• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,803
31,030
304
Baki is story ke shuru me bhi mera favourite character neha hi tha
Aur ab last me bhi neha hi h :love2:
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
19,340
40,090
259
बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन
भाग -6


अब तक आपने पढ़ा:


माँ: हाँ भाई! मुन्नी गाँव से आई तो उसे मेट्रो में घूमने को मिला, छोले-भठूरे खाने को मिले, लस्सी पीने को मिली, गाडी में बैठने को मिला और एक मैं हूँ, 24 साल हो गए इस सहर में आज तक मुझे तो कभी नहीं घुमाया!

मैं माँ का उद्देश्य समझ गया था और शायद पिताजी भी समझ गए थे तभी वो अपनी मूछों में मुस्कुरा रहे थे! लेकिन नेहा को लगा की माँ मुझसे नाराज हो कर शिकायत कर रहीं हैं, तो मुझे डाँट खाने से बचाने के लिए नेहा कूद पड़ी;

नेहा: कोई बात नहीं दादी जी, मैं हूँ न! आप मेरे साथ चलना, मैं आपको सब घुमाऊँगी!

नेहा की आत्मविश्वास से कही बात सुन कर सब उसकी तारीफ करने लगे| माँ ने नेहा को अपने पास बुलाया और उसे अपने गले लगाते हुए बोली;

माँ: देखा मेरी मुन्नी मुझे कितना प्यार करती है! मैं तो नेहा के साथ ही घूमने जाऊँगी!

माँ की ये बात सुन कर हम सब हँस पड़े!



अब आगे:


बच्चों के कारन घर का माहौल खुशनुमा हो गया था, इसी मौके पर पिताजी ने मुझे एक जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा;

पिताजी: बेटा आयुष और नेहा का स्कूल में दाखिला करवाना है, तो तू ज़रा पता लगा की कौनसा स्कूल अच्छा रहेगा?

स्कूल की बात शुरू हुई तो नेहा के मन में उत्सुकता जाग गई और वो मेरे पास आ आकर खड़ी हो गई| स्कूल का आधे से ज्यादा साल निकलने को था और ऐसे में बच्चों का दाखिला नामुमकिन था, मैं अगर ये बात नेहा के सामने कहता तो उसका दिल टूट जाता इसलिए मैंने इस बात को दबा दिया| खैर स्कूल जाने के नाम से नेहा बहुत खुश लग रही थी, वहीं आयुष स्कूल के नाम से डर रहा था| मैं भी जब आयुष जितना छोटा था तो स्कूल जाने से घबराता था, वो तो पिताजी का डर था जो मैं चुप-चाप स्कूल चला जाता था!

शाम को मैंने दिषु से बच्चों के स्कूल के बारे में बात की, उसने भी वही कहा जो मैंने पिताजी की बात सुन कर सोचा था; "यार साल के बीच में कोई भी स्कूल बच्चों को admission नहीं देगा, पर फिर भी मैं अपनी जान-पहचान में पूछता हूँ!" दिषु की बात सही थी पर एक बाप कैसे हार मान सकता है? मैंने कंप्यूटर चालु किया और घर से 10 किलोमीटर के radius में आने वाले स्कूलों की लिस्ट बनाने लगा, keyboard की खटर-पटर सुन नेहा कमरे में आई और मुझे कंप्यूटर पर काम करता हुआ देख हैरान हुई|

मैं: बेटा ये कंप्यूटर है!

मैंने नेहा को कंप्यूटर के बारे में संक्षेप में जानकारी दी| नेहा को keyboard देख कर बहुत ख़ुशी हुई थी और उसका मन keyboard के बटन दबाने का था, मैंने कंप्यूटर पर Notepad खोला और नेहा से अपना नाम टाइप करने को कहा मगर मेरी बेटी बटन दबाने से डर रही थी| मैंने उसका हाथ पकड़ कर कंप्यूटर पर नेहा टाइप करवाया| कंप्यूटर में अपना नाम टाइप करते हुए नेहा बहुत हैरान थी, कंप्यूटर की स्क्रीन पर जब नेहा का नाम उभरा तो नेहा ख़ुशी के मारे उछल पड़ी| अबकी बार नेहा ने हिम्मत करते हुए दुबारा से अपना नाम लिखा और ख़ुशी से फिर उछलने लगी| तभी बाहर से माँ ने नेहा को टी.वी. देखने को बुलाया, नेहा उसी तरह कूदते हुए बाहर चली गई|



कुछ देर बाद नॉएडा वाली साइट से फ़ोन आया की बिजली का शार्ट-सर्किट होने के कारन लाइट चली गई है, मुझे फटाफट निकलना पड़ा और घर आते-आते देर रात हो गई| काम निपटाकर जैसे ही मैं घर में दाखिल हुआ की नेहा भागते हुए आ कर मेरे से लिपट गई!

माँ: तेरे चक्कर में सोइ नहीं!

माँ ने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

मैं: मेरी लाड़ली मेरी कहानी सुने बिना कैसे सो जाती?

मैंने नेहा के सर को चूमा और उसे मेरे कमरे में जाने को कहा| मैंने पिताजी को साइट की रिपोर्ट दी की मैंने बिजली की मरम्मत करवा दी है और अब काम में कोई दिक्कत नहीं आएगी| इतने में माँ ने खाने के लिए पुछा तो मैंने बता दिया की मैंने बाहर खा लिया था, ये मेरी आदत थी की रात देर से आने पर मैं अपनी मन-पसंद कचोरी खा कर आता था! माँ-पिताजी को “good night” कह मैं अपने कमरे में आया तो देखा की नेहा पलंग पर आलथी-पालथी मारे बैठी मेरा इंतजार कर रही है! मैंने फटफट कपडे बदले और पलंग पर लेट गया, आज गर्मी ज्यादा थी तो मैंने AC चलाया| AC चलते ही नेहा खुश हो गई और मुझसे लिपट गई, मैंने उसे एक प्याली-प्याली कहानी सुनाई जिसे सुनते हुए नेहा की आँख लग गई!

नेहा के सोने के बाद मैं अपने ख्यालों की दुनिया में डूब गया, सुबह आये सपने ने मुझे एक अजीब से दुराहये पर खड़ा कर दिया था| जब तक मैं नेहा या काम में व्यस्त था तब तक मेरा ध्यान अपने सपने पर नहीं गया था, मगर इस रात के सन्नाटे में दिल भटकने लगा था| भौजी को सतनाने के लिए उस कोचिंग वाली लड़की का बहाना मार कर मैंने अपने दिल में सोये हुए उस लड़की के लिए 'प्यार' को जगा दिया था! ‘पर क्या मैं सच में उससे प्यार करता हूँ? नहीं.....नहीं ऐसा नहीं हो सकता....?! लेकिन अगर तू उससे प्यार नहीं करता तो? क्या तू अब भी उनसे (भौजी से) प्यार करता है? No…..no……..no…….!’ मन में उठ रहे सवालों ने मुझे झिंझोड़ कर रख दिया था, दिल ने अचानक से मुझे ग्लानि महसूस करवाना शुरू कर दिया था! ऐसा लगता था मानो उस लड़की के बारे में सोच कर मैं भौजी को धोखा दे रहा हूँ!



मेरे दिल में उठी बेचैनी मेरी बेटी ने महसूस कर ली थी और उसने मुझे अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया! नेहा के मुझे जकड़ते ही मेरे दिल से सारे सवाल गायब हो गए और एक बाप का प्यार बाहर आया| मैंने कस कर नेहा को जकड़ा और चैन की नींद सो गया, लेकिन अगली सुबह फिर वही सपना! मैं, नेहा और वो लड़की घर में मौजूद हैं| माँ-पिताजी बड़े खुश हैं, नेहा मेरी गोदी में बैठी है और वो लड़की मुस्कुराते हुए रसोई में खाना बना रही है!

इतना मनोरम सपना देख मैं फिर से मुस्कुराते हुए उठा, नेहा की नींद अब भी नहीं खुली थी इसलिए मैं उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगा| सुबह के इस सपने ने फिर से दिमाग में सवाल खड़े कर दिए थे; 'आखिर गलत क्या है इस सपने में?' दिमाग में सवाल उठा, मगर तभी मेरी बिटिया उठ गई और मेरे दाढ़ी से भरे हुए गालों पर सुबह की मीठी-मीठी पप्पी दी! नेहा की नींद पूरी हो गई थी तो वो सीधा brush करने घुसी, उसके आने तक मैंने अपने कपडे निकाले और आज कहाँ-कहाँ जाना है उसकी सूची बनाने लगा| नेहा brush कर के आई तो मैं भी brush करने लगा, दोनों बाप-बेटी फ्रेश हो कर बाहर बैठक में आये| भौजी आज जल्दी उठ गईं थी इसलिए चाय उन्हीं ने बनाई थी, चाय पीते हुए पिताजी ने मुझे चन्दर को plumbing का माल लेने के लिए supplier से मिलवाने को कहा| मुझे चन्दर के साथ कतई काम नहीं करना था, मगर पिताजी का हुक्म कैसे टालता?



नहा-धो कर जब मैं नाश्ता करके उठा तो नेहा तैयार हो कर आ गई, उसे तैयार देख मैं समझ गया की वो मेरे साथ जाना चाहती है मगर तभी चन्दर ने उससे टोकते हुए कहा;

चन्दर: तू कहाँ जाए खतिर तैयार होवत है?

चन्दर की बात सुन मुझे गुस्सा आया, मन तो किया उसे सुना दूँ पर पिताजी का लिहाज कर के मैंने बिना उसे देखे अपना हाथ दिखा कर शांत होने को कहाँ और नेहा को प्यार से समझाने लगा;

मैं: बेटा आज न मुझे बहुत काम है, बहुत जगह जाना है| अब अगर आप साथ जाओगे तो थक जाओगे, हम ऐसा करते हैं की हम कल-परसों घूमने का प्लान बनाते हैं| Okay?

मैंने नेहा को प्यार से समझाया तो वो झट से मान गई|

माँ: मुन्नी तू मेरे साथ रहना, हम दोनों दादी-पोती सब्जी लेने चलते हैं|

नेहा ख़ुशी-ख़ुशी कूदती हुई माँ के पास चली गई|



मैं चन्दर को ले कर निकला और उसे supplier से मिलवाया, फिर उसे गुडगाँव वाली साइट पर क्या काम करवाना है वो समझाया| इतने सब में मुझे आधा दिन लगा गया, अब मैं साइट से निकला और बच्चों के स्कूलों की लिस्ट निकाली| एक-एक कर मैंने कुछ स्कूलों के चककर लगाए, पर हर जगह नाकामी ही हाथ लगी| हार न मानते हुए मैंने अपनी कोशिश जारी रखी, और अपनी बनाई हुई लिस्ट के आधे स्कूल छान मारे| दोपहर को नेहा ने मुझे माँ के फ़ोन से मेरे कमरे में छुप कर कॉल किया और खाने के बारे में पुछा;

नेहा: पापा जी मुझे भूख लगी है, आप कितनी देर में आ रहे हो?

नेहा ने मासूमियत से कहा|

मैं: बेटा काम थोड़ा ज्यादा है तो मुझे आते-आते रात हो जाएगी, आप मेरा इंतजार मत करना और खाना खा लेना| Okay?

मेरा कहा मेरी प्यारी बेटी कैसे टालती, उसने फ़ौरन "हाँ जी" कहा और माँ के पास चली गई| अपने मन की तसल्ली के लिए मैंने माँ को फ़ोन कर के कहा की वो नेहा को अपने हाथ से खाना खिला दें|

शाम होते ही मैंने स्कूल ढूँढने के काम को कल के लिए स्थगित किया और साइट पर आ कर काम संभाला| Overtime करवाने के चक्कर में मैं ग्यारह बजे घर पहुँचा, मैं अभी घर में दाखिल हुआ ही था की नेहा रोती हुई आ कर मेरे से लिपट गई| उसका रोना देख मेरा कलेजा फ़ट गया, मैंने नेहा को गोद में लिया और उसे पुचकारते हुए उसका रोना काबू करवाया|

नेहा: पा....

नेहा पापा कहने वाली थी, लेकिन उसे माँ-पिताजी की मौजूदगी का एहसास हुआ तो वो एकदम से खामोश हो गई!

मैं: बस मेरा बच्चा!

मैंने नेहा को हिम्मत दी तो नेहा ने मेरे कँधे पर सर रखा और मुझे कस कर अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया|

माँ: क्या हुआ मुन्नी? अभी थोड़ी देर पहले तो तू खाना खा कर अच्छा-भला सोइ थी?!

माँ ने नेहा से पूछना चाहा पर मैंने माँ को इशारे से कहा की मैं बात करता हूँ| नेहा को गोद में लिए हुए मैं कमरे में आया और दरवाजा अंदर से बंद किया, मैंने नेहा को पलंग पर बिठाया तब जा कर उसने अपने रोने का कारन बताया;

नेहा: पापा....मैंने...सपना देखा....की आप...मुझे छोड़कर ...चले गए!

नेहा ने सिसकते हुए कहा| मैं अपने घुटने टेक कर खड़ा हुआ और नेहा का चेहरा अपने दोनों हाथों में लेते हुए बोला;

मैं: बेटा वो बेकार सपना था, मैं भला आपको कैसे छोड़कर जा सकता हूँ? आप में तो मेरी जान बसती है, आपके बिना मैं जिन्दा कैसे रहूँगा?

मैंने नेहा को समझाते हुए कहा तो नेहा ने मुझे अपनी बाहों में कस लिया, मगर इस बार वो रोइ नहीं क्योंकि उसे अपने पापा की बातों पर विश्वास था| कपडे बदल कर मैंने नेहा को कहानी सुनाई और उसकी पीठ थपथपाते हुए नेहा को चैन से सुला दिया| थकावट थी इसलिए आज नींद जल्दी आ गई और अगली सुबह एक बार फिर उस लड़की का सपना आया| उस लड़की के सपने शुरू में तो दिल को बहुत गुदगुदाते थे लेकिन बाद में बहुत ग्लानि महसूस होती थी| मैंने अपनी इस ग्लानि से भागना शुरू कर दिया था, मेरे पास नेहा तो थी ही जिसका प्यार मेरे लिए वो दरवाजा था जिसे खोल कर मैं ग्लानि से पीछा छुड़ा लेता था|



नेहा उठी और मेरे दोनों गालों पर मुस्कुराते हुए पप्पी दी, नेहा की मुस्कराहट देख कर मैं अपने सपने को भूल बैठा! नेहा को गोद में लिए हुए मैं बाहर आया, चाय पी और इसी बीच पिताजी ने बच्चों के स्कूल की बात छेड़ी| मैंने नेहा को brush करने के बहाने अंदर भेजा क्योंकि मैं उसके सामने स्कूल के बात नहीं करना चाहता था| नेहा के जाने के बाद मैंने पिताजी से बात शुरू की;

मैं: कल 3 स्कूलों में मैंने बात की थी, मगर उनका कहना है की साल के बीच वो admission नहीं दे सकते!

ये सुन पिताजी गंभीर हो गए|

मैं: मैं कोशिश कर रहा हूँ पिताजी, थोड़ा......

मैं आगे कुछ कहता उससे पहले नेहा कूदती हुई मेरे पास आ गई| नेहा के आने से मैंने बात वहीं छोड़ दी और उसे लाड-प्यार करते हुए कमरे में आ गया| नहा-धो कर, नेहा को अपने हाथ से नाश्ता करा कर मैं निकलने लगा तो नेहा मेरा हाथ पकड़ते हुए मेरे कान में खुसफुसाते हुए बोली;

नेहा: पापा स्कूल ढूँढने मैं भी चलूँ?

मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसके दोनों गालों की पप्पी लेते हुए बोला;

मैं: मेरा बच्चा आप मेरे साथ धुप में घूमोगे तो थक जाओगे!

माँ ने मेरी बात सुन ली थी इसलिये उन्होंने थोड़ा मजाक करते हुए नेहा को समझाया;

माँ: मेरी मुन्नी धुप में जायेगी तो काली हो जाएगी!

माँ की बात सुन सब हँस पड़े और मेरी प्यारी बेटी को सच में लगा की शहर के धुप में वो काली हो जाएगी इसलिए वो घबराते हुए मेरे से लिपट गई!



मैं घर से पहले साइट निकला, वहाँ काम शुरू करवा कर मैं स्कूल ढूँढने के काम में लगा गया| कई स्कूलों के चक्कर काटे, एक दो स्कूलों ने मुझे उम्मीद की किरण देते हुए पुछा की बच्चे किस class में हैं, आयुष को तो nursery में admission दिलवाना था और नेहा को मेरे हिसाब से तीसरी class में admission चाहिए था! मगर कोई फायदा हुआ नहीं, हर स्कूल यही कहता था की मुझे अगले साल आना चाहिए!

उधर पिताजी ने मिश्रा अंकल जी से बात कर के अपने जुगाड़ बिठाने शुरू कर दिए थे, जिसके बारे में फिलहाल मुझे नहीं पता था| दोपहर को नेहा ने माँ के फ़ोन से मेरे कमरे में छुप कर मुझे कॉल किया;

नेहा: पापा जी आप कब आ रहे हो?

नेहा प्यार से बोली|

मैं: मेरा बच्चा, Sorry! आज भी मैं लंच पर नहीं आ पाउँगा!

ये सुन नेहा उदास हो गई|

नेहा: पापा जी!

नेहा मुँह फूलाते हुए बोली!

मैं: Sorry मेरा बच्चा! आज रात को मैं आपको पक्का खाना खिलाऊँगा और आपको दो कहानियाँ भी सुनाऊँगा!

लेकिन नेहा उदास होते हुए बोली;

नेहा: पापा वो आयुष है न, वो कह रहा था की उसे मेरे बिना नींद नहीं आती! तो आज रात मैं उसके साथ सो जाऊँ?

नेहा का मेरे साथ न होना मुझे बुरा तो लग रह था, लेकिन आयुष को भी उसकी बहन का प्यार चाहिए था|

मैं: कोई बात नहीं बेटा!

मैंने कह तो दिया पर अब मेरा मन घर जाने का नहीं था! नेहा से अलग रहने को मन नहीं करता था, एक उसका प्यार ही तो था जो मुझे ग्लानि की तरफ भटकने नहीं देता था! इसी कारण मैं घर देर से पहुँचा, नेहा खाना खा कर भौजी के साथ जा चुकी थी| चन्दर आज रात गुडगाँव वाली साइट पर रुका था इसलिए एक तरह से नेहा का भौजी के पास रुकना सही भी था| मैं अपने कमरे में घुसा ही था की माँ ने खाने को पुछा, तो मैंने झूठ कह दिया की मैं खा कर आया हूँ! नेहा के बिना आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए मैं बिना कपडे बदले ही अपने बिस्तर पर पड़ गया!



बिस्तर पर पड़ तो गया था पर नींद एक पल को नहीं आ रही थी, अजीब सी बेचैनी ने मुझे घेर लिया था! रह-रह कर भौजी का चेहरा और उस कोचिंग वाली लड़की का चेहरा याद आ रहा था| जिस कश्मकश से मैं इतने दिन से भाग रहा था, उस कश्मकश ने मुझे आ घेरा था! एक ओर थी वो लड़की जिसे बस याद कर के मैं खुश हो जाया करता था, दूसरी ओर थीं भौजी जो 24 घंटे मेरी नजरों के सामने रह रहीं थीं! मेरा दिमाग कहता था की मेरे मन में भौजी के लिए कोई जज्बात, कोई प्यार नहीं है, मगर दिल भौजी की मौजूदगी में पिघलने लगा था! एक इंसान जिसे आप अपनी जिंदगी से निकालना चाहते हो वो आपके सामने रहने लगे तो आप कैसे खुद को रोकोगे? जब तक भौजी दूर थीं तब तक मेरा खुद पर काबू था, दिल पत्थर का हो चूका था मगर उनके लौट आने से, नेहा का प्यार मिलने से दिल पिघलने लगा था|

सारी रात मैं इन्ही विचारों से घिरा जागता रहा, लेकिन न तो खुद को भौजी की ओर पिघलने से रोकने का तरीका ढूँढ पाया और न ही किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाया! घडी में सुबह के सात बज रहे थे और मैं खुली आँखों से अपने कमरे की छत को घूर रहा था, इतने में माँ धड़धडाते हुए अंदर आईं और मुझे डाँटते हुए बोलीं;

माँ: क्या कहा तूने बहु से?

माँ का सवाल सुन मैं उठ कर बैठ गया और हैरान हो कर भोयें सिकोड़ कर उन्हें देखते हुए बोला;

मैं: मैंने? मैंने क्या कहा उनसे?

माँ: कुछ तो कहा है, वरना बहु खाना-पीना क्यों छोड़ देती?

माँ की बात सुन मुझे जोर का झटका लगा! दरअसल जिस दिन दोपहर को मैं खाने पर से उठ गया था उस दिन भौजी मुझे मनाने कमरे में आई थीं| उस दिन के मेरे उखड़े व्यवहार के कारन भौजी ने खाना-पीना बंद कर दिया था जिस कारन आज सुबह वो उठते समय लड़खड़ा गईं थीं, वो तो नेहा थी जिसने उन्हें संभाला और माँ को खबर दी!

खैर माँ की बात सुनते ही मेरे होश उड़ गए, मैं बिजली की रफ़्तार से खड़ा हुआ और भौजी के घर की ओर दौड़ लगाईं! उनके घर पहुँच के मैंने दरवाजा खटखटाया तो दरवाजा चन्दर ने खोला;

मैं: कहाँ हैं भौजी?

मैंने हाँफते हुए पुछा|

चन्दर भैया: भीतर है, नजाने तू का कह दिहो की ई तीन दिन से कछु खाइस नाहीं!

चन्दर ने मुझे सुनाते हुए कहा| मैंने भोयें सिकोड़ कर उसे घृणा से भरी नजरों से देखा और तेजी से भौजी वाले कमरे में घुसा| कमरे के भीतर पहुँच कर देखा तो पाया की आयुष और नेहा भौजी को घेर के बैठे हैं| भौजी की आँखें बंद थीं, उनकी हालत बहुत पतली लग रही थी, उनका चेहरा सफ़ेद हो गया था, शरीर देख कर लग रहा था की वो कमजोर हो गई हैं| भौजी की ऐसी हालत देख कर मेरा दिल पसीज गया और मैं उनकी कमर के पास जा कर बैठ गया| मेरे बैठने से जो थोड़ी हलचल हुई उससे भौजी की आँखें खुल गई, जैसे ही भौजी की नजर मेरे ऊपर पड़ी उनके चेहरे पर ख़ुशी की महीन रेखा खिंच गई!

मैं: Hey what happened?

मैंने भावुक होते हुए कहा| मुझे भावुक देख भौजी की आँखें भीग गईं, जैसे तैसे उन्होंने अपने आँसुओं को बहने से रोका और न में सर हिला कर मूक भाषा में; "कुछ नहीं हुआ' कहा| भौजी ने अपने दाएँ हाथ से मेरा हाथ थाम लिया और होले से उसे दबाने लगीं! उनके चेहरे पर आये परेशानी के भाव देख मैं समझ गया की वो मुझसे तसल्ली से बात करना चाहतीं हैं, मगर यहाँ बच्चों और चन्दर की मौजूदगी में वो कुछ कहना नहीं चाहतीं! लेकिन भौजी की बात सुनने से पहले उनका इलाज होना जरूरी था;

मैं: बेटा आप दोनों यहीं बैठो मैं डॉक्टर को लेके आता हूँ|

ये कह जैसे ही मैं उठने लगा तो भौजी एकदम से बोलीं;

भौजी: नहीं...डॉक्टर की कोई जर्रूरत नहीं है|

भौजी की आवाज इतनी दबी हुई थी जो उन्हें आई कमजोरी के लक्षण साफ़ बता रही थी|

मैं: Hey I'm not asking you!

मैंने थोड़ी सख्ती से कहा, जिसे सुन भौजी को महसूस हुआ की मुझे उनकी कितनी चिंता है| मैं डॉक्टर सरिता को लेने चला दिया और जब उन्हें ले कर लौटा तो पाया की भौजी के पास माँ और बच्चे बैठे हैं| सुबह माल आना था इसलिए पिताजी सुबह तड़के साइट पर निकल गए थे, चन्दर जो सुबह साइट से लौटा था वो भौजी की तीमारदारी करने से बचना चाहता था इसलिए वो मेरे जाते ही गोल हो लिया!



खैर डॉक्टर सरिता ने भौजी का चेकअप किया और उनके खाना न खाने का कारन पुछा, भौजी बहुत होशियार थीं उन्होंने बड़ी चालाकी से अपनी बात कही;

भौजी: आयुष के पापा से अनबन हो गई थी!

भौजी की इस बात का मतलब सिर्फ और सिर्फ मैं जानता था, उनकी चालाकी देख कर मैं बहुत खुश हुआ और मन ही मन उनकी बात सुन कर मुस्कुराने लगा| डॉक्टर सरिता ने उन्हें थोड़ा समझाया और फिर से खाना खाने को कहा, साथ ही उन्होंने कुछ multivitamin की गोलियाँ लिख दीं| उनके जाने के बाद घर पर सिर्फ मैं, माँ, नेहा और आयुष रह गए थे|

माँ: बहु तू आराम कर, मैं तेरे लिए खाने को सूप बनाती हूँ| धीरे-धीरे खाना शुरू कर ताकि जल्दी से भली-चंगी हो जाए!

भौजी को हिदायत दे कर माँ मुझ पर बरस पड़ीं;

माँ: और तू सुन, खबरदार जो तूने आज के बाद बहु को "भाभी" कहा तो?

माँ की डाँट सुन मैं सर झुकाये खड़ा हो गया, माँ को लग रहा था की मैंने भौजी को "भाभी" कहा इस बात को भौजी ने दिल से लगा लिया और खाना-पीना छोड़ दिया|

माँ: जब मैं फोन करूँ तब घर आ कर सूप ले जाइयो और अपनी "भौजी" को पीला दिओ|

माँ ने 'भौजी' शब्द पर जोर देते हुए कहा, दरअसल ये माँ की चेतावनी थी की मैं भौजी को 'भौजी' कह कर ही बुलाऊँ! माँ की बात सुन मैंने हाँ में सर हिलाया|

माँ: और बहु तू इस पागल की बात को दिल से मत लगाया कर, ये तो उल्लू है!

माँ ने भौजी को प्यार से समझाया और मुझे उल्लू कह कर भौजी को हँसाना चाहा, मगर भौजी के चेहरे पर बस एक बनावटी मुस्कान ही आई!



माँ भौजी के घर से निकलीं तो भौजी ने दोनों बच्चों को बाहर खेलने भेज दिया और मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया| भले लाख गलती की भौजी ने मगर अपने प्यार को इस हालत में देख कर मेरा दिल कचोटने लगा था| मैं भौजी की कमर के पास बैठा और पाँच साल बाद जा कर उन्हें छुआ| मैंने भौजी का दायाँ हाथ अपने दोनों हाथों के बीच में लिया और भावुक हो कर उनसे बोला;

मैं: क्यों किया ये?

भौजी: आपके साथ जो मैंने अन्याय किया, उसके लिए खुद को सजा दे रही थी!

भौजी ने नजरें झुकाते हुए कहा|

मैं: लेकिन मैंने आपको माफ़ कर दिया न?!

मैंने प्यार से जवाब दिया|

भौजी: पर मुझे अपनाया तो नहीं न?

भौजी का ये सवाल सुनते ही मेरी जुबान ने वो कहा जो कल रात से मेरे दिमाग में कोतुहल मचाये हुआ था!

मैं: मैं...... शायद अब मैं आपसे प्यार नहीं करता!

मैंने अपने वाक्य में 'शायद' शब्द का प्रयोग किया था क्योंकि मैं अब तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा था! दिमाग नई शुरुआत करना चाहता था और दिल फिर से भौजी के पास बहना चाहता था| लेकिन मेरे दिमाग ने मेरे दिल को कस कर थाम रखा था, क्योंकि कहीं न कहीं अब भी मैं भौजी को आयुष को मुझसे दूर रखने के लिए दोषी मानता था|



खैर इधर मेरी बात सुन कर भौजी की आँखें छलक गईं;

भौजी: कौन है वो लड़की?

भौजी ने सुबकते हुए पूछा|

मैं: 2008 कोचिंग में मिली थी, बस उससे एक बार बात की, अच्छी लगी, दिल में बस गई! फिर मई के महीने में exam थे, उसके बाद वो इस शहर में लापता हो गई| एक बार उसे मेट्रो में देखा था पर उससे बात हो पाती ट्रैन चल पड़ी, फिर आज तक उससे न कोई बात हुई न उसे देख पाया!

मैंने बड़े संक्षेप में अपनी 'प्रेम कहानी' सुनाई!

भौजी: तो आप मुझे भूल गए?

भौजी ने रुनवासी होते हुए कहा|

मैं: नहीं!

मैंने एकदम से कहा|

मैं: आपको याद करता था, उस टेलीफोन वाली बात को छोड़के सब याद करता था, लेकिन याद करने पर दिल दुखता था| फिर वो दुःख मेरी शक्ल पर दिखता था और मेरा दुःख देख के माँ परेशान हो जाया करती थी इसलिए आपकी याद को मैंने सिर्फ सुनहरे पलों में समेत के रख दिया|

मैंने भौजी को अपनी परेशानी से रूबरू करवाया|

भौजी: आपने कभी उस लड़की से कहा की आप उससे प्यार करते हो?

भौजी की आँखों में मुझे आस दिख रही थी और मैं समझ नहीं पा रहा था की भौजी की आँखों में ये आस क्यों है?

मैं: नहीं!

मैंने घबराते हुए कहा|

मैं: इतनी अच्छी लड़की थी की उसका कोई न कोई बॉयफ्रेंड तो होगा ही, अब सीरत अच्छी होने से क्या होता है, शक्ल भी तो अच्छी होनी चाहिए?

मैंने बेमन से कहा| मेरी बात सुन भौजी उठ कर बैठ गईं और बड़े गर्व से बोलीं;

भौजी: जो लड़की शक्ल देख के प्यार करे क्या वो प्यार सच्चा होता है?

भौजी का खुद पर गर्व करने का कारन था की उन्होंने मुझसे सच्चा प्यार किया था|

मैं: नहीं!

मैंने संक्षेप में जवाब दे कर बात बदलने की सोची, क्योंकि मुझे उनकी तबियत की ज्यादा चिंता थी न की मेरे "love relationship" की जो की था ही नहीं!

मैं: मैं...अभी आता हूँ...सूप बन गया होगा|

मैंने भौजी से नजरें चुराते हुए कहा| जैसे ही मैं उठ के जाने लगा तो भौजी ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे रोक लिया|

भौजी: माँ ने कहा था की वो आपको फोन कर की बुलाएँगी और अभी तक उन्होंने फोन नहीं किया! आप बैठो मेरे पास, आज सालों बाद आप को अच्छे मूड में देख रहीं हूँ और आपसे ढेर सारी बातें करने का मन है!

भौजी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठाये रखा| मैं खामोश भौजी से नजरें चुराए बैठा था, भौजी को मेरी ख़ामोशी समझ आने लगी थी!

भौजी: क्या छुपा रहे हो मुझसे?

भौजी ने बड़े हक़ से पुछा|

मैं: नहीं तो!

मैंने भौजी से नजर चुराते हुए कहा|

भौजी: शायद आप भूल रहे हो की हमारे दिल अब भी connected हैं!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

भौजी: बताओ ना....प्लीज?

भौजी ने मेरा हाथ दबाते हुए कहा|

मैं: मैं....आपको कभी भुला नहीं पाया...पर ऐसे में उस नई लड़की का मिलना और मेरा........मतलब.... पिछले कुछ दिनों से मुझे ऐसा लग रहा है की मैं आपके साथ दग़ा कर रहा हूँ!

मेरे मुँह से 'दग़ा' शब्द सुन कर भौजी की जान सूख गई, उन्हें लगा की मैं और वो लड़की.....हमबिस्तर हुए हैं!

भौजी: Did you got physical with her?

भौजी ने चौंकते हुए कहा|

मैं: कभी नहीं! मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता!

मैंने बिना सोचे-समझे अपनी सफाई देनी शुरू करते हुए कहा|

मैं: मतलब इसलिए नहीं की मैं आपसे प्यार करता था...

दरअसल अपनी सफाई देने के चक्कर में मैंने भौजी को गलती से दुःख पहुँचाने वाली बात कह दी थी, लेकिन जैसे ही एहसास हुआ मैं दो सेकंड के लिए खामोश हो गया|

मैं: ....या हूँ...

मैंने भौजी का मन रखने को बात कही, फिर अपनी बात अधूरी छोड़ दी! भौजी को मेरे कहे शब्द चुभे थे पर उन्होंने मेरी कही बात को तवज्जो नहीं दी और सीधा मुद्दे की बात पर अड़ी रहीं|

भौजी: फिर क्यों लगा आपको की आप मेरे साथ दग़ा कर रहे हो?

भौजी ने थोड़ा बचपना दिखाते हुए पुछा|

मैं: मतलब आपके होते हुए मैं एक ऐसी लड़की के प्रति "आकर्षित" हो गया...जिसे ......

इतना कह मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी|

मगर भौजी ने मेरी कही बात से 'आकर्षित' शब्द पकड़ लिया था और इसी शब्द को ले कर उन्होंने मुझे ज्ञान देना शुरू किया;

भौजी: क्या कहा आपने, "आकर्षित"....ओह्ह अब समझी!!!

भौजी खुश होते हुए बोलीं|

भौजी: It’s not 'LOVE', its just 'ATTRACTION'!!! Love and attraction are different?

भौजी की ये ज्ञान वर्धक बात सुन कर में अवाक रह गया और एकदम से बोला;

मैं: आप ये कैसे कह सकते हो? मुझे वो....अच्छी लगती है...!

मैंने जोश-जोश में कहा पर भौजी के सामने उस लड़की को अच्छा कहने में झिझक रहा था, इसीलिए मैं भौजी से नजरें चुराने लगा| लेकिन भौजी ने मेरा हाथ पकड़ कर मेरा ध्यान अपनी ओर खींचते हुए अपनी बात शुरू की;

भौजी: You know what, मुझे सलमान खान अच्छा लगता है, तो क्या I’m in love with him?

भौजी की बात तो सही थी पर दिमाग उसे मानना नहीं चाहता था|

भौजी: आप बस उस लड़की की ओर आकर्षित हो गए थे! देखा जाए तो कहीं न कहीं इसमें दोष मेरा है, बल्कि दोष मेरा ही है! न मैं उस दिन आपसे वो बकवास बात कहती और न आपका दिल टूटता! जब किसी का दिल टूटता है, तो वो किसी की यादों के साथ जीने लगता है, जैसे मैं आपकी यादों मतलब आयुष के सहारे जिन्दा थी| मगर आपके पास मेरी कोई याद नहीं थी, शायद वो रुमाल था?

भौजी ने जैसे ही उस रुमाल की याद दिलाई जिससे मैंने गाँव से दिल्ली आते समय भौजी का पसीना पोंछा था, मेरे चेहरे पर थोड़ा गुस्सा आ गया;

मैं: था! गुस्से में आके मैंने उसे 'कस कर' धो दिया था!

मैंने थोड़ा गुस्से से कहा|

भौजी: देखा! आपका गुस्सा! मेरी बेवकूफी ने आपको गुस्से की आग में जला दिया, उस समय आपको एक सहारा चाहिए था! आपका दोस्त था पर वो भावनात्मक रूप से आपके साथ जुड़ा नहीं था, ऐसे में कोचिंग में मिली उस लड़की को देख आप उसके प्रति आकर्षित हो गए| That's it!!!

भौजी की बात मेरे कुछ-कुछ समझ में आने लगी थी|

भौजी: अगर मैंने वो बेवकूफी नहीं की होती, आपका दिल न तोडा होता तो आप कभी भी किसी लड़की की तरफ आकर्षित नहीं होते| आपको याद है मैंने गाँव में आपसे क्या कहा था?! You’re a one woman man!

भौजी आत्मविश्वास से भर कर बोलीं|

भौजी: सब मेरी गलती थी, दूसरों को जवाब देने से बचना चाहती थी, आपके भविष्य के बारे में बहुत ज्यादा सोचने लगी थी और बिना आपसे कुछ पूछे मैंने इतना घातक फैसला लिया, मैंने ये भी नहीं सोचा की मेरे इस फैसले से आपको कितना आघात लगेगा?! मेरे कठोर फैसले ने आपको अपने ही बेटे को प्यार करने से वंचित कर दिया, आपको नेहा से दूर कर दिया! लेकिन मैं सच कह रही हूँ, मैंने कभी नहीं सोचा था की मेरे एक गलत फैसले से हम दोनों की जिंदगियाँ तबाह हो जाएँगी!

भौजी के चेहरे पर ग्लानि नजर आ रही थी, उधर मेरे दिमाग में अब भी कोचिंग वाली लड़की को ले कर कश्मकश जारी थी!

मैं: I’m still confused! मुझे अब भी लगता है की मैं उससे प्यार करता हूँ, वरना मैं उसकी जन्मदिन की तारिख क्यों नहीं भूला?! मैं क्यों हर साल उसके जन्मदिन पर उसकी ख़ुशी माँगता हूँ?!

मेरा सवाल सुन भौजी जान गईं के मेरे दिमाग में सवालों के कीड़े अब भी उत्पात मचा रहे हैं, भौजी ने उन कीड़ों पर अपने जवाब का स्प्रे छिड़कना शुरू किया;

भौजी: दिषु आपका best friend है न, तो क्या आप दिषु के जन्मदिन पर उसकी ख़ुशी नहीं माँगते?

भौजी का सवाल सुन मैंने तपाक से जवाब दिया;

मैं: हाँ माँगता हूँ! शुरू-शुरू में तो मैं मैं आपके जन्मदिन पर भी आपके लिए दुआ करता था!

मेरा जवाब सुनते ही भौजी जोश से बोलीं;

भौजी: See? आप सब के जन्मदिन पर उनकी ख़ुशी चाहते हो! That doesn’t make 'her' any special?!

भौजी की बातें सुन कर मुझे लग रहा था जैसे की वो मुझे अपने नजदीक करने के लिए मुझे उस लड़की के खिलाफ भड़का रहीं हों! भौजी ने मेरे चेहरे पर आईं शक की रेखाएँ पढ़ लीं थीं, मेरा शक मिटाने के लिए उन्होंने अपनी सफाई दी;

भौजी: मैं आपको गुमराह नहीं कर रही, बस आपके मन में उठ रहे सवालों का जवाब दे रही हूँ और वो भी आपकी पत्नी बनके नहीं बल्कि एक निष्पक्ष इंसान की तरह|

भौजी का यूँ खुद को निष्पक्ष कहना मुझे अच्छा लगा, मगर इसी बीच उन्होंने होशियारी से खुद को मेरी "पत्नी" कह कर मुझे एक बार फिर अपने प्यार का आभास करा दिया| परन्तु मेरा दिमाग में अब भी कुछ सवाल बचे थे जो बाहर आने लगे;

मैं: तो मैं उसके बारे में क्यों सोचता हूँ? पिछले कुछ दिनों से क्यों उसके सपने देख रहा हूँ?

मैंने बिना डरे अपनी बात कही|

भौजी: सोचते तो आप मेरे बारे में भी हो?

भौजी ने बड़े नटखट ढंग से सवाल पुछा| मैं भौजी के इस सवाल से बचना चाहता था इसलिए मैंने बात खत्म करते हुए कहा;

मैं: Look may be you’re right or maybe not but I…I can’t decide anything now.

जब मुझे कुछ नहीं सूझता तो मैं अक्सर इस तरह का बहाना मार कर खुद को उस हालात से बाहर निकाल लेता हूँ और 'जो होगा वो देखा जायेगा' का नारा मन में लगा कर दिमाग शांत कर लेता हूँ|

भौजी: Take your time or may be ask Dishu, he’ll help you!

भौजी ने दिषु का नाम ले कर बड़ी सावधानी से खुद को 'पक्षपाती' होने के दाग़ से बचा लिया|

मैं: Thanks मेरे दिमाग में उठे सवालों का जवाब देने के लिए|

इतना कह मैं उठने को हुआ तो भौजी ने फिर मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया;

भौजी: नहीं अभी भी कुछ बाकी है!

उनकी बात सुन मैंने भोयें सिकोड़ कर उन्हें देखा और पुछा;

मैं: क्या?

भौजी ने मेरे सवाल का जवाब आयुष को आवाज लगा कर दिया| आयुष घर के बाहर गली में बच्चों के साथ खेल रहा था, अपनी मम्मी की आवाज सुन के वो भागता हुआ अंदर आया और अपनी मम्मी को गौर से देखने लगा|

भौजी: बेटा बैठो मेरे पास|

भौजी ने आयुष को मेरे सामने बिठाया| आयुष का मुँह भौजी की ओर था और पीठ मेरी ओर, एक तरह से वो मेरे और भौजी के बीच में ही बैठा था| कमरे में बस हम तीन प्राणी ही मौजूद थे, नेहा शायद बाहर खेल रही थी!

भौजी: बेटा ये आपके पापा हैं...

भौजी आगे कुछ बोलती उससे पहले ही मैंने उन्हें चुप कराने के लिए अपना हाथ उनके होठों पर रखना चाहा, मगर भौजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपनी बात पूरी की;

भौजी: बेटा मैंने आपको बताया था न की आपके पापा शहर में पढ़ रहे हैं|

आयुष ने हाँ में गर्दन हिलाई और अपनी चमकती हुई आँखों से मेरी तरफ देखने लगा|

भौजी: इस दुनिया में मुझे आजतक किसी ने प्यार किया है तो वो हैं आपके पापा!

आयुष की आँखों में मुझे आज जा कर मैं अपने लिए पिता का प्यार दिख रहा था! आयुष को खुद के इतना नजदीक देख मेरे लिए खुद को रोक पाना नामुमकिन था, दिल अपने बेटे को छूना चाहता था, उसे अपने सीने से लगाना चाहता था!

मैं: बेटा आप एक बार मेरे गले लगोगे?

मैंने बड़ी हिम्मत कर के आयुष के सामने अपनी तीव्र इच्छा प्रकट की| आयुष ने एक सेकंड नहीं लगाया और मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ खोल दिए, मैंने अपने दोनों हाथों से उसे उठाया और कस कर अपने सीने से लगा लिया!



आयुष के गले लगते ही ऐसा लगा मानो भौजी पर आये गुस्से से जल रहे मन पर आयुष के प्यार की छाया ने ठंडक दी हो! सालों से आयुष के प्यार के लिए भटक रहे मन को सहारा मिला हो, कोचिंग वाली लड़की को याद कर के लहरों से लड़ती हुई मेरे दिमाग की नाव को किनारा मिल गया हो! सालों से आमावस की रात में घर का रास्ता ढूँढ़ते हुआ मैं अचानक से जैसे पूनम की उज्यारी रात में आ गया था! सदियों से प्यासी मरुभूमि पर आयुष के प्यार ने सावन की बारिश कर दी थी! कलेजे में जो गुस्से की आग पिछले पाँच सालों से जल रहा था उसे आज जा के ठंडक मिली थी|

दोनों पिता-पुत्र ख़ामोशी से गले लगे हुए थे, इस मधुर मिलन के कारन मेरी आँखें भर आईं थीं की तभी आयुष अपनी प्यारी बोली में बोला;

आयुष: पापा!

दो अक्षर का शब्द सुन मेरे तो जैसे सारे अरमान पूरे हो गए थे! मैं तो इस सदी का सबसे खुशनसीब इंसान बन गया था, ऐसा लगा मानो कब से मुझे इस दिन की प्रतीक्षा थी! ख़ुशी से भरी आँखों ने नीर बहा कर अपनी खुशियों का इजहार किया! मैंने आयुष को खुद से अलग किया और उसके गालों और माथे पर पप्पियों की बौछार कर दी, जो भी गुस्सा अंदर भरा था वो आज प्यार बनके बहार आ गया था| मैंने आयुष के चेहरे को अपने हाथों में लिए हुए उसकी आँखों में देखते हुए कहा;

मैं: बेटा....I missed you so much!!! आजतक आपको मैंने अपनी कल्पनाओं में बड़ा होते हुए देखा था, इस तरह आपको गले लगाना, आपको इतना प्यार करने के लिए बहुत तरसा था!
मेरी बात सुन आयुष के चेहरे पर मुस्कान आ गई, ऐसी मुस्कान जिसे देख कर मेरा दिल ख़ुशी से धड़कने लगा! आयुष ने अपने नन्हें-नन्हें हाथों से मेरी आँखों से बहे आँसूँ पोछे और मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगा|

वहीं इस पिता-पुत्र के मिलन को देख भौजी की आँखें भर आईं थीं क्योंकि उनकी इस पिता-पुत्र मिलन को देखने की तृष्णा आज जा कर पूरी हुई थी!



दिमाग से जब गुस्से के बादल छटे तो मुझे मेरे जमीर ने मुझे भौजी के साथ किये अपने व्यवहार के लिए दोषी ठहरा दिया! भौजी ने आयुष से मेरा परिचय ये कह कर कराया था; 'बेटा मैंने आपको बताया था न की आपके पापा शहर में पढ़ रहे हैं|' उनका ये वाक्य मेरे मन में गूँजने लगा था और मुझे बार सुई चुभा कर एहसास दिला रहा था की भौजी ने भले ही आयुष को मुझसे दूर रखा मगर उन्होंने आयुष को उसके असली पिता के बारे में सब सच बताया था! मैंने भौजी को कितना गलत समझा, मुझे मेरे बच्चों से दूर करने के लिए दोष दिया, जबकि भौजी ने आयुष के मन-मंदिर में उसके असली पिता की ज्योत जलाये रखी थी!

ये सब ख्याल आते ही मन ग्लानि से भर गया और दिल भौजी के सामने अपने किये पाप को स्वीकारने के लिए व्याकुल हो गया, परन्तु पहले मुझे अपने बेटे को बाहर भेजना था ताकि मैं अकेले में भौजी से अपने किये पाप की माफ़ी माँग सकूँ|

मैं: बेटा आप अपनी नेहा दीदी को बुला के आओ|

मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए कहा तो आयुष ख़ुशी-ख़ुशी अपनी दीदी को बुलाने चला गया| इससे पहले की मैं भौजी से इक़बालिया जुर्म करता, भौजी बोल पड़ीं;

भौजी: मैंने आज तक आयुष को उस आदमी (चन्दर) की परछाई से भी दूर रखा है, कभी उसके गंदे हाथों को हमारे बच्चे को छूने नहीं दिया! आज तक आयुष ने कभी उसे (चन्दर को) पापा नहीं कहा, आयुष के जीवन का ये पहला शब्द सिर्फ और सिर्फ आपके लिए निकला है! जब आयुष बहुत छोटा था तभी से मैं उसे आपकी वो स्कूल dress पहने वाली तस्वीर दिखाती थी, आपकी तस्वीर देख कर वो खुश हो जाया करता था और मुस्कुराने लगता था| फिर आयुष बोलने लगा तो मैंने उसे बताया की आप शहर में पढ़ते हो और एक दिन हम आपसे मिलने जर्रूर जाएंगे, मगर मेरे लिए यहाँ आने का कोई बहाना नहीं था! लेकिन फिर मुझे एक दिन बहाना मिल ही गया, मैंने आपकी बड़की अम्मा को खूब मस्का लगाया की बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना है, तब कहीं जा कर मैं बच्चों के साथ यहाँ आ पाई! आयुष ने अबतक आपकी जो तस्वीर देखि थी उसमें आपकी दाढ़ी-मूँछ नहीं थी इसलिए जब वो पहली बार आपसे मिला तो आपको पहचान नहीं पाया|

भौजी की बातें सुन कर मेरी ग्लानि दुगनी हो गई थी और इससे पहले मैं कुछ कह पाता, मुझे दोनों बच्चों के आने की आहट सुनाई दी, इसलिए मैंने बात फिलहाल के लिए खत्म करते हुए कहा;

मैं: मैं समझ सकता हूँ! वैसे आपने आयुष को बताय की वो सब के सामने मुझे 'पापा' नहीं कह सकता?

मेरा सवाल सुन भौजी की आँखों में मुझे अचरज दिखाई दिया, ठीक भी था इतने साल बाद आयुष ने मुझे पापा कहा था और मैं हूँ की आयुष को सबके सामने मुझे पापा कहने से रोकने की बात पूछ रहा हूँ! मगर मेरी चिंता जायज थी, आयुष अभी छोटा बच्चा है अपने भोलेपन में अगर वो मुझे सबके सामने पापा कह देता तो ऐसा जलजला आता जो सारे परिवार को तहस-नहस कर देता!

भौजी: भला ये मैं कैसे कह सकती हूँ? मैं तो चाहती हूँ कि वो हमेशा आपको पापा ही कह के बुलाये|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: आप जानते हो न की ये नामुमकिन है, खेर मैं आयुष से बात कर लूँगा|

मैं भौजी को कोई झूठी उम्मीद नहीं देना चाहता था, इसलिए मैंने न चाहते हुए भी ये चुभती हुई बात कही|



इतने में आयुष और नेहा दोनों आ गए, नेहा आके मेरे पास खड़ी हो गई और आयुष हम दोनों (मेरे और भौजी) के बीच में बैठ गया| मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए अपनी बात शुरू की;

मैं: बेटा आपसे एक बात कहनी है, उम्मीद करता हूँ की आप मुझे समझ पाओगे|

इतना कह मैंने एक लम्बी साँस ली और फिर अपनी आगे की बात कही;

मैं: बेटा आप मुझे सब के सामने 'पापा' नहीं कह सकते|

मैंने अपनी साँस छोड़ते हुए आगे की बात कही;

मैं: सिर्फ अकेले में ही आप मुझे 'पापा' कह सकते हो! जैसे आपकी दीदी मुझे अकेले में 'पापा' कहती हैं!

मेरी बात सुन आयुष को हैरानी हुई और उसने तपाक से अपना सवाल पूछ लिया;

आयुष: पर क्यों पापा?

आयुष का सवाल सुन मेरे माथे पर चिंता की एक शिकन आ गई क्योंकि आयुष को ये सब समझना मुश्किल था| मैंने अपने माथे पर पड़ी शिकन पर हाथ फेरा और बोला;

मैं: बेटा....मैं आपकी मम्मी को कितना प्यार करता हूँ, ये कोई नहीं जानता, ये एक secret...मतलब राज़ है, ये बात अब हम चार ही जानते हैं! जब मैं आखरीबार गाँव आया था तब मैं और आपकी मम्मी....बाहत नजदीक आ गाये थे....फिर हालात ऐसे हुए की हम दोनों (मैं और भौजी) एक हो गए और तब आप पैदा हुए! खेर उस बारे में समझने के लिए अभी आप बहुत छोटे हो और आपको वो बात अभी जननी भी नहीं चाहिए!

मैंने जैसे-तैसे अपनी बात कही|

मैं: और आप मेरा खून हो....मेरे बेटे हो....मेरे और आपकी मम्मी के प्यार की निशानी हो!

मैंने बड़े गर्व से कहा| लेकिन मेरी बात सुन नेहा के मन में जिज्ञासा पैदा हुई और वो बीच में बोल पड़ी;

नेहा: और पापा मैं?

मैं नेहा से झूठ नहीं बोलना चाहता था इसलिए मैंने नेहा को अपने सीने से लगाया और बोला;

मैं: बेटा आप मेरा खून नहीं हो, मगर मैं आपको आयुष के जितना ही प्यार करता हूँ!

मेरा जवाब सुन नेहा ने मुझे अपनी बाहों में कस लिया और खुसफुसाते हुए बोली;

नेहा: मैं जानती हूँ आप मुझे ज्यादा प्यार करते हो!

नेहा ने आत्मसविश्वास से अपनी बात कही और मुस्कुराने लगी| मैंने उसकी कही बात का जवाब उसे कस कर अपने गले लगाते हुए दिया| पिता-पुत्री का गले मिलना हुआ तो मैंने आयुष की तरफ देखते हुए पुछा;
बहुत बढ़िया

अखीरकार दोनो को अपनी अपनी बेवकूफी समझ आई।

मानू की दुविधा सही है, कहते हैं ना कि दूध का जला छाछ भी फूक फूक कर पिता है, यहां तो वापस से दूध ही पीने की बात हो रही है।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
19,340
40,090
259
Baki is story ke shuru me bhi mera favourite character neha hi tha
Aur ab last me bhi neha hi h :love2:
भाई अभी तो मैं बस 22वे अध्याय तक ही पहुंचा हूं, पर एक बात कह सकता हूं कि नेहा ही एक ऐसा रिश्ता है जो सारे रिश्तों को अपनी मासूमियत से सम्हाले हुए है।
 
161
829
94
:bow: :bow: :bow: :bow: :bow: ...............................................लेखक जी क्या कहूं आपकी लेखनी के बारे में................................मैं आपके जैसा कभी नहीं लिख सकती.........................एक स्त्री की सबसे बड़ी समस्या का जिक्र कर आपने जो नेहा को सीख दी उसे पढ़ कर आँखें नम हो गईं......................................बाकी सभी की जानकारी के लिए बता दूँ की मुझे इनकी और नेहा के बीच हुई इस बात का पता बिलकुल नहीं था..........................नेहा मुझसे इतना खुल कर बात नहीं करती जितनी खुल कर वो अपने पापा जी से बातें करती है.......................................आपने ये अंतिम अपडेट लिखने में बहुत कष्ट उठाया है इसलिए आप थोड़ा आराम करिये.................... :alright:
_________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
Akki ❸❸❸ अक्कीवातेरा मीम्वा देख कर बड़ा मज़ा आया..........................स्तुति बिलकुल ऐसी ही है....................इनकी प्यारी पाने के लिए वो झट से प्रकट हो जाती है......................... :lol1: ......................खैर......................अब तेरा वो 50000 शब्दों वाला रिव्यु पोस्ट कर.......................उसे पढ़ने को मैं बहुत बेकरार हूँ.........................उसे पढ़ने के बाद ही मेरी कहानी शुरू होगी..................वरना नहीं.................. और अगर तूने कोई बहाना किया न तो मैं तुझसे बता नहीं करुँगी.......................अपनी कहानी भी शुरू नहीं करुँगी.................और सबसे तुझे डाँट भी खिलवाउंगी :girlmad:
_________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________ Lib am अमित जी.....................आपका रिव्यु कहाँ है????????????? मेरी कहानी पढ़नी है तो जल्दी से बढ़िया सा रिव्यु दो......................कम से कम ४-५ पेज का रिव्यु............................रिव्यु अच्छा लगा तभी मैं अपनी कहानी शुरू करुँगी
_________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
journalist342 शिवम् बेटा...............................एक बढ़िया सा..................बड़ा सा रिव्यु लिख दे.......................ये रिव्यु तूने अभी तक जितनी कहानी पढ़ी उसके ऊपर होना चाहिए
_________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
Kala Nag जी.................आपके पिछले कमेंट में आपने लिखा था की लेखक जी के मन में ये ख्याल पढ़िए हो गया है की नेहा उनका खून नहीं है...................और इस नई अपडेट को पढ़ कर आपके कमेंट में आये बदलाव को पढ़ कर अच्छा लगा...........................इतने सालों में इनके साथ रहते हुए जब मैं इन्हें समझ न पाई तो आप की जजमेंट में गलती होना तो जायज था.......................वैसे कहानी अभी अंत नहीं हुई.................अब देखिये इन्होने क्या बम फोड़ना है.....................उसके बाद मेरी भी कहानी शुरू होगी :makeup:
 
Last edited:
161
829
94
इस कहानी के सभी रीडर्स से मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूँ की वो लेखक जी की इस पूरी कहानी पर अपना बड़ा सा रिव्यु दे कर लेखक जी की मेहनत सफल बनाएं 🙏 Rekha rani sunoanuj kamdev99008 भैया आप भी.....................रिव्यु दीजिये वरना मैं आपकी शिकायत आपकी सबसे छोटी भांजी से कर दूँगी और वो आपसे नाराज़ हो जाएगी
 

Rekha rani

Well-Known Member
2,511
10,632
159
Awesome update,
Manu ji jaise aapne neha ko uske kiye gye galat vyvhaar ke liye ahsaas karaya bahut hi umda trika rha, hr kisi ke bas me rhta aisa kr pana, phle ek pita ka dukh jisme usne apni chaheti beti ke muh se aise sabd sune jise sunkr kisi ke dil pr kya bitti hai uska anuman krna hi muskil hai, lekin aapne us samay me jaise dharya se kam liya, aur apne aap ko kashat dete huye, use uski galati ka ahsaas karaya,
Pita ki bhumika nibhaate huye aapne sangeeta ji ko bhi unki ma ki bhumika nibhane me help ki, verna aisi situation me jaise sangeeta ji ka svabhav dikha hai uske karan mamala jyada kharab ho skta tha,
Ayush me aapke diye huye sanskar ke karan aapki prtirup ki jhalak usme dikh rhi hai,
Stuti ne apne prem se aapko neha se jyada dur nhi jane diya, agar stuti ka pyar nhi hota to shayad aap itna tut jate ki phir kabhi antarman me neha ko nhi apna pate,
Lekin stuti ne ek pita ke man me bitiya ke liye payar jivit rha,
Neha ne bad me galati mani aur phir apne andr chhupi purani neha ko jivit kiya jo apne papa ji ke bina nhi rah pati thi,
Neha ne andr se apne papa ki taklif ko mahsus kiya aur unke dukh ko apna kiye ki saja ke rup me kabul kiya aur bimar ho gyi,

Sangeeta ji ne bahut achhe se kosis ki ek beti ko apne papa se milane ki halanki manu ji kafi had tak unke plan ko smjh gye aur unko safal nhi hone diya
Dishu ne ek mitr ki bhumika bakhubi nibhayi aur apne mitr ka dukh samjhte huye use us mahoul se dur lekr gya aur ek pita ke man me baithi narajgi ko kuchh hd tk km karne me kamyab hua
Aur vapisi pr neha ke bimar hone pr ek pita ka payar khul kr bahar aaya,
Ek beti ke apne pita ke milap ke bad aur apni galati ke karan ek bar kho dene se uske man me baithe dar ko bhi aapne bahut hi umda trike se bahar nikalne me neha ki help ki,
जब कहानी पढ़नी शुरू की थी तब सोचा नही था कि कहानी इतनी बढ़िया निकलेगी कि इसके किरदारो के जीवन जीने की प्रेरणा मिल सकेगी, एक एडल्ट फॉर्म पर ऐसी कहानी अपने आप मे मिसाल है,
शुरुआत में कहानी एक भाभी देवर के नाजायज रिश्ते को एक प्रेम ग्रन्थ में बदलते हुए मिली,
एक नवयुवक के अपने सिद्धान्त दिखे जहाँ आज हजम करना मुमकिन नही, कोई युवक माधुरी जैसी लडकी को मना कर सकता है, एक नवयुवक जिसे एक भाभी का सानिध्य मिला वो दूसरी भाभी जो कि उसे अपने आप से सेक्स एक लिए आमंत्रित कर रही थी सिरे से नकार दिया बलिक उसका विरोध भी किया ,
एक नाजायज रिश्ते में पनपे अथाह प्रेम को जिस बारीकी से इस कहानी में दिखाया गया है वो अकल्पनीय है,
प्रेम का हर रूप इस कहानी में है, इश्क का इजहार, प्रथम मिलन, दोनो का एक दूसरे के लिए सम्पर्ण, रूठना मानना, अद्भुत है,
फिर भाभी के एक गलत निर्णय के कारण दोनो में जुदाई,
फिर आप दुवारा उस जुदाई को अपनी सफलता की कुंजी बनाना,
दिशु का एक ऐसे मित्र के रूप में साथ मिलना जो हर हालत में आपकेसाथ रहता है,
एक पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ देना, फिर उनके मन मे अपने लिए इतना प्यार भर देना की समाजिक रूप से एक गलत निर्णय पर आपकेसाथ खडेरहे डटकर,
नेहा के प्रति जो जिम्मेदारी आपने दिखाई वो अपने आप मे एक उदाहरण है,
शादी होते ही दो बच्चों के पिता के रूप में जिम्मेदारी को जिस संजीदगी से आपने निभाया वो तारीफ के काबिल है,
अपने परिवार के सुरक्षा के लिए अपनी जान पर खेल जाना, पूरे समाज यहाँ तक कि पूज्य पिता के खिलाफ खड़े हो जाना,
फिर माता जी का अपने बेटे पर विसवास करके अपने पति के विरोध में आ जाना ,
आपने एक कहानी में अपने चरित्र के हर पहलु के दर्शन कराए है जिसका वर्णन करना भी हमारे बस के बाहर है,
इस कहानी की सबसे बड़ी खास बात ये है कि जितनी बार चाहे पढ़ो उतना ही आनंद देती है
 

Rekha rani

Well-Known Member
2,511
10,632
159
इस कहानी के सभी रीडर्स से मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूँ की वो लेखक जी की इस पूरी कहानी पर अपना बड़ा सा रिव्यु दे कर लेखक जी की मेहनत सफल बनाएं 🙏 Rekha rani sunoanuj kamdev99008 भैया आप भी.....................रिव्यु दीजिये वरना मैं आपकी शिकायत आपकी सबसे छोटी भांजी से कर दूँगी और वो आपसे नाराज़ हो जाएगी
संगीता जी जितना मुझसे लिखा गया और जितना मैं समझ पायी इस कहानी से लिखने का प्रयास किया और इस महान कहानी और हमारे प्रिय लेखक महोदय की मेहनत पर बड़ा तो नही छोटा रिव्यू ही दे सकी हु,
बड़े रिव्यू के क्षमा चाहुगी
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
9,771
37,561
219
इस कहानी के सभी रीडर्स से मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूँ की वो लेखक जी की इस पूरी कहानी पर अपना बड़ा सा रिव्यु दे कर लेखक जी की मेहनत सफल बनाएं 🙏 Rekha rani sunoanuj kamdev99008 भैया आप भी.....................रिव्यु दीजिये वरना मैं आपकी शिकायत आपकी सबसे छोटी भांजी से कर दूँगी और वो आपसे नाराज़ हो जाएगी
मेरी छोटी बहन की बात काट सकूँ इतनी हिम्मत नहीं मुझमें
में रिव्यू दूंगा लेकिन कुछ समय दो मुझे पूरी तो नहीं लेकिन पिछले लगभग 1 साल के अपडेट मेंने पढ़ नहीं पाये हैं............
पहले लैपटाप की प्रोब्लेम थी और अब वहीं पिछले अपडेट से शुरू करना होगा तो 2 दिन का समय दो............सारे अपडेट ए बार में पढ़कर रिव्यू लिखता हूँ.............

इस अनोखे बंधन को कहानी नहीं मानु भाई की ज़िंदगी की तरह पढ़ता हूँ में.......... इसीलिए यहाँ दूसरी ID होते हुये भी 'काला इश्क़' के सिर्फ कैरक्टर्स से पहचान लिया था मेंने
तो अब भी आगे की कहानी पढ़कर ही पूरा रिव्यू दे दूंगा............
 
Top