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ThanksSuperb Update Bro
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ThanksSuperb Update Bro
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ThanksMind-blowing update
Good start.Update ~ 1
दोस्तो ये कहानी है इंसानी रिश्तो की जो कि आज भी हमे सिखाती है कि हमे रिश्ते कैसे
निभाने चाहिए दोस्तो रिश्तो मे कभी भी बासी पन नही आना चाहिए
“ये मैं कहा हूँ. मैं तो अपने कमरे में नींद की गोली ले कर सोई थी.
मैं यहा कैसे आ गयी ? किसका कमरा है ये ?”
आँखे खुलते ही ज़रीना के मन में हज़ारों सवाल घूमने लगते हैं. एक
अंजाना भय उसके मन को घेर लेता है.
वो कमरे को बड़े गोर से देखती है. "कही मैं सपना तो नही देख रही" ज़रीना सोचती है.
"नही नही ये सपना नही है...पर मैं हूँ कहा?" ज़रीना हैरानी में पड़ जाती है.
वो हिम्मत करके धीरे से बिस्तर से खड़ी हो कर दबे पाँव कमरे से बाहर आती है.
"बिल्कुल शुनशान सा माहॉल है...आख़िर हो क्या रहा है."
ज़रीना को सामने बने किचन में कुछ आहट सुनाई देती है.
"किचन में कोई है...कौन हो सकता है....?"
ज़रीना दबे पाँव किचन के दरवाजे पर आती है. अंदर खड़े लड़के को देख कर उशके होश उड़ जाते हैं.
“अरे ! ये तो अदित्य है… ये यहा क्या कर रहा है...क्या ये मुझे यहा ले कर आया है...ईश्की हिम्मत कैसे हुई” ज़रीना दरवाजे पर खड़े खड़े सोचती है.
आदित्या उसका क्लास मेट भी था और पड़ोसी भी. आदित्य और ज़रीना के परिवारों में बिल्कुल नही बनती थी. अक्सर अदित्य की मम्मी और ज़रीना की अम्मी में किसी ना किसी बात को ले कर कहा सुनी हो जाती थी. इन पड़ोसियों का झगड़ा पूरे मोहल्ले में मशहूर था. अक्सर इनकी भिड़ंत देखने के लिए लोग इक्कठ्ठा हो जाते थे.
ज़रीना और अदित्य भी एक दूसरे को देख कर बिल्कुल खुस नही थे. जब कभी
कॉलेज में वो एक दूसरे के सामने आते थे तो मूह फेर कर निकल जाते थे. हालत कुछ ऐसी थी कि अगर उनमे से एक कॉलेज की कॅंटीन में होता था तो दूसरा कॅंटीन में नही घुसता था. शूकर है कि दोनो अलग अलग सेक्षन में थे. वरना क्लास अटेंड करने में भी प्राब्लम हो सकती थी.
“क्या ये मुझ से कोई बदला ले रहा है ?” ज़रीना सोचती है.
अचानक ज़रीना की नज़र किचन के दरवाजे के पास रखे फ्लवर पोट पर पड़ी. उसने धीरे से फ्लवर पोट उठाया.
आदित्य को अपने पीछे कुछ आहट महसूस हुई तो उसने तुरंत पीछे मूड कर देखा. जब तक वो कुछ समझ पाता... ज़रीना ने उसके सर पर फ्लवर पोट दे मारा.
आदित्य के सर से खून बहने लगा और वो लड़खड़ा कर गिर गया.
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी हरकत करने की." ज़रीना चिल्लाई.
ज़रीना फ़ौरन दरवाजे की तरफ भागी और दरवाजा खोल कर भाग कर अपने घर के बाहर आ गयी.
पर घर के बाहर पहुँचते ही उसके कदम रुक गये. उसकी आँखे जो देख रही थी उसे उस पर विश्वास नही हो रहा था. वो थर-थर काँपने लगी.
उसके अध-जले घर के बाहर उसके अब्बा और अम्मी की लाश थी और घर के
दरवाजे पर उसकी छोटी बहन फ़ातिमा की लाश पड़ी थी. गली मैं
चारो तरफ कुछ ऐसा ही माहॉल था.
ज़रीना को कुछ समझ नही आता. उसकी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगता है और वो फूट-फूट कर रोने लगती है.
इतने में अदित्य भी वाहा आ जाता है.
ज़रीना उसे देख कर भागने लगती है….पर अदित्य तेज़ी से आगे बढ़ कर उसका मूह दबोच लेता है और उसे घसीट कर वापिस अपने घर में लाकर दरवाजा बंद करने लगता है.
ज़रीना को सोफे के पास रखी हॉकी नज़र आती है.वो भाग कर उसे उठा कर अदित्य के पेट में मारती है और तेज़ी से दरवाजा खोलने लगती है. पर अदित्य जल्दी से संभाल कर उसे पकड़ लेता है
“पागल हो गयी हो क्या… कहा जा रही हो.. दंगे हो रहे हैं बाहर. इंसान… भेड़िए बन चुके हैं.. तुम्हे देखते ही नोच-नोच कर खा जाएँगे”
ज़रीना ये सुन कर हैरानी से पूछती है, “द.द..दंगे !! कैसे दंगे?”
“एक ग्रूप ने ट्रेन फूँक दी…….. और दूसरे ग्रूप के लोग अब घर-बार फूँक रहे हैं… चारो तरफ…हा-हा-कार मचा है…खून की होली खेली जा रही है”
“मेरे अम्मी,अब्बा और फ़ातिमा ने किसी का क्या बिगाड़ा था” ---ज़रीना कहते हुवे
सूबक पड़ती है
Both are in double mind and can not speak what they want.Update ~ 2
बिगाड़ा तो उन लोगो ने भी नही था जो ट्रेन में थे…..बस यू समझ लो कि
करता कोई है और भरता कोई… सब राजनीतिक षड्यंत्र है”
“तुम मुझे यहा क्यों लाए, क्या मुझ से बदला ले रहे हो ?”
“जब पता चला कि ट्रेन फूँक दी गयी तो मैं भी अपना आपा खो बैठा था”
“हां-हां माइनोरिटी के खिलाफ आपा खोना बड़ा आसान है”
“मेरे मा-बाप उस ट्रेन की आग में झुलस कर मारे गये, ज़रीना...कोई भी अपना आपा खो देगा.”
“तो मेरी अम्मी और अब्बा कौन सा जिंदा बचे हैं.. और फ़ातिमा का तो ** हुवा
लगता है. हो गया ना तुम्हारा हिसाब बराबर… अब मुझे जाने दो” ज़रीना रोते हुवे कहती है.
“ये सब मैने नही किया समझी… तुम्हे यहा उठा लाया क्योंकि फ़ातिमा का **
देखा नही गया मुझसे….अभी रात के 2 बजे हैं और बाहर करफ्यू लगा है.
माहॉल ठीक होने पर जहाँ चाहे चली जाना”
“मुझे तुम्हारा अहसान मंजूर नही…मैं अपनी जान दे दूँगी”
ज़रीना किचन की तरफ भागती है और एक चाकू उठा कर अपनी कलाई की नस
काटने लगती है
आदित्य भाग कर उसके हाथ से चाकू छीन-ता है और उसके मूह पर ज़ोर से एक थप्पड़ मारता है.
ज़रीना थप्पड़ की चोट से लड़खड़ा कर गिर जाती है और फूट-फूट कर रोने
लगती है.
“चुप हो जाओ.. बाहर हर तरफ वहसी दरिंदे घूम रहे हैं.. किसी को शक हो गया कि तुम यहा हो तो सब गड़बड़ हो जाएगा”
“क्या अब मैं रो भी नही सकती… क्या बचा है मेरे पास अब.. ये आँसू ही हैं.. इन्हे तो बह जाने दो”
आदित्य कुछ नही कहता और बिना कुछ कहे किचन से बाहर आ जाता है.
ज़रीना रोते हुवे वापिस उसी कमरे में घुस जाती है जिसमे उसकी कुछ देर पहले आँख खुली थी.
-----------------------
अगली सुबह ज़रीना उठ कर बाहर आती है तो देखती है कि अदित्य खाना बना
रहा है.
आदित्य ज़रीना को देख कर पूछता है, “क्या खाओगि ?”
“ज़हर हो तो दे दो”
“वो तो नही है.. टूटे-फूटे पराठे बना रहा हूँ….यही खाने
पड़ेंगे..….आऊउच…” आदित्या की उंगली जल गयी.
“क्या हुवा…. ?”
“कुछ नही उंगली ज़ल गयी”
“क्या पहले कभी तुमने खाना बनाया है ?”
“नही, पर आज…बनाना पड़ेगा.. अब वैसे भी मम्मी के बिना मुझे खुद ही बनाना पड़ेगा ”
ज़रीना कुछ सोच कर कहती है, “हटो, मैं बनाती हूँ”
“नही मैं बना लूँगा”
“हट भी जाओ…जब बनाना नही आता तो कैसे बना लोगे”
“एक शर्त पर हटूँगा”
“हां बोलो”
“तुम भी खाओगि ना?”
“मुझे भूक नही है”
“मैं समझ सकता हूँ ज़रीना, तुम्हारी तरह मैने भी अपनो को खोया है. पर ज़ींदा रहने के लिए हमें कुछ तो खाना ही पड़ेगा”
“किसके लिए ज़ींदा रहूं, कौन बचा है मेरा?”
“कल मैं भी यही सोच रहा था. पर जब तुम्हे यहा लाया तो जैसे मुझे जीने
का कोई मकसद मिल गया”
“पर मेरा तो कोई मकसद नही………”
“है क्यों नही? तुम इस दौरान मुझे अछा-अछा खाना खिलाने का मकसद बना लो… वक्त कट जाएगा. करफ्यू खुलते ही मैं तुम्हे सुरक्षित जहा तुम कहो वाहा पहुँचा दूँगा” – अदित्य हल्का सा मुस्कुरा कर बोला
ज़रीना भी उसकी बात पर हल्का सा मुस्कुरा दी और बोली, “चलो हटो अब…. मुझे बनाने दो”
“क्या मैं किसी तरह देल्ही पहुँच सकती हूँ, मेरी मौसी है वाहा?”
“चिंता मत करो, माहॉल ठीक होते ही सबसे पहला काम यही करूँगा”
ज़रीना अदित्य की ओर देख कर सोचती है, “कभी सोचा भी नही था कि जिस
इंसान से मैं बात भी करना पसंद नही करती, उसके लिए कभी खाना
बनाउन्गि”
आदित्य भी मन में सोचता है, “क्या खेल है किस्मत का? जिस लड़की को देखना
भी पसंद नही करता था, उसके लिए आज कुछ भी करने को तैयार हूँ. शायद
यही इंसानियत है”
धीरे-धीरे वक्त बीत-ता है और दोनो आछे दोस्त बनते जाते हैं. एक दूसरे के प्रति उनके दिल में जो नफ़रत थी वो ना जाने कहा गायब हो जाती है.
वो 24 घंटे घर में रहते हैं. कभी प्यार से बात करते हैं कभी तकरार से. कभी हंसते हैं और कभी रोते हैं. वो दोनो वक्त की कड़वाहट को
भुलाने की पूरी कॉसिश कर रहे हैं.
एक दिन अदित्य ज़रीना से कहता है, “तुम चली जाओगी तो ना जाने कैसे रहूँगा
मैं यहा. तुम्हारे साथ की आदत सी हो गयी है. कौन मेरे लिए
अछा-अछा खाना बनाएगा. समझ नही आता कि मैं तब क्या करूँगा?”
“तुम शादी कर लेना, सब ठीक हो जाएगा”
“और फिर भी तुम्हारी याद आई तो?”
“तो मुझे फोन किया करना”
ज़रीना को भी अदित्य के साथ की आदत हो चुकी है. वो भी वाहा से जाने के
ख्याल से परेशान तो हो जाती है, पर कहती कुछ नही.
आफ्टर वन मंथ: --
“ज़रीना, उठो दिन में भी सोती रहती हो”
“क्या बात है? सोने दो ना”
“करफ्यू खुल गया है. मैं ट्रेन की टिकेट बुक करा कर आता हूँ. तुम किसी
बात की चिंता मत करना, मैं जल्दी ही आ जाउन्गा”
“अपना ख्याल रखना अदित्य”
“ठीक है…सो जाओ तुम कुंभकारण कहीं की…हे..हे..हे….”
“वापिस आओ मैं तुम्हे बताती हूँ” --- ज़रीना अदित्य के उपर तकिया फेंक कर
बोलती है
आदित्य हंसते हुवे वाहा से चला जाता है.
जब वो वापिस आता है तो ज़रीना को किचन में पाता है
“बस 5 दिन और…फिर तुम अपनी मौसी के घर पर होगी”
“5 दिन और का मतलब? ……मुझे क्या यहा कोई तकलीफ़ है?”
“तो रुक जाओ फिर यहीं…अगर कोई तकलीफ़ नही है तो”
ज़रीना अदित्य के चेहरे को बड़े प्यार से देखती है. उसका दिल भावुक हो उठता
है
“क्या तुम चाहते हो कि मैं यहीं रुक जाउ?”
“नही-नही मैं तो मज़ाक कर रहा था बाबा. ऐसा चाहता तो टिकेट क्यों बुक
कराता?” -- ये कह कर अदित्य वाहा से चल देता है. उसे पता भी नही चलता
की उसकी आँखे कब नम हो गयी.
इधर ज़रीना मन ही मन कहती है, “तुम रोक कर तो देखो मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि”
वो 5 दिन उन दोनो के बहुत भारी गुज़रते हैं. आदित्य ज़रीना से कुछ कहना चाहता है, पर कुछ कह नही पाता. ज़रीना भी बार-बार अदित्य को कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करती है पर अदित्य के सामने आने पर उसके होन्ट सिल जाते हैं.
Both are in double mind and can not speak what they want.Update ~ 2
बिगाड़ा तो उन लोगो ने भी नही था जो ट्रेन में थे…..बस यू समझ लो कि
करता कोई है और भरता कोई… सब राजनीतिक षड्यंत्र है”
“तुम मुझे यहा क्यों लाए, क्या मुझ से बदला ले रहे हो ?”
“जब पता चला कि ट्रेन फूँक दी गयी तो मैं भी अपना आपा खो बैठा था”
“हां-हां माइनोरिटी के खिलाफ आपा खोना बड़ा आसान है”
“मेरे मा-बाप उस ट्रेन की आग में झुलस कर मारे गये, ज़रीना...कोई भी अपना आपा खो देगा.”
“तो मेरी अम्मी और अब्बा कौन सा जिंदा बचे हैं.. और फ़ातिमा का तो ** हुवा
लगता है. हो गया ना तुम्हारा हिसाब बराबर… अब मुझे जाने दो” ज़रीना रोते हुवे कहती है.
“ये सब मैने नही किया समझी… तुम्हे यहा उठा लाया क्योंकि फ़ातिमा का **
देखा नही गया मुझसे….अभी रात के 2 बजे हैं और बाहर करफ्यू लगा है.
माहॉल ठीक होने पर जहाँ चाहे चली जाना”
“मुझे तुम्हारा अहसान मंजूर नही…मैं अपनी जान दे दूँगी”
ज़रीना किचन की तरफ भागती है और एक चाकू उठा कर अपनी कलाई की नस
काटने लगती है
आदित्य भाग कर उसके हाथ से चाकू छीन-ता है और उसके मूह पर ज़ोर से एक थप्पड़ मारता है.
ज़रीना थप्पड़ की चोट से लड़खड़ा कर गिर जाती है और फूट-फूट कर रोने
लगती है.
“चुप हो जाओ.. बाहर हर तरफ वहसी दरिंदे घूम रहे हैं.. किसी को शक हो गया कि तुम यहा हो तो सब गड़बड़ हो जाएगा”
“क्या अब मैं रो भी नही सकती… क्या बचा है मेरे पास अब.. ये आँसू ही हैं.. इन्हे तो बह जाने दो”
आदित्य कुछ नही कहता और बिना कुछ कहे किचन से बाहर आ जाता है.
ज़रीना रोते हुवे वापिस उसी कमरे में घुस जाती है जिसमे उसकी कुछ देर पहले आँख खुली थी.
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अगली सुबह ज़रीना उठ कर बाहर आती है तो देखती है कि अदित्य खाना बना
रहा है.
आदित्य ज़रीना को देख कर पूछता है, “क्या खाओगि ?”
“ज़हर हो तो दे दो”
“वो तो नही है.. टूटे-फूटे पराठे बना रहा हूँ….यही खाने
पड़ेंगे..….आऊउच…” आदित्या की उंगली जल गयी.
“क्या हुवा…. ?”
“कुछ नही उंगली ज़ल गयी”
“क्या पहले कभी तुमने खाना बनाया है ?”
“नही, पर आज…बनाना पड़ेगा.. अब वैसे भी मम्मी के बिना मुझे खुद ही बनाना पड़ेगा ”
ज़रीना कुछ सोच कर कहती है, “हटो, मैं बनाती हूँ”
“नही मैं बना लूँगा”
“हट भी जाओ…जब बनाना नही आता तो कैसे बना लोगे”
“एक शर्त पर हटूँगा”
“हां बोलो”
“तुम भी खाओगि ना?”
“मुझे भूक नही है”
“मैं समझ सकता हूँ ज़रीना, तुम्हारी तरह मैने भी अपनो को खोया है. पर ज़ींदा रहने के लिए हमें कुछ तो खाना ही पड़ेगा”
“किसके लिए ज़ींदा रहूं, कौन बचा है मेरा?”
“कल मैं भी यही सोच रहा था. पर जब तुम्हे यहा लाया तो जैसे मुझे जीने
का कोई मकसद मिल गया”
“पर मेरा तो कोई मकसद नही………”
“है क्यों नही? तुम इस दौरान मुझे अछा-अछा खाना खिलाने का मकसद बना लो… वक्त कट जाएगा. करफ्यू खुलते ही मैं तुम्हे सुरक्षित जहा तुम कहो वाहा पहुँचा दूँगा” – अदित्य हल्का सा मुस्कुरा कर बोला
ज़रीना भी उसकी बात पर हल्का सा मुस्कुरा दी और बोली, “चलो हटो अब…. मुझे बनाने दो”
“क्या मैं किसी तरह देल्ही पहुँच सकती हूँ, मेरी मौसी है वाहा?”
“चिंता मत करो, माहॉल ठीक होते ही सबसे पहला काम यही करूँगा”
ज़रीना अदित्य की ओर देख कर सोचती है, “कभी सोचा भी नही था कि जिस
इंसान से मैं बात भी करना पसंद नही करती, उसके लिए कभी खाना
बनाउन्गि”
आदित्य भी मन में सोचता है, “क्या खेल है किस्मत का? जिस लड़की को देखना
भी पसंद नही करता था, उसके लिए आज कुछ भी करने को तैयार हूँ. शायद
यही इंसानियत है”
धीरे-धीरे वक्त बीत-ता है और दोनो आछे दोस्त बनते जाते हैं. एक दूसरे के प्रति उनके दिल में जो नफ़रत थी वो ना जाने कहा गायब हो जाती है.
वो 24 घंटे घर में रहते हैं. कभी प्यार से बात करते हैं कभी तकरार से. कभी हंसते हैं और कभी रोते हैं. वो दोनो वक्त की कड़वाहट को
भुलाने की पूरी कॉसिश कर रहे हैं.
एक दिन अदित्य ज़रीना से कहता है, “तुम चली जाओगी तो ना जाने कैसे रहूँगा
मैं यहा. तुम्हारे साथ की आदत सी हो गयी है. कौन मेरे लिए
अछा-अछा खाना बनाएगा. समझ नही आता कि मैं तब क्या करूँगा?”
“तुम शादी कर लेना, सब ठीक हो जाएगा”
“और फिर भी तुम्हारी याद आई तो?”
“तो मुझे फोन किया करना”
ज़रीना को भी अदित्य के साथ की आदत हो चुकी है. वो भी वाहा से जाने के
ख्याल से परेशान तो हो जाती है, पर कहती कुछ नही.
आफ्टर वन मंथ: --
“ज़रीना, उठो दिन में भी सोती रहती हो”
“क्या बात है? सोने दो ना”
“करफ्यू खुल गया है. मैं ट्रेन की टिकेट बुक करा कर आता हूँ. तुम किसी
बात की चिंता मत करना, मैं जल्दी ही आ जाउन्गा”
“अपना ख्याल रखना अदित्य”
“ठीक है…सो जाओ तुम कुंभकारण कहीं की…हे..हे..हे….”
“वापिस आओ मैं तुम्हे बताती हूँ” --- ज़रीना अदित्य के उपर तकिया फेंक कर
बोलती है
आदित्य हंसते हुवे वाहा से चला जाता है.
जब वो वापिस आता है तो ज़रीना को किचन में पाता है
“बस 5 दिन और…फिर तुम अपनी मौसी के घर पर होगी”
“5 दिन और का मतलब? ……मुझे क्या यहा कोई तकलीफ़ है?”
“तो रुक जाओ फिर यहीं…अगर कोई तकलीफ़ नही है तो”
ज़रीना अदित्य के चेहरे को बड़े प्यार से देखती है. उसका दिल भावुक हो उठता
है
“क्या तुम चाहते हो कि मैं यहीं रुक जाउ?”
“नही-नही मैं तो मज़ाक कर रहा था बाबा. ऐसा चाहता तो टिकेट क्यों बुक
कराता?” -- ये कह कर अदित्य वाहा से चल देता है. उसे पता भी नही चलता
की उसकी आँखे कब नम हो गयी.
इधर ज़रीना मन ही मन कहती है, “तुम रोक कर तो देखो मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि”
वो 5 दिन उन दोनो के बहुत भारी गुज़रते हैं. आदित्य ज़रीना से कुछ कहना चाहता है, पर कुछ कह नही पाता. ज़रीना भी बार-बार अदित्य को कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करती है पर अदित्य के सामने आने पर उसके होन्ट सिल जाते हैं.
Finally Zarina realised her love for Aditya.Update ~ 3
जिस दिन ज़रीना को जाना होता है, उस से पिछली रात दोनो रात भर बाते
करते रहते हैं. कभी कॉलेज के दिनो की, कभी मूवीस की और कभी क्रिकेट
की. किसी ना किसी बात के बहाने वो एक दूसरे के साथ बैठे रहते हैं. मन ही मन दोनो चाहते हैं कि काश किसी तरह बात प्यार की हो तो अछा हो. पर बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? दोनो प्यार को दिल में दबाए, दुनिया भर की बाते करते रहते हैं.
सुबह 6 बजे की ट्रेन थी. वो दोनो 4 बजे तक बाते करते रहे. बाते करते-करते उनकी आँख लग गयी और दोनो बैठे-बैठे सोफे पर ही सो गये.
कोई 5 बजे आदित्य की आँख खुलती है. उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस होता है
वो आँख खोल कर देखता है कि ज़रीना ने उसके पैरो पर माथा टिका रखा है
“अरे!!!!!! ये क्या कर रही हो?”
“अपने खुदा की इबादत कर रही हूँ, तुम ना होते तो मैं आज हरगिज़ जींदा ना होती”
“मैं कौन होता हूँ ज़रीना, सब उस भगवान की कृपा है, चलो जल्दी तैयार हो जाओ, 5 बज गये हैं, हम कहीं लेट ना हो जायें”
ज़रीना वाहा से उठ कर चल देती है और मन ही मन कहती है, “मुझे रोक लो
अदित्य”
“क्या तुम रुक नही सकती ज़रीना...बहुत अछा होता जो हम हमेशा इस घर में एक साथ रहते.” अदित्य भी मन में कहता है.
एक अनोखा बंधन दोनो के बीच जुड़ चुका है.
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5:30 बजे अदित्य, ज़रीना को अपनी बाइक पर रेलवे स्टेशन ले आता है.
ज़रीना को रेल में बैठा कर अदित्य कहता है, “एक सर्प्राइज़ दूं”
“क्या? ”
“मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ”
“सच!!!!”
“और नही तो क्या… मैं क्या ऐसे माहॉल में तुम्हे अकेले देल्ही भेजूँगा”
“तुम इंसान हो कि खुदा…कुछ समझ नही आता”
“एक मामूली सा इंसान हूँ जो तुम्हे…………”
“तुम्हे… क्या?” ज़रीना ने प्यार से पूछा
“कुछ नही”
आदित्या मन में कहता है, “……….जो तुम्हे बहुत प्यार करता है”
जो बात ज़रीना सुन-ना चाहती है, वो बात आदित्या मान में सोच रहा है, ऐसा अजीब प्यार है उष्का.
ट्रेन चलती है. आदित्य और ज़रीना खूब बाते करते हैं….बातो-बातो में कब वो देल्ही पहुँच जाते हैं….उन्हे पता ही नही चलता
ट्रेन से उतरते वक्त ज़रीना का दिल भारी हो उठता है. वो सोचती है कि पता
नही अब वो अदित्य से कभी मिल भी पाएगी या नही.
“अरे सोच क्या रही हो…उतरो जल्दी” अदित्य ने कहा.
ज़रीना को होश आता है और वो भारी कदमो से ट्रेन से उतारती है.
“चलो अब सिलमपुर के लिए ऑटो करते हैं” आदित्या ने एक ऑटो वाले को इशारा किया.
“क्या तुम मुझे मौसी के घर तक छोड़ कर आओगे?”
“और नही तो क्या… इसी बहाने तुम्हारा साथ थोड़ा और मिल जाएगा”
ज़रीना ये सुन कर मुस्कुरा देती है.
आदित्य के इशारे से एक ऑटो वाला रुक जाता है और दोनो उसमे बैठ कर सिलमपुर की तरफ चल पड़ते हैं.
ज़रीना रास्ते भर किन्ही गहरे ख़यालो में खोई रहती है. अदित्य भी चुप रहता है.
एक घंटे बाद ऑटो वाला सिलमपुर की मार्केट में ऑटो रोक कर पूछता है, “कहा जाना है… कोई पता-अड्रेस है क्या?”
“ह्म्म…..भैया यही उतार दो. आदित्य, मौसी का घर सामने वाली गली में है” ज़रीना ने कहा.
"शूकर है तुम कुछ तो बोली." अदित्य ने कहा.
"तुम भी तो चुप बैठे थे मोनी बाबा बन कर...क्या तुम कुछ नही बोल सकते थे."
"अछा-अछा अब उतरो भी...ऑटो वाला सुन रहा है." दोनो के बीच तकरार शुरू हो जाती है.
ज़रीना ऑटो से उतरती है. "अदित्य आइ आम सॉरी पर तुम कुछ बोल ही नही रहे थे."
"ठीक है कोई बात नही. शांति से अपने घर जाओ...मुझे भूल मत जानता."
"तुम्हे भूलना भी चाहूं तो भी भुला नही पाउन्गि"
"देखा हो गयी ना अपनी बाते शुरू." अदित्य ने मुस्कुराते हुवे कहा.
ज़रीना ने उस गली की और देखा जिसमे उसकी मौसी का घर था और गहरी साँस ली. "चलु मैं फिर"
थोड़ी देर दोनो में खामोसी बनी रहती है. आदित्य ज़रीना को देखता रहता है. "जाते जाते कुछ कहोगी नही" अदित्य ने कहा.
“आदित्य अब क्या कहूँ…तुम्हारा सुक्रिया करूँ भी तो कैसे, समझ नही आता”
“सुक्रिया उस खुदा का करो जिसने हमे इंसान बनाया है…. मेरा सुक्रिया क्यों करोगी?”
“कभी खाना बुरा बना हो तो माफ़ करना, और जल्दी शादी कर लेना, तुम अकेले नही रह पाओगे”
“ठीक है..ठीक है….अब रुलाओगि क्या.. चलो जाओ अपनी मौसी के घर”
“ठीक है अदित्य अपना ख्याल रखना और हां मैने जो उस दिन तुम्हारे सर पर फ्लवर पोट मारा था उसके लिए मुझे माफ़ कर देना”
“और उस हॉकी का क्या?”
ज़रीना शर्मा कर मुस्कुरा पड़ती है और कहती है, “हां उसके लिए भी”
“ठीक है बाबा जाओ अब…. लोग हमें घूर रहे हैं”
ज़रीना भारी कदमो से मूड कर चल पड़ती है और अदित्य उसे जाते हुवे देखता रहता है.
वो उसे पीछे से आवाज़ देने की कोशिस करता है पर उसके मूह से कुछ भी नही निकल पाता.
ज़रीना गली में घुस कर पीछे मूड कर अदित्य की तरफ देखती है. दोनो एक दूसरे को एक दर्द भरी मुस्कान के साथ बाइ करते हैं. उनकी दर्द भारी मुस्कान में उनका अनौखा प्यार उभर आता है. पर दोनो अभी भी इस बात से अंजान हैं कि वो ना चाहते हुवे भी एक अनोखे बंधन में बँध चुके हैं. प्यार के बंधन में.
जब ज़रीना गली में ओझल हो जाती है तो अदित्य मूड कर भारी मन से चल
पड़ता है.
“पता नही कैसे जी पाउन्गा ज़रीना के बिना मैं? काश! एक बार उसे अपना दिल चीर कर दीखा पाता…क्या वो भी मुझे प्यार करती है? लगता तो है. पर कुछ कह नही सकते”अदित्य चलते-चलते सोच रहा है.
अचानक उसे पीछे से आवाज़ आती है
“आदित्य!!! रूको….”
आदित्य मूड कर देखता है.
उसके पीछे ज़रीना खड़ी थी. उसकी आँखो से आँसू बह रहे थे.
“अरे तुम रो रही हो… तुम्हे तो अपने, अपनो के पास जाते वक्त खुस होना
चाहिए”
“तुम से ज़्यादा मेरा अपना कौन हो सकता है अदित्य… मुझे खुद से दूर मत करो”