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Romance एक अनोखा बंधन (Completed)

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भाई अपडेट नही आया
Brother Thora busy tha Apne current story

Me
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Next update today evening
And aaj story Ka end bhi Kar dunga
Total 10-15 update Bache hue hai
 
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Nagaraj

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Brother Thora busy tha Apne current story

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And aaj story Ka end bhi Kar dunga
Total 10-15 update Bache hue hai
Bhai next update abhi tak nahi aaya
 

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Readers yesterday morning bike se Kahi Jana pada aur Ghar aane ke just baad bath(Naha liya) Karna pada his Karan yesterday afternoon se MERI tabiyat thori kharab ho gai hai Sardi chhik jis Karan update aane me delay Hoga

Sorry for readers problem
 

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एक अनोखा बंधन--21

गतान्क से आगे.....................

आदित्य ने घर के बाहर सीढ़ियाँ डलवा दी और आस-पड़ोस में ये क्लियर भी कर दिया कि ज़रीना उसके यहा टेनेंट बन कर रह रही है.

“सोच रहा हूँ कि तुम्हारे घर की भी मरम्मत करवा दूं.” आदित्य ने कहा.

“रहने दो सबको शक हो जाएगा. ये काम शादी के बाद करेंगे. बल्कि दोनो घरो को जोड़ कर एक बना देंगे हम.” ज़रीना ने कहा.

“ज़रीना चाचा जी का ********* आया था आज फॅक्टरी में. तुरंत बुलाया है उन्होने मुझे मुंबई सिमरन से मिलने के लिए. तुम बताओ क्या करूँ.”

ज़रीना ने गहरी साँस ली और बोली, “जाना तो पड़ेगा ही तुम्हे. इस समस्या का हल तो करना ही है ताकि हम सुख शांति से रह सकें.”

“हां बहुत ज़रूरी है इस उलझन को दूर करना तभी हम अपने प्यार में आगे बढ़ पाएँगे.”

ज़रीना रह तो रही थी टेनेंट के रूप में मगर आस-पड़ोस के लोग फिर भी उसे घूर-घूर कर देखते थे. जिसके कारण वो गुमशुम और परेशान रहती थी. आदित्य के मुंबई जाने के ख्याल से वो और ज़्यादा परेशान हो गयी थी

“आदित्य मुझे भी ले चलो साथ मुंबई. मैं यहा अकेली नही रह पाउन्गि. तुम देख ही रहे हो कैसा माहॉल है यहा. घूर-घूर कर देखते हैं लोग मुझे. लगता है लोगो को शक हो गया है हमारे बारे में.”

“ज़रीना चिंता मत करो..मैं मुंबई जा रहा हूँ ना. सब ठीक करके आउन्गा और आते ही हम शादी कर लेंगे. ज़्यादा दिन नही सहना होगा तुम्हे ये सब. फिर देखता हूँ कि कौन घूर कर देखता है तुम्हे. आक्च्युयली मैं प्राब्लम ये है कि किसी को बर्दास्त नही हो रहा होगा कि एक मुस्लिम लड़की हिंदू के घर रह रही है.”

“हां यही मैं प्राब्लम है. पता नही जब हम शादी करके रहेंगे फिर किस तरह रिक्ट करेंगे ये लोग.”

“तब की तब देखेंगे. हमें जो करना है करना है.”

“आदित्य मुझे भी अपने साथ मुंबई ले चलो प्लीज़. मैं यहा अकेली क्या करूँगी.”

“चलना चाहती हो तुम?”

“हां…ले चलोगे ना?”

“तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा जान. चलो समान पॅक करलो, तुम्हे मुंबई घुमा कर लाता हूँ.” आदित्य ने कहा.

“बहुत खर्चा करवा रही हूँ तुम्हारा.”

“पागल हो क्या. सब तुम्हारा है. और फॅक्टरी ठीक चल रही है. और ध्यान दूँगा तो और ज़्यादा तरक्की करेंगे.”

“आदित्य तुम बहुत अच्छे हो” ज़रीना ने कहा और कह कर किचन की तरफ चल दी.

“रूको कहा जा रही हो?”

“खाना बनाना है…” ज़रीना हंसते हुवे बोली और किचन में आ गयी.

आदित्य भी उसके पीछे पीछे आ गया.

“आदित्य पता नही क्यों पर डर सा लग रहा है मुझे. पता नही ये समस्या कैसे और कब दूर होगी और कब मुझे तुम्हारी पत्नी कहलाने का हक़ मिलेगा.”

“वो हक़ तो तुम्हे कब से है. फिर भी एक काम और किए देता हूँ अगर कोई डाउट है तुम्हे तो” आदित्य ने चाकू उठाया और इस से पहले कि ज़रीना कुछ समझ पाती झट से अपने दायें हाथ का अंगूठा चीर दिया.

“ये क्या किया आदित्य…पागल हो गये हो क्या.”

आदित्य ने कुछ कहे बिना ज़रीना की माँग भर दी और बोला, “अब मत कहना कि तुम मेरी पत्नी नही हो. जब दिल से मान चुके हैं हम एक दूसरे को पति-पत्नी तो और क्या रह गया है.”

ज़रीना आदित्य के कदमो में बैठ गयी, “आदित्य मेरा वो मतलब नही था. हम दोनो तो ये जानते ही हैं. बात समाज की हो रही है.”

“छोड़ो ज़रीना हटो अब. हद होती है किसी बात की. बेकार के झंझट पाल रखें हैं तुमने अपने मन में. कितना सम्झाउ तुम्हे.” आदित्य ज़रीना को किचन में छ्चोड़ कर बाहर आ गया. ज़रीना वही बैठी हुई सुबक्ती रही.

ज़रीना खाना बना कर आदित्य के पास आई.

“खाना खा लो आदित्य.”

“नही मुझे भूक नही है. तुम खा लो.”

“अच्छा सॉरी बाबा…आगे से ऐसा नही कहूँगी…खाना खा लो प्लीज़…वरना मैं भी नही खाउन्गि. वैसे बहुत सुंदर लग रही है मेरी माँग भरी हुई.”

“मैने अपने खून से माँग भर दी तुम्हारी फिर भी पता नही कौन सी दुविधा में हो. कोई मज़ाक नही किया था मैने. बहुत मान्यता है इस बात की हमारे लिए.”

“मैं जानती हूँ आदित्य. इसी देश में पली-बढ़ी हूँ मैं. अच्छा आगे से ऐसा कुछ नही कहूँगी जिस से तुम्हे दुख पहुँचे.”

आदित्य ज़रीना के करीब आया और ज़रीना के चेहरे पर हाथ रख कर बोला, “जान मैं तुम्हारी हर क्न्सर्न समझता हूँ. पर तुम्हे परेशान नही देख सकता.”

“सॉरी आगे से ऐसा नही होगा…चलो खाना खाते हैं.” ज़रीना मुश्कुरा कर बोली.

आदित्य और ज़रीना के लिए फिर से ये इम्तिहान का दौर था. पहले इम्तिहान में वो दोनो फैल हो गये थे मगर उसके बाद दोनो ने कुछ ऐसा सीखा था जो कि उन्हे जीवन भर काम आएगा. फेल्यूर कभी बेकार नही जाता. कुछ तो वो भी दे ही जाता है. ये अच्छी बात थी कि ऐसे मुश्किल दौर में दोनो एक साथ खड़े थे. यही प्यार की सबसे बड़ी डिमॅंड रहती है अगर आप प्यार के सफ़र पर चल रहे हैं तो.

दोनो ने शांति से खाना खाया. और खाना खाने के बाद आदित्य ने हंसते हुवे कहा, “अब एक स्वीट डिश हो जाए.”

“स्वीट डिश नही बनाई…अभी बना कर लाती हूँ कुछ.”

“नही…नही रूको मैं मज़ाक कर रहा था. वैसे कहते हैं कि चुंबन स्वीट होता है.”

“श्रीमान वो भी उपलब्ध नही है इस समय. थोड़ा वक्त लगेगा.” ज़रीना मुश्कुरा कर वापिस किचन की ओर चल दी.

“कितना वक्त लगेगा तैयार होने में.?” आदित्य ने पूछा.

“क्या स्वीट डिश या…” ज़रीना ने मूड कर पूछा.

“दोनो के बारे में बता दो.”

“स्वीट डिश अभी 10 मिनिट में बना देती हूँ. उसमे कितना टाइम लगेगा पता नही.” ज़रीना हंसते हुवे किचन में घुस गयी.

“ओह ज़रीना कितनी प्यारी हो तुम. ऐसी ही रहना हमेशा. मुझे चुंबन की जल्दी नही है जान. बस मज़ाक कर रहा हूँ तुमसे. तुम मेरी अपनी हो ना इतना मज़ाक तो कर ही सकता हूँ. बुरा मत मान-ना.” आदित्य ने मन ही मन कहा.

“आदित्य मुझे शरम आने लगी है अब तुम्हारे साथ. थोड़ा डर भी लगने लगा है तुमसे. पर सब कुछ अच्छा भी लग रहा है. तुम यू ही रहना हमेशा मेरे लिए. चुंबन अगर बहुत ज़रूरी है तो ले लो. पर नाराज़ मत होना मुझसे. जी नही पाउन्गि तुम्हारे बिना.” ज़रीना की आँखे नम हो गयी सोचते सोचते.

ये भी प्यार का अजीब सा रूप है. बिन कहे बहुत सारी बाते होती हैं और समझी भी जाती हैं. ज़रीना और आदित्य लगभग एक सी बाते सोच रहे थे. दिस ईज़ रियली ग्रेट.

अगले दिन आदित्य और ज़रीना मुंबई के लिए रवाना हो गये. दोपहर 3 बजे पहुँच गये वो मुंबई. कोलाबा में घर था आदित्य के चाचा जी का. इश्लीए वही एक होटेल में रुक गये आदित्य और ज़रीना. कुछ देर आराम करने के बाद आदित्य ने कहा, “जान मैं मिल आता हूँ सिमरन से. तुम यही रूको.”

“हां मिल आओ और शांति से काम लेना. उसकी कोई ग़लती नही है. कुछ भला बुरा मत बोल देना उसे. बहुत सेवा की है उसने तुम्हारी. अपना पत्नी धरम निभाया है. मुझे यकीन है कि तुम सब ठीक करके लोटोगे. काश मैं भी चल पाती तुम्हारे साथ.” ज़रीना ने कहा

“पहले माहॉल देख लूँ वाहा का. फिर तुम्हे भी ले चलूँगा. चाचा चाची से तो तुम्हे मिलवाना ही है.” आदित्य ने कहा.

आदित्य ज़रीना को होटेल में छ्चोड़ कर चाचा जी के घर की तरफ चल दिया. पैदल ही चल दिया वो. बस कोई 15 मिनिट की वॉकिंग डिस्टेन्स पर था उसके चाचा जी का घर. दिल में बहुत सारे सवाल घूम रहे थे. चेहरे पर शिकन सॉफ दीखाई दे रही थी. ज़रीना से ये सब छुपा रखा था उसने, क्योंकि उसे परेशान नही करना चाहता था. मगर अब उसके दिलो-दिमाग़ को चिंता और परेशानी ने घेर लिया था. उसे खुद नही पता था कि कैसे हॅंडल करना है सब कुछ, हां बस वो इतना जानता था की उसे हर हाल में इस समस्या का समाधान करना है.

आदित्य घर पहुँचा और बेल बजाई तो उसकी चाची ने दरवाजा खोला.

“नमस्ते चाची जी” आदित्य ने पाँव छूते हुवे कहा.

“नमस्ते तो ठीक…तुम ये बताओ समझते क्या हो तुम खुद को. बिना बताए भाग गये थे यहा से…कान खींचने पड़ेंगे तुम्हारे लगता है?” चाची बहुत गुस्से में दिख रही थी.

“चाची जी मुझे माफ़ कर दीजिए…मेरी कुछ मजबूरी थी.” आदित्य गिड़गिदाया.

“आओ अंदर..देखती हूँ क्या मजबूरी थी तुम्हारी.” चाची ने कहा.

आदित्य अंदर आ गया चुपचाप. चाची ने कुण्डी लगा कर आवाज़ दी, “अजी सुनते हो आदित्य आ गया है.”

उस वक्त सिमरन कमरे में सोई हुई थी. चाची की आवाज़ सुनते ही उठ गयी, “आप आ गये…”

सिमरन के साथ निशा भी थी कमरे में. सिमरन ने निशा को कंधे पर हाथ रख कर हिलाया, “उठो तुम्हारे भैया आ गये हैं.”

“आदित्य भैया आ गये?” निशा ने आँखे मलते हुवे कहा.

“हां आ गये हैं. जाओ मिल लो जाकर?” सिमरन ने कहा.

“अरे सबसे पहले आपको मिलना चाहिए…चलिए अभी मिल्वाति हूँ आप दोनो को. बल्कि आप यही रुकिये मैं भैया को खींच कर लाती हूँ यही.” निशा ने कहा.

“नही रूको मिल लेंगे…इतनी जल्दी क्या है?”

“कैसी बाते करती हो भाभी…ज़्यादा नाटक मत किया करो.” निशा कह कर कमरे से बाहर आ गयी.

आदित्य चुपचाप चाचा चाची के साथ सोफे पर बैठा था. चाची डाँट पे डाँट पीलाए जा रही थी उसे, घर से चले जाने की बात को लेकर.

“मम्मी क्यों डाँट रही हो भैया को…आओ भैया भाभी इंतेज़ार कर रही है तुम्हारा.” निशा ने कहा.

आदित्य से कुछ भी कहे नही बना. उसके तो जैसे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी ये सुन कर.

“निशा तुम जाओ. आदित्य अभी आएगा थोड़ी देर में” रघु नाथ ने गंभीर आवाज़ में कहा.

“पापा बात क्या है…आप सब लोग गुमशुम क्यों हैं. भैया आपने मुझसे ठीक से बात भी नही की. सब ठीक तो है ना.”

“तुमसे कहा ना आदित्य आ रहा है. जाओ यहा से.” रघु नाथ ने निशा को डाँट दिया.

निशा मूह लटका कर वाहा से चली गयी.

क्रमशः...............................
 

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एक अनोखा बंधन--22

गतान्क से आगे.....................

निशा के जाने के बाद चाची ने कहा, “बेटा क्या ये सच है कि तुम गोना नही करना चाहते. सिमरन को छ्चोड़ देना चाहते हो.”

“चाची जी मैने चाचा जी को सब बता दिया है.”

“हां इन्होने बताया है मुझे…मगर मैं तुमसे सुन-ना चाहती हूँ.”

“हां ये सच है. मैं ये बाल-विवाह नही निभा सकता. मैने कभी इस शादी को शादी नही माना.”

“मतलब हम सब बडो की कोई परवाह नही तुम्हे. तुम्हारे मम्मी, पापा जींदा होते तो पता नही क्या हाल होता उनका ये सब सुन कर. क्या तुम्हे अंदाज़ा भी है कि क्या ठुकराने जा रहे हो तुम. अरे हीरा है सिमरन हीरा. लाखो में एक है वो.”

“मैं किसी और से प्यार करता हूँ और उसे अपनी पत्नी मानता हूँ. मैं ये गुड्डे-गुडियों का खेल नही निभा सकता.” आदित्य ने कहा.

“ये सुनते ही चाचा और चाची की आँखे फटी रह गयी.”

“मुझे तो पहले से ही शक था इस बात का. बहुत बढ़िया बेटा.” चाचा ने कहा.

“कौन है वो करम जली जो हमारी सिमरन का घर उजाड़ने पर तुली है.” चाची ने कहा.

चाची बहुत गुस्से में थी इश्लीए आदित्य ने चुप रहना ही सही समझा.

“मतलब की तुम्हारा फ़ैसला अटल है.” चाचा ने कहा.

“जी हां…मैं शादी करूँगा तो अपनी मर्ज़ी से और वो भी उस से जिसे मैं बहुत प्यार करता हूँ.इस बाल-विवाह को मैं नही मानता.” आदित्य ने कहा.

“जाओ बेटा ये सब खुद ही कहो सिमरन से जाकर. हम ये सब नही बोल पाएँगे.” रघु नाथ ने कहा और निशा को आवाज़ दी ज़ोर से “निशा!”

निशा मूह लटकाए वापिस आई वाहा और बोली, “जी पापा.”

“आदित्य को ले जाओ सिमरन के पास. ये कुछ ज़रूरी बात करना चाहता है उस से.”

“आओ भैया…” निशा ने कहा.

आदित्य चुपचाप उठ कर चल दिया वाहा से.

“भैया कौन सी ज़रूरी बात है?” निशा ने पूछा.

“छ्चोड़ वो सब…तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है.”

“अच्छी चल रही है. लीजिए आ गया भाभी का कमरा. आप दोनो बात करो मैं मम्मी, पापा के पास बैठती हूँ.” निशा कह कर चली गयी.

आदित्य कमरे में दबे पाँव दाखिल हुवा. उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था. सिमरन बेड के पास खड़ी थी नज़रे झुकाए. अंजाने में ही आदित्य की निगाह सिमरन के चेहरे पर पड़ी. वो देखता ही रह गया उसे. एक आकर्षक नयन नक्स पाया था सिमरन ने. चेहरे पर प्यारी सी मासूमियत थी.

आदित्य ने उसके कदमो की तरफ देखा और बोला, “कैसी हैं आप.”

“मैं ठीक हूँ. आप कैसे हैं.” सिमरन भी आदित्य के कदमो को ही देख रही थी.

“क्या खेल खेला ना किस्मत ने. कितनी जल्दी हम दोनो की शादी हो गयी थी. उस उमर में हमें शादी का मतलब भी नही पता था. बहुत रो रही थी आप, याद है मुझे. पता नही क्या ज़रूरत थी इतनी जल्दी ये सब करने की.” आदित्य ने अपनी बात कहने के लिए भूमिका तैयार की.

“हां हमारे अपनो ने बचपन में ही हमें इस रिश्ते में बाँध दिया.”

“आप ही बतायें बाल-विवाह कहा तक जायज़ है. गैर क़ानूनी है ये. फिर भी हम लोग नही मानते.”

“बाल-विवाह बिल्कुल जायज़ नही है.”

“तो आप मानती हैं कि हम लोगो के साथ ग़लत हुवा. देखिए अब हम बड़े हो चुके हैं. और हमें अपना जीवन साथी चुन-ने का हक़ होना चाहिए. मैं अब घुमा फिरा कर नही कहूँगा. मैं ये बाल-विवाह नही निभा सकता हूँ. आप भी इस बंधन से खुद को आज़ाद समझिए.”

ये सुनते ही सिमरन के पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन निकल गयी. बहुत कुछ कहना चाहती थी वो मगर कुछ नही बोल पाई. होन्ट जैसे सिल गये थे उसके. आदित्य का दिल भी बहुत ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था. वो फ़ौरन वाहा से भाग जाना चाहता था.

“मुझसे कोई भूल हुई हो तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा प्लीज़. चलता हूँ मैं.” आदित्य मूड कर जाने लगा

“सुनिए…” सिमरन ने हिम्मत करके आवाज़ दी.

आदित्य वापिस मुड़ा और बोला, “कहिए…मैं आपकी बात सुने बिना नही जाउन्गा यहा से.”

“बेशक बाल-विवाह ग़लत है और रहेगा. उस वक्त मैने भी वो खेल एंजाय नही किया. मगर मेरी परवरिश कुछ इस तरह की गयी कि आपको एक देवता बना कर मेरे दिल में बैठा दिया गया. बचपन से यही सिखाया गया कि पति परमेस्वर होता है इश्लीए आदित्य तुम्हारा परमेश्वर है. मैं सब कुछ स्वीकार करती गयी खुले मन से. कब आपसे प्यार हो गया…पता ही नही चला. और इतना प्यार कर बैठी आपसे कि अपने पेरेंट्स से लड़ बैठी आपके लिए. वो नही चाहते थे कि मैं आपके लिए मुंबई आउ. मगर मैं अपनी ज़िद पर आडी रही और उन्हे मुझे भेजना पड़ा आपके पास. मुझे एक मोका तो दे दीजिए प्लीज़. बाल-विवाह तो ग़लत है मगर मेरा प्यार ग़लत नही है. शादी चाहे जैसे भी हुई हो मगर मैं आपको तन,मन धन से अपना पति मानती हूँ.”

“ये सब कह कर तो गुनहगार बना दिया आपने मुझे. काश ये धरती फॅट जाए और मैं इसमें समा जाउ.” आदित्य सर पकड़ कर बैठ गया बिस्तर पर.

सिमरन तुरंत कदमो में बैठ गयी आदित्य के और बोली, “नही प्लीज़ ऐसा मत बोलिए. मैने कुछ ग़लत कहा तो उसके लिए माफी चाहती हूँ आपसे पर आप अपने लिए ये सब ना बोलिए.”

“सिमरन उठ जाओ प्लीज़. मेरे कदमो में बैठ कर और गुनहगार मत बनाओ मुझे. सारी ग़लती मेरी ही है. काश इस शादी को मैं भी आपकी तरह शादी स्वीकार कर लेता तो आज ये दिन नही देखना पड़ता.

बहुत सुंदर हो आप. उस से भी ज़्यादा सुंदर आपका व्यक्तित्व है. कोई भी इंसान आपके जैसे जीवन साथी को पाकर खुद को धन्य महसूस करेगा. मगर मैं आज ऐसी जगह खड़ा हूँ जहा मैं चाह कर भी आपको स्वीकार नही कर सकता.”

“ऐसा क्यों है क्या बता सकते हैं मुझे.?” सिमरन ने पूछा.

“जिस तरह आपने मुझे अपने दिल में बैठा रखा है उसी तरह मैने अपने दिल में ज़रीना को बैठा रखा है…और मैं उसके बिना जी नही सकता. वो मेरी जींदगी है. अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ. तुम्हार साथ बचपन में शादी हुई थी. ज़रीना के साथ प्यार ने शादी करवा दी मेरी. खून से माँग भरी है मैने उसकी. तुम मुझे अपना पति मानती हो. और मैं ज़रीना को पत्नी मानता हूँ. तुम ही बताओ अब क्या किया जाए.”

तभी अचानक आदित्य की चाची दाखिल हुई कमरे में. चाची को देख कर सिमरन फ़ौरन आदित्य के कदमो के पास से उठ कर खड़ी हो गयी.

“मैं बताती हूँ क्या करना है. चलो अभी वापिस गुजरात. मिलना चाहती हूँ मैं इस ज़रीना से. देखूं तो सही क्या बला है वो, जो कि किसी और का घर उजाड़ने पर तुली है.”

“उसकी कोई ग़लती नही है चाची. सारी ग़लती मेरी है. और वो मेरे साथ ही आई है मुंबई. ”

“तो लेकर आओ उसे. या फिर हम चलते हैं होटेल में.”

“उसका इस सब से कोई लेना देना नही है. उसकी कोई ग़लती नही है.”

“बेटा जिसे तुम पत्नी मानते हो और जिस से शादी करना चाहते हो क्या उसे हमसे नही मिलवाओगे.?”

सिमरन एक तरफ खड़ी चुपचाप सब सुन रही थी.

“मैं भी चाहता हूँ कि आप सब मिलें उस से. और हमारे प्यार को स्वीकार करें.” आदित्य ने कहा.

“तो जाओ बेटा उसे अभी इसी वक्त ले आओ. हम मिलना चाहते हैं उस से.” चाची ने कहा.

“हां भैया ले आओ उसे. देखें तो सही कौन है वो जो हमारी प्यारी भाभी की जगह लेना चाहती है.” निशा ने कहा.

“बाद में मिल लेना शांति से अभी नही.” आदित्य ने कहा.

“ले आईए उन्हे. मैं भी उनसे मिलना चाहती हूँ.” सिमरन ने कहा.

आदित्य ने सिमरन की आँखो में देखा और बोला, “क्या आप सच में मिलना चाहती हैं उस से.”

“हां..जिस से आप इतना प्यार करते हैं, उस से मिलना शोभाग्य होगा मेरे लिए.” सिमरन ने कहा.

“ठीक है मैं अभी उसे लेकर आता हूँ. आप सभी को मेरी ज़रीना से मिल कर ख़ुसी होगी.” आदित्य उठ कर चल दिया.

आदित्य के जाने के बाद चाची ने सिमरन को गले से लगा लिया और बोली, “बेटा तुम चिंता मत करो. आने दो इस करम जली को. अकल ठिकाने लगाउन्गि मैं उसकी. हमारे सीधे साधे आदित्य को फँसा लिया. सोचा होगा अच्छा पैसा है, फॅक्टरी है और क्या चाहिए. तू फिकर मत कर आदित्य तेरा ही रहेगा. नाम से तो कोई मुस्लिम लगती है. मुस्लिम लड़की को तो अब बनाएँगे हम अपने घर की बहू.”

“पर चाची क्या फ़ायडा इस सब का. वो उसे प्यार करते हैं मुझे नही”

“पागल मत बनो तुम पत्नी हो आदित्य की और तुम्हे अपने हक़ के लिए लड़ना होगा. केयी बार अपना हक़ लड़ कर ही मिलता है.” चाची ने कहा.

“हां भाभी मम्मी ठीक कह रही हैं. हमें पता है कि भैया सिर्फ़ आपके साथ खुश रहेंगे. ये लड़की ज़रूर कोई चालबाज़ है जो कि खाता पीता घर देख कर एक शादी शुदा लड़के के पीछे पड़ गयी और अपने प्रेम जाल में फँसा लिया. देखो बेसरमी की भी हद कर दी..भैया के साथ यहा चली आई. ज़रूर उसके परिवार वाले भी शामिल होंगे उसके साथ.” निशा ने कहा.

“मुझे कुछ समझ नही आ रहा…पता नही ऐसा मेरे साथ ही क्यों हो रहा है.”

“सब ठीक हो जाएगा बस हिम्मत मत हारना.” चाची ने कहा.

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एक अनोखा बंधन--23

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ज़रीना बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी आदित्य के लौटने का. बार बार यही दुवा कर रही थी कि सब ठीक ठाक रहे. जब रूम की बेल बजी तो तुरंत भाग कर दरवाजा खोला उसने.

“आदित्य तुम आ गये…सब ठीक है ना.” ज़रीना ने एक साँस में पूछा.

“हां लग तो सब ठीक ही रहा है. चलो तुम्हे लेने आया हूँ मैं. सब तुमसे मिलना चाहते हैं.” आदित्य ने कहा.

ज़रीना थोड़ा परेशान सा हो गयी ये सुन कर. “मुझसे मिलना चाहते हैं…पर क्यों?”

“अरे मम्मी पापा के बाद अब चाचा, चाची ही मेरे सब कुछ हैं. उनसे तो मिलना ही पड़ेगा ना. हां थोड़ा गुस्से में हैं सभी. पर थोड़ा गुस्सा तो सहना ही पड़ेगा हमें. दिल के आछे हैं वैसे मेरे चाचा चाची. मुझे उम्मीद है कि वो हमारे प्यार को समझेंगे.” आदित्य ने कहा.

“आदित्य वो तो ठीक है…पर मुझे डर सा लग रहा है.”

“अरे डरने की क्या बात है, मैं हूँ ना. मेरे होते हुवे काहे का डर.”

“ठीक है मैं थोड़ा बाल-वाल संवार लू. तुम 5 मिनिट वेट करो.” ज़रीना ने कहा.

5 मिनिट बाद ज़रीना आदित्य के साथ उसकी चाची के घर की तरफ जा रही थी.

“तुमने क्या बताया मेरे बारे में उन्हे.” ज़रीना ने कहा.

“कुछ नही बस इतना ही के तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ. ज़्यादा कुछ बताने का वक्त ही नही मिला. चाचा चाची गुस्से में हैं. हो सकता है कुछ उल्टा सीधा बोल दे. तुम शांत रहना. चुपचाप सब सुन लेना. ज़्यादा देर गुस्सा नही रहेंगे वो.” आदित्य ने कहा.

“वैसे मुझे गुस्सा आ जाता है बहुत जल्दी अगर कोई मुझे कुछ कहे तो. पर तुम्हारे लिए और इस प्यार के लिए सब सह लूँगी.” ज़रीना ने कहा.

“दट’स लाइक माइ ज़रीना. देखो जान वक्त हमें बहुत बुरी तरह आजमा रहा हैं. लेकिन ये वक्त बेकार नही जाएगा. कहते हैं की शांत समुंदर में नाव चला कर कोई अच्छा नाविक नही बन सकता. अछा नाविक बन-ने के लिए अशांत समुंदर की ज़रूरत होती है. जोखिम रहता है मानता हूँ मगर जोखिम के बिना इंसान जीना नही सीख पाएगा. भगवान किश्मत वालो को ही आजमाते हैं."

“वो तो ठीक है…इतना भी ना आजमाया जाए हमें कि टूट कर बिखर जायें हम.”

बाते करते-करते जल्दी ही पहुँच गये दोनो घर. चाची ने ही दरवाजा खोला इस बार भी.

“ह्म्म…तो तुम हो ज़रीना. सुंदर हो. बल्कि बहुत सुंदर हो. लगता है अपने चेहरे को ही हथियार बनाया है तुमने हमारे आदित्य को जाल में फँसाने के लिए.” चाची ने कटाक्ष किया.

ज़रीना ने आदित्य की तरफ देखा. आदित्य ने ज़रीना को पाँव छूने का इशारा किया.

ज़रीना पाँव छूने के लिए झुकी ही थी कि चाची दो कदम पीछे हट गयी और बोली, “बस-बस नाटक मत करो … आओ अंदर.”

ज़रीना अंदर आ गयी चुपचाप आदित्य के साथ. आदित्य के चाचा सोफे पर बैठे थे.

“ज़रीना ये हैं मेरे चाचा जी” आदित्य ने चाचा की तरफ हाथ से इशारा करके कहा.

ज़रीना उनके पाँव छूने के लिए उनकी तरफ बढ़ी पर उन्होने उसे हाथ का इशारा करके पीछे ही रोक दिया, “इसकी कोई ज़रूरत नही है.”

“चाचा जी ऐसा क्यों कह रहे हैं?” आदित्य ने मायूसी भरे भाव में कहा.

“आदित्य तुम अपने चाचा जी के पास बैठो हमे ज़रीना से अकेले में कुछ बात करनी है.” चाची ने कहा.

“चाची जी जो बात करनी है मेरे सामने कीजिए. ये कही नही जाएगी. मैं यहा ज़रीना को आप लोगो से मिलवाने लाया हूँ पर ये देख कर दुख हो रहा है कि आप लोग अपमान कर रहे हैं मेरे प्यार का. मेरे सामने ही इतना कुछ हो रहा है तो अकेले में तो सितम ढा देंगे आप लोग. चलो ज़रीना वापिस चलते हैं. किसी से कोई बात करने की ज़रूरत नही है.” आदित्य ने कहा.

“भैया हमें बात तो करने दीजिए. हम कोई राक्षस नही हैं जो कि खा जाएँगे इन्हे. यू गुस्सा होने से बात नही बनेगी. किसी समस्या का हाल बात चीत से ही निकलता है.” निशा ने कहा.

“तो बात चीत मेरे सामने कीजिए ना. अकेले में क्या कोई सीक्रेट बात करनी है.” आदित्य ने कहा.

“भैया हम सब आपका भला चाहते हैं. प्लीज़ हमें बात करने दीजिए इनसे. और इनका और सिमरन का मिलना ज़रूरी है. ये दोनो मिल कर इस बात का हल निकाले तो ज़्यादा अछा रहेगा.” निशा ने कहा.

“हां आदित्य आओ तुम यहा बैठो मेरे पास. ये लोग इस से कुछ बात करना चाहते हैं तो तुम्हे क्या दिक्कत है. ऐसे बच्चो की तरह बिहेव नही किया करते.” रघु नाथ ने कहा.

“ठीक है कर लो बात चीत. मगर मेरे प्यार का अपमान मत करना. मेरी जींदगी है ये और अगर इश्कि आँखो में आँसू आए तो मेरा दम निकल जाएगा.” आदित्य ने कहा.

ज़रीना के चेहरे पर अजीब कसम्कश थी. आदित्य उसकी ओर देख कर उसकी हालत समझ गया और उसके चेहरे पर हाथ रख कर बोला, “सुन लो क्या कहते हैं ये लोग. हम हर हाल में एक हैं और एक रहेंगे.किसी बात की चिंता मत करना.”

ज़रीना, निशा और चाची के साथ उस कमरे में आ गयी जिस मे सिमरन थी. सिमरन बिस्तर पर टांगे सिकोड कर घुटनो पर सर रख कर बैठी थी जब वो लोग अंदर आए.

“ये है सिमरन, मेरी प्यारी भाभी. भाभी ये है ज़रीना.” निशा ने दोनो को इंट्रोड्यूस करवाया.

ज़रीना और सिमरन ने एक दूसरे को देखा मगर कुछ बोले नही. निशा ने एक कुर्सी दे दी ज़रीना को बैठने के लिए.

“थॅंक यू.” ज़रीना ने कुर्सी पर बैठते हुवे कहा. निशा भी ज़रीना के साथ ही एक दूसरी कुर्सी खींच कर बैठ गयी. चाची बिस्तर पर टाँग लटका कर बैठ गयी.

“क्या तुम मुस्लिम हो?” चाची ने पूछा.

“जी हां” ज़रीना ने जवाब दिया.

“एक तो खून ख़राबा मचा रखा है तुम लोगो ने देश में. कभी भी कही भी बॉम्ब लगा देते हो. अब हमारे रिश्तो में भी दरार डालने लग गये तुम लोग. चाहती क्या हो तुम.” चाची ने कटाक्ष किया.

ज़रीना को बहुत गुस्सा आया ये सुन कर. चेहरा गुस्से से लाल हो गया उसका. गुस्सा स्वाभाविक भी था क्योंकि उसके अस्तित्व पर चोट की गयी थी. मगर वो चुप रही. कुछ नही कहा. वादा जो किया था आदित्य से सब कुछ शांति से सुन ने का. प्यार में क्या कुछ नही सहना पड़ता.

ज़रीना को बहुत गुस्सा आया ये सुन कर. चेहरा गुस्से से लाल हो गया उसका. गुस्सा स्वाभाविक भी था क्योंकि उसके अस्तित्व पर चोट की गयी थी. मगर वो चुप रही. कुछ नही कहा. वादा जो किया था आदित्य से सब कुछ शांति से सुन ने का. प्यार में क्या कुछ नही सहना पड़ता.

“कब से जानती हो उनको” सिमरन ने पूछा.

“ कॉलेज में थे साथ और हम दोनो के घर भी साथ साथ थे.” ज़रीना ने कहा.

“तो क्या तुम्हे नही पता था कि वो शादी शुदा हैं.” सिमरन ने पूछा.

“ये पता होता तो मैं आज यहा नही बैठी होती और ना ही आपको ये सवाल करने की ज़रूरत पड़ती.” ज़रीना ने सिमरन की आँखो में देखते हुवे कहा.

“झूठ कह रही हो तुम. भैया की पड़ोसी हो कर तुम उनकी शादी के बारे में नही जानती ऐसा कैसे हो सकता है” निशा ने कहा.

“हमारे परिवारों में बनती नही थी. कभी एक दूसरे के बारे में जान-ने का मोका ही नही मिला.” ज़रीना ने कहा.

“फिर ये प्यार का नाटक कैसे हो गया तुम दोनो के बीच. जब ऐसा था तो” चाची ने कहा.

“प्यार की शायद कोई वजह नही होती और जहा वजह ढुंडी जाती है वाहा प्यार नही होता.” ज़रीना ने जवाब दिया.

“वजह तो बहुत बढ़िया है तुम्हारे पास प्यार की. आदित्य के पेरेंट्स तो मारे गये गोधरा हादसे में. अब उसका घर और कारोबार सब कुछ तुम्हारे हाथ में आ सकता है. इन बातों के लिए इस बात को आसानी से इग्नोर किया जा सकता है की आदित्य पहले से शादी शुदा है.” चाची ने कहा.

“क्या हम यहा इस समश्या का हल करने के लिए बैठे हैं या फिर ‘मूड स्लिंगिंग’ के लिए.” ज़रीना ने कहा.

“तुम्हारे हिसाब से क्या हाल है इस समस्या का” सिमरन ने पूछा.

“मुझे नही पता…बस इतना जानती हूँ कि आदित्य मेरी जींदगी है.”

“तुम्हे शरम नही आती मेरे सामने ऐसी बाते करते हुवे. मेरे पति को अपनी जींदगी बताती हो. क्या ऐसी बाते करके हाल धुन्दोगि तुम इस समश्या का.” सिमरन भड़क गयी.

“हाल तुम बता दो सिमरन… मुझे सच में कुछ नही पता.” ज़रीना ने कहा.

“हाल सिर्फ़ एक ही है. मेरे पति का पीछा छ्चोड़ दो. तुम्हे पहले नही पता था उनकी शादी के बारे में माँ लेती हूँ मैं. मगर अब तो पता है ना. सब कुछ जान ने के बाद भी तुम क्यों हमारे बीच आना चाहती हो.” सिमरन ने कहा.

“क्योंकि जीना नही छ्चोड़ सकती मैं. आदित्य मेरी जींदगी है.” ज़रीना ने जवाब दिया.

“बेशर्मी की हद है ये तो. क्या यही संसकार दिए हैं तुम्हारे पेरेंट्स ने तुम्हे. और कैसे पेरेंट्स हैं तुम्हारे जिन्होने तुम्हे भैया के साथ अकेले मुंबई भेज दिया. वो सब भी लगता है इस खेल में शामिल हैं.” निशा ने कहा.

ज़रीना ने निशा की तरफ देखा. कुछ कहना चाहती थी मगर इतना भावुक हो गयी थी अपने अम्मी अब्बा की बात पर कि आँखे टपक गयी उसकी, “अब क्या कहूँ तुम्हे.” ज़रीना बस इतना ही बोल पाई.

“सच कड़वा होता है ना ज़रीना…वरना तुम रोने की बजाए निशा की बात का जवाब देती.” सिमरन ने कहा.

“हां बताओ कैसे भेज दिया तुम्हारे घर वालो ने तुम्हे आदित्य के साथ अकेले. ये तो वही लोग कर सकते हैं जिनकी कोई इज़्ज़त नही होती. दफ़ा हो जाओ हमारे आदित्य की जींदगी से वरना वो हाल करेंगे तुम्हारा की याद रखोगी जींदगी भर. हमारे होते हुवे सिमरन का हक़ कोई नही छीन सकता.”

“बस!.. बंद करो तुम सब ये बकवास.” ज़रीना ज़ोर से चिल्लाई. ज़रीना की आवाज़ बाहर रघु नाथ और आदित्य को भी सुनाई दी.

“क्या जानते हो तुम लोग मेरे बारे में. पंचायत लगा कर बैठ गये हो सिर्फ़ मुझे नीचा दिखाने के लिए. मेरे पेरेंट्स और मेरी बहन दंगो में मारे गये थे. अकेली हो गयी थी मैं…बिखर चुकी थी. आदित्य ने संभाला मुझे और जीने की उम्मीद दी. कब प्यार हो गया मुझे आदित्य से पता ही नही चला. मगर छ्चोड़ो अब ये सब. रखो अपने आदित्य को अपने पास. मुझे नही चाहिए कुछ भी. आप सब खुश रहें.” ज़रीना उठ कर चल दी वाहा से. मगर आदित्य को दरवाजे पर खड़ा देख कर रुक गयी और रोने लगी.

“तो आप लोगो ने रुला ही दिया मेरी…..” आदित्य अपना सेंटेन्स पूरा नही कर पाया क्योंकि ज़रीना ने थप्पड़ जड़ दिया था उसके गाल पर. थप्पड़ इतनी ज़ोर का था कि सभी को उसकी गूँज सुनाई दी.

“क्यों नही बताया मुझे कि तुम शादी शुदा हो. बता देते एक बार तो कभी ये प्यार ना करती मैं.” ज़रीना ने बहुत भावुक अंदाज में कहा.

आदित्य नज़रे झुकाए खड़ा रहा. कुछ भी नही कह पाया ज़रीना को.

“संभलो अपनी बीवी को आदित्य. मेरे पीछे मत आना आज के बाद. अगर आए तुम तो मेरा मारा मूह देखोगे. नही चाहिए मुझे तुम्हारा प्यार.” ज़रीना निकल गयी कमरे से बाहर.

आदित्य इतना शॉक्ड था कि समझ नही पाया कि क्या करे. वही मूर्ति की तरह खड़ा रहा. आदित्या की तरह सिमरन, निशा और चाची भी शॉक्ड थे.

आदित्य चलने ही लगा था ज़रीना के पीछे की चाची ने उसका हाथ थाम लिया. “जो हुवा अछा हुवा आदित्य. यही हाल था इस दुविधा का. जाने दो उसे.”

“मैं मर जाउन्गा चाची जी. जी नही पाउन्गा उसके बिना. प्लीज़ छोड़िए मुझे.” आदित्य ने कहा.

“ऐसा क्या जादू कर दिया है उसने तुम पर की तुम ये सब बोल रहे हो.”

“चाची जी मैं बाद में बात करूँगा आकर. पहले उसे रोक लूँ. अगर वो कही खो गयी तो मैं कही का नही रहूँगा.” आदित्य ने कहा और बाहर की तरफ भागा.

क्रमशः...............................
 

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एक अनोखा बंधन--24

गतान्क से आगे.....................

आदित्य भाग कर घर से बाहर आया मगर उसे ज़रीना कही दीखाई नही दी. आदित्य सीधा होटेल पहुँचा. मगर ज़रीना वाहा भी नही थी.

“कहा चली गयी तुम ज़रीना…क्या फिर से हम जुदा हो गये. क्या पहली बार की लड़ाई से हमने कुछ नही सीखा. तुम ऐसे छ्चोड़ कर नही जा सकती मुझे.” आदित्य ने कहा.

होटेल से निकल कर अदित्य ने ज़रीना को हर तरफ देखा. कोलाबा का चप्पा चप्पा छान मारा मगर वो उसे कही नही मिली. थक हार कर वो वापिस चाचा के घर आ गया ये सोच कर कि क्या पता वो वापिस आ गयी हो गुस्सा थूक कर. ऐसा सोचना था तो अजीब मगर प्यार हर उम्मीद का दामन थाम लेता है.

जब अदित्य घर आया तो सिमरन वाहा से जाने की तैयारी कर रही थी. अदित्य को देख कर तुरंत आई उसके पास, “कहा है ज़रीना, वो ठीक तो है ना.”

“कुछ कह नही सकता. मुझे वो कही नही मिली. कोलाबा का चप्पा चप्पा छान मारा मगर उष्का कही पता नही चला. होटेल भी नही पहुँची वो.”

“हे भगवान सब मेरी वजह से हुवा है. मैने भी बहुत कुछ बोल दिया उशे. आप दोनो के प्यार की पूरी कहानी नही जानती मगर इतना ज़रूर समझ गयी हूँ कि आप दोनो का प्यार इतना अनमोल है कि उसमे किसी छेड़ छाड़ की गूंजायस नही है. मैं पापी बन गयी हूँ आप दोनो के प्यार में तूफान खड़ा करने के कारण. आप दोनो मुझे माफ़ कर दीजिएगा. मैं जा रही हूँ वापिस. अब इस बाल-विवाह नामक कृति से मैं भी आज़ाद होना चाहती हूँ. कोई शिकवा नही है आप दोनो से. बल्कि ख़ुसी है कि इतना अनमोल प्यार देखने को मिला मुझे. आपको ज़रीना मिले तो मेरी तरफ से माफी माँग लेना उस से.मैने बहुत दिल दुखाया है उसका.”

“कैसे जा रही हो देल्ही…टिकेट बुक करवा रखी है क्या?” अदित्य ने कहा.

“नही टिकेट तो मिल ही जाएगी एरपोर्ट से. देल्ही मुंबई की मॅग्ज़िमम फ्लाइट्स होती हैं.”

“हां वो तो है. आपको छ्चोड़ने चलता मगर ज़रीना के लिए परेशान हूँ. मुझे माफ़ कर दीजिएगा आप.मुझे यकीन है की बहुत अछा लाइफ पार्ट्नर मिलेगा आपको.”

“आप से अछा नही मिल सकता जानती हूँ. पर आपकी अनभिलासा नही करूँगी अब क्योंकि वैसा करना पाप होगा. आप ज़रीना के हैं और ज़रीना आप की है. दुख बहुत है आपको खोने का मगर आप दोनो का प्यार देख कर ये दुख ख़ुसी में बदलता जा रहा है.

मुझे यकीन है कि ज़रीना जल्द मिल जाएगी आपको.”

“हां वो गुस्से में बैठी होगी कही चुप कर. मैं उसे ढूंड ही लूँगा. वापिस होटेल जा कर देखता हूँ, हो सकता है वो आ गयी हो.”

आदित्य होटेल पहुँचा तो उसकी ख़ुसी का ठीकाना नही रहा. रिसेप्षन से उसे पता चल गया की ज़रीना कमरे में है.

आदित्य खुश था कि ज़रीना कमरे में है. तुरंत भाग कर आया वो कमरे पर. मगर ज़रीना का थप्पड़ और उसकी कही बातें बार-बार उसके कानो में गूँज रही थी. आदित्या ने रूम की बेल बजाई. ज़रीना उस वक्त बिस्तर पर पड़ी थी पेट के बल. आँखो से आँसुओं की नदिया बह रही थी. बेल को अनशुना कर दिया ज़रीना ने और ज्यों की त्यों पड़ी रही बिस्तर पर. आदित्य बार-बार बेल बजाता रहा मगर ज़रीना ने दरवाजा नही खोला.

“ज़रीना दरवाजा खोलो…मैं बहुत परेशान हूँ. मुझे और परेशान मत करो. प्लीज़ दरवाजा खोलो…मेरा दिल बैठा जा रहा है…तुम ठीक तो हो ना…मुझे चिंता हो रही है तुम्हारी.” आदित्य ने कहा.

ज़रीना धीरे से उठी बिस्तर से और लड़खड़ाते कदमो से दरवाजे की तरफ बढ़ी और दरवाजा खोला.

“क्यों आए हो यहा…अपनी बीवी के पास नही रह सकते क्या…कहा था ना मैने की मेरे पीछे आए तो मेरा मरा मूह देखोगे.?”

“ज़रीना प्लीज़…ऐसी बाते मत करो. तुम्हारे बिना नही जी सकता ये तुम आछे से जानती हो.”

“पर अब तुम्हे जीना होगा. तुम कहते हो कि तुम वो शादी नही निभा सकते और मैं कहती हूँ कि मैं ये प्यार नही निभा सकती. प्लीज़ चले जाओ यहा से. नही चाहिए तुम्हारा प्यार मुझे.”

“ये क्या पागल पन है ज़रीना…और…और ये हाथ में खून कैसा है.” आदित्या की नज़र ज़रीना के दायें हाथ से टपकते खून पर गयी.

“सज़ा दी है खुद को तुम्हे थप्पड़ मारने की.” ज़रीना ने सुबक्ते हुवे कहा.

“तुम कौन होती हो खुद को यू सज़ा देने वाली. दीखाओ मुझे…अफ कितना खून बह रहा है.” आदित्या ने ज़रीना का हाथ पकड़ने की कोशिस की.

“खबरदार जो मुझे छुवा तो…कोई हक़ नही है तुम्हारा मेरे उपर अब.”

“अगर कोई हक़ नही है तो फिर क्यों सज़ा दी तुमने खुद को. पागल मत बनो दीखाओ मुझे…कितना खून बह रहा है.”

“आइ कॅन टेक केर ऑफ माइसेल्फ मिस्टर अदित्य. तुम अपनी बीवी को सम्भालो जाकर और अपने परिवार में खुश रहो.”

“ये क्या बकवास कर रही हो. अब मैं थप्पड़ मारूँगा तुम्हे अगर यू ही बकवास करती रही तो.”

“तो मारो ना रोका किसने है. मुझे जान से मार डालो. तुमने ही बचाया था मुझे एक दिन मरने से, तुम्हे हक़ है मुझे मारने का.”

“क्या सिर्फ़ इश्लीए हक़ है क्योंकि तुम्हे मैने बचाया था. क्या प्यार का हक़ नही है.”

“वो प्यार अब बिखर चुका है अदित्य. वो हक़ नही दूँगी तुम्हे मैं.”

“ग्रेट…तुम सच में पागल हो गयी हो. अरे अब सब कुछ ठीक हो चुका है. सिमरन समझ गयी है हमारे प्यार को. वो हमारे बीच से हट गयी है.”

“मुझे ये मंजूर नही है अदित्य.”

“क्यों मंजूर नही है तुम्हे क्या जान सकता हूँ.”

“तुमने मुझसे इतनी बड़ी बात छुपाई और अब पूछ रहे हो कि क्यों मंजूर नही है. क्या ग़लती है सिमरन की?.... और क्या ग़लती है मेरी? … सब तुम्हारी ग़लती है. मुझसे इतनी बड़ी बात ना छिपाते तो ये दिन नही देखना पड़ता. मेरे चरित्र को छलनी छलनी कर दिया गया आज. कभी मुझे मेरे मज़हब के कारण जॅलील किया गया तो कभी मुझे लालची लड़की की संगया दी गयी जो की तुम्हारी दौलत के पीछे पड़ी है. चलो ये सब भी सह लिया. मगर मेरे अम्मी, अब्बा का क्या कसूर था. बिना सोचे समझे उन्हे भी भला बुरा कहा गया. बहुत गहरी चोट लगी है दिल पे मेरे आज…जिनके घाव कभी नही भर पाएँगे. काश उन दंगो में अपने अम्मी, अब्बा और फ़ातिमा के साथ मैं भी मर जाती तो ये दिन तो नही देखना पड़ता.”

“ज़रीना!” आदित्या चिल्लाया और थप्पड़ जड़ दिया ज़रीना के गाल पर.

“तुम नही जानते अदित्य क्या बीती है मेरे दिल पर आज. तुम मेरी जगह होते तो समझते. सिमरन का हक़ पहले है तुम पर. वो पहले आई थी तुम्हारी जींदगी में.”“क्या नही समझा तुम्हारे बारे में जान जो ये सब बोल रही हो. तुम्हारे दिल में उठी हर हलचल मेरे दिलो दिमाग़ में तूफान मचा देती है. तुम ना भी कहो तब भी समझ सकता हूँ तुम्हारे दर्द को…क्योंकि हम जुड़ चुके हैं एक दूसरे से. जो चोट तुम्हारे दिल पर लगी है आज वही चोट मेरे दिल पर भी लगी है. खुद को मुझसे जुदा करके मत देखो. हम दो जिश्म एक जान है ज़रीना. तुम मुझसे दूर गयी तो मर जाउन्गा. मान लो की सिमरन को अपना भी लूँ तो भी कभी उसे खुश नही रख पाउन्गा. घुट-घुट कर जीएगी वो मेरे साथ. क्योंकि मेरी आत्मा तुम हो जान. मेरे दिल के मंदिर में तुम्हे भगवान बना कर बैठा चुका हूँ. उष मंदिर में किसी और की तस्वीर नही लगा पाउन्गा. सिमरन और मेरा रिश्ता इस समाज ने बनाया था पर तुम्हारा और मेरा रिश्ता भगवान ने बनाया है. भगवान के फ़ैसले का ही आदर करना होगा हमें. और सिमरन अब समझ गयी है. उस से मेरी बात हो गयी है. अब कोई रुकावट नही है हमारी शादी में.”

“उसकी आँखो में बेन्तेहा प्यार देखा है मैने तुम्हारे लिए. अभी हम किसी बंधन में नही बँधे हैं. तुम आराम से उसके साथ अपनी जींदगी की शुरूवात कर सकते हो.” ज़रीना ने कहा.

“मेरी आँखो में देख कर कहना ज़रा ये बात.” आदित्य ने कहा.

“अदित्य तुम कुछ भी कहो…पर मैं ये प्यार नही निभा सकती. किसी के पति को छीन-ने का इल्ज़ाम नही लेना चाहती अपने सर पर. ना ही ये इल्ज़ाम लेना चाहतीं हू की किशी लालच के कारण पड़ी हूँ मैं पीछे तुम्हारे.”

“बंद करो ये बकवास तुम.”

“ये बकवास नही है. अपने दिल पर पत्थर रख कर बोल रही हूँ.”

“मुझे खुद से दूर करने की बजाए एक खंजर गाढ दो मेरे सीने में तो ज़्यादा अछा होगा. अरे मैं कैसे निभा लूँ शादी सिमरन से जबकि मेरे मन मंदिर में तुम हो. तुम मेरी जींदगी हो जान. नही जी सकता हूँ तुम्हारे बिना. मर जाउन्गा तुमसे अलग हो कर तो पता चलेगा तुम्हे की क्या हो तुम मेरे लिए.”

ज़रीना कदमो में बैठ गयी अदित्य के और रोने लगी, “मैं भी कहा जी सकती हूँ तुम्हारे बिना. सोच कर भी डर लगता है.पता नही ये उलझन क्यों आ गयी हमारे जीवन. बड़ी मुश्किल से तो एक साल बाद मिले थे. अभी शांति से प्यार के मीठे दो बोल भी नही बोल पाए थे एक दूसरे को की ये सब हो गया. ऐसा क्यों हो रहा है हमारे साथ अदित्य.”

“उठो पहले तुम. मेरे कदमो में अछी नही लगती तुम.” आदित्य ने ज़रीना को कंधे से उठाते हुवे कहा.

“क्या हम सिमरन के गुनहगार नही बन जाएँगे. उस से मिली नही थी तो कुछ फरक नही पड़ता था. उस से मिली तो उसकी आँखो में तुम्हारे लिए प्यार देखा. खुद को एक लुटेरा महसूस कर रही हूँ. जिसने अचानक तुम्हारी जींदगी में आकर तुमको सिमरन से छीन लिया. मैं मर जाना चाहती थी आज. पर पता नही क्यों रुक गयी. क्योंकि मेरी जींदगी पर तुम्हारा हक़ है इश्लीए शायद खुद को मार नही पाई.”

“जान अगर मैं भी सिमरन को चाहता तो तुम्हारा सोचना सही होता. मैने कभी इतने सालो में सिमरन को सोचा तक नही…चाहने की तो दूर की बात है. अब वो मुझसे प्यार कर बैठी तो इसमे मेरा तो कोई कसूर नही है. मैं तो उस से मिला तक नही. और एक बात बता दूं. मम्मी, पापा की मौत के बाद मैं भी बिखर चुका था. तुम मिली मुझे तो जीने का हॉंसला सा हुवा. हम दोनो की हालत एक जैसी थी जब हम मिले थे. हम मिले और दो कदम साथ चल कर हमें एक दूसरे से प्यार हो गया. जान हम किसी कीमत पर जुदा नही हो सकते. ये तुम भी जानती हो और मैं भी जानता हूँ.”

ज़रीना अदित्य के सामने थी और अदित्य की आँखो में देख रही थी. दोनो खो गये थे एक दूसरे में. कब आँसू टपक गये दोनो के एक साथ उन्हे पता ही नही चला.

“बोलो ज़रीना क्या जी पाओगि मेरे बिना?”

“ऐसा सोच भी नही सकती अदित्य….मत पूछो ऐसी बात.” ज़रीना सुबक्ते हुवे बोली.

“फिर क्यों भाग आई थी मुझे छ्चोड़ कर वाहा से तुम.”

“मरने के लिए निकली थी वाहा से…जीने के लिए नही.”

आदित्य ने आगे बढ़ कर बाहों में जाकड़ लिया ज़रीना को, “ओह जान कभी छ्चोड़ कर मत जाना मुझे चाहे कुछ हो जाए. नही जी सकता हूँ तुम्हारे बिना ये बात समझ लो आछे से आज.”

“मैं भी कहा जी सकती हूँ तुम्हारे बिना. क्या हाल हुवा मेरा तुम्हे थप्पड़ मार कर सिर्फ़ मैं ही जानती हूँ. मुझे माफ़ कर दो प्लीज़.”

“माफी ऐसे नही मिलेगी”

“क्या करना होगा मुझे?”

आदित्य ने ज़रीना के चेहरे को अपने दोनो हाथो में थाम लिया. ज़रीना सिहर उठी. वो समझ गयी थी कि अदित्य क्या करना चाहता है. उसने अपनी आँखे बंद कर ली. उसके होन्ट खुद-ब-खुद थिरकने लगे.

आदित्य ज़रीना के थिरकते होंटो को देख कर मुश्कुरा उठा, “क्या चूम लूँ इन थिरकते लबों को.”

“मुझसे मत पूछो…कुछ भी नही कह पाउन्गि.” ज़रीना आँखे बंद किए हुवे ही बोली.

क्रमशः..............................
 

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एक अनोखा बंधन--25

गतान्क से आगे.....................

आदित्य ने बिना वक्त गवायें अपने होन्ट ज़रीना के थिरकते लबों पर टीका दिए. ज़रीना सर से लेकर पाँव तक सिहर उठी… ऐसा लग रहा था जैसे की आदित्य ने शितार के तार छेड़ दिए हों.

दोनो के होन्ट दहक्ते अंगारों की तरह एक दूसरे से टकरा रहे थे. दोनो के प्यार का पहला चुंबन उनके प्यार की ही तरह अद्वित्य और सुंदर था. वक्त जैसे थम सा गया था. बहुत देर तक दीवानो की तरफ चूमते रहे दोनो.

दोनो को ऐसा चुंबन करने का पूरा अधिकार था. प्यार जो करते थे बेन्तेहा एक दूसरे को. होंटो की भासा भी बहुत प्यारी होती है. इसे भी होन्ट ही बोलते हैं और होन्ट ही सुनते हैं. चुंबन के उन पलों में दोनो के होन्ट बहुत कुछ कह रहे थे एक दूसरे को. लबों की हर हरकत कुछ कहती थी जिसे दोनो अपनी आत्मा की गहराई तक महसूस कर रहे थे.

वैसे तो कुछ भी और कहना मुश्किल हो रहा है दोनो के इस पहले चुंबन के बारे में. मगर इतना ज़रूर कह सकता हूँ की प्यार ही प्यार था दोनो के बीच चुंबन के उन पलों में जो की दोनो के प्यार को एक और गहराई दे रहा था. ये बात किस करते वक्त दोनो ही बखूबी समझ रहे थे.

चुंबन में लीन ज़रीना और आदित्य दीन दुनिया सब कुछ भूल गये थे. वक्त का अहसास भी खो गया था. वो चुंबन किसी मेडिटेशन से कम नही था. जिस तरह मेडिटेशन में लीन हो कर हम अपने अंदर बहुत गहराई में उतर जाते हैं ठीक उसी तरह ज़रीना और आदित्य अपने अंदर भी उतर गये थे और एक दूसरे की आत्मा को भी छू रहे थे. ये एक अद्विद्य घटना थी. वैसे ये प्यार करने वालो के साथ रोज होती है.

जब दोनो की साँसे उखाड़ने लगी तो एक दूसरे से अलग हुवे. दोनो की आँखे नम थी और साँसे बहुत तेज चल रही थी. एक दूसरे की बाहों में बने हुवे थे दोनो और बड़े प्यार से एक दूसरे को देख रहे थे. साँसे एक दूसरे से टकरा रही थी.

“ज़रीना चाहे कुछ हो जाए…मुझसे जुदा होने की बात सोचना भी मत. तुम जानती हो ना…मर जाउन्गा तुम्हारे बिना मैं.”

“ओह आदित्य प्लीज़ ऐसा मत कहो…..”

दोनो ने एक दूसरे की आँखो में देखा. आँखो ही आँखो में जाने क्या बात हुई. दोनो की आँखे नम हो गयी देखते-देखते और अचानक दोनो के होन्ट फिर से खुद-ब-खुद एक दूसरे से जुड़ गये.

किसी ने सच ही कहा है, भावनाओ में बह कर दो प्रेमियों में जो प्यार होता है वो होश में रहकर कभी नही हो सकता. प्यार की गहराई में उतरने के लिए दीवानेपन की बहुत ज़रूरत होती है.

अचानक आदित्य को कुछ ध्यान आया और उसने ज़रीना के होंटो से अपने होन्ट हटा लिए. “हाथ पर क्या किया तुमने?”

“चाकू से चीर दिया था.”

“पागल हो गयी थी क्या तुम… रूको मैं अभी आता हूँ.”

“आदित्य कही मत जाओ प्लीज़…हो जाएगा ठीक अपने आप.”

आदित्य ने ज़रीना की बात को अनसुना कर दिया और कमरे से बाहर आ गया. कुछ देर बाद वो वापिस आ गया. वो केमिस्ट से मरहम-पट्टी ले आया था.

“लाओ हाथ आगे करो.”

“नही डेटॉल मत लगाना बहुत जलन होती है इस से….प्लीज़” ज़रीना छोटे बच्चे की तरह गिड़गिडाई.

“हाथ चीरते वक्त सोचना चाहिए था ये…ये लगाना ज़रूरी है. लाओ हाथ आगे करो.”

“नही प्लीज़…” ज़रीना गिड़गिडाई.

आदित्य ने हाथ पकड़ा ज़बरदस्ती और घाव को डेटॉल से सॉफ किया.

“आअहह….धीरे से बहुत जलन हो रही है.”

“दुबारा ऐसा मत करना कभी…समझी”

“समझ गयी.” ज़रीना ने मासूमियत से कहा.

डेटॉल से घाव साफ करने के बाद आदित्य ने बेटडिन लोशन लगा कर पट्टी बाँध दी हाथ पर. “सब ठीक हो जाएगा.”

“आदित्य मैं सिमरन से मिलना चाहती हूँ.”

“छ्चोड़ो अब ज़रीना…क्या अपनी और ज़्यादा बेज़्जती करवाना चाहती हो.”

“सिमरन ने मुझे कुछ नही कहा ऐसा आदित्य. मुझे उस से मिलकर सॉरी तो बोलना चाहिए ना. प्लीज़ कुछ करो…मैं उस से मिलना चाहती हूँ.”

“वो तो देल्ही के लिए निकल रही थी. शायद एरपोर्ट पहुँच भी गयी हो.”

“तो हम एरपोर्ट ही चलते हैं. वही मिल लेंगे.”

“ठीक है फिर चलो जल्दी…वैसे तुम्हारा सॉरी बोलना नही बनता है क्योंकि सारी ग़लती मेरी है. फिर भी तुम कहती हो तो चलो.”

दोनो तुरंत होटेल से बाहर आए और एरपोर्ट के लिए टॅक्सी लेकर चल दिए. जैसे ही वो दोनो एरपोर्ट पहुँचे सिमरन अपनी टॅक्सी से उतर रही थी. आदित्य की नज़र उस पर पड़ गयी.

“वो रही सिमरन. अछा हुवा की यही बाहर ही मिल गयी..आओ जल्दी” आदित्य ने ज़रीना से कहा.

वो दोनो तुरंत टॅक्सी से निकल कर सिमरन की तरफ बढ़े.

“सिमरन!” आदित्य ने आवाज़ दी.

सिमरन चोंक कर रुक गयी और पीछे मूड कर देखा. ज़रीना और आदित्य उसकी तरफ बढ़े आ रहे थे.

“सिमरन…क्या थोड़ी देर रुक सकती हो, ज़रीना तुमसे कुछ बात करना चाहती है.” आदित्य ने कहा

सिमरन ने ज़रीना की तरफ देखा. दोनो ने आँखो ही आँखो में कुछ कहा. ज़रीना की आँखो में रिक्वेस्ट थी और सिमरन की आँखों में उस रिक्वेस्ट के लिए मंज़ूरी.

“हां शुवर…” सिमरन ने कहा.

ज़रीना ने आदित्य को वाहा से दूर जाने का इशारा किया. आदित्य बात समझ कर वाहा से हट गया.

ज़रीना सिमरन के करीब आई और बोली, “मुझे माफ़ कर दो सिमरन. तुम्हारा हक़ अंजाने में छीन लिया मैने. अगर कोई सज़ा देना चाहो तो दे दो मुझे. ख़ुसी-ख़ुसी सह लूँगी. अपने प्यार की कसम खा कर कहती हूँ कि मरने के लिए निकली थी वाहा से. पर पता नही क्यों मर नही पाई. ये जींदगी आदित्य ने दी है मुझे. उसे ही हक़ है इसे लेने का. हां पर एक हक़ तुम्हे भी है. मुझे जो सज़ा देना चाहे दे दो. पर प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो.

मुझे सच में नही पता था कि आदित्य पहले से शादी शुदा है वरना मैं हरगिज़ दिल नही लगाती आदित्य से. और सिमरन मैं किसी लालच के कारण आदित्य के साथ नही हूँ. बस एक ही लालच है, वो है अपनी जींदगी का. जी नही सकती आदित्य के बिना. इसलिए आज मरने जा रही थी. अब तुम बताओ मेरी क्या सज़ा है”

सिमरन ने ज़रीना के चेहरे पर हाथ रखा और बोली, “तुम्हे आज इतना कुछ सुन-ना पड़ा वाहा उस कमरे में. वो सज़ा क्या कम थी जो और माँग रही हो. तुम जब आदित्य को थप्पड़ मार कर वाहा से गयी तो मुझे रीयलाइज़ हुवा की हम लोग क्या पाप कर रहे थे. कितना गिर गये थे हम सब. मुझे खुद ना जाने क्या हो गया था. शायद चाची जी और निशा की बातों का असर था मुझ पर. माफी तो मुझे माँगनी चाहिए तुमसे. मेरे कारण तुम्हे इतना अपमान सहना पड़ा. क्या कुछ नही सुना तुमने आज. थ्री विमन वर डेस्ट्रायिंग दा कॅरक्टर ऑफ वन विमन, नतिंग कॅन बी मोर पैंफुल्ल दॅन दिस.”

“सिमरन तुम्हे मेरे दुख का अहसास हुवा और मुझे क्या चाहिए. मगर इस से मेरा गुनाह कम नही हो जाता. अंजाने में ही सही पर गुनाह तो हुवा है मुझसे. पता नही मैं कैसे माफ़ करूँगी खुद को.” ज़रीना ने कहा.

“प्यार करती हो ना आदित्य से…तो खुद को गुनहगार मत मानो तुम. प्यार खुदा की देन है और ये किसी भी हालत में गुनाह नही हो सकता. तुम अपने दिल से ये बात निकाल दो कि मेरा कुछ छीन लिया तुमने. हां पहले-पहले मुझे भी यही लग रहा था. मगर आज जब तुम दोनो का प्यार देखा तो समझ में आया कि असल में प्यार क्या है. मैं तो आदित्य से एक तरफ़ा प्यार करती हूँ. आदित्य की आँखो में मैने अपने लिए कुछ नही देखा. बल्कि मेरे लिए उतनी क्न्सर्न भी नही देखी जितनी तुम्हारी आँखो में है. ऐसे में मैं उनके गले में पड़ जाउ 7 साल पहले हुई शादी का वास्ता दे कर तो बिल्कुल ग़लत होगा. ज़बरदस्ती रिश्ते निभाए जा सकते हैं ज़रीना कोई बड़ी बात नही है. ऐसा बहुत लोग कर रहे हैं दुनिया में. मगर ज़बरदस्ती बनाया हुवा रिश्ता कभी प्यार का वो फूल नही खिला पाएगा जिसकी कि एक पति पत्नी के रिश्ते में संभावना होती है. आदित्य की नज़रो में तुम्हारे लिए बेन्तेहा प्यार देखा है मैने. तुम दोनो का साथ लिखा है भगवान ने. जाओ दोनो खुश रहो. भगवान मेरी सारी ख़ुसीया तुम दोनो को दे दे.” आँखे टपक गयी सिमरन की ये आखरी कुछ लाइन्स बोलते हुवे.

ज़रीना ने फ़ौरन सिमरन के होंटो पर हाथ रख दिया, “बस…तुम्हारी और कोई ख़ुसी नही चाहिए हमें. जितना लिया है…वही बहुत ज़्यादा हो गया है. दुवा तो मैं करती हूँ कि मेरे हिस्से की सारी ख़ुसीया अल्लाह तुम्हे दे दे.”

“बस-बस अब और मत रुलाओ मुझे. जाओ अपने आदित्य के पास. और तुम दोनो मुझे भूल मत जाना. मिलते रहना मुझसे. तुम दोनो से कोई गिला शिकवा नही है अब. बल्कि प्यार है तुम दोनो से. जाओ अब मैं बहुत भावुक हो रही हूँ.”

ज़रीना ने सिमरन को गले लगा लिया और बोली, “काश दंगो में मर जाती मैं तो तुम्हे कोई भी तकलीफ़ नही होती.”

“बस थप्पड़ मारूँगी तुम्हे मैं अब. दुबारा मत कहना ऐसा.”

आदित्य ये सब देख कर रोक नही पाया खुद को और आ गया दोनो के पास.

आदित्य को देख कर सिमरन बोली, “आप ज़रीना का ख्याल रखना. पता नही कैसा नाता जुड़ गया है इसके साथ. इसे हमेशा खुश रखना. ये खुश रहेगी तो मैं भी खुश रहूंगी. कोई तकलीफ़ नही होनी चाहिए मेरी ज़रीना को.”

ये सुन कर आदित्य की आँखे नम हो गयी और वो भावुक आवाज़ में बोला, “थॅंक यू सिमरन. थॅंक यू वेरी मच…कुछ नही सूझ रहा कि क्या कहूँ तुम्हे.”

“कुछ कहने की ज़रूरत नही है. ये बताओ की शादी कर चुके हो या करने वाले हो?”

ज़रीना, सिमरन से अलग हुई और बोली, “ये तुम तैय करोगी अब कि हम कब शादी करें.”

“मेरी तरफ से तो आज कर लो…”

“सिमरन तुम्हारे पेरेंट्स तो कोई समस्या नही करेंगे ना. कोई क़ानूनी उलझन तो पैदा नही करेंगे ना.”

“वो सब मुझ पर छ्चोड़ दो. और क़ानूनी अड़चन कोई नही है तुम्हारे सामने. बाल-विवाह को कोर्ट नही मानता. सिर्फ़ एक अप्लिकेशन से अन्नुलमेंट हो जाएगा. तुम दोनो बिना किसी चिंता के शादी करो. कोई दिक्कत नही आने दूँगी मैं. बाल-विवाह का कोई लीगल स्टेटस नही है.”

“बहुत जानकारी है लॉ की तुम्हे?” आदित्य ने कहा.

“लॉ स्टूडेंट हूँ ना. इश्लीए” सिमरन ने हंसते हुवे कहा.

“चाचा, चाची छोड़ने नही आए?”

“नही वो लोग आ रहे थे पर मैने ही मना कर दिया. अच्छा मैं लेट हो रही हूँ. कही फ्लाइट मिस ना हो जाए.” सिमरन ने कहा

“हां-हां तुम निकलो…हम मिलते रहेंगे.” ज़रीना ने कहा.

सिमरन ने ज़रीना के माथे को चूमा और बोली, “गॉड ब्लेस्स यू. हमेशा खुश रहना. किसी बात की चिंता मत करना.”

सिमरन ने आदित्य की तरफ देखा और बोली, “आप भी अपना और ज़रीना दोनो का ख़याल रखना.”

“बिल्कुल आपका हुकुम सर आँखो पर.” आदित्य ने हंसते हुवे कहा.

सिमरन चल पड़ी दोनो को वही छ्चोड़ कर. आदित्य और ज़रीना दोनो उसे जाते हुवे देखते रहे.

क्रमशः...............................
 

DAIVIK-RAJ

ANKIT-RAJ
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एक अनोखा बंधन--26

गतान्क से आगे.....................

सिमरन और ज़रीना की ये मुलाक़ात और उनकी वो बातें किसी चमत्कार से कम नही थी. काई बार चमत्कार हमें वाहा देखने को मिलता है जहा पर उसकी उम्मीद तक नही होती. सिमरन चली गयी थी एरपोर्ट के अंदर. मगर जाते जाते ज़रीना और आदित्य के लिए एक शुकून भरी जींदगी छ्चोड़ गयी थी. वो दोनो अब बिना गिल्ट के साथ रह सकते थे. सिमरन ने ना बल्कि दोनो को माफ़ किया था बल्कि खुले दिल से दोनो के प्यार को स्वीकार भी किया था. ये किसी चमत्कार से कम नही था.

जींदगी में जब तूफान आता है तो इंसान का सुख चैन सब कुछ छीन कर ले जाता है. मगर तूफान हमेशा नही रहता. तूफान के बाद शांति भी आती है.

सिमरन के जाने के बाद ज़रीना और आदित्य कुछ देर तक एक दूसरे की तरफ देखते रहे. दोनो की आँखो में शुकून था और चेहरे पर शांति के भाव थे. तूफान के थमने के बाद अक्सर इंसान को एक अद्भुत शांति की अनुभूति होती है. कुछ ऐसा ही ज़रीना और आदित्य के साथ हो रहा था.

“चले होटेल वापिस…मेरे होन्ट बेचैन हो रहे हैं.”

“क्या मतलब?” ज़रीना ने हैरानी में पूछा.

“हमारी पहली किस कितनी प्यारी थी ना. खो गये थे हम एक दूसरे में.” आदित्य ने मुश्कूराते हुवे कहा.

“प्लीज़ ऐसी बाते मत करो वरना तुम्हारे साथ होटेल जाना मुश्किल हो जाएगा.” ज़रीना शर्मा गयी किस की बात पर. उसके चेहरे पर उभर आई शरम की लाली देखते ही बनती थी.

“कितनी देर तक किस की थी हमने. तुम्हारे होन्ट तो अंगरों की तरह तप रहे थे. तुम्हारे होंटो की तपिस से मेरे होन्ट झुलस गये हैं क्या तुम्हे खबर भी है.”

“प्लीज़ आदित्य और कुछ मत कहो मैं सुन नही पाउन्गि.” ज़रीना ने अपने सीने पर हाथ रख कर कहा.

“ये नया रूप देखा तुम्हारा जो की बहुत सुंदर है. मुझे नही पता था कि मुझे गमले और हॉकी से मारने वाली शर्मा भी सकती है.” आदित्य ने ज़रीना को कोहनी मार कर कहा.

“आदित्य अब बस भी करो.”

“ठीक है…मैं टॅक्सी बुलाता हूँ. डिन्नर होटेल में ही करेंगे.”

आदित्य ने एक टॅक्सी रोकी और दोनो उसमें बैठ कर होटेल की तरफ चल दिए. रास्ते भर ज़रीना गुमशुम रही. कभी-कभी आदित्य की तरफ देख कर हल्का सा मुश्कुरा देती थी. मगर ज़्यादातर वो चुपचाप और खोई-खोई सी रही. आदित्य जान गया था की कोई बात ज़रीना को परेशान कर रही है. पर उसने टॅक्सी में कुछ पूछना सही नही समझा. उसने तैय किया की वो होटेल जा कर ही ज़रीना से बात करेगा.

प्यार में एक दूसरे के चेहरे पर हल्की सी शिकन भी बर्दास्त नही कर पाते प्रेमी. यही वो चीज़ है जो रिश्ते में और ज़्यादा गहराई और सुंदरता लाती है. एक दूसरे की चिंता और फिकर ही वो इंसानी जज़्बा है जो प्रेमी जोड़ो में कूट-कूट कर भरा होता है.

होटेल के रूम में घुसते ही आदित्य ने ज़रीना का हाथ पकड़ लिया और बोला, “तुम कुछ परेशान सी हो जान. बात क्या है?. क्या मुझसे कोई भूल हो गयी है.”

“नही आदित्य तुमसे कोई भूल नही हुई है. बस वक्त ही कुछ अज़ीब है.” ज़रीना ने कहा.

“मैं कुछ समझा नही जान…खुल कर बताओ ना क्या बात है.”

“आदित्य…मैं शादी किए बिना वापिस अपने घर नही जाना चाहती. लोगो की नज़रो का सामना और नही कर सकती मैं. ऐसा लगता है जैसे की मैं कोई गुनहगार हूँ.”

“अरे अब तो सब सॉल्व हो गया. शादी में ज़्यादा देरी नही होगी. मैं गुजरात पहुँचते ही किसी वकील से मिल कर कोर्ट में अप्लिकेशन लग्वाउन्गा.”

“कोर्ट के फ़ैसले कितनी जल्दी आते हैं ये तुम भी जानते हो और मैं भी. जब तक ये क़ानूनी अड़चन दूर नही होगी हमारी शादी नही हो सकती. तब तक अपने ही घर में रहना मेरे लिए मुश्किल रहेगा. तुम नही जानते मैं कैसे लोगो की नज़रो का सामना करती हूँ. एक तो मेरा मुस्लिम होना ही गुनाह है उपर से लड़की हूँ…लोगो की नज़रो में नफ़रत और गली होती है मेरे लिए. तुम ही बताओ कैसे वापिस जाउन्गि मैं वाहा.” ज़रीना सूबक पड़ी बोलते-बोलते.

“समझ सकता हूँ जान. तुम्हारे किसी भी दर्द से अंजान नही हूँ मैं. जो बात तुम्हे दुख पहुँचाती है वो मेरे तन बदन में भी हलचल मचा देती है. तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा.”

“पर सब ठीक होने तक मैं कैसे रह पाउन्गि तुम्हारे साथ.”

“तो क्या मुझे छ्चोड़ कर जाना चाहती हो कही.”

“नही ऐसा तो मैं सपने में भी नही सोच सकती. रहूंगी तुम्हारे साथ ही चाहे कुछ हो जाए.”

“इस दुनिया की चिंता करेंगे तो जीना मुश्किल हो जाएगा. छ्चोड़ो इन बातों को. मैं देल्ही जा कर आउट ऑफ कोर्ट सेटल्मेंट की बात करूँगा सिमरन के घर वालो से. शायद बात बन जाए. सिमरन तो हमारे साथ है ही.”

“हां कुछ ऐसा करो की हम जल्द से जल्द शादी के बंधन में बँध जायें.”

“मैं तुम्हे तुम्हारे अहमद चाचा के यहा छ्चोड़ कर देल्ही चला जाउन्गा.”

“अकेले तो तुम्हे कही नही जाने दूँगी मैं. चाहे कुछ हो जाए.”

“अच्छा बाबा तुम भी साथ चलना.”

“वो तो चलूंगी ही.”

“अरे यार हमने ये सब पहले क्यों नही सोचा. हम सिमरन के साथ ही देल्ही जा सकते थे. चलो कोई बात नही कल चल देंगे हम देल्ही. सही कहा तुमने ये मामला कोर्ट में अटक गया तो हमारी शादी अटक जाएगी...कोर्ट के बिना ही ये मसला हल करना होगा. अब जबकि सिमरन हमारे साथ है तो कोई ज़्यादा दिक्कत नही होनी चाहिए.”

ज़रीना हल्का सा मुश्कुराइ मगर अगले ही पल उसके चेहरे पर फिर से शिकन उभर आई.

“अब क्या हुवा जान. कोई और बात भी है क्या जो तुम्हे परेशान कर रही है.”

“नही और कुछ नही है चलो खाना खाते हैं.”

“नही कुछ तो है. तुम्हारे चेहरे पर ये शिकन इशारा कर रहा है कि कुछ और बात भी है जो की तुम्हे अंदर ही अंदर खाए जा रही है.”

“नही तुम्हे दुख होगा रहने दो.”

“बोलो ना क्या बात है जान. इस प्यारे रिश्ते में अब कोई भी बात पर्दे के पीछे नही रहनी चाहिए. बोलो ना प्लीज़ क्या बात है?”

“हमारे बीच शादी से पहले ही सेक्स शुरू हो गया. मेरे अम्मी-अब्बा ज़िंदा होते आज अगर और उन्हे इस बारे में पता चलता तो वो मुझे जान से मार देते.” ज़रीना नज़रे झुका कर बोली.

“क्या कहा तुमने सेक्स शुरू हो गया हाहहहाहा….. इस से ज़्यादा लोटपोट कर देने वाला चुटकुला नही सुना मैने कभी. अरे पागल हमने भावनाओं में बह कर बस किस ही तो की है एक दूसरे को. वो किस सेक्स के दायरे में नही आती.”

“तुम्हे क्या मैं बेवकूफ़ लगती हूँ या फिर तुम्हे ये लगता है कि मेरा दिमाग़ खिसका हुवा है. मेरे मज़हब ने मुझे शादी से पहले किसी बात की इज़ाज़त नही दी. किस तो बहुत बड़ी बात होती है.”

“हां मानता हूँ जान. शादी से पहले सेक्स में उतर जाना ग़लत है. पर हमारी किस पवित्र थी. उस पर कोई इल्ज़ाम बर्दास्त नही करूँगा मैं.”

“सॉरी आदित्य मेरी परवरिश ऐसे माहॉल में हुई है जहा शादी से पहले सेक्स से जुड़ी हर चीज़ को ग्लानि से देखा जाता है.” ज़रीना ने कहा.

“तो क्या तुम हमारी किस को अब ग्लानि से देख रही हो?”

“नही मैं ये पाप भी नही कर सकती क्योंकि इस प्यार में वो अब तक का सबसे हसीन पल था मेरे लिए. ऐसा लग रहा था जैसे मैं तुम्हारे बाहुत करीब पहुँच गयी हूँ.”

“और क्या तुमने एक बात नोट की.”

“कौन सी बात.”

“तुमने कहा था कि मुझे चुंबन लेना नही आता मगर तुम्हारे होन्ट तो खूबसूरत चुंबन की एक दास्तान लिख रहे थे मेरे होंटो पर.”

ज़रीना का चेहरा लाल हो गया ये सुन कर. वो कुछ देर खामोश रही. फिर अचानक नज़रे आदित्य के कदमो पर टिका कर बोली, “हमने कुछ ग़लत तो नही किया ना आदित्य.”

“मैं तो इतना जानता हूँ ज़रीना कि प्यार भगवान है. अगर इस प्यार में बह कर हम कुछ कर बैठे तो वो हरगिज़ ग़लत नही हो सकता. बल्कि मैं तो बहुत खुश हूँ उस चुंबन के बाद. रह रह कर मेरे होंटो पर मुझे अभी तक तुम्हारे होंटो की छुवन महसूस हो रही है. बहुत प्यारा अहसास मिला है जींदगी में ये.”

“अच्छा खाना मॅंगा लो. भूक लग रही है.”

“एक बात तो तुम्हे बतानी ही पड़ेगी. चुंबन लेना कहा से सीखा तुमने.”

“हटो…मैं इस बात को लेकर परेशान हूँ और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है.”

“उस वक्त तो तरह-तरह से मेरे होंटो से खेल रही थी अब परेशान हो रही हो हहेहहे. मेरी ज़रीना गिरगिट की तरह रंग बदलती है.”

“आदित्य अब तुम्हारी खैर नही…” ज़रीना ने कहा. प्यार भरा गुस्सा था उसकी आवाज़ में.

आदित्य भाग कर टाय्लेट में घुस्स गया और कुण्डी लगा ली.

“निकलो बाहर. तुम्हारी जान ले लूँगी मैं आज.”

“उस से पहले खाना खिला दो मुझे. खाने का ऑर्डर कर दो. मैं नहा कर ही निकलूंगा बाहर अब हाहहाहा.”

ज़रीना पाँव पटक कर रह गयी.

क्रमशः...............................
 
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