ये कहानी हमें अपने टाइप की लग रही है। साफ सुथरी। इसके लिए समय निकालना होगा।
Ho kahan aap YouAlreadyKnowMe Sangeeta Maurya ji
काहे ना बुलाओअरे उन्हें न बुलाओ, वो आजकल एक ही गाना गाने में व्यस्त हैं; "साथिया तूने क्या किया?!" मैं तब से ये ही सोच रहा हूँ की मैंने आखिर किया क्या है?![]()
ई वाला अपडेट बहुत तेज भागा................अइसन लगा जइसन इस एक अपडेट मा सदियाँ गुज़र गईं.................................और तो और हमार ई अपडेट मा एक्को बार ज़िक्र नाहीं आवा......................हम कहानी की मुख्य नायिका हन...................और हमरे संगे ई व्यवहार करत होअंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 9
अब तक अपने पढ़ा:
उधर स्तुति अपने बड़े भैया को सबसे माफ़ी माँगते हुए बड़े प्यार से देख रही थी| जब आयुष को सब ने लाड-प्यार कर लिया तो स्तुति ने अपने भैया को पुकारा; "आइया...चो...को (चॉकलेट)" ये कहते हुए स्तुति ने अपने बड़े भैया आयुष को खुश करने के लिए अपनी आधी खाई हुई चॉकलेट दी| आयुष ने हँसते हुए स्तुति की आधी खाई हुई चॉकलेट ले ली और बोला; "स्तुति, बाकी की चॉकलेट कहाँ गई?" आयुष के पूछे सवाल के जवाब में स्तुति मसूड़े दिखा कर हँसने लगी और तब हमें पता चला की स्तुति आधी चॉक्लेट खुद खा गई!
"चॉकलेट तो ये पिद्दा आयुष के लिए लाई थी मगर सीढ़ी चढ़ते हुए इस शैतान को लालच आ गया और इस शैतानी की नानी ने आधी चॉकलेट खुद ही खा ली! " नेहा ने स्तुति की चुगली की जिसपर हम सभी ने जोरदार ठहाका लगाया!
अब आगे:
प्रतिकाष्ठा
समय का चक्र इतनी तेज़ी से घूमा की आयुष, नेहा और स्तुति कुछ ज्यादा जल्दी ही बड़े हो गए!
सबसे छोटी स्तुति न केवल मस्ती करने में आगे रहती थी बल्कि वो अब चुलबुली बन गई थी| स्तुति बिलकुल गोलू-मोलू थी और इतनी प्यारी की उसे देख हर कोई उस पर मोहित हो जाता| पूरा दिन स्तुति घर में फुदकती रहती और कुछ न कुछ रटती रहती| कभी अपने कार्टून का नाम तो, कभी कोई गाना गुनगुनाती रहती| कभी अपने खिलोनो के साथ खेलती तो कभी अपनी मम्मी के पीछे घूमती रहती| स्तुति के मन में इतनी जिज्ञासा भरी थी की वो सभी से सवाल पूछती रहती| स्तुति की इस जिज्ञासा से संगीता अक्सर चिढ जाती और स्तुति को बाहर भगा देती!
जब भी घर में कोई समारोह होता और काम बाँटा जाता तो स्तुति का हाथ सबसे पहले उठता| "हम करब" कहते हुए स्तुति कूदने लगती, वो बात अलग है की उसे काम कोई नहीं दिया जाता क्योंकि अक्सर स्तुति की मस्तियाँ काम बढ़ा दिया करती थीं| लेकिन स्तुति काम न मिलने पर उड़ा नहीं होती, बल्कि वो सबके काम पर नज़र रखने का काम करती| किसी से कोई गलती हुई नहीं की स्तुति किसी मास्टरनी की तरह गलती गिनाने लग जाती|
मस्ती के अलावा खाने-पीने के मामले में स्तुति हमेशा आगे रहती थी| भाईसाहब जब भी घर में कथा-भागवत बैठाते तो खाने में क्या बनेगा ये सवाल केवल स्तुति से पुछा जाता| फिर तो स्तुति बिलकुल अपनी मम्मी की तरह खाने की चीजें गिनाने लगती, जिसे देख सभी ज़ोर से ठहाका लगाने लगते|
जब स्तुति अपनी नानी जी के घर जाती तो वहाँ जा कर स्तुति के मस्ती भरे पँख निकल आते| कभी अपने चरण नाना जी की दूकान में बैठ कर उनकी दूकान की बिक्री बढ़ाने के लिए; "ले लो..ले लो.. तीन रुपये में दुइ ठो पान ले लो!" का नारा ज़ोर-ज़ोर से लगाती तो कभी अपनी नानी जी के पास बैठ कर उन्हें अंग्रेजी सिखाने लगती| एक दिन तो स्तुति की नानी जी ने मुझे फ़ोन घुमा कर उसकी शिकायत करनी शुरू कर दी; "ई मुन्नी हमका अंग्रेजी सिखावत है! अब तुहुँ बतावा हम का करि?!" लेकिन स्तुति ने हार मानना नहीं सीखा था इसलिए उसने अपनी नानी जी को "आई लव यू" बोलना सीखा दिया| फिर तो जब भी स्तुति अपनी नानी जी के घर जाती, उसकी नानी जी उसे रोज़ आई लव यू कह कर लाड-प्यार करतीं|
इधर, भाईसाहब अपनी छोटी सी भाँजी में अपनी बहन संगीता का बचपना देखते और स्तुति को खूब लाड-प्यार करते| जब भी स्तुति अपने बड़े मामा जी के पास होती तो भाईसाहब स्तुति को अपनी पीठ पर लादे हुए पूरे गॉंव में टहला लाते| आखिर जो प्यार भाईसाहब अपनी बहन संगीता को नहीं दे पाए वो प्यार अब स्तुति पर लुटाया जा रहा था|
वहीं भाभी जी यानी स्तुति की बड़ी मामी जी तो स्तुति को सबसे ज्यादा लाड करतीं| जब भी स्तुति घर आती तो उसे गोद में बिठा कर उसकी पसंद का खाना बनतीं| स्तुति अगर कुछ बाहर से खाने को माँगती तो भाभी जी तुरंत विराट या भाईसाहब को वो वो खाने की चीज़ लाने को दौड़ा देतीं| स्तुति भी अपनी बड़ी मामी जी को कम प्यार नहीं करती थी, हमेशा अपनी मामी जी की मदद करने के लिए स्तुति सबसे आगे होती|
जब स्तुति की उम्र स्कूल जाने की हुई तो और भी गजब हुआ| जहाँ बाकी बच्चे स्कूल के पहले दिन रोते हैं, स्तुति एकदम निडर थी बल्कि ये कहना उचित होगा की वो तो स्कूल जाने को अतिउत्साहित थी! स्कूल के पहले ही दिन स्तुति की क्लास के सारे बच्चे उसके दोस्त बन गए तथा अध्यापिकायें स्तुति के गोल-मटोल गाल खींचते नहीं थकती थीं| स्तुति के छुटपन में जो मैंने, नेहा और आयुष ने मिल कर स्तुति को ABCD तथा पोएम याद कराईं थीं उस कारण स्तुति का मन पढ़ाई में लग गया था, तभी तो स्तुति की सारी अध्यपिकाएँ उसकी तारीफ करते नहीं थकती थीं| जितना स्तुति मस्ती करने में आगे थी, उतना ही वो पढ़ाई करने में आगे थी| पढ़ाई के मामले में हमारे पूरे परिवार में स्तुति ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है और वो ये की आजतक स्तुति अपनी क्लास में फर्स्ट ही आई है!
चूँकि स्तुति बड़ी हो चुकी थी इसलिए उसने आयुष को अब 'बड़े भैया' कह कर बुलाना शुरू कर दिया था| वहीं अपनी छोटी बहन के मुख से ये प्यारभरे शब्द सुन कर आयुष का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो जाता| दोनों भाई-बहन के बीच प्यार बहुत घनिष्ट था, दोनों एक साथ बैठ कर खाना खाते, एक साथ अपने स्कूल का होमवर्क करते| यदि स्तुति को पढ़ाई में कोई कठनाई होती तो आयुष स्तुति को पढ़ाने बैठ जाता और खाने-पीने के उदहारण दे कर समझाता, जिससे स्तुति को बहुत मज़ा आता| स्तुति की मस्तियों के कारण जब भी स्तुति को डाँट पड़ती तो आयुष फौरन उसे बचाने आ जाता और स्तुति के हिस्से की डाँट खुद खाता| स्तुति को अपने बड़े भैया की शय मिलती थी इसलिए स्तुति और भी अधिक मस्तियाँ करती|
वहीं, अपनी दिद्दा नेहा के साथ स्तुति का रिश्ता नोक-झोंक भरा था! स्तुति को अपनी दिद्दा को तंग करने में कुछ ज्यादा ही मज़ा आता था| नेहा के बाल खींचने की आदत जो स्तुति ने अपने छुटपन में सीखी थी वो आदत स्तुति में अब भी थी| जब भी नेहा पढ़ रही होती तो स्तुति दबे पॉंव पीछे से आती और अपनी दिद्दा की चोटी खींच कर भाग जाती! कभी-कभी स्तुति अपनी दिद्दा के कपड़े पहन कर देखती, अब नेहा के कपड़े स्तुति के लिए बहुत बड़े थे इसलिए कपड़े अधिकतर ज़मीन से लथेड़ जाते और मिटटी के कारण गंदे हो जाते| जब नेहा देखती की उसके कपड़ों पर मिटटी लगी है तो नेहा स्तुति को सबक सिखाने उसके पीछे दौड़ती मगर स्तुति इतनी फुर्तीली थी की वो अपनी दिद्दा को चकमा दे कर भाग जाती! यही नहीं कभी-कभी स्तुति अपनी दिद्दा की चप्पल पहन कर जाती और जहाँ-तहाँ फेंक आती, जिस पर नेहा बहुत गुस्सा होती और फिर स्तुति के पीछे भागती!
स्तुति की ये मस्तियाँ नेहा को न भातिं इसलिए नेहा अपना अलग बदला लेती| जब स्तुति सो रही होती तो उसके ऊपर पानी डालकर उसे उठा देती, जिससे स्तुति रोने लगती! स्तुति खेलती हुई नज़र आई नहीं की नेहा उसे पढ़ने के लिए डाँटने लगती, अतः डर के मारे स्तुति पढ़ने बैठ जाती| आयुष अपनी छोटी बहन के लिए जब टॉफ़ी या चॉकलेट लाता तो नेहा फट से सब चट कर जाती, अब स्तुति को आता गुस्सा इसलिए वो अपनी दिद्दा की शिकायत करने चल पड़ती, तब नेहा उसके कान पकड़ कर उसे कमरे में बंद कर देती और जबतक स्तुति का रोना शुरू नहीं होता तब तक दरवाजा बंद ही रखती| वो तो आयुष आ कर हाथ जोड़कर अपनी दीदी से स्तुति की मस्तियों की माफ़ी माँगता, तब जा कर नेहा दरवाजा खोलती!
ऐसा नहीं था की नेहा को स्तुति से कोई चिढ होती थी, या नेहा हमेशा ही स्तुति को डाँटती रहती थी| जब स्तुति का रिजल्ट आता तो स्तुति सबसे पहले दौड़ कर अपनी दिद्दा के पास आती और नेहा स्तुति का रिपोर्ट कार्ड देख उसके फर्स्ट आने पर स्तुति को खूब लाड-प्यार करती| स्तुति को कपड़े पहनने का सलीका नेहा ही सिखाती थी, यहाँ तक की स्तुति को जब अपनी चोटी बनवानी होती तो वो सीधा अपनी दिद्दा के पास दौड़ी आती| दरअसल, नेहा चाहती थी की स्तुति मस्ती कम और पढ़ाई ज्यादा करे, लेकिन जब स्तुति अधिक मस्ती करती तो नेहा उस पर खफा हो जाती!
खैर, स्तुति मस्तीखोर सही मगर उसकी ये मस्तियाँ केवल घर में होती थीं| जब कभी कोई मेहमान घर आया हो या कहीं बाहर जाना हो तो स्तुति बिलकुल मस्ती नहीं करती तथा अपने बड़े भैया के साथ रहती|
आयुष की बात करें तो, मैंने जो आयुष को थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारियाँ लेना सिखाया था उस वजह से आयुष एक आदर्श बेटे के रूप में उभर कर आया| घर का कोई भी काम हो, आयुष पूरी निष्ठा से पूरा करता और सारा हिसाब-किताब सीधा अपनी मम्मी को देता| संगीता ने भले ही आयुष को बहुत डाँटा हो मगर अब आयुष अपनी मम्मी का लाडला बन गया था|
आयुष को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था इसलिए एक समय ऐसा आया जब आयुष पढ़ाई की तरफ थोड़ा ढीला हो गया था, जिस कारण आयुष के पढ़ाई में कम नंबर आये, नतीजन आयुष को सबसे डाँट पड़ी| उस समय मैंने आयुष को प्यार से समझाया; “बेटा, मैं जानता हूँ की आपको क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता है और आप आगे चलकर क्रिकेटर बनना चाहते हो मगर बेटा क्रिकेट में स्कोप नहीं है! इस खेल में कम्पीटिशन इतना है की आप सबका मुक़ाबला नहीं कर पाओगे!
बेटा हम लड़कों पर बहुत जिम्मेदारियाँ होती हैं इसलिए कई बार अपने परिवार के लिए अपनी पसंद की चीजों का त्याग करना होता है| क्रिकेट खेलने से आप पैसे नहीं कमा पाओगे| केवल पढ़ाई ही है जो आपको बड़े हो कर पैसे कमाने में मदद करेगी|
आप क्रिकेट को बस अपने मनोरंजन के लिए खेलो और अपना ध्यान केवल पढ़ाई में लगाओ| आपको मैथमेटिक्स मुश्किल लगता है न, तो मैं आपकी मैथमेटिक्स की टूशन लगवा देता हूँ| अगर आपको टूशन में कुछ समझ न आये तो बताना, मैं आपकी क्लास टीचर से बात करूँगा|" मेरी बात थोड़ी कड़वी थी मगर आयुष को समझ आ गई थी| उस दिन से आयुष ने अपना मन पढ़ाई में लगा लिया| आयुष पढ़ाई में अव्वल तो नहीं आ पाता था मगर अपनी क्लास के टॉप 10 में अवश्य आता था, जिससे परिवार में अब किसी को आयुष से कोई शिकायत नहीं रहती थी|
जैसे-जैसे आयुष बड़ा होता गया, हम बाप-बेटे का रिश्ता दोस्ती के रिश्ते में बदल गया|
वहीं दूसरी तरफ, मेरी बिटिया नेहा में गज़ब का आत्मविश्वास पैदा हो गया था| जब से नेहा को फ़ोन मिला था, नेहा ने फेसबुक पर अपना अकाउंट बना अपने नए दोस्त बनाने शुरू किये| इन्हीं नए दोस्तों में से एक करुणा भी थी, करुणा ने नेहा का नंबर ले लिया और फिर दोनों what's app पर चैट करने लगे|
संगीता जब नेहा को अपने फ़ोन में घुसी देखती तो उसे बहुत गुस्सा आता और वो नेहा को डाँटने लगती| धीरे-धीरे संगीता को शक होने लगा की कहीं नेहा क्लास के लड़कों के साथ what's app पर ऐसी-वैसी बातें तो नहीं करती?! अब मुझे अपनी बेटी पर पूरा विश्वास था की वो ऐसा कोई काम नहीं करती मगर संगीता के शक का निवारण करना जर्रूरी था वरना फिर संगीता का मुँह बन जाता! संगीता के मन की तसल्ली के लिए मुझे अपनी ही बेटी के साथ छल करना था|
एक बार मुझे किसी को फ़ोन करना था तब मैंने नेहा से फ़ोन लिया था, उस समय नेहा ने मुझे अपने फ़ोन का पासवर्ड बताया था| मैंने वो पासवर्ड संगीता को बताया तथा नेहा को अपनी बातों में व्यस्त करते हुए छत पर ले आया| संगीता ने इस मौके का फायदा उठाया और नेहा का what's app खँगालने लगी| तभी संगीता को पता चला की नेहा करुणा से चाट करती है मगर दोनों की चैट में कुछ भी ख़ास नहीं निकला| नेहा की बातें अक्सर अपनी सहेलियों से होती और वो सब बातें पढ़ाई या हीरो-हेरोइन से जुडी होतीं| नेहा के फ़ोन में कुछ भी ऐसा-वैसा नहीं निकला था इसलिए संगीता ने चैन की साँस ली|
चूँकि अब संगीता को नेहा के फ़ोन का पासवर्ड पता था इसलिए अब नेहा का फ़ोन चोरी-छुपे संगीता द्वारा रोज़ ही चेक होता था|
चूँकि नेहा बड़ी हो रही थी तो उसे थोड़ी आजादी चाहिए थी| रविवार का दिन था और नेहा के दोस्तों ने मॉल जाने का प्लान बनाया था| नेहा ने जब अपनी मम्मी से इजाजत माँगी तो संगीता ने फौरन न कह दिया! अब देखा जाए तो, जाने को नेहा अपनी दादी जी के पास जा सकती थी मगर माँ के न कहने के आसार ज्यादा थे और एक बार माँ ने न कह दिया तो सब चौपट हो जाता! अतः जब मैं नहा कर आया तो नेहा मेरे पास अपनी आस की टोकरी ले कर आई और मॉल जाने की इजाजत माँगी| "ठीक है बेटा, लेकिन पहले मुझे सारी जानकारी सच-सच बताओ|" ये कहते हुए मैंने नेहा से मॉल जाने के बारे में सारी जानकारी ली तथा नेहा के दोस्तों के नंबर भी ले लिए| "ठीक है बेटा आप जा सकते हो| लेकिन वापसी में स्तुति और आयुष के लिए चॉकलेट ले के आना वरना दोनों रूठ जायेंगे!" मैंने नेहा को खर्चे के लिए कुछ पैसे देते हुए कहा|
मेरी हाँ सुन नेहा ख़ुशी से कूद पड़ी और फटाफट तैयार हुई| वहीं मैंने ये सुनिश्चित किया की नेहा ने अपने जिन दोस्तों के साथ जाने के बारे में मुझे बताया था वही लोग उसे लेने भी आये हैं| नेहा गई तो संगीता भुनभुनाती हुई मुझ पर चढ़ बैठी, साथ ही उसने माँ के दिल में भी मेरे खिलाफ आग लगा दी की मैं कैसे बच्चों को बेवजह सर पर चढ़ा रहा हूँ| अपनी बिटिया का शौक पूरा करने के लिए मुझे माँ और संगीता से पेट भरकर डाँट पड़ी!
नेहा तीन घंटे के लिए बोल कर गई थी मगर नेहा 2 घंटे बाद ही वापस आ गई, इसी वजह से नेहा को अपनी दादी जी से डाँट नहीं पड़ी| नेहा पढ़ाई में अव्वल आती थी, बिलकुल शरारती नहीं थी इस कर के माँ ने नेहा को थोड़ी छूट दे दी मगर माँ ने एक शर्त रखी; "अगर दोस्तों के साथ जाना है तो हमें सब बता कर जाना होगा और सिर्फ दिन में ही जाना होगा! किसी भी हाल में शाम 5 बजे से पहले घर वापस आना वरना ये बाहर घूमना बंद!" माँ की शर्त नेहा ने ख़ुशी-ख़ुशी मान ली और उस दिन से नेहा कभी-कभी अपने दोस्तों के साथ मॉल या पिक्चर जाने लगी|
एक बार नेहा की दोस्त का जन्मदिन था और वो पार्टी रात में एक रेस्टोरेंट में देना चाहती थी| अब माँ ने नेहा के लिए पहले ही समय की लक्ष्मण रेखा बाँध रखी थी जो किसी हाल में नहीं टूटने वाली थी इसलिए नेहा फ़रियाद ले कर सीधा मेरे पास आई| मैंने इस पार्टी के बारे में नेहा से जानकारी ली तो पता चला की इस पार्टी में लड़के भी होंगे! अब मुझे अपनी बेटी की सुरक्षा की चिंता थी मगर नेहा को पार्टी में जाने के लिए मना कर मैं नेहा का दिल नहीं तोडना चाहता था!
न चाहते हुए भी मैंने आधे मन से अपना सर हाँ में हिलाया| परन्तु मेरे दिमाग में एक योजना तैयार हो चुकी थी! इधर मेरी इजाजत पा कर नेहा ख़ुशी से उछल पड़ी और आ कर मेरे सीने से लग कर मुझे थैंक यू बोलने लगी| उधर संगीता मेरे हाँ कहने से गुस्से से तमतमा गई थी और मुझे खा जाने वाली नजरों से घूर रही थी! नेहा अपने पार्टी जाने की खुशखबरी सुनाने अपने दोस्त को फ़ोन करने भागी और संगीता मेरे ऊपर बरस पड़ी; "सर पर चढ़ा लो इसे, फिर जब ये आपके सर पर नाचेगी न तब मेरे पास मत आना!"
शाम को माँ ने पूजा में जाना था और उन्हें रात 10 बजे तक लौटना था इसलिए बड़ी मुश्किल से मैंने संगीता को माँ से ये बात राज़ रखने के लिए मना लिया था| 5 बजे माँ पूजा के लिए निकलीं और 6 बजे नेहा को लेने उसके दोस्त कैब कर के आये| नेहा के जाते ही मैंने संगीता को मस्का लगाना शुरू कर दिया| संगीता रसोई में खाना बना रही थी जब मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसे मनाने के लिए तीन जादुई शब्द कहे, जिन्हें सुन संगीता का गुस्सा एक पल में फुर्र्र हो गया; “बियर पीने चलोगी!"
ये तीन जादुई शब्द संगीता के कानों में घुल गए और उसने चहकते हुए मुझे देखा और बिना कोई पल बर्बाद किये हाँ में अपनी गर्दन हिलाई| लेकिन फिर अगले ही पल संगीता का मुँह बन गया और वो सड़ा हुआ सा मुँह बना कर बोली; "इन दोनों शैतानों (आयुष और स्तुति) का क्या?" संगीता के मुँह बनाने पर मुझे हँसी आ गई और मैंने उसी के सामने दिषु को फ़ोन मिलाया; "भाई तेरी एक मदद चाहिए! कुछ देर के लिए तू आयुष और स्तुति को घुमा लायेगा?" मेरी इतनी बात सुनते ही दिषु एकदम से बोल पड़ा; "मतलब आज तुम दोनों का प्रोग्राम फिक्स हुआ है?!" दिषु की बात सुन मैं जोर से हँस पड़ा, वहीं संगीता जिसने स्पीकर पर सारी बात सुनी थी वो लाज से पानी-पानी हो गई!
"नहीं भाई, ऐसा नहीं है..." मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही दिषु मेरी बात काटते हुए बोला; "अबे रहने दे तू, सब जानता हूँ मैं! वैसे एक बात बता की तूने मुझे बच्चों की 'आया' समझा हुआ है? साले प्रोग्राम तू बनाये, बच्चे मैं खिलाऊँ?" दिषु प्यारभरी शिकायत करते हुए बोला| "भाई, आया को तो हम तनख्वा देते हैं, तुझे तो दारु की पार्टी मिलेगी! अब खुश?" जैसे ही मैंने दारु पार्टी का नाम लिया, दिषु की बाछें खिल गईं और वो फट से बोला; "मैं 10 मिनट में आ रहा हूँ, तू बच्चों को तैयार कर!" दिषु की बात सुन मेरी हँसी छूट गई और संगीता भी मुँह छुपाते हुए हँसने लगी!
दिषु को तो मैंने बुला लिया मगर आयुष और स्तुति को भी तो बाहर जाने के लिए मनाना था?! संगीता को तैयार होने के लिए बोल मैंने जैसे ही आयुष और स्तुति को बाहर घूमने जाने की बात कही तो स्तुति फट से मेरी गोदी में चढ़ गई और बोली; "पपई...आइस...क्रीम!" स्तुति चहकते हुए बोली|
"बेटा, आपके दिषु चाचू आ रहे हैं और वो है न आपको आइस क्रीम खिलाएंगे और फिल्म दिखाने ले जायेंगे|" दिषु के साथ घूमने जाने की बात सुन आयुष तो फट से तैयार हो गया मगर स्तुति ने मेरी कमीज अपनी मुठ्ठी में जकड़ ली और अपनी गर्दन न में हिलाने लगी की वो नहीं जायेगी! “"बेटा, आपके दिषु चाचू आपको कितना प्यार करते हैं, हमेशा आपके लिए चॉकलेट लाते हैं| आज उनका मन आपको घुमाने का है, उनको ऐसे मना करना अच्छी बात नहीं न?! वो आपको गाडी में घुमाने ले जायेंगे और ढेर सारी आइस क्रीम खिलाएंगे!" मेरी बात सुन स्तुति ने अपना निचला होंठ फुला कर मुझे अपने मोहपाश में जकड़ने का प्रयास किया| "मेरा, प्यारा बच्चा है न? प्लीज बेटा, थोड़ी देर के लिए चले जाओ न?!" मैंने स्तुति के मोहपाश के जवाब में अपना मोहपाश फेंका तो स्तुति ने मेरी बात मान ली| "जब आप वापस आओगे न तो मैं आपको खूब सारी कहानी सुनाऊँगा और रसमलाई भी खिलाऊँगा|" मेरी बात सुन स्तुति के दिल प्रसनत्ता से भर गया और वो ख़ुशी से खिलखिलाने लगी|
कुछ समय बाद, जब दिषु बच्चों को लेने आया तो वो मुझे आँख मारते हुए बुदबुदाया; "साढ़े आठ तक आऊँगा, तब तक अपना 'काम' निपटा लियो!" दिषु की बात सुन मैं हँस पड़ा और उसे बाद में सारी बात बताने का इशारा किया| इधर दिषु दोनों बच्चों को ले कर निकला और 10 मिनट बाद हम मियाँ-बीवी कैब कर निकले| पहली बार मेरे साथ बियर पीने के लालच के कारण आज संगीता ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी|
अब चूँकि हम एक महँगे रेस्टोरेंट में जा रहे थे और हमने सिर्फ बियर ही पीनी थी इसलिए मैंने संगीता को जीन्स और टी-शर्ट पहनने को कहा, संगीता ने मेरी बात मानी तथा एक गोल गले की टी-शर्ट पहनी, ये टी-शर्ट कुछ ज्याद तंग थी और संगीता बहुत ही कामुक लग रही थी!
बहरहाल मैं, संगीता को ले कर उसी रेस्टोरेंट पहुँचा जहाँ नेहा अपने दोस्तों के साथ आई थी| मेरी असली योजना थी की मैं साये की तरह अपनी बेटी के पीछे रहूँगा और उसके दोस्तों पर नज़र रखूँगा ताकि कहीं कोई लड़का मेरी बेटी को गलत रास्ते पर बहकाने की कोशिश न करे| संगीता मेरी इस योजना से फिलहाल अनजान थी, वो तो बस बियर पीने की बात से ही अतिउत्साहित थी|
नेहा जिस रेस्टोरेंट में पार्टी करने अपने दोस्तों के साथ आई थी, उस रेस्टोरेंट में मैं पहले भी आ चूका था और जानता था की यहाँ पर कौन सा टेबल मेरे लिए सही रहेगा| मैंने रेस्टोरेंट में सबसे पीछे की ओर का टेबल बुक किया, यहाँ से मैं नेहा और उसके दोस्तों पर नज़र रख सकता था लेकिन वो मुझे यहाँ नहीं देख सकते थे|
खैर, संगीता आज पहलीबार बियर पी रही थी इसलिए उसे अच्छी बियर पिलानी चाहिए थी इसलिए मैंने Lager beer मँगवाई| इस बियर की ख़ास बात ये थी की ये कड़वी नहीं थी बल्कि हलकी सी मीठी थी, साथ ही इसमें नशा बहुत कम था| वेटर ने बियर की दो कैन रखी तथा खाने के लिए चिकन लॉलीपॉप परोसा| बियर की कैन देख संगीता की आँखें छोटे बच्चों की तरह टिमटिमाने लगी| संगीता ने बियर की कैन उठाई मगर संगीता को कैन खोलना नहीं आता था इसलिए वो छोटे बच्चों की तरह मुँह बना कर मुझे देखने लगी| मैंने बियर की कैन खोल कर संगीता को दी तो संगीता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| फिर मैंने अपनी बियर की कैन खोली तथा संगीता की बियर की कैन से टकराई और बोला; "चियर्स!" संगीता ने भी मेरी देखा-देखि चियर्स कहा और हमने एक साथ बियर का पहला घूँट पीया|
"जानू.....उम्म्म्म....ये तो बहुत स्वाद है!" संगीता खुश होते हुए बोली| अपनी पत्नी के इस भोलेपन को देख मैं मुस्कुरा दिया और उसे चिकन लॉलीपॉप खाने को कहा| संगीता ने चिकन लॉलीपॉप पहले भी खाया था इसलिए उसे स्वाद में कुछ नयापन नहीं मिला, चिकन के मुक़ाबले बियर नई चीज़ थी और संगीता को इसमें खूब स्वाद आ रहा था|
एक तरफ संगीता अपनी बियर का स्वाद लेने में मस्त थी, तो दूसरी तरफ मेरी नज़रें मेरी बिटिया नेहा और उसके दोस्तों पर गड़ी थीं| बार-बार मेरे मन में एक डर उमड़ रहा था की कहीं कोई लड़का मेरी बिटिया को गलत तरीके से छूने की कोशिश तो नहीं करेगा? कहीं कोई मेरी बिटिया को धोके से नशे की कोई चीज़ खिला-पिला तो नहीं देगा? मेरे मन के ये ख्याल माँ के साथ CID और क्राइम पैट्रॉल देखने के कारण पैदा हुए थे!
वैसे देखा जाए तो एक बेटी का पिता होने के कारण मेरा यूँ अपनी बेटी के लिए चिंतित होना जायज बात थी|
खैर, कुछ ही देर में संगीता ने मुझे नेहा पर नज़र रखते हुए पकड़ लिया था| नेहा को देख संगीता सारी बात समझ गई और मुझसे रूठते हुए बोली; "अच्छा जी?! तो ये कारण है की जनाब के मन में अचानक मेरे लिए प्रेम जाग गया?! और मैं बेवकूफ सोच रही थी की मेरे पति देव सच में मुझे इतना प्यार करते हैं की मेरी ख़ुशी के लिए मुझे बियर पिलाने बाहर लाये हैं!" ये कहते हुए संगीता का मुँह टेढ़ा हो गया|
"तुम्हें क्या लगा की मुझे अपनी बेटी की चिंता नहीं? मैं यूँ ही उसे आज़ादी दिए जा रहा हूँ? मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है की मेरी बिटिया कभी कोई गलत काम नहीं करेगी, कभी मुझसे झूठ नहीं बोलेगी मगर मैं उसके लड़के दोस्तों पर भरोसा नहीं करता इसीलिए मैंने यहाँ चुपचाप आ कर नेहा के लड़के दोस्तों पर नज़र रख रहा हूँ|
और तुम काहे नाराज़ हो रही हो?! तुम्हें आज अच्छी वाली बियर पीने को मिल गई न?! तुम बस मज़े से अपनी बियर का स्वाद लो!" मैं कभी नहीं चाहता था की नेहा के दोस्त लड़के बनें क्योंकि मैं आजकल के लड़कों की मानसिकता अच्छे से जानता हूँ लेकिन मेरे लिए नेहा को लड़के दोस्त बनाने से रोक पाना मुमकिन नहीं था|
बहरहाल, मेरी बात सुन संगीता मंद-मंद मुस्कुराने लगी क्योंकि उसे मेरे नेहा पर नज़र रखने की बात से ख़ुशी हो रही थी|
मैंने वेटर को बुलाया और उससे संगीता के मन की तसल्ली के लिए पुछा; "यार, यहाँ पर नाबालिग बच्चे हैं और आप सब को बियर सर्व (serve) कर रहे हो, बच्चे बियर नहीं आर्डर नहीं करते?" मैं जानता था की रेस्टोरेंट वाले कम उम्र के बच्चों को लिकर (liquor) सर्व नहीं करते मगर मैंने ये सवाल सिर्फ और सिर्फ संगीता के मन की तसल्ली के लिए पुछा था ताकि संगीता घर जा कर मुझसे ये कह कर न लडे की मैंने नेहा को ऐसे रेस्टोरेंट में जाने कैसे दिया जहाँ पर लिकर सर्व की जाती है|
"सर, हमारे यहाँ किसी भी अंदरऐज (underage) को लिकर सर्व नहीं की जाती! ऐसा करना दंडनीय अपराध है! अगर बच्चे बियर आदि माँगते भी हैं तो हम उन्हें साफ़ मना कर देते हैं|" वेटर की बात सुन संगीता के मन को तसल्ली हो गई थी और उसने इस बात को लेकर मुझसे कोई सवाल-जवाब नहीं किया|
संगीता ने दो कैन बियर पी और शुक्र है की उसे चढ़ी नहीं! वहीं नेहा के दोस्तों ने अपना बिल चूका दिया था तथा वो सब एक साथ निकल गए थे| संगीता ने बियर तो निपटा दी थी बस उसे अब चिकन साफ़ करना था, चिकन साफ़ करने में संगीता ने थोड़ा टाइम लिया जिस कारण हम 10 मिनट लेट हो गए!
बिल चूका कर मैंने फटाफट ऑटो किया; "भैया, थोड़ा जल्दी चलो!" मैंने ऑटो वाले को कहा और हम बड़ी मुश्किल से नेहा के घर पहुँचने से पहले घर पहुँचे| मुँह-हाथ धो, कपड़े बदल मैं घर से बाहर आ गया और कुछ दूरी पर खड़ा हो गया| इतने में दिषु आयुष और स्तुति को ले कर घर लौटा, दोनों बच्चे सीढ़ी चढ़ ऊपर गए तो मैंने दिषु को फ़ोन कर जहाँ मैं खड़ा था वहाँ बुलाया| हम दोनों दोस्त खड़े हो कर बात कर ही रहे थे की नेहा की कैब आ गई, नेहा कैब से उतरी तथा अपने दोस्तों को बाय (bye) कह ऊपर चली गई| इधर मैं दीषु के साथ उसकी गाडी में घूमने निकल गया| मेरा दिषु के साथ जाने का कारण ये था की मैंने पी कर अपने बच्चों के सामने न जाने की कसम खाई थी और मैं ये कसम तोडना नहीं चाहता था|
उधर घर पहुँच कर नेहा ने देखा की स्तुति मुँह फुलाये घूम रही है! स्तुति के गुस्सा होने का कारण ये था की नेहा उसे अपने साथ पार्टी करने नहीं ले गई थी| लेकिन जैसे ही नेहा ने स्तुति के लिए लाई हुई चॉकलेट अपनी जेब से निकाली, स्तुति अपना गुस्सा छोड़ कर चॉकलेट लेने दौड़ पड़ी| "दीदी, आपने स्तुति को चॉक्लेट क्यों दी? हम तो दिषु चाचू के साथ फिल्म और बाहर खाना खा कर लौटे हैं|" आयुष के मुख से सच सुन नेहा प्यारभरा गुस्सा ले कर नेहा के पीछे दौड़ पड़ी; "पिद्दा! ला वापस दे मेरी चॉकलेट!" नेहा ने झूठ-मूठ अपनी दी हुई चॉकलेट माँगी मगर स्तुति अपनी चॉकलेट को बचाने के लिए पूरे घर में दौड़ती रही!
बहरहाल, संगीता ने बच्चों की मस्ती रुकवाई और तीनों को जल्दी सोने के लिए डाँट लगाई| "मम-मम...पपई?" स्तुति को मेरे बिना नींद नहीं आती थी इसलिए उसने मेरे बारे में पुछा| स्तुति के मेरे बारे में पूछते ही आयुष और नेहा भी मेरे बारे में पूछने लगे|
“तुम्हारे पपई कुछ काम से अभी बाहर गए हैं, थोड़ी देर में आ जायेंगे| अब जल्दी से सो जाओ, सुबह स्कूल जाना है|" संगीता ने जैसे ही स्कूल जाने की बात कही नेहा और आयुष तो सोने के लिए तुरंत तैयार हो गए मगर स्तुति आँखों में सवाल लिए हुए अपनी मम्मी से बोली; "मम-मम...स्कूल? मेला तो स्कूल न..ई!" स्तुति के कहने का मतलब था की उसका तो सुबह कोई स्कूल नहीं इसलिए वो जाग कर मेरा इंतज़ार करेगी| स्तुति का ये तर्क सुन नेहा और आयुष खिलखिलाकर हँसने लगे, वहीं संगीता प्यारभरा गुस्सा लिए हुए स्तुति से बोली; "मेरी नानी! सो जा चुप-चाप, वरना लगाऊँगी तुझे एक!" संगीता का प्यारभरा गुस्सा देख तीनों बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे!
चूँकि मैंने बियर पी रखी थी और मैं बच्चों के सामने इस हालत में नहीं आना चाहता था इसीलिए संगीता बच्चों को जबरदस्ती सोने को कह रही थी| सुबह होने पर मैं नहा-धो कर पूजा कर तीनों बच्चों को गोदी ले कर प्यार करता|
मैं जान बूझ कर देर से घर लौटा, मेरे लौटने तक माँ घर आ चुकीं थीं| मैंने माँ से थोड़ी बातचीत की मगर मैंने उन्हें नेहा के पार्टी जाने के बारे में कुछ नहीं बताया| माँ तो आराम से सो गईं, लेकिन इधर मेरे कमरे में संगीता का मूड एकदम से रोमांटिक हो गया था| वो रात अपुन दो बजे तक रोमांस किया!
अगली सुबह नाहा-धो कर, पूजा कर मैं बच्चों को उठाने पहुँचा| "नेहा बेटा...आयुष बेटा...स्तुति बेटू!" जैसे ही मैंने तीनों बच्चों को पुकारा आयुष-नेहा तो नींद में कुनमुनाते रहे मगर मेरी आवाज़ सुन सबसे पहले स्तुति उठी और मुझे देख जोर से चिल्लाई; "पपई!!!" मैंने अपनी बाहें खोलीं तो स्तुति ने मेरी गोदी में आने के लिए छलाँग लगा दी| मेरी गोदी में आ कर स्तुति की कल अपने दिषु चाचू के साथ की गई मस्ती का विवरण शुरू हो गया| तभी माँ स्तुति का शोर सुन कर कमरे में आईं, अपनी दादी जी को देख स्तुति ने अपने तकिये के नीचे रखी हुई चॉकलेट निकाली और अपनी दादी जी को दिखाते हुए बोली; "दाई...दिद्दा!"
जब भी नेहा अपने दोस्तों के साथ कहीं घूमने जाती थी तो वापसी में नेहा हमेशा स्तुति के लिए चॉकलेट लाती और स्तुति बड़े गर्व से अपनी दिद्दा द्वारा लाई हुई चॉकलेट अपनी दाई को दिखाती| माँ ने जब स्तुति के हाथ में चॉकलेट देखि तो माँ समझ गईं की नेहा कल अपने दोस्तों के साथ बाहर गई थी, जिसके बारे में मैंने उन्हें अभी तक कुछ नहीं बताया था|
अनजाने में मेरी छोटी बिटिया ने अपनी दादी जी के दिल में प्रति गुस्सा जगा दिया था|
माँ गुस्से से मुझे घूर रहीं थीं और उनके इस प्रकार घूरने पर स्तुति घबरा कर मुझसे लिपट गई| "वाह बेटा वाह, बहुत छूट दे रखी है तूने बच्चों को! बच्चे कहाँ जाते हैं मुझे बताने की जर्रूरत नहीं समझी तूने?" माँ ने मुझे ताना मारते हुए डाँट लगाई| माँ की डाँट सुन मेरा सर शर्म से झुक गया| वहीं माँ की डाँट सुन आयुष और नेहा एकदम से उठ कर बैठ गए|
मैंने माँ को सारी बात बताई मगर मेरे और संगीता के चोरी-छुपे नेहा के पीछे जाने के बारे में कुछ नहीं बताया| सारी बात सुन माँ ने संगीता को भी डाँट लगाई मगर मैंने संगीता को बचाने के लिए सारा इलज़ाम अपने सर ले लिया| अब चूँकि मैं अकेला ही कसूरवार था इसलिए माँ ने मुझे ही अपने गुस्से का निशाना बनाया| माँ ने मुझे बहुत डाँटा और मैं सर झुकाये उनकी डाँट सुनता रहा| 10 मिनट बाद जब माँ का मुझे डाँटना हो गया तो उन्होंने दोनों बच्चों को सख्ती के साथ स्कूल के लिए तैयार होने को कहा| बच्चे डर के मारे फटाफट स्कूल के लिए तैयार हुए और माँ खुद बच्चों को स्कूल छोड़ने गईं| गौर करने वाली बात ये थी की दोनों बच्चे इतने डरे हुए थे की उनकी हिम्मत नहीं पड़ी की वो अपनी दादी जी से कोई बात कर सकें इसलिए दोनों बच्चे पूरे रास्ते सर झुकाये खामोश रहे|
जब माँ घर लौटीं तो मैंने कान पकड़ माँ से माफ़ी माँगी और उन्हें सारी बात समझाई| परन्तु मेरी माँ पुरानी विचार धारा की हैं और उनके अनुसार बच्चों को यूँ रात के समय दोस्तों के साथ बाहर जाने देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं| हालाँकि मैंने माँ को बहुत समझाया की मैं हमेशा नेहा के साथ साये की तरह रहूँगा मगर माँ नहीं मानी और इसे मेरी आखरी गलती समझ माफ़ कर दिया|
स्तुति जो की अपनी दाई के गुस्से से घबराई हुई थी उसे माँ ने कुछ नहीं कहा, बल्कि स्तुति के मोह के कारण ही माँ का क्रोध शांत हुआ| दोपहर को जब दोनों बच्चे स्कूल से लौटे तो दोनों ने सीधा पानी दादी जी के पॉंव पकड़ लिए और रुनवासे हो कर माफ़ी माँगने लगे| माँ ने दोनों बच्चों को माफ़ केवल एक शर्त पर किया की बच्चे आगे से माँ से कोई बात नहीं छुपायेंगे| बच्चों के लिए उनकी दादी सर्वोपरि थीं इसलिए दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी से वादा कर दिया|
अपनी दादी जी से माफ़ी ले कर नेहा मेरे पास आई और मुझसे माफ़ी माँगने लगी; "पापा जी, मुझे माफ़ कर दो, मेरे कारण आपको दादी जी से इतनी डाँट पड़ी|" नेहा बहुत भावुक हो गई थी इसलिए मैंने नेहा को अपने गले लगाया और बोला; "कोई बात नहीं बेटा जी| सभी मम्मियाँ अपने बच्चों को डाँटती हैं, लेकिन बच्चे अपनी मम्मी की डाँट का बुरा थोड़े ही लगाते हैं|" मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा तथा उसे लाड कर बहलाने लगा|
उस दिन के बाद से नेहा जब भी अपने दोस्तों के साथ घूमने जाती तो केवल दिन में और किसी भी हाल में उसे शाम 5 बजे से पहले घर लौटना होता था| लेकिन फिर आगे चल कर नेहा के पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने और जिम्मेदारी को देखते हुए माँ ने समय की ये लक्ष्मण रेखा और बढ़ा दी| अब नेहा को शाम 7 बजे तक घर आने का हुक्म मिल चूका था, जिससे नेहा बहुत खुश थी|
समय हँसी-ख़ुशी बीत रहा था... और फिर एक ऐसा भी दिन आया की मेरी लाड़ली बेटी नेहा इतनी बड़ी हो गई की मेरे कँधे तक आने लगी!
जारी रहेगा भाग - 10 में...
ऊ हमार फेवरेट गाना बा.................ऊ गाना का खिलाफ हम कछु न सुनब..................उस गाने से उनका पीछा छुड़वा दो जल्दी से, उस गाने में कोरोना भी है![]()
आपने बिलकुल सही कहा है रेखा जी.....................बच्चे इतनी जल्दी बड़े हो जाते हैं की मा-बाप को पता ही नहीं चलता........................एक पल वोई हमारी गोद में होते हैं और दूसरे ही पल वो हमारे कंधे तक आ जाते हैं...........................तारीफ करनी होगी लेखक जी की जिन्होंने इस जज्बात को समझा और हम सभी को भावुक कर दियाAwesome.Update, bachcho ke mamle me samay kaise bit jata hai malum hi nhi padta, meri gudiya bhi jaise kal huyi aur ab 16 yrs ki ho chuki hai, aur aaj ke waqt me sabse bada bhay same aapke wala hi rhta hai khi bahak na jaye, bahut jyada waqt isi me gujar jata hai,
आपने बिलकुल सही कहा .......................नेहा की वजह से इन्होने बहुत डांट खाई हैबहुत खूब
बहुत बढ़िया लगी यह अपडेट
नेहा की बचपन छूट रहा है और धीरे धीरे जवान जो रही है
स्तुति स्कुल जाने लगी है और आयुष जिम्मेदार भाई और बेटा बनता जा रहा है
अब नेहा के साथ जो हो रहा है वह आज के दौर की सच्चाई है
तीन पीढ़ी के बीच ऐसी जेनेरेशन गैप आम बात है
बीच वाला पिस्ता रहता है यह सच्चाई है
इतना बढ़िया रिव्यु दे कर ये खाली पोस्ट क्यों छोड़ दिया???????????????? रिव्यु में मेरा जिक्र अपने भी नहीं किया................लेखक जी तो भूल ही गए मुझे.............आप भी भूल गए
जल्दी समय निकालिएगा..............................कहानी खत्म होने की कगार पर है..............और फिर मेरी कहानी शुरू होगी................जल्दी पढ़िएये कहानी हमें अपने टाइप की लग रही है। साफ सुथरी। इसके लिए समय निकालना होगा।
अब आप दर्शन ही नही देती तो क्या करे और कहां जिक्र करे। अब नायिका हो तो फिलम में बार बार आते रहना चाहिए ना ये थोड़े ही के जब मूड हुआ आगये जब मूड हुआ तब गायबइतना बढ़िया रिव्यु दे कर ये खाली पोस्ट क्यों छोड़ दिया???????????????? रिव्यु में मेरा जिक्र अपने भी नहीं किया................लेखक जी तो भूल ही गए मुझे.............आप भी भूल गए![]()
Bdiya update gurujiअंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 9
अब तक अपने पढ़ा:
उधर स्तुति अपने बड़े भैया को सबसे माफ़ी माँगते हुए बड़े प्यार से देख रही थी| जब आयुष को सब ने लाड-प्यार कर लिया तो स्तुति ने अपने भैया को पुकारा; "आइया...चो...को (चॉकलेट)" ये कहते हुए स्तुति ने अपने बड़े भैया आयुष को खुश करने के लिए अपनी आधी खाई हुई चॉकलेट दी| आयुष ने हँसते हुए स्तुति की आधी खाई हुई चॉकलेट ले ली और बोला; "स्तुति, बाकी की चॉकलेट कहाँ गई?" आयुष के पूछे सवाल के जवाब में स्तुति मसूड़े दिखा कर हँसने लगी और तब हमें पता चला की स्तुति आधी चॉक्लेट खुद खा गई!
"चॉकलेट तो ये पिद्दा आयुष के लिए लाई थी मगर सीढ़ी चढ़ते हुए इस शैतान को लालच आ गया और इस शैतानी की नानी ने आधी चॉकलेट खुद ही खा ली! " नेहा ने स्तुति की चुगली की जिसपर हम सभी ने जोरदार ठहाका लगाया!
अब आगे:
प्रतिकाष्ठा
समय का चक्र इतनी तेज़ी से घूमा की आयुष, नेहा और स्तुति कुछ ज्यादा जल्दी ही बड़े हो गए!
सबसे छोटी स्तुति न केवल मस्ती करने में आगे रहती थी बल्कि वो अब चुलबुली बन गई थी| स्तुति बिलकुल गोलू-मोलू थी और इतनी प्यारी की उसे देख हर कोई उस पर मोहित हो जाता| पूरा दिन स्तुति घर में फुदकती रहती और कुछ न कुछ रटती रहती| कभी अपने कार्टून का नाम तो, कभी कोई गाना गुनगुनाती रहती| कभी अपने खिलोनो के साथ खेलती तो कभी अपनी मम्मी के पीछे घूमती रहती| स्तुति के मन में इतनी जिज्ञासा भरी थी की वो सभी से सवाल पूछती रहती| स्तुति की इस जिज्ञासा से संगीता अक्सर चिढ जाती और स्तुति को बाहर भगा देती!
जब भी घर में कोई समारोह होता और काम बाँटा जाता तो स्तुति का हाथ सबसे पहले उठता| "हम करब" कहते हुए स्तुति कूदने लगती, वो बात अलग है की उसे काम कोई नहीं दिया जाता क्योंकि अक्सर स्तुति की मस्तियाँ काम बढ़ा दिया करती थीं| लेकिन स्तुति काम न मिलने पर उड़ा नहीं होती, बल्कि वो सबके काम पर नज़र रखने का काम करती| किसी से कोई गलती हुई नहीं की स्तुति किसी मास्टरनी की तरह गलती गिनाने लग जाती|
मस्ती के अलावा खाने-पीने के मामले में स्तुति हमेशा आगे रहती थी| भाईसाहब जब भी घर में कथा-भागवत बैठाते तो खाने में क्या बनेगा ये सवाल केवल स्तुति से पुछा जाता| फिर तो स्तुति बिलकुल अपनी मम्मी की तरह खाने की चीजें गिनाने लगती, जिसे देख सभी ज़ोर से ठहाका लगाने लगते|
जब स्तुति अपनी नानी जी के घर जाती तो वहाँ जा कर स्तुति के मस्ती भरे पँख निकल आते| कभी अपने चरण नाना जी की दूकान में बैठ कर उनकी दूकान की बिक्री बढ़ाने के लिए; "ले लो..ले लो.. तीन रुपये में दुइ ठो पान ले लो!" का नारा ज़ोर-ज़ोर से लगाती तो कभी अपनी नानी जी के पास बैठ कर उन्हें अंग्रेजी सिखाने लगती| एक दिन तो स्तुति की नानी जी ने मुझे फ़ोन घुमा कर उसकी शिकायत करनी शुरू कर दी; "ई मुन्नी हमका अंग्रेजी सिखावत है! अब तुहुँ बतावा हम का करि?!" लेकिन स्तुति ने हार मानना नहीं सीखा था इसलिए उसने अपनी नानी जी को "आई लव यू" बोलना सीखा दिया| फिर तो जब भी स्तुति अपनी नानी जी के घर जाती, उसकी नानी जी उसे रोज़ आई लव यू कह कर लाड-प्यार करतीं|
इधर, भाईसाहब अपनी छोटी सी भाँजी में अपनी बहन संगीता का बचपना देखते और स्तुति को खूब लाड-प्यार करते| जब भी स्तुति अपने बड़े मामा जी के पास होती तो भाईसाहब स्तुति को अपनी पीठ पर लादे हुए पूरे गॉंव में टहला लाते| आखिर जो प्यार भाईसाहब अपनी बहन संगीता को नहीं दे पाए वो प्यार अब स्तुति पर लुटाया जा रहा था|
वहीं भाभी जी यानी स्तुति की बड़ी मामी जी तो स्तुति को सबसे ज्यादा लाड करतीं| जब भी स्तुति घर आती तो उसे गोद में बिठा कर उसकी पसंद का खाना बनतीं| स्तुति अगर कुछ बाहर से खाने को माँगती तो भाभी जी तुरंत विराट या भाईसाहब को वो वो खाने की चीज़ लाने को दौड़ा देतीं| स्तुति भी अपनी बड़ी मामी जी को कम प्यार नहीं करती थी, हमेशा अपनी मामी जी की मदद करने के लिए स्तुति सबसे आगे होती|
जब स्तुति की उम्र स्कूल जाने की हुई तो और भी गजब हुआ| जहाँ बाकी बच्चे स्कूल के पहले दिन रोते हैं, स्तुति एकदम निडर थी बल्कि ये कहना उचित होगा की वो तो स्कूल जाने को अतिउत्साहित थी! स्कूल के पहले ही दिन स्तुति की क्लास के सारे बच्चे उसके दोस्त बन गए तथा अध्यापिकायें स्तुति के गोल-मटोल गाल खींचते नहीं थकती थीं| स्तुति के छुटपन में जो मैंने, नेहा और आयुष ने मिल कर स्तुति को ABCD तथा पोएम याद कराईं थीं उस कारण स्तुति का मन पढ़ाई में लग गया था, तभी तो स्तुति की सारी अध्यपिकाएँ उसकी तारीफ करते नहीं थकती थीं| जितना स्तुति मस्ती करने में आगे थी, उतना ही वो पढ़ाई करने में आगे थी| पढ़ाई के मामले में हमारे पूरे परिवार में स्तुति ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है और वो ये की आजतक स्तुति अपनी क्लास में फर्स्ट ही आई है!
चूँकि स्तुति बड़ी हो चुकी थी इसलिए उसने आयुष को अब 'बड़े भैया' कह कर बुलाना शुरू कर दिया था| वहीं अपनी छोटी बहन के मुख से ये प्यारभरे शब्द सुन कर आयुष का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो जाता| दोनों भाई-बहन के बीच प्यार बहुत घनिष्ट था, दोनों एक साथ बैठ कर खाना खाते, एक साथ अपने स्कूल का होमवर्क करते| यदि स्तुति को पढ़ाई में कोई कठनाई होती तो आयुष स्तुति को पढ़ाने बैठ जाता और खाने-पीने के उदहारण दे कर समझाता, जिससे स्तुति को बहुत मज़ा आता| स्तुति की मस्तियों के कारण जब भी स्तुति को डाँट पड़ती तो आयुष फौरन उसे बचाने आ जाता और स्तुति के हिस्से की डाँट खुद खाता| स्तुति को अपने बड़े भैया की शय मिलती थी इसलिए स्तुति और भी अधिक मस्तियाँ करती|
वहीं, अपनी दिद्दा नेहा के साथ स्तुति का रिश्ता नोक-झोंक भरा था! स्तुति को अपनी दिद्दा को तंग करने में कुछ ज्यादा ही मज़ा आता था| नेहा के बाल खींचने की आदत जो स्तुति ने अपने छुटपन में सीखी थी वो आदत स्तुति में अब भी थी| जब भी नेहा पढ़ रही होती तो स्तुति दबे पॉंव पीछे से आती और अपनी दिद्दा की चोटी खींच कर भाग जाती! कभी-कभी स्तुति अपनी दिद्दा के कपड़े पहन कर देखती, अब नेहा के कपड़े स्तुति के लिए बहुत बड़े थे इसलिए कपड़े अधिकतर ज़मीन से लथेड़ जाते और मिटटी के कारण गंदे हो जाते| जब नेहा देखती की उसके कपड़ों पर मिटटी लगी है तो नेहा स्तुति को सबक सिखाने उसके पीछे दौड़ती मगर स्तुति इतनी फुर्तीली थी की वो अपनी दिद्दा को चकमा दे कर भाग जाती! यही नहीं कभी-कभी स्तुति अपनी दिद्दा की चप्पल पहन कर जाती और जहाँ-तहाँ फेंक आती, जिस पर नेहा बहुत गुस्सा होती और फिर स्तुति के पीछे भागती!
स्तुति की ये मस्तियाँ नेहा को न भातिं इसलिए नेहा अपना अलग बदला लेती| जब स्तुति सो रही होती तो उसके ऊपर पानी डालकर उसे उठा देती, जिससे स्तुति रोने लगती! स्तुति खेलती हुई नज़र आई नहीं की नेहा उसे पढ़ने के लिए डाँटने लगती, अतः डर के मारे स्तुति पढ़ने बैठ जाती| आयुष अपनी छोटी बहन के लिए जब टॉफ़ी या चॉकलेट लाता तो नेहा फट से सब चट कर जाती, अब स्तुति को आता गुस्सा इसलिए वो अपनी दिद्दा की शिकायत करने चल पड़ती, तब नेहा उसके कान पकड़ कर उसे कमरे में बंद कर देती और जबतक स्तुति का रोना शुरू नहीं होता तब तक दरवाजा बंद ही रखती| वो तो आयुष आ कर हाथ जोड़कर अपनी दीदी से स्तुति की मस्तियों की माफ़ी माँगता, तब जा कर नेहा दरवाजा खोलती!
ऐसा नहीं था की नेहा को स्तुति से कोई चिढ होती थी, या नेहा हमेशा ही स्तुति को डाँटती रहती थी| जब स्तुति का रिजल्ट आता तो स्तुति सबसे पहले दौड़ कर अपनी दिद्दा के पास आती और नेहा स्तुति का रिपोर्ट कार्ड देख उसके फर्स्ट आने पर स्तुति को खूब लाड-प्यार करती| स्तुति को कपड़े पहनने का सलीका नेहा ही सिखाती थी, यहाँ तक की स्तुति को जब अपनी चोटी बनवानी होती तो वो सीधा अपनी दिद्दा के पास दौड़ी आती| दरअसल, नेहा चाहती थी की स्तुति मस्ती कम और पढ़ाई ज्यादा करे, लेकिन जब स्तुति अधिक मस्ती करती तो नेहा उस पर खफा हो जाती!
खैर, स्तुति मस्तीखोर सही मगर उसकी ये मस्तियाँ केवल घर में होती थीं| जब कभी कोई मेहमान घर आया हो या कहीं बाहर जाना हो तो स्तुति बिलकुल मस्ती नहीं करती तथा अपने बड़े भैया के साथ रहती|
आयुष की बात करें तो, मैंने जो आयुष को थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारियाँ लेना सिखाया था उस वजह से आयुष एक आदर्श बेटे के रूप में उभर कर आया| घर का कोई भी काम हो, आयुष पूरी निष्ठा से पूरा करता और सारा हिसाब-किताब सीधा अपनी मम्मी को देता| संगीता ने भले ही आयुष को बहुत डाँटा हो मगर अब आयुष अपनी मम्मी का लाडला बन गया था|
आयुष को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था इसलिए एक समय ऐसा आया जब आयुष पढ़ाई की तरफ थोड़ा ढीला हो गया था, जिस कारण आयुष के पढ़ाई में कम नंबर आये, नतीजन आयुष को सबसे डाँट पड़ी| उस समय मैंने आयुष को प्यार से समझाया; “बेटा, मैं जानता हूँ की आपको क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता है और आप आगे चलकर क्रिकेटर बनना चाहते हो मगर बेटा क्रिकेट में स्कोप नहीं है! इस खेल में कम्पीटिशन इतना है की आप सबका मुक़ाबला नहीं कर पाओगे!
बेटा हम लड़कों पर बहुत जिम्मेदारियाँ होती हैं इसलिए कई बार अपने परिवार के लिए अपनी पसंद की चीजों का त्याग करना होता है| क्रिकेट खेलने से आप पैसे नहीं कमा पाओगे| केवल पढ़ाई ही है जो आपको बड़े हो कर पैसे कमाने में मदद करेगी|
आप क्रिकेट को बस अपने मनोरंजन के लिए खेलो और अपना ध्यान केवल पढ़ाई में लगाओ| आपको मैथमेटिक्स मुश्किल लगता है न, तो मैं आपकी मैथमेटिक्स की टूशन लगवा देता हूँ| अगर आपको टूशन में कुछ समझ न आये तो बताना, मैं आपकी क्लास टीचर से बात करूँगा|" मेरी बात थोड़ी कड़वी थी मगर आयुष को समझ आ गई थी| उस दिन से आयुष ने अपना मन पढ़ाई में लगा लिया| आयुष पढ़ाई में अव्वल तो नहीं आ पाता था मगर अपनी क्लास के टॉप 10 में अवश्य आता था, जिससे परिवार में अब किसी को आयुष से कोई शिकायत नहीं रहती थी|
जैसे-जैसे आयुष बड़ा होता गया, हम बाप-बेटे का रिश्ता दोस्ती के रिश्ते में बदल गया|
वहीं दूसरी तरफ, मेरी बिटिया नेहा में गज़ब का आत्मविश्वास पैदा हो गया था| जब से नेहा को फ़ोन मिला था, नेहा ने फेसबुक पर अपना अकाउंट बना अपने नए दोस्त बनाने शुरू किये| इन्हीं नए दोस्तों में से एक करुणा भी थी, करुणा ने नेहा का नंबर ले लिया और फिर दोनों what's app पर चैट करने लगे|
संगीता जब नेहा को अपने फ़ोन में घुसी देखती तो उसे बहुत गुस्सा आता और वो नेहा को डाँटने लगती| धीरे-धीरे संगीता को शक होने लगा की कहीं नेहा क्लास के लड़कों के साथ what's app पर ऐसी-वैसी बातें तो नहीं करती?! अब मुझे अपनी बेटी पर पूरा विश्वास था की वो ऐसा कोई काम नहीं करती मगर संगीता के शक का निवारण करना जर्रूरी था वरना फिर संगीता का मुँह बन जाता! संगीता के मन की तसल्ली के लिए मुझे अपनी ही बेटी के साथ छल करना था|
एक बार मुझे किसी को फ़ोन करना था तब मैंने नेहा से फ़ोन लिया था, उस समय नेहा ने मुझे अपने फ़ोन का पासवर्ड बताया था| मैंने वो पासवर्ड संगीता को बताया तथा नेहा को अपनी बातों में व्यस्त करते हुए छत पर ले आया| संगीता ने इस मौके का फायदा उठाया और नेहा का what's app खँगालने लगी| तभी संगीता को पता चला की नेहा करुणा से चाट करती है मगर दोनों की चैट में कुछ भी ख़ास नहीं निकला| नेहा की बातें अक्सर अपनी सहेलियों से होती और वो सब बातें पढ़ाई या हीरो-हेरोइन से जुडी होतीं| नेहा के फ़ोन में कुछ भी ऐसा-वैसा नहीं निकला था इसलिए संगीता ने चैन की साँस ली|
चूँकि अब संगीता को नेहा के फ़ोन का पासवर्ड पता था इसलिए अब नेहा का फ़ोन चोरी-छुपे संगीता द्वारा रोज़ ही चेक होता था|
चूँकि नेहा बड़ी हो रही थी तो उसे थोड़ी आजादी चाहिए थी| रविवार का दिन था और नेहा के दोस्तों ने मॉल जाने का प्लान बनाया था| नेहा ने जब अपनी मम्मी से इजाजत माँगी तो संगीता ने फौरन न कह दिया! अब देखा जाए तो, जाने को नेहा अपनी दादी जी के पास जा सकती थी मगर माँ के न कहने के आसार ज्यादा थे और एक बार माँ ने न कह दिया तो सब चौपट हो जाता! अतः जब मैं नहा कर आया तो नेहा मेरे पास अपनी आस की टोकरी ले कर आई और मॉल जाने की इजाजत माँगी| "ठीक है बेटा, लेकिन पहले मुझे सारी जानकारी सच-सच बताओ|" ये कहते हुए मैंने नेहा से मॉल जाने के बारे में सारी जानकारी ली तथा नेहा के दोस्तों के नंबर भी ले लिए| "ठीक है बेटा आप जा सकते हो| लेकिन वापसी में स्तुति और आयुष के लिए चॉकलेट ले के आना वरना दोनों रूठ जायेंगे!" मैंने नेहा को खर्चे के लिए कुछ पैसे देते हुए कहा|
मेरी हाँ सुन नेहा ख़ुशी से कूद पड़ी और फटाफट तैयार हुई| वहीं मैंने ये सुनिश्चित किया की नेहा ने अपने जिन दोस्तों के साथ जाने के बारे में मुझे बताया था वही लोग उसे लेने भी आये हैं| नेहा गई तो संगीता भुनभुनाती हुई मुझ पर चढ़ बैठी, साथ ही उसने माँ के दिल में भी मेरे खिलाफ आग लगा दी की मैं कैसे बच्चों को बेवजह सर पर चढ़ा रहा हूँ| अपनी बिटिया का शौक पूरा करने के लिए मुझे माँ और संगीता से पेट भरकर डाँट पड़ी!
नेहा तीन घंटे के लिए बोल कर गई थी मगर नेहा 2 घंटे बाद ही वापस आ गई, इसी वजह से नेहा को अपनी दादी जी से डाँट नहीं पड़ी| नेहा पढ़ाई में अव्वल आती थी, बिलकुल शरारती नहीं थी इस कर के माँ ने नेहा को थोड़ी छूट दे दी मगर माँ ने एक शर्त रखी; "अगर दोस्तों के साथ जाना है तो हमें सब बता कर जाना होगा और सिर्फ दिन में ही जाना होगा! किसी भी हाल में शाम 5 बजे से पहले घर वापस आना वरना ये बाहर घूमना बंद!" माँ की शर्त नेहा ने ख़ुशी-ख़ुशी मान ली और उस दिन से नेहा कभी-कभी अपने दोस्तों के साथ मॉल या पिक्चर जाने लगी|
एक बार नेहा की दोस्त का जन्मदिन था और वो पार्टी रात में एक रेस्टोरेंट में देना चाहती थी| अब माँ ने नेहा के लिए पहले ही समय की लक्ष्मण रेखा बाँध रखी थी जो किसी हाल में नहीं टूटने वाली थी इसलिए नेहा फ़रियाद ले कर सीधा मेरे पास आई| मैंने इस पार्टी के बारे में नेहा से जानकारी ली तो पता चला की इस पार्टी में लड़के भी होंगे! अब मुझे अपनी बेटी की सुरक्षा की चिंता थी मगर नेहा को पार्टी में जाने के लिए मना कर मैं नेहा का दिल नहीं तोडना चाहता था!
न चाहते हुए भी मैंने आधे मन से अपना सर हाँ में हिलाया| परन्तु मेरे दिमाग में एक योजना तैयार हो चुकी थी! इधर मेरी इजाजत पा कर नेहा ख़ुशी से उछल पड़ी और आ कर मेरे सीने से लग कर मुझे थैंक यू बोलने लगी| उधर संगीता मेरे हाँ कहने से गुस्से से तमतमा गई थी और मुझे खा जाने वाली नजरों से घूर रही थी! नेहा अपने पार्टी जाने की खुशखबरी सुनाने अपने दोस्त को फ़ोन करने भागी और संगीता मेरे ऊपर बरस पड़ी; "सर पर चढ़ा लो इसे, फिर जब ये आपके सर पर नाचेगी न तब मेरे पास मत आना!"
शाम को माँ ने पूजा में जाना था और उन्हें रात 10 बजे तक लौटना था इसलिए बड़ी मुश्किल से मैंने संगीता को माँ से ये बात राज़ रखने के लिए मना लिया था| 5 बजे माँ पूजा के लिए निकलीं और 6 बजे नेहा को लेने उसके दोस्त कैब कर के आये| नेहा के जाते ही मैंने संगीता को मस्का लगाना शुरू कर दिया| संगीता रसोई में खाना बना रही थी जब मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसे मनाने के लिए तीन जादुई शब्द कहे, जिन्हें सुन संगीता का गुस्सा एक पल में फुर्र्र हो गया; “बियर पीने चलोगी!"
ये तीन जादुई शब्द संगीता के कानों में घुल गए और उसने चहकते हुए मुझे देखा और बिना कोई पल बर्बाद किये हाँ में अपनी गर्दन हिलाई| लेकिन फिर अगले ही पल संगीता का मुँह बन गया और वो सड़ा हुआ सा मुँह बना कर बोली; "इन दोनों शैतानों (आयुष और स्तुति) का क्या?" संगीता के मुँह बनाने पर मुझे हँसी आ गई और मैंने उसी के सामने दिषु को फ़ोन मिलाया; "भाई तेरी एक मदद चाहिए! कुछ देर के लिए तू आयुष और स्तुति को घुमा लायेगा?" मेरी इतनी बात सुनते ही दिषु एकदम से बोल पड़ा; "मतलब आज तुम दोनों का प्रोग्राम फिक्स हुआ है?!" दिषु की बात सुन मैं जोर से हँस पड़ा, वहीं संगीता जिसने स्पीकर पर सारी बात सुनी थी वो लाज से पानी-पानी हो गई!
"नहीं भाई, ऐसा नहीं है..." मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही दिषु मेरी बात काटते हुए बोला; "अबे रहने दे तू, सब जानता हूँ मैं! वैसे एक बात बता की तूने मुझे बच्चों की 'आया' समझा हुआ है? साले प्रोग्राम तू बनाये, बच्चे मैं खिलाऊँ?" दिषु प्यारभरी शिकायत करते हुए बोला| "भाई, आया को तो हम तनख्वा देते हैं, तुझे तो दारु की पार्टी मिलेगी! अब खुश?" जैसे ही मैंने दारु पार्टी का नाम लिया, दिषु की बाछें खिल गईं और वो फट से बोला; "मैं 10 मिनट में आ रहा हूँ, तू बच्चों को तैयार कर!" दिषु की बात सुन मेरी हँसी छूट गई और संगीता भी मुँह छुपाते हुए हँसने लगी!
दिषु को तो मैंने बुला लिया मगर आयुष और स्तुति को भी तो बाहर जाने के लिए मनाना था?! संगीता को तैयार होने के लिए बोल मैंने जैसे ही आयुष और स्तुति को बाहर घूमने जाने की बात कही तो स्तुति फट से मेरी गोदी में चढ़ गई और बोली; "पपई...आइस...क्रीम!" स्तुति चहकते हुए बोली|
"बेटा, आपके दिषु चाचू आ रहे हैं और वो है न आपको आइस क्रीम खिलाएंगे और फिल्म दिखाने ले जायेंगे|" दिषु के साथ घूमने जाने की बात सुन आयुष तो फट से तैयार हो गया मगर स्तुति ने मेरी कमीज अपनी मुठ्ठी में जकड़ ली और अपनी गर्दन न में हिलाने लगी की वो नहीं जायेगी! “"बेटा, आपके दिषु चाचू आपको कितना प्यार करते हैं, हमेशा आपके लिए चॉकलेट लाते हैं| आज उनका मन आपको घुमाने का है, उनको ऐसे मना करना अच्छी बात नहीं न?! वो आपको गाडी में घुमाने ले जायेंगे और ढेर सारी आइस क्रीम खिलाएंगे!" मेरी बात सुन स्तुति ने अपना निचला होंठ फुला कर मुझे अपने मोहपाश में जकड़ने का प्रयास किया| "मेरा, प्यारा बच्चा है न? प्लीज बेटा, थोड़ी देर के लिए चले जाओ न?!" मैंने स्तुति के मोहपाश के जवाब में अपना मोहपाश फेंका तो स्तुति ने मेरी बात मान ली| "जब आप वापस आओगे न तो मैं आपको खूब सारी कहानी सुनाऊँगा और रसमलाई भी खिलाऊँगा|" मेरी बात सुन स्तुति के दिल प्रसनत्ता से भर गया और वो ख़ुशी से खिलखिलाने लगी|
कुछ समय बाद, जब दिषु बच्चों को लेने आया तो वो मुझे आँख मारते हुए बुदबुदाया; "साढ़े आठ तक आऊँगा, तब तक अपना 'काम' निपटा लियो!" दिषु की बात सुन मैं हँस पड़ा और उसे बाद में सारी बात बताने का इशारा किया| इधर दिषु दोनों बच्चों को ले कर निकला और 10 मिनट बाद हम मियाँ-बीवी कैब कर निकले| पहली बार मेरे साथ बियर पीने के लालच के कारण आज संगीता ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी|
अब चूँकि हम एक महँगे रेस्टोरेंट में जा रहे थे और हमने सिर्फ बियर ही पीनी थी इसलिए मैंने संगीता को जीन्स और टी-शर्ट पहनने को कहा, संगीता ने मेरी बात मानी तथा एक गोल गले की टी-शर्ट पहनी, ये टी-शर्ट कुछ ज्याद तंग थी और संगीता बहुत ही कामुक लग रही थी!
बहरहाल मैं, संगीता को ले कर उसी रेस्टोरेंट पहुँचा जहाँ नेहा अपने दोस्तों के साथ आई थी| मेरी असली योजना थी की मैं साये की तरह अपनी बेटी के पीछे रहूँगा और उसके दोस्तों पर नज़र रखूँगा ताकि कहीं कोई लड़का मेरी बेटी को गलत रास्ते पर बहकाने की कोशिश न करे| संगीता मेरी इस योजना से फिलहाल अनजान थी, वो तो बस बियर पीने की बात से ही अतिउत्साहित थी|
नेहा जिस रेस्टोरेंट में पार्टी करने अपने दोस्तों के साथ आई थी, उस रेस्टोरेंट में मैं पहले भी आ चूका था और जानता था की यहाँ पर कौन सा टेबल मेरे लिए सही रहेगा| मैंने रेस्टोरेंट में सबसे पीछे की ओर का टेबल बुक किया, यहाँ से मैं नेहा और उसके दोस्तों पर नज़र रख सकता था लेकिन वो मुझे यहाँ नहीं देख सकते थे|
खैर, संगीता आज पहलीबार बियर पी रही थी इसलिए उसे अच्छी बियर पिलानी चाहिए थी इसलिए मैंने Lager beer मँगवाई| इस बियर की ख़ास बात ये थी की ये कड़वी नहीं थी बल्कि हलकी सी मीठी थी, साथ ही इसमें नशा बहुत कम था| वेटर ने बियर की दो कैन रखी तथा खाने के लिए चिकन लॉलीपॉप परोसा| बियर की कैन देख संगीता की आँखें छोटे बच्चों की तरह टिमटिमाने लगी| संगीता ने बियर की कैन उठाई मगर संगीता को कैन खोलना नहीं आता था इसलिए वो छोटे बच्चों की तरह मुँह बना कर मुझे देखने लगी| मैंने बियर की कैन खोल कर संगीता को दी तो संगीता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| फिर मैंने अपनी बियर की कैन खोली तथा संगीता की बियर की कैन से टकराई और बोला; "चियर्स!" संगीता ने भी मेरी देखा-देखि चियर्स कहा और हमने एक साथ बियर का पहला घूँट पीया|
"जानू.....उम्म्म्म....ये तो बहुत स्वाद है!" संगीता खुश होते हुए बोली| अपनी पत्नी के इस भोलेपन को देख मैं मुस्कुरा दिया और उसे चिकन लॉलीपॉप खाने को कहा| संगीता ने चिकन लॉलीपॉप पहले भी खाया था इसलिए उसे स्वाद में कुछ नयापन नहीं मिला, चिकन के मुक़ाबले बियर नई चीज़ थी और संगीता को इसमें खूब स्वाद आ रहा था|
एक तरफ संगीता अपनी बियर का स्वाद लेने में मस्त थी, तो दूसरी तरफ मेरी नज़रें मेरी बिटिया नेहा और उसके दोस्तों पर गड़ी थीं| बार-बार मेरे मन में एक डर उमड़ रहा था की कहीं कोई लड़का मेरी बिटिया को गलत तरीके से छूने की कोशिश तो नहीं करेगा? कहीं कोई मेरी बिटिया को धोके से नशे की कोई चीज़ खिला-पिला तो नहीं देगा? मेरे मन के ये ख्याल माँ के साथ CID और क्राइम पैट्रॉल देखने के कारण पैदा हुए थे!
वैसे देखा जाए तो एक बेटी का पिता होने के कारण मेरा यूँ अपनी बेटी के लिए चिंतित होना जायज बात थी|
खैर, कुछ ही देर में संगीता ने मुझे नेहा पर नज़र रखते हुए पकड़ लिया था| नेहा को देख संगीता सारी बात समझ गई और मुझसे रूठते हुए बोली; "अच्छा जी?! तो ये कारण है की जनाब के मन में अचानक मेरे लिए प्रेम जाग गया?! और मैं बेवकूफ सोच रही थी की मेरे पति देव सच में मुझे इतना प्यार करते हैं की मेरी ख़ुशी के लिए मुझे बियर पिलाने बाहर लाये हैं!" ये कहते हुए संगीता का मुँह टेढ़ा हो गया|
"तुम्हें क्या लगा की मुझे अपनी बेटी की चिंता नहीं? मैं यूँ ही उसे आज़ादी दिए जा रहा हूँ? मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है की मेरी बिटिया कभी कोई गलत काम नहीं करेगी, कभी मुझसे झूठ नहीं बोलेगी मगर मैं उसके लड़के दोस्तों पर भरोसा नहीं करता इसीलिए मैंने यहाँ चुपचाप आ कर नेहा के लड़के दोस्तों पर नज़र रख रहा हूँ|
और तुम काहे नाराज़ हो रही हो?! तुम्हें आज अच्छी वाली बियर पीने को मिल गई न?! तुम बस मज़े से अपनी बियर का स्वाद लो!" मैं कभी नहीं चाहता था की नेहा के दोस्त लड़के बनें क्योंकि मैं आजकल के लड़कों की मानसिकता अच्छे से जानता हूँ लेकिन मेरे लिए नेहा को लड़के दोस्त बनाने से रोक पाना मुमकिन नहीं था|
बहरहाल, मेरी बात सुन संगीता मंद-मंद मुस्कुराने लगी क्योंकि उसे मेरे नेहा पर नज़र रखने की बात से ख़ुशी हो रही थी|
मैंने वेटर को बुलाया और उससे संगीता के मन की तसल्ली के लिए पुछा; "यार, यहाँ पर नाबालिग बच्चे हैं और आप सब को बियर सर्व (serve) कर रहे हो, बच्चे बियर नहीं आर्डर नहीं करते?" मैं जानता था की रेस्टोरेंट वाले कम उम्र के बच्चों को लिकर (liquor) सर्व नहीं करते मगर मैंने ये सवाल सिर्फ और सिर्फ संगीता के मन की तसल्ली के लिए पुछा था ताकि संगीता घर जा कर मुझसे ये कह कर न लडे की मैंने नेहा को ऐसे रेस्टोरेंट में जाने कैसे दिया जहाँ पर लिकर सर्व की जाती है|
"सर, हमारे यहाँ किसी भी अंदरऐज (underage) को लिकर सर्व नहीं की जाती! ऐसा करना दंडनीय अपराध है! अगर बच्चे बियर आदि माँगते भी हैं तो हम उन्हें साफ़ मना कर देते हैं|" वेटर की बात सुन संगीता के मन को तसल्ली हो गई थी और उसने इस बात को लेकर मुझसे कोई सवाल-जवाब नहीं किया|
संगीता ने दो कैन बियर पी और शुक्र है की उसे चढ़ी नहीं! वहीं नेहा के दोस्तों ने अपना बिल चूका दिया था तथा वो सब एक साथ निकल गए थे| संगीता ने बियर तो निपटा दी थी बस उसे अब चिकन साफ़ करना था, चिकन साफ़ करने में संगीता ने थोड़ा टाइम लिया जिस कारण हम 10 मिनट लेट हो गए!
बिल चूका कर मैंने फटाफट ऑटो किया; "भैया, थोड़ा जल्दी चलो!" मैंने ऑटो वाले को कहा और हम बड़ी मुश्किल से नेहा के घर पहुँचने से पहले घर पहुँचे| मुँह-हाथ धो, कपड़े बदल मैं घर से बाहर आ गया और कुछ दूरी पर खड़ा हो गया| इतने में दिषु आयुष और स्तुति को ले कर घर लौटा, दोनों बच्चे सीढ़ी चढ़ ऊपर गए तो मैंने दिषु को फ़ोन कर जहाँ मैं खड़ा था वहाँ बुलाया| हम दोनों दोस्त खड़े हो कर बात कर ही रहे थे की नेहा की कैब आ गई, नेहा कैब से उतरी तथा अपने दोस्तों को बाय (bye) कह ऊपर चली गई| इधर मैं दीषु के साथ उसकी गाडी में घूमने निकल गया| मेरा दिषु के साथ जाने का कारण ये था की मैंने पी कर अपने बच्चों के सामने न जाने की कसम खाई थी और मैं ये कसम तोडना नहीं चाहता था|
उधर घर पहुँच कर नेहा ने देखा की स्तुति मुँह फुलाये घूम रही है! स्तुति के गुस्सा होने का कारण ये था की नेहा उसे अपने साथ पार्टी करने नहीं ले गई थी| लेकिन जैसे ही नेहा ने स्तुति के लिए लाई हुई चॉकलेट अपनी जेब से निकाली, स्तुति अपना गुस्सा छोड़ कर चॉकलेट लेने दौड़ पड़ी| "दीदी, आपने स्तुति को चॉक्लेट क्यों दी? हम तो दिषु चाचू के साथ फिल्म और बाहर खाना खा कर लौटे हैं|" आयुष के मुख से सच सुन नेहा प्यारभरा गुस्सा ले कर नेहा के पीछे दौड़ पड़ी; "पिद्दा! ला वापस दे मेरी चॉकलेट!" नेहा ने झूठ-मूठ अपनी दी हुई चॉकलेट माँगी मगर स्तुति अपनी चॉकलेट को बचाने के लिए पूरे घर में दौड़ती रही!
बहरहाल, संगीता ने बच्चों की मस्ती रुकवाई और तीनों को जल्दी सोने के लिए डाँट लगाई| "मम-मम...पपई?" स्तुति को मेरे बिना नींद नहीं आती थी इसलिए उसने मेरे बारे में पुछा| स्तुति के मेरे बारे में पूछते ही आयुष और नेहा भी मेरे बारे में पूछने लगे|
“तुम्हारे पपई कुछ काम से अभी बाहर गए हैं, थोड़ी देर में आ जायेंगे| अब जल्दी से सो जाओ, सुबह स्कूल जाना है|" संगीता ने जैसे ही स्कूल जाने की बात कही नेहा और आयुष तो सोने के लिए तुरंत तैयार हो गए मगर स्तुति आँखों में सवाल लिए हुए अपनी मम्मी से बोली; "मम-मम...स्कूल? मेला तो स्कूल न..ई!" स्तुति के कहने का मतलब था की उसका तो सुबह कोई स्कूल नहीं इसलिए वो जाग कर मेरा इंतज़ार करेगी| स्तुति का ये तर्क सुन नेहा और आयुष खिलखिलाकर हँसने लगे, वहीं संगीता प्यारभरा गुस्सा लिए हुए स्तुति से बोली; "मेरी नानी! सो जा चुप-चाप, वरना लगाऊँगी तुझे एक!" संगीता का प्यारभरा गुस्सा देख तीनों बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे!
चूँकि मैंने बियर पी रखी थी और मैं बच्चों के सामने इस हालत में नहीं आना चाहता था इसीलिए संगीता बच्चों को जबरदस्ती सोने को कह रही थी| सुबह होने पर मैं नहा-धो कर पूजा कर तीनों बच्चों को गोदी ले कर प्यार करता|
मैं जान बूझ कर देर से घर लौटा, मेरे लौटने तक माँ घर आ चुकीं थीं| मैंने माँ से थोड़ी बातचीत की मगर मैंने उन्हें नेहा के पार्टी जाने के बारे में कुछ नहीं बताया| माँ तो आराम से सो गईं, लेकिन इधर मेरे कमरे में संगीता का मूड एकदम से रोमांटिक हो गया था| वो रात अपुन दो बजे तक रोमांस किया!
अगली सुबह नाहा-धो कर, पूजा कर मैं बच्चों को उठाने पहुँचा| "नेहा बेटा...आयुष बेटा...स्तुति बेटू!" जैसे ही मैंने तीनों बच्चों को पुकारा आयुष-नेहा तो नींद में कुनमुनाते रहे मगर मेरी आवाज़ सुन सबसे पहले स्तुति उठी और मुझे देख जोर से चिल्लाई; "पपई!!!" मैंने अपनी बाहें खोलीं तो स्तुति ने मेरी गोदी में आने के लिए छलाँग लगा दी| मेरी गोदी में आ कर स्तुति की कल अपने दिषु चाचू के साथ की गई मस्ती का विवरण शुरू हो गया| तभी माँ स्तुति का शोर सुन कर कमरे में आईं, अपनी दादी जी को देख स्तुति ने अपने तकिये के नीचे रखी हुई चॉकलेट निकाली और अपनी दादी जी को दिखाते हुए बोली; "दाई...दिद्दा!"
जब भी नेहा अपने दोस्तों के साथ कहीं घूमने जाती थी तो वापसी में नेहा हमेशा स्तुति के लिए चॉकलेट लाती और स्तुति बड़े गर्व से अपनी दिद्दा द्वारा लाई हुई चॉकलेट अपनी दाई को दिखाती| माँ ने जब स्तुति के हाथ में चॉकलेट देखि तो माँ समझ गईं की नेहा कल अपने दोस्तों के साथ बाहर गई थी, जिसके बारे में मैंने उन्हें अभी तक कुछ नहीं बताया था|
अनजाने में मेरी छोटी बिटिया ने अपनी दादी जी के दिल में प्रति गुस्सा जगा दिया था|
माँ गुस्से से मुझे घूर रहीं थीं और उनके इस प्रकार घूरने पर स्तुति घबरा कर मुझसे लिपट गई| "वाह बेटा वाह, बहुत छूट दे रखी है तूने बच्चों को! बच्चे कहाँ जाते हैं मुझे बताने की जर्रूरत नहीं समझी तूने?" माँ ने मुझे ताना मारते हुए डाँट लगाई| माँ की डाँट सुन मेरा सर शर्म से झुक गया| वहीं माँ की डाँट सुन आयुष और नेहा एकदम से उठ कर बैठ गए|
मैंने माँ को सारी बात बताई मगर मेरे और संगीता के चोरी-छुपे नेहा के पीछे जाने के बारे में कुछ नहीं बताया| सारी बात सुन माँ ने संगीता को भी डाँट लगाई मगर मैंने संगीता को बचाने के लिए सारा इलज़ाम अपने सर ले लिया| अब चूँकि मैं अकेला ही कसूरवार था इसलिए माँ ने मुझे ही अपने गुस्से का निशाना बनाया| माँ ने मुझे बहुत डाँटा और मैं सर झुकाये उनकी डाँट सुनता रहा| 10 मिनट बाद जब माँ का मुझे डाँटना हो गया तो उन्होंने दोनों बच्चों को सख्ती के साथ स्कूल के लिए तैयार होने को कहा| बच्चे डर के मारे फटाफट स्कूल के लिए तैयार हुए और माँ खुद बच्चों को स्कूल छोड़ने गईं| गौर करने वाली बात ये थी की दोनों बच्चे इतने डरे हुए थे की उनकी हिम्मत नहीं पड़ी की वो अपनी दादी जी से कोई बात कर सकें इसलिए दोनों बच्चे पूरे रास्ते सर झुकाये खामोश रहे|
जब माँ घर लौटीं तो मैंने कान पकड़ माँ से माफ़ी माँगी और उन्हें सारी बात समझाई| परन्तु मेरी माँ पुरानी विचार धारा की हैं और उनके अनुसार बच्चों को यूँ रात के समय दोस्तों के साथ बाहर जाने देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं| हालाँकि मैंने माँ को बहुत समझाया की मैं हमेशा नेहा के साथ साये की तरह रहूँगा मगर माँ नहीं मानी और इसे मेरी आखरी गलती समझ माफ़ कर दिया|
स्तुति जो की अपनी दाई के गुस्से से घबराई हुई थी उसे माँ ने कुछ नहीं कहा, बल्कि स्तुति के मोह के कारण ही माँ का क्रोध शांत हुआ| दोपहर को जब दोनों बच्चे स्कूल से लौटे तो दोनों ने सीधा पानी दादी जी के पॉंव पकड़ लिए और रुनवासे हो कर माफ़ी माँगने लगे| माँ ने दोनों बच्चों को माफ़ केवल एक शर्त पर किया की बच्चे आगे से माँ से कोई बात नहीं छुपायेंगे| बच्चों के लिए उनकी दादी सर्वोपरि थीं इसलिए दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी से वादा कर दिया|
अपनी दादी जी से माफ़ी ले कर नेहा मेरे पास आई और मुझसे माफ़ी माँगने लगी; "पापा जी, मुझे माफ़ कर दो, मेरे कारण आपको दादी जी से इतनी डाँट पड़ी|" नेहा बहुत भावुक हो गई थी इसलिए मैंने नेहा को अपने गले लगाया और बोला; "कोई बात नहीं बेटा जी| सभी मम्मियाँ अपने बच्चों को डाँटती हैं, लेकिन बच्चे अपनी मम्मी की डाँट का बुरा थोड़े ही लगाते हैं|" मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा तथा उसे लाड कर बहलाने लगा|
उस दिन के बाद से नेहा जब भी अपने दोस्तों के साथ घूमने जाती तो केवल दिन में और किसी भी हाल में उसे शाम 5 बजे से पहले घर लौटना होता था| लेकिन फिर आगे चल कर नेहा के पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने और जिम्मेदारी को देखते हुए माँ ने समय की ये लक्ष्मण रेखा और बढ़ा दी| अब नेहा को शाम 7 बजे तक घर आने का हुक्म मिल चूका था, जिससे नेहा बहुत खुश थी|
समय हँसी-ख़ुशी बीत रहा था... और फिर एक ऐसा भी दिन आया की मेरी लाड़ली बेटी नेहा इतनी बड़ी हो गई की मेरे कँधे तक आने लगी!
जारी रहेगा भाग - 10 में...
आयुष के मुख से सच सुन नेहा प्यारभरा गुस्सा ले कर नेहा के पीछे दौड़ पड़ी;
मनु भाईआपने बिलकुल सही कहा .......................नेहा की वजह से इन्होने बहुत डांट खाई है![]()
Bahot khoobsurat update bhaiअंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 9
अब तक अपने पढ़ा:
उधर स्तुति अपने बड़े भैया को सबसे माफ़ी माँगते हुए बड़े प्यार से देख रही थी| जब आयुष को सब ने लाड-प्यार कर लिया तो स्तुति ने अपने भैया को पुकारा; "आइया...चो...को (चॉकलेट)" ये कहते हुए स्तुति ने अपने बड़े भैया आयुष को खुश करने के लिए अपनी आधी खाई हुई चॉकलेट दी| आयुष ने हँसते हुए स्तुति की आधी खाई हुई चॉकलेट ले ली और बोला; "स्तुति, बाकी की चॉकलेट कहाँ गई?" आयुष के पूछे सवाल के जवाब में स्तुति मसूड़े दिखा कर हँसने लगी और तब हमें पता चला की स्तुति आधी चॉक्लेट खुद खा गई!
"चॉकलेट तो ये पिद्दा आयुष के लिए लाई थी मगर सीढ़ी चढ़ते हुए इस शैतान को लालच आ गया और इस शैतानी की नानी ने आधी चॉकलेट खुद ही खा ली! " नेहा ने स्तुति की चुगली की जिसपर हम सभी ने जोरदार ठहाका लगाया!
अब आगे:
प्रतिकाष्ठा
समय का चक्र इतनी तेज़ी से घूमा की आयुष, नेहा और स्तुति कुछ ज्यादा जल्दी ही बड़े हो गए!
सबसे छोटी स्तुति न केवल मस्ती करने में आगे रहती थी बल्कि वो अब चुलबुली बन गई थी| स्तुति बिलकुल गोलू-मोलू थी और इतनी प्यारी की उसे देख हर कोई उस पर मोहित हो जाता| पूरा दिन स्तुति घर में फुदकती रहती और कुछ न कुछ रटती रहती| कभी अपने कार्टून का नाम तो, कभी कोई गाना गुनगुनाती रहती| कभी अपने खिलोनो के साथ खेलती तो कभी अपनी मम्मी के पीछे घूमती रहती| स्तुति के मन में इतनी जिज्ञासा भरी थी की वो सभी से सवाल पूछती रहती| स्तुति की इस जिज्ञासा से संगीता अक्सर चिढ जाती और स्तुति को बाहर भगा देती!
जब भी घर में कोई समारोह होता और काम बाँटा जाता तो स्तुति का हाथ सबसे पहले उठता| "हम करब" कहते हुए स्तुति कूदने लगती, वो बात अलग है की उसे काम कोई नहीं दिया जाता क्योंकि अक्सर स्तुति की मस्तियाँ काम बढ़ा दिया करती थीं| लेकिन स्तुति काम न मिलने पर उड़ा नहीं होती, बल्कि वो सबके काम पर नज़र रखने का काम करती| किसी से कोई गलती हुई नहीं की स्तुति किसी मास्टरनी की तरह गलती गिनाने लग जाती|
मस्ती के अलावा खाने-पीने के मामले में स्तुति हमेशा आगे रहती थी| भाईसाहब जब भी घर में कथा-भागवत बैठाते तो खाने में क्या बनेगा ये सवाल केवल स्तुति से पुछा जाता| फिर तो स्तुति बिलकुल अपनी मम्मी की तरह खाने की चीजें गिनाने लगती, जिसे देख सभी ज़ोर से ठहाका लगाने लगते|
जब स्तुति अपनी नानी जी के घर जाती तो वहाँ जा कर स्तुति के मस्ती भरे पँख निकल आते| कभी अपने चरण नाना जी की दूकान में बैठ कर उनकी दूकान की बिक्री बढ़ाने के लिए; "ले लो..ले लो.. तीन रुपये में दुइ ठो पान ले लो!" का नारा ज़ोर-ज़ोर से लगाती तो कभी अपनी नानी जी के पास बैठ कर उन्हें अंग्रेजी सिखाने लगती| एक दिन तो स्तुति की नानी जी ने मुझे फ़ोन घुमा कर उसकी शिकायत करनी शुरू कर दी; "ई मुन्नी हमका अंग्रेजी सिखावत है! अब तुहुँ बतावा हम का करि?!" लेकिन स्तुति ने हार मानना नहीं सीखा था इसलिए उसने अपनी नानी जी को "आई लव यू" बोलना सीखा दिया| फिर तो जब भी स्तुति अपनी नानी जी के घर जाती, उसकी नानी जी उसे रोज़ आई लव यू कह कर लाड-प्यार करतीं|
इधर, भाईसाहब अपनी छोटी सी भाँजी में अपनी बहन संगीता का बचपना देखते और स्तुति को खूब लाड-प्यार करते| जब भी स्तुति अपने बड़े मामा जी के पास होती तो भाईसाहब स्तुति को अपनी पीठ पर लादे हुए पूरे गॉंव में टहला लाते| आखिर जो प्यार भाईसाहब अपनी बहन संगीता को नहीं दे पाए वो प्यार अब स्तुति पर लुटाया जा रहा था|
वहीं भाभी जी यानी स्तुति की बड़ी मामी जी तो स्तुति को सबसे ज्यादा लाड करतीं| जब भी स्तुति घर आती तो उसे गोद में बिठा कर उसकी पसंद का खाना बनतीं| स्तुति अगर कुछ बाहर से खाने को माँगती तो भाभी जी तुरंत विराट या भाईसाहब को वो वो खाने की चीज़ लाने को दौड़ा देतीं| स्तुति भी अपनी बड़ी मामी जी को कम प्यार नहीं करती थी, हमेशा अपनी मामी जी की मदद करने के लिए स्तुति सबसे आगे होती|
जब स्तुति की उम्र स्कूल जाने की हुई तो और भी गजब हुआ| जहाँ बाकी बच्चे स्कूल के पहले दिन रोते हैं, स्तुति एकदम निडर थी बल्कि ये कहना उचित होगा की वो तो स्कूल जाने को अतिउत्साहित थी! स्कूल के पहले ही दिन स्तुति की क्लास के सारे बच्चे उसके दोस्त बन गए तथा अध्यापिकायें स्तुति के गोल-मटोल गाल खींचते नहीं थकती थीं| स्तुति के छुटपन में जो मैंने, नेहा और आयुष ने मिल कर स्तुति को ABCD तथा पोएम याद कराईं थीं उस कारण स्तुति का मन पढ़ाई में लग गया था, तभी तो स्तुति की सारी अध्यपिकाएँ उसकी तारीफ करते नहीं थकती थीं| जितना स्तुति मस्ती करने में आगे थी, उतना ही वो पढ़ाई करने में आगे थी| पढ़ाई के मामले में हमारे पूरे परिवार में स्तुति ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है और वो ये की आजतक स्तुति अपनी क्लास में फर्स्ट ही आई है!
चूँकि स्तुति बड़ी हो चुकी थी इसलिए उसने आयुष को अब 'बड़े भैया' कह कर बुलाना शुरू कर दिया था| वहीं अपनी छोटी बहन के मुख से ये प्यारभरे शब्द सुन कर आयुष का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो जाता| दोनों भाई-बहन के बीच प्यार बहुत घनिष्ट था, दोनों एक साथ बैठ कर खाना खाते, एक साथ अपने स्कूल का होमवर्क करते| यदि स्तुति को पढ़ाई में कोई कठनाई होती तो आयुष स्तुति को पढ़ाने बैठ जाता और खाने-पीने के उदहारण दे कर समझाता, जिससे स्तुति को बहुत मज़ा आता| स्तुति की मस्तियों के कारण जब भी स्तुति को डाँट पड़ती तो आयुष फौरन उसे बचाने आ जाता और स्तुति के हिस्से की डाँट खुद खाता| स्तुति को अपने बड़े भैया की शय मिलती थी इसलिए स्तुति और भी अधिक मस्तियाँ करती|
वहीं, अपनी दिद्दा नेहा के साथ स्तुति का रिश्ता नोक-झोंक भरा था! स्तुति को अपनी दिद्दा को तंग करने में कुछ ज्यादा ही मज़ा आता था| नेहा के बाल खींचने की आदत जो स्तुति ने अपने छुटपन में सीखी थी वो आदत स्तुति में अब भी थी| जब भी नेहा पढ़ रही होती तो स्तुति दबे पॉंव पीछे से आती और अपनी दिद्दा की चोटी खींच कर भाग जाती! कभी-कभी स्तुति अपनी दिद्दा के कपड़े पहन कर देखती, अब नेहा के कपड़े स्तुति के लिए बहुत बड़े थे इसलिए कपड़े अधिकतर ज़मीन से लथेड़ जाते और मिटटी के कारण गंदे हो जाते| जब नेहा देखती की उसके कपड़ों पर मिटटी लगी है तो नेहा स्तुति को सबक सिखाने उसके पीछे दौड़ती मगर स्तुति इतनी फुर्तीली थी की वो अपनी दिद्दा को चकमा दे कर भाग जाती! यही नहीं कभी-कभी स्तुति अपनी दिद्दा की चप्पल पहन कर जाती और जहाँ-तहाँ फेंक आती, जिस पर नेहा बहुत गुस्सा होती और फिर स्तुति के पीछे भागती!
स्तुति की ये मस्तियाँ नेहा को न भातिं इसलिए नेहा अपना अलग बदला लेती| जब स्तुति सो रही होती तो उसके ऊपर पानी डालकर उसे उठा देती, जिससे स्तुति रोने लगती! स्तुति खेलती हुई नज़र आई नहीं की नेहा उसे पढ़ने के लिए डाँटने लगती, अतः डर के मारे स्तुति पढ़ने बैठ जाती| आयुष अपनी छोटी बहन के लिए जब टॉफ़ी या चॉकलेट लाता तो नेहा फट से सब चट कर जाती, अब स्तुति को आता गुस्सा इसलिए वो अपनी दिद्दा की शिकायत करने चल पड़ती, तब नेहा उसके कान पकड़ कर उसे कमरे में बंद कर देती और जबतक स्तुति का रोना शुरू नहीं होता तब तक दरवाजा बंद ही रखती| वो तो आयुष आ कर हाथ जोड़कर अपनी दीदी से स्तुति की मस्तियों की माफ़ी माँगता, तब जा कर नेहा दरवाजा खोलती!
ऐसा नहीं था की नेहा को स्तुति से कोई चिढ होती थी, या नेहा हमेशा ही स्तुति को डाँटती रहती थी| जब स्तुति का रिजल्ट आता तो स्तुति सबसे पहले दौड़ कर अपनी दिद्दा के पास आती और नेहा स्तुति का रिपोर्ट कार्ड देख उसके फर्स्ट आने पर स्तुति को खूब लाड-प्यार करती| स्तुति को कपड़े पहनने का सलीका नेहा ही सिखाती थी, यहाँ तक की स्तुति को जब अपनी चोटी बनवानी होती तो वो सीधा अपनी दिद्दा के पास दौड़ी आती| दरअसल, नेहा चाहती थी की स्तुति मस्ती कम और पढ़ाई ज्यादा करे, लेकिन जब स्तुति अधिक मस्ती करती तो नेहा उस पर खफा हो जाती!
खैर, स्तुति मस्तीखोर सही मगर उसकी ये मस्तियाँ केवल घर में होती थीं| जब कभी कोई मेहमान घर आया हो या कहीं बाहर जाना हो तो स्तुति बिलकुल मस्ती नहीं करती तथा अपने बड़े भैया के साथ रहती|
आयुष की बात करें तो, मैंने जो आयुष को थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारियाँ लेना सिखाया था उस वजह से आयुष एक आदर्श बेटे के रूप में उभर कर आया| घर का कोई भी काम हो, आयुष पूरी निष्ठा से पूरा करता और सारा हिसाब-किताब सीधा अपनी मम्मी को देता| संगीता ने भले ही आयुष को बहुत डाँटा हो मगर अब आयुष अपनी मम्मी का लाडला बन गया था|
आयुष को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था इसलिए एक समय ऐसा आया जब आयुष पढ़ाई की तरफ थोड़ा ढीला हो गया था, जिस कारण आयुष के पढ़ाई में कम नंबर आये, नतीजन आयुष को सबसे डाँट पड़ी| उस समय मैंने आयुष को प्यार से समझाया; “बेटा, मैं जानता हूँ की आपको क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता है और आप आगे चलकर क्रिकेटर बनना चाहते हो मगर बेटा क्रिकेट में स्कोप नहीं है! इस खेल में कम्पीटिशन इतना है की आप सबका मुक़ाबला नहीं कर पाओगे!
बेटा हम लड़कों पर बहुत जिम्मेदारियाँ होती हैं इसलिए कई बार अपने परिवार के लिए अपनी पसंद की चीजों का त्याग करना होता है| क्रिकेट खेलने से आप पैसे नहीं कमा पाओगे| केवल पढ़ाई ही है जो आपको बड़े हो कर पैसे कमाने में मदद करेगी|
आप क्रिकेट को बस अपने मनोरंजन के लिए खेलो और अपना ध्यान केवल पढ़ाई में लगाओ| आपको मैथमेटिक्स मुश्किल लगता है न, तो मैं आपकी मैथमेटिक्स की टूशन लगवा देता हूँ| अगर आपको टूशन में कुछ समझ न आये तो बताना, मैं आपकी क्लास टीचर से बात करूँगा|" मेरी बात थोड़ी कड़वी थी मगर आयुष को समझ आ गई थी| उस दिन से आयुष ने अपना मन पढ़ाई में लगा लिया| आयुष पढ़ाई में अव्वल तो नहीं आ पाता था मगर अपनी क्लास के टॉप 10 में अवश्य आता था, जिससे परिवार में अब किसी को आयुष से कोई शिकायत नहीं रहती थी|
जैसे-जैसे आयुष बड़ा होता गया, हम बाप-बेटे का रिश्ता दोस्ती के रिश्ते में बदल गया|
वहीं दूसरी तरफ, मेरी बिटिया नेहा में गज़ब का आत्मविश्वास पैदा हो गया था| जब से नेहा को फ़ोन मिला था, नेहा ने फेसबुक पर अपना अकाउंट बना अपने नए दोस्त बनाने शुरू किये| इन्हीं नए दोस्तों में से एक करुणा भी थी, करुणा ने नेहा का नंबर ले लिया और फिर दोनों what's app पर चैट करने लगे|
संगीता जब नेहा को अपने फ़ोन में घुसी देखती तो उसे बहुत गुस्सा आता और वो नेहा को डाँटने लगती| धीरे-धीरे संगीता को शक होने लगा की कहीं नेहा क्लास के लड़कों के साथ what's app पर ऐसी-वैसी बातें तो नहीं करती?! अब मुझे अपनी बेटी पर पूरा विश्वास था की वो ऐसा कोई काम नहीं करती मगर संगीता के शक का निवारण करना जर्रूरी था वरना फिर संगीता का मुँह बन जाता! संगीता के मन की तसल्ली के लिए मुझे अपनी ही बेटी के साथ छल करना था|
एक बार मुझे किसी को फ़ोन करना था तब मैंने नेहा से फ़ोन लिया था, उस समय नेहा ने मुझे अपने फ़ोन का पासवर्ड बताया था| मैंने वो पासवर्ड संगीता को बताया तथा नेहा को अपनी बातों में व्यस्त करते हुए छत पर ले आया| संगीता ने इस मौके का फायदा उठाया और नेहा का what's app खँगालने लगी| तभी संगीता को पता चला की नेहा करुणा से चाट करती है मगर दोनों की चैट में कुछ भी ख़ास नहीं निकला| नेहा की बातें अक्सर अपनी सहेलियों से होती और वो सब बातें पढ़ाई या हीरो-हेरोइन से जुडी होतीं| नेहा के फ़ोन में कुछ भी ऐसा-वैसा नहीं निकला था इसलिए संगीता ने चैन की साँस ली|
चूँकि अब संगीता को नेहा के फ़ोन का पासवर्ड पता था इसलिए अब नेहा का फ़ोन चोरी-छुपे संगीता द्वारा रोज़ ही चेक होता था|
चूँकि नेहा बड़ी हो रही थी तो उसे थोड़ी आजादी चाहिए थी| रविवार का दिन था और नेहा के दोस्तों ने मॉल जाने का प्लान बनाया था| नेहा ने जब अपनी मम्मी से इजाजत माँगी तो संगीता ने फौरन न कह दिया! अब देखा जाए तो, जाने को नेहा अपनी दादी जी के पास जा सकती थी मगर माँ के न कहने के आसार ज्यादा थे और एक बार माँ ने न कह दिया तो सब चौपट हो जाता! अतः जब मैं नहा कर आया तो नेहा मेरे पास अपनी आस की टोकरी ले कर आई और मॉल जाने की इजाजत माँगी| "ठीक है बेटा, लेकिन पहले मुझे सारी जानकारी सच-सच बताओ|" ये कहते हुए मैंने नेहा से मॉल जाने के बारे में सारी जानकारी ली तथा नेहा के दोस्तों के नंबर भी ले लिए| "ठीक है बेटा आप जा सकते हो| लेकिन वापसी में स्तुति और आयुष के लिए चॉकलेट ले के आना वरना दोनों रूठ जायेंगे!" मैंने नेहा को खर्चे के लिए कुछ पैसे देते हुए कहा|
मेरी हाँ सुन नेहा ख़ुशी से कूद पड़ी और फटाफट तैयार हुई| वहीं मैंने ये सुनिश्चित किया की नेहा ने अपने जिन दोस्तों के साथ जाने के बारे में मुझे बताया था वही लोग उसे लेने भी आये हैं| नेहा गई तो संगीता भुनभुनाती हुई मुझ पर चढ़ बैठी, साथ ही उसने माँ के दिल में भी मेरे खिलाफ आग लगा दी की मैं कैसे बच्चों को बेवजह सर पर चढ़ा रहा हूँ| अपनी बिटिया का शौक पूरा करने के लिए मुझे माँ और संगीता से पेट भरकर डाँट पड़ी!
नेहा तीन घंटे के लिए बोल कर गई थी मगर नेहा 2 घंटे बाद ही वापस आ गई, इसी वजह से नेहा को अपनी दादी जी से डाँट नहीं पड़ी| नेहा पढ़ाई में अव्वल आती थी, बिलकुल शरारती नहीं थी इस कर के माँ ने नेहा को थोड़ी छूट दे दी मगर माँ ने एक शर्त रखी; "अगर दोस्तों के साथ जाना है तो हमें सब बता कर जाना होगा और सिर्फ दिन में ही जाना होगा! किसी भी हाल में शाम 5 बजे से पहले घर वापस आना वरना ये बाहर घूमना बंद!" माँ की शर्त नेहा ने ख़ुशी-ख़ुशी मान ली और उस दिन से नेहा कभी-कभी अपने दोस्तों के साथ मॉल या पिक्चर जाने लगी|
एक बार नेहा की दोस्त का जन्मदिन था और वो पार्टी रात में एक रेस्टोरेंट में देना चाहती थी| अब माँ ने नेहा के लिए पहले ही समय की लक्ष्मण रेखा बाँध रखी थी जो किसी हाल में नहीं टूटने वाली थी इसलिए नेहा फ़रियाद ले कर सीधा मेरे पास आई| मैंने इस पार्टी के बारे में नेहा से जानकारी ली तो पता चला की इस पार्टी में लड़के भी होंगे! अब मुझे अपनी बेटी की सुरक्षा की चिंता थी मगर नेहा को पार्टी में जाने के लिए मना कर मैं नेहा का दिल नहीं तोडना चाहता था!
न चाहते हुए भी मैंने आधे मन से अपना सर हाँ में हिलाया| परन्तु मेरे दिमाग में एक योजना तैयार हो चुकी थी! इधर मेरी इजाजत पा कर नेहा ख़ुशी से उछल पड़ी और आ कर मेरे सीने से लग कर मुझे थैंक यू बोलने लगी| उधर संगीता मेरे हाँ कहने से गुस्से से तमतमा गई थी और मुझे खा जाने वाली नजरों से घूर रही थी! नेहा अपने पार्टी जाने की खुशखबरी सुनाने अपने दोस्त को फ़ोन करने भागी और संगीता मेरे ऊपर बरस पड़ी; "सर पर चढ़ा लो इसे, फिर जब ये आपके सर पर नाचेगी न तब मेरे पास मत आना!"
शाम को माँ ने पूजा में जाना था और उन्हें रात 10 बजे तक लौटना था इसलिए बड़ी मुश्किल से मैंने संगीता को माँ से ये बात राज़ रखने के लिए मना लिया था| 5 बजे माँ पूजा के लिए निकलीं और 6 बजे नेहा को लेने उसके दोस्त कैब कर के आये| नेहा के जाते ही मैंने संगीता को मस्का लगाना शुरू कर दिया| संगीता रसोई में खाना बना रही थी जब मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसे मनाने के लिए तीन जादुई शब्द कहे, जिन्हें सुन संगीता का गुस्सा एक पल में फुर्र्र हो गया; “बियर पीने चलोगी!"
ये तीन जादुई शब्द संगीता के कानों में घुल गए और उसने चहकते हुए मुझे देखा और बिना कोई पल बर्बाद किये हाँ में अपनी गर्दन हिलाई| लेकिन फिर अगले ही पल संगीता का मुँह बन गया और वो सड़ा हुआ सा मुँह बना कर बोली; "इन दोनों शैतानों (आयुष और स्तुति) का क्या?" संगीता के मुँह बनाने पर मुझे हँसी आ गई और मैंने उसी के सामने दिषु को फ़ोन मिलाया; "भाई तेरी एक मदद चाहिए! कुछ देर के लिए तू आयुष और स्तुति को घुमा लायेगा?" मेरी इतनी बात सुनते ही दिषु एकदम से बोल पड़ा; "मतलब आज तुम दोनों का प्रोग्राम फिक्स हुआ है?!" दिषु की बात सुन मैं जोर से हँस पड़ा, वहीं संगीता जिसने स्पीकर पर सारी बात सुनी थी वो लाज से पानी-पानी हो गई!
"नहीं भाई, ऐसा नहीं है..." मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही दिषु मेरी बात काटते हुए बोला; "अबे रहने दे तू, सब जानता हूँ मैं! वैसे एक बात बता की तूने मुझे बच्चों की 'आया' समझा हुआ है? साले प्रोग्राम तू बनाये, बच्चे मैं खिलाऊँ?" दिषु प्यारभरी शिकायत करते हुए बोला| "भाई, आया को तो हम तनख्वा देते हैं, तुझे तो दारु की पार्टी मिलेगी! अब खुश?" जैसे ही मैंने दारु पार्टी का नाम लिया, दिषु की बाछें खिल गईं और वो फट से बोला; "मैं 10 मिनट में आ रहा हूँ, तू बच्चों को तैयार कर!" दिषु की बात सुन मेरी हँसी छूट गई और संगीता भी मुँह छुपाते हुए हँसने लगी!
दिषु को तो मैंने बुला लिया मगर आयुष और स्तुति को भी तो बाहर जाने के लिए मनाना था?! संगीता को तैयार होने के लिए बोल मैंने जैसे ही आयुष और स्तुति को बाहर घूमने जाने की बात कही तो स्तुति फट से मेरी गोदी में चढ़ गई और बोली; "पपई...आइस...क्रीम!" स्तुति चहकते हुए बोली|
"बेटा, आपके दिषु चाचू आ रहे हैं और वो है न आपको आइस क्रीम खिलाएंगे और फिल्म दिखाने ले जायेंगे|" दिषु के साथ घूमने जाने की बात सुन आयुष तो फट से तैयार हो गया मगर स्तुति ने मेरी कमीज अपनी मुठ्ठी में जकड़ ली और अपनी गर्दन न में हिलाने लगी की वो नहीं जायेगी! “"बेटा, आपके दिषु चाचू आपको कितना प्यार करते हैं, हमेशा आपके लिए चॉकलेट लाते हैं| आज उनका मन आपको घुमाने का है, उनको ऐसे मना करना अच्छी बात नहीं न?! वो आपको गाडी में घुमाने ले जायेंगे और ढेर सारी आइस क्रीम खिलाएंगे!" मेरी बात सुन स्तुति ने अपना निचला होंठ फुला कर मुझे अपने मोहपाश में जकड़ने का प्रयास किया| "मेरा, प्यारा बच्चा है न? प्लीज बेटा, थोड़ी देर के लिए चले जाओ न?!" मैंने स्तुति के मोहपाश के जवाब में अपना मोहपाश फेंका तो स्तुति ने मेरी बात मान ली| "जब आप वापस आओगे न तो मैं आपको खूब सारी कहानी सुनाऊँगा और रसमलाई भी खिलाऊँगा|" मेरी बात सुन स्तुति के दिल प्रसनत्ता से भर गया और वो ख़ुशी से खिलखिलाने लगी|
कुछ समय बाद, जब दिषु बच्चों को लेने आया तो वो मुझे आँख मारते हुए बुदबुदाया; "साढ़े आठ तक आऊँगा, तब तक अपना 'काम' निपटा लियो!" दिषु की बात सुन मैं हँस पड़ा और उसे बाद में सारी बात बताने का इशारा किया| इधर दिषु दोनों बच्चों को ले कर निकला और 10 मिनट बाद हम मियाँ-बीवी कैब कर निकले| पहली बार मेरे साथ बियर पीने के लालच के कारण आज संगीता ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी|
अब चूँकि हम एक महँगे रेस्टोरेंट में जा रहे थे और हमने सिर्फ बियर ही पीनी थी इसलिए मैंने संगीता को जीन्स और टी-शर्ट पहनने को कहा, संगीता ने मेरी बात मानी तथा एक गोल गले की टी-शर्ट पहनी, ये टी-शर्ट कुछ ज्याद तंग थी और संगीता बहुत ही कामुक लग रही थी!
बहरहाल मैं, संगीता को ले कर उसी रेस्टोरेंट पहुँचा जहाँ नेहा अपने दोस्तों के साथ आई थी| मेरी असली योजना थी की मैं साये की तरह अपनी बेटी के पीछे रहूँगा और उसके दोस्तों पर नज़र रखूँगा ताकि कहीं कोई लड़का मेरी बेटी को गलत रास्ते पर बहकाने की कोशिश न करे| संगीता मेरी इस योजना से फिलहाल अनजान थी, वो तो बस बियर पीने की बात से ही अतिउत्साहित थी|
नेहा जिस रेस्टोरेंट में पार्टी करने अपने दोस्तों के साथ आई थी, उस रेस्टोरेंट में मैं पहले भी आ चूका था और जानता था की यहाँ पर कौन सा टेबल मेरे लिए सही रहेगा| मैंने रेस्टोरेंट में सबसे पीछे की ओर का टेबल बुक किया, यहाँ से मैं नेहा और उसके दोस्तों पर नज़र रख सकता था लेकिन वो मुझे यहाँ नहीं देख सकते थे|
खैर, संगीता आज पहलीबार बियर पी रही थी इसलिए उसे अच्छी बियर पिलानी चाहिए थी इसलिए मैंने Lager beer मँगवाई| इस बियर की ख़ास बात ये थी की ये कड़वी नहीं थी बल्कि हलकी सी मीठी थी, साथ ही इसमें नशा बहुत कम था| वेटर ने बियर की दो कैन रखी तथा खाने के लिए चिकन लॉलीपॉप परोसा| बियर की कैन देख संगीता की आँखें छोटे बच्चों की तरह टिमटिमाने लगी| संगीता ने बियर की कैन उठाई मगर संगीता को कैन खोलना नहीं आता था इसलिए वो छोटे बच्चों की तरह मुँह बना कर मुझे देखने लगी| मैंने बियर की कैन खोल कर संगीता को दी तो संगीता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| फिर मैंने अपनी बियर की कैन खोली तथा संगीता की बियर की कैन से टकराई और बोला; "चियर्स!" संगीता ने भी मेरी देखा-देखि चियर्स कहा और हमने एक साथ बियर का पहला घूँट पीया|
"जानू.....उम्म्म्म....ये तो बहुत स्वाद है!" संगीता खुश होते हुए बोली| अपनी पत्नी के इस भोलेपन को देख मैं मुस्कुरा दिया और उसे चिकन लॉलीपॉप खाने को कहा| संगीता ने चिकन लॉलीपॉप पहले भी खाया था इसलिए उसे स्वाद में कुछ नयापन नहीं मिला, चिकन के मुक़ाबले बियर नई चीज़ थी और संगीता को इसमें खूब स्वाद आ रहा था|
एक तरफ संगीता अपनी बियर का स्वाद लेने में मस्त थी, तो दूसरी तरफ मेरी नज़रें मेरी बिटिया नेहा और उसके दोस्तों पर गड़ी थीं| बार-बार मेरे मन में एक डर उमड़ रहा था की कहीं कोई लड़का मेरी बिटिया को गलत तरीके से छूने की कोशिश तो नहीं करेगा? कहीं कोई मेरी बिटिया को धोके से नशे की कोई चीज़ खिला-पिला तो नहीं देगा? मेरे मन के ये ख्याल माँ के साथ CID और क्राइम पैट्रॉल देखने के कारण पैदा हुए थे!
वैसे देखा जाए तो एक बेटी का पिता होने के कारण मेरा यूँ अपनी बेटी के लिए चिंतित होना जायज बात थी|
खैर, कुछ ही देर में संगीता ने मुझे नेहा पर नज़र रखते हुए पकड़ लिया था| नेहा को देख संगीता सारी बात समझ गई और मुझसे रूठते हुए बोली; "अच्छा जी?! तो ये कारण है की जनाब के मन में अचानक मेरे लिए प्रेम जाग गया?! और मैं बेवकूफ सोच रही थी की मेरे पति देव सच में मुझे इतना प्यार करते हैं की मेरी ख़ुशी के लिए मुझे बियर पिलाने बाहर लाये हैं!" ये कहते हुए संगीता का मुँह टेढ़ा हो गया|
"तुम्हें क्या लगा की मुझे अपनी बेटी की चिंता नहीं? मैं यूँ ही उसे आज़ादी दिए जा रहा हूँ? मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है की मेरी बिटिया कभी कोई गलत काम नहीं करेगी, कभी मुझसे झूठ नहीं बोलेगी मगर मैं उसके लड़के दोस्तों पर भरोसा नहीं करता इसीलिए मैंने यहाँ चुपचाप आ कर नेहा के लड़के दोस्तों पर नज़र रख रहा हूँ|
और तुम काहे नाराज़ हो रही हो?! तुम्हें आज अच्छी वाली बियर पीने को मिल गई न?! तुम बस मज़े से अपनी बियर का स्वाद लो!" मैं कभी नहीं चाहता था की नेहा के दोस्त लड़के बनें क्योंकि मैं आजकल के लड़कों की मानसिकता अच्छे से जानता हूँ लेकिन मेरे लिए नेहा को लड़के दोस्त बनाने से रोक पाना मुमकिन नहीं था|
बहरहाल, मेरी बात सुन संगीता मंद-मंद मुस्कुराने लगी क्योंकि उसे मेरे नेहा पर नज़र रखने की बात से ख़ुशी हो रही थी|
मैंने वेटर को बुलाया और उससे संगीता के मन की तसल्ली के लिए पुछा; "यार, यहाँ पर नाबालिग बच्चे हैं और आप सब को बियर सर्व (serve) कर रहे हो, बच्चे बियर नहीं आर्डर नहीं करते?" मैं जानता था की रेस्टोरेंट वाले कम उम्र के बच्चों को लिकर (liquor) सर्व नहीं करते मगर मैंने ये सवाल सिर्फ और सिर्फ संगीता के मन की तसल्ली के लिए पुछा था ताकि संगीता घर जा कर मुझसे ये कह कर न लडे की मैंने नेहा को ऐसे रेस्टोरेंट में जाने कैसे दिया जहाँ पर लिकर सर्व की जाती है|
"सर, हमारे यहाँ किसी भी अंदरऐज (underage) को लिकर सर्व नहीं की जाती! ऐसा करना दंडनीय अपराध है! अगर बच्चे बियर आदि माँगते भी हैं तो हम उन्हें साफ़ मना कर देते हैं|" वेटर की बात सुन संगीता के मन को तसल्ली हो गई थी और उसने इस बात को लेकर मुझसे कोई सवाल-जवाब नहीं किया|
संगीता ने दो कैन बियर पी और शुक्र है की उसे चढ़ी नहीं! वहीं नेहा के दोस्तों ने अपना बिल चूका दिया था तथा वो सब एक साथ निकल गए थे| संगीता ने बियर तो निपटा दी थी बस उसे अब चिकन साफ़ करना था, चिकन साफ़ करने में संगीता ने थोड़ा टाइम लिया जिस कारण हम 10 मिनट लेट हो गए!
बिल चूका कर मैंने फटाफट ऑटो किया; "भैया, थोड़ा जल्दी चलो!" मैंने ऑटो वाले को कहा और हम बड़ी मुश्किल से नेहा के घर पहुँचने से पहले घर पहुँचे| मुँह-हाथ धो, कपड़े बदल मैं घर से बाहर आ गया और कुछ दूरी पर खड़ा हो गया| इतने में दिषु आयुष और स्तुति को ले कर घर लौटा, दोनों बच्चे सीढ़ी चढ़ ऊपर गए तो मैंने दिषु को फ़ोन कर जहाँ मैं खड़ा था वहाँ बुलाया| हम दोनों दोस्त खड़े हो कर बात कर ही रहे थे की नेहा की कैब आ गई, नेहा कैब से उतरी तथा अपने दोस्तों को बाय (bye) कह ऊपर चली गई| इधर मैं दीषु के साथ उसकी गाडी में घूमने निकल गया| मेरा दिषु के साथ जाने का कारण ये था की मैंने पी कर अपने बच्चों के सामने न जाने की कसम खाई थी और मैं ये कसम तोडना नहीं चाहता था|
उधर घर पहुँच कर नेहा ने देखा की स्तुति मुँह फुलाये घूम रही है! स्तुति के गुस्सा होने का कारण ये था की नेहा उसे अपने साथ पार्टी करने नहीं ले गई थी| लेकिन जैसे ही नेहा ने स्तुति के लिए लाई हुई चॉकलेट अपनी जेब से निकाली, स्तुति अपना गुस्सा छोड़ कर चॉकलेट लेने दौड़ पड़ी| "दीदी, आपने स्तुति को चॉक्लेट क्यों दी? हम तो दिषु चाचू के साथ फिल्म और बाहर खाना खा कर लौटे हैं|" आयुष के मुख से सच सुन नेहा प्यारभरा गुस्सा ले कर नेहा के पीछे दौड़ पड़ी; "पिद्दा! ला वापस दे मेरी चॉकलेट!" नेहा ने झूठ-मूठ अपनी दी हुई चॉकलेट माँगी मगर स्तुति अपनी चॉकलेट को बचाने के लिए पूरे घर में दौड़ती रही!
बहरहाल, संगीता ने बच्चों की मस्ती रुकवाई और तीनों को जल्दी सोने के लिए डाँट लगाई| "मम-मम...पपई?" स्तुति को मेरे बिना नींद नहीं आती थी इसलिए उसने मेरे बारे में पुछा| स्तुति के मेरे बारे में पूछते ही आयुष और नेहा भी मेरे बारे में पूछने लगे|
“तुम्हारे पपई कुछ काम से अभी बाहर गए हैं, थोड़ी देर में आ जायेंगे| अब जल्दी से सो जाओ, सुबह स्कूल जाना है|" संगीता ने जैसे ही स्कूल जाने की बात कही नेहा और आयुष तो सोने के लिए तुरंत तैयार हो गए मगर स्तुति आँखों में सवाल लिए हुए अपनी मम्मी से बोली; "मम-मम...स्कूल? मेला तो स्कूल न..ई!" स्तुति के कहने का मतलब था की उसका तो सुबह कोई स्कूल नहीं इसलिए वो जाग कर मेरा इंतज़ार करेगी| स्तुति का ये तर्क सुन नेहा और आयुष खिलखिलाकर हँसने लगे, वहीं संगीता प्यारभरा गुस्सा लिए हुए स्तुति से बोली; "मेरी नानी! सो जा चुप-चाप, वरना लगाऊँगी तुझे एक!" संगीता का प्यारभरा गुस्सा देख तीनों बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे!
चूँकि मैंने बियर पी रखी थी और मैं बच्चों के सामने इस हालत में नहीं आना चाहता था इसीलिए संगीता बच्चों को जबरदस्ती सोने को कह रही थी| सुबह होने पर मैं नहा-धो कर पूजा कर तीनों बच्चों को गोदी ले कर प्यार करता|
मैं जान बूझ कर देर से घर लौटा, मेरे लौटने तक माँ घर आ चुकीं थीं| मैंने माँ से थोड़ी बातचीत की मगर मैंने उन्हें नेहा के पार्टी जाने के बारे में कुछ नहीं बताया| माँ तो आराम से सो गईं, लेकिन इधर मेरे कमरे में संगीता का मूड एकदम से रोमांटिक हो गया था| वो रात अपुन दो बजे तक रोमांस किया!
अगली सुबह नाहा-धो कर, पूजा कर मैं बच्चों को उठाने पहुँचा| "नेहा बेटा...आयुष बेटा...स्तुति बेटू!" जैसे ही मैंने तीनों बच्चों को पुकारा आयुष-नेहा तो नींद में कुनमुनाते रहे मगर मेरी आवाज़ सुन सबसे पहले स्तुति उठी और मुझे देख जोर से चिल्लाई; "पपई!!!" मैंने अपनी बाहें खोलीं तो स्तुति ने मेरी गोदी में आने के लिए छलाँग लगा दी| मेरी गोदी में आ कर स्तुति की कल अपने दिषु चाचू के साथ की गई मस्ती का विवरण शुरू हो गया| तभी माँ स्तुति का शोर सुन कर कमरे में आईं, अपनी दादी जी को देख स्तुति ने अपने तकिये के नीचे रखी हुई चॉकलेट निकाली और अपनी दादी जी को दिखाते हुए बोली; "दाई...दिद्दा!"
जब भी नेहा अपने दोस्तों के साथ कहीं घूमने जाती थी तो वापसी में नेहा हमेशा स्तुति के लिए चॉकलेट लाती और स्तुति बड़े गर्व से अपनी दिद्दा द्वारा लाई हुई चॉकलेट अपनी दाई को दिखाती| माँ ने जब स्तुति के हाथ में चॉकलेट देखि तो माँ समझ गईं की नेहा कल अपने दोस्तों के साथ बाहर गई थी, जिसके बारे में मैंने उन्हें अभी तक कुछ नहीं बताया था|
अनजाने में मेरी छोटी बिटिया ने अपनी दादी जी के दिल में प्रति गुस्सा जगा दिया था|
माँ गुस्से से मुझे घूर रहीं थीं और उनके इस प्रकार घूरने पर स्तुति घबरा कर मुझसे लिपट गई| "वाह बेटा वाह, बहुत छूट दे रखी है तूने बच्चों को! बच्चे कहाँ जाते हैं मुझे बताने की जर्रूरत नहीं समझी तूने?" माँ ने मुझे ताना मारते हुए डाँट लगाई| माँ की डाँट सुन मेरा सर शर्म से झुक गया| वहीं माँ की डाँट सुन आयुष और नेहा एकदम से उठ कर बैठ गए|
मैंने माँ को सारी बात बताई मगर मेरे और संगीता के चोरी-छुपे नेहा के पीछे जाने के बारे में कुछ नहीं बताया| सारी बात सुन माँ ने संगीता को भी डाँट लगाई मगर मैंने संगीता को बचाने के लिए सारा इलज़ाम अपने सर ले लिया| अब चूँकि मैं अकेला ही कसूरवार था इसलिए माँ ने मुझे ही अपने गुस्से का निशाना बनाया| माँ ने मुझे बहुत डाँटा और मैं सर झुकाये उनकी डाँट सुनता रहा| 10 मिनट बाद जब माँ का मुझे डाँटना हो गया तो उन्होंने दोनों बच्चों को सख्ती के साथ स्कूल के लिए तैयार होने को कहा| बच्चे डर के मारे फटाफट स्कूल के लिए तैयार हुए और माँ खुद बच्चों को स्कूल छोड़ने गईं| गौर करने वाली बात ये थी की दोनों बच्चे इतने डरे हुए थे की उनकी हिम्मत नहीं पड़ी की वो अपनी दादी जी से कोई बात कर सकें इसलिए दोनों बच्चे पूरे रास्ते सर झुकाये खामोश रहे|
जब माँ घर लौटीं तो मैंने कान पकड़ माँ से माफ़ी माँगी और उन्हें सारी बात समझाई| परन्तु मेरी माँ पुरानी विचार धारा की हैं और उनके अनुसार बच्चों को यूँ रात के समय दोस्तों के साथ बाहर जाने देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं| हालाँकि मैंने माँ को बहुत समझाया की मैं हमेशा नेहा के साथ साये की तरह रहूँगा मगर माँ नहीं मानी और इसे मेरी आखरी गलती समझ माफ़ कर दिया|
स्तुति जो की अपनी दाई के गुस्से से घबराई हुई थी उसे माँ ने कुछ नहीं कहा, बल्कि स्तुति के मोह के कारण ही माँ का क्रोध शांत हुआ| दोपहर को जब दोनों बच्चे स्कूल से लौटे तो दोनों ने सीधा पानी दादी जी के पॉंव पकड़ लिए और रुनवासे हो कर माफ़ी माँगने लगे| माँ ने दोनों बच्चों को माफ़ केवल एक शर्त पर किया की बच्चे आगे से माँ से कोई बात नहीं छुपायेंगे| बच्चों के लिए उनकी दादी सर्वोपरि थीं इसलिए दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी से वादा कर दिया|
अपनी दादी जी से माफ़ी ले कर नेहा मेरे पास आई और मुझसे माफ़ी माँगने लगी; "पापा जी, मुझे माफ़ कर दो, मेरे कारण आपको दादी जी से इतनी डाँट पड़ी|" नेहा बहुत भावुक हो गई थी इसलिए मैंने नेहा को अपने गले लगाया और बोला; "कोई बात नहीं बेटा जी| सभी मम्मियाँ अपने बच्चों को डाँटती हैं, लेकिन बच्चे अपनी मम्मी की डाँट का बुरा थोड़े ही लगाते हैं|" मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा तथा उसे लाड कर बहलाने लगा|
उस दिन के बाद से नेहा जब भी अपने दोस्तों के साथ घूमने जाती तो केवल दिन में और किसी भी हाल में उसे शाम 5 बजे से पहले घर लौटना होता था| लेकिन फिर आगे चल कर नेहा के पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने और जिम्मेदारी को देखते हुए माँ ने समय की ये लक्ष्मण रेखा और बढ़ा दी| अब नेहा को शाम 7 बजे तक घर आने का हुक्म मिल चूका था, जिससे नेहा बहुत खुश थी|
समय हँसी-ख़ुशी बीत रहा था... और फिर एक ऐसा भी दिन आया की मेरी लाड़ली बेटी नेहा इतनी बड़ी हो गई की मेरे कँधे तक आने लगी!
जारी रहेगा भाग - 10 में...