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Thank youNice beginning
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Thank youNice beginning
thank youइंट्रेस्टिंग
thank youNice start
Thank youWaiting for update
bahut hi badhiya story ha i........Update ~ 1
दोस्तो ये कहानी है इंसानी रिश्तो की जो कि आज भी हमे सिखाती है कि हमे रिश्ते कैसे
निभाने चाहिए दोस्तो रिश्तो मे कभी भी बासी पन नही आना चाहिए
“ये मैं कहा हूँ. मैं तो अपने कमरे में नींद की गोली ले कर सोई थी.
मैं यहा कैसे आ गयी ? किसका कमरा है ये ?”
आँखे खुलते ही ज़रीना के मन में हज़ारों सवाल घूमने लगते हैं. एक
अंजाना भय उसके मन को घेर लेता है.
वो कमरे को बड़े गोर से देखती है. "कही मैं सपना तो नही देख रही" ज़रीना सोचती है.
"नही नही ये सपना नही है...पर मैं हूँ कहा?" ज़रीना हैरानी में पड़ जाती है.
वो हिम्मत करके धीरे से बिस्तर से खड़ी हो कर दबे पाँव कमरे से बाहर आती है.
"बिल्कुल शुनशान सा माहॉल है...आख़िर हो क्या रहा है."
ज़रीना को सामने बने किचन में कुछ आहट सुनाई देती है.
"किचन में कोई है...कौन हो सकता है....?"
ज़रीना दबे पाँव किचन के दरवाजे पर आती है. अंदर खड़े लड़के को देख कर उशके होश उड़ जाते हैं.
“अरे ! ये तो अदित्य है… ये यहा क्या कर रहा है...क्या ये मुझे यहा ले कर आया है...ईश्की हिम्मत कैसे हुई” ज़रीना दरवाजे पर खड़े खड़े सोचती है.
आदित्या उसका क्लास मेट भी था और पड़ोसी भी. आदित्य और ज़रीना के परिवारों में बिल्कुल नही बनती थी. अक्सर अदित्य की मम्मी और ज़रीना की अम्मी में किसी ना किसी बात को ले कर कहा सुनी हो जाती थी. इन पड़ोसियों का झगड़ा पूरे मोहल्ले में मशहूर था. अक्सर इनकी भिड़ंत देखने के लिए लोग इक्कठ्ठा हो जाते थे.
ज़रीना और अदित्य भी एक दूसरे को देख कर बिल्कुल खुस नही थे. जब कभी
कॉलेज में वो एक दूसरे के सामने आते थे तो मूह फेर कर निकल जाते थे. हालत कुछ ऐसी थी कि अगर उनमे से एक कॉलेज की कॅंटीन में होता था तो दूसरा कॅंटीन में नही घुसता था. शूकर है कि दोनो अलग अलग सेक्षन में थे. वरना क्लास अटेंड करने में भी प्राब्लम हो सकती थी.
“क्या ये मुझ से कोई बदला ले रहा है ?” ज़रीना सोचती है.
अचानक ज़रीना की नज़र किचन के दरवाजे के पास रखे फ्लवर पोट पर पड़ी. उसने धीरे से फ्लवर पोट उठाया.
आदित्य को अपने पीछे कुछ आहट महसूस हुई तो उसने तुरंत पीछे मूड कर देखा. जब तक वो कुछ समझ पाता... ज़रीना ने उसके सर पर फ्लवर पोट दे मारा.
आदित्य के सर से खून बहने लगा और वो लड़खड़ा कर गिर गया.
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी हरकत करने की." ज़रीना चिल्लाई.
ज़रीना फ़ौरन दरवाजे की तरफ भागी और दरवाजा खोल कर भाग कर अपने घर के बाहर आ गयी.
पर घर के बाहर पहुँचते ही उसके कदम रुक गये. उसकी आँखे जो देख रही थी उसे उस पर विश्वास नही हो रहा था. वो थर-थर काँपने लगी.
उसके अध-जले घर के बाहर उसके अब्बा और अम्मी की लाश थी और घर के
दरवाजे पर उसकी छोटी बहन फ़ातिमा की लाश पड़ी थी. गली मैं
चारो तरफ कुछ ऐसा ही माहॉल था.
ज़रीना को कुछ समझ नही आता. उसकी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगता है और वो फूट-फूट कर रोने लगती है.
इतने में अदित्य भी वाहा आ जाता है.
ज़रीना उसे देख कर भागने लगती है….पर अदित्य तेज़ी से आगे बढ़ कर उसका मूह दबोच लेता है और उसे घसीट कर वापिस अपने घर में लाकर दरवाजा बंद करने लगता है.
ज़रीना को सोफे के पास रखी हॉकी नज़र आती है.वो भाग कर उसे उठा कर अदित्य के पेट में मारती है और तेज़ी से दरवाजा खोलने लगती है. पर अदित्य जल्दी से संभाल कर उसे पकड़ लेता है
“पागल हो गयी हो क्या… कहा जा रही हो.. दंगे हो रहे हैं बाहर. इंसान… भेड़िए बन चुके हैं.. तुम्हे देखते ही नोच-नोच कर खा जाएँगे”
ज़रीना ये सुन कर हैरानी से पूछती है, “द.द..दंगे !! कैसे दंगे?”
“एक ग्रूप ने ट्रेन फूँक दी…….. और दूसरे ग्रूप के लोग अब घर-बार फूँक रहे हैं… चारो तरफ…हा-हा-कार मचा है…खून की होली खेली जा रही है”
“मेरे अम्मी,अब्बा और फ़ातिमा ने किसी का क्या बिगाड़ा था” ---ज़रीना कहते हुवे
सूबक पड़ती है