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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,803
31,030
304
Wese thand se bchne ka ramban upay ek tho ghut mar lijiye :beer:
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,803
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मैंने आराम करने को कहा तो कहते हैं की एक दिन सबका दिल तोड़ चूका हूँ..................दुबारा नहीं तोडना चाहता :verysad:

images-2


:hide: yha kon sa masukaye h jo inka dil tutega :D
Sehat phle h :approve:
 
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Oh sorry mujhe pta nhi tha :sad:

Hmar traf se 1 mhine ki chutti
Aram se likho :D

Wese thand se bchne ka ramban upay ek tho ghut mar lijiye :beer:

images-2


:hide: yha kon sa masukaye h jo inka dil tutega :D
Sehat phle h :approve:

बहुत देर हो गई अब तो....................जनाब आज रात अपडेट पोस्ट कर के ही मानेंगे.....................और ये जो दो घूँट ज़िन्दगी की बात कर रहा है न तू......................जनाब वही दोपहर से मार रहे हैं 🤦‍♀️ .................... तुम सब को दवाई तो लेनी नहीं है..................बस ये ही लेनी है दवाई के रूप में :girlmad:
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 17 (2)


अब तक अपने पढ़ा:


बहरहाल, दिन बीत रहे थे पर नेहा और मेरे बीच बनी दूरी वैसी की वैसी थी| नेहा मेरे नज़दीक आने की बहुत कोशिश करती मगर मैं उससे दूर ही रहता| मैं नेहा को अपने जीवन से निकाल चूका था और उसे फिर से अपने जीवन में आने देना नहीं चाहता था| मुझसे...एक पिता से पुनः प्यार पाने की लालसा नेहा के भीतर अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी थी! फिर एक समय आया जब नेहा ने हार मान ली और वो इस कदर टूट गई थी की किसी के लिए भी उसे सँभालना नामुमकिन था|


अब आगे:


कुछ
दिन बीते, सुबह का समय था की तभी दिषु का फ़ोन आया, उसने मुझे बताया की एक ऑडिट निपटाने के लिए उसे मेरी मदद चाहिए थी| दरअसल हम दोनों ने इस कंपनी की ऑडिट पर सालों पहले काम किया था, लेकिन कंपनी के एकाउंट्स में कुछ घपला हुआ जिस कारण पुराने सारे अकाउंट फिर से चेक करने थे| समस्या ये थी की ये कपनी थी देहरादून की और कंपनी के सारे लेखा-जोखा रखे थे एक ऐसे गॉंव में जहाँ जाना बड़ा दुर्गम कार्य था| इस गॉंव में लाइट क्या, टेलीफोन के नेटवर्क तक नहीं आते थे| हाँ, कभी-कभी वो बटन वाले फ़ोन में एयरटेल वाला सिम कभी-कभी नेटवर्क पकड़ लेता था| ऑडिट थी 6 दिन की और इतने दिन बिना फ़ोन के रहना मेरी माँ के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक था|

उन दिनों मैं पिताजी का ठेकेदारी का काम बंद कर चूका था| मेरा जूतों का काम थोड़ा मंदा हो चूका था इसलिए मैं इस ऑडिट के मौके को छोड़ना नहीं चाहता था| जब मैंने माँ से ऑडिट के बारे में सब बताया तो माँ को चिंता हुई; "बेटा, इतने दिन बिना तुझसे फ़ोन पर बात किये मेरा दिल कैसे मानेगा?" माँ की चिंता जायज थी परन्तु मेरा जाना भी बहुत जर्रूरी था| मैंने माँ को प्यार से समझा-बुझा कर मना लिया और फटाफट अपने कपड़े पैक कर निकल गया|



जब मैं घर से निकला तब बच्चे स्कूल में थे और जब बच्चे स्कूल से लौटे तथा उन्हें पता चला की मैं लगभग 1 हफ्ते के लिए बाहर गया हूँ, वो भी ऐसी जगह जहाँ फ़ोन का नेटवर्क नहीं मिलता तो सबसे ज्यादा स्तुति नाराज़ हुई! स्तुति ने फौरन मुझे फ़ोन किया और मुझे फ़ोन पर ही डाँटने लगी; "पपई! आप मुझे बिना बताये क्यों गए? वो भी ऐसी जगह जहाँ आपका फ़ोन नहीं मिलेगा?! अब मुझे कौन सुबह-सुबह प्यारी देगा? मैं किससे बात करुँगी? अगर मुझे आपसे कुछ बात करनी हो तो मैं कैसे फ़ोन करुँगी?" स्तुति अपने प्यारे से गुस्से में मुझसे सवाल पे सवाल पूछे जा रही थी और मुझे मेरी बिटिया के इस रूप पर प्यार आ रहा था|

जब स्तुति ने साँस लेने के लिए अपने सवालों पर ब्रेक लगाई तो मैं स्तुति को प्यार से समझाते हुए बोला; "बेटा, मैं घूमने नहीं आया हूँ, मैं आपके दिषु चाचू की मदद करने के लिए आया हूँ| यहाँ पर नेटवर्क नहीं मिलते इसलिए हमारी फ़ोन पर बात नहीं हो सकती, लेकिन ये तो बस कुछ ही दिनों की बात है| मैं जल्दी से काम निपटा कर घर लौटा आऊँगा|" अब मेरी छोटी बिटिया रानी का गुस्सा बिलकुल अपनी माँ जैसा था इसलिए स्तुति मुझसे रूठ गई और बोली; "पपई, मैं आपसे बात नहीं करुँगी! कट्टी!!!" इतना कह स्तुति ने फ़ोन अपनी मम्मी को दे दिया| मैं संगीता से कुछ कहूँ उसके पहले ही संगीता ने अपने गुस्से में फ़ोन काट दिया|



दिषु मेरे साथ बैठा था और उसने हम बाप-बेटी की सारी बातें सुनी थी इसलिए वो मेरी दशा पर दाँत फाड़ कर हँसे जा रहा था! वहीं मुझे भी मेरी बिटिया के मुझसे यूँ रूठ जाने पर बहुत हँसी आ रही थी| मुझे यूँ हँसते हुए देख दिषु मेरी पीठ थपथपाते हुए बोला; "ऐसे ही हँसता रहा कर!" दिषु की कही बात से मेरे चेहरे से हँसी गायब हो गई थी और मैं एक बार फिर से खामोश हो गया था|

दरअसल नेहा और मेरे बीच जो दूरियाँ आई थीं, दिषु उनसे अवगत था| हमेशा मुझे ज्ञान देने वाला मेरा भाई जैसा दोस्त, नेहा के कहे उन ज़हरीले शब्दों के बारे में जानकार भी खामोश था| मानो जैसे उसके पास मुझे ज्ञान देने के लिए बचा ही नहीं था! वो बस मुझे हँसाने-बुलाने के लिए कोई न कोई तिगड़म लड़ाया करता था| ये ऑडिट का ट्रिप भी उसने इसी के लिए प्लान किया था ताकि घर से दूर रह कर मैं थोड़ा खुश रहूँ|



उधर घर पर, स्तुति के मुझसे नाराज़ होने पर आयुष और नेहा अपनी छोटी बहन को लाड कर समझाने में लगे थे की वो इस तरह मुझसे नाराज़ न हो| "तुझे पापा जी से नाराज़ होना है तो हो जा, लेकिन अगर पापा जी तुझसे नाराज़ हो गए न तो तू उन्हें कभी मना नहीं पायेगी!" नेहा भारीमन से भावुक हो कर बोली| नेहा की बात से उसका दर्द छलक रहा था और अपनी दिद्दा का दर्द देख स्तुति एकदम से भावुक हो गई थी! ऐसा लगता था मानो उस पल स्तुति ने मेरे नाराज़ होने और उससे कभी बता न करने की कल्पना कर ली हो!

अपनी दीदी को यूँ हार मानते देख आयुष ने पहले अपनी दीदी को सँभाला, फिर स्तुति का ध्यान भटकाने के लिए आयुष ने उस दिन की घटना का जिक्र किया जब मैं दोनों (नेहा-आयुष) से नाराज़ हो गया था; "एक बार मैं और दीदी, पापा जी से लड़ पड़े थे क्योंकि उन्होंने हमें बाहर घुमाने का प्लान अचानक कैंसिल कर दिया था| तब गुस्से में आ कर हमने पापा जी से बहुत गंदे तरीके से बात की और उनसे बात करनी बंद कर दी| लेकिन फिर दादी जी ने हमें बताया की साइट पर सारा काम पापा जी को अकेला सँभालना था, ऊपर से मैंने पापा जी के फ़ोन की बैटरी गेम खेलने के चक्कर में खत्म कर दी थी इसलिए पापा जी हमें फ़ोन कर के कुछ बता नहीं पाए| सारा सच जानकार हमें बहुत दुःख हुआ की हमने पापा जी को इतना गलत समझा| मैंने और दीदी ने पापा जी से तीन दिन तक माफ़ी माँगी पर पापा जी ने हमें माफ़ नहीं किया क्योंकि हम अपनी गलती पापा जी के सामने स्वीकारे बिना ही उनसे माफ़ी माँग रहे थे!

फिर मैंने और दीदी ने अपनी सारी हिम्मत बटोरी और कान पकड़ कर पापा जी के सामने अपनी गलती स्वीकारी| तब जा कर पापा जी ने हमें माफ़ किया और हमें गोदी ले कर खूब लाड-प्यार किया| उस दिन से हम कभी पापा जी से नाराज़ नहीं होते थे, जब भी हमें कुछ बुरा लगता तो हम सीधा उनसे बात करते थे और पापा जी हमें समझाते तथा हमें लाड-प्यार कर या बाहर से खिला-पिला कर खुश कर देते|



आपको पता है स्तुति, पापा जी हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं ताकि वो हमारी जर्रूरतें, हमारी सारी खुशियाँ पूरी कर सकें| हाँ, कभी-कभी वो काम में बहुत व्यस्त हो जाते हैं और हमें ज्यादा समय नहीं दे पाते लेकिन वो हमेशा तो व्यस्त नहीं रहते न?! हमें चाहिए की हम पापा जी की मजबूरियाँ समझें, वो हमारे लिए जो कुर्बानियाँ देते हैं उन्हें समझें और पापा जी की कदर करें| यूँ छोटी-छोटी बातों पर हमें पापा जी से नाराज़ नहीं होना चाहिए, इससे उनका दिल बहुत दुखता है|" आज आयुष ने वयस्कों जैसी बात कर अपनी छोटी बहन को एक पिता की जिम्मेदारियों से बारे में समझाया था| वहीं, स्तुति को अपने बड़े भैया की बात अच्छे से समझ आ गई थी और उसे अब अपने किये गुस्से पर पछतावा हो रहा था|



दूसरी तरफ नेहा, अपने छोटे भाई की बातें सुन कर पछता रही थी! आयुष, नेहा से 5 साल छोटा था परन्तु वो फिर भी मुझे अच्छे से समझता था, जबकि नेहा सबसे बड़ी हो कर भी मुझे हमेशा गलत ही समझती रही|

आयुष की बातों से नेहा की आँखों से पछतावे के आँसूँ बह निकले| स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को यूँ रोते हुए देखा तो वो एकदम से अपनी दिद्दा से लिपट गई और नेहा को दिलासे देते हुए बोली; "रोओ मत दिद्दा! सब ठीक हो जायेगा!" स्तुति ने नेहा को हिम्मत देनी चाही मगर नेहा हिम्मत हार चुकी थी इसलिए उसके लिए खुद को सँभालना मुश्किल था| स्तुति ने अपने बड़े भैया को भी इशारा कर नेहा के गले लगने को कहा| दोनों भाई बहन ने नेहा को अपनी बाहों में जकड़ लिया और नेहा को हिम्मत देने लगे|



आयुष और स्तुति के आलिंगन से नेहा को कुछ हिम्मत मिली और उसने खुद को थोड़ा सँभाला| अपनी दीदी का मन खुश करने के लिए आयुष ने नेहा को पढ़ाने के लिए कहा, वहीं स्तुति ने मुझे वीडियो कॉल कर दिया| जैसे ही मैंने फ़ोन उठाया वैसे ही स्तुति ने फ़ोन टेबल पर रख दिया और कान पकड़ कर उठक-बैठक करने लगी! “बेटा, ये क्या कर रहे हो आप?” मैंने स्तुति को रोकते हुए पुछा तो स्तुति एकदम से भावुक हो गई और बोली; " पापा जी, छोलि (sorry)!!! मुझे माफ़ कर दो, मैंने आपको गुच्छा किया! मैं...मुझे नहीं पता था की आप काम करने के लिए इतने दूर गए हो| मुझे माफ़ कर दो पापा जी! मुझसे नालाज़ (नाराज़) नहीं होना!” ये कहते हुए स्तुति की आँखें भर आईं थीं और उसका गला भारी हो गया था|

"बेटा, किसने कहा मैं आपसे नाराज़ हूँ?! मैं कभी अपनी प्यारु बेटु से नाराज़ हो सकता हूँ?! मेरी एक ही तो छोटी सी प्यारी सी बेटी है!" मैंने स्तुति को लाड कर हिम्मत दी और रोने नहीं दिया|

"आप मुझसे नालाज़ नहीं?" स्तुति अपने मन की संतुष्टि के लिए तुतलाते हुए पूछने लगी|

"बिलकुल नहीं बेटा! आप मुझे इतनी प्यारी करते हो तो अगर आपने थोड़ा सा गुच्छा कर दिया तो क्या हुआ? जो प्यार करता है, वही तो हक़ जताता है और वही गुच्छा भी करता है|" मैंने स्तुति को बहलाते हुए थोड़ा तुतला कर कहा तो स्तुति को इत्मीनान हुआ की मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ| स्तुति अब फिर से खिलखिलाने लगी थी और मैं भी अपनी बिटिया को खिलखिलाते हुए देख मैं बहुत खुश था|



खैर, हम दोनों दोस्त अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे और वहाँ से शुरू हुई एक दिलचस्प यात्रा! बस स्टैंड से गॉंव जाने का रास्ता एक ट्रेक (trek) था! मुझे ट्रैकिंग (trekking) करना बहुत पसंद था इसलिए इस ट्रेक के लिए मैं अतिउत्साहित था| कच्चे रास्तों, जंगल और एक झरने को पार कर हम आखिर उस गॉंव पहुँच ही गए| पूरा रास्ता दिषु बस ये ही शिकायत करता रहा की ये रास्ता कितना जोखम भरा और दुर्गम है! वहीं मैं बस ये शिकायत कर रहा था की; "बहनचोद ऑफिस के डाक्यूमेंट्स ऐसी जगह कौन रखता है?!"

"कंपनी का मालिक भोसड़ी का! साले मादरचोद ने सारे रिकार्ड्स और डाक्यूमेंट्स अपने पुश्तैनी घर में रखे हैं|” दिषु गुस्से से बिलबिलाते हुए बोला|



ट्रेक पूरा कर ऊपर पहुँचते-पहुँचते हमें शाम के 6 बज गए थे| यहाँ हमारे रहने के लिए एक ऑफिस में व्यवस्था की गई थी इसलिए नहा-धो कर हमने खाना खाया और 8 बजते-बजते लेट गए| पहाड़ी इलाका था इसलिए हमें ठंड लगने लगी थी| ओढ़ने के लिए हमारे पास दो-दो कंबल थे मगर हम जानते थे की ज्यों-ज्यों रात बढ़ेगी ठंड भी बढ़ेगी! "यार आज रात तो कुक्कड़ बनना तय है हमारा!" मैं चिंतित हो कर बोला| मेरी बात सुन दिषु ने अपने बैग से ऐसी चीज़ निकाली जिसे देखते ही मेरी सारी ठंड उड़न छू हो गई!

‘रम’ (RUM) दो अक्षर के इस जादूई शब्द ने बिना पिए ही हमारे शरीर में गर्मी भरनी शुरू कर दी थी| "शाब्बाश!" मैं ख़ुशी से दिषु की पीठ थपथपाते हुए बोला| बस फिर क्या था हम दोनों ने 2-2 नीट (neat) पेग खींचे और लेट गए| रम की गर्माहट के कारण हमें ठंड नहीं लगी और हम चैन की नींद सो गए| अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर हमने काम शुरू किया| हमारे खाने-पीने का इंतज़ाम पहले से हो रखा था इसलिए हमें कोई चिंता नहीं थी| इसी के साथ आज रात में सोते समय दिषु ने एक और चीज़ का प्रबंध कर दिया था| रात को सोते समय साले ने हमें खाना बना कर देने वाले खानसामे से हशीश का जुगाड़ कर लिया था! "भोसड़ी के, ये कहाँ से लाया तू?" मैंने हैरान होते हुए पुछा तो दिषु ने मुझे सच बताया की वो यहाँ आने से पहले सारी प्लानिंग कर के आया था|



हशीश हमने ले तो ली मगर दिषु ने आज तक सिगरेट नहीं पी थी! वहीं मैंने सिगरेट तो पी थी मगर मैंने कभी इस तरह का ड्रग्स नहीं लिया था| कुछ नया काण्ड करने का जोश हम दोनों दोस्तों में भरपूर था इसलिए कमर कस कर हमने सोच लिया की आज तो हम ये नया नशा ट्राय कर के रहेंगे|



जब मैं छोटा था तब मैंने कुछ लड़कों को गॉंव में चरस आदि पीते हुए देखा था इसलिए हशीश को सिगरेट में भरने के लिए जो गतिविधि करनी होती है मैं उससे रूबरू था| हम दोनों अनाड़ी नशेड़ी अपना-अपना दिमाग लगा कर हशीश के साथ प्रयोग करने लगे| आधा घंटा लगा हमें एक सिगरेट भरने में, जिसमें हमने अनजाने में हमने हशीश की मात्रा ज्यादा कर दी थी|



सिगरेट तैयार हुई तो दिषु ने मुझे पहले पीने को कहा ताकि मैं उसे सिगरेट पीना सीखा सकूँ| मैंने भी चौधरी बनते हुए दिषु को एक शिक्षक की तरह अच्छे से समझाया की उसे सिगरेट का पहला कश कैसे खींचना है|

सिगरेट पीने का सिद्धांत मैं दिषु को सीखा चूका था, अब मुझे उसे सिगरेट का पहला कश खींच कर दिखाना था| सिगरेट जला कर मैंने पहला कश जानबूझ कर छोटा खींचा ताकि कहीं मुझे खाँसी न आ जाए और दिषु के सामने मेरी किरकिरी न हो जाये| पहला कश खींचने के बाद मुझे कुछ महसूस नहीं हुआ, ऐसा लगा मनो मैं कोई साधारण सिगरेट पी रहा हूँ| हाँ सिगरेट की महक अलग थी और मुझे ये बहुत अच्छी भी लग रही थी|



फिर बारी आई दिषु की, जैसे ही उसने पहल कश खींचा उसे जोर की खाँसी आ गई! दिषु को बुरी तरह खाँसते हुए देख मुझे हँसी आ गई और मैं अपना पेट पकड़ कर हँसने लगा| "बहनचोद! क्या है ये?! साला गले में जा कर ऐसी लगी की खांसी बंद नहीं हो रही मेरी! तू ही पी!" दिषु गस्से में बोला और सिगरेट मुझे दे दी| मैंने दिषु को सिखाया की उसे छोटे-छोटे कश लेने है और शुरू-शुरू में धुआँ गले से उतारना नहीं बल्कि नाक से निकालना है| जब वो नाक से निकालना सीख जाए तब ही धुएँ को गले से नीचे उतार कर रोकना है|

इस बार जब दिषु ने कश खींचा तो उसे खाँसी नहीं आई| लेकिन उसे हशीश के नशे का पता ही नहीं चला! "साला चूतिया कट गया अपना, इसमें तो साले कोई नशा ही नहीं है!" दिषु मुझे सिगरेट वापस देते हुए बोला| बात तो दिषु की सही थी, आधी सिगरेट खत्म हो गई थी मगर नशा हम दोनों को महसूस ही नहीं हो रहा था|



दिषु का मन सिगरेट से भर गया था इसलिए उसने रम के दो पेग बना दिए| बची हुई आधी सिगरेट मैंने पी कर खत्म की और रम का पेग एक ही साँस में खींच कर लेट गया| उधर दिषु ने भी मेरी देखा-देखि एक साँस में अपना पेग खत्म किया और लेट गया|



करीब आधे घंटे बाद दिषु बोला; "भाई, सिगरेट असर कर रही है यार! मेरा दिमाग भिन्नाने लगा है!" दिषु की बात सुन मैं ठहाका मार कर हँसने लगा| चूँकि मेरे जिस्म की नशे को झेलने की लिमिट थोड़ी ज्यादा थी इसलिए मुझे अभी केवल खुमारी चढ़नी शुरू हो रही थी|

करीब 10 मिनट तक हम दोनों बकचोदी करते हुए हँसते रहे| अब दिषु को आ रही थी नींद इसलिए वो तो हँसते-हँसते कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला| इधर हशीश का नशा धीरे-धीरे मेरे सर चढ़ने लगा था| मेरा दिमाग अब काम करना बंद कर चूका था इसलिए मैं कमरे की छत को टकटकी बाँधे देखे जा रहा था| चूँकि अभी दिमाग शांत था तो मन ने बोलना शुरू कर दिया था|



छत को घूरते हुए मुझे नेहा की तस्वीर नज़र आ रही थी| नेहा के बचपन का वो हिस्सा जो हम दोनों ने बाप-बेटी की तरह ख़ुशी-ख़ुशी काटा था, उस बचपन का हर एक दृश्य मैं छत पर किसी फिल्म की तरह देखता जा रहा था| इन प्यारभरे दिनों को याद कर मेरा मन प्रसन्नता से भर गया था|

कुछ देर बाद इन प्यारभरे दिनों की फिल्म खत्म हुई और नेहा के कहे वो कटु शब्द मुझे याद आये| वो पल मेरे लिए मेरी ज़िन्दगी का सबसे दुखद पल था, ऐसा पल जिसे में इतने महीनों में चाह कर भी नहीं भुला पाया था| उस दृश्य को याद कर दिल रोने लगा पर आँखों से आँसूँ का एक कतरा नहीं निकला, ऐसा लगता था मानो जैसे आँखों का सारा पानी ही मर गया हो! जब-जब मैंने घर में नेहा को देखा, मेरा दिल उन बातों को याद कर दुखता था| लेकिन इतना दर्द महसूस करने पर भी मेरे मन से नेहा के लिए कोई बद्दुआ नहीं निकली| मैं तो बस अपनी पीड़ा को दबाने की कोशिश करता रहता था ताकि कहीं मेरी माँ मेरा ये दर्द न देख लें! माँ और दुनिया के सामने खुद को सहेज के रखने के चक्कर में मेरे दिमाग ने मेरे दिल को एक कब्र में दफना दिया था| इस कब्र में कैद हो कर मेरी सारी भावनाएं मर गई थीं| नकारात्मक सोच ने मेरे मस्तिष्क को अपनी चपेट में इस कदर ले लिया था की मैं ये मानने लगा था की स्तुति और आयुष बड़े हो कर, नेहा की ही तरह मेरा दिल दुखायेंगे| इस दुःख से बचने के लिए मैंने अभी इ खुद को कठोर बनाने की तैयारी करनी शुरू कर दी थी, ताकि भविष्य में जब आयुष और स्तुति मेरा दिल दुखाएँ तो मुझे दुःख और अफ़सोस कम हो!



समय का पहिया घुमा और फिर नेहा के साथ वो हादसा हुआ| उस दिन नेहा के रोने की आवाज़ अब भी मेरे कानों में गूँज रही थी| मैंने अपने गुस्से में आ कर जो किया उसके लिए मुझे रत्ती भर पछतावा नहीं था| मुझे चिंता थी तो बस दो, पहली ये की नेहा कहीं उस हादसे के कारण कोई गलत कदम न उठा ले और दूसरी ये की मेरी बिटिया के दामन पर कोई कीचड़ न उछाले| शायद यही कारण था की मैंने आजतक दिषु से उस हादसे का ज़िक्र नहीं किया|

उस हादसे को याद करते हुए मुझे वो पल याद आया जब नेहा ने मुझसे माफ़ी माँगी थी| उस समय मैंने कैसे खुद को रोने से रोका था, ये बस मैं ही जानता हूँ| नेहा की आँखों में मुझे पछतावा दिख रहा था मगर नेहा अपने किये के लिए जो कारण बता रही थी वो मुझे बस बहाने लग रहे थे इसीलिए मैं नेहा को माफ़ नहीं कर पा रहा था|



लेकिन जब संगीता ने मुझसे स्टोर में वो सवाल पुछा की क्या मैं नेहा से नफरत करता हूँ, तब पता नहीं मेरे भीतर क्या बदलाव पैदा हुआ की मैं थोड़ा-थोड़ा पिघलने लगा| मेरे दिमाग ने मेरे दिल को जिस कब्र में बंद कर दिया था, वो कब्र जैसे किसी ने फिर से खोद दी थी और मेरा दिल फिर से बाहर निकलने को बेकरार हो रहा था|

ज्यों-ज्यों संगीता, नेहा को मेरे नज़दीक धकेलने की जुगत करने में लगी थी त्यों-त्यों मेरा गुस्सा कमजोर पड़ने लगा था| उस रात जब नेहा मुझसे लिपट कर सो रही थी और मैं दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गया था, तब नेहा की सिसकियों को सुन मेरा नाज़ुक सा दिल रोने लगा था मगर मेरे दिमाग में भरे गुस्से ने मुझे उस कमरे से उठ कर जाने पर विवश कर दिया था| अकेले कमरे में सोते हुए मेरा मन इस कदर बेचैन था की मैं बस करवटें बदले जा रहा था| मैं खुद को नेहा के सामने कठोर साबित तो करना चाहता था मगर मैं अपनी बिटिया का प्यारा सा दिल भी नहीं दुखाना चाहता था इसीलिए अगली रात से मैं नेहा के मुझसे लिपटने पर दूसरी तरफ करवट ले कर लेट जाया करता था| इससे मैं नेहा के सामने कठोर भी साबित होता था और नेहा का दिल भी नहीं दुखता था|

उस रात जब नेहा ने सारा खाना बनाया, तो अपनी बेटी के हाथ का बना खाना पहलीबार खा कर मेरा मन बहुत प्रसन्न था| मैं नेहा को गले लगा कर लाड करना चाहता था परन्तु मेरा क्रोध मुझे रोके था| लेकिन फिर भी अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए मैंने माँ के हाथों उसे शगुन दिलवा कर उसकी मेहनत को सफल बना दिया|

परन्तु मुझे संगीता की नेहा को मेरे नज़दीक करने की चालाकी समझ आ चुकी थी और मेरे अहम ने मुझे सचेत कर इस प्यार में न पड़ने को सचेत कर दिया था| यही कारण था की मैं जानबूझ कर काम करने के बहाने कंप्यूटर चालु किये बैठा था| मेरी इस बेरुखी के कारण मेरी बिटिया का दिल टूट गया और वो सिसकते हुए खुद कमरे से चली गई| अपनी बेटी का दिल दुखा कर मैं खुश नहीं था, मेरा अहम भले ही जीत गया हो मगर मेरा नेहा के प्रति प्यार हार गया था!

इतने दिनों से नेहा के सामने खुद को कठोर दिखाते-दिखाते मैं थक गया था| असल बात ये थी की नेहा को यूँ पछतावे की अग्नि में जलते हुए देख मैं भी तड़प रहा था मगर दिमाग में बसा मेरा गुस्सा मुझे फिर से पिघलने नहीं दे रहा था| नेहा ने बहुत बड़ी गलती की थी मगर एक पिता उसे इस गलती के लिए भी माफ़ करना चाहता था, लेकिन मेरा अहम मुझे बार-बार ये कह कर रोक लेता था की क्या होगा अगर कल को नेहा ने फिर कभी मेरा दिल इस कदर दुखाया तो?! अपनी बड़ी बेटी के कारण मैं एक बार टूट चूका था, वो तो स्तुति का प्यार था जिसने मुझे बिखरने से थाम लिया था, लेकिन दुबारा टूटने की मुझ में हिम्मत नहीं थी|


कमरे की छत को देखते हुए मेरे मन ने अपना रोना रो लिया था मगर इसका निष्कर्ष निकलने में मैं असफल रहा| वैसे भी नशे के कारण मेरा दिमाग काम करना बंद कर चूका था तो मैं क्या ही कोई निष्कर्ष निकालता| अन्तः सुबह के दो बजे धीरे-धीरे नशे के कारण मेरी आँखें बोझिल होती गईं और मैं गहरी नींद में सो गया|

अगली सुबह मुझे दिषु ने उठाया और मेरी हालत देख कर थोड़ा चिंतित होते हुए बोला; "तू सोया नहीं क्या रात भर?" दिषु के सवाल ने मुझे कल रात मेरे भीतर मचे अंतर्द्व्न्द की याद दिला दी इसलिए मैंने बस न में सर हिलाया और नहा-धोकर काम में लग गया| काम बहुत ज्यादा था, मनोरंजन के लिए न तो इंटरनेट था और न ही टीवी इसलिए हम 24 घंटों में से 18 घंटे काम कर रहे थे ताकि जल्दी से काम निपटा कर इस पहाड़ से नीचे उतरें और इंटरनेट चला सकें| वहीं यहाँ आ कर मुझे माँ की चिंता हो रही थी और मैं माँ से फ़ोन पर बात करने को बेचैन हो रहा था| माँ से अगर बात करनी थी तो मुझे 8 किलोमीटर का ट्रेक कर नीचे जाना पड़ता और ये ट्रेक कतई आसान नहीं था क्योंकि पूरा रास्ता कच्चा और सुनसान था तथा जंगली जानवरों का भी डर था इसलिए नीचे अकेला जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी! खाने-पीने का सामान नीचे से आता था इसलिए मैंने एक आदमी को अपने घर का नंबर दे कर कहा था की वो वापस जाते समय मेरे सकुशल होने की खबर मेरे घर पहुँचा दे| माँ को मेरे सकुशल होने की खबर तो मिल गई थी मगर घर में क्या घटित हो रहा था इसकी खबर मुझे मिली ही नहीं!



उधर घर पर, स्तुति मेरी गैरमौजूदगी में उदास हो गई थी| अब फ़ोन पर बात हो नहीं सकती थी इसलिए स्तुति को अपना मन कैसा न कैसे बहलाना था| अतः स्तुति पड़ गई अपनी मम्मी के पीछे और संगीता की मदद करने की कोशिश करने लगी| लेकिन मदद करने के चक्कर में स्तुति अपनी मम्मी के काम बढ़ाती जा रही थी| “शैतान!!! भाग जा यहाँ से वरना मारूँगी एक!” संगीता ने स्तुति को डाँट कर भागना चाहा मगर स्तुति अपनी मम्मी को मेरे नाम का डर दिखाते हुए बोली; "आने दो पापा जी को, मैं पापा जी को सब बताऊँगी!" स्तुति ने अपन मुँह फुलाते हुए अपनी मम्मी को धमकाना चाहा मगर संगीता एक माँ थी इसलिए उसने स्तुति को ही डरा कर चुप करा दिया; "जा-जा! तुझे तो डाटूँगी ही, तेरे पापा जी को भी डाँटूंगी!" मुझे डाँट पड़ने के नाम से स्तुति घबरा गई और अपनी दिद्दा के पास आ गई|

स्तुति को लग रहा था की उसकी शैतानियों की वजह से कहीं मुझे न डाँट पड़े इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से पूछने लगी; "दिद्दा, क्या मैं बहुत शैतान हूँ?" स्तुति के मुख से ये सवाल सुन नेहा थोड़ा हैरान थी| परन्तु, नेहा कुछ कहे उसके पहले ही माँ आ गईं| माँ ने स्तुति क सवाल सुन लिया था इसलिए माँ ने स्तुति को गोदी लिया और उसे लाड करते हुए बोलीं; "किसने कहा मेरी शूगी शैतान है?" जैसे ही माँ ने स्तुति से ये सवाल किया, वैसे ही स्तुति ने फट से अपनी मम्मी की शिकायत कर दी; "मम्मी ने!"



अपनी पोती की शिकयत सुन माँ को हँसी आ गई, माँ ने जैसे-तैसे अपनी हँसी दबाई और संगीता को आवाज़ लगाई; "ओ संगीता की बच्ची!" जैसे ही माँ ने संगीता को यूँ बुलाया, वैसे ही स्तुति एकदम से बोली; "दाई, मम्मी की बच्ची तो मैं हूँ!" स्तुति की हाज़िर जवाबी देख माँ की दबी हुई हँसी छूट गई और माँ ने ठहाका मार कर हँसना शुरू कर दिया|

"बहु इधर आ जल्दी!" माँ ने आखिर अपनी हँसी रोकते हुए संगीता को बुलाया| जैसे ही संगीता आई माँ ने उसे प्यार से डाँट दिया; "तू मेरी शूगी को शैतान बोलती है! आज से जो भी मेरी शूगी को शैतान बोलेगा उसे मैं बाथरूम में बंद कर दूँगी! समझी!!!" माँ की प्यारभरी डाँट सुन संगीता ने डरने का बेजोड़ अभिनय किया! अपनी मम्मी को यूँ डरते देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और उसने अपनी मम्मी को ठेंगा दिखा कर चिढ़ाना शुरू कर दिया|



अपनी दादी जी से अपनी मम्मी को डाँट खिला कर स्तुति का मन नहीं भरा था इसलिए स्तुति ने अपनी नानी जी को फ़ोन कर अपनी मम्मी की शिकायत लगा दी; "नानी जी, मम्मी कह रही थी की वो मेरे पापा जी को डाटेंगी!" अपनी नातिन की ये प्यारी सी शिकयत सुन स्तुति को नानी जी को बहुत हँसी आई| अब उन्हें अपनी नातिन का दिल रखना था इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को प्यारभरी डाँट लगा दी; "तू हमार मुन्ना का डांटइहो, तोहका मार-मार के सोझाये देब!" अपनी माँ की डाँट सुन पहले तो संगीता को हैरानी हुई मगर जब उसने स्तुति को देखा तो वो सब समझ गई| "आप जब मारोगे तब मरोगे, पहले मैं इस चुहिया को कूट-पीट कर सीधा करूँ!" इतना कह संगीता स्तुति को झूठ-मूठ का मारने के लिए दौड़ी| अब स्तुति को बचानी थी अपनी जान इसलिए दोनों माँ-बेटी पूरे घर में दौड़ा-दौड़ी करते रहे, जिससे आखिर स्तुति का मन बहल ही गया!



जहाँ एक तरफ स्तुति के कारण घर में खुशियाँ फैली थीं, तो वहीं दूसरी तरफ घर का एक कोना ऐसा भी था जो वीरान था!


मेरे घर में न होने का जिम्मेदार नेहा ने खुद को बना लिया था| नेहा को लग रहा था की मैं उससे इस कदर नाराज़ हूँ की मैं जानबूझ कर घर छोड़कर ऐसी जगह चला गया हूँ जहाँ मैं अकेला रह सकूँ| नेहा के अनुसार उसके कारण एक माँ को अपने बेटे के बिना रहना पड़ रहा था, एक छोटी सी बेटी (स्तुति) को अपने पापा जी के बिना घर में सबसे प्यार माँगना पड़ रहा था तथा हम पति-पत्नी के बीच जो बोल-चाल बंद हुई थी उसके लिए भी नेहा खुद को जिम्मेदार समझ रही थी|

मेरे नेहा से बात न करने, उसे पुनः अपनी बेटी की तरह प्यार न करने के कारण नेहा पहले ही बहुत उदास थी, उस पर नेहा ने इतने इलज़ाम खुद अपने सर लाद लिए थे की ये सब उसके मन पर बोझ बन बैठे थे| मन पर इतना बोझा ले लेने से नेहा को साँस तक लेने में दिक्कत हो रही थी|



नेहा इस समय बहुत ही नाज़ुक दौर से गुज़र रही थी| उसके मन में जन्में अपराधबोध ने नेहा को इस कदर घेर लिया था की वो खुद को सज़ा देना चाहती थी| नेहा ने खुद को एकदम से अकेला कर लिया था| स्कूल से आ कर नेहा सीधा अपनी पढ़ाई में लग जाती, माँ को कई बार नेहा को खाने के लिए कहना पड़ता तब जा कर नेहा एक-आध रोटी खाती| कई बार तो नेहा टूशन जाने का बहाना कर बाद में खाने को कहती मगर कुछ न खाती|

माँ और संगीता, नेहा की पढ़ाई की तरफ लग्न देख इतने खुश थे की उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया की नेहा ठीक से खाना खा रही है या नहीं| वहीं खाने में आनाकानी के अलावा नेहा ने देर रात जाग कर पढ़ना शुरू कर दिया| एक बार तो माँ ने नेहा को प्यार से डाँट भी दिया था की यूँ देर रात तक जाग कर पढ़ना अच्छी बात नहीं|



नेहा को लग रहा था की उसके इस तरह अपने शरीर को कष्ट दे कर वो पस्चताप कर रही है मगर नेहा का शरीर ये पीड़ा सहते-सहते अपनी आखरी हद्द तक पहुँच चूका था| मुझे खोने की मानसिक पीड़ा और अपने शरीर को इस प्रकार यातना दे कर नेहा ने अपनी तबियत खराब कर ली थी!



मेरी अनुपस्थिति में आयुष और स्तुति अपनी दादी जी के पास कहानी सुनते हुए सोते थे, बची माँ-बेटी (नेहा और संगीता) तो वो दोनों हमारे कमरे में सोती थीं| देर रात करीब 1 बजे नेहा ने नींद में मेरा नाम बड़बड़ाना शुरू किया; "पा...पा...जी! पा...पा...जी!" नेहा की आवाज़ सुन संगीता की नींद टूट गई| अपनी बेटी को यूँ नींद मेरा नाम बड़बड़ाते हुए देख संगीता को दुःख हुआ की एक तरफ नेहा मुझे इतना प्यार करती है की मेरी कमी महसूस कर वो नींद में मेरा नाम ले रही है, तो दूसरी तरफ मैं इतना कठोर हूँ की नेहा से इतनी दूरी बनाये हूँ|

अपनी बेटी को सुलाने के लिए संगीता ने ज्यों ही नेहा के मस्तक पर हाथ फेरा, त्यों ही उसे नेहा के बढे हुए ताप का एहसास हुआ! मुझे खो देने का डर नेहा के दिमाग पर इस कदर सवार हुआ की नेहा को बुखार चढ़ गया था! संगीता ने फौरन नेहा को जगाया मगर नेहा के शरीर में इतनी शक्ति ही नहीं बची थी की वो एकदम से जाग सके| संगीता ने फौरन माँ को जगाया, दोनों माओं ने मिल कर नेहा को बड़ी मुश्किल से जगाया और उसका बुखार कम करने के लिए क्रोसिन की दवाई दी| क्रोसिन के असर से नेहा का बुखार तो काम हुआ मगर नेहा का शरीर एकदम से कमजोर हो चूका था| नेहा से न तो उठा जा रहा था और न ही बैठा जा रहा था| नेहा को डॉक्टरी इलाज की जर्रूरत थी परन्तु रात के इस पहर में माँ और संगीता के लिए नेहा को अस्पताल ले जाना आसान नहीं था इसलिए अब सिवाए सुबह तक इंतज़ार करने के दोनों के पास कोई चारा न था| नेहा की हालत गंभीर थी इसलिए माँ और संगीता सारी रात जाग कर नेहा का बुखार चेक करते रहे|



अगली सुबह जब आयुष और स्तुति जागे तो उन्हें नेहा के स्वास्थ्य के बारे में पता चला| नेहा को बीमार देख आयुष ने जिम्मेदार बनते हुए अस्पताल जाने की तैयारी शुरू की, वहीं स्तुति बेचारी अपनी दिद्दा को इस हालत में देख नहीं पा रही थी इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से लिपट कर रोने लगी| नेहा में अभी इतनी भी शक्ति नहीं थी की वो स्तुति को चुप करवा सके इसलिए नेहा ने आयुष को इशारा कर स्तुति को सँभालने को कहा| "स्तुति, अभी पापा जी नहीं हैं न, तो आपको यूँ रोना नहीं चाहिए बल्कि आपको तो दीदी का ख्याल रखना चाहिए|" आयुष ने स्तुति को उसी तरह जिम्मेदारी देते हुए सँभाला जैसे मैं आयुष के बालपन में उसे सँभालता था|
अपने बड़े भैया की बात सुन स्तुति ने फौरन अपने आँसूँ पोछे और अपनी दिद्दा के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "दीदी, आप जल्दी ठीक हो जाओगे| फिर है न मैं आपको रोज़ रस-मलाई खिलाऊँगी|" स्तुति जानती थी की उसकी दीदी को रस-मलाई कितनी पसंद है इसलिए स्तुति ने अपनी दिद्दा को ये लालच दिया ताकि नेहा जल्दी ठीक हो जाए|





जब भी मैं ऑडिट पर जाता था तो मैं हमेशा माँ को एक दिन ज्यादा बोल कर जाता था क्योंकि जब मैं एक दिन पहले घर लौटता था तो मुझे देख माँ का चेहरा ख़ुशी से खिल जाया करता था| इसबार भी मैंने एक दिन पहले ही काम निपटा लिया और दिषु के साथ घर के लिए निकल पड़ा|

सुबह के 6 बजे मैं घर पहुँचा और दरवाजा खटखटाया| दरवाजा संगीता ने खोला, मुझे लगा था की मुझे जल्दी घर आया देख संगीता का चेहरा ख़ुशी के मारे चमकने लगेगा मगर संगीता के चेहरे पर चिंता की लकीरें छाई हुईं थीं! "क्या हुआ?" मैंने चिंतित हो कर पुछा तो संगीता के मुख से बस एक शब्द निकला; "नेहा"| इस एक शब्द को सुनकर मैं एकदम से घबरा गया और नेहा को खोजते हुए अपने कमरे में पहुँचा|



कमरे में पहुँच मैंने देखा की नेहा बेहोश पड़ी है! अपनी बिटिया की ये हालत देख मेरा कलेजा मुँह को आ गया! मैंने फौरन नेहा का मस्तक छू कर उसका बुखार देखा तो पाया की नेहा का शरीर भट्टी के समान तप रहा है! नेहा की ये हालत देख मुझे संगीता पर बहुत गुस्सा आया; “मेरी बेटी का शरीर यहाँ बुखार से तप रहा है और तुम....What the fuck were you doing till now?! डॉक्टर को नहीं बुला सकती थी?!” मेरे मुख से गाली निकलने वाली थी मगर मैंने जैसे-तैसे खुद को रोका और अंग्रेजी में संगीता को झाड़ दिया!

इतने में माँ नहा कर निकलीं और मुझे अचानक देख हैरान हुईं| फिर अगले ही पल माँ ने मुझे शांत करते हुए कहा; "बेटा, डॉक्टर सरिता यहाँ नहीं हैं वरना हम उन्हें बुला न लेते|" मैंने फौरन अपना फ़ोन निकाला और घर के नज़दीकी डॉक्टर को फ़ोन कर बुलाया| इन डॉक्टर से मेरी पहचान हमारे गृह प्रवेश के दौरान हुई थी| संगीता भी इन डॉक्टर को जानती थी मगर नेहा की बिमारी के चलते उसे इन्हें बुलाने के बारे में याद ही नहीं रहा| संकट की स्थिति में हमेशा संगीता का दिमाग काम करना बंद कर देता है, इसका एक उदहारण आप सब पहले भी पढ़ चुके हैं| आपको तो मेरे चक्कर खा कर गिरने वाला अध्याय याद ही होगा न?!



डॉक्टर साहब को फ़ोन कर मैंने रखा ही था की इतने में स्तुति नहा कर निकली| मुझे देखते ही स्तुति फूल की तरह खिल गई और सीधा मेरी गोदी में आने के लिए छलाँग लगा दी| मेरे सीने से लगते ही स्तुति को चैन मिला और उसकी आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बह निकले| "पापा जी, I missed you!" स्तुति भावुक होते हुए बोली| मैंने स्तुति को लाड-प्यार कर बहलाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "I missed you too मेरा बच्चा!"



स्तुति को लाड कर मैंने बिठाया और अपनी बड़ी बेटी नेहा के बालों में हाथ फेरने लगा| मेरे नेहा के बालों में हाथ फेरते ही एक चमत्कार हुआ क्योंकि बेसुध हुई मेरी बेटी नेहा को होश आ गया| नेहा मेरे हाथ के स्पर्श को पहचानती थी अतः अपने शरीर की सारी ताक़त झोंक कर नेहा ने अपनी आँखें खोलीं और मुझे अपने सामने बैठा देखा, अपने बालों में हाथ फेरते हुए देख नेहा को यक़ीन ही नहीं हुआ की मैं उसके सामने हूँ|

"पा..पा..जी" नेहा के मुख से ये टूटे-फूटे शब्द फूटे थे की मेरे भीतर छुपे पिता का प्यार बाहर आ गया; "हाँ मेरा बच्चा!" नेहा को मेरे मुख से 'मेरा बच्चा' शब्द सुनना अच्छा लगता था| आज जब इतने महीनों बाद नेहा ने ये शब्द सुने तो उसकी आँखें छलक गईं और नेहा फूट-फूट के रोने लगी!



"सॉ…री...पा…पा जी...मु…झे...माफ़...." नेहा रोते हुए बोली| मैंने नेहा को आगे कुछ बोलने नहीं दिया और सीधा नेहा को अपने गले लगा लिया| "बस मेरा बच्चा!" इतने समय बाद नेहा को मेरे गले लग कर तृप्ति मिली थी इसलिए नेहा इस सुख के सागर में डूब खामोश हो गई| वहीं अपनी बड़ी बिटिया को अपने सीने से लगा कर मेरे मन के सूनेपन को अब जा कर चैन मिला था|



नेहा को लाड कर मेरी नज़र पड़ी आयुष पर जो थोड़ा घबराया हुआ दरवाजे पर खड़ा मुझे देख रहा था| दरअसल, जब मैंने संगीता को डाँटा तब आयुष मुझसे मिलने ही आ रहा था मगर मेरा गुस्सा देख आयुष डर के मारे जहाँ खड़ा था वहीं खड़ा रहा| मैंने आयुष को गले लगने को बुलाया तो आयुष भी आ कर मेरे गले लग गया| मैंने एक साथ अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और बारी-बारी से तीनों के सर चूमे| मेरे लिए ये एक बहुत ही मनोरम पल था क्योंकि एक आरसे बाद आज मैं अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में समेटे लाड-प्यार कर रहा था|



कुछ देर बाद डॉक्टर साहब आये और उन्होंने नेहा का चेक-अप किया| अपने मन की संतुष्टि के लिए उन्होंने नेहा के लिए कुछ टेस्ट (test) लिखे और दवाई तथा खाने-पीने का ध्यान देने के लिए बोल चले गए| डॉक्टर साहब के जाने के बाद माँ ने मुझे नहाने को कहा तथा संगीता को चाय-नाश्ता बनाने को कहा|

चूँकि नेहा को बुखार था इसलिए उसका कुछ भी खाने का मन नहीं था, पर नेहा मुझे कैसे मना करती?! मैं खुद नेहा के लिए सैंडविच बना कर लाया और अपने हाथों से खिलाने लगा| मेरी बहुत जबरदस्ती करने के बावजूद नेहा से बस आधा सैंड विच खाया गया और बाकी आधा सैंडविच मैंने खाया|

नेहा को इस समय बहुत कमजोरी थी इसलिए नेहा लेटी हुई थी, वहीं मैं भी बस के सफर से थका हुआ था इसलिए मैं भी नेहा की बगल में लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर आराम करने लगी| स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो स्तुति मुझ पर हक़ जमाने आ गई और अपनी दीदी की तरह मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर लेट गई| स्तुति कुछ बोल नहीं रही थी मगर उसके मुझसे इस कदर लिपटने का मतलब साफ़ था; 'दिद्दा, आप बीमार हो इसलिए आप पापा जी के साथ ऐसे लिपट सकते हो वरना पपई के साथ लिपट कर सोने का हक़ बस मेरा है!' स्तुति के दिल की बात मैं और नेहा महसूस कर चुके थे इसलिए स्तुति के मुझ पर इस तरह हक़ जमाने पर हम दोनों के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर रही थी|



स्तुति अपनी दिद्दा के साथ सब कुछ बाँट सकती थी मगर जब बात आती थी मेरे प्यार की तो स्तुति किसी को भी मेरे नज़दीक नहीं आने देती!



खैर, मेरे सीने पर सर रख कर लेटे हुए स्तुति की बातें शुरू हो गई थीं| मेरी गैरमजूदगी में क्या-क्या हुआ सबका ब्यौरा मुझे मेरी संवादाता स्तुति दे रही थी| मैंने गौर किया तो मेरे आने के बाद से ही स्तुति मुझे 'पपई' के बजाए 'पापा जी' कह कर बुला रही थी| जब मैंने इसका कारण पुछा तो मेरी छोटी बिटिया उठ बैठी और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "आप घर में नहीं थे न, तो मुझे बहुत अकेलापन लग रहा था| मुझे एहसास हुआ की पूरे घर में एक आप हो जो मुझे सबसे ज्यादा प्यारी करते हो इसलिए मैंने सोच लिया की मैं अब से आपको पपई नहीं पापा जी कहूँगी|" स्तुति बड़े गर्व से अपना लिया फैसला मुझे सुनाते हुए बोली| मेरी छोटी सी बिटिया अब इतनी बड़ी हो गई थी की वो मेरी कमी को महसूस करने लगी थी| इस छोटी उम्र में ही स्तुति को मेरे पास न होने पर अकेलेपन का एहसास होने लगा था जो की ये दर्शाता था की हम बाप-बेटी का रिश्ता कितना गहरा है| मैंने स्तुति को पुनः अपने गले से लगा लिया; "मेरी दोनों बिटिया इतनी सयानी हो गईं|" मैंने नेहा और स्तुति के सर चूमते हुए कहा| खुद को स्याना कहे जाने पर स्तुति को खुद पर बहुत गर्व हो रहा था और वो खुद पर गर्व कर मुस्कुराने लगी थी|





मैंने महसूस किया तो पाया की नेहा को मुझसे बात करनी है मगर स्तुति की मौजूदगी में वो कुछ भी कहने से झिझक रही है| अतः मैंने कुछ पल स्तुति को लाड कर स्तुति को आयुष के साथ पढ़ने भेज दिया| स्तुति के जाने के बाद नेहा सहारा ले कर बैठी और अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मैंने आपका बहुत दिल दुखाया! मेरी वजह से आप इतने दुखी थे की आप इतने दिन ऐसी जगह जा कर काम कर रहे थे जहाँ मोबाइल नेटवर्क तक नहीं मिलता था! मेरी वजह से स्तुति को इतने दिन तक आपका प्यार नहीं मिला, मेरी वजह से मम्मी और आपके बीच कहा-सुनी हुई, मेरे कारण दादी जी को...

इतने कहते हुए नेहा की आँखें फिर छलक आईं थीं| मैंने नेहा को आगे कुछ भी कहने नहीं दिया और उसकी बात काटते हुए बोला;

मैं: बस मेरा बच्चा! मैंने आपको माफ़ कर दिया! आप बहुत पस्चताप और ग्लानि की आग में जल लिए, अब और रोना नहीं है| आप तो मेरी ब्रेव गर्ल (brave girl) हो न?!

मैंने नेहा को हिम्मत देते हुए कहा| नेहा को मुझसे माफ़ी पा कर चैन मिला था इसलिए अब जा कर उसके चेहरे पर ख़ुशी और उमंग नजर आ रही थी|



नेहा को मुझसे माफ़ी मिल गई थी, अपने पापा जी का प्यार मिल गया था इसलिए नेहा पूरी तरह संतुष्ट थी| अब बारी थी संगीता की जिसे उसके प्रियतम का प्यार नहीं मिला था और नेहा ये बात जानती थी|

नेहा: मम्मी!

नेहा ने अपनी मम्मी को आवाज़ दे कर बुलाया|

संगीता: हाँ बोल?

संगीता ने नेहा से पुछा तो नेहा ने फौरन अपने कान दुबारा पकड़े और मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मेरे कारण आप दोनों के बीच लड़ाई हुई और आपने एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया|

मैंने नेहा के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दिया| फिर मैं उठ कर खड़ा हुआ तो देखा की संगीता मुझे देख कर मंद-मंद मुस्कुरा रही है! मुझे संगीता की ये मुस्कराहट समझ न आई और मैं भोयें सिकोड़े, चेहरे पर अस्चर्य के भाव लिए संगीता को देखने लगा| दरअसल, मुझे लगा था की मेरे डाँटने से संगीता नाराज़ होगी या डरी-सहमी होगी परन्तु संगीता तो मुस्कुरा रही थी! मेरे भाव समझ संगीता मुस्कुराते हुए बोली;
संगीता: मैं आपके मुझ पर गुस्सा करने से नाराज़ नहीं हूँ| मुझे तो ये देख कर बहुत ख़ुशी हुई की आपने आज इतने समय बाद नेहा पर इतना हक़ जमाया की मुझे झाड़ दिया!
संगीता को मुझ पर बहुत प्यार आ रहा था और वो अपना ये प्यार मुझे अपनी आँखों के इशारे से जता रही थी| वहीं अपनी मम्मी से ये बात सुन नेहा गर्व से फूली नहीं समा रही थी!
नेहा: मम्मी, चलो पापा जी के गले लगो!

नेहा ने प्यार से अपनी मम्मी को आदेश दिया तो हम दोनों ने मिलकर नेहा के इस आदेश का पालन किया|

अभी हम दोनों का ये आलिंगन शुरू ही हुआ था की इतने में स्तुति फुदकती हुई आ गई! अपनी मम्मी को मेरे गले लगे देख स्तुति को जलन हुई और उसने फौरन अपनी मम्मी को पीछे धकेलते हुए प्यार से चेता दिया;

स्तुति: मेरे पापा जी हैं! सिर्फ मैं अपने पापा जी के गले लगूँगी!

स्तुति की इस प्यारभरी चेतावनी को सुन हम दोनों मियाँ-बीवी मुस्कुराने लगे| वहीं नेहा को स्तुति के इस प्यारभरी चेतावनी पर गुस्सा आ गया;

नेहा: चुप कर पिद्दा! इतने दिनों बाद पापा जी और मम्मी गले लगे थे और तू आ गई कबाब में हड्डी बनने!

नेहा ने स्तुति को डाँट लगाई तो स्तुति मेरी टाँग पकड़ कर अपनी दीदी से छुपने लगी| अब अपनी छोटी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैंने इशारे से नेहा को शांत होने को कहा और स्तुति को गोदी ले उसे बहलाते हुए बोला;

मैं: वैसे स्तुति की बात सही है! वो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती है इसलिए मुझ पर पहला हक़ मेरी छोटी बिटिया का है!

मैं स्तुति को लाड कर ही रहा था की माँ कमरे में आ गईं| मुझे स्तुति को लाड करते हुए देख माँ बोलीं;

माँ: सुन ले लड़के, आज से तू फिर कभी ऐसी जगह नहीं जाएगा जहाँ तेरा फ़ोन न मिले और अगर तू फिर भी गया तो शूगी को साथ ले कर जाएगा| जानता है तेरे बिना मेरी लालड़ी शूगी कितनी उदास हो गई थी?!
माँ ने मुझे प्यार से चेता दिया तथा मैंने भी हाँ में सर हिला कर उनकी बात स्वीकार ली| उस दिन से ले कर आज तक मैं कभी ऐसी जगह नहीं गया जहाँ मोबाइल नेटवर्क न हो और मैं माँ तथा स्तुति से बात न कर पाऊँ|



नेहा को मेरा स्नेह मिला तो मानो उसकी सारी इच्छायें पूरी हो गई| मेरे प्रेम को पा कर मेरी बड़ी बिटिया इतना संतुष्ट थी की उसका बचपना फिर लौट आया था| नेहा अब वही 4 साल वाली बच्ची बन गई थी, जिसे हर वक़्त बस मेरा प्यार चाहिए होता था यानी मेरे साथ खाना, मेरे साथ कहानी सुनते हुए सोना, मेरे साथ घूमने जाना आदि|

अपनी दिद्दा को मुझसे लाड पाते देख स्तुति को होती थी मीठी-मीठी जलन नतीजन जिस प्रकार स्तुति के बालपन में दोनों बहनें मेरे प्यार के लिए आपसे में झगड़ती थीं, उसी तरह अब भी दोनों ने झगड़ना शुरू कर दिया था| हम सब को नेहा और स्तुति की ये प्यारभरी लड़ाई देख कर आनंद आता था, क्योंकि हमारे अनुसार नेहा बस स्तुति को चिढ़ाने के लिए उसके साथ झगड़ती है| लेकिन धीरे-धीरे मुझे दोनों बहनों की ये लड़ाई चिंताजनक लगने लगी| मुझे धीरे-धीरे नेहा के इस बदले हुए व्यवहार पर शक होता जा रहा था और मेरा ये शक यक़ीन में तब बदला जब मुझे कुछ काम से कानपूर जाना पड़ा जहाँ मुझे 2 दिन रुकना था|

मेरे कानपुर निकलने से एक दिन पहले जब नेहा को मेरे जाने की बात पता चली तो नेहा एकदम से गुमसुम हो गई| मैंने लाड-प्यार कर नेहा को समझाया और कानपूर के लिए निकला, लेकिन अगले दिन मेरे कानपुर के लिए निकलते ही नेहा का मन बेचैन हो गया और नेहा ने मुझे फ़ोन खड़का दिया| जितने दिन मैं कानपूर में था उतने दिन हर थोड़ी देर में नेहा मुझे फ़ोन करती और मुझसे बात कर उसके बेचैन मन को सुकून मिलता|



असल में, नेहा एक बार मुझे लगभग खो ही चुकी थी और इस बात के मलाल ने नेहा को भीतर से डरा कर रखा हुआ था| नेहा को हर पल यही डर रहता था की कहीं वो मुझे दुबारा न खो दे इसीलिए नेहा मेरा प्यार पाने को इतना बेचैन रहती थी|

नेहा के इस डर ने उसे भीतर से खोखला कर दिया था| ये डर नेहा पर इस कदर हावी होता जा रहा था की नेहा को फिर से मुझे खो देने वाले सपने आने लगे थे, जिस कारण वो अक्सर रात में डर के जाग जाती| जितना आत्मविश्वास नेहा ने इतने वर्षों में पाया था, वो सब टूट कर चकना चूर हो चूका था| स्कूल से घर और घर से स्कूल बस यही ज़िन्दगी रह गई थी नेहा की, दोस्तों के साथ बाहर जाना तो उसके लिए कोसों दूर की बात थी| कुल-मिला कर कहूँ तो नेहा ने खुद को बस पढ़ाई तथा मेरे प्यार के इर्द-गिर्द समेट लिया था| बाहर से भले ही नेहा पहले की तरह हँसती हुई दिखे परन्तु भीतर से मेरी बहादुर बिटिया अब डरी-सहमी रहने लगी थी|



नेहा के बाहर घूमने न जाने से घर में किसी कोई फर्क नहीं पड़ा था क्योंकि सब यही चाहते थे की नेहा पढ़ाई में ध्यान दे| परन्तु मैं अपनी बेटी की मनोदशा समझ चूका था और अब मुझे ही मेरी बिटिया को उसका खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः दिलाना था|



कानपूर से लौटने के बाद शाम के समय मैं, स्तुति और नेहा बैठक में बैठे टीवी देख रहे थे| नेहा को समझाने का समय आ गया था अतः मैंने स्तुति को पढ़ाई करने के बहाने से भेज दिया तथा नेहा को समझाने लगा|

मैं: बेटा, आप जानते हो न बच्चों को कभी अपने माँ-बाप से कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए, फिर आप क्यों मुझसे बातें छुपाते हो?

मैंने बिना बात घुमाये नेहा से सवाल किया ताकि नेहा खुल कर अपने जज्बात मेरे सामने रखे| परन्तु मेरा सवाल सुन नेहा हैरान हो कर मुझे देखने लगी;

नेहा: मैंने आपसे कौन सी बात छुपाई पापा जी?!

नेहा नहीं जानती थी की मैं कौन सी बात के बारे में पूछ रहा हूँ इसलिए वो हैरान थी|

मैं: बेटा, जब से आप तंदुरुस्त हुए हो, आप बिलकुल स्तुति की तरह मेरे प्यार के लिए अपनी ही छोटी बहन से लड़ने लगे हो| पहले तो मुझे लगा की ये आपका बचपना है और आप केवल स्तुति को सताने के मकसद से ये लड़ाई करते हो मगर जब आपने रोज़-रोज़ स्तुति से मेरे साथ सोने, मेरी प्यारी पाने तक के लिए लड़ना शुरू कर दिया तो मुझे आपके बर्ताव पर शक हुआ| फिर जब मैं कानपूर गया तो आपने जो मुझे ताबतोड़ फ़ोन किया उससे साफ़ है की आप जर्रूर कोई बात है जो मुझसे छुपा रहे हो| मैं आपका पिता हूँ और आपके भीतर आये इन बदलावों को अच्छे से महसूस कर रहा हूँ| अगर आप खुल कर मुझे सब बताओगे तो हम अवश्य ही इसका कोई हल निकाल लेंगे|

मैंने नेहा के कँधे पर हाथ रख उसे हिम्मत दी तो नेहा एकदम से रो पड़ी!

नेहा: पापा जी...मु...मुझे डर लगता है! में आपके बिना नहीं रह सकती! आप जब मेरे पास नहीं होते तो मैं बहुत घबरा जाती हूँ! कई बार रात में मैं आपको अपने पास न पा कर घबरा कर उठ जाती हूँ और फिर आपकी कमी महसूस कर तब तक रोती हूँ जब तक मुझे नींद न आ जाए|

उस दिन जो हुआ उसके बाद से मैं किसी पर भरोसा नहीं करती! कहीं भी अकेले जाने से मुझे इतना डर लगता है, मन करता है की मैं बस घर में ही रहूँ| स्कूल या घर से बाहर निकलते ही जब दूसरे बच्चे...ख़ास कर लड़के जब मुझे देखते हैं तो मुझे अजीब सा भय लगता है! ऐसा लगता है मानो मेरे साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है! मुझ में अब खुद को बचाने की ताक़त नहीं है इसलिए मुझे बस आपके साथ सुरक्षित महसूस होता है, मैं बस आपके पास रहना चाहती हूँ| लेकिन जब स्तुति मुझे आपके पास आने नहीं देती तो मुझे गुस्सा आता है और हम दोनों की लड़ाई हो जाती है|

नेहा की वास्तविक मनोस्थिति जान कर मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा| नेहा के साथ हुए उस एक हादसे ने नेहा को इस कदर डरा कर रखा हुआ है इसकी मैंने कल्पना नहीं की थी|



इधर अपनी बातें कहते हुए नेहा फूट-फूट कर रो रही थी इसलिए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा कर उसके सर पर हाथ फेर कर नेहा को चुप कराया| जब नेहा का रोना थमा तो मैंने नेहा के दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और नेहा को समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, ज़िन्दगी में ऐसे बहुत से पल आते हैं जो हमें बुरी तरह तोड़ देते हैं! हमें ऐसा लगता है की हम हार चुके हैं और अब हमारे पास जीने के लिए कुछ नहीं बचा| लेकिन बेटा, हमारी ज़िन्दगी में हमेशा एक न एक व्यक्ति ऐसा होता है जो हमें फिर से खड़े होने की हिम्मत देता है| वो व्यक्ति अपने प्यार से हमें सँभालता है, सँवारता है और हमारे भीतर नई ऊर्जा फूँकता है|



ज़िन्दगी में अगर कभी ठोकर लगे तो उठ कर अपने कपड़े झाड़ कर फिर से चल पड़ना चाहिए| हर कदम पर ज़िन्दगी आपके लिए एक नई चुनाती लाती है, आपको उन चुनौतियों से घबरा कर अपनी आँखें बंद नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी सूझ-बूझ से उन चुनौतियों का सामना करना चाहिए| अपने बचपन में आपने बहुत दुःख झेले मगर आपने हार नहीं मानी और जैसे-जैसे बड़े होते गए आप के भीतर आत्मविश्वास जागता गया| जब भी आप डगमगाते थे तो आपकी दादी जी, मैं, आपकी मम्मी आपके पास होते थे न आपको सँभालने के लिए, तो इस बार आप क्यों चिंता करते हो?!



अब बात करते हैं आपके किसी पर विश्वास न करने पर| बेटा, हाथ की सारी उँगलियाँ एक बराबर नहीं होती न?! उसी तरह इस दुनिया में हर इंसान बुरा नहीं होता, कुछ लोग बहुत अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे| क्या हुआ अगर आपसे एक बार इंसान को पहचानने में गलती हो गई तो?! आप छोटे बच्चे ही हो न, कोई बूढ़े व्यक्ति तो नहीं...और क्या बूढ़े व्यक्तियों से इंसान को पहचानने में गलती नहीं होती?!

बेटा, एक बात हमेशा याद रखना, इंसान गलती कर के ही सीखता है| आपने गलती की तभी तो आपको ये सीखने को मिला की सब लोग अच्छे नहीं होते, कुछ बुरे भी होते हैं| आपको चाहिए की आप दूसरों को पहले परखो की वो आपके दोस्त बनने लायक हैं भी या नहीं और फिर उन पर विश्वास करो| यदि आपको किसी को परखने में दिक्क्त आ रही है तो उसे हम सब से मिलवाओ, हम उससे बात कर के समझ जाएंगे की वो आपकी दोस्ती के लायक है या नहीं?!



अब आते हैं आपके दिल में बैठे बाहर कहीं आने-जाने के डर पर| उस हादसे के बाद आपको कैसा लग रहा है ये मैं समझ सकता हूँ मगर बेटा इस डर से आपको खुद ही लड़ना होगा| घर से बाहर जाते हुए यदि लोग आपको देखते हैं… घूरते हैं तो आपको घबराना नहीं चाहिए बल्कि आत्मविश्वास से चलना चाहिए|

हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ ऐसे दुष्ट प्रवत्ति वाले लोग भी रहते हैं जो की लड़कियों को घूरते हैं, तो क्या ऐसे लोगों के घूरने या आपको देखने के डर से आप सारी उम्र घर पर बैठे रहोगे? कल को आप बड़े होगे, आपको अपना वोटर कार्ड बनवाना होगा, आधार कार्ड बनवाना होगा, पासपोर्ट बनवाना होगा तो ये सब काम करने तो आपको बाहर जाना ही पड़ेगा न?! मैं तो बूढ़ा हो जाऊँगा इसलिए मैं तो इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा, तब अगर आप इसी प्रकार घबराओगे तो कैसे चलेगा? ज़िन्दगी बस घर पर रहने से तो नहीं चलेगी न?!



बेटा, आपको अपने अंदर फिर से आत्मविश्वास जगाना होगा और धीरे-धीरे घर से बाहर जाना सीखना होगा| कोई अगर आपको देखता है तो देखने दो, कोई आपको घूर कर देखता है तो देखने दो, आप किसी की परवाह मत करो| आप घर से बाहर काम से निकले हो या घूमने निकले हो तो मज़े से अपना काम पूरा कर घर लौटो|



आपको एक बात बताऊँ, जब मैं छोटा था तो मैं बहुत गोल-मटोल था ऊपर से आपके दादा जी-दादी जी मुझे कहीं अकेले आने-जाने नहीं देते थे इसलिए जब लोग मेरे गोलू-मोलू होने पर मुझे घूरते या मुझे मोटा-मोटा कह कर चिढ़ाते तो मैं बहुत रोता था| तब आपकी दादी जी ने मुझे एक बात सिखाई थी; 'हाथी जब अपने रस्ते चलता है तो गली के कुत्ते उस पर भोंकते हैं मगर हाथी उनकी परवाह किये बिना अपने रास्ते पर चलता रहता है|' उसी तरह आप भी जब घर से बाहर निकलो तो ये मत सोचो की कौन आपको देख रहा है, बल्कि सजक रहो की आगे-पीछे से कोई गाडी आदि तो नहीं आ रही| इससे आपका ध्यान बंटेगा और आपको किसी के देखने या घूरने का पता ही नहीं चलेगा|

मेरी बिटिया रानी बहुत बहादुर है, वो ऐसे ही थोड़े ही हार मान कर बैठ जायेगी| वो पहले भी अपना सर ऊँचा कर चुनौतियों से लड़ी है और आगे भी जुझारू बन कर चुनौतियों से लड़ेगी|

मैंने बड़े विस्तार से नेहा को समझाते हुए उसके अंधेरे जीवन में रौशनी की किरण दिखा दी थी| अब इसके आगे का सफर नेहा को खुद करना था, उसे उस रौशनी की किरण की तरफ धीरे-धीरे बढ़ना था|

बहरहाल, नेहा ने मेरी बातें बड़े गौर से सुनी थीं और इस दौरान वो ज़रा भी नहीं रोई| जब मैंने नेहा को 'मेरी बहादुर बिटिया रानी' कहा तो नेहा को खुद पर गर्व हुआ और वो सीधा मेरे सीने से लगा कर मुस्कुराने लगी|



उस दिन से नेहा के जीवन पुनः बदलाव आने लगे| नेहा ने धीरे-धीरे अकेले घर से बाहर जाना शुरू किया, शुरू-शुरू में नेहा को उसका डर डरा रहा था इसलिए मुझे एक बार फिर नेहा का मार्गदर्शन करना पड़ा|

आज इस बात को साल भर होने को आया है और नेहा धीरे-धीरे अपनी चुनौतियों का अकेले सामना करना सीख गई है|

तो ये थी मेरे जीवन की अब तक की कहानी|
समाप्त?

नहीं अभी नहीं!
 

Rockstar_Rocky

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प्रिय भाइयों, देवियों, मित्रों व् पाठकों

आज तबियत नाज़ायज़ है इसलिए update आने में देर हुई! लेकिन आखिर क्र, पेश है मेरी इस कहानी की अंतिम update! आशा करता हूँ की आपको ये पसंद आएगी|

कहानी अभी अंत नहीं हुई है| जिस प्रकार फिल्म खत्म होने पर credits roll किये जाते हैं और Marvel की movies में अंत में एक extra scene दिखाया जाता है, उसी तरह मेरी इस कहानी में आप सभी पाठकों को धन्यवाद देना बाकी है|
साथ ही जो मैं इतने समय से आप सभी को
BIG REVEAL का teaser दे रहा था वो भी तो देना बाकी है!

आप सभी फिलहाल इस update का आनंद लीजिये और आपके मन यदि कोई प्रश्न हो तो मुझसे पूछें ताकि
BIG REVEAL में मैं उन सभी प्रश्नों का जवाब दे सकूँ|


P.S. मैंने आप सभी के पिछले comments का जवाब अपनी तबियत खराब होने के कारण नहीं दे पाया तथा उसके लिए आप सभी से हाथ जोड़कर माफ़ी चाहता हूँ| परन्तु मैं आपके पुराने comments और इस update को पढ़ने के बाद दिए जाने वाले comments का जवाब एक साथ दूँगा| 🙏
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (10)


अब तक आपने पढ़ा:


करुणा के सारे कागज़ देख कर वो करुणा से बोले;
साहब: सारे कागज ठीक है, तुम्हारी joining मैं आज से ही दे रहा हूँ! तुम्हारी posting घरसाना में है तो अभी जा कर वहाँ रिपोर्ट करो|
घरसाना का नाम सुन कर मुझे याद आया की करुणा को पोस्टिंग तो वहाँ मिली थी! मैं हैरानी से करुणा को देखने लगा, मेरी ये हैरानी साहब जी ने देख ली और मुझे रास्ता बताते हुए बोले;
साहब: घरसाना यहाँ से करीब डेढ़ घंटा दूर है, यहाँ से राजस्थान रोडवेज की बस जाती है| जल्दी चले जाओ वरना बस छूट जाएगी!
मैंने करुणा को साथ लिया और बस स्टैंड पहुँचा, बस स्टैंड पहुँचने तक मैं सोच में पड़ गया| श्री विजय नगर से घरसाना रोज बस से जाना ये सोच कर मैं बहुत चिंता मैं था| रोज यूँ डेढ़ घंटे का रास्ता अकेले सफर करना करुणा के बस की बात नहीं थी, ऊपर से मुझे उसकी सुरक्षा की भी बहुत चिंता हो रही थी| मैंने सोचा की चलो एकबार घरसाना पहुँच कर वहाँ पर ही करुणा के रुकने का कोई इंतजाम कर दूँगा|


अब आगे:



करुणा का तो पता नहीं पर मैं आज बहुत सालों बाद रोडवेज की बस में सफर करने वाला था| हम बस स्टैंड पर पहुँचे ही थे की एक बस आ कर लगी और कंडक्टर ने 'घरसाना' का नाम लिया| हम बस में चढ़े तो देखा की वो बस लगभग भरी हुई है, पीछे की तरफ three seater सीट पर खिड़की की तरफ एक लड़का बैठा है, हम दोनों वहीं बैठने लगे पर करुणा को तो बीच में बिठा नहीं सकता था क्योंकि मैंने 'बस यात्रा' में हुई छेड़खानी की बहुत सी कहानियाँ पढ़ रखी थीं, इसलिए मुझे ही बीच में बैठने पड़ा| सुबह के साढ़े ग्यारह बजे थे और गर्मी ने हमें तपाना शुरू कर दिया था, जबतक बस ने अपनी रफ़्तार नहीं पकड़ी तबतक मैं पसीने से लगभग भीग चूका था| उधर बस में बैठे हुए सभी सवारियों की नजर हम दोनों पर ही थी, ख़ास कर बूढी महिलाएँ तो करुणा और मुझे घूर-घूर कर देख रहीं थीं| लोगों का यूँ हमें देखना अब मुझे चुभने लगा था और मुझे पुनः करुणा की चिंता होने लगी थी| कुछ देर बाद कंडक्टर हमारे पास आया और हमारे गंतव्य स्थान के बारे में पुछा तो मैंने घरसाना कहा| उसने मुझसे पैसे लिए और टिकट दी, जब टिकट देखि तो समझ आया की राजस्थान में महिलाओं को बस यात्रा पर 10% की छूट दी जाती है| अभी तक मैंने ऐसा किसी भी राज्य में नहीं देखा था, मैंने इसे ही विषय बना कर करुणा से बात शुरू की क्योंकि हॉस्पिटल से निकलने से ले कर अभी तक हम दोनों खामोश थे|

करुणा: देखा मिट्टू, लड़की होने का कितना फायदा होता है?

करुणा हँसते हुए बोली| उसे अपनी टिकट पर छूट मिलने पर बड़ा गर्व हो रह था!

गर्मी कड़क थी तो करुणा मैडम तो मेरे कँधे पर सर रख कर सो गईं और इधर मैं खिड़की से बाहर जम्हाई लेते हुए जागता रहा| डेढ़ घंटे बाद घरसाना आया तो मैं और करुणा बस से उतरे, सरकारी अस्पताल का पता पूछते हुए हम आखिर अस्पताल पहुँच ही गए| मैंने यहाँ करुणा की joining के लिए छान-बीन की तो पता चला की यहाँ भी बड़े साहब नहीं आये, उनके आने का समय दोपहर बाद का था तो हमारे पास सिवाए इंतजार करने के और कोई चारा नहीं था| वहीं करुणा की joining की हवा पूरे अस्पताल में फ़ैल गई और हमें ढूँढ़ते हुए वहाँ का स्टाफ आ धमका| 2 पुरुष कम्पाउण्डर, एक एम्बुलेंस ड्राइवर, 3 अधेड़ उम्र की नर्सें तथा एक junior डॉक्टर, सभी ने आ कर हमें घेर लिया| सब ने करुणा और मुझसे बात चीत शुरू की, करुणा से उसकी पढ़ाई, उसके घर तथा पुरानी नौकरी के बारे में पुछा और मुझसे उन्होंने मेरा परिचय लिया| करुणा की वहाँ joining को ले कर सभी गर्म जोशी से भरे हुए थे, हम दोनों को सभी नर्सों वाले कमरे में ले गए और वहाँ बिठा कर बात चीत शुरू हुई| बकायदा हमारे लिए चाय मँगाई गई और बातचीत का लम्बा दौर शुरू हुआ, उस दौरान जिस किसी को काम होता वो चला जाता, पर उसकी जगह दूसरा व्यक्ति रुक कर बातें करने लगता| यहाँ का सारा स्टाफ अधेड़ उम्र यानी 40 साल से ऊपर का था, बस एक वो junior डॉक्टर ही थी जो करीब 35 की लग रही थी| दूसरी बात जो मैंने गौर की वो ये की सारा स्टाफ या तो राजस्थान का रहने वाला था या फिर पंजाबी था| 2 अधेड़ उम्र की नर्सें तो पंजाबी थीं, क्योंकि उनकी बोली में पंजाबी साफ़ झलक रही थी| तीसरी और सबसे जर्रूरी बात ये की पूरे स्टाफ को लग रहा था की मेरा और करुणा का चक्कर अर्थात प्रेम-प्रसंग चल रहा है, क्योंकि उनकी बातें ज्यादा कर के मुझे जानने से जुडी हुईं थीं| वे सभी सोच रहे थे की मैं एक प्रेमी की तरह करुणा की जिंदगी के सभी फैसले मैं करता हूँ इसलिए उनके सवालों में हम दोनों के रिश्ते को जानने की एक अद्भुत जिज्ञासा थी| हालाँकि मैं और करुणा अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे की हमारे दोस्ती के रिश्ते को अच्छी तरह से उनके सामने रख सकें पर लगता है इसका कोई फर्क पड़ नहीं रहा था|



खैर बातें हो रहीं थीं और सब यहीं आस-पास के रहने वाले थे तो मैंने करुणा के रहने की बात चलाई| मैंने उन्हें बताया की श्री विजय नगर में तो मैंने एक PG ढूँढा था पर वहाँ से यहाँ रोजाना सफर करना करुणा के लिए नामुमकिन है, ऐसे में अगर यहीं रहने का इंतजाम हो जाए तो करुणा का काम बन जायेगा| वहाँ की सबसे उम्र दराज नर्स ने कामिनी नाम की किसी नर्स को बुलाने को कहा, उन्होंने हमें बताया की ये नर्स केरला की रहने वाली हैं तथा यहाँ अपने परिवार के साथ रहती हैं| हम दोनों जब से आये थे हमने उन्हें नहीं देखा था और चूँकि वो केरला से थीं तो मेरा दिल उम्मीद कर रहा था की वे ही करुणा की रहने की समस्या का निवारण कर देंगी|

लेकिन जब वो मैडम आईं तो मेरे दिल में घबराहट शुरू हो गई| केरला साड़ी पहने हुए, बगल में पर्स टाँगे, भारी-भरकम जिस्म की मालकिन!!! भारी-भरकम जिस्म से मेरा मतलब मोटा होना नहीं, बल्कि शरीर के उन ख़ास हिस्सों पर अत्यधिक माँस होने से है जो एक पुरुष को अत्यधिक लुभाते हैं! कमरे में घुसते ही उनकी नजर पहले करुणा पर पड़ी और वो उससे सीधा ही मलयालम में बात करने लगीं| दोनों के बात करने का लहजा ऐसा था मानो बहुत पुरानी सहेलियाँ हों! दोनों ने पता नहीं मलयालम में क्या गिटर-पिटर की, जब करुणा ने मेरी और इशारा कर के कुछ कहा तब मैं समझा की वो मुझे अपना दोस्त बता रही है| अब जा कर उन कामिनी मैडम का ध्यान मुझ पर गया, नजाने मुझे ऐसा क्यों लगा जैसे वो मुझे सर से ले कर पाँव तक अपनी आँखों के scanner से scan कर रहीं हैं! उनकी नजरों में अलग सी चुभन थी कुछ-कुछ वैसी है जैसी रसिका भाभी की आँखों में होती थी, शायद यही कारन है की उन्हें देखते ही मेरे दिमाग में खतरे की घंटी बजने लगी थी!



मैंने बात शुरू करते हुए उन्हें अपना नाम बताया और सीधा उनसे मुद्दे की बात की, उन्होंने बताया की ये कोई शहर नहीं है जहाँ पर मुझे हॉस्टल या PG मिलेगा, यहाँ पर तो शायद कहीं कमरा किराए पर मिल जाए तो वो हमारी किस्मत है! बात चिंता जनक थी इसलिए हम दोनों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी थीं, तभी कामिनी मैडम एकदम से बोलीं;

कामिनी: मानु तुम चिंता मत करो, ये मेरे घर में ही रह लेगी| मेरे पति वैसे भी दुबई गए हैं और बच्चे मुंबई में पढ़ रहे हैं, मैं घर पर अकेली ही रहती हूँ तो ये मेरे साथ रह सकती है|

उनकी बात सुन करुणा तो खुश हो गई पर मेरी चिंता अब भी वैसी की वैसी थी, मुझे कामिनी पर शक होने लगा था और उसके घर में करुणा का रहना मुझे किसी खतरे की दस्तक लग रही थी! खैर लंच टाइम हो गया था और सारा स्टाफ खाना खाने बैठ रहा था तो हम दोनों खाना खाने बाहर चल दिए| बाहर आ कर मैंने करुणा से बात करनी शुरू की, मुझे जानना था की करुणा इस जगह, यहाँ के लोगों के बारे में क्या सोच रही है? करुणा ने बताया की कुछ डरी हुई है, यहाँ के लोग विजय नगर की तरह ही हमें घूर रहे थे और उनकी ये नजरें करुणा को बहुत चुभ रहीं थीं| हाँ रहने के मामले में वो निश्चिंत थी पर मैंने उसे अपने डर से रूबरू कराते हुए कहा;

मैं: यार वो औरत ठीक नहीं लगी मुझे!

मेरी दो टूक बात सुन करुणा हैरान हुई और उसके चेहरे पर सवाल नजर आने लगे!

मैं: यार....मैं आपको बता नहीं सकता.....उसे देखते ही मुझे डर लगने लगा..... वो न..... कुछ गड़बड़ वाली औरत है!

मुझे करुणा से साफ़-साफ़ बात कहने में शर्म आ रही थी इसलिए में बात को गोल-मोल घुमा रहा था, शुक्र है की मेरी बात करुणा की समझ में आ गई और वो मुस्कुराते हुए बोली;

करुणा: ऐसा कुछ नहीं है मिट्टू! मेरा उससे मलयालम में बात हुआ, वो बोला की वो यहाँ 4 साल से काम कर रे और उसका बात से मुझे कुछ गड़बड़ नहीं लगा| आप बस tension मत लो!

करुणा भोली थी वो लोगों को नहीं पहचान पाती थी, पर मैं इन कुछ सालों में लोगों को पहचानने में कुछ-कुछ परिपक्व हो गया था|



हम खाना खाने जा रहे थे की करुणा को रास्ते में एक ब्यूटी पार्लर दिखा तो उसने जिद्द की कि उसे अपनी eyebrow ठीक करवानी है! इधर मैं करुणा के रहने के इंतजाम को लेकर परेशान हूँ और इन मैडम को मेकअप करना है?! ये सोच कर मुझे थोड़ा अजीब लगा पर क्या कर सकते थे, मैं उसके साथ ब्यूटी पार्लर में चल दिया| 20 मिनट तक में ब्यूटी पार्लर में अच्छे से पका, पैसे दे कर हम खाना खाने चले तो करुणा ने मुझे बताया की ब्यूटी पार्लर वाली लड़की करुणा को कामिनी के गाँव वाली समझ रही थी| उसने करुणा को बताया की कामिनी मैडम यहाँ की regular ग्राहक हैं और बहुत कुछ करवाती हैं! ये सुन कर मेरे दिमाग में फिर से डर का साईरन बजने लगा!

'कामिनी का मियाँ यहाँ पर है नहीं तो ये इतना बनठन कर कहाँ जाती है? जर्रूर इसका कोई चक्कर चल रहा है, हो न हो कामिनी का प्रेमी घर भी आता होगा और अगर करुणा इसके घर रही तो कहीं वो आदमी करुणा पर भी हाथ-साफ़ न कर ले!' ये डरवना ख्याल दिमाग में आते ही मैंने सोच लिया की मैं करुणा को इसके घर तो रहने नहीं दूँगा!




उधर करुणा का फ़ोन बजने लगा और वो किसी से मलयालम में बात करने लगी, मुझे लगा की शायद उसकी मम्मा का फ़ोन होगा पर वो फ़ोन था उसके EX का! करुणा मलयालम में उसे कुछ समझा रही थी और वो उसकी सुनने को तैयार नहीं था! इधर मैंने खाना खाने के लिए दूकान देखनी शुरू कर दी थी, अस्पताल के नजदीक एक छोटा सा बजार था और उसमें खाने लायक कोई ढंग की जगह नहीं थी| वहाँ मुझे एक ठीक-ठाक दूकान दिखी तो हम उसमें बैठ गए, करुणा काफी गंभीर हो कर बात करने में लगी थी और मैं इसकी परवाह किये बिना खाने का menu देखने लगा था| Menu छापने वाला 'दिन दहाड़े अंग्रेजी बोलना सीखें' institute का विद्यार्थी रहा होगा




क्योंकि उसने जिस भी खाने की चीज का नाम लिखा था उस सब में spelling mistake थी!
Chow mein को Choumeen, Samosa को Semosa, Cheese को Cheej, Pepsi को Papsi, Veg Gril Sandwich को Veg Girl Sandvich, Cutlet ko Cutles, Pizza को Piza, Pineaple को Pinaple, Schezwan को Shezvan छापा हुआ था और जो सबसे हँसी वाली आइटम मैंने पढ़ी थी वो थी; "Jain Cheese Girl Sandvich"! ये आइटम पढ़ कर तो मेरा दिमाग उस जैन लड़की से मिलने को करने लगा था जो आर्डर देने पर हमें परोसी जाती!!

जिंदगी में पहलीबार मैं Menu पढ़ कर हँस रहा था, मैंने वेटर को आर्डर लेने के लिए बुलाया और उससे "Girl Sandvich" के बारे में पुछा, वो बोला की अभी लाइट नहीं है तो सिर्फ चाऊमीन या समोसा ही मिलेगा| तो मैंने दो प्लेट चाऊमीन और दो कोल्ड ड्रिंक मँगाई| इधर करुणा की बात खत्म हुई और वो काफी रुनवासी थी, उसकी ये हालत देख कर मेरा menu पर से ध्यान हटा और मैंने उससे कारन पुछा| करुणा ने बताया की उसके EX ने कॉल किया था, उसकी बहन ने जो मेरे बारे में अपने गाँव भर में ढिंढोरा पीटा था वो करुणा के EX ने सुन लिया था| वो करुणा को फ़ोन कर के ताने मार रहा था की करुणा कैसे एक अनजान "North Indi" (उत्तर भारतीय) लड़के पर भरोसा कर सकती है! ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं उस लड़के को गाली देते हुए बोला;

मैं: उस बहनचोद की हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में कुछ कहने की?

मेरा गुस्सा देख करुणा मुझे शांत करवाने लगी|

करुणा: मैं उसे बोला की आप बहुत अच्छा लड़का है, मेरा बहुत help करते, मेरा बहुत care करते है| लेकिन वो मान ही नहीं रहा, वो इदर केरला में है और मेरे को मिलने बुला रे! वो बोलते की मैं अगर उससे नहीं मिलने आ रे तो वो मेरे को लेने दिल्ली आते, मैं बोला की मैं दिल्ली में नहीं तो वो बोला की मैं उदर (यानी घरसाना) आ जाते!

मैं जनता था की करुणा के EX को "क्या चाहिए", तभी वो करुणा को बार-बार केरला बुलाता था, एक बार उसे वो मिल जाए तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता की करुणा किस के साथ है| मुझे यूँ करुणा का अपने EX से दब कर रहना अच्छा नहीं लगता था तो मैंने अपनी झुंझुलाहट में कुछ गलत कह दिया;

करुणा: मेरी बात सुन, आप उस लड़के को बोलो की आप ने उससे "revenge" लेने के लिए किसी लड़के के साथ "sex" कर लिया है! ये सुन कर वो आपको दुबारा कभी कॉल नहीं करेगा, क्योंकि जो उसे चाहिए वो उसे अब मिलने से रहा!

ये शब्द मेरे मुँह से बाहर आने के बाद भी मुझे जरा सा एहसास नहीं हुआ की मैंने कुछ गलत कहा है! मेरे सर पर गुस्सा सवार था और जो मैं बोल रहा था वो शब्द मेरे दिमाग से नहीं बल्कि गुस्से से निकले थे|




मेरी बात सुन कर करुणा सन्न थी, उसके 'छोटे' से दिमाग ने मेरी कही बात में से दो शब्द पकड़ लिए; "REVENGE" और "SEX"!!! मैं नहीं जानता था की उसने इन दोनों शब्दों को जोड़ कर अपने EX से बदला लेने की ठान ली है!
चाऊमीन परोसी गई और हम ने ख़ामोशी से चुप-चाप खाया, स्वाद तो कुछ था नहीं बस पेट भरना था| खाना खा कर हम वापस अस्पताल लौट आये, बड़े डॉक्टर साहब अभी तक नहीं आये थे और अस्पताल का स्टाफ इस वक़्त व्यस्त था इसलिए हम दोनों को एक होम्योपैथी दवाई के स्टोर रूम में बैठने को बोला| कमरे में एक टेबल और तीन कुर्सियाँ पड़ी थीं तथा हमारे अलावा उस कमरे में कोई और नहीं था| तभी करुणा ने बात शुरू करते हुए कहा;

करुणा: मुझे मेरा EX से REVENGE लेना है, आज होटल जा कर हम SEX करते!

करुणा की आवाज में गुस्सा और बदले की आग धधक रही थी, तथा उसने ये बात अपना फैसला सुनाने के ढँग से कही थी! वहीं उसके मुँह से ये शब्द निकले तो मैं भौंचक्का उसे घूरने लगा, मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई थी, दिमाग ने चेतावनी का घंटा बजा दिया था और मन ने मुझे कास कर जकड़ लिया था!

मैं: Dear I don’t want to do anything that we’ll regret our whole life!

इतना कह मैंने करुणा से मुँह फेर लिया|

मैं समझ सकता था की करुणा गुस्से से भरी है पर वो जो कह रही थी वो पाप था! मेरा मन जिसमें शायद अब भी कहीं भौजी के लिए प्यार दफ़न था वो मुझे ये पाप करने से रोक रहा था, दिमाग और दिल भी आज मन के साथ हो लिए थे और मुझे रोक रहे थे| अचानक मुझे गुजरात वाले भैया की कही बात याद आई जो उन्होंने मेरे आखरी बार गाँव जाने से पहले कही थी, उनकी कही बात की मुझे बुराई के दलदल से दूर रहना मैंने नहीं सुनी थी और उसके बाद जो मेरी ‘गत’ हुई थी उस पर मुझे आज भी पछतावा होता था| मैं आज फिर वही ‘गलती’ नहीं दोहराना चाहता था, इसीलिए करुणा से मुँह मोड़ कर खामोश बैठा था|

उधर करुणा को अपने कहे शब्दों पर पछतावा होने लगा था तथा उसकी आँखों से गँगा-जमुना बहने लगी थी|

करुणा: I’m sorry मिट्टू!

करुणा रोते हुए बोली और फिर उसने अपनी प्रेम कहानी फिर दोहराई| मुझे उसकी प्रेम कहानी सुनने में कतई दिलचस्पी नहीं थी पर मजबूरन सुनना पड़ रहा था, मैंने सोच लिया था की आज होटल जा कर उसके EX की ऐसी-तैसी मार के रहूँगा! मैंने फिलहाल के लिए करुणा को चुप कराया और उसे बड़े डॉक्टर साहब के कमरे तक चलने को कहा ताकि देख सकें की वो आये या नहीं| जब हम बड़े डॉक्टर साहब के कमरे की ओर जा रहे थे तो बीच में एक कमरा पड़ा जो की पूरा खाली था, कमरे में एक टेबल-कुर्सी रखी थी| कुर्सी पर नर्स कामिनी बैठीं थीं और उनके सामने मरीजों के बैठने के लिए एक लकड़ी की बेंच पड़ी थी जिस पर एक आदमी बैठा| उस आदमी की कमीज के बटन सामने की ओर से खुले थे तथा वो दोनों ही खुसफुसा कर कुछ बात कर रहे थे और मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे! मुझे और करुणा को देखते ही नर्स कामिनी उठ कर बाहर आईं तथा अपने चेहरे पर नकली मुस्कान ले कर करुणा से मलयालम में कुछ बात करने लगी, पर मेरी नजर उस आदमी पर थी जो फटाफट अपनी कमीज के बटन बंद कर रहा था! मैं और करुणा कामिनी को अच्छी तरह जान गए थे, उसके साथ करुणा का रहना खतरे से खाली नहीं था, करुणा को इस औरत के साथ नहीं छोड़ूँगा वरना हर वक़्त मेरी जान करुणा की इज्जत के बारे ेमिन सोचते हुए अटकी रहेगी| होटल जा कर मैं करुणा को अच्छे से ज्ञान दूँगा की वो इस औरत से गज भर दूर रहे वरना ये उसकी इज्जत को दाव पर लगा देगी!



कामिनी से बात कर के हम बड़े डॉक्टर साहब के कमरे के पास आये तो वो अब भी बंद था, मैंने ऑफिस में जा कर उनके आने के बारे में पुछा तो मुझे कहा गया की मैं कल सुबह जल्दी आऊँ तब उनसे भेंट हो पाएगी| अब वहाँ रुकने का कोई फायदा था नहीं सो हम बस स्टैंड की ओर चल पड़े, रास्ते में हमारी कामिनी के बारे में बात हुई और मैंने करुणा से साफ़ शब्दों में कह दिया की भले ही वो औरत करुणा केरला से है पर करुणा को उससे दूरी बनाये रखनी होगी, रही करुणा के रहने की बात तो कल मैं घरसाना में कुछ न कुछ इंतजाम कर दूँगा| करुणा को एक चिंता ये भी थी की मैं उससे हर हफ्ते मिलने आऊँगा तो ठहरूँगा कहाँ, दिल्ली से श्री विजय नगर और फिर वहाँ से डेढ़ घंटे की घरसाना तक की यात्रा कर के आना उसे सोखा नहीं लग रहा था| मैंने उसे आश्वासन दिया की जैसे भी होगा मैं अपना प्रबंध खुद कर लूँगा, उसे बस मेरे बनाये कुछ नियमों का सख्ती से पालन करना होगा;

मैं: Dear मैं आपके लिए कुछ rules बना रहा हूँ, ये rules आपकी भलाई के लिए हैं और अगर आपने ये rules तोड़े तो फिर मैं आपसे कभी बात नहीं करूँगा|


  • No Drinking! यहाँ आप किसी के साथ भी शराब, बियर या वाइन कुछ भी नहीं पियोगे| पीने के बाद आपका होश कम होने लगता है जिसका कोई भी फायदा उठा सकता है!
  • घर से अस्प्ताल और अस्पताल से घर! इसके अलावा आप कहीं भी जाओगे तो मुझे बता कर जाओगे, मुझे आपके जाने की पूरी जानकारी होनी चाहिए की आप कहाँ जा रहे हो, किसके साथ जा रहे हो और कितनी देर के लिए जा रहे हो! भगवान न करे अगर कल को कोई ऊँच-नीच हुई तो कम से कम मुझे पता तो होगा की आप कहाँ गए थे?
  • यहाँ के पुरुष सहकर्मियों से दूरी बना कर रखना| बदकिस्मती से आपकी दोस्ती पुरुषों से जल्दी होती है, पर यहाँ पर आप किसी के ऊपर भरोसा नहीं करोगे! बातचीत सिर्फ और सिर्फ अपने काम से जुडी हुई करना, अगर कोई आ कर आपके पास अपने जीवन का रोना रोये तो उसे कन्धा देने की गलती मत करना| लड़की को भावुक कर के उसके मन में अपने लिए सहानुभूति पैदा करना आदमियों का पहला हथियार होता है|
  • कामिनी से कोसों दूर रहना, वो आपको अपने घर बुलाये तो कतई मत जाना, कुछ भी झूठ बोल कर निकल जाना! वो औरत आपको कुछ खिला-पीला कर बेहोश कर के आपके साथ कुछ भी गलत करवा सकती है, इसलिए उससे सावधान रहना!
  • रोज सुबह आप मुझे फ़ोन करोगे की आप अस्पताल निकल रहे हो, वहाँ पहुँचने तक आप मुझसे बात करते रहोगे| दोपहर को खाना खाने के समय आप मुझे पुनः फ़ोन करोगे और घर जाते समय आप मुझसे बात करते हुए घर लौटोगे|
करुणा ने मेरी ये बात ध्यान से सुनी पर उसके दिमाग में कुछ नहीं घुसा!

करुणा: मिट्टू, आप मेरे को इतना care करते? मेरा लिए इतना concern हो कर rules बनाते?

करुणा ने मुस्कुरा कर पुछा|

मैं: वो इसलिए dear क्योंकि आप मेरा वो plant (पौधा) हो जिसे मैंने बहुत प्यार से nurture (पालन-पोषण) किया है!

मेरी बात सुन करुणा के चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान खिल गई|



बस चली और हम लोग रोडवेज बस के झटके खाते हुए होटल पहुँचे| मुँह-हाथ धो कर मैंने चाय मँगाई और करुणा से उसके EX के बारे में बात शुरू की| मैंने उसे सीधा ही सवाल पुछा की क्या वो चाहती है की उसका EX उसका पीछा हमेशा के लिए छोड़ दे? या फिर उसे अपने EX द्वारा सताये जाने में मजा आता है? करुणा ने फटक से जवाब दिया की वो चाहती है की उसका EX उसे तंग न करे| मैंने उसे कहा की मैं उसके EX से पुलिस इंस्पेक्टर बनकर बात करता हूँ और उसे इस कदर डराता हूँ की वो पलट कर कभी करुणा को तंग नहीं करेगा| करुणा को मेरी ये खुराफाती तरकीब अच्छी लगी और उसने फ़ौरन अपनी हामी भरी! पहले तो मैंने करुणा से ये पुछा की उसके EX को हिंदी आती है? पता चले की मैं उसकी हिंदी में लेने लगूँ और उस ससुरे के कुछ पल्ले ही न पड़े! करुणा ने बताया की उस लड़के को भी करुणा की तरह हिंदी समझ आती है, बस बोलने में दिक्कत होती है| मैंने करुणा के EX का नंबर लिया और उसे अपने फ़ोन से मिलाते हुए फ़ोन loudspeaker पर रखा और हरयाणवी लहजे में उससे बात की, मेरा लहजा उत्तम तो नहीं पर काम चलाऊ जर्रूर था|

मैं: रे जैकब (Jacob) बोले है?

मैंने हरयाणवी पुलिस की नकल करते हुए बात शुरू की| अपना नाम और मेरी हरयाणवी भाषा सुन जैकब घबरा गया|

जैकब: ह..हाँ...कौन?

मैं: मैं श्री विजय नगर थाने ते SI बोलूँ! रे छोरे थारी कंप्लेंट आई है माहारे धोरे! (मैं श्री विजय नगर थाने से Station In-charge बोल रहा हूँ, तेरी कंप्लेंट आई है मेरे पास|)

कंप्लेंट शब्द सुन कर जैकब की फट के हाथ में आ गई, वो घबराते हुए बोला;

जैकब: कंप्लेंट...मेरी...?

मैं: तू करुणा नाम की छोरी ने घणे फ़ोन करे है, उससे अश्लील बात करे है?

ये सुन कर वो जान गया की करुणा ने ही उसकी शिकायत की है, अब उसे खुद को बचाना था तो वो बोलने झूठ बोलने लगा;

जैकब: No..no...!

मैं: न तो ये छोरी झूठ बोले है? इसके कॉल रिकॉर्ड में तेरा नाम कैसे आ रा?

जैकब: Sir....I only....

जैकब घबराते हुए आगे बोलता उससे पहले ही मैंने उसकी बात काट दी;

मैं: न के sir-sir लगा रख्या तैने? तेरी सादी हो राखी न, फिर क्यों इस छोरी ने परेशान करे है? न वहीं आ कर तेरे चूतड़ों पर डंडे मारूँ?

मैं जानता था की जैकब 'चूतड़' का मतलब नहीं जानता होगा तो मैंने उसके मजे लेते हुए कहा;

मैं: चूतड़ जाने है?

जैकब: No....No Sir!

वो काँपते हुए बोला| अब मुझे झूठ-मूठ का दिखावा करना था तो मैंने acting करते हुए झूठी आवाज लगाते हुए कहा;

मैं: अरे हवलदार, रे चूतड़ ने अंग्रेजी में क्या कहें?

अब हवलदार का role करने वाला कोई था नहीं तो मैंने आवाज बदलते हुए कहा; "Ass हजूर!"

मैं: हाँ... सुन रे लौंडे, उधर आ कर तेरे ass पर लट्ठ बजा दूँगा!

ये सुन कर जैकब की Ass फट गई! अभी तक मैं बस जैकब के मजे ले रहा था, अब समय था उससे सख्ती से बात करने का;

मैं: देख बे, बाहर से आया है न यहाँ, तो चैन से रह और इस लड़की को भी चैन से रहने दे! वरना केस बना कर तेरे VISA पर stay लगा दूँगा और राजस्थान की जेल में भर दूँगा!

मेरी धमकी सुन कर जैकब की बुरी तरह फट चुकी थी, वो लगभग रोते हुए sorry बोले जा रहा था| मैंने एकदम से फ़ोन दिया और करुणा की ओर देखा जो अपने मुँह पर हाथ रख कर खुद को हँसने से रोक रही थी| कॉल कटते ही करुणा बड़ी जोर से हँसी और हँसते-हँसते उसके पेट में दर्द हो गया!



खैर चाय आई और चाय पीने के समय माँ का फ़ोन आया, माँ ने मेरा हाल-चाल पुछा तथा मैं दिल्ली कब पहुँचूँगा ये पुछा| मैंने करुणा की तरफ देखते हुए कहा की मुझे अभी 2-3 और लगेंगे, ये दरअसल एक तरह का सवाल था करुणा से की इतने दिन में तो उसकी joining हो ही जाएगी| फिर मैंने बात बदलते हुए उनका हाल-चाल पुछा| माँ ने बताया की वो ठीक हैं, शादी कल की है और अगले दिन विदाई है| इस बार गोने की रस्म नहीं की जायेगी, जब बहु को लिवा लाएंगे तो उसके 1-2 दिन बाद माँ-पिताजी लौटेंगे| फिर उन्होंने फ़ोन बड़की अम्मा को दिया, मैंने अम्मा से पायलागि की तो करुणा की जिज्ञासा जाग गई की मैं किस्से बात कर रहा हूँ| उसने मुझे मेरा फ़ोन स्पीकर पर करने को कहा तथा मेरी और बड़की अम्मा की बात बड़े गौर से सुनने लगी;

बड़की अम्मा: मुन्ना कइसन हो? जानत हो हियाँ सब तोहका बहुत याद करत हैं! अब तो तोहार नीक-नीक भाभी आवे वाली है, अब तू कैहा आइहो?

बड़की अम्मा ने एक सांस में अपने सारे सवाल दाग दिए|

मैं: अम्मा ऑफिस के काम से राजस्थान में हूँ, कोशिश करता हूँ गाँव आने की|

मैंने बात बनाते हुए जैसे-तैसे खत्म की|

बड़की अम्मा: ऊ सब हम नाहीं जानित, हमका ई बताओ की तू आपने बड़की अम्मा का नाहीं मुहात हो? हम तोहार बड़ी माँ हन तो हमसे मिले ही आई जाओ!

बड़की अम्मा ने बड़े प्यार से कहा| सच कहूँ तो मैं बड़की अम्मा से मिलने चला जाता पर भौजी को दुबारा देखने की गलती मैं नहीं करना चाहता था!

मैं: अम्मा कैसी बात कर रहे हो, पूछो माँ से शहर में मैं कई बार माँ से कहता था की कब बड़की अम्मा के हाथ का खाना खाने को मिलेगा| मैंने नकली हँसी हँसते हुए कहा|

बड़की अम्मा: ठीक है तो जल्दी आयो! अच्छा एक ठो बात बताओ, बियाह कब करिहो? घर मा अब तुहीं कुंवारे बैठा हो!

बड़की अम्मा हँसते हुए बोलीं|

मैं: अम्मा 'बियाह' तो आप सब के आशीर्वाद से होगा!

तभी पीछे से बुआ की आवाज आई और उन्होंने मेरी शादी को ले कर अपने सपने बताने शुरू कर दिए| अब मुझे क्या पता की माँ का फ़ोन भी स्पीकर पर है!

बुआ: अरे मुन्ना तू हियाँ आओ, कुछ दिन हमरे लगे रहिओ तो हम तोहार खातिर गोरहार-गोरहार (गोरी-गोरी) लड़की ढूँढ देई! तोहार सादी होइ तो तोहार ई घर का हम अच्छे से लीप (गोबर से) देई, फिर तू हमका नवा-नवा, नीक-नीक साड़ी लाई दिहो! हैं?

बुआ की ये बात सुन कर मुझे बहुत हँसी आ रही थी और मेरी ये हँसी देख कर करुणा कुछ-कुछ तो समझ गई होगी|

मैं: हाँ-हाँ बुआ! बस काम निपटे फिर आऊँगा और आप ही के घर रुकूँगा!

मैंने बात खत्म करने के इरादे से बात को निपटाते हुए कहा|

फ़ोन कटा तो करुणा ने मुझसे सारी बात पूछी, मैंने करुणा को सारी बात बताई बस अपने गाँव न जाने की बात को दबा दिया| करुणा फ़ोन पर बुआ और बड़की अम्मा का मेरे प्रति प्यार देख कर बहुत खुश थी क्योंकि उसके परिवार के मुक़ाबले मेरा परिवार मुझे बहुत प्यार करता था|



फिर अगले ही पल करुणा की हँसी गायब हो गई और चेहरे पर उदासी छाने लगी|

करुणा: मिट्टू thank you so much! आप वो stupid (Jacob) को मेरा पीछे से हटाया! And sorry की मेरा वजह से आप अपना family को झूठ बोल रे!

करुणा गंभीर होते हुए बोली|

में: Its okay यार!

मुझे अपनी तारीफ सुनने की आदत नहीं थी इसलिए मैंने बात खत्म करते हुए कहा|

करुणा: नहीं मिट्टू, आप सच में बहुत genuine लड़का है! मैंने afternoon में जो कहा उसे सुन कर आप immediately मना किया, कोई और है तो वो मेरा उस situation का फायदा उठाते! मेरा वो कहने से आपको hurt हुआ है तो I’m genuinely sorry! मैं ऐसा लड़की नहीं है, मैं उस आदमी (Jacob) से बहुत परेशान हो गया था, उससे revenge लेने के लिए मैंने वो कहा! नहीं तो आप जानते मैं ऐसा लड़की नहीं है, हमारा God शादी से पहले ये सब forbidden कर के रखा! ये कर रे तो sin होते और फिर father को जा कर सारा confess करना पड़ते!


करुणा ने रुनवासी होते हुए अपनी सफाई दी|

मैं: I know की आप वैसी लड़की नहीं हो, आपको गुस्सा आ रहा था और अपना गुस्सा निकालने के लिए आपने वो सब कहा| जो हो गया उसे भूल जाओ और smile करो, एक आपकी smile ही तो है जिसे देख कर मेरा दिल खुश हो जाता है|

मैंने करुणा को रोने से रोक लिया था, वहीं उसका मन अब हलका हो चूका था|



हम ने रात को खाना खाया और बाहर थोड़ा घूम कर सो गए, अगली सुबह में फटाफट उठा और नहा-धो कर तैयार हो गया| करुणा भी उठी और नाहा-धो कर तैयार हो गई, हमने समय से चाय पी कर बस स्टैंड पहुँचे तथा बस पकड़ कर अस्पताल पहुँच गए| हमारे पहुँचते ही बड़े डॉक्टर साहब अस्पताल में घुसे, मैंने उनसे गुड मॉर्निंग कह कर करुणा की joining की बात बताई| उन्होंने मुझे admin department में जा कर कुछ करुणा के कागजात जो श्री विजय नगर से मेल पर आये थे वो लाने को कहा| हम दोनों admin वाले कमरे में पहुँचे तो वहाँ की हालत देख कर मुझे बहुत हैरानी हुई, कमरा बड़ा था पर उसमें हॉस्पिटल के पुराने पलंग -कुर्सी भरे पड़े थे, कमरे के शुरू में एक कंप्यूटर रखा था और उसी के साथ hp का पुराना deskjet printer रखा था| अब कंप्यूटर चलाने वाला क्लर्क गायब था, मुझे बड़ी कोफ़्त हुई की साला काहे का अस्पताल है? कभी डॉक्टर गायब तो कभी क्लर्क गायब! मैंने करुणा को वहाँ खड़ा किया और उस क्लर्क को अस्पताल में ढूँढने लगा, वो क्लर्क मुझे कम्पाउण्डर के साथ बैठा चाय पीता हुआ मिला| पहले तो मन किया की इसे सुना दूँ पर फिर सोचा की मेरे गुस्से से करुणा के लिए मुसीबत खड़ी न हो जाये इसलिए मैं अपना गुस्सा पीते हुए उसे वापस उसके कमरे में लाया| कमरे में लौट कर क्लर्क ने कंप्यूटर चलाया तो उसके कंप्यूटर से निकलते 'घरर' की आवाज सुन कर मुझे उस बिचारे बूढ़े कंप्यूटर पर दया आने लगी| कंप्यूटर ऑन हुआ तो windows xp की जोरदार startup sound




सुनाई दी जिसे सुन कर करुणा ने अपने कान बंद कर लिए!
Windows 7 launch हो चुकी थी और ये लोग अभी तक windows xp पर हैं?! खैर कंप्यूटर चालु होने के बाद उसे 10 मिनट लगा, तब जा कर कंप्यूटर काम करने लायक हालत में आया| क्लर्क ने मेल चेक की और एक print out निकाला, साथ ही उसने दो employee फॉर्म निकाले, जिनपर करुणा को दस्तखत करने थे| सारे कागज़ ले कर मैं बड़े डॉक्टर साहब के पास जल्दी से पहुँचा ताकि कहीं वो निकल न जाएँ| शुक्र है की बड़े डॉक्टर साहब अब भी अपने कमरे में ही बैठे थे, उन्होंने सारे कागज़ देखे और दस्तख्त कर के करुणा को आज की तरीक से joining दे दी! करुणा को joining मिली तो मैंने मन ही मन भगवान को बहुत धन्यवाद दिया, साथ ही ये भी प्रार्थना की कि वो करुणा का यहाँ ध्यान रखें| उधर बड़े डॉक्टर साहब ने करुणा से बात करनी शुरू कर दी, वो उससे जानना चाहते थे कि इससे पहले वो कहाँ काम कर रही थी, अस्पताल कौन सा था, उसे तनख्वा कितनी मिलती थी| करुणा उनकी सब बातों का जवाब दे रही थी और बड़े डॉक्टर साहब उससे काफी खुश दिखे| करुणा कि बातें सुन कर वो जान गए थे की करुणा की हिंदी बहुत खराब है, उन्होंने करुणा को आगाह करते हुए कहा;

बड़े डॉक्टर साहब: तुम्हारी हिंदी बहुत खराब है, फिर यहाँ के लोगों की हिंदी में हरयाणवी तथा पंजाबी का touch है इसलिए तुम्हें यहाँ बातें समझने में थोड़ी दिक्कत होगी|

उनकी बात सुन कर करुणा के तोते उड़ चुके थे, जब से हम आये थे तब से लोग पहले ही उसे घूर-घूर कर देख रहे थे, अब अगर कोई मरीज उसे कुछ कहे तो करुणा समझ ही नहीं पाती! ये दो बातें करुणा को डराने लगी थीं, यही वो पल था जब करुणा के दिल में डर पनपने लगा था!

मैंने करुणा का डर कम करने को बड़े डॉक्टर साहब से करुणा के रहने की बात चलाई, उन्होंने पुछा की अभी तक हम कहाँ रुके हैं? मैंने उन्हें बताया की हम फिलहाल एक होटल में रुके हैं, मैंने श्री विजय नगर में एक PG में बात की हर पर वहाँ से यहाँ रोज डेढ़ घंटे का सफर करुणा के लिए टेढ़ी खीर है| डॉक्टर साहब ने अपने हाथ खड़े कर दिए की वो हमारी इसमें कोई मदद नहीं कर सकते! उन्होंने मुझे कहा की मैं करुणा के रहने का इंतजाम होने तक छुट्टी की एक application लिख कर दे दूँ| मैं करुणा को ले कर बाहर आ गया और इस बार मैंने खुद अपनी गन्दी सी लिखावट में छुट्टी की application लिखने लगा, अब application में लिखना था की हमें कितने दिन की छुट्टी चाहिए तो करुणा बोली की 15 दिन लिख दो| मैंने 15 दिन लिख दिए और करुणा के दस्तखत करवा कर वापस बड़े डॉक्टर साहब के कमरे में आ गया| उन्होंने जब application पढ़ी तो बोले की कोई 15 दिन की छुट्टी नहीं मिलेगी, ज्यादा से ज्यादा 3 दिन की छुट्टी मिलेगी बस! उन्होंने मुझे application दुबारा लिख कर admin में देने को कहा, इतना कह कर वो चले गए| बड़े डॉक्टर साहब की बात सही थी पर परेशानी ये थी की करुणा के रहने का यहाँ कोई प्रबंध नहीं हो पा रहा था|



हमारे पास श्री विजय नगर का PG आखरी विकल्प बचा था, फिर मैंने सोचा की एक बार यहाँ खुद कोई जगह ढूँढने की कोशिश तो करूँ! मैंने करुणा को साथ लिया और अस्पताल से बाहर आया, मैंने आस-पास हॉस्टल, PG और कमरे का पता करना शुरू किया| पोन घंटे की गर्मी में माथा-पच्ची के बाद भी हमें न तो हॉस्टल मिला, न PG मिला और न ही कोई कमरा मिला| फिर मुझे कुछ दूर पर दो लड़कियाँ coaching जाती हुई नजर आईं, मैं उनके पास पहुँचा और उनसे girl's hostel अथवा PG के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया की यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है| फिर एक लड़की बोली की एक आंटी हैं जो tiffin service चलातीं हैं उनके पास शायद एक कमरा है| मेरे लिए तो ये मौका ऐसा था जैसे की अँधेरे कमरे में रौशनी की एक किरण! मैंने उनसे उन आंटी का पता पुछा तो उन्होंने बताया की उन आंटी का घर काफी अंदर कर के है और हम दोनों गलियों में भटक जायेंगे, इसलिए उन्होंने स्वयं चलने की बात कही परन्तु हमें थोड़ा तेज चलना होगा क्योंकि उनके coaching का समय हो गया था| मैं तो उनके साथ तेज-तेज चलने लगा पर करुणा काफी धीरे थी, उसके धीरे होने का कारन था की दिल्ली वाले अस्पताल से उसे फ़ोन आ रहे थे और वे सभी उसकी joining को ले कर सवाल कर रहे थे|

खैर उन लड़कियों ने हमें उन आंटी से मिलवाया और मैंने उन्हें सारी बात बताई, वो बोलीं की उनके पास एक कमरा है जहाँ एक लड़की रह रही है| करुणा को उसी लड़की के साथ कमरा share करना पड़ेगा तथा खाना करुणा को आंटी के यहीं पर खाना होगा| आंटी हमें ऊपर बने कमरे में ले गईं तो वहाँ निहायत ही सुन्दर लड़की बैठी किताब पढ़ रही थी, उसे देख कर मेरा दिल तो किया की करुणा की जगह मैं ही यहाँ रह जाऊँ! करुणा ने मुझे कोहनी मारते हुए मेरे वहाँ रहने के ख्याल से बाहर निकाला, मैंने आंटी से जब पैसे की बात की तो आंटी ने बताया की वो खाना और रहना मिला कर 8,000/- लेंगी! ये सुन कर हमारी हवा फुस्स हो गई क्योंकि फिलहाल करुणा की तनख्वा बहुत कम थी, उसका कारन ये था की करुणा को यहाँ पहले 3 साल probation पर काटने थे, उसके बाद ही करुणा की तनख्वा बढ़ती! मैंने आंटी से गुजारिश की कि वे पैसे कुछ कम कर दें पर वो नहीं मानी, हारकर हम वहाँ से वापस अस्पताल के लिए निकल लिए| रास्ते में करुणा ने मुझे बताया की दिल्ली के अस्पताल वाले सब उसके पीछे पड़े हैं की करुणा कैसे भी ये job join कर ले! दरअसल मेरे कहे अनुसार करुणा ने अभी तक अपनी दिल्ली वाली नौकरी से इस्तीफ़ा नहीं दिया था, पूरा अस्पताल जानता था की करुणा को यहाँ नौकरी मिल गई है और वो सब करुणा पर दबाव बना रहे थे की वो यहाँ join कर ले ताकि वहाँ वो लोग अपने किसी रिश्तेदार को करुणा की जगह लगा सकें|



इतने में करुणा का फ़ोन दुबारा बजा तो उसने अपना फ़ोन मेरी ओर बढ़ा दिया| मैंने फ़ोन उठा कर बात की तो सब बारी-बारी मुझ पर दबाव बनाने लगे की मैं कैसे भी करुणा की joining यहाँ करवा कर लौट आऊँ! मैंने उन्हें यहाँ के हालत के बारे में बताया की अभी तक हमें करुणा के रहने के लिए जगह नहीं मिल पाई है, पर किसी को भी वहाँ इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था! उनका कहना था की मैं करुणा को श्री विजय नगर वाले हॉस्टल में ही भर्ती करवा दूँ, वहाँ से आना-जाना करुणा खुद संभाल लेगी! एक ने तो ये तक बोला की घरसाना आने तक बीच में कोई भी गाँव पड़ता हो तो मैं करुणा के रहने का इंतजाम वहाँ कर दूँ!



उस वक़्त मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, खुद को करुणा के दोस्त कहने वाले उसकी ज़रा भी परवाह नहीं करते थे! उनकी बला से वो बेचारी अकेली चाहे मर जाए बस यहाँ से इस्तीफ़ा दे दे ताकि वो अपने किसी निजी को करुणा की नौकरी दिलवा सकें! मैंने गुस्से में फ़ोन काटा और करुणा से कहा की पहले हम कुछ खा लेते हैं ताकि दिमाग चलने लगे| खाने का आर्डर दे कर मैंने करुणा से बात शुरू की, मैंने उसके पुराने अस्पताल के स्टाफ वालों की बात बताई पर उन लोगों की ये चालाकी करुणा के दिमाग में नहीं घुसी| करुणा में ये भी एक कमी थी की वो जल्दी ही लोगों पर आँख मूँद कर भरोसा कर लेती थी, फिर चाहे कोई उनकी कितनी ही गलती निकाल दे वो टस से मस नहीं होती थी| मैंने सोचा की इसे उनकी बात नहीं माननी न सही, कम से कम मैं तो अपना पक्ष साफ़ कर दूँ;

मैं: देख dear आपको मेरा विश्वास नहीं करना मत कर, पर मेरी बात सुन लो! मैं आपको इस तरह यहाँ किसी तीसरे के सहारे छोड़ कर नहीं जाऊँगा! आपको मैं उस कामिनी के साथ तो रहने नहीं दूँगा और न ही हमारे पास इतने पैसे हैं की आप वो आंटी के यहाँ रह सको, तो आप मुझे सोच कर बताओ की क्या आप श्री विजय नगर से यहाँ रोज डेढ़ घंटे का सफर कर के आ सकते हो? और हाँ एक बात सोच लेना की आप को रोज आना है, फिर चाहे बारिश हो या आँधी आये!

ये सुन कर करुणा सोच में पड़ गई, उसका छोटा सा दिमाग इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकता था इसलिए उसने फैसले मेरे ऊपर छोड़ दिया;

करुणा: आप क्या बोलते?

मेरा जवाब तो सीधा था, क्योंकि मैं जानता था की करुणा से इतना संघर्ष नहीं होने वाला|

मैं: ये job छोडो और दिल्ली वापस चलो!

मैं नहीं जानता था की करुणा मेरे मुँह से यही सुनना चाहती है, मेरा जवाब सुनते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो एकदम से वापस जाने को तैयार हो गई! बड़े डॉक्टर साहब ने जो करुणा के मन में डर का बीज बोया था वो अंकुरित हो चूका था, यहाँ रहने की व्यव्य्स्था न हो पाने से करुणा को वापस जाने का एक और बहाना मिल गया था|



इधर मैं नहीं चाहता था की कल को कोई अगर करुणा से पूछे की उसने ये नौकरी क्यों छोड़ी तो वो मेरा नाम ले इसलिए मैंने उसे कहा की वो अपनी मम्मा को सारी बात बताये और उनका निर्णय पूछे| करुणा ने अपनी मम्मा को फ़ोन किया और उन्हें सारी बात विस्तार से बताई, उसकी माँ ने उसे वापस दिल्ली आने को कहा दिया क्योंकि वो भी जानती थी की उनकी बेटी अकेली खुद को नहीं संभाल पायेगी| अपनी माँ की ओर से न सुन कर करुणा का चेहरा खिल गया क्योंकि उसके वापस दिल्ली जाने का रास्ता साफ़ हो गया था|

खाना खा कर हम वापस अस्पताल लौटे और क्लर्क से बड़े डॉक्टर साहब के बारे में पुछा, उसने बताया की वो तो अब कल आएंगे| मैंने उससे पुछा की नौकरी छोड़ने के लिए कोई फॉर्म भरना होगा तो उसने करुणा से नौकरी छोड़ने का कारन पुछा| करुणा ने अपना दिमाग इस्तेमाल करते हुए रहने की व्यवस्था न हो पाने और अपनी मम्मा का वास्ता दे कर बहाना बनाया, पर उसका बहाना उपयुक्त नहीं था इसलिए मुझे अपना दिमाग लगा कर उसके बहाने को सही रूप देना पड़ा;

मैं: एक तो वैसे ही इनकी मम्मी केरला में रहतीं हैं ऊपर से इनके रहने का इंतजाम हुआ नहीं है, ऐसे में वो कैसे अपनी बेटी को अकेला छोड़ दें?! उनका कहना है की ये नौकरी छोड़ कर सीधा उनके पास लौट आयें|

मैंने बहना तो ठीक बना दिया पर ये करुणा के नौकरी छोड़ने की आँधी पूरे अस्पताल में फ़ैल गई| हम दोनों घर जाने के लिए निकल ही रहे थे की एक नर्स आई और हमें operation theater में बैठीं सबसे उम्र दराज नर्स के पास ले आई| उन्होंने करुणा के नौकरी छोड़ने का कारन पुछा तो करुणा ने कुछ देर पहले मेरा बहना मारा किसी रट्टू तोते की तरह सुना दिया, पर उन्होंने (उम्र दराज नर्स ने) बात का रुख ही मोड़ दिया!

उम्र दराज नर्स: देखो सरकारी नौकरी इतनी आसानी से नहीं मिलती, तुम दोनों शादी कर लो, मानु यहीं कोई नौकरी ढूँढ लेगा और तुम दोनों आराम से यहाँ रह सकोगे!

उनकी बात सुन कर हम दोनों अवाक खड़े एक दूसरे को देख रहे थे, पर आज तो जैसे पूरे स्टाफ ने ही मन बना लिया था की हम दोनों की शादी आज करा कर ही रहेंगे|

दूसरी नर्स: कोर्ट यहीं नजदीक है, गवाह हम सब बन जायेंगे!

मैं आगे कुछ बोलता इतने में पीछे से तीसरी नर्स आ गईं और यहाँ बैठी महफ़िल का कारन पूछने लगी| दूसरी वाली नर्स ने उन्हें सारी बात बताई तो वो भी हम दोनों की शादी करवाने के पीछे पड़ गईं और मेरी तारीफों के पुल्ल बाँधते हुए बोलीं;

तीसरी नर्स: हाँ सही तो कह रही हैं मैडम (उम्र दराज नर्स)| इतना अच्छा लड़का है, तहजीब वाला है, तेरी इतनी मदद कर रहा है, इससे अच्छा लड़का कहाँ मिलेगा?

मुझे लगा की करुणा कुछ बोलेगी पर उसे तो ये सब मजाक लग रहा था तभी तो वो बस मुस्कुराये जा रही थी|

मैं: नहीं जी ऐसा कुछ नहीं है! ये बस मेरी अच्छी दोस्त है, इसकी मदद कर के मैं बस अपनी दोस्ती का फ़र्ज़ निभा रहा हूँ|

इतने में उम्र दराज नर्स जी बोल पड़ीं;

उम्र दराज नर्स: ठीक है दोस्त सही, पर तुम दोनों की शादी लायक उम्र तो हो ही गई है|

मैं: जी शादी लायक उम्र तो हो गई पर हमारे परिवार वाले भी तो शादी के लिए राजी होने चाहिए? बिना उनकी मर्जी के कैसे शादी कर सकते हैं?

मैंने अपनी सफाई दी|

दूसरी नर्स: अरे उन्हें तो हम समझा देंगे, तुम दोनों बस शादी के लिए राजी तो हो जाओ?!

उन्होंने बात हलके में लेते हुए कहा|

मैं: जी आप उन्हें क्या-क्या समझायेंगे? हम दोनों के धर्म अलग-अलग हैं, जात अलग-अलग है, यहाँ तक की हमारी उम्र में भी 5 साल का अंतर् है! हमारे माँ-पिताजी इस शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे!

मेरी बात सुन सब खामोश हो गए|

उम्र दराज नर्स: बेटा हम तो ये ही चाहते है की करुणा ये नौकरी न छोड़े|

मैं: जी मैं समझ सकता हूँ पर दरअसल इनकी (करुणा की) मम्मी बहुत चिंतित हैं| आज से पहले इन्हें (करुणा को) कभी घर से इतनी दूर, अकेली रही नहीं| फिर एक आध दिन की बात होती तो कोई दिक्कत नहीं थी, अब तो उम्र भर यहीं काम करना है तो ये अकेले कैसे संभालेगी? इसीलिए इनकी मम्मी ने इनको वापस अपने पास केरला बुला लिया है|

मेरी बात में वजन बहुत था इसलिए उम्र दराज नर्स जी बोलीं;

उम्र दराज नर्स: हाँ ये बात तो सही है! मैं भी एक माँ हूँ और मेरी बेटी को ही कहीं दूर नौकरी मिले तो चिंता तो होगी ही|

आगे बात होती उससे पहले ही मैंने उनसे चलने की इजाज़त ले ली|



बाहर आते ही मैंने करुणा के दाहिनी बाजू पर प्यार से घूसा मारते हुए कहा;

मैं: बड़ी हँसी आ रही थी न?! बेटा 5 मिनट और वहाँ रुकते न तो आज दोनों की शादी हो जाती!

ये सुन कर करुणा दहाड़े मारते हुए हँसने लगी| हम दोनों होटल लौटे और नहा-धो कर चाय पीने लगे, करुणा के चेहरे पर एक अजब सी ख़ुशी थी! उसने अपनी मम्मा को फ़ोन कर के सब बताया, जिसे सुन कर उन्होंने करुणा को कुछ बताया जो फिलहाल के लिए करुणा ने मुझसे छुपाया| इस बात से अनजान मैं अब निश्चिंत था की कम से कम दिल्ली में करुणा के पास उसकी एक नौकरी तो है| रात का खाना खाया, हँसी-मजाक किया, बाहर घूमे फिरे, माँ का फ़ोन आया तो मैंने उन्हें बताया की मैं कल रात को निकलूँगा और परसों घर पहुँच जाऊँगा| माँ ने भी बताया की वो परसों गाँव चल देंगी और तरसों दिल्ली पहुँचेंगी तथा मुझे सुबह आनंद विहार बस स्टैंड लेने आने को कहा|

सोने का समय हो रहा था तो हम दोनों चैन से सो गए| अगली सुबह हम जल्दी उठे और आज करुणा में अलह ही जोश था| हम समय से घरसाना पहुँचे और अस्पताल में घुसते ही सीधा बड़े डॉक्टर साहब से मिले, मैंने उन्हें करुणा की नौकरी छोड़ने की बात बताई| मुझे लगा था की वो गुस्सा होंगे और हमें अच्छे से सुनाएँगे पर ऐसा नहीं हुआ, उन्होंने तो सीधा कहा; "ठीक ही है, यहाँ पर तुम्हारे (करुणा के) लिए adjust करना आसान नहीं था!" उनकी ये बात हम दोनों ने पकड़ ली और एक साथ अपने सर हाँ में हिलाये| फिर उन्होंने मुझे करुणा की तरफ से एक application लिखने को कही जिसमें मुझे नौकरी छोड़ने का कारन देना था, साथ ही admin से एक फॉर्म भर कर लाने को कहा| हमने ठीक वैसा ही किया और सारे कागज़ ले कर फटाफट उनके पास लौटे| उन्होंने application पढ़ी और दस्तखत कर के हमें फॉर्म दिया, अब हमें ये फॉर्म ले कर श्री विजय नगर जाना था जहाँ इस फॉर्म को जमा कर के हमें करुणा के जमा किये हुए दस्तावेज छुड़ाने थे|



श्री विजय नगर आ कर हमने करुणा के नौकरी छोड़ने का कारन बताया, फॉर्म जमा किया और करुणा के दस्तावेज ले कर होटल पहुँचे| होटल पहुँच कर मैंने करुणा से कहा की वो अपनी मम्मा और दीदी को बता दे की उसने नौकरी छोड़ दी है तथा हम आज रात की बस से दिल्ली लौट रहे हैं| ये सुन कर करुणा ने जो बात मुझे बताई उसे सुन कर मैं दंग रह गया!

करुणा: मेरा दीदी ने मुझे कल फ़ोन किया ता, वो बोला की तू वापस इदर (करुणा की दीदी के घर) नहीं आ सकता! तू पता नहीं कहाँ-कहाँ घूम रे, जिस-किस के साथ सो रे, मेरा घर में आ कर मेरा घर गंदा मत कर! तुझे जहाँ रहना है वहाँ रह पर मेरा घर के आस-पास आ रे तो मैं तेरा कंप्लेंट पुलिस में कर देते!

ये सुन कर मुझे बहुत जोरदार झटका लगा| मैं जानता था की इस सब के लिए कहीं न कहीं मैं ही जिम्मेदार हूँ, पर फिर लगा की मैंने ऐसा क्या कर दिया? मैं करुणा की मदद ही तो कर रहा था वो भी उसकी दीदी और उसकी मम्मा की आज्ञा से!

मैं: आपकी मम्मा को पता है की आपकी दीदी ने आपको फ़ोन कर के क्या कहा है?

मैंने ये सोच कर सवाल पुछा की करुणा की मम्मा ने जर्रूर करुणा की दीदी को समझा दिया होगा, पर हुआ उसका उल्टा;

करुणा: हाँ दीदी ने खुद उन्हें फ़ोन कर के बोला की मैं उनका घर में अब नहीं रह सकता!

इतना कह कर करुणा चुप हो गई|

मैं: तो आपकी मम्मा ने उन्हें कुछ कहा नहीं?

मुझे बात को कुरेदना पड़ा ताकि करुणा मुझे सारी बात बताये|

करुणा: वो बोल रे की तेरे को (करुणा को) क्या ठीक लग रे वो कर!

ये सुन कर तो मैं हैरान रह गया, ये कैसा परिवार है जिसे एक दूसरे की कुछ पड़ी ही नहीं!

मैं: फिर अब आप कहाँ रहोगे?

मैंने गंभीर होते हुए करुणा से सवाल पुछा तो उसने एक नक़ली मुस्कान चिपकाई और खामोश रही| उसके रहने का इंतजाम करना मेरी जिम्मेदारी थी, इसलिए मैंने ही फ़ोन में हॉस्टल ढूँढने शुरू कर दिए| इंटरनेट बहुत धीमे चल रहा था पर फिर भी जो कुछ जानकारी मिली मैंने वहाँ फ़ोन करना शुरू कर दिया| हर तरफ से मुझे निराशा ही हाथ लग रही थी, करुणा कहाँ रहेगी इसकी चिंता मेरे दिमाग पर सवार हो चुकी थी और मुझे उसकी दीदी पर बहुत गुस्सा आने लगा था!

करुणा: मिट्टू आप टेंशन मत लो! मैं....

करुणा आगे कुछ बोलती उससे पहले ही मैंने उसकी बात काट दी और गुस्से से बोला;

मैं: क्यों टेंशन न लूँ? आपको पता है की आप कहाँ रहोगे? आपकी दीदी को आप पर ज़रा भी भरोसा नहीं?!

करुणा मेरा गुस्सा और मेरी चिंता समझ रही थी इसलिए वो मुझे शांत करते हुए बोली;

करुणा: Relax dear! मैंने हॉस्पिटल का एक डॉक्टर से बात किया है, वो बोला की वो कल शाम को गाँव जा रे तब तक मैं उनका घर में उनकी बेटियों के साथ रह सकते|

ये सुन कर मुझे थोड़ा तो इत्मीनान हुआ पर शाम तक करुणा रहेगी कहाँ और फिर ये arrangement तो कुछ दिन के लिए था, बाद में करुणा कहाँ रहेगी? ये सोच-सोच कर मेरा सर दर्द करने लगा था, खुद को शांत करने के लिए मैं कुछ देर के लिए लेट गया| मुझे लेटा देख करुणा को लगा की मेरी तबियत खराब है, मैंने उसे बताया की मेरा बस सर दर्द कर रहा है| करुणा ने मेरा सर अपनी गोद में रखा और धीरे-धीरे दबाने लगी, 10 मिनट बाद मैं उठा और बोला;

मैं: कल सुबह दिल्ली पहुँच कर मैं आपको होटल में ठहरा देता हूँ, शाम को आपका सामान उन डॉक्टर साहब के यहाँ शिफ्ट कर देंगे, तबतक मैं आपके लिए कोई न कोई हॉस्टल ढूँढ दूँगा!

मैंने करुणा के रहने की जिम्मेदारी अपने सर ले ली थी और मुझे अब वो पूरे मन से निभानी भी थी|



शाम को हमने होटल से check out किया और जो बिल आया उसे देख कर करुणा और मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं; 5,240/-, जिसमें ढाई हजार के लगभग का तो हमने खाना ही खाया था!!!! करुणा को ये बिल देख कर बहुत बुरा लग रहा था की उसने बिना मतलब के मेरे इतने पैसे लगवा दिए थे, पर अब किया भी क्या जा सकता था!

हम दोनों बस स्टैंड पहुँचे और बस की टिकट ले कर इंतजार करने लगे| बस आई करीब एक घंटे बाद और तब तक करुणा की माँ का फ़ोन आ चूका था, उन्होंने करुणा से पुछा की वो कहाँ रहेगी तो करुणा ने अपनी अकड़ दिखाते हुए कहा; "मैं देख लूँगी!" इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया| उसका गुस्सा होना जायज भी था, क्योंकि उसकी माँ बस पैसे की लालची थी| करुणा ने मुझे बताया की जब भी महीने की पहली तरीक आती तो करुणा की माँ उससे बड़े प्यार से बात करने लगती थी, उसी वक़्त उनके अंदर की ममता जाग जाती थी और करुणा के अपनी माँ को पैसे भेजते ही उसकी माँ की ममता खत्म हो जाती!



खैर कुछ देर में बस लगी और हमने अपनी स्लीपर वाली बर्थ पकड़ ली, मैं पानी तथा चिप्स वगैरह ले कर वापस लौट आया| इतने में करुणा की बहन ने मुझे फ़ोन किया, मैंने करुणा को फ़ोन दिखाते हुए कॉल उठाया;

करुणा की दीदी: मानु करुणा आपके साथ है न?

मैं: हाँ!

मैंने संक्षेप में जवाब दिया क्योंकि मेरी उनसे बात करने की कतई इच्छा नहीं थी|

करुणा की दीदी: मैंने आपको एक बार warn करना चाहती हूँ, आप अच्छे लड़के हो, इसलिए करुणा से दूर रहना! इसे ले कर मेरे घर मत आना, वरना मुझे पुलिस कंप्लेंट करनी पड़ेगी, मैं नहीं चाहती की उस कंप्लेंट में आपका नाम आये और आप तकलीफ में आओ!

करुणा की दीदी ने बड़े सख्त लहजे में मुझसे बात की, तथा अपनी बात कह कर उन्होंने फ़ोन काट दिया| मैंने ये बात करुणा को बताई तो उसे बहुत बुरा लगा की उसकी बहन ने मुझसे इतने सख्त लहजे में बात की| वो तो करुणा थी जिस कारन मैं सह गया और कुछ बोला नहीं वरना जवाब मैं भी दे सकता था|

उधर करुणा का मन दुखी हो चला था, वो खामोश हो गई थी और मुझे बात नहीं कर रही थी| मैंने उसे समझाने की लाख कोशिश की पर वो नहीं समझी, बड़ी मश्किल से मैंने उसे चिप्स वगैरह खिलाये| बस में हिलते-डुलते दोनों ही सो न सके और खामोश लेटे रहे, बस ने हमें सुबह के 5 बजे दिल्ली के कश्मीरी गेट बस स्टैंड के पास वाले flyover के नीचे छोड़ा| अब जाना कहाँ है इसका फैसला तो हुआ नहीं था, इसलिए समान ले कर हम बस स्टैंड के waiting hall में बैठ गए| आज जिंदगी में पहली बार मैं खुद को उस मुसाफिर की जगह रख कर उस मुसाफिर की मजबूरी को महसूस कर रहा था, कैसा लगता होगा जब आपके पास जाने के लिए कोई 'दर' कोई ठिकाना न हो! निराशा का जो जोरदार थपेड़ा पड़ता है उस दर्द को सहना कितना मुश्किल और असहनीय होता है!




लेकिन कहते हैं न की जिंदगी तब तक खत्म नहीं होती जब तक आप उसकी दी हुई चुनौतियों से लड़ना बंद न कर दो| भौजी के प्रेम ने मुझे वो जुझारू लड़ाका बना दिया था जो बिना लडे हार नहीं सकता था! मैं मन ही मन सोचने लगा की क्यों न करुणा को घर ले जाऊँ शाम तक वो वहीं रहेगी और शाम को उसे उन डॉक्टर साहब के घर छोड़ दूँगा, पर तभी दिमाग ने इस ख्याल को गलत ठहराते हुए कहा; 'पागल मत बन! गली-मोहल्ले के लोग हमे साथ देखेंगे तो बातें बनायेंगे! किसी ने अगर ये बात मेरे माँ-पिताजी को फ़ोन कर के बता दी की करुणा मेरे साथ घर पर है तो मेरा क्रियाकर्म हुआ समझो! जो कल सोचा था वही कर और करुणा को किसी होटल में ठहरा दे!' मैंने फ़ोन निकाला और ऑनलाइन होटल ढूँढने लगा, तब वो trivago वाले चाचा नहीं थे



वरना मैं trivago पर ही होटल ढूँढता! खैर मैंने google पर दिखाए ऊपर के 4-5 होटलों में फ़ोन कर के कमरे का भाड़ा पुछा, सब के सब 2,000/- के ऊपर के थे! एक रास्ता था की मैं पहाड़गंज चला जाऊँ क्योंकि वहाँ पर कम भाड़े पर कमरा मिल जाता पर करुणा को वहाँ अकेला छोड़ने से डर रहा था! मैं चाहता था की होटल मेरे घर के आस-पास हो ताकि मैं करुणा का ध्यान रख सकूँ, तब मुझे याद आया की मेरे घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक होटल था| मैंने करुणा से चलने को कहा जो अभी तक ख़ामोशी से मायूस हो कर सर झुका कर बैठी थी|

मैं नहीं जानता की करुणा के दिमाग में क्या चल रहा था पर उसके हाव-भाव देख कर मुझे उसके मन में मेरे लिए नफरत महसूस होने लगी थी! मैंने उस समय कुछ नहीं कहा और ऑटो कर के होटल की ओर चल पड़ा, करुणा की उतरी हुई शक्ल देख ऑटो वाले को लगा की कहीं मैं उसे भगा कर तो नहीं लाया? मैंने उसे बात बनाते हुए कहा की करुणा यहाँ काम की तलाश में आई है और फिलहाल हम यहाँ कोई girl's hostel ढूँढ रहे हैं! मेरी शकल देख कर ऑटो वाले को यक़ीन हो गया की मैं सच बोल रहा हूँ, उसने मुझे बताया की मैं किसी student लड़की से बात करूँ, उन लड़कियों को कॉलेज की तरफ से हॉस्टल मिलता है और वो वो कई बार थोड़े से पैसों के लिए दूसरी लड़कियों को अपने साथ रहने देती हैं| ऑटो वाले का आईडिया तो बहुत अच्छा था पर मेरी किसी student लड़की से जान पहचान थी नहीं तो मैंने ऑटो वाले से ही मदद माँगी| उसने मुझे एक girl's college का नाम बताया और कहा की वहाँ जा कर चपरासी से बात करूँ तो शायद कोई जुगाड़ फिट बैठ जाए! मैंने सोच लिया की करुणा को होटल में छोड़ कर आज एक बार इस आईडिया को चला कर देखा जाए|



मैं नहीं जानता था की मेरा यूँ एक ऑटो वाले से बात करना करुणा को अखर रहा है! उसने मेरी और ऑटो वाले की बात ख़ामोशी से सुनी पर उस समय बोली कुछ नहीं| हम होटल पहुँचे और वहाँ मैंने करुणा की केरला वाली ID से उसका check in करवाया क्योंकि दिल्ली में होते हुए मेरी दिल्ली की ID इस्तेमाल नहीं हो सकती थी! करुणा को कमरे का दरवाजा अच्छे से बंद करने को बोल कर मैं अपने घर लौटा, घर की साफ़ सफाई कर ही रहा था की पितजी का फ़ोन आया उन्होंने बताया की साइट पर कोई पंगा हो गया हैं तो मुझे अभी वहाँ जाना होगा| मैंने अभी तक कुछ खाया नहीं था, मैं खाली पेट ही कपडे बदल कर साइट पर पहुँचा| साइट पर हमारा आया माल लेबर ने बेवकूफी से लौटा दिया था! पहले तो मैंने लेबर को झाड़ लगाई की उसने बिना मेरे पूछे बताये समान कैसे नहीं उतरने दिया और फिर उस गाडी को वापस बुलाने के लिए supplier को फ़ोन किया| Supplier ने बताया की गाडी वाले ने माल तो छोड़ दिया है, मैंने supplier से गाडी वाले का नंबर लिया और उससे पुछा की उसने कहाँ माल छोड़ा है तो उस उल्लू के चरखे ने बताया की उसने हमारा माल किसी दूसरे की साइट पर छोड़ दिया था! पहले मैंने उससे उस साइट का नाम पुछा और फिर उसे पेट भरकर गालियाँ दी! फिर मैं उस साइट पर पहुँचा तो देखा की वहाँ हमारा माल अलग से पड़ा हुआ था, सुपरवाइजर से मिल कर मैंने उसे इस गलतफैमी के बारे में बताया और वहाँ से माल उठवाया|

इस सब माथा-पच्ची में आधा दिन निकल गया था, मैंने करुणा को फ़ोन कर के उसका हाल-चाल पुछा और उसे खाना खाने को कहा तो वो मुझ पर बिगड़ते हुए बोली; "मेरा मन नहीं है!" इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया! गुस्सा तो बहुत आया पर किसी तरह अपना गुस्सा पी गया और अपने गुस्से में खुद भूखा रहा| शाम को मैं करुणा के होटल पहुँचा, करुणा का मुँह अब भी उतरा हुआ था| मैंने बात शुरू करने के इरादे से कहा;

मैं: यार मैं जानता हूँ की ये सब मेरी वजह से हो रहा है, and I’m really sorry for that!

मेरी बात की जवाब में करुणा ने बस; "हाँ" कहा जो इस बात का इशारा था की वो भी मानती है की उसके घर से निकाले जाने का दोषी मैं ही हूँ! मैंने आगे कुछ नहीं कहा और करुणा का समान उठा कर बाहर ले आया, मैंने ऑटो किया और करुणा का सामान ले कर उन डॉक्टर साहब के घर पहुँचा| रास्ते में करुणा ने मुझे सुबह मेरा उस ऑटो वाले से उसके बारे में बात करने को ले कर थोड़ा सुनाया जिसे मैंने ख़ामोशी से सुना, मेरा ये सब सुनने का कारन थी मेरी ग्लानि जो मेरे मन में टीस मार रही थी| खैर उन डॉक्टर साहब के घर पर केवल उनकी दो बेटियाँ थी, वो मुझे देख कर करुणा से कुछ न पूछें इसलिए करुणा ने मुझे दरवाजे पर से ही लौट जाने को कहा| मैं बिना कुछ कहे कुछ दूर आ कर खड़ा हो गया ताकि देख सकूँ की आखिर दरवाजा कौन खोलता है, दरवाजा एक लड़की ने खोला जो करुणा को जानती थी| मुझे सुकून हो गया की करुणा यहाँ सुरक्षित रहेगी और मैं थक कर चूर घर लौट आया| नहा-धो कर खाना खाया और बिस्तर पर पड़ते ही सो गया, सुबह मैं ठीक 5 बजे उठा घर साफ़ कर के मैं आनंद विहार बस स्टैंड पहुँचा|



मेरे पहुँचते ही माँ-पिताजी की बस आ गई, मैंने सामान उतारा और माँ-पिताजी को घर ले आया| घर आ कर पिताजी ने काम की खबर ली, मैंने उन्हें सारे काम की रिपोर्ट दी और कुछ बिल वगैरह दिए| वहीं माँ ने मेरा हल-चाल पुछा, मेरा दिमाग अब करुणा की वजह से खराब हो चूका था क्योंकि उसने अभी तक मुझे फ़ोन नहीं किया था तो मैंने माँ से साफ़ शब्दों में कह दिया की अब से मैं दिल्ली से बाहर की कोई audit नहीं करूँगा| माँ ने जब इसका कारन पुछा तो मैंने कहा की मुझसे इतने दिन घर से बाहर नहीं रहा जाता, बाहर का खाना खा-खा कर मैं ऊब चूका हूँ! मेरी बात काफी हद्द तक सच थी इसलिए मुझे आज आधा झूठ बोलने पर ग्लानि नहीं हो रही थी| नाश्ता कर के मैं और पिताजी साइट पर निकल गए, घर चकाचक साफ़ था तो माँ को सिर्फ खाना बनाना था| दोपहर को करुणा ने मुझे फ़ोन किया और बड़े ही उखड़े हुए ढँग से बात की, ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी को दिखाने के लिए फ़ोन कर रही हो! मैंने उससे पुछा की सब ठीक तो है, पर उसने कोई उपयुक्त जवाब नहीं दिया और “थोड़ी देर बाद फ़ोन करती हूँ” कह कर फ़ोन काट दिया| शाम होने को आई थी और करुणा ने अभी तक फ़ोन नहीं किया था तो मैंने ही उसे फ़ोन कर के मिलने के बारे में पुछा तो करुणा ने; "काम है" कह कर मना कर दिया| मैंने कुछ नहीं कहा और पिताजी के साथ साइट पर ही रहा| मैंने चुप चाप करुणा के लिए हॉस्टल ढूँढने शुरू कर दिए, 2-3 जगह के पते ले कर मैंने रात को करुणा को मैसेज कर के बताया| जवाब में करुणा ने मुझे कल लंच के समय चलने को कहा, मैंने इसके आगे उससे और कोई बात नहीं की|

अगले दिन लंच के समय मैं साइट से गोल हुआ और करुणा के साथ उन हॉस्टलों के चक्कर लगाए, एक सरकारी हॉस्टल था जिसे local guardian की जर्रूरत थी और बाकी सब प्राइवेट होस्टल्स थे जिनकी फीस बहुत ज्यादा थी! हॉस्टल घूमने के समय हमारी बातें न के बराबर हुईं, करुणा कुछ बोल नहीं रही थी और मैं बस उसे हॉस्टल दिलवा कर अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा चाहता था| अगले दो-तीन दिन ऐसे ही चला, करुणा कभी-कभार मुझे कॉल करती और हमारी घंटों की बातें कुछ मिनट में खत्म हो जातीं| शाम को मिलने का उसका मन नहीं होता था तो मैंने वो समय उसके लिए खुद हॉस्टल ढूँढने में लगा दिया| उधर करुणा ने अपने अस्पताल की कुछ junior doctors से बात कर के उनके साथ उनके हॉस्टल में रहने का इंतजाम खुद बा खुद कर लिया|ये बात जब मुझे पता चली तो मैं चिंता मुक्त हो गया, अब तक करुणा मेरे प्रति उखड चुकी थी और मैं उसके उखड़ने के कारन से अनजान गुस्से से भरा बैठा था! करुणा ने अपनी उन्हीं junior doctors का group ज्वाइन कर लिया था, दो लड़कियाँ जिन में से एक केरला की थी, एक तमिल नाडु से थी और एक लड़का जो केरला से ही था| इन चारों का group मजबूत हो चूका था, ये लोग साथ खाते थे, साथ घुमते थे और साथ ही काम भी करते थे! मुझे अपने इस 'माल्टा' यानी मल्लू-तमिल ग्रुप की जानकारी करुणा ने खुद दी थी और कुछ इस तरह से दी थी की मैं जल भून कर राख हो जाऊँ! मैं जान गया था की करुणा ने मेरी जगह अपने इस नए group को दे दी है, पर मैं बस ये जानना चाहता था की आखिर उसने ऐसा किया क्यों? क्यों वो मुझे इस तरह से दुःख दे रही है, जबकि मैंने कुछ गलत किया भी नहीं?! मेरा दिल बस एक ही सवाल का जवाब चाहता था, हमारे इस दोस्ती क रिश्ते को खत्म किया जाए या फिर छोड़ दिया जाए?



हफ्ता-दस दिन बीता होगा की एक रात नौ बजे मुझे करुणा का कॉल आया, उसकी आवाज सुन मैं समझ गया की उसने पी हुई है और जब उसने बोलना शुरू किया तो मैं हैरान रह गया;

करुणा: मैं आज.....सुकुमार ...के साथ बियर पिया....आपको पता कहाँ पिया? अपना हॉस्टल का रूम में...वो भी दरवाजा बंद कर के....बस हम दोनों....!

सुकुमार वही मलयाली लड़का था जो करुणा के माल्टा group का हिस्सा था| करुणा ने मेरा सबसे पहला कायदा तोडा था और ये मुझे कतई बर्दाश्त नहीं था, मैं फ़ोन ले कर अपने घर की छत पर आया और उसे डाँटते हुए बोला;

मैं: आपको जो करना है वो करो, बस मुझे फ़ोन कर के ये सब मत बताओ!

इतना कह कर मैं फ़ोन काटने को हुआ तो करुणा मुझे जलाने के लिए बोली;

करुणा: सुकुमार मुझे अपना फ़ोन पर porn भी दिखाया!

ये सुन कर मेरी किलस गई और मैंने गुस्से में आ कर फ़ोन काट दिया| करुणा को चैन नहीं पड़ा और उसने मुझे कई बार फ़ोन किया पर मैंने फ़ोन नहीं उठाया| मेरे दिमाग में ऊल-जुलूल ख्याल आने लगे पर मेरा दिल ये नहीं स्वीकार रहा था की करुणा ऐसा कर सकती है! कुछ देर तक तो मैं अपने दिमाग के ख्यालों से लड़ता रहा पर फिर मैंने लड़ना छोड़ दिया और सोचा की उसकी जिंदगी है, जैसे जीना चाहे जीए कौन सा मैं उसे प्यार करता था जो मुझे फर्क पड़ेगा!



कुछ दिन बीते और करुणा ने एक रात मुझे फ़ोन कर के कहा की वो मेरे घर के पास वाले बजार में है, चूँकि हम बहुत दिनों से मिले नहीं थे इसलिए उसने मुझे वहाँ मिलने बुलाया| मैंने घडी देखि तो रात के सवा नौ हुए थे, मैंने उससे पुछा की वो अकेली इतनी दूर क्यों आई तो उसने बताया की सुकुमार उसके साथ है! उस लड़के का नाम सुनते ही मैंने आने से मना कर दिया और फ़ोन स्विच ऑफ कर दिया| मुझे करुणा का ये रवैया चुभने लगने लगा था क्योंकि धीरे-धीरे मैं उसे ले कर थोड़ा possessive हो गया था| जैसे करुणा शुरुआत में किसी के मुझे देखने से जलने लगती थी, वैसे ही अब मैं उसके सुकुमार के साथ होने से जलने लगा था| कुछ लोगों में ये फितरत होती है की वो अपने दोस्तों को, अपने प्रिय जनों को दूसरों के साथ बाटना नहीं चाहते थे, मैं और करुणा वैसे ही थे!

जाने कब ये चुभन दर्द में तब्दील हो गई पता ही नहीं चला, मैं अकेला छत पर टहलने लगा और सोचने लगा की आखिर करुणा के उखड़ जाने की वजह क्या है? मैंने हर वो गलत/गन्दी वजह सोच ली जिस कारन करुणा का उखड़ना बनता था पर उनमें से कोई भी वजह यहाँ उपयुक्त नहीं बैठ रही थी! कुछ देर बाद दिषु ने पिताजी वाले फ़ोन पर कॉल किया और मुझसे बात करवाने को कहा| मेरी आवाज सुन कर दिषु जान गया की मैं म्यूसियत की राह पर चल रहा हूँ, उसने मुझे सहारा दिया और मेरी उदासी कारन जाना| मैंने उसे सारी बात बताई बस honeymoon suite, नकली पति-पत्नी बन कर होटल में रुकना और करुणा का sex करने के लिए कहने की बात नहीं बताई!

दिषु: यार तेरी गलती क्या है इस सब में? तू तो उसकी बस मदद कर रहा था, फिर तूने तो नहीं कहा था की तू उसे विजय नगर ले कर जायेगा? उसी ने कहा न की आप नहीं जाओगे तो मैं नहीं जाऊँगी? ऊपर से उसकी बहन जो तुझे इतने अच्छे से जानती है वो भी तुझे ही हड़का रही है! छोड़ इस लड़की को और खुद को संभाल, पहले जैसे मत बन जाइओ!

दिषु की बात सही थी, जिससे प्यार किया (भौजी) जब उसने मुझे मरने को छोड़ दिया तो ये (करुणा) तो फिरभी एक दोस्त थी| कल तक अनजान थी, फिर दोस्त बनी आज फिर अनजान हो गई!



बस एक ही दिक्कत थी, मैं करुणा से किये अपने वादे से बँधा था की मैं ये दोस्ती कभी नहीं तोडूँगा, लेकिन दिमाग ने मेरे किये हुए वादे में ही खामी ढूँढ ली! मैं उससे दोस्ती नहीं तोड़ सकता पर अगर वो ही पहले ये दोस्ती तोड़ दे तो मैं अपने किये वादे से आजाद हो जाता| पर ये होगा कैसे मुझे बस यही सोचना था|

कई बार इंसान को अपनी की गलतियों का एहसास देर-सावेर होता है, कुछ-कुछ वैसा ही करुणा को भी एहसास हुआ और उसने दो दिन बाद मुझे फ़ोन किया| मैंने जब फ़ोन उठाया तो उसने मुझसे शाम को मिलने की "इल्तिज़ा" की, उसकी आवाज में ग्लानि थी जिस कारन मैंने उस से शाम को मिलने का समय और जगह तय की|



आज तक हमेशा मैं ही समय पर पहुँच कर उसका इन्तेजा करता था, शाम को मैं करुणा की बताई जगह पर पहुँचा तो वो पहले से ही मेरा इंतजार कर रही थी! उसने मुझे बैठने को कहा और अपने उखड़े व्यवहार के लिए माफ़ी माँगते हुए कारण बताने लगी;

करुणा: I'm sorry मिट्टू! मैं आपके साथ बहुत rude behave किया!

करुणा ने नजरें झुकाते हुए कहा|

करुणा: Actually मेरा मम्मा मुझे फ़ोन कर के आपसे दूर रहना बोला!

करुणा की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी की मैं एकदम से बोल पड़ा;

मैं: अच्छा? तो उन्होंने ये बोला की मुझे छोड़ कर दूसरे लड़के के साथ घूमो? Or maybe he's a मलयाली इसलिए आपकी मम्मा को कोई प्रॉब्लम नहीं था?

मेरे आरोप सुन कर करुणा ने अपनी सफाई देनी शुरू कर दी;

करुणा: नहीं-नहीं मिट्टू ऐसे नहीं! मैं....

करुणा कुछ बोलती उससे पहले ही मैं पुनः बीच में बोल पड़ा;

मैं: Oh really!

मैंने व्यंगपूर्ण ढँग से कहा|

मैं: तो वो मुझे फ़ोन कर के बताना की आप कमरे में अकेले बैठे उस "आदमी" के साथ बियर पी रहे हो, porn देख रहे हो, घूम-फिर रहे हो वो सब क्या था?

ये सुन आकर करुणा का सर शर्म से झुक गया|

मैं: वो सब आप मुझे जलाने के लिए कह रहे थे, पर क्यों? आपकी मम्मा ने बोला की जा कर मिट्टू को जलाओ?!

करुणा: मिट्टू I swear मैंने कुछ गलत नहीं किया, उस वक़्त मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था! मैं मम्मा का बात सुन कर आपको अपना ये situation के लिए responsible समझा, इसलिए मैं....

करुणा की बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने आखरी बार उसकी बात बीच में काटते हुए कहा;

मैं: मैंने ऐसा क्या कर दिया की मैं आपकी इस situation के लिए responsible बन गया? क्या गलत किया मैंने? आप ने बोला की मैं आप के साथ श्री विजय नगर जाऊँ, मैंने तो नहीं कहा था की मैं आपके साथ जाऊँ?

करुणा: I know मिट्टू…. but....I'm sorry.....! मेरा मन में ऐसा कुछ नहीं ता.....!

आज करुणा की आवाज में, उसकी बातों में वो प्यार, वो सच्चाई, वो जूनून नहीं था जो पहले हुआ करता था| मैंने जानबूझ कर उसकी बातों को और आगे नहीं बढ़ने दिया, क्योंकि करुणा की बातों पर मुझे अब विश्वास नहीं हो रहा था, उसका झूठ सुनने से अच्छा था की मैं घर चला जाऊँ|



उस दिन मुझे एक बात समझ आई की जो रिश्ते जल्दबाजी में बनते हैं वो ज्यादा देर नहीं टिकते!




खैर उस दिन से हमारे बीच दूरियाँ आ गई, हमारा मिलना-बातें करना सिमट कर रह गया| मेरा दिल मुझे करुणा का उसके परिवार से दूर रहने के लिए दोषी मानता था, मैंने भगवान से प्रार्थना करनी शुरू कर दी की उसे कोई दूसरी सरकारी नौकरी मिल जाए और उसका परिवार उसे फिर से अपना ले| मुझे क्या पता की भगवान इतनी जल्दी मेरी बात सुन लेंगे, एक दिन करुणा का मुझे फ़ोन आया की उसने केरला में नौकरी का एक फॉर्म भरा था और उसे वहाँ एक सरकारी नौकरी मिल गई है| वाक़ई में नौकरी के नाम पर करुणा की किस्मत बहुत तेज थी, यहाँ लोगों को एक नौकरी नहीं मिलती और वहाँ उसे एक छूटते ही दूसरे मिल गई थी!
ये खबर सुन कर मैंने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया और प्रर्थना करने लगा की करुणा का परिवार भी उसे माफ़ कर दे तथा उसे प्रेमपूर्वक अपना ले| उधर करुणा ने खुद मुझे शाम को मिलने को बुलाया, मैं समय से उससे मिलने पहुँचा तो पता चला की उसकी बहन उसके हॉस्पिटल में आई हुई है| अब मुझे उसकी बहन के जाने तक इंतजार करना था, करीब आधे घंटे बाद उसकी बहन गई और तब करुणा नीचे उतर कर मेरे पास आई| उसने मुझे बताया की उसकी बहन ने करुणा से हाथ जोड़कर माफ़ी माँगी है और कहा है की करुणा उससे पैसे ले कर केरला जाए तथा ये नौकरी join कर ले| साफ़ था की उसकी बहन चाहती थी की करुणा यहाँ से चली जाए ताकि उसकी खुद की इज्जत बनी रहे| करुणा ने केरला जाने के लिए हाँ कह दिया था और ये जान कर मुझे थोड़ा बहुत दुःख हो रहा था, पर फिर मन ने कहा की इसी में करुणा की भलाई है| बस यही सोच कर मैंने अपने दुःख को दबा दिया, वहीं दिल्ली छोड़ने तथा मुझे छोड़ने के नाम से करुणा काफी दुखी थी और रोने लगी थी|



करुणा की flight परसों की थी जिसकी टिकट मैंने ही अपने पैसों से बुक की थी क्योंकि फिलहाल करुणा के पास पैसे नहीं थे, तथा अपनी अकड़ दिखाने के लिए वो अपनी बहन से पैसे लेना नहीं चाहती थी| करुणा ने कहा की कल का पूरा दिन वो मेरे साथ रहेगी और परसों मैं ही उसे airport छोड़कर आऊँ| उसकी इस इच्छा का मैंने ख़ुशी-ख़ुशी मान रखा और अगला पूरा दिन उसके साथ रहा, सुबह हम दोनों चर्च गए जहाँ उसने मुझे अपने चर्च के father से मिलवाया| वो जानते थे की अभी तक मैंने करुणा की कितनी मदद की है, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और मैंने God से प्रार्थना की कि वो करुणा का करेला में ध्यान रखें| फिर हम ने एक फिल्म देखि, उसके बाद lunch किया और शाम को मैंने करुणा को उसके हॉस्टल छोड़ा|

फिर आया वो दिन जब करुणा हमेशा के लिए केरला जाने वाली थी, मैं सुबह जल्दी उसके हॉस्टल पहुँचा ताकि आखरी बार उसके साथ कुछ समय और व्यतीत कर पाऊँ| जाने से पहले मैंने करुणा को आखरीबार दिल्ली के छोले-भठूरे खिलाये और फिर उसका समान ले कर मैं एयरपोर्ट पहुँचा| एयरपोर्ट पहुँचने तक के रास्ते में मैं भावुक हो चूका था, मेरा नाजुक दिल करुणा को जाने नहीं देना चाहता था! ये तो मन था जो करुणा के अच्छे जीवन का बहना दे कर मेरे दिल को संभाल रहा था पर वो भी कब तक दिल को संभालता| एयरपोर्ट पहुँच कर करुणा के अंदर जाने का समय आ गया था, इस समय हम दोनों की आँखें नम हो चलीं थीं| मैंने करुणा को एकदम से अपने सीने से लगा लिया और मैं फफक कर रो पड़ा| आज पहलीबार मैंने करुणा को इस कदर छुआ था, वो भी तब जब हम हमेशा के लिए दूर हो रहे थे| मेरा रोना देख करुणा से भी नहीं रुका गया और वो भी रोने लगी| पिछले महीनों में भले ही हमारे बीच दरार आ गई हो पर करुणा को इस कदर खुद से दूर जाते हुए मुझसे नहीं देखा जा रहा था|



मैंने एक बार करुणा को फिर से उसकी बेहतरी के लिए बनाये अपने rules याद दिलाये और उसे अपना ध्यान रखने को कहा| करुणा ने सर हाँ में हिला कर उन rules को अपने पल्ले बाँधा, तब मैं नहीं जानता था की उस duffer के दिमाग में उसके फायदे की बातें कभी नहीं टिकतीं!

खैर करुणा एयरपोर्ट के भीतर गई तो मैं फ़ौरन वहाँ से घर की ओर चल दिया, वहाँ एक मिनट और रुकता तो फिर रो पड़ता| मेरे दिमाग ने मुझे वापस पुराना शराब पीने वाला मानु बनने की राह दिखाई जिस पर मैं हँसी-ख़ुशी चलने को तैयार था| मैं और मेरी शराब यही रह गया था मेरे पास अब!
बहुत ही भावुक क्षण, लेकिन dear, किसी के लिए इतना अच्छा बनना भी सही नही होता, दुनिया आपके किए हुए अच्छे को 2 दिन में भुला देती है।
 

Lib am

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बुद्धू लड़के :slap: ...................पता भी है तेरे गुरु जी बीमार हैं..............माँ की तबियत भी ठीक नहीं..............मगर फिर भी हम सबके लिए ठंड में बीमार होते हुए अपडेट लिख रहे हैं.................मैंने आराम करने को कहा तो कहते हैं की एक दिन सबका दिल तोड़ चूका हूँ..................दुबारा नहीं तोडना चाहता :verysad:
तो आप उनका ख्याल क्यों नहीं रख रही हो, चलो जल्दी से उनको ठीक करो।
 

montumass

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मानु भाई, नेहा को माफी मिली, यह पढकर आत्मा तृप्त हो गई ।
कहानी के अंत का गम और Happy Ending की खुशी के मिलेजुले भाव के साथ मै आपको अपनी कहानी हमसे साझा करने के लिए धन्यवाद देता हूं ।
🙏🙏
 

Kala Nag

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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 17 (2)


अब तक अपने पढ़ा:


बहरहाल, दिन बीत रहे थे पर नेहा और मेरे बीच बनी दूरी वैसी की वैसी थी| नेहा मेरे नज़दीक आने की बहुत कोशिश करती मगर मैं उससे दूर ही रहता| मैं नेहा को अपने जीवन से निकाल चूका था और उसे फिर से अपने जीवन में आने देना नहीं चाहता था| मुझसे...एक पिता से पुनः प्यार पाने की लालसा नेहा के भीतर अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी थी! फिर एक समय आया जब नेहा ने हार मान ली और वो इस कदर टूट गई थी की किसी के लिए भी उसे सँभालना नामुमकिन था|


अब आगे:


कुछ
दिन बीते, सुबह का समय था की तभी दिषु का फ़ोन आया, उसने मुझे बताया की एक ऑडिट निपटाने के लिए उसे मेरी मदद चाहिए थी| दरअसल हम दोनों ने इस कंपनी की ऑडिट पर सालों पहले काम किया था, लेकिन कंपनी के एकाउंट्स में कुछ घपला हुआ जिस कारण पुराने सारे अकाउंट फिर से चेक करने थे| समस्या ये थी की ये कपनी थी देहरादून की और कंपनी के सारे लेखा-जोखा रखे थे एक ऐसे गॉंव में जहाँ जाना बड़ा दुर्गम कार्य था| इस गॉंव में लाइट क्या, टेलीफोन के नेटवर्क तक नहीं आते थे| हाँ, कभी-कभी वो बटन वाले फ़ोन में एयरटेल वाला सिम कभी-कभी नेटवर्क पकड़ लेता था| ऑडिट थी 6 दिन की और इतने दिन बिना फ़ोन के रहना मेरी माँ के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक था|

उन दिनों मैं पिताजी का ठेकेदारी का काम बंद कर चूका था| मेरा जूतों का काम थोड़ा मंदा हो चूका था इसलिए मैं इस ऑडिट के मौके को छोड़ना नहीं चाहता था| जब मैंने माँ से ऑडिट के बारे में सब बताया तो माँ को चिंता हुई; "बेटा, इतने दिन बिना तुझसे फ़ोन पर बात किये मेरा दिल कैसे मानेगा?" माँ की चिंता जायज थी परन्तु मेरा जाना भी बहुत जर्रूरी था| मैंने माँ को प्यार से समझा-बुझा कर मना लिया और फटाफट अपने कपड़े पैक कर निकल गया|



जब मैं घर से निकला तब बच्चे स्कूल में थे और जब बच्चे स्कूल से लौटे तथा उन्हें पता चला की मैं लगभग 1 हफ्ते के लिए बाहर गया हूँ, वो भी ऐसी जगह जहाँ फ़ोन का नेटवर्क नहीं मिलता तो सबसे ज्यादा स्तुति नाराज़ हुई! स्तुति ने फौरन मुझे फ़ोन किया और मुझे फ़ोन पर ही डाँटने लगी; "पपई! आप मुझे बिना बताये क्यों गए? वो भी ऐसी जगह जहाँ आपका फ़ोन नहीं मिलेगा?! अब मुझे कौन सुबह-सुबह प्यारी देगा? मैं किससे बात करुँगी? अगर मुझे आपसे कुछ बात करनी हो तो मैं कैसे फ़ोन करुँगी?" स्तुति अपने प्यारे से गुस्से में मुझसे सवाल पे सवाल पूछे जा रही थी और मुझे मेरी बिटिया के इस रूप पर प्यार आ रहा था|

जब स्तुति ने साँस लेने के लिए अपने सवालों पर ब्रेक लगाई तो मैं स्तुति को प्यार से समझाते हुए बोला; "बेटा, मैं घूमने नहीं आया हूँ, मैं आपके दिषु चाचू की मदद करने के लिए आया हूँ| यहाँ पर नेटवर्क नहीं मिलते इसलिए हमारी फ़ोन पर बात नहीं हो सकती, लेकिन ये तो बस कुछ ही दिनों की बात है| मैं जल्दी से काम निपटा कर घर लौटा आऊँगा|" अब मेरी छोटी बिटिया रानी का गुस्सा बिलकुल अपनी माँ जैसा था इसलिए स्तुति मुझसे रूठ गई और बोली; "पपई, मैं आपसे बात नहीं करुँगी! कट्टी!!!" इतना कह स्तुति ने फ़ोन अपनी मम्मी को दे दिया| मैं संगीता से कुछ कहूँ उसके पहले ही संगीता ने अपने गुस्से में फ़ोन काट दिया|



दिषु मेरे साथ बैठा था और उसने हम बाप-बेटी की सारी बातें सुनी थी इसलिए वो मेरी दशा पर दाँत फाड़ कर हँसे जा रहा था! वहीं मुझे भी मेरी बिटिया के मुझसे यूँ रूठ जाने पर बहुत हँसी आ रही थी| मुझे यूँ हँसते हुए देख दिषु मेरी पीठ थपथपाते हुए बोला; "ऐसे ही हँसता रहा कर!" दिषु की कही बात से मेरे चेहरे से हँसी गायब हो गई थी और मैं एक बार फिर से खामोश हो गया था|

दरअसल नेहा और मेरे बीच जो दूरियाँ आई थीं, दिषु उनसे अवगत था| हमेशा मुझे ज्ञान देने वाला मेरा भाई जैसा दोस्त, नेहा के कहे उन ज़हरीले शब्दों के बारे में जानकार भी खामोश था| मानो जैसे उसके पास मुझे ज्ञान देने के लिए बचा ही नहीं था! वो बस मुझे हँसाने-बुलाने के लिए कोई न कोई तिगड़म लड़ाया करता था| ये ऑडिट का ट्रिप भी उसने इसी के लिए प्लान किया था ताकि घर से दूर रह कर मैं थोड़ा खुश रहूँ|



उधर घर पर, स्तुति के मुझसे नाराज़ होने पर आयुष और नेहा अपनी छोटी बहन को लाड कर समझाने में लगे थे की वो इस तरह मुझसे नाराज़ न हो| "तुझे पापा जी से नाराज़ होना है तो हो जा, लेकिन अगर पापा जी तुझसे नाराज़ हो गए न तो तू उन्हें कभी मना नहीं पायेगी!" नेहा भारीमन से भावुक हो कर बोली| नेहा की बात से उसका दर्द छलक रहा था और अपनी दिद्दा का दर्द देख स्तुति एकदम से भावुक हो गई थी! ऐसा लगता था मानो उस पल स्तुति ने मेरे नाराज़ होने और उससे कभी बता न करने की कल्पना कर ली हो!

अपनी दीदी को यूँ हार मानते देख आयुष ने पहले अपनी दीदी को सँभाला, फिर स्तुति का ध्यान भटकाने के लिए आयुष ने उस दिन की घटना का जिक्र किया जब मैं दोनों (नेहा-आयुष) से नाराज़ हो गया था; "एक बार मैं और दीदी, पापा जी से लड़ पड़े थे क्योंकि उन्होंने हमें बाहर घुमाने का प्लान अचानक कैंसिल कर दिया था| तब गुस्से में आ कर हमने पापा जी से बहुत गंदे तरीके से बात की और उनसे बात करनी बंद कर दी| लेकिन फिर दादी जी ने हमें बताया की साइट पर सारा काम पापा जी को अकेला सँभालना था, ऊपर से मैंने पापा जी के फ़ोन की बैटरी गेम खेलने के चक्कर में खत्म कर दी थी इसलिए पापा जी हमें फ़ोन कर के कुछ बता नहीं पाए| सारा सच जानकार हमें बहुत दुःख हुआ की हमने पापा जी को इतना गलत समझा| मैंने और दीदी ने पापा जी से तीन दिन तक माफ़ी माँगी पर पापा जी ने हमें माफ़ नहीं किया क्योंकि हम अपनी गलती पापा जी के सामने स्वीकारे बिना ही उनसे माफ़ी माँग रहे थे!

फिर मैंने और दीदी ने अपनी सारी हिम्मत बटोरी और कान पकड़ कर पापा जी के सामने अपनी गलती स्वीकारी| तब जा कर पापा जी ने हमें माफ़ किया और हमें गोदी ले कर खूब लाड-प्यार किया| उस दिन से हम कभी पापा जी से नाराज़ नहीं होते थे, जब भी हमें कुछ बुरा लगता तो हम सीधा उनसे बात करते थे और पापा जी हमें समझाते तथा हमें लाड-प्यार कर या बाहर से खिला-पिला कर खुश कर देते|



आपको पता है स्तुति, पापा जी हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं ताकि वो हमारी जर्रूरतें, हमारी सारी खुशियाँ पूरी कर सकें| हाँ, कभी-कभी वो काम में बहुत व्यस्त हो जाते हैं और हमें ज्यादा समय नहीं दे पाते लेकिन वो हमेशा तो व्यस्त नहीं रहते न?! हमें चाहिए की हम पापा जी की मजबूरियाँ समझें, वो हमारे लिए जो कुर्बानियाँ देते हैं उन्हें समझें और पापा जी की कदर करें| यूँ छोटी-छोटी बातों पर हमें पापा जी से नाराज़ नहीं होना चाहिए, इससे उनका दिल बहुत दुखता है|" आज आयुष ने वयस्कों जैसी बात कर अपनी छोटी बहन को एक पिता की जिम्मेदारियों से बारे में समझाया था| वहीं, स्तुति को अपने बड़े भैया की बात अच्छे से समझ आ गई थी और उसे अब अपने किये गुस्से पर पछतावा हो रहा था|



दूसरी तरफ नेहा, अपने छोटे भाई की बातें सुन कर पछता रही थी! आयुष, नेहा से 5 साल छोटा था परन्तु वो फिर भी मुझे अच्छे से समझता था, जबकि नेहा सबसे बड़ी हो कर भी मुझे हमेशा गलत ही समझती रही|

आयुष की बातों से नेहा की आँखों से पछतावे के आँसूँ बह निकले| स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को यूँ रोते हुए देखा तो वो एकदम से अपनी दिद्दा से लिपट गई और नेहा को दिलासे देते हुए बोली; "रोओ मत दिद्दा! सब ठीक हो जायेगा!" स्तुति ने नेहा को हिम्मत देनी चाही मगर नेहा हिम्मत हार चुकी थी इसलिए उसके लिए खुद को सँभालना मुश्किल था| स्तुति ने अपने बड़े भैया को भी इशारा कर नेहा के गले लगने को कहा| दोनों भाई बहन ने नेहा को अपनी बाहों में जकड़ लिया और नेहा को हिम्मत देने लगे|



आयुष और स्तुति के आलिंगन से नेहा को कुछ हिम्मत मिली और उसने खुद को थोड़ा सँभाला| अपनी दीदी का मन खुश करने के लिए आयुष ने नेहा को पढ़ाने के लिए कहा, वहीं स्तुति ने मुझे वीडियो कॉल कर दिया| जैसे ही मैंने फ़ोन उठाया वैसे ही स्तुति ने फ़ोन टेबल पर रख दिया और कान पकड़ कर उठक-बैठक करने लगी! “बेटा, ये क्या कर रहे हो आप?” मैंने स्तुति को रोकते हुए पुछा तो स्तुति एकदम से भावुक हो गई और बोली; " पापा जी, छोलि (sorry)!!! मुझे माफ़ कर दो, मैंने आपको गुच्छा किया! मैं...मुझे नहीं पता था की आप काम करने के लिए इतने दूर गए हो| मुझे माफ़ कर दो पापा जी! मुझसे नालाज़ (नाराज़) नहीं होना!” ये कहते हुए स्तुति की आँखें भर आईं थीं और उसका गला भारी हो गया था|

"बेटा, किसने कहा मैं आपसे नाराज़ हूँ?! मैं कभी अपनी प्यारु बेटु से नाराज़ हो सकता हूँ?! मेरी एक ही तो छोटी सी प्यारी सी बेटी है!" मैंने स्तुति को लाड कर हिम्मत दी और रोने नहीं दिया|

"आप मुझसे नालाज़ नहीं?" स्तुति अपने मन की संतुष्टि के लिए तुतलाते हुए पूछने लगी|

"बिलकुल नहीं बेटा! आप मुझे इतनी प्यारी करते हो तो अगर आपने थोड़ा सा गुच्छा कर दिया तो क्या हुआ? जो प्यार करता है, वही तो हक़ जताता है और वही गुच्छा भी करता है|" मैंने स्तुति को बहलाते हुए थोड़ा तुतला कर कहा तो स्तुति को इत्मीनान हुआ की मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ| स्तुति अब फिर से खिलखिलाने लगी थी और मैं भी अपनी बिटिया को खिलखिलाते हुए देख मैं बहुत खुश था|



खैर, हम दोनों दोस्त अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे और वहाँ से शुरू हुई एक दिलचस्प यात्रा! बस स्टैंड से गॉंव जाने का रास्ता एक ट्रेक (trek) था! मुझे ट्रैकिंग (trekking) करना बहुत पसंद था इसलिए इस ट्रेक के लिए मैं अतिउत्साहित था| कच्चे रास्तों, जंगल और एक झरने को पार कर हम आखिर उस गॉंव पहुँच ही गए| पूरा रास्ता दिषु बस ये ही शिकायत करता रहा की ये रास्ता कितना जोखम भरा और दुर्गम है! वहीं मैं बस ये शिकायत कर रहा था की; "बहनचोद ऑफिस के डाक्यूमेंट्स ऐसी जगह कौन रखता है?!"

"कंपनी का मालिक भोसड़ी का! साले मादरचोद ने सारे रिकार्ड्स और डाक्यूमेंट्स अपने पुश्तैनी घर में रखे हैं|” दिषु गुस्से से बिलबिलाते हुए बोला|



ट्रेक पूरा कर ऊपर पहुँचते-पहुँचते हमें शाम के 6 बज गए थे| यहाँ हमारे रहने के लिए एक ऑफिस में व्यवस्था की गई थी इसलिए नहा-धो कर हमने खाना खाया और 8 बजते-बजते लेट गए| पहाड़ी इलाका था इसलिए हमें ठंड लगने लगी थी| ओढ़ने के लिए हमारे पास दो-दो कंबल थे मगर हम जानते थे की ज्यों-ज्यों रात बढ़ेगी ठंड भी बढ़ेगी! "यार आज रात तो कुक्कड़ बनना तय है हमारा!" मैं चिंतित हो कर बोला| मेरी बात सुन दिषु ने अपने बैग से ऐसी चीज़ निकाली जिसे देखते ही मेरी सारी ठंड उड़न छू हो गई!

‘रम’ (RUM) दो अक्षर के इस जादूई शब्द ने बिना पिए ही हमारे शरीर में गर्मी भरनी शुरू कर दी थी| "शाब्बाश!" मैं ख़ुशी से दिषु की पीठ थपथपाते हुए बोला| बस फिर क्या था हम दोनों ने 2-2 नीट (neat) पेग खींचे और लेट गए| रम की गर्माहट के कारण हमें ठंड नहीं लगी और हम चैन की नींद सो गए| अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर हमने काम शुरू किया| हमारे खाने-पीने का इंतज़ाम पहले से हो रखा था इसलिए हमें कोई चिंता नहीं थी| इसी के साथ आज रात में सोते समय दिषु ने एक और चीज़ का प्रबंध कर दिया था| रात को सोते समय साले ने हमें खाना बना कर देने वाले खानसामे से हशीश का जुगाड़ कर लिया था! "भोसड़ी के, ये कहाँ से लाया तू?" मैंने हैरान होते हुए पुछा तो दिषु ने मुझे सच बताया की वो यहाँ आने से पहले सारी प्लानिंग कर के आया था|



हशीश हमने ले तो ली मगर दिषु ने आज तक सिगरेट नहीं पी थी! वहीं मैंने सिगरेट तो पी थी मगर मैंने कभी इस तरह का ड्रग्स नहीं लिया था| कुछ नया काण्ड करने का जोश हम दोनों दोस्तों में भरपूर था इसलिए कमर कस कर हमने सोच लिया की आज तो हम ये नया नशा ट्राय कर के रहेंगे|



जब मैं छोटा था तब मैंने कुछ लड़कों को गॉंव में चरस आदि पीते हुए देखा था इसलिए हशीश को सिगरेट में भरने के लिए जो गतिविधि करनी होती है मैं उससे रूबरू था| हम दोनों अनाड़ी नशेड़ी अपना-अपना दिमाग लगा कर हशीश के साथ प्रयोग करने लगे| आधा घंटा लगा हमें एक सिगरेट भरने में, जिसमें हमने अनजाने में हमने हशीश की मात्रा ज्यादा कर दी थी|



सिगरेट तैयार हुई तो दिषु ने मुझे पहले पीने को कहा ताकि मैं उसे सिगरेट पीना सीखा सकूँ| मैंने भी चौधरी बनते हुए दिषु को एक शिक्षक की तरह अच्छे से समझाया की उसे सिगरेट का पहला कश कैसे खींचना है|

सिगरेट पीने का सिद्धांत मैं दिषु को सीखा चूका था, अब मुझे उसे सिगरेट का पहला कश खींच कर दिखाना था| सिगरेट जला कर मैंने पहला कश जानबूझ कर छोटा खींचा ताकि कहीं मुझे खाँसी न आ जाए और दिषु के सामने मेरी किरकिरी न हो जाये| पहला कश खींचने के बाद मुझे कुछ महसूस नहीं हुआ, ऐसा लगा मनो मैं कोई साधारण सिगरेट पी रहा हूँ| हाँ सिगरेट की महक अलग थी और मुझे ये बहुत अच्छी भी लग रही थी|



फिर बारी आई दिषु की, जैसे ही उसने पहल कश खींचा उसे जोर की खाँसी आ गई! दिषु को बुरी तरह खाँसते हुए देख मुझे हँसी आ गई और मैं अपना पेट पकड़ कर हँसने लगा| "बहनचोद! क्या है ये?! साला गले में जा कर ऐसी लगी की खांसी बंद नहीं हो रही मेरी! तू ही पी!" दिषु गस्से में बोला और सिगरेट मुझे दे दी| मैंने दिषु को सिखाया की उसे छोटे-छोटे कश लेने है और शुरू-शुरू में धुआँ गले से उतारना नहीं बल्कि नाक से निकालना है| जब वो नाक से निकालना सीख जाए तब ही धुएँ को गले से नीचे उतार कर रोकना है|

इस बार जब दिषु ने कश खींचा तो उसे खाँसी नहीं आई| लेकिन उसे हशीश के नशे का पता ही नहीं चला! "साला चूतिया कट गया अपना, इसमें तो साले कोई नशा ही नहीं है!" दिषु मुझे सिगरेट वापस देते हुए बोला| बात तो दिषु की सही थी, आधी सिगरेट खत्म हो गई थी मगर नशा हम दोनों को महसूस ही नहीं हो रहा था|



दिषु का मन सिगरेट से भर गया था इसलिए उसने रम के दो पेग बना दिए| बची हुई आधी सिगरेट मैंने पी कर खत्म की और रम का पेग एक ही साँस में खींच कर लेट गया| उधर दिषु ने भी मेरी देखा-देखि एक साँस में अपना पेग खत्म किया और लेट गया|



करीब आधे घंटे बाद दिषु बोला; "भाई, सिगरेट असर कर रही है यार! मेरा दिमाग भिन्नाने लगा है!" दिषु की बात सुन मैं ठहाका मार कर हँसने लगा| चूँकि मेरे जिस्म की नशे को झेलने की लिमिट थोड़ी ज्यादा थी इसलिए मुझे अभी केवल खुमारी चढ़नी शुरू हो रही थी|

करीब 10 मिनट तक हम दोनों बकचोदी करते हुए हँसते रहे| अब दिषु को आ रही थी नींद इसलिए वो तो हँसते-हँसते कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला| इधर हशीश का नशा धीरे-धीरे मेरे सर चढ़ने लगा था| मेरा दिमाग अब काम करना बंद कर चूका था इसलिए मैं कमरे की छत को टकटकी बाँधे देखे जा रहा था| चूँकि अभी दिमाग शांत था तो मन ने बोलना शुरू कर दिया था|



छत को घूरते हुए मुझे नेहा की तस्वीर नज़र आ रही थी| नेहा के बचपन का वो हिस्सा जो हम दोनों ने बाप-बेटी की तरह ख़ुशी-ख़ुशी काटा था, उस बचपन का हर एक दृश्य मैं छत पर किसी फिल्म की तरह देखता जा रहा था| इन प्यारभरे दिनों को याद कर मेरा मन प्रसन्नता से भर गया था|

कुछ देर बाद इन प्यारभरे दिनों की फिल्म खत्म हुई और नेहा के कहे वो कटु शब्द मुझे याद आये| वो पल मेरे लिए मेरी ज़िन्दगी का सबसे दुखद पल था, ऐसा पल जिसे में इतने महीनों में चाह कर भी नहीं भुला पाया था| उस दृश्य को याद कर दिल रोने लगा पर आँखों से आँसूँ का एक कतरा नहीं निकला, ऐसा लगता था मानो जैसे आँखों का सारा पानी ही मर गया हो! जब-जब मैंने घर में नेहा को देखा, मेरा दिल उन बातों को याद कर दुखता था| लेकिन इतना दर्द महसूस करने पर भी मेरे मन से नेहा के लिए कोई बद्दुआ नहीं निकली| मैं तो बस अपनी पीड़ा को दबाने की कोशिश करता रहता था ताकि कहीं मेरी माँ मेरा ये दर्द न देख लें! माँ और दुनिया के सामने खुद को सहेज के रखने के चक्कर में मेरे दिमाग ने मेरे दिल को एक कब्र में दफना दिया था| इस कब्र में कैद हो कर मेरी सारी भावनाएं मर गई थीं| नकारात्मक सोच ने मेरे मस्तिष्क को अपनी चपेट में इस कदर ले लिया था की मैं ये मानने लगा था की स्तुति और आयुष बड़े हो कर, नेहा की ही तरह मेरा दिल दुखायेंगे| इस दुःख से बचने के लिए मैंने अभी इ खुद को कठोर बनाने की तैयारी करनी शुरू कर दी थी, ताकि भविष्य में जब आयुष और स्तुति मेरा दिल दुखाएँ तो मुझे दुःख और अफ़सोस कम हो!



समय का पहिया घुमा और फिर नेहा के साथ वो हादसा हुआ| उस दिन नेहा के रोने की आवाज़ अब भी मेरे कानों में गूँज रही थी| मैंने अपने गुस्से में आ कर जो किया उसके लिए मुझे रत्ती भर पछतावा नहीं था| मुझे चिंता थी तो बस दो, पहली ये की नेहा कहीं उस हादसे के कारण कोई गलत कदम न उठा ले और दूसरी ये की मेरी बिटिया के दामन पर कोई कीचड़ न उछाले| शायद यही कारण था की मैंने आजतक दिषु से उस हादसे का ज़िक्र नहीं किया|

उस हादसे को याद करते हुए मुझे वो पल याद आया जब नेहा ने मुझसे माफ़ी माँगी थी| उस समय मैंने कैसे खुद को रोने से रोका था, ये बस मैं ही जानता हूँ| नेहा की आँखों में मुझे पछतावा दिख रहा था मगर नेहा अपने किये के लिए जो कारण बता रही थी वो मुझे बस बहाने लग रहे थे इसीलिए मैं नेहा को माफ़ नहीं कर पा रहा था|



लेकिन जब संगीता ने मुझसे स्टोर में वो सवाल पुछा की क्या मैं नेहा से नफरत करता हूँ, तब पता नहीं मेरे भीतर क्या बदलाव पैदा हुआ की मैं थोड़ा-थोड़ा पिघलने लगा| मेरे दिमाग ने मेरे दिल को जिस कब्र में बंद कर दिया था, वो कब्र जैसे किसी ने फिर से खोद दी थी और मेरा दिल फिर से बाहर निकलने को बेकरार हो रहा था|

ज्यों-ज्यों संगीता, नेहा को मेरे नज़दीक धकेलने की जुगत करने में लगी थी त्यों-त्यों मेरा गुस्सा कमजोर पड़ने लगा था| उस रात जब नेहा मुझसे लिपट कर सो रही थी और मैं दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गया था, तब नेहा की सिसकियों को सुन मेरा नाज़ुक सा दिल रोने लगा था मगर मेरे दिमाग में भरे गुस्से ने मुझे उस कमरे से उठ कर जाने पर विवश कर दिया था| अकेले कमरे में सोते हुए मेरा मन इस कदर बेचैन था की मैं बस करवटें बदले जा रहा था| मैं खुद को नेहा के सामने कठोर साबित तो करना चाहता था मगर मैं अपनी बिटिया का प्यारा सा दिल भी नहीं दुखाना चाहता था इसीलिए अगली रात से मैं नेहा के मुझसे लिपटने पर दूसरी तरफ करवट ले कर लेट जाया करता था| इससे मैं नेहा के सामने कठोर भी साबित होता था और नेहा का दिल भी नहीं दुखता था|

उस रात जब नेहा ने सारा खाना बनाया, तो अपनी बेटी के हाथ का बना खाना पहलीबार खा कर मेरा मन बहुत प्रसन्न था| मैं नेहा को गले लगा कर लाड करना चाहता था परन्तु मेरा क्रोध मुझे रोके था| लेकिन फिर भी अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए मैंने माँ के हाथों उसे शगुन दिलवा कर उसकी मेहनत को सफल बना दिया|

परन्तु मुझे संगीता की नेहा को मेरे नज़दीक करने की चालाकी समझ आ चुकी थी और मेरे अहम ने मुझे सचेत कर इस प्यार में न पड़ने को सचेत कर दिया था| यही कारण था की मैं जानबूझ कर काम करने के बहाने कंप्यूटर चालु किये बैठा था| मेरी इस बेरुखी के कारण मेरी बिटिया का दिल टूट गया और वो सिसकते हुए खुद कमरे से चली गई| अपनी बेटी का दिल दुखा कर मैं खुश नहीं था, मेरा अहम भले ही जीत गया हो मगर मेरा नेहा के प्रति प्यार हार गया था!

इतने दिनों से नेहा के सामने खुद को कठोर दिखाते-दिखाते मैं थक गया था| असल बात ये थी की नेहा को यूँ पछतावे की अग्नि में जलते हुए देख मैं भी तड़प रहा था मगर दिमाग में बसा मेरा गुस्सा मुझे फिर से पिघलने नहीं दे रहा था| नेहा ने बहुत बड़ी गलती की थी मगर एक पिता उसे इस गलती के लिए भी माफ़ करना चाहता था, लेकिन मेरा अहम मुझे बार-बार ये कह कर रोक लेता था की क्या होगा अगर कल को नेहा ने फिर कभी मेरा दिल इस कदर दुखाया तो?! अपनी बड़ी बेटी के कारण मैं एक बार टूट चूका था, वो तो स्तुति का प्यार था जिसने मुझे बिखरने से थाम लिया था, लेकिन दुबारा टूटने की मुझ में हिम्मत नहीं थी|


कमरे की छत को देखते हुए मेरे मन ने अपना रोना रो लिया था मगर इसका निष्कर्ष निकलने में मैं असफल रहा| वैसे भी नशे के कारण मेरा दिमाग काम करना बंद कर चूका था तो मैं क्या ही कोई निष्कर्ष निकालता| अन्तः सुबह के दो बजे धीरे-धीरे नशे के कारण मेरी आँखें बोझिल होती गईं और मैं गहरी नींद में सो गया|

अगली सुबह मुझे दिषु ने उठाया और मेरी हालत देख कर थोड़ा चिंतित होते हुए बोला; "तू सोया नहीं क्या रात भर?" दिषु के सवाल ने मुझे कल रात मेरे भीतर मचे अंतर्द्व्न्द की याद दिला दी इसलिए मैंने बस न में सर हिलाया और नहा-धोकर काम में लग गया| काम बहुत ज्यादा था, मनोरंजन के लिए न तो इंटरनेट था और न ही टीवी इसलिए हम 24 घंटों में से 18 घंटे काम कर रहे थे ताकि जल्दी से काम निपटा कर इस पहाड़ से नीचे उतरें और इंटरनेट चला सकें| वहीं यहाँ आ कर मुझे माँ की चिंता हो रही थी और मैं माँ से फ़ोन पर बात करने को बेचैन हो रहा था| माँ से अगर बात करनी थी तो मुझे 8 किलोमीटर का ट्रेक कर नीचे जाना पड़ता और ये ट्रेक कतई आसान नहीं था क्योंकि पूरा रास्ता कच्चा और सुनसान था तथा जंगली जानवरों का भी डर था इसलिए नीचे अकेला जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी! खाने-पीने का सामान नीचे से आता था इसलिए मैंने एक आदमी को अपने घर का नंबर दे कर कहा था की वो वापस जाते समय मेरे सकुशल होने की खबर मेरे घर पहुँचा दे| माँ को मेरे सकुशल होने की खबर तो मिल गई थी मगर घर में क्या घटित हो रहा था इसकी खबर मुझे मिली ही नहीं!



उधर घर पर, स्तुति मेरी गैरमौजूदगी में उदास हो गई थी| अब फ़ोन पर बात हो नहीं सकती थी इसलिए स्तुति को अपना मन कैसा न कैसे बहलाना था| अतः स्तुति पड़ गई अपनी मम्मी के पीछे और संगीता की मदद करने की कोशिश करने लगी| लेकिन मदद करने के चक्कर में स्तुति अपनी मम्मी के काम बढ़ाती जा रही थी| “शैतान!!! भाग जा यहाँ से वरना मारूँगी एक!” संगीता ने स्तुति को डाँट कर भागना चाहा मगर स्तुति अपनी मम्मी को मेरे नाम का डर दिखाते हुए बोली; "आने दो पापा जी को, मैं पापा जी को सब बताऊँगी!" स्तुति ने अपन मुँह फुलाते हुए अपनी मम्मी को धमकाना चाहा मगर संगीता एक माँ थी इसलिए उसने स्तुति को ही डरा कर चुप करा दिया; "जा-जा! तुझे तो डाटूँगी ही, तेरे पापा जी को भी डाँटूंगी!" मुझे डाँट पड़ने के नाम से स्तुति घबरा गई और अपनी दिद्दा के पास आ गई|

स्तुति को लग रहा था की उसकी शैतानियों की वजह से कहीं मुझे न डाँट पड़े इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से पूछने लगी; "दिद्दा, क्या मैं बहुत शैतान हूँ?" स्तुति के मुख से ये सवाल सुन नेहा थोड़ा हैरान थी| परन्तु, नेहा कुछ कहे उसके पहले ही माँ आ गईं| माँ ने स्तुति क सवाल सुन लिया था इसलिए माँ ने स्तुति को गोदी लिया और उसे लाड करते हुए बोलीं; "किसने कहा मेरी शूगी शैतान है?" जैसे ही माँ ने स्तुति से ये सवाल किया, वैसे ही स्तुति ने फट से अपनी मम्मी की शिकायत कर दी; "मम्मी ने!"



अपनी पोती की शिकयत सुन माँ को हँसी आ गई, माँ ने जैसे-तैसे अपनी हँसी दबाई और संगीता को आवाज़ लगाई; "ओ संगीता की बच्ची!" जैसे ही माँ ने संगीता को यूँ बुलाया, वैसे ही स्तुति एकदम से बोली; "दाई, मम्मी की बच्ची तो मैं हूँ!" स्तुति की हाज़िर जवाबी देख माँ की दबी हुई हँसी छूट गई और माँ ने ठहाका मार कर हँसना शुरू कर दिया|

"बहु इधर आ जल्दी!" माँ ने आखिर अपनी हँसी रोकते हुए संगीता को बुलाया| जैसे ही संगीता आई माँ ने उसे प्यार से डाँट दिया; "तू मेरी शूगी को शैतान बोलती है! आज से जो भी मेरी शूगी को शैतान बोलेगा उसे मैं बाथरूम में बंद कर दूँगी! समझी!!!" माँ की प्यारभरी डाँट सुन संगीता ने डरने का बेजोड़ अभिनय किया! अपनी मम्मी को यूँ डरते देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और उसने अपनी मम्मी को ठेंगा दिखा कर चिढ़ाना शुरू कर दिया|



अपनी दादी जी से अपनी मम्मी को डाँट खिला कर स्तुति का मन नहीं भरा था इसलिए स्तुति ने अपनी नानी जी को फ़ोन कर अपनी मम्मी की शिकायत लगा दी; "नानी जी, मम्मी कह रही थी की वो मेरे पापा जी को डाटेंगी!" अपनी नातिन की ये प्यारी सी शिकयत सुन स्तुति को नानी जी को बहुत हँसी आई| अब उन्हें अपनी नातिन का दिल रखना था इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को प्यारभरी डाँट लगा दी; "तू हमार मुन्ना का डांटइहो, तोहका मार-मार के सोझाये देब!" अपनी माँ की डाँट सुन पहले तो संगीता को हैरानी हुई मगर जब उसने स्तुति को देखा तो वो सब समझ गई| "आप जब मारोगे तब मरोगे, पहले मैं इस चुहिया को कूट-पीट कर सीधा करूँ!" इतना कह संगीता स्तुति को झूठ-मूठ का मारने के लिए दौड़ी| अब स्तुति को बचानी थी अपनी जान इसलिए दोनों माँ-बेटी पूरे घर में दौड़ा-दौड़ी करते रहे, जिससे आखिर स्तुति का मन बहल ही गया!



जहाँ एक तरफ स्तुति के कारण घर में खुशियाँ फैली थीं, तो वहीं दूसरी तरफ घर का एक कोना ऐसा भी था जो वीरान था!


मेरे घर में न होने का जिम्मेदार नेहा ने खुद को बना लिया था| नेहा को लग रहा था की मैं उससे इस कदर नाराज़ हूँ की मैं जानबूझ कर घर छोड़कर ऐसी जगह चला गया हूँ जहाँ मैं अकेला रह सकूँ| नेहा के अनुसार उसके कारण एक माँ को अपने बेटे के बिना रहना पड़ रहा था, एक छोटी सी बेटी (स्तुति) को अपने पापा जी के बिना घर में सबसे प्यार माँगना पड़ रहा था तथा हम पति-पत्नी के बीच जो बोल-चाल बंद हुई थी उसके लिए भी नेहा खुद को जिम्मेदार समझ रही थी|

मेरे नेहा से बात न करने, उसे पुनः अपनी बेटी की तरह प्यार न करने के कारण नेहा पहले ही बहुत उदास थी, उस पर नेहा ने इतने इलज़ाम खुद अपने सर लाद लिए थे की ये सब उसके मन पर बोझ बन बैठे थे| मन पर इतना बोझा ले लेने से नेहा को साँस तक लेने में दिक्कत हो रही थी|



नेहा इस समय बहुत ही नाज़ुक दौर से गुज़र रही थी| उसके मन में जन्में अपराधबोध ने नेहा को इस कदर घेर लिया था की वो खुद को सज़ा देना चाहती थी| नेहा ने खुद को एकदम से अकेला कर लिया था| स्कूल से आ कर नेहा सीधा अपनी पढ़ाई में लग जाती, माँ को कई बार नेहा को खाने के लिए कहना पड़ता तब जा कर नेहा एक-आध रोटी खाती| कई बार तो नेहा टूशन जाने का बहाना कर बाद में खाने को कहती मगर कुछ न खाती|

माँ और संगीता, नेहा की पढ़ाई की तरफ लग्न देख इतने खुश थे की उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया की नेहा ठीक से खाना खा रही है या नहीं| वहीं खाने में आनाकानी के अलावा नेहा ने देर रात जाग कर पढ़ना शुरू कर दिया| एक बार तो माँ ने नेहा को प्यार से डाँट भी दिया था की यूँ देर रात तक जाग कर पढ़ना अच्छी बात नहीं|



नेहा को लग रहा था की उसके इस तरह अपने शरीर को कष्ट दे कर वो पस्चताप कर रही है मगर नेहा का शरीर ये पीड़ा सहते-सहते अपनी आखरी हद्द तक पहुँच चूका था| मुझे खोने की मानसिक पीड़ा और अपने शरीर को इस प्रकार यातना दे कर नेहा ने अपनी तबियत खराब कर ली थी!



मेरी अनुपस्थिति में आयुष और स्तुति अपनी दादी जी के पास कहानी सुनते हुए सोते थे, बची माँ-बेटी (नेहा और संगीता) तो वो दोनों हमारे कमरे में सोती थीं| देर रात करीब 1 बजे नेहा ने नींद में मेरा नाम बड़बड़ाना शुरू किया; "पा...पा...जी! पा...पा...जी!" नेहा की आवाज़ सुन संगीता की नींद टूट गई| अपनी बेटी को यूँ नींद मेरा नाम बड़बड़ाते हुए देख संगीता को दुःख हुआ की एक तरफ नेहा मुझे इतना प्यार करती है की मेरी कमी महसूस कर वो नींद में मेरा नाम ले रही है, तो दूसरी तरफ मैं इतना कठोर हूँ की नेहा से इतनी दूरी बनाये हूँ|

अपनी बेटी को सुलाने के लिए संगीता ने ज्यों ही नेहा के मस्तक पर हाथ फेरा, त्यों ही उसे नेहा के बढे हुए ताप का एहसास हुआ! मुझे खो देने का डर नेहा के दिमाग पर इस कदर सवार हुआ की नेहा को बुखार चढ़ गया था! संगीता ने फौरन नेहा को जगाया मगर नेहा के शरीर में इतनी शक्ति ही नहीं बची थी की वो एकदम से जाग सके| संगीता ने फौरन माँ को जगाया, दोनों माओं ने मिल कर नेहा को बड़ी मुश्किल से जगाया और उसका बुखार कम करने के लिए क्रोसिन की दवाई दी| क्रोसिन के असर से नेहा का बुखार तो काम हुआ मगर नेहा का शरीर एकदम से कमजोर हो चूका था| नेहा से न तो उठा जा रहा था और न ही बैठा जा रहा था| नेहा को डॉक्टरी इलाज की जर्रूरत थी परन्तु रात के इस पहर में माँ और संगीता के लिए नेहा को अस्पताल ले जाना आसान नहीं था इसलिए अब सिवाए सुबह तक इंतज़ार करने के दोनों के पास कोई चारा न था| नेहा की हालत गंभीर थी इसलिए माँ और संगीता सारी रात जाग कर नेहा का बुखार चेक करते रहे|



अगली सुबह जब आयुष और स्तुति जागे तो उन्हें नेहा के स्वास्थ्य के बारे में पता चला| नेहा को बीमार देख आयुष ने जिम्मेदार बनते हुए अस्पताल जाने की तैयारी शुरू की, वहीं स्तुति बेचारी अपनी दिद्दा को इस हालत में देख नहीं पा रही थी इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से लिपट कर रोने लगी| नेहा में अभी इतनी भी शक्ति नहीं थी की वो स्तुति को चुप करवा सके इसलिए नेहा ने आयुष को इशारा कर स्तुति को सँभालने को कहा| "स्तुति, अभी पापा जी नहीं हैं न, तो आपको यूँ रोना नहीं चाहिए बल्कि आपको तो दीदी का ख्याल रखना चाहिए|" आयुष ने स्तुति को उसी तरह जिम्मेदारी देते हुए सँभाला जैसे मैं आयुष के बालपन में उसे सँभालता था|
अपने बड़े भैया की बात सुन स्तुति ने फौरन अपने आँसूँ पोछे और अपनी दिद्दा के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "दीदी, आप जल्दी ठीक हो जाओगे| फिर है न मैं आपको रोज़ रस-मलाई खिलाऊँगी|" स्तुति जानती थी की उसकी दीदी को रस-मलाई कितनी पसंद है इसलिए स्तुति ने अपनी दिद्दा को ये लालच दिया ताकि नेहा जल्दी ठीक हो जाए|





जब भी मैं ऑडिट पर जाता था तो मैं हमेशा माँ को एक दिन ज्यादा बोल कर जाता था क्योंकि जब मैं एक दिन पहले घर लौटता था तो मुझे देख माँ का चेहरा ख़ुशी से खिल जाया करता था| इसबार भी मैंने एक दिन पहले ही काम निपटा लिया और दिषु के साथ घर के लिए निकल पड़ा|

सुबह के 6 बजे मैं घर पहुँचा और दरवाजा खटखटाया| दरवाजा संगीता ने खोला, मुझे लगा था की मुझे जल्दी घर आया देख संगीता का चेहरा ख़ुशी के मारे चमकने लगेगा मगर संगीता के चेहरे पर चिंता की लकीरें छाई हुईं थीं! "क्या हुआ?" मैंने चिंतित हो कर पुछा तो संगीता के मुख से बस एक शब्द निकला; "नेहा"| इस एक शब्द को सुनकर मैं एकदम से घबरा गया और नेहा को खोजते हुए अपने कमरे में पहुँचा|



कमरे में पहुँच मैंने देखा की नेहा बेहोश पड़ी है! अपनी बिटिया की ये हालत देख मेरा कलेजा मुँह को आ गया! मैंने फौरन नेहा का मस्तक छू कर उसका बुखार देखा तो पाया की नेहा का शरीर भट्टी के समान तप रहा है! नेहा की ये हालत देख मुझे संगीता पर बहुत गुस्सा आया; “मेरी बेटी का शरीर यहाँ बुखार से तप रहा है और तुम....What the fuck were you doing till now?! डॉक्टर को नहीं बुला सकती थी?!” मेरे मुख से गाली निकलने वाली थी मगर मैंने जैसे-तैसे खुद को रोका और अंग्रेजी में संगीता को झाड़ दिया!

इतने में माँ नहा कर निकलीं और मुझे अचानक देख हैरान हुईं| फिर अगले ही पल माँ ने मुझे शांत करते हुए कहा; "बेटा, डॉक्टर सरिता यहाँ नहीं हैं वरना हम उन्हें बुला न लेते|" मैंने फौरन अपना फ़ोन निकाला और घर के नज़दीकी डॉक्टर को फ़ोन कर बुलाया| इन डॉक्टर से मेरी पहचान हमारे गृह प्रवेश के दौरान हुई थी| संगीता भी इन डॉक्टर को जानती थी मगर नेहा की बिमारी के चलते उसे इन्हें बुलाने के बारे में याद ही नहीं रहा| संकट की स्थिति में हमेशा संगीता का दिमाग काम करना बंद कर देता है, इसका एक उदहारण आप सब पहले भी पढ़ चुके हैं| आपको तो मेरे चक्कर खा कर गिरने वाला अध्याय याद ही होगा न?!



डॉक्टर साहब को फ़ोन कर मैंने रखा ही था की इतने में स्तुति नहा कर निकली| मुझे देखते ही स्तुति फूल की तरह खिल गई और सीधा मेरी गोदी में आने के लिए छलाँग लगा दी| मेरे सीने से लगते ही स्तुति को चैन मिला और उसकी आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बह निकले| "पापा जी, I missed you!" स्तुति भावुक होते हुए बोली| मैंने स्तुति को लाड-प्यार कर बहलाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "I missed you too मेरा बच्चा!"



स्तुति को लाड कर मैंने बिठाया और अपनी बड़ी बेटी नेहा के बालों में हाथ फेरने लगा| मेरे नेहा के बालों में हाथ फेरते ही एक चमत्कार हुआ क्योंकि बेसुध हुई मेरी बेटी नेहा को होश आ गया| नेहा मेरे हाथ के स्पर्श को पहचानती थी अतः अपने शरीर की सारी ताक़त झोंक कर नेहा ने अपनी आँखें खोलीं और मुझे अपने सामने बैठा देखा, अपने बालों में हाथ फेरते हुए देख नेहा को यक़ीन ही नहीं हुआ की मैं उसके सामने हूँ|

"पा..पा..जी" नेहा के मुख से ये टूटे-फूटे शब्द फूटे थे की मेरे भीतर छुपे पिता का प्यार बाहर आ गया; "हाँ मेरा बच्चा!" नेहा को मेरे मुख से 'मेरा बच्चा' शब्द सुनना अच्छा लगता था| आज जब इतने महीनों बाद नेहा ने ये शब्द सुने तो उसकी आँखें छलक गईं और नेहा फूट-फूट के रोने लगी!



"सॉ…री...पा…पा जी...मु…झे...माफ़...." नेहा रोते हुए बोली| मैंने नेहा को आगे कुछ बोलने नहीं दिया और सीधा नेहा को अपने गले लगा लिया| "बस मेरा बच्चा!" इतने समय बाद नेहा को मेरे गले लग कर तृप्ति मिली थी इसलिए नेहा इस सुख के सागर में डूब खामोश हो गई| वहीं अपनी बड़ी बिटिया को अपने सीने से लगा कर मेरे मन के सूनेपन को अब जा कर चैन मिला था|



नेहा को लाड कर मेरी नज़र पड़ी आयुष पर जो थोड़ा घबराया हुआ दरवाजे पर खड़ा मुझे देख रहा था| दरअसल, जब मैंने संगीता को डाँटा तब आयुष मुझसे मिलने ही आ रहा था मगर मेरा गुस्सा देख आयुष डर के मारे जहाँ खड़ा था वहीं खड़ा रहा| मैंने आयुष को गले लगने को बुलाया तो आयुष भी आ कर मेरे गले लग गया| मैंने एक साथ अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और बारी-बारी से तीनों के सर चूमे| मेरे लिए ये एक बहुत ही मनोरम पल था क्योंकि एक आरसे बाद आज मैं अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में समेटे लाड-प्यार कर रहा था|



कुछ देर बाद डॉक्टर साहब आये और उन्होंने नेहा का चेक-अप किया| अपने मन की संतुष्टि के लिए उन्होंने नेहा के लिए कुछ टेस्ट (test) लिखे और दवाई तथा खाने-पीने का ध्यान देने के लिए बोल चले गए| डॉक्टर साहब के जाने के बाद माँ ने मुझे नहाने को कहा तथा संगीता को चाय-नाश्ता बनाने को कहा|

चूँकि नेहा को बुखार था इसलिए उसका कुछ भी खाने का मन नहीं था, पर नेहा मुझे कैसे मना करती?! मैं खुद नेहा के लिए सैंडविच बना कर लाया और अपने हाथों से खिलाने लगा| मेरी बहुत जबरदस्ती करने के बावजूद नेहा से बस आधा सैंड विच खाया गया और बाकी आधा सैंडविच मैंने खाया|

नेहा को इस समय बहुत कमजोरी थी इसलिए नेहा लेटी हुई थी, वहीं मैं भी बस के सफर से थका हुआ था इसलिए मैं भी नेहा की बगल में लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर आराम करने लगी| स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो स्तुति मुझ पर हक़ जमाने आ गई और अपनी दीदी की तरह मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर लेट गई| स्तुति कुछ बोल नहीं रही थी मगर उसके मुझसे इस कदर लिपटने का मतलब साफ़ था; 'दिद्दा, आप बीमार हो इसलिए आप पापा जी के साथ ऐसे लिपट सकते हो वरना पपई के साथ लिपट कर सोने का हक़ बस मेरा है!' स्तुति के दिल की बात मैं और नेहा महसूस कर चुके थे इसलिए स्तुति के मुझ पर इस तरह हक़ जमाने पर हम दोनों के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर रही थी|



स्तुति अपनी दिद्दा के साथ सब कुछ बाँट सकती थी मगर जब बात आती थी मेरे प्यार की तो स्तुति किसी को भी मेरे नज़दीक नहीं आने देती!



खैर, मेरे सीने पर सर रख कर लेटे हुए स्तुति की बातें शुरू हो गई थीं| मेरी गैरमजूदगी में क्या-क्या हुआ सबका ब्यौरा मुझे मेरी संवादाता स्तुति दे रही थी| मैंने गौर किया तो मेरे आने के बाद से ही स्तुति मुझे 'पपई' के बजाए 'पापा जी' कह कर बुला रही थी| जब मैंने इसका कारण पुछा तो मेरी छोटी बिटिया उठ बैठी और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "आप घर में नहीं थे न, तो मुझे बहुत अकेलापन लग रहा था| मुझे एहसास हुआ की पूरे घर में एक आप हो जो मुझे सबसे ज्यादा प्यारी करते हो इसलिए मैंने सोच लिया की मैं अब से आपको पपई नहीं पापा जी कहूँगी|" स्तुति बड़े गर्व से अपना लिया फैसला मुझे सुनाते हुए बोली| मेरी छोटी सी बिटिया अब इतनी बड़ी हो गई थी की वो मेरी कमी को महसूस करने लगी थी| इस छोटी उम्र में ही स्तुति को मेरे पास न होने पर अकेलेपन का एहसास होने लगा था जो की ये दर्शाता था की हम बाप-बेटी का रिश्ता कितना गहरा है| मैंने स्तुति को पुनः अपने गले से लगा लिया; "मेरी दोनों बिटिया इतनी सयानी हो गईं|" मैंने नेहा और स्तुति के सर चूमते हुए कहा| खुद को स्याना कहे जाने पर स्तुति को खुद पर बहुत गर्व हो रहा था और वो खुद पर गर्व कर मुस्कुराने लगी थी|





मैंने महसूस किया तो पाया की नेहा को मुझसे बात करनी है मगर स्तुति की मौजूदगी में वो कुछ भी कहने से झिझक रही है| अतः मैंने कुछ पल स्तुति को लाड कर स्तुति को आयुष के साथ पढ़ने भेज दिया| स्तुति के जाने के बाद नेहा सहारा ले कर बैठी और अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मैंने आपका बहुत दिल दुखाया! मेरी वजह से आप इतने दुखी थे की आप इतने दिन ऐसी जगह जा कर काम कर रहे थे जहाँ मोबाइल नेटवर्क तक नहीं मिलता था! मेरी वजह से स्तुति को इतने दिन तक आपका प्यार नहीं मिला, मेरी वजह से मम्मी और आपके बीच कहा-सुनी हुई, मेरे कारण दादी जी को...

इतने कहते हुए नेहा की आँखें फिर छलक आईं थीं| मैंने नेहा को आगे कुछ भी कहने नहीं दिया और उसकी बात काटते हुए बोला;

मैं: बस मेरा बच्चा! मैंने आपको माफ़ कर दिया! आप बहुत पस्चताप और ग्लानि की आग में जल लिए, अब और रोना नहीं है| आप तो मेरी ब्रेव गर्ल (brave girl) हो न?!

मैंने नेहा को हिम्मत देते हुए कहा| नेहा को मुझसे माफ़ी पा कर चैन मिला था इसलिए अब जा कर उसके चेहरे पर ख़ुशी और उमंग नजर आ रही थी|



नेहा को मुझसे माफ़ी मिल गई थी, अपने पापा जी का प्यार मिल गया था इसलिए नेहा पूरी तरह संतुष्ट थी| अब बारी थी संगीता की जिसे उसके प्रियतम का प्यार नहीं मिला था और नेहा ये बात जानती थी|

नेहा: मम्मी!

नेहा ने अपनी मम्मी को आवाज़ दे कर बुलाया|

संगीता: हाँ बोल?

संगीता ने नेहा से पुछा तो नेहा ने फौरन अपने कान दुबारा पकड़े और मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मेरे कारण आप दोनों के बीच लड़ाई हुई और आपने एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया|

मैंने नेहा के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दिया| फिर मैं उठ कर खड़ा हुआ तो देखा की संगीता मुझे देख कर मंद-मंद मुस्कुरा रही है! मुझे संगीता की ये मुस्कराहट समझ न आई और मैं भोयें सिकोड़े, चेहरे पर अस्चर्य के भाव लिए संगीता को देखने लगा| दरअसल, मुझे लगा था की मेरे डाँटने से संगीता नाराज़ होगी या डरी-सहमी होगी परन्तु संगीता तो मुस्कुरा रही थी! मेरे भाव समझ संगीता मुस्कुराते हुए बोली;
संगीता: मैं आपके मुझ पर गुस्सा करने से नाराज़ नहीं हूँ| मुझे तो ये देख कर बहुत ख़ुशी हुई की आपने आज इतने समय बाद नेहा पर इतना हक़ जमाया की मुझे झाड़ दिया!
संगीता को मुझ पर बहुत प्यार आ रहा था और वो अपना ये प्यार मुझे अपनी आँखों के इशारे से जता रही थी| वहीं अपनी मम्मी से ये बात सुन नेहा गर्व से फूली नहीं समा रही थी!
नेहा: मम्मी, चलो पापा जी के गले लगो!

नेहा ने प्यार से अपनी मम्मी को आदेश दिया तो हम दोनों ने मिलकर नेहा के इस आदेश का पालन किया|

अभी हम दोनों का ये आलिंगन शुरू ही हुआ था की इतने में स्तुति फुदकती हुई आ गई! अपनी मम्मी को मेरे गले लगे देख स्तुति को जलन हुई और उसने फौरन अपनी मम्मी को पीछे धकेलते हुए प्यार से चेता दिया;

स्तुति: मेरे पापा जी हैं! सिर्फ मैं अपने पापा जी के गले लगूँगी!

स्तुति की इस प्यारभरी चेतावनी को सुन हम दोनों मियाँ-बीवी मुस्कुराने लगे| वहीं नेहा को स्तुति के इस प्यारभरी चेतावनी पर गुस्सा आ गया;

नेहा: चुप कर पिद्दा! इतने दिनों बाद पापा जी और मम्मी गले लगे थे और तू आ गई कबाब में हड्डी बनने!

नेहा ने स्तुति को डाँट लगाई तो स्तुति मेरी टाँग पकड़ कर अपनी दीदी से छुपने लगी| अब अपनी छोटी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैंने इशारे से नेहा को शांत होने को कहा और स्तुति को गोदी ले उसे बहलाते हुए बोला;

मैं: वैसे स्तुति की बात सही है! वो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती है इसलिए मुझ पर पहला हक़ मेरी छोटी बिटिया का है!

मैं स्तुति को लाड कर ही रहा था की माँ कमरे में आ गईं| मुझे स्तुति को लाड करते हुए देख माँ बोलीं;

माँ: सुन ले लड़के, आज से तू फिर कभी ऐसी जगह नहीं जाएगा जहाँ तेरा फ़ोन न मिले और अगर तू फिर भी गया तो शूगी को साथ ले कर जाएगा| जानता है तेरे बिना मेरी लालड़ी शूगी कितनी उदास हो गई थी?!
माँ ने मुझे प्यार से चेता दिया तथा मैंने भी हाँ में सर हिला कर उनकी बात स्वीकार ली| उस दिन से ले कर आज तक मैं कभी ऐसी जगह नहीं गया जहाँ मोबाइल नेटवर्क न हो और मैं माँ तथा स्तुति से बात न कर पाऊँ|



नेहा को मेरा स्नेह मिला तो मानो उसकी सारी इच्छायें पूरी हो गई| मेरे प्रेम को पा कर मेरी बड़ी बिटिया इतना संतुष्ट थी की उसका बचपना फिर लौट आया था| नेहा अब वही 4 साल वाली बच्ची बन गई थी, जिसे हर वक़्त बस मेरा प्यार चाहिए होता था यानी मेरे साथ खाना, मेरे साथ कहानी सुनते हुए सोना, मेरे साथ घूमने जाना आदि|

अपनी दिद्दा को मुझसे लाड पाते देख स्तुति को होती थी मीठी-मीठी जलन नतीजन जिस प्रकार स्तुति के बालपन में दोनों बहनें मेरे प्यार के लिए आपसे में झगड़ती थीं, उसी तरह अब भी दोनों ने झगड़ना शुरू कर दिया था| हम सब को नेहा और स्तुति की ये प्यारभरी लड़ाई देख कर आनंद आता था, क्योंकि हमारे अनुसार नेहा बस स्तुति को चिढ़ाने के लिए उसके साथ झगड़ती है| लेकिन धीरे-धीरे मुझे दोनों बहनों की ये लड़ाई चिंताजनक लगने लगी| मुझे धीरे-धीरे नेहा के इस बदले हुए व्यवहार पर शक होता जा रहा था और मेरा ये शक यक़ीन में तब बदला जब मुझे कुछ काम से कानपूर जाना पड़ा जहाँ मुझे 2 दिन रुकना था|

मेरे कानपुर निकलने से एक दिन पहले जब नेहा को मेरे जाने की बात पता चली तो नेहा एकदम से गुमसुम हो गई| मैंने लाड-प्यार कर नेहा को समझाया और कानपूर के लिए निकला, लेकिन अगले दिन मेरे कानपुर के लिए निकलते ही नेहा का मन बेचैन हो गया और नेहा ने मुझे फ़ोन खड़का दिया| जितने दिन मैं कानपूर में था उतने दिन हर थोड़ी देर में नेहा मुझे फ़ोन करती और मुझसे बात कर उसके बेचैन मन को सुकून मिलता|



असल में, नेहा एक बार मुझे लगभग खो ही चुकी थी और इस बात के मलाल ने नेहा को भीतर से डरा कर रखा हुआ था| नेहा को हर पल यही डर रहता था की कहीं वो मुझे दुबारा न खो दे इसीलिए नेहा मेरा प्यार पाने को इतना बेचैन रहती थी|

नेहा के इस डर ने उसे भीतर से खोखला कर दिया था| ये डर नेहा पर इस कदर हावी होता जा रहा था की नेहा को फिर से मुझे खो देने वाले सपने आने लगे थे, जिस कारण वो अक्सर रात में डर के जाग जाती| जितना आत्मविश्वास नेहा ने इतने वर्षों में पाया था, वो सब टूट कर चकना चूर हो चूका था| स्कूल से घर और घर से स्कूल बस यही ज़िन्दगी रह गई थी नेहा की, दोस्तों के साथ बाहर जाना तो उसके लिए कोसों दूर की बात थी| कुल-मिला कर कहूँ तो नेहा ने खुद को बस पढ़ाई तथा मेरे प्यार के इर्द-गिर्द समेट लिया था| बाहर से भले ही नेहा पहले की तरह हँसती हुई दिखे परन्तु भीतर से मेरी बहादुर बिटिया अब डरी-सहमी रहने लगी थी|



नेहा के बाहर घूमने न जाने से घर में किसी कोई फर्क नहीं पड़ा था क्योंकि सब यही चाहते थे की नेहा पढ़ाई में ध्यान दे| परन्तु मैं अपनी बेटी की मनोदशा समझ चूका था और अब मुझे ही मेरी बिटिया को उसका खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः दिलाना था|



कानपूर से लौटने के बाद शाम के समय मैं, स्तुति और नेहा बैठक में बैठे टीवी देख रहे थे| नेहा को समझाने का समय आ गया था अतः मैंने स्तुति को पढ़ाई करने के बहाने से भेज दिया तथा नेहा को समझाने लगा|

मैं: बेटा, आप जानते हो न बच्चों को कभी अपने माँ-बाप से कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए, फिर आप क्यों मुझसे बातें छुपाते हो?

मैंने बिना बात घुमाये नेहा से सवाल किया ताकि नेहा खुल कर अपने जज्बात मेरे सामने रखे| परन्तु मेरा सवाल सुन नेहा हैरान हो कर मुझे देखने लगी;

नेहा: मैंने आपसे कौन सी बात छुपाई पापा जी?!

नेहा नहीं जानती थी की मैं कौन सी बात के बारे में पूछ रहा हूँ इसलिए वो हैरान थी|

मैं: बेटा, जब से आप तंदुरुस्त हुए हो, आप बिलकुल स्तुति की तरह मेरे प्यार के लिए अपनी ही छोटी बहन से लड़ने लगे हो| पहले तो मुझे लगा की ये आपका बचपना है और आप केवल स्तुति को सताने के मकसद से ये लड़ाई करते हो मगर जब आपने रोज़-रोज़ स्तुति से मेरे साथ सोने, मेरी प्यारी पाने तक के लिए लड़ना शुरू कर दिया तो मुझे आपके बर्ताव पर शक हुआ| फिर जब मैं कानपूर गया तो आपने जो मुझे ताबतोड़ फ़ोन किया उससे साफ़ है की आप जर्रूर कोई बात है जो मुझसे छुपा रहे हो| मैं आपका पिता हूँ और आपके भीतर आये इन बदलावों को अच्छे से महसूस कर रहा हूँ| अगर आप खुल कर मुझे सब बताओगे तो हम अवश्य ही इसका कोई हल निकाल लेंगे|

मैंने नेहा के कँधे पर हाथ रख उसे हिम्मत दी तो नेहा एकदम से रो पड़ी!

नेहा: पापा जी...मु...मुझे डर लगता है! में आपके बिना नहीं रह सकती! आप जब मेरे पास नहीं होते तो मैं बहुत घबरा जाती हूँ! कई बार रात में मैं आपको अपने पास न पा कर घबरा कर उठ जाती हूँ और फिर आपकी कमी महसूस कर तब तक रोती हूँ जब तक मुझे नींद न आ जाए|

उस दिन जो हुआ उसके बाद से मैं किसी पर भरोसा नहीं करती! कहीं भी अकेले जाने से मुझे इतना डर लगता है, मन करता है की मैं बस घर में ही रहूँ| स्कूल या घर से बाहर निकलते ही जब दूसरे बच्चे...ख़ास कर लड़के जब मुझे देखते हैं तो मुझे अजीब सा भय लगता है! ऐसा लगता है मानो मेरे साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है! मुझ में अब खुद को बचाने की ताक़त नहीं है इसलिए मुझे बस आपके साथ सुरक्षित महसूस होता है, मैं बस आपके पास रहना चाहती हूँ| लेकिन जब स्तुति मुझे आपके पास आने नहीं देती तो मुझे गुस्सा आता है और हम दोनों की लड़ाई हो जाती है|

नेहा की वास्तविक मनोस्थिति जान कर मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा| नेहा के साथ हुए उस एक हादसे ने नेहा को इस कदर डरा कर रखा हुआ है इसकी मैंने कल्पना नहीं की थी|



इधर अपनी बातें कहते हुए नेहा फूट-फूट कर रो रही थी इसलिए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा कर उसके सर पर हाथ फेर कर नेहा को चुप कराया| जब नेहा का रोना थमा तो मैंने नेहा के दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और नेहा को समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, ज़िन्दगी में ऐसे बहुत से पल आते हैं जो हमें बुरी तरह तोड़ देते हैं! हमें ऐसा लगता है की हम हार चुके हैं और अब हमारे पास जीने के लिए कुछ नहीं बचा| लेकिन बेटा, हमारी ज़िन्दगी में हमेशा एक न एक व्यक्ति ऐसा होता है जो हमें फिर से खड़े होने की हिम्मत देता है| वो व्यक्ति अपने प्यार से हमें सँभालता है, सँवारता है और हमारे भीतर नई ऊर्जा फूँकता है|



ज़िन्दगी में अगर कभी ठोकर लगे तो उठ कर अपने कपड़े झाड़ कर फिर से चल पड़ना चाहिए| हर कदम पर ज़िन्दगी आपके लिए एक नई चुनाती लाती है, आपको उन चुनौतियों से घबरा कर अपनी आँखें बंद नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी सूझ-बूझ से उन चुनौतियों का सामना करना चाहिए| अपने बचपन में आपने बहुत दुःख झेले मगर आपने हार नहीं मानी और जैसे-जैसे बड़े होते गए आप के भीतर आत्मविश्वास जागता गया| जब भी आप डगमगाते थे तो आपकी दादी जी, मैं, आपकी मम्मी आपके पास होते थे न आपको सँभालने के लिए, तो इस बार आप क्यों चिंता करते हो?!



अब बात करते हैं आपके किसी पर विश्वास न करने पर| बेटा, हाथ की सारी उँगलियाँ एक बराबर नहीं होती न?! उसी तरह इस दुनिया में हर इंसान बुरा नहीं होता, कुछ लोग बहुत अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे| क्या हुआ अगर आपसे एक बार इंसान को पहचानने में गलती हो गई तो?! आप छोटे बच्चे ही हो न, कोई बूढ़े व्यक्ति तो नहीं...और क्या बूढ़े व्यक्तियों से इंसान को पहचानने में गलती नहीं होती?!

बेटा, एक बात हमेशा याद रखना, इंसान गलती कर के ही सीखता है| आपने गलती की तभी तो आपको ये सीखने को मिला की सब लोग अच्छे नहीं होते, कुछ बुरे भी होते हैं| आपको चाहिए की आप दूसरों को पहले परखो की वो आपके दोस्त बनने लायक हैं भी या नहीं और फिर उन पर विश्वास करो| यदि आपको किसी को परखने में दिक्क्त आ रही है तो उसे हम सब से मिलवाओ, हम उससे बात कर के समझ जाएंगे की वो आपकी दोस्ती के लायक है या नहीं?!



अब आते हैं आपके दिल में बैठे बाहर कहीं आने-जाने के डर पर| उस हादसे के बाद आपको कैसा लग रहा है ये मैं समझ सकता हूँ मगर बेटा इस डर से आपको खुद ही लड़ना होगा| घर से बाहर जाते हुए यदि लोग आपको देखते हैं… घूरते हैं तो आपको घबराना नहीं चाहिए बल्कि आत्मविश्वास से चलना चाहिए|

हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ ऐसे दुष्ट प्रवत्ति वाले लोग भी रहते हैं जो की लड़कियों को घूरते हैं, तो क्या ऐसे लोगों के घूरने या आपको देखने के डर से आप सारी उम्र घर पर बैठे रहोगे? कल को आप बड़े होगे, आपको अपना वोटर कार्ड बनवाना होगा, आधार कार्ड बनवाना होगा, पासपोर्ट बनवाना होगा तो ये सब काम करने तो आपको बाहर जाना ही पड़ेगा न?! मैं तो बूढ़ा हो जाऊँगा इसलिए मैं तो इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा, तब अगर आप इसी प्रकार घबराओगे तो कैसे चलेगा? ज़िन्दगी बस घर पर रहने से तो नहीं चलेगी न?!



बेटा, आपको अपने अंदर फिर से आत्मविश्वास जगाना होगा और धीरे-धीरे घर से बाहर जाना सीखना होगा| कोई अगर आपको देखता है तो देखने दो, कोई आपको घूर कर देखता है तो देखने दो, आप किसी की परवाह मत करो| आप घर से बाहर काम से निकले हो या घूमने निकले हो तो मज़े से अपना काम पूरा कर घर लौटो|



आपको एक बात बताऊँ, जब मैं छोटा था तो मैं बहुत गोल-मटोल था ऊपर से आपके दादा जी-दादी जी मुझे कहीं अकेले आने-जाने नहीं देते थे इसलिए जब लोग मेरे गोलू-मोलू होने पर मुझे घूरते या मुझे मोटा-मोटा कह कर चिढ़ाते तो मैं बहुत रोता था| तब आपकी दादी जी ने मुझे एक बात सिखाई थी; 'हाथी जब अपने रस्ते चलता है तो गली के कुत्ते उस पर भोंकते हैं मगर हाथी उनकी परवाह किये बिना अपने रास्ते पर चलता रहता है|' उसी तरह आप भी जब घर से बाहर निकलो तो ये मत सोचो की कौन आपको देख रहा है, बल्कि सजक रहो की आगे-पीछे से कोई गाडी आदि तो नहीं आ रही| इससे आपका ध्यान बंटेगा और आपको किसी के देखने या घूरने का पता ही नहीं चलेगा|

मेरी बिटिया रानी बहुत बहादुर है, वो ऐसे ही थोड़े ही हार मान कर बैठ जायेगी| वो पहले भी अपना सर ऊँचा कर चुनौतियों से लड़ी है और आगे भी जुझारू बन कर चुनौतियों से लड़ेगी|

मैंने बड़े विस्तार से नेहा को समझाते हुए उसके अंधेरे जीवन में रौशनी की किरण दिखा दी थी| अब इसके आगे का सफर नेहा को खुद करना था, उसे उस रौशनी की किरण की तरफ धीरे-धीरे बढ़ना था|

बहरहाल, नेहा ने मेरी बातें बड़े गौर से सुनी थीं और इस दौरान वो ज़रा भी नहीं रोई| जब मैंने नेहा को 'मेरी बहादुर बिटिया रानी' कहा तो नेहा को खुद पर गर्व हुआ और वो सीधा मेरे सीने से लगा कर मुस्कुराने लगी|



उस दिन से नेहा के जीवन पुनः बदलाव आने लगे| नेहा ने धीरे-धीरे अकेले घर से बाहर जाना शुरू किया, शुरू-शुरू में नेहा को उसका डर डरा रहा था इसलिए मुझे एक बार फिर नेहा का मार्गदर्शन करना पड़ा|

आज इस बात को साल भर होने को आया है और नेहा धीरे-धीरे अपनी चुनौतियों का अकेले सामना करना सीख गई है|


तो ये थी मेरे जीवन की अब तक की कहानी|
समाप्त?

नहीं अभी नहीं!
एक अप्रत्याशित अंत
मैंने सोचा भी नहीं था कहानी को यहाँ पर आप ख़तम करेंगे l
मनु भाई यहाँ आपने अपनी चरित्र और भावनाओं का एक अलग ही आयाम दिखाया है
अब तक आप खुद को कठोर व नाराज दिखा कर नेहा से बेरूखी से पेश आ रहे थे
वह मासूम उसे दिल से लगा बैठी और उस दर्द को ना झेल पाई खैर सही समय पर आपने बहुत अच्छे से सम्भाल लिया
नेहा और आपके प्रकरण में मुझे वह क्षण याद आता है जब गाँव में स्कुल के प्रधानाचार्य के पूछने पर नेहा ने अपना नाम नेहा मौर्या कहा था
तब आपके भीतर एक दिव्य अनुभव हुआ था एक पिता होने के एहसास से आप गदगद हो गए थे l
जाहिर है वह सारे क्षण आपको याद आये होंगे l पर कहानी का ऐसा अंत....?
अभी तक किसी भी अंक में बाबुजी का आगमन नहीं हुआ है l
एक बात मैं अपनी अभिज्ञता के आधार पर कह सकता हूँ l पुरुष को ईश्वर ने कठोर बेशक बनाया है पर कुछ मामलों में मजबुत रखने के मामले में औरत निःसंदेह पुरुषों से आगे ही होते हैं l
वह भाग जब नेहा के विषय में आपको ग्लानि हुई पर भाभी जी को गर्व हुआ आप पर क्यूंकि आपने अपनी बेटी नेहा को प्राप्त कर लिया था l यही इस अंक का सबसे अहम क्षण था...
प्रिय भाइयों, देवियों, मित्रों व् पाठकों

आज तबियत नाज़ायज़ है इसलिए update आने में देर हुई! लेकिन आखिर क्र, पेश है मेरी इस कहानी की अंतिम update! आशा करता हूँ की आपको ये पसंद आएगी|

कहानी अभी अंत नहीं हुई है| जिस प्रकार फिल्म खत्म होने पर credits roll किये जाते हैं और Marvel की movies में अंत में एक extra scene दिखाया जाता है, उसी तरह मेरी इस कहानी में आप सभी पाठकों को धन्यवाद देना बाकी है|
साथ ही जो मैं इतने समय से आप सभी को
BIG REVEAL का teaser दे रहा था वो भी तो देना बाकी है!

आप सभी फिलहाल इस update का आनंद लीजिये और आपके मन यदि कोई प्रश्न हो तो मुझसे पूछें ताकि
BIG REVEAL में मैं उन सभी प्रश्नों का जवाब दे सकूँ|



P.S. मैंने आप सभी के पिछले comments का जवाब अपनी तबियत खराब होने के कारण नहीं दे पाया तथा उसके लिए आप सभी से हाथ जोड़कर माफ़ी चाहता हूँ| परन्तु मैं आपके पुराने comments और इस update को पढ़ने के बाद दिए जाने वाले comments का जवाब एक साथ दूँगा| 🙏
लगता है आप अपनी इस कहानी का अपना यूनिवर्स बनाने जा रहे हैं l आपके इस यूनिवर्स में क्या क्या रंग आप भरोगे यह देखना अत्यंत उत्सुकता पूर्ण होगा l आशा करता हूँ अब कुछ समय के विश्रांति के पश्चात काला इश्क का दूसरा संस्करण आएगा l
प्रतीक्षा रहेगी
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,803
31,030
304
अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 17 (2)


अब तक अपने पढ़ा:


बहरहाल, दिन बीत रहे थे पर नेहा और मेरे बीच बनी दूरी वैसी की वैसी थी| नेहा मेरे नज़दीक आने की बहुत कोशिश करती मगर मैं उससे दूर ही रहता| मैं नेहा को अपने जीवन से निकाल चूका था और उसे फिर से अपने जीवन में आने देना नहीं चाहता था| मुझसे...एक पिता से पुनः प्यार पाने की लालसा नेहा के भीतर अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी थी! फिर एक समय आया जब नेहा ने हार मान ली और वो इस कदर टूट गई थी की किसी के लिए भी उसे सँभालना नामुमकिन था|


अब आगे:


कुछ
दिन बीते, सुबह का समय था की तभी दिषु का फ़ोन आया, उसने मुझे बताया की एक ऑडिट निपटाने के लिए उसे मेरी मदद चाहिए थी| दरअसल हम दोनों ने इस कंपनी की ऑडिट पर सालों पहले काम किया था, लेकिन कंपनी के एकाउंट्स में कुछ घपला हुआ जिस कारण पुराने सारे अकाउंट फिर से चेक करने थे| समस्या ये थी की ये कपनी थी देहरादून की और कंपनी के सारे लेखा-जोखा रखे थे एक ऐसे गॉंव में जहाँ जाना बड़ा दुर्गम कार्य था| इस गॉंव में लाइट क्या, टेलीफोन के नेटवर्क तक नहीं आते थे| हाँ, कभी-कभी वो बटन वाले फ़ोन में एयरटेल वाला सिम कभी-कभी नेटवर्क पकड़ लेता था| ऑडिट थी 6 दिन की और इतने दिन बिना फ़ोन के रहना मेरी माँ के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक था|

उन दिनों मैं पिताजी का ठेकेदारी का काम बंद कर चूका था| मेरा जूतों का काम थोड़ा मंदा हो चूका था इसलिए मैं इस ऑडिट के मौके को छोड़ना नहीं चाहता था| जब मैंने माँ से ऑडिट के बारे में सब बताया तो माँ को चिंता हुई; "बेटा, इतने दिन बिना तुझसे फ़ोन पर बात किये मेरा दिल कैसे मानेगा?" माँ की चिंता जायज थी परन्तु मेरा जाना भी बहुत जर्रूरी था| मैंने माँ को प्यार से समझा-बुझा कर मना लिया और फटाफट अपने कपड़े पैक कर निकल गया|



जब मैं घर से निकला तब बच्चे स्कूल में थे और जब बच्चे स्कूल से लौटे तथा उन्हें पता चला की मैं लगभग 1 हफ्ते के लिए बाहर गया हूँ, वो भी ऐसी जगह जहाँ फ़ोन का नेटवर्क नहीं मिलता तो सबसे ज्यादा स्तुति नाराज़ हुई! स्तुति ने फौरन मुझे फ़ोन किया और मुझे फ़ोन पर ही डाँटने लगी; "पपई! आप मुझे बिना बताये क्यों गए? वो भी ऐसी जगह जहाँ आपका फ़ोन नहीं मिलेगा?! अब मुझे कौन सुबह-सुबह प्यारी देगा? मैं किससे बात करुँगी? अगर मुझे आपसे कुछ बात करनी हो तो मैं कैसे फ़ोन करुँगी?" स्तुति अपने प्यारे से गुस्से में मुझसे सवाल पे सवाल पूछे जा रही थी और मुझे मेरी बिटिया के इस रूप पर प्यार आ रहा था|

जब स्तुति ने साँस लेने के लिए अपने सवालों पर ब्रेक लगाई तो मैं स्तुति को प्यार से समझाते हुए बोला; "बेटा, मैं घूमने नहीं आया हूँ, मैं आपके दिषु चाचू की मदद करने के लिए आया हूँ| यहाँ पर नेटवर्क नहीं मिलते इसलिए हमारी फ़ोन पर बात नहीं हो सकती, लेकिन ये तो बस कुछ ही दिनों की बात है| मैं जल्दी से काम निपटा कर घर लौटा आऊँगा|" अब मेरी छोटी बिटिया रानी का गुस्सा बिलकुल अपनी माँ जैसा था इसलिए स्तुति मुझसे रूठ गई और बोली; "पपई, मैं आपसे बात नहीं करुँगी! कट्टी!!!" इतना कह स्तुति ने फ़ोन अपनी मम्मी को दे दिया| मैं संगीता से कुछ कहूँ उसके पहले ही संगीता ने अपने गुस्से में फ़ोन काट दिया|



दिषु मेरे साथ बैठा था और उसने हम बाप-बेटी की सारी बातें सुनी थी इसलिए वो मेरी दशा पर दाँत फाड़ कर हँसे जा रहा था! वहीं मुझे भी मेरी बिटिया के मुझसे यूँ रूठ जाने पर बहुत हँसी आ रही थी| मुझे यूँ हँसते हुए देख दिषु मेरी पीठ थपथपाते हुए बोला; "ऐसे ही हँसता रहा कर!" दिषु की कही बात से मेरे चेहरे से हँसी गायब हो गई थी और मैं एक बार फिर से खामोश हो गया था|

दरअसल नेहा और मेरे बीच जो दूरियाँ आई थीं, दिषु उनसे अवगत था| हमेशा मुझे ज्ञान देने वाला मेरा भाई जैसा दोस्त, नेहा के कहे उन ज़हरीले शब्दों के बारे में जानकार भी खामोश था| मानो जैसे उसके पास मुझे ज्ञान देने के लिए बचा ही नहीं था! वो बस मुझे हँसाने-बुलाने के लिए कोई न कोई तिगड़म लड़ाया करता था| ये ऑडिट का ट्रिप भी उसने इसी के लिए प्लान किया था ताकि घर से दूर रह कर मैं थोड़ा खुश रहूँ|



उधर घर पर, स्तुति के मुझसे नाराज़ होने पर आयुष और नेहा अपनी छोटी बहन को लाड कर समझाने में लगे थे की वो इस तरह मुझसे नाराज़ न हो| "तुझे पापा जी से नाराज़ होना है तो हो जा, लेकिन अगर पापा जी तुझसे नाराज़ हो गए न तो तू उन्हें कभी मना नहीं पायेगी!" नेहा भारीमन से भावुक हो कर बोली| नेहा की बात से उसका दर्द छलक रहा था और अपनी दिद्दा का दर्द देख स्तुति एकदम से भावुक हो गई थी! ऐसा लगता था मानो उस पल स्तुति ने मेरे नाराज़ होने और उससे कभी बता न करने की कल्पना कर ली हो!

अपनी दीदी को यूँ हार मानते देख आयुष ने पहले अपनी दीदी को सँभाला, फिर स्तुति का ध्यान भटकाने के लिए आयुष ने उस दिन की घटना का जिक्र किया जब मैं दोनों (नेहा-आयुष) से नाराज़ हो गया था; "एक बार मैं और दीदी, पापा जी से लड़ पड़े थे क्योंकि उन्होंने हमें बाहर घुमाने का प्लान अचानक कैंसिल कर दिया था| तब गुस्से में आ कर हमने पापा जी से बहुत गंदे तरीके से बात की और उनसे बात करनी बंद कर दी| लेकिन फिर दादी जी ने हमें बताया की साइट पर सारा काम पापा जी को अकेला सँभालना था, ऊपर से मैंने पापा जी के फ़ोन की बैटरी गेम खेलने के चक्कर में खत्म कर दी थी इसलिए पापा जी हमें फ़ोन कर के कुछ बता नहीं पाए| सारा सच जानकार हमें बहुत दुःख हुआ की हमने पापा जी को इतना गलत समझा| मैंने और दीदी ने पापा जी से तीन दिन तक माफ़ी माँगी पर पापा जी ने हमें माफ़ नहीं किया क्योंकि हम अपनी गलती पापा जी के सामने स्वीकारे बिना ही उनसे माफ़ी माँग रहे थे!

फिर मैंने और दीदी ने अपनी सारी हिम्मत बटोरी और कान पकड़ कर पापा जी के सामने अपनी गलती स्वीकारी| तब जा कर पापा जी ने हमें माफ़ किया और हमें गोदी ले कर खूब लाड-प्यार किया| उस दिन से हम कभी पापा जी से नाराज़ नहीं होते थे, जब भी हमें कुछ बुरा लगता तो हम सीधा उनसे बात करते थे और पापा जी हमें समझाते तथा हमें लाड-प्यार कर या बाहर से खिला-पिला कर खुश कर देते|



आपको पता है स्तुति, पापा जी हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं ताकि वो हमारी जर्रूरतें, हमारी सारी खुशियाँ पूरी कर सकें| हाँ, कभी-कभी वो काम में बहुत व्यस्त हो जाते हैं और हमें ज्यादा समय नहीं दे पाते लेकिन वो हमेशा तो व्यस्त नहीं रहते न?! हमें चाहिए की हम पापा जी की मजबूरियाँ समझें, वो हमारे लिए जो कुर्बानियाँ देते हैं उन्हें समझें और पापा जी की कदर करें| यूँ छोटी-छोटी बातों पर हमें पापा जी से नाराज़ नहीं होना चाहिए, इससे उनका दिल बहुत दुखता है|" आज आयुष ने वयस्कों जैसी बात कर अपनी छोटी बहन को एक पिता की जिम्मेदारियों से बारे में समझाया था| वहीं, स्तुति को अपने बड़े भैया की बात अच्छे से समझ आ गई थी और उसे अब अपने किये गुस्से पर पछतावा हो रहा था|



दूसरी तरफ नेहा, अपने छोटे भाई की बातें सुन कर पछता रही थी! आयुष, नेहा से 5 साल छोटा था परन्तु वो फिर भी मुझे अच्छे से समझता था, जबकि नेहा सबसे बड़ी हो कर भी मुझे हमेशा गलत ही समझती रही|

आयुष की बातों से नेहा की आँखों से पछतावे के आँसूँ बह निकले| स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को यूँ रोते हुए देखा तो वो एकदम से अपनी दिद्दा से लिपट गई और नेहा को दिलासे देते हुए बोली; "रोओ मत दिद्दा! सब ठीक हो जायेगा!" स्तुति ने नेहा को हिम्मत देनी चाही मगर नेहा हिम्मत हार चुकी थी इसलिए उसके लिए खुद को सँभालना मुश्किल था| स्तुति ने अपने बड़े भैया को भी इशारा कर नेहा के गले लगने को कहा| दोनों भाई बहन ने नेहा को अपनी बाहों में जकड़ लिया और नेहा को हिम्मत देने लगे|



आयुष और स्तुति के आलिंगन से नेहा को कुछ हिम्मत मिली और उसने खुद को थोड़ा सँभाला| अपनी दीदी का मन खुश करने के लिए आयुष ने नेहा को पढ़ाने के लिए कहा, वहीं स्तुति ने मुझे वीडियो कॉल कर दिया| जैसे ही मैंने फ़ोन उठाया वैसे ही स्तुति ने फ़ोन टेबल पर रख दिया और कान पकड़ कर उठक-बैठक करने लगी! “बेटा, ये क्या कर रहे हो आप?” मैंने स्तुति को रोकते हुए पुछा तो स्तुति एकदम से भावुक हो गई और बोली; " पापा जी, छोलि (sorry)!!! मुझे माफ़ कर दो, मैंने आपको गुच्छा किया! मैं...मुझे नहीं पता था की आप काम करने के लिए इतने दूर गए हो| मुझे माफ़ कर दो पापा जी! मुझसे नालाज़ (नाराज़) नहीं होना!” ये कहते हुए स्तुति की आँखें भर आईं थीं और उसका गला भारी हो गया था|

"बेटा, किसने कहा मैं आपसे नाराज़ हूँ?! मैं कभी अपनी प्यारु बेटु से नाराज़ हो सकता हूँ?! मेरी एक ही तो छोटी सी प्यारी सी बेटी है!" मैंने स्तुति को लाड कर हिम्मत दी और रोने नहीं दिया|

"आप मुझसे नालाज़ नहीं?" स्तुति अपने मन की संतुष्टि के लिए तुतलाते हुए पूछने लगी|

"बिलकुल नहीं बेटा! आप मुझे इतनी प्यारी करते हो तो अगर आपने थोड़ा सा गुच्छा कर दिया तो क्या हुआ? जो प्यार करता है, वही तो हक़ जताता है और वही गुच्छा भी करता है|" मैंने स्तुति को बहलाते हुए थोड़ा तुतला कर कहा तो स्तुति को इत्मीनान हुआ की मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ| स्तुति अब फिर से खिलखिलाने लगी थी और मैं भी अपनी बिटिया को खिलखिलाते हुए देख मैं बहुत खुश था|



खैर, हम दोनों दोस्त अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे और वहाँ से शुरू हुई एक दिलचस्प यात्रा! बस स्टैंड से गॉंव जाने का रास्ता एक ट्रेक (trek) था! मुझे ट्रैकिंग (trekking) करना बहुत पसंद था इसलिए इस ट्रेक के लिए मैं अतिउत्साहित था| कच्चे रास्तों, जंगल और एक झरने को पार कर हम आखिर उस गॉंव पहुँच ही गए| पूरा रास्ता दिषु बस ये ही शिकायत करता रहा की ये रास्ता कितना जोखम भरा और दुर्गम है! वहीं मैं बस ये शिकायत कर रहा था की; "बहनचोद ऑफिस के डाक्यूमेंट्स ऐसी जगह कौन रखता है?!"

"कंपनी का मालिक भोसड़ी का! साले मादरचोद ने सारे रिकार्ड्स और डाक्यूमेंट्स अपने पुश्तैनी घर में रखे हैं|” दिषु गुस्से से बिलबिलाते हुए बोला|



ट्रेक पूरा कर ऊपर पहुँचते-पहुँचते हमें शाम के 6 बज गए थे| यहाँ हमारे रहने के लिए एक ऑफिस में व्यवस्था की गई थी इसलिए नहा-धो कर हमने खाना खाया और 8 बजते-बजते लेट गए| पहाड़ी इलाका था इसलिए हमें ठंड लगने लगी थी| ओढ़ने के लिए हमारे पास दो-दो कंबल थे मगर हम जानते थे की ज्यों-ज्यों रात बढ़ेगी ठंड भी बढ़ेगी! "यार आज रात तो कुक्कड़ बनना तय है हमारा!" मैं चिंतित हो कर बोला| मेरी बात सुन दिषु ने अपने बैग से ऐसी चीज़ निकाली जिसे देखते ही मेरी सारी ठंड उड़न छू हो गई!

‘रम’ (RUM) दो अक्षर के इस जादूई शब्द ने बिना पिए ही हमारे शरीर में गर्मी भरनी शुरू कर दी थी| "शाब्बाश!" मैं ख़ुशी से दिषु की पीठ थपथपाते हुए बोला| बस फिर क्या था हम दोनों ने 2-2 नीट (neat) पेग खींचे और लेट गए| रम की गर्माहट के कारण हमें ठंड नहीं लगी और हम चैन की नींद सो गए| अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर हमने काम शुरू किया| हमारे खाने-पीने का इंतज़ाम पहले से हो रखा था इसलिए हमें कोई चिंता नहीं थी| इसी के साथ आज रात में सोते समय दिषु ने एक और चीज़ का प्रबंध कर दिया था| रात को सोते समय साले ने हमें खाना बना कर देने वाले खानसामे से हशीश का जुगाड़ कर लिया था! "भोसड़ी के, ये कहाँ से लाया तू?" मैंने हैरान होते हुए पुछा तो दिषु ने मुझे सच बताया की वो यहाँ आने से पहले सारी प्लानिंग कर के आया था|



हशीश हमने ले तो ली मगर दिषु ने आज तक सिगरेट नहीं पी थी! वहीं मैंने सिगरेट तो पी थी मगर मैंने कभी इस तरह का ड्रग्स नहीं लिया था| कुछ नया काण्ड करने का जोश हम दोनों दोस्तों में भरपूर था इसलिए कमर कस कर हमने सोच लिया की आज तो हम ये नया नशा ट्राय कर के रहेंगे|



जब मैं छोटा था तब मैंने कुछ लड़कों को गॉंव में चरस आदि पीते हुए देखा था इसलिए हशीश को सिगरेट में भरने के लिए जो गतिविधि करनी होती है मैं उससे रूबरू था| हम दोनों अनाड़ी नशेड़ी अपना-अपना दिमाग लगा कर हशीश के साथ प्रयोग करने लगे| आधा घंटा लगा हमें एक सिगरेट भरने में, जिसमें हमने अनजाने में हमने हशीश की मात्रा ज्यादा कर दी थी|



सिगरेट तैयार हुई तो दिषु ने मुझे पहले पीने को कहा ताकि मैं उसे सिगरेट पीना सीखा सकूँ| मैंने भी चौधरी बनते हुए दिषु को एक शिक्षक की तरह अच्छे से समझाया की उसे सिगरेट का पहला कश कैसे खींचना है|

सिगरेट पीने का सिद्धांत मैं दिषु को सीखा चूका था, अब मुझे उसे सिगरेट का पहला कश खींच कर दिखाना था| सिगरेट जला कर मैंने पहला कश जानबूझ कर छोटा खींचा ताकि कहीं मुझे खाँसी न आ जाए और दिषु के सामने मेरी किरकिरी न हो जाये| पहला कश खींचने के बाद मुझे कुछ महसूस नहीं हुआ, ऐसा लगा मनो मैं कोई साधारण सिगरेट पी रहा हूँ| हाँ सिगरेट की महक अलग थी और मुझे ये बहुत अच्छी भी लग रही थी|



फिर बारी आई दिषु की, जैसे ही उसने पहल कश खींचा उसे जोर की खाँसी आ गई! दिषु को बुरी तरह खाँसते हुए देख मुझे हँसी आ गई और मैं अपना पेट पकड़ कर हँसने लगा| "बहनचोद! क्या है ये?! साला गले में जा कर ऐसी लगी की खांसी बंद नहीं हो रही मेरी! तू ही पी!" दिषु गस्से में बोला और सिगरेट मुझे दे दी| मैंने दिषु को सिखाया की उसे छोटे-छोटे कश लेने है और शुरू-शुरू में धुआँ गले से उतारना नहीं बल्कि नाक से निकालना है| जब वो नाक से निकालना सीख जाए तब ही धुएँ को गले से नीचे उतार कर रोकना है|

इस बार जब दिषु ने कश खींचा तो उसे खाँसी नहीं आई| लेकिन उसे हशीश के नशे का पता ही नहीं चला! "साला चूतिया कट गया अपना, इसमें तो साले कोई नशा ही नहीं है!" दिषु मुझे सिगरेट वापस देते हुए बोला| बात तो दिषु की सही थी, आधी सिगरेट खत्म हो गई थी मगर नशा हम दोनों को महसूस ही नहीं हो रहा था|



दिषु का मन सिगरेट से भर गया था इसलिए उसने रम के दो पेग बना दिए| बची हुई आधी सिगरेट मैंने पी कर खत्म की और रम का पेग एक ही साँस में खींच कर लेट गया| उधर दिषु ने भी मेरी देखा-देखि एक साँस में अपना पेग खत्म किया और लेट गया|



करीब आधे घंटे बाद दिषु बोला; "भाई, सिगरेट असर कर रही है यार! मेरा दिमाग भिन्नाने लगा है!" दिषु की बात सुन मैं ठहाका मार कर हँसने लगा| चूँकि मेरे जिस्म की नशे को झेलने की लिमिट थोड़ी ज्यादा थी इसलिए मुझे अभी केवल खुमारी चढ़नी शुरू हो रही थी|

करीब 10 मिनट तक हम दोनों बकचोदी करते हुए हँसते रहे| अब दिषु को आ रही थी नींद इसलिए वो तो हँसते-हँसते कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला| इधर हशीश का नशा धीरे-धीरे मेरे सर चढ़ने लगा था| मेरा दिमाग अब काम करना बंद कर चूका था इसलिए मैं कमरे की छत को टकटकी बाँधे देखे जा रहा था| चूँकि अभी दिमाग शांत था तो मन ने बोलना शुरू कर दिया था|



छत को घूरते हुए मुझे नेहा की तस्वीर नज़र आ रही थी| नेहा के बचपन का वो हिस्सा जो हम दोनों ने बाप-बेटी की तरह ख़ुशी-ख़ुशी काटा था, उस बचपन का हर एक दृश्य मैं छत पर किसी फिल्म की तरह देखता जा रहा था| इन प्यारभरे दिनों को याद कर मेरा मन प्रसन्नता से भर गया था|

कुछ देर बाद इन प्यारभरे दिनों की फिल्म खत्म हुई और नेहा के कहे वो कटु शब्द मुझे याद आये| वो पल मेरे लिए मेरी ज़िन्दगी का सबसे दुखद पल था, ऐसा पल जिसे में इतने महीनों में चाह कर भी नहीं भुला पाया था| उस दृश्य को याद कर दिल रोने लगा पर आँखों से आँसूँ का एक कतरा नहीं निकला, ऐसा लगता था मानो जैसे आँखों का सारा पानी ही मर गया हो! जब-जब मैंने घर में नेहा को देखा, मेरा दिल उन बातों को याद कर दुखता था| लेकिन इतना दर्द महसूस करने पर भी मेरे मन से नेहा के लिए कोई बद्दुआ नहीं निकली| मैं तो बस अपनी पीड़ा को दबाने की कोशिश करता रहता था ताकि कहीं मेरी माँ मेरा ये दर्द न देख लें! माँ और दुनिया के सामने खुद को सहेज के रखने के चक्कर में मेरे दिमाग ने मेरे दिल को एक कब्र में दफना दिया था| इस कब्र में कैद हो कर मेरी सारी भावनाएं मर गई थीं| नकारात्मक सोच ने मेरे मस्तिष्क को अपनी चपेट में इस कदर ले लिया था की मैं ये मानने लगा था की स्तुति और आयुष बड़े हो कर, नेहा की ही तरह मेरा दिल दुखायेंगे| इस दुःख से बचने के लिए मैंने अभी इ खुद को कठोर बनाने की तैयारी करनी शुरू कर दी थी, ताकि भविष्य में जब आयुष और स्तुति मेरा दिल दुखाएँ तो मुझे दुःख और अफ़सोस कम हो!



समय का पहिया घुमा और फिर नेहा के साथ वो हादसा हुआ| उस दिन नेहा के रोने की आवाज़ अब भी मेरे कानों में गूँज रही थी| मैंने अपने गुस्से में आ कर जो किया उसके लिए मुझे रत्ती भर पछतावा नहीं था| मुझे चिंता थी तो बस दो, पहली ये की नेहा कहीं उस हादसे के कारण कोई गलत कदम न उठा ले और दूसरी ये की मेरी बिटिया के दामन पर कोई कीचड़ न उछाले| शायद यही कारण था की मैंने आजतक दिषु से उस हादसे का ज़िक्र नहीं किया|

उस हादसे को याद करते हुए मुझे वो पल याद आया जब नेहा ने मुझसे माफ़ी माँगी थी| उस समय मैंने कैसे खुद को रोने से रोका था, ये बस मैं ही जानता हूँ| नेहा की आँखों में मुझे पछतावा दिख रहा था मगर नेहा अपने किये के लिए जो कारण बता रही थी वो मुझे बस बहाने लग रहे थे इसीलिए मैं नेहा को माफ़ नहीं कर पा रहा था|



लेकिन जब संगीता ने मुझसे स्टोर में वो सवाल पुछा की क्या मैं नेहा से नफरत करता हूँ, तब पता नहीं मेरे भीतर क्या बदलाव पैदा हुआ की मैं थोड़ा-थोड़ा पिघलने लगा| मेरे दिमाग ने मेरे दिल को जिस कब्र में बंद कर दिया था, वो कब्र जैसे किसी ने फिर से खोद दी थी और मेरा दिल फिर से बाहर निकलने को बेकरार हो रहा था|

ज्यों-ज्यों संगीता, नेहा को मेरे नज़दीक धकेलने की जुगत करने में लगी थी त्यों-त्यों मेरा गुस्सा कमजोर पड़ने लगा था| उस रात जब नेहा मुझसे लिपट कर सो रही थी और मैं दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गया था, तब नेहा की सिसकियों को सुन मेरा नाज़ुक सा दिल रोने लगा था मगर मेरे दिमाग में भरे गुस्से ने मुझे उस कमरे से उठ कर जाने पर विवश कर दिया था| अकेले कमरे में सोते हुए मेरा मन इस कदर बेचैन था की मैं बस करवटें बदले जा रहा था| मैं खुद को नेहा के सामने कठोर साबित तो करना चाहता था मगर मैं अपनी बिटिया का प्यारा सा दिल भी नहीं दुखाना चाहता था इसीलिए अगली रात से मैं नेहा के मुझसे लिपटने पर दूसरी तरफ करवट ले कर लेट जाया करता था| इससे मैं नेहा के सामने कठोर भी साबित होता था और नेहा का दिल भी नहीं दुखता था|

उस रात जब नेहा ने सारा खाना बनाया, तो अपनी बेटी के हाथ का बना खाना पहलीबार खा कर मेरा मन बहुत प्रसन्न था| मैं नेहा को गले लगा कर लाड करना चाहता था परन्तु मेरा क्रोध मुझे रोके था| लेकिन फिर भी अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए मैंने माँ के हाथों उसे शगुन दिलवा कर उसकी मेहनत को सफल बना दिया|

परन्तु मुझे संगीता की नेहा को मेरे नज़दीक करने की चालाकी समझ आ चुकी थी और मेरे अहम ने मुझे सचेत कर इस प्यार में न पड़ने को सचेत कर दिया था| यही कारण था की मैं जानबूझ कर काम करने के बहाने कंप्यूटर चालु किये बैठा था| मेरी इस बेरुखी के कारण मेरी बिटिया का दिल टूट गया और वो सिसकते हुए खुद कमरे से चली गई| अपनी बेटी का दिल दुखा कर मैं खुश नहीं था, मेरा अहम भले ही जीत गया हो मगर मेरा नेहा के प्रति प्यार हार गया था!

इतने दिनों से नेहा के सामने खुद को कठोर दिखाते-दिखाते मैं थक गया था| असल बात ये थी की नेहा को यूँ पछतावे की अग्नि में जलते हुए देख मैं भी तड़प रहा था मगर दिमाग में बसा मेरा गुस्सा मुझे फिर से पिघलने नहीं दे रहा था| नेहा ने बहुत बड़ी गलती की थी मगर एक पिता उसे इस गलती के लिए भी माफ़ करना चाहता था, लेकिन मेरा अहम मुझे बार-बार ये कह कर रोक लेता था की क्या होगा अगर कल को नेहा ने फिर कभी मेरा दिल इस कदर दुखाया तो?! अपनी बड़ी बेटी के कारण मैं एक बार टूट चूका था, वो तो स्तुति का प्यार था जिसने मुझे बिखरने से थाम लिया था, लेकिन दुबारा टूटने की मुझ में हिम्मत नहीं थी|


कमरे की छत को देखते हुए मेरे मन ने अपना रोना रो लिया था मगर इसका निष्कर्ष निकलने में मैं असफल रहा| वैसे भी नशे के कारण मेरा दिमाग काम करना बंद कर चूका था तो मैं क्या ही कोई निष्कर्ष निकालता| अन्तः सुबह के दो बजे धीरे-धीरे नशे के कारण मेरी आँखें बोझिल होती गईं और मैं गहरी नींद में सो गया|

अगली सुबह मुझे दिषु ने उठाया और मेरी हालत देख कर थोड़ा चिंतित होते हुए बोला; "तू सोया नहीं क्या रात भर?" दिषु के सवाल ने मुझे कल रात मेरे भीतर मचे अंतर्द्व्न्द की याद दिला दी इसलिए मैंने बस न में सर हिलाया और नहा-धोकर काम में लग गया| काम बहुत ज्यादा था, मनोरंजन के लिए न तो इंटरनेट था और न ही टीवी इसलिए हम 24 घंटों में से 18 घंटे काम कर रहे थे ताकि जल्दी से काम निपटा कर इस पहाड़ से नीचे उतरें और इंटरनेट चला सकें| वहीं यहाँ आ कर मुझे माँ की चिंता हो रही थी और मैं माँ से फ़ोन पर बात करने को बेचैन हो रहा था| माँ से अगर बात करनी थी तो मुझे 8 किलोमीटर का ट्रेक कर नीचे जाना पड़ता और ये ट्रेक कतई आसान नहीं था क्योंकि पूरा रास्ता कच्चा और सुनसान था तथा जंगली जानवरों का भी डर था इसलिए नीचे अकेला जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी! खाने-पीने का सामान नीचे से आता था इसलिए मैंने एक आदमी को अपने घर का नंबर दे कर कहा था की वो वापस जाते समय मेरे सकुशल होने की खबर मेरे घर पहुँचा दे| माँ को मेरे सकुशल होने की खबर तो मिल गई थी मगर घर में क्या घटित हो रहा था इसकी खबर मुझे मिली ही नहीं!



उधर घर पर, स्तुति मेरी गैरमौजूदगी में उदास हो गई थी| अब फ़ोन पर बात हो नहीं सकती थी इसलिए स्तुति को अपना मन कैसा न कैसे बहलाना था| अतः स्तुति पड़ गई अपनी मम्मी के पीछे और संगीता की मदद करने की कोशिश करने लगी| लेकिन मदद करने के चक्कर में स्तुति अपनी मम्मी के काम बढ़ाती जा रही थी| “शैतान!!! भाग जा यहाँ से वरना मारूँगी एक!” संगीता ने स्तुति को डाँट कर भागना चाहा मगर स्तुति अपनी मम्मी को मेरे नाम का डर दिखाते हुए बोली; "आने दो पापा जी को, मैं पापा जी को सब बताऊँगी!" स्तुति ने अपन मुँह फुलाते हुए अपनी मम्मी को धमकाना चाहा मगर संगीता एक माँ थी इसलिए उसने स्तुति को ही डरा कर चुप करा दिया; "जा-जा! तुझे तो डाटूँगी ही, तेरे पापा जी को भी डाँटूंगी!" मुझे डाँट पड़ने के नाम से स्तुति घबरा गई और अपनी दिद्दा के पास आ गई|

स्तुति को लग रहा था की उसकी शैतानियों की वजह से कहीं मुझे न डाँट पड़े इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से पूछने लगी; "दिद्दा, क्या मैं बहुत शैतान हूँ?" स्तुति के मुख से ये सवाल सुन नेहा थोड़ा हैरान थी| परन्तु, नेहा कुछ कहे उसके पहले ही माँ आ गईं| माँ ने स्तुति क सवाल सुन लिया था इसलिए माँ ने स्तुति को गोदी लिया और उसे लाड करते हुए बोलीं; "किसने कहा मेरी शूगी शैतान है?" जैसे ही माँ ने स्तुति से ये सवाल किया, वैसे ही स्तुति ने फट से अपनी मम्मी की शिकायत कर दी; "मम्मी ने!"



अपनी पोती की शिकयत सुन माँ को हँसी आ गई, माँ ने जैसे-तैसे अपनी हँसी दबाई और संगीता को आवाज़ लगाई; "ओ संगीता की बच्ची!" जैसे ही माँ ने संगीता को यूँ बुलाया, वैसे ही स्तुति एकदम से बोली; "दाई, मम्मी की बच्ची तो मैं हूँ!" स्तुति की हाज़िर जवाबी देख माँ की दबी हुई हँसी छूट गई और माँ ने ठहाका मार कर हँसना शुरू कर दिया|

"बहु इधर आ जल्दी!" माँ ने आखिर अपनी हँसी रोकते हुए संगीता को बुलाया| जैसे ही संगीता आई माँ ने उसे प्यार से डाँट दिया; "तू मेरी शूगी को शैतान बोलती है! आज से जो भी मेरी शूगी को शैतान बोलेगा उसे मैं बाथरूम में बंद कर दूँगी! समझी!!!" माँ की प्यारभरी डाँट सुन संगीता ने डरने का बेजोड़ अभिनय किया! अपनी मम्मी को यूँ डरते देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और उसने अपनी मम्मी को ठेंगा दिखा कर चिढ़ाना शुरू कर दिया|



अपनी दादी जी से अपनी मम्मी को डाँट खिला कर स्तुति का मन नहीं भरा था इसलिए स्तुति ने अपनी नानी जी को फ़ोन कर अपनी मम्मी की शिकायत लगा दी; "नानी जी, मम्मी कह रही थी की वो मेरे पापा जी को डाटेंगी!" अपनी नातिन की ये प्यारी सी शिकयत सुन स्तुति को नानी जी को बहुत हँसी आई| अब उन्हें अपनी नातिन का दिल रखना था इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को प्यारभरी डाँट लगा दी; "तू हमार मुन्ना का डांटइहो, तोहका मार-मार के सोझाये देब!" अपनी माँ की डाँट सुन पहले तो संगीता को हैरानी हुई मगर जब उसने स्तुति को देखा तो वो सब समझ गई| "आप जब मारोगे तब मरोगे, पहले मैं इस चुहिया को कूट-पीट कर सीधा करूँ!" इतना कह संगीता स्तुति को झूठ-मूठ का मारने के लिए दौड़ी| अब स्तुति को बचानी थी अपनी जान इसलिए दोनों माँ-बेटी पूरे घर में दौड़ा-दौड़ी करते रहे, जिससे आखिर स्तुति का मन बहल ही गया!



जहाँ एक तरफ स्तुति के कारण घर में खुशियाँ फैली थीं, तो वहीं दूसरी तरफ घर का एक कोना ऐसा भी था जो वीरान था!


मेरे घर में न होने का जिम्मेदार नेहा ने खुद को बना लिया था| नेहा को लग रहा था की मैं उससे इस कदर नाराज़ हूँ की मैं जानबूझ कर घर छोड़कर ऐसी जगह चला गया हूँ जहाँ मैं अकेला रह सकूँ| नेहा के अनुसार उसके कारण एक माँ को अपने बेटे के बिना रहना पड़ रहा था, एक छोटी सी बेटी (स्तुति) को अपने पापा जी के बिना घर में सबसे प्यार माँगना पड़ रहा था तथा हम पति-पत्नी के बीच जो बोल-चाल बंद हुई थी उसके लिए भी नेहा खुद को जिम्मेदार समझ रही थी|

मेरे नेहा से बात न करने, उसे पुनः अपनी बेटी की तरह प्यार न करने के कारण नेहा पहले ही बहुत उदास थी, उस पर नेहा ने इतने इलज़ाम खुद अपने सर लाद लिए थे की ये सब उसके मन पर बोझ बन बैठे थे| मन पर इतना बोझा ले लेने से नेहा को साँस तक लेने में दिक्कत हो रही थी|



नेहा इस समय बहुत ही नाज़ुक दौर से गुज़र रही थी| उसके मन में जन्में अपराधबोध ने नेहा को इस कदर घेर लिया था की वो खुद को सज़ा देना चाहती थी| नेहा ने खुद को एकदम से अकेला कर लिया था| स्कूल से आ कर नेहा सीधा अपनी पढ़ाई में लग जाती, माँ को कई बार नेहा को खाने के लिए कहना पड़ता तब जा कर नेहा एक-आध रोटी खाती| कई बार तो नेहा टूशन जाने का बहाना कर बाद में खाने को कहती मगर कुछ न खाती|

माँ और संगीता, नेहा की पढ़ाई की तरफ लग्न देख इतने खुश थे की उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया की नेहा ठीक से खाना खा रही है या नहीं| वहीं खाने में आनाकानी के अलावा नेहा ने देर रात जाग कर पढ़ना शुरू कर दिया| एक बार तो माँ ने नेहा को प्यार से डाँट भी दिया था की यूँ देर रात तक जाग कर पढ़ना अच्छी बात नहीं|



नेहा को लग रहा था की उसके इस तरह अपने शरीर को कष्ट दे कर वो पस्चताप कर रही है मगर नेहा का शरीर ये पीड़ा सहते-सहते अपनी आखरी हद्द तक पहुँच चूका था| मुझे खोने की मानसिक पीड़ा और अपने शरीर को इस प्रकार यातना दे कर नेहा ने अपनी तबियत खराब कर ली थी!



मेरी अनुपस्थिति में आयुष और स्तुति अपनी दादी जी के पास कहानी सुनते हुए सोते थे, बची माँ-बेटी (नेहा और संगीता) तो वो दोनों हमारे कमरे में सोती थीं| देर रात करीब 1 बजे नेहा ने नींद में मेरा नाम बड़बड़ाना शुरू किया; "पा...पा...जी! पा...पा...जी!" नेहा की आवाज़ सुन संगीता की नींद टूट गई| अपनी बेटी को यूँ नींद मेरा नाम बड़बड़ाते हुए देख संगीता को दुःख हुआ की एक तरफ नेहा मुझे इतना प्यार करती है की मेरी कमी महसूस कर वो नींद में मेरा नाम ले रही है, तो दूसरी तरफ मैं इतना कठोर हूँ की नेहा से इतनी दूरी बनाये हूँ|

अपनी बेटी को सुलाने के लिए संगीता ने ज्यों ही नेहा के मस्तक पर हाथ फेरा, त्यों ही उसे नेहा के बढे हुए ताप का एहसास हुआ! मुझे खो देने का डर नेहा के दिमाग पर इस कदर सवार हुआ की नेहा को बुखार चढ़ गया था! संगीता ने फौरन नेहा को जगाया मगर नेहा के शरीर में इतनी शक्ति ही नहीं बची थी की वो एकदम से जाग सके| संगीता ने फौरन माँ को जगाया, दोनों माओं ने मिल कर नेहा को बड़ी मुश्किल से जगाया और उसका बुखार कम करने के लिए क्रोसिन की दवाई दी| क्रोसिन के असर से नेहा का बुखार तो काम हुआ मगर नेहा का शरीर एकदम से कमजोर हो चूका था| नेहा से न तो उठा जा रहा था और न ही बैठा जा रहा था| नेहा को डॉक्टरी इलाज की जर्रूरत थी परन्तु रात के इस पहर में माँ और संगीता के लिए नेहा को अस्पताल ले जाना आसान नहीं था इसलिए अब सिवाए सुबह तक इंतज़ार करने के दोनों के पास कोई चारा न था| नेहा की हालत गंभीर थी इसलिए माँ और संगीता सारी रात जाग कर नेहा का बुखार चेक करते रहे|



अगली सुबह जब आयुष और स्तुति जागे तो उन्हें नेहा के स्वास्थ्य के बारे में पता चला| नेहा को बीमार देख आयुष ने जिम्मेदार बनते हुए अस्पताल जाने की तैयारी शुरू की, वहीं स्तुति बेचारी अपनी दिद्दा को इस हालत में देख नहीं पा रही थी इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से लिपट कर रोने लगी| नेहा में अभी इतनी भी शक्ति नहीं थी की वो स्तुति को चुप करवा सके इसलिए नेहा ने आयुष को इशारा कर स्तुति को सँभालने को कहा| "स्तुति, अभी पापा जी नहीं हैं न, तो आपको यूँ रोना नहीं चाहिए बल्कि आपको तो दीदी का ख्याल रखना चाहिए|" आयुष ने स्तुति को उसी तरह जिम्मेदारी देते हुए सँभाला जैसे मैं आयुष के बालपन में उसे सँभालता था|
अपने बड़े भैया की बात सुन स्तुति ने फौरन अपने आँसूँ पोछे और अपनी दिद्दा के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "दीदी, आप जल्दी ठीक हो जाओगे| फिर है न मैं आपको रोज़ रस-मलाई खिलाऊँगी|" स्तुति जानती थी की उसकी दीदी को रस-मलाई कितनी पसंद है इसलिए स्तुति ने अपनी दिद्दा को ये लालच दिया ताकि नेहा जल्दी ठीक हो जाए|





जब भी मैं ऑडिट पर जाता था तो मैं हमेशा माँ को एक दिन ज्यादा बोल कर जाता था क्योंकि जब मैं एक दिन पहले घर लौटता था तो मुझे देख माँ का चेहरा ख़ुशी से खिल जाया करता था| इसबार भी मैंने एक दिन पहले ही काम निपटा लिया और दिषु के साथ घर के लिए निकल पड़ा|

सुबह के 6 बजे मैं घर पहुँचा और दरवाजा खटखटाया| दरवाजा संगीता ने खोला, मुझे लगा था की मुझे जल्दी घर आया देख संगीता का चेहरा ख़ुशी के मारे चमकने लगेगा मगर संगीता के चेहरे पर चिंता की लकीरें छाई हुईं थीं! "क्या हुआ?" मैंने चिंतित हो कर पुछा तो संगीता के मुख से बस एक शब्द निकला; "नेहा"| इस एक शब्द को सुनकर मैं एकदम से घबरा गया और नेहा को खोजते हुए अपने कमरे में पहुँचा|



कमरे में पहुँच मैंने देखा की नेहा बेहोश पड़ी है! अपनी बिटिया की ये हालत देख मेरा कलेजा मुँह को आ गया! मैंने फौरन नेहा का मस्तक छू कर उसका बुखार देखा तो पाया की नेहा का शरीर भट्टी के समान तप रहा है! नेहा की ये हालत देख मुझे संगीता पर बहुत गुस्सा आया; “मेरी बेटी का शरीर यहाँ बुखार से तप रहा है और तुम....What the fuck were you doing till now?! डॉक्टर को नहीं बुला सकती थी?!” मेरे मुख से गाली निकलने वाली थी मगर मैंने जैसे-तैसे खुद को रोका और अंग्रेजी में संगीता को झाड़ दिया!

इतने में माँ नहा कर निकलीं और मुझे अचानक देख हैरान हुईं| फिर अगले ही पल माँ ने मुझे शांत करते हुए कहा; "बेटा, डॉक्टर सरिता यहाँ नहीं हैं वरना हम उन्हें बुला न लेते|" मैंने फौरन अपना फ़ोन निकाला और घर के नज़दीकी डॉक्टर को फ़ोन कर बुलाया| इन डॉक्टर से मेरी पहचान हमारे गृह प्रवेश के दौरान हुई थी| संगीता भी इन डॉक्टर को जानती थी मगर नेहा की बिमारी के चलते उसे इन्हें बुलाने के बारे में याद ही नहीं रहा| संकट की स्थिति में हमेशा संगीता का दिमाग काम करना बंद कर देता है, इसका एक उदहारण आप सब पहले भी पढ़ चुके हैं| आपको तो मेरे चक्कर खा कर गिरने वाला अध्याय याद ही होगा न?!



डॉक्टर साहब को फ़ोन कर मैंने रखा ही था की इतने में स्तुति नहा कर निकली| मुझे देखते ही स्तुति फूल की तरह खिल गई और सीधा मेरी गोदी में आने के लिए छलाँग लगा दी| मेरे सीने से लगते ही स्तुति को चैन मिला और उसकी आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बह निकले| "पापा जी, I missed you!" स्तुति भावुक होते हुए बोली| मैंने स्तुति को लाड-प्यार कर बहलाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "I missed you too मेरा बच्चा!"



स्तुति को लाड कर मैंने बिठाया और अपनी बड़ी बेटी नेहा के बालों में हाथ फेरने लगा| मेरे नेहा के बालों में हाथ फेरते ही एक चमत्कार हुआ क्योंकि बेसुध हुई मेरी बेटी नेहा को होश आ गया| नेहा मेरे हाथ के स्पर्श को पहचानती थी अतः अपने शरीर की सारी ताक़त झोंक कर नेहा ने अपनी आँखें खोलीं और मुझे अपने सामने बैठा देखा, अपने बालों में हाथ फेरते हुए देख नेहा को यक़ीन ही नहीं हुआ की मैं उसके सामने हूँ|

"पा..पा..जी" नेहा के मुख से ये टूटे-फूटे शब्द फूटे थे की मेरे भीतर छुपे पिता का प्यार बाहर आ गया; "हाँ मेरा बच्चा!" नेहा को मेरे मुख से 'मेरा बच्चा' शब्द सुनना अच्छा लगता था| आज जब इतने महीनों बाद नेहा ने ये शब्द सुने तो उसकी आँखें छलक गईं और नेहा फूट-फूट के रोने लगी!



"सॉ…री...पा…पा जी...मु…झे...माफ़...." नेहा रोते हुए बोली| मैंने नेहा को आगे कुछ बोलने नहीं दिया और सीधा नेहा को अपने गले लगा लिया| "बस मेरा बच्चा!" इतने समय बाद नेहा को मेरे गले लग कर तृप्ति मिली थी इसलिए नेहा इस सुख के सागर में डूब खामोश हो गई| वहीं अपनी बड़ी बिटिया को अपने सीने से लगा कर मेरे मन के सूनेपन को अब जा कर चैन मिला था|



नेहा को लाड कर मेरी नज़र पड़ी आयुष पर जो थोड़ा घबराया हुआ दरवाजे पर खड़ा मुझे देख रहा था| दरअसल, जब मैंने संगीता को डाँटा तब आयुष मुझसे मिलने ही आ रहा था मगर मेरा गुस्सा देख आयुष डर के मारे जहाँ खड़ा था वहीं खड़ा रहा| मैंने आयुष को गले लगने को बुलाया तो आयुष भी आ कर मेरे गले लग गया| मैंने एक साथ अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और बारी-बारी से तीनों के सर चूमे| मेरे लिए ये एक बहुत ही मनोरम पल था क्योंकि एक आरसे बाद आज मैं अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में समेटे लाड-प्यार कर रहा था|



कुछ देर बाद डॉक्टर साहब आये और उन्होंने नेहा का चेक-अप किया| अपने मन की संतुष्टि के लिए उन्होंने नेहा के लिए कुछ टेस्ट (test) लिखे और दवाई तथा खाने-पीने का ध्यान देने के लिए बोल चले गए| डॉक्टर साहब के जाने के बाद माँ ने मुझे नहाने को कहा तथा संगीता को चाय-नाश्ता बनाने को कहा|

चूँकि नेहा को बुखार था इसलिए उसका कुछ भी खाने का मन नहीं था, पर नेहा मुझे कैसे मना करती?! मैं खुद नेहा के लिए सैंडविच बना कर लाया और अपने हाथों से खिलाने लगा| मेरी बहुत जबरदस्ती करने के बावजूद नेहा से बस आधा सैंड विच खाया गया और बाकी आधा सैंडविच मैंने खाया|

नेहा को इस समय बहुत कमजोरी थी इसलिए नेहा लेटी हुई थी, वहीं मैं भी बस के सफर से थका हुआ था इसलिए मैं भी नेहा की बगल में लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर आराम करने लगी| स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो स्तुति मुझ पर हक़ जमाने आ गई और अपनी दीदी की तरह मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर लेट गई| स्तुति कुछ बोल नहीं रही थी मगर उसके मुझसे इस कदर लिपटने का मतलब साफ़ था; 'दिद्दा, आप बीमार हो इसलिए आप पापा जी के साथ ऐसे लिपट सकते हो वरना पपई के साथ लिपट कर सोने का हक़ बस मेरा है!' स्तुति के दिल की बात मैं और नेहा महसूस कर चुके थे इसलिए स्तुति के मुझ पर इस तरह हक़ जमाने पर हम दोनों के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर रही थी|



स्तुति अपनी दिद्दा के साथ सब कुछ बाँट सकती थी मगर जब बात आती थी मेरे प्यार की तो स्तुति किसी को भी मेरे नज़दीक नहीं आने देती!



खैर, मेरे सीने पर सर रख कर लेटे हुए स्तुति की बातें शुरू हो गई थीं| मेरी गैरमजूदगी में क्या-क्या हुआ सबका ब्यौरा मुझे मेरी संवादाता स्तुति दे रही थी| मैंने गौर किया तो मेरे आने के बाद से ही स्तुति मुझे 'पपई' के बजाए 'पापा जी' कह कर बुला रही थी| जब मैंने इसका कारण पुछा तो मेरी छोटी बिटिया उठ बैठी और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "आप घर में नहीं थे न, तो मुझे बहुत अकेलापन लग रहा था| मुझे एहसास हुआ की पूरे घर में एक आप हो जो मुझे सबसे ज्यादा प्यारी करते हो इसलिए मैंने सोच लिया की मैं अब से आपको पपई नहीं पापा जी कहूँगी|" स्तुति बड़े गर्व से अपना लिया फैसला मुझे सुनाते हुए बोली| मेरी छोटी सी बिटिया अब इतनी बड़ी हो गई थी की वो मेरी कमी को महसूस करने लगी थी| इस छोटी उम्र में ही स्तुति को मेरे पास न होने पर अकेलेपन का एहसास होने लगा था जो की ये दर्शाता था की हम बाप-बेटी का रिश्ता कितना गहरा है| मैंने स्तुति को पुनः अपने गले से लगा लिया; "मेरी दोनों बिटिया इतनी सयानी हो गईं|" मैंने नेहा और स्तुति के सर चूमते हुए कहा| खुद को स्याना कहे जाने पर स्तुति को खुद पर बहुत गर्व हो रहा था और वो खुद पर गर्व कर मुस्कुराने लगी थी|





मैंने महसूस किया तो पाया की नेहा को मुझसे बात करनी है मगर स्तुति की मौजूदगी में वो कुछ भी कहने से झिझक रही है| अतः मैंने कुछ पल स्तुति को लाड कर स्तुति को आयुष के साथ पढ़ने भेज दिया| स्तुति के जाने के बाद नेहा सहारा ले कर बैठी और अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मैंने आपका बहुत दिल दुखाया! मेरी वजह से आप इतने दुखी थे की आप इतने दिन ऐसी जगह जा कर काम कर रहे थे जहाँ मोबाइल नेटवर्क तक नहीं मिलता था! मेरी वजह से स्तुति को इतने दिन तक आपका प्यार नहीं मिला, मेरी वजह से मम्मी और आपके बीच कहा-सुनी हुई, मेरे कारण दादी जी को...

इतने कहते हुए नेहा की आँखें फिर छलक आईं थीं| मैंने नेहा को आगे कुछ भी कहने नहीं दिया और उसकी बात काटते हुए बोला;

मैं: बस मेरा बच्चा! मैंने आपको माफ़ कर दिया! आप बहुत पस्चताप और ग्लानि की आग में जल लिए, अब और रोना नहीं है| आप तो मेरी ब्रेव गर्ल (brave girl) हो न?!

मैंने नेहा को हिम्मत देते हुए कहा| नेहा को मुझसे माफ़ी पा कर चैन मिला था इसलिए अब जा कर उसके चेहरे पर ख़ुशी और उमंग नजर आ रही थी|



नेहा को मुझसे माफ़ी मिल गई थी, अपने पापा जी का प्यार मिल गया था इसलिए नेहा पूरी तरह संतुष्ट थी| अब बारी थी संगीता की जिसे उसके प्रियतम का प्यार नहीं मिला था और नेहा ये बात जानती थी|

नेहा: मम्मी!

नेहा ने अपनी मम्मी को आवाज़ दे कर बुलाया|

संगीता: हाँ बोल?

संगीता ने नेहा से पुछा तो नेहा ने फौरन अपने कान दुबारा पकड़े और मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मेरे कारण आप दोनों के बीच लड़ाई हुई और आपने एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया|

मैंने नेहा के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दिया| फिर मैं उठ कर खड़ा हुआ तो देखा की संगीता मुझे देख कर मंद-मंद मुस्कुरा रही है! मुझे संगीता की ये मुस्कराहट समझ न आई और मैं भोयें सिकोड़े, चेहरे पर अस्चर्य के भाव लिए संगीता को देखने लगा| दरअसल, मुझे लगा था की मेरे डाँटने से संगीता नाराज़ होगी या डरी-सहमी होगी परन्तु संगीता तो मुस्कुरा रही थी! मेरे भाव समझ संगीता मुस्कुराते हुए बोली;
संगीता: मैं आपके मुझ पर गुस्सा करने से नाराज़ नहीं हूँ| मुझे तो ये देख कर बहुत ख़ुशी हुई की आपने आज इतने समय बाद नेहा पर इतना हक़ जमाया की मुझे झाड़ दिया!
संगीता को मुझ पर बहुत प्यार आ रहा था और वो अपना ये प्यार मुझे अपनी आँखों के इशारे से जता रही थी| वहीं अपनी मम्मी से ये बात सुन नेहा गर्व से फूली नहीं समा रही थी!
नेहा: मम्मी, चलो पापा जी के गले लगो!

नेहा ने प्यार से अपनी मम्मी को आदेश दिया तो हम दोनों ने मिलकर नेहा के इस आदेश का पालन किया|

अभी हम दोनों का ये आलिंगन शुरू ही हुआ था की इतने में स्तुति फुदकती हुई आ गई! अपनी मम्मी को मेरे गले लगे देख स्तुति को जलन हुई और उसने फौरन अपनी मम्मी को पीछे धकेलते हुए प्यार से चेता दिया;

स्तुति: मेरे पापा जी हैं! सिर्फ मैं अपने पापा जी के गले लगूँगी!

स्तुति की इस प्यारभरी चेतावनी को सुन हम दोनों मियाँ-बीवी मुस्कुराने लगे| वहीं नेहा को स्तुति के इस प्यारभरी चेतावनी पर गुस्सा आ गया;

नेहा: चुप कर पिद्दा! इतने दिनों बाद पापा जी और मम्मी गले लगे थे और तू आ गई कबाब में हड्डी बनने!

नेहा ने स्तुति को डाँट लगाई तो स्तुति मेरी टाँग पकड़ कर अपनी दीदी से छुपने लगी| अब अपनी छोटी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैंने इशारे से नेहा को शांत होने को कहा और स्तुति को गोदी ले उसे बहलाते हुए बोला;

मैं: वैसे स्तुति की बात सही है! वो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती है इसलिए मुझ पर पहला हक़ मेरी छोटी बिटिया का है!

मैं स्तुति को लाड कर ही रहा था की माँ कमरे में आ गईं| मुझे स्तुति को लाड करते हुए देख माँ बोलीं;

माँ: सुन ले लड़के, आज से तू फिर कभी ऐसी जगह नहीं जाएगा जहाँ तेरा फ़ोन न मिले और अगर तू फिर भी गया तो शूगी को साथ ले कर जाएगा| जानता है तेरे बिना मेरी लालड़ी शूगी कितनी उदास हो गई थी?!
माँ ने मुझे प्यार से चेता दिया तथा मैंने भी हाँ में सर हिला कर उनकी बात स्वीकार ली| उस दिन से ले कर आज तक मैं कभी ऐसी जगह नहीं गया जहाँ मोबाइल नेटवर्क न हो और मैं माँ तथा स्तुति से बात न कर पाऊँ|



नेहा को मेरा स्नेह मिला तो मानो उसकी सारी इच्छायें पूरी हो गई| मेरे प्रेम को पा कर मेरी बड़ी बिटिया इतना संतुष्ट थी की उसका बचपना फिर लौट आया था| नेहा अब वही 4 साल वाली बच्ची बन गई थी, जिसे हर वक़्त बस मेरा प्यार चाहिए होता था यानी मेरे साथ खाना, मेरे साथ कहानी सुनते हुए सोना, मेरे साथ घूमने जाना आदि|

अपनी दिद्दा को मुझसे लाड पाते देख स्तुति को होती थी मीठी-मीठी जलन नतीजन जिस प्रकार स्तुति के बालपन में दोनों बहनें मेरे प्यार के लिए आपसे में झगड़ती थीं, उसी तरह अब भी दोनों ने झगड़ना शुरू कर दिया था| हम सब को नेहा और स्तुति की ये प्यारभरी लड़ाई देख कर आनंद आता था, क्योंकि हमारे अनुसार नेहा बस स्तुति को चिढ़ाने के लिए उसके साथ झगड़ती है| लेकिन धीरे-धीरे मुझे दोनों बहनों की ये लड़ाई चिंताजनक लगने लगी| मुझे धीरे-धीरे नेहा के इस बदले हुए व्यवहार पर शक होता जा रहा था और मेरा ये शक यक़ीन में तब बदला जब मुझे कुछ काम से कानपूर जाना पड़ा जहाँ मुझे 2 दिन रुकना था|

मेरे कानपुर निकलने से एक दिन पहले जब नेहा को मेरे जाने की बात पता चली तो नेहा एकदम से गुमसुम हो गई| मैंने लाड-प्यार कर नेहा को समझाया और कानपूर के लिए निकला, लेकिन अगले दिन मेरे कानपुर के लिए निकलते ही नेहा का मन बेचैन हो गया और नेहा ने मुझे फ़ोन खड़का दिया| जितने दिन मैं कानपूर में था उतने दिन हर थोड़ी देर में नेहा मुझे फ़ोन करती और मुझसे बात कर उसके बेचैन मन को सुकून मिलता|



असल में, नेहा एक बार मुझे लगभग खो ही चुकी थी और इस बात के मलाल ने नेहा को भीतर से डरा कर रखा हुआ था| नेहा को हर पल यही डर रहता था की कहीं वो मुझे दुबारा न खो दे इसीलिए नेहा मेरा प्यार पाने को इतना बेचैन रहती थी|

नेहा के इस डर ने उसे भीतर से खोखला कर दिया था| ये डर नेहा पर इस कदर हावी होता जा रहा था की नेहा को फिर से मुझे खो देने वाले सपने आने लगे थे, जिस कारण वो अक्सर रात में डर के जाग जाती| जितना आत्मविश्वास नेहा ने इतने वर्षों में पाया था, वो सब टूट कर चकना चूर हो चूका था| स्कूल से घर और घर से स्कूल बस यही ज़िन्दगी रह गई थी नेहा की, दोस्तों के साथ बाहर जाना तो उसके लिए कोसों दूर की बात थी| कुल-मिला कर कहूँ तो नेहा ने खुद को बस पढ़ाई तथा मेरे प्यार के इर्द-गिर्द समेट लिया था| बाहर से भले ही नेहा पहले की तरह हँसती हुई दिखे परन्तु भीतर से मेरी बहादुर बिटिया अब डरी-सहमी रहने लगी थी|



नेहा के बाहर घूमने न जाने से घर में किसी कोई फर्क नहीं पड़ा था क्योंकि सब यही चाहते थे की नेहा पढ़ाई में ध्यान दे| परन्तु मैं अपनी बेटी की मनोदशा समझ चूका था और अब मुझे ही मेरी बिटिया को उसका खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः दिलाना था|



कानपूर से लौटने के बाद शाम के समय मैं, स्तुति और नेहा बैठक में बैठे टीवी देख रहे थे| नेहा को समझाने का समय आ गया था अतः मैंने स्तुति को पढ़ाई करने के बहाने से भेज दिया तथा नेहा को समझाने लगा|

मैं: बेटा, आप जानते हो न बच्चों को कभी अपने माँ-बाप से कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए, फिर आप क्यों मुझसे बातें छुपाते हो?

मैंने बिना बात घुमाये नेहा से सवाल किया ताकि नेहा खुल कर अपने जज्बात मेरे सामने रखे| परन्तु मेरा सवाल सुन नेहा हैरान हो कर मुझे देखने लगी;

नेहा: मैंने आपसे कौन सी बात छुपाई पापा जी?!

नेहा नहीं जानती थी की मैं कौन सी बात के बारे में पूछ रहा हूँ इसलिए वो हैरान थी|

मैं: बेटा, जब से आप तंदुरुस्त हुए हो, आप बिलकुल स्तुति की तरह मेरे प्यार के लिए अपनी ही छोटी बहन से लड़ने लगे हो| पहले तो मुझे लगा की ये आपका बचपना है और आप केवल स्तुति को सताने के मकसद से ये लड़ाई करते हो मगर जब आपने रोज़-रोज़ स्तुति से मेरे साथ सोने, मेरी प्यारी पाने तक के लिए लड़ना शुरू कर दिया तो मुझे आपके बर्ताव पर शक हुआ| फिर जब मैं कानपूर गया तो आपने जो मुझे ताबतोड़ फ़ोन किया उससे साफ़ है की आप जर्रूर कोई बात है जो मुझसे छुपा रहे हो| मैं आपका पिता हूँ और आपके भीतर आये इन बदलावों को अच्छे से महसूस कर रहा हूँ| अगर आप खुल कर मुझे सब बताओगे तो हम अवश्य ही इसका कोई हल निकाल लेंगे|

मैंने नेहा के कँधे पर हाथ रख उसे हिम्मत दी तो नेहा एकदम से रो पड़ी!

नेहा: पापा जी...मु...मुझे डर लगता है! में आपके बिना नहीं रह सकती! आप जब मेरे पास नहीं होते तो मैं बहुत घबरा जाती हूँ! कई बार रात में मैं आपको अपने पास न पा कर घबरा कर उठ जाती हूँ और फिर आपकी कमी महसूस कर तब तक रोती हूँ जब तक मुझे नींद न आ जाए|

उस दिन जो हुआ उसके बाद से मैं किसी पर भरोसा नहीं करती! कहीं भी अकेले जाने से मुझे इतना डर लगता है, मन करता है की मैं बस घर में ही रहूँ| स्कूल या घर से बाहर निकलते ही जब दूसरे बच्चे...ख़ास कर लड़के जब मुझे देखते हैं तो मुझे अजीब सा भय लगता है! ऐसा लगता है मानो मेरे साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है! मुझ में अब खुद को बचाने की ताक़त नहीं है इसलिए मुझे बस आपके साथ सुरक्षित महसूस होता है, मैं बस आपके पास रहना चाहती हूँ| लेकिन जब स्तुति मुझे आपके पास आने नहीं देती तो मुझे गुस्सा आता है और हम दोनों की लड़ाई हो जाती है|

नेहा की वास्तविक मनोस्थिति जान कर मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा| नेहा के साथ हुए उस एक हादसे ने नेहा को इस कदर डरा कर रखा हुआ है इसकी मैंने कल्पना नहीं की थी|



इधर अपनी बातें कहते हुए नेहा फूट-फूट कर रो रही थी इसलिए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा कर उसके सर पर हाथ फेर कर नेहा को चुप कराया| जब नेहा का रोना थमा तो मैंने नेहा के दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और नेहा को समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, ज़िन्दगी में ऐसे बहुत से पल आते हैं जो हमें बुरी तरह तोड़ देते हैं! हमें ऐसा लगता है की हम हार चुके हैं और अब हमारे पास जीने के लिए कुछ नहीं बचा| लेकिन बेटा, हमारी ज़िन्दगी में हमेशा एक न एक व्यक्ति ऐसा होता है जो हमें फिर से खड़े होने की हिम्मत देता है| वो व्यक्ति अपने प्यार से हमें सँभालता है, सँवारता है और हमारे भीतर नई ऊर्जा फूँकता है|



ज़िन्दगी में अगर कभी ठोकर लगे तो उठ कर अपने कपड़े झाड़ कर फिर से चल पड़ना चाहिए| हर कदम पर ज़िन्दगी आपके लिए एक नई चुनाती लाती है, आपको उन चुनौतियों से घबरा कर अपनी आँखें बंद नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी सूझ-बूझ से उन चुनौतियों का सामना करना चाहिए| अपने बचपन में आपने बहुत दुःख झेले मगर आपने हार नहीं मानी और जैसे-जैसे बड़े होते गए आप के भीतर आत्मविश्वास जागता गया| जब भी आप डगमगाते थे तो आपकी दादी जी, मैं, आपकी मम्मी आपके पास होते थे न आपको सँभालने के लिए, तो इस बार आप क्यों चिंता करते हो?!



अब बात करते हैं आपके किसी पर विश्वास न करने पर| बेटा, हाथ की सारी उँगलियाँ एक बराबर नहीं होती न?! उसी तरह इस दुनिया में हर इंसान बुरा नहीं होता, कुछ लोग बहुत अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे| क्या हुआ अगर आपसे एक बार इंसान को पहचानने में गलती हो गई तो?! आप छोटे बच्चे ही हो न, कोई बूढ़े व्यक्ति तो नहीं...और क्या बूढ़े व्यक्तियों से इंसान को पहचानने में गलती नहीं होती?!

बेटा, एक बात हमेशा याद रखना, इंसान गलती कर के ही सीखता है| आपने गलती की तभी तो आपको ये सीखने को मिला की सब लोग अच्छे नहीं होते, कुछ बुरे भी होते हैं| आपको चाहिए की आप दूसरों को पहले परखो की वो आपके दोस्त बनने लायक हैं भी या नहीं और फिर उन पर विश्वास करो| यदि आपको किसी को परखने में दिक्क्त आ रही है तो उसे हम सब से मिलवाओ, हम उससे बात कर के समझ जाएंगे की वो आपकी दोस्ती के लायक है या नहीं?!



अब आते हैं आपके दिल में बैठे बाहर कहीं आने-जाने के डर पर| उस हादसे के बाद आपको कैसा लग रहा है ये मैं समझ सकता हूँ मगर बेटा इस डर से आपको खुद ही लड़ना होगा| घर से बाहर जाते हुए यदि लोग आपको देखते हैं… घूरते हैं तो आपको घबराना नहीं चाहिए बल्कि आत्मविश्वास से चलना चाहिए|

हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ ऐसे दुष्ट प्रवत्ति वाले लोग भी रहते हैं जो की लड़कियों को घूरते हैं, तो क्या ऐसे लोगों के घूरने या आपको देखने के डर से आप सारी उम्र घर पर बैठे रहोगे? कल को आप बड़े होगे, आपको अपना वोटर कार्ड बनवाना होगा, आधार कार्ड बनवाना होगा, पासपोर्ट बनवाना होगा तो ये सब काम करने तो आपको बाहर जाना ही पड़ेगा न?! मैं तो बूढ़ा हो जाऊँगा इसलिए मैं तो इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा, तब अगर आप इसी प्रकार घबराओगे तो कैसे चलेगा? ज़िन्दगी बस घर पर रहने से तो नहीं चलेगी न?!



बेटा, आपको अपने अंदर फिर से आत्मविश्वास जगाना होगा और धीरे-धीरे घर से बाहर जाना सीखना होगा| कोई अगर आपको देखता है तो देखने दो, कोई आपको घूर कर देखता है तो देखने दो, आप किसी की परवाह मत करो| आप घर से बाहर काम से निकले हो या घूमने निकले हो तो मज़े से अपना काम पूरा कर घर लौटो|



आपको एक बात बताऊँ, जब मैं छोटा था तो मैं बहुत गोल-मटोल था ऊपर से आपके दादा जी-दादी जी मुझे कहीं अकेले आने-जाने नहीं देते थे इसलिए जब लोग मेरे गोलू-मोलू होने पर मुझे घूरते या मुझे मोटा-मोटा कह कर चिढ़ाते तो मैं बहुत रोता था| तब आपकी दादी जी ने मुझे एक बात सिखाई थी; 'हाथी जब अपने रस्ते चलता है तो गली के कुत्ते उस पर भोंकते हैं मगर हाथी उनकी परवाह किये बिना अपने रास्ते पर चलता रहता है|' उसी तरह आप भी जब घर से बाहर निकलो तो ये मत सोचो की कौन आपको देख रहा है, बल्कि सजक रहो की आगे-पीछे से कोई गाडी आदि तो नहीं आ रही| इससे आपका ध्यान बंटेगा और आपको किसी के देखने या घूरने का पता ही नहीं चलेगा|

मेरी बिटिया रानी बहुत बहादुर है, वो ऐसे ही थोड़े ही हार मान कर बैठ जायेगी| वो पहले भी अपना सर ऊँचा कर चुनौतियों से लड़ी है और आगे भी जुझारू बन कर चुनौतियों से लड़ेगी|

मैंने बड़े विस्तार से नेहा को समझाते हुए उसके अंधेरे जीवन में रौशनी की किरण दिखा दी थी| अब इसके आगे का सफर नेहा को खुद करना था, उसे उस रौशनी की किरण की तरफ धीरे-धीरे बढ़ना था|

बहरहाल, नेहा ने मेरी बातें बड़े गौर से सुनी थीं और इस दौरान वो ज़रा भी नहीं रोई| जब मैंने नेहा को 'मेरी बहादुर बिटिया रानी' कहा तो नेहा को खुद पर गर्व हुआ और वो सीधा मेरे सीने से लगा कर मुस्कुराने लगी|



उस दिन से नेहा के जीवन पुनः बदलाव आने लगे| नेहा ने धीरे-धीरे अकेले घर से बाहर जाना शुरू किया, शुरू-शुरू में नेहा को उसका डर डरा रहा था इसलिए मुझे एक बार फिर नेहा का मार्गदर्शन करना पड़ा|

आज इस बात को साल भर होने को आया है और नेहा धीरे-धीरे अपनी चुनौतियों का अकेले सामना करना सीख गई है|


तो ये थी मेरे जीवन की अब तक की कहानी|
समाप्त?

नहीं अभी नहीं!
Bhut hi bdiya update gurujii :cry2:
Update padte time itni baar bhavuk ho gya :cry:
One of the best update of story :applause:

Is last update pe last meme stuti k liye :D

Matlab stuti ka role jab se story me dikha h wo aisa rha h ki use apni presence dikhani h har jgah jha manu bhaiya maujood ho :D

नेहा मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर आराम करने लगी| स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो स्तुति मुझ पर हक़ जमाने आ गई और अपनी दीदी की तरह मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर लेट गई|
अभी हम दोनों का ये आलिंगन शुरू ही हुआ था की इतने में स्तुति फुदकती हुई आ गई! अपनी मम्मी को मेरे गले लगे देख स्तुति को जलन हुई और उसने फौरन अपनी मम्मी को पीछे धकेलते हुए प्यार से चेता दिया
Stuti , ensuring his participation at every opportunity :-

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