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स्वाभाविक है कि ऐसे हादसे के बाद कोई भी दो व्यक्ति जब कुछ दिन साथ रहें। लेकिन दोनो के हालत फिलहाल ऐसे नही है कि एक दूसरे से कुछ कहें या दूसरे के मन का हाल जाने।
देखते हैं नियति क्या रंग दिखाती है दोनो की जिंदगी में।
Maine ye story read ki hai bhot he dilchasp story hai ye
.
Kher ise fir se post krne ka idea bi acha hai
Waise bi kafi time hogya ise read kia hue
.
Waise isko jitna Dil se read kia jaay mjaa aajata hai bhot he mast LOVE STORY hai ye
.
KEEP IT UP
Bhaut hi behtarin kahani hai bhawnao ka bahut hee jabardast samavesh hai… aankhen nam si ho gai padhte hue![]()
बढ़िया अपडेट।Update ~ 3
जिस दिन ज़रीना को जाना होता है, उस से पिछली रात दोनो रात भर बाते
करते रहते हैं. कभी कॉलेज के दिनो की, कभी मूवीस की और कभी क्रिकेट
की. किसी ना किसी बात के बहाने वो एक दूसरे के साथ बैठे रहते हैं. मन ही मन दोनो चाहते हैं कि काश किसी तरह बात प्यार की हो तो अछा हो. पर बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? दोनो प्यार को दिल में दबाए, दुनिया भर की बाते करते रहते हैं.
सुबह 6 बजे की ट्रेन थी. वो दोनो 4 बजे तक बाते करते रहे. बाते करते-करते उनकी आँख लग गयी और दोनो बैठे-बैठे सोफे पर ही सो गये.
कोई 5 बजे आदित्य की आँख खुलती है. उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस होता है
वो आँख खोल कर देखता है कि ज़रीना ने उसके पैरो पर माथा टिका रखा है
“अरे!!!!!! ये क्या कर रही हो?”
“अपने खुदा की इबादत कर रही हूँ, तुम ना होते तो मैं आज हरगिज़ जींदा ना होती”
“मैं कौन होता हूँ ज़रीना, सब उस भगवान की कृपा है, चलो जल्दी तैयार हो जाओ, 5 बज गये हैं, हम कहीं लेट ना हो जायें”
ज़रीना वाहा से उठ कर चल देती है और मन ही मन कहती है, “मुझे रोक लो
अदित्य”
“क्या तुम रुक नही सकती ज़रीना...बहुत अछा होता जो हम हमेशा इस घर में एक साथ रहते.” अदित्य भी मन में कहता है.
एक अनोखा बंधन दोनो के बीच जुड़ चुका है.
----------------------
5:30 बजे अदित्य, ज़रीना को अपनी बाइक पर रेलवे स्टेशन ले आता है.
ज़रीना को रेल में बैठा कर अदित्य कहता है, “एक सर्प्राइज़ दूं”
“क्या? ”
“मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ”
“सच!!!!”
“और नही तो क्या… मैं क्या ऐसे माहॉल में तुम्हे अकेले देल्ही भेजूँगा”
“तुम इंसान हो कि खुदा…कुछ समझ नही आता”
“एक मामूली सा इंसान हूँ जो तुम्हे…………”
“तुम्हे… क्या?” ज़रीना ने प्यार से पूछा
“कुछ नही”
आदित्या मन में कहता है, “……….जो तुम्हे बहुत प्यार करता है”
जो बात ज़रीना सुन-ना चाहती है, वो बात आदित्या मान में सोच रहा है, ऐसा अजीब प्यार है उष्का.
ट्रेन चलती है. आदित्य और ज़रीना खूब बाते करते हैं….बातो-बातो में कब वो देल्ही पहुँच जाते हैं….उन्हे पता ही नही चलता
ट्रेन से उतरते वक्त ज़रीना का दिल भारी हो उठता है. वो सोचती है कि पता
नही अब वो अदित्य से कभी मिल भी पाएगी या नही.
“अरे सोच क्या रही हो…उतरो जल्दी” अदित्य ने कहा.
ज़रीना को होश आता है और वो भारी कदमो से ट्रेन से उतारती है.
“चलो अब सिलमपुर के लिए ऑटो करते हैं” आदित्या ने एक ऑटो वाले को इशारा किया.
“क्या तुम मुझे मौसी के घर तक छोड़ कर आओगे?”
“और नही तो क्या… इसी बहाने तुम्हारा साथ थोड़ा और मिल जाएगा”
ज़रीना ये सुन कर मुस्कुरा देती है.
आदित्य के इशारे से एक ऑटो वाला रुक जाता है और दोनो उसमे बैठ कर सिलमपुर की तरफ चल पड़ते हैं.
ज़रीना रास्ते भर किन्ही गहरे ख़यालो में खोई रहती है. अदित्य भी चुप रहता है.
एक घंटे बाद ऑटो वाला सिलमपुर की मार्केट में ऑटो रोक कर पूछता है, “कहा जाना है… कोई पता-अड्रेस है क्या?”
“ह्म्म…..भैया यही उतार दो. आदित्य, मौसी का घर सामने वाली गली में है” ज़रीना ने कहा.
"शूकर है तुम कुछ तो बोली." अदित्य ने कहा.
"तुम भी तो चुप बैठे थे मोनी बाबा बन कर...क्या तुम कुछ नही बोल सकते थे."
"अछा-अछा अब उतरो भी...ऑटो वाला सुन रहा है." दोनो के बीच तकरार शुरू हो जाती है.
ज़रीना ऑटो से उतरती है. "अदित्य आइ आम सॉरी पर तुम कुछ बोल ही नही रहे थे."
"ठीक है कोई बात नही. शांति से अपने घर जाओ...मुझे भूल मत जानता."
"तुम्हे भूलना भी चाहूं तो भी भुला नही पाउन्गि"
"देखा हो गयी ना अपनी बाते शुरू." अदित्य ने मुस्कुराते हुवे कहा.
ज़रीना ने उस गली की और देखा जिसमे उसकी मौसी का घर था और गहरी साँस ली. "चलु मैं फिर"
थोड़ी देर दोनो में खामोसी बनी रहती है. आदित्य ज़रीना को देखता रहता है. "जाते जाते कुछ कहोगी नही" अदित्य ने कहा.
“आदित्य अब क्या कहूँ…तुम्हारा सुक्रिया करूँ भी तो कैसे, समझ नही आता”
“सुक्रिया उस खुदा का करो जिसने हमे इंसान बनाया है…. मेरा सुक्रिया क्यों करोगी?”
“कभी खाना बुरा बना हो तो माफ़ करना, और जल्दी शादी कर लेना, तुम अकेले नही रह पाओगे”
“ठीक है..ठीक है….अब रुलाओगि क्या.. चलो जाओ अपनी मौसी के घर”
“ठीक है अदित्य अपना ख्याल रखना और हां मैने जो उस दिन तुम्हारे सर पर फ्लवर पोट मारा था उसके लिए मुझे माफ़ कर देना”
“और उस हॉकी का क्या?”
ज़रीना शर्मा कर मुस्कुरा पड़ती है और कहती है, “हां उसके लिए भी”
“ठीक है बाबा जाओ अब…. लोग हमें घूर रहे हैं”
ज़रीना भारी कदमो से मूड कर चल पड़ती है और अदित्य उसे जाते हुवे देखता रहता है.
वो उसे पीछे से आवाज़ देने की कोशिस करता है पर उसके मूह से कुछ भी नही निकल पाता.
ज़रीना गली में घुस कर पीछे मूड कर अदित्य की तरफ देखती है. दोनो एक दूसरे को एक दर्द भरी मुस्कान के साथ बाइ करते हैं. उनकी दर्द भारी मुस्कान में उनका अनौखा प्यार उभर आता है. पर दोनो अभी भी इस बात से अंजान हैं कि वो ना चाहते हुवे भी एक अनोखे बंधन में बँध चुके हैं. प्यार के बंधन में.
जब ज़रीना गली में ओझल हो जाती है तो अदित्य मूड कर भारी मन से चल
पड़ता है.
“पता नही कैसे जी पाउन्गा ज़रीना के बिना मैं? काश! एक बार उसे अपना दिल चीर कर दीखा पाता…क्या वो भी मुझे प्यार करती है? लगता तो है. पर कुछ कह नही सकते”अदित्य चलते-चलते सोच रहा है.
अचानक उसे पीछे से आवाज़ आती है
“आदित्य!!! रूको….”
आदित्य मूड कर देखता है.
उसके पीछे ज़रीना खड़ी थी. उसकी आँखो से आँसू बह रहे थे.
“अरे तुम रो रही हो… तुम्हे तो अपने, अपनो के पास जाते वक्त खुस होना
चाहिए”
“तुम से ज़्यादा मेरा अपना कौन हो सकता है अदित्य… मुझे खुद से दूर मत करो”
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Superb Update BroUpdate ~ 3
जिस दिन ज़रीना को जाना होता है, उस से पिछली रात दोनो रात भर बाते
करते रहते हैं. कभी कॉलेज के दिनो की, कभी मूवीस की और कभी क्रिकेट
की. किसी ना किसी बात के बहाने वो एक दूसरे के साथ बैठे रहते हैं. मन ही मन दोनो चाहते हैं कि काश किसी तरह बात प्यार की हो तो अछा हो. पर बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? दोनो प्यार को दिल में दबाए, दुनिया भर की बाते करते रहते हैं.
सुबह 6 बजे की ट्रेन थी. वो दोनो 4 बजे तक बाते करते रहे. बाते करते-करते उनकी आँख लग गयी और दोनो बैठे-बैठे सोफे पर ही सो गये.
कोई 5 बजे आदित्य की आँख खुलती है. उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस होता है
वो आँख खोल कर देखता है कि ज़रीना ने उसके पैरो पर माथा टिका रखा है
“अरे!!!!!! ये क्या कर रही हो?”
“अपने खुदा की इबादत कर रही हूँ, तुम ना होते तो मैं आज हरगिज़ जींदा ना होती”
“मैं कौन होता हूँ ज़रीना, सब उस भगवान की कृपा है, चलो जल्दी तैयार हो जाओ, 5 बज गये हैं, हम कहीं लेट ना हो जायें”
ज़रीना वाहा से उठ कर चल देती है और मन ही मन कहती है, “मुझे रोक लो
अदित्य”
“क्या तुम रुक नही सकती ज़रीना...बहुत अछा होता जो हम हमेशा इस घर में एक साथ रहते.” अदित्य भी मन में कहता है.
एक अनोखा बंधन दोनो के बीच जुड़ चुका है.
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5:30 बजे अदित्य, ज़रीना को अपनी बाइक पर रेलवे स्टेशन ले आता है.
ज़रीना को रेल में बैठा कर अदित्य कहता है, “एक सर्प्राइज़ दूं”
“क्या? ”
“मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ”
“सच!!!!”
“और नही तो क्या… मैं क्या ऐसे माहॉल में तुम्हे अकेले देल्ही भेजूँगा”
“तुम इंसान हो कि खुदा…कुछ समझ नही आता”
“एक मामूली सा इंसान हूँ जो तुम्हे…………”
“तुम्हे… क्या?” ज़रीना ने प्यार से पूछा
“कुछ नही”
आदित्या मन में कहता है, “……….जो तुम्हे बहुत प्यार करता है”
जो बात ज़रीना सुन-ना चाहती है, वो बात आदित्या मान में सोच रहा है, ऐसा अजीब प्यार है उष्का.
ट्रेन चलती है. आदित्य और ज़रीना खूब बाते करते हैं….बातो-बातो में कब वो देल्ही पहुँच जाते हैं….उन्हे पता ही नही चलता
ट्रेन से उतरते वक्त ज़रीना का दिल भारी हो उठता है. वो सोचती है कि पता
नही अब वो अदित्य से कभी मिल भी पाएगी या नही.
“अरे सोच क्या रही हो…उतरो जल्दी” अदित्य ने कहा.
ज़रीना को होश आता है और वो भारी कदमो से ट्रेन से उतारती है.
“चलो अब सिलमपुर के लिए ऑटो करते हैं” आदित्या ने एक ऑटो वाले को इशारा किया.
“क्या तुम मुझे मौसी के घर तक छोड़ कर आओगे?”
“और नही तो क्या… इसी बहाने तुम्हारा साथ थोड़ा और मिल जाएगा”
ज़रीना ये सुन कर मुस्कुरा देती है.
आदित्य के इशारे से एक ऑटो वाला रुक जाता है और दोनो उसमे बैठ कर सिलमपुर की तरफ चल पड़ते हैं.
ज़रीना रास्ते भर किन्ही गहरे ख़यालो में खोई रहती है. अदित्य भी चुप रहता है.
एक घंटे बाद ऑटो वाला सिलमपुर की मार्केट में ऑटो रोक कर पूछता है, “कहा जाना है… कोई पता-अड्रेस है क्या?”
“ह्म्म…..भैया यही उतार दो. आदित्य, मौसी का घर सामने वाली गली में है” ज़रीना ने कहा.
"शूकर है तुम कुछ तो बोली." अदित्य ने कहा.
"तुम भी तो चुप बैठे थे मोनी बाबा बन कर...क्या तुम कुछ नही बोल सकते थे."
"अछा-अछा अब उतरो भी...ऑटो वाला सुन रहा है." दोनो के बीच तकरार शुरू हो जाती है.
ज़रीना ऑटो से उतरती है. "अदित्य आइ आम सॉरी पर तुम कुछ बोल ही नही रहे थे."
"ठीक है कोई बात नही. शांति से अपने घर जाओ...मुझे भूल मत जानता."
"तुम्हे भूलना भी चाहूं तो भी भुला नही पाउन्गि"
"देखा हो गयी ना अपनी बाते शुरू." अदित्य ने मुस्कुराते हुवे कहा.
ज़रीना ने उस गली की और देखा जिसमे उसकी मौसी का घर था और गहरी साँस ली. "चलु मैं फिर"
थोड़ी देर दोनो में खामोसी बनी रहती है. आदित्य ज़रीना को देखता रहता है. "जाते जाते कुछ कहोगी नही" अदित्य ने कहा.
“आदित्य अब क्या कहूँ…तुम्हारा सुक्रिया करूँ भी तो कैसे, समझ नही आता”
“सुक्रिया उस खुदा का करो जिसने हमे इंसान बनाया है…. मेरा सुक्रिया क्यों करोगी?”
“कभी खाना बुरा बना हो तो माफ़ करना, और जल्दी शादी कर लेना, तुम अकेले नही रह पाओगे”
“ठीक है..ठीक है….अब रुलाओगि क्या.. चलो जाओ अपनी मौसी के घर”
“ठीक है अदित्य अपना ख्याल रखना और हां मैने जो उस दिन तुम्हारे सर पर फ्लवर पोट मारा था उसके लिए मुझे माफ़ कर देना”
“और उस हॉकी का क्या?”
ज़रीना शर्मा कर मुस्कुरा पड़ती है और कहती है, “हां उसके लिए भी”
“ठीक है बाबा जाओ अब…. लोग हमें घूर रहे हैं”
ज़रीना भारी कदमो से मूड कर चल पड़ती है और अदित्य उसे जाते हुवे देखता रहता है.
वो उसे पीछे से आवाज़ देने की कोशिस करता है पर उसके मूह से कुछ भी नही निकल पाता.
ज़रीना गली में घुस कर पीछे मूड कर अदित्य की तरफ देखती है. दोनो एक दूसरे को एक दर्द भरी मुस्कान के साथ बाइ करते हैं. उनकी दर्द भारी मुस्कान में उनका अनौखा प्यार उभर आता है. पर दोनो अभी भी इस बात से अंजान हैं कि वो ना चाहते हुवे भी एक अनोखे बंधन में बँध चुके हैं. प्यार के बंधन में.
जब ज़रीना गली में ओझल हो जाती है तो अदित्य मूड कर भारी मन से चल
पड़ता है.
“पता नही कैसे जी पाउन्गा ज़रीना के बिना मैं? काश! एक बार उसे अपना दिल चीर कर दीखा पाता…क्या वो भी मुझे प्यार करती है? लगता तो है. पर कुछ कह नही सकते”अदित्य चलते-चलते सोच रहा है.
अचानक उसे पीछे से आवाज़ आती है
“आदित्य!!! रूको….”
आदित्य मूड कर देखता है.
उसके पीछे ज़रीना खड़ी थी. उसकी आँखो से आँसू बह रहे थे.
“अरे तुम रो रही हो… तुम्हे तो अपने, अपनो के पास जाते वक्त खुस होना
चाहिए”
“तुम से ज़्यादा मेरा अपना कौन हो सकता है अदित्य… मुझे खुद से दूर मत करो”
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thanksबढ़िया अपडेट।
लेकिन लगता है ये आदित्य का वहम है।