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Incest एक अधूरी प्यास.... 2 (Completed)

rohnny4545

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तीनों शिमला में आकर संपूर्ण रुप से संतुष्टि का अहसास और एक नयापन महसूस कर रहे थे 1 सप्ताह के अंदर ही तीनों जिंदगी का असली मजा लूट चुके थे,,, शुभम अपनी जिंदगी से बेहद खुश नजर आ रहा था एक हाथ में लड्डू तो दूसरे हाथ में पेड़ा था,,, शुभम बारी-बारी से अपनी मां और शीतल दोनों की मदमस्त जवानी को अपने हाथों से लुट रहा था,,,।

ऐसे ही 1 दिन दोपहर के 2:00 बज रहे थे,,, शुभम काफी उत्साहित नजर आ रहा था क्योंकि उसकी पेंट में बवंडर उठ रहा था उसे घर से बाहर जाना था और शीतल और उसकी मां आराम कर रहे थे तीनों ड्राइंग रूम में ही थे सोफे पर एक तरफ निर्मला तो दूसरे सोफे पर शीतल लेटी हुई थी,,, शुभम बार-बार खिड़की से बाहर झांक रहा था बाहर हल्की हल्की बर्फ गिर रही थी मौसम एकदम ठंडा और सुहावना नजर आ रहा था,,,। निर्मला अपने बेटे की कुतुहुलता को समझ नहीं पा रही थी,,, वह अपने बेटे से बोली,,,।

शुभम आराम कर ले बेटा रात को फिर जागकर मेहनत ही करनी है,,,।

आराम हराम है मम्मी,,,( शुभम खिड़की से बाहर झांकता हुआ बोला,,।)

क्या,,,,( निर्मला आश्चर्य जताते हुए बोली,,।)


मेरा मतलब है कि मम्मी यहां पर हम घूमने आए हैं और इसका से सोकर आराम करते रहे तो मतलब ही क्या रहेगा,,,

तो,,,( निर्मला फिर से आश्चर्य से बोली,,,)

तो क्या मम्मी मुझे घूमना है,,,।


बाहर हल्की हल्की बर्फ गिर रही है,,,।


तो क्या हुआ मम्मी मुझे कुछ नहीं होने वाला ऐसी ही हल्की हल्की बर्फ में तो घूमने का मजा आता है,,,।


तो यहां के रास्ते से अनजान है कहां घूमेगा,,,

मैं सब जानता हूं मम्मी बस एक-दो घंटे में लौट आऊंगा आखिरकार इधर आया हूं कि थोड़ा बहुत घूमने का मजा तो ले लूं,,,,


जाने दे यार यह बच्चा नहीं है,,, थोड़ी देर घूम कर चला आएगा,,,( शीतल सोफे पर आधी नींद में लेटे-लेटे ही बोली,)


ठीक है लेकिन जल्दी आ जाना और मोबाइल लेकर जाना,,,( निर्मला भी अपनी तरफ से इजाजत देते हुए बोली शुभम एकदम खुश नजर आ रहा था वह जल्दी से अपना मोबाइल लेकर अपने पेंट की जेब में डाल लिया और एक ओवरकोट पहन लिया और माथे पर है लगा लिया था की गिरती हुई बर्फ से थोड़ी रक्षण हो सके,,,।)

थैंक्यू मम्मी मैं जल्दी लौट आऊंगा,,,( इतना कहने के साथ ही वह बाहर निकल गया,,, शुभम काफी खुश नजर आ रहा था अपने घर के गेट से बाहर निकलकर वह जैसे ही सड़क पर आया वह अपनी जेब में से एक कागज की चीट निकाला और उस पर लिखे हुए पते को पढ़ने लगा,,, शांति उसे कागज की चीज चोरी से हम आते हुए बता दी थी कि लगभग लगभग 15 मिनट का रास्ता पैदल चलने से था,,,, और आज सुबह ही वह शुभम के हाथों में अपना पता लिखकर कागज की पर्ची थमा दी थी,,,, क्योंकि शांति के भी तन बदन में शुभम को अपने अंदर महसूस करने की तड़प जाग रही थी,,, जिस तरह से वह उसका हाथ पकड़कर बड़े से पेड़ के पीछे ले गया था और अपनी मनमानी करते हुए उसकी साड़ी को कमर तक उठाकर उसे चोदने की पूरी तैयारी कर चुका था उसकी हिम्मत देखकर घर की नौकरानी शांति उस पर पूरी तरह से मेहरबान होने की ठान ली थी,,, शुभम की हिम्मत और मर्दाना ताकत से भरपूर उसके मजबूत अंग को देखकर उसे अपनी टांगों के बीच में सोच कर के वह पूरी तरह से शुभम के आगे अपने घुटने टेक दी थी,,, अगर कार की लाइट का फॉक्स उन दोनों पर उस रात ना पड़ा होता तो शांति उस दिन शुभम जैसे नौजवान लड़के के साथ संभोग सुख भोग चुकी होती,,, क्योंकि घर पर पहुंचने पर शुभम की हरकतों के बारे में सोचकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी,,, वह भी जल्द से जल्द शुभम से मिलकर अपने तन की प्यास बुझा ना चाहती थी और वह बंगले पर ही अपनी प्यास बुझाने के मूड में थी लेकिन शीतल निर्मला की मौजूदगी में ऐसा होना संभव बिल्कुल भी नहीं था,,, इसलिए थक हारकर वह ना चाहते हुए भी उसे अपने घर बुला रही थी क्योंकि आज के दिन उसके घर पर कोई नहीं था वह शाम तक अकेली ही थी,,, और अपने हाथ आए इस मौके का वह पूरी तरह से फायदा उठाना चाहती थी,,,
शुभम को उसके घर तक का रास्ता पैदल ही तय करना था वह बड़ा उत्सुक था जल्दी से जल्दी उसके घर पहुंचने के लिए वह शांति हकीकत राय मदमस्त जवानी को बेपर्दा होते हुए देखना चाहता था उसके गोलाकार नितंबों को अपने हाथों से सह लाना चाहता था,,,, वह अपनी मस्ती में गीत गुनगुनाता हुआ पैदल चला जा रहा था,,,, थोड़ी दूर जाना होगा कि तभी एक होटल से एक खूबसूरत जवान महिला अपने तन बदन को ठंडी से रक्षा करने के लिए पूरी तरह से गर्म कपड़ों से ढकी हुई थी,,,, मोटर से निकलकर शुभम के आगे आगे चलने लगी हाई हील का सैंडल पहने हुए थी जिसमें उसकी चाल बेहद मादक नजर आ रही थी,,, वह महिला उसके आगे चल रही थी इसलिए शुभम ने उसके चेहरे को नहीं देखा था लेकिन उसके बदन की बनावट और उसके नितंबों का घेराव देखकर पूरी तरह से उसके प्रति आकर्षित हो चुका था,,,, उन दोनों के बीच की दूरी तकरीबन पांच 7 मीटर की थी शुभम की अनुभवी आंखें उस महिला की खूबसूरत बदन के ढांचे का आंखों ही आंखों में नाप ले रहा था,,, वह महिला जींस पहनी हुई थी जिसकी वजह से उसके नितंबों का कसाव जींस में कुछ ज्यादा ही कसा हुआ नजर आ रहा था और उसकी कसी हुई गांड देखकर शुभम का मन डोलने लगा था वह उसे ही घूरता हुआ चला जा रहा था,,,। तभी वह महिला आगे चलते चलते एक लग्जरियस कार के आगे रुक गई,,, और अपने पर्स में से गाड़ी की चाबी निकाल कर कार का दरवाजा खोलने लगी इतने से ही शुभम समझ गया था कि वह काफी पैसे वाली औरत है,,, इधर-उधर देखे बिना ही कार का दरवाजा खोल कर अंदर बैठ गई,,, लेकिन तभी कार के अंदर दाखिल होने से पहले ही उसके पर्स में से उसका छोटा सा बटुआ नीचे गिर गया था जिसके बारे में उसे पता नहीं चला और वह कार में बैठ गई और कार को स्टार्ट कर दिए शुभम यह सब देख रहा था वह जल्दी से दौड़ता हुआ कार के पास गया और बटुआ उठाकर,, कार में बैठी महिला को कार का शीशा खटखटा कर देने लगा पहले तो उस महिला को समझ में नहीं आया कि यह क्या कर रहा है कार स्टार्ट हो चुकी थी,,,, वह महिला उसे इशारे से ही हर जाने के लिए कह रही थी लेकिन शुभम उसका बटुआ उसे देना चाहता था इसलिए बार-बार उसके कार के शीशे को थपथपा रहा था,,,। शुभम की हरकतों से महिला को अच्छी नहीं लग रही थी वह उसे डांटना चाहती थी इसलिए अपना हाथ आगे बढ़ा करवा कार का शीशा खोलने लगी और शीशा खुलते ही बोली,,,।

पागल हो क्या इस तरह से किसी को परेशान किया जाता है तुम्हें शर्म नहीं आती एक औरत को इस तरह से परेशान करते हुए तुम्हारा मतलब क्या है इस तरह से कार का शीशा थपथपा रहे हो,,,।( कार में बैठी महिला बिना कुछ सोचे समझे शुभम की बात को सुने बिना ही एक सांस में सब कुछ भूल गए शुभम तो हैरान था उसकी बातें सुनकर वह एकटक उसे देखने लगा उस महिला की खूबसूरत चेहरे को देखकर वह दंग रह गया था बेहद खूबसूरत एकदम लाल टमाटर की तरह गोल चेहरा था उस महिला का जो कि शुभम को बिल्कुल चांद के टुकड़े की तरह लग रहा था वही तक उसे देख रहा था तो वह महिला बोली,,,।)

पागल है क्या तू किसी औरत को कभी देखा नहीं क्या जो इस तरह से घूर कर देख रहा है,,,
( शुभम को उस महिला की किसी भी बात का बुरा नहीं लग रहा था वह तो उसकी खूबसूरती के रस में पूरी तरह से नहा लेना चाहता था वह बस उसे घूरे जा रहा था और फिर हाथ में लिया हुआ बटवा उसकी तरफ आगे बढ़ाकर उसके बगल वाली सीट पर रखकर मुस्कुराता हुआ वहां से आगे बढ़ गया,,, वह महिला सीट पर रखिए बटुए को देखते ही एकदम से चौक गई क्योंकि वह बटुआ उसी का था वह जल्दी से बटुए की चैन खोलकर अंदर देखी तो सब कुछ बराबर था पटवा में तकरीबन ₹25000 रखा हुआ था क्योंकि बिल्कुल वैसे का वैसा ही था तुरंत ही उस महिला को अपनी गलती का एहसास हुआ वह कार का दरवाजा खोल कर इधर-उधर देखी तो शुभम उसे जाता हुआ नजर आया वह दौड़ कर उसके पास गई,,,।

मैं माफी चाहती हूं मैं बहुत शर्मिंदा हूं अपनी गलती के लिए (वह महिला दौड़ कराने की वजह से हांफते हुए बोली,,)
मुझे बिल्कुल भी नहीं मालूम था कि तुम मेरा बटवा लौटाने के लिए कार का शीशा थपथपा रहे हो मुझे अपनी गलती पर शर्मिंदगी महसूस हो रही है क्योंकि मैं यही समझ रही थी कि तुम कोई आवारा लड़के या भीख मांगने वाले हो,,,।


तो क्या मैं तुम्हें भीख मांगने वाला दिखता हूं,,,( शुभम उस महिला के सामने स्टाइल मारते हुए अपने दोनों हाथों को फैलाते हुए बोला,,,।)

नहीं नहीं बिल्कुल नहीं दिखते तो बिल्कुल भी नहीं हो और तुम्हारी शक्ल और तुम्हारे कपड़े देखकर तो यही लगता है कि तुम भी रईस खानदान से हो,,,, देखो मैं फिर शर्मिंदा हूं मिस्टर जो भी हो नाम तो मुझे तुम्हारा मालूम नहीं है,,,।

शुभम,,,, शुभम नाम है मेरा,,, और मैं शिमला घूमने के लिए आया हूं,,,,

अनमोल,,,, मेरा नाम अनमोल है,,,( वह महिला अपना हाथ आगे बढ़ाकर शुभम से हाथ मिलाने का इशारा करते हुए बोली,, शुभम भला उस महिला को स्पर्श करने का मौका कैसे यहां से जाने दे सकता था वह भी अपना हाथ आगे बढ़ा कर उस महिला से हाथ मिलाया और बोला,,,)


इस अनजान शहर में तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई,,


और मुझे भी तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई इतनी खुशी कि मैं बता नहीं सकती कि आज के दौर में भी तुम्हारे जैसे ईमानदार लड़के हैं,,, तुम शायद जानते नहीं हो कि जो बटुआ तुम मुझे लौटाए हो उसमें ₹25000 था,,,( वह महिला मुस्कुराते हुए बोली,,।)

देखिए अनमोल जी,,, अब उसने ₹25000 था या कुछ और इससे मेरा कोई वास्ता नहीं है बस मैं तो अपना फर्ज निभा रहा था वह बटुआ आपका था तो आप तक पहुंचना बेहद जरूरी था और वैसे भी मेरे मम्मी पापा ने मुझे इस तरह के संस्कार नहीं दिए हैं कि मैं किसी की चीज या उनका रुपया पैसा ले लूं,,,
( वह महिला जो कि तकरीबन 32 35 साल की थी वह शुभम की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी शुभम की बातें उसे अच्छी लग रही थी और वह बोली,,।)

तुम्हारी ईमानदारी मुझे बहुत अच्छी लगी वैसे तुम भी बहुत अच्छे हो,,,, और हां,, जो होटल देख रहे हो ,,,(हाथ से इशारा करते हुए)

होटल अनमोल,,,( शुभम तपाक से बोल पड़ा।)

हां वही वह मेरा ही है कभी आना,,, खिदमत करने का मौका मुझे भी देना,,, तुम्हारी ईमानदारी देखकर दिल एकदम खुश हो गया है,,,।

ठीक है मिस अनमोल,,,,( शुभम जानबूझकर अनमोल के आगे मिस शब्द का प्रयोग किया था वह जानना चाहता था कि वह कुंवारी है या शादीशुदा वैसे तो उसकी उम्र के हिसाब से शादीशुदा ही होनी चाहिए लेकिन उसकी खूबसूरती देखकर सुबह को समझ नहीं आ रहा था और वैसे भी उसके माथे पर ना बिंदी थी ना माथे में सिंदूर इसलिए शुभम को समझ में नहीं आ रहा था,,, शुभम के मुंह से मिस शब्द सुनकर उस महिला के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई थी,,,) मैं जरूर तुम्हारी होटल में आऊंगा वैसे तुम्हारा नाम तुम्हारे माता-पिता ने एकदम सोच समझकर ही रखा है नाम जैसे ही तुम भी बेहद अनमोल हो,,,,।
( इतना कहकर शुभम वहां से चलता बना क्योंकि वह जानता था कि जिस तरह की बातें वह करता था उसे सुनकर कोई भी औरत आफरीन हो जाती थी और वहीं अनमोल के साथ भी हुआ शुभम की बातें सुनकर उसे बहुत ही अच्छा लगा और वह उसे देखती ही रह गई जब तक कि शुभम आंखों से ओझल नहीं हो गया,,, थोड़ी ही देर में घर ढूंढने में मशक्कत करने के बाद शांति का घर उसे मिल ही गया,,, शांति घर के बाहर दरवाजे पर खड़ी होकर उसका इंतजार कर रही थी ताकि शुभम कहीं नजर आ जाए तो वह उसे भुला सके लेकिन शुभम की नजर भी उसके ऊपर पढ़ चुकी थी दोनों की नजरें आपस में टकराई थी दोनों के चेहरे खिल उठे थे दोनों के होठों पर मुस्कान आ गई थी,,, अभी भी हल्की हल्की बर्फ गिर रही थी शांति ओवरकोट और कर खड़ी थी वातावरण में ठंड का एहसास जबरदस्त था लेकिन दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए बेहद तड़प रहे थे,,,। जैसे-जैसे शुभम उसके करीब आता जा रहा था जैसे जैसे उसकी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी और टांगों के बीच कंपन का एहसास उसके संपूर्ण बदन में खलबली मचा रहा था,,,,

मुझे आने में देर तो नहीं हुई,,,,( शुभम शांति के करीब पहुंचता हुआ बोला,,,।)

तुम्हारा इंतजार करते-करते ऐसा लग रहा था कि जैसे एक-एक पल सदियों की तरह गुजर रहा था,,,, अब मुझसे रहा नहीं जाता चलो जल्दी घर में,,, अंदर आओ,,,,( शांति इधर उधर नजर घुमाकर अपनी तसल्ली के लिए देखते हुए बोली ,,, शांति आगे आगे और शुभम पीछे पीछे कमरे में दाखिल हो गया,,,।)
 

Ajay

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तीनों शिमला में आकर संपूर्ण रुप से संतुष्टि का अहसास और एक नयापन महसूस कर रहे थे 1 सप्ताह के अंदर ही तीनों जिंदगी का असली मजा लूट चुके थे,,, शुभम अपनी जिंदगी से बेहद खुश नजर आ रहा था एक हाथ में लड्डू तो दूसरे हाथ में पेड़ा था,,, शुभम बारी-बारी से अपनी मां और शीतल दोनों की मदमस्त जवानी को अपने हाथों से लुट रहा था,,,।

ऐसे ही 1 दिन दोपहर के 2:00 बज रहे थे,,, शुभम काफी उत्साहित नजर आ रहा था क्योंकि उसकी पेंट में बवंडर उठ रहा था उसे घर से बाहर जाना था और शीतल और उसकी मां आराम कर रहे थे तीनों ड्राइंग रूम में ही थे सोफे पर एक तरफ निर्मला तो दूसरे सोफे पर शीतल लेटी हुई थी,,, शुभम बार-बार खिड़की से बाहर झांक रहा था बाहर हल्की हल्की बर्फ गिर रही थी मौसम एकदम ठंडा और सुहावना नजर आ रहा था,,,। निर्मला अपने बेटे की कुतुहुलता को समझ नहीं पा रही थी,,, वह अपने बेटे से बोली,,,।

शुभम आराम कर ले बेटा रात को फिर जागकर मेहनत ही करनी है,,,।

आराम हराम है मम्मी,,,( शुभम खिड़की से बाहर झांकता हुआ बोला,,।)

क्या,,,,( निर्मला आश्चर्य जताते हुए बोली,,।)


मेरा मतलब है कि मम्मी यहां पर हम घूमने आए हैं और इसका से सोकर आराम करते रहे तो मतलब ही क्या रहेगा,,,

तो,,,( निर्मला फिर से आश्चर्य से बोली,,,)

तो क्या मम्मी मुझे घूमना है,,,।


बाहर हल्की हल्की बर्फ गिर रही है,,,।


तो क्या हुआ मम्मी मुझे कुछ नहीं होने वाला ऐसी ही हल्की हल्की बर्फ में तो घूमने का मजा आता है,,,।


तो यहां के रास्ते से अनजान है कहां घूमेगा,,,

मैं सब जानता हूं मम्मी बस एक-दो घंटे में लौट आऊंगा आखिरकार इधर आया हूं कि थोड़ा बहुत घूमने का मजा तो ले लूं,,,,


जाने दे यार यह बच्चा नहीं है,,, थोड़ी देर घूम कर चला आएगा,,,( शीतल सोफे पर आधी नींद में लेटे-लेटे ही बोली,)


ठीक है लेकिन जल्दी आ जाना और मोबाइल लेकर जाना,,,( निर्मला भी अपनी तरफ से इजाजत देते हुए बोली शुभम एकदम खुश नजर आ रहा था वह जल्दी से अपना मोबाइल लेकर अपने पेंट की जेब में डाल लिया और एक ओवरकोट पहन लिया और माथे पर है लगा लिया था की गिरती हुई बर्फ से थोड़ी रक्षण हो सके,,,।)

थैंक्यू मम्मी मैं जल्दी लौट आऊंगा,,,( इतना कहने के साथ ही वह बाहर निकल गया,,, शुभम काफी खुश नजर आ रहा था अपने घर के गेट से बाहर निकलकर वह जैसे ही सड़क पर आया वह अपनी जेब में से एक कागज की चीट निकाला और उस पर लिखे हुए पते को पढ़ने लगा,,, शांति उसे कागज की चीज चोरी से हम आते हुए बता दी थी कि लगभग लगभग 15 मिनट का रास्ता पैदल चलने से था,,,, और आज सुबह ही वह शुभम के हाथों में अपना पता लिखकर कागज की पर्ची थमा दी थी,,,, क्योंकि शांति के भी तन बदन में शुभम को अपने अंदर महसूस करने की तड़प जाग रही थी,,, जिस तरह से वह उसका हाथ पकड़कर बड़े से पेड़ के पीछे ले गया था और अपनी मनमानी करते हुए उसकी साड़ी को कमर तक उठाकर उसे चोदने की पूरी तैयारी कर चुका था उसकी हिम्मत देखकर घर की नौकरानी शांति उस पर पूरी तरह से मेहरबान होने की ठान ली थी,,, शुभम की हिम्मत और मर्दाना ताकत से भरपूर उसके मजबूत अंग को देखकर उसे अपनी टांगों के बीच में सोच कर के वह पूरी तरह से शुभम के आगे अपने घुटने टेक दी थी,,, अगर कार की लाइट का फॉक्स उन दोनों पर उस रात ना पड़ा होता तो शांति उस दिन शुभम जैसे नौजवान लड़के के साथ संभोग सुख भोग चुकी होती,,, क्योंकि घर पर पहुंचने पर शुभम की हरकतों के बारे में सोचकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी,,, वह भी जल्द से जल्द शुभम से मिलकर अपने तन की प्यास बुझा ना चाहती थी और वह बंगले पर ही अपनी प्यास बुझाने के मूड में थी लेकिन शीतल निर्मला की मौजूदगी में ऐसा होना संभव बिल्कुल भी नहीं था,,, इसलिए थक हारकर वह ना चाहते हुए भी उसे अपने घर बुला रही थी क्योंकि आज के दिन उसके घर पर कोई नहीं था वह शाम तक अकेली ही थी,,, और अपने हाथ आए इस मौके का वह पूरी तरह से फायदा उठाना चाहती थी,,,
शुभम को उसके घर तक का रास्ता पैदल ही तय करना था वह बड़ा उत्सुक था जल्दी से जल्दी उसके घर पहुंचने के लिए वह शांति हकीकत राय मदमस्त जवानी को बेपर्दा होते हुए देखना चाहता था उसके गोलाकार नितंबों को अपने हाथों से सह लाना चाहता था,,,, वह अपनी मस्ती में गीत गुनगुनाता हुआ पैदल चला जा रहा था,,,, थोड़ी दूर जाना होगा कि तभी एक होटल से एक खूबसूरत जवान महिला अपने तन बदन को ठंडी से रक्षा करने के लिए पूरी तरह से गर्म कपड़ों से ढकी हुई थी,,,, मोटर से निकलकर शुभम के आगे आगे चलने लगी हाई हील का सैंडल पहने हुए थी जिसमें उसकी चाल बेहद मादक नजर आ रही थी,,, वह महिला उसके आगे चल रही थी इसलिए शुभम ने उसके चेहरे को नहीं देखा था लेकिन उसके बदन की बनावट और उसके नितंबों का घेराव देखकर पूरी तरह से उसके प्रति आकर्षित हो चुका था,,,, उन दोनों के बीच की दूरी तकरीबन पांच 7 मीटर की थी शुभम की अनुभवी आंखें उस महिला की खूबसूरत बदन के ढांचे का आंखों ही आंखों में नाप ले रहा था,,, वह महिला जींस पहनी हुई थी जिसकी वजह से उसके नितंबों का कसाव जींस में कुछ ज्यादा ही कसा हुआ नजर आ रहा था और उसकी कसी हुई गांड देखकर शुभम का मन डोलने लगा था वह उसे ही घूरता हुआ चला जा रहा था,,,। तभी वह महिला आगे चलते चलते एक लग्जरियस कार के आगे रुक गई,,, और अपने पर्स में से गाड़ी की चाबी निकाल कर कार का दरवाजा खोलने लगी इतने से ही शुभम समझ गया था कि वह काफी पैसे वाली औरत है,,, इधर-उधर देखे बिना ही कार का दरवाजा खोल कर अंदर बैठ गई,,, लेकिन तभी कार के अंदर दाखिल होने से पहले ही उसके पर्स में से उसका छोटा सा बटुआ नीचे गिर गया था जिसके बारे में उसे पता नहीं चला और वह कार में बैठ गई और कार को स्टार्ट कर दिए शुभम यह सब देख रहा था वह जल्दी से दौड़ता हुआ कार के पास गया और बटुआ उठाकर,, कार में बैठी महिला को कार का शीशा खटखटा कर देने लगा पहले तो उस महिला को समझ में नहीं आया कि यह क्या कर रहा है कार स्टार्ट हो चुकी थी,,,, वह महिला उसे इशारे से ही हर जाने के लिए कह रही थी लेकिन शुभम उसका बटुआ उसे देना चाहता था इसलिए बार-बार उसके कार के शीशे को थपथपा रहा था,,,। शुभम की हरकतों से महिला को अच्छी नहीं लग रही थी वह उसे डांटना चाहती थी इसलिए अपना हाथ आगे बढ़ा करवा कार का शीशा खोलने लगी और शीशा खुलते ही बोली,,,।

पागल हो क्या इस तरह से किसी को परेशान किया जाता है तुम्हें शर्म नहीं आती एक औरत को इस तरह से परेशान करते हुए तुम्हारा मतलब क्या है इस तरह से कार का शीशा थपथपा रहे हो,,,।( कार में बैठी महिला बिना कुछ सोचे समझे शुभम की बात को सुने बिना ही एक सांस में सब कुछ भूल गए शुभम तो हैरान था उसकी बातें सुनकर वह एकटक उसे देखने लगा उस महिला की खूबसूरत चेहरे को देखकर वह दंग रह गया था बेहद खूबसूरत एकदम लाल टमाटर की तरह गोल चेहरा था उस महिला का जो कि शुभम को बिल्कुल चांद के टुकड़े की तरह लग रहा था वही तक उसे देख रहा था तो वह महिला बोली,,,।)

पागल है क्या तू किसी औरत को कभी देखा नहीं क्या जो इस तरह से घूर कर देख रहा है,,,
( शुभम को उस महिला की किसी भी बात का बुरा नहीं लग रहा था वह तो उसकी खूबसूरती के रस में पूरी तरह से नहा लेना चाहता था वह बस उसे घूरे जा रहा था और फिर हाथ में लिया हुआ बटवा उसकी तरफ आगे बढ़ाकर उसके बगल वाली सीट पर रखकर मुस्कुराता हुआ वहां से आगे बढ़ गया,,, वह महिला सीट पर रखिए बटुए को देखते ही एकदम से चौक गई क्योंकि वह बटुआ उसी का था वह जल्दी से बटुए की चैन खोलकर अंदर देखी तो सब कुछ बराबर था पटवा में तकरीबन ₹25000 रखा हुआ था क्योंकि बिल्कुल वैसे का वैसा ही था तुरंत ही उस महिला को अपनी गलती का एहसास हुआ वह कार का दरवाजा खोल कर इधर-उधर देखी तो शुभम उसे जाता हुआ नजर आया वह दौड़ कर उसके पास गई,,,।

मैं माफी चाहती हूं मैं बहुत शर्मिंदा हूं अपनी गलती के लिए (वह महिला दौड़ कराने की वजह से हांफते हुए बोली,,)
मुझे बिल्कुल भी नहीं मालूम था कि तुम मेरा बटवा लौटाने के लिए कार का शीशा थपथपा रहे हो मुझे अपनी गलती पर शर्मिंदगी महसूस हो रही है क्योंकि मैं यही समझ रही थी कि तुम कोई आवारा लड़के या भीख मांगने वाले हो,,,।


तो क्या मैं तुम्हें भीख मांगने वाला दिखता हूं,,,( शुभम उस महिला के सामने स्टाइल मारते हुए अपने दोनों हाथों को फैलाते हुए बोला,,,।)

नहीं नहीं बिल्कुल नहीं दिखते तो बिल्कुल भी नहीं हो और तुम्हारी शक्ल और तुम्हारे कपड़े देखकर तो यही लगता है कि तुम भी रईस खानदान से हो,,,, देखो मैं फिर शर्मिंदा हूं मिस्टर जो भी हो नाम तो मुझे तुम्हारा मालूम नहीं है,,,।

शुभम,,,, शुभम नाम है मेरा,,, और मैं शिमला घूमने के लिए आया हूं,,,,

अनमोल,,,, मेरा नाम अनमोल है,,,( वह महिला अपना हाथ आगे बढ़ाकर शुभम से हाथ मिलाने का इशारा करते हुए बोली,, शुभम भला उस महिला को स्पर्श करने का मौका कैसे यहां से जाने दे सकता था वह भी अपना हाथ आगे बढ़ा कर उस महिला से हाथ मिलाया और बोला,,,)


इस अनजान शहर में तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई,,


और मुझे भी तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई इतनी खुशी कि मैं बता नहीं सकती कि आज के दौर में भी तुम्हारे जैसे ईमानदार लड़के हैं,,, तुम शायद जानते नहीं हो कि जो बटुआ तुम मुझे लौटाए हो उसमें ₹25000 था,,,( वह महिला मुस्कुराते हुए बोली,,।)

देखिए अनमोल जी,,, अब उसने ₹25000 था या कुछ और इससे मेरा कोई वास्ता नहीं है बस मैं तो अपना फर्ज निभा रहा था वह बटुआ आपका था तो आप तक पहुंचना बेहद जरूरी था और वैसे भी मेरे मम्मी पापा ने मुझे इस तरह के संस्कार नहीं दिए हैं कि मैं किसी की चीज या उनका रुपया पैसा ले लूं,,,
( वह महिला जो कि तकरीबन 32 35 साल की थी वह शुभम की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी शुभम की बातें उसे अच्छी लग रही थी और वह बोली,,।)

तुम्हारी ईमानदारी मुझे बहुत अच्छी लगी वैसे तुम भी बहुत अच्छे हो,,,, और हां,, जो होटल देख रहे हो ,,,(हाथ से इशारा करते हुए)

होटल अनमोल,,,( शुभम तपाक से बोल पड़ा।)

हां वही वह मेरा ही है कभी आना,,, खिदमत करने का मौका मुझे भी देना,,, तुम्हारी ईमानदारी देखकर दिल एकदम खुश हो गया है,,,।

ठीक है मिस अनमोल,,,,( शुभम जानबूझकर अनमोल के आगे मिस शब्द का प्रयोग किया था वह जानना चाहता था कि वह कुंवारी है या शादीशुदा वैसे तो उसकी उम्र के हिसाब से शादीशुदा ही होनी चाहिए लेकिन उसकी खूबसूरती देखकर सुबह को समझ नहीं आ रहा था और वैसे भी उसके माथे पर ना बिंदी थी ना माथे में सिंदूर इसलिए शुभम को समझ में नहीं आ रहा था,,, शुभम के मुंह से मिस शब्द सुनकर उस महिला के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई थी,,,) मैं जरूर तुम्हारी होटल में आऊंगा वैसे तुम्हारा नाम तुम्हारे माता-पिता ने एकदम सोच समझकर ही रखा है नाम जैसे ही तुम भी बेहद अनमोल हो,,,,।
( इतना कहकर शुभम वहां से चलता बना क्योंकि वह जानता था कि जिस तरह की बातें वह करता था उसे सुनकर कोई भी औरत आफरीन हो जाती थी और वहीं अनमोल के साथ भी हुआ शुभम की बातें सुनकर उसे बहुत ही अच्छा लगा और वह उसे देखती ही रह गई जब तक कि शुभम आंखों से ओझल नहीं हो गया,,, थोड़ी ही देर में घर ढूंढने में मशक्कत करने के बाद शांति का घर उसे मिल ही गया,,, शांति घर के बाहर दरवाजे पर खड़ी होकर उसका इंतजार कर रही थी ताकि शुभम कहीं नजर आ जाए तो वह उसे भुला सके लेकिन शुभम की नजर भी उसके ऊपर पढ़ चुकी थी दोनों की नजरें आपस में टकराई थी दोनों के चेहरे खिल उठे थे दोनों के होठों पर मुस्कान आ गई थी,,, अभी भी हल्की हल्की बर्फ गिर रही थी शांति ओवरकोट और कर खड़ी थी वातावरण में ठंड का एहसास जबरदस्त था लेकिन दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए बेहद तड़प रहे थे,,,। जैसे-जैसे शुभम उसके करीब आता जा रहा था जैसे जैसे उसकी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी और टांगों के बीच कंपन का एहसास उसके संपूर्ण बदन में खलबली मचा रहा था,,,,

मुझे आने में देर तो नहीं हुई,,,,( शुभम शांति के करीब पहुंचता हुआ बोला,,,।)

तुम्हारा इंतजार करते-करते ऐसा लग रहा था कि जैसे एक-एक पल सदियों की तरह गुजर रहा था,,,, अब मुझसे रहा नहीं जाता चलो जल्दी घर में,,, अंदर आओ,,,,( शांति इधर उधर नजर घुमाकर अपनी तसल्ली के लिए देखते हुए बोली ,,, शांति आगे आगे और शुभम पीछे पीछे कमरे में दाखिल हो गया,,,।)
Nice update bhai
 
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शांति घर के दरवाजे पर खड़े होकर शुभम का इंतजार करती हुई



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rohnny4545

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नौकरानी शांति धड़कते दिल के साथ शुभम को अंदर कमरे में ले गई,,, शुभम को घर में लाते हो उसे आस पड़ोस में किसी ने नहीं देखा था वैसे भी इतनी ठंड और ऊपर से हल्की हल्की बर्फ गिरने की वजह से सड़क पर चहल-पहल बहुत ही कम थी,,,
शुभम शांति को अपनी बाहों में लेने के लिए बेहद उतावला था लेकिन वह अपने आप पर कंट्रोल किए हुए था,,, शांति की गोलाकार नितंबों का घेराव गर्म कपड़ों में साफ नजर आ रहा था,,,।

बैठो,, छोटे बाबू,,,

तुम मुझे शुभम कह सकती हो,,,

बड़ा अजीब लगता है आप लोग इतने बड़े घर के हो,,,, पहली बार कोई अच्छे घर का मेरे घर आया है,,,।( शांति शर्माते हुए बड़े संकोच में बोली,,,) यह छोटा सा कमरा( अपने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए,,) तुम्हारी हैसियत के हिसाब से मैं तुम्हारी खातिरदारी तो नहीं कर सकती लेकिन क्या लोगे गर्म या ठंडा,,( शांति अपनी मादक अदा बिखेरते हुए बोली,,,।)

अब तो मुझे शर्मिंदा कर रही हो मेरी नजर में कोई छोटा बड़ा बिल्कुल भी नहीं है अमीरी गरीबी यह सब मुझे बिल्कुल भी रास नहीं आती मेरे लिए सब बराबर है,,,, बस खूबसूरत होना चाहिए,,,( शुभम अंतिम में खूबसूरत शब्द पर दबाव देते हुए बोला था और शुभम के कहने का मतलब शांति अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए उसके होठों पर मुस्कान आ गई,,,।)

फिर भी मेरे घर आए हो तो थोड़ी बहुत तो खातिरदारी का मौका मुझे मिलना ही चाहिए,,,।

तुम जिस तरह की खातिरदारी करोगी शांति शायद उस तरह की खातिरदारी कोई नहीं कर पाएगा,,,,

तुम्हारे कहने का मतलब मैं अच्छी तरह से समझ रही हूं लेकिन फिर भी औपचारिकता रूप से,,, कॉफी पियोगे या कुछ और,,, कुछ और से मेरा मतलब है कि यहां ठंडी के मौसम में लगभग लगभग सभी लोग शराब या बीयर का सेवन जरूर करते हैं,,, तुम क्या लोगे,,,।


मैं तो गरमा गरम दूध पियूंगा,,,( शुभम शांति की बड़ी बड़ी छातियों की तरफ देखता हुआ बोला,,,।)

जरूर वह भी पीने को मिलेगा लेकिन उसके लिए अभी थोड़ा समय है,,,,( शांति अपने ओवरकोट को व्यवस्थित करते हुए बोली क्योंकि यह जानती थी कि ऐसा करना कोई मायने नहीं रखता फिर भी वह शुभम की बातों से थोड़ा शर्म महसूस कर रही थी,,,) मैं गरमा गरम कॉफी लेकर आती हूं,,,।
( और शुभम का जवाब सुने बिना ही शांति रूम से सटे किचन में चली गई और थोड़ी ही देर में गरमा गरम कॉफी लेकर आ गई,,,। कॉफी के ट्रे को टेबल पर रखते हुए एक कप शुभम को पकड़ा कर दूसरा कब लेकर कुर्सी पर बैठ गई और गरमा गरम कॉफी की चुस्की लेने लगी,,, शुभम अच्छी तरह से देख रहा था कि शांति बड़े ही मादक अदा से गरमा गरम कॉफी की चुस्की ले रही थी,,, उसके लाल-लाल होठों को और होटो पर लगी हुई कॉफी के रस की बूंद देखकर शुभम का मन डोलने लगा था,,, शुभम के पेंट में हलचल मची हुई थी,,, वह बार-बार शांति की आंखों के सामने ही अपने पेंट में आए बवंडर को दबाने की कोशिश कर रहा था और शुभम की इस हरकत पर शांति की नजर चली जा रही थी,, और यह देख कर शांति की हालत खराब होती जा रही थी क्योंकि वह जानती थी कि शुभम अपना हाथ पैंट के ऊपर रख कर क्या कर रहा है,,,।

वैसे कौन-कौन रहता है यहां,,,

मैं मेरे पति और मेरे दो बच्चे जो कि आज मेरे पति उन्हें लेकर घूमने गए हैं,,,

घूमने गए बच्चों को लेकर और ऐसे बर्फ बारी में,,,

इतना तो यहां वालों के लिए नॉर्मल है कोई ज्यादा दिक्कत नहीं होती आप सब बाहर से आए हैं इसलिए आप लोगों को दिक्कत होती है,,,।
( कॉफी खत्म होते-होते दोनों के बीच में काफी वार्तालाप हो चुकी थी,,, शुभम और नौकरानी शांति के लिए यह वार्तालाप एक औपचारिकता बस ही थी,,, बल्कि दोनों एक दूसरे में जल्द से जल्द समाने के लिए उतावले हुए जा रहे थे लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि शुरू कौन करें,,,।)

तुम उस दिन भाग क्यों गई,,,?( शुभम कॉफी का कप ट्रे में रखते हुए बोला)

भागती नहीं तो और क्या करती कोई देख लेता था मैं तो बदनाम हो जाती,,,।

तुम नाहक ही डर कर वहां से भाग गई वह कार तो सीधे चली गई,,,। अगर मेरी बात मान कर वहां रुक गई होती तो शायद,,,,( इतना कहकर शुभम खामोश होकर उसकी तरफ देखने लगा तो शांति बोली,,,।)

अगर वहीं रह गई होती तो इस तरह से तुम मेरे घर ना आते,,,,।

( दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए,,, शांति की टांगों के बीच हलचल मची हुई थी,,, उस दिन किचन में और पेड़ के पीछे शुभम के कठोर पन को वह अपनी टांगों के बीच बहुत ही अच्छी तरह से महसूस की थी,,,, इसलिए तो शुभम की मर्दाना ताकत के आगे विवश होकर हुआ है आज शुभम को एक रत होने के लिए अपने घर बुलाई थी,,,। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि ऐसी कातिल ठंडी में गर्मी का एहसास सिर्फ शुभम ही दिला सकता है,,, दोनों कॉफी पी चुके थे,,, शांति को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें वह खाली कप को ट्रे में रख कर,, ट्री को उठाने ही वाली थी कि शुभम के सब्र का बांध टूट गया क्योंकि जिस कार्य को करने के लिए वह इतनी दूर चल कर आया था उसमें काफी समय लग रहा था और वह इस तरह से अपना समय गंवाना नहीं चाहता था,,,, इसलिए जैसे ही शांति ट्रेन थाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाई तुरंत शुभम अपना हाथ आगे करके उसकी कलाई थाम लिया,,,, शुभम इतने जोरो से उसकी कलाई को पकड़ा था कि उसे दर्द महसूस होने लगा,,,।

आहहहह,,, क्या कर रहे हो शुभम छोड़ो ना,,,( शांति इतराते हुए अपनी कलाई को शुभम के हाथों से छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए बोली,,,।)

मैं छोड़ने के लिए नहीं तुम्हें पकड़ने के लिए इतनी दूर आया हूं,,,( इतना कहने के साथ ही शुभम शांति को अपनी तरफ खींचा तो शांति एकदम से उसके ऊपर गिरने लगी और शुभम उसे पकड़ कर अपनी बाहों में ले लिया,,, शांति शुभम की गोदी में एकदम से बैठ गई थी और शुभम उसे दोनों हाथों से अपनी बाहों में लेकर उसके खूबसूरत चेहरे को देख रहा था,,,, और उसके खूबसूरत चेहरे को देखते हुए बोला,,)

बनाने वाले ने तुम्हें बहुत ही फुर्सत से बनाया है,,, दो बच्चों की मां होने के बावजूद भी कोई कह नहीं सकता कि तुम शादीशुदा हो,,,
( इस तरह की तारीफ सुनकर शांति एकदम से शरमा गई और शर्मा कर दूसरी तरफ नजर फेर ली,,, शुभम की गोद में बैठ कर शांति को बेहद शर्मिंदगी का अहसास हो रहा था क्योंकि वह शुभम और अपने बीच के उम्र की खाई को अच्छी तरह से भाप चुकी थी वह शादीशुदा और दो बच्चों की मां थी और शुभम जवानी की दहलीज पर खड़ा था,,, गोरे गोरे चेहरे पर आई लालिमा को देखकर शुभम के तन बदन में उत्तेजना का ज्वर चढ़ने लगा वह दोनों हाथों से शांति का खूबसूरत चेहरा पकड़कर अपनी तरफ किया और देखते ही देखते उसके लाल-लाल होठों पर अपने होंठ रख कर उसे चूसना शुरू कर दिया,,, शांति एकदम से मदहोश होने लगी बरसों बाद किसी ने इस तरह से उसके होठों को चुंबन किया था,,,, चुंबन क्या शुभम तो उसके होठों को अपने मुंह में लेकर उसके रस को पीना शुरू कर दिया था,,, और साथ ही अपना एक हाथ उसके ऊपर कोर्ट में डाल कर उसकी नंगी चिकनी कमर को हल्के हल्के सहला रहा था,,, देखते ही देखते दोनों का चुंबन और जबरदस्त होने लगा मदहोशी के आलम में शांति भी उसका सहयोग करने लगी,,, जिस तरह का उत्तेजना से भरपूर शुभम ने उसके होंठों को चूमना शुरू किया था इस तरह से तो उसके पति ने कभी उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर चुंबन भी नहीं किया था,,,,,

करता भी कैसे दिन रात शराब के नशे में जो डूबा रहता था,,, औरतों से कैसे प्यार किया जाता है यह उसे आता ही नहीं था,,, शुभम के हाथ उसकी चिकनी कमर पर से पूरे बदन पर घूमने लगे थे,,,। देखते ही देखते उसके होंठों का रसपान करते हुए शुभम ब्लाउज के ऊपर से उसकी मदमस्त गोल-गोल चूचियों को दबाना शुरू कर दिया,,,।

क्रमशः
 
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shandar mast update hai bhaii
 
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Kyan Anmol ki mehamanawaji ka maza lega Shubham? Waiting for next update
 
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Ajay

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नौकरानी शांति धड़कते दिल के साथ शुभम को अंदर कमरे में ले गई,,, शुभम को घर में लाते हो उसे आस पड़ोस में किसी ने नहीं देखा था वैसे भी इतनी ठंड और ऊपर से हल्की हल्की बर्फ गिरने की वजह से सड़क पर चहल-पहल बहुत ही कम थी,,,
शुभम शांति को अपनी बाहों में लेने के लिए बेहद उतावला था लेकिन वह अपने आप पर कंट्रोल किए हुए था,,, शांति की गोलाकार नितंबों का घेराव गर्म कपड़ों में साफ नजर आ रहा था,,,।

बैठो,, छोटे बाबू,,,

तुम मुझे शुभम कह सकती हो,,,

बड़ा अजीब लगता है आप लोग इतने बड़े घर के हो,,,, पहली बार कोई अच्छे घर का मेरे घर आया है,,,।( शांति शर्माते हुए बड़े संकोच में बोली,,,) यह छोटा सा कमरा( अपने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए,,) तुम्हारी हैसियत के हिसाब से मैं तुम्हारी खातिरदारी तो नहीं कर सकती लेकिन क्या लोगे गर्म या ठंडा,,( शांति अपनी मादक अदा बिखेरते हुए बोली,,,।)

अब तो मुझे शर्मिंदा कर रही हो मेरी नजर में कोई छोटा बड़ा बिल्कुल भी नहीं है अमीरी गरीबी यह सब मुझे बिल्कुल भी रास नहीं आती मेरे लिए सब बराबर है,,,, बस खूबसूरत होना चाहिए,,,( शुभम अंतिम में खूबसूरत शब्द पर दबाव देते हुए बोला था और शुभम के कहने का मतलब शांति अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए उसके होठों पर मुस्कान आ गई,,,।)

फिर भी मेरे घर आए हो तो थोड़ी बहुत तो खातिरदारी का मौका मुझे मिलना ही चाहिए,,,।

तुम जिस तरह की खातिरदारी करोगी शांति शायद उस तरह की खातिरदारी कोई नहीं कर पाएगा,,,,

तुम्हारे कहने का मतलब मैं अच्छी तरह से समझ रही हूं लेकिन फिर भी औपचारिकता रूप से,,, कॉफी पियोगे या कुछ और,,, कुछ और से मेरा मतलब है कि यहां ठंडी के मौसम में लगभग लगभग सभी लोग शराब या बीयर का सेवन जरूर करते हैं,,, तुम क्या लोगे,,,।


मैं तो गरमा गरम दूध पियूंगा,,,( शुभम शांति की बड़ी बड़ी छातियों की तरफ देखता हुआ बोला,,,।)

जरूर वह भी पीने को मिलेगा लेकिन उसके लिए अभी थोड़ा समय है,,,,( शांति अपने ओवरकोट को व्यवस्थित करते हुए बोली क्योंकि यह जानती थी कि ऐसा करना कोई मायने नहीं रखता फिर भी वह शुभम की बातों से थोड़ा शर्म महसूस कर रही थी,,,) मैं गरमा गरम कॉफी लेकर आती हूं,,,।
( और शुभम का जवाब सुने बिना ही शांति रूम से सटे किचन में चली गई और थोड़ी ही देर में गरमा गरम कॉफी लेकर आ गई,,,। कॉफी के ट्रे को टेबल पर रखते हुए एक कप शुभम को पकड़ा कर दूसरा कब लेकर कुर्सी पर बैठ गई और गरमा गरम कॉफी की चुस्की लेने लगी,,, शुभम अच्छी तरह से देख रहा था कि शांति बड़े ही मादक अदा से गरमा गरम कॉफी की चुस्की ले रही थी,,, उसके लाल-लाल होठों को और होटो पर लगी हुई कॉफी के रस की बूंद देखकर शुभम का मन डोलने लगा था,,, शुभम के पेंट में हलचल मची हुई थी,,, वह बार-बार शांति की आंखों के सामने ही अपने पेंट में आए बवंडर को दबाने की कोशिश कर रहा था और शुभम की इस हरकत पर शांति की नजर चली जा रही थी,, और यह देख कर शांति की हालत खराब होती जा रही थी क्योंकि वह जानती थी कि शुभम अपना हाथ पैंट के ऊपर रख कर क्या कर रहा है,,,।

वैसे कौन-कौन रहता है यहां,,,

मैं मेरे पति और मेरे दो बच्चे जो कि आज मेरे पति उन्हें लेकर घूमने गए हैं,,,

घूमने गए बच्चों को लेकर और ऐसे बर्फ बारी में,,,

इतना तो यहां वालों के लिए नॉर्मल है कोई ज्यादा दिक्कत नहीं होती आप सब बाहर से आए हैं इसलिए आप लोगों को दिक्कत होती है,,,।
( कॉफी खत्म होते-होते दोनों के बीच में काफी वार्तालाप हो चुकी थी,,, शुभम और नौकरानी शांति के लिए यह वार्तालाप एक औपचारिकता बस ही थी,,, बल्कि दोनों एक दूसरे में जल्द से जल्द समाने के लिए उतावले हुए जा रहे थे लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि शुरू कौन करें,,,।)

तुम उस दिन भाग क्यों गई,,,?( शुभम कॉफी का कप ट्रे में रखते हुए बोला)

भागती नहीं तो और क्या करती कोई देख लेता था मैं तो बदनाम हो जाती,,,।

तुम नाहक ही डर कर वहां से भाग गई वह कार तो सीधे चली गई,,,। अगर मेरी बात मान कर वहां रुक गई होती तो शायद,,,,( इतना कहकर शुभम खामोश होकर उसकी तरफ देखने लगा तो शांति बोली,,,।)

अगर वहीं रह गई होती तो इस तरह से तुम मेरे घर ना आते,,,,।

( दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए,,, शांति की टांगों के बीच हलचल मची हुई थी,,, उस दिन किचन में और पेड़ के पीछे शुभम के कठोर पन को वह अपनी टांगों के बीच बहुत ही अच्छी तरह से महसूस की थी,,,, इसलिए तो शुभम की मर्दाना ताकत के आगे विवश होकर हुआ है आज शुभम को एक रत होने के लिए अपने घर बुलाई थी,,,। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि ऐसी कातिल ठंडी में गर्मी का एहसास सिर्फ शुभम ही दिला सकता है,,, दोनों कॉफी पी चुके थे,,, शांति को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें वह खाली कप को ट्रे में रख कर,, ट्री को उठाने ही वाली थी कि शुभम के सब्र का बांध टूट गया क्योंकि जिस कार्य को करने के लिए वह इतनी दूर चल कर आया था उसमें काफी समय लग रहा था और वह इस तरह से अपना समय गंवाना नहीं चाहता था,,,, इसलिए जैसे ही शांति ट्रेन थाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाई तुरंत शुभम अपना हाथ आगे करके उसकी कलाई थाम लिया,,,, शुभम इतने जोरो से उसकी कलाई को पकड़ा था कि उसे दर्द महसूस होने लगा,,,।

आहहहह,,, क्या कर रहे हो शुभम छोड़ो ना,,,( शांति इतराते हुए अपनी कलाई को शुभम के हाथों से छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए बोली,,,।)

मैं छोड़ने के लिए नहीं तुम्हें पकड़ने के लिए इतनी दूर आया हूं,,,( इतना कहने के साथ ही शुभम शांति को अपनी तरफ खींचा तो शांति एकदम से उसके ऊपर गिरने लगी और शुभम उसे पकड़ कर अपनी बाहों में ले लिया,,, शांति शुभम की गोदी में एकदम से बैठ गई थी और शुभम उसे दोनों हाथों से अपनी बाहों में लेकर उसके खूबसूरत चेहरे को देख रहा था,,,, और उसके खूबसूरत चेहरे को देखते हुए बोला,,)

बनाने वाले ने तुम्हें बहुत ही फुर्सत से बनाया है,,, दो बच्चों की मां होने के बावजूद भी कोई कह नहीं सकता कि तुम शादीशुदा हो,,,
( इस तरह की तारीफ सुनकर शांति एकदम से शरमा गई और शर्मा कर दूसरी तरफ नजर फेर ली,,, शुभम की गोद में बैठ कर शांति को बेहद शर्मिंदगी का अहसास हो रहा था क्योंकि वह शुभम और अपने बीच के उम्र की खाई को अच्छी तरह से भाप चुकी थी वह शादीशुदा और दो बच्चों की मां थी और शुभम जवानी की दहलीज पर खड़ा था,,, गोरे गोरे चेहरे पर आई लालिमा को देखकर शुभम के तन बदन में उत्तेजना का ज्वर चढ़ने लगा वह दोनों हाथों से शांति का खूबसूरत चेहरा पकड़कर अपनी तरफ किया और देखते ही देखते उसके लाल-लाल होठों पर अपने होंठ रख कर उसे चूसना शुरू कर दिया,,, शांति एकदम से मदहोश होने लगी बरसों बाद किसी ने इस तरह से उसके होठों को चुंबन किया था,,,, चुंबन क्या शुभम तो उसके होठों को अपने मुंह में लेकर उसके रस को पीना शुरू कर दिया था,,, और साथ ही अपना एक हाथ उसके ऊपर कोर्ट में डाल कर उसकी नंगी चिकनी कमर को हल्के हल्के सहला रहा था,,, देखते ही देखते दोनों का चुंबन और जबरदस्त होने लगा मदहोशी के आलम में शांति भी उसका सहयोग करने लगी,,, जिस तरह का उत्तेजना से भरपूर शुभम ने उसके होंठों को चूमना शुरू किया था इस तरह से तो उसके पति ने कभी उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर चुंबन भी नहीं किया था,,,,, करता भी कैसे दिन रात शराब के नशे में जो डूबा रहता था,,, औरतों से कैसे प्यार किया जाता है यह उसे आता ही नहीं था,,, शुभम के हाथ उसकी चिकनी कमर पर से पूरे बदन पर घूमने लगे थे,,,। देखते ही देखते उसके होंठों का रसपान करते हुए शुभम ब्लाउज के ऊपर से उसकी मदमस्त गोल-गोल चूचियों को दबाना शुरू कर दिया,,,।

क्रमशः
Nice update bhai
 

Rahul123

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Update please
 
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