• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance एक अनोखा बंधन (Completed)

STORY CONTINUE KARE

  • Yes

    Votes: 3 100.0%
  • No

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    3

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
1,442
3,834
144
एक अनोखा बंधन--27

गतान्क से आगे.....................

प्यार हमें हर तरह के रंग दीखता है. लड़ाता भी है, हँसाता भी है, रुलाता भी है और कभी-कभी प्यारी सी नोक झोंक पैदा कर देता है रिश्ते में. प्यार का हर रंग अनमोल और अद्विद्या है. चुंबन का भी अपना ही महत्व है. चुंबन तो बस एक बहाना है प्यार का मकसद हमें ऐसी जगह ले जाना है जहा हम बस एक दूसरे में खो जायें. क्योंकि प्यार एक दूसरे में खो कर ही होता है…अपने आप में होश में रह कर नही………

आदित्य नहा कर चुपचाप दबे पाँव बाहर निकला वॉशरूम से. ज़रीना बिस्तर पर आँखे बंद किए पड़ी थी.

“खाने का ऑर्डर कर दिया क्या?”

“हां कर दिया…आता ही होगा?” ज़रीना ने कहा.

आदित्य ज़रीना के पास आकर बैठ गया और बोला, “क्या हुवा फिर से चेहरे पर 12 बजा रखे हैं…अब कौन सी नयी समस्या है तुम्हारी.”

“कुछ नही…बस सोच रही थी की सिमरन के घर वाले मान तो जाएँगे ना.”

“बातचीत करने से हर मसला हाल हो जाता है ज़रीना. हम एक कोशिस करेंगे बाकी भगवान की मर्ज़ी.”

“आदित्य तुम मुझे चिढ़ा क्यों रहे थे…तुम्हे शरम नही आती ऐसा बोलते हुवे. मैं तुमसे नाराज़ हूँ.”

“उफ्फ अभी तक नाराज़ हो. जाओ नहा कर आओ फटाफट… दीमाग ठंडा हो जाएगा. और किसी बात की चिंता मत करो सब ठीक होगा.” आदित्य ने कहा.

……………………………………………………………….

अगली सुबह आदित्य और ज़रीना मुंबई एरपोर्ट के लिए निकल पड़े. दोपहर 12 बजे वो देल्ही में थे. सिमरन कारोल बाग में रहती थी. उन्होने कारोल बाग में ही एक होटेल में रूम ले लिया.

कुछ घंटे रेस्ट करने के बाद ज़रीना को होटेल में ही छ्चोड़ कर आदित्य सिमरन के घर आ गया. सिमरन घर में सब कुछ बता चुकी थी इश्लीए आदित्य का कोई ख़ास स्वागत नही हुवा.

“तो तुम अब जले पर नमक छिड़कने आए हो” सिमरन के पापा ने कहा. सिमरन एक तरफ खड़ी सब सुन रही थी.

“जी नही मैं माफी माँगने आया हूँ. आप मुझे माफ़ कर दीजिए. सिमरन ने आपको सब कुछ बता ही दिया है. हम सभी के लिए यही अछा है कि हम बैठ कर आपस में ही इसका हल निकाल लें. कोर्ट जाने से हमारा वक्त ही बर्बाद होगा. मानता हूँ मेरा स्वार्थ है इसमें पर इसमें आप लोगो का भी भला ही है”

सिमरन के पापा कुछ बोले बिना उठ कर चले गये. सिमरन ने आदित्य को इशारा किया मैं समझाती हूँ इन्हे तुम चिंता मत करो.

आदित्य चुपचाप वही बैठा रहा. कोई एक घंटे बाद सिमरन सिमरन कमरे में दाखिल हुई.

“आप अभी जाओ…कल इसी वक्त आ जाना तब तक मैं पापा को मना लूँगी. वो मेरी बात नही टालेंगे.”

“ठीक है सिमरन…सॉरी तुम लोगो को डिस्टर्ब करने के लिए पर मेरे पास कोई चारा नही था. ये मामला कोर्ट में पता नही कब तक लटका रहेगा. तुम तो लॉ स्टूडेंट हो ये बात बखूबी समझ सकती हो.”

“हां मैं समझ रही हूँ. पापा भी समझ जाएँगे. कल से आगे नही जाएगी बात.”

“थॅंक यू सिमरन…चलता हूँ मैं.”

“ज़रीना कहा है?”

“साथ ही आई है. होटेल में छ्चोड़ कर आया हूँ. वो अकेले मुझे कही जाने ही नही देती.”

“ये तो अच्छी बात है ना. उसे देल्ही घूमाओ आप आज. कल आएँगे तो निराश नही जाएँगे यहा से.”

“जानता हूँ. आपके होते हुवे निराशा हो ही नही सकती. चलता हूँ मैं.” आदित्य घर से बाहर निकल आया.

अगले दिन जब आदित्य सिमरन के घर पहुँचा तो सिमरन के पापा ने उसे देख कर गहरी साँस ली और बोले, “ठीक है मैं कुछ लोगो को बुलाता हूँ. आज ही ये किस्सा निपटा देते हैं. और ये मैं तुम्हारे लिए नही बल्कि अपनी बेटी के लिए कर रहा हूँ. इसका भी इस बंधन से आज़ाद होना ज़रूरी है ताकि हम इसका घर बसाने की सोच सकें तुमने तो उजाड़ने में कोई कसर नही छ्चोड़ी.”

आदित्य ने चुप रहना ही सही समझा.जब आप मूह तक पानी में डूबे हों तो मूह बंद ही रखना चाहिए वरना दिक्कतें और ज़्यादा बढ़ सकती हैं. आदित्य ये बात बखूबी समझ रहा था.

कुछ लोग इकट्ठा हुवे उस घर में और स्टंप पेपर पर आदित्य और सिमरन को वैवाहिक संबंध से आज़ाद कर दिया. स्टंप पेपर की एक कॉपी सिमरन के पापा ने रख ली और एक आदित्य को थमा दी.

आदित्य अपनी खुशी छुपा नही पाया और सिमरन के पापा के पाँव छू लिए आगे बढ़ कर, “ये अहसान मैं जींदगी भर नही भूलूंगा.”

“हम भी तुम्हे जींदगी भर नही भूलेंगे.”

आदित्य को सिमरन कही दीखाई नही दे रही थी. वो उसे बाइ करना चाहता था जाने से पहले. उसने सिमरन के बारे में पूछना सही नही समझा क्योंकि माहॉल गरम था. वो स्टंप पेपर को लेकर चुपचाप बाहर आ गया.

बाहर आकर उसने पीछे मूड कर देखा तो पाया की सिमरन छत पर खड़ी थी. जैसे ही दोनो की नज़रे टकराई सिमरन ने हंसते हुवे हाथ हिला कर अलविदा कहा.

आदित्य की आँखे नम हो गयी सिमरन को देख कर. “मुझे माफ़ करना सिमरन. तुम्हारे सच्चे प्यार को ठुकरा दिया मैने. लेकिन कोई चारा नही था सिमरन. मेरे रोम-रोम में ज़रीना बस चुकी है. मैं चाहूं तो भी खुद को ज़रीना से जुदा नही कर सकता क्योंकि मर जाउन्गा उस से जुदा होते ही. यही दुवा करता हूँ की हमेशा खुस रहो तुम. जींदगी में कोई भी गम या दुख तुम्हारे पास भी ना भटक पाए. हे भगवान सिमरन को हमेशा खुश रखना.”

आदित्य आँखो में नमी लिए आगे बढ़ गया. होटेल तक पहुँचते-पहुँचते आँखो की नमी सूख चुकी थी और धीरे-धीरे उनमें एक अद्भुत चमक उभरने लगी थी. अब आदित्य और ज़रीना की शादी में कोई रुकावट नही थी. आदित्य ये बात सोच-सोच कर झूम रहा था. पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे उसके.

आदित्य होटेल की तरफ बढ़ते हुवे ये गीत गुनगुना रहा था:

♫♫♫♫…….ऐसा लगता है मैं हवाओ में हूँ….आज इतनी ख़ुसी मिली है

आज बस में नही है मन मेरा…आज इतनी ख़ुसी मिली है……♫♫♫♫

आदित्य ने जब होटेल के कमरे की बेल बजाई. ज़रीना ने भाग कर दरवाजा खोला.

“क्या हुवा आदित्य?”

“तुम्हे क्या लगता है…”

“जल्दी बताओ ना प्लीज़…मेरी साँसे अटकी हुई हैं जान-ने के लिए.”

आदित्य ने जेब से निकाल कर स्टंप पेपर दिखाया और बोला, “अब हमारी शादी में कोई रुकावट नही है जान. हम जब जी चाहे शादी कर सकते हैं.”

“सच!” ज़रीना उछल पड़ी ये बात सुन कर.

“हां अब तुम जी भर कर खेलना मेरे होंटो से…जितना जी चाहे उतना झुलसा देना इन्हे अपने अंगरो से. मैं उफ्फ तक नही करूँगा. तुम्हारी किस का कोई जवाब नही.”

“आदित्य तुम मार खाओगे अब मुझसे.”

“अपने होने वाले पति को मारोगी तुम.”

“पागल हो क्या…मज़ाक कर रही हूँ.”

“पता है मुझे…अब ये बताओ कब बनोगी मेरी दुल्हनिया.”

“आज, अभी…इसी वक्त…बनाओगे क्या बोलो.”

“ख़ुसी-ख़ुसी……बस एक बात बात बताओ हिंदू रीति रिवाज से शादी करना चाहोगी या फिर मुस्लिम रीति रिवाज से.”

“उस से कुछ फरक पड़ेगा क्या?”

“बिल्कुल भी नही?”

“फिर क्यों पूछ रहे हो.”

“यू ही तुम्हारा व्यू लेना चाहता था इस बारे में.”

“मेरा कोई व्यू नही है इस बारे में सच कह रही हूँ मैं. तुम मुझे जैसे चाहो अपनी दुल्हन बना लो. वैसे तुम्हारे भगवान के मंदिर में शादी करना चाहती हूँ मैं तुमसे. तुम मुझे एक साल बाद मंदिर में ही तो मिले थे.”

“पक्का…”

“हां पक्का.”

“ठीक है फिर. हम देल्ही से ही शादी करके चलते हैं. तुम अब अपने घर में मेरी दुल्हन बन कर ही प्रवेश करोगी.”

“आज जाकर दिल को शुकून मिला है. अल्लाह अब कोई और मुसीबत ना डाले हमारी शादी में.”

“कोई मुसीबत नही आएगी. बी पॉज़िटिव. जींदगी में उतार चढ़ाव तो चलते रहते हैं. तुम्हारी मौसी को भी बुला लेंगे हम.”

“नही…नही मौसी को मत बुलाओ. किसी को वाहा भनक भी लग गयी तो तूफान मचा देंगे लोग. तुम नही जानते उन्हे. जीतने कम लोग हों उतना अच्छा है.”

“ह्म्म बात तो सही कह रही हो.”

“जान बस और वेट नही होता मुझसे. मैं अभी सब इंटेज़ाम करके आता हूँ. हम कल सुबह शादी कर लेंगे”

“हां आदित्या बस अब और नही. मुझे मेरा हक़ दे दो ताकि दुनिया के सामने सर उठा कर जी सकूँ.”

आदित्य निकल तो दिया होटेल से शादी का इंटेज़ाम करने के लिए पर उसे इस काम में बहुत भाग दौड़ करनी पड़ी. मंदिरों के पुजारी तैयार ही नही थे शादी करवाने के लिए.आदित्य दरअसल हर जगह ज़रीना का नाम ले कर ग़लती कर रहा था. ज़रीना का नाम सुनते ही पुजारी मना कर देते थे. लेकिन दुनिया में हर तरह के लोग रहते हैं. एक जगह पुजारी ना बल्कि तैयार हुवा शादी करवाने को बल्कि बहुत खुश भी हुवा हिंदू-मुस्लिम का ये प्यार देख कर.

“बेटा मैं तो शोभाग्य समझूंगा अपना ये शादी करवा कर. तुम लोग सुबह ठीक 11 बजे आ जाना यहा.”

“पंडित जी हम दोनो यहा किसी को नही जानते. कन्या दान कैसे होगा..कोन करेगा.”

“उसका इंटेज़ाम भी हो जाएगा. मेरे एक मित्र हैं वो ख़ुसी ख़ुसी कर देंगे ये काम. तुम चिंता मत करो बस वक्त से पहुँच जाना. दोपहर बाद मुझे एक पाठ करने जाना है.”

“धन्यवाद पंडित जी. आप चिंता ना करें. हम वक्त से पहुँच जाएँगे.”

मंदिर में शादी का इंटेज़ाम करने के बाद आदित्य कपड़ो के शोरुम में घुस गया और ज़रीना के लिए लाल रंग की एक सारी खरीद ली. सारी लेकर वो ख़ुसी ख़ुसी होटेल की तरफ चल दिया.

होटेल पहुँच कर उसने ज़रीना को सारी दीखाई तो ज़रीना ने कुछ ख़ास रेस्पॉन्स नही दिया.

“क्या हुवा…क्या सारी पसंद नही आई?”

“मैं ये नही पहन सकती. ये शेड मुझे पसंद नही”

“हद है इतने प्यार से लाया हूँ मैं ज़रीना और तुम ऐसे बोल रही हो.” आदित्य सारी को बिस्तर पर फेंक कर वॉशरूम में घुस गया.

आदित्य वॉशरूम से बाहर आया तो ज़रीना उस से लिपट गयी.

क्रमशः...............................
 

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
1,442
3,834
144
एक अनोखा बंधन--28

गतान्क से आगे.....................

“नाराज़ क्यों होते हो आदित्य. मेरी ज़ींदगी का इतना बड़ा दिन है और मैं अपनी पसंद का कुछ पहन-ना चाहती हूँ तो क्या ये ग़लत है. ये दिन जींदगी भर याद रहेगा हमें. देखो याद रखो कोई लड़ाई नही करनी है हमें. लड़ाई का परिणाम देख चुके हैं हम.”

“लड़ाई तो बेसक करेंगे जान पर एक दूसरे को छ्चोड़ कर नही जाएँगे. अब हम शादी के बंधन में बँधने जा रहे हैं. ये बात गाँठ बाँध लेते हैं की कभी एक दूसरे का साथ नही छ्चोड़ेंगे. क्योंकि छ्चोड़ेंगे भी तो पछताना भी हमें ही पड़ेगा.”

“हां ये तो हम देख ही चुके हैं. दूसरी सारी ले लेते हैं ना आदित्य…प्लीज़.”

“अरे पागल प्लीज़ क्यों बोल रही हो. एनितिंग फॉर यू. चलो अभी लेकर आते हैं तुम्हारी मन पसंद सारी. मेरी ज़रीना दुल्हन बन-ने जा रही है कोई मज़ाक नही है”

“आदित्य बहुत खर्चा करवा रही हूँ तुम्हारा. शरम सी तो आती है पर क्या करूँ. 10 लाख की एफडी है मेरे नाम…वो दहेज में दे रही हूँ तुम्हे. पूरी भरपाई कर लेना.”

“ये क्या बकवास कर रही हो ज़रीना. तुम्हारा मेरा क्या अलग-अलग है.”

“मुझे ताना दिया गया था इस बात का आदित्य. बहुत बुरा लगा था मुझे. मैं कोई तुम्हारी दौलत के पीछे नही हूँ. तुम तो जानते ही हो ना, मेरे अब्बा का भी तो अच्छा बिज़्नेस था. दंगो ने सब तबाह कर दिया.”

“मैं जानता हूँ जान. दुनिया तो कुछ भी कहती है. सचाई तो हम जानते हैं ना. चलो अब तुम्हारे लिए प्यारी सी सारी लेकर आते हैं.”

“तुम भी तो कुछ नया खरीद लो ना. शादी में पुराने कपड़े नही पहने जाते.” ज़रीना ने कहा.

“ऐसा है क्या…चलो फिर मैं भी खरीद लेता हूँ.”

शादी हो रही थी दोनो की. ये बात सोच कर ही झूम उठते थे दोनो. बहुत मुश्किल से ये खुशी पाने जा रहे थे दोनो. एक लंबा इंतेज़ार किया था दोनो ने. ज़रीना ने अपनी मन पसंद सारी खरीदी. आदित्य ने भी अपने लिए एक नयी पॅंट शर्ट ले ली. ख़ुसनसीब थे दोनो जो की एक साथ अपनी शादी की शॉपिंग कर रहे थे. ये अवसर हमारे समाज में हर किसी को नही मिलता.

शॉपिंग करने के बाद वो जब होटेल की तरफ जा रहे थे तो एक अज़ीब सी सुंदर सी मुस्कुराहट थी दोनो के चेहरे पर. चेहरे के ये भाव उनके दिलो में बसी ख़ुसी का इज़हार कर रहे थे.

होटेल पहुँच कर दोनो बिस्तर पर गिर गये. आदित्य एक कोने पर था और ज़रीना दूसरे कोने पर. बहुत थक गये थे दोनो.

“ज़रीना!”

“हां आदित्य”

“आइ लव यू सूऊऊ मच.”

“आइ लव यू टू.”

“शादी तो कर रहा हूँ तुमसे मगर अब एक चिंता सता रही है.” आदित्य ने कहा.

ये सुनते ही ज़रीना के चेहरे पर चिंता की लकीरे उभर आई. वो आदित्य की तरफ मूडी और बोली, “कैसी चिंता आदित्य.”

“रहने दो तुम्हे बुरा लगेगा” आदित्य ने कहा.

“बोलो आदित्य प्लीज़…मेरा दिल बैठा जा रहा है.” ज़रीना ने कहा.

“उस दिन के चुंबन से मेरे होन्ट अभी तक झुलस रहे हैं. शादी के बाद मेरा क्या होगा ज़रीना. कैसे झेलूँगा मैं तुम्हारे अंगारों को. यही चिंता सता रही है.”

“आदित्य मैं मारूँगी तुम्हे तुमने दुबारा ऐसा मज़ाक किया तो. अब से कोई चुंबन नही होगा हमारे बीच.”

“क्यों नही होगा!...ऐसा क्यों बोल रही हो.”

“बोल दिया तो बोल दिया.”

आदित्य ने ज़रीना का हाथ थाम लिया और उसे अपने तरफ झटका दिया. दोनो बहुत करीब आ गये. चेहरे बिल्कुल आमने सामने थे. साँसे टकरा रही थी दोनो की.

“छ्चोड़ो मुझे आदित्य.”

“तुम्हारे होंटो के अंगारों से झुलस जाना चाहता हूँ मैं. रख दो ये अंगारे मेरे होंटो पर जान मैं फिर से उसी अहसास को जीना चाहता हूँ.”

“ना मेरे होन्ट अंगारे हैं और ना मैं इन्हे कही रखूँगी छ्चोड़ो मुझे.”

“उफ्फ गुस्से में तो तुम और भी ज़्यादा सुंदर लगती हो. मन तो कर रहा है तुम्हारे होंटो पर होन्ट रखने का पर तुम्हारी मर्ज़ी के बिना नही रखूँगा.”

“मेरी मर्ज़ी कभी नही होगी अब. तुम मज़ाक उड़ाते हो मेरा. छ्चोड़ो मुझे.”

“कभी सपने में भी नही सोचा था कि इस नकचाढ़ि को प्यार करूँगा और इसके होंटो पर अपने होन्ट रखूँगा. कॉलेज टाइम में ऐसा विचार भी आता तो मुझे उल्टी आ जाती. इतनी नापसंद थी तुम मुझे.”

“ये…ये..ये…तुम बड़े मुझे पसंद थे. सर फोड़ने का मन करता था तुम्हारा.उस वक्त तुमसे प्यार का सोचने से पहले स्यूयिसाइड कर लेती मैं. बहुत ज़्यादा बेकार लगते थे तुम मुझे.”

“आज ऐसा क्या है ज़रीना कि हम एक साथ इस बिस्तर पर पड़े हैं एक दूसरे के इतने करीब.”

“तुमने ज़बरदस्ती रोक रखा है मुझे अपने करीब. कॉन तुम्हारे करीब रहना चाहता है.”

“चलो फिर छ्चोड़ दिया तुम्हारा हाथ. जाओ जहा जाना है.” आदित्य ने ज़रीना का हाथ छ्चोड़ दिया.

ज़रीना आदित्य के पास से बिल्कुल नही हिली. आँखे बंद करके वही पड़ी रही.

“क्या हुवा जान…जाओ ना. मैने तुम्हारा हाथ छ्चोड़ दिया है.”

ज़रीना ने आदित्य की छाती में ज़ोर से मुक्का मारा.

“आउच…इतनी ज़ोर से क्यों मारा.” आदित्य कराह उठा.

“तुम्हे पता है ना कि मैं तुमसे दूर नही रह सकती इश्लीए ये सब मज़ाक करते हो.” ज़रीना ने कहा.

“अफ जान निकाल दी मेरी. बहुत ख़तरनाक हो तुम.” आदित्य ने कहा.

ज़रीना ने आदित्य की छाती पर हाथ रखा और उसे मसल्ते हुवे बोली, “ज़्यादा ज़ोर से लगी क्या?”

“तुम जब मारती हो तो ज़ोर से ही मारती हो.”

“तुम मुझे यू सताते क्यों हो फिर. शरम भी आती है किसी को ये बाते सुन कर.”

“किसको शरम आती है? इस कमरे में तुम्हारे और मेरे शिवा भी कोई है क्या.”

“आदित्य तुम इतने शैतान निकलोगे मैने सोचा नही था.” ज़रीना ने कहा.

“ऐसा तो नही था कभी. तुमने दीवाना बना दिया मुझे जान. तुम मेरा पहला प्यार हो. तुमसे पहले ज़्यादा इनटरेक्षन नही रहा लड़कियों से.”

“जानती हूँ मैं. मेरा तो इंटेरेस्ट ही नही था किसी से दोस्ती करने में. मैं भी बस तुम्हे जानती हूँ. मेरा पहला और आखरी प्यार तुम ही हो.”

“इतनी प्यारी बात कर रही हो. एक प्यारी सी किस दे दो ना और जला दो मेरे होंटो को एक बार फिर से.”

“जल कर राख हो जाओगे रहने दो हिहिहीही.” ज़रीना ने हंसते हुवे कहा.

“तुम मुझे खाक में मिला दो तो भी चलेगा. तुम्हारे हुस्न की आग में जलना चाहता हूँ मैं.”

“अछा.”

“हां.”

“तुम कही झुटि तारीफ़ तो नही करते मेरी.”

“लो कर लो बात. कॉलेज में तुम मशहूर थी अपने हुस्न के लिए. तुम्हारी ही चर्चा हुवा करती थी हर तरफ लड़को में. ये बात और थी की तुम मुझे बिल्कुल पसंद नही थी.”

“क्या मैं इश्लीए पसंद नही थी कि मैं मुस्लिम थी?”

“ज़रीना कैसी बात कर रही हो.”

“बोलो ना आदित्य मैं नापसंद क्यों थी तुम्हे.”

“ये तो मैं भी पूछ सकता हूँ कि क्या तुम मुझसे नफ़रत इश्लीए करती थी क्योंकि मैं हिंदू था.”

“पहले मेरे सवाल का जवाब दो ना प्लीज़. पहले मैने सवाल किया है.”

“हां ज़रीना झूठ नही बोलूँगा. उस वक्त मुस्लिम लोगो से चिढ़ता था मैं. देश में कही भी टेररिस्ट अटॅक होता था तो बहुत गालिया देता था मैं. काई बार मन में ख़याल आता था कि मेरे पड़ोस में भी टेररिस्ट रह रहे हैं. तुम लोगो से लड़ाई और ज़्यादा नफ़रत पैदा करती थी तुम्हारे प्रति.”

“झूठ नही बोल सकते थे…इतना कड़वा सच बोलने की क्या ज़रूरत थी.” ज़रीना रो पड़ी बोलते-बोलते.

“जान…तुमने सवाल सच जान-ने के लिए किया था या फिर झूठ. अब तुम बताओ कि तुम क्यों नफ़रत करती तू मुझसे.”

“मुझे कभी किसी हिंदू के नज़दीक जाने की इच्छा नही होती थी, क्योंकि मुझे यही लगता था कि ये लोग हमें दबाते हैं इस देश में. माइनोरिटी होने के कारण हमारे साथ हर जगह भेदभाव होता है. कॉलेज में मेरे सभी मुस्लिम फ्रेंड्स ही थे. और हम लोगो के परिवारों का लड़ाई झगड़ा होने के कारण तुमसे नफ़रत और ज़्यादा बढ़ गयी थी.”

“शूकर है शादी होने से पहले ये राज खुल गये.” आदित्य ने कहा.

“तो क्या अब हम शादी नही करेंगे.” ज़रीना ने बड़ी मासूमियत से पूछा.

“तुम बताओ क्या इरादा है तुम्हारा?”

एक पल को खामोसी छा गयी दोनो के बीच. दोनो बहुत करीब पड़े थे एक दूसरे के. कुछ कहने की बजाए दोनो एक दूसरे की आँखो में झाँक रहे थे. कब उनके होन्ट मिल गये एक दूसरे से उन्हे पता ही नही चला. दोनो के होन्ट एक साथ हरकत कर रहे थे. 10 मिनिट तक बेतहासा चूमते रहे दोनो एक दूसरे को. जब उनके होन्ट जुदा हुवे तो बड़े प्यार से देख रहे थे दोनो एक दूसरे को.

“मिल गया जवाब.” आदित्य ने हंसते हुवे पूछा.

“हां मिल गया. यही कह सकती हूँ कि प्यार के आगे ये बातें कुछ मायने नही रखती.”

“हां हम एक दूसरे के करीब आए तो हम जान पाए एक दूसरे को. वरना तो जींदगी भर नफ़रत बनी रहती. हम आस आ हुमन बिएंग एक दूसरे से नफ़रत नही करते थे. बल्कि डिफरेंट रिलिजन से होने के कारण एक दूसरे को नापसंद करते थे. हम एक महीना साथ रहे तो धरम की झूठी दीवार गिर गयी. दीवार गिरने के बाद हम उसके पीछे खड़े असली इंसान को देख पाए. काश इस देश में हर कोई ऐसा कर पाए. मैं अपने पहले के विचारों के लिए शर्मिंदा हूँ.”

“मैं भी शर्मिंदा हूँ आदित्य. अच्छा हुवा जो कि हमें प्यार हुवा और हम एक दूसरे को जान पाए. प्यार में बहुत ताक़त होती है ना आदित्य.”

“हां बहुत ज़्यादा ताक़त होती है. ये प्यार ज़रीना जैसी लड़की को भी किस करना सीखा देता है. ऑम्ग फिर से बहुत प्यारा चुंबन दिया तुमने.”

“हटो छोड़ो मुझे…तुम फिर से शैतानी पर उतर आए.”

आदित्य और ज़रीना बिस्तर पड़े हुवे प्यार के उस कोमल अहसास को पा रहे थे जिसके लिए ज़्यादा तर लोग जीवन भर तरसते हैं. दोनो की आँखों में बहुत सारे सपने थे आने वाली जींदगी के लिए और दिलों में ढेर सारी उमंग थी.

क्रमशः...............................
 

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
1,442
3,834
144
एक अनोखा बंधन--29

गतान्क से आगे.....................

जब दिल में बहुत ज़्यादा ख़ुसी हो तो अक्सर आँखो की नींद खो जाती है. दिल हर वक्त बेचैन सा रहता है. ऐसा ही कुछ हो रहा था आदित्य और ज़रीना के साथ.एक तो चुंबन की खुमारी थी उपर से होने वाली शादी की ख़ुसी. दोनो पर अजीब सा नशा कर दिया था प्यार ने.

अचानक ज़रीना को कुछ ख़याल आया, “आदित्य हम जब से मार्केट से आयें हैं यही पड़े हैं. क्या हमने खाना खाया?”

“अरे खा लेंगे खाना भी. जब तुम पास हो तो भूक प्यास किस कम्बख़त को लगती है.”

“अरे कैसी बात कर रहे हो. खाना खा कर हमे जल्दी सो जाना चाहिए. सुबह जल्दी उठ कर हमें तैयार भी तो होना है.” ज़रीना ने कहा.

“मैं तो किसी भी वक्त उठ कर मॅनेज कर लूँगा. तुम लड़कियों को ही वक्त लगता है तैयार होने में.”

“मेरी शादी हो रही है…तैयार होने में वक्त तो लगेगा ना.”

“अछा बाबा मैं ऑर्डर देता हूँ. तुम एक गरमा गरम चुंबन तैयार रखो. खाने के बाद स्वीट डिश की तरह काम आएगा.”

“जी हां जनाब बिल्कुल. मेरा तो यही काम रह गया है. चलिए अपना रास्ता देखिए… मुझे और भी बहुत काम हैं.”

“काम कैसा काम?”

“मुझे बहुत कुछ सोचना है कल के बारे में. मुझे ये भी नही पता अभी कि शादी के लिए तैयार कैसे होना है.”

“हो जाएगा सब…तुम चिंता मत करो…मैं खाने का ऑर्डर देता हूँ…क्या लोगि तुम.”

“मॅंगा लो कुछ भी ज़्यादा भूक तो है नही.”

“ओके.” आदित्य ने फोन उठा कर खाने के लिए बोल दिया.

खाना खाने के बाद ज़रीना बिस्तर पर पसर गयी और बोली, “अब यहा कोई भी आने की जुर्रत ना करे. हमें नींद आ रही है.”

“हहहे….झूठ बोल रही हो तुम.नींद नही आने वाली आज…चाहे कुछ कर लो तुम. मेरी बाहों में रहोगी तो शायद नींद आ भी जाए. अकेले तो बिल्कुल भी नही सो पाओगि तुम”

“कुछ भी हो यहा नही आओगे तुम अब.”

“कोई बात नही जान. आज रात छ्चोड़ देता हूँ तुम्हे अकेला. कल से देखता हूँ कैसे भगाओगि मुझे तुम बिस्तर से.”

“कल की कल देखेंगे.” ज़रीना ने होंटो पर प्यारी सी मुश्कान बिखेर कर कहा.

प्यार ने धीरे धीरे एक हसीन कामुक रस भर दिया था दोनो की जींदगी में. इन्ही बातों के कारण ज़रीना आदित्य से शरमाने लगी थी. हर पल उनका रिश्ता नया रूप ले रहा था और नये रंग में रंग रहा था. प्यार हर तरह के रंग भरने की कोशिस करता है प्रेमियों की जींदगी में. ज़रीना खुस थी मगर अपने संस्कारों के कारण झीजक और शरम उसके अस्तित्व को घेरे हुवे थी. ये बातें उसके चरित्र की सुंदरता को और ज़्यादा बढ़ाती थी. आदित्य भी अंजान नही था अपनी ज़रीना के इस स्वाभाव से. मन ही मन मुश्कूराता था वो ज़रीना की इन बातों पर. तभी तो उसे छेड़ता था बार बार. काम रस भी प्रेमियों की जींदगी में उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की प्रेम रस.

ज़रीना करवटें बदलती रही रात भर. बड़ी मुश्किल से आँख लगी थी उसकी. यही हाल आदित्य का भी था. ज़रीना तो सुबह 5 बजे ही उठ गयी. 6 बजे आदित्य की आँख खुली तो उसने देखा कि ज़रीना गुम्सुम और उदास बैठी है बिस्तर पर. आदित्य ज़रीना के पास आया और बोला, “क्या हुवा जान…इतनी परेशान सी क्यों लग रही हो?”

“आदित्य दुल्हन की तरह सजना मुझे आता ही नही. समझ में नही आ रहा की क्या करूँ.”

“हे जान परेशान क्यों होती हो. तुम तो बिना सजे सँवरे ही मेरे दिल पर सितम धाती हो. ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत नही है. थोड़ा बहुत सज लो काम बन जाएगा.”

“मज़ाक मत करो. जींदगी भर हमारे साथ मेमोरी रहेगी इस दिन कि. मैं दुल्हन की तरह दिखना चाहती हूँ आदित्य.”

“अछा मैं कुछ करता हूँ तुम चिंता मत करो.” आदित्य ने कहा.

आदित्य ने होटेल रिसेप्षन पर इस बारे में बात की. रिसेप्षनिस्ट ने एक लड़की को फोन मिलाया, “हाई जिम्मी…यहा एक लड़का लड़की ठहरे हुवे हैं होटेल में. दोनो आज मंदिर में शादी कर रहे हैं. क्या तुम लड़की को दुल्हन की तरह सज़ा दोगि आकर.”

“दोनो घर से भागे हुवे हैं क्या?” जिम्मी ने पूछा.

“उस से कुछ फरक पड़ेगा क्या?”

“नही वैसे ही पूछ रही हूँ. मैं आ रही हूँ 30 मिनिट में.”

“ओके थॅंक यू सो मच.” रिसेप्षनिस्ट ने कहा.

“बात बन गयी…वो आ रही है आधे घंटे में.”

“थॅंक यू सो मच डियर. आपका नाम क्या है.”

“आइ आम मनीष फ्रॉम शिमला. हमारे होटेल की ब्रांच शिमला में भी है. शादी के बाद हनिमून के लिए आप वाहा आ सकते हैं. हम आपके लिए स्पेशल कन्सेशन देंगे.”

“सो नाइस ऑफ यू मनीष जी. कभी वक्त लगा तो ज़रूर आएँगे.”

आदित्य वापिस कमरे में आ गया और बोला, “सब इंटेज़ाम हो गया है. तुम्हे सजाने के लिए एक लड़की आ रही है, जिम्मी नाम है उसका.मैं नहा धो कर तैयार हो जाता हूँ जल्दी से वो आएगी तो मुझे बाहर जाना होगा.”

“हां हां तुम जल्दी करो कही हम लेट ना हो जायें. 11 बजे मंदिर पहुँचना है याद है ना.”

“जानेमन मैं तो तैयार हो जाउन्गा अभी…सारा वक्त तो तुम्हे ही लगना है हहेहहे.” आदित्य मुश्कूराता हुवा वॉशरूम में घुस्स गया.

आदित्य नहा कर नये कपड़े पहन कर बाहर आया तो देखा कि सोफे पर एक लड़की बैठी है.

“आदित्य ये जिम्मी है. अब तुम बाहर जाओ जल्दी मुझे भी तैयार होना है.
आदित्य ने जिम्मी को गुड मॉर्निंग विश किया और चुपचाप बाहर आ गया. कोई 10 बजे जिम्मी रूम से बाहर निकली और बोली, “तुम्हारी दुल्हन तैयार है…जाओ देख लो जाकर. तुम्हे ऐतराज ना हो तो क्या शादी में मैं भी आ सकती हूँ.”

“मुझे भला क्यों ऐतराज़ होगा. हम वैसे भी अकेले हैं. कोई साथ होगा तो अछा ही लगेगा.” आदित्य ने जिम्मी को उस मंदिर का पता बता दिया जहा शादी होने जा रही थी.

“थॅंक्स…मैं पूरे 11 बजे वाहा पहुँच जाउन्गि. बाइ.” जिम्मी ने कहा.

आदित्य कमरे में आया तो ज़रीना को देखता ही रह गया, “ऑम्ग मेरी ज़रीना आज कतल कर देगी मेरा. अफ क्या लग रही हो तुम.”

ज़रीना ने अपना चेहरा हाथो में छुपा लिया शरम के मारे, “मुझे छेड़ो मत ऐसे नही तो शादी नही करूँगी तुम्हारे साथ.”

“अच्छा” आदित्य शरारती अंदाज़ में ज़रीना की तरफ बढ़ा.

“छूना मत मुझे… सारा मेक अप खराब हो जाएगा.” ज़रीना पीछे हट-ते हुवे बोली.

“प्लीज़ जान थोड़ा करीब तो आने दो. बहुत प्यारी लग रही हो तुम. सच में बहुत सुंदर सजाया है जिम्मी ने तुम्हे. तुम्हे मेरी नज़र ना लग जाए.” आदित्य ने कहा.

ज़रीना बस हल्का सा मुश्कुरा दी आदित्य की बात पर और बोली, “हमें चलना चाहिए आदित्य. कही हम लेट ना हो जायें. देल्ही के ट्रॅफिक का कोई भरोसा नही है.”

“एक मिनिट ज़रा जी भर कर देख तो लेने दो मुझे अपनी दुल्हनिया को.” आदित्य ने कहा.

“उफ्फ तुम्हारे देखने के चक्कर में हमारी शादी ना डेले हो जाए.”

“क्या बात है बड़ी जल्दी में हो शादी की. लगता है मुझे जला कर राख करने की जल्दी है तुम्हे. अच्छी बात है. मैं खुद तड़प रहा हूँ खाक में मिल जाने के लिए.” आदित्य ने कहा.

“आदित्य तुम मुझे बार-बार इन बातों में मत उलझाया करो. हम लेट हो रहे हैं और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है.”

“ओके ओके जान अब गुस्सा मत करो. तुम वैसे ही बहुत प्यारी लग रही हो. गुस्सा करोगी तो जान निकल जाएगी मेरी. गुस्से में तो तुम और ज़्यादा प्यारी लगती हो. चलो चलते हैं. मैने एक टॅक्सी कर ली है मंदिर तक जाने के लिए.”

“ठीक है चलो अब ज़्यादा देर मत करो.”

ज़रीना और आदित्य हंसते मुश्कूराते होटेल से बाहर आए और टॅक्सी में बैठ कर मंदिर की तरफ चल दिए. जब वो मंदिर पहुँचे तो हैरान रह गये. मंदिर सज़ा हुवा था.

“लगता है कोई और कार्यकरम भी है मंदिर में.” आदित्य ने कहा.

“आदित्य कोई गड़बड़ तो नही होगी ना.”

“अरे नही पागल कोई गड़बड़ नही होगी. मंदिर के पंडित जी मुझे भले व्यक्ति लगे. ज़्यादा ओल्ड नही हैं वो. यंग पुजारी हैं. तभी शायद उन्होने हमारे प्यार को समझा.” आदित्य ने कहा.

आदित्य और ज़रीना मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़े ही थे कि उन्हे पंडित जी मिल गये.

“नमस्कार पंडित जी” आदित्य ने कहा. ज़रीना ने भी सर हिला कर नमस्कार किया.

“आओ आदित्य आओ. हम तुम्हारा ही इंतेज़ार कर रहे थे. तुम कह रहे थे कि तुम्हारा यहा कोई नही मगर देखो भगवान की क्या लीला है. तुम दोनो की कहानी सुन कर बहुत लोग इकट्ठा हो गये हैं यहा पर. मुझे उम्मीद है तुम दोनो को बुरा नही लगेगा.”

“नही पंडित जी कैसी बात कर रहे हैं आप.”

“आओ मैं सभी से तुम्हारा परिचय करवाता हूँ.”

“अपना परिचय भी दे दीजिए पंडित जी.” आदित्य ने कहा.

“मेरा नाम रवि है आदित्य. आओ बाकी मित्रो से भी मिल लो.” रवि ने कहा.

“आओ ज़रीना.” आदित्य ने ज़रीना से कहा. ज़रीना थोड़ी घबराई सी लग रही थी.

अगले ही पल उन्हे बहुत सारे लोगो ने घेर लिया.

“ये हैं आलोक जी. इन्हे जैसे ही मैने बताया कि तुम दोनो की शादी है कल तो मेरे बोलने से पहले ही कन्यादान के लिए तैयार हो गये.ये ही कन्यादान करेंगे.” रवि ने कहा.

“और मैं खुद को ख़ुसनसीब समझूंगा.” आलोक ने कहा.

“ख़ुसनसीब तो हम समझेंगे खुद को आलोक जी.” आदित्य ने कहा.

ज़रीना और आदित्य ने आलोक को हंस कर हाथ जोड़ कर नमस्कार किया.

“ये हैं जावेद जी. ये यहा हैं तो चिंता की कोई बात नही है. ये तो तुम दोनो को फरिश्ता मानते हैं”

आदित्य और ज़रीना ने जावेद को हंस कर हाथ जोड़ कर नमस्कार किया.

“ये है मिनी. हम इसे छुटकी कहते हैं.”

मिनी ने आगे बढ़ कर ज़रीना को गले लगा लिया और बोली, “मैं तुम्हारी तरफ से हूँ शादी में. खुद को अकेली मत समझना.”

“थॅंक यू मिनी.” ज़रीना ने कहा.

“ये हैं विवेक जी. तुम दोनो की कहानी सुन कर बहुत भावुक हो गये थे. दिल के बहुत अच्छे हैं. बिज़ी होने के बावजूद भी ये यहा आने से खुद को रोक नही पाए.”

“ये हैं सिकेन्दर जी. ये यहा खुशी खुशी केटरिंग का इंटेज़ाम कर रहे हैं.”

“केटरिंग.” आदित्य हैरान रह गया.

“हां केटरिंग. तुम दोनो की शादी है..पार्टी तो होनी ही चाहिए ना.”

“जी हां सरकार खाने पीने का अपनी तरफ से अच्छा परबंध किया है.”

आदित्य और ज़रीना ने हाथ जोड़ कर सिकेन्दर का शुक्रिया किया.

क्रमशः...............................
 

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
1,442
3,834
144
एक अनोखा बंधन--30

गतान्क से आगे.....................

“ये हैं सौरव दा. इन्होने कोल्ड ड्रिंक का परबंध किया है यहा पर. इतनी गर्मी में कोल्ड ड्रिंक सभी को थोड़ी राहत देगी.”

“आदित्य और ज़रीना ने सौरव का भी हाथ जोड़ कर शुक्रिया अदा किया.

,, ये हैं राज शर्मा मेरे दोस्त आज ही किसी काम से मेरे पास आए थे जब इन्होने तुम्हारे प्यार के बारे मे सुना तो तुमसे मिलने के लिए बेताब हो गये ये कहानियाँ लिखते है और अब तुम्हारी कहानी को भी ये अपने ब्लॉग पर डालने वाले है

आदित्य और जरीना ने राज शर्मा को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया

“ये हैं मनोज जी. इतने खुश हैं आपकी शादी से की सुबह से यही के चक्कर काट रहे हैं.”

आदित्य और ज़रीना ने मनोज को हंसते हुवे हाथ जोड़ कर प्रणाम किया.

“ये हैं नाइस विका जी. इतने खुस है ये तुम दोनो की शादी से कि संगीत का आयोजन कर दिया है इन्होने यहा. हल्का-हल्का मध्यम म्यूज़िक चलता रहेगा ताकि मंदिर में किसी को तकलीफ़ ना हो.”

आदित्य और ज़रीना ने हाथ जोड़ कर विका को भी नमस्कार कहा.

“ये हैं मनीष जी. इन्होने शादी के फोटोस खींचने का जिम्मा ले लिया है.” रवि ने कहा.

आदित्या और ज़रीना ने मनीष को भी हाथ जोड़ कर नमस्कार कहा.

“ये हैं रोहन जी. राजनीति में अच्छी पकड़ है इनकी मगर फिर भी एलेक्षन हार गये. ये भी ख़ुसी ख़ुसी आए हैं यहा”

आदित्य और ज़रीना ने रोहन को भी हाथ जोड़ कर नमस्कार किया.

“लास्ट बट नोट दा लिस्ट ये हैं रोहित पांडे. बहुत बिज़ी थे ये भी. लेकिन शादी में आने से खुद को रोक नही पाए.”

आदित्य और ज़रीना ने रोहित को भी हाथ जोड़ कर नमस्कार किया.

“वैसे आप इन सबको कैसे जानते हैं पंडित जी.” आदित्य ने पूछा.

“यू ही एक दिन अचानक मिल गये थे सभी. कब दोस्ती हो गयी पता ही नही चला. चलो अब शुभ मुहूरत का वक्त निकला जा रहा है. आओ जल्दी से पहले तुम दोनो के फेरे करवा दूं बातें तो होती रहेंगी.” रवि ने कहा.

रवि उनको मंडप की तरफ ले जा ही रहा था कि जिम्मी भी आ गयी. साथ में होटेल के रिसेप्षनिस्ट मनीष भी थे.

रवि आदित्य और ज़रीना को मंडप में ले आया और उन दोनो को अग्नि के सामने बैठने को कहा. ज़रीना और आदित्य ने एक दूसरे की तरफ देखा. दोनो की ही आँखे नम थी. ये ख़ुसी के आँसू थे. आदित्य ने ज़रीना का हाथ थाम लिया और उसे बैठने का इशारा किया.

पूरा एक घंटा लगा पूरे प्रोसेस में. सभी लोग उन दोनो के हर फेरे पर ताली बजा रहे थे. आदित्य और ज़रीना ने सोचा भी नही था कि इतनी रोनक लग जाएगी उनकी शादी में. उनकी शादी धूम धाम से हो रही थी. फेरो के बाद सभी ने मंदिर के एक कोने में इकट्ठा हो कर सवादिस्ट खाने का आनंद लिया.

खाना इतना था कि मंदिर में आ रहे दूसरे लोग भी खाना खा सकते थे. कुछ खा भी रहे थे. आदित्य और ज़रीना ने मंदिर के बाहर बैठे ग़रीब लोगो को अपने हाथो से खाना दिया. बहुत खुस थे दोनो इश्लीए भगवान के हर बंदे के साथ अपनी ख़ुसी बाँटना चाहते थे.

सभी का हाथ जोड़ कर शुक्रिया करके आदित्य और ज़रीना टॅक्सी में बैठ कर होटेल की तरफ चल दिए.दोनो के चेहरे पर शुकून था और एक प्यारी सी मुश्कान हर वक्त उनके चेहरे पर चिपकी हुई थी.

“कितने अच्छे लोग थे सभी. आलोक भैया तो बहुत एमोशनल हो रहे थे कन्यादान के वक्त.” ज़रीना ने कहा.

“हां इन लोगो के आने से जो रोनक लगी उसे हम जींदगी भर नही भूल पाएँगे. हम तो तन्हा चले थे होटेल से लोग जुड़ते गये कारवाँ बनता गया.”

“आदित्य बहुत खर्चा किया लोगो ने हमारे लिए. हमें कुछ तो देना चाहिए था उन्हे.”

“मैने पंडित जी से पूछा था पर उन्होने मना कर दिया. उन्होने कहा कि हमारे प्यार के बदले में तुम हमें कुछ दोगे तो ये व्यापार बन जाएगा. प्लीज़ इसे प्यार ही रहने दो.”

“ह्म्म बहुत अच्छा लगा इन लोगो का साथ.”

“हां सही कहा.”

अचानक बाते करते करते ज़रीना बिल्कुल खामोश हो गयी. उसने अपना चेहरा खिड़की की तरफ घुमा लिया.

“क्या हुवा जान…अचानक चुप क्यों हो गयी.”

ज़रीना ने आदित्य की तरफ मूड कर देखा. उसकी आँखे नम थी. वो ख़ुसी के आँसू नही लग रहे थे.

आदित्य ने ज़रीना के हाथ पर हाथ रखा और बोला, “क्या बात है जान…क्या मुझसे कोई भूल हो गयी.”

“नही आदित्य तुमसे कोई भूल नही हुई. बस यू ही उदास हूँ.”

आदित्य ने टॅक्सी में होने के कारण कुछ और पूछना सही नही समझा. जब वो होटेल पहुँचे तो कमरे में आते ही ज़रीना फूट पड़ी. रोते हुवे वो सोफे पर बैठ गयी.

“क्या हुवा जान…कुछ बताओ तो सही.”

“अम्मी-अब्बा और फ़ातिमा की याद आ रही है आज आदित्य. अपने अम्मी-अब्बा के गले लग कर रोना चाहती थी मैं आज पर वो इस दुनिया में नही हैं. कितनी बदनसीब हूँ मैं.”

आदित्य ज़रीना के सामने फार्स पर बैठ गया और उसका हाथ थाम कर बोला, “जान तुम्हारा दर्द समझ सकता हूँ. हम दोनो ने अपने पेरेंट्स को एक साथ खोया है. अगर तुम्हारे अम्मी अब्बा और मेरे मम्मी पापा जींदा होते तो बहुत ज़्यादा नाराज़ होते हम दोनो से. मगर मुझे यकीन है कि हम एक ना एक दिन मना ही लेते उनको.”

“हां आदित्य वही तो. वो नाराज़ रहते मगर इस दुनिया में तो रहते. कभी ना कभी हम उन्हे मना ही लेते. तुम्हे नही पता कैसे संभाला मैने खुद को मंदिर में. ये दंगे क्यों होते हैं आदित्य. कोई इन्हे रोकता क्यों नही.”

“भीड़ जब पागल हो जाती है तो उसे रोकना बहुत मुश्किल हो जाता है. और जब भीड़ किसी के बहकावे में आ जाए तो स्तिथि और भी गंभीर हो जाती है. ये दंगे क्यों होते हैं नही कह सकता क्योंकि इतना ज्ञानी नही हूँ मैं. हां इतना ज़रूर कह सकता हूँ क़ि दंगे इंसान को हैवान बना देते हैं. मैने तुम्हे बताया था ना कि जब मुझे अपने मम्मी पापा की मौत का पता चला तो मेरा खून खोल उठा था. मेरे अंदर बदला लेने की आग भड़क उठी थी. मैं भी भीड़ में शामिल हो जाना चाहता था. लेकिन फ़ातिमा का रेप नही देख पाया ज़रीना. मुझे यही लगा कि किसी के साथ ऐसा नही होना चाहिए. 5 लोग भूके भेड़ियों की तरह नोच रहे थे उसे.”

“बस आदित्य बस प्लीज़ चुप हो जाओ…नही सुन सकती ये सब. बहुत प्यार करती हूँ मैं फ़ातिमा से. उसके बारे में ऐसा कुछ नही सुन सकती.”

“सॉरी जान तुमने सवाल किया तो बातों बातों में ये बात आ गयी ज़ुबान पर. छ्चोड़ो अब ये सब. मैं हूँ ना तुम्हारे साथ.”

“हां तुम हो तभी तो जींदा हूँ आदित्य.”

“आज इतने ख़ुसी के दिन क्या ऐसे उदास रहोगी.”

“सॉरी अचानक ख़याल आया तो रोक नही पाई मैं खुद को. मंदिर में सब लोग थे तो खुद को संभाले हुवे थी. सबके सामने नही रोना चाहती थी. तुम्हारे सामने खुद को संभाल नही पाई क्योंकि पता है मुझे की तुम संभाल लोगे मुझे.”


“मुझ पर इतना विश्वास रखने के लिए शुक्रिया आपका. अब अगर आपका वीदाई वाला रोना धोना बंद हो गया हो तो मैं अपना कार्यकरम शुरू करूँ.”

“कॉन सा कार्यकरम?” ज़रीना ने अपने आँसू पोंछते हुवे कहा.

“मज़ाक कर रहा हूँ. मैं ये चाहता हूँ कि बीती बातें भूल जाओ अब. बड़ी मुश्किल से ये ख़ुसी पाई है हमने. इसे जी भर कर जीना चाहिए हमें आज. ये दिन दुबारा नही आएगा.”

“सॉरी आदित्य…खुद को रोक रही थी बहुत… पर रोकते-रोकते बिखर गयी. प्लीज़ बुरा मत मान-ना.”

आदित्य उठ कर सोफे पर बैठ गया और ज़रीना को अपने सीने से लगा कर बोला, “कोई बात नही जान. हमारे बीच सॉरी की कोई ज़रूरत नही है. समझ रहा हूँ मैं सब कुछ. अछा ये बताओ अभी घर चलें या फिर कल.”

“क्या अभी टिकेट मिल जाएगी”

“मिलनी तो चाहिए. अछा होगा अगर अपनी शादी के दिन हम अपने घर में रहें. वहीं तो हमें प्यार हुवा था.”

“चलो फिर जल्दी चलो…आज के दिन का ज़्यादा से ज़्यादा वक्त मैं अपने घर में बिताना चाहती हूँ.”

“हां चलो”

“क्या मैं शादी के जोड़े में ही चलूं?”

“और नही तो क्या? जैसे हैं वैसे ही चलेंगे. कोई दिक्कत की बात नही है”

आदित्य और ज़रीना ने अपना समान समेटा होटेल से और एरपोर्ट के लिए चल दिए. 5 बजे की फ्लाइट थी. 6:30 पर वो वडोदरा एरपोर्ट पर उतर गये. 7:15 पर टॅक्सी ने उन्हे उनके घर के बाहर उतार दिया. जैसे ही वो दोनो टॅक्सी से उतरे घनश्याम मोदी ने उन्हे देख लिया.

“जिसका शक था वही बात निकली. तो तुम दोनो शरम हया त्याग कर साथ रह रहे थे यहा. और अब शादी करके आ गये. आदित्य तुमसे ऐसी उम्मीद नही थी. शादी की भी तो किस से. तुम्हारे पेरेंट्स बिकुल पसंद नही करते थे इन लोगो को. वो क्या हम भी पसंद नही करते थे. जो लोग देश में आग लगाते हैं उनसे तुमने रिश्ता जोड़ लिया. लगता है ट्रेन हादसे को भूल गये तुम.”

“अंकल क्या आपने किसी अपने को खोया था उस ट्रेन हादसे में.” आदित्य ने पूछा.

“नही”

“तो क्या आपने उसके बाद फैले दंगो में खोया किसी को.”

“नही." घनश्याम ने जवाब दिया

“मैने अपने पेरेंट्स खोए गोधरा ट्रेन हादसे में. उसके बाद बढ़के दंगो के कारण ज़रीना के पेरेंट्स और बहन को जान से हाथ धोना पड़ा. सबसे ज़्यादा कड़वाहट तो हम दोनो में होनी चाहिए थी एक दूसरे के प्रति. जबकि ऐसा नही है. हमने कड़वाहट को प्यार में बदल लिया है अंकल और आप बेवजह दिल में कड़वाहट बनाए हुवे हैं. क्या ये शोभा देता है आपको. छोटा हूँ मैं बहुत आपसे. आप ज़्यादा समझदार हैं. अपने जीवन को शांति और अमन फैलाने में लगायें ना की कड़वाहट फैलाने में. कुछ ग़लत कह दिया हो तो माफ़ कीजिएगा.”

ज़रीना जो अब तक चुपचाप सब सुन रही थी अचानक बोली, “अंकल कभी आपसे बात नही हुई. क्योंकि घर पास पास हैं इश्लीए रोज कभी ना कभी दिख जाते थे आप. आपने भी मुझे अक्सर देखा होगा. क्या ट्रेन में आग मैने लगाई थी? या फिर मेरे अम्मी-अब्बा गये थे ट्रेन फूँकने के लिए. हमे तो कुछ पता भी नही था कि कॉन सी ट्रेन… कैसी ट्रेन फूँक दी गयी. प्लीज़ बहुत सज़ा मिल चुकी है मुझे. और सज़ा मत दीजिए. आपकी अपनी बेटी समझ कर मुझे माफ़ कर दीजिए.”

घनश्याम मोदी के पास कहने को कुछ नही था. वो बिल्कुल चुप हो गया. कुछ भी कहने की हिम्मत नही जुटा पाया. चुपचाप अपने घर में घुस गया.

“चलो ज़रीना अंदर चलते हैं.” आदित्य ने कहा.

“देखा आदित्य कैसे भाग गये अंकल बिना कुछ कहे.” ज़रीना ने कहा.

“देखो सही और ग़लत हम सभी जानते हैं बस स्वीकार करने की हिम्मत नही जुटा पाते. छोड़ो इन बातों को…. चलो प्यार से अपने घर में प्रवेश करते हैं.”

ज़रीना ने ताला खोला और वो कदम अंदर रखने ही वाली थी कि आदित्य ने टोक दिया, “रूको एक बात मैं भूल ही गया. एक मिनिट यही रूको.”

“समझ गयी मैं. मैं भी भूल गयी थी. हहेहहे”

आदित्य अंदर गया और भाग कर एक लोटे में चावल डाल कर लाया और ज़रीना के कदमो में रख कर बोला, “हां अब इसे गिरा कर अंदर आओ.”

क्रमशः...............................
 
Last edited:

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
1,442
3,834
144
एक अनोखा बंधन--31

गतान्क से आगे.....................

ज़रीना ने प्यार से ठोकर मारी उस लोटे को और अंदर आ गयी. आदित्य ने फॉरन दरवाजा बंद किया और ज़रीना को बाहों में भर लिया.

“अरे छ्चोड़ो ये क्या कर रहे हो.”

“कब से तड़प रहा हूँ मैं अब और नही रुका जाता.”

“लंबे सफ़र से आए हैं हम. थोड़ा आराम तो कर लें.” ज़रीना ने कहा.

“मुझे अपनी जान से प्यार करना है. ढेर सारा प्यार. आराम करने का मन नही है अभी.”

“देखो वाहा वो क्या है दीवार पर” ज़रीना ने कहा.

जैसे ही आदित्य ने दीवार पर देखा ज़रीना आदित्य को धक्का दे कर एक कमरे में घुस्स गयी.

आदित्य भागा उसकी तरफ मगर अंदर से कुण्डी लग चुकी थी.

“जान प्लीज़…बाहर आओ तुरंत. ऐसे मत तड़पाव मुझे." आदित्य ने दरवाजा पीट-ते हुवे कहा.

ज़रीना ने अंदर घुसते ही अपने दिल पर हाथ रखा. दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था. “तुम्हे क्या हो गया अचानक ये. मुझे डर लग रहा है तुमसे.” ज़रीना ने कहा.

“जान ये सब क्या है. शादी से पहले भी दूर भागती थी और शादी के बाद भी दूर भाग रही हो. क्यों तडपा रही हो मुझे. मैं तड़प तड़प कर मर जाउन्गा. प्लीज़ दरवाजा खोलो.” आदित्य ने कहा.

ज़रीना ने अंदर से आवाज़ दी, “पहली बार बहुत डर लग रहा है तुमसे.”

“अरे डरने की क्या बात है. अच्छा दरवाजा तो खोलो मैं कुछ नही करूँगा.”

“पक्का.” ज़रीना ने कहा.

“हां पक्का.”

ज़रीना ने दरवाजा खोला डरते-डरते.

“ये हुई ना बात. अब तुम्हारी खैर नही” आदित्य ने ज़रीना का हाथ पकड़ लिया.

“नही आदित्य प्लीज़…तुमने वादा किया था कि कुछ नही करोगे.” ज़रीना गिड़गिडाई और छटपटाने लगी.

ज़रीना पूरी कोशिस कर रही थी अपना हाथ छुड़ाने की मगर आदित्य ने बहुत कस कर पकड़ रखा था उसका हाथ. छटपटाहट में ज़रीना की सारी का पल्लू सरक गया नीचे. आदित्य की नज़र ज़रीना के ब्लाउस पर पड़ी तो उसने फॉरन हाथ छ्चोड़ दिया ज़रीना का, “सॉरी पता नही मुझे क्या हो गया है.”

आदित्य ज़रीना को वही छ्चोड़ कर ड्रॉयिंग रूम में आकर सोफे पर बैठ गया. उसे ये फील हुवा कि वो ज़रीना के साथ ज़बरदस्ती कर रहा है.

ज़रीना एक पल को वही खड़ी रही फिर अपना पल्लू सही करके आदित्य के पास आकर उसके कदमो में बैठ गयी. अपना सर उसने आदित्य के घुटनो पर रख दिया.

“नाराज़ हो गये मुझसे?" ज़रीना ने प्यार से पूछा

“मैं बहुत तड़प रहा हूँ तुम्हारे लिए जान. तुम मुझसे दूर रहो अभी... नही तो कुछ कर बैठूँगा मैं.”

“ठंडे पानी से नहा लो सब ठीक हो जाएगा हहेहहे.” ज़रीना ने हंसते हुवे कहा.

“अछा मतलब कि तुम मेरे लिए कुछ नही करने वाली.”

“मुझे कुछ समझ में नही आ रहा कि क्या करूँ.”

“मुझे भी कहा कुछ समझ आ रहा है. बस पागल पन सा सवार है. शायद सेक्स ऐसा ही जादू करता है.”

“तभी तो डर लग रहा है मुझे तुमसे.”

“चलो छ्चोड़ो ये सब. हम आराम करते हैं. तुम नहा लो थक गयी होगी.”

“हां थक तो बहुत गयी हूँ. पर पहले तुम नहा लो. तब तक मैं खाने को कुछ बना देती हूँ. किचॅन का काम करके ही नहाना ठीक रहेगा.” ज़रीना ने कहा.

“अरे मेरी नयी नवेली दुल्हन काम करेगी. मैं बाहर से ले आता हूँ कुछ.”

“नही तुम कही नही जाओगे. मैं अपने आदित्य के लिए कुछ ख़ास बनाउन्गि आज.”

“चिकन कढ़ाई बना रही हो क्या.”

“दुबारा मत बोलना ऐसी बात. नोन-वेग के नाम से भी नफ़रत है मुझे.”

“उफ्फ गुस्से में कितनी प्यारी लग रही हो तुम. यार अब एक किस तो दे दो कम से कम. शादी के दिन कितना तडपा रही हो तुम मुझे.”

“मैं तो तुम्हारे भले की सोच रही थी कि कही जल कर राख न हो जाओ. हहेहहे.”

“राख ही कर दो. कुछ तो करो मेरी बेचैनी को दूर करने के लिए.”

“नहा लो चुपचाप जा कर. मुझे किचन में बहुत काम है.” ज़रीना उठ कर चल दी.

“उफ्फ लगता है आज मेरी जान ले लोगि तुम.”

ज़रीना किचन में आ गयी और अपने काम में लग गयी. आदित्य कुछ देर चुपचाप सोफे पर बैठा रहा. फिर अचानक उठा और किचन में आकर ज़रीना को पीछे से जाकड़ लिया.

“मैं यहा तड़प रहा हूँ आपके लिए और आप खाना बना रही हैं.”

“आप नहा लीजिए ना जाकर. आपकी तड़प थोड़ी शांत हो जाएगी.”

“इस तड़प का इलाज सिर्फ़ आपके पास है. चलिए छ्चोड़िए ये सब.” आदित्य ने ज़रीना को गोदी में उठा लिया.

“आज अचानक इतनी दीवानगी कहा से आ गयी.”

“ये दीवानगी तो हमेशा से थी. बस थामे हुवे था खुद को. शादी से पहले मैं बहकना नही चाहता था.”

“किस मे आदित्य.”

“क्या कहा तुमने?”

“किस मे.”

“ऑम्ग ये कैसे हो गया.”

“अपने दीवाने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ मैं.”

“वैसे मुझे पता है तुम मुझे किस दे कर टरकाने के चक्कर में हो. पर ऐसा नही होगा.”

“ओह गॉड तुम तो पीछे पड़ गये मेरे.”

“जी हां शादी की है आपसे कोई मज़ाक नही. पीछे नही पड़ूँगा आपके तो कुछ मिलने वाला नही है मुझे... ये मैं जान गया हूँ.” आदित्य ज़रीना को बेडरूम में ले गया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

हम सब की सीमा यही समाप्त होती है. बेडरूम में झाँक कर वाहा के सीन का वर्णन करने से दोनो डिस्टर्ब हो जाएँगे. हमें दोनो को अकेला छ्चोड़ देना चाहिए अब. पर ये क्या कुछ आवाज़े आ रही हैं अंदर से. शायद प्रेम-रस में डूब गये हैं दोनो. भगवान से यही दुआ है कि ये दोनो दुनिया की बुरी नज़र से बचे रहें और ये ख़ुसनूमा प्यार दोनो के बीच हमेशा बना रहे.

प्यार एक ऐसी ताक़त है जो कि इंसान को भगवान बना देता है. ये हमारे चरित्र को निखारता है. जीवन की बहुत सारी बुराईयाँ प्यार की आग में जल कर खाक हो जाती हैं. यही देखा हमने इस अनोखे बंधन में. नफ़रत करते थे आदित्य और ज़रीना एक दूसरे से. धरम एक बहुत बड़ा कारण था इस नफ़रत के पीछे. प्यार ने धरम की दीवार भी गिरा दी और दोनो के दिलों में मौजूद नफ़रत को भी ख़तम कर दिया. ये कोई चमत्कार नही है. ऐसा रोज हो रहा है इस देश में. हां पर हर कोई ज़रीना और आदित्य की तरह प्यार की मंज़िल तक नही पहुँच पाता. तभी इसे एक अनोखा बंधन नाम दिया मैने. ये बंधन कुछ ऐसा है कि अगर आदित्य और ज़रीना चाहें तो भी नही तौड सकते इसे. प्यार ही कुछ ऐसा हो गया है दोनो को एक दूसरे से. दुआ यही है कि ऐसा प्यार भगवान हर किसी को दे. अल्लाह से भी यही फरियाद है. भगवान से भी यही प्रार्थना है. दोस्तो कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ तब तक के लिए विदा आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त

दा एंड
 

Guffy

Well-Known Member
2,065
2,173
159
Hello Everyone :hello:

We are Happy to present to you The annual story contest of Xforum "The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat thread toh pehle se he Hind section mein khulla hai.

Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 700 words and maximum 7000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Xforum dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki USC Ki stories ko pure Xforum k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Xforum k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 21st February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shaktey hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.

Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..

Rules Check karne k liye Iss thread kaa use karein :- Rules And Queries Thread.

Contest k regarding Chit chat karne k liye Iss thread kaa use karein :- Chit Chat Thread.


Regards : XForum Staff.
 
Last edited by a moderator:

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
1

“ये मैं कहा हूँ. मैं तो अपने कमरे में नींद की गोली ले कर सोई थी.

मैं यहा कैसे आ गयी ? किसका कमरा है ये ?”

आँखे खुलते ही ज़रीना के मन में हज़ारों सवाल घूमने लगते हैं. एक

अंजाना भय उसके मन को घेर लेता है.

वो कमरे को बड़े गोर से देखती है. "कही मैं सपना तो नही देख रही" ज़रीना सोचती है.

"नही नही ये सपना नही है...पर मैं हूँ कहा?" ज़रीना हैरानी में पड़ जाती है.

वो हिम्मत करके धीरे से बिस्तर से खड़ी हो कर दबे पाँव कमरे से बाहर आती है.

"बिल्कुल शुनशान सा माहॉल है...आख़िर हो क्या रहा है."

ज़रीना को सामने बने किचन में कुछ आहट सुनाई देती है.

"किचन में कोई है...कौन हो सकता है....?"

ज़रीना दबे पाँव किचन के दरवाजे पर आती है. अंदर खड़े लड़के को देख कर उशके होश उड़ जाते हैं.

“अरे ! ये तो अदित्य है… ये यहा क्या कर रहा है...क्या ये मुझे यहा ले कर आया है...ईश्की हिम्मत कैसे हुई” ज़रीना दरवाजे पर खड़े खड़े सोचती है.

आदित्या उसका क्लास मेट भी था और पड़ोसी भी. आदित्य और ज़रीना के परिवारों में बिल्कुल नही बनती थी. अक्सर अदित्य की मम्मी और ज़रीना की अम्मी में किसी ना किसी बात को ले कर कहा सुनी हो जाती थी. इन पड़ोसियों का झगड़ा पूरे मोहल्ले में मशहूर था. अक्सर इनकी भिड़ंत देखने के लिए लोग इक्कठ्ठा हो जाते थे.

ज़रीना और अदित्य भी एक दूसरे को देख कर बिल्कुल खुस नही थे. जब कभी

कॉलेज में वो एक दूसरे के सामने आते थे तो मूह फेर कर निकल जाते थे. हालत कुछ ऐसी थी कि अगर उनमे से एक कॉलेज की कॅंटीन में होता था तो दूसरा कॅंटीन में नही घुसता था. शूकर है कि दोनो अलग अलग सेक्षन में थे. वरना क्लास अटेंड करने में भी प्राब्लम हो सकती थी.

“क्या ये मुझ से कोई बदला ले रहा है ?” ज़रीना सोचती है.

अचानक ज़रीना की नज़र किचन के दरवाजे के पास रखे फ्लवर पोट पर पड़ी. उसने धीरे से फ्लवर पोट उठाया.

आदित्य को अपने पीछे कुछ आहट महसूस हुई तो उसने तुरंत पीछे मूड कर देखा. जब तक वो कुछ समझ पाता... ज़रीना ने उसके सर पर फ्लवर पोट दे मारा.

आदित्य के सर से खून बहने लगा और वो लड़खड़ा कर गिर गया.

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी हरकत करने की." ज़रीना चिल्लाई.

ज़रीना फ़ौरन दरवाजे की तरफ भागी और दरवाजा खोल कर भाग कर अपने घर के बाहर आ गयी.

पर घर के बाहर पहुँचते ही उसके कदम रुक गये. उसकी आँखे जो देख रही थी उसे उस पर विश्वास नही हो रहा था. वो थर-थर काँपने लगी.

उसके अध-जले घर के बाहर उसके अब्बा और अम्मी की लाश थी और घर के

दरवाजे पर उसकी छोटी बहन फ़ातिमा की लाश निर्वस्त्र पड़ी थी. गली मैं

चारो तरफ कुछ ऐसा ही माहॉल था.

ज़रीना को कुछ समझ नही आता. उसकी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगता है और वो फूट-फूट कर रोने लगती है.

इतने में अदित्य भी वाहा आ जाता है.

ज़रीना उसे देख कर भागने लगती है….पर अदित्य तेज़ी से आगे बढ़ कर उसका मूह दबोच लेता है और उसे घसीट कर वापिस अपने घर में लाकर दरवाजा बंद करने लगता है.

ज़रीना को सोफे के पास रखी हॉकी नज़र आती है.वो भाग कर उसे उठा कर अदित्य के पेट में मारती है और तेज़ी से दरवाजा खोलने लगती है. पर अदित्य जल्दी से संभाल कर उसे पकड़ लेता है

“पागल हो गयी हो क्या… कहा जा रही हो.. दंगे हो रहे हैं बाहर. इंसान… भेड़िए बन चुके हैं.. तुम्हे देखते ही नोच-नोच कर खा जाएँगे”

ज़रीना ये सुन कर हैरानी से पूछती है, “द.द..दंगे !! कैसे दंगे?”

“एक ग्रूप ने ट्रेन फूँक दी…….. और दूसरे ग्रूप के लोग अब घर-बार फूँक रहे हैं… चारो तरफ…हा-हा-कार मचा है…खून की होली खेली जा रही है”

“मेरे अम्मी,अब्बा और फ़ातिमा ने किसी का क्या बिगाड़ा था” ---ज़रीना कहते हुवे

सूबक पड़ती है

“बिगाड़ा तो उन लोगो ने भी नही था जो ट्रेन में थे…..बस यू समझ लो कि

करता कोई है और भरता कोई… सब राजनीतिक षड्यंत्र है”

“तुम मुझे यहा क्यों लाए, क्या मुझ से बदला ले रहे हो ?”

“जब पता चला कि ट्रेन फूँक दी गयी तो मैं भी अपना आपा खो बैठा था”

“हां-हां माइनोरिटी के खिलाफ आपा खोना बड़ा आसान है”

“मेरे मा-बाप उस ट्रेन की आग में झुलस कर मारे गये, ज़रीना...कोई भी अपना आपा खो देगा.”

“तो मेरी अम्मी और अब्बा कौन सा जिंदा बचे हैं.. और फ़ातिमा का तो रेप हुवा

लगता है. हो गया ना तुम्हारा हिसाब बराबर… अब मुझे जाने दो” ज़रीना रोते हुवे कहती है.

“ये सब मैने नही किया समझी… तुम्हे यहा उठा लाया क्योंकि फ़ातिमा का रेप

देखा नही गया मुझसे….अभी रात के 2 बजे हैं और बाहर करफ्यू लगा है.

माहॉल ठीक होने पर जहाँ चाहे चली जाना”

“मुझे तुम्हारा अहसान मंजूर नही…मैं अपनी जान दे दूँगी”

ज़रीना किचन की तरफ भागती है और एक चाकू उठा कर अपनी कलाई की नस

काटने लगती है

आदित्य भाग कर उसके हाथ से चाकू छीन-ता है और उसके मूह पर ज़ोर से एक थप्पड़ मारता है.

ज़रीना थप्पड़ की चोट से लड़खड़ा कर गिर जाती है और फूट-फूट कर रोने

लगती है.

“चुप हो जाओ.. बाहर हर तरफ वहसी दरिंदे घूम रहे हैं.. किसी को शक हो गया कि तुम यहा हो तो सब गड़बड़ हो जाएगा”

“क्या अब मैं रो भी नही सकती… क्या बचा है मेरे पास अब.. ये आँसू ही हैं.. इन्हे तो बह जाने दो”

आदित्य कुछ नही कहता और बिना कुछ कहे किचन से बाहर आ जाता है.

ज़रीना रोते हुवे वापिस उसी कमरे में घुस जाती है जिसमे उसकी कुछ देर पहले आँख खुली थी.

-----------------------

अगली सुबह ज़रीना उठ कर बाहर आती है तो देखती है कि अदित्य खाना बना

रहा है.

आदित्य ज़रीना को देख कर पूछता है, “क्या खाओगि ?”

“ज़हर हो तो दे दो”

“वो तो नही है.. टूटे-फूटे पराठे बना रहा हूँ….यही खाने

पड़ेंगे..….आऊउच…” आदित्या की उंगली जल गयी.

“क्या हुवा…. ?”

“कुछ नही उंगली ज़ल गयी”

“क्या पहले कभी तुमने खाना बनाया है ?”

“नही, पर आज…बनाना पड़ेगा.. अब वैसे भी मम्मी के बिना मुझे खुद ही बनाना पड़ेगा ”

ज़रीना कुछ सोच कर कहती है, “हटो, मैं बनाती हूँ”

“नही मैं बना लूँगा”

“हट भी जाओ…जब बनाना नही आता तो कैसे बना लोगे”

“एक शर्त पर हटूँगा”

“हां बोलो”

“तुम भी खाओगि ना?”

“मुझे भूक नही है”

“मैं समझ सकता हूँ ज़रीना, तुम्हारी तरह मैने भी अपनो को खोया है. पर ज़ींदा रहने के लिए हमें कुछ तो खाना ही पड़ेगा”

“किसके लिए ज़ींदा रहूं, कौन बचा है मेरा?”

“कल मैं भी यही सोच रहा था. पर जब तुम्हे यहा लाया तो जैसे मुझे जीने

का कोई मकसद मिल गया”

“पर मेरा तो कोई मकसद नही………”

“है क्यों नही? तुम इस दौरान मुझे अछा-अछा खाना खिलाने का मकसद बना लो… वक्त कट जाएगा. करफ्यू खुलते ही मैं तुम्हे सुरक्षित जहा तुम कहो वाहा पहुँचा दूँगा” – अदित्य हल्का सा मुस्कुरा कर बोला

ज़रीना भी उसकी बात पर हल्का सा मुस्कुरा दी और बोली, “चलो हटो अब…. मुझे बनाने दो”
good start
 
  • Like
Reactions: DAIVIK-RAJ
Top