तीनों शिमला में आकर संपूर्ण रुप से संतुष्टि का अहसास और एक नयापन महसूस कर रहे थे 1 सप्ताह के अंदर ही तीनों जिंदगी का असली मजा लूट चुके थे,,, शुभम अपनी जिंदगी से बेहद खुश नजर आ रहा था एक हाथ में लड्डू तो दूसरे हाथ में पेड़ा था,,, शुभम बारी-बारी से अपनी मां और शीतल दोनों की मदमस्त जवानी को अपने हाथों से लुट रहा था,,,।
ऐसे ही 1 दिन दोपहर के 2:00 बज रहे थे,,, शुभम काफी उत्साहित नजर आ रहा था क्योंकि उसकी पेंट में बवंडर उठ रहा था उसे घर से बाहर जाना था और शीतल और उसकी मां आराम कर रहे थे तीनों ड्राइंग रूम में ही थे सोफे पर एक तरफ निर्मला तो दूसरे सोफे पर शीतल लेटी हुई थी,,, शुभम बार-बार खिड़की से बाहर झांक रहा था बाहर हल्की हल्की बर्फ गिर रही थी मौसम एकदम ठंडा और सुहावना नजर आ रहा था,,,। निर्मला अपने बेटे की कुतुहुलता को समझ नहीं पा रही थी,,, वह अपने बेटे से बोली,,,।
शुभम आराम कर ले बेटा रात को फिर जागकर मेहनत ही करनी है,,,।
आराम हराम है मम्मी,,,( शुभम खिड़की से बाहर झांकता हुआ बोला,,।)
क्या,,,,( निर्मला आश्चर्य जताते हुए बोली,,।)
मेरा मतलब है कि मम्मी यहां पर हम घूमने आए हैं और इसका से सोकर आराम करते रहे तो मतलब ही क्या रहेगा,,,
तो,,,( निर्मला फिर से आश्चर्य से बोली,,,)
तो क्या मम्मी मुझे घूमना है,,,।
बाहर हल्की हल्की बर्फ गिर रही है,,,।
तो क्या हुआ मम्मी मुझे कुछ नहीं होने वाला ऐसी ही हल्की हल्की बर्फ में तो घूमने का मजा आता है,,,।
तो यहां के रास्ते से अनजान है कहां घूमेगा,,,
मैं सब जानता हूं मम्मी बस एक-दो घंटे में लौट आऊंगा आखिरकार इधर आया हूं कि थोड़ा बहुत घूमने का मजा तो ले लूं,,,,
जाने दे यार यह बच्चा नहीं है,,, थोड़ी देर घूम कर चला आएगा,,,( शीतल सोफे पर आधी नींद में लेटे-लेटे ही बोली,)
ठीक है लेकिन जल्दी आ जाना और मोबाइल लेकर जाना,,,( निर्मला भी अपनी तरफ से इजाजत देते हुए बोली शुभम एकदम खुश नजर आ रहा था वह जल्दी से अपना मोबाइल लेकर अपने पेंट की जेब में डाल लिया और एक ओवरकोट पहन लिया और माथे पर है लगा लिया था की गिरती हुई बर्फ से थोड़ी रक्षण हो सके,,,।)
थैंक्यू मम्मी मैं जल्दी लौट आऊंगा,,,( इतना कहने के साथ ही वह बाहर निकल गया,,, शुभम काफी खुश नजर आ रहा था अपने घर के गेट से बाहर निकलकर वह जैसे ही सड़क पर आया वह अपनी जेब में से एक कागज की चीट निकाला और उस पर लिखे हुए पते को पढ़ने लगा,,, शांति उसे कागज की चीज चोरी से हम आते हुए बता दी थी कि लगभग लगभग 15 मिनट का रास्ता पैदल चलने से था,,,, और आज सुबह ही वह शुभम के हाथों में अपना पता लिखकर कागज की पर्ची थमा दी थी,,,, क्योंकि शांति के भी तन बदन में शुभम को अपने अंदर महसूस करने की तड़प जाग रही थी,,, जिस तरह से वह उसका हाथ पकड़कर बड़े से पेड़ के पीछे ले गया था और अपनी मनमानी करते हुए उसकी साड़ी को कमर तक उठाकर उसे चोदने की पूरी तैयारी कर चुका था उसकी हिम्मत देखकर घर की नौकरानी शांति उस पर पूरी तरह से मेहरबान होने की ठान ली थी,,, शुभम की हिम्मत और मर्दाना ताकत से भरपूर उसके मजबूत अंग को देखकर उसे अपनी टांगों के बीच में सोच कर के वह पूरी तरह से शुभम के आगे अपने घुटने टेक दी थी,,, अगर कार की लाइट का फॉक्स उन दोनों पर उस रात ना पड़ा होता तो शांति उस दिन शुभम जैसे नौजवान लड़के के साथ संभोग सुख भोग चुकी होती,,, क्योंकि घर पर पहुंचने पर शुभम की हरकतों के बारे में सोचकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर उठ रही थी,,, वह भी जल्द से जल्द शुभम से मिलकर अपने तन की प्यास बुझा ना चाहती थी और वह बंगले पर ही अपनी प्यास बुझाने के मूड में थी लेकिन शीतल निर्मला की मौजूदगी में ऐसा होना संभव बिल्कुल भी नहीं था,,, इसलिए थक हारकर वह ना चाहते हुए भी उसे अपने घर बुला रही थी क्योंकि आज के दिन उसके घर पर कोई नहीं था वह शाम तक अकेली ही थी,,, और अपने हाथ आए इस मौके का वह पूरी तरह से फायदा उठाना चाहती थी,,,
शुभम को उसके घर तक का रास्ता पैदल ही तय करना था वह बड़ा उत्सुक था जल्दी से जल्दी उसके घर पहुंचने के लिए वह शांति हकीकत राय मदमस्त जवानी को बेपर्दा होते हुए देखना चाहता था उसके गोलाकार नितंबों को अपने हाथों से सह लाना चाहता था,,,, वह अपनी मस्ती में गीत गुनगुनाता हुआ पैदल चला जा रहा था,,,, थोड़ी दूर जाना होगा कि तभी एक होटल से एक खूबसूरत जवान महिला अपने तन बदन को ठंडी से रक्षा करने के लिए पूरी तरह से गर्म कपड़ों से ढकी हुई थी,,,, मोटर से निकलकर शुभम के आगे आगे चलने लगी हाई हील का सैंडल पहने हुए थी जिसमें उसकी चाल बेहद मादक नजर आ रही थी,,, वह महिला उसके आगे चल रही थी इसलिए शुभम ने उसके चेहरे को नहीं देखा था लेकिन उसके बदन की बनावट और उसके नितंबों का घेराव देखकर पूरी तरह से उसके प्रति आकर्षित हो चुका था,,,, उन दोनों के बीच की दूरी तकरीबन पांच 7 मीटर की थी शुभम की अनुभवी आंखें उस महिला की खूबसूरत बदन के ढांचे का आंखों ही आंखों में नाप ले रहा था,,, वह महिला जींस पहनी हुई थी जिसकी वजह से उसके नितंबों का कसाव जींस में कुछ ज्यादा ही कसा हुआ नजर आ रहा था और उसकी कसी हुई गांड देखकर शुभम का मन डोलने लगा था वह उसे ही घूरता हुआ चला जा रहा था,,,। तभी वह महिला आगे चलते चलते एक लग्जरियस कार के आगे रुक गई,,, और अपने पर्स में से गाड़ी की चाबी निकाल कर कार का दरवाजा खोलने लगी इतने से ही शुभम समझ गया था कि वह काफी पैसे वाली औरत है,,, इधर-उधर देखे बिना ही कार का दरवाजा खोल कर अंदर बैठ गई,,, लेकिन तभी कार के अंदर दाखिल होने से पहले ही उसके पर्स में से उसका छोटा सा बटुआ नीचे गिर गया था जिसके बारे में उसे पता नहीं चला और वह कार में बैठ गई और कार को स्टार्ट कर दिए शुभम यह सब देख रहा था वह जल्दी से दौड़ता हुआ कार के पास गया और बटुआ उठाकर,, कार में बैठी महिला को कार का शीशा खटखटा कर देने लगा पहले तो उस महिला को समझ में नहीं आया कि यह क्या कर रहा है कार स्टार्ट हो चुकी थी,,,, वह महिला उसे इशारे से ही हर जाने के लिए कह रही थी लेकिन शुभम उसका बटुआ उसे देना चाहता था इसलिए बार-बार उसके कार के शीशे को थपथपा रहा था,,,। शुभम की हरकतों से महिला को अच्छी नहीं लग रही थी वह उसे डांटना चाहती थी इसलिए अपना हाथ आगे बढ़ा करवा कार का शीशा खोलने लगी और शीशा खुलते ही बोली,,,।
पागल हो क्या इस तरह से किसी को परेशान किया जाता है तुम्हें शर्म नहीं आती एक औरत को इस तरह से परेशान करते हुए तुम्हारा मतलब क्या है इस तरह से कार का शीशा थपथपा रहे हो,,,।( कार में बैठी महिला बिना कुछ सोचे समझे शुभम की बात को सुने बिना ही एक सांस में सब कुछ भूल गए शुभम तो हैरान था उसकी बातें सुनकर वह एकटक उसे देखने लगा उस महिला की खूबसूरत चेहरे को देखकर वह दंग रह गया था बेहद खूबसूरत एकदम लाल टमाटर की तरह गोल चेहरा था उस महिला का जो कि शुभम को बिल्कुल चांद के टुकड़े की तरह लग रहा था वही तक उसे देख रहा था तो वह महिला बोली,,,।)
पागल है क्या तू किसी औरत को कभी देखा नहीं क्या जो इस तरह से घूर कर देख रहा है,,,
( शुभम को उस महिला की किसी भी बात का बुरा नहीं लग रहा था वह तो उसकी खूबसूरती के रस में पूरी तरह से नहा लेना चाहता था वह बस उसे घूरे जा रहा था और फिर हाथ में लिया हुआ बटवा उसकी तरफ आगे बढ़ाकर उसके बगल वाली सीट पर रखकर मुस्कुराता हुआ वहां से आगे बढ़ गया,,, वह महिला सीट पर रखिए बटुए को देखते ही एकदम से चौक गई क्योंकि वह बटुआ उसी का था वह जल्दी से बटुए की चैन खोलकर अंदर देखी तो सब कुछ बराबर था पटवा में तकरीबन ₹25000 रखा हुआ था क्योंकि बिल्कुल वैसे का वैसा ही था तुरंत ही उस महिला को अपनी गलती का एहसास हुआ वह कार का दरवाजा खोल कर इधर-उधर देखी तो शुभम उसे जाता हुआ नजर आया वह दौड़ कर उसके पास गई,,,।
मैं माफी चाहती हूं मैं बहुत शर्मिंदा हूं अपनी गलती के लिए (वह महिला दौड़ कराने की वजह से हांफते हुए बोली,,)
मुझे बिल्कुल भी नहीं मालूम था कि तुम मेरा बटवा लौटाने के लिए कार का शीशा थपथपा रहे हो मुझे अपनी गलती पर शर्मिंदगी महसूस हो रही है क्योंकि मैं यही समझ रही थी कि तुम कोई आवारा लड़के या भीख मांगने वाले हो,,,।
तो क्या मैं तुम्हें भीख मांगने वाला दिखता हूं,,,( शुभम उस महिला के सामने स्टाइल मारते हुए अपने दोनों हाथों को फैलाते हुए बोला,,,।)
नहीं नहीं बिल्कुल नहीं दिखते तो बिल्कुल भी नहीं हो और तुम्हारी शक्ल और तुम्हारे कपड़े देखकर तो यही लगता है कि तुम भी रईस खानदान से हो,,,, देखो मैं फिर शर्मिंदा हूं मिस्टर जो भी हो नाम तो मुझे तुम्हारा मालूम नहीं है,,,।
शुभम,,,, शुभम नाम है मेरा,,, और मैं शिमला घूमने के लिए आया हूं,,,,
अनमोल,,,, मेरा नाम अनमोल है,,,( वह महिला अपना हाथ आगे बढ़ाकर शुभम से हाथ मिलाने का इशारा करते हुए बोली,, शुभम भला उस महिला को स्पर्श करने का मौका कैसे यहां से जाने दे सकता था वह भी अपना हाथ आगे बढ़ा कर उस महिला से हाथ मिलाया और बोला,,,)
इस अनजान शहर में तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई,,
और मुझे भी तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई इतनी खुशी कि मैं बता नहीं सकती कि आज के दौर में भी तुम्हारे जैसे ईमानदार लड़के हैं,,, तुम शायद जानते नहीं हो कि जो बटुआ तुम मुझे लौटाए हो उसमें ₹25000 था,,,( वह महिला मुस्कुराते हुए बोली,,।)
देखिए अनमोल जी,,, अब उसने ₹25000 था या कुछ और इससे मेरा कोई वास्ता नहीं है बस मैं तो अपना फर्ज निभा रहा था वह बटुआ आपका था तो आप तक पहुंचना बेहद जरूरी था और वैसे भी मेरे मम्मी पापा ने मुझे इस तरह के संस्कार नहीं दिए हैं कि मैं किसी की चीज या उनका रुपया पैसा ले लूं,,,
( वह महिला जो कि तकरीबन 32 35 साल की थी वह शुभम की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी शुभम की बातें उसे अच्छी लग रही थी और वह बोली,,।)
तुम्हारी ईमानदारी मुझे बहुत अच्छी लगी वैसे तुम भी बहुत अच्छे हो,,,, और हां,, जो होटल देख रहे हो ,,,(हाथ से इशारा करते हुए)
होटल अनमोल,,,( शुभम तपाक से बोल पड़ा।)
हां वही वह मेरा ही है कभी आना,,, खिदमत करने का मौका मुझे भी देना,,, तुम्हारी ईमानदारी देखकर दिल एकदम खुश हो गया है,,,।
ठीक है मिस अनमोल,,,,( शुभम जानबूझकर अनमोल के आगे मिस शब्द का प्रयोग किया था वह जानना चाहता था कि वह कुंवारी है या शादीशुदा वैसे तो उसकी उम्र के हिसाब से शादीशुदा ही होनी चाहिए लेकिन उसकी खूबसूरती देखकर सुबह को समझ नहीं आ रहा था और वैसे भी उसके माथे पर ना बिंदी थी ना माथे में सिंदूर इसलिए शुभम को समझ में नहीं आ रहा था,,, शुभम के मुंह से मिस शब्द सुनकर उस महिला के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई थी,,,) मैं जरूर तुम्हारी होटल में आऊंगा वैसे तुम्हारा नाम तुम्हारे माता-पिता ने एकदम सोच समझकर ही रखा है नाम जैसे ही तुम भी बेहद अनमोल हो,,,,।
( इतना कहकर शुभम वहां से चलता बना क्योंकि वह जानता था कि जिस तरह की बातें वह करता था उसे सुनकर कोई भी औरत आफरीन हो जाती थी और वहीं अनमोल के साथ भी हुआ शुभम की बातें सुनकर उसे बहुत ही अच्छा लगा और वह उसे देखती ही रह गई जब तक कि शुभम आंखों से ओझल नहीं हो गया,,, थोड़ी ही देर में घर ढूंढने में मशक्कत करने के बाद शांति का घर उसे मिल ही गया,,, शांति घर के बाहर दरवाजे पर खड़ी होकर उसका इंतजार कर रही थी ताकि शुभम कहीं नजर आ जाए तो वह उसे भुला सके लेकिन शुभम की नजर भी उसके ऊपर पढ़ चुकी थी दोनों की नजरें आपस में टकराई थी दोनों के चेहरे खिल उठे थे दोनों के होठों पर मुस्कान आ गई थी,,, अभी भी हल्की हल्की बर्फ गिर रही थी शांति ओवरकोट और कर खड़ी थी वातावरण में ठंड का एहसास जबरदस्त था लेकिन दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए बेहद तड़प रहे थे,,,। जैसे-जैसे शुभम उसके करीब आता जा रहा था जैसे जैसे उसकी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी और टांगों के बीच कंपन का एहसास उसके संपूर्ण बदन में खलबली मचा रहा था,,,,
मुझे आने में देर तो नहीं हुई,,,,( शुभम शांति के करीब पहुंचता हुआ बोला,,,।)
तुम्हारा इंतजार करते-करते ऐसा लग रहा था कि जैसे एक-एक पल सदियों की तरह गुजर रहा था,,,, अब मुझसे रहा नहीं जाता चलो जल्दी घर में,,, अंदर आओ,,,,( शांति इधर उधर नजर घुमाकर अपनी तसल्ली के लिए देखते हुए बोली ,,, शांति आगे आगे और शुभम पीछे पीछे कमरे में दाखिल हो गया,,,।)