Akki ❸❸❸
ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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Bhut pyara bdiya update gurujiiइकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 19
अब तक अपने पढ़ा:
मैं: ठीक है जान, लेकिन मेरी भी एक शर्त है| पहले स्तुति दूध पीयेगी और फिर जो दूध बचेगा वो मैं पीयूँगा!
मेरी भोलेपन से भरी बात सुन संगीता मुस्कुराने लगी और बोली;
संगीता: ठीक है जानू!
ये कहते हुए संगीता ने मेरे होठों से अपने होंठ मिला दिए| फिर शुरू हुआ रसपान का दौर जो की प्रेम-मिलाप पर जा कर खत्म हुआ| मेरा पेट भरा था और संगीता की आत्मा संतुष्ट थी इसलिए हम दोनों को चैन की नींद आई|
अब आगे:
सर्दी के दिनों की रातें लम्बी होती हैं और जब आपके पहलु में आपका सनम हो तो कौन कम्बख्त सुबह उठता है?! ऊपर से माँ ने भी अधिक सर्दी होने पर किसी को भी कमरे से बाहर निकलने से मना कर रखा था| माँ सुबह जल्दी उठतीं और टी.वी. पर भजन देख थोड़ी खबरें देखने लगतीं, खबरों में उनकी रूचि केवल मौसम की जानकरी सुनने की होती थी ताकि वो ये निर्णय ले पाएँ की आज मुझे और बच्चों को घर से बाहर निकलने देना है या नहीं?! जिस दिन सुबह सर्दी अधिक होती, कोहरा अधिक होता, बारिश हो रही होती तो माँ बच्चों के स्कूल की छुट्टी करवा देतीं और उन्हें रज़ाई में अपने पास चिपका कर सोने को कहतीं| एक-दो बार नेहा ने कहा भी की उसे स्कूल जाना है परन्तु बारिश होने के कारण माँ ने उसे जाने से मना कर दिया; "बेटा, बारिश में भीग जाओगे तो बीमार पड़ जाओगे| पहले सेहत, बाद में पढ़ाई|" माँ ने नेहा को समझाया और उसे जबरदस्ती अपने से लिपटा कर लेट गईं| माँ के इस तरह अचानक स्कूल की छुट्टी करवा देने से आयुष को बड़ा मज़ा आता था, वो अपनी दादी जी के स्कूल जाने से मना करने से इतना खुश होता की वो माँ से कस कर लिपट जाता और चैन से 10 बजे तक सोता रहता|
इधर मुझे भी 10 बजे से पहले स्तुति को कमरे से बाहर लाने के लिए माँ ने सख्त मनाही कर रखी थी क्योंकि कमरे से बाहर आते समय सुबह की सर्द हवा लगने से स्तुति बीमार हो सकती थी| जब थोड़ी बहुत धुप निकलती, तभी स्तुति को कमरे से बहार निकलने की इजाजत थी वरना अगर मौसम ठंडा रहता तो 24 घंटे स्तुति वाले कमरे में हीटर चला कर रखा जाता जिससे स्तुति को ठंडी न महसूस हो| अब चूँकि सर्दी की रातें बड़ी होती थीं इसलिए स्तुति भूख लगने के कारण अक्सर सुबह जल्दी उठ जाती और कुनमुना कर आवाज कर मुझे जगा देती| संगीता उसे दूध पिलाती और दूधधु पी कर स्तुति मुझसे लिपट जाती| फिर हम बाप-बेटी के कहकहों की आवाजें घर में गूँजने लगतीं| कई बार हमारी कहकहों की आवाज़ सुन नेहा मेरे पास दौड़ आती और हम तीनों लिपट कर खिलखिला कर हँसने लगते| हम तीनों के हँसने से संगीता की नींद खराब हो जाती थी इसलिए वो उठ कर या तो चाय बनाने लगती या फिर माँ के पास जा कर सो जाती|
स्तुति का मेरे साथ मोह इतना था की जबतक वो जाग रही होती तबतक वो मेरी गोदी में ही रहती| मैं कहीं उसे गोदी से उतार न दूँ इसलिए स्तुति अपनी छोटी सी मुठ्ठी में मेरा स्वेटर पकड़ लेती या फिर मेरी ऊँगली थामे रहती| अब मुझे जाना होता था साइट पर तो मैं स्तुति को सुला कर फिर निकलता, लेकिन सोते समय भी स्तुति होशियारी दिखाते हुए मेरी ऊँगली कस कर पकड़ लेती थी| बड़ी मुश्किल से मैं स्तुति की मुठ्ठी से अपनी ऊँगली छुड़ाता और काम पर निकलता|
जब स्तुति जागती और मुझे अपने पास न पाती तो वो रोने लगती| एक नन्ही सी बच्ची के रोने से सारा घर दहल जाता था, संगीता कितना ही लाड-दुलार करती की स्तुति चुप हो जाए लेकिन कोई असर नहीं| माँ स्तुति को ले कर छत पर टहला लातीं मगर स्तुति फिर भी चुप नहीं होती, वो तो तभी चुप होती थी जब वो रोते-रोते थक जाती थी|
ऐसे ही एक दिन की बात है, रविवार का दिन था और मुझे काम पर निकलना था इसलिए मैं स्तुति को लाड कर सुलाना चाहता था मगर मेरी बिटिया रानी को जैसे एहसास हो गया था की मैं उसे सुला कर काम पर निकल जाऊँगा इसलिए वो सो ही नहीं रही थी| मुझे देखते हुए स्तुति अपनी नन्ही सी जीभ बाहर निकाल कर मेरा मन मोहने में लगी थी| ऐसा लगता था मानो वो कह रही हो की 'पापा जी मैं भी देखती हूँ आप मुझे कैसे सुलाते हो?' जब घंटे भर तक कोशिश करने के बाद भी स्तुति नहीं सोई तो माँ मुस्कुराते हुए बोलीं; "आज काम पर मत जा!" परन्तु साइट पर लेबर को पैसे देने थे इसलिए मेरा जाना जर्रूरी था, जब मैंने ये बात माँ को बताई तो माँ बोलीं की स्तुति को अपने साथ ले जा| स्तुति को घर से बाहर ले जाकर सँभालना मुश्किल था क्योंकि स्तुति के साथ होने से मेरा मन काम में नहीं लगता, मैं उसे गोदी में ले कर टहलते-टहलते कहीँ निकल जाता|
इधर स्तुति की मस्तियाँ जारी थीं, उसे क्या मतलब था की उसके पापा जी साइट पर जाएँ या नहीं?! हार मानते हुए मैंने सोचा की आज साइट पर नहीं जाता इसलिए स्तुति को अपने गले लगा मैं एक आरामदायक कुर्सी पर आँखें बंद कर के चुप-चाप बैठ गया| अपनी बिटिया का प्रेम देख कर मेरा मन इस वक़्त बहुत प्रसन्न था और प्रसन्न मन होने के कारण मुख से पहला नाम भगवान जी का निकला; "राम"! भगवान जी का नाम होठों पर आते ही मैंने धीरे-धीरे जाप शुरू कर दिया; "राम-राम...राम-राम...राम-राम"! भगवान जी के नाम का जाप करते हुए मैंने दाएँ-बाएँ हिलना शुरू कर दिया था| आज यूँ अपनी बिटिया को गोदी में लिए हुए भगवान जी के नाम का जाप करने से मुझे एक अलग प्रकार की शान्ति अनुभव हो रही थी|
उधर मेरे इस तरह भगवान जी के जाप करने का असर स्तुति पर भी दिखने लगा था| राम-राम के जाप को सुन मेरी बिटिया का मन बड़ा प्रसन्न हुआ और वो मुझसे लिपटे हुए धीरे-धीरे निंदिया रानी कीगोदी में चली गई| आधे घंटे बाद मैं भगवान जी के नाम का जाप करते हुए असल दुनिया में लौटा, मुझे ख्याल आया की मुझे तो साइट पर जाना था! तब मैंने गौर किया तो पाया की स्तुति मेरे सीने से लिपटी हुई सो चुकी है| स्तुति के इस तरह भगवान जी का नाम सुनते हुए सो जाने से मुझे बहुत प्रसन्ता हुई| मैंने धीरे से स्तुति को माँ के पास लिटाया और उन्हें संक्षेप में सारी घटना बताई, मेरी बात सुन माँ को भी बहुत ख़ुशी हुई और वो बोलीं; "मेरी शूगी बड़ी हो कर बहुत धार्मिक होगी, देख लियो!" माँ को इस वक़्त स्तुति पर बहुत गर्व हो रहा था की इतनी छोटी सी बच्ची केवल भगवान जी के नाम का जाप को सुन कर शान्ति सो गई!
मैं फटाफट काम पर निकला ताकि स्तुति के जागने से पहले घर लौट आऊँ मगर ट्रैफिक में फँसने के कारण मैं साइट पर देर से पहुँचा| अभी मैं लेबर को पैसे दे ही रहा था की घर से फ़ोन आ गया| दरअसल स्तुति की नींद खुल गई थी और मुझे अपने पास न पा कर उसने रोना शुरू कर दिया था| जब माँ, आयुष, संगीता और नेहा ने एक-एक कर स्तुति को चुप कराने में असफल हुए तो नेहा ने एक तरकीब निकाली| उसने स्तुति को बिस्तर पर तकियों से बना हुआ 'राज़ सिंहासन' बना कर बिठाया और मुझे वीडियो कॉल मिला दिया|
"पापा जी, ये गन्दी बच्ची बस रोये जा रही है! आप इसे चुप कराओ!" नेहा अपनी छोटी बहन स्तुति से नाराज़ होते हुए बोली और फ़ोन की स्क्रीन स्तुति की तरफ कर दी| स्तुति तकियों का सहारा ले कर बैठी थी और रो-रो कर उसने अपना चेहरा खराब कर लिया था| "Awwww मेरा छोटा सा प्यारा सा बच्चा! रोते नहीं बेटा..." मैंने स्तुति को चुप कराने के लिए कहा| फ़ोन में से आती हुई मेरी आवाज़ सुन स्तुति का ध्यान फ़ोन पर केंद्रित हो गया| मेरा चेहरा फ़ोन स्क्रीन पर देख स्तुति का रोना रुक गया, स्तुति को लगा जैसे मैं उसके सामने ही हूँ इसलिए उसने मुझे अपनी बाहों में कसने के लिए अपनी दोनों बाहें फैला दी| इधर मैंने जब फ़ोन पर अपनी बिटिया को यूँ बाहें फैलाये देखा तो मेरी इच्छा स्तुति को गोदी में ले कर लाड करने की हुई मगर मैं तो इस वक़्त घर से दूर था!
उधर स्तुति फ़ोन की स्क्रीन पर मुझे देखते हुए किलकारियाँ मारने लगी, मानो कह रही हो की 'पापा जी मुझे गोदी ले लो!' "Awww मेरा बच्चा...मैं थोड़ी देर में घर आ रहा हूँ...फिर आपको गोदी ले कर खूब सारी पारी (प्यारी) करूँगा!" मैंने स्तुति को समझना चाहा मगर स्तुति को कहाँ कुछ समझ आता वो तो बस मुझे पकड़ने के लिए अपनी दोनों बाहें फैलाये आगे की ओर झुक रही थी| स्तुति कहीं सामने की ओर लुढ़क न जाए इसलिए नेहा ने फ़ोन स्तुति के हाथों के नज़दीक पकड़ लिया| जैसे ही फ़ोन स्तुति के हाथों के पास आया, स्तुति ने अपने दोनों हाथों से फ़ोन पकड़ा और मुझे पप्पी करने के इरादे से फ़ोन की स्क्रीन पर अपने होंठ चिपका दिए!
स्तुति के फ़ोन की स्क्रीन को पप्पी देने से मुझे अपनी स्क्रीन पर कुछ नज़र नहीं आ रहा था, बस स्तुति की साँसों की आवाज और उसके मुख से निकलने वाली प्यारी-प्यारी आवाज़ सुनाई दे रही थी| उधर नेहा ने जब अपनी छोटी बहन को फ़ोन को पप्पी करते देखा तो वो खिलखिला कर हँसने लगी| "अले मेला बच्चा...पापा जी को फ़ोन पर पप्पी दे रहा है?!" मैंने इधर से तुतलाते हुए बोला| स्तुति को मेरे इस तरह तुतलाने कर बात करने पर बड़ा मज़ा आता था, अभी भी जब उसने मेरी आवाज़ सुनी तो उसने और जोर से फ़ोन की स्क्रीन को चूमना शुरू कर दिया| अपने पापा जी को फ़ोन पर पप्पी देने के चक्कर में स्तुति की लार रुपी प्यार फ़ोन के स्पीकर और हैडफ़ोन जैक के जरिये, फ़ोन के भीतर पहुँच गई और फ़ोन एकदम से बंद हो गया! शुक्र है की स्तुति को करंट या चोट नहीं आई थी!
करीब मिनट भर जब फ़ोन से कोई आवाज़ नहीं आई तो नेहा ने स्तुति की पकड़ से फ़ोन जबरदस्ती छुड़ाया और देखा तो फ़ोन स्तुति की लार से गीला होकर बंद हो चूका है! उधर जैसे ही नेहा ने स्तुति के हाथ से फ़ोन खींचा गया, स्तुति ने फिर से रोना शुरू कर दिया| नेहा ने अपनी दादी जी, माँ और आयुष को बुला कर पूरी घटना सुनाई तो सभी ने हँसी का ठहाका लगाया| बड़ा ही अजीब दृश्य था, एक तरफ मेरी बेचारी बिटिया अपने पापा जी के वियोग में रो रही थी, तो दूसरी तरफ परिवार के बाकी जन उसकी अबोध हरकतों पर हँस रहे थे!
जब सब का हँसना हो गया तो संगीता ने स्तुति को गोदी में लिया और उसे प्यारभरी डाँट लगाते हुए बोली; "शैतान लड़की! अपने पापा जी को पप्पी देने के चक्कर में तूने मेरा फ़ोन खराब कर दिया! अब जा कर इसे ठीक करवा कर ला!" अपनी मम्मी की प्यारी सी डाँट सुन स्तुति ने और जोर से रोना शुरू कर दिया! तब माँ ने स्तुति को गोदी में लिया और बड़ी मुश्किल से चुप करवा कर सुला दिया|
इधर मैंने फटाफट काम निपटाया और मैं घर के लिए निकल पड़ा| तीन बजे मैंने घर में घुसते ही स्तुति को पुकारा, मेरी आवाज सुन स्तुति जाग गई और मुझे बुलाने के लिए उसकी किलकारियाँ घर में गूँजने लगीं| मैं दौड़ते हुए अपने कमरे में घुसा और स्तुति को देखा तो वो अपनी बाहें उठाये मुझे आस भरी नजरों से देख रही थी की मैं उसे गोदी में लूँ और लाड-प्यार करूँ| "आजा मेरा बच्चा!" कहते हुए मैंने स्तुति को गोदी में लिया और उसके पूरे चेहरे को चूमने लगा| मेरी गोदी में आ कर स्तुति खिलखिलाने लगी और मेरे बाएँ गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दे मेरा गाल गीला करने लगी|
इतने में संगीता कमरे में आई और मुझे अपना फ़ोन देते हुए बोली; "मेरा फ़ोन आपकी लाड़ली ने खराब कर दिया है! इसे ठीक करवा कर लाओ वरना दोनों बाप-बेटी को खाना नहीं दूँगी!" संगीता मुझे प्यारभरा आदेश देते हुए बोली| संगीता का प्यारा सा आदेश सुन मैं हँस पड़ा और स्तुति को गर्म कपड़े पहना कर संगीता का फ़ोन ठीक करवाने चल पड़ा| घर के पास फ़ोन ठीक करने की एक दूकान थी जिसे एक वृद्ध अंकल जी चलाते थे, मैंने उन्हें फ़ोन दिया तो उन्होंने फ़ोन की खराबी का कारण पुछा; " वीडियो कॉल के दौरान मेरी लाड़ली बिटिया ने मुझे फ़ोन पर इतनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी की फ़ोन बंद हो गया!" मेरी बात सुन अंकल जी ने स्तुति को देखा और हँस पड़े| अंकल जी ने फ़ोन खोला और कुछ पार्ट सुखा कर फ़ोन चालु कर दिया| जब मैंने पैसे पूछे तो वो मुस्कुराते हुए बोले; "अरे इतनी प्याली-प्याली बिटिया से प्यारी सी गलती हो गई तो उसके पैसे थोड़े लेते हैं?!" अंकल ने स्तुति के गाल पर हाथ फेरा और अपनी उँगलियाँ चूम ली| मुझे अंकल जी का पैसे न लेना अच्छा नहीं लगा रहा था इसलिए मैंने स्तुति के हाथों से अंकल जी को पैसे दिलवाये तब जा कर उन्होंने माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद समझ कर पैसे लिए| घर आ कर मैंने ये बात माँ को बताई तो माँ स्तुति के सर पर हाथ रखते हुए बोलीं; "हमारी लाड़ली बिटिया इतनी प्यारी है की इसे देखते ही सामने वाले का दिल पिघल जाता है| भगवान बुरी नज़र से बचाये मेरी शूगी को!" माँ ने स्तुति को आशीर्वाद दिया और उसके सर से बलायें वारीं|
इधर आज की घटना को देख आयुष ने अपना दिमाग लड़ा कर भविष्य में मेरी गैरहाजरी में स्तुति को कैसे चुप कराना है इसका जुगाड़ लगा लिया था| चूँकि स्तुति बस मुझे देख कर ही चुप होती थी इसलिए आयुष आज पूरा दिन मेरी फोटो फ्रेम की हुई तस्वीर ढूँढने में लगा था| हाल-फिलहाल में मेरी कोई भी ऐसी तस्वीर फोटो फ्रेम नहीं कराई गई थी इसलिए स्टोर रूम में खोज-बीन कर आयुष ने मेरे बचपन की फोटो फ्रेम की हुई तस्वीर ढूँढ निकाली| आयुष ने वो फोटो ला कर स्तुति को दिखाई और बोला: “ये देखो स्तुति, पापा जी की फोटो!" अपने बड़े भैया की बात सुन स्तुति का ध्यान फोटो पर केंद्रित हो गया, परन्तु स्तुति उस फोटो में मुझे देख पहचान न पाई| आँखों में सवाल लिए हुए स्तुति उस फोटो को देख रही थी, अपनी छोटी बहन की उलझन दूर करने के लिए आयुष ने इशारे से स्तुति को समझना चाहा की ये फोटो पापा जी की है लेकिन स्तुति कुछ नहीं समझी! तभी आयुष ने अपनी तरकीब लड़ाई और मेरी तस्वीर के गाल पर पप्पी की| स्तुति ने जब अपने बड़ी भैया को ये करते हुए देखा तो उसे बड़ा मज़ा आया और वो ख़ुशी से किलकारियाँ मारने लगी| आयुष ने तस्वीर स्तुति के होठों के आगे की तो स्तुति ने तस्वीर अपने नन्हे-नन्हे हाथों से पकड़ी और अपने होंठ तस्वीर से लगा कर पप्पी देने लगी| तभी आयुष ने शोर मचा कर सभी को इकठ्ठा किया और सभी को ये प्यारा दृश्य दिखाया| सभी ने स्तुति को मेरी तस्वीर की पप्पी लेते हुए देखा तो सभी ने एक-एक कर स्तुति के सर को चूम कर अपना आशीर्वाद दिया|
आयुष की ये युक्ति अच्छी थी परन्तु हरबार काम नहीं करती थी, जब स्तुति का मूड अच्छा होता तभी वो मेरी तस्वीर की पप्पी ले कर चुप हो जाती वरना स्तुति का रोना जारी रहता था|
अगले दिन जब मैं तैयार हो कर आया तो मुझे देख जैसे स्तुति मेरी सारी चाल समझ गई, वो जान गई थी की अब मैं उसे सुला कर काम पर चला जाऊँगा इसलिए स्तुति मेरी गोदी में आकर भी चैन नहीं ले रही थी| वो बार-बार कुछ न कुछ खेलने में मेरा ध्यान भटका रही थी| "मेरा प्याला बच्चा, जानबूझ कर मुझे काम पर जाने नहीं दे रहा न?!" मैंने स्तुति की ठुड्डी पकड़ कर कहा तो स्तुति ने मुझे अपनी जीभ दिखाई, मानो वो अपनी होशियारी पर नाज़ कर रही हो| मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए माँ के पास आया और उन्हें अपना प्यारभरा आदेश देते हुए बोला; "माँ, जल्दी से आप दोनों सास-पतुआ तैयार हो जाओ! हम चारों साइट पर जा रहे हैं!" मेरी बात सुन माँ हँस पड़ीं और स्तुति के गाल खींचते हुए बोलीं; "ये शैतान लड़की मुझे चैन से बैठने नहीं देगी!" माँ के इस प्यारभरे उलहाने का मतलब था की चूँकि स्तुति मेरी गोदी से उतर नहीं रही इसलिए हम तीनों को साइट पर जाना पड़ रहा है|
स्तुति के लिए गाडी में जाने के लिए मैं एक ख़ास कुर्सी मैं गाडी में पहले ही लगा चूका था| जैसे ही स्तुति को मैंने उस गद्देदार कुर्सी पर बिठाया स्तुति की किलकारियाँ गाडी में गूँजने लगीं| अब मुझे चलानी थी गाडी इसलिए मैं आगे बैठा था, मुझसे इतनी सी दूरी भी स्तुति से बर्दाश्त नहीं हुई और उसने अपने दोनों हाथ मेरी गोदी में आने के लिए बढ़ाते हुए कुनमुना शुरू कर दिया| "बेटा मैं गाडी चलाऊँगा, आप पीछे बैठो आराम से|" मैंने स्तुति को तुतला कर समझाया| 10 मिनट लगे स्तुति को ये भरोसा दिलाने में की मैं उसके साथ ही गाडी में जा रहा हूँ| जब गाडी चली तो संगीता ने पीछे बैठे हुए स्तुति का ध्यान खिड़की से बाहर देखने में लगा दिया| पूरे रास्ते स्तुति की किलकारियाँ गाडी में गूँजती रहीं और उसकी इन किलकारियों में डूब हम सभी बहुत प्रसन्न थे|
जब हम साइट पर पहुँचे तो स्तुति को मेरी गोदी में देख लेबर ने "छोटी मलकिन" कह शोर मचाया और हमें घेर लिया| स्तुति आज पहलीबार साइट पर आई थी इसलिए सभी ने लड्डू की माँग की| विधि की विडंबना देखो, जिस बच्ची के आने की ख़ुशी में लड्डू मँगाए गए थे, वही बेचारी बच्ची वो लड्डू नहीं खा सकती थी! लेबर लड्डू खा कर स्तुति को आशीर्वाद दे रही थी, फिर मैंने स्तुति को आगे करते हुए सारी लेबर को आज का काम सौंप दिया; "आपकी छोटी मलकिन कह रहीं हैं की आज सारी चुनाई का काम पूरा हो जाना चाहिए वरना वो दुबारा आपसे मिलने नहीं आएँगी!" इतना सुनना था की सारी लेबर हँस पड़ी| "भैया, आप चिंता न करो| आज चुनाई का काम पूरा किये बिना हम में से कोई घर घर नहीं जाएगा| और तो और आपको आज हमें ओवरटाइम भी नहीं देना पड़ेगा!" लेबर दीदी सभी लेबरों की तरफ से बोलीं| दीदी की बात सुन सभी लेबरों ने एक सुर में हाँ में हाँ मिलाई और काम पर लग गई|
इतने में मिश्रा अंकल जी आ गए, वो दरअसल कुछ काम से निकले थे रास्ते में मेरी गाडी देखि तो वो मुझसे मिलने आ गए| जब उन्होंने पूरे परिवार को देखा और खासकर स्तुति को मेरी गोदी में देखा तो वो मुस्कुराते हुए स्तुति से बोले; "अरे हमारी बिटिया रानी काम देखने आई है?" मिश्रा अंकल जी की बात सुन स्तुति खिलखिला कर हँस पड़ी| तभी संगीता ने बीच में बोलकर स्तुति की शिकायत अंकल जी से कर दी; "ये शैतान इनको काम पर जाने नहीं देती! सारा टाइम इनकी गोदी में चढ़ी रहती है!" स्तुति के बारे में शिकायत सुन मिश्रा अंकल जी मुस्कुराये और अपनी बिटिया के छुटपन की बातें बताते हुए बोले; "बहु, लड़कियाँ होवत ही हैं बाप की लाड़ली! हमार मुन्नी जब दुइ साल की रही तो ऊ बहुत शैतान रही! जब हम काम से बाहर जाए लागि, ऊ हमार जूता-चप्पल छुपाये देत रही! ओकरे आगे तो हमार स्तुति बिटिया तो बहुत प्यारी है!" मिश्रा अंकल जी स्तुति के गाल को छू अपनी ऊँगलियाँ चूमते हुए बोले|
मिश्रा अंकल जी ने बातों-बातों में स्तुति के मुंडन के बारे में पुछा| दरअसल हमारे गाँव के नियम के अनुसार, बच्चा पैदा होने के सालभर के भीतर मुंडन करवाना अनिवार्य होता है| अभी घर में किसी ने स्तुति के मुंडन पर कोई चर्चा नहीं की थी परन्तु मैं अपना मन पहले ही बना चूका था; " अंकल जी, मेरी लाड़ली बिटिया का मुंडन हम मार्च-अप्रैल के महीने में हरिद्वार में करवाएंगे|" मैं जोश से भरते हुए बोला| मेरा बचपने और जोश से भरी बात उन सब मुस्कुरा दिए| अंकल जी ने मेरी पीठ थपथपाई और अपने घर निकल गए|
हम चारों भी घर के लिए निकले परन्तु बच्चों के स्कूल छूटने का समय हो रहा था इसलिए हम सब सीधा बच्चों के स्कूल पहुँचे| बच्चों के स्कूल की छुट्टी होने में 5-7 मिनट बचे थे इसलिए मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए गाडी के बाहर खड़ा हो गया| मैंने स्तुति को अपना स्कूल दिखाया और बड़े गर्व से बोला; "बेटा, आपको पता है...आपके पापा जी इसी स्कूल में पढ़े हैं| आप भी जब बड़े होंगे न तो आप भी इसी स्कूल में पढोगे|" मेरी गर्व से भरी बात सुन स्तुति को पता नहीं कैसा लगा की उसने स्कूल की तरफ अपना दायाँ हाथ बढ़ा दिया, मानो वो स्कूल पर अभी से अपना हक़ जमा रही हो!
बच्चों के स्कूल की घंटी बजी तो सारे बच्चे अपना स्कूल बैग टांगें दौड़ते हुए बाहर निकले| स्तुति ने जब इतने सारे बच्चों को दौड़ लगा कर अपनी तरफ आते हुए देखा तो उसे बहुत मज़ा आया और उसकी किलकारियाँ शुरू हो गईं| वो हर बच्चे की तरफ अपना दायाँ हाथ बढ़ा रही थी, मानो सभी को ताली दे रही हो| इतने में आयुष और नेहा अपना स्कूल बैग टांगें, हाथ पकड़े हुए बाहर आये| आयुष की नज़र मुझ पर पड़ी और वो अपनी दीदी को खींच कर मेरे पास ले आया| स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैं उकड़ूँ हो कर नीचे बैठा तथा तीनों बच्चों को जैसे-तैसे अपने गले लगा लिया| फिर मैंने बच्चों को गाडी की तरफ इशारा किया जहाँ उन्हें उनकी मम्मी और दादी जी बैठे हुए नज़र आये| इस छोटे से प्यारभरे सरप्राइज से दोनों बच्चे बहुत खुश हुए और हम सभी हँसते-खेलते घर पहुँचे|
दिन प्यार से बीत रहे थे और मेरी प्यारी बेटी नेहा भी अब जिम्मेदार होती जा रही थी, उसके भीतर मुझे खोने का डर अब काफी कम हो चूका था| माँ दोनों बच्चों को अपनी निगरानी में थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारियाँ दे कर भविष्य के लिए तैयार करती जा रहीं थीं| आस-पास की दूकान से सामान लेने के लिए माँ ने बच्चों को भेजना शुरू कर दिया था तथा वापस आने पर माँ दोनों बच्चों से किसी बनिए की तरह हिसाब लेतीं| बच्चे भी बड़े जागरूक थे, वो फट से पूरा हिसाब माँ को समझाते थे| नेहा ने मुझे हिसाब लिखते हुए देखा था इसलिए उसने भी लिख कर माँ को हिसाब देने शुरू कर दिया था| ऐसा नहीं था की मेरी माँ कंजूस थीं, वो तो बस बच्चों को ज़िन्दगी में पैसों को सँभालना सीखा रहीं थीं| बच्चों की लगन देख माँ बच्चों को इनाम में कभी आइस-क्रीम तो कभी चॉकलेट देतीं, जिससे बच्चों का उत्साह बढ़ता था|
जब भी घर में मेहमान आते तो माँ नेहा को अपने पास बिठातीं ताकि नेहा बातें कैसे की जाती हैं सीख सके| गाँव-देहात में बड़े, बच्चों को बातों में शामिल नहीं करते क्योंकि बच्चों को बात करने का सहूर नहीं होता| लेकिन मेरी बेटी नेहा बातें समझने और करने में बड़ी कुशल थी| वो पूरी बात सुनती थी और बड़े अदब से जवाब देती थी| माँ के इस तरह से हर बात में उसे शामिल करने से नेहा के भीतर आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा था|
हर महीने जब घर का बजट बनता, तो माँ ख़ास कर नेहा को हिसाब-किताब में शामिल करतीं और उसे ही पंसारी का सारा सामान लिखने को कहतीं| एक-आध बार नेहा से हिसाब में गलती हुई तो नेहा ने सर झुका कर अपनी गलती स्वीकार की, माँ ने नेहा को डाँटा नहीं बल्कि उसके सर को चूमते हुए उसे उसकी गलती दुरुस्त करने का मौका दिया|
इसी तरह से एक बार नेहा के एक दोस्त के घर में जन्मदिन की पार्टी थी और नेहा को निमंत्रण मिला था| नेहा पार्टी में जाना तो चाहती थी परन्तु अकेले जाने से डरती थी इसलिए वो आस भरी नजरों से मुझे देख रही थी की मैं उसके साथ चलूँ| जाने को मैं उसके साथ जा सकता था परन्तु फिर नेहा का डर खत्म नहीं होता इसलिए मैंने काम में व्यस्त होने का बहना बनाया| मेरे न जाने से नेहा निराश हो गई और उसने पार्टी में न जाने का निर्णय ले लिया| "बेटा, इस तरह अकेले पार्टी में जाने के डर से भागोगे तो आगे चल कर कहीं अकेले घूमने कैसे जाओगे?" मेरे पूछे सवाल से नेहा चिंतित हो गई| मैंने नेहा को अपना उदाहरण दे कर समझाया; "बेटा, आप तो इतने छोटे हो कर कहीं अकेले जाने से डर रहे हो! मैं तो जब 18 साल का हो गया था तब भी कहीं अकेले जाने से डरता था! हर जगह मैं या तो आपके दिषु चाचू या फिर आपके दादा जी के साथ जाता था| लेकिन फिर मुझे एक दिन मेरे बॉस ने ऑडिट के लिए ग़ाज़ियाबाद जाने का आदेश दिया| तब मैं भी आप ही की तरह अकेले जाने से घबरा गया था, अब अगर मैं अपना ये डर आपके दादा जी को बताता तो वो गुस्सा करते इसलिए मैंने खुद हिम्मत इकठ्ठा की और अकेले ऑडिट पर गया| शुरू-शुरू में डर लगा था लेकिन फिर ऑफिस में बाकी लोगों के साथ होने से मेरा डर जल्दी ही खत्म हो गया| आपको जो डर अभी लग रहा है ये बस कुछ समय के लिए है, एक बार आपने अपनी कमर कस ली तो देखना ये डर कैसे छू मंतर हो जायेगा!" मैंने नेहा के भीतर पार्टी में अकेले जाने का आत्मविश्वास जगा दिया था| "बेटा, ऐसा नहीं है की पार्टी में जा कर आपको कुछ ख़ास करना होता है| आप वहाँ सबसे उसी तरह पेश आओ जैसे यहाँ सब के साथ आते हो| वहाँ जो आपके दोस्तों का ग्रुप होगा, उस ग्रुप में जुड़ जाना| कोई अंकल-आंटी आपसे मिलें तो हाथ जोड़कर उन्हें प्यार से नमस्ते कहना| इसके अलावा और कुछ ख़ास थोड़े ही होता है पार्टी में?!" मैंने नेहा के इस डर को लगभग खत्म कर दिया था| फिर नेहा का होंसला बढ़ाने के लिए मैं उसे और स्तुति को ले कर एक अच्छी सी दूकान में पहुँचा और वहाँ हमने नेहा की दोस्त के जन्मदिन की पार्टी के लिए थोड़ी शॉपिंग की| मैंने नेहा को एक सुन्दर से फ्रॉक खरीदवाई और अच्छे सैंडल दिलवाये, साथ ही में मैंने नेहा को टाँगने वाला एक छोटा सा पर्स भी खरीदवाया| नए और सुन्दर कपड़े पहनने से नेहा का आत्मविश्वास कई गुना बढ़ गया था| नेहा के दोस्त को जन्मदिन पर दिए जाने वाला गिफ्ट भी बहुत ख़ास और महँगा था, जिससे नेहा बहुत खुश थी| हम बाप बेटी की इस शॉपिंग का थोड़ा फायदा स्तुति ने भी उठाया| वो जिस भी खिलोने के प्रति आकर्षित होती मैं वो खिलौना खरीद लेता| फिर स्तुति को मैंने कई सारी फ्रॉक दिखाईं, स्तुति जिस भी रंग पर अपना हाथ रख देती मैं उस रंग की 2-4 फ्रॉक खरीद लेता| शॉपिंग कर थक के हम तीनों घर लौटे, स्तुति के लिए खरीदे हुए कपड़े और खिलोने देख माँ हँसते हुए बोलीं; "इतनी छोटी सी बच्ची के लिए इतने कपड़े खरीद लाया तू?!" तब नेहा मेरा बचाव करते हुए बोली; "ये सब इस शैतान लड़की ने किया है दादी जी! ये ही खिलोने और कपड़े पसंद करती थी, पापा जी तो बस पैसे देते थे!" नेहा ऐसे कह रही थी मानो स्तुति खुद चल कर दूकान गई और सारा सामान खरीद लाइ हो और मैंने बस पैसे दिये हों! नेहा को मेरा बचाव करता देख माँ हँस पड़ीं और उसके सर पर हाथ रखते हुए बोलीं; "अपने पापा की चमची!" एक तरह से सच ही था, नेहा मेरे बचाव में बोलने के लिए हमेशा तैयार रहती थी|
शाम को नेहा जब अपनी नई फ्रॉक और पर्स टाँग कर निकली तो उसे देख कर मैंने सीटी बजा दी! मेरी सीटी सुन नेहा शर्मा गई और आ कर मेरी कमर से अपने हाथ लपेट कर छुपने लगी| माँ ने भी नेहा की तारीफ की और उसे आशीर्वाद दिया| आयुष ने जब नेहा को देखा तो वो अपनी दीदी के पास आया और बोला; "दीदी आप बहुत प्रीटी (pretty) लग रहे हो!" इतना कह आयुष अपनी मम्मी का परफ्यूम उठा लाया और जबरदस्ती नेहा को लगा दिया| फिर बारी आई संगीता की, नेहा को फ्रॉक पहने देख संगीता की आँखें चमकने लगी थीं| बजाये नेहा की तारीफ करने के संगीता आँखें नचाते हुए मुझसे खुसफुसा कर बोली; "मेरे लिए भी एक ऐसी ही फ्रॉक ला दो न!" संगीता की बातों में शरारत महसूस कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उस एक क्षण में संगीता को फ्रॉक पहने कल्पना कर ली थी और उस क़ातिल कल्पना से मेरे जिम के रोंगटे खड़े होने लगे थे इसलिए हर पल मेरी मुस्कान अर्थपूर्ण मुस्कान में तब्दील होती जा रही थी| हम दोनों मियाँ-बीवी ने मन ही मन हमारे प्रेम-मिलाप में नया तड़का लगाने के लिए नई रेसिपी मिल गई थी!
मैं नेहा और स्तुति गाडी से निकले, स्तुति पीछे अपनी कुर्सी पर बैठी चहक रही थी और आगे हम बाप-बेटी गाना गुनगुना रहे थे| जब नेहा की दोस्त का घर आया तो नेहा को हिम्मत देने के लिए मैंने उसके सर को चूमा और नेहा की पीठ थपथपाते हुए बोला; "मेरा शेर बच्चा! बिलकुल घबराना नहीं है| ये लो मेरा फ़ोन, जब पार्टी खत्म हो तब मुझे फ़ोन कर देना|" मैंने नेहा को अपना दूसरा फ़ोन दिया| नेहा के भीतर बहुत आत्मविश्वास इकठ्ठा हो गया था इसलिए वो गाडी से उतरी और मुझे bye कह कर पार्टी में शामिल हो गई|
रात को जब नेहा पार्टी से लौटी तो नेहा ख़ुशी के मारे चहक रही थी| आज सभी बच्चों ने नेहा की फ्रॉक की तारीफ की थी और सभी बड़ों ने नेहा की तमीज़दारी की बहुत तारीफ की थी| नेहा ने पार्टी के सारे किस्से हमें मजे ले कर सुनाये| हमें ये देख कर बहुत ख़ुशी हुई की नेहा के भीतर एक नया आत्मविश्वास पैदा हो चूका है|
दिसंबर बीता...जनवरी बीता और आ गया आयुष का जन्मदिन| अपने जन्मदिन को ले कर आयुष ख़ासे उत्साह से भरा हुआ था| इस बार आयुष का जन्मदिन हमने घर पर न मना कर बाहर रेस्टोरेंट में मनाया| सबसे पहले आयुष ने अपना केक काटा और हम सभी को बारी-बारी खिलाया| फिर खाने में सब बच्चों ने पिज़्ज़ा मँगाया और सभी ने बड़े मज़े ले कर खाया| आज स्तुति भी बहार आई थी तो अपने आस-पास इतने सारे बच्चे और लोगों को देख वो ख़ुशी से चहक रही थी| एक मीठी सी समस्या थी और वो ये की हम सभी को खाते हुए देख स्तुति का मन भी खाने का था| जब भी मैं कुछ खा रहा होता तो स्तुति अपना हाथ बढ़ा कर खाने को पकड़ने की कोशिश करती| इस समस्या का हल नेहा ने अपनी चतुराई से निकाला, वो स्तुति का ध्यान किसी अन्य वस्तु पर लगाती और चुपके से मुझे पिज़्ज़ा का एक टुकड़ा खिला देती| मुझे अपनी छोटी सी बच्ची को यूँ तरसना अच्छा नहीं लग रहा था मगर अभी स्तुति को कुछ भी खिलाना सही नहीं था| "बेटा, अगले महीने से मैं आपको थोड़ा-थोड़ा खिलाना शुरू करूँगा, तब तक मुझे माफ़ कर दो!" मैंने स्तुति को प्यार से समझाया| स्तुति को शायद मेरी बात समझ आ गई थी इसलिए वो मुस्कुरा कर मुझे देखने लगी|
बच्चों की वार्षिक परीक्षा नज़दीक आ चुकी थी इसलिए दोनों बच्चों ने मन लगा कर पढ़ाई करनी शुरू कर दी थी| नेहा पर आयुष को पढ़ाने का अधिक दबाव न पड़े इसलिए आयुष को पढ़ाने का काम मैंने अपने सर ले लिया| दिक्कत ये की जब मैं आयुष को पढ़ा रहा होता, स्तुति मेरी गोदी में होती थी और उसे अपने बड़ी भैया की किताब देख कर पन्ने फाड़ने का उत्साह आ जाता था| तब मैं स्तुति को पीठ टिका कर बिठा देता और आयुष की रफ़ कॉपी फाड़ने के लिए दे देता, स्तुति इस कॉपी को कभी मुँह में ले कर देखती तो कभी कॉपी के पन्ने अपनी मुठ्ठी में पकड़ फाड़ने की कोशिश करती|
स्तुति को व्यस्त कर मैं आयुष को पढ़ाने लग जाता और उसका ध्यान स्तुति की ओर भटकने नहीं देता| मेरे पढ़ाने के ढंग से आयुष को बड़ा मज़ा आता था क्योंकि मैं बीच-बीच में खाने-पीने के उदहारण देता रहता था जिससे आयुष की पढ़ाई में रूचि बनी रहती थी| हाँ एक बस गणित ऐसा विषय था जिससे मेरी हमेशा फटती थी इसलिए आयुष को गणित पढ़ाते समय मुझे एक बार खुद सब पढ़ना पड़ता था|
जब परीक्षायें शुरू हुईं तो बच्चों का प्रदर्शन अतुलनीय था| नेहा के सारे पेपर अच्छे हुए थे और उसे पूर्ण विश्वास था की वो इस बार अव्वल आएगी| वहीं आयुष भी पीछे नहीं था, उसके भी सारे पेपर फर्स्ट-क्लास हुए थे और उसे भी पूर्ण यक़ीन था की वो भी अपनी क्लास में अव्वल आएगा|
बच्चों की परीक्षायें खत्म होने तक मौसम में काफी बदलाव आया था, गर्मी बढ़ने लगी थी और यही सही समय था हरिद्वार जाने का| फिर मेरे ससुर जी की भी बर्सी आ गई थी तो हरिद्वार में एक पंथ दो काज़ हो सकते थे: स्तुति के मुंडन के साथ-साथ ससुर जी की बर्सी की भी पूजा करवाई जा सकती थी| मैंने भाईसाहब से फ़ोन पर बात कर सारा कार्यक्रम पक्का कर लिया| तय दिन पर हम सभी घर से हरिद्वार के लिए निकले| स्तुति की आज पहली लम्बी यात्रा थी इसलिए स्तुति के आराम का ख्याल रखते हुए मैंने 1AC यानी एग्जीक्यूटिव क्लास की टिकट करवाई| मुश्किल से 4 घंटे की यात्रा थी मगर फिर भी मुझे 1AC की टिकट करवानी पड़ी| घर से निकलते ही स्तुति का चहकना चालु हो गया था, जब हम रेलवे स्टेशन पहुँचे तो वहाँ हो रही अनाउंसमेंट सुन कर तो स्तुति ऐसे किलकारी मारने लगी मानो उसका मन अपनी अनाउंसमेंट करने का हो| हमारी ट्रैन प्लेटफार्म पर लगी तो एक-एक कर हम सभी अपनी-अपनी सीट पर बैठ गए| स्तुति की ख़ुशी देखते हुए खिड़की वाली सीट पर पूरे रास्ते मैं बैठा, स्तुति ने शीशे वाली खिड़की पर अपने दोनों हाथ जमाये और बाहर देखते हुए खिखिला कर हँसने लगी| वहीं आयुष भी पीछे नहीं रहा, वो अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और स्तुति की देखा-देखि अपने दोनों हाथ खिड़की से चिपका कर स्तुति को खिड़की के बाहर की हर चीज़ इशारे कर के दिखाने तथा समझाने लगा| पूरे रास्ते दोनों भाई-बहन (आयुष और स्तुति) की चटर-पटर चलती रही| अब नेहा को दोनों की चटर-पटर से गुस्सा आ रहा था इसलिए वो आयुष को डाँटते हुए बोली; "तू चुप-चाप नहीं रह सकता?! सारा टाइम बकर-बकर करता रहता है!" आयुष पर अपनी दीदी की डाँट का कोई असर नहीं पड़ा, उसने अपनी दीदी को जीभ चिढ़ाई| अपने बड़े भैया की देखा-देखि स्तुति ने भी नेहा को अपनी नन्ही सी जीभ दिखा दी! नेहा गुस्से से तमतमा गई और आयुष को मारने के लिए उठी की मैंने बीच में आ कर आयुष की ओर से माफ़ी माँग नेहा को शानत किया तथा उससे बातें कर उसका ध्यान भंग कर दिया|
हरिद्वार में मैंने सभी के रहने की व्यवस्था पहले ही कर दी थी| भाईसाहब, सासु माँ, भाभी जी, विराट और अनिल हमसे पहले पहुँचे थे और अपने-अपने कमरों में आराम कर रहे थे| हरिद्वार पहुँच कर हम सभी सीधा होटल पहुँचे जहाँ हम सभी से मिले| सब ने एक-एक कर स्तुति को गोदी में लेना चाहा मगर स्तुति किसी की गोदी में जाए तब न?! "मुन्नी, हमरे लगे न आइहो तो हम तोहसे न बोलब!" मेरी सासु माँ अपनी नातिन को प्यार से चेताते हुए बोलीं| अब स्तुति का मन माने तब न, वो तो बस मुझसे लिपटी हुई थी| बड़ी मुश्किल से मैंने स्तुति को समझाया और अपनी सासु माँ की गोदी में दिया, लेकिन अपनी नानी जी की एक पप्पी पा कर ही स्तुति मेरे पास लौट आई| जब भाभी जी की बारी आई तो उन्होंने जबरदस्ती स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसे प्यार से धमकाते हुए बोलीं; "सुन ले लड़की, अपनी मामी जी के पास रहना सीख ले वरना मारूँगी दो खींच के!" अपनी मामी जी की प्यारभरी धमकी सुन स्तुति घबरा गई और जोर से रोने लगी|
अब स्तुति के रोने का फायदा उठाया छोटे मामा जी अर्थात अनिल ने| वो आज पहलीबार स्तुति को गोदी में उठा रहा था इसलिए अनिल के भीतर मामा बनने का प्यार उमड़ रहा था| "छोडो मामी जी को, आपके छोटे मामा जी है न आपको प्यार करने के लिए|" अनिल ने स्तुति को लाड करते हुए कहा| स्तुति चुप तो हुई मगर अनिल को अनजाना समझ छटपटाने लगी| "अरे हमका...आपन मामी का चीन्ह के हमरी गोदी में नाहीं टिकी तो तोहार गोदी मा कैसे टिकी?!" भाभी जी ने अनिल को उल्हाना देते हुए कहा| वहीं भाईसाहब और विराट ने स्तुति के रोने के डर से उसे गोदी ही नहीं लिया, वे तो बस स्तुति के हाथों को चूम कर अपने मन की संतुष्टि कर के रह गए|
स्तुति को लाड-प्यार करने के बाद सबने मिलकर आयुष और नेहा को दुलार किया, स्तुति के मुक़ाबले दोनों भाई-बहन (आयुष और नेहा) सबसे बड़ी अच्छी तरह से मिले तथा सबके पॉंव छू कर आशीर्वाद लिया|
वो रात हम अभी ने आराम किया और अगली सुबह तड़के ही सब नहा-धो कर ससुर जी की बर्सी की पूजा करने पहुँच गए| पूजा समाप्त हुई और हमने मंदिरों में दर्शन किये तब तक घड़ी में 10 बज गए थे| अब समय था स्तुति का मुंडन करवाने का, हमारे गाँव में माँ बच्चे को गोदी में ले कर बैठती है तब मुंडन किया जाता है| लेकिन यहाँ मेरी लाड़ली मेरे सिवा किसी की गोदी में नहीं जाती थी इसलिए मुंडन के समय मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए बैठा था| अब चूँकि हम सब घर से बाहर आये थे तो मेरी बिटिया का चंचल मन इधर-उधर भटक रहा था, जिस कारण स्तुति कभी इधर गर्दन घुमा कर देखती तो कभी उधर| अब नाऊ ठाकुर को उस्तरा चलाने में हो रही थी कठनाई इसलिए मैंने स्तुति का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित करने के लिए उससे तुतला कर बात करनी शुरू की, इतने में नेहा ने आगे बढ़ कर स्तुति के दोनों गालों पर हाथ रख उसे गर्दन घुमाने से रोक लिया| अभी नाऊ ठाकुर ने उस्तरा स्तुति के बालों से छुआया भी नहीं था की एक पिता का डर सामने आया; "भैया जी, थोड़ा ध्यान से कीजियेगा!" मेरे डर का मान रखते हुए नाऊ ठाकुर ने मुझे आश्वस्त किया; "अरे साहब, तनिको चिंता नाहीं करो|"
मैंने और नेहा ने बहुत ध्यान से स्तुति का मन बातों में लगाए रखा ताकि स्तुति रोने न लगे| उधर नाऊ ठाकुर ने बड़े कुशल कारीगर की तरह स्तुति के सर के सारे बाल मुंड दिए| मेरी बिटिया रानी बड़ी बहादुर थी, उसने अपने मुंडन के समय एक आँसूँ नहीं बहाया, उसे तो पता ही नहीं चला की उसके बाल साफ़ हो चुके हैं! मुंडन समाप्त होने के बाद गँगा जी में डुबकी लगाने का समय था| हमारे घर की सभी महिलायें, घाट के उस हिस्से में चली गईं जहाँ बाकी महिलायें नहा रहीं थीं| बचे हम सब मर्द और स्तुति तो हम कच्छे पहने हुए गँगा जी में डुबकी लगाने आ पहुँचे|
आयुष आज पहलीबार नदी में डुबकी लगाने जा रहा था इसलिए वो बहुत उत्साहित था, अनिल को सूझी शरारत तो उसने आयुष को अपने पिछली बार नदी में लगभग बह जाने का किस्सा सुना कर डरा दिया| पिछलीबार जब हम ससुर जी का अस्थि विसर्जन करने आये थे तब अनिल लगभग बह ही जाता अगर मैंने उसे थाम न लिया होता| इस डरावने किस्से को सुन आयुष घबरा गया और रुनवासा हो गया| "बेटा, घबराते नहीं हैं! मैं हूँ, आपके बड़े मामा जी हैं, विराट भैया हैं तो आपको कुछ नहीं होगा| हम जैसे कहें वैसे करना और पानी में उतरने के बाद कोई मस्ती मत करना|" मैंने आयुष को हिम्मत बँधाते हुए कहा| जैसे-तैसे हिम्मत कर आयुष मान गया| आयुष को हिम्मत दिलाने के लिए पहले मैं और स्तुति सीढ़ियों से उतर कर पानी में पहुँचे| पहाड़ के ठंडे पानी में पैर पढ़ते ही मेरी कँपकँपी छूट गई! अब जब मुझे पानी इतना ठंडा लग रहा था तो बेचारी मेरी बिटिया रानी का क्या हाल होता?! मुझे पानी में खड़ा हो कर सोचता हुआ देख भाईसाहब सीढ़ी पर खड़े हो कर बोले; "मानु, जल्दी से स्तुति को डुबकी लगवा दो!" भाईसाहब की आवाज़ सुन मैं अपनी सोच से बाहर निकला और सर न में हिलाते हुए बोला; "पानी बहुत ठंडा है भाईसाहब, स्तुति बीमार पड़ जायेगी|" इतना कह में नीचे झुका और चुल्लू में गँगा जी का जल ले कर स्तुति के हाथ-पाँव-मुँह धुलवा दिए तथा पानी से बाहर आ गया| भाईसाहब ने बहुत कहा की एक डुबकी से कुछ नहीं होगा मगर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा; "भाईसाहब, स्तुति को आजतक मैंने गुनगुने पानी से ही नहलाया है| इस ठंडे पानी से स्तुति बीमार हो जाएगी|" इतने में पानी देख कर मेरी बिटिया ख़ुशी के मारे अपने हाथ-पॉंव चलाने लगी थी| स्तुति बार-बार पानी की ओर अपना हाथ बढ़ा कर कुछ कहना चाहा रही थी मगर स्तुति की बोली-भाषा मेरी समझ में नहीं आई! कुछ सेकंड अपने दिमाग पर जोर डालने के बाद मैं आखिर समझ ही गया की स्तुति क्या कहना चाहती है| मैं स्तुति को लिए हुए नीचे झुका और गँगा मैया के बह रहे जल में स्तुति को अपना दायाँ हाथ डुबाने का मौका दिया| गँगा मैय्या के पावन और शीतल जल में अपना हाथ डूबा कर स्तुति को ठंडे पाने का एहसास हुआ इसलिए उसने फ़ट से अपना हाथ पानी के बाहर खींच लिया तथा अपनी हथेली पर पानी को महसूस कर खिलखिलाकर हँसने लगी! मेरी बिटिया रानी ने गँगा मैय्या के पॉंव छू कर आशीर्वाद ले लिया था और वो ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी|
मैंने स्तुति को समझाते हुए कहा; "बेटा, आप अपने बड़े मामा जी के पास रुको तबतक मैं डुबकी लगा लूँ|" इतना कह मैंने स्तुति को भाईसाहब की गोदी में दिया| पता नहीं कैसे पर स्तुति भाईसाहब की गोदी में चली गई, मैं भी फ़ट से पानी में दुबारा उतरा और गँगा माँ का नाम लेते हुए 7 डुबकी लगाई| मुझे पानी में देख आयुष को जोश आ गया और वो भी धीरे-धीरे सीढ़ी उतरते हुए अपने दोनों हाथ खोले खड़ा हो गया| मैंने आयुष को गोदी में लिया और आयुष से बोला; "बेटा मैं अभी आपकी नाक पकडूँगा ताकि डुबकी लगाते समय पानी आपकी नाक में न घुस जाए| आप अपनी आँखें बंद रखना और 1-2 सेकंड के लिए अपनी साँस रोकना ताकि पानी कहीँ आपके मुँह में न चला जाए|" आयुष ने सर हाँ में हिला कर मुझे अपनी सहमति दी| मैंने आयुष की नाक पकड़ी और पहली डुबकी लगाई| आयुष के लिए डुबकी लगाने का पहला मौका था इसलिए पहली डुबकी से आयुष थोड़ा घबरा गया था| "बेटा, डरना नहीं है| आप आँख बंद करो और मन में भगवान भोलेनाथ का नाम लो| मैं धीरे-धीरे 4 डुबकी और लगाऊँगा|" मेरी बता सुन आयुष ने अपनी हिम्मत दिखाई और आँखें बंद कर भगवान भोलेनाथ को याद करने लगा| मैंने धीरे-धीरे 4 डुबकी पूरी की और इस दौरान आयुष को ज़रा भी डर नहीं लगा|
आयुष को गोदी में ले कर मैं बाहर निकलने लगा की विराट सीढ़ी पर खड़ा हो कर बोला, "फूफा जी, मुझे और चाचा जी को भी डुबकी लगवा दो!" विराट की बात सुन मैंने और भाईसाहब ने जोरदार ठहाका लगाया| खैर, दोनों चाचा-भतीजा मेरे दाएँ-बाएँ खड़े हो गए| मैंने दोनों का हाथ थामा और दोनों से बोला; "एक हाथ से अपनी नाक बंद करो और उठक-बैठक के अंदाज में फटाफट 7 डुबकी लगाना!" मैं किसी शाखा के इंस्ट्रक्टर की तरह बोला| हम तीनों गहरे पानी में नहीं गए थे, हाथ पकड़े हुए हम तीनों ने उठक-बैठक करते हुए 7 डुबकी लगा ली और आखिरकर हम पानी से बाहर आ गए| हम तीनों पानी पोंछ रहे थे जब आयुष ने अपने छोटे मामा जी का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया; "छोटे मामा जी, आप इतने बड़े हो फिर भी पानी में डुबकी लगाने से डरते हो!" अपने छोटे भाँजे द्वारा अनिल की सरेआम अच्छी किरकिरी हो गई थी इसलिए बेचारा मुस्कुराते हुए अपना चेहरा छुपाने में लगा था|
बहरहाल भाईसाहब ने भी डुबकी लगाई और हम सभी खाना खा कर होटल वापस आ गए| स्तुति दूध पी कर सो गई थी इसलिए दोनों बच्चों ने घूमने की जिद्द की| माँ और सासु माँ थक गईं थीं इसलिए उन्होंने करना था आराम, बचे हम सब जवान लोग तो हम घूमने निकल पड़े| भाईसाहब का कहना था की हम सब चलकर मंदिर का चक्कर लगा लेते हैं, लेकिन मेरे पास जबरदस्त आईडिया था; "भाईसाहब मंदिर तो माँ के साथ दुबारा घूम लेंगे! अभी हम सब चलते हैं और कुछ मजेदार खाते-पीते हैं|” मेरा आईडिया भाभी जी और संगीता को बहुत पसंद आया; "ये की न आपने जवानों वाली बात!" भाभी जी, भाईसाहब को जलाने के लिए मेरी पीठ थपथपाते हुए मेरी तारीफ करने लगीं| "अब लगता है गलत आदमी से शादी कर ली मैंने!" भाभी जी ने भाईसाहब को प्यारा सा ताना मरते हुए कहा| भाभी जी की कही बात पर सभी ने जोरदार ठहाका लगाया, ये ऐसा ठहाका था की आस-पास के सभी लोग हमें ही देख रहे थे!
चूँकि हम दोपहर का खाना खा कर घूमने निकले थे इसलिए मैंने सभी को जबरदस्ती पैदल चलाया जिससे खाना हज़म हो जाए और थोड़ी भूख लग आये| हम सभी पहुँचे देवपुरा और यहाँ पहुँच कर सबसे पहले हमारी नज़र पड़ी चाट की दूकान पर, चाट देखते ही भाभी जी और संगीता के मुँह में पानी आ गया| "भाभी जी, चलो चाट से ही श्री गणेश करते हैं, लेकिन ध्यान रहे पेट भर कर मत खाना! अभी हमें हरिद्वार की मशहूर आलू-पूड़ी, कचौड़ी, समोसा, कुल्फी और फालूदा भी खाने हैं|” मैंने भाभी जी और संगीता दोनों को समझाया| फिर मैंने सभी के लिए अलग-अलग चाट आर्डर की ताकि सभी को अलग-अलग ज़ायके का मज़ा आया| महिलाओं को चाट कितनी पसंद होती है ये मैंने उस दिन देखा जब नन्द (नंद)-भाभी ने मिलकर सभी तरह की चाट चख मारी! चलते-चलते हमारा अंतिम पड़ाव था कुल्फी की दूकान, कुल्फी देख कर दोनों स्त्रियों की आँखें ऐसे चमकने लगीं मानों दोनों ने खजाना पा लिया हो! आयुष और नेहा भी पीछे नहीं थे, वो दोनों भी कुल्फी खाने के लिए चहक रहे थे| हम तीनों (मैं, अनिल और भाईसाहब) का पेट भरा था इसलिए हमने बस एक-एक चम्मच कुल्फी खाई, वहीं नंद-भौजाई और बच्चों ने मिलकर 5 प्लेट कुल्फी साफ़ कर दी!
खा-पी कर, घूम-घाम कर शाम को हम सब होटल लौटे तो पता चला की स्तुति ने रो-रो कर तूफ़ान खड़ा कर रखा है! मैंने स्तुति को फौरन गोदी में लिया और उसकी पीठ थपथपा कर चुप कराने लगा| स्तुति को गोदी में लिए हुए मैं होटल की छत पर आ गया और वहाँ से स्तुति को चिड़िया आदि दिखा कर बहलाने लगा| आखिर स्तुति चुप हुई लेकिन वो अब चहक नहीं रही थी, शायद वो मुझसे गुस्सा थी की मैं उसे छोड़ कर घूमने चला गया था|
बाकी सब माँ और सासु माँ के कमरे में बैठे बात कर रहे थे इसलिए मैं स्तुति को ले कर अपने कमरे में आ गया| मैंने स्तुति को मनाने की बहुत कोशिश की मगर स्तुति गुस्सा ही रही! तभी मुझे हमारे गाँव में बच्चों के साथ खेले जाने वाला एक खेल याद आया| मैं बिस्तर पर पीठ के बल लेट गया और अपने दोनों पॉंव जोड़ कर अपने पेट से भिड़ा दिए| मेरे पॉंव के दोनों पंजे आपस में जुड़े थे और उन्हीं पंजों पर मैंने स्तुति को बिठाया तथा स्तुति के दोनों हाथों को थाम कर मैंने हमारे गाँव में गाया जाने वाला गीत गाते हुए अपने दोनों पॉंव को आगे-पीछे कर स्तुति को धीरे-धीरे झूला-झुलाने लगा;
“खनन-मनन दो कौड़ी पाइयाँ,
कौड़ी लेकर गँगा बहाइयाँ,
गँगा माता बारू दिहिन,
बारू ले कर भुजाऊआ को दिहिन,
भुजाऊआ हमें लावा दिहिन,
लावा-लावा बीन चवावा,
ठोर्री ले घसियारिया को दिहिन,
घसियारिया हमका घास दिहिन,
घास ले के गैया का दिहिन,
गैया हमका दूध दिहिन,
दूध ले के राजा को दिहिन,
राजा हमका घोड़ दिहिन,
घोड़ चढ़े जाइथ है,
पान-फूल खाइथ है,
पुराण भीत गिराइत है,
नवी भीत उठाईथ है,
तबला बजाइथ है,
ऐ पुलुलुलुलु!!!!" गीत के अंत में जब मैंने 'पुलुलुलुलु' कहा तो मैंने अपने दोनों पॉंव ऊपर की ओर उठाये जिससे स्तुति भी ऊपर उठ गई| इस गीत को सुन मेरी बिटिया रानी को बहुत मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया| अंततः मेरी बेटी का गुस्सा खत्म हो गया था और वो अब फिर से ख़ुशी से चहक रही थी|
रात को खाना केवल माँ और सासु माँ ने ही खाया, हम सब के तो पेट भरे हुए थे इसलिए हम बस उनके पास बैठे बातें करने में व्यस्त थे| होटल लौट कर हम सभी अपने-अपने कमरों में जा रहे थे जब भाभी जी ने माँ और सासु माँ को छोड़ बाकी सभी को अपने कमरे में बुलाया| माँ और सासु माँ थके थे इसलिए वो तो अपने कमरे में जा कर सो गए, बाकी बचे हम सभी भाभी जी के कमरे में घुस गए| पहले हम सभी का हँसी-मज़ाक चला, जब रात के 10 बजे तो दोनों बच्चों ने कहानी सुनने की जिद्द की| मैं दोनों बच्चों को उनके अनिल और विराट के कमरे में ले जाकर कहानी सुना कर सुलाना चाहता था, लेकिन भाभी जी मुझे रोकते हुए बोलीं; "अरे भई, मुझे भी कहानी सुनाओ!" भाभी जी मज़ाक करते हुए बोलीं मगर बच्चों को ये बात सच लगी और दोनों बच्चे जा कर अपनी मामी जी से लिपट गए तथा मुझे कथाकार बना दिया| अब मैंने भी भाभी से मज़ाक करते हुए पुछा; "बोलो भाभी जी, कौन सी कहानी सुनाऊँ?" मेरा सवाल सुन भाभी जी हँस पड़ीं और बोलीं; "कोई भी कहानी सुना दो!" भाभी जी हँसते हुए बोलीं| इतने में दोनों बच्चों एक साथ चिल्लाये; "पापा जी, कढ़ी-फ़्लोरी!" भाभी जी ने ये कहानी सुनी हुई थी, फिर भी वो मुझे छेड़ते हुए बोलीं; "ये कहानी तो मैंने भी नहीं सुनी! सुनाओ भई, यही कहानी सुनाओ हमें!" भाभी जी बच्चों की तरह जिद्द करते हुए बोलीं|
भाईसाहब और अनिल सोफे पर कहानी सुनने के लिए आराम से बैठ गए| विराट कुर्सी पर बैठ गया, संगीता तथा भाभी जी पलंग के दोनों सिरों पर लेट गए, बचे दोनों बच्चे तो वो अपनी मम्मी और मामी जी के बीच में लेट चुके थे| मैं और मेरी गोदी में स्तुति, हम बाप-बेटी आलथी-पालथी मारे पलंग पर बैठे थे|
आमतौर पर मैं कढ़ी-फ़्लोरी की कहानी बिलकुल सादे ढंग से सुनाता था, परन्तु आज मुझे सभी का मनोरंजन करना था इसलिए मैंने कहानी के पात्रों के नाम बड़े रोचक रखे!
"तो इससे पहले की मैं कहानी शुरू करूँ, आप सभी को कहानी सुनने के दौरान 'हम्म' कहना होगा!" मैंने एक कड़क अध्यापक की तरह कहा जिसपर सभी ने एक साथ "हम्म" कहा|
"तो हमारी कहानी कढ़ी फ़्लोरी के नायक यानी हीरो का नाम है आयुष|" जैसे ही मैंने आयुष का नाम लिया सभी को बहुत हँसी आई, क्योंकि इस कहानी में आयुष क्या-क्या गुल खिलाने वाला था ये सब पहले से जानते थे| "तो...आयुष को है न खाने-पीने का बहुत शौक था| खाना चाहे घर पर बनाया हुआ हो या बाहर बाजार का, आयुष उसे बड़े चाव से खाता था| आयुष के पिताजी शहर में नौकरी करते थे और आयुष अपनी मम्मी; श्रीमती संगीता देवी जी के साथ गाँव में रहता था|" मैंने संगीता को छेड़ने के लिए जानबूझ कर उसका नाम कहानी में जोड़ा था| जैसे ही मैंने संगीता का नाम कहानी में लिया की सभी की नजरें संगीता की तरफ घूम गई| सभी के चेहरों पर मुस्कान थी और संगीता मुझे आँखों ही आँखों में उल्हाना दे रही थी की भला मैंने इस कहानी में उसका नाम क्यों जोड़ा?!
"आयुष की उम्र शादी लायक हो गई थी और शादी के बाद लड़का खाने-पीने के बजाये काम-धाम में मन लगाएगा ये सोचकर संगीता देवी ने आयुष की शादी कर दी| बड़े धूम-धाम, बाजे-गाजे से शादी हुई और अगली सुबह बहु पगफेरा डालने अपने मायके चली गई| इधर आयुष के भीतर कोई बदलाव नहीं आया, वो तो बस खाने-पीने में ही ध्यान लगाता था| कभी चाऊमीन तो कभी पिज़्ज़ा, उसे बस खाने से मतलब था|" जैसे ही मैंने चाऊमीन और पिज़्ज़ा का नाम लिया, आयुष के मुँह में पानी आ गया और वो अपने होठों पर जीभ फिराने लगा|
"शादी हुए महीना होने को आया था पर संगीता देवी जी की बहु अभी तक अपने ससुराल नहीं आई थी| संगीता देवी ने आयुष से बड़ा कहा की वो अपने ससुराल जा कर अपनी पत्नी को लिवा लाये ताकि चूल्हा-चौका बहु को सौंप कर संगीता देवी आराम करे, लेकिन आलसी आयुष ‘कल जाऊँगा’ कह कर बात टाल देता!" जब मैंने आयुष को आलसी कहा तो नेहा खी-खी कर हँसने लगी क्योंकि आयुष थोड़ा बहुत आलसी तो था ही! खैर, आयुष का अपने मजाक उड़ाए जाने पर गुस्सा नहीं आया बल्कि वो तो मुस्कुरा रहा था|
"इधर संगीता देवी के इंतज़ार की इंतेहा हो गई थी, सो एक दिन संगीता देवी ने अपने बेटे को हड़का दिया; 'कल अगर तू बहु को घर ले कर नहीं आया न तो मैं तुझे खाना नहीं दूँगी!' अब जब खाना न मिलने की धमकी मिली तो आयुष बेचारा घबरा गया और बोला; 'ठीक है मम्मी, आप कल रास्ते के लिए खाना बाँध देना मैं चला जाऊँगा ससुराल!' बेटे की हाँ सुन, संगीता देवी को इत्मीनान आया की कम से कम उनकी बहु घर आ जाएगी और उन्हें घर के चूल्हे-चौके से छुट्टी मिलेगी|
अगली सुबह संगीता देवी जल्दी उठीं और अपने बेटे की खाने की आदत को जानते हुए आयुष के लिए 50 पूड़ियाँ और आलू की सब्जी टिफिन में पैक कर दी| टिफ़िन और अपनी मम्मी का आशीर्वाद ले कर आयुष अपने ससुराल के लिए निकल पड़ा| अब जैसा की आप सभी जानते हैं, आयुष को खाने का कितना शौक था इसलिए जैसे ही आयुष चौक पहुँचा उसे भूख लग आई! आयुष अपनी ससुराल जाने वाली बस में चढ़ा और खिड़की वाली सीट पर बैठ उसने अपना टिफ़िन खोल कर खाना शुरू कर दिया| बस अभी आधा रास्ता भी नहीं पहुँची थी की आयुष ने 50 की 50 पूड़ियाँ साफ़ कर दी, अब आगे का रास्ता खाली पेट आयुष कैसे तय करता इसलिए वो बस रुकवा कर उतर गया और दूसरी बस पकड़ कर घर पहुँच गया| जब संगीता देवी ने देखा की उनका बेटा खाली हाथ घर लौटा है तो उन्होंने अचरज भरी निगाहों से आयुष को देखते हुए सवाल पुछा; ' तू वापस क्यों आ गया?'
'खाना खत्म हो गया था मम्मी, अब भूखे पेट आगे का रास्ता कैसे तय करता इसलिए मैं वापस आ गया!' आयुष अपनी मम्मी को खाली टिफ़िन देते हुए बोला| आयुष की बात सुन संगीता देवी को गुस्सा तो बहुत आया मगर वो क्या करतीं?! उन्होंने सोचा की अगले दिन दुगना खाना बाँध दूँगी, फिर देखती हूँ कैसे वापस आता है?!
तो अगली सुबह संगीता देवी जी और जल्दी उठीं और आज 100 पूड़ियाँ तथा आलू की सब्जी टिफ़िन में भर कर आयुष को देते हुए बोलीं; 'ये ले और आज वापस मत आइयो!' अपनी मम्मी की डाँट सुन आयुष घबरा गया और आशीर्वाद ले कर अपने ससुराल की ओर निकल पड़ा| जैसे ही आयुष चौक पहुँचा उसे भूख लग आई, फिर क्या था बस में बैठते ही आयुष ने खाना शुरू कर दिया| बस आधा रास्ता पहुँची होगी की आयुष का खाना खत्म हो गया नतीजन आयुष अगली बस में चढ़कर फिर घर लौट आया| आयुष को खाली हाथ देख संगीता देवी को बड़ा गुस्सा आया मगर वो कुछ कहें उससे पहले आयुष स्वयं ही बोला; 'मम्मी मैं क्या करता, खाना ही खत्म हो गया!' इतना कह आयुष वहाँ से रफू-चक्कर हो गया ताकि मम्मी की डाँट न खानी पड़े|
अब संगीता देवी जी का दिमाग गुस्से से गर्म हो चूका था, उन्हें कैसे भी आयुष को सीधे रास्ते पर लाना था| उन्होंने एक योजना बनाई और कुम्हारन के पास पहुँची तथा वहाँ से एक सुराही खरीद लाईं| इस सुराही का मुँह शुरू में खुला था और बाद में तंग हो जाता था| अगली सुबह संगीता देवी जी ने जल्दी उठ कर खीर बनाई और सुराही को लबालब भर कर आयुष को देते हुए बोलीं; 'आज अगर तू ये बोल कर खाली हाथ लौटा की खाना खत्म हो गया था, तो तुझे खूब पीटूँगी और तेरा खाना-पीना सब बंद कर दूँगी!' अपनी मम्मी की डाँट सुन आयुष घबरा गया और अपनी मम्मी जी का आशीर्वाद ले कर अपने ससुराल की ओर चल पड़ा|
आयुष को खीर बड़ी पसंद थी और खीर खाने का उसका एक अलग अंदाज़ भी था| वो अपने दाहिने हाथ की तीन उँगलियों से खीर उठा कर खाता था और अंत में सारा बर्तन चाट-पोंछ कर साफ़ कर देता था| हरबार की तरह, जैसे ही चौक आया आयुष ने अपने दाहिने हाथ की तीन उँगलियों से खीर खानी शुरू कर दी| बस आधा रास्ता पहुँची तो सुराही में खीर कम हो चुकी थी, आयुष खीर खाने में ऐसा मग्न था की उसने ध्यान नहीं दिया और अपना दाहिना हाथ सुराही में और नीचे की ओर सरका दिया… नतीजन आयुष का हाथ सुराही में जा फँसा! आयुष को जब एहसास हुआ की उसका हाथ सुराही में फँस चूका है तो उसका डर के मारे बुरा हाल हो गया, उसने बड़ी कोशिश की परन्तु उसका हाथ बाहर ही न निकले! 'अब अगर मैं घर वापस गया तो मम्मी कहेगी की खाना खत्म नहीं हुआ तो तू घर कैसे वापस आ गया?! फिर खाना-पीना तो बंद होगा ही, मम्मी की मार खानी पड़ेगी सो अलग!' आयुष बेचारा बहुत डरा हुआ था इसलिए उसने सोचा की वो अपने ससुराल जाएगा, वहीं उसके साले-साहब उसकी मदद करेंगे|
बस ने आयुष के ससुराल से लगभग 1 किलोमीटर पहले उतार दिया, यहाँ से आयुष को पैदल जाना था| रात के आठ बज गए थे और अंधरिया रात (आमावस की रात) होने के कारण आयुष को कुछ ठीक से नहीं दिख रहा था| आयुष सँभल-सँभल कर चलते हुए अपने ससुराल से करीब 100 कदम दूर पहुँचा और कुछ सोचते हुए रुक गया| 'अगर हाथ में सुराही फँसाये सुसराल गया तो सभी बहुत मज़ाक उड़ाएंगे! ये सुराही मिटटी की बनी है तो ऐसा करता हूँ इस सुराही को किसी ठूँठ (अर्थात आधा कटा हुआ पेड़) पर पटक कर तोड़ देता हूँ|' ये सोच आयुष अंधरिया रात में कोई ठूँठ ढूँढने लगा|
बदकिस्मती से उस वक़्त आयुष का ससुर बाथरूम (सुसु) जाने के लिए घर से दूर आ कर बैठा हुआ था| आयुष ने जब अपने ससुर जी को यूँ बैठे हुए देखा तो उसे लगा की ये कोई ठूँठ है इसलिए आयुष ने बड़ी जोर से अपना दाहिना हाथ अपने ससुरजी के सर पर पटक मारा! ‘अरे दादा रे!!!! मरी गयन रे! के मार डालिस हमका?!’ आयुष के ससुर जी दर्द के मारे जोर से चिल्लाये!” जैसे ही मैंने “अरे दादा रे” कराहते हुए कहा, सभी लोगों ने एक साथ जोरदार ठहाका लगाया, यहाँ तक की स्तुति भी खिलखिलाकर हँस पड़ी!
“अपने ससुर जी की अँधेरे में करहाने की आवाज़ सुन आयुष जान गया की उसने अपने ही ससुर जी के सर पर सुराही दे मारी है इसलिए वो डर के मारे दूसरी दिशा में दौड़ गया! इधर आयुष के ससुर जी अपना सर सहलाते हुए अब भी कराह रहे थे| कुछ सेकंड बाद सुराही में जो खीर भरी हुई थी वो आयुष के ससुर जी के सर से बहती हुई ससुर जी के होठों तक पहुँची, आयुष के ससुर जी ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर जब खीर को चखा तो उन्हें खीर का स्वाद बड़ा पसंद आया! 'ग़ाज गिरी तो गिरी, पर बड़ी मीठ-मीठ गिरी!' आयुष के ससुर जी खीर की तारीफ करते हुए बोले|" मैंने आयुष के ससुर जी की कही बात बेजोड़ अभिनय कर के कही जिसपर एक बार फिर सभी ने ठहाका लगाया|
“खैर, आयुष के ससुर जी अपना सर सहलाते हुए घर लौट गए और उन्होंने अपने साथ हुए इस काण्ड को सबको बताया| परन्तु कोई कुछ समझ नहीं पाया की आखिर ये सब हुआ कैसे?! इधर बेचारा आयुष दुविधा में फँसा हुआ था की वो इतनी रात को कहाँ जाए? अपने घर जा नहीं सकता था और ससुराल में अगर किसी को पता चल गया की उसने ही अपने ससुर जी के सर पर सुराही फोड़ी है तो सभी उसे मार-पीट कर भगा देंगे! 'इतनी अंधरिया रात में जब मुझे ये नहीं पता चला की ससुर जी बैठे हैं तो उन्हें कैसे पता चलेगा की उनके सर पर सुराही फोड़ने वाला मैं था?' आयुष ने मन ही मन सोचा और अपने ससुराल जा कर अनजान बनने का अभिनय करने की सोची| आयुष ने रुमाल से अपना हाथ पोंछा जिस पर खीर लगी हुई थी और रुमाल वहीं झाडी में फेंक कर अपने ससुराल की ओर बढ़ चला|
ससुराल में आयुष की बड़ी आव-भगत हुई, नहाने को गुनगुना पानी दिया गया, खाने में स्वाद-स्वाद चाऊमीन बना कर खिलाई गई| किसी ने भी आयुष को उसके ससुर जी पर जो ग़ाज गिरी थी उसके बारे में नहीं बताया| अगली सुबह आयुष अपनी सासु माँ से बोला; 'अम्मा, हम आपन दुल्हिन का लिवाये खतिर आयन हैं| तू ऊ का हमरे साथै आभायें पठए दिहो!'” जब मैंने ‘दुल्हिन’ शब्द कहा तो आयुष शर्मा कर लालम-लाल हो गया, जिसका सभी ने बड़ा आनंद लिया|
"’बिटवा, आज और कल भरे रुक जातेओ तो हम परसों तोहरे साथै मुन्नी का पठय देइत!’ आयुष की सासु माँ आयुष को समझाते हुए बोलीं मगर आयुष जानता था की अगर वो आज रात अपने ससुराल में रुका तो घर जा कर उसे अपनी मम्मी से बहुत डाँट पड़ेगी इसलिए उसने आज ही अपनी दुल्हिन को ले जाने की जिद्द पकड़ी| 'बिटवा, कल मुन्नी के मामा आवत हैं, ऊ से भेटाये ले फिर मुन्नी का परओं भेज देब!' आयुष की सासु माँ बड़े प्यार से आयुष को समझाते हुए बोलीं| अब आयुष बेचारा अपनी ससुर माँ को कैसे मना करता, वो मान गया और बोला; 'ठीक है अम्मा, फिर हम आपन घरे जाइथ है| तू परओं हमार दुल्हिन का पठय दिहो!' इतना कह आयुष चलने को हुआ की उसकी सासु माँ उसे रोकते हुए बोलीं; 'अरे पाहिले कछु खाये तो लिहो, फिर चला जायो!' इतना कह वो स्वयं रसोई में घुसीं और आयुष के लिए एक ख़ास चीज़ बनाई, ऐसी चीज़ जो आयुष ने पहले कभी नहीं खाई थी|
इधर आयुष भी नहा-धो कर तैयार हो गया और खाना खाने के लिए अपना आसन जमा लिया| आयुष की सासु माँ ने बड़े प्यार से आयुष के लिए खाना परोसा कर दिया, आयुष ने जब अपनी थाली देखि तो उसमें उसे चावल और एक पीली-पीली तरी में दुबे हुए कुछ पकोड़े जैसा कुछ नज़र आया| अब आयुष को पहले से ही नए-नए तरह के खाने का चस्का था इसलिए उसने बिना कुछ पूछे खाना शुरू कर दिया| पहला कौर खाता ही आयुष को खाने का स्वाद भा गया और आयुष ने पेट भरकर खाना खाया| खाना खा कर आयुष अपनी सासु माँ से बोला; 'अम्मा, ई कौन चीज है...बहुत स्वाद रही?!' आयुष का सवाल सुन आयुष की सासु माँ हँस पड़ीं और बोलीं; 'ई का कढ़ी-फ़्लोरी कहत हैं!' आयुष को ये नाम बड़ा भा गया था और वो खुश होते हुए अपनी सासु माँ से पूछने लगा; 'अम्मा, हमार दुल्हिन ई...कढ़ी-फ़्लोरी बनावा जानत है न?' आयुष का भोलेपन से भरा हुआ सवाल आयुष की सासु माँ मुस्कुराईं और हाँ में सर हिलाने लगीं|
आयुष की दुल्हिन तो परसों आती मगर आयुष को आज रात ही कढ़ी-फ़्लोरी खानी थी इसलिए आयुष उतावला हो कर फ़ट से अपने घर की तरफ दौड़ पड़ा| कहीं वो इस स्वाद चीज़ का नाम न भूल जाए इसलिए आयुष ने इस नाम को रट्टा मारना शुरू कर दिया; 'कढ़ी-फ़्लोरी...कढ़ी-फ़्लोरी' रटते हुए वो बस में बैठा और पूरे रास्ते यही नाम रटता रहा|
शाम होने को आई थी और आयुष का बड़ी जोर की भूख लगी थी, लेकिन उसने सोच लिया था की आज वो घर जा कर अपनी मम्मी यानी संगीता देवी से कढ़ी-फ़्लोरी बनवा कर ही खायेगा! लेकिन आयुष के नसीब में आज कुछ अधिक ही सबर करना लिखा था| बस आयुष के घर से करीब 2 किलोमीटर पहले ही खराब हो कर बंद पड़ गई| खड़े रह कर दूसरी बस का इंतज़ार करने से अच्छा था की आयुष पैदल ही घर की ओर निकल पड़ा और रास्ते भर आयुष ने "कढ़ी-फ़्लोरी" रटना नहीं छोड़ा था|
लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में एक छोटा सा तलाब पड़ा, तलाब में बस पिंडलियों तक पानी था इसलिए तलाब पार करना कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं थी| आयुष ने अपना पजामा मोड़कर घुटनों तक चढ़ाया और धीरे-धीरे सँभल कर तलाब पार करने लगा| तलाब के बीचों-बीच पहुँच कर थोड़ी फिसलन थी इसलिए खुद को सँभालने के चक्कर में आयुष 'कढ़ी-फ़्लोरी' रटना भूल गया! तलाब पार कर जब आयुष को ध्यान आया की उसे घर जा कर अपनी मम्मी से क्या ख़ास बनवा कर खाना है तो उसे उस स्वाद खाने का नाम याद ही ना आये! आयुष ने अपने दिमाग पर बहुत जोर डाला मगर उसे ये नाम याद ही नहीं आया! तलाब किनारे खड़ा हुआ परेशान आयुष अपना सर खुजा कर उस स्वाद खाने का नाम याद करने लगा! तभी वहाँ से एक आदमी गुज़र रहा था, उसने आयुष को परेशान खड़ा तलाब की ओर ताकते देखा तो उसने आयुष से आ कर उसकी परेशानी का सबब पुछा| आयुष बेचारा इतना परेशान था की वो बता ही न पाए की वो क्यों परेशान है, वो तो बस तलाब की ओर ताकते हुए याद करने की कोशिश कर रहा था| 'अरे, तलाब मा कछु हैराये (खो) गवा है का?' उस आदमी ने पुछा तो आयुष ने हाँ में सर हिला दिया| उस आदमी को लगा की जर्रूर कोई कीमती चीज़ है जो तलाब में गिर गई होगी इसलिए उसके मन में लालच जाग गया; 'अच्छा...अगर हम खोज लेइ तो हमका आधा देबू?' उस आदमी ने अपना लालच प्रकट करते हुए कहा| आयुष ने जैसे ही सुना की ये आदमी उसकी मदद कर रहा है, उसने फौरन अपना सर हाँ में हिला दिया| आयुष की हाँ पा कर वो आदमी अपनी धोती घुटनों तक चढ़ा कर तलाब में कूद पड़ा और पूरी शिद्दत से उस खोई हुई चीज़ को ढूँढने लगा| अब कोई चीज़ तलाब में गिरी हो तब तो मिले न?!
पूरे एक घंटे तक वो आदमी तलाब के अंदर गोल-गोल घूमता रहा और झुक कर पानी के भीतर हाथ डाल कर टोह लेता रहा की शायद कोई कीमती चीज उसकी उँगलियों से छू जाए! आखिर घंटे भर थक कर उस आदमी ने हार मान ली और तलाब के बीचों-बीच से चिल्लाया; "अरे अइसन का खो गवा रहा, ससुर पानी मा गोल-गोल घूमी के कढ़ी बन गई मगर तोहार ऊ चीज़ नाहीं मिलत!" जैसी ही उस आदमी के मुँह से 'कढ़ी' शब्द निकला, आयुष को 'कढ़ी-फ़्लोरी' शब्द याद आ गया और वो ख़ुशी से चिल्लाया; 'मिलगई...मिलगई...मिलगई...मिलगई!!!' कहीं फिर से आयुष ये नाम न भूल जाए वो ख़ुशी से चिल्लाते हुए अपने घर की तरफ दौड़ पड़ा| जब उस आदमी ने देखा की आयुष उसे आधा इनाम दिए बिना ही भागा जा रहा है तो वो आदमी भी आयुष के पीछे दौड़ पड़ा| 'कहाँ जात हो? हमार आधा हिस्सा दिहो!' वो आदमी चिलाते हुए आयुष के पीछे दौड़ा पर आयुष ने उसकी बात न सुनी और अपनी धुन में नाम रटते हुए सरपट घर की ओर दौड़ता रहा|
संगीता देवी जी घर के आंगन में अपनी चारपाई बिछा रहीं थीं जब आयुष दौड़ता हुआ घर पहुँचा| 'म...म...मम्मी..क..कढ़ी..फ..फ़्लोरी...बनाओ...जल्दी!' आयुष हाँफते हुए बोला और घर के भीतर भाग गया| बाहर संगीता देवी हैरान-परेशान 'आयुष...आयुष' चिल्लाती रह गईं! इतने में वो आदमी दौड़ता हुआ आया और संगीता देवी से बड़े गुस्से में बोला; 'क...कहाँ है...तोहार लड़िकवा कहाँ है? ऊ का कछु तालाब मा हैराये गवा रहा, हम कहिन की हमका आधा देबू तो हम ढूँढ देब और तोहार लड़िकवा हाँ भी कहिस लेकिन जबतक हम ढूँढी, तोहार लड़िकवा आपन चीज़ पाई गवा और हमका आधा दिए बिना ही दौड़ लिहिस! हम कहित है, ऊ का एहि लागे बुलाओ और हमार आधा हिस्सा दिलवाओ नाहीं तो हम आभायें पुलिस बुलाइथ है!’ पुलिस की धमकी सुन संगीता देवी ने घबराते हुए अपने सुपुत्र को आवाज़ दी; "आयुष! बाहिरे आ जल्दी!" अपनी मम्मी के गुस्से से भरी आवाज़ सुन आयुष बहार आया और उस आदमी को देख हैरान हुआ| ' तालाब मा का हैराये गवा रहा?' संगीता देवी ने कड़क आवाज़ में सवाल पुछा तो आयुष ने डर के मारे सारा सच कह डाला; 'वो...मम्मी मैंने है न आज अपने ससुराल में पहलीबार कढ़ी-फ़्लोरी खाई जो मुझे बड़ी स्वाद लगी| मैं सारा रास्ता कढ़ी-फ़्लोरी..कढ़ी-फ़्लोरी रटता हुआ घर आ रहा था की तालाब में पॉंव फिसलते समय मैं कढ़ी-फ़्लोरी कहना भूल गया! मैं तालाब किनारे खड़ा हो कर वही शब्द याद करने में लगा था की तभी ये अंकल जी आये और बोले की तुम्हारा जो खो गया है वो मैं ढूँढ दूँ तो मुझे आधा दोगे?! मैं कढ़ी-फ़्लोरी शब्द याद करने में इतना खो गया था की मैंने हाँ कह दी| जब अंकल जी ने घंटा भर लगा कर ढूँढने के बाद तालाब में खड़े हो कर कहा की ऐसा क्या खो गया है तालाब में, खोजते-खोजते कढ़ी बन गई, तो मुझे ये शब्द याद आ गया और मैं घर दौड़ता हुआ आ गया|' आयुष की जुबानी सारी बात सुन संगीता देवी और उस आदमी ने अपना-अपना सर पीट लिया!
आयुष की भोलीभाली बातें सुन संगीता देवी या उस आदमी को गुस्सा नहीं आ रहा था, बल्कि उन्हें तो इस भोलेभाले बच्चे आयुष पर प्यार आ रहा था इसलिए किसी ने आयुष को नहीं डाँटा| संगीता देवी ने फटाफट कढ़ी-फ़्लोरी बनाई और उस आदमी तथा आयुष को भर पेट खिलाई|
कहानी समाप्त!" मैंने कहानी पूर्ण होने की घोषणा की तो सभी ने तालियाँ बजा कर मेरा अभिवादन किया|
जारी रहेगा भाग - 20 में...
Ab aise update ke bare me kya hi likhe
Stuti Stuti Stuti
Tumsa koi pyara koi masum nahi hai
ऐसा लगता था मानो वो कह रही हो की 'पापा जी मैं भी देखती हूँ आप मुझे कैसे सुलाते हो?
स्तुति मेरी गोदी में थी इसलिए मैं उकड़ूँ हो कर नीचे बैठा तथा तीनों बच्चों को जैसे-तैसे अपने गले लगा लिया|
आखिर स्तुति चुप हुई लेकिन वो अब चहक नहीं रही थी, शायद वो मुझसे गुस्सा थी की मैं उसे छोड़ कर घूमने चला गया था|
Bdiya geet tha yeइस गीत को सुन मेरी बिटिया रानी को बहुत मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया
आयुष ने 50 की 50 पूड़ियाँ साफ़ कर दी, अब आगे का रास्ता खाली पेट आयुष कैसे तय करता इसलिए वो बस रुकवा कर उतर गया और दूसरी बस पकड़ कर घर पहुँच गया|
Shadi ho gyi aur ab bhi bchaसंगीता देवी या उस आदमी को गुस्सा नहीं आ रहा था, बल्कि उन्हें तो इस भोलेभाले बच्चे आयुष पर प्यार आ रहा था
Ab to bche karne ki umar h uski
Is baat se ek purani baat yaad aa gyi school time ki,hmare teacher the 12 Commerce me
Bhut friendly the , jab bhi hum dost apas me kisi ko kehte the , ki tu to bcha h to teacher kehte the
"यू बालक कोनी सै
तू इब ब्याह करादे झकोई का
4-5 बालक आडै धरती पै मूंदे मारैगा "
Vese kadi chawal to apne bhi favorite h.
Hafte me 2 baar bn jate h
Kal hi khayi thi
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