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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Lib am

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MJ in Spiderman No Way Home said: "If You Expect Disappointment, Then You Can Never Really Get Disappointed!" हतहों की सभी उँगलियाँ एक समान नहीं होतीं| जो तुमसे दोस्ती निभाए उससे दोस्ती निभाओ, जो न निभाए उसे छोड़ दो| यूँ सबको उनकी गलती दिखा कर तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा| इस forum पर क्या घटित होता है, कैसे घटित होता है ये तुम जानती ही हो इसलिए यहाँ किसी से कोई अपेक्षा मत रखा करो| चंद ख़ास लोग हैं जो नेक दिल हैं और वो ही कारण हैं की मैं अभी तक यहाँ टिका हूँ| खैर, छोडो इन बातों को...तुमने कोशिश की अब परिणाम वैसे भी तुम्हारे पक्ष में नहीं आना था तो






मन भर गया था तो कम से कम message कर के बता देते! :sigh:



लोग कुल्हाड़ी पॉंव पर मारते हैं, तुमने तो पॉंव ही कुल्हाड़ी पर दे मारा! गलतियाँ करो तुम, update लिखने का बोझ मेरे सर पर पड़े!









:sigh:



Update लिख तो दूँ लेकिन

:D



अमित भाई,



मैं और संगीता कोई खेल नहीं खेल रहे, मैंने तो update में frock का बस जिक्र भर किया था| मेरा मकसद केवल ये दिखाने का था की संगीता कितनी चुलबुली है! मेरी वो update लिखने की कोई मंशा ही नहीं थी| वो तो संगीता और आपकी नोक-झोंक शुरू हुई जिस कारण आप नहा-धो कर इस update के पीछे ऐसे पड़ गए! फिर भी मैं आपकी इच्छा का मान रखता हूँ और इस erotic update को लिखने का प्रयास करता हूँ, लेकिन मुझे थोड़ा समय तो दीजिये| Update

की आपने माँगा और मैंने जेब से निकाल कर दे दिया!
अब गुस्सा छोड़िये और मुस्कुराइए, आप पुणे और मैं दिल्ली में हूँ...और आपकी ये इच्छा अवश्य पूरी होगी!​



Brother,

I treat my readers like my friends and since you and Lib am bro want to read about this naughty incident, I'll gladly write about it. But, I'll need some more time to make this incident interesting for you guys.



Rockstar_Rocky भाई और Sangeeta Maurya भौजी मैं भी बस वैसे ही टांग खिंचाई कर रहा था जैसे आप दोनो मिलके मेरे साथ करते हो। मुझे ऐसे किसी अपडेट में कोई इंट्रेस्ट नही है जिसको लिखने में मानू भाई को और पढ़ने में भौजी को अच्छा ना लगे। आप कहानी को अपने हिसाब से लिखते रहिए, ये फ्रॉक, स्कर्ट, गाउन वाला किस्सा यही खतम करता हूं। मेरी वजह से आपको कुछ भी ऐसा लिखने की जरूरत नहीं है जिससे आपको थोड़ा भी कष्ट हो। This case is closed here and now. मेरे मजाक से आप दोनो स्पेशियली भौजी को बुरा लगा हो तो क्षमा प्रार्थी हूं।

:sorry:

मगर इसका मतबल ये नही है की अपडेट में देरी को बर्दास्त करूंगा या उसके लिए आपको संदूक मतबल बक्शा जायेगा।
I need update
Demi Lovato GIF by The Roku Channel
 

Jitu09

A clear rejection is better than fake promise
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प्रिय मित्र,

सबसे पहले तो आप संगीता को भौजी कह सकते हैं, न तो उन्हें और न ही मुझे बुरा लगेगा| हम इस virtual दुनिया में जी रहे हैं और भौजी, भाई, दोस्त जैसे शब्दों से ही हम एक दूसरे से रिश्ता बनाते हैं|

Comment/ Review देने के लिए आपको लेखक होने की जर्रूरत नहीं, जर्रूरत है तो बस एक नेक दिल की| आप बस वो लिखिए जो आपका दिल कहता है, update पढ़ने के बाद जो पहला भाव आपके दिल में आये वो लिखिए| कोई सवाल अगर आपके मन में है तो वो पूछिए|

आपका office से छुट्टी ले कर मेरी कहानी पढ़ने की बात ने तो मेरा दिल प्रसन्न कर दिया| ये आपकी इस कहानी पढ़ने की लगन को दिखाता है and let me tell you, me and Sangeeta are very impressed!

आपकी इन प्यारभरी शुभेच्छा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद|

अंत में जो अपने कहा न की मुझे चार बच्चों को सँभालने में दिक्कत होती होगी, ये बात बिलकुल सही है| हरकतों से संगीता तीनों बच्चों से भी छोटी है! कई बार उसकी ये नादानियाँ सँभालना बड़ा मुश्किल हो जाता है!

अगली update यानी की आपकी और Lib am भाई की special request पर काम किया जा रहा है|

शुभरात्रि!
भाई आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
हम बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
Bhai mere liye hindi type karna bahut hi muskil hai...
Aapka bahut bahut dhanywaad ki aapne hamare request ko sar aankho me rakha.
Hum aapke aabhari hain..

Iss baat pe ek aur request chipka dete hain shayad bahti ganga me ye bhi pura ho jaye...
I would really love to see a special bond between daughters and father..(not in bad manners, as this site is for..... so i am clearing that only special bond of father and daughters specially with new born stutee we have seen with neha and aayush)

Aur Sangeeta Maurya bhojee ji.. aapka bahut bahut dhyanwaad... AAPNE har kadam bhaishab ka saath diya, iss jamane aisi biwi aur pyaar karne wali, respect karne wali bahut mushkil se milta hai...same with you bro you also always there for her or her parents or brothers...

I don't have words to explain the love you have shown between all your childs..

I think i felt all your emotions... i.e separation from bhojee or neha and again reunion, and when aayush didn't recognize you at that point time got tears same as you.. i felt that emotion very very hard...
All the best bhai and Bhojai..

Waiting for next update eagerly..

Thank you for your reply..
Bhawana me bah ke kuchh jayada bol diya ho to maaf karna...
Thank you..

Aglee kadi ke partiksha me....
 

Rockstar_Rocky

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हमार कच्छा खींचत हो


Rockstar_Rocky भाई और Sangeeta Maurya भौजी मैं भी बस वैसे ही टांग खिंचाई कर रहा था जैसे आप दोनो मिलके मेरे साथ करते हो। मुझे ऐसे किसी अपडेट में कोई इंट्रेस्ट नही है जिसको लिखने में मानू भाई को और पढ़ने में भौजी को अच्छा ना लगे। आप कहानी को अपने हिसाब से लिखते रहिए, ये फ्रॉक, स्कर्ट, गाउन वाला किस्सा यही खतम करता हूं। मेरी वजह से आपको कुछ भी ऐसा लिखने की जरूरत नहीं है जिससे आपको थोड़ा भी कष्ट हो। This case is closed here and now. मेरे मजाक से आप दोनो स्पेशियली भौजी को बुरा लगा हो तो क्षमा प्रार्थी हूं।

:sorry:

मगर इसका मतबल ये नही है की अपडेट में देरी को बर्दास्त करूंगा या उसके लिए आपको संदूक मतबल बक्शा जायेगा।
I need update
Demi Lovato GIF by The Roku Channel

अरे अमित भाई,

के खत है की हमका या संगीता का आपकी कउनो बात बुरी लगी है! अरे आप हमार पाठक नहीं, दोस्त हो और दोस्ती यारी मा अगर आप कछु माँग लिहो तो कउनो गलत बात नाहीं!

तनिको चिंता नाहीं करो, एक मजेदार update आवत है| हाँ लेकिन ई मा समय लागि इसलिए तनिक और सबर करो!

भाई आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
हम बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
Bhai mere liye hindi type karna bahut hi muskil hai...
Aapka bahut bahut dhanywaad ki aapne hamare request ko sar aankho me rakha.
Hum aapke aabhari hain..

Iss baat pe ek aur request chipka dete hain shayad bahti ganga me ye bhi pura ho jaye...
I would really love to see a special bond between daughters and father..(not in bad manners, as this site is for..... so i am clearing that only special bond of father and daughters specially with new born stutee we have seen with neha and aayush)

Aur Sangeeta Maurya bhojee ji.. aapka bahut bahut dhyanwaad... AAPNE har kadam bhaishab ka saath diya, iss jamane aisi biwi aur pyaar karne wali, respect karne wali bahut mushkil se milta hai...same with you bro you also always there for her or her parents or brothers...

I don't have words to explain the love you have shown between all your childs..

I think i felt all your emotions... i.e separation from bhojee or neha and again reunion, and when aayush didn't recognize you at that point time got tears same as you.. i felt that emotion very very hard...
All the best bhai and Bhojai..

Waiting for next update eagerly..

Thank you for your reply..
Bhawana me bah ke kuchh jayada bol diya ho to maaf karna...
Thank you..

Aglee kadi ke partiksha me....

प्रिय मित्र,

यदि आप हिंदी में type नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, आप hinglish में लिखिए|

रही आपकी दूसरी request की बात तो वो भी अगली update के साथ पूरी होगी| स्तुति के जीवन के शुरूआती दो साल ऐसे थे जिनमें मैंने स्तुति को बहुत प्यार दिया था, इन प्यार भरे मनोरम दृश्यों को मैं अभी तक थोड़ा-थोड़ा लिख चूका हूँ, बाकी के दृश्य अगली update में आएंगे|

यक़ीन मानिये की अभी तक आपने कोई भी अनुचित या गन्दी बात नहीं की है|
 

Lib am

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हमार कच्छा खींचत हो




अरे अमित भाई,

के खत है की हमका या संगीता का आपकी कउनो बात बुरी लगी है! अरे आप हमार पाठक नहीं, दोस्त हो और दोस्ती यारी मा अगर आप कछु माँग लिहो तो कउनो गलत बात नाहीं!

तनिको चिंता नाहीं करो, एक मजेदार update आवत है| हाँ लेकिन ई मा समय लागि इसलिए तनिक और सबर करो!



प्रिय मित्र,

यदि आप हिंदी में type नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, आप hinglish में लिखिए|

रही आपकी दूसरी request की बात तो वो भी अगली update के साथ पूरी होगी| स्तुति के जीवन के शुरूआती दो साल ऐसे थे जिनमें मैंने स्तुति को बहुत प्यार दिया था, इन प्यार भरे मनोरम दृश्यों को मैं अभी तक थोड़ा-थोड़ा लिख चूका हूँ, बाकी के दृश्य अगली update में आएंगे|

यक़ीन मानिये की अभी तक आपने कोई भी अनुचित या गन्दी बात नहीं की है|
सबसे पहले धन्यवाद एक अदना से पाठक को अपना दोस्त बनाने के लिए। किस्मत में रहा और समय ने साथ दिया तो एक बार जरूर आप लोगो से मिलना चाहूंगा। मेरी फरमाइश का मान रखने के लिए धन्यवाद। मगर इस अपडेट से शायद भौजी कहीं ना कहीं असहज है तो मैं अब भी यही कहूंगा की ये कहानी आप से ज्यादा उनकी है तो ऐसा कुछ मत लिखो जिससे उनको पढ़ने और उसके बाद अपनी प्रतिक्रिया देने में असहजता हो। इसलिए उनकी सहमति के बिना मत लिखिए बस इतनी सी गुजराइश है
 

Sangeeta Maurya

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सबसे पहले धन्यवाद एक अदना से पाठक को अपना दोस्त बनाने के लिए। किस्मत में रहा और समय ने साथ दिया तो एक बार जरूर आप लोगो से मिलना चाहूंगा। मेरी फरमाइश का मान रखने के लिए धन्यवाद। मगर इस अपडेट से शायद भौजी कहीं ना कहीं असहज है तो मैं अब भी यही कहूंगा की ये कहानी आप से ज्यादा उनकी है तो ऐसा कुछ मत लिखो जिससे उनको पढ़ने और उसके बाद अपनी प्रतिक्रिया देने में असहजता हो। इसलिए उनकी सहमति के बिना मत लिखिए बस इतनी सी गुजराइश है
हम अपनी सहमति देते हैं :angel3: सिर्फ आपके लेखक जी ही यारों के यार नहीं......................हम भी यारों के यार हैं :cool3: ..................लेकिन जब आप मिलोगे तो आपको मुझे मैसूर पाक खिलाना होगा.....................एक वही चीज़ है जो मैंने नहीं खाई 😋
 

Lib am

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हम अपनी सहमति देते हैं :angel3: सिर्फ आपके लेखक जी ही यारों के यार नहीं......................हम भी यारों के यार हैं :cool3: ..................लेकिन जब आप मिलोगे तो आपको मुझे मैसूर पाक खिलाना होगा.....................एक वही चीज़ है जो मैंने नहीं खाई 😋
पक्का एक दम पक्का
 

Rockstar_Rocky

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इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 (1)



अब तक अपने पढ़ा:


मैंने कहानी पूर्ण होने की घोषणा की तो सभी ने तालियाँ बजा कर मेरा अभिवादन किया|


अब आगे:


कहानी
सुनाते-सुनाते रात के 12 बज गए थे और अब आ रही थी सबको नींद| भाभी जी, संगीता और दोनों बच्चे उसी कमरे में सो गए थे| मैं, स्तुति और भाईसाहब अपने कमरे में आ कर सो गए तथा दोनों चाचा-भतीजा अपने कमरे में सो गए|

अगली सुबह तीनों बच्चों को छोड़कर सब उठ चुके थे| सभी माँ और सासु माँ वाले कमरे में बैठे बातें कर रहे थे जब भाभी जी ने मेरी कल रात सुनाई हुई कहानी की तारीफ करनी शुरू कर दी| माँ और मेरी सासु माँ को जिज्ञासा हुई की मैंने कौन सी कहानी सुनाई थी तो भाभी जी ने चौधरी बनते हुए कल रात वाली मेरी कहानी सभी को पुनः सुना दी| भाभी जी के मुख से मेरी कहानी सुन कर माँ और सासु माँ को बहुत हँसी आई तथा दोनों माओं ने मेरे सर पर हाथ रख मुझे आशीर्वाद दिया|



आज शाम को हम सभी ने वापस चलाए जाना था इसलिए हम सभी तैयार हो कर फिर से घूमने निकल पड़े| सबसे पहले हमने माँ मनसा देवी की यात्रा करनी थी और इस यात्रा को ले कर मैं कुछ ज्यादा ही उत्साहित था| मेरे उत्साहित होने का कारण था रोपवे (ropeway) अर्थात उड़नखटोले की सैर! उड़नखटोले की टिकट ले कर हम सभी लाइन में खड़े थे, सासु माँ, संगीता, भाभी जी, अनिल, विराट, आयुष, नेहा और स्तुति सभी उड़नखटोले को ऊपर-नीचे आते-जाते देख अस्चर्य से भरे हुए थे| माँ चूँकि उड़नखटोले पर एक बार पहले भी बैठ चुकीं थीं इसलिए वो अपना अनुभव मेरी सासु माँ, भाभी जी, अनिल और संगीता को बता रहीं थीं| वहीं विराट, आयुष और नेहा की अपनी अलग बातें चला रहीं थीं की आखिर ये उड़नखटोला चलता कैसे होगा?! मैं, और भाईसाहब खामोश खड़े थे क्योंकि हम दोनों ही अपने-अपने जीवन में ये यात्रा पहले कर चुके थे| जब उड़नखटोले में बैठने का हमारा नंबर आया तो मैंने चौधरी बनते हुए सबसे पहले माँ, भाभी जी, संगीता और सासु माँ को एक साथ पहले बैठने को कहा| अब संगीता का मन मेरे साथ उड़नखटोले में बैठने को था मगर उड़नखटोले में एक बार में केवल 4 ही लोग बैठ सकते थे, ऊपर से संगीता के मेरे साथ होने से दोनों बच्चे ठीक से मस्ती नहीं कर पाते इसलिए मैंने संगीता को जानबूझ कर माँ के साथ भेज दिया, मेरे इस फैसले के लिए संगीता ने अपनी आँखों से बहुतु कोसा और उल्हना दिया, इधर मैं भी मुस्कुरा कर संगीता के जले पर नमक छीडकता रहा!

संगीता वाला उड़नखटोला अपनी मंज़िल की ओर चल पड़ा था और उसकी जगह दूसरा उड़नखटोला आ खड़ा हुआ था| "भाईसाहब, मैं ओर बच्चे इसमें चले जाएँ?!" मेरे भीतर का बच्चा उत्साह में बाहर आते हुए बोला| मेरा उत्साह देख भाईसाहब मुस्कुराये और बच्चों से बोले; "बेटा उड़नखटोले में बैठने के बाद कोई मस्ती नहीं करना!" नेहा ने लाइन में खड़े हुए दिवार पर लिखी सारी सावधानियाँ पहले ही पढ़ ली थीं इसलिए वो सबकी जिम्मेदारी लेते हुए बोली; "बड़े मामा जी, मैंने दिवार पर लिखी सारी सावधानियाँ पढ़ ली हैं इसलिए आप ज़रा भी चिंता मत करो|" नेहा को जिम्मेदारी उठाते देख भाईसाहब ने उसे आशीर्वाद दिया तथा मुझे आँखों के इशारे से सब बच्चों का ध्यान रखने को बोले|

सबसे पहले उड़नखटोले में आयुष बैठा क्योंकि उसे बैठने का कुछ अधिक ही उत्साह था, उसके बाद विराट उसकी बगल में बैठ गया| फिर घुसी नेहा और उसके बगल में मैं तथा मेरी गोदी में स्तुति आराम से बैठ गए| जब हमारा उड़नखटोला चला तो जो मनमोहक कुदरती नज़ारा हमें दिखा उसे देख कर हम सभी बहुत खुश हुए| स्तुति ने जब उड़नखटोले से बाहर का दृश्य देखा तो वो इतना खुश हुई की क्या कहूँ?! आयुष, नेहा और विराट से ज्यादा स्तुति ख़ुशी से किलकारियाँ मार रही थी! वहीं आयुष और नेहा भी पीछे नहीं थे, दोनों मेरा ध्यान नीचे पेड़-पौधों या अन्य उड़नखटोलों की तरफ खींच रहे थे| एक अकेला पिता और उसके तीनों बच्चे अपने पिता का ध्यान अपनी तरफ खींचने में लगे थे...कितना मनमोहक दृश्य था!

विराट कहीं अकेला महसूस न करे इसलिए मैं उससे एक दोस्त बनकर बात कर रहा था| आखिर हम पहाड़ी पर बने मंदिर पहुँचे और उड़नखटोले से उतर कर बाहर आये जहाँ सारी महिलाएँ खड़ीं थीं| मुझे देख संगीता की नाक पर प्यारभरा गुस्सा आ बैठा था की आखिर क्यों मैं उसके साथ उड़नखटोले में न बैठकर बच्चों के साथ बैठकर ऊपर आया?! खैर, जब भाईसाहब और अनिल ऊपर आये तब हम सभी ने श्रद्धा पूर्वक मनसा माता जी के दर्शन किये तथा नीचे जाने के लिए फिर से उड़नखटोले के पास लाइन में खड़े हो गए| इस बार संगीता ने अपनी चपलता दिखाई और स्तुति को लाड करने के बहाने से मेरी गोद से ले लिया| संगीता जानती थी की मैं स्तुति के बिना नहीं रह पाउँगा इसलिए मुझे संगीता के साथ ही उड़नखटोले से नीचे जाना पड़ेगा| अपनी बनाई योजना को और पुख्ता करने के लिए उसने दोनों बच्चों को इशारे से अपने पास बुला लिया तथा नेहा को इशारा कर मेरे साथ खड़ा रहने को कहा| जैसे ही हमारा नंबर आया, उड़नखटोले में पहले सासु माँ बैठीं, फिर माँ बैठीं, फिर भाभी जी बैठीं और तभी संगीता ने विराट की पीठ थपथपाते हुए कहा; "बैठो बेटा|" अपनी बुआ की बात मानते हुए विराट जा कर अपनी मम्मी की बगल में बैठ गया तथा उड़नखटोला नीचे की ओर चल पड़ा| अगली बारी हमारी थी, जैसे ही उड़नखटोले का दरवाजा खुला, संगीता दोनों बच्चों से बोली; "चलो-चलो बेटा, जल्दी से बैठ जाओ!" संगीता ने ऐसे जल्दी मचाई की मानो ये नीचे जाने वाला आखरी उड़नखटोला हो! इधर मैं, अनिल और भाईसाहब, संगीता का ये बचपना देख कर मुस्कुरा दिए तथा हमें मुस्कुराता हुआ देख संगीता ने लजाते हुए अपना चेहरा घुमा लिया|

खैर, हम दोनों मियाँ-बीवी खटोले में बैठे और हमारा ये उड़नखटोला नीचे की ओर चल पड़ा| नीचे जाते समय संगीता को डर लगा इसलिए स्तुति को मेरी गोदी में दे कर वो मुझसे लिपट गई| "जब हम ऊपर आ रहे थे, तब भी मुझे डर लगा था लेकिन मेरा डर भगाने वाला कोई नहीं था| आपको सच्ची मेरा ख्याल नहीं आता न, आपकी एक पत्नी है जिसे उड़नखटोले में अकेले कितना डर लगता होगा?" संगीता खुसफुसा कर मुझसे शिकायत करते हुए बोली| “सॉरी जान!" मैंने अपना एक कान पकड़ते हुए कहा, जिसके जवाब में संगीता मुस्कुराने लगी|



उड़नखटोले में हम धीरे-धीरे नीचे आ रहे थे और उधर मेरे तीनों बच्चों ने ख़ुशी से शोर मचाना शरू कर दिया था| जहाँ एक तरफ स्तुति कुछ बोलने की कोशिश में किलकारियाँ मार रही थी, वहीं आयुष और नेहा मिलकर "आई लव यू पापा जी" चिल्ला रहे थे| बच्चों के शोर की आड़ में संगीता ने भी मेरे कान में खुसफुसाते हुए "आई लव यू जानू" कहा| इस मनमोहक मौके का लाभ उठाते हुए मैंने भी खुसफुसा कर "आई लव यू टू जान" कहते हुए संगीता के मस्तक को चूम लिया|

बहरहाल हम सब नीचे आ चुके थे, पहले तो हमने खाना खाया और फिर घाट पर बैठ कर आराम किया| दोनों बच्चों को पानी में करनी थी मस्ती इसलिए हम चारों (मैं, नेहा, आयुष और स्तुति बिलकुल आखरी वाली सीढ़ी पर पानी में पैर डालकर बैठ गए| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ठंडे-ठंडे पानी में कुछ ही देर पैर रख पाए फिर हम आलथी-पालथी मार कर बैठ गए| गँगा मैय्या के जल को देख कर स्तुति का मन पानी में जाने का था, इसलिए मैंने थोड़ा सा पानी चुल्लू में लिया और स्तुति के पॉंव पर छिड़क दिया जिससे मेरी बिटिया को बहुत आनंद आया और उसने ख़ुशी से कहकहे लगाना शुरू कर दिया|

इतने में पानी में हमें कुछ मछलियाँ दिखीं, एक-आध तो हमारे पॉंव के पास भी आ गई| मछली देख कर तीनों बच्चे बहुत खुश हुए, आयुष ने मुझसे मछली पकड़ने को कहा तो स्तुति ने खुद ही मछली पकड़ने को अपने हाथ पानी की ओर बढा दिए! "बेटा, आप अपनी नर्सरी की पोएम (poem) भूल गए?! अगर मैंने मछली पकड़ पानी से बाहर निकाली तो वो बेचारी मर जाएगी!" मैंने आयुष को समझाते हुए कहा| मेरी बात सुन आयुष को मछली जल की रानी है पोएम याद आ गई और वो मेरी बात समझ गया|; "नहीं पापा जी, आप मछली को मत पकड़ो| हम ऐसे ही मछलियाँ देखते हैं!" आयुष की बात सुन मैंने उसके सर को चूम उसे तथा नेहा को अपने से सटा कर बिठा लिया|



शाम हो रही थी और अब सब को होटल छोड़ना था इसलिए हम सब अपना समान ले कर रेलवे स्टेशन पहुँच गए| सासु माँ की गाँव जाने वाली ट्रैन हमसे पहले आई थी इसलिए हम सब ने पहले सासु माँ, भाभी जी, अनिल, विराट और भाईसाहब को विदा किया| सभी ने स्तुति को गोदी में ले कर लाड किया और उसके छोटे-छोटे हाथों में पैसे थमाए| स्तुति ने इस बार कोई नखरा नहीं किया और सभी का प्रेम तथा आशीर्वाद लिया| फिर बारी आई बच्चों की, उन्हें भी अपने मामा-मामी, नानी और भैया का प्यार, आशीर्वाद तथा पैसे मिले| इधर विराट और मैं किसी दोस्त की तरह गले मिले और मैंने उसकी जेब में कुछ पैसे रख उसे खामोश रहने का इशारा कर दिया| माँ और संगीता ने भी विराट को आशीर्वाद तथा उसकी जेब में चुप-चाप पैसे रख दिए| अंत में मैं भाईसाहब से गले मिला और सभी को मैंने ट्रैन में बिठा दिया| कुछ देर बाद हमारी ट्रैन आ गई, सामान रख हम सभी अपनी-अपनी जगह बैठ गए| आज दिन भर की मस्ती से तीनों बच्चे थके हुए थे इसलिए तीनों मेरे साथ बैठे हुए सो गए| उधर सास-पतुआ भी सो गए थे, एक बस मैं था जो जागते हुए अपने सामान और परिवार की पहरेदारी कर रहा था| घर आते-आते 11 बज गए थे और सबको लग आई थी भूख, इतनी रात गए क्या खाना बनता इसलिए संगीता ने सभी के लिए मैगी बनाई| सभी ने बैठ कर मैगी खाई और कपड़े बदल कर सो गए|



कुछ दिन बीते और दोनों बच्चों के रिजल्ट आने का दिन आ गया| जब मैं स्कूल में पढता था तभी से रिजल्ट से एक दिन पहले मेरी बहुत बुरी फटती थी! मुझे कभी अपनी की गई मेहनत पर विश्वास नहीं होता था, हर बार यही डर लगा रहता था की मैं जर्रूर फ़ैल हो जाऊँगा और पिताजी से मार खाऊँगा! अपने इसी डर के कारण एक दिन पहले सुबह से ही मैं भगवान जी के आगे अपने पास होने की अर्ज़ी लगा देता था| जबकि मेरे दोनों बच्चे एक दिन पहले से ही ख़ुशी से चहक रहे थे, उन्हें अपनी की गई मेहनत पर पूर्ण विश्वास था की वे अवश्य अच्छे नम्बरों से पास हो जायेंगे|

अगले दिन पूरा परिवार तैयार हो कर बच्चों का रिजल्ट लेने स्कूल पहुँचा| सबसे पहले सम्मान समारोह हुआ जिसमें सभी अव्वल आये बच्चों को ट्रोफियाँ दी गईं, सबसे पहले आयुष का नाम पुकारा गया और आयुष ख़ुशी-ख़ुशी स्टेज की तरफ दौड़ा| इधर पीछे खड़े हो कर स्तुति को कुछ नज़र नहीं आ रहा था इसलिए मैं स्तुति को ले कर सबसे आगे आ गया, जब आयुष को प्रिंसिपल मैडम ने ट्रॉफी दी तो मैंने आयुष की तरफ इशारा करते हुए स्तुति से कहा; "देखो बेटा, आपके बड़े भैया को क्लास में फर्स्ट आने पर ट्रॉफी मिल रही है|" स्तुति को क्या पता की ट्रॉफी क्या होती है, वो तो अपने बड़े भैया को देख कर ही खुश हो गई थी तथा खिलखिला कर हँसने लगी| प्रिंसिपल मैडम से अपनी ट्रॉफी ले कर आयुष दौड़ता हुआ मेरे पास आया और अपनी ट्रॉफी स्तुति को देते हुए बोला; "ये मेरी ट्रॉफी आप सँभालो, मैं बाद में आप से ले लूँगा|" स्तुति अपने बड़े भैया की ट्रॉफी पा कर बहुत खुश हुई और फ़ट से आयुष की ट्रॉफी अपने मुँह में लेनी चाहिए की तभी आयुष एकदम से स्तुति को रोकते हुए बोला; "नहीं-नहीं! ये ट्रॉफी है टॉफी नहीं, इसे खाते नहीं हैं!" अब जिस ट्रॉफी को आप खा नहीं सकते वो स्तुति के किस काम की? शायद यही सोचते हुए स्तुति ने अपने बड़े भैया की ट्रॉफी मुझे दे दी|

उधर स्टेज पर प्रिंसिपल मैडम ने नेहा का नाम पुकारा और नेहा आत्मविश्वास से भर कर स्टेज पर पहुँची| प्रिंसिपल मैडम के पॉंव छू कर अपनी ट्रॉफी ली तथा दौड़ती हुई मेरे पास आई| "मेरा प्यारा बच्चा! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू!" मैंने नीचे झुक कर नेहा को अपनी बाहों में कसते हुए कहा| नेहा को भी आज खुद पर बहुत गर्व हो रहा था की उसने मेरा नाम ऊँचा किया है| वहीं स्तुति को भी अपनी दीदी को बधाई देनी थी इसलिए उसने अपनी बोली-भासा में कुछ कहा जिसका मतलब नेहा ने ये निकाला की स्तुति उसे बधाई दे रही है; "थैंक यू स्तुति!" नेहा ने स्तुति के हाथ को चूमते हुए कहा तथा अपनी लाइन में पुनः जा कर खड़ी हो गई|



बच्चों का सम्मान समारोह पूर्ण हुआ और हम सभी ने दोनों बच्चों की रिपोर्ट कार्ड दोनों बच्चों की क्लास में जा कर ली| अपने बड़े भैया और दीदी की क्लास देख कर स्तुति को बहुत मज़ा आया| यही नहीं जब आयुष और नेहा ने स्तुति को बताया की वो कहाँ बैठते हैं तो मैंने स्तुति को उसी जगह बिठा कर एक फोटो भी खींच ली| अपने बड़े भैया और दीदी की जगह बैठ कर स्तुति को बड़ा आनंद आया और अपने इस आनंद का ब्यान स्तुति ने किलकारी मार कर किया|

अब चूँकि स्तुति स्कूल में पहलीबार आई थी तो उसे स्कूल-दर्शन कराना जर्रूरी था| मैं स्तुति को गोदी में लिए अकेला चल पड़ा और पूरा स्कूल घुमा लाया| मेरा ये बचपना देख माँ बोलीं; "अरे पहले शूगी को बड़ी तो हो जाने दे, अभी से क्यों उसे स्कूल घुमा रहा है?!"

"अभी से इसलिए घुमा रहा हूँ ताकि अपने स्कूल के पहले दिन स्तुति रोये न|" मैंने स्तुति के गाल चूमते हुए कहा| मेरा ये बचपना देख सभी को हँसी आ गई|

हम सभी का अगला पड़ाव मंदिर और फिर बाहर कहीं खाने-पीने का था, हम स्कूल से बाहर की ओर निकले रहे थे की तभी हमें आयुष की गर्लफ्रेंड और उसकी मम्मी मिल गए| अपनी होने वाली नन्द (नंद) यानी स्तुति को देख आयुष की गर्लफ्रेंड ने स्तुति को गोदी लेना चाहा, परंतु स्तुति अपनी होने वाली भाभी से मुँह फेर कर मुझ से लिपट गई| तब एक अच्छे भाई और होने वाले पति के नाते आयुष आगे आया तथा स्तुति से अपनी होने वाले पत्नी का तार्रुफ़ कराया; "स्तुति...ये मेरी बेस्ट फ्रेंड है| आप इनकी गोदी में चले जाओ न?!" आयुष ने इतने प्यार से स्तुति से कहा की मेरी छोटी सी बिटिया का दिल पिघल गया और वो अपनी होने वाली भाभी की गोदी में चली गई| अपनी छोटी सी प्यारी सी होने वाली नन्द को गोदी में ले कर मेरी होने वाले बहु ने दुलार करना शुरू किया ही था की स्तुति मेरी गोदी में वापस आने के लिए छटपटाने लगी| अपनी होने वाली भाभी जी की गोदी में जा कर स्तुति ने अपने बड़े भैया की अर्जी का मान किया था परन्तु अब स्तुति को अपने पापा जी की गोदी में वापस आना था| मेरी होने वाली बहु ने अपनी होने वाली नन्द की एक पप्पी ली और फिर मेरी गोदी में दे दिया|



बहरहाल हम सब मंदिर में प्रर्थना कर घर खा-पी कर घर लौटे| भाईसाहब, भाभी जी, मेरी सासु माँ, अनिल और विराट ने बच्चों को फ़ोन कर उनके पास होने पर बधाई दी| फिर वो दिन आया जब बच्चों की नई किताबें और कपड़े आने थे| अपने बड़े भैया और दीदी की नई किताबें और कपड़े देख कर सबसे ज्यादा स्तुति खुश हुई, स्तुति की ये ख़ुशी हम सभी की समझ से परे थी| स्तुति बार-बार अपने दोनों हाथ किताबों को पकड़ने के लिए बढ़ा रही थी| अब आयुष और नेहा को अपनी नई किताबों की चिंता थी क्योंकि उन्हें लग रहा था की अगर किताबें स्तुति के हाथ आईं तो स्तुति उन किताबों को फाड़ देगी इसलिए वो किताबें स्तुति की नजरों से छुपाने में लगे थे| माँ दोनों बच्चों की चिंता समझ रहीं थीं इसलिए उन्होंने मुझे आदेश देते हुए कहा; "इस शैतान की नानी को छत पर घुमा ला, तबतक हम किताबें और कपड़े यहाँ से हटा देते हैं वरना ये शैतान की नानी आज सब किताबें फाड़ देगी!" मैं स्तुति को छत पर टहलाने ले आया और बच्चों ने अपनी किताबें-कापियाँ और कपड़े अपने कमरे में रख दिए| जब स्तुति सो गई तब मैंने और दोनों बच्चों ने मिलकर किताबों-कापियों पर कवर चढ़ाये| साथ ही नेहा ने अपनी एक पुरानी रफ कॉपी मुझे दी और बोली; "पापा जी, ये कॉपी आप शैतान स्तुति को देना ताकि वो इसे जी भर कर नोच-खाये!" आगे चलकर नेहा की इस रफ कॉपी को स्तुति ने चैन से नहीं रहने दिया| कभी वो कॉपी खोल कर उसमें लिखे शब्द समझने की कोशिश करती, कभी अपने मन-पसंद कॉपी के पन्ने को पप्पी दे कर गीला कर देती तो कभी गुस्से में आ कर कॉपी के पन्ने को अपनी छोटी सी मुठ्ठी में भरकर फाड़ देती!



दिन बीत रहे थे और अब मेरी बिटिया रानी को कुछ-कुछ अन्न खिलाना शुरू करने का मौका आ गया था| इसके लिए सबसे पहले मैंने मंदिर में पहले पूजा कराई, पूजा के बाद हमें भगवान जी के चरणों को स्पर्श करा कर प्रसाद दिया गया, उस प्रसाद में केला भी शामिल था| घर आ कर स्तुति को मैंने सोफे पर पीठ टिका कर बिठाया तथा मैं स्तुति के ठीक सामने घुटने टेक कर बैठ गया| जैसे ही मैंने केला छीलना शुरू किया, स्तुति ने फ़ट से केले को पकड़ना चाहा| "अरे अभी नहीं स्तुति! पहले पापा जी को केला छीलने तो दो, फिर खाना|" नेहा ने स्तुति को समझाया| इधर मुझे डर था की कहीं केले का बड़ा कौर खाने से स्तुति को कोई तकलीफ न हो इसलिए मैंने केला छील लिया और चींटी के आकार का केले का टुकड़ा स्तुति को खिलाया| केले का पहला कौर खा स्तुति को मीठा-मीठा स्वाद आया और उसने अगला टुकड़ा खाने के लिए अपना मुख पुनः खोल दिया| अगला कौर माँ ने खिलाया तथा स्तुति के सर को चूम आशीर्वाद दिया| फिर बारी आई संगीता की और उसने भी स्तुति को छोटा सा कौर खिला कर लाड किया| आयुष और नेहा की बारी आई तो दोनों बहुत उत्साहित हुए| बारी-बारी कर दोनों बच्चों ने स्तुति को केले का एक-एक कौर खिलाया और स्तुति की पप्पी ले कर कूदने लगे|

ऐसा नहीं था की केवल हम सब ही स्तुति को कुछ खिला कर खुश हो रहे थे, स्तुति भी हमारे हाथों केला खा कर बहुत खुश थी और अपने मसूड़े दिखा कर हँस रही थी| उस दिन से स्तुति ने अपनी मम्मी के दूध के अलावा थोड़ा-थोड़ा खाना शुरू किया| स्तुति को स्वादिष्ट खाना खिलाने के लिए मैं तरह-तरह के फल लाता था, सेरेलैक के नए-नए स्वाद भरे डिब्बे लता था| मेरा बचपना इतना बढ़ गया था की मैं स्तुति को आराम से बिठा कर खिला सकूँ इसके लिए मैं फिल्मों में दिखाई जाने वाली बच्चों की कुर्सी ले आया| जब मैं स्तुति को उस कुर्सी पर बिठा कर सेरेलैक खिला रहा था तब माँ हँसते हुए संगीता से बोलीं; "लो भई बहु, अब तो हमारी शूगी बहुत बड़ी हो गई...देखो शूगी कुर्सी पर बैठ कर खाना खाने लगी है!" माँ की कही बात पर हम सभी ने ज़ोर का ठहाका लगाया|

उधर कुर्सी पर बैठ कर स्तुति को खाने में मज़ा आता था क्योंकि अब उसके दोनों हाथ खाली होते थे और वो कभी चम्मच तो कभी सेरेलैक वाली कटोरी को पकड़ने की कोशिश करती रहती| मैं स्तुति का मन भटकाने के लिए कोई स्वचालित खिलौना उसके सामने रख देता जिससे स्तुति खुश हो कर हँसने लगती, स्तुति का ध्यान खिलोने की तरफ होने से मेरा सारा ध्यान स्तुति को खाना खिलाने में लग जाता| सेरेलैक के नए-नए फ्लावर्स से स्तुति को खाने में बहुत मज़ा आता था और वो खाने में कोई नखरा नहीं करती थी| कभी-कभी मैं फलों को मींज कर भी स्तुति को खिलाता जो की स्तुति को बहुत पसंद था|

और एक मज़े की बात थी वो था स्तुति का खाना खाते समय पूरा चेहरा सन जाना| कई बार स्तुति अपने होठों पर लगी हुई कोई चीज अनजाने में अपने हाथों से अपने पूरे चेहरे पर फैला देती| ये दृश्य देख इतना मनमोहक होता था की मेरी रूह प्रसन्न हो जाती तथा मुझे हँसी आ जाती और मुझे हँसता हुआ देख स्तुति भी हँसने लगती!



इधर नेहा और आयुष भी थोड़े-थोड़े शरारती होते जा रहे थे| मेरी अनुपस्थति में स्कूल से आ कर आयुष सीधा खेलने लग जाता और नेहा अपनी दादी जी का फ़ोन ले कर अपनी सहेली से गप्पें लड़ाने लग जाती| संगीता को दोनों को बार-बार खाने के लिए कहना पड़ता तब जा कर कहीं दोनों भाई-बहन के कानों पर जूँ रेंगती! अपनी इस मौज-मस्ती के अलावा दोनों भाई-बहन ने अपने मन-पसंद खाना न बनने पर मैगी, चाऊमीन या पिज़्ज़ा खाने की रट लगानी शुरू कर दी| एक-आध बार तो माँ बच्चों की जिद्द मान लेती थीं मगर जब ये जिद्द हर हफ्ते होने लगी तो माँ ने भी बच्चों को समझाते हुए मना करना शुरू कर दिया| जब बच्चों की मम्मी और दादी जी ने बाहर से खाना मँगवाने के लिए मना किया तो बच्चों ने मेरा मुँह ताकना शुरू कर दिया| मैं बच्चों के मन पसंद खाना न बनने पर बहार से खाने की इच्छा को जानता था क्योंकि मैंने भी अपने बचपने में ऐसी जिद्द की थीं, वो बात अलग है की मेरी ये जिद्द देख पिताजी हमेशा मुझे झिड़क दिया करते थे ये कह कर की; "ऐसा खाना लोगों को नसीब नहीं होता और तेरे नखड़े हैं!" पिताजी के डर से मैं चुप-चाप करेला, काली दाल, परमाल, सीताफल, अरबी आदि जो की मुझे नपसंद थी, खा लिया करता था| यही कारण था की मैं बच्चों की मनोस्थिति देख कर उनसे हमदर्दी रखते हुए पिघलने लगता था| लेकिन इससे पहले की मैं बाहर से खाना मँगाने के लिए हाँ कहूँ, माँ और संगीता मुझे आँखें बड़ी कर के देखने लगते! अगर मेरे मुँह से बच्चों के लिए हाँ निकल जाती तो दोनों सास-पतुआ रासन-पानी ले कर मेरे ऊपर चढ़ जाते, फिर तो बाहर का खाना छोड़ो मुझे घर का खाना भी नसीब नहीं होता! संगीता और माँ के गुस्से के अलावा, मेरे बच्चों के पक्ष न लेने पर बच्चे भी मुझसे नाराज़ हो सकते थे!

मुझे कैसे भी कर के माँ की डाँट और बच्चों के गुस्से से बचना था और इसका एक ही रास्ता था, वो ये की खुद को दोनों बच्चों की आँखों में निसहाय दिखाया जाए! "ऐसा करते हैं की वोटिंग कर लेते हैं!" वोटिंग से कोई हल निकलना था नहीं, होना वही था जो माँ और संगीता चाहते परन्तु इस रास्ते से बच्चों के सामने मेरी माँ के खिलाफ न जाने की विवशता साफ़ सामने आ जाती| उधर मेरा ये बचकाना ख्याल सुन माँ नाराज़ हो गईं मगर वो मुझे डांटें उससे पहले संगीता ने माँ को रोक दिया और इशारों ही इशारों में माँ से कुछ कहा जिसे मैं या बच्चे समझ नहीं पाए|

"तो जिस-जिस को चाऊमीन या पिज़्ज़ा खाना है वो हाथ उठाये|" मैंने चुनाव प्रक्रिया को शुरू करते हुए कहा| आयुष और नेहा ने बड़े जोश से अपना हाथ उठाया, अब दोनों बच्चों की नज़र मेरे ऊपर ठहरी थी की मैं भी उनका साथ देते हुए हाथ उठाऊँ! वहीं माँ और संगीता मुझे घूर कर देखने लगे ताकि मैं अपना हाथ न उठाऊँ! खुद को बचाने के लिए मैंने दोनों बच्चों को आँखों के इशारे से उनकी मम्मी और दादी जी को देखने को कहा ताकि वो ये समझ जाएँ की मैंने हाथ क्यों नहीं उठाया है| दोनों बच्चों ने जब अपनी मम्मी और दादी जी को मुझे घूरते हुए देखा तो दोनों बेचारे सहम गए! इतने में संगीता बोली; "जो चाहते हैं की आज हम घर में बना हुआ करेला और उर्द की दाल-रोटी खायें, वो हाथ उठायें|" संगीता के बात पूरी करते ही माँ और संगीता ने अपना हाथ ऊपर उठाया तथा दोनों बच्चों ने अपना विरोध दर्शाते हुए हाथ नीचे कर लिया|

अब स्थिति ये थी की बाहर से खाने वाले और घर का खाना खाने वालों के वोट बराबर-बराबर थे तथा मेरा वोट ही निर्णायक वोट था| बच्चे चाहते थे की मेरा वोट उनक पक्ष में पड़े ताकि वो जीत जाएँ और बाहर से खाना आये, वहीं माँ चाहतीं थीं की मैं उनके पक्ष में वोट डालूँ ताकि घर में बना हुआ खाना खाया जाए! मेरे द्वारा निकाला हुआ ये रास्ता मेरे ही गले की फाँस बन गया था! बच्चों के गुस्से के आगे, माँ के डर का पलड़ा भरी था इसलिए मैंने बेमन से अपना हाथ उठाया| मेरे हाथ उठाते ही चुनाव का फैसला माँ और संगीता के हक़ में हो गया तथा संगीता ने बच्चों की तरह ताली बजाते हुए अपनी जीत की ख़ुशी मनाई| तब मुझे समझ आया की ये सब संगीता की चाल थी, उसने जानबूझ कर ये एक तरफा चुनाव होने दिए थे क्योंकि वो जानती थी की माँ के डर के आगे मैं उसके खिलाफ जा ही नहीं सकता|

वहीं बच्चे बेचारे अपनी ही मम्मी द्वारा ठगे गए थे इसलिए दोनों मायूस हो कर मुझसे लिपट गए| "कोई बात नहीं बेटा, आज नहीं तो फिर कभी बाहर से खा लेना|" मैंने बच्चों के सर चूमते हुए कहा| बच्चों को खाना स्वाद लगे इसके लिए मैंने टमाटर भूनकर एक चटपटी सी चटनी बनाई तथा अपने हाथों से बच्चों को ये खाना खिलाया|



उस दिन से जब भी बच्चे बहार से खाने की माँग करते तो संगीता चौधरी बनते हुए वोटिंग की माँग रख देती तथा बच्चे इस एक तरफा खेल में सदा हार जाते! स्कूल में अपनी सोशल स्टडीज की किताब में नेहा ने वोटिंग के बारे में काफी पढ़ रखा था, वो समझ गई की अगर उसे अपने पसंद का खाना मँगवाना है तो उसे राजनीति के इस खेल में अपनी मम्मी को हराना होगा| नेहा तो चुनाव का ये खेल समझ गई थी लेकिन आयुष कुछ नहीं समझा था इसलिए नेहा उसे समझाते हुए बोली; "जिस टीम में ज्यादा लोग होंगें, वो ही टीम जीतेगी|" नेहा ने उदाहरण दे कर आयुष को समझाया तब जा के आयुष को अपनी मम्मी का ये चुनावी खेल समझ आया| बहरहाल, चुनाव जीतने के लिए नेहा को बहुमत चाहिए था इसलिए अपना बहुमत बनाने के लिए नेहा और आयुष मिलकर सोचने लगे;

  • बच्चे जानते थे की उनकी दादी जी के डर के चलते मैं कभी भी बच्चों के पक्ष में वोट नहीं डालूँगा इसलिए मेरा वोट तो बच्चों को को कभी नहीं मिलता!
  • आयुष ने अपना सुझाव रखा की क्यों न किसी बाहर के व्यक्ति, जैसे दिषु चाचा या नेहा-आयुष के दोस्तों से उनके पक्ष में वोट डालने को कहा जाए, लेकिन बाहर से किसी व्यक्ति को वोट डालने के लिए बुलाने पर संगीता मतदान करने वाले व्यक्ति के दूसरे राज्य (अर्थात घर) के होने का बहाना कर के वोट खारिज करवा देती!
  • नेहा ने पेशकश की कि बाहर के व्यक्ति न सही, परिवार के सदस्यों से तो वो अपने पक्ष में वोट डलवा ही सकती है, जैसे बड़े मामा जी, छोटे मामा जी, विराट भैया, बड़ी मामी जी और नानी जी| परन्तु आयुष नेहा को याद दिलाते हुए बोला की उसकी मम्मी के डर से न तो बड़े मामा जी और न ही छोटे मामा जी फ़ोन के जरिये अपना वोट बच्चों के पक्ष में डालेंगे| रही बात विराट भैया, बड़ी मामी जी और नानी जी की तो वो कभी संगीता के खिलाफ जा ही नहीं सकते!
इतना सोचने के बाद भी जब नेहा को हार ही मिली तो उसने लगभग हार ही मान ली थी की तभी आयुष बोला; "दीदी, हम स्तुति को अपने साथ मिला लेते हैं न!" आयुष ने तो केवल अपनी दीदी का मन हल्का करने को मज़ाक में कहा था लेकिन नेहा ने आयुष की बात पकड़ ली! स्तुति का नाम याद आते ही नेहा ने जबरदस्त योजना बना ली, ऐसी योजना जिसके आगे उसकी मम्मी की चपलता धरी की धरी रह जाती!



स्कूल से घर आ कर दोनों बच्चों ने अपनी छोटी बहन को गोदी लिया और खेलने के बहाने अपने कमरे में चलने को कहा| शुरू-शुरू में स्तुति जाने से मना कर रही थी लेकिन नेहा ने उसे अपनी नई किताब दिखा कर ललचाया और गोदी में ले कर चल पड़ी| मेरी भोली-भाली बिटिया रानी को उसी के भाई-बहन बुद्धू बना रहे थे! खैर, तीनों बच्चे गए तो संगीता को मेरे साथ रोमांस का चांस मिल गया, माँ तो वैसे ही आराम कर रहीं थीं इसलिए हम दोनों मियाँ-बीवी ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया!

उधर बच्चों के कमरे के भीतर, नेहा ने स्तुति को ट्रेनिंग देनी शुरू की; "स्तुति, आप अच्छे बच्चे हो न?!" नेहा ने स्तुति से अपना सवाल हाँ में सर हिलाते हुए पुछा तो स्तुति ने अपनी दीदी की देखा-देखि हाँ में अपना सर हिलाया| "तो फिर आप अपनी बड़ी दीदी और बड़े भैया का साथ दोगे न?!" नेहा ने फिर हाँ में सर हिलाते हुए स्तुति से पुछा जिसके जवाब में एक बार फिर स्तुति ने अपनी दीदी की देखा-देखि हाँ में सर हिलाया| "आज रात को न हम मम्मी से पिज़्ज़ा खाने के लिए जिद्द करेंगे, तब मम्मी वोटिंग करने को कहेंगी और आपको हमारा साथ देते हुए हाथ उठाना है|" नेहा ने अपना हाथ उठा कर स्तुति को हाथ उठाना सिखाया| स्तुति के पल्ले कुछ नहीं पड़ा था, वो तो बस अपने बड़े भैया और दीदी का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित होने से ही बहुत खुश थी| आयुष और नेहा ने मिलकर करीब एक घंटे तक स्तुति को हाथ उठाना सिखाया और आखिरकार दोनों भाई-बहन की मेहनत सफल हो गई|



रात हुई और संगीता ने खाने में बनाये आलू-परमाल की सब्जी तथा चने की दाल, बस रोटी बननी बाकी थी| तभी नेहा और आयुष अपने हाथ पीछे बाँधे पूरे आतमविह्वास से खड़े हो गए और अपनी मम्मी से बोले; "मम्मी जी, हमारे लिए खाना मत बनाना, हमने आज पिज़्ज़ा खाना है|" नेहा ने बात शुरू करते हुए कहा| नेहा की बात में आत्मविश्वास देख संगीता को अस्चर्य हुआ क्योंकि आज से पहले बच्चे जब भी कुछ खाने की माँग रखते तो उनकी आवाज में नरमी होती थी परन्तु आज ऐसा लगता था मानो बच्चे पिज़्ज़ा नहीं जायदाद में से अपना हक़ माँग रहे हों!

संगीता ने रोटी बनाने के लिए तवा चढ़ाया था परन्तु बच्चों की बात सुन उसने गैस बंद कर दी और सोफे पर माँ की बगल में बैठते हुए पुनः अपनी चाल चलते हुए बोली; "ठीक है, आओ वोटिंग कर लेते हैं!" संगीता को खुद पर जर्रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास था, वो जानती थी की वोटिंग शुरू होते ही बच्चे हार जायेंगे और फिर बच्चों को आलू-परमल खाने ही पड़ेंगे! वो नहीं जानती थी की इस बार उसकी बेटी ने उसकी चाल को नाकाम करने का ब्रह्मास्त्र तैयार कर रखा है|



खैर, जैसे ही संगीता ने वोटिंग की बात कही वैसे ही दोनों बच्चे मेरे अगल-बगल खड़े हो गए| बच्चों का ये आत्मविश्वास देख मैं और माँ हैरान थे क्योंकि हमें लगा था की इस एक तरफा खेल से बच्चे ऊब गए होंगें! "जिसे पिज़्ज़ा खाना है, हाथ ऊपर उठाये!" संगीता ने किसी नेता की तरह आवाज बुलंद करते हुए कहा| अपनी मम्मी की बात सुनते ही आयुष न फ़ट से अपना हाथ ऊपर उठा दिया| वहीं नेहा ने स्तुति की तरफ देखा और उससे नजरें मिलाते हुए अपना हाथ धीरे-धीरे उठाया| स्तुति ने जब अपनी दीदी को हाथ उठाते हुए देखा तो उसने भी जोश में अपना हाथ उठा दिया! स्तुति को हाथ उठाते देख मैं, माँ और संगीता चौंक पड़े! "चुहिया...तेरे तो दाँत भी नहीं निकले, तू पिज़्ज़ा खायेगी!" संगीता प्यारभरा गुस्सा लिए स्तुति से बोली जिस पर स्तुति ने अपने मसूड़े दिखा कर हँसना शुरू कर दिया| इधर मैं और माँ समझ गए की बच्चों ने स्तुति को सब सिखाया-पढ़ाया है इसलिए हम माँ-बेटे मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे|

"पापा जी, आप स्तुति के खिलाफ वोटिंग करोगे?" नेहा ने अपना निचला होंठ फुलाते हुए पुछा| ये नेहा के प्लान का हिस्सा था, वो स्तुति को आगे रखते हुए मेरा वोट अपने पक्ष में चाहती थी! नेहा के पूछे सवाल और स्तुति का जोश से भरा हुआ देख मैं पिघल गया और मैंने अपना हाथ बच्चों के पक्ष में उठा दिया! मेरा हाथ हवा में देख माँ मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं; "ओ लड़के!"

"माँ, जरा मेरी बिटिया रानी को देखो और खुद ही बताओ की क्या आप अपनी पोती के खिलाफ वोट कर सकते हो?!" मैंने स्तुति को गोदी में लिया और माँ को स्तुति का भोला सा चेहरा दिखाते हुए पुछा| स्तुति की किलकारियाँ सुन माँ का दिल भी पिघल गया और वो भी बच्चों की तरफ हो गईं| बेचारी संगीता अकेली पड़ गई थी और उसकी नाक पर मेरे प्रति प्यारभरा गुस्सा आ बैठा था क्योंकि वो मैं ही था जिसने सबसे पहले संगीता की पार्टी छोड़ बच्चों की पार्टी में शामिल हो गया था तथा माँ को भी मैंने ही बच्चों की पार्टी में शामिल करवाया था|

"घर का भेदी, लंका ढाये!" संगीता बुदबुदाते हुए मेरी बगल से निकली| संगीता के इस बुदबुदाने को सुन मुझे हँसी आ गई, मुझे यूँ हँसता हुआ देख माँ ने मेरी हँसी का कारण पुछा तो मैंने बात बनाते हुए कहा की; "वो…बेचारी संगीता हार गई इसलिए मुझे हँसी आ गई!"



संगीता ने गुस्से में आ कर पिज़्ज़ा खाने से मना कर दिया था इसलिए मैंने केवल माँ और बच्चों के लिए पिज़्ज़ा मँगाया तथा मैंने संगीता के साथ आलू-परमल खाये| बच्चों ने संगीता को पिज़्ज़ा खिलाने की कोशिश की मगर संगीता ने गुस्से में पिज़्ज़ा नहीं खाया, मैं पिज़्ज़ा खा लेता मगर इससे संगीता का गुस्सा और धधक जाता!

खाना खा कर मैंने दोनों बच्चों को अपने अगल-बगल बिठाया और उन्हें प्यार से घर का खाना खाने के बारे में समझाया; "बेटा, रोज़-रोज़ बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए वरना आपको बड़ा होने के लिए जो पोषक तत्व चाहिए वो कैसे मिलेंगे?! आप जानते हो आपकी मम्मी कितनी मेहनत से रसोई में खड़ी हो कर खाना बनाती हैं, अच्छा लगता है आप बाहर से खाना मँगवा कर उनकी सारी मेहनत बर्बाद कर दो?! फिर ये भी देखो की यूँ रोज़-रोज़ बाहर से खाना खाने से आपकी सेहत पर कितना बुरा असर पड़ता है! चाऊमीन, पिज़्ज़ा, बर्गर, छोले भठूरे आदि सब मैदे से बनते हैं और इनमें तरह-तरह के तेल आदि पड़ते हैं जो की रोज़ खाये जाएँ तो हमारी सेहत खराब होती है| महीने में एक-आध बार बाहर से खाना मँगवाना, या फिर कोई ख़ास ख़ुशी हो तब ही हमें खाना मँगवाना चाहिए इससे सेहत अच्छी रहती है| बाकी दिनों में आपकी मम्मी इतना स्वाद-स्वाद खाना बनाती हैं हमें वो खाना चाहिए| जो सब्जियाँ आपको नहीं पसंद उन्हें अब से मैं स्वाद बनाऊँगा, जिससे आपको बाहर से खाना मँगाने की जर्रूरत ही न पड़े! ठीक है बच्चों?!" मैंने बच्चों को बड़े प्यार से समझाया तथा दोनों बच्चों ने मेरी बात का मान रखते हुए ख़ुशी से अपना सर हाँ में हिलाया| बच्चों को सुला कर मैं अपने कमरे में आया तो मैंने देखा की संगीता का गुस्सा कुछ ठंड हुआ है, बाकी गुस्सा ठंडा करने के लिए मुझे हम दोनों मियाँ-बीवी के जिस्मों को गर्म करना था!



घर का माहौल फिर से शांत और खुशनुमा हो गया था| जिस दिन घर में वो सब्जियाँ बननी होती जो बच्चों को नपसंद हैं तो एप्रन पहन कर मैं रसोई में घुस जाता और खूब तड़का लगा कर उन सब्जियों को स्वाद बनाता| बच्चों को मेरे हाथ का बना खाना वैसे ही पसंद था इसलिए जब मैं उनकी नपसंद की हुई दाल-सब्जी बना कर उन्हें अपने हाथ से खिलाता तो बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी खा लेते|

इधर अपने बड़े भैया और बड़ी दीदी की देखा-देखि मेरी बिटिया रानी भी शैतान हो गई थी! एक दिन की बात है, दोपहर का खाना खा कर हम सभी माँ के कमरे में बैठे बात कर रहे थे, तीनों बच्चे तो सो गए बचे हम माँ-बेटा और संगीता| गर्मियाँ शुरू हो गईं थीं और मुझे आ रही थी नींद इसलिए मैं अपने कमरे में आ कर केवल पजामा पहने सो गया| शाम को जब स्तुति जागी तो उसने मुझे अपने पास न पाकर कुनमुनाना शुरू कर दिया| स्तुति रो न पड़े इसलिए संगीता उसे गोदी में मेरे पास ले आई और मेरी बगल में लिटा कर खुद खड़ी हो कर कपड़े तहाने लगी| इधर मैं दाईं करवट यानी संगीता की तरफ करवट कर के लेटा था और मेरी बगल में लेटी हुई स्तुति को नजाने क्या मस्ती सूझी की उसने मेरी तरफ करवट ली| चूँकि मैं कमर से ऊपर नग्न अवस्था में था इसलिए स्तुति की नज़र पड़ी मेरे निप्पलों पर! थोड़ा खिसकते हुए स्तुति मेरे नजदीक आई और मेरे दाएँ निप्पल पर अपने गीले-गीले होंठ लगा कर दूध पीने की कोशिश करने लगी!

जैसे ही मुझे मेरे दाएँ निप्पल पर कुछ गीला-गीला महसूस हुआ मेरी आँख खुल गई! स्तुति को अपने निप्पल पर मुँह लगा कर दूध पीता हुआ देख मैंने फौरन स्तुति को पकड़ कर खुद से दूर किया और हँसते हुए बोला; "नहीं-नहीं बेटा! मुझे दूधधु नहीं आता, आपकी मम्मी जी को आता है!" मुझे मुस्कुराता हुआ देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो खिलखिलाकर हँसने लगी! उधर मेरी बात सुन संगीता को समझ आया की स्तुति मेरा दूध पीने की कोशिश कर रही थी इसलिए संगीता अपना पेट पकड़ कर हँसने लगी और स्तुति की होंसला अफ़ज़ाई करते हुए बोली; "शाबाश बेटा! पापा जी का ही दूधधु पियो!" अपनी मम्मी की बात सुन स्तुति अपने दोनों हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिए मानो वो मेरे दोनों निप्पल पकड़ कर दूध पीना चाहती हो! "मेरा शैतान बच्चा!" ये कहते हुए मैंने संगीता से कहा की वो स्तुति को दूध पिला दे मगर स्तुति को दूध पीना ही नहीं था, वो तो बस मेरे साथ मस्ती कर रही थी!



अभी तक तो मेरी बिटिया रानी हम सबकी गोदी में बैठ कर राज करती थी, लेकिन जैसे ही स्तुति ने अपने दोनों हाथों-पैरों पर धीरे-धीरे रेंगना शुरू किया, हम सभी के लिए आफत आ गई! सबसे पहले तो मैंने दिवार में जितने भी बिजली के स्विच-सॉकेट नीचे की ओर लगे थे उन्हें मैंने उ बंद करवाया ताकि कहीं अनजाने में स्तुति सॉकेट में अपनी ऊँगली न डाल दे और उसे करंट न लग जाए| फिर मैंने हमारे घर के सारे दरवाजों की चिटकनियाँ निकलवा दी, ताकि कहीं गलती से स्तुति कोई दरवाजा धक्का दे कर बंद कर दे तो दरवाजा लॉक न हो जाए! बस घर का मुख्य दरवाजा और माँ के बाथरूम का दरवाजा ही थे जिनमें ऊपर की ओर चिटकनी लगी थी जहाँ स्तुति का हाथ पहुँच ही नहीं सकता था|



जबतक मैं घर पर होता, संगीता को चैन रहता था क्योंकि स्तुति मेरे साथ खेलने में व्यस्त रहती लेकिन जैसे ही मैं घर से गया नहीं की स्तुति अपने दोनों हाथों ओर पैरों के बल रेंगते हुए पूरे घर में घूमने लगती| पूरे घर में स्तुति की दो मन पसंद जगह थीं, एक थी माँ के पलंग के नीचे और दूसरी थी रसोई| जब भी संगीता खाना बना रही होती स्तुति उसके पीछे पहुँच जाती और कभी संगीता की साडी खींच कर तो कभी चिल्ला कर अपनी मम्मी का ध्यान अपनी ओर खींचती| "आ गई मेरी नानी!" संगीता अपना सर पीटते हुए कहती| अपनी मम्मी को अपना सर पीटता हुआ देख स्तुति को बहुत मज़ा आता और वो खिखिलाकर हँसने लगती| संगीता की समस्या ये थी की स्तुति को जिज्ञासा होती थी की उसकी मम्मी आखिर कर क्या रही है इसलिए स्तुति रसोई के फर्श पर बैठ कर शोर मचाती थी| संगीता मेरी बिटिया की ये जिज्ञासा नहीं समझ पाती थी इसलिए वो चिड़चिड़ी हो जाती और स्तुति को उठा कर माँ की गोदी में दे देती| लेकिन स्तुति माँ की गोदी में छटपटाने लगती और माँ की गोदी से नीचे उतरने की जिद्द करती| जैसे ही माँ ने स्तुति को नीचे उतारा नहीं की स्तुति सीधा रसोई की तरफ खदबद (अपने दोनों हाथों-पैरों पर तेज़ी से चलना) दौड़ जाती! स्तुति का रसोई के प्रति आक्रषण माँ को थोड़ा-थोड़ा समझ आने लगा था| स्तुति रसोई में अधिकतर तब ही जाती थी जब संगीता रोटी बना रही होती थी| जब माँ को ये बात समझ में आई तो उन्होंने संगीता को समझाया; "बेटा, मानु जब छोटा था तो वो भी मेरे-मेरे पीछे रसोई में आ जाता था| उसे मुझे रोटियाँ बनाते हुए देखना अच्छा लगता था| मैं कई बार कच्चे आटे से बनी हुई चिड़िया या हवाई जहाज बना कर उसे देती तो वो उस चिड़िया या हवाई जहाज से रसोई के फर्श पर बैठ कर खेलने लगता| जब धीरे-धीरे मानु बड़ा होने लगा तो उसने एक दिन कहा की मम्मी मैं भी रोटी बनाऊँ? तो मैंने आखिर में उसे एक रोटी बनाने को दी, लेकिन उसके हाथ थे छोटे-छोटे और बेलन बड़ा इसलिए बेचारा रोटी नहीं बना पता था| तब तेरे ससुर जी ने मानु को एक छोटा सा चकला-बेलना ला कर दिया और तब से मानु ने मेरी देखा-देखि रोटी बनानी शुरू की| वो बात अलग है न उससे तब रोटी गोल बनती थी और न अब बनती है! खैर, उसकी बनाई ये आड़ी-टेढ़ी रोटी तेरे ससुर जी खाते थे या फिर मैं और हमें ये रोटी कहते देख मानु को बहुत ख़ुशी होती थी| वो रोज़ रोटी बनाना चाहता था मगर मैं उसे डाँट-डपट कर भगा देती थी क्योंकि उसे रोटी बनाने में बहुत समय लगता था और मुझसे गर्मी में खड़े हो कर उसकी रोटी बनने का इंतज़ार नहीं होता था!

फिर जब मानु करीब 3 साल का हुआ तो उसने मुझे सताने के लिए एक और शरारत खोज निकाली| जब मैं रोटी बना रही होती तो वो पीछे से दबे पॉंव आता और कटोरी में रखा घी पी कर भाग जाता! जब मैं रोटी सेंक कर उस पर घी लगाने को कटोरी उठाती तो देखती क्या हूँ की घी तो सब साफ़ है! फिर मैं उसे बहुत डाँटती, लेकिन ये लाड़साहब कहाँ सुनते हैं! ऐसे ही एक दिन तेरे ससुर जी सर्दी के दिनों में छत पर सरसों का साग और मक्की की रोटी बना रहे थे| ज़मीन पर ईंटों का चूल्हा बना, तवा चढ़ा कर तेरे ससुर जी रोटी बेल रहे थे की तभी मानु पीछे से रेंगता हुआ आया और घी वाली कटोरी का सारा घी पी कर भाग गया! जब तेरे ससुर जी रोटी में घी लगाने लगे तो घी खत्म देख वो बड़े हैरान हुए, तब मैंने उन्हें बताया की ये सब उन्हीं के लाड़साहब की करनी है तो तेरे ससुर जी बहुत हँसे! 'बमास (बदमाश) इधर आ!' तेरे ससुर जी ने हँसते हुए मानु को अपने पास बुलाया और उसे प्यार से समझाया की यूँ असली घी अधिक पीने से वो बीमार पड़ जायेगा, तब जा कर मानु की ये शैतानी बंद हुई!" माँ के मुख से मेरे बचपन के मजेदार किस्से सुन संगीता को बहुत हँसी आई| वहीं स्तुति ने भी अपने पापा जी के ये किस्से सुने थे मगर उसे समझ कुछ नहीं आया, वो तो बस सब को हँसता हुआ देख हँस रही थी|



ऐसा नहीं था की केवल मुझ में ही बचपना भरा था, बचपना तो मेरी माँ के भीतर भी बहुत था तभी तो उन्होंने मुझे साइट पर फ़ोन कर स्तुति के लिए चकला-बेलन लाने को कहा ताकि माँ स्तुति को रोटी बनाना सीखा सकें! शाम को जब स्तुति के लिए चकला-बेलना, छोटे-छोटे बर्तन, गैस-चूल्हा इत्यादि ले कर मैं घर आया तो नेहा की आँखें ये खिलोने देख कर नम हो गई| नेहा को ये छोटे-छोटे खिलोने देख कर उसका छुटपन याद आ गया था, वो दिन जब नेहा छोटी सी थी और मैं गाँव में आया था, तब नेहा अपने मिटटी से बने बर्तनों में मेरे लिए झूठ-मूठ का खाना पकाती तथा मैं चाव से खाने का अभिनय करता| आज उन मधुर दिनों को याद कर मेरी बेटी नेहा की आँखें नम हो गई थीं| "आजा मेरा बच्चा!" ये कहते हुए मने अपनी बाहें खोलीं और नेहा दौड़ती हुई आ कर मेरे सीने से लग गई| आयुष को अपनी दीदी का यूँ भावुक होना समझ नहीं आया इसलिए वो सवालिया नजरों से हम दोनों बाप-बेटी को यूँ खामोश गले लगे हुए देख रहा था| "बेटा, जब आपकी दीदी छोटी थीं न तब गाँव में वो मेरे साथ घर-घर खेलती थीं| आपकी दीदी के पास मिटटी के बर्तन थे और वो उन पर मेरे लिए खाना बनाती थी| आज उन्हीं दिनों को याद कर के आपकी दीदी भावुक हो गईं|" मैंने आयुष के मन में उठे सवाल का जवाब दिया| मेरी बात सुन आयुष जोश में आ कर नेहा के साथ मेरे गले लग गया जिससे नेहा का ध्यान बँट गया और वो नहीं रोई|

हम तीनों बाप-बेटा-बेटी गले लगे थे तो स्तुति को आया प्यारा सा गुस्सा, वो भी अपनी मम्मी की तरह मुझ पर हक़ जमाती थी| "स्तुति ने मेरी तरफ अपने हाथ फैलाये और खुद को गोदी लेने को कहने के लिए अपनी बोली-भाषा में कुनमुनाने लगी| मैंने दोनों बच्चों को एक मिनट रुकने को कहा तथा स्तुति को अपनी गोदी में उठा लिया, स्तुति को एक हाथ से सँभाल कर मैंने आयुष और नेहा को फिर से मेरे गले लगने को कहा| दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए, लेकिन स्तुति को अपने पापा जी को अपने बड़े भैया और बड़ी दीदी के साथ बाँटना अच्छा नहीं लगता था इसलिए उसने अपनी दीदी और अपने भैया के बाल खींचने शुरू कर दिए! जब स्तुति ने नेहा के बाल खींचे तो नेहा ने पहले तो अपने बाल स्तुति की पकड़ से छुड़ाए और फिर स्तुति के कूल्हों पर प्यारी सी चपत लगाते हुए बोली; "चुहिया!" इतना कह नेहा स्तुति के लिए लाये हुए खिलोने पैकेट से निकलने लगी| स्तुति के लिए नए खिलोने देख कर आज मेरा मन बच्चों के साथ खेल-खेलने का कर रहा था| मैंने नेहा को सारे खिलोने अच्छे से धो कर लाने को कहा| फिर मैं, आयुष और नेहा डाइनिंग टेबल की कुर्सी खींच कर बैठ गए तथा स्तुति को हमने डाइनिंग टेबल के ऊपर बिठा दिया| नेहा ने झूठ-मूठ की गैस जलाई और उन छोटे-छोटे बर्तनों में खाना बनाने का अभिनय करने लगी| स्तुति को ये खेल समझ नहीं आ रहा था परन्तु वो अपनी दीदी को खाना बनाने का अभिनय करते हुए बड़ी गौर से देख रही थी| खेल को थोड़ा सा और असली बनाने के लिए उन खाली बर्तनों में स्तुति को खिलाये जाने वाले फल को मींज कर डाल दिया| जब खाना बना तो नेहा ने हम सभी के लिए छोटी-छोटी प्लेटों में मींजे हुए फल खाने के रूप में परोस दिए| जब मैंने स्तुति को उसकी छोटी सी प्लेट उठा कर दी तो स्तुति बहुत खुश हुई और उसने आज पहलीबार अपने हाथ से प्लेट में मींजे हुए फलों के मिश्रण को अपने हाथों से उठाया और खाया| स्तुति को ये खेल पसंद आ गया था इसलिए रोज़ शाम को हम चारों मिल कर ये खेल खेलने लगे|

जारी रहेगा भाग - 20 (2) में...
 

Rockstar_Rocky

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वैसे तो आज की update होलीका दहन के उपलक्ष्य में आई है, परन्तु मैं इस update को हमारे प्रिय मित्र Lib am को समर्पित करता हूँ| आखिर एक वे ही थे जो पिछले दो दिनों से update की माँग कर रहे थे! Frock वाली update अगले हफ्ते तक आएगी या फिर हो सका तो शायद रविवार तक ही post कर दूँ!
 

Ajay

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इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 20 (1)



अब तक अपने पढ़ा:


मैंने कहानी पूर्ण होने की घोषणा की तो सभी ने तालियाँ बजा कर मेरा अभिवादन किया|


अब आगे:


कहानी
सुनाते-सुनाते रात के 12 बज गए थे और अब आ रही थी सबको नींद| भाभी जी, संगीता और दोनों बच्चे उसी कमरे में सो गए थे| मैं, स्तुति और भाईसाहब अपने कमरे में आ कर सो गए तथा दोनों चाचा-भतीजा अपने कमरे में सो गए|

अगली सुबह तीनों बच्चों को छोड़कर सब उठ चुके थे| सभी माँ और सासु माँ वाले कमरे में बैठे बातें कर रहे थे जब भाभी जी ने मेरी कल रात सुनाई हुई कहानी की तारीफ करनी शुरू कर दी| माँ और मेरी सासु माँ को जिज्ञासा हुई की मैंने कौन सी कहानी सुनाई थी तो भाभी जी ने चौधरी बनते हुए कल रात वाली मेरी कहानी सभी को पुनः सुना दी| भाभी जी के मुख से मेरी कहानी सुन कर माँ और सासु माँ को बहुत हँसी आई तथा दोनों माओं ने मेरे सर पर हाथ रख मुझे आशीर्वाद दिया|



आज शाम को हम सभी ने वापस चलाए जाना था इसलिए हम सभी तैयार हो कर फिर से घूमने निकल पड़े| सबसे पहले हमने माँ मनसा देवी की यात्रा करनी थी और इस यात्रा को ले कर मैं कुछ ज्यादा ही उत्साहित था| मेरे उत्साहित होने का कारण था रोपवे (ropeway) अर्थात उड़नखटोले की सैर! उड़नखटोले की टिकट ले कर हम सभी लाइन में खड़े थे, सासु माँ, संगीता, भाभी जी, अनिल, विराट, आयुष, नेहा और स्तुति सभी उड़नखटोले को ऊपर-नीचे आते-जाते देख अस्चर्य से भरे हुए थे| माँ चूँकि उड़नखटोले पर एक बार पहले भी बैठ चुकीं थीं इसलिए वो अपना अनुभव मेरी सासु माँ, भाभी जी, अनिल और संगीता को बता रहीं थीं| वहीं विराट, आयुष और नेहा की अपनी अलग बातें चला रहीं थीं की आखिर ये उड़नखटोला चलता कैसे होगा?! मैं, और भाईसाहब खामोश खड़े थे क्योंकि हम दोनों ही अपने-अपने जीवन में ये यात्रा पहले कर चुके थे| जब उड़नखटोले में बैठने का हमारा नंबर आया तो मैंने चौधरी बनते हुए सबसे पहले माँ, भाभी जी, संगीता और सासु माँ को एक साथ पहले बैठने को कहा| अब संगीता का मन मेरे साथ उड़नखटोले में बैठने को था मगर उड़नखटोले में एक बार में केवल 4 ही लोग बैठ सकते थे, ऊपर से संगीता के मेरे साथ होने से दोनों बच्चे ठीक से मस्ती नहीं कर पाते इसलिए मैंने संगीता को जानबूझ कर माँ के साथ भेज दिया, मेरे इस फैसले के लिए संगीता ने अपनी आँखों से बहुतु कोसा और उल्हना दिया, इधर मैं भी मुस्कुरा कर संगीता के जले पर नमक छीडकता रहा!

संगीता वाला उड़नखटोला अपनी मंज़िल की ओर चल पड़ा था और उसकी जगह दूसरा उड़नखटोला आ खड़ा हुआ था| "भाईसाहब, मैं ओर बच्चे इसमें चले जाएँ?!" मेरे भीतर का बच्चा उत्साह में बाहर आते हुए बोला| मेरा उत्साह देख भाईसाहब मुस्कुराये और बच्चों से बोले; "बेटा उड़नखटोले में बैठने के बाद कोई मस्ती नहीं करना!" नेहा ने लाइन में खड़े हुए दिवार पर लिखी सारी सावधानियाँ पहले ही पढ़ ली थीं इसलिए वो सबकी जिम्मेदारी लेते हुए बोली; "बड़े मामा जी, मैंने दिवार पर लिखी सारी सावधानियाँ पढ़ ली हैं इसलिए आप ज़रा भी चिंता मत करो|" नेहा को जिम्मेदारी उठाते देख भाईसाहब ने उसे आशीर्वाद दिया तथा मुझे आँखों के इशारे से सब बच्चों का ध्यान रखने को बोले|

सबसे पहले उड़नखटोले में आयुष बैठा क्योंकि उसे बैठने का कुछ अधिक ही उत्साह था, उसके बाद विराट उसकी बगल में बैठ गया| फिर घुसी नेहा और उसके बगल में मैं तथा मेरी गोदी में स्तुति आराम से बैठ गए| जब हमारा उड़नखटोला चला तो जो मनमोहक कुदरती नज़ारा हमें दिखा उसे देख कर हम सभी बहुत खुश हुए| स्तुति ने जब उड़नखटोले से बाहर का दृश्य देखा तो वो इतना खुश हुई की क्या कहूँ?! आयुष, नेहा और विराट से ज्यादा स्तुति ख़ुशी से किलकारियाँ मार रही थी! वहीं आयुष और नेहा भी पीछे नहीं थे, दोनों मेरा ध्यान नीचे पेड़-पौधों या अन्य उड़नखटोलों की तरफ खींच रहे थे| एक अकेला पिता और उसके तीनों बच्चे अपने पिता का ध्यान अपनी तरफ खींचने में लगे थे...कितना मनमोहक दृश्य था!

विराट कहीं अकेला महसूस न करे इसलिए मैं उससे एक दोस्त बनकर बात कर रहा था| आखिर हम पहाड़ी पर बने मंदिर पहुँचे और उड़नखटोले से उतर कर बाहर आये जहाँ सारी महिलाएँ खड़ीं थीं| मुझे देख संगीता की नाक पर प्यारभरा गुस्सा आ बैठा था की आखिर क्यों मैं उसके साथ उड़नखटोले में न बैठकर बच्चों के साथ बैठकर ऊपर आया?! खैर, जब भाईसाहब और अनिल ऊपर आये तब हम सभी ने श्रद्धा पूर्वक मनसा माता जी के दर्शन किये तथा नीचे जाने के लिए फिर से उड़नखटोले के पास लाइन में खड़े हो गए| इस बार संगीता ने अपनी चपलता दिखाई और स्तुति को लाड करने के बहाने से मेरी गोद से ले लिया| संगीता जानती थी की मैं स्तुति के बिना नहीं रह पाउँगा इसलिए मुझे संगीता के साथ ही उड़नखटोले से नीचे जाना पड़ेगा| अपनी बनाई योजना को और पुख्ता करने के लिए उसने दोनों बच्चों को इशारे से अपने पास बुला लिया तथा नेहा को इशारा कर मेरे साथ खड़ा रहने को कहा| जैसे ही हमारा नंबर आया, उड़नखटोले में पहले सासु माँ बैठीं, फिर माँ बैठीं, फिर भाभी जी बैठीं और तभी संगीता ने विराट की पीठ थपथपाते हुए कहा; "बैठो बेटा|" अपनी बुआ की बात मानते हुए विराट जा कर अपनी मम्मी की बगल में बैठ गया तथा उड़नखटोला नीचे की ओर चल पड़ा| अगली बारी हमारी थी, जैसे ही उड़नखटोले का दरवाजा खुला, संगीता दोनों बच्चों से बोली; "चलो-चलो बेटा, जल्दी से बैठ जाओ!" संगीता ने ऐसे जल्दी मचाई की मानो ये नीचे जाने वाला आखरी उड़नखटोला हो! इधर मैं, अनिल और भाईसाहब, संगीता का ये बचपना देख कर मुस्कुरा दिए तथा हमें मुस्कुराता हुआ देख संगीता ने लजाते हुए अपना चेहरा घुमा लिया|

खैर, हम दोनों मियाँ-बीवी खटोले में बैठे और हमारा ये उड़नखटोला नीचे की ओर चल पड़ा| नीचे जाते समय संगीता को डर लगा इसलिए स्तुति को मेरी गोदी में दे कर वो मुझसे लिपट गई| "जब हम ऊपर आ रहे थे, तब भी मुझे डर लगा था लेकिन मेरा डर भगाने वाला कोई नहीं था| आपको सच्ची मेरा ख्याल नहीं आता न, आपकी एक पत्नी है जिसे उड़नखटोले में अकेले कितना डर लगता होगा?" संगीता खुसफुसा कर मुझसे शिकायत करते हुए बोली| “सॉरी जान!" मैंने अपना एक कान पकड़ते हुए कहा, जिसके जवाब में संगीता मुस्कुराने लगी|



उड़नखटोले में हम धीरे-धीरे नीचे आ रहे थे और उधर मेरे तीनों बच्चों ने ख़ुशी से शोर मचाना शरू कर दिया था| जहाँ एक तरफ स्तुति कुछ बोलने की कोशिश में किलकारियाँ मार रही थी, वहीं आयुष और नेहा मिलकर "आई लव यू पापा जी" चिल्ला रहे थे| बच्चों के शोर की आड़ में संगीता ने भी मेरे कान में खुसफुसाते हुए "आई लव यू जानू" कहा| इस मनमोहक मौके का लाभ उठाते हुए मैंने भी खुसफुसा कर "आई लव यू टू जान" कहते हुए संगीता के मस्तक को चूम लिया|

बहरहाल हम सब नीचे आ चुके थे, पहले तो हमने खाना खाया और फिर घाट पर बैठ कर आराम किया| दोनों बच्चों को पानी में करनी थी मस्ती इसलिए हम चारों (मैं, नेहा, आयुष और स्तुति बिलकुल आखरी वाली सीढ़ी पर पानी में पैर डालकर बैठ गए| हम तीनों बाप-बेटा-बेटी ठंडे-ठंडे पानी में कुछ ही देर पैर रख पाए फिर हम आलथी-पालथी मार कर बैठ गए| गँगा मैय्या के जल को देख कर स्तुति का मन पानी में जाने का था, इसलिए मैंने थोड़ा सा पानी चुल्लू में लिया और स्तुति के पॉंव पर छिड़क दिया जिससे मेरी बिटिया को बहुत आनंद आया और उसने ख़ुशी से कहकहे लगाना शुरू कर दिया|

इतने में पानी में हमें कुछ मछलियाँ दिखीं, एक-आध तो हमारे पॉंव के पास भी आ गई| मछली देख कर तीनों बच्चे बहुत खुश हुए, आयुष ने मुझसे मछली पकड़ने को कहा तो स्तुति ने खुद ही मछली पकड़ने को अपने हाथ पानी की ओर बढा दिए! "बेटा, आप अपनी नर्सरी की पोएम (poem) भूल गए?! अगर मैंने मछली पकड़ पानी से बाहर निकाली तो वो बेचारी मर जाएगी!" मैंने आयुष को समझाते हुए कहा| मेरी बात सुन आयुष को मछली जल की रानी है पोएम याद आ गई और वो मेरी बात समझ गया|; "नहीं पापा जी, आप मछली को मत पकड़ो| हम ऐसे ही मछलियाँ देखते हैं!" आयुष की बात सुन मैंने उसके सर को चूम उसे तथा नेहा को अपने से सटा कर बिठा लिया|



शाम हो रही थी और अब सब को होटल छोड़ना था इसलिए हम सब अपना समान ले कर रेलवे स्टेशन पहुँच गए| सासु माँ की गाँव जाने वाली ट्रैन हमसे पहले आई थी इसलिए हम सब ने पहले सासु माँ, भाभी जी, अनिल, विराट और भाईसाहब को विदा किया| सभी ने स्तुति को गोदी में ले कर लाड किया और उसके छोटे-छोटे हाथों में पैसे थमाए| स्तुति ने इस बार कोई नखरा नहीं किया और सभी का प्रेम तथा आशीर्वाद लिया| फिर बारी आई बच्चों की, उन्हें भी अपने मामा-मामी, नानी और भैया का प्यार, आशीर्वाद तथा पैसे मिले| इधर विराट और मैं किसी दोस्त की तरह गले मिले और मैंने उसकी जेब में कुछ पैसे रख उसे खामोश रहने का इशारा कर दिया| माँ और संगीता ने भी विराट को आशीर्वाद तथा उसकी जेब में चुप-चाप पैसे रख दिए| अंत में मैं भाईसाहब से गले मिला और सभी को मैंने ट्रैन में बिठा दिया| कुछ देर बाद हमारी ट्रैन आ गई, सामान रख हम सभी अपनी-अपनी जगह बैठ गए| आज दिन भर की मस्ती से तीनों बच्चे थके हुए थे इसलिए तीनों मेरे साथ बैठे हुए सो गए| उधर सास-पतुआ भी सो गए थे, एक बस मैं था जो जागते हुए अपने सामान और परिवार की पहरेदारी कर रहा था| घर आते-आते 11 बज गए थे और सबको लग आई थी भूख, इतनी रात गए क्या खाना बनता इसलिए संगीता ने सभी के लिए मैगी बनाई| सभी ने बैठ कर मैगी खाई और कपड़े बदल कर सो गए|



कुछ दिन बीते और दोनों बच्चों के रिजल्ट आने का दिन आ गया| जब मैं स्कूल में पढता था तभी से रिजल्ट से एक दिन पहले मेरी बहुत बुरी फटती थी! मुझे कभी अपनी की गई मेहनत पर विश्वास नहीं होता था, हर बार यही डर लगा रहता था की मैं जर्रूर फ़ैल हो जाऊँगा और पिताजी से मार खाऊँगा! अपने इसी डर के कारण एक दिन पहले सुबह से ही मैं भगवान जी के आगे अपने पास होने की अर्ज़ी लगा देता था| जबकि मेरे दोनों बच्चे एक दिन पहले से ही ख़ुशी से चहक रहे थे, उन्हें अपनी की गई मेहनत पर पूर्ण विश्वास था की वे अवश्य अच्छे नम्बरों से पास हो जायेंगे|

अगले दिन पूरा परिवार तैयार हो कर बच्चों का रिजल्ट लेने स्कूल पहुँचा| सबसे पहले सम्मान समारोह हुआ जिसमें सभी अव्वल आये बच्चों को ट्रोफियाँ दी गईं, सबसे पहले आयुष का नाम पुकारा गया और आयुष ख़ुशी-ख़ुशी स्टेज की तरफ दौड़ा| इधर पीछे खड़े हो कर स्तुति को कुछ नज़र नहीं आ रहा था इसलिए मैं स्तुति को ले कर सबसे आगे आ गया, जब आयुष को प्रिंसिपल मैडम ने ट्रॉफी दी तो मैंने आयुष की तरफ इशारा करते हुए स्तुति से कहा; "देखो बेटा, आपके बड़े भैया को क्लास में फर्स्ट आने पर ट्रॉफी मिल रही है|" स्तुति को क्या पता की ट्रॉफी क्या होती है, वो तो अपने बड़े भैया को देख कर ही खुश हो गई थी तथा खिलखिला कर हँसने लगी| प्रिंसिपल मैडम से अपनी ट्रॉफी ले कर आयुष दौड़ता हुआ मेरे पास आया और अपनी ट्रॉफी स्तुति को देते हुए बोला; "ये मेरी ट्रॉफी आप सँभालो, मैं बाद में आप से ले लूँगा|" स्तुति अपने बड़े भैया की ट्रॉफी पा कर बहुत खुश हुई और फ़ट से आयुष की ट्रॉफी अपने मुँह में लेनी चाहिए की तभी आयुष एकदम से स्तुति को रोकते हुए बोला; "नहीं-नहीं! ये ट्रॉफी है टॉफी नहीं, इसे खाते नहीं हैं!" अब जिस ट्रॉफी को आप खा नहीं सकते वो स्तुति के किस काम की? शायद यही सोचते हुए स्तुति ने अपने बड़े भैया की ट्रॉफी मुझे दे दी|

उधर स्टेज पर प्रिंसिपल मैडम ने नेहा का नाम पुकारा और नेहा आत्मविश्वास से भर कर स्टेज पर पहुँची| प्रिंसिपल मैडम के पॉंव छू कर अपनी ट्रॉफी ली तथा दौड़ती हुई मेरे पास आई| "मेरा प्यारा बच्चा! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू!" मैंने नीचे झुक कर नेहा को अपनी बाहों में कसते हुए कहा| नेहा को भी आज खुद पर बहुत गर्व हो रहा था की उसने मेरा नाम ऊँचा किया है| वहीं स्तुति को भी अपनी दीदी को बधाई देनी थी इसलिए उसने अपनी बोली-भासा में कुछ कहा जिसका मतलब नेहा ने ये निकाला की स्तुति उसे बधाई दे रही है; "थैंक यू स्तुति!" नेहा ने स्तुति के हाथ को चूमते हुए कहा तथा अपनी लाइन में पुनः जा कर खड़ी हो गई|



बच्चों का सम्मान समारोह पूर्ण हुआ और हम सभी ने दोनों बच्चों की रिपोर्ट कार्ड दोनों बच्चों की क्लास में जा कर ली| अपने बड़े भैया और दीदी की क्लास देख कर स्तुति को बहुत मज़ा आया| यही नहीं जब आयुष और नेहा ने स्तुति को बताया की वो कहाँ बैठते हैं तो मैंने स्तुति को उसी जगह बिठा कर एक फोटो भी खींच ली| अपने बड़े भैया और दीदी की जगह बैठ कर स्तुति को बड़ा आनंद आया और अपने इस आनंद का ब्यान स्तुति ने किलकारी मार कर किया|

अब चूँकि स्तुति स्कूल में पहलीबार आई थी तो उसे स्कूल-दर्शन कराना जर्रूरी था| मैं स्तुति को गोदी में लिए अकेला चल पड़ा और पूरा स्कूल घुमा लाया| मेरा ये बचपना देख माँ बोलीं; "अरे पहले शूगी को बड़ी तो हो जाने दे, अभी से क्यों उसे स्कूल घुमा रहा है?!"

"अभी से इसलिए घुमा रहा हूँ ताकि अपने स्कूल के पहले दिन स्तुति रोये न|" मैंने स्तुति के गाल चूमते हुए कहा| मेरा ये बचपना देख सभी को हँसी आ गई|

हम सभी का अगला पड़ाव मंदिर और फिर बाहर कहीं खाने-पीने का था, हम स्कूल से बाहर की ओर निकले रहे थे की तभी हमें आयुष की गर्लफ्रेंड और उसकी मम्मी मिल गए| अपनी होने वाली नन्द (नंद) यानी स्तुति को देख आयुष की गर्लफ्रेंड ने स्तुति को गोदी लेना चाहा, परंतु स्तुति अपनी होने वाली भाभी से मुँह फेर कर मुझ से लिपट गई| तब एक अच्छे भाई और होने वाले पति के नाते आयुष आगे आया तथा स्तुति से अपनी होने वाले पत्नी का तार्रुफ़ कराया; "स्तुति...ये मेरी बेस्ट फ्रेंड है| आप इनकी गोदी में चले जाओ न?!" आयुष ने इतने प्यार से स्तुति से कहा की मेरी छोटी सी बिटिया का दिल पिघल गया और वो अपनी होने वाली भाभी की गोदी में चली गई| अपनी छोटी सी प्यारी सी होने वाली नन्द को गोदी में ले कर मेरी होने वाले बहु ने दुलार करना शुरू किया ही था की स्तुति मेरी गोदी में वापस आने के लिए छटपटाने लगी| अपनी होने वाली भाभी जी की गोदी में जा कर स्तुति ने अपने बड़े भैया की अर्जी का मान किया था परन्तु अब स्तुति को अपने पापा जी की गोदी में वापस आना था| मेरी होने वाली बहु ने अपनी होने वाली नन्द की एक पप्पी ली और फिर मेरी गोदी में दे दिया|



बहरहाल हम सब मंदिर में प्रर्थना कर घर खा-पी कर घर लौटे| भाईसाहब, भाभी जी, मेरी सासु माँ, अनिल और विराट ने बच्चों को फ़ोन कर उनके पास होने पर बधाई दी| फिर वो दिन आया जब बच्चों की नई किताबें और कपड़े आने थे| अपने बड़े भैया और दीदी की नई किताबें और कपड़े देख कर सबसे ज्यादा स्तुति खुश हुई, स्तुति की ये ख़ुशी हम सभी की समझ से परे थी| स्तुति बार-बार अपने दोनों हाथ किताबों को पकड़ने के लिए बढ़ा रही थी| अब आयुष और नेहा को अपनी नई किताबों की चिंता थी क्योंकि उन्हें लग रहा था की अगर किताबें स्तुति के हाथ आईं तो स्तुति उन किताबों को फाड़ देगी इसलिए वो किताबें स्तुति की नजरों से छुपाने में लगे थे| माँ दोनों बच्चों की चिंता समझ रहीं थीं इसलिए उन्होंने मुझे आदेश देते हुए कहा; "इस शैतान की नानी को छत पर घुमा ला, तबतक हम किताबें और कपड़े यहाँ से हटा देते हैं वरना ये शैतान की नानी आज सब किताबें फाड़ देगी!" मैं स्तुति को छत पर टहलाने ले आया और बच्चों ने अपनी किताबें-कापियाँ और कपड़े अपने कमरे में रख दिए| जब स्तुति सो गई तब मैंने और दोनों बच्चों ने मिलकर किताबों-कापियों पर कवर चढ़ाये| साथ ही नेहा ने अपनी एक पुरानी रफ कॉपी मुझे दी और बोली; "पापा जी, ये कॉपी आप शैतान स्तुति को देना ताकि वो इसे जी भर कर नोच-खाये!" आगे चलकर नेहा की इस रफ कॉपी को स्तुति ने चैन से नहीं रहने दिया| कभी वो कॉपी खोल कर उसमें लिखे शब्द समझने की कोशिश करती, कभी अपने मन-पसंद कॉपी के पन्ने को पप्पी दे कर गीला कर देती तो कभी गुस्से में आ कर कॉपी के पन्ने को अपनी छोटी सी मुठ्ठी में भरकर फाड़ देती!



दिन बीत रहे थे और अब मेरी बिटिया रानी को कुछ-कुछ अन्न खिलाना शुरू करने का मौका आ गया था| इसके लिए सबसे पहले मैंने मंदिर में पहले पूजा कराई, पूजा के बाद हमें भगवान जी के चरणों को स्पर्श करा कर प्रसाद दिया गया, उस प्रसाद में केला भी शामिल था| घर आ कर स्तुति को मैंने सोफे पर पीठ टिका कर बिठाया तथा मैं स्तुति के ठीक सामने घुटने टेक कर बैठ गया| जैसे ही मैंने केला छीलना शुरू किया, स्तुति ने फ़ट से केले को पकड़ना चाहा| "अरे अभी नहीं स्तुति! पहले पापा जी को केला छीलने तो दो, फिर खाना|" नेहा ने स्तुति को समझाया| इधर मुझे डर था की कहीं केले का बड़ा कौर खाने से स्तुति को कोई तकलीफ न हो इसलिए मैंने केला छील लिया और चींटी के आकार का केले का टुकड़ा स्तुति को खिलाया| केले का पहला कौर खा स्तुति को मीठा-मीठा स्वाद आया और उसने अगला टुकड़ा खाने के लिए अपना मुख पुनः खोल दिया| अगला कौर माँ ने खिलाया तथा स्तुति के सर को चूम आशीर्वाद दिया| फिर बारी आई संगीता की और उसने भी स्तुति को छोटा सा कौर खिला कर लाड किया| आयुष और नेहा की बारी आई तो दोनों बहुत उत्साहित हुए| बारी-बारी कर दोनों बच्चों ने स्तुति को केले का एक-एक कौर खिलाया और स्तुति की पप्पी ले कर कूदने लगे|

ऐसा नहीं था की केवल हम सब ही स्तुति को कुछ खिला कर खुश हो रहे थे, स्तुति भी हमारे हाथों केला खा कर बहुत खुश थी और अपने मसूड़े दिखा कर हँस रही थी| उस दिन से स्तुति ने अपनी मम्मी के दूध के अलावा थोड़ा-थोड़ा खाना शुरू किया| स्तुति को स्वादिष्ट खाना खिलाने के लिए मैं तरह-तरह के फल लाता था, सेरेलैक के नए-नए स्वाद भरे डिब्बे लता था| मेरा बचपना इतना बढ़ गया था की मैं स्तुति को आराम से बिठा कर खिला सकूँ इसके लिए मैं फिल्मों में दिखाई जाने वाली बच्चों की कुर्सी ले आया| जब मैं स्तुति को उस कुर्सी पर बिठा कर सेरेलैक खिला रहा था तब माँ हँसते हुए संगीता से बोलीं; "लो भई बहु, अब तो हमारी शूगी बहुत बड़ी हो गई...देखो शूगी कुर्सी पर बैठ कर खाना खाने लगी है!" माँ की कही बात पर हम सभी ने ज़ोर का ठहाका लगाया|

उधर कुर्सी पर बैठ कर स्तुति को खाने में मज़ा आता था क्योंकि अब उसके दोनों हाथ खाली होते थे और वो कभी चम्मच तो कभी सेरेलैक वाली कटोरी को पकड़ने की कोशिश करती रहती| मैं स्तुति का मन भटकाने के लिए कोई स्वचालित खिलौना उसके सामने रख देता जिससे स्तुति खुश हो कर हँसने लगती, स्तुति का ध्यान खिलोने की तरफ होने से मेरा सारा ध्यान स्तुति को खाना खिलाने में लग जाता| सेरेलैक के नए-नए फ्लावर्स से स्तुति को खाने में बहुत मज़ा आता था और वो खाने में कोई नखरा नहीं करती थी| कभी-कभी मैं फलों को मींज कर भी स्तुति को खिलाता जो की स्तुति को बहुत पसंद था|

और एक मज़े की बात थी वो था स्तुति का खाना खाते समय पूरा चेहरा सन जाना| कई बार स्तुति अपने होठों पर लगी हुई कोई चीज अनजाने में अपने हाथों से अपने पूरे चेहरे पर फैला देती| ये दृश्य देख इतना मनमोहक होता था की मेरी रूह प्रसन्न हो जाती तथा मुझे हँसी आ जाती और मुझे हँसता हुआ देख स्तुति भी हँसने लगती!



इधर नेहा और आयुष भी थोड़े-थोड़े शरारती होते जा रहे थे| मेरी अनुपस्थति में स्कूल से आ कर आयुष सीधा खेलने लग जाता और नेहा अपनी दादी जी का फ़ोन ले कर अपनी सहेली से गप्पें लड़ाने लग जाती| संगीता को दोनों को बार-बार खाने के लिए कहना पड़ता तब जा कर कहीं दोनों भाई-बहन के कानों पर जूँ रेंगती! अपनी इस मौज-मस्ती के अलावा दोनों भाई-बहन ने अपने मन-पसंद खाना न बनने पर मैगी, चाऊमीन या पिज़्ज़ा खाने की रट लगानी शुरू कर दी| एक-आध बार तो माँ बच्चों की जिद्द मान लेती थीं मगर जब ये जिद्द हर हफ्ते होने लगी तो माँ ने भी बच्चों को समझाते हुए मना करना शुरू कर दिया| जब बच्चों की मम्मी और दादी जी ने बाहर से खाना मँगवाने के लिए मना किया तो बच्चों ने मेरा मुँह ताकना शुरू कर दिया| मैं बच्चों के मन पसंद खाना न बनने पर बहार से खाने की इच्छा को जानता था क्योंकि मैंने भी अपने बचपने में ऐसी जिद्द की थीं, वो बात अलग है की मेरी ये जिद्द देख पिताजी हमेशा मुझे झिड़क दिया करते थे ये कह कर की; "ऐसा खाना लोगों को नसीब नहीं होता और तेरे नखड़े हैं!" पिताजी के डर से मैं चुप-चाप करेला, काली दाल, परमाल, सीताफल, अरबी आदि जो की मुझे नपसंद थी, खा लिया करता था| यही कारण था की मैं बच्चों की मनोस्थिति देख कर उनसे हमदर्दी रखते हुए पिघलने लगता था| लेकिन इससे पहले की मैं बाहर से खाना मँगाने के लिए हाँ कहूँ, माँ और संगीता मुझे आँखें बड़ी कर के देखने लगते! अगर मेरे मुँह से बच्चों के लिए हाँ निकल जाती तो दोनों सास-पतुआ रासन-पानी ले कर मेरे ऊपर चढ़ जाते, फिर तो बाहर का खाना छोड़ो मुझे घर का खाना भी नसीब नहीं होता! संगीता और माँ के गुस्से के अलावा, मेरे बच्चों के पक्ष न लेने पर बच्चे भी मुझसे नाराज़ हो सकते थे!

मुझे कैसे भी कर के माँ की डाँट और बच्चों के गुस्से से बचना था और इसका एक ही रास्ता था, वो ये की खुद को दोनों बच्चों की आँखों में निसहाय दिखाया जाए! "ऐसा करते हैं की वोटिंग कर लेते हैं!" वोटिंग से कोई हल निकलना था नहीं, होना वही था जो माँ और संगीता चाहते परन्तु इस रास्ते से बच्चों के सामने मेरी माँ के खिलाफ न जाने की विवशता साफ़ सामने आ जाती| उधर मेरा ये बचकाना ख्याल सुन माँ नाराज़ हो गईं मगर वो मुझे डांटें उससे पहले संगीता ने माँ को रोक दिया और इशारों ही इशारों में माँ से कुछ कहा जिसे मैं या बच्चे समझ नहीं पाए|

"तो जिस-जिस को चाऊमीन या पिज़्ज़ा खाना है वो हाथ उठाये|" मैंने चुनाव प्रक्रिया को शुरू करते हुए कहा| आयुष और नेहा ने बड़े जोश से अपना हाथ उठाया, अब दोनों बच्चों की नज़र मेरे ऊपर ठहरी थी की मैं भी उनका साथ देते हुए हाथ उठाऊँ! वहीं माँ और संगीता मुझे घूर कर देखने लगे ताकि मैं अपना हाथ न उठाऊँ! खुद को बचाने के लिए मैंने दोनों बच्चों को आँखों के इशारे से उनकी मम्मी और दादी जी को देखने को कहा ताकि वो ये समझ जाएँ की मैंने हाथ क्यों नहीं उठाया है| दोनों बच्चों ने जब अपनी मम्मी और दादी जी को मुझे घूरते हुए देखा तो दोनों बेचारे सहम गए! इतने में संगीता बोली; "जो चाहते हैं की आज हम घर में बना हुआ करेला और उर्द की दाल-रोटी खायें, वो हाथ उठायें|" संगीता के बात पूरी करते ही माँ और संगीता ने अपना हाथ ऊपर उठाया तथा दोनों बच्चों ने अपना विरोध दर्शाते हुए हाथ नीचे कर लिया|

अब स्थिति ये थी की बाहर से खाने वाले और घर का खाना खाने वालों के वोट बराबर-बराबर थे तथा मेरा वोट ही निर्णायक वोट था| बच्चे चाहते थे की मेरा वोट उनक पक्ष में पड़े ताकि वो जीत जाएँ और बाहर से खाना आये, वहीं माँ चाहतीं थीं की मैं उनके पक्ष में वोट डालूँ ताकि घर में बना हुआ खाना खाया जाए! मेरे द्वारा निकाला हुआ ये रास्ता मेरे ही गले की फाँस बन गया था! बच्चों के गुस्से के आगे, माँ के डर का पलड़ा भरी था इसलिए मैंने बेमन से अपना हाथ उठाया| मेरे हाथ उठाते ही चुनाव का फैसला माँ और संगीता के हक़ में हो गया तथा संगीता ने बच्चों की तरह ताली बजाते हुए अपनी जीत की ख़ुशी मनाई| तब मुझे समझ आया की ये सब संगीता की चाल थी, उसने जानबूझ कर ये एक तरफा चुनाव होने दिए थे क्योंकि वो जानती थी की माँ के डर के आगे मैं उसके खिलाफ जा ही नहीं सकता|

वहीं बच्चे बेचारे अपनी ही मम्मी द्वारा ठगे गए थे इसलिए दोनों मायूस हो कर मुझसे लिपट गए| "कोई बात नहीं बेटा, आज नहीं तो फिर कभी बाहर से खा लेना|" मैंने बच्चों के सर चूमते हुए कहा| बच्चों को खाना स्वाद लगे इसके लिए मैंने टमाटर भूनकर एक चटपटी सी चटनी बनाई तथा अपने हाथों से बच्चों को ये खाना खिलाया|



उस दिन से जब भी बच्चे बहार से खाने की माँग करते तो संगीता चौधरी बनते हुए वोटिंग की माँग रख देती तथा बच्चे इस एक तरफा खेल में सदा हार जाते! स्कूल में अपनी सोशल स्टडीज की किताब में नेहा ने वोटिंग के बारे में काफी पढ़ रखा था, वो समझ गई की अगर उसे अपने पसंद का खाना मँगवाना है तो उसे राजनीति के इस खेल में अपनी मम्मी को हराना होगा| नेहा तो चुनाव का ये खेल समझ गई थी लेकिन आयुष कुछ नहीं समझा था इसलिए नेहा उसे समझाते हुए बोली; "जिस टीम में ज्यादा लोग होंगें, वो ही टीम जीतेगी|" नेहा ने उदाहरण दे कर आयुष को समझाया तब जा के आयुष को अपनी मम्मी का ये चुनावी खेल समझ आया| बहरहाल, चुनाव जीतने के लिए नेहा को बहुमत चाहिए था इसलिए अपना बहुमत बनाने के लिए नेहा और आयुष मिलकर सोचने लगे;


  • बच्चे जानते थे की उनकी दादी जी के डर के चलते मैं कभी भी बच्चों के पक्ष में वोट नहीं डालूँगा इसलिए मेरा वोट तो बच्चों को को कभी नहीं मिलता!
  • आयुष ने अपना सुझाव रखा की क्यों न किसी बाहर के व्यक्ति, जैसे दिषु चाचा या नेहा-आयुष के दोस्तों से उनके पक्ष में वोट डालने को कहा जाए, लेकिन बाहर से किसी व्यक्ति को वोट डालने के लिए बुलाने पर संगीता मतदान करने वाले व्यक्ति के दूसरे राज्य (अर्थात घर) के होने का बहाना कर के वोट खारिज करवा देती!
  • नेहा ने पेशकश की कि बाहर के व्यक्ति न सही, परिवार के सदस्यों से तो वो अपने पक्ष में वोट डलवा ही सकती है, जैसे बड़े मामा जी, छोटे मामा जी, विराट भैया, बड़ी मामी जी और नानी जी| परन्तु आयुष नेहा को याद दिलाते हुए बोला की उसकी मम्मी के डर से न तो बड़े मामा जी और न ही छोटे मामा जी फ़ोन के जरिये अपना वोट बच्चों के पक्ष में डालेंगे| रही बात विराट भैया, बड़ी मामी जी और नानी जी की तो वो कभी संगीता के खिलाफ जा ही नहीं सकते!
इतना सोचने के बाद भी जब नेहा को हार ही मिली तो उसने लगभग हार ही मान ली थी की तभी आयुष बोला; "दीदी, हम स्तुति को अपने साथ मिला लेते हैं न!" आयुष ने तो केवल अपनी दीदी का मन हल्का करने को मज़ाक में कहा था लेकिन नेहा ने आयुष की बात पकड़ ली! स्तुति का नाम याद आते ही नेहा ने जबरदस्त योजना बना ली, ऐसी योजना जिसके आगे उसकी मम्मी की चपलता धरी की धरी रह जाती!



स्कूल से घर आ कर दोनों बच्चों ने अपनी छोटी बहन को गोदी लिया और खेलने के बहाने अपने कमरे में चलने को कहा| शुरू-शुरू में स्तुति जाने से मना कर रही थी लेकिन नेहा ने उसे अपनी नई किताब दिखा कर ललचाया और गोदी में ले कर चल पड़ी| मेरी भोली-भाली बिटिया रानी को उसी के भाई-बहन बुद्धू बना रहे थे! खैर, तीनों बच्चे गए तो संगीता को मेरे साथ रोमांस का चांस मिल गया, माँ तो वैसे ही आराम कर रहीं थीं इसलिए हम दोनों मियाँ-बीवी ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया!

उधर बच्चों के कमरे के भीतर, नेहा ने स्तुति को ट्रेनिंग देनी शुरू की; "स्तुति, आप अच्छे बच्चे हो न?!" नेहा ने स्तुति से अपना सवाल हाँ में सर हिलाते हुए पुछा तो स्तुति ने अपनी दीदी की देखा-देखि हाँ में अपना सर हिलाया| "तो फिर आप अपनी बड़ी दीदी और बड़े भैया का साथ दोगे न?!" नेहा ने फिर हाँ में सर हिलाते हुए स्तुति से पुछा जिसके जवाब में एक बार फिर स्तुति ने अपनी दीदी की देखा-देखि हाँ में सर हिलाया| "आज रात को न हम मम्मी से पिज़्ज़ा खाने के लिए जिद्द करेंगे, तब मम्मी वोटिंग करने को कहेंगी और आपको हमारा साथ देते हुए हाथ उठाना है|" नेहा ने अपना हाथ उठा कर स्तुति को हाथ उठाना सिखाया| स्तुति के पल्ले कुछ नहीं पड़ा था, वो तो बस अपने बड़े भैया और दीदी का ध्यान अपने ऊपर केंद्रित होने से ही बहुत खुश थी| आयुष और नेहा ने मिलकर करीब एक घंटे तक स्तुति को हाथ उठाना सिखाया और आखिरकार दोनों भाई-बहन की मेहनत सफल हो गई|



रात हुई और संगीता ने खाने में बनाये आलू-परमाल की सब्जी तथा चने की दाल, बस रोटी बननी बाकी थी| तभी नेहा और आयुष अपने हाथ पीछे बाँधे पूरे आतमविह्वास से खड़े हो गए और अपनी मम्मी से बोले; "मम्मी जी, हमारे लिए खाना मत बनाना, हमने आज पिज़्ज़ा खाना है|" नेहा ने बात शुरू करते हुए कहा| नेहा की बात में आत्मविश्वास देख संगीता को अस्चर्य हुआ क्योंकि आज से पहले बच्चे जब भी कुछ खाने की माँग रखते तो उनकी आवाज में नरमी होती थी परन्तु आज ऐसा लगता था मानो बच्चे पिज़्ज़ा नहीं जायदाद में से अपना हक़ माँग रहे हों!

संगीता ने रोटी बनाने के लिए तवा चढ़ाया था परन्तु बच्चों की बात सुन उसने गैस बंद कर दी और सोफे पर माँ की बगल में बैठते हुए पुनः अपनी चाल चलते हुए बोली; "ठीक है, आओ वोटिंग कर लेते हैं!" संगीता को खुद पर जर्रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास था, वो जानती थी की वोटिंग शुरू होते ही बच्चे हार जायेंगे और फिर बच्चों को आलू-परमल खाने ही पड़ेंगे! वो नहीं जानती थी की इस बार उसकी बेटी ने उसकी चाल को नाकाम करने का ब्रह्मास्त्र तैयार कर रखा है|



खैर, जैसे ही संगीता ने वोटिंग की बात कही वैसे ही दोनों बच्चे मेरे अगल-बगल खड़े हो गए| बच्चों का ये आत्मविश्वास देख मैं और माँ हैरान थे क्योंकि हमें लगा था की इस एक तरफा खेल से बच्चे ऊब गए होंगें! "जिसे पिज़्ज़ा खाना है, हाथ ऊपर उठाये!" संगीता ने किसी नेता की तरह आवाज बुलंद करते हुए कहा| अपनी मम्मी की बात सुनते ही आयुष न फ़ट से अपना हाथ ऊपर उठा दिया| वहीं नेहा ने स्तुति की तरफ देखा और उससे नजरें मिलाते हुए अपना हाथ धीरे-धीरे उठाया| स्तुति ने जब अपनी दीदी को हाथ उठाते हुए देखा तो उसने भी जोश में अपना हाथ उठा दिया! स्तुति को हाथ उठाते देख मैं, माँ और संगीता चौंक पड़े! "चुहिया...तेरे तो दाँत भी नहीं निकले, तू पिज़्ज़ा खायेगी!" संगीता प्यारभरा गुस्सा लिए स्तुति से बोली जिस पर स्तुति ने अपने मसूड़े दिखा कर हँसना शुरू कर दिया| इधर मैं और माँ समझ गए की बच्चों ने स्तुति को सब सिखाया-पढ़ाया है इसलिए हम माँ-बेटे मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे|

"पापा जी, आप स्तुति के खिलाफ वोटिंग करोगे?" नेहा ने अपना निचला होंठ फुलाते हुए पुछा| ये नेहा के प्लान का हिस्सा था, वो स्तुति को आगे रखते हुए मेरा वोट अपने पक्ष में चाहती थी! नेहा के पूछे सवाल और स्तुति का जोश से भरा हुआ देख मैं पिघल गया और मैंने अपना हाथ बच्चों के पक्ष में उठा दिया! मेरा हाथ हवा में देख माँ मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं; "ओ लड़के!"

"माँ, जरा मेरी बिटिया रानी को देखो और खुद ही बताओ की क्या आप अपनी पोती के खिलाफ वोट कर सकते हो?!" मैंने स्तुति को गोदी में लिया और माँ को स्तुति का भोला सा चेहरा दिखाते हुए पुछा| स्तुति की किलकारियाँ सुन माँ का दिल भी पिघल गया और वो भी बच्चों की तरफ हो गईं| बेचारी संगीता अकेली पड़ गई थी और उसकी नाक पर मेरे प्रति प्यारभरा गुस्सा आ बैठा था क्योंकि वो मैं ही था जिसने सबसे पहले संगीता की पार्टी छोड़ बच्चों की पार्टी में शामिल हो गया था तथा माँ को भी मैंने ही बच्चों की पार्टी में शामिल करवाया था|

"घर का भेदी, लंका ढाये!" संगीता बुदबुदाते हुए मेरी बगल से निकली| संगीता के इस बुदबुदाने को सुन मुझे हँसी आ गई, मुझे यूँ हँसता हुआ देख माँ ने मेरी हँसी का कारण पुछा तो मैंने बात बनाते हुए कहा की; "वो…बेचारी संगीता हार गई इसलिए मुझे हँसी आ गई!"



संगीता ने गुस्से में आ कर पिज़्ज़ा खाने से मना कर दिया था इसलिए मैंने केवल माँ और बच्चों के लिए पिज़्ज़ा मँगाया तथा मैंने संगीता के साथ आलू-परमल खाये| बच्चों ने संगीता को पिज़्ज़ा खिलाने की कोशिश की मगर संगीता ने गुस्से में पिज़्ज़ा नहीं खाया, मैं पिज़्ज़ा खा लेता मगर इससे संगीता का गुस्सा और धधक जाता!

खाना खा कर मैंने दोनों बच्चों को अपने अगल-बगल बिठाया और उन्हें प्यार से घर का खाना खाने के बारे में समझाया; "बेटा, रोज़-रोज़ बाहर का खाना नहीं खाना चाहिए वरना आपको बड़ा होने के लिए जो पोषक तत्व चाहिए वो कैसे मिलेंगे?! आप जानते हो आपकी मम्मी कितनी मेहनत से रसोई में खड़ी हो कर खाना बनाती हैं, अच्छा लगता है आप बाहर से खाना मँगवा कर उनकी सारी मेहनत बर्बाद कर दो?! फिर ये भी देखो की यूँ रोज़-रोज़ बाहर से खाना खाने से आपकी सेहत पर कितना बुरा असर पड़ता है! चाऊमीन, पिज़्ज़ा, बर्गर, छोले भठूरे आदि सब मैदे से बनते हैं और इनमें तरह-तरह के तेल आदि पड़ते हैं जो की रोज़ खाये जाएँ तो हमारी सेहत खराब होती है| महीने में एक-आध बार बाहर से खाना मँगवाना, या फिर कोई ख़ास ख़ुशी हो तब ही हमें खाना मँगवाना चाहिए इससे सेहत अच्छी रहती है| बाकी दिनों में आपकी मम्मी इतना स्वाद-स्वाद खाना बनाती हैं हमें वो खाना चाहिए| जो सब्जियाँ आपको नहीं पसंद उन्हें अब से मैं स्वाद बनाऊँगा, जिससे आपको बाहर से खाना मँगाने की जर्रूरत ही न पड़े! ठीक है बच्चों?!" मैंने बच्चों को बड़े प्यार से समझाया तथा दोनों बच्चों ने मेरी बात का मान रखते हुए ख़ुशी से अपना सर हाँ में हिलाया| बच्चों को सुला कर मैं अपने कमरे में आया तो मैंने देखा की संगीता का गुस्सा कुछ ठंड हुआ है, बाकी गुस्सा ठंडा करने के लिए मुझे हम दोनों मियाँ-बीवी के जिस्मों को गर्म करना था!



घर का माहौल फिर से शांत और खुशनुमा हो गया था| जिस दिन घर में वो सब्जियाँ बननी होती जो बच्चों को नपसंद हैं तो एप्रन पहन कर मैं रसोई में घुस जाता और खूब तड़का लगा कर उन सब्जियों को स्वाद बनाता| बच्चों को मेरे हाथ का बना खाना वैसे ही पसंद था इसलिए जब मैं उनकी नपसंद की हुई दाल-सब्जी बना कर उन्हें अपने हाथ से खिलाता तो बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी खा लेते|

इधर अपने बड़े भैया और बड़ी दीदी की देखा-देखि मेरी बिटिया रानी भी शैतान हो गई थी! एक दिन की बात है, दोपहर का खाना खा कर हम सभी माँ के कमरे में बैठे बात कर रहे थे, तीनों बच्चे तो सो गए बचे हम माँ-बेटा और संगीता| गर्मियाँ शुरू हो गईं थीं और मुझे आ रही थी नींद इसलिए मैं अपने कमरे में आ कर केवल पजामा पहने सो गया| शाम को जब स्तुति जागी तो उसने मुझे अपने पास न पाकर कुनमुनाना शुरू कर दिया| स्तुति रो न पड़े इसलिए संगीता उसे गोदी में मेरे पास ले आई और मेरी बगल में लिटा कर खुद खड़ी हो कर कपड़े तहाने लगी| इधर मैं दाईं करवट यानी संगीता की तरफ करवट कर के लेटा था और मेरी बगल में लेटी हुई स्तुति को नजाने क्या मस्ती सूझी की उसने मेरी तरफ करवट ली| चूँकि मैं कमर से ऊपर नग्न अवस्था में था इसलिए स्तुति की नज़र पड़ी मेरे निप्पलों पर! थोड़ा खिसकते हुए स्तुति मेरे नजदीक आई और मेरे दाएँ निप्पल पर अपने गीले-गीले होंठ लगा कर दूध पीने की कोशिश करने लगी!

जैसे ही मुझे मेरे दाएँ निप्पल पर कुछ गीला-गीला महसूस हुआ मेरी आँख खुल गई! स्तुति को अपने निप्पल पर मुँह लगा कर दूध पीता हुआ देख मैंने फौरन स्तुति को पकड़ कर खुद से दूर किया और हँसते हुए बोला; "नहीं-नहीं बेटा! मुझे दूधधु नहीं आता, आपकी मम्मी जी को आता है!" मुझे मुस्कुराता हुआ देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और वो खिलखिलाकर हँसने लगी! उधर मेरी बात सुन संगीता को समझ आया की स्तुति मेरा दूध पीने की कोशिश कर रही थी इसलिए संगीता अपना पेट पकड़ कर हँसने लगी और स्तुति की होंसला अफ़ज़ाई करते हुए बोली; "शाबाश बेटा! पापा जी का ही दूधधु पियो!" अपनी मम्मी की बात सुन स्तुति अपने दोनों हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिए मानो वो मेरे दोनों निप्पल पकड़ कर दूध पीना चाहती हो! "मेरा शैतान बच्चा!" ये कहते हुए मैंने संगीता से कहा की वो स्तुति को दूध पिला दे मगर स्तुति को दूध पीना ही नहीं था, वो तो बस मेरे साथ मस्ती कर रही थी!



अभी तक तो मेरी बिटिया रानी हम सबकी गोदी में बैठ कर राज करती थी, लेकिन जैसे ही स्तुति ने अपने दोनों हाथों-पैरों पर धीरे-धीरे रेंगना शुरू किया, हम सभी के लिए आफत आ गई! सबसे पहले तो मैंने दिवार में जितने भी बिजली के स्विच-सॉकेट नीचे की ओर लगे थे उन्हें मैंने उ बंद करवाया ताकि कहीं अनजाने में स्तुति सॉकेट में अपनी ऊँगली न डाल दे और उसे करंट न लग जाए| फिर मैंने हमारे घर के सारे दरवाजों की चिटकनियाँ निकलवा दी, ताकि कहीं गलती से स्तुति कोई दरवाजा धक्का दे कर बंद कर दे तो दरवाजा लॉक न हो जाए! बस घर का मुख्य दरवाजा और माँ के बाथरूम का दरवाजा ही थे जिनमें ऊपर की ओर चिटकनी लगी थी जहाँ स्तुति का हाथ पहुँच ही नहीं सकता था|



जबतक मैं घर पर होता, संगीता को चैन रहता था क्योंकि स्तुति मेरे साथ खेलने में व्यस्त रहती लेकिन जैसे ही मैं घर से गया नहीं की स्तुति अपने दोनों हाथों ओर पैरों के बल रेंगते हुए पूरे घर में घूमने लगती| पूरे घर में स्तुति की दो मन पसंद जगह थीं, एक थी माँ के पलंग के नीचे और दूसरी थी रसोई| जब भी संगीता खाना बना रही होती स्तुति उसके पीछे पहुँच जाती और कभी संगीता की साडी खींच कर तो कभी चिल्ला कर अपनी मम्मी का ध्यान अपनी ओर खींचती| "आ गई मेरी नानी!" संगीता अपना सर पीटते हुए कहती| अपनी मम्मी को अपना सर पीटता हुआ देख स्तुति को बहुत मज़ा आता और वो खिखिलाकर हँसने लगती| संगीता की समस्या ये थी की स्तुति को जिज्ञासा होती थी की उसकी मम्मी आखिर कर क्या रही है इसलिए स्तुति रसोई के फर्श पर बैठ कर शोर मचाती थी| संगीता मेरी बिटिया की ये जिज्ञासा नहीं समझ पाती थी इसलिए वो चिड़चिड़ी हो जाती और स्तुति को उठा कर माँ की गोदी में दे देती| लेकिन स्तुति माँ की गोदी में छटपटाने लगती और माँ की गोदी से नीचे उतरने की जिद्द करती| जैसे ही माँ ने स्तुति को नीचे उतारा नहीं की स्तुति सीधा रसोई की तरफ खदबद (अपने दोनों हाथों-पैरों पर तेज़ी से चलना) दौड़ जाती! स्तुति का रसोई के प्रति आक्रषण माँ को थोड़ा-थोड़ा समझ आने लगा था| स्तुति रसोई में अधिकतर तब ही जाती थी जब संगीता रोटी बना रही होती थी| जब माँ को ये बात समझ में आई तो उन्होंने संगीता को समझाया; "बेटा, मानु जब छोटा था तो वो भी मेरे-मेरे पीछे रसोई में आ जाता था| उसे मुझे रोटियाँ बनाते हुए देखना अच्छा लगता था| मैं कई बार कच्चे आटे से बनी हुई चिड़िया या हवाई जहाज बना कर उसे देती तो वो उस चिड़िया या हवाई जहाज से रसोई के फर्श पर बैठ कर खेलने लगता| जब धीरे-धीरे मानु बड़ा होने लगा तो उसने एक दिन कहा की मम्मी मैं भी रोटी बनाऊँ? तो मैंने आखिर में उसे एक रोटी बनाने को दी, लेकिन उसके हाथ थे छोटे-छोटे और बेलन बड़ा इसलिए बेचारा रोटी नहीं बना पता था| तब तेरे ससुर जी ने मानु को एक छोटा सा चकला-बेलना ला कर दिया और तब से मानु ने मेरी देखा-देखि रोटी बनानी शुरू की| वो बात अलग है न उससे तब रोटी गोल बनती थी और न अब बनती है! खैर, उसकी बनाई ये आड़ी-टेढ़ी रोटी तेरे ससुर जी खाते थे या फिर मैं और हमें ये रोटी कहते देख मानु को बहुत ख़ुशी होती थी| वो रोज़ रोटी बनाना चाहता था मगर मैं उसे डाँट-डपट कर भगा देती थी क्योंकि उसे रोटी बनाने में बहुत समय लगता था और मुझसे गर्मी में खड़े हो कर उसकी रोटी बनने का इंतज़ार नहीं होता था!

फिर जब मानु करीब 3 साल का हुआ तो उसने मुझे सताने के लिए एक और शरारत खोज निकाली| जब मैं रोटी बना रही होती तो वो पीछे से दबे पॉंव आता और कटोरी में रखा घी पी कर भाग जाता! जब मैं रोटी सेंक कर उस पर घी लगाने को कटोरी उठाती तो देखती क्या हूँ की घी तो सब साफ़ है! फिर मैं उसे बहुत डाँटती, लेकिन ये लाड़साहब कहाँ सुनते हैं! ऐसे ही एक दिन तेरे ससुर जी सर्दी के दिनों में छत पर सरसों का साग और मक्की की रोटी बना रहे थे| ज़मीन पर ईंटों का चूल्हा बना, तवा चढ़ा कर तेरे ससुर जी रोटी बेल रहे थे की तभी मानु पीछे से रेंगता हुआ आया और घी वाली कटोरी का सारा घी पी कर भाग गया! जब तेरे ससुर जी रोटी में घी लगाने लगे तो घी खत्म देख वो बड़े हैरान हुए, तब मैंने उन्हें बताया की ये सब उन्हीं के लाड़साहब की करनी है तो तेरे ससुर जी बहुत हँसे! 'बमास (बदमाश) इधर आ!' तेरे ससुर जी ने हँसते हुए मानु को अपने पास बुलाया और उसे प्यार से समझाया की यूँ असली घी अधिक पीने से वो बीमार पड़ जायेगा, तब जा कर मानु की ये शैतानी बंद हुई!" माँ के मुख से मेरे बचपन के मजेदार किस्से सुन संगीता को बहुत हँसी आई| वहीं स्तुति ने भी अपने पापा जी के ये किस्से सुने थे मगर उसे समझ कुछ नहीं आया, वो तो बस सब को हँसता हुआ देख हँस रही थी|



ऐसा नहीं था की केवल मुझ में ही बचपना भरा था, बचपना तो मेरी माँ के भीतर भी बहुत था तभी तो उन्होंने मुझे साइट पर फ़ोन कर स्तुति के लिए चकला-बेलन लाने को कहा ताकि माँ स्तुति को रोटी बनाना सीखा सकें! शाम को जब स्तुति के लिए चकला-बेलना, छोटे-छोटे बर्तन, गैस-चूल्हा इत्यादि ले कर मैं घर आया तो नेहा की आँखें ये खिलोने देख कर नम हो गई| नेहा को ये छोटे-छोटे खिलोने देख कर उसका छुटपन याद आ गया था, वो दिन जब नेहा छोटी सी थी और मैं गाँव में आया था, तब नेहा अपने मिटटी से बने बर्तनों में मेरे लिए झूठ-मूठ का खाना पकाती तथा मैं चाव से खाने का अभिनय करता| आज उन मधुर दिनों को याद कर मेरी बेटी नेहा की आँखें नम हो गई थीं| "आजा मेरा बच्चा!" ये कहते हुए मने अपनी बाहें खोलीं और नेहा दौड़ती हुई आ कर मेरे सीने से लग गई| आयुष को अपनी दीदी का यूँ भावुक होना समझ नहीं आया इसलिए वो सवालिया नजरों से हम दोनों बाप-बेटी को यूँ खामोश गले लगे हुए देख रहा था| "बेटा, जब आपकी दीदी छोटी थीं न तब गाँव में वो मेरे साथ घर-घर खेलती थीं| आपकी दीदी के पास मिटटी के बर्तन थे और वो उन पर मेरे लिए खाना बनाती थी| आज उन्हीं दिनों को याद कर के आपकी दीदी भावुक हो गईं|" मैंने आयुष के मन में उठे सवाल का जवाब दिया| मेरी बात सुन आयुष जोश में आ कर नेहा के साथ मेरे गले लग गया जिससे नेहा का ध्यान बँट गया और वो नहीं रोई|


हम तीनों बाप-बेटा-बेटी गले लगे थे तो स्तुति को आया प्यारा सा गुस्सा, वो भी अपनी मम्मी की तरह मुझ पर हक़ जमाती थी| "स्तुति ने मेरी तरफ अपने हाथ फैलाये और खुद को गोदी लेने को कहने के लिए अपनी बोली-भाषा में कुनमुनाने लगी| मैंने दोनों बच्चों को एक मिनट रुकने को कहा तथा स्तुति को अपनी गोदी में उठा लिया, स्तुति को एक हाथ से सँभाल कर मैंने आयुष और नेहा को फिर से मेरे गले लगने को कहा| दोनों बच्चे आ कर मुझसे लिपट गए, लेकिन स्तुति को अपने पापा जी को अपने बड़े भैया और बड़ी दीदी के साथ बाँटना अच्छा नहीं लगता था इसलिए उसने अपनी दीदी और अपने भैया के बाल खींचने शुरू कर दिए! जब स्तुति ने नेहा के बाल खींचे तो नेहा ने पहले तो अपने बाल स्तुति की पकड़ से छुड़ाए और फिर स्तुति के कूल्हों पर प्यारी सी चपत लगाते हुए बोली; "चुहिया!" इतना कह नेहा स्तुति के लिए लाये हुए खिलोने पैकेट से निकलने लगी| स्तुति के लिए नए खिलोने देख कर आज मेरा मन बच्चों के साथ खेल-खेलने का कर रहा था| मैंने नेहा को सारे खिलोने अच्छे से धो कर लाने को कहा| फिर मैं, आयुष और नेहा डाइनिंग टेबल की कुर्सी खींच कर बैठ गए तथा स्तुति को हमने डाइनिंग टेबल के ऊपर बिठा दिया| नेहा ने झूठ-मूठ की गैस जलाई और उन छोटे-छोटे बर्तनों में खाना बनाने का अभिनय करने लगी| स्तुति को ये खेल समझ नहीं आ रहा था परन्तु वो अपनी दीदी को खाना बनाने का अभिनय करते हुए बड़ी गौर से देख रही थी| खेल को थोड़ा सा और असली बनाने के लिए उन खाली बर्तनों में स्तुति को खिलाये जाने वाले फल को मींज कर डाल दिया| जब खाना बना तो नेहा ने हम सभी के लिए छोटी-छोटी प्लेटों में मींजे हुए फल खाने के रूप में परोस दिए| जब मैंने स्तुति को उसकी छोटी सी प्लेट उठा कर दी तो स्तुति बहुत खुश हुई और उसने आज पहलीबार अपने हाथ से प्लेट में मींजे हुए फलों के मिश्रण को अपने हाथों से उठाया और खाया| स्तुति को ये खेल पसंद आ गया था इसलिए रोज़ शाम को हम चारों मिल कर ये खेल खेलने लगे|

जारी रहेगा भाग - 20 (2) में...
Superb update Bhai
 
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