैं, और कुछ ही पलों बाद वो अपना पल्लू चेहरे से हटाती है तो दोनों की नज़र उसके चेहरे पर पड़ती है और दोनों हैरान परेशान रह जाते हैं... वो औरत भी उन दोनों को देख उनके पास आती है और कहती है: तुम दोनों अच्छा हुआ मुझे मिल गए मुझे एक बात बताओ।
लल्लू: हूं? हां हां चाची।
लल्लू सकुचाते हुए कहता है, वहीं भूरा के मन में भी उथल पुथल चल रही होती है पर वो खुद को संभालते हुए कहता है: प्रणाम चाची।
लल्लू: हां हां प्रणाम चाची।
लल्लू उसके चेहरे से नज़र हटाकर नीचे की ओर देखते हुए कहता है, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वो औरत जिसकी गांड देख कर कुछ देर पहले वो लोग आहें भर रहे थे वो और कोई नहीं उनके दोस्त छोटू की मां पुष्पा थी, उनकी मां समान बचपन से ही दोस्त थे तीनों और एक दूसरे के परिवार को भी अपने परिवार की तरह ही मानते थे और एक दूसरे के मां बाप को अपने मां बाप की तरह, तो अभी दोनों को ही बड़ा अजीब सा एहसास हो रहा था मन में एक जलन हो रही थी, अपनी दोस्ती में एक विश्वासघात का बोध हो रहा था,
पुष्पा: तुम लोग कल भैंसों को लेकर जंगल गए थे न?
भूरा: हां चाची वो बाहर घास नहीं है ना इसलिए।
पुष्पा: अरे दुष्टों तुमसे कितनी बार मना किया है, पता है रात को छोटुआ की तबीयत खराब हो गई कितनी।
लल्लू: हां चाची वो अम्मा ने बताया तो पर ठीक से कुछ नहीं बोली,
पुष्पा: अच्छा मैं बताती हूं, आगे चलो पर सुनो ये बात गांव में नहीं पता लगनी चाहिए किसी को।
लल्लू: हां चाची अपने घर की बात क्यों बताएंगे किसी को।
तीनों वहां से थोड़ा आगे बढ़ जाते हैं, और दूसरी औरतों से अलग हो जाते हैं तो पुष्पा उन्हें सारी बात बताती है रात की, सुनकर दोनों की आंखें चौड़ी हो जाती हैं,
लल्लू: ऐसा कैसे हो सकता है चाची मेरी तो समझ नहीं आ रहा,
भूरा भी कुछ कहने वाला होता है और जैसे ही वो पुष्पा के चेहरे की ओर देखता है उसकी आंखों के सामने पुष्पा की गांड का दृश्य दिखाई देने लगता है और वो चुप हो जाता है।
पुष्पा: अरे कैसे नहीं हो सकता, वो उदयभान की लुगाई ने जंगल में ही तो पेड़ से लटक के जान दी थी, अम्मा बता रही थी उसकी आत्मा अब भी भटक रही है।
ये सुन उन दोनों का भी दिल धक धक करने लगता है और थोड़ा थोड़ा दोनों ही दर जाते हैं।
भूरा: फिर अब क्या होगा चाची?
पुष्पा: अब होना क्या है तुम दोनों सावधान रहना और जंगल में मत जाना।
लल्लू: और छोटू?
पुष्पा: छोटू को अम्मा पेड़ वाले बाबा के पास ले जाएंगी दिखाने। चलो अब मैं चलती हूं तुम दोनों बेकार में इधर उधर मत घूमना।
लल्लू: ठीक है चाची।
पुष्पा आगे बढ़ जाती है और दोनों वहां ठगे से खड़े रह जाते हैं, दोनों के मन में ही उथल पुथल हो रही होती है और दोनों ही एक दूसरे नजरें मिलाने में कतरा रहे होते हैं, लल्लू एक और चल देता है तो भूरा भी बिना कुछ कहे उसके साथ साथ चल देता है, कोई कुछ नहीं बोलता बस चलते जाते हैं और चलते चलते दोनों नदी के किनारे बैठ जाते हैं, कुछ पल सिर्फ नदी में बह रहे पानी की कलकल के सिवाए कुछ नहीं सुनाई देता फिर कुछ पल बाद लल्लू पानी में देखते हुए ही कहता है: यार जो हुआ सही नही हुआ।
भूरा: हम्म् मेरे मन में भी अजीब सी जलन हो रही है, हमें चाची को ऐसे नहीं देखना चाहिए था।
लल्लू: हां यार जबसे उनकी गां मेरा मतलब है उन्हें उस हालत में देखा और फिर उनका चेहरा देखा तबसे मन जल रहा है,
भूरा: भाई मैं तो उनके चेहरे की ओर भी नहीं देख पा रहा था जैसे ही उनका चेहरा देखता तो मेरी आंखों के सामने उनके चूतड़ मतलब वोही हालत में वो दिख जाती।
लल्लू: साला हमें जाना ही नहीं चाहिए था बाग में।
भूरा: तू ही ले गया मैं तो मना कर रहा था,
लल्लू: अच्छा मैं ले गया साले तू अपनी मर्ज़ी से नहीं गया था या रोज तू अपनी मर्ज़ी से नहीं आता था,
भूरा: रोज रामिविलास के खेत की बात होती थी बाग की तूने बोली थी,
लल्लू: अच्छा तो मैं क्या तुझे ज़बरदस्ती ले गया बाग में अपनी मर्जी से गया तू, और साले अरहर का खेत पार करके देखते हैं ये किसने बोला था।
भूरा: साले अपनी गलती मुझ पर मत डाल मुझे पता था तेरे मन में ही पाप है।
लल्लू: भेंचो मेरे मन में पाप है तो एक बात बता तेरा लोड़ा अभी तक खड़ा क्यों है चाची को देख कर।
भूरा ये सुन नीचे देखता है सकपका जाता है उसका लंड सच में उसके पजामे में तम्बू बनाए हुए था, लल्लू की बात का उसके पास कोई जवाब नही होता वो नजरें नीचे कर इधर उधर फिराने लगता है। तभी उसे अपने आप जवाब मिल जाता है।
भूरा: अच्छा भेंचो मुझे ज्ञान चोद रहा है और खुद बड़ा दूध का धुला है तू,
भूरा उसे इशारा करके कहता है तो लल्लू भी नीचे देखता है और अपने लंड को भी पजामे में सिर उठाए पता है और वो भी सकपका जाता है, कुछ देर कुछ नहीं बोलता, भूरा भी कुछ देर शांत रहता है, फिर कुछ सोच के बोलता है: यार गलती हम दोनों की ही है,
लल्लू: सही कह रहा है यार। पर साला ये चाची की गांड आंखों से हट ही नहीं रही यार।
भूरा: हां यार भेंचो आंखें बंद करो तो वो ही दृश्य सामने आ जाता है जब चाची पानी से अपने चूतड़ों को धो रहीं थी,
लल्लू: कुछ भी कह यार चाची की गांड है कमाल की ऐसी गांड मैने आज तक नहीं देखी।
भूरा: यार मैंने भी नहीं, क्या मस्त भूरा छेद था न गोरे गोरे चूतड़ों के बीच।
दोनों के ही हाथ उस कामुक दृश्य को याद कर अपने अपने लंड को पजामे के ऊपर से ही सहलाने लगते हैं। तभी जैसे लल्लू को कुछ होश आता है और वो अपना हाथ झटक देता है
लल्लू: धत्त तेरी की ये गलत है।
भूरा को भी एहसास होता है वो गलत कर रहा है और वो भी अपना हाथ हटा लेता है।
लल्लू: कुछ कहने वाला ही होता है कि तभी पीछे से उन्हें एक आवाज़ सुनाई देती है: क्यों बे लोंडो क्या हो रहा है?
दोनों आवाज़ सुनकर पलट कर देखते हैं तो पाते हैं सामने से सत्तू चला आ रहा होता है, सत्तू उनके गांव का ही लड़का है जिसकी उम्र उनसे ज्यादा है, वो भूरा के भाई राजू की उमर का था हालांकि उसकी और राजू की कम ही बनती थी पर वो इन तीनों लड़कों के साथ अच्छे से ही पेश आता था।
लल्लू: अरे कुछ नहीं सत्तू भैया ऐसे ही बस टेम पास कर रहे हैं।
सत्तू: बढ़िया है, और आज तुम दोनों ही हो छोटू उस्ताद कहां है आज?
भूरा: उसकी तबीयत खराब है भैया।
सत्तू: अच्छा का हुआ?
लल्लू: पता नहीं अम्मा बता रही थी उसकी तबीयत ठीक नहीं है।
सत्तू: अरे मुट्ठी ज्यादा मार लोगी हरामी ने इसलिए कमज़ोरी आ गई होगी।
सत्तू हंसते हुए कहता है लल्लू और भूरा के भी चेहरे पर हंसी आ जाती है,
सत्तू: सकल से ही साला हवसी लगता है छोटू उस्ताद,
भूरा: हिहेहे सही कह रहे हो सत्तू भैया,
भूरा भी हंसते हुए कहता है,
सत्तू: बेटा कम तो तुम दोनों भी नहीं हो, उसी के साथी हो।
दोनों ये सुनकर थोड़ा शरमा से जाते हैं।
लल्लू: अरे कहां सत्तू भैया तुम भी।
सत्तू: अच्छा अभी मेरे आने से पहले तुम लोग क्या बातें कर रहे थे मैं सब जानता हूं।
दोनों ये सुनकर हिल जाते हैं।
भूरा: केकेके क्या बातें भैया?
सत्तू: चुदाई की बातें तभी तो देखो दोनों के छोटू उस्ताद पजामे में तम्बू बनाए हुए हैं।
लल्लू और भूरा को चैन आता है थोड़ा उन्हे लगा था कहीं पुष्पा चाची के बारे में तो उनकी बात नहीं सुनली सत्तू ने।
लल्लू: हेहह वो तो भैया बस ऐसे ही हो जाता है।
सत्तू: अरे होना भी चाहिए सालों अभी जवान हो अभी लंड नही खड़ा होगा तो कब होगा।
भूरा: होता है भैया बहुत होता है साला।
भूरा खुलते हुए बोला, वैसे भी सत्तू हमेशा से उन तीनों के साथ खुलकर बात करता था तो वो तीनों भी उससे खुले हुए ही थे।
सत्तू: अरे तो होने दो ये उमर ही होती है मज़े लेने की, खूब मजे करने की अरे मैं तो कहता हूं मौका मिले तो चुदाई भी करो।
लल्लू: अरे भईया यहां गांव में कहां चुदाई का मौका मिलेगा। अपनी किस्मत में सिर्फ हिलाना लिखा है।
सत्तू: अरे ये ही तो तुम नहीं समझते घोंचुओ, मौका हर जगह होता है बस निकलना पड़ता है, और जहां नहीं होता वहां बनाना पड़ता है।
लल्लू: मतलब?
सत्तू: मतलब ये कि तुम्हें क्या लगता है कि जहां मौका होगा वहां कोई लड़की या औरत आकर खुद से तुम्हारा लोड़ा पकड़ कर अपनी चूत में डालेगी, अबे ऐसे तो खुद की पत्नी भी नहीं देती।
भूरा: फिर???
सत्तू: फिर क्या, मौका खुद से बनाना पड़ता है,
लल्लू: भैया समझ नहीं आ रहा तुम कह रहे हो मौका बनाएं, पर मौका कहां कैसे बनाएं।
भूरा: और मौका बनाने के चक्कर में कहीं गांड ना छिल जाए।
सत्तू: तुम जैसे घोंचू की तो छिलनी ही चाहिए।
लल्लू: सत्तू भैया ठीक से बताओ ना यार। तुम ही तो हमारे गुरू हो यार।
सत्तू: ठीक है आंड मत सहलाओ बताता हूं, देखो अभी में पिछले हफ्ते सब्जी बेचने गया था शहर तो एक ग्राहक से बात हुई काफी पड़ा लिखा था अफसर बाबू जैसा,
लल्लू: अच्छा फिर?
सत्तू: उसने कुछ बातें बताई औरतों के बारे में।
भूरा: अच्छा कैसी बातें?
सत्तू: उसने बताया कि औरतें जताती नहीं हैं पर औरतों में हमारे से ज्यादा गर्मी होती है, वो बस समाज के दर से छुपा के रखती हैं तो जो कोई उस गर्मी को भड़का लेता है वो अच्छे से हाथ क्या सब कुछ सेक लेता है, बस गर्मी को भड़काना और फिर अच्छे से बुझाना आना चाहिए।
लल्लू: अरे भईया बुझा तो अच्छे से देंगे, बस भड़काना नहीं आता।
भूरा: क्या ये बात सच है भैय्या कि लड़कियों में ज्यादा गर्मी होती है हमसे?
सत्तू: और क्या, वो गलत थोड़े ही बोलेगा, उसने इसी चीज की तो पढ़ाई की है, पता नहीं क्या बता रहा था नाम नहीं याद कुछ लौकी लौकी बता रहा था, उसमें शरीर की पढ़ाई होती है जैसे हमारा बदन काम करता है अंदर बाहर सब कुछ पढ़ाया जाता है।
लल्लू और भूरा आंखे फाड़े सत्तू से ज्ञान ले रहे थे,
लल्लू: सही है भैय्या, अगर मुझे पढ़ने को मिलता तो मैं भी यही पढ़ता।
सत्तू: हां ताकि चूत मिल सके, हरामी।
इस पर तीनों ताली मार कर हंसने लगते हैं,
भूरा: सारा खेल ही उसी का है भैया।
सत्तू: समझदार हो रहा है भूरा तू, अच्छा सुनो अब मैं चलता हूं मां राह देख रही है, पर तुम्हारे लिए एक उपहार है तुम्हारे सत्तू भैया की ओर से, लो मजे लो।
ये कहते हुए सत्तू अपने पीछे हाथ करता है और पैंट में से कुछ निकाल कर लल्लू के हाथ में रख देता है और चल देता है,
लल्लू और भूरा हाथ में रखे कागज़ को खोल कर देखते हैं और उनकी आंखें चौड़ी हो जाती हैं, वो पन्ने ऐसा लग रहा था किसी किताब के फटे हुए थे पर उन्हें देख कर लल्लू और भूरा की आंखें फटी हुई थी, दोनों ध्यान से देखते हैं, पहले पन्ने पर एक तस्वीर होती है लड़की की जो कि पूरी नंगी होकर झुकी हुई होती है और अपने दोनों हाथों से चूतड़ों को फैलाकर अपनी चूत और गांड दिखा रही होती है, दोनों के लंड ये देखकर तन जाते हैं, दोनों ध्यान से पूरी तस्वीर को बारिकी से देखते हैं,
भूरा: दूसरी भी देख ना।
लल्लू तुरंत दूसरा पन्ना ऊपर करता है, इस पर एक औरत बिल्कुल नंगी होकर एक लड़के के लंड पर बैठी है लंड उसकी चूत में घुसा हुआ है साथ ही उसके अगल बगल में दो लड़के खड़े हैं जिनमे से एक का लंड उसके मुंह में है और दूसरे का हाथ में। औरत की बड़ी बड़ी चूचियां लटक रही हैं।
ये देख तो दोनों के बदन में सरसराहट होने लगती है, दोनों ही अपने एक एक हाथ से लंड मसलते हुए पन्नों को पलट पलट कर देखने लगते हैं
भूरा: अरे भेंचो ऐसा भी होता है देख तो एक औरत एक साथ तीन तीन लंड संभाल रही है,
लल्लू: हां यार, सत्तू भैया मस्त बवाल चीज देकर गया है।
भूरा: यार अब मुझसे तो रहा नहीं जा रहा लंड बिल्कुल अकड़ गया है,
लल्लू: यही हाल मेरा भी है यार चल बाग में चलकर एक एक बार इसे भी शांत कर ही लेते हैं।
भूरा: चल।
दोनों साथ में बाग की ओर चल देते हैं।
इधर छोटू आज फिर देर से उठा पर आज उसे उठते ही मां की गाली सुनने को नहीं मिली बल्कि उठते ही मां ने उसके हाथ में चाय पकड़ा दी। उसकी दादी भी उसके बगल में ही बैठी थी
फुलवा: अब कैसा है हमारा लाल? तबीयत ठीक है?
छोटू मन में सोचने लगा साला रात वाला कांड तो मैं भूल ही गया, अब सब पूछेंगे तो क्या बोलूंगा क्या हुआ था, फिर याद आया कि रात को जो कहानी अम्मा ने खुद बनाई थी उसे ही चलने देता हूं क्या जा रहा है।
छोटू: ठीक हूं अम्मा।
पुष्पा और फुलवा दोनों ही ये सुनकर थोड़ी शांत होती हैं इतने में सुधा भी उनके पास आकर बैठ जाती है, घर के सारे मर्द शौच क्रिया आदि के लिए बाहर गए हुए थे,
फुलवा: हाय मेरा लाल एक ही रात में चेहरा उतरा उतरा सा लग रहा है।
फुलवा उसे अपने सीने से लगाकर कहती है, इधर छोटू अपनी अम्मा की कद्दू के आकर की चुचियों में मुंह पाकर कसमसाने लगता है, उसे स्पर्श अच्छा लगता है पर वो खुद को रोकता है।
सुधा: बेटा तुझे कुछ याद है रात को क्या हुआ था,
छोटू: हां चाची वो...
छोटू ये कहके चुप हो जाता है और सोचने लगता है ऐसा क्या बोलूं जो बिल्कुल सच लगे, ऐसे कुछ भी बोल दूंगा तो मुश्किल में पढ़ सकता हूं, और फिर वो मन ही मन एक कहानी बनाता है।
पुष्पा: चुप क्यूं हो गया लल्ला बोल ना।
छोटू: कैसे कहूं मां थोड़ी वैसी बात है, मुझे शर्म आ रही है।
फुलवा: अरे हमसे क्या शर्म, इतना बढ़ा हो गया तू जो अपनी अम्मा से शर्माएगा?
सुधा: देखो बेटा शरमाओ मत, यहां पर तो हम लोग ही हैं तुम्हारी मां, तुम्हारी चाची और अम्मा, हमने तुम्हें बचपन से गोद में खिलाया है तो हमसे मत शरमाओ और देखो अगर कुछ परेशानी है तो हमसे कहोगे तभी तो हम इसका हल निकलेंगे।
छोटू चाची की बात सुन तो रहा था पर उसके दिमाग में बार बार चाची का वो दृश्य सामने आ रहा था जिसमें वो नंगी होकर चाचा के लंड पर कूद रही थीं।
पुष्पा: चाची सही कह रही बेटा सब बतादे।
फुलवा: हां मेरे छोटूआ बता दे अपनी अम्मा को सब।
छोटू का ध्यान अपनी मां और अम्मा की बात सुनकर बापिस आता है और वो नजरें नीची करके बोलता है: अम्मा रात को जब मैं सो रहा था तो सोते सोते अचानक सपने में एक औरत आई और वो मुझे प्यार से छोटू छोटू कहके मेरे पास आ कर बैठ गई और मुझसे बोली छोटू तुम मुझे बहुत पसंद हो तुम मेरे साथ चलोगे, मैंने उससे मना किया तो वो वो..
छोटू इतना कह कर चुप हो जाता है,
सुधा: आगे बोलो बेटा, डरो मत हम लोग हैं तुम्हारे साथ।
सुधा उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहती है।
छोटू एक एक बार तीनों की ओर देखता है फिर अपना सिर नीचे कर के बोलता है: जब मैं उसे मना कर दिया तो वो वो खड़ी होकर अपने कपड़े उतारने लगी, मैंने उससे कहा ये तुम क्या कर रही हो, कपड़े क्यों उतार रही हो, जाओ यहां से पर वो सुन ही नहीं रही थी और फिर पूरी नंगी हो गई, उसे देख कर मैंने आंखे बंद करने की कोशिश की पर मेरी आंखें बंद ही नहीं हो रही थी, और वो मुझे पूरी नंगी होकर दिखा रही थी। इतना कहकर छोटू शांत हो जाता है और तीनों की प्रतिक्रिया देखने लगता है
वहीं ये सुनकर तीनों औरतें हैरान रह जाती हैं फुलवा के माथे पर तो फिर से गुस्सा दिखने लगता है पर सुधा उसे शांत करती है, वहीं पुष्पा को भी ये सब बड़ा अजीब सा लग रहा था साथ ही उसे अपने बेटे की चिंता भी हो रही थी, तीनों एक बार एक दूसरे को देखती हैं तो सुधा दोनों को शांत रहने का इशारा करती है और छोटू से कहती है: आगे क्या हुआ लला?
छोटू वैसे ही नज़रें नीचे किए हुए ही आगे बोलता है: फिर वो बार बार पूछ रही थी कि बताओ छोटू मैं कैसी लग रही हूं, पर मैं कुछ नहीं बोला तो वो मेरे हाथ पकड़ कर अपने बदन पर लगाने लगी पर मैं उससे हाथ छुड़ा लिए।
पुष्पा: फिर?
छोटू: फिर वो मुझसे बोली कि कोई बात नहीं तुम मुझको नहीं छुओगे तो मैं तुम्हें छू लूंगी,
सुधा: अच्छा फिर?
छोटू: फिर वो अपने हाथ बढ़ाकर मेरे पजामे के ऊपर फिराने लगी और और..
फुलवा: और का लल्ला?
छोटू: वो पजामे के ऊपर से ही मेरा वो वो पकड़ने लगी,
सुधा: लल्ला शरमाओ मत खुल कर बोलो।
छोटू: वो पजामे के ऊपर से ही मेरा नुन्नू पकड़ कर सहलाने लगी।
ये सुनकर कहीं न कहीं तीनों औरतों की ही सांसे भारी होने लगी थी,
फुलवा: दारी की इतनी हिम्मत,
सुधा: अम्मा रुको तो, उसे पूरी बात तो बताने दो। छोटू बोल आगे क्या हुआ?
छोटू: वो उसके बाद मैने उसे धक्का दिया तो वो पीछे हो गई पर पीछे होकर वो हंसने लगी और फिर मेरे नुन्नु में जलन होने लगी बहुत तेज़ तभी मेरी आंख खुल गई तो देखा सच में बहुत जलन हो रही थी, और नुन्नु बिल्कुल कड़क हो गया था,
पुष्पा: हाय दईया हमारा लल्ला, फिर का हुआ?
छोटू: इतनी तेज़ जलन हो रही थी कि मुझे कुछ समझ ही नहीं आया क्या करूं मैंने तुरंत अपना पजामा नीचे कर दिया पर फिर भी आराम नहीं मिला तो मैं उठ कर पानी के लिए भागा सोचा भैंसों के कुंड में डुबकी लगा दूंगा पर थोड़ा आगे बड़ा तो लगा पीछे से किसी ने कुछ मारा और फिर उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं।
छोटू अपनी कहानी सुना कर चुप हो गया और तीनों के चेहरे पढ़ने की कोशिश करने लगा, तीनों ही एक दूसरे की ओर देख रहीं थी पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था, उसे अपनी अम्मा की आंखों में गुस्सा साफ दिख रहा था वहीं मां और चाची की आंखों में चिंता थी।
सुधा: अच्छा चल जो हुआ सो हुआ तुम वो सब भूल जाओ लल्ला और जाओ खेत हो आओ, अब कुछ नहीं होगा।
छोटू: ठीक है चाची।
छोटू उठकर जाने लगता है तो पुष्पा पीछे से कहती है: लल्ला ज्यादा दूर मत जाना।
छोटू: ठीक है मां।
छोटू बाहर निकलते हुए मंद मंद मुस्काता है उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो सब उसकी कहानी को इतनी आसानी से मान जाएंगे, वो मन ही मन सोचता है: अरे वाह छोटू तेरे दिमाग का जवाब नहीं, क्या घुमाया है सबको, नहीं तो रात की सच्चाई किसी को पता चलती तो वो धुनाई होती जो जीवन भर याद रहती, ये सब सोचते हुए वो खुश होकर घर से निकल जाता है। इधर घर में तीनों औरतों की बातें शुरू हो गई थी उसके जाने के बाद।
पुष्पा: हाए दईया अम्मा हमें तो बहुत डर लग रहा है, अब का होगा?
सुधा: परेशान मत हो दीदी, सब ठीक हो जायेगा, अभी हमें छोटू को संभालना होगा नहीं तो उसको और चिंता हो जायेगी।
पुष्पा: सही कह रही हो सुधा, हाय क्या बिगाड़ा था हमारे लल्ला ने उस का जो हमारे लल्ला के पीछे पड़ गई।
तभी अचानक से फुलवा गुस्से में बोलती है: उस रांड का तो मैं बिगाडूंगी, कलमुही कहीं की, आजा मेरे नाती से क्या टकराती है मुझसे भिड़ आकर, छिनाल न तेरी सारी प्यास बुझा दी तो मेरा नाम फुलवा नहीं,
रंडी इतनी गर्मी है चूत में तो अपने बेटे को पकड़ ना उसका लंड ले अपनी चूत में मेरे नाती को छोड़ नहीं तो तेरी आत्मा का भी वो हाल करवाऊंगी जो किसी ने सोचा भी नहीं होगा।
फुलवा का गुस्सा देख सुधा और पुष्पा भी डर गई वहीं मां को बेटे से चुदवा लेने की बात सुनकर दोनों ही एक दूसरे की ओर देखने लगी कि ये क्या कह रही हैं।
सुधा: अम्मा शांत हो जाओ, ऐसे गुस्से से कुछ नहीं होगा, अब ये सोचो आगे करना क्या है।
फुलवा: करना क्या है क्या? आज ही छोटू को पीपल पर ले जाऊंगी और झाड़ा लगवा कर आऊंगी।
पुष्पा: ठीक है अम्मा ले जाओ बस हमारे लल्ला के सर से ये बला है जाए,
फुलवा: अरे वो क्या उसका बाप भी हटेगा।
सुधा: अम्मा फिर इनको और जेठ जी को क्या बताना है वो लोग भी आते होंगे।
पुष्पा: बताना क्या है जो बात है वो बताएंगे।
फुलवा: नहीं ये बात हम तीनों के बीच ही रहेगी, छोटू को भी बोल देंगे कि वो और किसी को ना कहे,
पुष्पा: पर इनसे क्यों छुपाना अम्मा?
फुलवा: मर्दों को बताएगी न तो वो कुछ कराएंगे हैं नहीं ऊपर से छोटू को शहर लेकर चल देंगे हस्पताल में दिखाने, और वहां तो इसका इलाज होने से रहा,
पुष्पा: हां सही कह रही हो अम्मा। छोटू के पापा तो रात ही कह रहे थे कि छोटू को शहर के डाक्टर से दिखा लाते हैं।
फुलवा: इसीलिए तो कह रहीं हूं, इस बला का निपटारा हमें ही करना है,
सुधा: ठीक है अम्मा ऐसा ही करते हैं बाकी अब कोई पूछे तो बोलना है छोटू ठीक है।
पुष्पा: ठीक है ऐसा ही करूंगी।
फुलवा: आने दो छोटू को किसी बहाने से ले जाऊंगी पीपल पे।
तीनों योजना बनाकर आगे के काम पर लग जाते हैं।
इसके आगे अगले अध्याय में।
जबरदस्त अपडेट![]()
बहुत बहुत धन्यवाद भाई, आपको कहानी पसंद आ रही है ये जानकर हर्ष हुआ, रही बात छोटू के दोस्तों की तो कोई भी क़िरदार नाम के लिए नहीं है सबका अपना योगदान अपना सफ़र होगा, इसी तरह साथ बनाए रखें।Bahut hi amazing Writing hai aapki
Aisa laga jaise main khud Gaon main pahuch gaya hu, awesome skill Bhai
Chotu k dono dost mujhe jada pasand aaye
I hope wo bus naam k liye nahi honge
"बदन का स्वर्ग द्वार, उसकी रसीली बुर, जिसके होंठों पर अभी भी चासनी लगी हुई थी"
One of my Favourite line![]()
Erotic update. Aise hi ulte seedhe update dete raheअध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।
Shandaar updateअध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।
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धन्यवाद मित्रShandaar update
Mast jabardast hot erotic update bhaiअध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।
Bahut hi badiya update bhai ji ab to apke update ka intezar rahta h please hr update me ek seen pakka denaअध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।