शीतल स्टेरिंग संभाल चुकी थी,,,। शिमला की सड़कों से वह अच्छी तरह से वाकिफ थी इसलिए कहां जाना है उसे अच्छी तरह से पता था,,, निर्मला और उसका बेटा शुभम पीछे सीट पर बैठ गए,,, हल्की आसमानी रंग की साड़ी में निर्मला आसमान से उतरी हुई कोई परी लग रही थी जिसका गोरापन आसमानी साड़ी में और भी ज्यादा खील रहा था,,, और ऊपर से अपनी चुचियों के साइज के विरुद्ध वह ब्रा के साथ-साथ ब्लाउज की पहनी हुई थी जोकि उसकी मदमस्त गोलाकार चुचियों पर एकदम से कसी हुई थी दोनों फड़ फडाते हुए कबूतर ब्लाउज के कैद से आजाद होने के लिए पूरी कोशिश कर रहे थे,,, बार-बार शुभम का ध्यान अपनी मां की मदमस्त चूचियों पर चली जा रही थी जो कि,, ब्लाउज का ऊपरी बटन कुछ ज्यादा ही नीचे था और इसकी वजह से निर्मला की छुट्टियों के बीच की गहरी खाई बेहद लंबी और कुछ ज्यादा ही गहरी नजर आ रही थी जिस पर किसी की भी नजर पड़े तो वह अपने होश खो दे और यही शुभम के साथ हो रहा था,,, आगे जालीदार काली साड़ी में शीतल गाड़ी चला रहे थे जो कि एकदम गोरे बदन होने की वजह से काली साड़ी उसके खूबसूरत बदन पर और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी शीतल भी एकदम क़यामत लग रही थी छोटी बाही का ब्लाउज पहनकर एकदम हुस्न की मल्लिका लग रही थी,,,।
दोनों के बदन से उठ रही मादक खुशबू पूरे कार में फैली हुई थी जिसकी वजह से शुभम के तन बदन में आग लगी हुई थी बहुत जल्द से जल्द दोनों के हुस्न के समुंदर में अपने आप को डुबोना चाहता था,,,,
शीतल सामने सड़क पर नजर रखे हुए थी और निर्मला कार के शीशे से बाहर का नजारा देख रही थी,,, और शुभम अपनी मां की मदद से जवानी में खोया हुआ था वह एक हाथ धीरे से अपनी मां की जान पर रखकर हल्के हल्के उसे साड़ी के ऊपर से ही सहला रहा था जिससे बाहर के नजारे का लुफ्त उठाते हुए अपने बेटे की हथेली की गर्मी को महसूस करके निर्मला को बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी,,,।
शीतल मैं बहुत खुश हूं कि तुम्हारी वजह से आज मुझे शिमला घूमने को मिल रहा है मैं जिस तरह से शिमला के बारे में कल्पना करती आ रही थी उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत सिमला है,,,। यहां की सड़कें यहां के लोग यहां के घर यहां की होटल सब A1 है।
मुझे मालूम था कि शिमला तुम्हें भी अच्छा लगेगा इसीलिए तो मैं तुम्हें यहां लेकर आई हूं और शुभम तुम्हें कैसा लग रहा है शिमला,,,।
पूछो मत मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मैं स्वर्ग में घूम रहा हूं सच शिमला कितना खूबसूरत होगा मैं भी कभी सपने में नहीं सोचा था,,,।
( तीनों बातें करने में मशगूल थे और शुभम बातों के साथ-साथ अपनी मां की जांघों से भी खेल रहा था जो कि धीरे-धीरे करके वह अपनी मां की साड़ी को जांघो तक उठा दिया था और उसकी नंगी चिकनी गोरी जांघों से खेल कर एकदम मस्त हुआ जा रहा था,,,,। अपनी मां की जांघों से खेलता हुआ शुभम खिड़की से बाहर भी झांक रहा था और बाहर विदेशी सैलानियों को देखकर अपने अंदर और ज्यादा उत्तेजना का अनुभव कर रहा था क्योंकि वे लोग इतने छोटे छोटे कपड़े पहन कर इतनी ठंडी में भी बड़े आराम से घूम रहे थे,, उनके बदन पर छोटे-छोटे स्कर्ट उनकी मदमस्त गांड को ठीक से ढक भी नहीं पा रहे थे,,,। विदेशी सैलानियों को देखकर उनके बदन की गर्मी और ज्यादा बढ़ती जा रही थी। वह मन ही मन सोच रहा था कि काश उसकी मां भी इस तरह के कपड़े पहनती तो कितना मजा आता,,,। छोटे छोटे स्कर्ट में उसकी मां की बड़ी-बड़ी गांड और भी ज्यादा खूबसूरत लगती,,,। यही सब कल्पना करके सुभम एकदम मस्त हुआ जा रहा था,,,। साथ ही धीरे-धीरे उसका हाथ जांघों के और ऊपर तक पहुंच रहा था और जैसे-जैसे शुभम का हाथ ऊपर की तरफ जा रहा था वैसे वैसे निर्मला के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी,,, साथ में वह शीतल से बातें भी यह जा रही थी ताकि शीतल को बिल्कुल भी शक ना हो की उसके पीठ पीछे क्या हो रहा है,,,। निर्मला अपने बेटे की उंगलियों का जादू अच्छी तरह से जानती थी,, उसे इस बात का अनुभव अच्छी तरह से था कि उसका बेटा औरतों को किस तरह से कब कैसे और कहां संतुष्ट करना है या उसे अच्छी तरह से मालूम था तभी तो इस समय वह उसकी उंगलियों से उसकी जांघों के बीच खेलना शुरू कर दिया था,,, निर्मला बड़ी मुश्किल से अपनी सांसो को नियंत्रण में किए हुए थी,,,, शुभम की भी हालत खराब हुए जा रही थी क्योंकि पैंट के अंदर उसका लंड पूरी तरह से नियंत्रण के बाहर हुआ जा रहा था,,,। निर्मला की भी यही हालत थी क्योंकि वह धीरे से अपनी उंगली को उसकी पेंटी के अंदर सरका कर उसकी बुर की मखमली त्वचा से खेलना शुरू कर दिया था,,,, निर्मला के सब्र का बांध टूटता चला जा रहा था वह मन में यही सोचने लगी कि कल शीतल की आंखों के सामने एकदम बिंदास होकर जब कार में अपने बेटे के लंड पर चढ़कर चुदवाई तो उसे शर्म नहीं आ रही थी तो इस समय वह क्यों शर्म कर रही है,,,,। यही सोचकर वह शुभम की तरफ देखकर उसे आंख मारी,,, तब तक उत्तेजना बस शुभम अपनी बीच वाली मोदी को अपनी मां की बुर के द्वार के अंदर प्रवेश कर आ चुका था,,,,।
आहहहहहहह,,,,( हल्के से निर्मला के मुख्य में से सिसकारी की आवाज फूट पड़ी,,,।)
शीतल यह ठंडा मौसम हसीन वादियां देखकर मेरा मन बिल्कुल भी काबू में नहीं है मेरा मन कर रहा है कि मैं आज खुल कर,,,,,,
खुलकर क्या,,,,,,?( शीतल आश्चर्य के साथ बोली)
मेरा मन कर रहा है कि इस ठंडे मौसम में आज मैं खुलकर एकदम से,,,,,( इतना कहकर वह खामोश होकर मुस्कुराने लगी तो शीतल फिर से उससे बोली,,,।)
अब बोलेगी भी क्या करना चाहती है या पहेलियां बुझाती रहेगी,,,,।
यार मेरा दिल कर रहा है कि आज एकदम बेशर्म हो जाऊ,,।
यार इसमें बोलने की क्या जरूरत है अपनी बेटे का लंड अपनी बुर में लेती है तो बेशर्म ही तो है,,,।
हां हूं,,,, अब इसमें मुझे कोई शर्म महसूस नहीं होती क्योंकि अपने बेटे का लंड लेकिन किसी और को तो नहीं लेती,,, तू साली रंडी बेशर्म हे जो मेरे बेटे का लंड अपनी बुर में लेती है,,,।
मुझे भी शर्म नहीं आती निर्मला रानी तभी तो तुम दोनों को लेकर नहीं जहां शिमला में आई है ताकि एकदम बेशर्म होकर तेरे बेटे से तेरी आंखों के सामने उसके लंड को अपनी बुर में लेकर अपनी प्यास बुझा सकुं।,,,,,आहहहहह,,, कितना मजा आता है जब तेरा बेटा अपना मोटा और लंबा लंड बुर में डालकर जोर जोर से धक्के लगाता है,,,,।
( अपनी मां और शीतल की गंदी गंदी बातें सुनकर शुभम पर तन बदन में आग लगे जा रही थी वह पूरी तरह से चुद वासा हो गया था वह अपनी उंगली को जोर-जोर से अपनी मां की बुर में पेल रहा था,,,,, निर्मला और शीतल दोनों को भी इस तरह की गंदी बातें और वह भी शुभम के सामने करने में बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी शीतल बड़े आराम से गाड़ी चला रही थी और इस तरह की बातों का लुफ्त ले रही थी,,। निर्मला के मन में क्या चल रहा है यह तो सुबह नहीं जानता था लेकिन दोनों की गरम बातें सुनकर वह पूरी तरह से गरमा चुका था,,,। वह अपनी मां की बुर में उंगली पेलते हुए यही सोच रहा था कि जब यह दोनों इतनी बेशर्म हो सकती है तो मुझे तो लाए ही इन दोनों ने यहां पर चुदवाने के लिए है तो भला मैं उस काम से पीछे क्यों हटु इसलिए वह हिम्मत दिखाते हुए बोला,,,।)
तुम दोनों की गरमा गरम बातें सुनकर मेरी हालत खराब हो गई मुझसे रहा नहीं जा रहा है तुम दोनों ने मेरा लंड खड़ा कर दिए हो,,,( इतना कहकर वह अपनी सीट पर से थोड़ा सा उठकर अपने पेंट की बटन खोल कर उसे नीचे सरकाने लगा,,, शीतल गाड़ी चलाते हुए रह-रहकर पीछे की तरफ नजर करके देख ले रही थी और जब से नहीं है देखी की शुभम अपनी पैंट उतार रहा है तो यह देखकर वह बोली,,।)
अरे तू करने क्या वाला है,,,?
मैं मम्मी को चोदने जा रहा हूं मेरा लंड मुझे पागल किए हुए हैं,,, (इतना कहते हुए वह अपनी पेंट को घुटनों तक उतार दिया और अपनी खड़े लंड को हाथ में लेकर हिलाते हुए)
और जब तक यह मम्मी की बुर में नहीं जाएगा तब तक शांत होने वाला नहीं है,,,। बस मम्मी अब थोड़ा सा अपना टांग फैला लो बाकी मैं सब संभाल लूंगा,,,,( निर्मला को समझ पाती इससे पहले ही शुभम पूरी तरह से अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठाकर नीचे की तरफ हाथ ले गया और उसकी बड़ी बड़ी गांड अपनी हथेलियों में पकड़ कर उसे खींचकर थोड़ा सा कार की सीट के किनारे तक ले आया,,,, शीतल बार-बार पीछे की तरफ नजर करके यह सब देख ले रही थी,,। शुभम की हरकत देखकर पूरी तरह से मदहोश होने लगी क्योंकि सुबह की तरफ से इस तरह की हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद शीतल को नहीं थी वह आश्चर्य से दांतो तले उंगली दबा ली थी,,,, वह आश्चर्य से अभी यह सब देख रही थी कि कब तक शुभम अपने दोनों हाथों का सहारा लेकर अपनी मां की लाल रंग की पैंटी को उसकी मदमस्त चिकनी मोटी मोटी जांघों से नीचे की तरफ खींच कर उसे कमर के नीचे एकदम से नंगी कर दिया,,,।
यह गरमा गरम नजारा देखकर शीतल की बुर फुदकने लगी,,,,, एक पल की भी देरी किए बिना ही शुभम अपनी मां की दोनों टांगों के बीच आकर अपना मोटा लंड अपनी मां की गीली बुर के अंदर उतार दिया और उसे चोदना शुरू कर दिया,,,,,
आहहहहहहह,, बेहद अद्भुत और काम उत्तेजना से भरपूर अतुल्य नजारा था ऐसा नजारा दुर्लभ था देख पाना शीतल के तन बदन में आग लग जा रही थी वह कार की स्पीड उंगली करके बड़े आराम से कार को चला रही थी क्योंकि जिस तरह का दृश्य उसकी पीठ के पीछे चल रहा था वह दृश्य उसे कामोत्तेजना से भर दिया था उसने कार चलाने में उसका ध्यान नहीं लग पा रहा था,,,। शुभम की हिलती हुई कमर पर एक हाथ पीछे की तरफ ले जाकर उसके नितंबों को सहलाते हुए शीतल बोली,,।
पक्का मादरचोद है रे तू,,,, तू तो एकदम बेशर्म हो गया है,,,
शीतल रानी अगर बेशर्म नहीं होता तो इस तरह से अपनी मां को नहीं चोदता,,,( शुभम जोर-जोर से अपनी कमर हिलाता हुआ हांफते हुए बोला,,,,)
और जोर-जोर से पेल अपनी मां को बहुत गर्मी है इसकी बुर में,,,।
थोड़ी ही देर में शिमला की सड़कों पर दौड़ती हुई कार में गर्म सिसकारीर्यों की आवाज गूंजने लगी,,,, लेकिन यह आवाज कार के बाहर तक नहीं जा रही थी,,,। थोड़ी देर बाद सब कुछ शांत हो गया शुभम और निर्मला दोनों अपने कपड़े दुरुस्त करके आराम से बैठ गए,,,,
थोड़ी ही देर में शीतल उन्हें स्केटिंग स्पोर्ट पर ले कर गई,,, वहां लोगों को बहुत मजा आया हालांकि उन तीनों में से किसी में स्केटिंग नहीं किया,,, शुभम की नजर इधर भी विदेशी सैलानियों पर थी उनके छोटे छोटे कपड़े में उनका कसा हुआ बदन उसे बहुत खूबसूरत लग रहा था,,, शीतल शुभम को उन विदेशी सैलानियों को देखते हुए देख ली तो वह शुभम से बोली,,।
क्या देख रहे हो शुभम,,,।
मैं यही देख रहा हूं कि यह विदेशी पर्यटक छोटे छोटे कपड़ों में कितनी खूबसूरत लगती हैं मैं यही चाहता हूं कि यहां पर तुम दोनों भी इसी तरह के छोटे-छोटे कपड़े पहनो कसम से बहुत मजा आएगा,,,।
( शुभम की यह बात सुनते ही निर्मला शर्म के मारे बोली,,।)
नहीं नहीं मुझसे यह बिल्कुल भी नहीं होगा मुझे इन छोटे कपड़ों में बहुत शर्म आएगी,,,।
साली एकदम नंगी होकर के अपने बेटे का लंड अपनी बुर में लेती है तब शर्म नहीं आती छोटे छोटे कपड़े पहनने में शर्म आएगी,,( शीतल निर्मला को टोन मारते हुए बोली,,।)
नहीं शीतल तू कुछ भी कह लेकिन छोटे कपड़ों में अच्छा नहीं लगेगा,,,।
तू घबरा क्यों रही है निर्मला और क्यों अच्छा नहीं लगेगा तू इतनी खूबसूरत है इतनी खूबसूरत बदन की मालकिन है,,। बहुत अच्छा लगेगा देखना हम दोनों जब छोटे छोटे स्कर्ट पहनकर शुभम के सामने आएंगे ना तो उसके मुंह से लार टपकने लगेगी,,,,।
शीतल,,,,,( इतना कहकर निर्मला शीतल की तरफ देखने लगी,,,।)
मान जाना यार यहां शिमला में हम लोगों को कौन पहचानने वाला है,,,, जब इतना कुछ ट्राई कर रहे हैं तो छोटे कपड़े ट्राई करने में क्या जाता है,,,।
चल तू कहती है तो यह भी ट्राई कर लेते हैं,,,।
( निर्मला के मुंह से इतना सुनकर शीतल और शुभम दोनों मुस्कुराने लगे निर्मला भी छोटे कपड़े में अपने आपको देखना चाहती थी कि वह कैसी लगती है,,,। दिन ढल रहा था शाम होने वाली थी शीतल उन दोनों को एक अच्छे से रेस्टोरा में लेकर गई,, वहां पर नाश्ता करने के बाद तीनों एक अच्छे से मॉल में गए जहां पर शीतल और निर्मला के लिए छोटे-छोटे ड्रेस और स्कर्ट लेना था,,,। निर्मला को तो शर्म आ रही थी शीतल हीं अपने लिए और निर्मला के लिए अच्छे-अच्छे छोटे-छोटे ड्रेस पसंद करके पैक करवा ली,,, शुभम तो उंड्रेस को देखकर कल्पना कर रहा था कि उन छोटे-छोटे ड्रेस में उसकी मां और शीतल कैसी लगेंगी यह सोचकर ही ऊसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,, शाम ढल चुकी थी तीनों घर आ चुके थे और नौकरानी उन लोगों के लिए खाना बना चुकी थी,,,।)