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Amazing Updateअध्याय 5पुष्पा: हां सही कह रही हो अम्मा। छोटू के पापा तो रात ही कह रहे थे कि छोटू को शहर के डाक्टर से दिखा लाते हैं।
फुलवा: इसीलिए तो कह रहीं हूं, इस बला का निपटारा हमें ही करना है,
सुधा: ठीक है अम्मा ऐसा ही करते हैं बाकी अब कोई पूछे तो बोलना है छोटू ठीक है।
पुष्पा: ठीक है ऐसा ही करूंगी।
फुलवा: आने दो छोटू को किसी बहाने से ले जाऊंगी पीपल पे।
तीनों योजना बनाकर आगे के काम पर लग जाते हैं, अब आगे...
लल्लू और भूरा ने उन दो पन्नों को देख देख कर अच्छे से हिलाया था और अपना अपना रस से नीचे की घास को नहलाकर दोनों बैठे बैठे हांफ रहे थे।
लल्लू: भेंचो लग रहा है सारी जान निकल गई।
भूरा: हां यार मुझे तो भूख लग रही है बड़ी तेज।
लल्लू: हां साले पहले लंड की भूख अब पेट की, तू भूखा ही रहता है।
भूरा: हेहेह।
भूरा ने उठकर पजामा ऊपर करते हुए कहा, लल्लू ने भी अपने कपड़े ठीक कर लिए फिर एक पन्ना जो भूरा के हाथ में था भूरा उसे देखते हुए कुछ बोलने को हुआ पर रुक गया,
लल्लू: क्या हुआ क्या बोल रहा था या मुंह में लंड अटक गया हहहा।
भूरा: कुछ नहीं यार बोलने लायक बात नहीं है।
लल्लू: अबे फिर तो जल्दी बता, ऐसी क्या बात है जो बोलने लायक नहीं है।
भूरा: छोड़ ना यार गलत चीज है।
लल्लू: बता रहा है या नहीं भेंचो।
भूरा: यार ये तस्वीर में लड़की की गांड देखने पर न बार बार एक ही खयाल आ रहा है दिमाग में।
लल्लू: क्या?
भूरा थोड़ा सोच कर सकुचा कर बोलता है: यही की पुष्पा चाची की गांड इससे ज़्यादा अच्छी है।
लल्लू ये सुन कर चुप हो जाता है तो भूरा को लगता है गलत बोल दिया फिर तभी लल्लू बोलता है: यार सही कहूं तो मैं भी ये ही सोच रहा था।
भूरा: हैं ना चाची की मस्त है ना?
लल्लू: हां यार पर हम ये गलत नहीं कर रहे वो हमारे लंगोटिया की मां है हमारी खुद की मां जैसी है, पहले तो हमने उन्हें उस हालत में देखा और अब उनकी गांड के बारे में बातें कर रहे हैं।
भूरा: कह तो तू सही रहा है यार पर क्या करूं बार बार वोही चित्र सामने आ जाता है,
लल्लू: जानता हूं, एक काम करते हैं अभी घर चलते हैं कुछ खाते पीते हैं फिर सोचेंगे इस बारे में, और फिर छोटुआ से भी मिलना है।
भूरा: हां चल चलते हैं।
दोनो ही अपने अपने अपने घर की ओर चल देते हैं, दोनों की गली तो एक ही थी बस घर थोड़े अलग अलग थे भूरा घर पहुंचता तो है उसके घर के बाहर ही चबूतरे पर बैठा हुआ उसका दादा प्यारेलाल चिलम गुड़गुड़ा रहा होता है उसके साथ ही बगल में सोमपाल छोटू का दादा और कुंवर पाल लल्लू के दादा भी थे,
प्यारेलाल उसे देखते ही कहता है: आ गया हांड के गांव भर में।
भूरा: हां बाबा अगली बार तुम्हे भी ले चलूंगा।
भूरा ये कहते हुए घर में घुस जाता है,
प्यारेलाल: देख रहे हो कैसे जवाब देता है।
प्यारेलाल अपने साथियों से कहता है।
कुंवरपाल: अरे ये तीनों का गुट एक जैसा ही है, तीनों को कोई काम धाम नहीं बस गांव भर में आवारागर्दी करवा लो।
सोमपाल: अरे तुम लोग भी न, बालक हैं इस उमर में सब कोई ऐसा ही होता है, अपना समय भूल गए कैसे कैसे कहां कहां हांडते रहते थे।
प्यारेलाल: अरे ये तो सही कहा, क्या दिन थे वो बचपन के।
कुंवरपाल: तब हमारे बाप दादा हम पर ऐसे ही चिल्लाते थे।
तीनों ठहाका लगाकर ज़ोर से हंसते हैं।
भूरा भन्नता हुआ घर में घुसता है और सीधा आंगन में पड़ी खाट पर जाकर धम्म से बैठ जाता है, उसकी मां रत्ना सामने बैठी पटिया पर बर्तन धो रही होती है।
भूरा: मां बाबा को समझा लो जब देखो तब सुनाते रहते हैं।
रत्ना: अच्छा मैं तेरे बाबा को समझा लूं? तू बड़े छोटे की सब तमीज भूल गया है क्या? एक तो सुबह सुबह ही हांडने निकल जाता है, ना घर में कोई काम न कुछ, और क्यूं करेगा मैं नौकरानी जो हूं पूरे घर की सारा काम करती रहूं। बना बना के खिलाती रहूं लाट साहब को।
भूरा समझ गया उसने आज बोल कर गलती कर दी है दादा ने तो एक ही बात बोली थी अब मां अच्छे से सुनाएगी हो सकता है एक दो लगा भी दें।
भूरा: अरे मेरी प्यारी मां तुम क्यूं गुस्सा करती हो बताओ क्या काम है अभी कर देता हूं।
रत्ना: ज़्यादा घी मत चुपड़ बातों में, सब जानती हूं तू कितना ही काम करता है,
भूरा: अरे बताओ तो क्या करना है, बताओगी नहीं तो कैसे करूंगा, लाओ बर्तन धो देता हूं।
भूरा उसके पास आकर बैठ जाता है और उसके हाथ से बर्तन लेकर धोने लगता है।
रत्ना उसके हाथ से बापिस बर्तन छीन लेती है और कहती है: छोड़ नाशपीटे, पाप लगेगा मुझे लड़के और मर्द पर बर्तन धुलाऊंगी खुद के होते हुए तो पाप चढ़ जायेगा।
भूरा: फिर क्या करूं,
रत्ना: कुछ मत कर जा चूल्हा गरम है अभी अपने लिए चाय बना ले।
भूरा: अच्छा ठीक है बना लेता हूं, वैसे मां चाय बनवाने पर पाप वगैरा का कोई जुगाड़ नहीं है क्या?
रत्ना: अभी बताती हूं रुक नाशपीटे।
रत्ना हंसते हुए झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहती है भूरा की बातें सुन उसे हंसी आ जाती है, उधर भूरा चूल्हे में जा कर चाय बनाने लगता है।
रत्ना बहुत मेहनती थी जैसी अक्सर गांव की सारी महिलाएं होती हैं, घर का सारा काम साथ पशुओं का भी वो सब संभाल लेती थी, पर उसकी एक आदत थी कि वो डरती बहुत थी और बहुत अंधविश्वासी थी, किसी ने कोई टोटका आदि बता दिया तो वो ज़रूर करती थी ये सब शायद उसके डर की वजह से ही था, अपने परिवार की खुशी या समृद्धि के लिए दिन प्रतिदिन कोई न कोई टोटका उसका चलता ही रहता था, जिससे भी जो सुनती थी वो करने लगती थी, घर वाले उसकी आदत से परेशान थे पर कर भी क्या सकते थे इसलिए वो उसे जैसा चाहे करने देते थे।
बर्तन धोने के बाद वो उठती है और रसोई में देखती है भूरा चाय बना रहा होता है, भगोने में झुक कर देखती है और कहती है: अरे बस इतना सा पानी क्यों चढ़ाया है और डाल अब जब बना ही रहा है तो सब पी लेंगे,
भूरा: अरे तो पहले बतातीं ना।
रत्ना: तुझमें बिल्कुल भी बुद्धि नहीं है या सब गांव में घूम घूम कर लूटा दी,
भूरा: अरे बढ़ा तो रहा हूं क्यूं गुस्सा करती हो।
रत्ना: बना मैं नहाने जा रही हूं राजू या तेरे पापा आ जाएं तो उन्हें भी दे दियो चाय।
भूरा: जो आज्ञा मां की।
भूरा हाथ जोड़कर झुक कर कहता है।
रत्ना के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ जाती है: भांड गीरी ही करले तू।
ये कहकर वो पानी की बाल्टी और कपड़े लेकर आंगन के कोने में बने स्नानघर में घुस जाती है, स्नान घर क्या था एक ओर दीवार और फिर उसके सामने दो बांस गाड़ दिए थे जिनको चादरों से बांधकर और एक ओर लकड़ी आदि के पट्टे लगाकर धक दिया था और सामने से एक साड़ी का ही परदा बना कर लटका दिया था, स्नान घर में जाकर वो पानी की बाल्टी रखती है कपड़े एक ओर दीवार पर टांग देती है और फिर तुरंत अपनी साड़ी खोल कर नीचे एक ओर रख देती है, तभी उसे कुछ याद आता है और वो स्नानघर से बाहर निकलती है और रसोई की ओर आती है, भूरा अपनी मां को अपनी ओर आते देखता है तो पूछता है क्या हो गया?
रत्ना: कुछ नहीं,
भूरा की नज़र अनजाने में ही उसकी मां की नाभी पर पड़ती है जो उसके हर कदम पर थिरक रही थी, साथ ही उसका गदराया पेट देख भूरा को कुछ अजीब सा लगता है, वो मन ही मन सोचता है मां की नाभी और पेट कितना सुंदर है,
इतने में रत्ना पास आती है और चूल्हे के बाहर की ओर से ठंडी राख उठाने लगती है।
भूरा: अब राख का क्या करोगी?
रत्ना: बे फिजूल के सवाल मत पूछा कर। जो करती हूं करने दे।
भूरा: हां करो, तुम और तुम्हारे टोटके।
भूरा दबे सुर में ही बोलता है उसे पता था अगर उसकी मां ने सुन लिया तो फिर उस पर बरस पड़ेगी।
रत्ना मुट्ठी में राख लेती है और फिर बापिस चली जाती है, भूरा की नज़र अपने आप ही रत्ना के पेटीकोट और फिर उसमें उभरे हुए चूतड़ों पर चली जाती है, उसके मन में अचानक खयाल आता है, मां के चूतड़ पुष्पा चाची से बड़े होंगे या छोटे, वो ये सोच ही रहा होता है कि खुद को झटकता है, और सोचता है क्या हो गया है मुझे अब तक सिर्फ पुष्पा चाची के बारे में ऐसे गंदे विचार आ रहे थे और अब खुद की मां के बारे में, क्या होता जा रहा है मुझे? इतना गंदा दिमाग होता जा रहा है मेरा, इतनी हवस बढ़ती जा रही है कि अपनी मां और चाची को भी नहीं छोड़ रहा। रसोई में चूल्हे पर चढ़ी हुई चाय जितनी उबाल मार रही थी उससे कहीं अधिक उबाल इस समय भूरा का दिमाग मार रहा था, पर मन का एक चरित्र होता है मन पर नियंत्रण रखना किसके बस की बात है उससे जिसके बारे में सोचने की मना किया जाए उसी के बारे में ज्यादा सोचता है, यही अभी भूरा के साथ हो रहा था जितना वो उन विचारों से लड़ने की कोशिश कर रहा था वो विचार उस पर उतने ही हावी हो रहे थे।
स्नान घर के अंदर रत्ना एक और टोटका करने में लगी हुई थी, कहीं से उसके कानों में बात पड़ी थी कि नहाते हुए चूल्हे की राख लगाने से घर के सारे कलेश मिट जाते हैं, अब कोई भी होगा तो ये ही सोचेगा ऐसा कैसे हो सकता है क्या कारण है, राख में ऐसी क्या शक्ति है, पर रत्ना नहीं, रत्ना को स्त्रोत कारण, प्रक्रिया इन सब से कोई मतलब नहीं था वो बस सुनती थी और करती थी। खैर अभी वो वोही कर रही थी वैसे तो वो पेटिकोट को सीने पर बांधकर नहाती थी जैसे अक्सर गांव में औरतें नहाती हैं पर टोटके के कारण अभी वैसे नहाना तो संभव नहीं था इसलिए राख को उसने एक और रखी अपनी साड़ी पर रख लिया और फिर अपना ब्लाउज उतारने लगी ब्लाउज उतरते ही वो ऊपर से पूरी नंगी हो गई क्योंकि अंदर बनियान आदि तो वो या गांव की औरतें तभी पहनती थी जब कहीं आना जाना हो रिश्तेदारी आदि में, ब्लाउज के बाद उसने अपने पेटिकोट के नाडे को पकड़ा और उसकी गांठ खोल दी और पेटिकोट को भी तुरंत पैरों के बीच से निकाल दिया, और वो पूरी नंगी हो गई, उसे पूरा नंगा होकर एक अजीब सी शर्म और एक अलग सा अहसास महसूस हो रहा था वो ऐसे पूरी नंगी होकर कभी नहीं नहाती थी, और अभी बेटे के घर में होते हुए वो पूरी नंगी थी स्नान घर में ये सोच कर ही उसके बदन में एक अलग प्रकार की सिरहन हो रही थी जिसे वो खुद नहीं जान पा रही थी कि ये क्या है,
शायद ये वोही अहसास या भाव है जो हमें तब होता है जब हम ये जानते हैं कि कोई कार्य गलत है फिर भी हम उसे करते हैं, ये ही भाव अभी रत्ना के मन में हो रहा था,
रत्ना ने नीचे से साड़ी के ऊपर रखी राख को पानी की कुछ बूंदें डालकर गीला कर लिया और फिर थोड़ी सी राख लेकर अपने दोनों हाथों में फैलाई और सबसे पहले अपने सुंदर चेहरे को राख से रंगने लगी, उसका गोरा चेहरा राख के कारण थोड़ा काला लगने लगा पर रत्ना का चेहरा ऐसा था कि वो किसी भी रंग की होती सुंदर ही लगती, क्यूंकि उसका चेहरा गोल था भरे हुए गाल थे बड़ी बड़ी आंखें और उस पर उसके होंठ जिनका आकार बिलकुल धनुष जैसा था।
चेहरे के बाद उसके हाथ उसकी गर्दन पर चलने लगे, गर्दन के बाद अपनी बाजुओं को भी राख से घिसने लगी। बाजुओं के बाद उसने फिर से राख को अपने हाथों में मला और फिर हाथों को सीधा लाकर अपनी दो बड़ी बड़ी चूचियों पर रख दिया और उन्हें राख से मलने लगी, अपनी चुचियों को मलते हुए उसके बदन में उसे तरंगें उठती हुई महसूस होने लगी, उसे अपनी चूचियों पर अपने हाथों का एहसास अच्छा लगने लगा। उसकी पपीते जैसी मोटी चूचियां उसके हाथों में समा भी नहीं रही थी पर वो उन्हे सहलाते हुए सोचने लगी, भूरा के पापा जब दबाते हैं तब ऐसा नहीं लगता पर अपने हाथों से भी अच्छा लग रहा है मन करता है ऐसे ही मसलती रहूं, उसे अपनी चूत में भी थोड़ी नमी का एहसास सा होने लगा जिसे सोचकर वो मन ही मन शर्मा गई, और उसने जानकर अपनी चुचियों से हाथ हटा लिया, और फिर से राख लेकर उसे अपनी पीठ पर लगाने लगी, पीठ के बाद अपनी गदराइ कमर और फिर पेट को मला, यहां तक मलने से वो खुद को काफी उत्तेजित महसूस कर रही थी, उसने और रख ली और फिर एक एक करके अपने दोनों पैरों और जांघों को मला, उसके बाद उसने फिर से राख ली और सोचने लगी क्यूंकि बस एक ही हिस्सा बचा था, खैर उसने एक सांस ली और फिर हाथों को पीछे ले जाकर अपने दोनों बड़े बड़े चूतड़ों को मलने लगी, जो उसके मलने से बुरी तरह हिल रहे थे, वो मन ही मन सोचने लगी कि उसके चूतड़ कितने बढ़ गए हैं, बताओ कैसे थरथरा रहे हैं मलने पर, उसने ये सोचते हुए चूतड़ों पर एक हल्की सी थाप मार दी तो उनमें एक बार फिर से लहर आ गई जिसे देख वो शर्मा गई,
पीछे लगाने के बाद उसने बची हुई राख ली और उसे लेकर अपनी पानी छोड़ती बुर पर उंगलियां रखी तो उसके पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गई और उसके मुंह से एक हल्की सी आह निकल गई, उसके बदन में उसे एक गर्मी का एहसास हो रहा था उसने तुरन्त अपनी उंगलियां चूत के ऊपर से हटा लीं, पर उंगलियां हटाते ही उसकी चूत में एक खुजली सी होने लगी, उसका मन कर रहा था कि अभी उंगलियां लगाकर अच्छे से खुजली मिटा दे, पर वो जानती थी कि उसकी चूत की खुजली सिर्फ खुजली नहीं बल्कि उत्तेजना थी।
वो चाह तो नहीं रही थी पर उससे रहा भी नहीं जा रहा था और आखिर बदन की इच्छा के आगे मजबूर होकर उसने अपनी उंगलियां बापिस चूत के ऊपर रख दी तो उसके मुंह से एक बार फिर से सिसकी निकल गई, रत्ना धीरे धीरे अपनी उंगलियों से अपनी चूत के होंठों को सहलाने लगी, उसे एक अलग सा मज़ा आने लगा, जैसे लकड़ी से लड़की घिसने और लोहे से लोहा घिसने पर ऊर्जा उत्पन्न होती है वैसे ही उसकी बुर और उंगलियों की घिसावट से एक ऊर्जा एक गर्मी उत्पन्न हो रही थी जो कि उसके पूरे बदन में फैल रही थी और उसको तड़पा रही थी, धीरे धीरे वासना रत्ना के ऊपर सवार होने लगी उसकी आंखें बन्द हो गई और वो अपनी बुर को अलादीन के चिराग की तरह घिसते लगी, जिसमें से वासना और उत्तेजना रूपी ज़िंद निकल कर उसके बदन पर चढ़ गया था, कुछ ही पलों में जो उंगलियां उसकी बुर को बाहर से घिस रही थीं वो धीरे धीरे अंदर प्रवेश करने लगीं रत्ना भूलने लगी कि वो कहां किस हालत में है और अपनी उंगलियों से अपनी चूत की खुजली मिटाने लगी।
रसोई में बैठा हुआ भूरा अपनी उथल पुथल में था बल्कि और गहरा फंसता जा रहा था, अब तो उसके दिमाग में ये भी विचार आने लगा था कि उसकी मां की गांड नंगी कैसी दिखती होगी, और वो जितना इन विचारों से लड़ने की कोशिश कर रहा था उतना वो उस पर हावी हो रहे थे, तभी उसे अचानक से चाय का ध्यान आया तो उसने भगोने में देखा चाय पक चुकी थी अब बस दूध डालना था, उसने जल्दी से दूध निकाल कर डाला उसके मन में फिर से वही विचार घूमने लगे। स्नान घर में रत्ना की उंगलियां उसकी चूत में घूम रहीं थी, और उसके मुंह से हल्की हल्की सिसकियां भी निकल रही थी जो कि कोई भी आस पास होता तो सुन सकता था पर किस्मत से भूरा रसोई में बैठा था, उंगलियां लगातार उसकी चूत में अंदर बाहर हो रही थी उसका एक हाथ स्वयं ही उसकी चूची को मसलने लगा था, उंगलियों की लगातार मेहनत और साथ ही चुचियों का मसला जाना रत्ना के लिए एक पल को असहनीय हो गई और उसकी चूत ने खुशी के आंसू बहा कर उंगलियों को भीगा दिया, झड़ते हुए उसकी कमर झटके से खाने लगी साथ ही उसे अपनी टांगें भी कमज़ोर पड़ती हुई महसूस हुई तो वो धीरे धीरे नीचे की ओर बैठती चली गई और जब झड़ना खत्म हुआ तो वो नीचे बैठी हुई बुरी तरह हान्फ रही थी ऐसा तो वो उसे भूरा के पापा के साथ चुदाई के बाद भी एहसास नहीं होता था जैसा अभी हो रहा था, झड़ने के बाद उसे अहसास हुआ कि उसने अभी क्या किया तो उसे खुद पर लज्जा आने लगी साथ ही एक ग्लानि भाव मन में आ गया।
पानी को अपने बदन पर डालते हुए वो सोचने लगी कि मुझे क्या होता जा रहा है, क्या सच में मैं इतनी प्यासी हूं कि बेटे के रसोई में होते हुए भी नंगी होकर ये सब कर रही थी, इतनी हवस मेरे अंदर कैसे आ गई, भूरा के पापा जब कभी चुदाई के लिए कहते हैं तो मैं खुद कितने ही नखरे करने के बाद उन्हें करने देती हूं और आज खुद से ही ये सब, ज़रूर कुछ गलत हो रहा है।
रसोई में बेटा तो स्नानघर में मां दोनो ही ग्लानि भाव से डूबे हुए सोच में पड़े थे और दोनों की ग्लानि का कारण काम और उत्तेजना ही थे। चाय में उबाल आया तो भूरा ने चूल्हे से उतार ली इतने में उसका भाई राजू और पापा राजकुमार भी आ गए, भूरा ने उन्हें भी अपनी बनाई हुई चाय दी तो दोनों ही हैरान थे कि आज भूरा को कहां से चाय बनाने का शौक लग गया, कुछ ही देर में रत्ना भी नहाकर बाहर निकल चुकी थी और उनके पास आ कर बैठ कर वो भी चाय पीने लगी, भूरा चोरी छिपे अपनी मां को न चाहते हुए भी निहार रहा था और उसे एक अलग ढंग से देख रहा था। आज तक मां उसे मां नज़र आती थी पर अभी एक औरत नज़र आ रही थी एक भरे बदन की गदराई हुई औरत।
दूसरी ओर छोटू जैसे ही शौच आदि से निवृत होकर आया वैसे ही उसे उसकी अम्मा फुलवा ने घेर लिया: आ गया लल्ला चल जल्दी से नहा ले।
छोटू: पर इतनी जल्दी क्या है अम्मा?
फुलवा: अरे जल्दी कैसे ना है, जो रात हुआ वो दोबारा न हो इसके लिए उपाय तो करना पड़ेगा ना, और सुन ये बात जो तूने हम तीनों को बताई वो और किसी को नहीं पता चलनी चाहिए, तेरे उन दोनो यारों को भी नहीं।
छोटू: पर क्यूं अम्मा? बताने मे क्या नुकसान है?
फुलवा: कह रही हूं ना नहीं बतानी, ऐसी बातें बताई नहीं जाती समझा।
छोटू: ठीक है अम्मा।
फुलवा: जा अब जल्दी जा नहा ले।
छोटू बेमन नहाने जाता है वो सोचता है अपना फैलाया रायता है बटोरना तो पड़ेगा ही कुछ कहूंगा तो खुद ही फंस जाऊंगा।
नहा धो लेता है तो फुलवा उसे अपने साथ लेकर चल निकल जाती है।
घर के बाकी मर्द भी खा पी कर खेतों पर चले जाते हैं, सुधा पटिया के बगल में बैठी बर्तन मांझ रही होती है और पुष्पा पटिया पर बैठ कर कपड़े धो रही होती है, सुधा देखती है कि उसकी जेठानी कुछ सोच में डूबी हुई है।
सुधा: अरे दीदी अब सोचना छोड़ो अम्मा लेकर तो गई है छोटू को झाड़ा लग जायेगा तो सब ठीक हो जायेगा।
पुष्पा: अरे नहीं मैं कुछ और सोच रही थी।
सुधा: क्या?
पुष्पा: वही उदयभान की लुगाई के बारे में, मुझे तो उसका नाम भी नहीं पता, आखिर क्या हुआ होगा कि उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा और उसने फांसी लगा ली।
सुधा: कह तो सही रही हो दीदी, और सही कहूं तो मुझे नहीं लगता उसकी सच्ची बात किसी को पता भी है, जितने मुंह हैं उतनी बातें हैं।
पुष्पा: वही तो कोई कहता है वो रांड थी उसके बदन में बहुत प्यास बढ़ गई थी मर्दों के पीछे पड़ी रहती थी।
सुधा: हां कहते तो यहां तक हैं कि अपने ससुर तक के साथ उसके संबंध थे तभी तो और एक दिन उसने ससुर के साथ ऐसा सम्भोग किया की ससुर बिस्तर पर ही लुढ़क गया और उसी के बाद उसने फांसी लगा ली।
पुष्पा: पता नहीं क्या सच्चाई है क्या झूठ, वैसे इतनी गर्मी हो सकती है बदन में कि सही गलत का बोध ही न रहे।
सुधा: दीदी होने को तो कुछ भी हो सकता है, और तुम्हें पता है औरत के बदन में इन मर्दों से ज़्यादा गर्मी होती है, पर समाज और परिवार के खयाल से औरतें छुपा के रखती हैं।
पुष्पा: हां ये तो सही कहा तूने, घर परिवार का मान औरत से ही माना जाता है।
सुधा: पर दीदी होता तो औरत के पास बदन ही है ना, उसकी भी इच्छाएं होती हैं, बदन की जरूरतें होती हैं, जब ये पूरी नहीं होती तब ही कोई औरत गलत कदम उठाती है।
पुष्पा: पर गलत कदम उठाना भी सही नहीं माना जा सकता भले ही कुछ भी मजबूरी हो।
सुधा: बिलकुल नहीं होना चाहिए दीदी गलत तो गलत है, पर हम ये भूल जाते हैं कि जितनी गलती औरत की होती है उतनी ही आदमी की भी होती है।
पुष्पा: आदमी की मतलब?
सुधा: दीदी औरत गलत कदम क्यूं उठाती है, अपने आदमी की वजह से, जब उसे आदमी के प्यार की जगह तिरस्कार मिलने लगे, सम्मान की जगह अपमान मिलने लगे और सबसे बड़ी बात जब आदमी उसके बदन की जरूरतों को पूरा न कर सके तो औरत कहीं और ये सब खोजने लगती है।
पुष्पा: हां री, इस तरह से तो मैंने कभी सोचा नहीं था, सच में बड़ी होशियार है तू।
सुधा: क्या दीदी तुम भी, इसमें कौनसी समझ दारी है।
पुष्पा: वैसे अच्छा है हमारे घर में ऐसा नहीं है, खासकर तेरे साथ बाबू अच्छे से सारी जरूरतें पूरी करते हैं तेरी।
सुधा: धत्त दीदी तुम भी ना कहां की बात कहां ले आई।
पुष्पा: अरे गलत थोड़े ही बोल रही हूं, जो सच है वो सच है।
सुधा: तुम्हें बड़ा पता है क्या सच है, हां नहीं तो।
पुष्पा: अच्छा बेटा किवाड़ बंद करके क्या क्या होता है कमरे में, क्या मुझे नहीं पता।
सुधा ये सुन शर्मा जाती है,
सुधा: कुछ नहीं होता सोते हैं हम बस।
पुष्पा: ओहो देखो तो सोते हैं, कितना सोते हो इसका जवाब तो तेरा बदन ही दे रहा है, देख कैसे गदराता जा रहा है।
पुष्पा सुधा की छाती की ओर इशारा करके कहती है।
सुधा: धत्त, अच्छा इस हिसाब से तो तुम्हें जेठ जी पूरी रात छोड़ते ही नहीं होंगे, अपनी तो देखो कैसे ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ रही हैं।
सुधा के पलटवार से पुष्पा भी थोड़ा शरमा जाती है और पलटवार करती है,
पुष्पा: अच्छा मुझे कहां पकडेंगे तेरे जेठ जी, हम लोग तो आंगन में ही सोते हैं सबके साथ।
सुधा: अच्छा दीदी मूंह मत खुलवाओ मेरा, कब खाट से उठती हो कब रात में कमरे के किवाड़ खुलते हैं सब पता है मुझे।
सुधा के इस वार ने तो पुष्पा की बोलती ही बंद कर दी।
पुष्पा: हट बहुत बोलती है चल अब नहाने दे मुझे।
धुले कपड़ों की बाल्टी को एक और सरकाकर पुष्पा कहती है।
सुधा: अरे तो नहाओ न मैंने कहां रोका है, वैसे शर्मा तो नहीं रहीं अपना गदराया बदन मुझे दिखाने में।
पुष्पा: मैं क्यूं शर्माने लगी, जो मेरे पास है वोही तेरे पास है,
पुष्पा खड़े होते हुए कहती है और अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगती है और हुक खोलने के बाद अपने पेटिकोट को खोलकर अपनी छाती पर बांध लेती है।
सुधा: अच्छा शर्मा नहीं रही हो तो फिर ये पेटिकोट से क्या छुपा रही हो।
पुष्पा: अरे नहा रही हूं तू क्या चाहती है नंगी हो जाऊं तेरे सामने।
सुधा: और क्या हो जाओ, शर्माना कैसा है वैसे भी हम दोनों के अलावा कोई है भी नहीं घर में।
पुष्पा: हट पगला गई है तू, नंगे होकर नहाऊंगी अब।
सुधा: नंगे होकर ही नहाना चाहिए, वो तो कोई हो तो हम अपने बदन को ढंक लेते हैं, औरतों में क्या शर्माना।
सुधा पुष्पा को आज ऐसे ही छोड़ने वाली नहीं थी वो अच्छे से उसे चिढ़ाना चाहती थी।
पुष्पा: अरे तू भी ना मैं शर्मा नहीं रही हूं, वो तो बस हमेशा ऐसे ही नहाती हूं इसलिए।
सुधा: नहीं दीदी तुम शर्मा तो रही हो, भले ही जो मेरे पास है वो ही तुम्हारे पास है पर तुम्हारा वो सब मुझसे बड़ा बड़ा है।
पुष्पा: आज तू बिल्कुल पगला गई है, पीछे ही पड़ गई है।
सुधा: तो मान लो बात फिर और पेटिकोट खोल कर नहाओ।
पुष्पा एक गहरी सांस लेती है और कहती है: ठीक है पर मेरी भी एक बात तू भी मानेगी तुझे भी नंगे होकर नहाना पड़ेगा।
पुष्पा बड़े आत्मविश्वास से कहती है वो सोचती है कि खुद के नंगे होने की सुनकर सुधा अभी पीछे हट जाएगी। पर सुधा का जवाब उसे हैरान कर देता है।
सुधा: ठीक है मैं भी ऐसे ही नहाऊँगी, अब उतारो जल्दी से।
पुष्पा की चाल उल्टी पड़ जाती है, वो फिर हार मानते हुए कहती है: पता नहीं क्या क्या करवाती रहती है तू भी।
और इतना कहकर पुष्पा अपनी छाती के ऊपर बंधे पेटीकोट को खोल देती है और पेटिकोट उसके गदराए बदन से सरकते हुए नीचे गिरने लगता है और कुछ ही पलों में पुष्पा अपनी देवरानी के सामने नंगी खड़ी होती है।
सुधा ऊपर से नीचे तक अपनी जेठानी पुष्पा के बदन को देखती है और देख कर एक पल को उसका मुंह खुला का खुला का रह जाता है, वैसे तो सुधा ने पुष्पा को नहाते हुए और शौच आदि करते हुए बहुत बार देखा था पर ऐसे बिल्कुल मादरजात नंगी आज पहली बार देख रही थी, उसकी पपीते के आकार की चूचियां जिनमें एक कसावट थी, चूचियों के बीच अंगूर जैसे आकार के निप्पल जो तन कर खड़े होकर मानो पुकार रहे हों, चुचियों के नीचे गदराया हुआ पेट बीच में गोल गहरी नाभी जो किसी रेगिस्तान में एक गहरे कुएं की याद दिला रही थी, नाभी से नीचे हल्की हल्की झांटे थी उसके की नीचे चूत की लकीर की शुरुआत का आभास हो रहा था पर पुष्पा ने अपनी टांगों को चिपका कर उसे छिपा रखा था,
अपनी जेठानी का नंगा बदन देख कर सुधा का मुंह में पानी आ गया, उसे अहसास हुआ कि उसकी जेठानी का बदन सचमुच कितना कामुक है, एक औरत होकर भी उसके मन में जेठानी के प्रति आकर्षण हो रहा था तो अगर कोई मर्द ऐसे देखले तो उसका क्या होगा।
पुष्पा: ले हो गई खुश तू?
सुधा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वो अपने मुंह में आए पानी को गटक कर कहती है: हां दीदी, और सच कहूं तो क्या बदन है तुम्हारा, मैं अगर आदमी होती ना तो दिन भर तुम्हारे ऊपर चढ़ी रहती।
हर औरत की तरह पुष्पा को भी अपनी तारीफ सुनकर अच्छा लगा पर वो शरमाते हुए बोली: हट ना जाने क्या क्या बोलती रहती है तू।
पुष्पा लोटे से पानी अपने बदन पर डालते हुए बोली।
सुधा: सच में जीजी तुम्हारा बदन बहुत ही कामुक है, ऐसा बदन तो भोगने के लिए ही बनता है, जेठ जी पता नहीं कैसे तुम्हें अकेला छोड़ देते हैं।
पुष्पा: आज तेरे दिमाग पर कौनसा भूत सवार हो गया है जो ऐसी बाते कर रही है।
पुष्पा अपने पूरे बदन पर पानी डालते हुए बोली,
सुधा: अरे दीदी तुम्हें कोई ऐसे देख ले न तो उसपर कामवासना का भूत अपने आप चढ़ जायेगा। बताओ एक औरत होकर मुझे ऐसा हो रहा है तो आदमी का क्या हाल होगा।
पुष्पा जता नहीं रहीं थी पर उसे अपनी देवरानी द्वारा मिल रही तारीफ अच्छी लग रही थी और किस औरत को नहीं लगेगी और प्रशंशा का महत्व तो अपने आप ही बढ़ जाता है जब कोई दूसरी औरत करे तो क्योंकि आमतौर पर तो औरतों में होड़ लगी रहती है।
सुधा की बातें सुनकर और यूं आंगन में नंगे होकर नहाने से पुष्पा के बदन में उसे गर्मी और उत्तेजना का एहसास हो रहा था, उसे अपनी चूत में भी हल्की हल्की नमी महसूस हो रही थी, जिसे दबाने का वो प्रयास कर रही थी
पुष्पा: अब मजाक करना बंद कर तू और मुझे नहाने दे।
सुधा: अरे तो नहाओ न मैंने कब रोका है, मेरे बर्तन भी धूल गए, अब मैं भी नहाऊंगीं।
सुधा ने बर्तनों की टोकरी को एक और सरकाते हुए कहा,
पुष्पा: ठीक है जल्दी जल्दी नहा लेते हैं अम्मा भी आने वाली होंगी।
सुधा: हां दीदी, जल्दी नहा लेते हैं।
ये कहते हुए सुधा अपनी साड़ी खोलने लगी, पुष्पा अपने पैरों को घिसते हुए अपनी देवरानी को कनखियों से उसे देख रही थी, साड़ी के बाद सुधा ने अपना ब्लाउज खोलना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में उसे खोल कर अपनी बाजुओं से निकाल दिया तो पुष्पा की नज़र अपनी देवरानी की चुचियों पर अटक गई, सुधा की चूचियां उससे आकार में उन्नीस जरूर थीं पर उनकी गोलाई, कसावट और बीच में निप्पल और उसके आसपास का घेरा मानो ऐसा था जैसे किसी शिल्पकार ने बड़ी मेहनत और लगन से उन्हें रचा हो। सुधा तो बस अपनी देवरानी के जोबन को देखकर मंत्र मुग्ध सी हो गई, पर अगले ही पल कुछ ऐसा हुआ जिसकी आशा उसने नहीं की थी, सुधा ने पेटिकोट की गांठ खोली पर उसे अपने सीने पर चढ़ा कर बांधने की जगह सुधा ने उसे छोड़ दिया और वो उसके बदन से सरकता हुआ उसके पैरों में गिर गया।
पुष्पा के हाथ जो उसके पैरों को घिस रहे थे वो ज्यों के त्यों रुक गए, वो टकटकी लगाकर बस सुधा को देखने लगी, सुधा का बदन भी काम कामुक नहीं था कामुकता तो उसे भी जेठानी की तरह भर भर कर मिली थी, और इस सत्य की साक्षी खुद पुष्पा उसकी जेठानी थी जो कि नज़रें गड़ाए उसकी ओर देखे जा रही थी।
सुधा ने अपनी जेठानी को अपनी ओर यूं देखते हुए पाया तो उसके मन में भी एक उत्साह सा हुआ साथ ही बदन में एक उत्तेजना की लहर दौड़ गई, उसे भी अपनी चूत नम होती हुई महसूस हुई।
सुधा: ऐसे का देख रही हो दीदी, फिर मत कहना कि मैंने तुम्हारी शर्त पूरी नहीं की,
पुष्पा तो शर्त की बात भूल ही चुकी थी, फिर उसे याद आया तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, और खुद को थोड़ा संभालते हुए वो अपने हाथ पैर धोने लगी, पर उसकी नजरें अभी भी सुधा के बदन पर ही थी या यूं कहें कि वो हटाना ही नहीं चाह रही थी,
सुधा को भी पुष्पा का यूं उसे देखना बहुत भा रहा था, औरत के चरित्र में ही होता है अपनी कामुकता दिखाकर दूसरे को उत्साहित और उत्तेजित करना, पर अगर यही वो किसी औरत के साथ कर सके तो उसका आत्मविश्वास आकाश छूने लगता है।
इसी आत्मविश्वास के साथ सुधा ने अगला कदम बढ़ाया और पेटिकोट को पैरों से निकालने के बहाने से वो दूसरी तरफ घूम गई और बड़ी कामुकता से झुक कर अपने चूतड़ों को बाहर की ओर निकाल कर पेटिकोट को उठाने लगी, जिससे की उसके गोल मटोल चूतड़ उभर कर पुष्पा के सामने आ गए और पुष्पा के हाथ एक बार फिर से रुक गए, हालांकि पुष्पा ने शौच करते हुए सुधा के चूतड़ों को हज़ारों बार देखा था, पर अभी की परिस्थिति अलग थी, उसे लग रहा था वो उन चूतड़ों को आज पहली बार देख रही है, चूतड़ क्या थे मानो दो गोल पटीलों को सटाकर रख दिया गया हो, सुधा की चूचियां आकार में भले ही जेठानी से छोटी हों पर उसकी गांड़ बिल्कुल उसके बराबर थी, और उतनी ही कामुक और गोल थी,
पुष्पा तो ये दृश्य देख कर बिलकुल सुन्न सी होकर देखने लगी, सुधा को भी ये एहसास था कि उसकी जेठानी की नज़र उसके चूतड़ों पर ही है, उसे अपनी जेठानी को इस तरह लुभाने और सताने में बहुत अच्छा लग रहा था साथ ही उसको एक अलग प्रकार की उत्तेजना हो रही थी, जिसे वो खुद भी नहीं समझ पा रही थी पर उसे अच्छा लग रहा था, उसे अपनी चूत में नमी बढ़ती हुई महसूस हो रही थी। इसी को आगे बढ़ाते हुए सुधा थोड़ा और झुकी और उसने पेटिकोट के साथ साथ पड़े ब्लाउज को भी उठाया तो उसके चूतड़ खुल गए और लगा मानों दो पर्वतों ने थोड़ा खिसककर नदी के लिए रास्ता कर दिया हो, पुष्पा की नज़र भी उस नदी यानी सुधा के चूतड़ों की दरार पर टिक गई, और अगले ही पल उसे सुधा की गांड के उस भूरे से छेद का दर्शन हो गया, जिसे देखते ही पुष्पा को लगा उसकी चूत से पानी की कुछ बूंदे टपकी हों, पुष्पा बिलकुल एक टक अपनी देवरानी के गांड के छेद को देखे जा रही थी, पुष्पा का बदन उत्तेजना से भर उठा उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
सालों साथ शौच करने के बाद भी पुष्पा ने आजतक सुधा के गांड के छेद को नहीं देखा था क्योंकि अधिकतर वो अगल बगल में ही बैठती थीं और फिर धोकर चल देती थी, और सुधा ही क्या, पुष्पा ने बच्चों के अलावा किसी के गुदा द्वार को नहीं देखा था, उसे तो यही लगता था कि ये बदन का सबसे गंदा छेद होता है और इसे तो सबसे ही छुपा के रखना चाहिए, वो तो अपने पति सुभाष को भी नहीं देखने देना चाहती थी पर कई बार पति ने जब उसे नंगा कर के चोदा था तो देख ही लिया था पर उसके अलावा तो ऐसा कोई अनुभव उसका ऐसा नहीं था, और यहां उसकी देवरानी अपने उसी छेद को कितनी सहजता से उसके सामने उजागर कर रही थी, ये देख कर बहुत से भाव उसके मन में आ रहे थे।
कुछ पल बाद सुधा बापिस खड़ी हो गई तो पुष्पा के सामने से वो दृश्य हट गया, पर मन ही मन वो चाह रही थी वो बस ऐसे ही देखती रहे, ये खयाल आते ही पुष्पा ने सोचा क्या हो गया है उसे क्यों उसके मन में ऐसे विचार आ रहे हैं।
सुधा कपड़ों को उठाकर एक और बाल्टी में रखकर पुष्पा के पास पटिया पर आ गई, पर ज्यों ज्यों सुधा पास आ रही थी न जाने क्यों पुष्पा की छाती में जोर जोर से धक धक होने लगी, उसका पूरा बदन एक रोमांच से भरने लगा।
पुष्पा: तू यहां क्या कर रही है।
सुधा: क्या कर रही है मतलब, नहाऊंगी.
ये सुनकर पुष्पा का जी डोलने लगा।
पुष्पा: ऐसे साथ में,
पुष्पा ने सकुचाते हुए पूछा उत्तर जानते हुए भी, पुष्पा अपनी देवरानी के साथ आज ऐसा महसूस कर रही थी जैसे सुहागरात पर बिस्तर पर कुंवारी दुल्हन अपने पति के सामने करती है, मन में बहुत से विचार थे डर था, उत्तेजना थी, उत्साह था, साथ ही द्वंद था, चिंता थी और असहजता थी, वहीं सुधा उसे मर्द लग रही थी जिसे पता था क्या करना है वो आत्मविश्वास से भरी हुई थी, वहीं पुष्पा के मन में सिर्फ संशय ही था।
सुधा: हां दीदी साथ में, क्यों तुम्हें डर तो नहीं लग रहा कि हमारे बीच कुछ हो न जाए
सुधा ने हंसी करते हुए कहा पर पुष्पा को लगा कि सुधा तो उसके मन की बात जान गई है, पर फिर वो संभालते हुए बोली: हट मुझे और तुझसे किस बात का डर, वैसे भी औरत औरत के बीच क्या होगा।
ये जवाब सुधा से ज्यादा पुष्पा ने अपने आप को समझाने के लिए था।
सुधा: ठीक है फिर नहाते हैं।
सुधा ने लोटा उठाते हुए कहा।
इसके आगे अगले अपडेट में,
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Waaah Sattu toh khiladi nikla puraअध्याय 6
सुधा ने हंसी करते हुए कहा पर पुष्पा को लगा कि सुधा तो उसके मन की बात जान गई है, पर फिर वो संभालते हुए बोली: हट मुझे और तुझसे किस बात का डर, वैसे भी औरत औरत के बीच क्या होगा।
ये जवाब सुधा से ज्यादा पुष्पा ने अपने आप को समझाने के लिए था।
सुधा: ठीक है फिर नहाते हैं।
सुधा ने लोटा उठाते हुए कहा, आगे...
और फिर सुधा ने लोटा को पानी से भरा और अपने सीने पर डालकर अपनी मोटी चूचियों को भिगाने लगी। पुष्पा तिरछी नज़रों से सुधा के नंगे बदन के ही निहार रही थी,
सुधा: दीदी हम पहले ऐसे साथ में कभी नहीं नहाए न?
पुष्पा: हां इससे पहले तूने ये पागलों वाला काम नहीं करवाया।
सुधा: पागलों वाला क्या है इतना अच्छा लग रहा है साथ में नहाने में, कितना फायदा ही फायदा है।
पुष्पा: फायदा कैसा फायदा ?
सुधा: देखो पानी की बचत, समय की बचत, और सबसे बड़ी बात एक दूसरे की मदद कर सकते हैं।
पुष्पा: नहाने में क्या मदद करेंगे री?
पुष्पा ने अपनी पीठ को मलते हुए कहा,
सुधा: रुको बताती हूं।
ये कहकर सुधा थोड़ा आगे बढ़ी तो पुष्पा के बदन में एक सिरहन सी होने लगी ना जाने क्यों, वो समझ नहीं पा रही थी आज हो क्या रहा है, पर उसके आगे कुछ सोचती कि सुधा उसके पीछे की ओर पहुंच गई और पुष्पा का हाथ पकड़ कर उसकी पीठ से हटा दिया और फिर पुष्पा को अपनी नंगी पीठ पर अपनी देवरानी का हाथ महसूस हुआ, वो उसकी पीठ पर फिसलने लगा।
सुधा: देखो ये हुई ना मदद हम लोग एक दूसरे के बदन को साफ करने में मदद कर सकते हैं,
पुष्पा ये सुनकर चुप हो गई, उसे समझ नहीं आ रहा था क्या बोले पर इतना ज़रूर था कि उसे अपने बदन पर सुधा का हाथ चलता हुआ अच्छा लग रहा था, वो मन ही मन सोचने लगी कि मैं क्यों इतना सकुचा रही हूं, वो भी अपनी देवरानी के आगे, ऐसे ही चुप चुप रहूंगी तो उसे लगेगा की मैं बुरा मान रही हूं, वैसे भी दो औरतें साथ में नहाएं तो इसमें गलत क्या है।
पुष्पा: हां कह तो सही रही है तू, ये उपाय अच्छा है पानी बचाने का और जहां हमारा खुद का हाथ नहीं पहुंचता वो हिस्सा भी साफ हो जाएगा।
सुधा: तभी तो हमने बोला दीदी।
सुधा उसकी पीठ और कंधों को अच्छे से मलते हुए बोली, दोनों के नंगे बदन इस समय गीले होकर पानी से चमक रहे थे, देवरानी जेठानी को कोई इस हालत में देख लेता तो बस देखता ही रहता।
सुधा को भी अच्छा लग रहा था कि उसकी जेठानी साथ दे रही है, साथ ही जेठानी के भरे बदन को स्पर्श करने मात्र से उसकी खुद की चूत नम हो रही थी, पीठ और कंधों को रगड़ते हुए सुधा ने हाथों को दोनों ओर से कमर पर भी चलाना शुरू कर दिया, पुष्पा को तो वैसे भी ये अच्छा लग रहा था तो उसने कुछ नहीं कहा,
सुधा: दीदी हम तुम्हारा बदन मल रहे हैं तुम्हें भी हमारा मलना है। मुफ्त की सेवा मत समझना।
सुधा ने हंसते हुए कहा तो पुष्पा की भी हंसी छूट गई,
पुष्पा: हां भाई मल दूंगी, नहीं दूंगी तेरी मुफ्त की सेवा।
साथ ही पुष्पा को ये भी ज्ञात हो गया कि उसे भी सुधा का बदन छूने का मौका मिलेगा, ये सोचकर उसकी उत्तेजना और बढ़ गई।
सुधा: फिर सही है।
सुधा पुष्पा की कमर को दोनों ओर एक एक हाथ से मल रही थी, पुष्पा की गदराई कमर उसे बहुत अच्छी लग रही थी, कमर मलते हुए धीरे धीरे उसने अपने हाथों को आगेकी ओर यानी पेट की ओर ले जाना शुरू कर दिया, और हाथों को आगे लाने के कारण उसे पीछे से पुष्पा के और पास या यूं कहें कि पुष्पा से चिपकना पड़ा, पुष्पा को अचानक अपनी पीठ पर सुधा की चुचियों का खासकर उसके सख्त निप्पल के चुभने का एहसास हुआ तो पुष्पा के बदन में उत्तेजना की एक लहर सी दौड़ गई। उसे लगा उसकी चूत ने पानी की कुछ बूंदे बहा दी हैं, सुधा के दोनों निप्पल उसे लग रहा था मानों उसकी पीठ में घुसते जा रहे हैं, पानी से भीगे होते हुए भी उसे लग रहा था की वो कितने गरम हैं।
यही हाल कुछ सुधा का हुआ जैसा ही उसकी चूचियां और निप्पल ने पुष्पा की पीठ को छुआ तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई उसके निप्पल का पुष्पा की पीठ से स्पर्श हुआ तो उसे लगा जैसे कि उसके निप्पल गरम हो गए हैं और एक अलग तरह का अहसास उसे हुआ, उसकी चूत उसे गीली होती हुई महसूस हुई, कुछ पल को तो उसके हाथ भी रुक गए जिस पर शायद पुष्पा ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि वो खुद अपने भंवर में थी।
सुधा को न जाने क्या हुआ वो खुद को रोक नहीं पाई और वो पीछे से बिल्कुल पुष्पा से चिपक गई, उसके हाथ पुष्पा के पेट पर कस गए, पुष्पा की पीठ में उसकी चूचियां और धंस गई, पुष्पा को भी ये अहसास हुआ तो उसके सीने में तेज़ से धक धक होने लगी।
सुधा को जैसे अहसास हुआ कि उसने ये क्या किया तो बात को संभालते हुए बोली: अरे दीदी पैर फिसल गया था।
पुष्पा: कोई बात नहीं, लगी तो नहीं तुझे?
पुष्पा ने अपने पेट पर रखे उसके हाथों को अपने हाथों से सहलाते हुए पूछा तो सुधा को भी चैन आया, कि जेठानी को बुरा तो नहीं लगा, पर साथ ही हाथों को हाथ पर सहलाने से उसने या भी जता दिया कि वो चाहती है कि वो आगे भी उसके बदन को मलती रहे।
पुष्पा को खुद यकीन नहीं हुआ की उसके अंदर इतना जोश और विश्वास कहां से आ रहा था क्या ये सब उसका बदन उससे करवा रहा था।
सुधा ने उसका पेट मलना मसलना शुरू कर दिया, पुष्पा के मुंह से हल्की सिसकियां निकलने लगी जिन्हें वो दबाना चाह रही थी, पर सुधा को फिर भी अपनी जेठानी की हल्की सिसकियां सुनाई दे रहीं थी और सुधा को वो सुनकर मन में एक अजीब सी हलचल हो रही थी। सुधा अपने हाथों को कस कस कर पुष्पा के पेट पर मल रही थी, पुष्पा का बदन भी सुधा के हाथों के साथ हिचकोले खा रहा था, सुधा अपने हाथों को पुष्पा के पेट के ऊपरी हिस्से तक ला रही थी और हर बार उसके हाथ पुष्पा की चुचियों के पास आते जा रहे थे, पुष्पा के बदन में एक अजीब सी खुजली हो रही थी, उसके निप्पल बिल्कुल तन कर खड़े थे उसकी छाती हर सांस पर ऊपर नीचे हो रही थी, उसका बदन चाह रहा था कि सुधा उसकी चुचियों को भी अपने हाथों में लेकर मसले उन्हें भी निचोड़े, पर मन ही मन डर रही थी कि ऐसा हुआ तो वो क्या करेगी। साथ ही उसकी इच्छा भी बढ़ती जा रही थी जब जब सुधा के हाथ ऊपर की ओर आते उसे लगता अब ऐसा होने वाला है आशा से उसकी चूचियां ऊपर उठ जाती पर फिर से सुधा के हाथ नीचे चले जाते और उसे निराशा होती,
उसकी चूचियां अब बेसब्री से मसले जाने की प्रतीक्षा में थी, उसे लग रहा था कि अगर सुधा ने उसकी चुचियों की सुध नहीं ली तो वो इस खुजली से इस उतावलेपन से बावरी हो जायेगी। पर सुधा के हाथ उसके पेट पर ही घूम रहे थे, हालांकि चाहती तो सुधा भी थी, पर उसके लिए ये कदम बढ़ाना आसान नहीं था, वो झिझक और शर्म के दायरे में फंसकर अटक सी गई थी, वो नहीं चाहती थी की कुछ भी ऐसा हो जिससे उसके और उसकी जेठानी के रिश्ते में खटास आए।
पर और देर रुकना पुष्पा के लिए मुश्किल हो गया उसके मन में बेचैनी इतनी बढ़ गई कि उसके लिए सहना मुश्किल हो गया, और उसी बेचैनी में उसने वो कदम उठाया जो अन्यथा उठाना उसके लिए असंभव था, उसने दोनों हाथों से सुधा के हाथों को पकड़ा और उन्हें उठाकर अपनी चूचियों पर रख दिया, सुधा तो ये देख हैरान और खुश दोनों हो गई वहीं पुष्पा को अपनी चुचियों पर सुधा के हाथों का स्पर्श मिल जाने से शांति मिली, उसके बेचैन मन को चैन आया, सुधा तो खुशी से तुरंत अपनी जेठानी की भारी चूचियों को मसलने लगी, उसके हाथ में नहीं समा रही थी पर वो पूरा प्रयास कर रही थी, सुधा अपनी जेठानी की चूचियां मसलती हुई खुद को बहुत उत्तेजित महसूस कर रही थी, उसके पूरे बदन में एक अजीब सी प्यास दौड़ने लगी थी उसकी चूत में लग रहा था हज़ारों चीटियां रेंग रही हैं।
पुष्पा का हाल भी कुछ ऐसा ही था, इससे पहले उसने ऐसा कुछ महसूस नहीं किया था, उसका बदन उसकी देवरानी के हाथों में एक अलग ही रंग दिखा रहा था, एक औरत के साथ भी बदन में ऐसी काम वासना ऐसी उत्तेजना महसूस होती है उसे ज्ञात ही नहीं था, सुधा के हाथ उसकी चुचियों पर चल रहे थे तो उसे ऐसा लग रहा था मानों उसके अंदर की कोई दबी हुई इच्छा पूरी हो रही थी, जो उसे खुद भी नहीं पता थी, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि किसी औरत के हाथ उसे अपनी चूचियों पर ऐसा महसूस कराएंगे।
जेठानी देवरानी दोनों ही इस नए अनुभव को महसूस कर अपने होश खो रहे थे, दोनों को लग रहा था कि किसी औरत के साथ करने पर उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है, क्यों कि पुष्पा की चूचियां तो उसका पति भी दबाता था और उसे बहुत अच्छा भी लगता था पर जैसे बेचैनी उसके अंदर सुधा से चूचियां दबवाने की हुई वैसी तो कभी पति के साथ नहीं हुई,
पर जिस अहसास को वो समझ नहीं पा रहे थे वो किसी मर्द या औरत के कारण नहीं था, वो उत्तेजना थी कुछ नया कुछ गलत कुछ अलग करने की, कुछ नया पाने की, जो कि दुनिया में हर किसी को सताती है, इसी कारण कोई मर्द या औरत अपने साथी को छोड़कर किसी दूसरे के साथ संबंध बनाता है, वो इसी कुछ गलत करने के एहसास से। मनुष्य के मन में हमेशा ही एक बागी हिस्सा होता है जो चाहता है कि वो समाज के सारे नियम आदि को तोड़े समाज के बनाए रीति रिवाजों, कायदे कानून को पैरों तले रौंध डाले इससे उसके मन में एक अलग सी खुशी और उत्तेज़ना होती है एक संतोष होता है एक अहसास होता है जो मनुष्य को ऐसे कृत्य करने के लिए उकसाती है।
सुधा ज्यों ज्यों पुष्पा की चुचियों को मीझ रही थी त्यों त्यों पुष्पा की आहें बढ़ती जा रही थीं, पुष्पा की चुचियों से ऊर्जा पूरे बदन में दौड़ रही थी और पूरे बदन को उत्तेज़ित कर रही थी, पुष्पा को अपनी चूत में अब वोही खुजली वही बेचैनी महसूस होने लगी जो अब तक चुचियों में हो रही थी, वो समझ नहीं पा रही थी क्या करे, यही हाल सुधा का भी था वो पुष्पा के बदन से अब पीछे से बिल्कुल चिपक गई थी, पुष्पा को अपनी गर्दन पर सुधा की गरम सांसें महसूस हो रही थीं, जो उसकी उत्तेजना और बढ़ा रहीं थी, पुष्पा अपनी चूत की खुजली से फिर से उसी तरह बेचैन होने लगी जैसे कुछ देर पहले उसकी चुचियों में हो रही थीं, सुधा का भी वही हाल था उसकी चूत में भी एक असहनीय खुजली हो रही थी, पर वो अपने हाथों को पुष्पा की चूचियों से हटाना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने अपनी चूत की खुजली से जूझने के लिए अपनी चूत को पीछे से ही पुष्पा के चूतड़ों पर घिसना शुरू कर दिया,
पुष्पा को अपने चूतड़ों पर जब गरम चूत का एहसास हुआ तो उसे लगा जैसे उसके अंदर एक अलग बिजली दौड़ गई। उसकी चूत में अचानक से एक तेज़ खुजली हुई, जिसे वो सह नहीं पाई और पुष्पा ने अपना हाथ नीचे लेजाकर अपनी एक उंगली अपनी चूत में घुसा दी और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी,
चूचियों को तो सुधा मसल ही रही थी और चूत में खुद की उंगली एक साथ दोनों ओर से ऊर्जा का संचार उसके बदन में होने लगा तो वो आहें भरने लगी, उसकी आहें सुनकर सुधा ने आगे नजर डाली तो अपनी जेठानी को अपनी चूत में उंगली करते पाया ये देख तो सुधा भी उत्तेजना से पागल हो गई, और अपनी चूत को पागलों की तरह पुष्पा के चूतड़ों से घिसने लगी पर वैसा आनंद जो वो चाहती थी वो सिर्फ घिसने मात्र से उसे नहीं मिल पा रहा था इसलिए उसने पुष्पा की चुचियों से एक हाथ हटाया और पुष्पा की तरह ही सीधा चूत के ऊपर ले जाकर उंगली चूत में अंदर बाहर करने लगी,
अब देवरानी जेठानी दोनों की एक साथ आहें निकल रहीं थी, दोनों ही उत्तेजना के चरम पर थी, तेज़ी से दोनों की उंगलियां चूत से अन्दर बाहर हो रही थीं। और कुछ पल बाद ही लगभग एक साथ ही दोनों उत्तेजना के शिखर पर पहुंच गईं, पुष्पा की कमर झटके खाने लगी तो सुधा की आंखें ऊपर को चढ़ गई,
दोनों झड़ते हुए पटिया पर बैठ गईं कुछ पलों की लंबी लंबी सांसों के बाद दोनों को होश आया तो वासना का तूफान सिर से उठ चुका था और उसकी जगह शर्म और ग्लानि के बादल छा गए। पुष्पा की हिम्मत नहीं हो रही थी सुधा की ओर देखने की और सुधा का भी यही हाल था, पुष्पा ने जल्दी से अपने कपड़े लिए और कमरे के अंदर भाग गई, सुधा उसकी मनोदशा समझ रही थी क्योंकि उसका हाल भी कुछ वैसा ही था।
इधर छोटू को लेकर फुलवा गांव के बाहर नदी किनारे एक पीपल के पुराने पेड़ के पास ले जा रही थी, पेड़ के पास ही एक झोपड़ी थी जो कि गांव के वैद्य केलालाल की थी, गांव के वैद्य कहलो या बाबा कहो या झाड़ फूंक करने वाला सब यही थे, इससे पहले इनके पिता यही करते थे तो खुद के गुजरने से पहले अपना ज्ञान अपने बेटे को लेकर चले गए, इसी से इनकी रोज़ी रोटी चलती थी, वैसे झाड़फूंक का केलालाल को ऐसा ज्ञान नहीं था पर अपने पिता को करते देख बहुत से टोटके सीख लिए थे बाकी का काम उनकी बनाई हुई जड़ी बूटियां कर देती थी तो गांव वालों में अच्छा सम्मान था, यूं कह लो कि हर विपदा के समय गांव वालों को ये ही याद आते थे, हर तरह की कमी के लिए पुड़िया इनके पास होती थी, गांव के कुछ बूढ़े से लेकर अधेड़ उमर के लोग तक रातों को रंगीन करने से पहले सब इनके पास ही आते थे जिनको भी थोड़ी बहुत कमजोरी लगती थी। और इनके पास पुड़िया ऐसी होती थी कि बूढ़ा भी रात भर के लिए जवान हो जाता था। वैसी ही पुड़िया के लिए एक बूढ़ा अभी उनकी कुटिया में बैठा था। पुड़िया का प्रभाव ऐसा था गांव में कोई उनसे छोटा हो या बड़ा सब इन्हें पुड़िया बाबा कहकर ही पुकारते थे।
पुड़िया बाबा: क्यों भाई कालीचरन आज भी झंडे गाड़ने के इरादे से आए हो।
कालीचरण: अब तुम्हें तो सब पता ही है बाबा। हफ्ते भर की बना देना तनिक।
पुड़िया बाबा: बनाते हैं।
ये कहकर वो बाहर की ओर देखते हैं तो दरवाज़े पर फुलवा को देखते हैं,
केलालाल: अरे आओ आओ माई कैसे आना हुआ। अरे कालीचरण भाई तुम तनिक बाहर बैठो हम तुम्हारी पुड़िया बना कर देते हैं।
और ये कहकर कालीचरण को बाहर भेज वो फुलवा और छोटू को अंदर बुला लेते हैं। फुलवा अंदर आकर उनके हाथ जोड़ती है तो छोटू पैर छूकर आशीष लेता है। बाबा उन्हें सामने बिठाते हैं।
पुड़िया बाबा: हां माई का हुआ? सब कुशल मंगल तो है ना?
फुलवा: कहां कुशल मंगल बाबा, हम पर तो बिपदा आन पड़ी है।
बाबा: अरे ऐसा का हो गया?
फिर फुलवा उन्हें सारी बात बताती है, छोटू को मन में थोड़ी घबराहट हो रही थी कि कहीं पुड़िया बाबा उसका झूठ तो नहीं पकड़ लेंगे। वैसे तो पुड़िया बाबा भी गांव के ही थे और ऐसी चीज़ें वो भी मानते थे, पर उनका और उनके पिता का अनुभव ये भी कहता था कि अधिकतर ऐसी भूत प्रेत और आत्माओं से जुड़ी कहानियां या तो वहम निकालतीं थीं या अपने फायदे के लिए बोला गया झूठ। पर बिना सच जाने किसी भी नतीजे पर पहुंचना भी ठीक नहीं होता था।
उनके पिताजी ने उन्हें कुछ खास बातें भी सिखाई थीं जैसे कि किसी के विश्वास को उससे मत छीनो, चाहे हो वो अंधविश्वास ही क्यों न हो, क्योंकि ये उनके काम के लिए अच्छा था, जिस दिन लोगों में अंधविश्वास नहीं रहा तो हमारा सम्मान भी गांव में कम हो जायेगा और कमाई भी, इसलिए लोगों का डर ही हमारी कमाई भी है और सम्मान भी।
फुलवा की सारी बातें सुनने के बाद बाबा ने कुछ सोचा और फिर छोटू से भी एक दो प्रश्न पूछे, जिनका उत्तर छोटू ने अंदर से थोड़ा घबराते हुए दिए पर उसने उत्तर अपनी रटी रटाई कहानी से ही दिए। बाबा ने ये सुना और फिर अपनी खास कई तरह के पंखों से बनी हुई झाड़ू को लेकर छोटू के सिर पर फिराया और आंखें मूंद कर कुछ मंत्र वगैरा पढ़े, और फिर आंखें खोल लीं। फिर छोटू को देख कर बोले: लल्ला तुम बाहर जा कर बैठो।
छोटू तुरंत खड़ा हुआ और प्रणाम कर के बाहर आ गया मन में सोचते हुए: अच्छा हुआ जान छूटी।
छोटू के जाने के बाद बाबा बोले: देखो माई अपनी तरफ से तो मैंने झाड़ा मार दिया है पर खतरा टला नहीं हैं, और जैसा तुम्हारे नाती ने बताया कि इस तरह की औरत आती है तो इस तरह की आत्माएं काफी ताकत वर होती हैं और इतनी जल्दी पीछा नहीं छोड़ती।
फुलवा: अरे दईया फिर का करें बाबा, वो कलममुही कैसे पीछा छोड़ेगी।
बाबा: माई जैसे आदमी औरत की रक्षा करता है उसी तरह औरत भी अपने आदमी की रक्षा करती है ऐसी बुरी शक्तियों से।
फुलवा: पर बाबा अभी हमारे नाती का ब्याह कहां हुआ है तो उसकी रक्षा कैसे हो सकती है कौन करेगा?
बाबा: ब्याह होने से पहले हर बच्चे की रक्षक होती है मां, जो उसे हर तरह की परेशानी से बचाती है मातृत्व में बहुत शक्ति होती है, ऐसी आत्मा तुम्हारे नाती को परेशान कर पाई क्योंकि उसे बचाने वाला कोई नहीं था, तो अब तुम्हें क्या करना है कि उसे अकेले मत सोने देना, कोशिश करना कि जब तक सब सही न हो जाए ये अपनी मां के साथ ही सोए।
फुलवा: ठीक है बाबा जो तुम्हारी आज्ञा होगी वैसा ही होगा।
बाबा: पर खतरा इससे बिल्कुल टल नहीं जायेगा, हो सकता है कि वो असर दिखाए इस पर, इसके सपनों में फिर से आए भी पर मां के होने से ये उतना नुकसान नहीं कर पाएगी।
फुलवा: हाय हाय न जाने क्यों हमारे लाल के पीछे पड़ी है।
बाबा: माई वो उपाय तो हो गया नाती की रक्षा के लिए, पर उसे बिल्कुल नाती के पीछे से हटाने के लिए कुछ और उपाय भी करना होगा।
फुलवा: वो क्या बाबा?
बाबा: पूजा करनी होगी।
फुलवा: कर दूंगी बाबा कब और किसकी करनी है?
बाबा: उस आत्मा को हटाने के लिए कुछ विधि है वो करनी होगी, और वो चाहो तो तुम भी कर सकती हो।
फुलवा: मैं सब करूंगी बाबा तुम बताओ।
बाबा: सुबह पहली पहर में ही उठ कर तुम्हें बिना कोई वस्त्र धारण किए नदी में स्नान करना है उसके बाद उसी अवस्था में बाहर आकर किसी वृक्ष को पूजकर उसकी जड़ में अपना माथा टेकना है और उस आत्मा से विनती करनी है और कहना हैं आजा और आकर अपनी प्यास बुझा कर शांत हो, ऐसा कहके फिर वैसे ही माथा टिकाए रखना है और मैं एक मंत्र दूंगा इसको एक सौ सतासी 187 बार मन ही मन जपना है।
फुलवा ये सुन कर चौंकी क्यूंकि नग्न अवस्था में ये सब करना था
फुलवा: बाबा पूजा तो ठीक है पर बिना किसी वस्त्र के ये सब करना होगा?
फुलवा ने सकुचाते हुए कहा।
बाबा: हां माई का है कि ये आत्मा काम की प्यासी है शरीर तो मिट गया पर कामाग्नि नहीं बुझी इसलिये इधर उधर भटक रही है, इसलिए इसे बुलाने का और मनाने का सही तरीका भी यही है कि उससे उसी वेश में बुलाया जाए जिसमें वो चाहती है।
फुलवा ने बात को समझते हुए सिर हिलाया और बोली: ठीक है बाबा मैं कर लूंगी।
बाबा: पर ध्यान रखना ये बात तुम्हारे अलावा किसी को पता नहीं लगन चाहिए कि तुम ये क्या कर रही हो नहीं तो पूजा व्यर्थ हो जायेगी।
फुलवा: ठीक है बाबा किसी को नहीं पता चलेगा।
बाबा: ठीक माई अब तुम कुछ देर बाहर रुको मैं एक पुड़िया दूंगा वो सोने से पहले दूध में मिलाकर लल्ला को पिला देना हफ्ते भर जिससे उसके बदन के अंदर ठंडक मिलेगी जो गुप्तांग में जलन होती है वो नहीं होगी।
फुलवा: ठीक है बाबा जो तुम्हारी आज्ञा। जय हो पीपल वाले बाबा की। फुलवा ने ब्लाउज से चार आने निकाले और बाबा की थाली में रख दिए जिसमें दक्षिणा आदि रखी जाती थी।
और हाथ जोड़ कर फुलवा बाहर जाने लगी, उसे जाते हुए देख कर और उसके भारी भरकम थिरकते हुए चूतड़ों को देख कर पुड़िया बाबा के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई, वैसे बाबा का एक चेहरा ये भी था, भोली भाली गांव की औरतों को कुछ खास तरह के टोटके आदि बताकर वो अपने मन की कामाग्नी को शांत करते थे, पर जितना टोटके से हो सके उतना, खुल कर वो किसी के भी सामने नहीं आते थे बस टोटकों का सहारा लेकर जितना बन सकता था मज़े लेते थे, फुलवा जब गांव में ब्याह कर आई थी तब वो लड़कपन में थे और तबसे ही उस पर उनकी नजर थी आज इतने बरस बाद भी वो अंदर की इच्छा खत्म नहीं हुई थी इसलिए आज मौका मिलते ही बाबा ने चौका मार दिया था। वैसे भी फुलवा दादी भले ही बन गई हो पर उसकी उमर अभी पचास के करीब ही थी, बदन भी पूरा भरा हुआ था बड़ी बड़ी तरबूज जैसी चूचियां, मटके जैसे चूतड़, भरा हुआ बदन, फुलवा ने जवानी में खेतों में खूब काम किया था तो बदन भी बिल्कुल कसा हुआ था, जवानी क्या वो अब भी कौनसा खाली बैठती थी अभी भी किसी न किसी काम में लगी ही रहती थी।
फुलवा के बाहर जाते ही बाबा ने पुड़िया बनाईं और कालीचरण को आवाज दी और उसे उसकी पुड़िया पकड़ा कर एक और पुड़िया हाथ में देते हुए कहा इसे बाहर माई को दे देना।
कालीचरण खुश हुआ और प्रणाम कर उसने भी चार आने बाबा की थाली में डाले और बाहर चल दिया। बाहर आकर उसने एक पुड़िया फुलवा को पकड़ा दी और फिर पुड़िया लेकर अम्मा और पोता घर को चल दिए। घर आए तब तक सब लोग आ चुके थे घर पर सब ही थे सिवाए नीलम के, खाना पीना चल रहा था सुधा और पुष्पा एक दूसरे से नजरें चुराकर काम कर रही थीं, छोटू ने खाना खाया और बाहर की ओर चल दिया, तभी उसके पीछे पीछे उसका चचेरा भाई सुधा और संजय का बेटा राजेश भी आ गया, राजेश छोटू की उमर का ही था वो छोटू से कुछ महीने बढ़ा था, एक उमर के होने के बाद भी दोनों साथ में कम ही रहते थे, क्योंकि छोरी तो हमेशा से ही भूरा और लल्लू के साथ रहता था वहीं राजेश की दोस्ती अलग लड़कों से थी,
घर के बाहर आते ही राजेश ने छोटू को रोका: अरे छोटू सुन।
छोटू: हां बता।
राजेश: क्या हुआ था तुझे रात को?
छोटू: बताया तो सोते हुए वहां पहुंच गया कुछ याद नहीं।
छोटू ने बात दोहराते हुए कहा,
राजेश: सही सही बता।
छोटू: सही सही ही बता रहा हूं।
राजेश: मुझे चूतिया मत बना बेटा, तू नंगा हो कर वहां पहुंच गया और तुझे पता भी नहीं।
छोटू उसकी बात सुन मन ही मन थोड़ा सकुचाया पर फिर भी बात बना कर बोला: चूतिया तू पहले से है मैं क्यूं बनाऊंगा।
राजेश: बेटा कोई तो बात है जो तू झूठ बोलकर बना रहा है, अभी मुझे बता दे तो सही नहीं तो बाद में तेरा पिछवाड़ा लाल होते देख बड़ा मजा आयेगा।
छोटू एक बार को उसकी बात सुन कर मन ही मन डर गया और सोचने लगा कह तो सही रहा है ये पर क्या करूं इसे क्या बताऊं कि तेरी मां और पापा की चुदाई देख कर मुठ मार रहा था,
छोटू को चुप देख राजेश समझ गया कि उसका निशाना सही लगा है उसे बस छोटू को थोड़ा डराना है फिर ये सब सही सही बोल देगा।
राजेश: देख ले बेटा अभी बता देगा तो मैं बचा भी लूंगा नहीं तो बाद में पता तो लगना ही है फिर कोई नहीं बचाने वाला, तू मेरा भाई है इसलिए बोल रहा हूं नहीं तो मुझे क्या पड़ी।
छोटू भी मन ही मन सोच रहा था कह तो ये सही रहा है वैसे भी इसका साथ होना उसके लिए अच्छा ही था, पर उसे बताए क्या ये सोच रहा था।
छोटू: कह तो तू सही रहा है पर।
राजेश: पर क्या?
छोटू: मैंने तुझे बताया और तूने किसी को बता दिया तो?
राजेश: अरे पागल है क्या अपने भाई की बात मैं किसी और को क्यों बताने जाऊंगा? घर की बात बाहर थोड़े ही कहते हैं।
छोटू: पक्का नहीं बताएगा न और घर में मेरी शिकायत नहीं करेगा?
राजेश: अरे बोल तो रहा हूं नहीं करूंगा साथ ही मैं तो तुझे बचाने की सोच रहा था।
छोटू: अच्छा पहले तूने घर पर बता दिया था कि मैंने तंबाकू खाई थी तो कितनी मार पड़ी थी मुझ पर, जबकि मैंने बस एक दाना खाया था बस।
राजेश: वो भी मैंने तेरे भले के लिए ही बताई थी।
छोटू: मेरे भले के लिए वाह जी वाह, मार पड़वा के भला हुआ मेरा।
राजेश: अरे वो इसलिए बताया था कि तुझे खाते हुए दुकान वाली चाची ने भी देख लिया था और वो घर पर कहने वाली थी, और वो आकर कहती तो तुझे पता है ना कितना मसाला डाल कर कहती, इसलिए मैंने खुद से पहले बता दिया था।
छोटू ये सुन चुप हो गया और फिर बोला: देख बताता हूं वो मैं रात को वहां पर मुठ मार रहा था।
राजेश ये सुन हंसते हुए बोला: अबे तुझे भैंसों के बीच मुठ मारने की क्या सूझी, कोई भैंसिया तो नहीं पसंद आ गई।
छोटू: देख इसीलिए तुझे नहीं बताना चाह रहा था तू मजाक उड़ाता है।
राजेश: अच्छा ठीक नहीं उड़ा रहा मजाक पर ये तो बता भैंसों के बीच वो भी पजामा उतार के?
छोटू: वो मेरा नुन्नू बहुत कड़क हो गया था सो ही नहीं पा रहा था और बिस्तर पर मारता तो किसी के उठ जाने का खतरा था, और पजामा इसलिए उतारा था क्योंकि मैं नीचे बैठा था और वो गंदा न हो जाए।
राजेश: अच्छा तो ऐसा है मैं तेरी परेशानी समझ सकता हूं मेरे साथ भी रात को ऐसा ही होता है मेरा लंड भी साला कभी कभी बैठता ही नहीं।
राजेश खुल कर छोटू के सामने बोलता है तो छोटू को हैरानी भी होती है खुशी भी,
छोटू: तो क्या तू भी करता है घर में कभी?
राजेश: हां कभी चुपचाप बिस्तर पर तो कभी मूतने के बहाने से।
छोटू: बिस्तर पर तो मुझे डर लगता है कहीं गंदा हो गया तो मुश्किल हो जायेगी।
राजेश: हां यार ये डर तो मुझे भी रहता है पर वो सब छोड़ ये बता तुझे रात में मुठियाने की क्या जरूरत पड़ गई तुम तीनों तो जंगल में एक साथ मुठियाते हो।
ये सुनकर छोटू हैरान रह गया।
छोटू: ये ये तुझे कैसे पता?
राजेश: बेटा मुझे सब पता रहता है बस मैं बताता नहीं।
राजेश शेखी बघारते हुए बोला।
छोटू: पर तुझे पता था तो तूने मुझसे कभी कहा क्यूं नहीं?
राजेश: अरे तू अपने दोस्तों के साथ खुश था तो मैं क्या कहता।
छोटू को इस बात पर ग्लानि हुई साथ ही अपने भाई पर प्यार भी आया,
छोटू: वैसे अब से चाहे तो तू भी चल सकता है हमारे साथ जंगल में।
राजेश: मुठियाने?
छोटू: हां।
राजेश कुछ सोचता है और फिर कहता है: नहीं यार मेरी तेरे दोस्तों से नही बनती, तुझे भी पता है।
छोटू: हां कह तो सही रहा है।
राजेश: एक बात बताएगा?
छोटू: हां पूछ।
राजेश: तू किसके बारे में सोच के मुठिया रहा था रात को?
राजेश मुस्कुराते हुए पूछता है तो छोटू सकुचा जाता है क्या बोलता की तेरी मां अपनी सगी चाची को नंगा देख हिला रहा था।
छोटू: मैं वो मैं दुकान वाली चाची को।
राजेश: अरे दादा गजब, मस्त माल है चाची, गांड देखी है साली की अःह्ह्ह्ह लंड खड़ा हो जाता है।
छोटू: हैं ना पूरा बदन भरा हुआ है, चूचियां कसी हुई, गहरी नाभी और मस्त पतीले जैसे चूतड़ हाय।
राजेश को लगता है छोटू दुकान वाली के बारे मैं बोल रहा था पर छोटू तो उसकी मां यानी सुधा के कामुक बदन का बखान कर रहा था।
राजेश: अरे बोल तो ऐसे रहा है जैसे रोज़ नंगा देखता हो।
छोटू: अरे सपने में तो नंगी ही रहती है,
छोटू कमीनी मुस्कान के साथ कहता है तो दोनों हंस पड़ते हैं,
राजेश: यार अच्छा लग रहा है ऐसे खुल कर तुझसे बातें करने में।
छोटू: मुझे भी, हम लोग भी भाई हैं एक उमर के हैं फिर भी अलग थलग रहते हैं।
राजेश: कोई नहीं आगे से ऐसा नहीं होगा। चल तुझे तेरे सपनों की रानी के दर्शन करवाता हूं।
छोटू: मतलब?
राजेश: मतलब बाबा ने तंबाकू की पुड़िया मंगाई है दुकान से, साथ में कमपट के लिए भी पैसे दिए हैं।
छोटू: अरे वाह चल चलते हैं जल्दी।
दोनों साथ साथ खुशी खुशी आगे बढ़ जाते हैं। रास्ते में थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्हें सामने से नंदिनी आती हुई दिखती है जो पास आकर पूछती है: सुनो दोनों, नीलम घर पर ही है ना?
छोटू: हां दीदी, वो कहां जायेगी घर ही तो रहेगी।
छोटू हंसते हुए कहता है और दोनों ही हंसने लगते हैं
नंदिनी: हां तुम लोगों की तरह गांव में हांडने का काम तो तुम लोगों का है ना,
राजेश: अरे दीदी तुम भी ना बेइज्जती करने का मौका नहीं छोड़ती।
नंदिनी: और तुम लोग बकवास करने का चलो घूमो अब मैं जाती हूं।
ये कह नंदिनी आगे बढ़ जाती है और वो दोनों भी, नंदिनी जल्दी छोटू के घर पहुंच जाती है,
नंदिनी: प्रणाम चाची, नीलम कहां है?
नंदिनी आंगन में बैठी पुष्पा से पूछती हैं उसे थोड़ी दूर बैठी सुधा नजर आती है तो वो उसे भी प्रणाम करती है और फिर आंगन में बैठे सभी को,
पुष्पा: प्रणाम बिटिया, कमरे में सो रही है जा जाकर जगा ले।
नंदिनी भाग कर कमरे में घुस जाती है और नीलम को सोते हुए देखती है तो आगे बढ़ कर शरारत करते हुए उसकी उभरती हुई चूचियों को दबा देती है जिससे नीलम चौंक कर उठ जाती है और फिर कुछ पल इधर उधर देखकर जब सामने नंदिनी को देखती है तो बोलती है: कुत्तिया कहीं की ऐसे डराता है कोई, मेरी तो जान ही निकल गई थी,
नंदिनी: तो मैंने कहा था दोपहर में सोने को रात को ऐसा क्या करती है?
नंदिनी उसे छेड़ते हुए कहती है,
नीलम: तेरे ब्याह में नाचती हूं,
नीलम उठते हुए कहती है।
नंदिनी: बिटिया तुम हमारे ब्याह में नहीं नाचती बल्कि अपना जुगाड़ लगाती होगी। अब चलो भाभी इंतेजार कर रहीं होंगी।
नीलम: चल रही हूं मुंह धोकर आती हूं।
नीलम बाहर मुंह धोने चली जाती है दोनों पिछली गली की रजनी भाभी से कढ़ाई सीखने जाती थीं, पढ़ाई लिखाई के नाम पर ब्याह से पहले लड़कियों को घर के काम की ही शिक्षा दी जाती थी, घर के काम के अलावा अगर एक आध काम और कोई आता हो जैसे सिलाई कढ़ाई, बुनाई आदि तो सोने पर सुहागा, इसलिए दोनों सहेलियां रजनी भाभी से पिछले कुछ समय से कढ़ाई सीख रही थीं, जल्दी ही दोनों कढ़ाई का समान लिए घर से निकल जाती हैं।
जैसे लल्लू छोटू भूरा राजेश एक उमर के थे उसी तरह नीलम और नंदिनी भी एक उमर की थीं तो दोस्ती होना स्वाभाविक ही था, और बचपन से ही हर काम दोनों साथ करती थीं, दोनों की लंबाई भी लगभग समान ही थी पर दोनों के बदन में काफी अंतर था, नंदिनी का बदन अच्छा खासा भरा हुआ था वहीं नीलम छरहरे बदन वाली थी, शरीर पर मांस उतना ही था जितना आवयश्यक था, पर ऐसा नहीं कि सुंदर नहीं दिखती थी, उसका चेहरा बहुत सुंदर था बिल्कुल अपनी मां सुधा जैसा था पर उससे भी कहीं अधिक सुंदर। उसकी मुस्कान बेहद सुंदर थी।
जहां नंदिनी की छातियां सूट फाड़कर बाहर आने को तैयार रहतीं वहीं नीलम की छाती पर अभी सिर्फ दो आधे कटे सेब जितना उभार आया था, यही हाल नितंब का था नंदिनी के जहां पतीले थे तो नीलम के कटोरे। उसका बदन हल्का ज़रूर था पर सुंदरता में किसी से कम नहीं था। यदि कुछ शब्दों में दोनों सहेलियों के बीच में अंतर बताया जाए तो नंदिनी के बदन से जहां कामुकता टपकती थी वहीं नीलम से सुंदरता, दोनों ही अपने अपने नज़रिए से बहुत सुंदर थीं।
रास्ते में थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्हें राजू नज़र आता है जो सामने से आ रहा होता है दोनों को देख वो तुरंत नजर नीचे करके निकल जाता है।
नीलम: ये राजू हमारे सामने कुछ अजीब तरह नहीं करता,
नंदिनी: मतलब।
नीलम: मतलब अभी देखा नहीं कैसे हमें देखते ही नज़र नीची करके निकल गया, एक इसे देखो और एक भूरा को लगता ही नहीं दोनों भाई हैं।
नंदिनी: हां ये शुरू से ही ऐसा देखा है मैंने तो, तू यकीन मानेगी बचपन से अब तक मैने इससे कोई दो चार बार ही बात की होगी। और पिछले दो सालों में तो बिल्कुल ही नहीं।
नीलम: नहीं जैसे हमारे घर आता है तो मूझसे तो करता है, खूब अच्छे से, शायद तूझसे ही डरता है।
नंदिनी: अच्छा मैं क्या कोई चुड़ैल हूं जो मुझसे डरेगा?
नीलम: यार सच कहूं तो कभी कभी मुझे भी लगती है।
नंदिनी: कुत्तिया कहीं की।
दोनों हंसी मजाक करते हुए आगे बढ़ जाते हैं
जल्दी ही दोनों रजनी भाभी के यहां पहुंच गईं कढ़ाई सीखने के लिए, रजनी भाभी इस गांव में 5 साल पहले ब्याह के आई थीं, देखने में बहुत सुंदर सर्व गुण संपन्न , जिसने भी देखा यही कहा कि दूल्हे के तो भाग खुल गए, पर बेचारी के खुद के भाग फूटे पड़े थे, ब्याह के एक साल बाद ही सास ससुर नदी में डूब के मर गए, शादी के पांच साल बाद भी संतान सुख नहीं मिला था, गांव के वैद्य से लेकर शहर के डाक्टर ने ये ही कहां कि कमी कोई नहीं है पर बच्चा नहीं हो रहा था, अब पूरे घर में सिर्फ वो और उनके पति मनोज रहते थे, पति भी मन ही मन दुखी रहते थे इसलिए दुख कम करने के लिए ताड़ी का सहारा आए दिन लेते थे, आपस में प्यार भी उतना नहीं बचा था, बड़ी नीरस सी जिंदगी गुज़र रही थी दोनों की, तो नीलम नंदिनी को कढ़ाई सिखाने के बहाने ही उसके दिन का कुछ समय हंस खेल कर बीत जाता था, दोनों ही रिश्ते में उसकी ननद लगती थीं तो खूब ननद भाभी वाला मजाक करते थे आपस मे, दिन का यही समय होता था जब रजनी मन से थोड़ी प्रसन्न होती थी, बाकी गांव में जिसके बच्चा ना हो उस औरत को कैसे देखा जाता है वो अच्छे से जानती थी और उसके साथ हो भी रहा था, नई दुल्हनों को अब उससे मिलने से मना कर दिया जाता था तो वो खुद ही कुछ न कुछ बहाना बनाकर किसी के यहां भी जाने से डरती थी, आज का समय भी ऐसे ही बीता और फिर समय पूरा होने पर दोनों रजनी के यहां से निकल चली, नीलम जैसे ही घर की ओर चली तो नंदिनी उसका हाथ पकड़ दूसरी ओर खींचने लगी।
नीलम: अरे कहां ले जा रही है घर चल ना।
नंदिनी: अरे चुपचाप चल ना कुछ काम है।
नीलम: अरे हां समझ गई तेरा काम, देख नंदिनी तू जा मुझे तेरे चक्कर में नहीं पढ़ना।
नंदिनी: अरे यार कैसी सहेली है तू मुझे अकेले जाने को बोल रही है, चल ना तू तो मेरी प्यारी बहन है, तुझे मेरी कसम।
नीलम: यार तू समझ नहीं रही किसी दिन पकड़े गए न तो तू तो फंसेगी ही मैं और लपेटी जाऊंगी।
नंदिनी: अरे कुछ नहीं होगा और आज तक कुछ हुआ।
नीलम: अरे तो जरूरी है की आगे भी न हो।
नीलम मना करती रहती है पर नंदिनी उसे खींचते हुए आगे ले जाती रहती है। दोनों जल्दी ही गांव के बाहर अमरूद के बाग के बाहर पहुंच जाते हैं,
नीलम: यार मुझे डर लग रहा है।
नंदिनी: तू तो ऐसे बोल रही है जैसे पहली बार आई हो, चल ना,
दोनों फिर बाग के अंदर की ओर बढ़ने लगते हैं अंदर आकर थोड़ा आगे ही बढ़ते हैं कि अचानक से पेड़ के पीछे से एक साया आता है और नंदिनी का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लेता है, अचानक ऐसा होने पर दोनों सहेलियां चीख उठती हैं वो साया नंदिनी का मुंह तो हाथों से बंद कर लेता है नीलम जब उसकी ओर देखती है तो चीखना बंद कर देती है और गुस्से से उसकी ओर देखती है।
नीलम: अरे ये कैसा मजाक हुआ, डरा दिया मुझे।
इधर नंदिनी भी अपने मुंह से हाथ हटाती है और कहती है: हां बड़े दुष्ट हो तुम, देखो कितना डर गए हम। सही कहती है नीलम कि तुमसे दूर रहा करें।
वो साया नीलम की ओर देखता है तो नीलम बोलती है: देखो सत्तू भैया मुझे वैसे भी गुस्सा आ रहा है अब और मत दिलाओ।
जी हां ये साया और कोई नहीं बल्कि सत्तू होता है,
सत्तू: अरे पर तू इससे मेरी बुराई क्यूं करती है?
नीलम: क्योंकि तुम हो बुरे।
सत्तू: अरे अच्छा डराने के लिए माफ करदे पर मैं बुरा कैसे हूं।
नंदिनी: अरे तुम लोग अब लड़ो मत वैसे भी देर हो रही है जाना भी है।
सत्तू: हां नीलम तू तब तक अमरूद तोड़ मैं और नंदिनी कुछ बातें कर लेते हैं।
नीलम: हां सब समझती हूं बातें, नीलम मुंह सिकोड़ती हुए आगे चली जाती है और उसके आगे जाते ही सत्तू नंदिनी को पेड़ की ओट में कर पेड़ से चिपका लेता है।
सत्तू: पता है कितनी देर से राह देख रहा था।
नंदिनी: अरे जब समय होता तभी आती ना।
नंदिनी आंखे नीचे करते हुए बोलती है,
सत्तू: अरे यार इतने समय बाद भी तुम मुझसे इतना शर्माती क्यों हो।
नंदिनी: पता नहीं क्यों पर तुम जब पास आते हो तो शर्म आने लगती है अपने आप।
सत्तू: लो फिर मैं और पास आ गया तुम्हारे अब शरमाओ।
ये कह सत्तू नंदिनी से सामने से बिल्कुल चिपक जाता है, नंदिनी की मोटी चूचियां उसे अपने सीने में महसूस होती हैं।
नंदिनी इसकी बात का कोई जवाब नहीं देती और अपना चेहरा उसके सीने में छुपा लेती है।
सत्तू प्यार से उसका चेहरा उठता है और उसकी आंखों में देख कर कहता है: मुझे पता है तुम्हारी शर्म कैसे दूर करनी है,
ये सुन नंदिनी शर्म से अपनी आंखे बंद कर लेती है और कुछ पल बाद ही उसे अपने होंठों पर सत्तू के होंठों का स्पर्श होता है और उसके पूरे बदन में बिजली कौंध जाती है, उसके हाथ सत्तू के बदन पर कसने लगते हैं सत्तू धीरे धीरे से उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगता है और नंदिनी का पूरा बदन उस उत्तेजना में सिहरने लगता है, ज्यों ज्यों उसकी उत्तेजना बढ़ती है उसकी शर्म काम होती जाती है, और कुछ पल बाद वो भी सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी का साथ पाकर और उत्तेजित हो जाता है कुछ पल लगातार एक दूसरे के होंठों को चूसने के बाद सत्तू अपने हाथ नंदिनी के कामुक बदन पर फिराने लगता है, वो सूट के ऊपर से ही उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए उसके होंठों को चूसता है नंदिनी तो सब कुछ भूल कर सत्तू का चुम्बन में साथ देने लगती है।
सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है
आगे जारी रहेगी।
Exilent update diya broअध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।
Bhai kiya likha hai jabardast maza aa gayaअध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।
Shandar jabardast erotic updateअध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।
अध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर जबरदस्त अपडेट हैं भाई मजा आ गयाअध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।