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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Payal22

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Reality is always stranger than fiction.

Aur ye story fiction samajh ke hi padhiye.

But I agree.

मानू भाई को एक नया थ्रेड बना कर बिग रिवील करना था। इसे पढ़ कर अब पिछले छूटे हुए अपडेट पढ़ने का मन ही नही कर रहा।

मैने तो बीच बीच के अध्याय स्किप कर दिये....संगीता जी ने जहा जहा मानूजी के लिये प्यार जाहीर किया हे अब वह सब किसी झूठ की तरह लगता हे....

पहले जीन अध्याय को पढ कर अच्छा लगता था...अब उन अध्याय की तरफ देखने का भी दिल नाही करता...सब झूठ फिक्शन हे....

वैसे कुछ पेजेस देखे हे मेने हर बार अपडेट आणे पर संगीता जी रिव्ह्यू मांगती दिखी हे....नये अपडेट का समय बताते नजर आई हे....पर इस अपडेट के बाद से कहा लुप्त हो गयी हे वो??...दिखाई नही दे रही....

kamdev99008 जी आपकी बहन कहा हे??

लगता हे हमसे नाराज हे....रिव्ह्यू शायद पसंद नाही आया उन्हे हमारा....
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मैने तो बीच बीच के अध्याय स्किप कर दिये....संगीता जी ने जहा जहा मानूजी के लिये प्यार जाहीर किया हे अब वह सब किसी झूठ की तरह लगता हे....

पहले जीन अध्याय को पढ कर अच्छा लगता था...अब उन अध्याय की तरफ देखने का भी दिल नाही करता...सब झूठ फिक्शन हे....

वैसे कुछ पेजेस देखे हे मेने हर बार अपडेट आणे पर संगीता जी रिव्ह्यू मांगती दिखी हे....नये अपडेट का समय बताते नजर आई हे....पर इस अपडेट के बाद से कहा लुप्त हो गयी हे वो??...दिखाई नही दे रही....

kamdev99008 जी आपकी बहन कहा हे??

लगता हे हमसे नाराज हे....रिव्ह्यू शायद पसंद नाही आया उन्हे हमारा....
हैं वो यहीं पर।

मानू भाई ने बहुत ही ड्रामेटिक पॉज लिया है इस रिवील में। बस लोगों की बेचैनी देख रहे हैं दोनो
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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मैने तो बीच बीच के अध्याय स्किप कर दिये....संगीता जी ने जहा जहा मानूजी के लिये प्यार जाहीर किया हे अब वह सब किसी झूठ की तरह लगता हे....

पहले जीन अध्याय को पढ कर अच्छा लगता था...अब उन अध्याय की तरफ देखने का भी दिल नाही करता...सब झूठ फिक्शन हे....

वैसे कुछ पेजेस देखे हे मेने हर बार अपडेट आणे पर संगीता जी रिव्ह्यू मांगती दिखी हे....नये अपडेट का समय बताते नजर आई हे....पर इस अपडेट के बाद से कहा लुप्त हो गयी हे वो??...दिखाई नही दे रही....

kamdev99008 जी आपकी बहन कहा हे??

लगता हे हमसे नाराज हे....रिव्ह्यू शायद पसंद नाही आया उन्हे हमारा....

हैं वो यहीं पर।

मानू भाई ने बहुत ही ड्रामेटिक पॉज लिया है इस रिवील में। बस लोगों की बेचैनी देख रहे हैं दोनो
पिछली फोरम xossip से ही मैंने मानु और संगीता को मोरल सपोर्ट दिया... लेकिन फैसला उन दोनों को करना है अपनी जिंदगी का

बबूल के पेड़ बोकर आम तोड़ने के सपने भी नहीं आते
सच में खा पाना तो दूर की बात है.....
 

king cobra

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Meko to kewal Manu bhai ka pyaar hi pyaar lagta hai ab chahe isko meri sonch kah leo chahe sachchai lekin unka dard meko mera dard lage hain inna mai story se jud gaya hun :cry2:
 

king cobra

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पिछली फोरम xossip से ही मैंने मानु और संगीता को मोरल सपोर्ट दिया... लेकिन फैसला उन दोनों को करना है अपनी जिंदगी का

बबूल के पेड़ बोकर आम तोड़ने के सपने भी नहीं आते
सच में खा पाना तो दूर की बात है.....
Are dil apna preet parai ab bole bhi to kya bole kammo hum na yahin sonchte hain ki kisi ki biwi kisi ko bahut maarti thi na tab bhi wo usse pyaar karta tha bolta tha ki hai tab maar bhi rahi hai na hoti to kaun marta.kahne ka matalab jo hai wo ye hai ki dil ki baten na wo dimaag se hatkar hoti aur dil hamesha dimaag ko thenga dikhata hai ab kyuki hum second party hain to hamara dimaag chal raha bahut tez magar first party hote to sayad wahi haal hota wo log bolte mai hota te ye karta wo karta sasur karne ka time aata sab gyan dhara rah jata hai :D: last ma kahunga sab aap jaise pahelwaan na hote kuch mamuli insaan bhi hote :D:
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अगली सुबह मैं घर पहुँचा और नहा-धो कर काम का बहाना कर घर से निकल गया| करीब 11 बजे भाईसाहब का फ़ोन आया और वो नेहा के कहे उन कटु शब्दों के लिए शर्मिंदा होने लगे|

दरअसल जब हम बाप-बेटी के बीच ये 'वार्तालाप' हुई तब वो गॉंव में अपनी माँ के पास थे| मेरे घर से निकलने के बाद भाभी जी ने उन्हें सब बताया, जो बात भाभी जी ने नहीं बताई वो थी मेरे और संगीता के रिश्ते की बात!



खैर, नेहा ने जो कहा वो उसके विचार थे, उसमें भाईसाहब या किसी की भी कोई गलती नहीं थी इसलिए मैंने भाईसाहब को शर्मिंदा नहीं किया| हाँ, मैंने उनसे इतना अवश्य कह दिया था की इस बात का पता मेरी माँ को नहीं चलना चाहिए क्योंकि मेरी माँ का दिल बहुत दुखता और गुस्से में वो नेहा से सारे रिश्ते-नाते तोड़ लेतीं|



उधर भाभी जी ने संगीता को फ़ोन कर रात हुए इस काण्ड की खबर दे दी| चूँकि भाभी जी ने नेहा के मुँह से मेरे और संगीता के प्यार के बारे में सुन लिया था इसलिए उन्होंने ये सवाल संगीता से पुछा| संगीता के लिए झूठ बोलना मुश्किल था इसलिए उसने भाभी जी को सारा सच बता दिया तथा उन्हें अपनी क़सम दे कर ये बात छुपाने को कहा|

संगीता की सारी बात सुन भाभी जी ने वही कहा जो एक समझदार व्यक्ति कहता| भाभी जी उसे समझाने लगीं की जो हुआ सो हुआ पर अब संगीता को अपनी गृहस्ती सँभालनी चाहिए| परन्तु प्रेम में अंधी हुई संगीता के पल्ले कुछ नहीं पड़ा|



भाभी जी से बात कर संगीता ने नेहा से बात की तथा उसे ढेर सारी गालियाँ देने लगी की उसने मेरा दिल दुखाया तो दुखाया कैसे?! जब संगीता नेहा को डाँट रही थी तब आयुष ने सारी बात सुन ली थी| आयुष पहले ही मुझसे बहुत प्यार करता था, जब उसे पता चला की उसकी दीदी ने मुझे इतनी बड़ी बात बोली है तो उसे भी अपनी दीदी के ऊपर बहुत गुस्सा आया|



संगीता जानती थी की मैं बातों को दिल से लगा लेता हूँ और अपने ग़म के तले दबकर शराब पीने लगता हूँ| इस समय संगीता को मेरी बहुत चिंता हो रही थी इसलिए उसने हाल-चाल लेने के लिए मुझे फ़ोन खनका दिया|

इधर मैं अपनी बेटी के कहे शब्दों के कारण फिर से डिप्रेशन की ओर बढ़ रहा था| मुझे अब किसी पर भरोसा नहीं रह गया था, मुझे लगता की मेरी ज़िन्दगी में हर इंसान बस अपने फायदे के लिए आता है और मुझे अब किसी भी स्वार्थी इंसान की जर्रूरत नहीं थी| मैंने खुद को फिर से आइसोलेट कर लिया और संगीता का नंबर ही ब्लॉक कर दिया|



रात को जब मैं घर लौटा तो शराब की बोतल साथ ले कर लौटा| माँ ने खाने के लिए पुछा तो मैंने कह दिया की मैं खाना खा कर आया हूँ| अपने कमरे में घुस मैं लग गया पीने, जब शराब का सुरूर चढ़ा तो नेहा की कही बातों को फिर से याद कर मेरी आँखें आँसुओं की नदी बहाने लगी| फिर तो रोते-रोते कब नींद आई पता ही नहीं चला| अगली सुबह उठ मैं फिर काम का बहाना कर निकल गया और एक पार्क में अकेला बैठ गया| अपनी सोच में कुढ़ते हुए मुझे नशे की दरकार हुई तो मैंने सिगरेट पीनी शुरू कर दी| फिर वही रात को लौटना और पी कर धुत्त हो कर सो जाना|



लगातार 5 दिन तक मैं ठीक से खा नहीं रहा था और पीने के चक्कर में मैंने अपनी B.P. की दवाई लेनी बंद कर दी थी| ग़म के कारण मेरे दिमाग पर दबाव पड़ रहा था और खाना ठीक से न खाने के कारण मेरे शरीर पर दबाव पड़ रहा था| मेरा बेचारा दिल ये दबाव न सह सका जिस कारण मुझे रात को माइल्ड हार्ट अटैक (mild heart attack) आया| वो रात हम माँ-बेटे ने कैसे काटी ये लिखपाना बहुत मुश्किल है! अगली सुबह मुझे होश आया और धीरे-धीरे मेरी तबियत में सुधार हुआ|

मैं ये बात किसी को नहीं बताना चाहता था इसलिए मैंने माँ से कह दिया की वो ये बात किसी को न बताएं| लेकिन अगले दिन संगीता ने जब माँ को किसी व्रत के बारे में पूछने के बहाने से फ़ोन किया तो बातों-बातों में माँ के मुँह से सारी बात निकल गई| संगीता जानती थी की मुझे माइल्ड हार्ट अटैक क्यों आया होगा इसलिए उसने अपने भाईसाहब को फ़ोन कर दिया| तीसरे ही दिन भाईसाहब सबको (संगीता, आयुष, अनिल और भाभी जी को) लेकर मेरे घर आ पहुँचे|

नेहा की नानी जी नेहा के कारण बहुत शर्मिंदा थीं, उनकी हिम्मत नहीं हुई की वो मेरे सामने आएं इसलिए वो अम्बाला में विराट, स्तुति तथा नेहा की देख-रेख करने रुक गई थीं|



आयुष मुझे इतने सालों बाद इस हालत में देख बहुत डर गया था इसलिए आयुष दौड़ता हुआ बिस्तर पर चढ़ मेरे सीने से लिपट कर रोने लगा! "चाचू...ये आपको..." इतना कह आयुष को खाँसी आ गई तो मैंने आयुष की पीठ थपथपा कर शांत किया|

मेरी ये हालत देख कर सभी चिंतित थे, वहीं संगीता की आँखें आँसूँ से भरी होने के कारण छलछला गई थीं| मैंने इशारे से संगीता को खामोश रहने को कहा क्योंकि उसके ये आँसूँ सभी के मन में सवाल पैदा कर देते|



इधर माँ ने सबको बताया की मैं कितना लापरवाह हूँ जो मैंने अपनी दवाइयाँ लेना बंद कर ये मुसीबत मोल ली| अब मेरी माँ क्या जाने की उनके बेटे का दिल किस कदर टूटा हुआ है!

चूँकि मैंने भाईसाहब से पहले ही कह रखा था की वो असली सच माँ के सामने न आने दें इसलिए माँ की बात सुन सब मुझे समझा रहे थे की मुझे यूँ अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए|



माँ सभी के लिए चाय बनाने जाने लगीं तो संगीता और भाभी जी उनके साथ रसोई में चले गए| कमरे में मैं, भाईसाहब, अनिल और आयुष थे, तो आयुष ने मुझे अम्बाला में हुई मार-पीट के बारे में बताया| दरअसल, भाईसाहब संगीता, स्तुति, स्तुति की नानी जी, अनिल और आयुष को ले कर पहले अम्बाला पहुँचे थे| वहाँ पहुँच संगीता ने आव देखा न ताव और सीधा नेहा के गाल पर खींच कर एक चाँटा रख दिया तथा उसका गला पकड़ कर दाँत किटकिटाते हुए नेहा से दबी आवाज़ में बोली; "हरामज़ादी! अगर मेरे पति को आज कुछ हो जाता न, तो मैं तेरा टेटुआ दबा कर तेरी जान ले लेती!

‘You’re not my real father!’ यही कहा था न तूने?!....जब तू इनका खून ही नहीं है तो ये ख्याल तो देर-सवेर तेरे मन में आना ही था! आखिर तेरे जिस्म में खून तो एक गंदे आदमी (चन्दर) का ही है, तो उस गंदे खून ने अपना असर तो दिखाना ही था! जब तेरे बाप चन्दर ने इन्हें जान से मारने की कोशिश की थी, तो तू कहाँ पीछे रह सकती थी...तूने भी जानबूझ कर ऐसे शब्द कहे की ‘स्तुति के पापा जी’ की जान पर बन आई!


आज कान खोल कर मेरी एक बात सुन ले, अगर इस फसाद के बारे में स्तुति की दादी जी (यानी मेरी माँ) को कुछ भी पता चला...उनका दिल दुखा तो तेरे लिए मुझसे बुरा कोई न होगा!..... Now get lost!" संगीता ने दबी आवाज़ में ये सब इसलिए कहा की कहीं कोई और सुन न ले!

(संगीता की कही ये बातें कोई नहीं सुन पाया था| ये हिस्सा आप सबको पुनः बताने के लिए मैंने update में से उठाया है|)

विधि की विडंबना तो देखिये, जिसने खुद मुझसे सारे रिश्ते तोड़ लिए थे वो अपनी ही बेटी के सामने मुझे अब भी अपना पति कह हक़ जता रही थी|



घर से निकलने से पहले आयुष को अपनी दीदी से बात करने का मौका मिल गया, दोनों भाई-बहन के बीच जो मुझे ले कर झगड़ा हुआ वो आप सभी ने पढ़ ही लिया था| इधर अपने बेटे से ये बातें सुन मुझे आयुष पर बहुत गर्व हो रहा था| जिस बेटी को मैंने सबसे ज्यादा प्यार किया वो अपने पापा जी को नहीं समझ पाई मगर मेरा अपना खून जो मुझे चाचू कहता था वो मुझे अच्छे से समझ रहा था| बुरा लगा तो इस बात का की आयुष को मेरे कारण अपनी दीदी से थप्पड़ खाना पड़ा|



दोपहर को खाने के बाद मुझे अकेला पा कर भाभी जी मुझसे बात करने आईं| उन्होंने बताया की संगीता ने हमारे बारे में सब सच बता दिया है| ये जानकार मुझे बहुत बड़ा झटका लगा क्योंकि मैं मन ही मन ये तैयारी कर के बैठा था की मैं सारा दोष अपने सर ले लूँगा की मैंने संगीता को बहला-फुसला कर अपने प्यार में जबरदस्ती खींचा था मगर संगीता के सच बोलने से सारी बात ही पलट गई थी!
भाभी जी को हमारे ऊपर पहले भी शक हुआ था, जब वो स्तुति के पैदा होने के बाद घर आया करती थीं, लेकिन तब उन्हें लगता था की ये तो बस मेरा लड़कपन है...दिल्लगी करने की आदत है इसलिए वो तब कुछ नहीं बोलीं| हाँ इतना अवश्य था की उन्होंने संगीता को प्यार से इतना कह दिया था की हम दोनों का यूँ सबके सामने दिल्लगी करना ठीक नहीं| (इस हिस्से को मैंने मेरे और संगीता के रसोई में भाभी जी द्वारा पकड़े जाने वाले सीन के रूप में लिखा था|)



"भाभी जी, मैंने संगीता से सच्चा प्यार किया था और मैं हमारे रिश्ते को एक जायज रूप देना चाहता था इसलिए मैंने कई बार संगीता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा मगर उसने हर बार मेरा प्यार ठुकरा दिया| जब वो मुझे छोड़ कर और मेरे बच्चों को मुझसे छीन कर ले गई तो मेरे दिल में उसके लिए बस नफरत रह गई|" मैंने भाभी जी से अपने दिल की बात कह दी थी| मेरी बात सुन भाभी जी को यक़ीन हो गया की हम दोनों (मेरे और संगीता) में से मैं ही सबसे सुलझा हुआ हूँ| अतः उन्होंने संगीता को बुलाया और मेरे सामने बिठा कर समझाने लगीं की उसे खुद को सुधारना होगा और मुझसे दूरी बनानी होगी| फिर भाभी जी मुझे समझाते हुए बोलीं की मुझे भी अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए तथा ग्रहों की स्थिति ठीक होते ही ब्याह कर लेना चाहिए| ज़ाहिर है की संगीता को भाभी जी की बात बहुत चुभी पर फिर भी वो डर के मारे बिना कुछ बोले अपना सर झुका कर उनकी बात सुनती रही|



भाभी जी हमारे (मेरे और संगीता के) प्यार की राज़दार बन गई थीं और उन्होंने हमसे वादा किया था की वो ये राज़ कभी किसी पर ज़ाहिर नहीं करेंगी| भाभी जी दिल की बहुत साफ़ हैं, वो जानती हैं की परिवार को कैसे एक साथ समेट कर रखा जाता है इसीलिए तो भाभी जी का ये वादा आज भी क़ायम है!



जब भाभी जी चली गईं तो संगीता मुझे समझाते हुए कहा की चूँकि नेहा मेरा अपना खून नहीं है ऐसे में मुझे नेहा की बातों को अधिक दिल से नहीं लगाना चाहिए| मेरा बेटा आयुष मेरा अपना खून है, वो अपनी बड़ी बहन नेहा जैसा कतई नहीं है, मुझसे दूर होते हुए भी वो मुझे आज भी उतना ही प्यार करता है जितना पहले करता था|

मेरा मन इस भेद-भाव को नहीं मान रहा था इसलिए मैं भावुक होते हुए बोला; "ऐसा मत कहो...she’ll always be my first born! बच्चे जब बड़े होते हैं तो उन्हें personal space चाहिए होता है और जब माँ-बाप इसमें दखलंदाज़ी करते हैं तो बच्चे बगावत कर देते हैं|" नेहा के प्रकरण से मैंने यही सीखा था| मैंने तो संगीता को भी ये सलाह दे डाली की वो आयुष और स्तुति से अधिक उमीदें न बाँधे क्योंकि उन्होंने बड़े हो कर वही करना था जो नेहा ने किया है मगर संगीता एक सख्त माँ थी! भविष्य में यदि ऐसा होता तो संगीता ने मार-मार कर दोनों भाई-बहन को सीधे रास्ते ले आना था!





बहरहाल, दूसरे दिन सब वापस चले गए और इधर मैं खुद को सँभालने की कोशिश में लग गया| माँ के कहने पर दिषु मुझे एक बार फिर साइकिएट्रिस्ट के पास ले गया जहाँ मैंने खुलकर सारी बात बताई| मेरी बात सुन डॉक्टर ने बताया की मैं अभी तक अपने डिप्रेशन से बाहर नहीं आया हूँ| जो थोड़ी बहुत हिम्मत जुटा कर मैं डिप्रेशन से लड़ने की कोशिश कर रहा था वो नेहा के कहे शब्दों के कारण टूट गई थी और मैं फिर से डिप्रेशन के गढ्ढे में गिर चूका था! डॉक्टर ने मुझे थेरेपी लेने को कहा तो मैंने झूठ बोलते हुए कहा की मैं आऊँगा पर मैं कभी थेरेपी लेने गया ही नहीं|



डॉक्टर से मिलकर जब हम बाहर निकले तो दिषु मुझे समझाते हुए बोला की मुझे अब शादी कर लेनी चाहिए| "उससे क्या होगा?" मैंने बात को हँसी में उड़ाते हुए कहा|

“भोस्डिके शादी करेगा तो बीवी आएगी, फिर बच्चे होंगें! मैं चाचा बनूँगा!” दिषु ने थोड़ा मज़ाकिया ढंग से मुझे बात समझानी चाही|



"बच्चे होंगे तो वही करेंगे जो नेहा ने किया?" मैंने एक झूठी मुस्कान के साथ कहा तथा अपनी नजरें फेर लीं| दरअसल नेहा के इस उखड़े बर्ताव के कारण मेरे मन में एक धारणा बन चुकी थी की बच्चे चाहे अपने हो या गोद लिए, उन्होंने बड़े हो कर अपनी आज़ादी के लिए बगावत करनी ही है| ऐसे में जिन बच्चों को हम इतना लाड-प्यार करते हैं, उनके लिए अनेकों कुर्बानियाँ देते हैं....क्या फायदा इतने लाड-प्यार का? इससे तो अच्छा है की केवल अपने माँ-बाप होने का फ़र्ज़ निभाया जाए और उनसे ज़रा सी भी उमीदें न बाँधी जाएँ की वो बड़े हो कर हमारी बातें मानेंगे| मेरी यही सोच मेरी बात से उजागर हो रही थी|

मेरी इस सोच को जानकार दिषु भी वही बोला जो संगीता बोली थी, की चूँकि मेरा नेहा से खून का रिश्ता नहीं इसलिए नेहा ने इतनी बड़ी बात बोली| मैं इस बात को नहीं मानता था इसलिए मैंने दिषु को भी वही समझाया जो मैंने संगीता को समझाया था|



दिषु जानता था की इस समय मेरी मानसिक हालत क्या है इसलिए उसने इस बात को छोड़ मुझे शादी करने के लिए प्रेरित करने लगा| परंतु संगीता से मिले प्यार में धोखे के कारण मेरा प्यार पर से ही विश्वास उठ गया था| "भाई, मेरा तो प्यार-मोहब्बत पर से विश्वास उठ चूका है और ये शादी-ब्याह बस सामाजिक रीति-रिवाज़ हैं जो इंसान को अकेला रहने से बचाने के लिए हैं| शादी-ब्याह के बाद कोई नहीं सुलझा, कोई नहीं सुधरा| पहले संगीता ने मेरा दिल तोडा, फिर नेहा जिसे मैंने अपनी बेटी माना उसने अपने पापा जी का दिल तोडा...अब ऐसे में मेरे पास प्यार बचा ही कहाँ है जो मैं किसी और को दूँ?! जबरदस्ती शादी कर के मैं क्या करूँगा जब मैंने उस लड़की को स्पर्श ही नहीं करना तो?! फिर क्या फायदा होगा इस जबरदस्ती की शादी का? मेरी ज़िन्दगी तो पहले ही बर्बाद हो चुकी है, ऐसे में क्यों मैं शादी कर किसी दूसरी लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद करूँ?!" मेरे ऐसे विचार सुन दिषु मुझे तरह-तरह से समझाने लगा मगर मेरा बैरागी मन न माना| शादी से बचने के लिए मैंने दिषु से कह दिया की पहले मैं खुद को सुधारूँगा और जब मैं मेंटली फिट हो जाऊँगा तो मैं शादी करूँगा|

एक व्यक्ति जिसका दिमागी संतुलन हिल चूका हो उसे आप ज्यादा समझा भी नहीं सकते, फिर दिषु के लिए इतना ही बहुत था की मैं अब खुद को सुधारने पर ध्यान देना चाहता था|



घर लौट कर दिषु ने माँ को सारा सच बताया तो मेरी माँ बहुत दुखी हुईं| मैं अपनी माँ को बहुत दुःख दे चूका था इसलिए मैंने इस बार माँ से सच्चा वादा करते हुए कहा की मैं अब इस तरह अपनी ज़िन्दगी और बर्बाद नहीं करूँगा और धीरे-धीरे अपने आपको सुधारूँगा| मेरी बात सुन मेरी माँ ने मेरा मस्तक चूम लिया और मुझे आशीर्वाद देते हुए " विजई हो" कहा|

कई बार जब मैं कोई मुश्किल काम करने जा रहा होता था तो माँ मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए ऐसा कहती थीं| मेरा मनोबल बढे न बढे मगर मुझे हँसी अवश्य आती थी क्योंकि ऐसा लगता था की मन काम करने नहीं मैदान-ऐ-जंग में जा रहा हूँ!



अगले दिन से 'मानु सुधारो, मानु आगे बढ़ो' आंदोलन शुरू हुआ| मैंने पीना पूरी तरह से बंद कर दिया, सिगरेट पीनी छोड़ दी, सुबह जल्दी उठना शुरू किया| अपना ठप हो चुके काम को आगे बढ़ाया और ऑनलाइन के बजाए होलसेल का काम शुरू किया| काम बहुत धीमा था परन्तु मैं खुद को व्यस्त रखता था ताकि फिर से बच्चों को याद करने न लगूँ|

काम धीमा था इसलिए दौड़-भाग करने के बाद भी वो परिणाम नहीं मिल रहा था जो चाहिए था इसलिए मैं फिर से हारा हुआ महसूस करने लगा था| तभी एक दिन मेरी मुलाक़ात अपने पुराने ऑफिस में काम कर रहे कुछ सहयोगियों से हुई| उन्होंने बातों ही बातों में बताया की वो ट्रैकिंग करने गए थे| ट्रेकिंग मेरे लिए नई चीज़ थी इसलिए मुझे जोश आ गया और मैंने दिषु से पुछा की क्या वो मेरे साथ ट्रैकिंग पर चलेगा? दिषु कभी ट्रैकिंग पर नहीं गया था इसलिए वो फौरन मान गया| समान पैक कर हम कसोल पहुँचे और ये जान-जोखम में डालकर ट्रेक करने में जो मज़ा आया की क्या कहूँ! वहाँ से वापस आ कर मेरे भीतर एक नई ऊर्जा भर गई थी| दिल्ली लौटते ही मैंने काम सँभाला और मुझ में आये इस नए बदलाव को देख मेरी माँ बहुत खुश हुईं| काम अब भी धीमा ही था परन्तु मुझ में जोश बहुत था| पुरानी सब बातें अब मैं भूलने सा लगा था और अपनी ज़िंदगी को नए ढंग से देख रहा था|



इधर मेरी माँ की उम्र बढ़ रही थी और वो घर पर रह कर ऊब गई थीं इसलिए मैं माँ को यात्रा करवाना चाहता था| जितने भी पैसे मैं इकठ्ठा कर पाया था उन्हें जोड़कर मैं पहले तो माँ को वैष्णो देवी की यात्रा पर ले गया| दिषु भी हमारे साथ आया था तो हमने मिलकर माँ का बहुत ध्यान रखा| इस यात्रा का ज़िक्र मैंने update में पहले किया था परन्तु तब मैंने आपको दिषु के साथ होने का ज़िक्र नहीं किया था|

वैष्णो देवी जी की यात्रा करने के कुछ दिनों बाद मैं और माँ निकले शिरडी के लिए| मेरी माँ को कोई तकलीफ न हो इसके लिए मैं जितनी मुझ में क्षमता होती थी उसके अनुसार सबसे बढ़िया इंतज़ाम करता था| शिरडी में हम 3 दिन रुके थे और इन तीन दिनों में मेरी माँ ने आराम से दर्शन किये| शनिशिंगणापुर की यात्रा मेरे लिए बड़ी यादगार थी क्योंकि वहाँ से लौटते वक़्त ही मुझे एक बड़ा आर्डर मिल गया था|

ये आर्डर पूरा कर मैं और माँ निकले बदरीनाथ धाम की यात्रा पर| ये यात्रा थोड़ी कष्टपूर्ण थी क्योंकि हमें हरिद्वार से डायरेक्ट बस नहीं मिली इसलिए हमें आधा दिन ऋषिकेश में बिताना पड़ा| बस की झटकों भरी यात्रा सह कर हम बद्रीनाथ पहुँचे तो वहाँ रहने का इंतज़ाम नहीं हो पाया था| बड़ी मुश्किल से महँगा कमरा ले कर हम रुके परन्तु भगवान जी के दर्शन बहुत बढ़िया हुए|



अपनी माँ को तीर्थ यात्रा करवाने का अजब ही सुख होता है और इसके आशीर्वाद स्वरूप मेरा जीवन अब सुधरता जा रहा था|



कुछ महीने बीते थे की एक दिन अचानक भाईसाहब संगीता, नेहा, आयुष और स्तुति को ले कर आ गए| मैं तब कुछ काम से बाहर गया हुआ था, जब मैं घर आया तो दरवाजा खोला संगीता ने| संगीता कभी-कभी यूँ अचानक आ जाया करती थी इसलिए मुझे उसे देख कर कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ा| जब मैं बैठक में पहुँचा तो मुझे तीनों बच्चे बैठे हुए दिखे| मुझे देख सबसे पहले आयुष दौड़ा और मेरे पैर छूकर मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपनी बाहें लपेटे खिलखिलाने लगा| आयुष के सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देते हुए मेरी नज़र पड़ी नेहा पर| अपनी दादी जी के सामने नेहा मुझे देख कर झूठ-मूठ का मुस्कुरा रही थी| जब आयुष मुझसे मिल लिया तब नेहा आगे आई और मेरे पॉंव छू कर वापस बैठ गई| साफ़ था की वो ये सब बस दिखावे के लिए कर रही है, दिल से तो हमारा रिश्ता खत्म ही चूका था|

अंत में मैंने देखा स्तुति को जो सोफे पर बैठी मुझे देख मुस्कुरा रही थी और कुछ सोच रही थी| ऐसा लगता था मानो अपने दिमाग पर ज़ोर डाल कर याद कर रही हो की मैं हूँ कौन? संगीता ने जब देखा की स्तुति अब भी सोफे पर बैठी है तो उसने उसे इशारे से मेरे पैर छूने को कहा|



स्तुति के मुझे न पहचानने से मेरा दिल बहुत दुखा था| मेरी बेटी जिसे मैं दिलो-जान से चाहता था, जिसे मैं अपना नाम देना चाहता था वो मुझे इस कदर भूल गई थी की आज अपनी आँखों के सामने देख कर भी मुझे नहीं पहचान रही थी! ये दर्द जब दिलो-दिमाग में ताज़ा हुआ तो मैं नहाने का बहाना कर अपने कमरे में आ गया| कमरे में अकेला था तो मैं रो सकता था, दिमाग में स्तुति को गोदी में ले कर बिताये पल याद आने लगे थे और आँखें उन पलों के याद आने पर ख़ुशी के आँसूँ बहा रही थीं|

मैं उन मनोरम पलों को याद कर खुश हो ही रहा था की तभी पीछे से संगीता ने नेहा को डरा-धमका कर मुझसे माफ़ी माँगने भेज दिया| अब न तो नेहा को मुझसे माफ़ी माँगने में कोई दिलचस्पी थी और न ही मैं नेहा को माफ़ कर सकता था इसलिए हम दोनों ने अपना-अपना फ़र्ज़ निभाया यानी नेहा ने मौखिक रूप से माफ़ी माँगी और मैंने "its okay" कह नेहा की माफ़ी को दरगुज़र किया तथा हम दोनों अपने-अपने रास्ते चल दिए|



नेहा का ये दिखावा खत्म हो गया था इसलिए वो शाम को अपने बड़े मामा जी के साथ अम्बाला लौट गई| घर पर रह गए मैं, माँ, संगीता, स्तुति और आयुष| दोनों के स्कूल की छुट्टियाँ थीं इसलिए भाईसाहब बड़के दादा से ये झूठ बोल कर दोनों को अपने साथ लाये थे की वो बच्चों को अपने पास रखेंगे| जबकि असल में ये सब प्लानिंग थी संगीता की, उसके मन में कुछ अलग ही पक जो रहा था!



आयुष के पास बात करने के लिए बहुत कुछ था इसलिए आयुष कूदते हुए मुझे सब बता रहा था| वहीं स्तुति मुझसे शर्मा रही थी इसलिए वो पूरे घर में घुम रही थी| जब आयुष मुझसे बात कर थक गया तो उसने कागज की एक बॉल बनाई और हम दोनों ने कमरे के अंदर ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया| हमारा शोर सुन स्तुति कमरे में आई तो आयुष ने उसे भी हमारे खेल मिला लिया| खेलते-खेलते आयुष अपनी छोटी बहन को उसके बचपन की याद दिलाने लगा| जब स्तुति छोटी थी तब हम बाप-बेटे क्रिकेट खेलते थे और स्तुति बॉल पकड़ कर लाने का काम करती थी| पता नहीं स्तुति को कुछ याद आया या नहीं पर स्तुति ने खिलखिलाना शुरू कर दिया था|



खाना खा कर सोने का समय हुआ तो आयुष मेरे कमरे में दौड़ा आया और पलंग पर चढ़ अपनी जगह घेर ली| वहीं स्तुति को अपनी दादी जी से ज्यादा ही प्यार मिल रहा था इसलिए वो अपनी मम्मी के साथ माँ के कमरे में सो गई|



अगले दिन की बात है मैं कंप्यूटर पर अपना कुछ काम कर रहा था| माँ आयुष को ले कर दूकान तक गई हुईं थीं तथा संगीता रसोई में खाना बनाने में लगी हुई थीं| तभी स्तुति मुस्कुराते हुए कमरे में आई और मेरी तरफ बड़े प्यार से देखते हुए बोली; "पपई!!!" जब से स्तुति आई थी तब से वो मुझसे इतना शर्माती थी की बस मुझे मुस्कुरा कर देखती रहती थी| लेकिन 24 घंटे इस घर में रहने से स्तुति के मन में उसके बचपन की यादें जैसे ताज़ा हो गई थीं, उसे उसके प्यारे पापा जी यानी पपई याद आ गए थे!

जैसे ही स्तुति ने मुझे पपई कहा तो मेरा दिल पिघल गया और मैंने एकदम से स्तुति को गोदी ले कर अपनी बाहों में जकड़ लिया! वहीं मेरे सीने से लग कर मेरी बिटिया का मन भावुक हो गया था| “I missed you so much मेरा बच्चा!" मैं रुनवासा हो कर बोला तो स्तुति ने मेरे दोनों गालों पर पप्पी कर मुझे रोने नहीं दिया|



उस दिन से स्तुति ने मुझे जितना प्यार दिया उसका सारा ज़िक्र मैंने अंतिम तीन updates में किया था| मेरी छोटी सी बिटिया ने अपने पपई के सूखे पड़े दिल में प्यार की कली खिला दी थी| लेकिन नेहा के कारण जो मैंने सबक सीखा था उसे याद रखते हुए मैं इसबार सतर्क था इसलिए मैं स्तुति के प्यार में इतना नहीं पिघला की फिर से मेरे मन में उसे गोद लेने का विचार पैदा हो|



स्तुति को पा कर मेरा मन प्रसन्न था और इसका फायदा संगीता उठाना चाहती थी इसलिए शाम के समय जब मैं अकेला कुछ काम कर रहा था तब वो मेरे कमरे में आई और बड़े प्यार से इठला कर मुझसे बोली; "जानू...मुझे न आपसे कुछ बात करनी थी|" मेरा मन संगीता से बात करने का नहीं था इसलिए मैंने उसे कोई तवज्जो नहीं दी और कंप्यूटर पर अपना काम करता रहा| अब संगीता को तो अपनी बात कहनी ही थी इसलिए वो शर्माते हुए बोली; “Will you marry me?” संगीता के मुख से निकले इन शब्दों को सुन मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने गुस्से से उसकी तरफ देखा| मुझे यूँ गुस्से में देख संगीता की हवा टाइट हो गई इसलिए वो एकदम से संजीदा हो गई और अपनी बात को विस्तार से समझाते हुए बोली; "तीन साल पहले मैंने आपका प्यार ठुकरा कर बहुत बड़ी गलती की थी! लेकिन अब मैं अपनी ये गलती सुधारना चाहती हूँ! प्लीज मुझसे शादी कर लो!" संगीता हाथ जोड़ते हुए बोली|



“एक बात की दात देता हूँ, तुम्हारे अंदर हिम्मत बहुत है जो तुम मेरा शादी का प्रस्ताव बार-बार ठुकरा कर भी मुझसे शादी की बात कर रही हो|



सच ये है की I don’t trust you! As a matter of fact, I will never trust you again! तुमने जो मुझे धोखा दिया, मेरा दिल तोडा उसके बाद तो मुझे प्यार शब्द से ही नफरत हो चुकी है| अब जब तुम्हारे लिए मेरे दिल में कोई जज्बात ही नहीं तो शादी का सवाल ही पैदा नहीं होता|

तुम इतनी गनीमत समझो की अपनी दोनों माओं की कसम की लाज रखते हुए तुम्हें अपनी आँखों के सामने बर्दाश्त कर लेता हूँ, उनकी ख़ुशी के लिए तुमसे थोड़ी बहुत बात कर लेता हूँ|” मैंने संगीता को ताना मारा और उठ कर जाने लगा तो संगीता ने मेरी कलाई थाम ली| मैं जानता था की वो फिर रोना-धोना शुरू करेगी इसलिए मैं अपना हाथ झटकते हुए उसके हाथों की पकड़ से अपनी कलाई छुड़ाई और बाहर आ गया| मैं जनता हु की मेरी बातों से संगीता का दिल बहुत दुख होगा लेकिन मुझे अब इसकी कोई परवाह नहीं थी|



आयुष और स्तुति की 1 हफ्ते की छुट्टी थी लेकिन दोनों दस दिन रह कर भी गॉंव वापस नहीं जाना चाहते थे| ग्यारहवे दिन भाईसाहब सबको ले जाने आये तो स्तुति मेरी गोदी में बैठ बोली; "पपई, मुझे नहीं जाना! मुझे आपके पास रहना है!" स्तुति भावुक होते हुए बोली| अपनी बेटी का भावुक देख मैं भी पिघलने लगा था मगर मैंने खुद को सँभाला और स्तुति को उसकी पढ़ाई की अहमियत के बारे में समझाया तथा उसे खुश करने के लिए भाईसाहब से कह दिया की जैसे ही स्तुति के स्कूल की छुट्टियों हों वो उसे फिर से यहाँ छोड़ जाएँ|

स्तुति ने मेरी बात तो मान ली मगर मुझसे वचन भी लिया की मैं रोज़ उसे उसकी मम्मी के फ़ोन पर कॉल करूँगा और फ़ोन पर कहानी सुनाऊँगा| अपनी पोती की बात सुन माँ एकदम से बोलीं; "तू चिंता मत कर बेटा, मैं और तेरे पपई दोनों तुझसे फ़ोन पर बात करेंगे|" अपनी दादी जी का आश्वसन पा कर स्तुति अपनी दादी जी के गले लग गई और ख़ुशी-ख़ुशी अपने बड़े मामा जी के साथ वापस जाने को तैयार हो गई|



इधर संगीता को मुझसे बात करनी थी मगर मैं जानबूझ कर उससे दूरी बनाये हुए था इसलिए संगीता ने माँ का सहारा लिया और उनसे मेरी शिकायत कर दी की मैं उससे बात नहीं कर रहा| संगीता की शिकायत सुन माँ ने मुझे प्यारभरी डाँट लगाई और एक अच्छे दोस्त की तरह मुझे संगीता से हाथ मिलाने को कहा| माँ का हुक्म था इसलिए मैंने बेमन से संगीता से हाथ मिलाया मगर संगीता ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और बेशर्म बनते हुए माँ के सामने बोली; "हाथ तब छोडूंगी जब आप वादा करोगे की मुझे ताने नहीं मारोगे, मुझसे नाराज़ नहीं रहोगे और प्यार से बात करोगे|" संगीता की इस बेशर्मी को देख मैं हैरान था| अब माँ को ये देवर-भाभी का प्यार लग रहा था इसलिए उन्होंने भी संगीता का साथ दिया और मुझे प्यार से डाँटने लगीं| इतने में आयुष और स्तुति भी अपनी मम्मी की तरफ हो गए और मेरा तथा अपनी मम्मी के हाथ पकड़ कर मुझे वादा करने के लिए कहने लगे| अपनी माँ और बच्चों के आगे मैं मजबूर था इसलिए मैंने वादा कर दिया|



वादा किया था तो निभाना भी था इसलिए वो वादा आज भी निभा रहा हूँ|



उधर अम्बाला में नेहा अपनी मनमानी कर रही थी, अपनी बड़ी मामी जी को बुद्धू बना कर...झूठ बोल कर नेहा अपने दोस्तों के साथ घूमने निकल जाती थी| पढ़ाई पर से उसका ध्यान पूरी तरह हट चूका था नतीजन बोर्ड की परीक्षा में नेहा फ़ैल हो गई!

ये खबर जैसे ही गॉंव पहुँची तो सबसे पहले तो संगीता ने अम्बाला पहुँच कर नेहा को अच्छे से कूटा! वहीं बड़के दादा ने नेहा की पढ़ाई छुड़वाने का फैसला किया| नेहा जानती थी की अगर उसकी पढ़ाई छूटी तो उसकी होगी शादी और फिर ये सारी आज़ादी खत्म इसलिए नेहा अपने बड़े मामा जी के आगे गिड़गिड़ाने लगी की उसे एक मौका और दिया जाए| भाईसाहब अपनी भाँजी को यूँ रोता हुआ कैसे देखते, अतः उन्होंने नेहा को एक अंतिम मौका दे दिया|



वहीं दूसरी तरफ नेहा के फ़ैल होने की खबर सुन कर मुझे कुछ महसूस ही नहीं हुआ| मैंने अपने ऊपर गौर किया तो पाया की मेरे भीतर भावनाएं मर चुकी हैं| जबकि असल बात ये थी की मुझे नेहा और संगीता ने बहुत दुःख दिया था इसलिए मेरा मन उनके प्रति इस कदर फट चूका था की मुझे उनकी बातों से अब कुछ महसूस ही नहीं होता था|

हाँ, माँ नेहा के फ़ैल होने की बात से परेशान अवश्य थीं मगर उन्होंने नेहा को डाँटने के बजाए उसे अगले साल फिर से मेहनत करने को कहा| माँ असल बात नहीं जानती थीं वरना वो जर्रूर नेहा को डाँटती|



खैर, मैं रोज़ स्तुति से बात करने के लिए गॉंव फ़ोन करता था इसलिए धीरे-धीरे मेरे और संगीता के बीच एक दोस्ती का रिश्ता फिर से स्थापित हो गया| संगीता का कभी-कभार मेरे घर आना-जाना रहता था इसलिए संगीता हमेशा इस दोस्ती के रिश्ते को लाँघने की कोशिश करती रहती थी मगर मैं हमेशा उससे उपयुक्त दूरी बनाये रहता था| शायद संगीता को लग रहा था की वो दोस्ती के रिश्ते को कम करते-करते फिर से मेरे नज़दीक आ जाएगी, लकिन मैं उससे दूर ही रहता था| हमारी जो भी बातें होती थीं वो सब माँ के सामने होती थीं, अकेले में तो मैं उसे कभी दिखता ही नहीं था|





मेरे जीवन में ये सब घटित हो रहा था की तभी दुनिया में महामारी फैल गई और एकदम से लॉकडाउन लगा दिया गया| दिल्ली स्वस्थ विभाग से कुछ लोग घर आये और मुझे बताया की मैं अपनी माँ का अधिक ख्याल रखूँ क्योंकि ये बिमारी बुजुर्गों के लिए...ख़ास कर उनके लिए जिन्हें शुगर तथा BP की बिमारी है उनके लिए खतरनाक है| मैं अपनी माँ के स्वास्थ्य को ले कर बहुत डर गया था इसलिए मैं कभी-कभी सिर्फ सामान लेने ही निकलता था|

वहाँ गाँव में अचानक स्तुति बीमार पड़ गई थी, जिससे संगीता की हालत खराब हो गई थी| गॉंव में कोई कोरोना को नहीं मानता था, हर कोई बिना मास्क के घूमता था| वहीं जब माँ संगीता को दिल्ली के हालातों के बारे में बताती तो संगीता घबरा जाती थी| जब स्तुति बीमार हुई तो संगीता को डर लगने लगा की कहीं स्तुति को कोरोना तो नहीं हो गया?! संगीता अपनी बेटी का इलाज करवाने शहर ले जाना चाहती थी मगर घर में कोई उसकी मदद करने वाला नहीं था| संगीता ने फौरन अनिल को, जो उन दिनों गॉंव आया हुआ था उसे बुलाया| स्तुति को ले कर अनिल शहर गया मगर वहाँ अस्पताल में कोई बेड खाली न होने के कारण डॉक्टरों ने स्तुति को बिना देखे दवाई लिख कर वापस ले जाने को कहा| उन दिनों बिमारी के कारण दवाइयों की किल्ल्त हो गई थी इसलिए आधी दवाइयाँ अनिल को मिली ही नहीं|



स्तुति के बीमार होने की खबर मुझे सबसे अंत में मिली और मुझे संगीता पर बहुत गुस्सा आया| अनिल से दवाई की पर्ची व्हाट्स अप्प (what’s app) पर ले कर मैंने सारी दवाइयाँ खरीदी और गॉंव जाने की तैयारी करने लगा| मेरे गॉंव जाने के नाम से माँ डर गई थीं पर फिर भी उन्होंने मुझे नहीं रोका क्योंकि यहाँ बात थी स्तुति की जिंदगी की|

दिल्ली से लखनऊ की फ्लाइट पकड़ कर मैं स्तुति के लिए दवाई ले कर पहुँचा| इतने सालों बाद मुझे देख सभी हैरान थे| वहीं मेरे पिताजी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था इसलिए उन्होंने कस कर मुझे अपने गले लगा लिया| मुझे यूँ अचानक देख बस बड़की अम्मा, पिताजी, संगीता और आयुष ही खुश थे| उनके अलावा किसी को मेरे आने की कोई ख़ास ख़ुशी नहीं हुई थी|



मैं फटाफट नहाया, और दवाई ले कर स्तुति के पास दौड़ता हुआ पहुँचा| स्तुति उस समय सोइ हुई थी, इसलिए मैं उसके सिरहाने जा कर बैठ गया| जब मैंने स्तुति के मस्तक को छुआ तो मुझे पता लगा की स्तुति को बहुत बुखार है! वहीं मेरे स्पर्श को महसूस कर स्तुति अपनी नींद में मेरा नाम बड़बड़ाने लगी; "प..प..ई!" मुझे ये देख कर हैरानी हुई की स्तुति इतनी बड़ी हो गई मगर वो ज़रा भी नहीं बदली! जब स्तुति छोटी थी और मैं साइट से घर लौटता था तो नींद में ही मेरा स्पर्श महसूस करते ही स्तुति मुझसे लिपट जाती थी, उसी तरह स्तुति इतना बुखार में होते हुए भी मेरा स्पर्श पहचान रही है|



खैर मैंने स्तुति को गोदी में लिया और उसे लाड कर जगाया| जैसे ही स्तुति जागी और मुझे देखा वैसे ही स्तुति का चेहरा ख़ुशी से खिल गया! बुखार होते हुए भी मेरी बिटिया मुझे देख कर इतना खुश हो रही थी की स्तुति सीधा मेरे सीने से लिपट गई और बोली; “पपई…I…love..you!”

“I love you too मेरा बच्चा! अब मैं आ गया हूँ न तो अब मेरा बच्चा जल्दी से ठीक हो जायेगा|” मैंने स्तुति के सर को चूमते हुए कहा|



मैंने स्तुति के लिए लाई हुई दवाई संगीता को दी और कौन सी दवाई कब देनी है वो बताया| मैं अपने साथ कुछ और दवाइयाँ भी लाया था ताकि दुबारा घर में किसी को दवाई की किल्ल्त न हो| मैं गॉंव बस एक दिन रहा और वो पूरा दिन मैं स्तुति के पास था| अगले दिन मुझे दिल्ली वापस निकलना था क्योंकि माँ घर पर अकेली थीं, पर मेरी बिटिया मुझे जाने नहीं दे रही थी|

स्तुति मेरे सीने से लिपट गई और ज़िद्द करते हुए बोली; "हम न जाने देब!" मैंने स्तुति को समझाया की वहाँ घर पर उसकी दादी जी अकेली हैं तो स्तुति एक पल को शांत हुई और कुछ सोचते हुए बोली; "हमहुँ जाब!" स्तुति का बालपन देख एक पिता का दिल पिघलने लगा था| लेकिन मैं स्तुति को साथ ले जा सकता ही नहीं था इसलिए मैं स्तुति को समझाने लगा की चूँकि वो बीमार है ऐसे में उसका यूँ कष्ट भरी यात्रा करना ठीक नहीं| थोड़ी न-नुकुर के बाद स्तुति मान गई लेकिन जब तक मेरी गाडी नहीं आई तब तक वो मेरी गोदी में ही रही|



दिल्ली वापस आने के लिए मैंने अपने एक जानकार जो की धर्म से मुसलमान थे, उनकी गाडी से आना था| अब एक तो मैं चमड़े के जूतों का व्यपार कर रहा था, ऊपर से एक मुसलमान से मेरी दोस्ती थी ये बात बड़के दादा को खटक रही थी इसीलिए उन्होंने मुझसे ज्यादा बात नहीं की| वहीं बड़की अम्मा और मेरे पिताजी बड़ा गर्व महसूस कर रहे थे की मेरे दिल्ली जाने के लिए एक गाडी आ रही है!

जब गाडी आई तो मैं स्तुति को प्यारी कर निकलने लगा| तभी आयुष दौड़ता हुआ आया और मेरे पैर छू मेरा आशीर्वाद लिया| फिर मैंने घर के सभी बड़ों से विदा ली और दिल्ली वापस आ गया|



लॉकडाउन एक सजा कहानी जो मैंने कांटेस्ट के लिए लिखी थी वो दिल्ली आते हुए जो हालात मैंने देखे उन्हें सोचते हुए ही लिखी थी| आप में से जिन लोगों ने उस कहानी को पढ़ा उन्होंने एक पिता का अपनी बेटी के लिए प्यार और तड़प देखि तथा महसूस की|



धीरे-धीरे देश के हालात ठीक होने लगे और लॉकडाउन हट गया तथा स्तुति मेरे पास रुकने के लिए बेरोक-टोक आने लगी| आयुष भी कभी-कभी आता था और तब हम तीनों मिलकर नॉन-वेज खाया करते थे| अब गॉंव में तो बेचारा बड़के दादा के डर के मारे आयुष कुछ खा नहीं पता था इसलिए वो ये सब तभी खता था जब वो दिल्ली आता था| स्तुति को भी इन चीजों का शौक नहीं था मगर मेरे कारण धीरे-धीरे स्तुति को ये शौक लग ही गया|






नेहा के साथ हुआ हादसा

समय बीत रहा था और मेरा मानसिक संतुलन अब पहले से बेहतर हो चूका था| मेरा मन पीने का करता था इसलिए कभी-कभी मैं घर पर ही पी लेता था मगर कभी इतनी नहीं पी की मैं नशे में धुत्त हो जाऊँ| लॉकडाउन लगने से पहले मेरा काम थोड़ी बहुत रफ्तार पकड़ रहा था मगर जैसे ही लॉकडाउन लगा मेरा सारा काम ही ठप्प हो गया!



कुछ दिन बीते थे की एक रात 9 बजे भाभी जी का फ़ोन आया| उन्होंने मुझे बताया की नेहा अपने किसी दोस्त के घर स्कूल का प्रोजेक्ट बनाने गई थी मगर वापस आ कर वो बस रोये जा रही है| पता नहीं क्यों पर ये बात सुनकर मैं बहुत डर गया| नेहा से मेरा सारा लगाव खत्म हो चूका था मगर फिर भी उसकी इस हालत के बारे में जानकार नजाने क्यों मुझे गुस्सा आ रहा था!

भाभी जी ने बताया की उन्होंने भाईसाहब को भी फ़ोन किया मगर वो और नेहा की नानी जी किसी शादी में गए थे जहाँ भाईसाहब का फ़ोन मिल नहीं रहा था|

भाभी जी जिस कदर घबराई हुई थीं उससे साफ़ था की जर्रूर नेहा के साथ कुछ गलत हुआ है इसलिए मैंने भाभी जी को समझाया की वो नेहा पर दबाव न डालें तथा जब तक मैं वहाँ न पहुँचू तब तक वो नेहा के साथ ही रहे, उसे एक पल के लिए भी अकेला न छोड़ें ताकि नेहा कहीं कोई गलत कदम न उठा ले|



मेरा मन मुझे डराए जा रहा था की जर्रूर नेहा की इज्जत पर बात बन आई है इसलिए मेरा खून खौलने लगा था| अपने गुस्से में बहते हुए मुझे होश नहीं रहा और मैंने रिवॉल्वर अपने साथ ले ली| माँ को अगर कहता की मैं अम्बाला जा रहा हूँ तो माँ अनेकों सवाल करती इसलिए मैंने दिषु के नाम का झूठ बोला की मैं दिषु के साथ अपने एक दोस्त की देखभाल करने अस्पताल जा रहा हूँ|

साथ में रिवॉल्वर थी तो मुझे ज़रा भी डर नहीं था, ये भी डर नहीं की अगर चेकिंग हुई और मेरे पास रिवॉल्वर निकली तो मैं कितनी बड़ी मुसीबत में फसूँगा! मैं उस वक़्त ऐसे घोड़े पर सवार था की मैं बिना डरे अम्बाला वाली बस में चढ़ गया|



अगली सुबह 5 बजे तड़के मैं अम्बाला उतरा और भाभी जी के घर की तरफ चल दिया| उधर भाभी जी ने कल रात अनिल को फ़ोन कर सारा माजरा बताया था इसलिए वो भी घर पहुँचने वाला था| इधर जैसे ही मैं भाभी जी के घर के बाहर पहुँचा मैंने उन्हें फ़ोन किया| विराट नेहा की दोस्त का घर जानता था इसलिए मैंने भाभी जी से कहा की वो उसे मेरे साथ भेज दें ताकि हम सारी तहकीकात कर सकें की आखिर कल रात हुआ क्या है?

जब तक विराट बाहर आता, इतने में अनिल पीछे से आ गया| फिर हम तीनों सारी ताहिकात करने नेहा के तीन दोस्तों के घर पहुँचे और वहाँ से हमें पिंकी के घर का पता चला| पिंकी के घर पहुँच मैंने विराट को घर वापस भेज दिया| वहाँ जो सच पता चला वो आप सबने पढ़ ही लिया था| सारा सच जानकार मेरा खून उबाले मार रहा था इसलिए मैं पहुँचे उस लड़के के घर और वहाँ जो हुआ वो भी आप सभी ने पढ़ लिया था|



मिश्रा अंकल जी को उस आदमी के पीछे लगा कर मैं और अनिल भाभी जी के घर के बाहर पहुँचे| अनिल मुझे अंदर आने को कह रहा था मगर मेरा मन इस घर में जाने का कतई नहीं था इसलिए मैंने कुछ खाने-पीने को खरीदने का बहाना किया और सीधा बस स्टैंड से बस पकड़ दिल्ली के लिए निकला|

बस अभी डिपो से निकली थी की पीछे से भाभी जी का फ़ोन आया और उन्होंने मेरे घर न आने को ले कर सवाल किया| मैंने उनसे झूठ कहा की चूँकि मैं माँ से झूठ बोल कर आया हूँ इसीलिए मैं नहीं रुका और इस समय मैं बस में बैठ हूँ|



उधर ये खबर गॉंव में संगीता तक पहुँच गई थी और वो भाईसाहब के साथ दोपहर तक अम्बाला पहुँच गई थी| मैंने कैसे उस लड़के को सबक सिखाया इसका सारा प्रसारण अनिल ने सबके सामने कर दिया था इसलिए मुझे एक के बाद एक भाईसहाब, संगीता और भाभी जी के फ़ोन आने लगे| मैंने उन्हें यही समझआया की वो नेहा के साथ थोड़ा सब्र से काम लें, उस पर कोई दबाव न डालें और जर्रूरत पड़े तो किसी कौंसलर (counsellor) से नेहा को मिलवाएं| सब ने मेरी बात मानी और मुझे अम्बाला बुलाने लगे मगर मैंने काम का बहाना बना कर मना कर दिया|





खैर, मैं दिल्ली आ गया था और उधर धीरे-धीरे नेहा को सच पता चलता गया| सच जानकार नेहा को बहुत पछतावा हुआ और वो मुझसे बात करने के लिए फ़ोन करने लगी मगर मैं नेहा की आवाज़ सुनकर ही फ़ोन काट दिया करता था| फिर नेहा ने अपनी दादी जी को फ़ोन किया तथा मुझसे बात करवाने को कहा लेकिन उस समय भी मैं आवाज़ साफ़ न आने का बहाना कर फ़ोन काट दिया करता था|



हारकर नेहा अपने बड़े मामा जी, स्तुति और अपनी मम्मी के साथ घर आ धमकी तथा मुझसे लिपट कर रोने लगी| माँ को कुछ मझ नहीं आ रहा था इसलिए संगीता ने बात सँभालते हुए झूठ बोला की नेहा को फिर से बुरे सपने आने लगे हैं इसी कारण वो बहुत घबराई हुई थी|
खैर, सबके सामने नेहा मुझसे माफ़ी मांग नहीं सकती थी इसलिए नेहा सही मौके का इंतज़ार करने लगी| शाम के समय मौका पा कर नेहा ने मुझसे माफ़ी माँगी मगर मैंने उसे रहीम जी का दोहा सुनाते हुए:

"रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय|
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय||"
समझाया की अब ये मुमकिन नहीं| इस बातचीत को आप पहले ही पढ़ चुके हैं|



नेहा का दिल बहुत दुखा और वो खुद को सँभाल न पाई! मुझे खोने के सदमे ने नेहा को इस कदर कमज़ोर कर दिया की मेरी ही तरह नेहा का भी मानसिक संतुलन हिल गया| नेहा को सँभालने के लिए आयुष, संगीता और स्तुति अम्बाला पहुँचे मगर कोई नेहा को सँभाल न पाया| उसी बीच मुझे दिषु के साथ ऑडिट पर जाना पड़ा| मेरे ऑडिट पर जाने से मैं स्तुति से बात न कर पाया जिसका मेरी बिटिया को बहुत बुरा लगा! वो तो जब आयुष और नेहा ने मिलकर उसे समझाया तब जा कर मेरी बिटिया समझी!

जब मैं वापस आया तो सब लोग मेरे घर पर मौजूद थे| उस दिन मुझे मेरी ज़िंदगी का एक नायाब तोहफा मेरी लाड़ली बिटिया स्तुति ने दिया| स्तुति ने आज पहली बार मुझे "पपई" की जगह "पापा जी" कह कर बुलाया| स्तुति ने बिना किसी के कुछ कहे मुझे अपना पापा मान लिया था| मैंने स्तुति को समझाया की वो किसी के सामने मुझे पापा जी कह कर न बुलाये, स्तुति समझदार थी इसलिए उसने इस बात को हम बाप-बेटी का एक 'सीक्रेट' मान लिया और तब से ले कर आजतक स्तुति मुझे अकेले में "पापा जी" ही कह कर बुलाती है|



स्तुति तो समझदार थी मगर नेहा सबसे बड़ी हो कर भी नासमझ थी| मैंने एक दिन नेहा से सबके सामने खुल कर बात की तो उसने अपने घबराने की दो वजह बताईं: पहली थी मुझे खो देना और दूसरी थी आदमियों से भय! नेहा के डर की दूसरी वजह का इलाज मैंने नेहा को समझा कर किया तथा भाभी जी ने नेहा को दुनिया में सर उठा कर कैसे चलना है ये सीखा कर किया| पहली वजह जानकार सभी ने मुझ पर दबाव बनाया की मैं नेहा को माफ़ कर दूँ और उसे पहले की तरह अपना लूँ मगर मेरा मन अब खाली था, उसमें किसी के लिए प्यार बचा ही नहीं था!

नेहा की ख़ुशी के लिए मैंने उसे माफ़ तो कर दिया लेकिन उसे बेटी का दर्ज़ा न दे पाया| नेहा के लिए मेरी माफ़ी आधी ख़ुशी थी इसलिए नेहा इससे खुश हो गई| रही बात मेरे नेहा को अपनी बेटी की तरह अपनाने की तो नेहा ने हार न मानते हुए इसका एक हल निकाला; "पापा जी, मैं समझ सकती हूँ की आपका दिल मेरे और मम्मी के कारण बहुत दुखा है...और आप इतनी आसानी से हमें नहीं अपना सकते! कोई बात नहीं...दादी जी (मेरी माँ) ने सिखाया है की हार नहीं मानते...हमेशा कोशिश करते हैं इसलिए आप मुझसे बात तो करोगे न? मैं आपसे मिलने तो आ सकती हूँ न? जैसे आप पहले मुझे घुमाने ले जाते थे, मुझे रोज़ रात को कहानी सुनाते थे...वो सुख तो मैं पा ही सकती हूँ न?! क्या पता धीरे-धीरे आपके मन में मेरे लिए फिर बेटी वाला प्यार पैदा हो जाए?" इस वक़्त अगर मैं न कहता तो नेहा का दिल टूट जाता और फिर शायद उसका वही हाल होता जो मेरा हुआ था इसलिए मैंने झूठे मुँह हाँ कह दी| मेरी हाँ सुन नेहा बहुत खुश हुई और वो आजतक मेरे दिल में एक बेटी के लिए प्यार जगाने में लगी हुई है|




समाप्त!
क्या ही कहें अब, मुझे लगता है कि पहले किस वजह से कहानी छोड़ी थी, इसे पढ़ने के बाद साबित हो गई।

मेरा मानना है कि ऐसे रिश्तों की कोई उम्र नहीं होती, बस उम्र भर का दर्द दे जाते हैं। लगाव अगर जो मर्यादित होता तो दुख नहीं देता।

खैर, इश्क के कूटे या कुटे नही तो क्या खाक इश्क किया।

बाकी एक ही बात कहूंगा, भगवान दिशू जैसा दोस्त सबको दे।
 
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