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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Lib am

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आपने बिलकुल सही कहा अमित भाई जी| शुक्र है की आदमियों को भगवान जी ने विवेक दिया है जो थोड़ी देर से ही समय जागता अवश्य है और कई आदमियों को गलत राह पर भटकने से बचा लेता है|

मेरे और नेहा के इस रिश्ते को अच्छे से समझ गए, ये देख कर बहुत ख़ुशी हुई| :hug:

आज इतने सालों बाद, फिर आयी बरसात फिल्म के गाने के ये बोल पढ़ कर अच्छा लगा| रही बात इस update के सन्दर्भ में इस गाने के उतरने के तो, यही कहूंगा की कुछ हद्द तक गाना इस update पर सही उतरता है|

नई update post कर दी गई थी: https://xforum.live/threads/एक-अनोखा-बंधन-पुन-प्रारंभ.9494/page-1135#post-5732573
आपका अभी तक कोई review न देना किसी अप्रिय घटना होने की तरफ इशारा कर रहा है! भगवान जी से प्रार्थना की आप व् आपके परिवारजन सभी हँसी-ख़ुशी हों| 🙏
मेरे रिव्यू ना देने का कारण भी वही है जो आपके देर से इस अपडेट देने का है। मैने अपडेट नहीं पढ़ा है अभी तक क्योंकि मनोस्थिति वही है कि अपडेट पढ़ लिया तो ये किस्सा समाप्त हो जायेगा, मगर ये काम भी करना तो पड़ेगा ही इसलिए अब ये काम कल होगा और रिव्यू भी कल ही आयेगा।
 

Rockstar_Rocky

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मेरे रिव्यू ना देने का कारण भी वही है जो आपके देर से इस अपडेट देने का है। मैने अपडेट नहीं पढ़ा है अभी तक क्योंकि मनोस्थिति वही है कि अपडेट पढ़ लिया तो ये किस्सा समाप्त हो जायेगा, मगर ये काम भी करना तो पड़ेगा ही इसलिए अब ये काम कल होगा और रिव्यू भी कल ही आयेगा।


मैं आपकी पीड़ा समझ सकता हूँ भाई जी| लेकिन अभी कहानी खत्म कहाँ हुई है! अभी तो Big Reveal बाकी है और उसके बाद संगीता की कहानी भी तो बाकी है! लगता है आपको संगीता की कहानी में दिलचस्पी नहीं है! YouAlreadyKnowMe संगीता देवी जी, देख लो आपके प्रिय मित्र अमित जी को आपकी कहानी में दिलचस्पी नहीं! तनी इनकी किलास लगावा! :D
 

Lib am

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मैं आपकी पीड़ा समझ सकता हूँ भाई जी| लेकिन अभी कहानी खत्म कहाँ हुई है! अभी तो Big Reveal बाकी है और उसके बाद संगीता की कहानी भी तो बाकी है! लगता है आपको संगीता की कहानी में दिलचस्पी नहीं है! YouAlreadyKnowMe संगीता देवी जी, देख लो आपके प्रिय मित्र अमित जी को आपकी कहानी में दिलचस्पी नहीं! तनी इनकी किलास लगावा! :D
क्या Rockstar_Rocky आप और YouAlreadyKnowMe भौजी एक ही इंसान हो, नही ना। उनका नजरिया अलग आपका अलग तो फिर दोनो को कनेक्ट कैसे कर सकते है भाई साहब। आप थोड़ा इमोशनल टाइप तो वो मुंहफट और थोड़ा व्यंगात्मक। उनकी कहानी अलग अंदाज में होगी तो उसका आनंद अलग तरह से लिया जाएगा। अब इस कहानी से इतना जुड़ चुके है तो क्या ही कर सकते है।
 

Lib am

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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 17 (2)


अब तक अपने पढ़ा:


बहरहाल, दिन बीत रहे थे पर नेहा और मेरे बीच बनी दूरी वैसी की वैसी थी| नेहा मेरे नज़दीक आने की बहुत कोशिश करती मगर मैं उससे दूर ही रहता| मैं नेहा को अपने जीवन से निकाल चूका था और उसे फिर से अपने जीवन में आने देना नहीं चाहता था| मुझसे...एक पिता से पुनः प्यार पाने की लालसा नेहा के भीतर अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी थी! फिर एक समय आया जब नेहा ने हार मान ली और वो इस कदर टूट गई थी की किसी के लिए भी उसे सँभालना नामुमकिन था|


अब आगे:


कुछ
दिन बीते, सुबह का समय था की तभी दिषु का फ़ोन आया, उसने मुझे बताया की एक ऑडिट निपटाने के लिए उसे मेरी मदद चाहिए थी| दरअसल हम दोनों ने इस कंपनी की ऑडिट पर सालों पहले काम किया था, लेकिन कंपनी के एकाउंट्स में कुछ घपला हुआ जिस कारण पुराने सारे अकाउंट फिर से चेक करने थे| समस्या ये थी की ये कपनी थी देहरादून की और कंपनी के सारे लेखा-जोखा रखे थे एक ऐसे गॉंव में जहाँ जाना बड़ा दुर्गम कार्य था| इस गॉंव में लाइट क्या, टेलीफोन के नेटवर्क तक नहीं आते थे| हाँ, कभी-कभी वो बटन वाले फ़ोन में एयरटेल वाला सिम कभी-कभी नेटवर्क पकड़ लेता था| ऑडिट थी 6 दिन की और इतने दिन बिना फ़ोन के रहना मेरी माँ के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक था|

उन दिनों मैं पिताजी का ठेकेदारी का काम बंद कर चूका था| मेरा जूतों का काम थोड़ा मंदा हो चूका था इसलिए मैं इस ऑडिट के मौके को छोड़ना नहीं चाहता था| जब मैंने माँ से ऑडिट के बारे में सब बताया तो माँ को चिंता हुई; "बेटा, इतने दिन बिना तुझसे फ़ोन पर बात किये मेरा दिल कैसे मानेगा?" माँ की चिंता जायज थी परन्तु मेरा जाना भी बहुत जर्रूरी था| मैंने माँ को प्यार से समझा-बुझा कर मना लिया और फटाफट अपने कपड़े पैक कर निकल गया|



जब मैं घर से निकला तब बच्चे स्कूल में थे और जब बच्चे स्कूल से लौटे तथा उन्हें पता चला की मैं लगभग 1 हफ्ते के लिए बाहर गया हूँ, वो भी ऐसी जगह जहाँ फ़ोन का नेटवर्क नहीं मिलता तो सबसे ज्यादा स्तुति नाराज़ हुई! स्तुति ने फौरन मुझे फ़ोन किया और मुझे फ़ोन पर ही डाँटने लगी; "पपई! आप मुझे बिना बताये क्यों गए? वो भी ऐसी जगह जहाँ आपका फ़ोन नहीं मिलेगा?! अब मुझे कौन सुबह-सुबह प्यारी देगा? मैं किससे बात करुँगी? अगर मुझे आपसे कुछ बात करनी हो तो मैं कैसे फ़ोन करुँगी?" स्तुति अपने प्यारे से गुस्से में मुझसे सवाल पे सवाल पूछे जा रही थी और मुझे मेरी बिटिया के इस रूप पर प्यार आ रहा था|

जब स्तुति ने साँस लेने के लिए अपने सवालों पर ब्रेक लगाई तो मैं स्तुति को प्यार से समझाते हुए बोला; "बेटा, मैं घूमने नहीं आया हूँ, मैं आपके दिषु चाचू की मदद करने के लिए आया हूँ| यहाँ पर नेटवर्क नहीं मिलते इसलिए हमारी फ़ोन पर बात नहीं हो सकती, लेकिन ये तो बस कुछ ही दिनों की बात है| मैं जल्दी से काम निपटा कर घर लौटा आऊँगा|" अब मेरी छोटी बिटिया रानी का गुस्सा बिलकुल अपनी माँ जैसा था इसलिए स्तुति मुझसे रूठ गई और बोली; "पपई, मैं आपसे बात नहीं करुँगी! कट्टी!!!" इतना कह स्तुति ने फ़ोन अपनी मम्मी को दे दिया| मैं संगीता से कुछ कहूँ उसके पहले ही संगीता ने अपने गुस्से में फ़ोन काट दिया|



दिषु मेरे साथ बैठा था और उसने हम बाप-बेटी की सारी बातें सुनी थी इसलिए वो मेरी दशा पर दाँत फाड़ कर हँसे जा रहा था! वहीं मुझे भी मेरी बिटिया के मुझसे यूँ रूठ जाने पर बहुत हँसी आ रही थी| मुझे यूँ हँसते हुए देख दिषु मेरी पीठ थपथपाते हुए बोला; "ऐसे ही हँसता रहा कर!" दिषु की कही बात से मेरे चेहरे से हँसी गायब हो गई थी और मैं एक बार फिर से खामोश हो गया था|

दरअसल नेहा और मेरे बीच जो दूरियाँ आई थीं, दिषु उनसे अवगत था| हमेशा मुझे ज्ञान देने वाला मेरा भाई जैसा दोस्त, नेहा के कहे उन ज़हरीले शब्दों के बारे में जानकार भी खामोश था| मानो जैसे उसके पास मुझे ज्ञान देने के लिए बचा ही नहीं था! वो बस मुझे हँसाने-बुलाने के लिए कोई न कोई तिगड़म लड़ाया करता था| ये ऑडिट का ट्रिप भी उसने इसी के लिए प्लान किया था ताकि घर से दूर रह कर मैं थोड़ा खुश रहूँ|



उधर घर पर, स्तुति के मुझसे नाराज़ होने पर आयुष और नेहा अपनी छोटी बहन को लाड कर समझाने में लगे थे की वो इस तरह मुझसे नाराज़ न हो| "तुझे पापा जी से नाराज़ होना है तो हो जा, लेकिन अगर पापा जी तुझसे नाराज़ हो गए न तो तू उन्हें कभी मना नहीं पायेगी!" नेहा भारीमन से भावुक हो कर बोली| नेहा की बात से उसका दर्द छलक रहा था और अपनी दिद्दा का दर्द देख स्तुति एकदम से भावुक हो गई थी! ऐसा लगता था मानो उस पल स्तुति ने मेरे नाराज़ होने और उससे कभी बता न करने की कल्पना कर ली हो!

अपनी दीदी को यूँ हार मानते देख आयुष ने पहले अपनी दीदी को सँभाला, फिर स्तुति का ध्यान भटकाने के लिए आयुष ने उस दिन की घटना का जिक्र किया जब मैं दोनों (नेहा-आयुष) से नाराज़ हो गया था; "एक बार मैं और दीदी, पापा जी से लड़ पड़े थे क्योंकि उन्होंने हमें बाहर घुमाने का प्लान अचानक कैंसिल कर दिया था| तब गुस्से में आ कर हमने पापा जी से बहुत गंदे तरीके से बात की और उनसे बात करनी बंद कर दी| लेकिन फिर दादी जी ने हमें बताया की साइट पर सारा काम पापा जी को अकेला सँभालना था, ऊपर से मैंने पापा जी के फ़ोन की बैटरी गेम खेलने के चक्कर में खत्म कर दी थी इसलिए पापा जी हमें फ़ोन कर के कुछ बता नहीं पाए| सारा सच जानकार हमें बहुत दुःख हुआ की हमने पापा जी को इतना गलत समझा| मैंने और दीदी ने पापा जी से तीन दिन तक माफ़ी माँगी पर पापा जी ने हमें माफ़ नहीं किया क्योंकि हम अपनी गलती पापा जी के सामने स्वीकारे बिना ही उनसे माफ़ी माँग रहे थे!

फिर मैंने और दीदी ने अपनी सारी हिम्मत बटोरी और कान पकड़ कर पापा जी के सामने अपनी गलती स्वीकारी| तब जा कर पापा जी ने हमें माफ़ किया और हमें गोदी ले कर खूब लाड-प्यार किया| उस दिन से हम कभी पापा जी से नाराज़ नहीं होते थे, जब भी हमें कुछ बुरा लगता तो हम सीधा उनसे बात करते थे और पापा जी हमें समझाते तथा हमें लाड-प्यार कर या बाहर से खिला-पिला कर खुश कर देते|



आपको पता है स्तुति, पापा जी हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं ताकि वो हमारी जर्रूरतें, हमारी सारी खुशियाँ पूरी कर सकें| हाँ, कभी-कभी वो काम में बहुत व्यस्त हो जाते हैं और हमें ज्यादा समय नहीं दे पाते लेकिन वो हमेशा तो व्यस्त नहीं रहते न?! हमें चाहिए की हम पापा जी की मजबूरियाँ समझें, वो हमारे लिए जो कुर्बानियाँ देते हैं उन्हें समझें और पापा जी की कदर करें| यूँ छोटी-छोटी बातों पर हमें पापा जी से नाराज़ नहीं होना चाहिए, इससे उनका दिल बहुत दुखता है|" आज आयुष ने वयस्कों जैसी बात कर अपनी छोटी बहन को एक पिता की जिम्मेदारियों से बारे में समझाया था| वहीं, स्तुति को अपने बड़े भैया की बात अच्छे से समझ आ गई थी और उसे अब अपने किये गुस्से पर पछतावा हो रहा था|



दूसरी तरफ नेहा, अपने छोटे भाई की बातें सुन कर पछता रही थी! आयुष, नेहा से 5 साल छोटा था परन्तु वो फिर भी मुझे अच्छे से समझता था, जबकि नेहा सबसे बड़ी हो कर भी मुझे हमेशा गलत ही समझती रही|

आयुष की बातों से नेहा की आँखों से पछतावे के आँसूँ बह निकले| स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को यूँ रोते हुए देखा तो वो एकदम से अपनी दिद्दा से लिपट गई और नेहा को दिलासे देते हुए बोली; "रोओ मत दिद्दा! सब ठीक हो जायेगा!" स्तुति ने नेहा को हिम्मत देनी चाही मगर नेहा हिम्मत हार चुकी थी इसलिए उसके लिए खुद को सँभालना मुश्किल था| स्तुति ने अपने बड़े भैया को भी इशारा कर नेहा के गले लगने को कहा| दोनों भाई बहन ने नेहा को अपनी बाहों में जकड़ लिया और नेहा को हिम्मत देने लगे|



आयुष और स्तुति के आलिंगन से नेहा को कुछ हिम्मत मिली और उसने खुद को थोड़ा सँभाला| अपनी दीदी का मन खुश करने के लिए आयुष ने नेहा को पढ़ाने के लिए कहा, वहीं स्तुति ने मुझे वीडियो कॉल कर दिया| जैसे ही मैंने फ़ोन उठाया वैसे ही स्तुति ने फ़ोन टेबल पर रख दिया और कान पकड़ कर उठक-बैठक करने लगी! “बेटा, ये क्या कर रहे हो आप?” मैंने स्तुति को रोकते हुए पुछा तो स्तुति एकदम से भावुक हो गई और बोली; " पापा जी, छोलि (sorry)!!! मुझे माफ़ कर दो, मैंने आपको गुच्छा किया! मैं...मुझे नहीं पता था की आप काम करने के लिए इतने दूर गए हो| मुझे माफ़ कर दो पापा जी! मुझसे नालाज़ (नाराज़) नहीं होना!” ये कहते हुए स्तुति की आँखें भर आईं थीं और उसका गला भारी हो गया था|

"बेटा, किसने कहा मैं आपसे नाराज़ हूँ?! मैं कभी अपनी प्यारु बेटु से नाराज़ हो सकता हूँ?! मेरी एक ही तो छोटी सी प्यारी सी बेटी है!" मैंने स्तुति को लाड कर हिम्मत दी और रोने नहीं दिया|

"आप मुझसे नालाज़ नहीं?" स्तुति अपने मन की संतुष्टि के लिए तुतलाते हुए पूछने लगी|

"बिलकुल नहीं बेटा! आप मुझे इतनी प्यारी करते हो तो अगर आपने थोड़ा सा गुच्छा कर दिया तो क्या हुआ? जो प्यार करता है, वही तो हक़ जताता है और वही गुच्छा भी करता है|" मैंने स्तुति को बहलाते हुए थोड़ा तुतला कर कहा तो स्तुति को इत्मीनान हुआ की मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ| स्तुति अब फिर से खिलखिलाने लगी थी और मैं भी अपनी बिटिया को खिलखिलाते हुए देख मैं बहुत खुश था|



खैर, हम दोनों दोस्त अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे और वहाँ से शुरू हुई एक दिलचस्प यात्रा! बस स्टैंड से गॉंव जाने का रास्ता एक ट्रेक (trek) था! मुझे ट्रैकिंग (trekking) करना बहुत पसंद था इसलिए इस ट्रेक के लिए मैं अतिउत्साहित था| कच्चे रास्तों, जंगल और एक झरने को पार कर हम आखिर उस गॉंव पहुँच ही गए| पूरा रास्ता दिषु बस ये ही शिकायत करता रहा की ये रास्ता कितना जोखम भरा और दुर्गम है! वहीं मैं बस ये शिकायत कर रहा था की; "बहनचोद ऑफिस के डाक्यूमेंट्स ऐसी जगह कौन रखता है?!"

"कंपनी का मालिक भोसड़ी का! साले मादरचोद ने सारे रिकार्ड्स और डाक्यूमेंट्स अपने पुश्तैनी घर में रखे हैं|” दिषु गुस्से से बिलबिलाते हुए बोला|



ट्रेक पूरा कर ऊपर पहुँचते-पहुँचते हमें शाम के 6 बज गए थे| यहाँ हमारे रहने के लिए एक ऑफिस में व्यवस्था की गई थी इसलिए नहा-धो कर हमने खाना खाया और 8 बजते-बजते लेट गए| पहाड़ी इलाका था इसलिए हमें ठंड लगने लगी थी| ओढ़ने के लिए हमारे पास दो-दो कंबल थे मगर हम जानते थे की ज्यों-ज्यों रात बढ़ेगी ठंड भी बढ़ेगी! "यार आज रात तो कुक्कड़ बनना तय है हमारा!" मैं चिंतित हो कर बोला| मेरी बात सुन दिषु ने अपने बैग से ऐसी चीज़ निकाली जिसे देखते ही मेरी सारी ठंड उड़न छू हो गई!

‘रम’ (RUM) दो अक्षर के इस जादूई शब्द ने बिना पिए ही हमारे शरीर में गर्मी भरनी शुरू कर दी थी| "शाब्बाश!" मैं ख़ुशी से दिषु की पीठ थपथपाते हुए बोला| बस फिर क्या था हम दोनों ने 2-2 नीट (neat) पेग खींचे और लेट गए| रम की गर्माहट के कारण हमें ठंड नहीं लगी और हम चैन की नींद सो गए| अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर हमने काम शुरू किया| हमारे खाने-पीने का इंतज़ाम पहले से हो रखा था इसलिए हमें कोई चिंता नहीं थी| इसी के साथ आज रात में सोते समय दिषु ने एक और चीज़ का प्रबंध कर दिया था| रात को सोते समय साले ने हमें खाना बना कर देने वाले खानसामे से हशीश का जुगाड़ कर लिया था! "भोसड़ी के, ये कहाँ से लाया तू?" मैंने हैरान होते हुए पुछा तो दिषु ने मुझे सच बताया की वो यहाँ आने से पहले सारी प्लानिंग कर के आया था|



हशीश हमने ले तो ली मगर दिषु ने आज तक सिगरेट नहीं पी थी! वहीं मैंने सिगरेट तो पी थी मगर मैंने कभी इस तरह का ड्रग्स नहीं लिया था| कुछ नया काण्ड करने का जोश हम दोनों दोस्तों में भरपूर था इसलिए कमर कस कर हमने सोच लिया की आज तो हम ये नया नशा ट्राय कर के रहेंगे|



जब मैं छोटा था तब मैंने कुछ लड़कों को गॉंव में चरस आदि पीते हुए देखा था इसलिए हशीश को सिगरेट में भरने के लिए जो गतिविधि करनी होती है मैं उससे रूबरू था| हम दोनों अनाड़ी नशेड़ी अपना-अपना दिमाग लगा कर हशीश के साथ प्रयोग करने लगे| आधा घंटा लगा हमें एक सिगरेट भरने में, जिसमें हमने अनजाने में हमने हशीश की मात्रा ज्यादा कर दी थी|



सिगरेट तैयार हुई तो दिषु ने मुझे पहले पीने को कहा ताकि मैं उसे सिगरेट पीना सीखा सकूँ| मैंने भी चौधरी बनते हुए दिषु को एक शिक्षक की तरह अच्छे से समझाया की उसे सिगरेट का पहला कश कैसे खींचना है|

सिगरेट पीने का सिद्धांत मैं दिषु को सीखा चूका था, अब मुझे उसे सिगरेट का पहला कश खींच कर दिखाना था| सिगरेट जला कर मैंने पहला कश जानबूझ कर छोटा खींचा ताकि कहीं मुझे खाँसी न आ जाए और दिषु के सामने मेरी किरकिरी न हो जाये| पहला कश खींचने के बाद मुझे कुछ महसूस नहीं हुआ, ऐसा लगा मनो मैं कोई साधारण सिगरेट पी रहा हूँ| हाँ सिगरेट की महक अलग थी और मुझे ये बहुत अच्छी भी लग रही थी|



फिर बारी आई दिषु की, जैसे ही उसने पहल कश खींचा उसे जोर की खाँसी आ गई! दिषु को बुरी तरह खाँसते हुए देख मुझे हँसी आ गई और मैं अपना पेट पकड़ कर हँसने लगा| "बहनचोद! क्या है ये?! साला गले में जा कर ऐसी लगी की खांसी बंद नहीं हो रही मेरी! तू ही पी!" दिषु गस्से में बोला और सिगरेट मुझे दे दी| मैंने दिषु को सिखाया की उसे छोटे-छोटे कश लेने है और शुरू-शुरू में धुआँ गले से उतारना नहीं बल्कि नाक से निकालना है| जब वो नाक से निकालना सीख जाए तब ही धुएँ को गले से नीचे उतार कर रोकना है|

इस बार जब दिषु ने कश खींचा तो उसे खाँसी नहीं आई| लेकिन उसे हशीश के नशे का पता ही नहीं चला! "साला चूतिया कट गया अपना, इसमें तो साले कोई नशा ही नहीं है!" दिषु मुझे सिगरेट वापस देते हुए बोला| बात तो दिषु की सही थी, आधी सिगरेट खत्म हो गई थी मगर नशा हम दोनों को महसूस ही नहीं हो रहा था|



दिषु का मन सिगरेट से भर गया था इसलिए उसने रम के दो पेग बना दिए| बची हुई आधी सिगरेट मैंने पी कर खत्म की और रम का पेग एक ही साँस में खींच कर लेट गया| उधर दिषु ने भी मेरी देखा-देखि एक साँस में अपना पेग खत्म किया और लेट गया|



करीब आधे घंटे बाद दिषु बोला; "भाई, सिगरेट असर कर रही है यार! मेरा दिमाग भिन्नाने लगा है!" दिषु की बात सुन मैं ठहाका मार कर हँसने लगा| चूँकि मेरे जिस्म की नशे को झेलने की लिमिट थोड़ी ज्यादा थी इसलिए मुझे अभी केवल खुमारी चढ़नी शुरू हो रही थी|

करीब 10 मिनट तक हम दोनों बकचोदी करते हुए हँसते रहे| अब दिषु को आ रही थी नींद इसलिए वो तो हँसते-हँसते कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला| इधर हशीश का नशा धीरे-धीरे मेरे सर चढ़ने लगा था| मेरा दिमाग अब काम करना बंद कर चूका था इसलिए मैं कमरे की छत को टकटकी बाँधे देखे जा रहा था| चूँकि अभी दिमाग शांत था तो मन ने बोलना शुरू कर दिया था|



छत को घूरते हुए मुझे नेहा की तस्वीर नज़र आ रही थी| नेहा के बचपन का वो हिस्सा जो हम दोनों ने बाप-बेटी की तरह ख़ुशी-ख़ुशी काटा था, उस बचपन का हर एक दृश्य मैं छत पर किसी फिल्म की तरह देखता जा रहा था| इन प्यारभरे दिनों को याद कर मेरा मन प्रसन्नता से भर गया था|

कुछ देर बाद इन प्यारभरे दिनों की फिल्म खत्म हुई और नेहा के कहे वो कटु शब्द मुझे याद आये| वो पल मेरे लिए मेरी ज़िन्दगी का सबसे दुखद पल था, ऐसा पल जिसे में इतने महीनों में चाह कर भी नहीं भुला पाया था| उस दृश्य को याद कर दिल रोने लगा पर आँखों से आँसूँ का एक कतरा नहीं निकला, ऐसा लगता था मानो जैसे आँखों का सारा पानी ही मर गया हो! जब-जब मैंने घर में नेहा को देखा, मेरा दिल उन बातों को याद कर दुखता था| लेकिन इतना दर्द महसूस करने पर भी मेरे मन से नेहा के लिए कोई बद्दुआ नहीं निकली| मैं तो बस अपनी पीड़ा को दबाने की कोशिश करता रहता था ताकि कहीं मेरी माँ मेरा ये दर्द न देख लें! माँ और दुनिया के सामने खुद को सहेज के रखने के चक्कर में मेरे दिमाग ने मेरे दिल को एक कब्र में दफना दिया था| इस कब्र में कैद हो कर मेरी सारी भावनाएं मर गई थीं| नकारात्मक सोच ने मेरे मस्तिष्क को अपनी चपेट में इस कदर ले लिया था की मैं ये मानने लगा था की स्तुति और आयुष बड़े हो कर, नेहा की ही तरह मेरा दिल दुखायेंगे| इस दुःख से बचने के लिए मैंने अभी इ खुद को कठोर बनाने की तैयारी करनी शुरू कर दी थी, ताकि भविष्य में जब आयुष और स्तुति मेरा दिल दुखाएँ तो मुझे दुःख और अफ़सोस कम हो!



समय का पहिया घुमा और फिर नेहा के साथ वो हादसा हुआ| उस दिन नेहा के रोने की आवाज़ अब भी मेरे कानों में गूँज रही थी| मैंने अपने गुस्से में आ कर जो किया उसके लिए मुझे रत्ती भर पछतावा नहीं था| मुझे चिंता थी तो बस दो, पहली ये की नेहा कहीं उस हादसे के कारण कोई गलत कदम न उठा ले और दूसरी ये की मेरी बिटिया के दामन पर कोई कीचड़ न उछाले| शायद यही कारण था की मैंने आजतक दिषु से उस हादसे का ज़िक्र नहीं किया|

उस हादसे को याद करते हुए मुझे वो पल याद आया जब नेहा ने मुझसे माफ़ी माँगी थी| उस समय मैंने कैसे खुद को रोने से रोका था, ये बस मैं ही जानता हूँ| नेहा की आँखों में मुझे पछतावा दिख रहा था मगर नेहा अपने किये के लिए जो कारण बता रही थी वो मुझे बस बहाने लग रहे थे इसीलिए मैं नेहा को माफ़ नहीं कर पा रहा था|



लेकिन जब संगीता ने मुझसे स्टोर में वो सवाल पुछा की क्या मैं नेहा से नफरत करता हूँ, तब पता नहीं मेरे भीतर क्या बदलाव पैदा हुआ की मैं थोड़ा-थोड़ा पिघलने लगा| मेरे दिमाग ने मेरे दिल को जिस कब्र में बंद कर दिया था, वो कब्र जैसे किसी ने फिर से खोद दी थी और मेरा दिल फिर से बाहर निकलने को बेकरार हो रहा था|

ज्यों-ज्यों संगीता, नेहा को मेरे नज़दीक धकेलने की जुगत करने में लगी थी त्यों-त्यों मेरा गुस्सा कमजोर पड़ने लगा था| उस रात जब नेहा मुझसे लिपट कर सो रही थी और मैं दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गया था, तब नेहा की सिसकियों को सुन मेरा नाज़ुक सा दिल रोने लगा था मगर मेरे दिमाग में भरे गुस्से ने मुझे उस कमरे से उठ कर जाने पर विवश कर दिया था| अकेले कमरे में सोते हुए मेरा मन इस कदर बेचैन था की मैं बस करवटें बदले जा रहा था| मैं खुद को नेहा के सामने कठोर साबित तो करना चाहता था मगर मैं अपनी बिटिया का प्यारा सा दिल भी नहीं दुखाना चाहता था इसीलिए अगली रात से मैं नेहा के मुझसे लिपटने पर दूसरी तरफ करवट ले कर लेट जाया करता था| इससे मैं नेहा के सामने कठोर भी साबित होता था और नेहा का दिल भी नहीं दुखता था|

उस रात जब नेहा ने सारा खाना बनाया, तो अपनी बेटी के हाथ का बना खाना पहलीबार खा कर मेरा मन बहुत प्रसन्न था| मैं नेहा को गले लगा कर लाड करना चाहता था परन्तु मेरा क्रोध मुझे रोके था| लेकिन फिर भी अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए मैंने माँ के हाथों उसे शगुन दिलवा कर उसकी मेहनत को सफल बना दिया|

परन्तु मुझे संगीता की नेहा को मेरे नज़दीक करने की चालाकी समझ आ चुकी थी और मेरे अहम ने मुझे सचेत कर इस प्यार में न पड़ने को सचेत कर दिया था| यही कारण था की मैं जानबूझ कर काम करने के बहाने कंप्यूटर चालु किये बैठा था| मेरी इस बेरुखी के कारण मेरी बिटिया का दिल टूट गया और वो सिसकते हुए खुद कमरे से चली गई| अपनी बेटी का दिल दुखा कर मैं खुश नहीं था, मेरा अहम भले ही जीत गया हो मगर मेरा नेहा के प्रति प्यार हार गया था!

इतने दिनों से नेहा के सामने खुद को कठोर दिखाते-दिखाते मैं थक गया था| असल बात ये थी की नेहा को यूँ पछतावे की अग्नि में जलते हुए देख मैं भी तड़प रहा था मगर दिमाग में बसा मेरा गुस्सा मुझे फिर से पिघलने नहीं दे रहा था| नेहा ने बहुत बड़ी गलती की थी मगर एक पिता उसे इस गलती के लिए भी माफ़ करना चाहता था, लेकिन मेरा अहम मुझे बार-बार ये कह कर रोक लेता था की क्या होगा अगर कल को नेहा ने फिर कभी मेरा दिल इस कदर दुखाया तो?! अपनी बड़ी बेटी के कारण मैं एक बार टूट चूका था, वो तो स्तुति का प्यार था जिसने मुझे बिखरने से थाम लिया था, लेकिन दुबारा टूटने की मुझ में हिम्मत नहीं थी|


कमरे की छत को देखते हुए मेरे मन ने अपना रोना रो लिया था मगर इसका निष्कर्ष निकलने में मैं असफल रहा| वैसे भी नशे के कारण मेरा दिमाग काम करना बंद कर चूका था तो मैं क्या ही कोई निष्कर्ष निकालता| अन्तः सुबह के दो बजे धीरे-धीरे नशे के कारण मेरी आँखें बोझिल होती गईं और मैं गहरी नींद में सो गया|

अगली सुबह मुझे दिषु ने उठाया और मेरी हालत देख कर थोड़ा चिंतित होते हुए बोला; "तू सोया नहीं क्या रात भर?" दिषु के सवाल ने मुझे कल रात मेरे भीतर मचे अंतर्द्व्न्द की याद दिला दी इसलिए मैंने बस न में सर हिलाया और नहा-धोकर काम में लग गया| काम बहुत ज्यादा था, मनोरंजन के लिए न तो इंटरनेट था और न ही टीवी इसलिए हम 24 घंटों में से 18 घंटे काम कर रहे थे ताकि जल्दी से काम निपटा कर इस पहाड़ से नीचे उतरें और इंटरनेट चला सकें| वहीं यहाँ आ कर मुझे माँ की चिंता हो रही थी और मैं माँ से फ़ोन पर बात करने को बेचैन हो रहा था| माँ से अगर बात करनी थी तो मुझे 8 किलोमीटर का ट्रेक कर नीचे जाना पड़ता और ये ट्रेक कतई आसान नहीं था क्योंकि पूरा रास्ता कच्चा और सुनसान था तथा जंगली जानवरों का भी डर था इसलिए नीचे अकेला जाने की मेरी हिम्मत नहीं थी! खाने-पीने का सामान नीचे से आता था इसलिए मैंने एक आदमी को अपने घर का नंबर दे कर कहा था की वो वापस जाते समय मेरे सकुशल होने की खबर मेरे घर पहुँचा दे| माँ को मेरे सकुशल होने की खबर तो मिल गई थी मगर घर में क्या घटित हो रहा था इसकी खबर मुझे मिली ही नहीं!



उधर घर पर, स्तुति मेरी गैरमौजूदगी में उदास हो गई थी| अब फ़ोन पर बात हो नहीं सकती थी इसलिए स्तुति को अपना मन कैसा न कैसे बहलाना था| अतः स्तुति पड़ गई अपनी मम्मी के पीछे और संगीता की मदद करने की कोशिश करने लगी| लेकिन मदद करने के चक्कर में स्तुति अपनी मम्मी के काम बढ़ाती जा रही थी| “शैतान!!! भाग जा यहाँ से वरना मारूँगी एक!” संगीता ने स्तुति को डाँट कर भागना चाहा मगर स्तुति अपनी मम्मी को मेरे नाम का डर दिखाते हुए बोली; "आने दो पापा जी को, मैं पापा जी को सब बताऊँगी!" स्तुति ने अपन मुँह फुलाते हुए अपनी मम्मी को धमकाना चाहा मगर संगीता एक माँ थी इसलिए उसने स्तुति को ही डरा कर चुप करा दिया; "जा-जा! तुझे तो डाटूँगी ही, तेरे पापा जी को भी डाँटूंगी!" मुझे डाँट पड़ने के नाम से स्तुति घबरा गई और अपनी दिद्दा के पास आ गई|

स्तुति को लग रहा था की उसकी शैतानियों की वजह से कहीं मुझे न डाँट पड़े इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से पूछने लगी; "दिद्दा, क्या मैं बहुत शैतान हूँ?" स्तुति के मुख से ये सवाल सुन नेहा थोड़ा हैरान थी| परन्तु, नेहा कुछ कहे उसके पहले ही माँ आ गईं| माँ ने स्तुति क सवाल सुन लिया था इसलिए माँ ने स्तुति को गोदी लिया और उसे लाड करते हुए बोलीं; "किसने कहा मेरी शूगी शैतान है?" जैसे ही माँ ने स्तुति से ये सवाल किया, वैसे ही स्तुति ने फट से अपनी मम्मी की शिकायत कर दी; "मम्मी ने!"



अपनी पोती की शिकयत सुन माँ को हँसी आ गई, माँ ने जैसे-तैसे अपनी हँसी दबाई और संगीता को आवाज़ लगाई; "ओ संगीता की बच्ची!" जैसे ही माँ ने संगीता को यूँ बुलाया, वैसे ही स्तुति एकदम से बोली; "दाई, मम्मी की बच्ची तो मैं हूँ!" स्तुति की हाज़िर जवाबी देख माँ की दबी हुई हँसी छूट गई और माँ ने ठहाका मार कर हँसना शुरू कर दिया|

"बहु इधर आ जल्दी!" माँ ने आखिर अपनी हँसी रोकते हुए संगीता को बुलाया| जैसे ही संगीता आई माँ ने उसे प्यार से डाँट दिया; "तू मेरी शूगी को शैतान बोलती है! आज से जो भी मेरी शूगी को शैतान बोलेगा उसे मैं बाथरूम में बंद कर दूँगी! समझी!!!" माँ की प्यारभरी डाँट सुन संगीता ने डरने का बेजोड़ अभिनय किया! अपनी मम्मी को यूँ डरते देख स्तुति को बड़ा मज़ा आया और उसने अपनी मम्मी को ठेंगा दिखा कर चिढ़ाना शुरू कर दिया|



अपनी दादी जी से अपनी मम्मी को डाँट खिला कर स्तुति का मन नहीं भरा था इसलिए स्तुति ने अपनी नानी जी को फ़ोन कर अपनी मम्मी की शिकायत लगा दी; "नानी जी, मम्मी कह रही थी की वो मेरे पापा जी को डाटेंगी!" अपनी नातिन की ये प्यारी सी शिकयत सुन स्तुति को नानी जी को बहुत हँसी आई| अब उन्हें अपनी नातिन का दिल रखना था इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को प्यारभरी डाँट लगा दी; "तू हमार मुन्ना का डांटइहो, तोहका मार-मार के सोझाये देब!" अपनी माँ की डाँट सुन पहले तो संगीता को हैरानी हुई मगर जब उसने स्तुति को देखा तो वो सब समझ गई| "आप जब मारोगे तब मरोगे, पहले मैं इस चुहिया को कूट-पीट कर सीधा करूँ!" इतना कह संगीता स्तुति को झूठ-मूठ का मारने के लिए दौड़ी| अब स्तुति को बचानी थी अपनी जान इसलिए दोनों माँ-बेटी पूरे घर में दौड़ा-दौड़ी करते रहे, जिससे आखिर स्तुति का मन बहल ही गया!



जहाँ एक तरफ स्तुति के कारण घर में खुशियाँ फैली थीं, तो वहीं दूसरी तरफ घर का एक कोना ऐसा भी था जो वीरान था!


मेरे घर में न होने का जिम्मेदार नेहा ने खुद को बना लिया था| नेहा को लग रहा था की मैं उससे इस कदर नाराज़ हूँ की मैं जानबूझ कर घर छोड़कर ऐसी जगह चला गया हूँ जहाँ मैं अकेला रह सकूँ| नेहा के अनुसार उसके कारण एक माँ को अपने बेटे के बिना रहना पड़ रहा था, एक छोटी सी बेटी (स्तुति) को अपने पापा जी के बिना घर में सबसे प्यार माँगना पड़ रहा था तथा हम पति-पत्नी के बीच जो बोल-चाल बंद हुई थी उसके लिए भी नेहा खुद को जिम्मेदार समझ रही थी|

मेरे नेहा से बात न करने, उसे पुनः अपनी बेटी की तरह प्यार न करने के कारण नेहा पहले ही बहुत उदास थी, उस पर नेहा ने इतने इलज़ाम खुद अपने सर लाद लिए थे की ये सब उसके मन पर बोझ बन बैठे थे| मन पर इतना बोझा ले लेने से नेहा को साँस तक लेने में दिक्कत हो रही थी|



नेहा इस समय बहुत ही नाज़ुक दौर से गुज़र रही थी| उसके मन में जन्में अपराधबोध ने नेहा को इस कदर घेर लिया था की वो खुद को सज़ा देना चाहती थी| नेहा ने खुद को एकदम से अकेला कर लिया था| स्कूल से आ कर नेहा सीधा अपनी पढ़ाई में लग जाती, माँ को कई बार नेहा को खाने के लिए कहना पड़ता तब जा कर नेहा एक-आध रोटी खाती| कई बार तो नेहा टूशन जाने का बहाना कर बाद में खाने को कहती मगर कुछ न खाती|

माँ और संगीता, नेहा की पढ़ाई की तरफ लग्न देख इतने खुश थे की उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया की नेहा ठीक से खाना खा रही है या नहीं| वहीं खाने में आनाकानी के अलावा नेहा ने देर रात जाग कर पढ़ना शुरू कर दिया| एक बार तो माँ ने नेहा को प्यार से डाँट भी दिया था की यूँ देर रात तक जाग कर पढ़ना अच्छी बात नहीं|



नेहा को लग रहा था की उसके इस तरह अपने शरीर को कष्ट दे कर वो पस्चताप कर रही है मगर नेहा का शरीर ये पीड़ा सहते-सहते अपनी आखरी हद्द तक पहुँच चूका था| मुझे खोने की मानसिक पीड़ा और अपने शरीर को इस प्रकार यातना दे कर नेहा ने अपनी तबियत खराब कर ली थी!



मेरी अनुपस्थिति में आयुष और स्तुति अपनी दादी जी के पास कहानी सुनते हुए सोते थे, बची माँ-बेटी (नेहा और संगीता) तो वो दोनों हमारे कमरे में सोती थीं| देर रात करीब 1 बजे नेहा ने नींद में मेरा नाम बड़बड़ाना शुरू किया; "पा...पा...जी! पा...पा...जी!" नेहा की आवाज़ सुन संगीता की नींद टूट गई| अपनी बेटी को यूँ नींद मेरा नाम बड़बड़ाते हुए देख संगीता को दुःख हुआ की एक तरफ नेहा मुझे इतना प्यार करती है की मेरी कमी महसूस कर वो नींद में मेरा नाम ले रही है, तो दूसरी तरफ मैं इतना कठोर हूँ की नेहा से इतनी दूरी बनाये हूँ|

अपनी बेटी को सुलाने के लिए संगीता ने ज्यों ही नेहा के मस्तक पर हाथ फेरा, त्यों ही उसे नेहा के बढे हुए ताप का एहसास हुआ! मुझे खो देने का डर नेहा के दिमाग पर इस कदर सवार हुआ की नेहा को बुखार चढ़ गया था! संगीता ने फौरन नेहा को जगाया मगर नेहा के शरीर में इतनी शक्ति ही नहीं बची थी की वो एकदम से जाग सके| संगीता ने फौरन माँ को जगाया, दोनों माओं ने मिल कर नेहा को बड़ी मुश्किल से जगाया और उसका बुखार कम करने के लिए क्रोसिन की दवाई दी| क्रोसिन के असर से नेहा का बुखार तो काम हुआ मगर नेहा का शरीर एकदम से कमजोर हो चूका था| नेहा से न तो उठा जा रहा था और न ही बैठा जा रहा था| नेहा को डॉक्टरी इलाज की जर्रूरत थी परन्तु रात के इस पहर में माँ और संगीता के लिए नेहा को अस्पताल ले जाना आसान नहीं था इसलिए अब सिवाए सुबह तक इंतज़ार करने के दोनों के पास कोई चारा न था| नेहा की हालत गंभीर थी इसलिए माँ और संगीता सारी रात जाग कर नेहा का बुखार चेक करते रहे|



अगली सुबह जब आयुष और स्तुति जागे तो उन्हें नेहा के स्वास्थ्य के बारे में पता चला| नेहा को बीमार देख आयुष ने जिम्मेदार बनते हुए अस्पताल जाने की तैयारी शुरू की, वहीं स्तुति बेचारी अपनी दिद्दा को इस हालत में देख नहीं पा रही थी इसलिए स्तुति अपनी दिद्दा से लिपट कर रोने लगी| नेहा में अभी इतनी भी शक्ति नहीं थी की वो स्तुति को चुप करवा सके इसलिए नेहा ने आयुष को इशारा कर स्तुति को सँभालने को कहा| "स्तुति, अभी पापा जी नहीं हैं न, तो आपको यूँ रोना नहीं चाहिए बल्कि आपको तो दीदी का ख्याल रखना चाहिए|" आयुष ने स्तुति को उसी तरह जिम्मेदारी देते हुए सँभाला जैसे मैं आयुष के बालपन में उसे सँभालता था|
अपने बड़े भैया की बात सुन स्तुति ने फौरन अपने आँसूँ पोछे और अपनी दिद्दा के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "दीदी, आप जल्दी ठीक हो जाओगे| फिर है न मैं आपको रोज़ रस-मलाई खिलाऊँगी|" स्तुति जानती थी की उसकी दीदी को रस-मलाई कितनी पसंद है इसलिए स्तुति ने अपनी दिद्दा को ये लालच दिया ताकि नेहा जल्दी ठीक हो जाए|





जब भी मैं ऑडिट पर जाता था तो मैं हमेशा माँ को एक दिन ज्यादा बोल कर जाता था क्योंकि जब मैं एक दिन पहले घर लौटता था तो मुझे देख माँ का चेहरा ख़ुशी से खिल जाया करता था| इसबार भी मैंने एक दिन पहले ही काम निपटा लिया और दिषु के साथ घर के लिए निकल पड़ा|

सुबह के 6 बजे मैं घर पहुँचा और दरवाजा खटखटाया| दरवाजा संगीता ने खोला, मुझे लगा था की मुझे जल्दी घर आया देख संगीता का चेहरा ख़ुशी के मारे चमकने लगेगा मगर संगीता के चेहरे पर चिंता की लकीरें छाई हुईं थीं! "क्या हुआ?" मैंने चिंतित हो कर पुछा तो संगीता के मुख से बस एक शब्द निकला; "नेहा"| इस एक शब्द को सुनकर मैं एकदम से घबरा गया और नेहा को खोजते हुए अपने कमरे में पहुँचा|



कमरे में पहुँच मैंने देखा की नेहा बेहोश पड़ी है! अपनी बिटिया की ये हालत देख मेरा कलेजा मुँह को आ गया! मैंने फौरन नेहा का मस्तक छू कर उसका बुखार देखा तो पाया की नेहा का शरीर भट्टी के समान तप रहा है! नेहा की ये हालत देख मुझे संगीता पर बहुत गुस्सा आया; “मेरी बेटी का शरीर यहाँ बुखार से तप रहा है और तुम....What the fuck were you doing till now?! डॉक्टर को नहीं बुला सकती थी?!” मेरे मुख से गाली निकलने वाली थी मगर मैंने जैसे-तैसे खुद को रोका और अंग्रेजी में संगीता को झाड़ दिया!

इतने में माँ नहा कर निकलीं और मुझे अचानक देख हैरान हुईं| फिर अगले ही पल माँ ने मुझे शांत करते हुए कहा; "बेटा, डॉक्टर सरिता यहाँ नहीं हैं वरना हम उन्हें बुला न लेते|" मैंने फौरन अपना फ़ोन निकाला और घर के नज़दीकी डॉक्टर को फ़ोन कर बुलाया| इन डॉक्टर से मेरी पहचान हमारे गृह प्रवेश के दौरान हुई थी| संगीता भी इन डॉक्टर को जानती थी मगर नेहा की बिमारी के चलते उसे इन्हें बुलाने के बारे में याद ही नहीं रहा| संकट की स्थिति में हमेशा संगीता का दिमाग काम करना बंद कर देता है, इसका एक उदहारण आप सब पहले भी पढ़ चुके हैं| आपको तो मेरे चक्कर खा कर गिरने वाला अध्याय याद ही होगा न?!



डॉक्टर साहब को फ़ोन कर मैंने रखा ही था की इतने में स्तुति नहा कर निकली| मुझे देखते ही स्तुति फूल की तरह खिल गई और सीधा मेरी गोदी में आने के लिए छलाँग लगा दी| मेरे सीने से लगते ही स्तुति को चैन मिला और उसकी आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बह निकले| "पापा जी, I missed you!" स्तुति भावुक होते हुए बोली| मैंने स्तुति को लाड-प्यार कर बहलाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला; "I missed you too मेरा बच्चा!"



स्तुति को लाड कर मैंने बिठाया और अपनी बड़ी बेटी नेहा के बालों में हाथ फेरने लगा| मेरे नेहा के बालों में हाथ फेरते ही एक चमत्कार हुआ क्योंकि बेसुध हुई मेरी बेटी नेहा को होश आ गया| नेहा मेरे हाथ के स्पर्श को पहचानती थी अतः अपने शरीर की सारी ताक़त झोंक कर नेहा ने अपनी आँखें खोलीं और मुझे अपने सामने बैठा देखा, अपने बालों में हाथ फेरते हुए देख नेहा को यक़ीन ही नहीं हुआ की मैं उसके सामने हूँ|

"पा..पा..जी" नेहा के मुख से ये टूटे-फूटे शब्द फूटे थे की मेरे भीतर छुपे पिता का प्यार बाहर आ गया; "हाँ मेरा बच्चा!" नेहा को मेरे मुख से 'मेरा बच्चा' शब्द सुनना अच्छा लगता था| आज जब इतने महीनों बाद नेहा ने ये शब्द सुने तो उसकी आँखें छलक गईं और नेहा फूट-फूट के रोने लगी!



"सॉ…री...पा…पा जी...मु…झे...माफ़...." नेहा रोते हुए बोली| मैंने नेहा को आगे कुछ बोलने नहीं दिया और सीधा नेहा को अपने गले लगा लिया| "बस मेरा बच्चा!" इतने समय बाद नेहा को मेरे गले लग कर तृप्ति मिली थी इसलिए नेहा इस सुख के सागर में डूब खामोश हो गई| वहीं अपनी बड़ी बिटिया को अपने सीने से लगा कर मेरे मन के सूनेपन को अब जा कर चैन मिला था|



नेहा को लाड कर मेरी नज़र पड़ी आयुष पर जो थोड़ा घबराया हुआ दरवाजे पर खड़ा मुझे देख रहा था| दरअसल, जब मैंने संगीता को डाँटा तब आयुष मुझसे मिलने ही आ रहा था मगर मेरा गुस्सा देख आयुष डर के मारे जहाँ खड़ा था वहीं खड़ा रहा| मैंने आयुष को गले लगने को बुलाया तो आयुष भी आ कर मेरे गले लग गया| मैंने एक साथ अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और बारी-बारी से तीनों के सर चूमे| मेरे लिए ये एक बहुत ही मनोरम पल था क्योंकि एक आरसे बाद आज मैं अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में समेटे लाड-प्यार कर रहा था|



कुछ देर बाद डॉक्टर साहब आये और उन्होंने नेहा का चेक-अप किया| अपने मन की संतुष्टि के लिए उन्होंने नेहा के लिए कुछ टेस्ट (test) लिखे और दवाई तथा खाने-पीने का ध्यान देने के लिए बोल चले गए| डॉक्टर साहब के जाने के बाद माँ ने मुझे नहाने को कहा तथा संगीता को चाय-नाश्ता बनाने को कहा|

चूँकि नेहा को बुखार था इसलिए उसका कुछ भी खाने का मन नहीं था, पर नेहा मुझे कैसे मना करती?! मैं खुद नेहा के लिए सैंडविच बना कर लाया और अपने हाथों से खिलाने लगा| मेरी बहुत जबरदस्ती करने के बावजूद नेहा से बस आधा सैंड विच खाया गया और बाकी आधा सैंडविच मैंने खाया|

नेहा को इस समय बहुत कमजोरी थी इसलिए नेहा लेटी हुई थी, वहीं मैं भी बस के सफर से थका हुआ था इसलिए मैं भी नेहा की बगल में लेट गया| मेरे लेटते ही नेहा मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर आराम करने लगी| स्तुति ने जब ये दृश्य देखा तो स्तुति मुझ पर हक़ जमाने आ गई और अपनी दीदी की तरह मेरे सीने पर सर रख मुझसे लिपट कर लेट गई| स्तुति कुछ बोल नहीं रही थी मगर उसके मुझसे इस कदर लिपटने का मतलब साफ़ था; 'दिद्दा, आप बीमार हो इसलिए आप पापा जी के साथ ऐसे लिपट सकते हो वरना पपई के साथ लिपट कर सोने का हक़ बस मेरा है!' स्तुति के दिल की बात मैं और नेहा महसूस कर चुके थे इसलिए स्तुति के मुझ पर इस तरह हक़ जमाने पर हम दोनों के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर रही थी|



स्तुति अपनी दिद्दा के साथ सब कुछ बाँट सकती थी मगर जब बात आती थी मेरे प्यार की तो स्तुति किसी को भी मेरे नज़दीक नहीं आने देती!



खैर, मेरे सीने पर सर रख कर लेटे हुए स्तुति की बातें शुरू हो गई थीं| मेरी गैरमजूदगी में क्या-क्या हुआ सबका ब्यौरा मुझे मेरी संवादाता स्तुति दे रही थी| मैंने गौर किया तो मेरे आने के बाद से ही स्तुति मुझे 'पपई' के बजाए 'पापा जी' कह कर बुला रही थी| जब मैंने इसका कारण पुछा तो मेरी छोटी बिटिया उठ बैठी और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "आप घर में नहीं थे न, तो मुझे बहुत अकेलापन लग रहा था| मुझे एहसास हुआ की पूरे घर में एक आप हो जो मुझे सबसे ज्यादा प्यारी करते हो इसलिए मैंने सोच लिया की मैं अब से आपको पपई नहीं पापा जी कहूँगी|" स्तुति बड़े गर्व से अपना लिया फैसला मुझे सुनाते हुए बोली| मेरी छोटी सी बिटिया अब इतनी बड़ी हो गई थी की वो मेरी कमी को महसूस करने लगी थी| इस छोटी उम्र में ही स्तुति को मेरे पास न होने पर अकेलेपन का एहसास होने लगा था जो की ये दर्शाता था की हम बाप-बेटी का रिश्ता कितना गहरा है| मैंने स्तुति को पुनः अपने गले से लगा लिया; "मेरी दोनों बिटिया इतनी सयानी हो गईं|" मैंने नेहा और स्तुति के सर चूमते हुए कहा| खुद को स्याना कहे जाने पर स्तुति को खुद पर बहुत गर्व हो रहा था और वो खुद पर गर्व कर मुस्कुराने लगी थी|





मैंने महसूस किया तो पाया की नेहा को मुझसे बात करनी है मगर स्तुति की मौजूदगी में वो कुछ भी कहने से झिझक रही है| अतः मैंने कुछ पल स्तुति को लाड कर स्तुति को आयुष के साथ पढ़ने भेज दिया| स्तुति के जाने के बाद नेहा सहारा ले कर बैठी और अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मैंने आपका बहुत दिल दुखाया! मेरी वजह से आप इतने दुखी थे की आप इतने दिन ऐसी जगह जा कर काम कर रहे थे जहाँ मोबाइल नेटवर्क तक नहीं मिलता था! मेरी वजह से स्तुति को इतने दिन तक आपका प्यार नहीं मिला, मेरी वजह से मम्मी और आपके बीच कहा-सुनी हुई, मेरे कारण दादी जी को...

इतने कहते हुए नेहा की आँखें फिर छलक आईं थीं| मैंने नेहा को आगे कुछ भी कहने नहीं दिया और उसकी बात काटते हुए बोला;

मैं: बस मेरा बच्चा! मैंने आपको माफ़ कर दिया! आप बहुत पस्चताप और ग्लानि की आग में जल लिए, अब और रोना नहीं है| आप तो मेरी ब्रेव गर्ल (brave girl) हो न?!

मैंने नेहा को हिम्मत देते हुए कहा| नेहा को मुझसे माफ़ी पा कर चैन मिला था इसलिए अब जा कर उसके चेहरे पर ख़ुशी और उमंग नजर आ रही थी|



नेहा को मुझसे माफ़ी मिल गई थी, अपने पापा जी का प्यार मिल गया था इसलिए नेहा पूरी तरह संतुष्ट थी| अब बारी थी संगीता की जिसे उसके प्रियतम का प्यार नहीं मिला था और नेहा ये बात जानती थी|

नेहा: मम्मी!

नेहा ने अपनी मम्मी को आवाज़ दे कर बुलाया|

संगीता: हाँ बोल?

संगीता ने नेहा से पुछा तो नेहा ने फौरन अपने कान दुबारा पकड़े और मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मेरे कारण आप दोनों के बीच लड़ाई हुई और आपने एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया|

मैंने नेहा के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद दिया| फिर मैं उठ कर खड़ा हुआ तो देखा की संगीता मुझे देख कर मंद-मंद मुस्कुरा रही है! मुझे संगीता की ये मुस्कराहट समझ न आई और मैं भोयें सिकोड़े, चेहरे पर अस्चर्य के भाव लिए संगीता को देखने लगा| दरअसल, मुझे लगा था की मेरे डाँटने से संगीता नाराज़ होगी या डरी-सहमी होगी परन्तु संगीता तो मुस्कुरा रही थी! मेरे भाव समझ संगीता मुस्कुराते हुए बोली;
संगीता: मैं आपके मुझ पर गुस्सा करने से नाराज़ नहीं हूँ| मुझे तो ये देख कर बहुत ख़ुशी हुई की आपने आज इतने समय बाद नेहा पर इतना हक़ जमाया की मुझे झाड़ दिया!
संगीता को मुझ पर बहुत प्यार आ रहा था और वो अपना ये प्यार मुझे अपनी आँखों के इशारे से जता रही थी| वहीं अपनी मम्मी से ये बात सुन नेहा गर्व से फूली नहीं समा रही थी!
नेहा: मम्मी, चलो पापा जी के गले लगो!

नेहा ने प्यार से अपनी मम्मी को आदेश दिया तो हम दोनों ने मिलकर नेहा के इस आदेश का पालन किया|

अभी हम दोनों का ये आलिंगन शुरू ही हुआ था की इतने में स्तुति फुदकती हुई आ गई! अपनी मम्मी को मेरे गले लगे देख स्तुति को जलन हुई और उसने फौरन अपनी मम्मी को पीछे धकेलते हुए प्यार से चेता दिया;

स्तुति: मेरे पापा जी हैं! सिर्फ मैं अपने पापा जी के गले लगूँगी!

स्तुति की इस प्यारभरी चेतावनी को सुन हम दोनों मियाँ-बीवी मुस्कुराने लगे| वहीं नेहा को स्तुति के इस प्यारभरी चेतावनी पर गुस्सा आ गया;

नेहा: चुप कर पिद्दा! इतने दिनों बाद पापा जी और मम्मी गले लगे थे और तू आ गई कबाब में हड्डी बनने!

नेहा ने स्तुति को डाँट लगाई तो स्तुति मेरी टाँग पकड़ कर अपनी दीदी से छुपने लगी| अब अपनी छोटी बिटिया की ख़ुशी के लिए मैंने इशारे से नेहा को शांत होने को कहा और स्तुति को गोदी ले उसे बहलाते हुए बोला;

मैं: वैसे स्तुति की बात सही है! वो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती है इसलिए मुझ पर पहला हक़ मेरी छोटी बिटिया का है!

मैं स्तुति को लाड कर ही रहा था की माँ कमरे में आ गईं| मुझे स्तुति को लाड करते हुए देख माँ बोलीं;

माँ: सुन ले लड़के, आज से तू फिर कभी ऐसी जगह नहीं जाएगा जहाँ तेरा फ़ोन न मिले और अगर तू फिर भी गया तो शूगी को साथ ले कर जाएगा| जानता है तेरे बिना मेरी लालड़ी शूगी कितनी उदास हो गई थी?!
माँ ने मुझे प्यार से चेता दिया तथा मैंने भी हाँ में सर हिला कर उनकी बात स्वीकार ली| उस दिन से ले कर आज तक मैं कभी ऐसी जगह नहीं गया जहाँ मोबाइल नेटवर्क न हो और मैं माँ तथा स्तुति से बात न कर पाऊँ|



नेहा को मेरा स्नेह मिला तो मानो उसकी सारी इच्छायें पूरी हो गई| मेरे प्रेम को पा कर मेरी बड़ी बिटिया इतना संतुष्ट थी की उसका बचपना फिर लौट आया था| नेहा अब वही 4 साल वाली बच्ची बन गई थी, जिसे हर वक़्त बस मेरा प्यार चाहिए होता था यानी मेरे साथ खाना, मेरे साथ कहानी सुनते हुए सोना, मेरे साथ घूमने जाना आदि|

अपनी दिद्दा को मुझसे लाड पाते देख स्तुति को होती थी मीठी-मीठी जलन नतीजन जिस प्रकार स्तुति के बालपन में दोनों बहनें मेरे प्यार के लिए आपसे में झगड़ती थीं, उसी तरह अब भी दोनों ने झगड़ना शुरू कर दिया था| हम सब को नेहा और स्तुति की ये प्यारभरी लड़ाई देख कर आनंद आता था, क्योंकि हमारे अनुसार नेहा बस स्तुति को चिढ़ाने के लिए उसके साथ झगड़ती है| लेकिन धीरे-धीरे मुझे दोनों बहनों की ये लड़ाई चिंताजनक लगने लगी| मुझे धीरे-धीरे नेहा के इस बदले हुए व्यवहार पर शक होता जा रहा था और मेरा ये शक यक़ीन में तब बदला जब मुझे कुछ काम से कानपूर जाना पड़ा जहाँ मुझे 2 दिन रुकना था|

मेरे कानपुर निकलने से एक दिन पहले जब नेहा को मेरे जाने की बात पता चली तो नेहा एकदम से गुमसुम हो गई| मैंने लाड-प्यार कर नेहा को समझाया और कानपूर के लिए निकला, लेकिन अगले दिन मेरे कानपुर के लिए निकलते ही नेहा का मन बेचैन हो गया और नेहा ने मुझे फ़ोन खड़का दिया| जितने दिन मैं कानपूर में था उतने दिन हर थोड़ी देर में नेहा मुझे फ़ोन करती और मुझसे बात कर उसके बेचैन मन को सुकून मिलता|



असल में, नेहा एक बार मुझे लगभग खो ही चुकी थी और इस बात के मलाल ने नेहा को भीतर से डरा कर रखा हुआ था| नेहा को हर पल यही डर रहता था की कहीं वो मुझे दुबारा न खो दे इसीलिए नेहा मेरा प्यार पाने को इतना बेचैन रहती थी|

नेहा के इस डर ने उसे भीतर से खोखला कर दिया था| ये डर नेहा पर इस कदर हावी होता जा रहा था की नेहा को फिर से मुझे खो देने वाले सपने आने लगे थे, जिस कारण वो अक्सर रात में डर के जाग जाती| जितना आत्मविश्वास नेहा ने इतने वर्षों में पाया था, वो सब टूट कर चकना चूर हो चूका था| स्कूल से घर और घर से स्कूल बस यही ज़िन्दगी रह गई थी नेहा की, दोस्तों के साथ बाहर जाना तो उसके लिए कोसों दूर की बात थी| कुल-मिला कर कहूँ तो नेहा ने खुद को बस पढ़ाई तथा मेरे प्यार के इर्द-गिर्द समेट लिया था| बाहर से भले ही नेहा पहले की तरह हँसती हुई दिखे परन्तु भीतर से मेरी बहादुर बिटिया अब डरी-सहमी रहने लगी थी|



नेहा के बाहर घूमने न जाने से घर में किसी कोई फर्क नहीं पड़ा था क्योंकि सब यही चाहते थे की नेहा पढ़ाई में ध्यान दे| परन्तु मैं अपनी बेटी की मनोदशा समझ चूका था और अब मुझे ही मेरी बिटिया को उसका खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः दिलाना था|



कानपूर से लौटने के बाद शाम के समय मैं, स्तुति और नेहा बैठक में बैठे टीवी देख रहे थे| नेहा को समझाने का समय आ गया था अतः मैंने स्तुति को पढ़ाई करने के बहाने से भेज दिया तथा नेहा को समझाने लगा|

मैं: बेटा, आप जानते हो न बच्चों को कभी अपने माँ-बाप से कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए, फिर आप क्यों मुझसे बातें छुपाते हो?

मैंने बिना बात घुमाये नेहा से सवाल किया ताकि नेहा खुल कर अपने जज्बात मेरे सामने रखे| परन्तु मेरा सवाल सुन नेहा हैरान हो कर मुझे देखने लगी;

नेहा: मैंने आपसे कौन सी बात छुपाई पापा जी?!

नेहा नहीं जानती थी की मैं कौन सी बात के बारे में पूछ रहा हूँ इसलिए वो हैरान थी|

मैं: बेटा, जब से आप तंदुरुस्त हुए हो, आप बिलकुल स्तुति की तरह मेरे प्यार के लिए अपनी ही छोटी बहन से लड़ने लगे हो| पहले तो मुझे लगा की ये आपका बचपना है और आप केवल स्तुति को सताने के मकसद से ये लड़ाई करते हो मगर जब आपने रोज़-रोज़ स्तुति से मेरे साथ सोने, मेरी प्यारी पाने तक के लिए लड़ना शुरू कर दिया तो मुझे आपके बर्ताव पर शक हुआ| फिर जब मैं कानपूर गया तो आपने जो मुझे ताबतोड़ फ़ोन किया उससे साफ़ है की आप जर्रूर कोई बात है जो मुझसे छुपा रहे हो| मैं आपका पिता हूँ और आपके भीतर आये इन बदलावों को अच्छे से महसूस कर रहा हूँ| अगर आप खुल कर मुझे सब बताओगे तो हम अवश्य ही इसका कोई हल निकाल लेंगे|

मैंने नेहा के कँधे पर हाथ रख उसे हिम्मत दी तो नेहा एकदम से रो पड़ी!

नेहा: पापा जी...मु...मुझे डर लगता है! में आपके बिना नहीं रह सकती! आप जब मेरे पास नहीं होते तो मैं बहुत घबरा जाती हूँ! कई बार रात में मैं आपको अपने पास न पा कर घबरा कर उठ जाती हूँ और फिर आपकी कमी महसूस कर तब तक रोती हूँ जब तक मुझे नींद न आ जाए|

उस दिन जो हुआ उसके बाद से मैं किसी पर भरोसा नहीं करती! कहीं भी अकेले जाने से मुझे इतना डर लगता है, मन करता है की मैं बस घर में ही रहूँ| स्कूल या घर से बाहर निकलते ही जब दूसरे बच्चे...ख़ास कर लड़के जब मुझे देखते हैं तो मुझे अजीब सा भय लगता है! ऐसा लगता है मानो मेरे साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है! मुझ में अब खुद को बचाने की ताक़त नहीं है इसलिए मुझे बस आपके साथ सुरक्षित महसूस होता है, मैं बस आपके पास रहना चाहती हूँ| लेकिन जब स्तुति मुझे आपके पास आने नहीं देती तो मुझे गुस्सा आता है और हम दोनों की लड़ाई हो जाती है|

नेहा की वास्तविक मनोस्थिति जान कर मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा| नेहा के साथ हुए उस एक हादसे ने नेहा को इस कदर डरा कर रखा हुआ है इसकी मैंने कल्पना नहीं की थी|



इधर अपनी बातें कहते हुए नेहा फूट-फूट कर रो रही थी इसलिए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा कर उसके सर पर हाथ फेर कर नेहा को चुप कराया| जब नेहा का रोना थमा तो मैंने नेहा के दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और नेहा को समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा, ज़िन्दगी में ऐसे बहुत से पल आते हैं जो हमें बुरी तरह तोड़ देते हैं! हमें ऐसा लगता है की हम हार चुके हैं और अब हमारे पास जीने के लिए कुछ नहीं बचा| लेकिन बेटा, हमारी ज़िन्दगी में हमेशा एक न एक व्यक्ति ऐसा होता है जो हमें फिर से खड़े होने की हिम्मत देता है| वो व्यक्ति अपने प्यार से हमें सँभालता है, सँवारता है और हमारे भीतर नई ऊर्जा फूँकता है|



ज़िन्दगी में अगर कभी ठोकर लगे तो उठ कर अपने कपड़े झाड़ कर फिर से चल पड़ना चाहिए| हर कदम पर ज़िन्दगी आपके लिए एक नई चुनाती लाती है, आपको उन चुनौतियों से घबरा कर अपनी आँखें बंद नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी सूझ-बूझ से उन चुनौतियों का सामना करना चाहिए| अपने बचपन में आपने बहुत दुःख झेले मगर आपने हार नहीं मानी और जैसे-जैसे बड़े होते गए आप के भीतर आत्मविश्वास जागता गया| जब भी आप डगमगाते थे तो आपकी दादी जी, मैं, आपकी मम्मी आपके पास होते थे न आपको सँभालने के लिए, तो इस बार आप क्यों चिंता करते हो?!



अब बात करते हैं आपके किसी पर विश्वास न करने पर| बेटा, हाथ की सारी उँगलियाँ एक बराबर नहीं होती न?! उसी तरह इस दुनिया में हर इंसान बुरा नहीं होता, कुछ लोग बहुत अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे| क्या हुआ अगर आपसे एक बार इंसान को पहचानने में गलती हो गई तो?! आप छोटे बच्चे ही हो न, कोई बूढ़े व्यक्ति तो नहीं...और क्या बूढ़े व्यक्तियों से इंसान को पहचानने में गलती नहीं होती?!

बेटा, एक बात हमेशा याद रखना, इंसान गलती कर के ही सीखता है| आपने गलती की तभी तो आपको ये सीखने को मिला की सब लोग अच्छे नहीं होते, कुछ बुरे भी होते हैं| आपको चाहिए की आप दूसरों को पहले परखो की वो आपके दोस्त बनने लायक हैं भी या नहीं और फिर उन पर विश्वास करो| यदि आपको किसी को परखने में दिक्क्त आ रही है तो उसे हम सब से मिलवाओ, हम उससे बात कर के समझ जाएंगे की वो आपकी दोस्ती के लायक है या नहीं?!



अब आते हैं आपके दिल में बैठे बाहर कहीं आने-जाने के डर पर| उस हादसे के बाद आपको कैसा लग रहा है ये मैं समझ सकता हूँ मगर बेटा इस डर से आपको खुद ही लड़ना होगा| घर से बाहर जाते हुए यदि लोग आपको देखते हैं… घूरते हैं तो आपको घबराना नहीं चाहिए बल्कि आत्मविश्वास से चलना चाहिए|

हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ ऐसे दुष्ट प्रवत्ति वाले लोग भी रहते हैं जो की लड़कियों को घूरते हैं, तो क्या ऐसे लोगों के घूरने या आपको देखने के डर से आप सारी उम्र घर पर बैठे रहोगे? कल को आप बड़े होगे, आपको अपना वोटर कार्ड बनवाना होगा, आधार कार्ड बनवाना होगा, पासपोर्ट बनवाना होगा तो ये सब काम करने तो आपको बाहर जाना ही पड़ेगा न?! मैं तो बूढ़ा हो जाऊँगा इसलिए मैं तो इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा, तब अगर आप इसी प्रकार घबराओगे तो कैसे चलेगा? ज़िन्दगी बस घर पर रहने से तो नहीं चलेगी न?!



बेटा, आपको अपने अंदर फिर से आत्मविश्वास जगाना होगा और धीरे-धीरे घर से बाहर जाना सीखना होगा| कोई अगर आपको देखता है तो देखने दो, कोई आपको घूर कर देखता है तो देखने दो, आप किसी की परवाह मत करो| आप घर से बाहर काम से निकले हो या घूमने निकले हो तो मज़े से अपना काम पूरा कर घर लौटो|



आपको एक बात बताऊँ, जब मैं छोटा था तो मैं बहुत गोल-मटोल था ऊपर से आपके दादा जी-दादी जी मुझे कहीं अकेले आने-जाने नहीं देते थे इसलिए जब लोग मेरे गोलू-मोलू होने पर मुझे घूरते या मुझे मोटा-मोटा कह कर चिढ़ाते तो मैं बहुत रोता था| तब आपकी दादी जी ने मुझे एक बात सिखाई थी; 'हाथी जब अपने रस्ते चलता है तो गली के कुत्ते उस पर भोंकते हैं मगर हाथी उनकी परवाह किये बिना अपने रास्ते पर चलता रहता है|' उसी तरह आप भी जब घर से बाहर निकलो तो ये मत सोचो की कौन आपको देख रहा है, बल्कि सजक रहो की आगे-पीछे से कोई गाडी आदि तो नहीं आ रही| इससे आपका ध्यान बंटेगा और आपको किसी के देखने या घूरने का पता ही नहीं चलेगा|

मेरी बिटिया रानी बहुत बहादुर है, वो ऐसे ही थोड़े ही हार मान कर बैठ जायेगी| वो पहले भी अपना सर ऊँचा कर चुनौतियों से लड़ी है और आगे भी जुझारू बन कर चुनौतियों से लड़ेगी|

मैंने बड़े विस्तार से नेहा को समझाते हुए उसके अंधेरे जीवन में रौशनी की किरण दिखा दी थी| अब इसके आगे का सफर नेहा को खुद करना था, उसे उस रौशनी की किरण की तरफ धीरे-धीरे बढ़ना था|

बहरहाल, नेहा ने मेरी बातें बड़े गौर से सुनी थीं और इस दौरान वो ज़रा भी नहीं रोई| जब मैंने नेहा को 'मेरी बहादुर बिटिया रानी' कहा तो नेहा को खुद पर गर्व हुआ और वो सीधा मेरे सीने से लगा कर मुस्कुराने लगी|



उस दिन से नेहा के जीवन पुनः बदलाव आने लगे| नेहा ने धीरे-धीरे अकेले घर से बाहर जाना शुरू किया, शुरू-शुरू में नेहा को उसका डर डरा रहा था इसलिए मुझे एक बार फिर नेहा का मार्गदर्शन करना पड़ा|

आज इस बात को साल भर होने को आया है और नेहा धीरे-धीरे अपनी चुनौतियों का अकेले सामना करना सीख गई है|


तो ये थी मेरे जीवन की अब तक की कहानी|
समाप्त?

नहीं अभी नहीं!
काम का तो बहाना था असल में तो मानू भाई को ट्रैकिंग पर जा कर रम और हशीश के साथ मजे उड़ाना था वो भी बिना फोन नेटवर्क की चिकचिक के।

मगर रम और हशीश ने एक काम सही किया कि मानू और नेहा का पूरा फ्लैशबैक चला दिया और कई बार पुराने अच्छे दिन की यादें आज की गलतियों से जमी धूल साफ कर देती है। वही हुआ अपने नटवरलाल के साथ भी।

बच्चे हमेशा भावनाओ को एकदम एक्सट्रीम लेवल पर एक्सप्रेस करते है फिर चाहे प्यार हो, गुस्सा हो, नफरत हो या फिर पश्चाताप। अब पश्चाताप की अग्नि अगर नियंत्रित ना हो तो स्वयं को ही जला देती है और वही हुआ नेहा के साथ। अपने पश्चाताप में नेहा अपने आत्मविश्वास, स्वास्थ्य सब जला बैठी। मगर ये एक ट्रिगर प्वाइंट बना मानू को अपनी बेटी तक वापस पहुंचने का।

मानू भाई को अपनी बेटी और नेहा को अपने पापाजी मिल गए थे मगर नेहा के अंदर से जो जा चुका था अब उसको वापस लौटना था और मानू ने वहां भी एक अच्छे मार्गदर्शक की भूमिका अच्छे से निभाई।

स्तुति केंद्रबिंदु है परिवार का जो अपनी नटखट हरकतों से सबको जोड़े रखती है और कहीं ना कहीं वो कारण बनी नेहा और मानू की संबंधों को फिर से जोड़ने का। आयुष एक समझदार बच्चा है जो अपनी उम्र से थोड़ा ज्यादा परिपक्व हो गया अपने पापा को देख और समझ कर। भौजी ना सुधरी थी, ना सुधरी है और ना सुधरेंगी और यही बात हमे पसंद है कि वो परिवार को जीवंत रखती है अपनी नादानी भरी हरकतों से।

अपनी बेटियों के लिए मानू भाई के दिल की भावनाएं

दिल की धड़कन है तू ही, मेरा जीवन है तू ही
घर में ये चाँद नया रोशन हुआ

ये दिल क़ुरबान है, सबकी तू जान है
मुखड़ा ये प्यारा लूँ चूम, चूम, चूम, चूम

तू मेरी लाडली है, कलियों में वो कली है
जिससे गुलज़ार सारा आँगन हुआ

ये दिल क़ुरबान है, सबकी तू जान है

मुखड़ा ये प्यारा लूँ चूम, चूम, चूम, चूम
 

Lib am

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मैं आपकी पीड़ा समझ सकता हूँ भाई जी| लेकिन अभी कहानी खत्म कहाँ हुई है! अभी तो Big Reveal बाकी है और उसके बाद संगीता की कहानी भी तो बाकी है! लगता है आपको संगीता की कहानी में दिलचस्पी नहीं है! YouAlreadyKnowMe संगीता देवी जी, देख लो आपके प्रिय मित्र अमित जी को आपकी कहानी में दिलचस्पी नहीं! तनी इनकी किलास लगावा! :D
अपडेट पढ़ा जा चुका है, रीबू डाला जा चुका है।
 
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क्या Rockstar_Rocky आप और YouAlreadyKnowMe भौजी एक ही इंसान हो, नही ना। उनका नजरिया अलग आपका अलग तो फिर दोनो को कनेक्ट कैसे कर सकते है भाई साहब। आप थोड़ा इमोशनल टाइप तो वो मुंहफट और थोड़ा व्यंगात्मक। उनकी कहानी अलग अंदाज में होगी तो उसका आनंद अलग तरह से लिया जाएगा। अब इस कहानी से इतना जुड़ चुके है तो क्या ही कर सकते है।
मैं मुँहफट हूँ??????????? :girlmad: .....................
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....................मेरी कहने को कम आंक रहे हो न आप..................देख लेना.................मेरी कहानी इनकी कहानी से भी ज्यादा भावुक होगी............................मेरे जीवन की कहानी कम दुखभरी नहीं.......................ऊपर से ये जो लेखक साहब जी हैं न.......................इनकी भी बहुत सी बातें बतानी हैं आपको...................................तब देखना आप रो न पड़े तो कहना :girlmad: ......................................................रिव्यु पढ़ा आपका....................... "भौजी ना सुधरी थी, ना सुधरी है और ना सुधरेंगी और यही बात हमे पसंद है कि वो परिवार को जीवंत रखती है अपनी नादानी भरी हरकतों से।" .................................. मैं कब बिगड़ी जो सुधरूंगी.......................... :girlmad: ...............................मैं तो इस कहानी की मुख्य नायिका हूँ....................... :makeup: ........................ये रिव्यु तो ठीक है.........................अब एक ठो बड़का रिव्यु..........................शुरू से ले कर अंत तक की सारी कहानी का भी खूब बढ़वार रिव्यु लिख दो............................
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🙏
 

Lib am

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मैं मुँहफट हूँ??????????? :girlmad: .....................
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....................मेरी कहने को कम आंक रहे हो न आप..................देख लेना.................मेरी कहानी इनकी कहानी से भी ज्यादा भावुक होगी............................मेरे जीवन की कहानी कम दुखभरी नहीं.......................ऊपर से ये जो लेखक साहब जी हैं न.......................इनकी भी बहुत सी बातें बतानी हैं आपको...................................तब देखना आप रो न पड़े तो कहना :girlmad: ......................................................रिव्यु पढ़ा आपका....................... "भौजी ना सुधरी थी, ना सुधरी है और ना सुधरेंगी और यही बात हमे पसंद है कि वो परिवार को जीवंत रखती है अपनी नादानी भरी हरकतों से।" .................................. मैं कब बिगड़ी जो सुधरूंगी.......................... :girlmad: ...............................मैं तो इस कहानी की मुख्य नायिका हूँ....................... :makeup: ........................ये रिव्यु तो ठीक है.........................अब एक ठो बड़का रिव्यु..........................शुरू से ले कर अंत तक की सारी कहानी का भी खूब बढ़वार रिव्यु लिख दो............................
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बिग रीबू बिग रिवील के बाद ही आयेगा अब तो। इस कॉमेंट से आपने साबित कर दिया की आप मुंहफट हो जो की अच्छी बात है जब पति हमेशा चाशनी में डूबो कर घूमा घूमा कर बाते करे तो। वैसे मैंने आपकी वो कंपटीशन वाली स्टोरी गधे घोड़े वाली पढ़ी थी, बहुत ही भावुक स्टोरी थी। 3 दिन तक रोया था मैं, अब हंसते हंसते आंसू निकल ही आते है ना, क्या कर सकते है। वैसे आपकी स्टोरी का भी बेसब्री से तस्सली वाला इंतजार है।
 

Naik

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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 15


अब तक अपने पढ़ा:


संगीता खाना बनाने गई तो नेहा का बेचैन मन फिर एक बार मेरे खिलाफ सोचने लगा; “He (मैं) doesn’t love me anymore! तभी तो मेरे साथ इतना सब कुछ हुआ लेकिन न तो 'पापा' मुझे लाड-प्यार करने आये और न ही उन्होंने उस अरमान को कुछ कहा! बल्कि वो तो दादी जी के साथ मंदिर चले गए ताकि उन्हें मेरा सामना ही न करना पड़े| वाह पापा वाह! आपने तो मुझे बिलकुल ही पराया कर दिया!" नेहा के मन में बैठी हुई नफरत बोली| गौर करने वाली बात ये थी की नेहा ने आज जा कर मुझे 'पापा' कहा था, जबकि नेहा मुझे हमेशा 'पापा जी' कहती थी| ये दर्शाता था की ठोकर लगने के बाद नेहा को मेरी कितनी जर्रूरत थी की उसने मुझे अपना पापा तो माना मगर संगीता की बात सुन नेहा के मन में पैदा हुई नफरत ने नेहा को मुझे मान-सम्मान देते हुए 'अपाप जी' कह पुनः अपना पिता मानने से रोक रखा था!

कई बार इंसान अपनी गलती मान कर अपनी गलती दुरुस्त करने के बजाए अपना गुस्सा उस आदमी पर निकालता है जो उसके गलत करने पर उसके साथ नहीं था! यही हाल इस समय नेहा का था, बजाए ग्लानि महसूस करने के वो तो मुझे ही कसूरवार मान रही थी!


अब आगे:


दोपहर
के खाने के समय मैं, माँ और स्तुति मंदिर से दर्शन कर घर लौटे| घर में हुए इस हादसे का पता माँ, स्तुति और आयुष को नहीं था इसलिए संगीता ने नेहा को समझा दिया था की उसे तीनों (माँ, स्तुति और आयुष) के सामने खुद को पहले की तरह सामान्य दिखाना है|



माँ सबसे आगे थीं और उनके पीछे मैं तथा मेरी गोदी में स्तुति कहकहे लगाने में व्यस्त थी| माँ को देखते ही नेहा आ कर अपनी दादी जी की कमर से लिपट गई| माँ ने अपनी लाड़ली पोती का सर चूमा और उसके पढ़ाई करने के लिए दिन-रात एक करने को ले कर खूब शाबाशी दी| अपनी दादी जी से शाबाशी पा कर नेहा को और भी ग्लानि होने लगी थी की उसकी भोली-भाली दादी जी उस पर इतना विश्वास करतीं हैं जबकि नेहा अपनी दादी जी के साथ झूठ बोल कर छल कर रही थी!

नेहा को ग्लानि के कारण खामोश देख मैंने स्तुति को अपनी दिद्दा को प्रसाद देने की याद दिलाई| स्तुति मेरी गोदी से उतरी और अपनी दिद्दा को बस दो दाने प्रसाद के देते हुए बोली; "दिद्दा, आप को बस थोड़ा सा प्रसाद मिलेगा क्योंकि आप मुझे चॉकलेट नहीं देते! बाकी का सारा प्रसाद मेरे बड़े भैया को मिलेगा!" ये कहते हुए स्तुति ने सारा प्रसाद आयुष को दे दिया| स्तुति का बचपना देख सब ज़ोर से ठहाका लगा कर हँसने लगे|



अब नेहा को अपनी छोटी बहन को मनाना था इसलिए नेहा दो दाने प्रसाद के खाते हुए बोली; "अच्छा स्तुति जी, अगलीबार आपको चॉकलेट ला कर दूँगी!" नेहा ने स्तुति को चॉकलेट का लालच दे कर अपने पास बुलाया मगर स्तुति अपने बड़े भैया की पीठ पर चढ़ते हुए न में अपनी गर्दन हिलाने लगी| नेहा के मुक़ाबले स्तुति को अपने बड़े भैया से अधिक लगाव था इसलिए स्तुति अपने बड़े भैया की पीठ पर चढ़ खिलखिलाने लगी|



मैं, माँ और स्तुति तो मंदिर के भंडारे में भरपेट प्रसाद खा कर आये थे इसलिए हम तीनों ने खाना नहीं खाया| बचे माँ-बेटा-बेटी (संगीता-आयुष-नेहा) तो तीनों खाना खाने बैठ गए| इधर स्तुति को अपनी आज की मस्ती का ब्यौरा देना था इसलिए स्तुति रिपब्लिक चैनल के संवाददाता की तरह घूम-घूम कर अपनी आज की दिनभर की गई मस्ती के बारे में बड़े चाव से बताने लगी| स्तुति के इस बालपन ने घर का माहौल खुशनुमा बना दिया था तथा सबके चेहरे पर मुस्कान ला दी थी|



खाना खा कर सब ने आराम करना था, स्तुति तो मेरी गोदी में चढ़ कर मुझसे किसी कोअला (Koala) की तरह लिपट गई| नेहा अपनी दादी जी के साथ सोने के लिए जा रही थी मगर उसकी नज़र मुझ पर टिकी थी| मैंने गौर किया तो पाया की नेहा की नज़रों में मेरे प्रति गुस्सा है...नफरत है!

शायद मुझे नेहा की इस नफरत की आदत हो गई थी इसलिए मुझे इस समय कुछ महसूस नहीं हुआ इसलिए मैं चुपचाप अपने कमरे में आ कर लेट गया| वहीं मेरा ये उखड़ापन देख नेहा को हैरानी हो रही थी की उसका गुस्सा देख कर भी मैंने क्यों नेहा से कुछ नहीं कहा?!



जब स्तुति सो गई तब संगीता ने मुझे नेहा से हुई बातों के बारे में बताया| मुझे ये जानकार इत्मीनान हुआ की नेहा का दामन पाक साफ है| चूँकि संगीता ने इस परिस्थति में शांत दिमाग से काम लिया था इसलिए मैंने संगीता की भी थोड़ी तारीफ कर दी| अपनी तारीफ सुन संगीता शर्मा गई और मुझे चिढ़ाने के लिए उसने स्तुति के गाल पर पप्पी की| अपनी मम्मी के यूँ अचानक पप्पी करने से स्तुति की नींद खुल गई और जिस गाल पर संगीता ने पप्पी की थी उस गाल को अपने हाथ से पोंछ दिया| संगीता ने जब स्तुति को ऐसे करते देखा तो उसे आया प्यारा सा गुस्सा; "मेरी पप्पी तुझे अच्छी नहीं लगती?!" अपनी मम्मी का ये प्यारभरा गुस्सा देख स्तुति ने अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाई और मेरी छाती से लिपट कर छुपने लगी| मैंने भी अपनी बेटी को बचाने के लिए उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और स्तुति के सर को चूम लाड करने लगा|



शाम के समय सब चाय पी रहे थे जब मैं आयुष को अपने साथ ले कर नीचे आ गया| मेरे कारण आयुष अपनी दीदी से नाराज़ था और इस समय जब नेहा को अपने भाई के प्यार की जर्रूरत थी तब मुझे ही आयुष को मनाना था|

मैं: आयुष बेटा, अपनी दीदी को माफ़ कर दो| नेहा ने गुस्से में जो कहा या किया उसके लिए मैं आपसे माफ़ी माँगता हूँ|

मैंने नेहा की तरफ से आयुष के आगे हाथ जोड़कर माफ़ी माँगी तो आयुष ने फौरन मेरे दोनों हाथ अपनी हथेलियों में थाम लिए और भावुक हो कर बोला;

आयुष: पापा जी, दीदी ने आपको इतना गलत समझा, आपके लिए इतने गंदे शब्द कहे और आप उन्हीं की तरफ से माफ़ी माँग रहे हो? माफ़ी तो दीदी को आपसे माँगनी चाहिए जो उन्होंने आपका इतना दिल दुखाया!

आयुष उम्र बहुत छोटा था मगर वो बातें बिलकुल वयस्कों जैसी करता था| आयुष की बात सुन मैं उसके कँधे पर हाथ रख बोला;

मैं: बेटा, नेहा और मेरे बीच जो बोला-चाली हुई उसकी वजह से आपका अपनी बड़ी बहन से यूँ बात करना बंद कर देना क्या उचित है? किसी के गुस्से का बदला गुस्से से देना चाहिए, क्या यही संस्कार मैंने, आपके दादा जी ने, आपकी दादी जी ने आपको दिए हैं?! बेटा, नेहा आपकी बड़ी बहन है और कई बार बड़े भी गलती करते हैं और अपने से छोटों से माफ़ी माँगने में कतराते हैं| ऐसे में आपको चाहिए की आप खुद जा कर अपने से बड़ों को माफ़ कर दो और उन्हें पहले की तरह प्यार तथा सम्मान दो|

मैंने जब संस्कारों का वास्ता दिया तो आयुष निरुत्तर हो गया तथा मेरे गले लग कर रुनवासा हो कर बोला;

आयुष: जी पापा जी!

आयुष एक आज्ञाकारी बेटा था, उसके लिए मेरी या संगीता की कही बात पत्थर की लकीर होती थी जिसे आयुष भूल कर भी नहीं लाँघता था| इस समय मुझे आयुष पर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए मैंने आयुष के मस्तक को चूम आशीर्वाद दिया|



कुछ देर बाद नेहा टीचर बन कर स्तुति को पढ़ा रही थी तब आयुष कमरे में आया और बिना कुछ कहे आयुष ने अपनी दीदी के पॉंव छू लिए| नेहा ने जब आयुष को उसके पॉंव छूते देखा तो वो एकदम से उठ खड़ी हुई और आयुष को अपने गले लगाते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दे आयुष, मैंने तुझ पर हाथ उठाया|" आयुष के पॉंव छूने से नेहा की आँखें भर आईं थीं और साथ ही नेहा का मन ग्लानि की आग में जलने लगा था इसलिए नेहा ने फौरन अपने छोटे भाई से माफ़ी माँग ली|

दरअसल, नेहा इस वक़्त ऐसे पड़ाव पर अकेली खड़ी थी जहाँ उसे अपने भाई और बहन के साथ की जर्रूरत थी इसीलिए नेहा ने बिना झिझके अपने भाई से माफ़ी माँगी थी|



"आप मेरी दीदी हो और पापा जी कहते हैं की दीदी माँ सामान होती हैं, फिर मेरे जुबान लड़ाने पर अगर आपने मुझे मार दिया तो कौन सा गुनाह किया?!" आयुष ने अपनी दीदी के आँसूँ पोछते हुए कहा| गले लगने के कारण दोनों भाई-बहन भावुक हो गए थे और ये दृश्य देख स्तुति भी भावुक हो गई थी| स्तुति एकदम से उठी और पहले अपने आयुष भैया के पॉंव छुए फिर नेहा के पॉंव छू कर मुस्कुराने लगी|



"तूने क्यों हमारे पॉंव छुए?" नेहा ने मुस्कुराते हुए स्तुति से सवाल पुछा तो स्तुति खिलखिलाते हुए बोली; "दिद्दा, पपई ने बोला की दीदी मम्मी का रूप होती हैं और बड़े भैया पापा का रूप इसलिए मैंने आप दोनों के पॉंव छू कर आशीर्वाद लिया|" एक छोटी बच्ची इतनी बड़ी बात कह रही थी, ये देख कर आयुष और नेहा को अपनी छोटी बहन पर गर्व हो रहा था| नेहा ने स्तुति को अपने गले लगाया और उसके गाल खींचते हुए बोली; "इतनी शैतानी करती है लेकिन बातें करती है बड़ी-बड़ी! तू सच में शैतान की नानी है!" अपनी दीदी की बात सुन स्तुति और ज़ोर से खिलखिलाने लगी तथा उसे यूँ हँसता देख दोनों भाई-बहन भी ज़ोर से खिलखिलाने लगे! एक छोटी सी बच्ची ने आज अपने दोनों भैया-दीदी को एकदम से हँसा दिया था!



चूँकि स्तुति ने घर का माहौल खुशनुमा कर दिया था तो आयुष को अपनी दीदी से बात करने का सही अवसर मिल गया| "स्तुति, आप जा कर बाहर खेलो तब तक मैं दीदी से पढ़ लेता हूँ|" आयुष ने बहाना बनाते हुए स्तुति को खेलने को कहा| स्तुति को पहले ही अपनी दिद्दा से पढ़ना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि नेहा पढ़ाते समय एक कड़क मास्टरनी बन जाती थी इसलिए अपने बड़े भैया की बात सुन स्तुति फौरन खेलने के लिए भाग गई!



"दीदी, अब देखो सब ठीक हो गया है तो आप पापा जी से बता क्यों नहीं करते? उनसे माफ़ी क्यों नहीं माँग लेते?" आयुष ने बिना बात घुमाये अपनी दीदी से सवाल किया| परन्तु आयुष की बातों ने नेहा को फिर से दुखी कर दिया था, अतः नेहा नज़रें फेर कर अपना सर न में हिलाने लगी| "क्यों दीदी? प्लीज बताओ मुझे?” आयुष ने जवाब पाने के इरादे से नेहा पर ज़ोर डाला तो नेहा रुनवासी हो कर बोली; "जब तुझे जर्रूरत पड़ी तो उन्होंने (मैंने) तुझे प्यार से सँभाला मगर आज जब मुझे उनकी जर्रूरत है तो वो मुझसे बात तक नहीं करते और तू मुझे ही माफ़ी माँगने को कह रहा है?!" अपनी दीदी की बातें सुन आयुष को धक्का लगा की आखिर ऐसा क्या हुआ की उसकी दीदी इस कदर दुखी हैं इसलिए आयुष ने जिज्ञासा वश नेहा से उसके दुःख के बारे में बहुत बार पुछा मगर नेहा ने शर्म के मारे आयुष से कुछ नहीं कहा|



" ठीक है दीदी, अगर आपको नहीं बताना तो मत बताओ| लेकिन प्लीज पापा जी को गलत मत समझो, वो आपकी कही बातों के कारण दुखी हैं| वो पापा जी ही थे जिन्होंने मुझे समझाया की मुझे यूँ आपसे रूठे नहीं रहना चाहिए| आप मेरी बड़ी बहन और अगर आपको मुझसे बात करने में झिझक हो रही है तो मुझे, एक छोटा भाई होने के नाते आपसे बात करनी चाहिए| अगर पापा जी मुझे न समझाते तो मैं बेवकूफ तो आपसे नाराज़ हो कर बैठा था! पापा जी भले ही आपके पास न आये हों मगर उन्हें आपके दुःख का पता है, तभी तो उन्होंने मुझे यूँ समझाया|" आयुष ने अपनी तरफ से नेहा को समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु नेहा के गुस्से ने उसे आयुष की बात को समझने की कोशिश भी नहीं करने दी|

इतने में संगीता कमरे में आ गई और उसे देख नेहा ने बात बदल दी ताकि कहीं संगीता न शक करने लगे| बाद में आयुष ने अपनी मम्मी से बहुत पुछा की आखिर क्यों नेहा इस कदर खामोश और उदास है, परन्तु संगीता ने बातें बनाते हुए आयुष को बहला दिया|





रात में खाना खाने के बाद माँ और बच्चे टीवी देखने में व्यस्त थे| इधर संगीता ने मुझे इशारा करते हुए ऊपर छत पर बुला लिया| मैं छत पर पहुँचा तो संगीता ने ऊपर दो कुर्सियाँ पहले से लगा रखीं थीं| मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही संगीता पीछे से आ कर मुझसे लिपट गई! "आई लव यू जानू!" कहते हुए संगीता ने मेरी पीठ पर चूम लिया| संगीता ने मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे चेहरे को अपने हाथ में लेते हुए बोली; "आपने आज जो किया उसके लिए मुझे आप पर गर्व है! आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू जानू! (I’m proud of you jaanu!” संगीता की आँखों में मैं आज अपने लिए अलग ही जोश देख पा रहा था, उसे मुझ पर आज इतना गर्व था की अगर उसका बस चलता तो वो मेरे कँधे पर चार सितारे लगा देती!



संगीता ने मुझे कुर्सी पर बिठाया और मेरे सामने कुर्सी खींच कर बैठ गई|

संगीता: आपने उस लड़के का हाथ तोडा, उसकी जो पिटाई की उसपर मुझे कोई गुस्सा नहीं आया| मुझे तो ये जानकार ख़ुशी हुई की आपने उस पापी लड़के को उसके कर्म की सजा दे दी| उस पल मुझे लगा की नेहा कितनी खुशनसीब है की उसे आपकी तरह प्यार करने वाले पापा जी मिले| काश जब मेरे साथ गलत हुआ उस वक़्त आप वहाँ मेरी रक्षा करने के लिए मौजूद होते!

इतना कहते हुए संगीता ने अपने उस बुरे वक़्त को याद किया और भावुक हो कर कुछ पल के लिए खामोश हो गई| संगीता कहीं रो न पड़े इसलिए मैंने उसके कँधे पर हाथ रख उसके कँधे को दबा कर संगीता को मूक हिम्मत दी|

मैं: जान...

मैंने संगीता को शांत करना चाहा ताकि वो आगे कुछ न कहे मगर संगीता ने अपना सर न में हिलाते हुए अपनी बात आगे जारी रखी;

संगीता: मुझे डर लगा तो बस इस बात का की कहीं आपने उसे लड़के पर बन्दूक चला दी होती, उसकी हत्या कर दी होती तो मेरा क्या होता? माँ का क्या होता? हमारे बच्चों का क्या होता?

संगीता अपनी बात कहते हुए बहुत डर गई थी इसलिए मैंने पुनः उसके कँधे को मसल कर संगीता को हिम्मत देते हुए कहा;

मैं: जान, बस! You don’t have to repeat…

मैंने संगीता को रोकना चाहा मगर संगीता फिर एक बार सर न में हिलने लगी और मेरी बात काटते हुए बोली;

संगीता: मुझे गुस्सा आ रहा था की आपने अपने पास बन्दूक रखी और मुझे बताया तक नहीं?! लेकिन फिर आपने मुझे बन्दूक रखने का असली कारण समझाया, तब जाकर मुझे समझ आया की आपने बस मिश्रा अंकल जी के प्यार की लाज रखने के लिए बंदूक रखी थी| ज़िन्दगी में पहलीबार मैंने ठंडे दिमाग से काम लिया था वरना मैंने तो आपसे बन्दूक रखने के लिए लड़ पड़ना था!

मुझसे लड़ पड़ने की बात कहते हुए संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी|

मैं: जान, तुम्हारी जगह अगर मैं होता तो मुझे भी गुस्सा आना स्वाभाविक था|

संगीता: आपको गुस्सा आता तो आप तो मेरे एक ठो (थप्पड़) लगा ही देते!

संगीता मुझे उल्हाना देते हुए बोली, वहीं उसकी बात सुन मुझे हँसी आ गई|



संगीता के हलके से मज़ाक ने मुझे हँसा दिया था और मुझे यूँ हँसता हुआ देख संगीता ने मुझसे सवाल पूछ लिया;

संगीता: मैं एक बात पूछूँ? जब मैंने आपसे कहा की आप अपनी बंदूक को बेच दो तो आप खामोश हो कर क्या सोच रहे थे?

संगीता ने बिना बात घुमाये सच पुछा तो मैंने उसे आज के दिन में मैंने क्या-क्या महसूस किया सब सुना दिया;

मैं: जब मैंने नेहा को यूँ रोते हुए देखा तो मैं गुस्से से जलने लगा था! फिर अगले ही पल नेहा के साथ कुछ गलत होने के भय ने मुझे जकड़ लिया| सच जानने के लिए मैं पिंकी के घर के लिए निकला, लेकिन पूरे रास्ते मैं बस ये ही दुआ कर रहा था की नेहा की इज्जत पर दाग न लगा हो! मन में पनपे डर ने मुझे उग्र बना दिया था और मैंने ये तय कर लिया था की अगर नेहा के दामन में दाग लगा तो मैं उस लड़के को जान से मार दूँगा|

पिंकी के घर पहुँच कर मुझे सब बात पता चली मगर मुझे पिंकी की बातों पर ज़रा भी भरोसा नहीं हो रहा था| मुझे तब भी यही भय सता रहा था की नेहा के साथ जर्रूर कुछ गलत हुआ और इसकी सजा मैं उस लड़के को दे कर रहूँगा| पिंकी के घर से निकलते हुए मेरे सर पर खून सवार हो चूका था| मेरा गुस्सा मेरे सर पर चढ़ चूका था और मैं अपने इस गुस्से में कुछ भी कर सकता था| अरमान के घर पहुँचने तक मैंने प्लान कर लिया था की आज मैं उस लड़के को जान से मार दूँगा|

गाडी खड़ी कर जब मैंने अपनी रिवॉल्वर निकाली तो आज सालों बाद ऐसा लगा जैसे मेरे भीतर कोई नई ऊर्जा आ गई हो| ऐसा लगा जैसे जिस्म से टूटा हुआ एक बहुत जर्रूरी पुरजा मेरे जिस्म से पुनः जुड़ गया हो| रिवॉल्वर में गोली भरते हुए तो मेरे ऊपर जैसे शैतान सवार हो गया था, ऐसा शैतान जिसे अपनी बरसों पुरानी भूख मिटानी हो| लेकिन मन में तुम्हारा प्यार बैठा था जो मुझे अब भी सँभाले हुए था| जब-जब मैंने रिवॉल्वर निकाली, तब-तब तुम्हारे प्यार ने मेरी उँगलियों को ट्रिगर दबाने से रोका वरना उस लड़के को पीटते हुए मेरे भीतर का ये शैतान मेरे काबू से बाहर हो जाता था और मन करता था की उस हरामज़ादे में एक गोली तो डाल ही दूँ!

फिर एक ऐसा पल आया जब मैं उस लड़के को लातों से पीट रहा था और उसका बाप पुलिस बुलाने के लिए जा रहा था| उस पल मेरे लिए उस आदमी को रोकना जर्रूरी हो गया था इसलिए मैंने सोच-समझ कर होश में रहते हुए फर्श की तरफ निशाना लगा कर गोली चलाई|



आज इतने सालों बाद किसी पर यूँ रिवॉल्वर तानकर चलाने में जो सुकून था, जो मज़ा था उसने मेरे जिस्म के सारे रोयें खड़े कर दिए थे! गोली चलने पर जो सन्नाटा पसरा था उसमें गोली की आवाज़ गूँज कर बार-बार मेरे कानों से टकरा रही थी| गोली चलने की इस आवाज़ ने मेरे गुस्से से जल रहे दिल को अजीब सी ठंडक दी थी| मेरे सर पर जो शैतान सवार था वो भी एकदम से शांत हो गया था, मानो ये आवाज़ उसके लिए कोई मधुर संगीत हो जिसने उसे शांत कर दिया था|

जब मेरे भीतर का ये शैतान शांत हुआ तो दिमाग ने काम करना शुरू किया और मुझे एहसास दिलाया की अगर मैंने गुस्से में गोली उस लड़के या किसी पर चला दी होती तो क्या गज़ब होता! लेकिन मेरी अंतरात्मा मेरे इस गुस्से को सही ठहरा रही थी, उसके अनुसार एक बाप ने जो किया वो बिलकुल सही किया| दिमाग के आगे अंतरात्मा का पलड़ा भारी था इसलिए मेरा गुस्सा पुनः लौट आया तथा मैंने अयान का हाथ तोड़ दिया! उसकी हड्डी टूटने की आवाज़ सुन कर एक बाप के दिल को इत्मीनान मिल रहा था| मैं तो उसे और पीटना चाहता था मगर दिमाग ने मुझे अपने परिवार से सदा के लिए दूर होने का डर दिखा कर रोक लिया|



जब तुमने कहा की मुझे अपनी रिवॉल्वर से पीछा छुड़ाना चाहिए तो मेरे भीतर के शैतान ने मुझे तरह-तरह के तर्क देने शुरू कर दिए की भविष्य में अगर मुझे अपने परिवार की रक्षा करने के लिए हथियार की जर्रूरत पड़ी तो मैं क्या करूँगा? अगर कभी स्तुति की इज्जत पर बन आई तो मैं किससे रिवॉल्वर माँगूँगा? कभी अगर मेरी या तुम्हारी जान पर बन आई तो मैं निहत्था क्या करूँगा?

इन सभी सवालों को सोच कर मैं खामोश था और जवाब ढूँढ रहा था| परन्तु माँ के साथ मंदिर जा कर मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया| मैं क्यों कोई फ़िक्र करूँ जब मेरे पास भगवान जी हैं मेरी मदद करने के लिए इसलिए मैंने भगवान जी पर सब छोड़ दिया है| वही मेरी इस नैय्या को रास्ता दिखाएँगे|

मेरे मुख से मेरी मनोदशा जानकार संगीता डर गई थी| मेरे भीतर के जिस शैतान को संगीता के प्यार ने दबा दिया था वो अब खुल कर बाहर आ चूका था, वो तो संगीता का प्यार था जो मुझे सँभाले था वरना मैं क्या-क्या काण्ड करता इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता|

संगीता: रिवॉल्वर हाथ में लेने से आपका मन बेचैन हो जाता है न?

संगीता कुछ सोचते हुए मुझसे बोली|

मैं: हाँ! मुझे अजब सा जोश चढ़ता है| मन करता है की मैं ट्रिगर दबा दूँ और गोली चलने की आवाज़ सुन कर अपना बेचैन मन शांत कर लूँ| पता नहीं ये कैसा नशा है जिसके लिए मेरा मन बेकाबू होने लगता है|

मैंने संगीता का हाथ अपने दिल पर रखते हुए कहा| रिवॉल्वर के बारे में बात करने भर से मेरा मन अभी से बेचैन हो रहा था इसलिए मैं चाहता था की संगीता मेरी ये बेचैनी महसूस कर ले ताकि उसे ये न लगे की मैं बातें बना रहा हूँ| वहीं मेरे हृदय की बढ़ी हुई गति महसूस कर संगीता घबरा गई और एक दृढ निस्चय के साथ बोली;

संगीता: ठीक है, इसका इलाज मैं ही करुँगी| मैं संगीता की बात का मतलब समझने लगा था की संगीता एकदम से मेरे गले लग गई तथा अपनी बाजुओं को मेरे इर्द-गिर्द कस लिया! यूँ तो संगीता ने मुझे कई बार अपने आलिंगन में जकड़ा था परन्तु आज उसके इस आलिंगन की बात ही अलग थी| इस आलिंगन में मुझे खो देने का डर था, मेरे हाथों किसी पर गोली चलने का खौफ था, साथ ही मुझे फिर से गलत रास्ते पर भटकने से रोकने का दृढ निस्चय था| मैं संगीता के भीतर बैठे डर को महसूस कर चूका था, मैं नहीं चाहता था की मेरी परिणीता इस तरह डरी-डरी रहे इसलिए अपनी परिणीता के डर को भगाने के लिए मैंने रास्ता निकालते हुए कहा;

मैं: कल सुबह मैं दिषु से बता करता हूँ, वही बताएगा की रिवॉल्वर और लाइसेंस को सरेंडर कैसे करते हैं|

मेरी बात सुन संगीता के दिल को चैन मिला और उसने अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए मेरे गाल पर kissi की! उस दिन से ले कर आज तक संगीता मेरा ध्यान एक छोटे बच्चे की तरह रखती है| मुझे कभी गुस्सा ना आये इसके लिए संगीता आज भी मुझ पर ख़ास नज़र रखती है, वो बात अलग है की मैं अपने गुस्से को उससे छुपाता हूँ!



खैर, अगली सुबह 6 बजे पता चला की हमारे किसी जानने वाले की मृत्यु हो गई है इसलिए मैं और माँ सीधा वहाँ चले गए| इधर घर पर आयुष और स्तुति तो स्कूल जाने के लिए तैयार हो गए मगर नेहा ने स्कूल जाने से मना कर दिया! “मेरी तबियत ठीक नहीं, मैं स्कूल नहीं जाऊँगी!” ये कहते हुए नेहा फिर से चादर ओढ़ कर सो गई| संगीता ने आयुष-स्तुति के सामने बात को और नहीं कुरेदा तथा दोनों बच्चों को स्कूल भेज दिया|

दरअसल, नेहा को डर लग रहा था की वो स्कूल जा कर पिंकी तथा अपने अन्य दोस्तों का कैसे सामना करेगी? क्या होगा अगर पिंकी ने सबको बता दिया की पार्टी में क्या काण्ड हुआ है?! ये सब सोचकर ही नेहा स्कूल जाने से मना कर रही थी|



संगीता ने नेहा को कुछ नहीं कहा और सोने दिया| कुछ समय बाद घर के दरवाजे पर दस्तक हुई, संगीता को लगा मैं हूँ इसलिए उसने बिना देखे ही दरवाजा खोल दिया| "नमस्ते संगीता जी!" ये मीठी सी आवाज और अपने सामने अपनी सबसे बड़ी शत्रु के देख संगीता का पारा एकदम से चढ़ गया! ये शक़्स कोई और नहीं बल्कि करुणा थी!



संगीता ने गुस्से से करुणा के यूँ अचानक आने का प्रयोजन पुछा तो करुणा बोली; "मैं इदर (इधर) नेहा को समझने आया! वो अपने पापा के साथ गलत कर रे इसलिए मैं उसे सच बताने आया!" संगीता नहीं चाहती थी की करुणा दुबारा से हमारे घर के मामलों में दखलंदाज़ी करे इसलिए उसने करुणा को घर के भीतर आने से साफ़ मना कर दिया| इतने में नेहा जो की कमरे के भीतर से आवाज़ सुन रही थी वो कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर आई और सीधा करुणा के गले लग गई!



अपनी बेटी को यूँ करुणा के गले लगा देख संगीता खामोश हो गई और उसने करुणा को अंदर आने को कहा| बैठक में करुणा ने नेहा को अपने साथ बिठाया तथा उसका हाल-चाल पुछा| करुणा के सामने नेहा एकदम सामन्य थी तथा नेहा ने पार्टी वाले हादसे का कोई जिक्र करुणा से नहीं किया|

नेहा: आंटी जी आप अचानक यहाँ कैसे आये, आपकी तो केरला में जॉब लग गई थी न?

नेहा ने ख़ुशी-ख़ुशी सवाल पुछा|

करुणा: मेरा दीदी नया घर ले रे इसलिए मुझे बुलाया| मैं कल रात दिल्ली आया था तो सोचा आपसे मिल लूँ| एक्चुअली मैं आपसे मिलने के लिए बहुत मंथ्स (months) से आने का सोच रहा ता मगर पैसा नहीं ता!

नेहा: आप कितने दिन हो दिल्ली में?

करुणा: वन वीक (one week)!

नेहा: तो कल है न आप और मैं घूमने चलेंगे|

नेहा ने ख़ुशी-ख़ुशी बिना अपनी मम्मी से पूछे कल घूमने का प्लान बनाया तो संगीता को नेहा पर गुस्सा आने लगा| लेकिन इससे पहले की संगीता कुछ कहे करुणा ने बात शुरू करते हुए कहा;

करुणा: अच्छा पहले आप मेरा बात सुनो| मुझे आपका मम्मी ने बताया की आपने अपना पापा जी को क्या-क्या बोला! ये अच्छा बात नहीं है नेहा! आपको पता भी है आपका पापा जी आपको कितना प्यार करते? जब आप इदर नहीं था न तो आपका पापा जी आपको कितना याद कर के रोता था! जब भी हम मिलते तो आपका पापा जी मुझे बताते की आप कितना क्यूट है, उनको कितना प्यार करते और आप आपने पापा जी को इतना दुःख दे रे?!

करुणा की बात सुन नेहा का सर शर्म से झुक गया था परन्तु नेहा को अपने कहे शब्दों का कोई मलाल नहीं था| नेहा को बुरा लग रहा था तो बस इस बात का की उसकी इतनी अच्छी दोस्त करुणा आंटी जी उसे ही दोषी मान रही हैं!

उधर संगीता जो की अभी तक करुणा के घर आने पर आपत्ति जता रही थी वो अब इत्मीनान से बैठ कर करुणा की बात सुनने में लगी थी की आखिर करुणा कैसे नेहा को सही रास्ते पर लाती है|

नेहा: सॉरी आंटी जी!

नेहा सर झुकाये हुए सॉरी बोली| नेहा के इस सॉरी का कोई मोल नहीं था क्योंकि वो ये सॉरी बस अपनी करुणा आंटी जी की बातों से बचने के लिए कह रही थी| नेहा की इस बेमोल सॉरी को संगीता और करुणा भाँप चुके थे इसलिए करुणा ने नेहा को सही रास्ते पर लाने के लिए अपनी बात जारी रखी;

करुणा: मैं आपको आपके पापा जी के बारे में क्या-क्या बोला, आप उसका गलत मतलब निकाला है नेहा! आपको पता नहीं की आपका पापा जी इज़ आ जेम ऑफ़ आ पर्सन (is a gem of a person)! वो मेरे लिए क्या-क्या किये ये मैं आपको आज बताते| आपका पापा ने मुझे हर तरह से सपोर्ट किया: Financially, Morally and Mentally. मैं जब भी रोया तो आपका पापा जी मेरे को कंसोल (console) किया| मेरा जॉब के लिए आपका पापा जी ने कितना efforts किया, कितना थो..ठोकर खाया...कितना भागा-दौड़ी किया! मेरा एक एग्जाम था अर्ली मॉर्निंग (early morning) में, मेरा फॅमिली...मेरा दीदी साथ जाने से मना कर दिया! तब आपका पापा विंटर का नाईट में सुबह 4 बजे मुझे लेने आया, मुझे सेंटर छोड़ा और मेरा एग्जाम खत्म होने तक बाहर वेट किया और फिर मुझे घर भी छोड़ा!

वो खुद बीमार था, लेकिन मेरा सर्टिफिकेट लेने के लिए वो बिमारी का हालत में मेरे साथ आया| मेरा जोइनिंग था दूसरा सिटी में और मेरा फॅमिली वाला कोई मेरे साथ नहीं जा रहा था, तब आपका पापा जी मेरे साथ आया और मेरा जॉब दिलावाने के लिए वो धुप में कितना भागा| मेरे पास तब इतना पैसा कुछ नहीं था, लेकिन आपका पापा जी ने मुझे सपोर्ट किया और आजतक कभी पैसा नहीं माँगा|



आपका पापा जी के साथ जाने के टाइम मुझे कभी कोई टेंशन नहीं होता ता, कभी डर नहीं लगता ता, मुझे तो आपका पापा के साथ सेफ लगता ता| आपको पता, आजतक आपका पापा जी ने मुझे कभी टच (touch) नहीं किया! एकबार हम रोड क्रॉस (road cross) कर रा था उसी टाइम मैं बहुत स्लो ता, तब मेरा हेल्प करने के लिए आपका पापा जी ने मेरा एल्बो (elbow) पकड़ा ता और उसके लिए भी वो मेरे को सॉरी बोला की मैंने बिना आपको पूछे आपका एल्बो पकड़ा!

नहीं तो आज का टाइम में आपको पता न लड़के सब कितना गन्दा होते! हम लड़कियों का वलन....vulnerable situation का फायदा उठाने से पीछे नहीं रहता! लेकिन आपका पापा जी डिफरेंट ता, वो कभी मेरा एडवांटेज नहीं लिया| ऐसा नहीं ता की उनका पास ऑपरटूनिटी (opportunity) नहीं था, मैं तो इतना डम्ब (dumb) ता की अगर आपका पापा जी चाहता तो मेरा एडवांटेज ले सकता ता मगर उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया!



आपका पापा जी ने मेरे लिए इतना कुछ किया लेकिन मैं कभी उनका वैल्यू नहीं समझा! मुझे उनका वलु (value) तब समझ आया जब मैं केरला अपना फर्स्ट जॉब के लिए गया| उसी टाइम वहाँ का लोग मुझे जैसे देखता ता, जैसे गंदे-गंदे कमेंट करता ता वो सब सुन कर मुझे बहुत रिग्रेट हुआ की मैं आपका पापा जी का वैल्यू नहीं किया|

केरला में मैं कैसे रह रहा ता मैं सब आपका पापा को बताता था, वो सब सुन कर ही आपका पापा जी ने मुझे रूल्स बना कर दिया| वो रूल्स से मेरे को ही फायदा ता मगर मैं आपका पापा जी का बात नहीं सुना| वो मुझे कब-कब वार्न (warn) किया, तब-तब मैं उनका नहीं सुना और मैं क्या-क्या प्रॉब्लम में पड़ा मैं आपको बता नहीं सकता|



आपका पापा जी ने मुझे डे वन (day one) बोला ता की मेरे से कुछ हाईड (hide) कर रे या झूठ बोल रे तो वो दिन हमारा फ्रेंडशिप खत्म| लेकिन मैं इडियट आपका पापा को फोरग्रान्टेड (for granted) लिया और उनसे झूठ बोला, उनसे बात हाईड किया इसलिए आपका पापा जी ने मेरे को फ़ोन करना बंद किया...मेरे से बात बंद किया|


It was me who was wrong, not your papa. वो मेरा अच्छा चाहता था मगर मैं मंदबुद्धि उनको कभी नहीं समझा…और अभी आप भी वही मिस्टेक कर रे जो मैंने किया| आप बहुत लकी हो की आपको इतना प्यार करने वाला पापा जी मिला, उनका वैल्यू करो वरना वो जिस दिन आप का ऊपर गिव अप (give up) किया न उस दिन आपका लाइफ हेल (hell) बन जायेगा! Appologize to your papa, before its too late!

करुणा ने अपनी टूटी-फूटी हिंदी-अंग्रेजी को जोड़कर, दिल खोलकर अपनी बात कह दी थी, इस उम्मीद में की नेहा उसकी बातों से सबक लेगी और मुझसे बात करेगी मगर नेहा के ऊपर कोई असर नहीं हुआ| नेहा के लिए तो करुणा बस मेरा बचाव कर रही थी, मुझे सही ठहरा रही थी जबकि नेहा के लिए मैं उसका कसूरवार था!



बहरहाल कुछ देर रुकने के बाद करुणा घर चली गई| करुणा के जाने के बाद संगीता ने एकबार फिर ठंडे दिमाग से नेहा को समझाया मगर नेहा ने अपनी मम्मी की किसी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि नेहा अपना मन बना चुकी थी की मैं ही उसका कसूरवार हूँ!



इधर हम माँ-बेटे जहाँ शोक प्रकट करने आये थे वहाँ हमें बहुत समय लगा और हमें घर पहुँचते-पहुँचते दोपहर हो गई! जब हम घर पहुँचे तब तक आयुष और स्तुति स्कूल से घर आ चुके थे| मुझे देखते ही स्तुति मेरी गोदी में आना चाहती थी मगर माँ ने उसे रोकते हुए कहा; "अभी नहीं बेटा! पहले मानु को नहाने दे. फिर उसे छूना|" अपनी दादी जी की बात सुन स्तुति को हैरानी हुई मगर जब संगीता ने स्तुति को सारी बात समझाई तो स्तुति ख़ुशी-ख़ुशी मान गई|

नाहा-धो कर हम सबने खाना खाया और खाने के समय सामान्य बातें हो रहीं थीं| माँ के सामने नेहा पहले की तरह सामन्य बर्ताव कर रही थी, हाँ वो बात अलग है की हम दोनों अब भी बात नहीं कर रहे थे| खाना खाने के बाद मैं और माँ थके हुए थे इसलिए हम अपने-अपने कमरों में लेट गए| आयुष अपनी दादी जी के पास सोया और स्तुति मुझसे लिपट कर सो गई, वहीं संगीता टीवी देखते हुए कुछ सिलाई-बुनाई करने में लगी थी|



नेहा को नींद नहीं आ रही थी इसलिए वो अपने कमरे में अकेली पढ़ रही थी की तभी उसकी दोस्त रेखा का फ़ोन आया|

रेखा: नेहा, तू आज स्कूल क्यों नहीं आई?

नेहा: कुछ नहीं यार, वो…आँख नहीं खुली|

नेहा ने झूठ बोलते हुए बात खत्म करनी चाही|

रेखा: एक बात बता, तेरे बॉयफ्रेंड अरमान की बर्थडे पार्टी में कुछ हुआ था क्या?

रेखा का सवाल सुन नेहा की हालत खराब हो गई! उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या जवाब दे इसलिए आनन-फानन में नेहा ने झूठ बोल दिया!

नेहा: कु...कुछ भी तो नहीं!

रेखा: आज लंच में वो अपने पापा के साथ स्कूल आया था और उसके हाथ पर प्लास्टर चढ़ा था! उसकी क्लास में मेरा भाई पढता है, वो बता रहा था की किसी ने अरमान को बहुत मारा और उसका हाथ तोड़ दिया!

रेखा की बात सुन नेहा को लगा की उसके साथ हुए हादसे की सजा अरमान को आखिर मिल ही गई| ये बात सोच कर नेहा के दिल को चैन मिला तथा उसके चेहरे पर ख़ुशी की मुस्कान फ़ैल गई|

रेखा: यही नहीं, मेरा भाई बता रहा था की शायद इसी पिटाई की वजह से अरमान बीच साल में स्कूल छोड़ रहा है!

अरमान के स्कूल छोड़ने की बात सुन तो नेहा ख़ुशी के मारे उछल ही पड़ी! अरमान के स्कूल छोड़ने का मतलब था की अब नेहा बिना डरे स्कूल जा सकती थी| लेकिन अभी भी एक समस्या तो थी और उस समस्या का नाम था पिंकी!

नेहा: पि...पिंकी आई थी आज स्कूल?

नेहा को डर था की पिंकी ने आज स्कूल में पार्टी वाली रात हुए काण्ड के बारे में सब बक तो नहीं दिया?! यदि ऐसा हो गया होता तो नेहा में दुबारा स्कूल जा कर अपने दोस्तों के सवालों का जवाब देने व उनसे नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं थी|

रेखा: हाँ आई थी और उसके पापा भी साथ आये थे| पिंकी पढ़ती तो है नहीं ऊपर से उसके क्लास में फैशन करने को ले कर टीचर जी ने उसके पापा जी से शिकयत कर दी| फिर क्या था, अंकल ने पूरी क्लास के सामने पिंकी को इतना डाँटा की वो बेचारी रोने लगी! अंकल ने तो टीचर जी से कह दिया की वो पिंकी को पीटें और उसके कम नंबर आने पर सीधा उन्हें फ़ोन कर दें|

रेखा ने पिंकी की पिटाई के मज़े लेते हुए सारी कहानी सुनाई तो नेहा के चेहरे पर भी मुस्कान आ ही गई| बच्चों को अपने दोस्तों को उनके मम्मी-पापा से डाँट खाते व पीटते हुए देखने में बड़ा मज़ा आता है, वही मज़ा अभी दोनों सहेलियाँ ले रहीं थीं|



रेखा से बात कर नेहा का मन हल्का हो गया था और उसे अब स्कूल जाने से अधिक डर नहीं लग रहा था| हाँ नेहा के लिए पिंकी एक समस्या अभी भी थी, परन्तु इस समस्या का समाधान नेहा को तभी मिलता जब वो पिंकी से बात करती| अतः अपनी सारी हिम्मत बटोर कर नेहा ने पिंकी को फ़ोन किया, पर पिंकी फ़ोन उठाते ही नेहा पर बरस पड़ी;

पिंकी: मैंने तुझे कहा था न की अपना मुँह बंद रखिओ, लेकिन नहीं…महारानी जी तो टेसुएँ बहाने में लगीं थीं! मैं पूछती हूँ ऐसा कौन सा काण्ड हो गया था तेरे साथ जो तूने इतनी छोटी सी बात का बतंगड़ बना दिया?! अरे वो (अरमान) तुझे kiss ही तो करना चाहता था और तो कुछ नहीं?! तेरा मन नहीं था तो तू मना कर देती, उस बेचारे को अपने पापा से पिटवाने और उसका हाथ तुड़वाने की क्या जरूरत थी?! चैन मिल गया न अब तो तुझे?!

पिंकी ने जब कहा की मैंने अरमान को पीटा और उसका हाथ तोड़ दिया तो नेहा के पॉंव तले ज़मीन खिसक गई!

नेहा: क्या?

नेहा चौंकते हुए बोली|

पिंकी: ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर! तेरे पापा ने अरमान को उसी के पापा के सामने पीटा, उसका हाथ तोड़ दिया और तुझे कुछ पता ही नहीं?! हुँह!!!

पिंकी अकड़ते हुए बोली|

नेहा: तुझे कैसे पता?

नेहा ने बात को कुरेदते हुए पुछा|

पिंकी: अरमान ने बताया! वो बेचारा तेरे पापा के कारण इतना डरा हुआ है की उसके पापा आज ही दिल्ली छोड़ कर जा रहे हैं|

पिंकी की बातें सुन कर नेहा के पास शब्द नहीं थे की वो कुछ कह सके| इधर पिंकी की बात अभी पूरी नहीं हुई थी;

पिंकी: अरे अरमान की लाइफ बर्बाद की सो की, मेरी भी लाइफ तूने बर्बाद कर दी! तेरी वजह से अब मेरा बाप मुझ पर गिद्ध की तरह नज़र गड़ाए रहता है! पहले मैं कहीं भी आती-जाती थी, जो मन आता था करती थी लेकिन तेरी वजह से मेरा घर से बाहर निकलना तक बंद हो गया! और तो और तेरी वजह से मेरा बाप मुझे A सेक्शन में डाल रहा है ताकि मैं सुधर जाऊँ! इसलिए आज के बाद कभी मेरे से बात की तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा!

पिंकी ने गुस्से से नेहा को धमकाया और फ़ोन काट दिया| नेहा को डर था की अगर पिंकी ने स्कूल में सच कह दिया तो नेहा की छबि पूरे स्कूल में खराब हो जाएगी इसीलिए नेहा अभी तक खामोश थी|



पिंकी के फ़ोन काटने के बाद नेहा के अंतर्मन में द्व्न्द शुरू हो गया| नेहा का मेरे प्रति गुस्सा उसे पिंकी के बताये सच पर विश्वास नहीं करने दे रहा था| अब अगर नेहा को कोई सच बता सकता था तो वो थी उसकी मम्मी संगीता क्योंकि संगीता से इतनी बड़ी बात छुपी हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता!

अपने सवालों का टोकरा लिए नेहा अपनी मम्मी के पास बैठक में पहुँची और बिना कोई समय गँवाये उसने सारे सवाल अपनी मम्मी से पूछ डाले;

नेहा: मम्मी, अरमान की पिटाई किसने की? किसने उसे स्कूल छोड़ने...यहाँ तक की ये शहर छोड़ने के लिए धमकाया?

नेहा के सवाल सुन कर संगीता को हैरानी हुई की भला उसे ये सब किसने बताया| लेकिन फिर अगले ही पल संगीता ने अंदाजा लगाया की हो न हो नेहा की किसी सहेली ने ही उसे फ़ोन कर सब बताया होगा|

संगीता: स्तुति के पापा जी ने!

संगीता ने गर्वपूर्ण मुस्कान लिए हुए कहा| संगीता ने जानबूझ कर मुझे स्तुति का पापा कहा था क्योंकि करुणा के जाने के बाद से संगीता ने नेहा के मन में मेरे प्रति नफरत महसूस कर ली थी| संगीता अगर इस समय चुप थी तो इसलिए क्योंकि अब उसने भी हार मान ली थी की नेहा कभी मुझसे माफ़ी माँगेगी|

बहरहाल, अपनी मम्मी की बात सुन नेहा की आँखें फटी की फटी रह गईं!

नेहा: प…पापा जी ने?

ये कहते हुए नेहा की आँखों से आँसूँ बह निकले| वहीं जब संगीता ने नेहा की आँखों में आँसूँ देखे तो उसे थोड़ी हैरानी हुई! गौर करने वाली बात ये थी की आज जा कर नेहा ने मुझे अपना पापा कहा था! नेहा के मुख से मेरे लिए पापा जी सुन कर संगीता के दिल को अजीब सी ख़ुशी मिली थी|

संगीता: क्यों? तुझे क्या लगा था की किसने उस लड़के को कूटा? इस पूरी दुनिया में कोई और है जो तेरे लिए इतना कुछ करे? तेरा सगा बाप भी ये नहीं कर सकता था, जो स्तुति के पापा जी ने किया!

संगीता के पूछे इस सवाल को सुन नेहा फफक कर रोने लगी| संगीता ने नेहा को अपने गले लगाया और उसे सारी बात शुरू से आखिर तक बताई| सारी बात सुन नेहा को ग्लानि हो रही थी, इतनी ग्लानि की नेहा का रोना बेकाबू होता जा रहा था और संगीता से नेहा को इस समय सँभालना दूभर होता जा रहा था|



"मैं...मैं बहुत बुरी हूँ मम्मी! मैंने पापा जी को इतना दर्द दिया, इतना बुरा भला कहा लेकिन फिर भी उन्होंने अपने पापा होने का फ़र्ज़ निभाया और अपनी बेटी के मान-सम्मान के लिए अरमान को पीट दिया!" नेहा को अपनी गलती का एहसास हो चूका था इसलिए उसका मन अब मुझसे माफ़ी माँगने को कचोट रहा था, परन्तु माफ़ी माँगना एक कठिन काम होता है! नेहा बहुत स्वाभिमानी थी और मुझसे माफ़ी पाने के लिए उसे मेरे सामने अपनी सारी गलतियाँ स्वीकारनी थीं, जो की उसके लिए कतई आसान नहीं था!



शाम का समय था और चाय बन रही थी जब माँ मुझे जगाने कमरे में आईं| माँ सीधा मेरे सिरहाने बैठ गईं और मेरे बालों में हाथ फेर जगाने लगीं| मैं उठ कर बैठा तो स्तुति भी जाग गई और मेरी गोदी में बैठ हम माँ-बेटे की बातों के दौरान अपनी बातें जोड़ने लगी| अब चूँकि माँ बैठीं थीं तो नेहा मुझसे कुछ कह न पाई और नजरें झुकाये चुप-चाप अपनी चाय पीने लगी| वहीं मैंने नेहा के भीतर आये बदलाव को महसूस कर लिया था मगर मैं ठीक से समझ नहीं पा रहा था की आखिर नेहा यूँ खामोश क्यों है?!

अभी हम सबकी बातें चल ही रहीं थीं की तभी दरवाजे पर दस्तक हुई| संगीता दरवाजा खोलने जा रही थी मगर मैं उसे रोकते हुए खुद दरवाजा खोलने चल दिया| मैंने दरवाजा खोला तो सामने मुझे भाईसाहब खड़े हुए दिखे| अभी मैं ठीक से उनका चेहरा देख भी नहीं पाया था की भाईसाहब ने मुझे एकदम से अपने गले लगा लिया और भावुक हो कर सिसकने लगे! भाईसाहब के इस बर्ताव से मैं बहुत हैरान हुआ और उन्हें शांत करवाते हुए पूछने लगा; "भाईसाहब, क्या हुआ? सब ठीक तो है?" मैंने चिंतित होते हुए सवाल पुछा|

मेरा सवाल सुन भाईसाहब ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और मेरा मस्तक चूमते हुए बड़े गर्व से बोले; "मुन्ना, तूने जो नेहा के लिए किया...." भाईसाहब की बात सुन मुझे हैरानी हुई की भला उन्हें सब कैसे पता चला| खैर, घर में सब मौजूद थे और कहीं माँ ये सच सुन न लें इसलिए मैंने भाईसाहब की बात काट दी; "भाईसाहब, माँ और बच्चे घर पर हैं!" मेरा इशारा समझ भाईसाहब कुछ नहीं बोले तथा अपने आँसूँ पोंछ चेहरे पर मुस्कान लिए मेरे कमरे में पहुँचे|



अपने बड़े मामा जी को देख स्तुति और आयुष ख़ुशी से उछल पड़े तथा अपने बड़े मामा जी के पॉंव छूने को दौड़े| इधर भाईसाहब की नजरें नेहा पर टिकीं थीं, नेहा उन्हें देख कर भी डरके मारे अपनी जगह से नहीं हिली थी| "नेहा बेटी" भाईसाहब ने नेहा को पुकारा तथा अपने गले लगने को बुलाया| नेहा को इस समय सबके प्यार का सहारा चाहिए था इसलिए नेहा दौड़ कर अपने बड़े मामा जी से लिपट गई तथा भाव विभोर हो कर रोने लगी| उधर माँ ने जब नेहा को यूँ रोते हुए देखा तो उन्हें शक होने लगा की जर्रूर कोई बात है| अब मुझे बात छुपानी थी इसलिए मैंने फिर एकबार उनसे झूठ बोला; "नेहा अपने बड़े मामा जी को बहुत प्यार करती है इसलिए भावुक हो गई|" पता नहीं कैसे पर माँ ने इस बार भी मेरे इस झूठ को मान लिया और मुस्कुराने लगीं|



भाईसाहब, नेहा को लाड कर शांत करवा रहे थे इस करके आयुष और स्तुति को अपने बड़े मामा जी के पॉंव छूने और लाड-प्यार पाने का मौका नहीं मिला| आयुष ने तो इस बात का बुरा नहीं लगाया मगर स्तुति को आया गुस्सा और उसने मेरे फ़ोन से अपनी बड़ी मामी जी को फ़ोन कर सब बात बता दी|

मैंने जब स्तुति को फ़ोन पर बात करते हुए देख तो मैंने स्तुति से फ़ोन लिया| फ़ोन पर भाभी जी का नाम देख मैं कुछ-कुछ समझ गया की जर्रूर स्तुति ने कोई शैतानी की है इसलिए मैंने फ़ोन लाउडस्पीकर पर कर दिया; "हमार नीक-नीक छुटकी भाँजी, जे हम का अतना मूहात ही ऊ का लाड नाहीं करत हैं! बताओ तो?! तू तनिको चिंता नाहीं करो मुन्नी, आये दिहो तोहार बड़के मामा का घरे हम इनका घरे न घुसे देब! न इनका खाना देब! अरे इनका तो हम घामेमा बिठाब और रतिया का गोरु-बछवा लगे सुलाब! बताओ हमार छुटकी भाँजी का रुलावत हैं!" भाभी जी को लग रहा था की वो स्तुति से बात कर रहीं हैं इसलिए वो अपने झूठ-मूठ के गुस्से में भाईसाहब को दी जाने वाली सज़ा के बारे में बोलती जा रहीं थीं|

जब भाभी जी की बात खत्म हुई तो हम सभी ने ज़ोर से ठहाका लगा कर हँसना शुरू कर दिया, तब भाभी जी को समझ आया की हम सब ने उनकी बातें सुन ली हैं इसलिए उनकी भी हँसी छूट गई! इधर भाईसाहब को एहसास हुआ की उन्होंने अपनी छोटी भाँजी को लाड न कर के उसे दुखी किया है इसलिए भाईसहाब ने स्तुति को गोदी में ले कर लाड करना शुरू किया| उधर भाभी जी ने बारी-बारी सभी से बात की और सबसे ज्यादा बात उनकी नेहा से हुई जिसमें वो नेहा को हिम्मत बँधा रहीं थीं|




भाभी जी ने फ़ोन रखा तो संगीता प्यारभरे गुस्से से स्तुति से बोली; "जब से तेरे बड़े मामा जी आये हैं तूने उन्हें पानी पुछा? चाय पूछी? लेकिन फट से अपनी बड़ी मामी जी से शिकायत कर दी की बड़े मामा जी मुझे प्यार नहीं करते!" अपनी गलती पता चलने पर स्तुति ने फौरन अपने कान पकड़ अपने बड़े मामा जी से माफ़ी माँगी तथा उनकी सिफारिश करने के लिए पुनः अपनी बड़ी मामी जी को फ़ोन कर दिया| “बड़ी मामी जी...बड़ी मामी जी, आप है न मेरे बड़े मामा जी को मत डाँटना!" स्तुति का ये बालपन देख हम सभी उस पर मोहित हो रहे थे, वहीं भाभी जी अपनी भाँजी का बालपन फ़ोन पर सुन मोहित हो रहीं थीं| मेरी छोटी सी बिटिया अपने बालपन से सभी को खुश रखने में कामयाब हुई थी|


जारी रहेगा भाग - 16 में...
Bahot khoob shaandar update bhai
Neha ko Haqeeqat ka pata chala tow glani ho rahi h ab soch rahi h ki kaise apne papa ji magi mange
Baherhal mangna hi padega kuch kerke
 

Naik

Well-Known Member
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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 16


अब तक अपने पढ़ा:


भाभी जी ने फ़ोन रखा तो संगीता प्यारभरे गुस्से से स्तुति से बोली; "जब से तेरे बड़े मामा जी आये हैं तूने उन्हें पानी पुछा? चाय पूछी? लेकिन फट से अपनी बड़ी मामी जी से शिकायत कर दी की बड़े मामा जी मुझे प्यार नहीं करते!" अपनी गलती पता चलने पर स्तुति ने फौरन अपने कान पकड़ अपने बड़े मामा जी से माफ़ी माँगी तथा उनकी सिफारिश करने के लिए पुनः अपनी बड़ी मामी जी को फ़ोन कर दिया| “बड़ी मामी जी...बड़ी मामी जी, आप है न मेरे बड़े मामा जी को मत डाँटना!" स्तुति का ये बालपन देख हम सभी उस पर मोहित हो रहे थे, वहीं भाभी जी अपनी भाँजी का बालपन फ़ोन पर सुन मोहित हो रहीं थीं| मेरी छोटी सी बिटिया अपने बालपन से सभी को खुश रखने में कामयाब हुई थी|


अब आगे:


भाईसाहब
रात घर ही रुकने वाले थे इसलिए उनकी मौजूदगी में नेहा की हिम्मत नहीं हुई की वो मेरे पास आ कर माफ़ी माँग सके| इधर भाईसाहब को मुझसे बात करनी थी इसलिए खाना खाने के बाद हम दोनों छत पर टहलते हुए बतुआने लगे|



नेहा के साथ हुए इस हादसे के बारे में उन्हें अनिल ने बताया था| इस हादसे की खबर सुन भाईसाहब बहुत घबरा गए थे और उन्हें लग रहा था की नेहा की इज्जत पर आँच आई है इसलिए वो फौरन दिल्ली के लिए निकल पड़े| संगीता ने अनिल को नेहा से हुई बात के बारे में कुछ देर से बताया था और ये खबर अनिल ने जब भाईसाहब को दी तब वे रास्ते में थे, परन्तु नेहा की इज्जत सलामत होने की बात जानकार भाईसाहब को आधा चैन मिल गया था| बाकी का चैन उन्हें तब मिलता जब वो नेहा को स्वयं देख लेते|

जब मैंने भाईसाहब से पुछा की इस हादसे के बारे में उन्होंने नेहा की नानी जी को तो नहीं बताया तो भाईसाहब ने बताया की ये बात केवल भाभी जी को पता है| यदि ये बात अम्मा (नेहा की नानी जी) को पता चलती तो वो बहुत गुस्सा होतीं और नेहा की शादी करने के पीछे पड़ जातीं| नेहा की नानी जी की विचारधारा अब भी रूढ़िवादी थी इसलिए वो परिवार के नाम पर किसी प्रकार की आँच आने देने का जोखम नहीं लेतीं|



"मुझे तुम पर गर्व है मानु, तुमने एक पिता होने का फ़र्ज़ अदा कर दिया| वो भी तब जब नेहा ने तुम्हें इतना कुछ कहा, तुमसे तालुक्कात तक तोड़ लिए थे! नेहा के कहे उन शब्दों को सुन कर अम्मा नेहा पर बहुत गुस्सा हुईं थीं की इस लड़की ने उनके लाडले बेटे का (मेरा) इतना दिल दुखाया| जब भी नेहा घर (गाँव) आई अम्मा नेहा से ज़रा भी बात नहीं करतीं थीं| माँ तो खुद को इतना लज्जित समझतीं थीं की वो तो तुमसे बात करने में कतरा रहीं थीं| वो कहतीं थीं की मैं किस मुँह से अपने मुन्ना से बात करूँ, जब मेरी ही नातिन ने उसे इतना बुरा-भला कहा| वो हमेशा नेहा को कोसती रहतीं थीं की इस लड़की के कारण अम्मा अब तुमसे कभी नजरें नहीं मिला पाएंगी| वो तो मैंने, संगीता और तुम्हारी भाभी ने उन्हें खूब समझाया की वो तुम्हारे सामने उन बातों को याद न करें ताकि तुम्हारा दिल और न दुखे, तब जा कर अम्मा तुम्हें फ़ोन कर बात करतीं थीं|” भाईसाहब ने छत पर टहलते हुए मुझे इन बातों से रूबरू करवाया| मैंने नेहा की नानी जी के मुझसे कम बात करने पर पहले कभी गौर नहीं किया| मुझे तो लगता था की शायद मैं ही इतना व्यस्त हो गया हूँ की उन्हें समय नहीं दे पाता|



"भाईसाहब, आप माँ को समझाइये की वो इस तरह से न सोचा करें| जो कुछ हुआ उसमें उनकी कोई गलती नहीं थी जो वो खुद को यूँ दोष दे रहीं हैं| आप माँ से कह दीजियेगा की अगर वो ऐसे सोचेंगी न तो मैं उनसे बात नहीं करूँगा|" मैंने बच्चों की तरह बात न करने की खोखली धमकी दी तो भाईसाहब हँस पड़े और हँसते हुए बोले की वो मेरी कही बात नेहा की नानी जी तक पहुँचा देंगे|



"वैसे एक बात कहूँ मानु, तुमने जिस तरह से संगीता को समझाया की उसे नेहा से कैसे बात करनी है वो काबिले-ऐ-तारीफ था क्योंकि हमारी सोच तुम्हारी जैसी नहीं है| ऐसे हालातों में हमारे लिए नेहा सबसे बड़ी कसूरवार साबित होती अतः सब नेहा को पीटते और फौरन उसके हाथ पीले कर देते ताकि ये बात सुन दुनिया हम पर कीचड़ न उछाले| मैं थोड़ा लड़ाकू स्वभाव का हूँ इसलिए मैं वही करता जो तुमने किया लेकिन उस लड़के को पीटने के बाद अगला नंबर नेहा का ही आता| वो लड़की ज़ात है इसलिए मैं उस पर हाथ तो नहीं उठा सकता था परन्तु उसे अच्छे से डाँट अवश्य सकता था|

लेकिन तुमने जो नेहा को प्यार से बात कर सँभालने का रास्ता संगीता को सुझाया, उसके बारे में सुन मैं और तुम्हारी भाभी बहुत हैरान थे! थोड़ा समय लगा हमें तुम्हारा पक्ष समझने में और तब हमें अक्ल आई की बच्चों को किस तरह सँभाला जाता है| हम बूढ़ा-बूढी को तुम जैसे नौजवान से बच्चों की परवरिश करने का ये सबक सीख कर हम दोनों ही तुम्हारी सरहाना करते नहीं थक रहे थे|” भाईसाहब मेरी पीठ थपथपाते हुए बड़े गर्व से बोले|



"भाईसाहब, बच्चों की परवरिश करने में मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ| मैं जब छोटा था तो पिताजी मेरी छोटी-छोटी गलतियों पर बिना पूरी बात जाने मुझे डाँट दिया करते थे, यहाँ तक की पीट भी दिया करते थे| उन्होंने कभी मुझे अपने सामने बिठा कर मेरे मन की बात नहीं जानी, मेरी भावनाएं नहीं समझीं| उनके अनुसार मैं छोटा बच्चा था और छोटे बच्चों को कहाँ कुछ पता होता है, वो तो मुर्ख होते हैं| यही सोच कर पिताजी मेरे प्रति सख्त रहते थे|

उसी पल मैंने सोच लिया था की जब मैं बड़ा हूँगा और मेरे बच्चे होंगे तो मैं अपने बच्चों के साथ ऐसी ज्यादती कभी नहीं करूँगा| मैं उनसे बात करूँगा, उन्हें गलत रास्ते पर जाने से रोकूँगा और यदि वे फिर भी नहीं माने तो उन्हें अपनी गलती से सबक लेने के लिए अकेला छोड़ दूँगा| ठोकर लगेगी तो बच्चे अपने जीवन में सीखे इस सबक को हमेशा याद रखेंगे|



नेहा मेरी गोदी में खेली है, भले ही जन्म से न सही मगर जितना भी उसने मुझसे प्यार पाया उससे मैं उसके नाज़ुक दिल को अच्छे से समझता हूँ इसीलिए मैंने संगीता को नेहा के साथ नरमी से बता करने को कहा था वरना वो तो रानी लक्ष्मी बाई बन कर लड़ने को तैयार बैठी थी!” मेरी बातें सुनकर भाईसाहब बहुत प्रभावी हुए थे| वहीं जब मैंने संगीता को लक्ष्मी बाई कहा तो भाईसाहब बड़ी ज़ोर से ठहाका लगा कर हँसने लगे|



जब मैं और भाईसहाब छत पर टहलते हुए बात कर रहे थे तब नेहा मुझसे बात करने के इरादे से छत पर आ पहुँची थी| परंन्तु जब उसने सुना की हम दोनों उसी के बारे में बात कर रहे हैं तो नेहा छुप कर हमारी सारी बात सुनने लगी| ये नया सच जानकार नेहा को और भी ग्लानि हो रही थी, भले ही मैं नेहा से बात करने, उसे सँभालने आगे नहीं आया मगर वो मैं ही था जिसने संगीता को सीख दी थी की उसे कैसे नेहा से बात करनी है| नेहा ने मुझे इतना गलत समझा था की अब उसे रह-रह कर पछतावा हो रहा था!



सोने का समय हुआ तो माँ अपने पोते के साथ सोईं, नेहा अपनी मम्मी के साथ हमारे कमरे में सोई और मैं, स्तुति तथा भाईसाहब बच्चों के कमरे में सोये| माँ-बेटी अकेले सो रहीं थीं तो नेहा ने अपनी मम्मी से छत पर जो मेरे और भाईसाहब के बीच बातें हुईं उसके बारे में पुछा| संगीता ने बिना कोई बात छुपाये नेहा को सब बता दिया की कैसे मैंने उसे नेहा के साथ नरमी से पेश आने को कहा था| सच जान कर नेहा का मन मुझसे माफ़ी माँगने और मेरा प्यार पाने को बेचैन होने लगा था| मन में हो रही आत्मग्लानि के कारण नेहा की आँख से पछतावे के आँसूँ बह निकले| नेहा को यूँ रोते देख संगीता…एक माँ अपनी बेटी को हिम्मत देने लगी; "स्तुति के पापा जी…" संगीता इसके आगे कुछ कहती उससे पहले ही नेहा थोड़ा गुस्से में बोल पड़ी; "स्तुति के पापा जी नहीं, मेरे पापा जी!" नेहा ने आज इतने महीनों बाद बड़े हक़ से मुझे अपना पापा जी कहा तो संगीता के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई|

"हाँ-हाँ तेरे पापा जी!...तो मैं क्या कह रही थी....हाँ तेरे पापा जी का दिल बहुत बड़ा है| जब मैंने उन्हें खुद से और तुझसे दूर कर के उनका दिल तोडा, तब भी उन्होंने मुझे माफ़ कर दिया| उसी तरह तू भी उनसे सच्चे दिल से माफ़ी माँग तो वो तुझे भी माफ़ कर देंगे|" संगीता ने नेहा के भीतर मुझसे माफ़ी माँगने के लिए हिम्मत फूँक दी थी| अब नेहा को जर्रूरत थी एक मौके की और संगीता ने उसका भी इंतज़ाम सोच लिया था!



अगली सुबह संगीता कमरे में आई और स्तुति को जबरदस्ती अपनी गोदी में ले कर चली गई| आज बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी और मैं उम्मीद कर रहा था की स्तुति देर तक सोयेगी मगर संगीता के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था! अब मुझे आ रही थी नींद इसलिए मैंने थोड़ा और सोने की सोची, जबकि भाईसाहब नहाने जा चुके थे|

15 मिनट के बाद संगीता और स्तुति कमरे में आये, भाईसाहब तब गाँव वापस जाने के लिए तैयार हो रहे थे| "हम सब मंदिर जा रहे हैं!" संगीता ने कमरे में आते ही एकदम से अपना फैसला सुना दिया| संगीता का फैसला सुन मैं उठ बैठा और आँख मलते हुए कुछ पूछने ही वाला था की उसने बिना मेरे कुछ पूछे ही जवाब दे दिया; "आयुष कह रहा था की आप (मैं) सबको मंदिर ले गए लेकिन हम माँ-बेटे का नंबर नहीं लगा इसलिए हम सब मंदिर जाएंगे और आप घर पर रहोगे|" मेरा जूतों का एक कार्टून घर आना था इसलिए मैं वैसे भी कहीं नहीं जा सकता था, अतः मैंने सर हाँ में हिला कर अपनी सहमति दे दी|



संगीता ने अपनी बातों में कहा था की बाकी सब मंदिर जाएंगे इसका मतलब था की भाईसाहब को भी मंदिर जाना होगा| अब भाईसाहब तो बस अड्डे जाने की तैयारी कर रहे थे इसलिए वो संगीता को प्यार से समझाते हुए बोले; "मुन्नी, मैं अभी बस अड्डे निकल रहा हूँ तो तुम सब जाओ|" अब संगीता ने थोड़ी दूर मंदिर जाना था और वो चाहती थी की कोई पुरुष सबके साथ जाए इसलिए संगीता अपने भाईसाहब को आदेश देते हुए बोली; "बस से ही जाना है न तो दो बजे वाली से चले जाना| अभी हम सबके साथ मंदिर चलो!" अब भाईसाहब को अपने व्यपार के कारण जल्दी घर जाना था इसलिए वो प्यार से अपनी बहन को समझाने लगे की वो उन्हें न रोके मगर संगीता ने ठान लिया था की वो भाईसाहब को अपने साथ मंदिर ले जा कर ही रहेगी| अतः संगीता ने स्तुति को आँखों से इशारा किया| इधर मैं और भाईसाहब दोनों माँ-बेटी के इस इशारों में दिए जा रहे संकेतों को देख हैरत में थे की भला ये दोनों माँ-बेटी करने क्या वाले हैं?!

उधर स्तुति अपनी मम्मी का इशारा समझ चुकी थी| स्तुति ने अपनी कमर पर दोनों हाथ रखे, भोयें सिकोड़ीं, निचला होंठ फुलाया और प्यारभरे गुस्से के साथ अपने बड़े मामा जी को देखने लगी| स्तुति जब भी नाराज़ होती थी वो ऐसे ही रूप इख्तियार कर लेती थी| अपनी भाँजी को ये प्यारा सा गुस्सा देख भाईसाहब की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई और उन्होंने फौरन अपने दोनों हाथ अपनी छोटी भाँजी के आगे जोड़ दिए और घबराते हुए बोले; "अरे नाहीं-नाहीं हमार छोट मुन्नी, तू हमसे न रिसयाओ नाहीं तो हम कहाँ जाब! जउन तू कहिओ, तौन होई!" भाईसाहब को यूँ एक छोटी सी बच्ची के आगे घबराते देख हम सभी हँस रहे थे, वहीं स्तुति खुद को इस वक़्त कोई महारानी समझ रहे थी जिसके डरके मारे उसके बड़े मामा जी इतना घबरा गए थे की उसके आगे हाथ जोड़े खड़े थे!



सब मंदिर जाने के लिए तैयार हो रहे थे, सिवाए नेहा और मेरे| जब माँ ने नेहा के बारे में पुछा तो स्तुति ने अपनी मम्मी द्वारा पढ़ाया हुआ झूठ कह दिया; "दाई, दिद्दा रात में देर तक पढ़ रही थीं इसलिए वो अभी सो रही हैं| पपई हैं यहाँ घर पर तो हम सब मंदिर चलते हैं|" माँ को ये सुन कर बहुत ख़ुशी हुई की उनकी लाड़ली पोती पढ़ाई के प्रति इतनी निष्ठा रखती है| माँ ने जाते-जाते नेहा के सर को चूमा और उसे आशीर्वाद दे कर चली गईं| इधर मैंने इस बात पर इतना ध्यान नहीं दिया क्योंकि नेहा अब पहले जैसी धार्मिक नहीं थी|





मुझे अपने प्रोडक्ट्स ऑनलाइन अपडेट (products online update) करने थे इसलिए मैं सीधा अपने कमरे में कंप्यूटर पर काम करने बैठ गया| करीब आधे घंटे बाद नेहा कमरे में आई और सर झुकाये हुए मुझसे बोली; “पापा जी, मुझे आपसे कुछ बात करनी थी|" आज इतने महीनों बाद नेहा के मुख से अपने लिए 'पापा जी' शब्द सुन कर मुझे कोई ख़ुशी नहीं हुई| ऐसा लगा जैसे कोई ठंडा हवा का झोंका मुझे स्पर्श कर के आगे बढ़ गया हो| हाँ इतना जर्रूर था की नेहा ने जब कहा की उसे मुझसे बात करनी है तब मैं पूरी एकाग्रता से उसकी ओर देख रहा था|



"पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये...मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया जो मैं आपके प्यार को समझ न पाई!" ये कहते हुए नेहा ने एकदम से मेरे पैर पकड़ लिया और रोने लगी| नेहा का मुझसे यूँ पैर पड़कर माफ़ी माँगने का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ, न ही मुझे आज नेहा को यूँ रोते हुए देख कुछ महसूस हुआ| मेरा दिल जैसे पत्थर का बन चूका था जिसपर नेहा के आँसुंओं का फर्क ही नहीं पड़ रहा था| उस समय मेरे दिमाग केवल एक ही बात चल रही थी; 'हमारे घर में लड़की को लक्ष्मी का रूप मन जाता है और उससे पॉंव स्पर्श नहीं करवाए जाते|' ये बात सोचते हुए मैंने तुरंत नेहा के कँधे पकड़ उसे उठाया|

जिसे कभी मैं अपनी जान से ज्यादा चाहता था, जिसे मैं अपना फर्स्ट बोर्न (first born)…अपनी बेटी मानता था...आज उसकी आँखें पश्चाताप के आंसुओं से भरी थीं परन्तु मेरे लिए जैसे उन आँसुंओं का कोई मोल ही नहीं था!



नेहा जानती थी की उसके आँसूँ देख कर मैं पिघल जाता हूँ, परन्तु अभी जब उसने मेरी आँखों में सूनापन देखा तो वो एकदम से डर गई! मेरी आँखों में नमी न पा कर नेहा को डर लगा की शायद मेरे दिल में अब उसके लिए प्यार नहीं बचा! किसी भी बच्चे के लिए सबसे बड़ा डर यही होता है की उसके माँ-बाप अब उससे प्यार नहीं करते| इसी डर को महसूस कर नेहा बहुत घबरा गई थी और किसी भी तरह से मुझे मनाना चाहती थी ताकि उसे मेरा प्यार पुनः हासिल हो जाए|

अब मुझे मनाने का एक ही तरीका था और वो था अपना इक़बालिया जुर्म करना इसलिए नेहा ने अपनी सारी हिम्मत बटोर कर अपनी गलती का स्वीकारना शुरू कर दिया; "पापा जी, मैं गलत दोस्तों की संगत में पड़ गई थी और उनकी देखा-देखि अपनी ज़िन्दगी अपनी स्वेछा से जीना चाहती थी! नई क्लास में आई तो मेरे नए दोस्त बने| मेरी सबसे पहली दोस्त जिसे मैं अपना सच्चा दोस्त मानती थी वो थी पिंकी| फिर एक दिन पिंकी ने मेरी जान-पहचान अरमान से करवाई| पिंकी और अरमान ने मेरे दिलो-दिमाग में आज़ादी से घूमने-फिरने के विचार भरने शुरू कर दिए| दोनों ने मिलकर मुझे बताया की कैसे वो बेरोक-टोक बाहर घुमते हैं इसलिए मेरा भी मन उनकी तरह आज़ादी में जीने को करने लगा था| मैं चाहती थी की जिस प्रकार पिंकी तथा अरमान के माँ-बाप उनपर कोई रोक-टोक नहीं लगाते, आप और मम्मी भी मुझ पर कोई रोक-टोक न लगाओ|



लेकिन मैं एक पिता के अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए पनपे डर को समझ न पाई| आपके डर, आपकी मेरी सुरक्षा के लिए चिंता को मैं आपका मुझे 'कण्ट्रोल' करना समझने लगी| उन्हीं दिनों मेरी करुणा आंटी जी से कभी-कभी बात होती थी और मैं उन्हें बताती थी की कैसे आप मुझे अकेले बाहर आने-जाने से रोकते हो| तब करुणा आंटी जी ने बताया की जब वो हॉस्टल में रहतीं थीं, तब आप उन्हें भी बाहर अकेले या किसी पुरुष कर्मचारी के साथ घूमने से रोकते-टोकते थे| करुणा आंटी की बातों से मुझे लगा की जैसे आप आंटी जी को कण्ट्रोल करते हैं, वैसे ही आप मुझे भी कण्ट्रोल करना चाहते हैं! मेरे मन में पैदा हुए इस विचार ने मुझे आपके रोकने-टोकने पर चिड़चिड़ा कर दिया था, नतीजन मैंने आपक्से झूठ बोलना, आपको धोका देना की सोची| मैं मूर्ख ये न समझ पाई की आप मेरी ख़ुशी के लिए मुझे थोड़ी ज़िम्मेदारी के साथ थोड़ी-थोड़ी छूट देते जा रहे हैं! मेरा बेसब्र मन सारी आज़ादी एक साथ पाना चाहता था इसलिए मैं आपसे उखड़ती जा रही थी|



धीरे-धीरे पिंकी तथा अरमान से मेरी दोस्ती गहराती जा रही थी और ऐसे ही एक दिन मैंने दोनों पर विश्वास कर आपके बारे में सब बताया दिया| आपके और मेरे रिश्ते के बारे में जान कर अरमान तथा पिंकी ने मेरे जहन में ये बात डाली की चूँकि आपका और मेरा बायोलॉजिकल (biological) रिश्ता नहीं इसलिए आपका मुझ पर यूँ रोक-टोक लगाने का हक़ नहीं बनता! ये बात मेरे मन-मस्तिष्क में बस गई और मेरे मन में बगावती तेवर अधिक तेज़ हो गए|

फिर एक दिन अरमान ने मुझे प्रोपोज़ (propose) किया और मैं बेवकूफ उसकी बातों पर विश्वास कर उससे प्यार करने लगी| अरमान की मीठी-मीठी बातों में मैं ऐसी बहकी की मुझे सिर्फ वही दिखाई देता था| लेकिन पापा जी, आपकी कसम मैंने कभी भी अरमान को खुद को छूने नहीं दिया! हम जब भी कहीं मिले तो हमने बस घूमा, खाया-पीया मगर मैंने कभी उसे न तो खुद को छूने दिया, न ही कभी किसी भी तरह की कोई गंदी हरकत करने दी| मुझे उससे बात करना, उसके साथ घूमने जाना बहुत पसंद था और मैं इसी से संतुष्ट थी|



अरमान के साथ घूमने-फिरने को मैंने सच्चा प्यार समझने की सबसे बड़ी भूल कर दी| इस घूमने-फिरने के चक्कर में मैं अपनी पढ़ाई की तरफ पूरी तरह से लापरवाह हो गई, नतीजन मैं परीक्षा में बड़ी मुश्किल से पास हुई! नंबर कम आये थे और मैं जानती थी की आपसे बहुत डाँट पड़ेगी इसलिए मैंने आपसे झूठ बोलने का फैसला किया| परन्तु आयुष की वजह से आपने मेरा झूठ पकड़ ही लिया और जब आपने मुझे डाँटना शुरू किया तो मुझे बहुत गुस्सा आया|

मेरे पढ़ाई में आये कम नम्बरों के लिए डांटने के बाद जब आपने मुझे समझाया की ये सब प्यार-व्यार नहीं बस केवल आसक्ति (infatuation) है तो मेरा गुस्सा उबले मारने लगा और मेरे मुँह से वो कटु शब्द निकल गए! यक़ीन मानिये पापा जी, मेरे मन में ऐसा गंदा विचार कभी नहीं आया| ये विचार अरमान और पिंकी ने ही मेरे दिमाग में भरा था!



उस समय आपसे वो कटु शब्द कह कर मुझे ज़रा भी बुरा नहीं लगा, यहाँ तक की जब आपकी तबियत खराब हुई तब भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा! मुझे केवल गुस्सा आ रहा था की आपके कारण मम्मी ने मुझे मारा और तो और मुझे जान से मारने की धमकी भी दी!



आपसे लड़-झगड़ कर, मम्मी से झूठ बोल...उन्हें धोका दे कर मैंने आज़ादी तो पा ली लेकिन इस आज़ादी के कारण मेरे साथ जो हादसा हुआ उससे मेरा सारा घमंड टूट कर चकना चूर हो गया! जिसे मैं अपना सच्चा दोस्त मानती थी उसने मुझे अकेला छोड़ दिया था! उसे मुझसे ज्यादा अपने मम्मी-पापा से डाँट खाने का डर लग रहा था| उस रात मुझे समझ आया की आप क्यों मुझे अधिक बाहर आने-जाने से रोकते थे, एक पिता का अपनी बेटी की इज्जत पर आँच आने का डर क्या होता है? वो पूरी रात मैं बस पछता रही थी की क्यों मैंने आपकी बात नहीं मानी और अरमान को अपनी ज़िन्दगी से निकाल बाहर क्यों नहीं फेंक दिया?! मैं सुबह होने का इंतज़ार कर रही थी ताकि मैं घर आऊँ और आप मुझे अपने गले लगा कर प्यार कर मेरे दिल में बैठे डर को खत्म कर दो| परन्तु मेरे घर आने के बाद, मुझे रोता हुआ देख भी जब आपने मुझे अपने गले नहीं लगाया, बल्कि मुझसे पहले जैसी दूरी बनाये रखी तो तो मेरे मन में आपके प्रति बैठी नकारात्मक सोच ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया की अब आप मुझे पहले जैसा प्यार नहीं करते..आप मुझसे घृणा करते हो!



लेकिन, मैं बहुत गलत थी, मैं आपके प्यार को कभी समझ ही न पाई! जब मैं छोटी थी तो मैं हमेशा मम्मी को ताना मारती थी की वो आपके प्यार को कभी समझ नहीं पाईं तथा वो जानबूझकर आपका दिल दुखाती हैं मगर विधि की विडंबना देखिये की मैं बड़े होते-होते खुद मम्मी जैसी बन गई!



मेरे आपका इतना दिल दुखाने के बावजूद, आपको हमेशा गलत समझने के बावजूद भी आपने कभी मेरी फ़िक्र करना नहीं छोड़ा| मेरी इज्जत पर जिसने हाथ डालने की कोशिश की आपने उसका हाथ तोड़ दिया, यहाँ तक की उसे शहर छोड़ने पर मजबूर कर दिया!

जिस वक़्त मेरा नाज़ुक मन सदमे के कारण टूटने की कगार पर था तब आपने ही मम्मी को समझाया की वो मुझसे आराम से बात करें वरना मम्मी ने तो मुझे उनसे झूठ बोलने, उनसे विश्वासघात करने के लिए चप्पल-जूतों से पीट देना था, पर आपने उन्हें समझाया और मुझे कैसे सही रास्ते पर लाना है ये सिखाया|



मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है पापा जी, परन्तु जब धीरे-धीरे मेरे सामने आपकी अच्छाई आती गई तो मैं शर्म से ज़मीन में गड़ती चली गई| करुणा आंटी जी ने घर आ कर मुझे बताया की कैसे आपने उनकी मदद करने के लिए निस्वर्थ भाव से एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया| जो रोक- टोक पाबंदियाँ आपने उनके लिए लगाईं थीं वो तो केवल और केवल उनके भले के लिए थीं, उसमें आपका निजी कोई स्वार्थ था ही नहीं! इन बातों पर गंभीरता से सोच-विचार करते हुए मुझे समझ आया की भले ही मैं आपकी सगी बेटी न सही मगर आपने मुझे अपने दोनों सगे बच्चों से ज्यादा प्यार किया| आयुष और स्तुति के मुक़ाबले आपने मुझ पर थोड़ी सख्ती अवश्य दिखाई मगर उसमें केवल मेरी ही भलाई छुपी थी|



मैं आपसे हाथ जोड़कर माफ़ी माँगती हूँ पापा जी, प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिये! आज से आप जो कहेंगे, मैं वही करुँगी| नहीं चाहिए मुझे कोई आज़ादी, नहीं चाहिए मुझे कोई ऐशों-आराम! मुझे बस अपने पापा जी और उनका प्यार चाहिए, जिसके लिए मैं इतने दिनों से तरस रही हूँ!" आत्मग्लानि में बहते हुए नेहा ने आज अपने दिल की सारी बात मुझसे कह दी थी| नेहा की आँखों में पछताप के आँसूँ थे और वो आज मुझसे सच्चे दिल से माफ़ी माँग रही थी| परन्तु मेरे लिए अब सब कुछ बदल चूका था! नेहा ने अभी जो अपनी 'सफाई' दी थी उसमें मुझे केवल बहाने ही बहाने नज़र आ रहे थे| मुझे कहे उन शब्दों के लिए वो अपने दोस्तों को जिम्मेदार ठहरा रही थी इसलिए मुझे नेहा की इस बात का खंडन करना था|



"जब बच्चा बड़ा होने लगता है तो वो हर समय अपने माँ-बाप के खूँटे से बँधा नहीं रह सकता, उसे आज़ादी चाहिए ही होती है| आज़ादी थोड़ी मस्ती करने की, आज़ादी अपने मन की करने की और आज़ादी गलती कर सीखने की| जब मैं छोटा था तो मुझसे पिताजी के डर के मारे चूँ नहीं निकलती थी, आज़ादी की तो बात ही छोडो| लेकिन मैंने उस समय ये तय कर लिया था की जब मेरे बच्चे होंगे तो मैं उन्हें कभी किसी चीज़ के लिए नहीं तरसाऊँगा| जैसे-जैसे मेरे बच्चे बड़े होंगे, मैं उन्हें जर्रूरत के अनुसार थोड़ी-थोड़ी आज़ादी देता जाऊँगा|

अगर आपको लगा था की मैं आपके साथ अधिक सख्ती दिखा रहा हूँ, अधिक रोक-टोक कर रहा हूँ तो आपको मुझसे बात करनी चाहिए थी| आप अगर अपनी आज़ादी को ले कर मेरे साथ लड़ भी लेते तो मैं इसका बुरा नहीं मानता, बल्कि मुझे लगता की आप बड़े हो गए हो और मुझे ही आपको थोड़ा स्पेस (space) देना चाहिए| लेकिन यूँ अपनी आज़ादी माँगने के लिए उस शक़्स को ही कह देना की वो आपका पिता नहीं है जो वो इस कदर आप पर पाबंदिया लगा रहा है, ये कतई जायज नहीं था!



रही बात आपके अपने दोस्तों की बातों में आ जाने, उनके आपके दिमाग में जहर भरने जैसी बातों की, तो मैं केवल यही कहूँगा की आप इतने छोटे नहीं की किसी के भी बहकावे में आ जाओ| आपका कोई दोस्त आपके मम्मी-पापा के बारे में कुछ भी बुरा-भला कहेगा तो सबसे पहले आप उसी से लड़ोगे की उसकी हिम्मत कैसे हुई आपके मम्मी-पापा के बारे में ऐसा कुछ कहने की| आप चुप रह कर उसकी बात तभी सुनोगे जब आपको लगेगा की उसकी बातों में सच्चाई है और आप भी उसकी बातों को कहीं न कहीं सच मानते हो!” मेरी कही ये बात नेहा के दिल को बहुत चुभी और वो सर न में हिलाते हुए बोली; "नहीं पापा जी...ऐसा नहीं…" मगर मेरे लिए ये बस नेहा की सफाई थी जिसे मैं कभी नहीं मान सकता था इसलिए मैंने नेहा की बात को काटते हुए अपनी बात जारी रखी; “और जहाँ तक बात है मुझसे माफ़ी माँगने की और मेरा प्यार फिर से पाने की तो आपको ये अंतिम सबक सीखना होगा; 'हमारी ज़िन्दगी में रिश्ते एक बहुत ही कच्ची डोर से बँधे होते हैं| घमंड और अहंकार के कारण ये डोर अगर एक बार टूट जाती है तो फिर जोड़ने से नहीं जुड़ती| यदि जबरदस्ती इस डोर को जोड़ा भी जाए तो हमेशा के लिए रिश्तों में ऐसी गाँठ पड़ जाती है जो हमेशा उँगलियों के छूने पर महसूस होती है|' " स्कूल में मैंने रहीम का एक दोहा पढ़ा था;

'रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय|

टूटे पे फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परी जाय||'

आज मैंने इस दोहे का मोल-भाव नेहा को संक्षेप में समझा दिया था| बहरहाल, ज़ाहिर है की मेरी कही ये कष्टदाई बात नेहा के नाज़ुक दिल को तार-तार कर गई थी! परन्तु नेहा को अपने पापा जी का प्यार वापस चाहिए था इसलिए हार न मानते हुए नेहा ने फौरन मेरे साथ तर्क किया; "लेकिन पापा जी, जब मम्मी ने आपको खुद से और मुझसे दूर कर दिया था तब आपने उन्हें माफ़ कर दिया न? फिर मुझे क्यों..." नेहा ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी, परन्तु मैं नेहा की बात समझ गया था|



"मैंने आपकी मम्मी को माफ़ कर दिया था क्योंकि मुझे ‘मेरी बेटी नेहा’ मिल गई थी और तब मेरे लिए मेरी बेटी नेहा ही सब कुछ थी! मेरी बेटी की आभा ऐसी थी की मेरे दिल में आपकी मम्मी के लिए कोई मलाल नहीं बचा था| मैंने कभी आपकी मम्मी से दुबारा रिश्ता नहीं जोड़ना चाहा मगर आपकी मम्मी ने ही जबरदस्ती करते हुए मुझसे पुनः रिश्ता जोड़ा| जबरदस्ती से जोड़े इस रिश्ते में एक गाँठ पड़ गई थी, जिसे मैं अपने बच्चों के मोह के कारण आजतक नजरअंदाज करता हूँ|

लेकिन आपकी मम्मी को हमारे रिश्ते में पड़ी वो गाँठ आज भी महसूस होती है| आपको पता है आपकी मम्मी कई बार अपने लिए फैसले को याद कर खुद को कोसती है! मुझे खुद से इतने सालों तक दूर करने पर जो मैं आयुष को अपनी गोद में खिला न सका उसे ले कर आपकी मम्मी के दिल में कितना मलाल है ये सिर्फ मैं जानता हूँ|” जब मैंने अपनी बात में 'मेरी बेटी नेहा' कहा तो एक पल के लिए नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी लेकिन जब मैंने उसके तर्क का काट किया तो नेहा के चेहरे पर आई ये मुस्कान फिर से ओझल हो गई!



"पापा जी, इंसान को अपनी गलती सुधारने का एक मौका तो देना ही चाहिए न?" नेहा ने सिसकते हुए मेरे साथ अंतिम तर्क किया|



“इंसान की हर गलती सुधारी नहीं जा सकती, कुछ गलतियों के साथ हमें जीना पड़ता है और यही गलतियाँ हमारी ज़िन्दगी में एक सबक बन कर याद रहतीं हैं!” मेरी कही ये अंतिम बात केवल नेहा पर ही नहीं उतरती थी, बल्कि मेरे ऊपर भी यही बात उतरती थी| मेरे ऊपर ये बात क्यों उतरती थी इसका पता आपको जल्द ही चलेगा!



गौर करने वाली बात ये है की, हम दोनों के बीच हुई बातों में मैंने एक भी बार नेहा को 'बेटा, बेटी, मेरा बच्चा' कह कर नहीं पुकारा था| मैं नेहा को केवल आप शब्द से ही सम्बोधित कर रहा था जो की ये दर्शाता था की मैं अब नेहा से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता|



खैर, मेरी बातों से साफ़ हो चूका था की मेरे दिल में अब नेहा के लिए कोई जगह नहीं है, तभी मैं नेहा के दिए सभी तर्कों को विफल किये जा रहा था| मेरे भीतर अब जैसे नेहा के लिए कोई जज्बात ही नहीं बचे थे|

मैं अब नेहा से और कुछ कहना या सुनना नहीं चाहता था इसलिए मैं उठ कर छत पर आ गया| 10 मिनट में मेरा जूतों का कार्टन आ गया और मैं माल ऊपर चढाने में व्यस्त हो गया|




उधर कमरे के भीतर नेहा का दिल फट चूका था| इस पूरी दुनिया में उसे प्यार करने वाला बस मैं था और आज जब मैंने ही नेहा से मुँह मोड़ लिया तो नेहा के जीवन में जीने के लिए कोई कारण नहीं बचा था! नेहा ने अपनी जो हिम्मत बटोरी थी वो भी अब टूट चुकी थी इसलिए अब उसके पास सिवाए पछताने के और कुछ नहीं था|
जारी रहेगा भाग - 17 में...
Neha n jo galti ki h use bughatna hi padega
Lekin mere khayal Manu bho ko Neha ko maaf ker dena chahiye tha
baherhal dekhte hai aage kia huwa
Shaandar lajawab update bhai
 

Naik

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प्रिय भाइयों, देवियों, मित्रों व् पाठकों,

नई update समय से पहले हाज़िर है!

समय के अभाव में मैं पूरी update नहीं लिख सकता था इसलिए मैंने इस अंतिम update के दो भाग बना दिए हैं| प्रथम भाग मैं post कर चूका हूँ, दूसरा और अंतिम भाग गुरूवार रात का post करने की पूरी कोशिश रहेगी|


ये अंतिम update काफी भावुक रहने वाली है इसलिए अपने प्यारे-प्यारे comments से मेरा होंसला बढ़ाते रहें| 🙏
अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 17 (1)


अब तक अपने पढ़ा:


उधर कमरे के भीतर नेहा का दिल फट चूका था| इस पूरी दुनिया में उसे प्यार करने वाला बस मैं था और आज जब मैंने ही नेहा से मुँह मोड़ लिया तो नेहा के जीवन में जीने के लिए कोई कारण नहीं बचा था! नेहा ने अपनी जो हिम्मत बटोरी थी वो भी अब टूट चुकी थी इसलिए अब उसके पास सिवाए पछताने के और कुछ नहीं था|


अब आगे:



दोपहर
एक बजे तक सब लोग मंदिर से दर्शन कर और बाहर खाना खा कर घर लौटे| जैसे ही मैंने दरवाजा खोला, वैसे ही स्तुति मेरी गोदी में आने को कूद पड़ी| मेरी गोदी में आते ही स्तुति बोली; "पपई, मैं आपके लिए और दिद्दा के लिए खाना ले कर आई|" असल में खाना माँ ने पैक करवाया था मगर स्तुति ने इसका सारा श्रेय खुद को दे दिया| "नानी, सब तू ही करती है! हम सब को कहाँ कुछ पता होता है?!" संगीता प्यार से स्तुति को ताना मारते हुए बोली|

हम सभी बैठक में बैठ कर बातें कर रहे थे, नेहा भी मुँह धो कर चेहरे पर नकली मुस्कान लिए अपनी दादी जी के पास बैठ गई| नेहा ने खुद को इस समय ऐसे सहेज के रखा था की संगीता भी धोका खा गई, उसे लगा की हम दोनों (मेरे और नेहा) के बीच सब कुछ पहले जैसा सामन्य हो गया है|



संगीता ने मेरे और नेहा के लिए खाना परोसा और स्तुति ने हमें थाली ला कर दी| खाना खाते हुए स्तुति अपनी मम्मी की शिकयत मुझसे करते हुए बोली; "पपई, मम्मी न मुझे बड़े मामा जी के साथ अकेले गाँव भेज रही थी! मम्मी ने बड़े मामा जी से बोला की ये लड़की (यानी स्तुति) बहुत शैतान है, इसे अपने साथ गाँव ले जाओ| तब है न मैंने बड़े मामा जी से बोला की मैं पापा जी के पास रहूँगी, लेकिन मम्मी है न फिर भी जबरदस्ती मुझे बड़े मामा जी के साथ भेज रही थीं| वो तो दाई ने कहा की मेरी शूगी को मेरे पास रहने दो तब जा कर मम्मी चुप हुईं, वरना तो मम्मी मुझे बड़े मामा जी के साथ गॉंव भेज ही देतीं!" स्तुति को अपनी मम्मी पर गुस्सा आ रहा था क्योंकि संगीता उसे मुझसे दूर जो कर रही थी|



"बेटा, सारी मम्मियाँ न ऐसी ही होती हैं| जब मैं छोटा था न तब मेरी शैतानी करने पर आपकी दादी जी कहतीं थीं; 'बंदर आजा, मानु को पकड़ कर ले जा|' तब मैं बहुत डर जाता और दरवाजे के पीछे छुप जाता!" मेरी बात सुन स्तुति को यक़ीन नहीं हुआ की मैं इतनी शैतानी करता था की माँ को मुझे डराने के लिए बंदर को बुलाना पड़े इसलिए स्तुति आँखें बड़ी कर मुझे देखने लगी| माँ ने जब स्तुति को यूँ आश्चर्यचकित देखा तो माँ बोलीं; "तू शैतान की नानी है तो तेरा पपई शैतानी करने में शैतान का परनाना था!" ये कहते हुए माँ ने मेरी बचपन की शैतानियों की लिस्ट गिनानी शुरू कर दी| जैसे-जैसे माँ मेरी शैतानियाँ गिनाती जा रहीं थीं, वैसे-वैसे स्तुति का मुँह अस्चर्य से खुलता जा रहा था| "पपई, आप तो मुझसे भी ज्यादा शैतान थे!" स्तुति हैरत के मारे अपने दोनों गालों पर हाथ रखते हुए बोली| स्तुति की प्रतिक्रिया देख सभी ने ज़ोर का ठहाका लगाया|



फिर बारी आई संगीता की और उसने आयुष के बचपन की शैतानियाँ गिनानी शुरू कर दी| आयुष की शैतानियाँ मेरी शैतानियों के मुक़ाबले कम थीं लेकिन फिर भी स्तुति को अपने बड़े भैया की शैतानियों के बारे में सुन बहुत मज़ा आया| अब बची थी केवल नेहा, जब स्तुति ने अपनी मम्मी से पुछा की उसकी दिद्दा कितनी शैतान थीं, तो माँ एकदम से नेहा के बचाव में आ गईं; "मेरी मुन्नी तुम तीनों की तरह बिलकुल शैतान नहीं थी| वो जब छोटी थी तो मेरी सबसे ज्यादा सेवा करती थी|" माँ ने नेहा को अपने गले लगा कर लाड करते हुए कहा|



माँ ने जब हम तीनों बाप-बेटा-बेटी को शैतान कहा तो स्तुति के दिमाग में एक आईडिया आ गया| स्तुति ने अपने बड़े भैया को अपने पास बुलाया और मेरी गोदी में बैठने को कहा| जैसे ही संगीता ने हम तीनों बाप-बेटा-बेटी को इस तरह बैठे देखा वो फौरन समझ गई की स्तुति के दिमाग में क्या खुराफात पक रही है| संगीता ने दबी आवाज़ में माँ को सब बताया तो माँ प्यारभरे गुस्से से हमे डाँटते हुए बोली; "खबरदार जो तुम तीनों शैतानों ने अपनी 'गैंग' बनाई तो वरना तीनों को कूट-पीट कर सीधा कर दूँगी!" माँ की इस खोखली धमकी के कारण स्तुति का अपनी शरारती गैंग बनाने का सपना टूट गया मगर स्तुति इससे निराश नहीं हुई| बल्कि स्तुति एक ऐसी शरारत सोचने लगी जिसमें वो मुझे और आयुष को भी शामिल कर सके|



बहरहाल, मेरे जूतों का नया माल आया था और आयुष नए जूते देखने को उत्सुक था इसलिए हम बाप-बेटा-बेटी बाहर स्टोर में आ गए| उधर माँ थक गईं थीं इसलिए वो आराम करने लगीं तथा माँ-बेटी हमारे कमरे में बैठ गए| संगीता ने ख़ुशी-ख़ुशी नेहा से पुछा की मैंने नेहा को कितना लाड-प्यार किया तो नेहा की आँखें आँसुंओं से लबालब भर गईं! आखिर नेहा ने रोते हुए सारी बात संगीता को बताई| सब बात जान संगीता का दिल दुखा और वो मुझे समझाने बाहर स्टोर में आ गई| “आयुष...स्तुति चलो अंदर जा कर पढ़ाई करो!” संगीता ने बहाने से दोनों भाई-बहन को घर के भीतर भेज दिया|



"जानू, नेहा को माफ़ कर दो! प्लीज! उसे अपने किये पर बहुत पछतावा है! बेचारी दो दिन से रात में ठीक से सोइ नहीं, बस आपसे माफ़ी माँगने को रोती-तड़पती रही है!" संगीता ने नेहा की वकालत करते हुए कहा| विधि की विडंबना तो देखिये जो लड़की हमेशा अपने पापा या मम्मी की वक़लत किया करती थी, आज उसकी वकालत उसकी मम्मी कर रही थी!

खैर, जब संगीता ने नेहा की यूँ वकालत की तो मेरे चेहरे पर से सारे जज्बात धूल गए! "वो तुम ही थी न, जिसने कहा था की चूँकि नेहा मेरा खून नहीं है तो मुझे उसके बारे में अधिक नहीं सोचना चाहिए और आज तुम ही नेहा की वकालत कर रही हो?!" मेरा ये उखड़ा हुआ सा जवाब सुन संगीता का चेहरा लटक गया और वो दो पल के लिए खामोश हो गई|



नेहा के माफ़ी माँगने पर मैं उसे जो न कह पाया वो मैं दिल खोल कर अब संगीता से कहना चाहता था इसलिए संगीता के खामोश होते ही मैं बोला; "जिस पछतावे की तुम बात कर रही हो, वो नेहा को केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि उसके साथ ये हादसा घटित हुआ| यदि ये हादसा नेहा के साथ न हुआ होता तो उसे ये पछतावा कभी नहीं होता न?!

और किस माफ़ी की बात कर रही हो तुम?! बजाए अपनी गलती मानने के, नेहा बस बहाने बना रहे है की उसके दोस्तों ने उसके मन में ये ख्याल डाला की मैं उसका 'बायोलॉजिकल' पिता नहीं हूँ| मैं पूछता हूँ की कल को तुम्हें कोई आ कर कहे की हमारे बीच प्रेम नहीं बस जिस्मानी रिश्ता है तो तुम क्या करोगी?! चुपचाप उसकी बातें सुन हाँ में हाँ मिलाओगी या फिर उसका मुँह तोड़ दोगी?!



नेहा कह रही है की उस रात पिंकी के घर में जब वो डरी-सहमी रो रही थी तब उसे मेरे...एक पिता के दुःख-दर्द का एहसास हुआ, तो फिर घर आ कर वो सीधा मेरे पास क्यों नहीं आई? क्यों मेरे उससे पहले की तरह दूरी बनाने को उसने गलत समझा?! क्यों उसके मन में इसका गुस्सा बैठ गया?! अगर उसे तब इतनी ही ग्लानि हो रही थी तो वो तब क्यों नहीं आई मुझसे माफ़ी माँगने?

जब तुमने उसे सारा सच बताया, यहाँ तक की करुणा घर आई और हमारे (मेरी और करुणा की दोस्ती के) बारे में सच बता कर गई जिसका मुझे पता ही नहीं, तब कहीं जा कर…सारा सच जानकार ही नेहा को क्यों ग्लानि हुई? मतलब अगर उसे सच पता नहीं चलता तो वो मेरे प्रति अपने गुस्से और नफरत को अपने दिल में पाले ही रहती न?! तब तो उसे ग्लानि होती ही नहीं न?!



भई ये कैसा पछतावा है जो अपने साथ कुछ बुरा घटित होने पर ही होता है?! मुझे या तुम्हें तो कभी इस तरह पछतावा नहीं होता! हमें पता होता था की हम क्या गलत कर रहे हैं और हमें तो तभी से ये सोचकर पछतावा होने लगता था की जब हमें एक दूसरे के किये पाप के बारे में पता चलेगा तो हमें कैसा लगेगा?! कितना दुःख होगा...कितना कष्ट होगा!



यही नहीं, मुझसे माफ़ी पाने के लिए नेहा मुझ ही से तर्क कर रही है| वो मुझसे पूछ रही है की जब मैंने तुम्हें (संगीता को) मेरा दिल तोड़ने के लिए माफ़ कर दिया तो उस (नेहा) के साथ माफ़ी देने में मैं क्यों भेद भाव कर रहा हूँ? ये माफ़ी माँगने का तरीका है?” मेरे ये तीखे सवालों के बाण्ड से संगीता का सर शर्म के मारे झुक गया था| संगीता को अभी तक मैं ही गलत लग रहा था मगर जब उसने सुना की नेहा ने किस तरह मुझसे माफ़ी माँगी है तो वो मुझे गलत समझने के कारण खुद को लज्जित महसूस कर रही थी|



अब मुझसे संगीता का ये लटका हुआ चेहरा नहीं देखा जा रहा था इसलिए मैं अपनी बात पूरी करते हुए बोला; “नेहा ने मुझे मेरे जीवन का सबसे जर्रूरी सबक सिखाया है और वो ये की बच्चे बड़े हो कर अपने माँ-बाप का दिल एक न एक बार तो दुखाते ही हैं इसलिए बेहतरी इसी में है की अभी से अपना जिगर मज़बूत कर लो...दिल पत्थर का कर लो!



जिस प्रकार मैंने ये सबक सीख लिया है और इस सबक के परिणाम के साथ मैं जीवन जी रहा हूँ, वैसे ही नेहा ने जो सबक सीखा है उसे उस सबक के परिणाम के साथ जीना होगा|" मैंने अपने दिल की बात कह दी थी, इससे ज्यादा मैं संगीता को और नहीं सुनाना चाहता था| मेरी बातें सुन संगीता को मेरे गुस्से और दर्द का अंदाजा मिल चूका था| जिस जख्म को संगीता स्तुति के प्यार के कारण भरा हुआ समझ रही थी, वो जख्म तो नासूर बन कर अब भी मुझे दर्द दिए जा रहा था| फर्क बस इतना था की मैं अपने दर्द को अच्छे से छुपाये हुए था|



खैर, दो पल के लिए स्टोर में ख़ामोशी छा गई थी और इसी पल में संगीता ने कुछ सोच लिया था!

“So do you hate Neha?” संगीता ने बड़ी सरलता से मुझसे बिना बात घुमाये सीधा सवाल पुछा| अब ऐसे सवाल की मैंने संगीता से उम्मीद नहीं की थी इसलिए मैं संगीता के मन में पनपे इस सवाल का कारण समझने की कोशिश करने लगा| अगले 5 सेकंड के लिए मैं भोयें सिकोड़ कर गुस्से से संगीता को देख रहा था की भला वो ये कैसा सवाल मुझसे पूछ रही है?! भले ही मैं नेहा से गुस्सा था मगर मेरे मन में उसके लिए कभी कोई नफरत पैदा नहीं हुई थी|



असल में इस प्रश्न को पूछने के पीछे संगीता का मुख उद्देश्य ये था, की वो जानना चाहती थी की क्या मेरे दिल में नेहा के लिए नफरत पैदा हो गई है? यदि ऐसा है तो फिर मैं नेहा को कभी नहीं अपना पाऊँगा|



इधर, संगीता मुझसे अपने सवाल का जवाब पाने के लिए उत्सुक थी| “Hate is a very strong word! नफरत करने का मतलब होता है की आप उस शक़्स के साथ कुछ बुरा घटित होने की कामना करते हैं|” मैंने संगीता के सवाल का जवाब गोल-मोल कर के दिया था ताकि कहीं उसके सामने मेरा नेहा पर गुस्सा कम न नज़र आये और संगीता के मन में कोई और सवाल पैदा न हो जाए!

उधर संगीता को जैसे मुझसे इसी गोल-मोल जवाब की अपेक्षा थी इसीलिए उसके चेहरे पर एक अर्थपूर्ण मुस्कान तैरने लगी थी!

संगीता के दिमाग ने कंप्यूटर की तरह काम करना शुरू कर दिया था, जिसका परिणाम जल्दी दिखने वाला था|





हम मियाँ-बीवी स्टोर में थे, वहीं दूसरी तरफ स्तुति फुदकती हुई अपनी पढ़ाई करने के बजाए अपनी दिद्दा के पास जा पहुँची| अपनी दिद्दा को यूँ सिसकता हुआ देख स्तुति बहुत दुखी हुई और नेहा से उसकी उदासी का कारण पुछा| "पापा जी, मुझे प्यारी नहीं करते!" नेहा ने बात बनाते हुए कहा| अपनी दिद्दा की बात सुन स्तुति अपने प्यारे से गुस्से से तमतमाती हुई मेरे पास दौड़ी आई| नाक पर प्यारा सा गुस्सा लिए, गाल फुलाये और कमर पर अपने दोनों हाथ रखे हुए स्तुति मुझसे बोली; "पपई, आप दिद्दा को प्यारी क्यों नहीं करते? दिद्दा कितना रो रही हैं!" स्तुति की इस प्यारी सी शिकायत को सुन एक पल के लिए मेरा दिल जैसे धड़कना भूल गया! ऐसा क्यों हुआ ये मुझे तब समझ नहीं आया|



अब स्तुति को मनाना था इसलिए मैंने स्तुति को गोदी में लिया और उसके सवाल का जवाब देते हुए बोला; "बेटा, जब बच्चे बड़े हो जाते हैं न तो उन्हें अपने मम्मी-पापा के प्यार की जर्रूरत नहीं होती| अब जब बच्चे ही प्यारी नहीं माँगेंगे तो मम्मी-पापा की प्यारी धीरे-धीरे सूखती जाती है|" ये जवाब कम और नेहा के प्रति मेरे दिल में बैठा गुस्सा ज्यादा था|

स्तुति को उम्मीद थी की मैं उसका गुस्सा देख पिघल जाऊँगा और नेहा को पुनः प्यार करूँगा मगर जब मैंने स्तुति के सवाल का जवाब इस प्रकार दिया तो मेरी बिटिया एकदम से सहम गई| दरअसल स्तुति अभी इतनी बड़ी नहीं हुई थी की अपने जीवन के इस कटु सत्य से रूबरू हो सके| डर के मारे स्तुति एकदम से मेरे सीने से लिपट गई और रुनवासी हो कर बोली; "मुझे बड़ा नहीं होना! मुझे मेरे पपई की प्यारी चाहिए! मैं कभी बड़ी नहीं हूँगी!" स्तुति बार-बार यही बातें दोहराये जा रही थी| मेरी भावुक बिटिया को लग रहा था की वो अपनी उम्र को अपने काबू में कर खुद को बड़ी होने से रोक सकती है|



"बेटा, सब बच्चे एक न एक दिन बड़े हो जाते हैं| अब मुझे देखो, मैं भी कभी आपकी तरह छोटा बच्चा था और आज देखो मैं इतना बड़ा हो गया की आपको गोदी में खिला रहा हूँ|" मैंने स्तुति को प्यार से समझाते हुए कहा| ये मेरी मूर्खता ही थी की मैं एक फूल से नाज़ुक बिटिया को जबरदस्ती जीवन के सबक दिए जा रहा था, जबकि मुझे तो इस समय भवुक हुई मेरी बिटिया को प्यार से बहलाना चाहिए था|

खैर, स्तुति इस समय बहुत भावुक हो गई थी और बार-बार न में अपनी गर्दन हिलाते हुए रट रही थी; "नहीं पपई! नहीं पपई! नहीं पपई!" स्तुति लगभग रोने वाली थी की तभी मुझे अक्ल आई और मैं स्तुति को बहलाने लगा; "अच्छा बेटा, आप बड़े मत होना| हमेशा मेरी गोदी में रहना|" मैंने बस स्तुति को खुश करने के लिए कहा था मगर स्तुति ने इसे सच मान लिया और ख़ुशी से मेरे दोनों गालों पर पप्पी करने लगी|



कुछ देर बाद स्तुति ने ये बात अपनी दादी जी यानी मेरी माँ से कह दी| माँ ने जब ये बात सुनी तो उन्होंने मुझे फौरन आवाज़ दे कर अपने पास बुलाया| "क्यों रे लड़के, ये सब क्या मेरी शूगी को पढ़ाता रहता है?" माँ मुझे डाँटते हुए बोलीं|

"हाँ तो क्या गलत कहा मैंने?! जब मैं छोटा था तब आप मुझे कितना लाड-प्यार करते थे| मुझे गोदी लेते थे, मुझे अपने हाथों से खाना खिलाते थे, मेरे साथ खेलते थे और मुझे रात को कहानी सुनाते थे| लेकिन जब से मैं बड़ा हुआ आपने किया इसमें से कुछ?!" मैंने बड़े प्यार से बात को पलटते हुए माँ से तर्क किया| मेरी बात सुन माँ ज़ोर से हँस पड़ीं और बोलीं; "अरे तब तू छोटा सा था, अब तो तू लम्बाई में मुझसे बड़ा हो गया तो अब मैं तुझे कैसे गोदी लूँ?!"



"गोदी नहीं ले सकते मगर अपने हाथ से खाना तो खिला सकते हो न?! मुझे रात को कहानी तो सुना सकते हो न?!" मैंने पुनः माँ के साथ तर्क किया तो माँ ने हार मानते हुए मेरे आगे हाथ जोड़ दिए!

"दाई, गलत बात! आप पपई को खाना खिलाओ और कहानी भी सुनाया करो...नहीं तो...नहीं तो मैं आपसे गुच्छा हो जाऊँगी!" स्तुति ने अपने गाल फुलाते हुए नाराज़ होने का अभिनय किया तो माँ एकदम से डर गईं और स्तुति से बोलीं; "ठीक है मेरी माँ! तू मुझसे नाराज़ न होना, तू जो कहेगी मैं सब करुँगी!" जब कोई स्तुति की इस प्यारी सी धमकी के कारण हार मान जाता तो स्तुति को बहुत मज़ा आता| स्तुति फौरन अपनी दादी जी के गले लग गई और इनाम के रूप में अपनी दादी जी को दो पप्पी दी!



अपनी दादी जी का लाड-प्यार पा कर स्तुति मेरे पास आ गई और मुझे हुक्म देते हुए बोली; "पपई प्यारी दो!" स्तुति हमेशा मुझसे हक़ के रूप में प्यारी माँगती थी इसलिए मुझे इसकी आदत थी| परन्तु संगीता को हमेशा ही ये बात अजीब लगती थी इसीलिए आज जब स्तुति ने फिर से मुझपर हक़ जमाते हुए प्यारी माँगी तो संगीता स्तुति को टोकते हुए बोली; "ऐ लड़की! तू प्यारी माँग रही है या अपना कर्ज़ा वापस माँग रही है?"

"हो सकता है मानु ने शूगी का पिछले जन्म में प्यार का कोई क़र्ज़ चुकाना हो!" ये शब्द माँ के मुख से स्वतः ही निकले थे परन्तु मेरे दिल को ये बात छू गई थी! स्तुति और मेरा रिश्ता बहुत अनोखा था और ये बात कई बार प्रमाणित हो चुकी थी| बहरहाल, मैं माँ की बात को सोचने में लगा था जबकि माँ, स्तुति और संगीता इस प्यारभरी बात से प्रसन्न हो रहे थे|





बहरहाल, मेरे मन में फिर से नेहा के लिए प्यार पैदा करने के लिए संगीता ने एक रणनीति बनाई थी जो की उसने नेहा को अच्छे से समझा दी थी| वहीं मैं माँ-बेटी की इस रणनीति से अनजान पहले जैसा ही अपने जीवन की समस्याओं को हल करने में लगा था|



रात को खाना खाने के बाद संगीता ने स्तुति को अचानक लाड करना शुरू कर दिया| स्तुति को गोदी में लिए हुए संगीता रसोई में घुस गई और कुछ न कुछ काम दे कर स्तुति को व्यस्त कर दिया| सूखे बर्तनों को उनकी जगह सजा कर रखना, स्लैब साफ़ करना, दाल-सब्जी आदि को फ्रिज में रखने का काम दे कर संगीता ने स्तुति को व्यस्त कर दिया| स्तुति को अभी अपनी मम्मी की मदद करने में बहुत मज़ा आ रहा था इसलिए वो पूरी दयानदारी से काम कर रही थी|

रसोई के सब काम करने से स्तुति जल्दी थक गई और जल्दी ही सो गई| जब स्तुति सो गई तो संगीता उसे गोदी ले कर माँ के पास लिटा आई| मैं समझा की संगीता का मन रोमांस का होगा, जबकि मेरा मन नेहा तथा संगीता के साथ हुई बातों के कारण दुखी था इसलिए मैं आँखें बंद कर सोने का नाटक करने लगा| स्तुति को लिटा कर जब संगीता आई तो उसने मुझे सोता हुआ पाया, वो समझ गई की मेरा मन अभी स्थिर नहीं है इसलिए मेरी बगल में लेटते हुए संगीता बोली; "कम से कम मेरी तरफ मुँह कर के लेट जाओ, आपका मुखड़ा देख कर चैन से सो तो सकूँगी|" संगीता का ये प्यारा सा निवेदन सुन मैं उसकी तरफ करवट ले कर लेट गया|



लगभग आधे घंटे बाद कमरे का दरवाजा खुला तो मुझे लगा की स्तुति होगी, परन्तु ये स्तुति नहीं नेहा थी| "मम्मी, मुझे अकेले सोने में डर लग रहा है, मैं यहाँ सो जाऊँ?" नेहा आज सालों बाद एक छोट बच्चे की तरह बोली| नेहा की बात सुन संगीता पीछे को सरक गई और नेहा आ कर हमारे बीच में लेट गई| मैंने नेहा की बात सुन ली थी अतः मुझे समझते देर न लगी की नेहा जानबूझ कर मेरे नज़दीक आने के लिए ये कह रही है इसलिए मैं बिना कोई प्रतिक्रिया दिए आँख- मूँदें लेटा रहा| बीच में लेटते ही नेहा ने मेरी तरफ करवट ली और जैसे नेहा अपने बचपन में मेरे सीने से लिपट सुरक्षित महसूस करती थी, ठीक उसी तरह नेहा मेरे सीने से लिपट गई| इतने सालों बाद मेरे सीने से लिपट कर नेहा का मासूम दिल खुशियों से भर गया और कुछ पल के लिए नेहा के चेहरे पर सुकून की मुस्कान छा गई|

इधर मेरा मन पहले ही कठोर था ऐसे में नेहा के इस प्यार का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ| मुझे न तो ख़ुशी महसूस हो रहे थी और न ही गुस्सा आ रहा था| अतः कुछ सेकंड बाद मैंने खुद को नेहा की पकड़ से छुड़ाया और दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गया| मेरे इस रूखे व्यवहार के कारण नेहा का नाज़ुक दिल टूट गया और वो अपनी मम्मी से लिपट कर सिसकने लगी| मैंने नेहा की सिसकियाँ सुन ली थीं, ये सिसकियाँ मुझे चुभ रहीं थीं इसलिए मैं उठ कर बच्चों वाले कमरे में आ कर अकेला लेट गया|

मेरे कमरे से चले जाने पर नेहा अपना रोना रोक न पाई और उठ कर बैठ कर रोने लगी| नेहा को यूँ हार मानते देख संगीता ने उसका होंसला बढ़ाने के लिए उसे कुछ समझाया जिससे नेहा को हिम्मत मिली और उसने खुद को सँभाला|



इधर मैं अकेला कमरे में लेटा था परन्तु नेहा के साथ यूँ उखड़ा व्यवहार करने के कारण मेरा मन बेचैन हो रहा था| नींद आँखों से उड़ चुकी थी इसलिए करवट बदलते-बदलते रात के दो बज गए और जब नींद आई तो ऐसी नींद आई की सुबह उठा ही नहीं गया!



अपनी योजना पर काम करते हुए संगीता ने जल्दी से नेहा और बच्चों को स्कूल के लिए तैयार किया| चूँकि मैं अभी उठा नहीं था तो मौके का फायदा उठाते हुए संगीता ने तीनों बच्चों को दबे पॉंव कमरे में भेज दिया| दरअसल स्तुति की आदत थी की वो सुबह उठते ही मेरी पप्पी ले कर अपना दिन शुरू करती थी| संगीता अपनी छोटी बिटिया की इस आदत से परिचित थी इसलिए उसने अपनी योजना इसी के इर्द-गिर्द बनाई थी|

नेहा ने किसी तरह से स्तुति को समझा बुझा कर मेरी पहले पप्पी खुद लेने के लिए मना लिया था| स्तुति को ये खेल लग रहा था इसलिए वो तुरंत मान गई| नेहा ने मेरे गहरी नींद में होने का फायदा उठाते हुए आज सालों बाद मेरी पप्पी ली और मेरे पॉंव छू कर स्कूल के लिए चली गई| मैं भले ही नींद में था परन्तु मुझे एहसास हो गया था की कोई मेरी पप्पी ले रहा है| मुझे लगा की शायद ये स्तुति होगी इसलिए मैं चुप-चाप लेटा रहा| लेकिन नेहा के जाने के बाद जब स्तुति और आयुष ने भी बारी-बारी से मेरी पप्पी ली तो मुझे एहसास हुआ की मेरी पप्पी तीन बार ली गई है! इसका मतलब था की नेहा भी धोके से मेरी पप्पी ले कर गई है, ये ख्याल आते ही मैं उठ बैठा| परन्तु इससे पहले की मैं कुछ कहूँ या पूछूँ, स्तुति ने मुझे जगा हुआ देख कर मेरी गोदी में आने के लिए छलांग लगा दी तथा मैं स्तुति के मोहपाश में फँस सब भूल गया!



रात के समय संगीता ने फिर चाल चली और नेहा को कमरे में सोने के लिए बुला लिया| नेहा मुझसे लिपट कर लेटी थी की तभी मेरे क्रोध ने मुझे नेहा से दूर चले जाने को कहा| अब यदि मैं उठ कर चला जाता तो नेहा का दिल टूट जाता इसलिए मैंने केवल दूसरी तरफ करवट ले ली| इस बार नेहा ने मेरे दूसरी तरफ करवट लेने का बुरा नहीं लगाया और वो मेरी कमर पर हाथ रख कर सो गई|

अगली सुबह नेहा मेरी पप्पी ले कर स्कूल जाने वाली थी मगर मैं आज जल्दी उठ गया जिस कारण नेहा का ये प्लान फ़ैल हो गया! बच्चों के स्कूल जाने के बाद मैं भी काम पर निकल गया और सीधा रात के खाने पर घर पहुँचा| आज रात का खाना नेहा ने परोसा था और मुझे ये देख कर थोड़ा अस्चर्य हो रहा था| मैंने जब संगीता की तरफ देखा तो पाया की उसके चेहरे पर वही अर्थपूर्ण मुस्कान तैर रही है जो उस दिन स्टोर में तैर रही थी! मैं भोयें सिकोड़ कर उसे देखने लगा और उसकी इस मुस्कान का कारण समझने लगा| परन्तु संगीता की ये अर्थपूर्ण मुस्कान हर पल बढ़ती जा रही थी, ऐसा लगता था मानो संगीता मुझे चिढ़ा रही हो की बूझ के देखो मेरी इस मुस्कान का कारण?!



खाना परोसा जा चूका था और जैसे ही मैंने पहला निवाला खाया मुझे स्वाद में फर्क महसूस हुआ! मुझे माँ के हाथ के खाने की पहचान थी, संगीता के हाथ के खाने की पहचान थी परन्तु इस खाने का स्वाद अनजाना था| मैं इस स्वाद को पहचानने में लगा था की तभी संगीता बीच में बोल पड़ी;

संगीता: आपको पता है आज का खाना किसने बनाया है?

संगीता ने मुझे छेड़ने के मकसद से ये सवाल पुछा था| अब मैं तो पहले ही इस सवाल का जवाब खोज रहा था तो मैं क्या जवाब देता?! उधर स्तुति जो की हमेशा से अधिक उतावली रही है वो एकदम से बीच में बोल पड़ी;

स्तुति: पपई, मैंने बनाया!

स्तुति ने बड़े गर्व से खाना बनाने का सारा श्रेय खुद ले लिया! स्तुति के इस तरह खुद सारा श्रेय लेने पर मैं, आयुष और माँ खूब ज़ोर से हँस पड़े| वहीं संगीता को स्तुति पर प्यारभरा गुस्सा आ गया था इसलिए वो स्तुति को प्यार से डाँटते हुए बोली;

संगीता: चुप कर! एक गिलास पानी दे कर सारा खाना बनाने का श्रेय खुद को दे रही है! ये सारा खाना नेहा ने बनाया है और वो भी माँ से पूछ-पूछ के|

नेहा ने आज पहलीबार अपने आप रोटी, सब्जी तथा दाल बनाई थी और संगीता को एक माँ होते हुए आज अपनी बेटी पर बहुत गर्व हो रहा था| जैसे ही संगीता ने खाना बनाने का सारा श्रेय नेहा को दिया वैसे ही नेहा अपनी छोटी बहन के साथ अपनी ख़ुशी बाँटते हुए बोली;

नेहा: वैसे मम्मी, अगर स्तुति मुझे पानी ला कर नहीं देती तो मैं दाल कैसे बनाती इसलिए खाना बनाने का श्रेय हम दोनों बहनों को जाता है|

अपनी दीदी की बात सुन स्तुति फौरन नेहा के गले लग गई और मुझसे बोली;

स्तुति: पपई, दिद्दा को प्यारी करो!

स्तुति जानती थी की उसकी दीदी को इस समय बस मेरे प्यार की जर्रूरत है इसलिए स्तुति ने मुझे नेहा को प्यारी करने का हुक्म दिया|



जब क्रोध सर पर चढ़ा हो तो कहाँ से प्यार निकलता इसलिए मैं खाने पर से उठ गया| मुझे यूँ उठ कर जाते हुए देख संगीता ने मुझे रोकना चाहा मगर मैं उसे नज़रअंदाज़ कर अपने कमरे में आया और हाथ-मुँह धो कर अपने बटुए से 501/- रुपये ले कर वापस माँ के पास आया| मुझे दुबारा कमरे में देख और मेरे हाथ में पैसे देख संगीता की जान में जान आई वरना उसे लग रहा था की मैं गुस्से में खाने से उठ चूका हूँ|

मैंने पैसे माँ की तरफ बढाए तो माँ ने हाथ पोंछ के पैसे लिए और नेहा को अपने पास बुला कर उसे शगुन के रूप में पैसे देते हुए बोलीं;

माँ: आज मेरी बेटी ने पहलीबार खाना बनाया और बड़ा ही स्वाद खाना बनाया इसलिए मेरी तरफ से ये शगुन| इसे खर्च मत करना और हमेशा अपने पास रखना|

माँ ने नेहा को आशीर्वाद सहित पैसे दिए| नेहा ने पैसे अपने मस्तक से लगा कर अपने पास रख लिए और माँ के पॉंव छू कर आशीर्वाद लिया| फिर नेहा मेरे पास आई और मेरे भी पॉंव छुए| मैं उस समय को प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता था परन्तु स्वतः ही मेरा हाथ आशीर्वाद देने के लिए नेहा के सर पर आ गया| भले ही मेरे मुख से बोल नहीं फूटे परन्तु मेरा हाथ सर पर रखने भर से नेहा का दिल ख़ुशी से भर उठा| नेहा एकदम से मेरे गले लग गई और स्तुति की तरह ख़ुशी के मारे कूदने लगी!



अपनी बेटी को इस तरह ख़ुशी से कूदता हुआ देख के माँ का दिल बहुत प्रसन्न था| वहीं मैंने जब संगीता को यूँ प्रसन्न देखा तो मैं समझ गया की ये सब करा-धरा उसी का है, वही है जो नेहा को यूँ मेरे नज़दीक करने के लिए नई-नई चालें चल रही है! मेरे मन में बैठे क्रोध ने मुझे फौरन संगीता की चाल से सतर्क करते हुए नेहा के मोह से कैसे बचना है इसका उपाए सीखा दिया|



उधर अपनी दीदी को यूँ पैसे ले कर ख़ुशी से कूदते हुए देख स्तुति को लालच आ रहा था; “दाई, कल मैं खाना बनाऊँगी और आप है न मुझे ढेर सारी रसमलाई शगुन के रूप में खाने को देना|” रसमलाई खाने के नाम से ही स्तुति के मुँह में पानी आ गया था इसलिए वो अपने होठों पर जीभ फिराते हुए बोली| स्तुति का ये बालपन देख सभी को हँसी आ गई तथा स्तुति भी खी-खी कर हँसने लगी!



खैर, मेरी छोटी सी बिटिया को ये महसूस हो गया था की मैं अब नेहा को पहले जैसा प्यार नहीं करता तभी तो स्तुति के हुक्म देने पर भी मैंने नेहा को प्यारी नहीं दी| अतः स्तुति ने ही अपनी दिद्दा को मेरी प्यारी दिलाने की जिम्मेदारी ली और एक नायाब तरीका खोज निकाला|



खाना खाने के बाद मैं और माँ बैठक में बैठ कर बात कर रहे थे जब स्तुति फुदकती हुई मेरे पास आई और मेरी गोदी में चढ़ कर बोली; "पपई, मुझे थर्टी (30) प्यारी दो!" आज तक जब भी स्तुति मुझसे प्यारी मांगती थी तो उसकी कोई निश्चित संख्या नहीं होती थी इसलिए जब स्तुति ने कहा की उसे तीस प्यारी चाहिए तो मैं सोच में पड़ गया की आखिर इस सँख्या के पीछे क्या राज़ है? मुझे सोचते हुए देख स्तुति फिर से बोली की उसे तीस प्यारी चाहिए| उस समय मुझे ये स्तुति का कोई खेल लगा इसलिए अपनी बिटिया की बात मानते हुए मैंने गिन कर स्तुति को तीस प्यारी दी|

स्तुति को प्यारी दे मैं फ़ोन पर बात करने छत पर आया| मेरे पीछे नेहा बैठक में आई तो स्तुति उसकी गोदी में बैठ गई और मेरे द्वारा दी गई तीस प्यारी में से 10 प्यारी अपनी दिद्दा को दे दी! फिर स्तुति अपने बड़े भैया की गोदी में बैठी और आयुष को बाकी बची 20 प्यारी में से 10 प्यारी दे दी| माँ चुपचाप बैठी हुईं मेरे द्वारा दी गई 30 प्यारियों का बँटवारा देखते हुए मंद-मंद मुस्कुरा रही थीं|



उस दिन से जब भी मैं स्तुति को खाली बैठा दिखता तो वो मेरी गोदी में चढ़ जाती और मुझसे अलग-अलग अंकों की प्यारी माँगती| कभी कहती; "पपई, मुझे वन हंड्रेड (एक सौ) प्यारी दो!" तो कभी कहती मुझे सेवेंटी (सत्तर) प्यारी दो! मैं स्तुति की इस अंकों वाले प्यारी को समझ नहीं पाता और इसे स्तुति का बचपना समझ गौर न करता|

परन्तु एक दिन मैंने गौर किया और पाया की मुझसे सौ प्यारी ले कर स्तुति सीधा अपनी दिद्दा के पास पहुँची और नेहा की गोदी में बैठ कर उसके दोनों गालों पर गिनती गिनते हुए प्यारी करने लगी| "दिद्दा, ये पपई की फिफ्टी (पचास) प्यारी है! बाकी की फिफ्टी प्यारी मेरी!" स्तुति अपने बालपन में बोली| अपनी छोटी बहन का ये प्यार देख नेहा ने स्तुति के मस्तक को चूम लिया और उसे धन्यवाद देते हुए बोली; "पापा जी की प्यारी मुझ तक पहुँचाने के लिए थैंक यू!" मेरे इस उखड़े व्यवहार के कारण दोनों बहने बहुत नज़दीक आ चुकी थीं|



मैं कमरे के बाहर खड़ा ये दृश्य देख रहा था की तभी पीछे से माँ का हाथ मेरे कँधे पर पड़ा| माँ ने भी कमरे के भीतर का दृश्य देख लिया था इसलिए वो मुस्कुराते हुए बोलीं; "तुझे पता है, तेरी लाड़ली बिटिया बनिये की तरह अपनी ही बहन के साथ तेरी प्यारी का सौदा करती है! तुझसे जितनी प्यारी लेती है उसका आधा अपनी दिद्दा को देती है और बाकी का कमीशन समझ वो खुद रख लेती है!" माँ मज़ाक करते हुए बोलीं तो मुझे भी हँसी आ गई|





खैर, मुझे पता था की आज रात फिर संगीता अपनी चाल चलेगी और नेहा को कमरे में सोने के लिए बुला लेगी इसलिए मैं जानबूझ कर कंप्यूटर पर काम करने के बहाने से जागता रहा| संगीता ने कई बार मुझे सोने को कहा मगर मैं जर्रूरी काम का बहाना कर जागता रहा| संगीता को समझते देर न लगी की मैं उसकी इस चाल के बारे में जान गया हूँ इसलिए वो खामोश हो कर लेटी रही|

अब जैसा की माँ-बेटी के बीच पहले से तय था, नेहा रात को साढ़े दस बजे कमरे में आई| नेहा को उम्मीद थी की मैं सो रहा हूँगा और वो इसका फायदा उठा कर मुझसे लिपट कर सो जाएगी मगर मैं तो जाग रहा था! मुझे जगा हुआ देख नेहा अपनी मम्मी को देखने लगी, उस पल दोनों माँ-बेटी के बीच नजाने क्या ख़ुफ़िया बात हुई की नेहा अपनी मम्मी की बात समझते हुए बिस्तर के बीच में लेट गई|



इधर मैं उम्मीद कर रहा था की नेहा मुझे जगा हुआ देख कर वापस चली जाएगी मगर यहाँ तो सब उल्टा ही हो गया! साफ़ था की मैं तब तक तो नहीं सो सकता था जब तक नेहा जाग रही है इसलिए मैं अपने काम में लगा रहा| जब रात के 12 बज गए और मैं नहीं लेटा तो नेहा समझ गई की मैं उसके कारण नहीं लेट रहा इसलिए नेहा बिना कुछ कहे उठ कर अपने कमरे में चली गई| नेहा जब जा रही थी तो उस समय मुझे कुछ महसूस हुआ, वो क्या था ये मुझे समझ नहीं आया|

नेहा के जाने के 15 मिनट बाद में लेटा तो संगीता मुझे ताना मारते हुए बोली; "ज़िद्दी बहुत हो आप!" इतना कह संगीता गुस्से में दूसरी तरफ करवट ले कर सो गई| संगीता के इस ताने का मतलब था की मैंने जानबूझ कर जागने की अपनी ज़िद्द दिखाई जिस कारण नेहा को ही उठ कर जाना पड़े|



अगली सुबह मुझे आगरा निकलना था इसलिए मैं जल्दी तैयार हो कर बच्चों के जागने से पहले ही निकल गया| मैं तो आगरा के लिए निकल गया मगर मेरे पीछे नेहा के स्कूल में काण्ड हो गया!

दरअसल, पिछले दो दिन से नेहा की दोस्त पिंकी स्कूल नहीं आई थी इसलिए दोनों का आमना-सामना नहीं हुआ था| परन्तु आज पिंकी स्कूल आई थी और आज दोनों के बीच लड़ाई होनी तय थी|



लंच टाइम में नेहा अपनी दोस्त रेखा के साथ कैंटीन से आ रही थी, जब पिंकी ने दोनों का रास्ता रोक लिया| "आखिर आज तू स्कूल आ ही गई, मुझे तो लगा था की तू स्कूल ही बदल लेगी!" पिंकी गंदी सी हँसी हँसते हुए नेहा को ताना मरते हुए बोली|

नेहा को डर था की कहीं पिंकी अरमान के घर हुए काण्ड का ज़िक्र सबके सामने न कर दे इसलिए नेहा सर झुकाये, चुपचाप निकलने लगी| परन्तु पिंकी ने फिर से उसका रास्ता रोक लिया और बोली; "बाप में तो गुंडे वाले तेवर हैं मगर बेटी डरपोक निकली?!" पिंकी नेहा का मज़ाक उड़ाते हुए बोली|



जैसे ही पिंकी ने मेरे लिए ‘गुंडा' शब्द इस्तेमाल किया, नेहा के शरीर में आग लग गई और उसने खींच कर एक थप्पड़ पिंकी के मार दिया और उसकी कमीज़ का कॉलर पकड़ कर उसे दिवार से मारते हुए बोली; "खबरदार जो मेरे पापा जी के बारे में कुछ कहा तो, मुँह तोड़ दूँगी तेरा!" नेहा के अचानक हाथ उठाने से पिंकी को गुस्सा आ गया और उसने भी नेहा की कमीज का कॉलर पकड़ लिया|

फिर शुरू हुई दोनों के बीच गुथ्थ्म-गुथ्था जिसमें नेहा ही पिंकी पर भारी पड़ी| थप्पड़ मार-मार के, चोटी खींच और नाखून से नोच-नोच कर नेहा ने पिंकी की हालत खराब कर दी! जवाबी हमले में पिंकी ने भी अपने हाथ-पॉंव चलाये मगर नेहा को उतनी चोट नहीं आई जितनी पिंकी को आई थी|



दो लड़कियों की लड़ाई देखने लगभग सारा स्कूल इकठ्ठा हो चूका था| रेखा ने एक-दो बार बीच में पड़ कर नेहा को रोकना चाहा मगर नेहा उसके काबू में नहीं आई और पिंकी की दे दनादन पिटाई करती रही! आखिर बच्चों का जमावड़ा देख टीचर आईं और दोनों लड़कियों को अलग कर सीधा प्रिंसिपल मैडम के पास ले गईं| प्रिंसिपल मैडम ने इस लड़ाई का कारण पुछा तो नेहा बोली; "इसने मेरे पापा जी के बारे में गंदा बोला इसलिए मैंने इसे मारा|" नेहा ने जब पिंकी पर आरोप लगाया तो वो अपनी बात से साफ़ मुकर गई और नेहा को झूठी बोल दिया| नेहा को खुद को सच्चा साबित करना था इसलिए उसने रेखा को बुलाने के लिए कहा| जब रेखा से सारी बात पूछी गई तो उसने पिंकी द्वारा मारा हुआ ताना और मेरे खिलाफ की गई बात सच-सच बता दी| सारा सच जानकर फौरन नेहा और पिंकी के परिवारजनों को फ़ोन किया गया|



मैं तब आगरा में एक पार्टी के साथ बैठा माल देख रहा था जब मेरे पास नेहा के स्कूल से फ़ोन आया| प्रिंसिपल मैडम ने मुझे बस इतना बताया की नेहा ने किसी लड़की को मारा है इसलिए मुझे फौरन स्कूल आना होगा| अब मैं उस वक़्त दिल्ली में ही नहीं था तो मैं कैसे आता इसलिए मैंने प्रिंसिपल मैडम को बताया की चूँकि मैं शहर में नहीं हूँ इसलिए मेरी जगह नेहा की मम्मी आ जाएंगी|

मैंने संगीता को फ़ोन कर सारी बात बताई और उसे फौरन स्कूल जाने को कहा| संगीता फौरन नेहा के स्कूल के लिए निकली और वहाँ उसे सारी बात प्रिंसिपल मैडम से पता चली| सजा के रूप में प्रिंसिपल मैडम ने संगीता से एक माफ़ी पत्र माँगा जिसमें ये लिखना था की आगे से नेहा इस प्रकार मार-पिटाई नहीं करेगी| वहीं पिंकी को सजा के रूप में 1 दिन के लिए ससपेंड कर दिया गया|



इधर आगरा में नेहा के स्कूल से फ़ोन आने के कारण मैं बहुत चिंता में था| 'अगर छोटी-मोटी मार-पीट होती तो नेहा की स्कूल प्रिंसिपल मुझे फ़ोन थोड़े ही करतीं!' मन में आये इस ख्याल के कारण मैं बेचैन हो रहा था| परन्तु मुझे अभी थोड़ा इंतज़ार करना था ताकि संगीता स्कूल जा कर सारी बात जान ले|

करीब एक घंटे बाद मैंने संगीता को फ़ोन किया तो उसने मुझे सारी बात की जानकारी दी| नेहा ने मेरे कारण मार-पीट की ये जानकार मेरे दिल में फिर एक बार एक अजीब एहसास पैदा हुआ, परन्तु मैं इस एहसास को समझ नहीं पाया|



आगरा काम अधूरा छोड़ मैं बस से दिल्ली आने के लिए निकल पड़ा| मुझे घर पहुँचते-पहुँचते रात के 8 बज गए थे और मेरे आने तक माँ को स्कूल में हुई इस मार-पीट के बारे में पता चल गया था| माँ के अनुसार नेहा के इस गुस्से का स्त्रोत्र मैं था इसलिए उन्होंने नेहा को डाँटने के बजाए प्यार से समझाया था की वो अपने गुस्से पर काबू रखा करे और ऐसी बातें सीधा घर आ कर उन्हें बताया करे, वे स्वयं सबसे निपट लेंगी|

जैसे ही मैं घर पहुँचा माँ ने मुझे नेहा द्वारा की गई हिंसा का आरोपी बनाते हुए खूब डाँटा! हलांकि इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी क्योंकि न तो मैंने आजतक अपने तीनों बच्चों के सामने कोई मर-पीट की थी और न ही कभी उन्हें मार-पीट करने की शिक्षा दी थी| परन्तु फिर भी मैं सर झुकाये माँ की सारी डाँट सुनता रहा| अगर अपने बचाव में कुछ कहता, तो माँ और डाँटती इसलिए चुप रहने में ही भलाई थी!



जब माँ का डाँटना हो गया तो उन्होंने मुझे नहाने जाने को कहा| पहले डाँटो फिर नहाने भेज दो...माँ का भी हिसाब-किताब सही था! मैं जब अपने कमरे में आया तो देखा की माँ-बेटा-बेटी (संगीता-स्तुति और आयुष)...तीनों नेहा को घेर कर बैठे हैं| तीनों की नज़र में नेहा ने जो किया वो सही था इसलिए तीनों नेहा की होंसला अफ़ज़ाई कर रहे थे|

जब मैं कमरे में दाखिल हुआ तो तीनों मुझसे उम्मीद कर रहे थे की चूँकि नेहा ने मेरे कारण लड़ाई-झगड़ा किया था ऐसे में मुझे ही उसे थोड़ा लाड-प्यार करना चाहिए| लेकिन मैं अपने गुस्से के कारण पहले ही नेहा से उखड़ा हुआ था इसलिए मैं किसी से बिना कुछ कहे बाथरूम में घुस गया और नहा-धो कर निकला| संगीता चाहती थी की मैं नेहा के किये इस काण्ड के लिए उसकी होंसला अफ़ज़ाई करूँ, उसे शाबाशी दूँ मगर जब मैं बिना कुछ कहे बाथरूम में नहाने लगा तो संगीता मुझसे बहुत नाराज़ हुई और उसने गुस्से में आ कर मुझसे बात करनी ही बंद कर दी|



जब मैं नहा कर निकला तबतक संगीता खाना गर्म करने जा चुकी थी, कमरे में बस तीनों बच्चे बैठे थे| मेरे बाहर आते ही स्तुति मेरी गोदी में चढ़ गई और मेरी ठुड्डी पकड़ कर मुझसे बोली; "पपई, दिद्दा ने उस लड़की को पीट कर अच्छा किया न?" स्तुति के इस सवाल का जवाब मुझे वही देना था जो माँ ने नेहा को समझाया था वरना बच्चे अपनी दादी जी के पढ़ाये अहिंसा के पाठ को गलत समझते!

"बेटा, स्कूल में जो बच्च्चे आपके साथ पढ़ते हैं वो हमेशा आपको चिढ़ाने के लिए कुछ न कुछ ऐसा बोलेंगे की आपको गुस्सा आएगा मगर कभी किसी के बहकाने या गुस्सा दिलाने पर यूँ लड़ाई-झगड़ा करना अच्छी बात नहीं होती| इस तरह लड़ाई-झगड़ा करने से स्कूल में आपकी छबि खराब होती है इसलिए जब भी गुस्सा आये तो अपना गुस्सा काबू करना सीखो| घर आ कर अपने मम्मी-पापा या दादी जी से बात करो ताकि हम सब मिल कर आपको सही रास्ता दिखायें|” मैंने स्तुति के सवाल का जवाब एक सीख के रूप में दिया था| मेरी दी हुई इस सीख को आयुष ने अच्छे से गाँठ बाँध लिया था परन्तु स्तुति मेरी इस सीख से सहमत नहीं थी! आज पहलीबार स्तुति मेरी बात का विरोध करते हुए बोली; "पपई, कोई मुझे कुछ भी कहे मैं चुप रहूँगी मगर किसी ने आपके बारे में कुछ बोला न तो मैं उसको बहुत मारूँगी!" स्तुति अपना गुस्सा दिखाते हुए बोली| मैं स्तुति के इससे गुस्सैल रूप को देख कर अचम्भित था, मैंने कभी नहीं सोचा था की मेरी चुलबुली बिटिया इतनी गुस्से वाली है!



खैर, मैं स्तुति को कुछ समझाता उससे पहले ही पीछे से माँ आ गईं| माँ ने मेरी दी जाने वाली सीख तथा स्तुति के बगावती तेवर देख-सुन लिए थे| "ओ झाँसी की रानी! इधर आ मेरे पास, तुझे मार-पीट सिखाऊँ!" माँ ने प्यार से डाँटते हुए स्तुति को अपने पास बुलाया| माँ ने स्तुति को गोदी लिए हुए प्यार से अहिंसा का पाठ पढ़ाया| स्तुति अपनी दादी जी का मान करती थी इसलिए उसने चुपचाप अपनी दादी जी की बात मान ली और कभी लड़ाई-झगड़ा नहीं करने के लिए राज़ी हो गई! परन्तु जैसा की होता है, अपनी मम्मी की तरह स्तुति भी अपनी बात पर अटल न रह पाई!



खाना खाने के बाद, स्तुति को पढ़ाई में लगा मैं कंप्यूटर पर अपना काम कर रहा था जब नेहा सर झुकाये मेरे पास आई और हाथ जोड़कर मुझसे माफ़ी माँगते हुए बोली; "पापा जी, मुझे माफ़ कर दीजिये! मेरे कारण दादी जी ने आपको इतना डाँटा! मैं आगे से ऐसा कोई काम नहीं करुँगी की दादी जी आपको डांटें|" मैंने नेहा की बात को सुन कर भी अनसुना कर दिया और अपने काम में लगा रहा| ठीक तभी संगीता कमरे में आई, उसने नेहा के माफ़ी माँगने और मेरे नेहा को नजरअंदाज करना देख लिया था| संगीता को मेरे इस रवैये पर बहुत गुस्सा आया इसलिए वो नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए बोली; "चल बेटा मेरे साथ!" संगीता ने नेहा को खूब लाड किया परन्तु नेहा को चाहिए था बस मेरा प्यार| संगीता नेहा को मेरा प्यार तो दे नहीं सकती थी, ऊपर से मेरे दिल की कड़वाहट को देख संगीता और मेरे रिश्ते में भी कड़वाहट घुलने लगी थी! हम दोनों का ये प्यारभरा रिश्ता बोल-चाल बंद होने के कारण अब खींचने लगा था!



कुछ दिन बाद मेरी छोटी बिटिया स्तुति का गुस्सा फूटा और ऐसा फूटा की उसने अपनी ही क्लास के लड़के को दौड़ा-दौड़ा कर मारा! दरअसल हुआ कुछ यूँ की स्तुति की क्लास का एक शरारती लड़का स्तुति को बहुत तंग कर रहा था| जब स्तुति क्लास में पढ़ रही होती तो वो स्तुति के हाथ पर चुटी (चिमटी) काटता| जब लंच टाइम होता तो वो स्तुति का टिफ़िन ले कर भाग जाता|

स्तुति ने उसे पहले तो मौखिक चेतावनी दी की वो उसे तंग न करे| लेकिन उस लड़के ने स्तुति की बात को तवज्जो नहीं दी, नतीजन स्तुति ने उसके बाल पकड़ उसकी गर्दन गोल-गोल घुमा कर उसे इतना मारा की वो बेचारा रोने लगा! शुक्र है ये 'वारदात' लंच टाइम में हुई और उस लड़के ने टीचर से इसकी शिकायत नहीं की वरना नेहा की ही तरह हमें स्तुति के स्कूल से फ़ोन आना तय था| उस दिन से क्लास के सभी बच्चे स्तुति के गुस्से से डरने लगे थे, कोई भी भूल से स्तुति को गुस्सा नहीं दिलाता था!



स्तुति को नहीं पता था की आयुष ने ये वारदात देख ली है| आयुष ने घर आ कर मुझे इस मार-पीट के बारे में बताया तो मैंने मन ही मन कल्पना की कि कैसे स्तुति ने उस लड़के को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा होगा, ये सोच कर ही मुझे बहुत हँसी आई! मैंने स्तुति को अपने पास बुलाया और उसके हाथ चूमते हुए बोला; "बेटा इतना गुस्सा नहीं करते!" स्तुति को उम्मीद थी की मैं ये बात सुन कर उसे डाटूँगा परन्तु जब मैंने स्तुति से प्यार से बात की तो स्तुति एकदम से बोली; "पपई, मैंने उसे कहा था की मुझे तंग मत कर वरना बहुत मारूँगी मगर वो बाज़ नहीं आया इसलिए मैंने उसे कूट-पीट कर सीधा कर दिया!" स्तुति अपना प्यारा सा गुस्सा दिखाते हुए बोली| स्तुति का गुस्सा शांत करने के लिए मैं उसे लाड-प्यार करने लगा|



इतने में संगीता कमरे में आ गई, उसने स्तुति की सारी बात सुन ली थी इसलिए उसे गुस्सा आया हुआ था; "तेरे बहुत पर निकल आये हैं! रुक तुझे मैं सीधा करती हूँ!" ये कहते हुए संगीता ने स्तुति को मारने के लिए अपना हाथ हवा में उठाया| अपनी मम्मी का गुस्सा देख स्तुति डर गई और मेरी गोदी में चढ़ छुपने की कोशिश करने लगी| संगीता में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो मेरी गोदी में चढ़ी स्तुति को कुछ कह या कर सके इसलिए वो भुनभुनाती हुई चली गई| इधर मैंने स्तुति को फिर से प्यार से समझाया और उसे मार-पीट न करने की सीख दी|





बहरहाल, दिन बीत रहे थे पर नेहा और मेरे बीच बनी दूरी वैसी की वैसी थी| नेहा मेरे नज़दीक आने की बहुत कोशिश करती मगर मैं उससे दूर ही रहता| मैं नेहा को अपने जीवन से निकाल चूका था और उसे फिर से अपने जीवन में आने देना नहीं चाहता था| मुझसे...एक पिता से पुनः प्यार पाने की लालसा नेहा के भीतर अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी थी! फिर एक समय आया जब नेहा ने हार मान ली और वो इस कदर टूट गई थी की किसी के लिए भी उसे सँभालना नामुमकिन था|


जारी रहेगा भाग - 17 (2) में...
Neha or bhabi ji koshish per koshish kiye jaa rehe h lekin Manu bhai ade huwe h na hilne k liye
Stuti n bhi apni taraf se koshish ki lekin woh bekar gayi h
Ab dekhte h antim bhaag m kia hota h
 
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