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awesomeअध्याय 7सत्तू के हाथ उसकी कमर और पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे उसकी छाती की ओर बढ़ने लगते हैं और कुछ ही पलों में वो उसके सीने पर पहुंच जाते हैं, सत्तू धीरे धीरे से अपने हाथों को सूट के ऊपर से ही नंदिनी की चुचियों पर रखता है तो नंदिनी और कस के उसे पकड़ लेती है साथ ही और जोर से सत्तू के होंठों को चूसने लगती है, सत्तू नंदिनी की प्रतिक्रिया पाकर खुश होता है... आगे...
नंदिनी की ऐसी प्रतिक्रिया पाकर सत्तू का जोश और बढ़ जाता है और वो धीरे धीरे सूट के ऊपर से ही नंदिनी के संतरों को दबाकर उनका रस निचोड़ने लगता है, नंदिनी के बदन में तो जैसे एक बिजली दौड़ जाती है सत्तू के हाथों से अपनी चूचियां मसलवाकर उसका सीना खुद ब खुद ऊपर उठ जाता है मानों चूचियां खुद चाहती हों कि सत्तू के हाथ उन्हें मसलें, साथ ही उत्तेजना से उसका मुंह भी खुला का खुला रह जाता है दोनों के होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, सत्तू का ध्यान अब नंदिनी की चूचियों को दबाने पर होता है तो नंदिनी तो इस अहसास से वासना में तैर रही होती है, उसका अंग अंग फड़कने लगता है, उसे उसकी चूत में खुजली होने लगती है,
वहीं सत्तू नंदिनी की इस हालत का पूरा फायदा उठा रहा होता है और उसकी चूचियों को मसलते हुए उनकी कोमलता और भारीपन का अपने हाथों में अच्छे से मर्दन कर रहा था, पर उसकी समस्या भी थी, पजामे के अंदर उसका लंड इतना कड़क हो चुका था कि दर्द करने लगा था, पर अभी वो अपने हाथ नंदिनी की मोटी मोटी चूचियों से हटाना नहीं चाहता था या कहें तो चाहकर भी नहीं हटा पा रहा था, उसे उन्हें मसलने में ऐसा आनंद मिल रहा था जो कि अदभुत था, पर दर्द जब सहना मुश्किल हुआ तो उसने कुछ तारीक सोचा और कुछ दिमाग में आते ही उसने तुरंत अपना एक हाथ नंदिनी की चूची से हटाया और नंदिनी के हाथ को पकड़ लिया और फिर उसे उठाकर अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड पर सीधा रख दिया, नंदिनी को जैसे ही उंगलियों पर लंड का कड़क और गर्म एहसास हुआ उसके बदन में बिजली कौंधीं उसने एक पल को हाथ हटाना चाहा पर सत्तू का था उसके ऊपर था इसलिए हटा नहीं पाई, सत्तू ने अपने हाथ से उसके हाथ को लंड पर थोड़ा आगे पीछे किया और नंदिनी की उंगलियां ज्यों ज्यों लंड के कड़कपन पर घूमी, नंदिनी का उत्तेजना से बुरा हाल हो रहा था। कपड़े के ऊपर से ही सही पर नंदिनी जीवन के पहले लंड को महसूस कर रही थी जिसे करते ही उसका बदन मानों उसके नियंत्रण से निकलने लगा, उसकी चूत में एक साथ हजारों चीटियां रेंगने लगीं, वो इस अहसास से पागल सी होने लगी।
सत्तू ने मौका देख कर उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया और आशा अनुरूप नंदिनी ने नहीं हटाया और लंड के ऊपर पजामे के ऊपर रख से ही वो उसे महसूस कर आनंद ले रही थी, उसकी उंगलियां स्वतः ही लंड पर आगे पीछे होने लगी और सत्तू के लंड कोसहलाने लगीं, सत्तू ने अपना हाथ बापिस उसकी चूची पर रख कर मसलना शुरु कर दिया, नंदिनी तो मानो अब सब सुध बुध खोकर बस लंड के कड़कपन और गर्मी से उत्तेजित होकर होश खोने लगी, सत्तू भी नंदिनी का हाथ अपने लंड पर पाकर जोश से भर गया था, उसके लंड का टोपा उत्तेजना में फूलने लगा था, जो उसके लिए थोड़ा पीड़ादायक भी था क्यूंकि पजामे के अंदर उसे सांस जो नहीं मिल रही थी। सत्तू ने नंदिनी की चूची को मसलते हुए ही जोश में फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा, नंदिनी भी कम उत्तेजित नहीं थी वो भी उसी लगन और जोश से उसका साथ देने लगी पर साथ ही उसका हाथ भी सत्तू के लंड को लगातार सहला रहा था, कुछ देर के आक्रामक चुम्बन के बाद दोनो के होंठ अलग हुए फूलती हुई सांसों के साथ सत्तू ने चेहरा आगे कर नंदिनी के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों में भर लिया तो नंदिनी का बदन अकड़ने लगा उसे लगने लगा कि उसके बदन से आज प्राण निकल जायेंगे, उसकी चूत उसे और गीली महसूस होने लगी, उसकी चूचियां सत्तू के हाथों में और कड़क हो गई।
कुछ पल बाद सत्तू ने उसके कान को छोड़ा तो फिर उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला: लंड को बाहर निकाल कर सहलाओ ना।
नंदिनी संस्कारी घर की संस्कारी लड़की थी पर लंड किसे कहते हैं वो अच्छे से जानती थी, और उससे क्या क्या करते हैं वो भी, और जब उसने ये सुना तो उसका सीना और तेजी से धड़कने लगा, उसके मन में ये ख्याल था कि जो हो रहा है वो सही नहीं है कुंवारी लड़की के लिए शादी से पहले ये सब करना अच्छी बात नहीं है, पर ये बात उसका बदन कहां समझ रहा था, वो अपनी चला रहा था,
लंड के पजामे से निकालने का तो सुनकर उसके तन और मन दोनों में ही एक उत्साह सा भर गया, वो ये सोच सोच मचलने लगी कि जिसे पजामे के ऊपर से पकड़ने में इतना आनंद आ रहा है उसे बिना कपड़े के नंगा स्पर्श करने में क्या होगा, ये सोच कर उसकी चूत में पानी रिसने लगा। वो ये सब सोच में ही थी कि सत्तू ने उसे दोबारा बोला: निकालो ना देखो कैसे दर्द से तड़प रहा है।
इस बात को नकारना तो वैसे भी उसके लिए असंभव हो रहा था वो चाह कर भी मना नहीं कर सकती थी, अब जब सत्तू ने अपनी पीड़ा की बात कहदी तो उसके मना करने के सारे कारण ही गायब हो गए, वो कैसी स्त्री होगी जो पुरुष को तकलीफ से नहीं निकालेगी, स्त्री का करम ही होता है सेवा करना, यही तो उसे बचपन से अब तक सिखाया जा रहा था, और आज जब उसकी सेवा की सत्तू को आवश्यकता थी तो कैसे मना करती।
नंदिनी के हाथ कांपते हुए सत्तू के पेट की ओर बढ़ने लगे उसके पजामे के नाडे की तरफ जल्दी ही उसकी उंगलियों ने नाडे को पकड़ लिया उसकी गांठ खोलने से पहले उसके अंतर्मन ने उसे फिर चेताया कि सोच ले नंदिनी तू ये क्या कर रही है अगर किसी को पता चला तो कितनी बदनामी हो जायेगी तेरी, घरवाले क्या कहेंगे? ये सोच कर उसकी उंगलियां रुक गईं, पर उसकी वासना उसका बदन कुछ और ही कह रहा था, उसकी चूत की खुजली उसे दूसरी बातें सोचने का अवसर नहीं दे रहीं थी, उसकी वासना बोल रही थी जो होगा तब देखा जायेगा तू अभी की सोच और अपने बदन की गर्मी को ठंडा कर, ये सोचकर ही उसकी उंगलियों ने दोबारा गांठ को खोलना शुरू किया, और जैसे ही वो नाडे को खोलने ही वाली थी तभी नीलम की आवाज़ आई जिसे सुनकर उसके हाथ रुक गेट और वो तुरंत सत्तू से दूर हटकर खड़ी हो गई,
नीलम: नंदिनी अब चल देर हो गई है मां गुस्सा करेंगी?
नीलम ने पेड़ के दूसरी ओर से कहा, हालांकि वो जानती थी ये लोग पेड़ की ओट में क्या करते थे पर जान अनजान बनती थी और अमरूद तोड़ने के बहाने उनसे दूर हो जाती थी, बात अचानक बिगड़ती देख सत्तू का दिमाग घूम गया,
सत्तू: अरे नीलम बस थोड़ी देर रुक जा फिर चली जाना,
नीलम: नहीं नंदिनी तू चल रही है तो बता नहीं तो मैं जा रही हूं,
नंदिनी तुरंत अपने कपड़े ठीक करती हुई पेड़ की ओट से उसकी तरफ़ जाती है और कहती है: चल तो रहीं हूं क्यों गुस्सा करती है।
सत्तू चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, नंदिनी उसे एक बार देख कर नीलम के साथ निकल जाती है सत्तू बेचारा हताश होकर सिर्फ देखता रह जाता है,
सत्तू: अरे यार भेंचो अधूरे में अटका गई, आह लंड का बुरा हाल है, हाथ से ही काम चलाना पड़ेगा,
सत्तू पजामे के उपर से लंड सहलाता है और फिर बाग में पीछे की और चल देता है।
इधर राजेश और छोटू दुकान से सामान लेकर और दुकान वाली चाची के उभारों का अच्छे से दर्शन करने के बाद घर की ओर चले आते हैं जहां राजेश घर चला जाता है समान देने वहीं छोटू बाहर से ही अपने दोनों जोड़ीदारों के पास निकल जाता है, सीधा वो लल्लू के घर जाता है और सीधा अंदर जाकर आंगन में सूप में अनाज फटकती लता दिखती है.
छोटू: ताई प्रणाम।
लता: अरे छोटुआ, प्रणाम बच्चा।
छोटू: ताई लल्लू कहां हैं?
लता: अरे पता नहीं कहां है, इस लड़के से तो मैं दुखी हूं, एक काम नहीं करके देता बस गांव भर में हांडता रहता है।
सुन छोटू सोचता है मर गए अब ताई सुना सुना के मार डालेंगी। तो तुरंत समझदारी दिखाते हुए पाला बदल लेता है।
छोटू: वो तो है ताई मैं भी उसे समझाता हूं कि बेकार में घूमने से क्या फायदा। घर में काम कर ताई का हाथ बंटा।
लता: अरे लल्ला तू तो सब जानता है घर में हाथ बंटाना तो दूर वो तो अपना कच्छा भी धो ले बड़ी बात है,
छोटू ये सुन हंसने लगता है,
छोटू: कोई बात नहीं ताई धीरे धीरे करवाने लगेगा, मैं भी उसे समझाऊंगा।
लता: तू ही समझा लल्ला अब, हमारी तो सुनता ही नहीं, तेरी ही सुनले तो कुछ अकल घुसे उसकी खोपड़ी में।
छोटू: बिल्कुल चाची,
छोटू ये कह चलने को होता है तभी लता उसे रोकती है
लता: अरे लल्ला अब तू आ ही गया तो तू ही हाथ बंटा दे मेरा, और कोई घर में है नहीं।
छोटू बेचारा मन ही मन खुद को कोसता है : ले और करले बकचोदी अब कर काम,
छोटू: उहम्म ठीक है चाची क्या करना है?
लता: गेहूं साफ कर रही हूं, एक आध बोरी में घुन लग गए थे, तो तू ये साफ किए हुए धूप में फैलता जा बस।
छोटू अब मना तो कर नहीं सकता था तो अनचाहे ही मदद करने के लिए रुक जाता है,
लता सूप में गेहूं फटकने लगती है और छोटू साफ गेहूं को तसले में भर आंगन में फैलाकर आ जाता है और तसले को ही उल्टा कर लता के सामने बैठ जाता है और लता के गेहूं साफ करने का इंतज़ार करने लगता है,
लता: ए छुटुआ एक बात बता तू ठीक तो है ना?
छोटू : हां ताई मैं तो ठीक हूं क्यों क्या हुआ?
लता: सही सही बता, सुबह लल्लू भी बता रहा था और फिर लल्लू के पापा ने भी तुझे और अम्मा को पुड़िया वाले बाबा की झोपड़ी से निकलते देखा।
छोटू मन में सोचने लगा अरे यार अब इन्हें क्या बताऊं, अम्मा ने मना किया है कुछ भी बताने से यही सोचते हुए वो कहता है: अरे ताई ज्यादा कुछ नहीं रात को चक्कर आ गए थे थोड़े तो पेशाब जाते हुए मैं आंगन में गिर गया था।
लता: हाय दैय्या, लगी तो नहीं लल्ला तुझे?
छोटू: नहीं ताई मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैंने तो अम्मा से भी कहा था कि दवाई की जरूरत नहीं है पर वो मानी ही नहीं।
लता: अरे बढ़ों को चिंता तो होती है ना बच्चा, वैसे भी दवाई ले ली तो सही है ना आगे से नहीं होंगे, और सुन खाने पीने का ध्यान रखा कर,
छोटू: वो तो मैं रखता हूं ताई पेट भरकर खाता हूं तीनों टेम।
लता: वो सब तो ठीक है पर लल्लू बता रहा था कि पुप्षा उसे बोल रही थी की जंगल न जाए तो कुछ हुआ था का जंगल में?
छोटू: नहीं तो टाई कुछ नहीं हुआ था।
लता: सच बोल रहा है ना लल्लू भी कुछ नहीं बोल रहा था देख अगर कोई बात है तो बता दे।
लता ने उससे तसला सीधा करने का इशारा करते हुए कहा तो छोटू ने तुरंत उठ कर सीधा किया और लता ने साफ किए हुए गेहूं उसमे पलट दिए, जिन्हें तुरंत छोटू उठाकर आंगन में ले गया और पलट कर गेहूं फैलाकर बापिस उसके पास आ कर बैठ गया। पर लता वहीं के वहीं अटकी थी
लता: अरे बता ना कोई बात है तो।
छोटू: अरे नहीं ताई सच्ची कोई बात नहीं है बस चक्कर आ गए थे, और तुम्हें मां का पता है वो कितनी जल्दी चिंता करने लग जाती हैं।
लता: अरे लल्ला मां का जी(मन) ही ऐसा होता है बच्चों की चिंता लगी रहती है मां को,
छोटू: वो मैं समझता हूं ताई, पर सच्ची में कोई बात नहीं है।
लता: फिर ठीक है हो सकता है गर्मी से आ गए हों गर्मी भी विकट पड़ रही है।
लता ने अपने पल्लू से अपने चेहरे का और गर्दन का पसीना पौंछते हुए कहा, और फ़िर पल्लू से ही अपने ऊपर हवा सी करने लगी,
छोटू: हां ताई, गर्मी का तो पूछो मत इतनी कड़ी धूप पड़ती है कि आदमी सूख जाए हहाहा।
छोटू अपनी बात पर ही हंसता हुआ बोला,
लता: हां बच्चा धूप तो बड़ी तेज है। इसी लिए कहती हूं। छाछ पिया कर रोज।
छोटू: ताई छाछ नहीं मैं तो दही पी जाता हूं खूब सारा।
लता: हां फिर बढ़िया है। ये लल्लू तो छाछ दही के लिए ऐसे नाक सिकोड़ता है मानो इसे करेले का रस पिला रहे हैं।
ये कहते हुए लता ने अपने पल्लू को यूं ही छोड़ दिया और फिर से सूप लेकर फटकने लगी। गर्मी में उसकी आदत थी अक्सर ऐसे ही काम करती थी जब ससुर आदि घर पर नहीं होते थे, बच्चों के सामने कौन पल्लू वगैरा का ध्यान रखे।
छोटू: हिहीही, ताई उसे न करेले का रस ही पिलाओ तो छाछ भी अच्छा लगने लगेगा उसे।
छोटू ये कहके हंसा और तभी उसकी नज़र अकस्मात ही लता के गोरे गदराए पसीने से चमकते पेट पर पढ़ी, तो उसने तुरंत ही नजरे हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
लता: हां ये उपाय सही बताया तूने ऐसे ही मानेगा वो।
छोटू ने बात तो सुनी पर उसका ध्यान बंटा हुआ था उसका मन बार बार करने लगा कि उसे दोबारा ताई के पेट की ओर देखे, छोटू ने मन में सोचा पेट ही तो है ताई का क्या हो गया देख लेता हूं,
ये सोच वो बापिस नज़र लता के पेट पर डालता है, और उधर ही देखते हुए कहता है: सही है ताई कर के देखो।
छोटू ने लता के पेट को देखते हुए कहा उसे वो दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था, लता का गोरा भरा पेट पसीने से भीगा हुआ बहुत आकर्षक लग रहा था साथ ही बैठने की वजह से पड़ी हुई सिलवटें उसे और कामुक बना रही थी, पसीने की बूंदे पेट से नीचे सरकती और उसकी सिलवटों में गायब हो रहीं थी ये सब देख छोटू के मन में अलग अलग खयाल आने लगे, वो सोचने लगा ताई का पेट कितना सुंदर है, पसीने से और भी सुंदर लग रहा है, कितना चिकना भी लग रहा है, तभी अचानक उसके मन में आया कि ताई के पेट को चाटने में मज़ा आएगा, पर फिर खुद ही अपने खयाल पर कोसते हुए सोचने लगा: छी पसीना कौन चाटता है, मैं भी पागल होता जा रहा हूं, जबसे चाची को उस हाल में देखा है मुझे सिर्फ गलत खयाल ही आते हैं, ये ही सोच कर उसने अपनी नजर लता के पेट से हटाने का सोचा और उसे हटाकर ऊपर उसके चेहरे की ओर ले गया,
लता सूप को हिला हिला कर गेहूं साफ कर रही थी, और उसी बीच छोटू की नजर किसी और चीज पर पढ़ गई, लता के सूप हिलाने की वजह से उसका बदन भी हिल रहा था और उसी कारण उसकी छाती भी दाएं बाएं हो रही थी, अब अंदर बनियान आदि तो घर पर औरतें पहनती नहीं थीं जो चुचियों को थामें, ऊपर से उसकी चूचियां भी पपीते जैसी थीं जो कि उसके हिलने से दाएं बाएं हो रहीं थी और ये नज़ारा देख तो छोटू को सही गलत का विचार करने का खयाल भी नहीं आया और वो बस टकटकी लगाए हिलती चूचियों को देखने लगा, वैसे वो दृश्य ही ऐसा कामुक था कि छोटू क्या कोई भी हो उसके मन में कामुकता के बीज बो सकता था लता की झूलती हुई चूचियां बहुत कामुक लग रहीं थीं साथ ही कसे ब्लाउज में झूलते देख लग रहा था मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आ जायेंगी। छोटू का लंड ऐसा कामुक दृश्य देख कड़क होने लगा, उसके मन में कामुक विचार घर बनाने लगे, पल्लू न होने के कारण छोटू को अच्छे से लता की चुचियों के दर्शन हो रहे थे, लता ने हिलना बंद कर दिया फिर भी छोटू की नजर हटी नहीं, हटती भी कैसे, लता की गोरी गर्दन से पसीने की बूंदे बहकर उसकी छाती से होते हुए उसके ब्लाउज के बीच दोनों चूचियों के बीच में बनी दरार में ऐसे गायब हो रहीं थीं जैसे पर्वतों के बीच में नदी,
छोटू तो इस सुंदर नजारे से आंख ही नहीं हटा पा रहा था, उसका लंड अब पूरी तरह से कड़क हो चुका था पर पजामा ढीला होने के कारण उभार इतना समझ नहीं आ रहा था साथ ही वो बैठा हुआ भी था, अब तो छोटू के मन में उथल पुथल मच गई थी वो सोचने लगा कि ताई की नंगी चूचियां कैसी लगती होंगी, वो मन ही मन उन्हें अपनी चाची सुधा की चुचियों से तुलना करने लगा, फिर खुद ही जवाब दिया कि ताई की बड़ी हैं, चाची की तो मध्यम आकार की हैं पर ताई की तो बिल्कुल पपीते जैसी हैं, फिर वो लता की पूरा नंगा होने की कल्पना करने लगा और उसके बदन की तुलना सुधा के बदन से करने लगा,
इसी बीच लता ने उसे पुकारा पर उसका ध्यान ही नहीं था तो लता ने दोबारा उसका नाम लेकर पुकारा तो जैसे वो होश में आया और बोला: हां हां ताई?
लता: अरे कहां खो गया था तू, ला तसला दे,
छोटू: कहीं नहीं चाची, लो तसला।
छोटू ने उठ कर तुरंत तसला दिया तो लता ने उसमें गेहूं भर दिए,
लता: चल हो गए सारे आ मैं भी फैलवा देती हूं,
छोटू ने गेहूं से भरा तसला उठाया और लता भी उसके साथ साथ आंगन में आ गई और फिर छोटू गेहूं को पलटने लगा और लता उन्हें नीचे बैठ फैलाने लगी, पर छोटू की नजर अब भी लता की चुचियों की दरार पर ही जमी हुई थी, जल्दी ही गेहूं फैलाकर लता ने फिर से अपनी साड़ी का पल्लू लिया और अपना चेहरा गर्दन और छाती को पोंछा, छाती के ढकते ही छोटू ने अपनी नजरें हटा लीं,
लता ने अपना चेहरा आदि पोंछ कर छोटू की ओर देखा तो उसे पसीने से लथपथ देख कर बोली: अरे देख तो तू भी पसीने से नहा गया है,
ये कह लता ने अपना पल्लू लिया और छोटू के बदन को पोंछने लगी, छोटू तो ज्यों का त्यों जम गया, क्योंकि लता बिल्कुल पास आकर झुककर उसकी गर्दन को पोंछ रही थी और छोटू के ठीक सामने लता की मोटी मोटी चूचियां लटक रहीं थी, यहां तक कि उसे उसकी चूचियों की दरार भी अंदर तक दिख रहीं थीं, ये देख तो छोटू के बदन में सनसनी होने लगी थी और उसका लंड बिल्कुल तन चुका था, तभी लता गर्दन के बाद उसके चेहरे को पोंछने लगी और जैसे ही पल्लू लता ने छोटू की नाक के ऊपर रखा तो छोटू ने अनजाने ही उसे सांस लेकर उसे सूंघ लिया, उसमे से उसे एक सौंधी सी गंध आई जो कि लता के पसीने की थी जिसे सूंघकर न जाने क्यूं उसे अच्छा लगा उसके बदन में एक झुरझूरी सी हुई, उसका मन किया कि दोबारा से ताई के पसीने की गंध को सूंघे, पर कैसे, और क्यों उसे ताई के पसीने जैसी चीज की गंध अच्छी लग रही है, क्या हो गया है उसे, क्या सच में उसके ऊपर कोई साया है, क्या ये सब खयाल उदयभान की लुगाई उसके मन में डाल रही है एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में आने लगे और अभी किसी का भी जवाब उसके पास नहीं था,
इतने में उसका पसीना पोंछ कर लता खड़ी हुई, उसके लिए कुछ भी अजीब नहीं था वो लल्लू के साथ साथ छोटू भूरा नीलम राजेश सब को अपने बच्चों की तरह ही मानती थी, और पुष्पा सुधा रत्ना भी ऐसा ही करती थीं, लता ने छोटू और बाकी बच्चों को खूब गोद में खिलाया था छोटू और भूरा ने तो उसका दूध भी पिया था, क्योंकि तीनों की उमर लगभग समान ही थी तो जब ये छोटे थे तो उसे दूध आता था इसलिए।
खैर पसीना पोंछ कर वो पीछे हुई और छोटू से बोली: चल धूप में मत रह अंदर छप्पर में बैठ जा मैं तुझे दही देती हूं मीठा सा।
छोटू के लिए अब वहां रुकना मुश्किल होता जा रहा था उसके मन की उथल पुथल जो बढ़ती जा रही थी साथ ही उसका लंड भी तनकर उसे परेशान कर रहा था, जिसपर अभी तक तो लता की नजर नहीं पड़ी थी पर उसे डर था कि कहीं पड़ ना जाए इसलिए वो जल्दी से निकलना चाहता था।
छोटू: अरे नहीं ताई अब मैं चलता हूं, थोड़ा काम भी है।
लता: अरे बैठ चुप चाप दही पी कर चले जाना।
छोटू लता की बात को टाल नहीं सकता था तो छप्पर में जाकर बैठ जाता है खाट पर और लता हांडी से दही निकलने लगती है, छोटू की नजर लगातार लता के कसे हुए गदराये बदन पर रहती है, दही निकाल कर लता जब चूल्हे के पास जाकर झुककर बुरे का डिब्बा उठाती है तो छोटू की आंखें पीछे से लता के चौड़े और उभरे हुए नितंब देखकर बड़ी हो जाती हैं, वो कल्पना करने लगता है कि ताई के चूतड़ नंगे कैसे दिखते होंगे ये सोच कर ही उसका लंड ठुमके मारने लगता है, तभी लता पीछे मुड़ती है तो छोटू को डर लगता है कि कहीं उसका खड़ा लंड ताई देख ना लें इसलिए तुरंत अपने हाथों को गोद में रख कर उसे ढंक लेता है, लता उसके पास आती है और उसकी ओर कटोरा बढ़ाती है
लता: ले पीले लल्ला।
अब छोटू की दुविधा ये होती है कि वो हाथ हटाएगा तो कहीं उसका खड़ा लंड ना ताई को दिख जाए, वहीं लता उसकी ओर कटोरा बढ़ा कर खड़ी होती है,
लता: अरे ले ना हाथ रख के क्या बैठा है,
छोटू: हां ताई
ये कहकर छोटू सकुचाते हुए एक हाथ उठाकर कटोरा पकड़ता है उसके हाथ लगते ही लता अपना हाथ हटा लेती है पर छोटू कटोरा ठीक से पकड़ नहीं पाता और कटोरा उसके हाथ से छूट कर उसकी गोद में गिर जाता है, छोटू तुरंत उसे संभालता है पर उससे पहले एक छोटी कटोरी भर दही उसकी गोद में पजामे के ऊपर गिर जाता है,
लता: अरे दैय्या लल्ला ये क्या कर लिया तूने ठीक से पकड़ा क्यों नहीं कटोरा देख सारा पजामा गंदा हो गया,
छोटू: वो पता नहीं ताई कैसे गिर गया,
लता: मुझे तो लग रहा है तेरी तबीयत अब भी ठीक नहीं है और मैं बावरी तुझसे धूप में गेहूं फैलवा रही हूं,
छोटू: अरे नहीं ताई ऐसा कुछ नही है बस वो ठीक से पकड़ा नहीं इसलिए गिर गया,
छोटू ने खाट से खड़े होते हुए कहा,
लता: अच्छा कोई बात नहीं तू ऐसा कर ये दही पी मैं लल्लू का पजामा लाती हूं वो पहन ले इसे धो देती हूं नहीं तो निशान पड़ जायेगा।
छोटू ये सुन घबरा जाता है और कहता है: अरे नहीं ताई मैं घर जाकर नहा लूंगा।
ये सुन लता थोड़ा कड़क आवाज में बोलती है: बताऊं तुझे अभी क्या घर घर लगा रखा है? ये घर नहीं है क्या?
छोटू: वो बात नहीं,
लता: चुपचाप से दही पी अब कुछ भी बोला ना तो तेरी खैर नहीं।
छोटू बिल्कुल चुप हो जाता है वो जानता था कि ताई का गुस्सा कैसा है लाड़ के समय जितनी प्यारी थीं गुस्से में उतनी ही खतरनाक हो जाती थीं इसलिए वो चुप हो गया और उनके कहे अनुसार दही के कटोरे में मुंह लगा कर पीने लगा,
उसे चुप चाप दही पीते देख लता के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो उस पर गुस्सा तो बिलकुल नहीं थी पर हां उसे झूठा गुस्सा दिखाना और बच्चों से अपनी बात कैसे मनवानी है अच्छे से आता था, बिना गुस्से के बच्चे सुनते भी कहां हैं, तो ये कला हर मां की तरह वो भी अनुभव से सीख चुकी थी।
वो उसे देख कर कमरे के अंदर गई और लल्लू का एक धुला हुआ निक्कर ले आई, बाहर आ कर देखा तो छोटू अभी भी कटोरे से मुंह लगाए दही पी रहा था, आभास तो छोटू को भी हुआ लता के आने का पर अभी वो लता से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था एक तो दही गिराने का डर दूसरा उसे डर था कि ताई ने अब तक उसके उभार को देख लिया होगा इस वजह से वो बस चाह रहा था कि कटोरे का दही कभी खत्म ही न हो, पर संयोग वश लता का ध्यान तो अब तक उसके लंड पर नहीं गया था, लता ने देखा छोटू अभी भी दही पी रहा है तो मुस्कुराते हुए सोचने लगी: देखो तो कैसे भोला बनकर अब दही पी रहा है चुप चाप ये बच्चे भी ना बिना डांट खाए एक बात नहीं सुनते अब तक कैसे हर बात पर जुबान चल रही थी चुपड चुपड़ और कैसे शांत है, पता नहीं ये लोग कब बढ़े होंगे, देखो दही गिरा लिया,
ये सब सोचते हुए वो नीचे बैठ गई और बिना कुछ सोचे समझे और बिना हिचकिचाहट के उसने तुरंत छोटू की कमर पर हाथ लेजाकर उसके पजामे को नीचे खींच दिया और पजामे के नीचे होते ही दोनों चौंक गए,
छोटू को तो यकीन नहीं हुआ कि ये क्या हुआ, ताई ने उसका पजामा उतार दिया अब तो मैं मरा, ताई ने ज़रूर मेरे लंड का उभार देख लिया होगा इसलिए उसे देखने के लिए पजामा उतारा है, अब क्या करूं, उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी की मुंह के सामने से कटोरा हटा कर नीचे देखे, वो बस चाह रहा था कि उसे कटोरा कभी भी न हटाना पड़े,
लता ने जैसे ही पजामे को पकड़ कर अनायास ही नीचे खींचा था तो अचानक से अंदर से एक चीज उछली जिसे देख पहले तो वो चौंकी पर अगले ही पल जैसे ही उस पर उसकी नजर पड़ी तो वो हैरान रह गई, क्यूंकि छोटू का कड़क लंड उसके चेहरे के सामने झूल रहा था, वो तो बिलकुल सुन्न रह गई ये देख कर, क्योंकि उसके लिए तो ये सब अभी बच्चे ही थे, अरे कल की ही तो बात लगती है जब वो छोटू लल्लू भूरा को एक साथ नंगा करके नहलाती थी, कैसे पतले पतले थे लगते थे सारे, लता उनके बदन को घिस घिस कर मैल छुड़ाती थी, तीनों नंगे होकर अपनी अपनी नुन्नी हिलाते हुए खेलते फिरते थे, आज छोटू की उसी नून्नी की जगह एक कड़क लम्बा लंड था, ये देख कर लता हैरान थी, उसने सोचा भी नहीं था कि बच्चे इतनी जल्दी इतने बड़े हो गए होंगे।
ये सब सोचते हुए उसकी नजर लगातार छोटू के लंड पर बनी हुई थी, दही के पानी ने पजामे से रिस कर उसके लंड को भी थोड़ा भिगा दिया था, लंड का मोटा टोपा चमक रहा था, लता छोटू के लंड को अच्छे से ऊपर से नीचे देखने लगी, उसपर उभरी हुई नसें, कैसे वो कुछ पल बाद झटके खा रहा था, ये सब देखते हुए लता को अपने बदन में एक गर्मी का एहसास हुआ, उसे अपनी चूत में नमी आती हुई महसूस हुई,
उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है? छोटू तो उसके बेटे जैसा है, पर उसके मन और समाज के लिए छोटू और वो एक मातृत्व के भाव में थे, पर बदन का अपना एक भाव होता है, अंगों की अपनी एक प्रतिक्रिया होती है, और अपने परस्पर भोग को देखकर अंग उसी तरह फड़फड़ाने लगते हैं जैसे कोई कुत्ता रोटी के टुकड़े को देख कर, यही अभी लता के साथ हो रहा था, भले ही वो छोटू को बेटा मानती थी पर उसके कड़क लंड को देख कर लता की चूत गीली होने लगी क्योंकी चूत का भोग होता है लंड, और अपने भोग को देखकर मुंह में पानी आना साधारण है, चूत और लंड समाज द्वारा बनाए हुए रिश्तों को महत्वपूर्ण नहीं समझते उनके लिए परस्पर अंगों का सुख ही प्रधान है।
अपने आप में ही मंथन करती लता कुछ पल यूं ही बैठी रही वो समझ नहीं पा रही थी क्या करूं? उसने जबसे सामने आया था तबसे पहली बार नजर उठाकर लता ने ऊपर छोटू के चेहरे की ओर देखा तो पाया उसका मुंह तो अब भी कटोरे में लगा हुआ है, लता खुद को इस परिस्थिति में पाकर बड़ा असहज महसूस कर रही थी, एक ओर छोटू का लंड देख उसका बुर में नमी आ रही थी उसके बदन में गर्मी बढ़ रही थी वहीं उसके मन में यही विचार आ रहे थे कि उसके लिए तो ये बच्चा है उसे ये सब महसूस नहीं करना चहिए, उसने खुद को समझाया तू भी क्या सोच रही है लता अब बच्चे बड़े तो होंगे ही पर कितने भी बड़े हो जाएं तेरे लिए तो बच्चे ही रहेंगे तो तू वैसे ही कर जैसे तुझे करना चाहिए।
ये ही सोच लता ने फिर नीचे छोटू के पैरों में पड़े पजामे को उसके पैरों को उठा कर पंजों से निकाल दिया, लता ने बापिस नज़र छोटू के लंड पर डाली जो रह रह कर ठुमके मार रहा था उसने देखा कि दही के पानी से लंड और जांघ के आस पास गीला सा हो गया है तो लता ने अपनी साड़ी का पल्लू लिया और उस से छोटू की जांघ को पोंछने लगी, छोटू ने कटोरे में मुंह लगाए ही ये महसूस किया तो उसे समझ नहीं आया कि ताई क्या कर रहीं हैं क्योंकि उसे लगा था ताई गुस्सा करेंगीं पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया था और अब ये जांघों को पोंछ रही हैं पर अभी भी छोटू की हिम्मत नहीं थी कि वो लता की आंखों में देख सके।
इधर लता ने जांघ को पोंछने के बाद लंड को फिर से देखा उसे समझ नहीं आ रहा था अब क्या करे वो बार बार खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि ये बच्चा है और तू उसके मां जैसी इसमें भला क्या गलत हो सकता है, पर उसका बदन कुछ अलग ही जा रहा था, उसकी चूत में चीटियां रेंग रहीं थी, उसकी चूचियां न जाने क्यूं अकड़ कर खड़ी थीं एक बार फिर से उसने अपने मन को समझाया और पल्लू को छोटू के ठुमकते लंड पर रख दिया और उसे भी पौंछने लगी धीरे धीरे से,
छोटू को ये एहसास होते ही झटका लगा, कि ताई उसके लंड को पोंछ रही हैं उसके बदन में उत्तेजना फैल गई उसकी एक दबी हुई आह कटोरे में ही घुट गई, इधर झटका तो लता को भी लगा साड़ी के ऊपर से ही सही पर छोटू के लंड को छूकर तो उसके बदन में बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत ने पानी की बूंदें और बहा दीं, उसके मन में आया हाय दैय्या कितना गरम है ये और सख्ती तो देखो जैसे लोहे का हो, और कैसे ठुमका मार रहा है सुपाड़ा देखो कैसे फूल रहा है,
लता मानो उसके लंड का गहन अध्ययन कर रही थी और एक एक जानकारी अपने मन में लिख रही थी, पल्लू के ऊपर से ही आगे पीछे पौंछते हुए लता की उंगलियां छोटू के लंड पर कस गईं उसे स्वयं नहीं पता उसने ऐसा क्यों किया पर स्वयं को रोका भी नहीं, उसके बदन की गर्मी और उत्तेजना उस पर हावी होने लगी थी, मन में मातृत्व की जगह अब वासना हावी होने लगी थी, और इसी वासना के नियंत्रण में होकर लता वो सब करने लगी जो शायद उसके लिए सोचना भी पाप था, उसका हाथ पल्लू के ऊपर से ही छोटू के लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे चलने लगा, खुद के मन को वो समझा रही थी कि मैं तो बस उसके नुन्नू को साफ कर रही हूं पर असल में तो वो छोटू के लंड को मुठिया रही थी,
इधर छोटू के लिए हर नया पल एक पहेली बनता जा रहा था उसे जैसे ही अपने लंड पर ताई की उंगलियों की कसावट महसूस हुई थी वो सिहर गया था उसे समझ नहीं आ रहा था ताई क्या कर रहीं हैं पर जैसे ही लता ने उसके लंड को मुठियाना शुरू किया उसको मानो सुख मिल गया उसकी आंखें बंद हो गईं चेहरा ऊपर की ओर उठ गया, वो सब कुछ भूूल कर उस पल में ताई द्वारा मुठ मारने का आनंद लेने लगा, लता का हाथ छोटू के लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसके अंदर की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसे अपनी उंगलियों के बीच छोटू का लंड फूलता हुआ महसूस हो रहा था, वो सोचने लगी इतनी सी उमर में ही इसका लंड अच्छा खासा बड़ा हो गया है और बड़ा होगा तो बिल्कुल गधे जैसा हो जायेगा। ये ही सोचते हुए वो अपने हाथ को आगे पीछे कर रही थी उसकी नज़र हर पर और बड़े होते लंड के टोपे पर थी जो कि लग रहा था सूज गया है, जितना वो लंड को मुठिया रही थी उसकी चूत में खुजली उतनी ही बढ़ती जा रही थी उसका बदन और गरम होता जा रहा था पर वो खुद को रोक भी नहीं पा रही थी,
छोटू के लिए तो ये पल ऐसा था जो कि उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था उसके लिए अब और सहना मुश्किल होता जा रहा था उसके बदन की सारी ऊर्जा लंड की ओर जा रही थी, उसकी कमर आगे के हो गई थी उसका बदन जैसे धनुष की तरह तन गया, पैरों की उंगलियां मुड़ कर पीछे की ओर खिंच गईं, वो लता से कुछ कहना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,
इधर लता छोटू की स्थिति से अनजान सिर्फ उसके लंड को देखे जा रही थी और मुठिया रही थी, कुछ पल बाद उसे छोटू का लंड हाथ में झटके मारता हुआ महसूस हुआ उसे पता था कि ये कब होता है पर वो उत्तेजना में इतनी मगन थी कि उसने आगे क्या होगा इस पर विचार ही नहीं किया और अगले ही पल छोटू के लंड से पिचकारी निकली जो कि सीधा उसके चेहरे से टकराई, और फिर एक और फिर एक और, हर धार के साथ छोटू का बदन भी झटके मारने लगा उसके हाथों में जो कटोरा था वो भी तिरछा हो गया और उसमे से दही नीचे लता के चेहरे और छाती पर गिरने लगा,
लता के लिए ये पल बड़ा ही अदभुत था एक ओर छोटू के लंड का रस उसे भिगो रहा था तो साथ में दही भी मिलकर एक कामुक मिश्रण बना रहा था, चेहरे के बाद छोटू के रस ने लता की गर्दन और छाती के ब्लाउज के ऊपर से भी भिगो दिया बाकी काम दही ने कर दिया, छोटू का झड़ना खत्म हुआ तो लता ने पल्लू से उसके टोपे को दबा कर आखिरी बूंदें भी निचोड़ ली, और छोटू तो हांफता हुआ पीछे खाट पर गिर गया उसका ऐसा स्खलन कभी नहीं हुआ था, उसे लग रहा था कि उसकी सारी जान ही लंड के रास्ते से निकल गई है, हाय क्या किया है ताई ने,
ताई ने, मर गए, छोटू के दिमाग में झड़ने के बाद उत्तेजना हटी तो बाकी सारी बातें आ गईं वो तुरंत उठ कर बैठा, और सामने देख कर चौंक गया, सामने लता बैठी थी उसका चेहरा छाती और चूचियों के ऊपर ब्लाउज सब दही और उसके रस से सना हुआ था, लता बैठी हुई गहरी सांसें लेते हुए उसे देख रही थी, उत्तेजना से लता का बुरा हाल था वहीं छोटू जो झड़ने के बाद बापिस अपने होश में आ गया था उसे लता की आंखों में तैरती उत्तेजना, हवस नहीं बल्कि गुस्सा लगा, उसे लगा ताई गुस्से से उसे देख रही हैं वो डर गया और तुरंत उठ कर खड़ा हो गया। उसने बगल में पड़ा हुआ लल्लू का साफ निक्कर देखा तो तुरंत उसे उठाकर पहन लिया।
और बिना लता की ओर देखे बाहर की ओर भागा साथ ही भागते हुए बोला: ताई मैं जाता हूं।
आंगन से जैसे ही किवाड़ की ओर पहुंचा तो बाहर से आती हुई नंदिनी से टकराते हुए बचा,
नंदिनी: अरे ओ सांड आराम से, अभी गिरा देता मुझे,
छोटू ने उसकी ओर देखा और फिर बिना जवाब दिए ही भाग गया,
नंदिनी: ये भी ना बावरा ही है कुछ समझ नहीं आता,
नंदिनी किवाड़ फेरकर अंदर आंगन में आई और उसकी नजर उसी हालत में बैठी अपनी मां लता पर गई तो वो हैरान रह गई,
नंदिनी: अरे मां? ये क्या हुआ?
नंदिनी की आवाज़ सुनकर तो लता सुन्न पड़ गई और अचानक से घबरा गई उसे लगा कि नंदिनी ने सब कुछ देख लिया क्या। सारी हवस पल भर में गायब हो गई।
लता कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी,
नंदिनी: बताओ ना ये दही कैसे गिर गया तुम्हारे ऊपर।
ये बात सुन लता को थोड़ा चैन आया तो उसने उठते हुए खुद को संभालते हुए बोला,
लता: अरे वो बिटिया हेहे वो छुटूआ था न,
नंदिनी: हां अभी भागता हुआ गया है।
लता: वो गेहूं फैलाने में मेरी मदद कर रहा था तो उसके बाद मैंने उसे दही दिया पीने को तो उसी ने न जाने कैसे गिरा दिया।
नंदिनी: अरे मां तुम भी ना कहां बंदर को दही पिला रही हो वो तो गिराएगा ही, ह्हह्हा। अच्छा तभी वो डर के भागता हुआ गया बावरा कहीं का।
नंदिनी ने अपना दुपट्टा एक ओर टांगते हुए कहा
लता: हूं? हां हां अभी गया बस इतना ही हुआ।
नंदिनी: तुम भी ना मां ये सारे एक जैसे हैं, या तो काम करते नहीं या करते हैं तो ऐसे कि काम का सत्यानाश।
नंदिनी उसके पास आकर हंसते हुए कहती है, लता तो अभी भी उसी सोच थी और वो नंदिनी की बात पर हल्का सा मुस्कुराती है।
नंदिनी: देखो तो सारा दही गिरा दिया मुए ने,
ये कहते हुए नंदिनी ने अपना हाथ आगे बड़ा कर उंगली से लता के चेहरे के ऊपर लगे दही को पोंछा और फिर स्वताः ही उसे अपने मुंह में डाल लिया।
लता ने जब ये देखा तो चौंक गई और बोली: ये ये क्या कर रही है तू?
नंदिनी: अरे तुम ही तो कहती हो मां कि खाने की चीजें बिगाड़ने से घर में दरिद्रता आती है और दही तो शुभ होता है इसे क्यों बिगाड़ना। ये तो मीठा भी है।
नंदिनी उसका स्वाद लेते हुए कहती है और लता का सोच कर बुरा हाल हो जाता है, उसे समझ नहीं आता क्या करे, कैसे कहे नंदिनी से कि ये सिर्फ दही नहीं है बल्कि छोटू का रस भी है, इसी बीच नंदिनी दोबारा से उंगली से उसके गाल पर लगा दही और रस का मिश्रण उठाती है और इस बार लता के खुले होंठों के बीच उंगली घुसा देती है, अपनी जुबान पर उसका स्वाद पाते ही लता के बदन में एक बार फिर से बिजली दौड़ जाती है, उसे यकीन नहीं होता वो और उसकी बेटी छोटू के लंड रस को चख रहे हैं, आजतक लल्लू के पापा का रस भी चखना तो दूर अपनी चूत के अलावा कहीं नहीं लिया था एक दो बार अगर चूत से बाहर गिर भी जाता था तो तुरंत कपड़े से पौंछ देती थी, और आज छोटू के लंड का रस अपने चेहरे और चूचियों पर लेने के बाद अब वो और उसकी बेटी उसे चख भी रहीं थीं, सुनने और सोचने में ये जितना घृणित कार्य लग रहा था लता को न जाने क्यूं उतनी ही उत्तेजना हो रही थी, एक बार फिर से उसका बदन उत्तेजित होने लगा इस खयाल भर से ही, उसकी चूत खुजलाने लगी। नंदिनी की उंगली मुंह में पाकर लता ने अपने होंठ उसके इर्द गिर्द लपेट लिए और ऊंगली को बड़ी कामुकता से चूस लिया, नंदिनी ने जब अपनी मां को ऐसे करते देखा तो उसे भी कुछ अजीब सा लगा पर साथ ही बदन में सिहरन सी हुई।
लता ने फिर खुद अपने माथे से दही और रस के मिश्रण को बटोरा और ऊंगली पर लेकर नंदिनी के मुंह में घुसा दिया, नंदिनी को न जाने क्या हुआ उसने भी अपनी मां की तरह ही उसकी उंगली को चूस लिया, लता को मन ही मन ये खयाल आया कि वो कैसी मां है जो अपनी ही बेटी को लंड का रस चखा रही है और खुद भी चख रही है, ये सोच उसकी चूत पनियाने लगी।
उसे समझ नहीं आ रहा था उसे क्या हो रहा है वो जितने गलत या समाज की नज़रों में पाप वाले कर्म कर रही थी उसकी उत्तेजना उतनी ही बढ़ रही थी, नंदिनी को भी ये सब करने में अच्छा लग रहा था न जाने क्यूं,उसके बदन में एक सिहरन हो रही थी, शायद सत्तू के साथ जो बाग में कर रही थी वो अधूरा छूट जाने के कारण उसकी उत्तेजना जो दबी हुई थी उसी कारण से उसे ऐसा महसूस हो रहा था,
लता के गाल पर हल्के से बचे हुए दही को देख ना जाने नंदिनी को क्या सूझा कि उसे उंगली से लेने की जगह नंदिनी ने अपना चेहरा आगे किया और अपनी मां के गाल पर होंठों को रख दिया और जीभ से दही को चाट लिया, लता ने जैसे ही अपने गाल पर बेटी के होंठ और जीभ महसूस की तो उसका पूरा बदन उत्तेजना से जलने लगा उसने किसी तरह से खुद को संयमित किया, वैसे तो एक बेटी यदि मां के गाल को चूमे तो उसमें कुछ भी ऐसा उत्तेजित करने वाला नहीं था पर अभी जिस परिस्थिति में वो थी तो इसका असर उसके बदन पर कुछ और ही हो रहा था, नंदिनी भी उसके गाल को चाटने के बाद नीचे की ओर चेहरा लाई और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए, अपनी गर्दन पर बेटी के होंठ पाकर लता की हालत और बिगड़ने लगी, उसका एक हाथ अपने आप ही नंदिनी की कमर पर कस गया, साथ ही एक हल्की सी आह उसके होंठों से निकली जो कि नंदिनी ने भी सुनी।
नंदिनी मन में सोचने लगी मां की ये सिसकी तो, हाय दैय्या ये तो बिलकुल वैसी ही थी जैसी मेरी सत्तू के साथ निकलती है जब वो मुझे चूमता है तो, इसका मतलब क्या मां मेरे चूमने से उत्तेजित हो रही हैं?
इस खयाल से ही नंदिनी की को गर्मी जो उत्तेजना जो बाग में अधूरी रह गई थी वो उसके बदन में फिर से दौड़ गई, उसकी चूत में फिर से चीटियां रेंगने लगी, उसकी चूचियां कड़क हो गई, और ये सब कुछ पलों में ही उसने महसूस किया, नंदिनी सोचने लगी कि अब क्या करूं क्या सही में मां उत्तेजित हो रही हैं, मुझे रुक जाना चाहिए, पर उसकी उत्तेजना बोली आगे बढ़ क्या ही जाता है कुछ गलत थोड़े ही कर रही है अगर कुछ होगा तो मां खुद ही रोक देंगी। और उसने यही सोच कर अपने होंठों को अपनी मां के गले पर चलाना शुरू कर दिया कहीं जीभ से चाटती तो कहीं होंठों से चूसती, लता की तो आंखें बंद हो गईं उसके हाथ नंदिनी की कमर पर कसे हुए थे, वो इस अदभुत पर अजीब पल का आनंद मन में नहीं समा पा रही थी, बेटी की हरकतों से उसके बदन को ऐसी उत्तेजना ऐसा आनंद मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी नहीं था, जितना असर लता पर हो रहा था उतना ही नंदिनी पर भी हो रहा था वो भी अपनी मां के बदन को चूमते हुए हर पल और गरम होती जा रही थी। उसकी चूत से बूंदे बहती हुई उसे महसूस हो रहीं थीं।
अब नंदिनी दही को भूल चुकी थी जहां दही था वहां तो वो चाट ही रही थी जहां नहीं था वहां भी उसके होंठ उसकी मां के बदन का स्वाद चख रहे थे, वो मन में सोच रही थी मां का बदन कितना अच्छा है सुंदर भी है और भरा हुआ चिकना भी, स्वाद भी कितना मीठा है, गर्दन को चाटने के बाद नंदिनी थोड़ा नीचे बड़ी और छाती पर जीभ फिराते हुए सारा दही चाट गई, मां के बदन के साथ मिलकर दही का स्वाद मीठे के साथ साथ कुछ सौंधा सा भी हो गया था जो चखकर उसे और अच्छा लग रहा था, पर वो नहीं जानती थी कि वो स्वाद छोटू के लंड रस का था, पर ये बात लता तो जानती थी पर कह नहीं सकती थी और अपनी बेटी को ही रस चाटते देख रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
नंदिनी की हालत भी बाग जैसी हो गई थी, उसका बदन उत्तेजना से तप रहा था, यूं तो उसने सोचा था कि जब कुछ गलत होगा रुक जाऊंगी पर अभी वो रुकने का सोच भी नहीं रहीं थी, छाती को चाटते हुए नंदिनी ने थोड़ा नीचे चेहरा किया और लता के ब्लाउज पर पड़े दही को देखा और फिर ब्लाउज को चाटने लगी, लता को तो पल भर को ये एहसास हुआ की नंदिनी उसकी चूचियों को चाट रही हैं इस एहसास से उसकी सांसें तेज चलने लगी जो हाथ अब तक नंदिनी की कमर पर रहे थे वो उसकी पीठ पर घूमने लगे।
नंदिनी को भी अपनी मां का स्पर्श पसंद आ रहा था, पर अभी वो अपनी मां की चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से बड़ी लगन से चूस रही थी, जिससे लता की हालत बिगड़ती जा रही थी, जहां उसे इतनी उत्तेजना आज तक नहीं हुई थी वहीं उसे ये निराशा हो रही थी कि उसकी बेटी के होंठों और उसकी चूचियों के बीच मुआ ब्लाऊज है, अब वो कुछ ऐसी मानसिक स्थिति में थी जब कुछ उसे गलत नहीं लग रहा था उसे बस अपने बदन की उत्तेजना दिख रही थी उसी उत्तेजना और बदन की प्यास से मजबूर होकर उसने अगला कदम उठाया, और अपने हाथ नंदिनी की पीठ से हटाए और उसके चेहरे को पकड़ कर अपने सीने से हटाया तो नंदिनी हैरान हो गई क्योंकि उसे बहुत मजा आ रहा था, उसे समझ नहीं आया कि मां न उसे क्यों हटाया, इधर लता ने नंदिनी को हटाते ही अपने हाथ अपनी छाती पर लाकर अपने ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिए कुछ ही पलों में उसका ब्लाउज सामने से खुला हुआ था दोनों पाटों को अलग करते ही उसने नंदिनी की ओर देखा और कुछ बोलती इससे पहले ही नंदिनी अपनी मां की एक चूची पर टूट पड़ी और दूसरी को अपने हाथ में भर लिया,
लता के मुंह से शब्दों की जगह सिर्फ आह्ह्हह निकली, नंदिनी पागलों की तरह अपना मुंह खोल कर जितना हो सके उतनी चूची मुंह में भर चूसने की कोशिश करने लगी अब तो वो ये भी नहीं जता रही थी कि वो दही चाट रही है वो खुलकर उत्तेजना के वश में होकर अपनी मां की चूचियों को चूसने लगी।
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने अपनी मां की चूचियों को नंगा देखा नहीं था, अक्सर प्रत्येक दिन ही देखती थी क्योंकि उसकी मां उसके सामने नहाती थी, और जब वो और उसकी मां ही घर होते थे तो मां ऐसी ही ब्लाउज उतार कर सिर्फ पेटीकोट मे नहाती थी, पर आज की स्थिति अलग थी, आज से पहले उसके मन में ऐसे भाव कभी नहीं आए थे जैसे आज आ रहे थे और न ही आज जैसा पहले कुछ हुआ था, लता का बदन कांपने लगा उसे लग रहा था उसकी टांगें कमज़ोर हो रही हैं तो वो पीछे की ओर गिरने लगी, नंदिनी ने जब ये देखा तो बिना चूची से मुंह हटाए आगे होती गई और अपनी मां को सहारा देकर पीछे जमीन पर लिटा दिया और खुद बिना रुके बदल बदल कर उसकी चूचियां चूसती जा रही थी।
लता के लिए सहना मुश्किल हो रहा था उसकी चूत में असहनीय खुजली हो रही थी वो अपनी चूत को खजाना चाह रही थी पर कैसे बेटी के सामने झिझक रही थी, बेटी जो कि उसकी चुचियों पर जोंक की तरह चिपकी हुई थी, वैसी ही खुजली खुद नंदिनी की चूत में भी हो रही थी पर वो किसी भी हालत में अपनी मां की चूचियों से हटाना नहीं चाह रही थी,
जैसे ही लता धरती पर पीठ के बल लेट गई तो नंदिनी अपनी मां के बदन पर छा गई और कुछ इस तरह लेती कि उसके मुंह में लता की चूचियां थीं और लता की एक टांग उसके पैरों के बीच थी जबकि उसकी एक टांग लता के पैरों केस बीच, नंदिनी ऐसी ही अपनी मां के बदन पर लेटकर उसकी चुचियों को बदल बदल कर चूस रही थी, इधर नंदिनी की जांघ ने जो लता के पैरों के बीच थी से साड़ी के ऊपर से ही लता की बुर से टकराई तो लता की सिसकी निकल पड़ी, वो तबसे यही तो चाह रही थी कि कैसे भी इस चूत की खुजली मिटे, उसने तुरंत हल्की हल्की अपनी कमर हिला कर अपनी चूत को नंदिनी की जांघ पर घिसना शुरू कर दिया वहीं नंदिनी की चूत भी तो खुजा रही थी, लता के हिलने से लता की जांघ पर उसकी चूत भी थोड़ा घिसी तो नंदिनी भी मदहोश होने लगी, उसकी चूत में आनंद सा पड़ने लगा तो नंदिनी और जोश में आ गई और अपनी चूत को अच्छे से अपनी मां की जांघ पर घिसने लगी जिससे उसकी चूत में तो आराम पड़ा ही साथ ही उसकी जांघ उसकी मां की बुर पर भी घिसने लगी जिससे लता उत्तेजना में आहें भरने लगी,
ये सब करते हुए भी नंदिनी अपनी मां की चूचियों को नहीं छोड़ रही थी, लता के हाथ कामुकता से अपनी बेटी के बदन पर घूम रहे थे या यूं कहें वो नंदिनी को पकड़ कर उसकी। जांघ को अपने बदन पर घिसने की कोशिश कर रही थी, हर बढ़ते पल के साथ उसका बदन अकड़ता जा रहा था, उसकी कमर झटके खाने लगी थी, जब वासना हद से ज्यादा बढ़ गई तो लता ने एक हाथ से नंदिनी की जांघ को कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी, वहीं दूसरे हाथ से उसने नंदिनी के सिर को पकड़ लिया और अगले ही पल नंदिनी के बालों से पकड़ पीछे किया और उसे अपनी चूचियों से हटा दिया जो नंदिनी नहीं चाहती थी पर इससे पहले की नंदिनी कुछ कह पाती या समझ पाती लता ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने चेहरे के सामने कर लिया, मां बेटी की आंखे टकराईं, नंदिनी को अपनी मां की आंखों में एक जोश और गर्मी दिखी एक प्यास दिखी, अगले पल ही उसकी मां की आंखें बंद हुई और उसकी मां के होंठ उसके होंठों से टकराए, जिनका स्पर्श होते ही नंदिनी का पूरा बदन कांपने लगा उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी मां के होंठ उसके होंठों पर हैं, पर लता पर तो वासना का ऐसा वेग आया था कि वो पागलों की तरह अपनी बेटी के रसीले होठों को चूसने लगी, शुरुआती हैरानी के बाद नंदिनी भी उसी जोश और उत्साह के साथ मां के होंठों को चूसने लगी, लता को अपनी बेटी के रसीले होठों को चूस कर बेहद सुख का अनुभव हो रहा था वो उसे चूमते हुए उसके बदन पर दोनों हाथ फिराने लगी और फिर उसके हाथों में नंदिनी के चूतड़ों को जकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी,
मां की हरकतों से नंदिनी भी हर पल वासना की नई ऊंचाईयां छू रही थी वो भी अपने हाथों को नीचे ला मां की चुचियों को मसलने लगी, मां बेटी की ऐसी जुगलबंदी यदि कोई देखता तो बस होश खो बैठता, जल्दी ही दोनों ही एक साथ एक दूसरे के मुंह में घुटती हुई आहें भरती हुई स्खलित होने लगी, दोनों की कमर झटके खा रही थी, और चूत अपना गरम पानी उड़ेल रही थी स्खलित होने के बाद भी कुछ देर दोनों यूं ही पड़ी रहीं दोनों के होंठ अब भी जुड़े थे बस एक दूसरे को चूस नहीं रहे थे, वासना सिर से हटी तो सच्चाई की धूप सिर पर पड़ने लगी और लता सोचने लगी कि आज उसने ये क्या कर दिया कितने पाप कुछ ही देर में, पहले छोटू जो बेटे जैसा था उसका लंड हिलाया और फिर सगी बेटी के साथ ये सब, ये सोच कर उसका मन पसीजने लगा, उसने थोड़ा धकेल कर नंदिनी को हटने का इशारा किया तो नंदिनी उसके ऊपर से हट गई, नंदिनी ने मुस्कुरा कर मां के चेहरे को देखा तो उसके भाव देखकर नंदिनी सोच में पड़ गई की अचानक मां को क्या हुआ, लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई।
आगे अगले अध्याय में।
भाई वैसे तो कहानी में दोनों ही कैटेगरी हैं इंसेस्ट भी और एडल्ट्री भी इसलिए किसी भी एक कैटेगरी में रखना इसे सही ही था बाकी शुरू करते हुए मैंने इस विषय पर इतना ध्यान भी नही दिया था कि इसे कौनसी कैटेगरी में रखना चाहिए।
समझा नहीं मित् नए अपडेट का इंतजार है