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“क्या मैं किसी तरह देल्ही पहुँच सकती हूँ, मेरी मौसी है वाहा?”
“चिंता मत करो, माहॉल ठीक होते ही सबसे पहला काम यही करूँगा”
ज़रीना अदित्य की ओर देख कर सोचती है, “कभी सोचा भी नही था कि जिस
इंसान से मैं बात भी करना पसंद नही करती, उसके लिए कभी खाना
बनाउन्गि”
आदित्य भी मन में सोचता है, “क्या खेल है किस्मत का? जिस लड़की को देखना
भी पसंद नही करता था, उसके लिए आज कुछ भी करने को तैयार हूँ. शायद
यही इंसानियत है”
धीरे-धीरे वक्त बीत-ता है और दोनो आछे दोस्त बनते जाते हैं. एक दूसरे के प्रति उनके दिल में जो नफ़रत थी वो ना जाने कहा गायब हो जाती है.
वो 24 घंटे घर में रहते हैं. कभी प्यार से बात करते हैं कभी तकरार से. कभी हंसते हैं और कभी रोते हैं. वो दोनो वक्त की कड़वाहट को
भुलाने की पूरी कॉसिश कर रहे हैं.
एक दिन अदित्य ज़रीना से कहता है, “तुम चली जाओगी तो ना जाने कैसे रहूँगा
मैं यहा. तुम्हारे साथ की आदत सी हो गयी है. कौन मेरे लिए
अछा-अछा खाना बनाएगा. समझ नही आता कि मैं तब क्या करूँगा?”
“तुम शादी कर लेना, सब ठीक हो जाएगा”
“और फिर भी तुम्हारी याद आई तो?”
“तो मुझे फोन किया करना”
ज़रीना को भी अदित्य के साथ की आदत हो चुकी है. वो भी वाहा से जाने के
ख्याल से परेशान तो हो जाती है, पर कहती कुछ नही.
आफ्टर वन मंथ: --
“ज़रीना, उठो दिन में भी सोती रहती हो”
“क्या बात है? सोने दो ना”
“करफ्यू खुल गया है. मैं ट्रेन की टिकेट बुक करा कर आता हूँ. तुम किसी
बात की चिंता मत करना, मैं जल्दी ही आ जाउन्गा”
“अपना ख्याल रखना अदित्य”
“ठीक है…सो जाओ तुम कुंभकारण कहीं की…हे..हे..हे….”
“वापिस आओ मैं तुम्हे बताती हूँ” --- ज़रीना अदित्य के उपर तकिया फेंक कर
बोलती है
आदित्य हंसते हुवे वाहा से चला जाता है.
जब वो वापिस आता है तो ज़रीना को किचन में पाता है
“बस 5 दिन और…फिर तुम अपनी मौसी के घर पर होगी”
“5 दिन और का मतलब? ……मुझे क्या यहा कोई तकलीफ़ है?”
“तो रुक जाओ फिर यहीं…अगर कोई तकलीफ़ नही है तो”
ज़रीना अदित्य के चेहरे को बड़े प्यार से देखती है. उसका दिल भावुक हो उठता
है
“क्या तुम चाहते हो कि मैं यहीं रुक जाउ?”
“नही-नही मैं तो मज़ाक कर रहा था बाबा. ऐसा चाहता तो टिकेट क्यों बुक
कराता?” -- ये कह कर अदित्य वाहा से चल देता है. उसे पता भी नही चलता
की उसकी आँखे कब नम हो गयी.
इधर ज़रीना मन ही मन कहती है, “तुम रोक कर तो देखो मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि”
वो 5 दिन उन दोनो के बहुत भारी गुज़रते हैं. आदित्य ज़रीना से कुछ कहना चाहता है, पर कुछ कह नही पाता. ज़रीना भी बार-बार अदित्य को कुछ कहने के लिए खुद को तैयार करती है पर अदित्य के सामने आने पर उसके होन्ट सिल जाते हैं.
जिस दिन ज़रीना को जाना होता है, उस से पिछली रात दोनो रात भर बाते
करते रहते हैं. कभी कॉलेज के दिनो की, कभी मूवीस की और कभी क्रिकेट
की. किसी ना किसी बात के बहाने वो एक दूसरे के साथ बैठे रहते हैं. मन ही मन दोनो चाहते हैं कि काश किसी तरह बात प्यार की हो तो अछा हो. पर बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? दोनो प्यार को दिल में दबाए, दुनिया भर की बाते करते रहते हैं.
सुबह 6 बजे की ट्रेन थी. वो दोनो 4 बजे तक बाते करते रहे. बाते करते-करते उनकी आँख लग गयी और दोनो बैठे-बैठे सोफे पर ही सो गये.
कोई 5 बजे आदित्य की आँख खुलती है. उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस होता है
वो आँख खोल कर देखता है कि ज़रीना ने उसके पैरो पर माथा टिका रखा है
“अरे!!!!!! ये क्या कर रही हो?”
“अपने खुदा की इबादत कर रही हूँ, तुम ना होते तो मैं आज हरगिज़ जींदा ना होती”
“मैं कौन होता हूँ ज़रीना, सब उस भगवान की कृपा है, चलो जल्दी तैयार हो जाओ, 5 बज गये हैं, हम कहीं लेट ना हो जायें”
ज़रीना वाहा से उठ कर चल देती है और मन ही मन कहती है, “मुझे रोक लो
अदित्य”
“क्या तुम रुक नही सकती ज़रीना...बहुत अछा होता जो हम हमेशा इस घर में एक साथ रहते.” अदित्य भी मन में कहता है.
एक अनोखा बंधन दोनो के बीच जुड़ चुका है.
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5:30 बजे अदित्य, ज़रीना को अपनी बाइक पर रेलवे स्टेशन ले आता है.
ज़रीना को रेल में बैठा कर अदित्य कहता है, “एक सर्प्राइज़ दूं”
“क्या? ”
“मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ”
“सच!!!!”
“और नही तो क्या… मैं क्या ऐसे माहॉल में तुम्हे अकेले देल्ही भेजूँगा”
“तुम इंसान हो कि खुदा…कुछ समझ नही आता”
“एक मामूली सा इंसान हूँ जो तुम्हे…………”
“तुम्हे… क्या?” ज़रीना ने प्यार से पूछा
“कुछ नही”
आदित्या मन में कहता है, “……….जो तुम्हे बहुत प्यार करता है”
जो बात ज़रीना सुन-ना चाहती है, वो बात आदित्या मान में सोच रहा है, ऐसा अजीब प्यार है उष्का.
ट्रेन चलती है. आदित्य और ज़रीना खूब बाते करते हैं….बातो-बातो में कब वो देल्ही पहुँच जाते हैं….उन्हे पता ही नही चलता
ट्रेन से उतरते वक्त ज़रीना का दिल भारी हो उठता है. वो सोचती है कि पता
नही अब वो अदित्य से कभी मिल भी पाएगी या नही.
“अरे सोच क्या रही हो…उतरो जल्दी” अदित्य ने कहा.
ज़रीना को होश आता है और वो भारी कदमो से ट्रेन से उतारती है.
“चलो अब सिलमपुर के लिए ऑटो करते हैं” आदित्या ने एक ऑटो वाले को इशारा किया.
“क्या तुम मुझे मौसी के घर तक छोड़ कर आओगे?”
“और नही तो क्या… इसी बहाने तुम्हारा साथ थोड़ा और मिल जाएगा”
ज़रीना ये सुन कर मुस्कुरा देती है.
आदित्य के इशारे से एक ऑटो वाला रुक जाता है और दोनो उसमे बैठ कर सिलमपुर की तरफ चल पड़ते हैं.