धान की लहराती फसलों के बीच ट्यूबवेल की कोठरी में रजिया और रघु एक दूसरे की बाहों में लिपटे हुए एक दूसरे को चूम रहे थे।
"तुम्हें इतना नाटक करने की क्या जरूरत थी?" रजिया ने अपनी आंखें तरेरते हुए कहा
"मेरी जान आज से अब तुम मेरे साथ ही रहोगी"
"और लाल कोठी का काम कौन करेगा?"
"वहां नई भर्ती हो जाएगी पर अब तुम्हें वहां नहीं जाना है"
"राजा भैया को जानते हो ना यदि उन्हें पता चल गया तुम्हारी खैर नहीं"
"मेरी जान, चिंता मत कर तेरा रघु कमजोर नहीं है"
" तो तुम राजा भैया से बगावत करोगे?"
रघु ने रजिया को फिर कसकर बाहों में भर लिया और उसके होंठ रजिया से सटते चले गए।
रजिया अभी भी इस बात को सोच कर परेशान थी की रघु ने उसे इस तरह से क्यों अगवा किया वह दोनों आने वाले कुछ दिनों में विवाह करने ही वाले थे।
इस कठिन समय पर जब जोरावर सिंह की मृत्यु हुई थी रघु का यह उतावलापन उसे समझ नहीं आ रहा था। जब भी रघु से प्रश्न पूछती रघु के होंठ उसके होंठों सट जाते और जवाब उनकी सांसों में गुम हो जाता।
उधर लाल कोठी में रजिया को ढूंढने के लिए जरूरी दिशा निर्देश देने के पश्चात राघवन ने तलाशी का कार्य फिर से शुरू कर दिया।
एसीपी राघवन जोरावर सिंह जी की खिड़की पर पड़े रस्सी के निशान को लेकर उत्सुक था पर लाल कोठी का हर व्यक्ति उस रस्सी के निशान के बारे में अपनी अनभिज्ञता जाहिर कर रहा था।
राघवन परेशान था। लाल कोठी की चारदीवारी इतनी ऊंची थी कि किसी व्यक्ति का मुख्य द्वार के अलावा बाहर जाना संभव न था और मुख्य द्वार से जाने वाला व्यक्ति एकमात्र मनोहर ही था जो पुलिस कस्टडी में था।
जोरावर सिंह के कमरे की तलाशी के पश्चात एसीपी राघवन और उसकी टीम ने लाल कोठी के सभी कमरों को छान मारा। लाल कोठी ने आज से पहले यह दिन कभी नहीं देखा था 30 - 40 पुलिस वाले छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर हर कमरे को लगभग रौंद रहे थे।
एसीपी राघवन का दुर्भाग्य ही था की उसके हाथ कोई पुख्ता सबूत नहीं लग रहा था तभी रिया के कमरे की तलाशी ले रहा एक पुलिस वाला भागता हुआ राघवन के पास आया और बोला…
"सर यह दस्ताने रिया के कमरे की अलमारी के ऊपर से मिले हैं इनमे बारूद के कण भी मिले हैं"
एसीपी राघवन ने उसका निरीक्षण किया और तुरंत ही रिया के कमरे की तरफ बढ़ चला लकड़ी की वह अलमारी जिस पर से वह दस्ताना प्राप्त हुआ था वह लगभग 8 फीट ऊंची थी।
अलमारी के दरवाजे पर सेंटर लॉक लगा हुआ था ।
एसीपी राघवन ने रिया को बुलवाया…
राघवन की इस अप्रत्याशित बुलावे ने रिया के चेहरे पर भय की लकीरे कायम कर दी रश्मि भी आश्चर्य में थी।
रिया अपनी चाची रश्मि के साथ एसीपी राघवन के पास पहुंची...
"यह दस्ताना आपका है?
"जी मेरा ही है?" रिया एक पल के लिए सहम गई।
"क्या आप बंदूक चलाना जानती हैं"
रिया को बुलाए जाने की खबर सुनकर राजा और जयंत भी ऊपर आ गए थे राजा एक बार फिर गुस्से में था…
"मिस्टर राघवन आप अपनी हद पार कर रहे हैं। आप यहां तलाशी लेने आए थे अपना कार्य पूरा कीजिए परिवार के सदस्यों को परेशान मत कीजिए।रिया जैसी कोमल बच्ची क्या बंदूक चलाएगी?"
तभी रिया ने कहा..
"नहीं चाचा मैं बंदूक चला लेती हूं जयंत ने सिखाया था।"
पापा के चुनाव जीतने की खुशी में मैंने और जयंत ने 1-1 फायर भी किया था.
जयंत रिया की तरफ देख रहा था।
"किसकी रिवाल्वर से.. ?" एसीपी राघवन ने पूछा।
"पापा की और किसकी…"
रिया अब विश्वास के साथ एसीपी राघवन के प्रश्नों का उत्तर दे रही थी।
"इस अलमारी की चाबी कहां है?"
"पापा के चाभियों के गुच्छे में"
राघवन को जोरावर के कमरे से मिले चाभी के गुच्छे की याद आई उसने वह गुच्छा मंगाया और कुछ देर के प्रयासों में ही वह अलमारी खुल गई।
उस अलमारी में कई प्रकार की बंदूके रखी हुई थी। तथा ढेरों कारतूस रखे हुए थे। अलमारी का आधा भाग पैसों से भरा हुआ था।
एसीपी राघवन ने राजा से पूछा
आपके परिवार के पास कितने बंदूकों का लाइसेंस है..
"तीन। मेरी, जयंत की और जोरावर भैया की"
एसीपी राघवन ने बाकी सारी बंदूकें जप्त करने का आदेश दिया और रिया के कमरे से बाहर आ गया।
एसीपी राघवन असमंजस में था वह लाल कोठी में खुद को थोड़ा असहज भी महसूस कर रहा था हर बात पर उसे राजा के प्रतिकार और क्रोध का सामना करना पड़ रहा था बिना किसी पुख्ता सबूत और सूत्र के उसकी तफ्तीश कमजोर पड़ रही थी। लाल कोठी में अवैध हथियारों और ढेर सारे पैसे, जोरावर के चरित्र को दर्शाती कामुक सामग्रियों के अलावा उसके हाथ कुछ विशेष नहीं लगा था। अलमारी के ऊपर से मिला दस्ताना भी उसने अपने साथ रख लिया था परंतु रिया द्वारा दिये गये उत्तर ने उस दस्ताने उपयोगिता लगभग खत्म कर दी थी।
आकाश में शाम की लालिमा घुल रही थी चिड़ियों की चहचहाहट माहौल को खुशनुमा की हुई थी परंतु लाल कोठी पर तो ग्रहण लगा हुआ था। एसीपी राघवन की टीम भी अब तलाशी लेकर थक चुकी थी उनके हाथ कुछ विशेष नहीं लगा था।
एसीपी राघवन ने अपना लाल कोठी का तलाशी अभियान बंद किया परंतु उसने 4 पुलिस वालों को कोठी के पीछे वाले हिस्से और 4 पुलिस वालों को सामने वाले बगीचे में तैनात कर दिया। गेट पर पहले ही दो पुलिसवाले तैनात थे।
एसीपी राघवन की टीम के जाने के पश्चात राजा और घर के बाकी सदस्यों ने सांस ली परंतु उनका कार्य अभी बाकी था लाल कोठी का ऐश्वर्य और वैभव चूर चूर हो चुका था हर कमरे का सामान फैला हुआ था। घर की काम करने वाली रजिया अभी भी गायब थी।
सभी ने अपने अपने कमरों को वापस व्यवस्थित करना शुरू कर दिया घर के बाकी नौकरों से सजावट का कार्य कराना लगभग असंभव था। जयंत रिया का साथ दे रहा था। पहले उन्होंने शशि कला का कमरा साफ किया और उन्हें बिस्तर पर सुला कर अपना कमरा साफ करने आ गए कमरे की सफाई पूरी होते होते रिया जयंत से लिपट चुकी थी। जयंत उसके पीठ पर थपकीया देते हुए उसे दिलासा दे रहा था।
"हमारे परिवार के लिए यह बुरे दिन हैं जल्द ही बीत जाएंगे"
जयंत ही रिया की एकमात्र उम्मीद था। उसके सिवा इस दुनिया में रिया का कोई नहीं था…
उधर भूरा अब परेशान हो चुका था सोनी का मामा भीमा उसे बार-बार फोन करके सोनी को वापस लाने की जिद कर रहा था उसकी बातों में आ रही तल्खी इस बात का प्रतीक थी कि यदि उसने और देर की तो सोनी का मामा निश्चय ही पुलिस के पास चला जाएगा और बिना बात का बखेड़ा पैदा हो जाएगा भूरा ने आनन-फानन में ही सलेमपुर जाने की तैयारी की उसने सोनी के मामा को भी साथ ले लिया वह दोनों अधेड़ अपने मन में अलग-अलग चिंताये लिए लिए ट्रेन पर बैठ चुके थे।
ट्रेन के स्टेशन छोड़ते हैं स्टेशन पर की चहल-पहल और रोशनी गायब होती गई कुछ ही देर में ट्रेन अंधेरे को चीरती हुई सरपट दौड़ने लगी भूरा ने पहले से ही शराब पी रखी थी वह तुरंत ही खिड़की पर अपना सर टिका कर सो गया परंतु सोनी का मामा को शराब पीने के बावजूद नींद नहीं आ रही थी उसका मन आशंकाओं से घिरा हुआ था वह अपने पुराने दिनों को याद करने लगा जब उसकी पत्नी को लखनऊ स्टेशन के बाहर सोनी और मोनी मंदिर की सीढ़ियों पर रोती बिलखती हुई दिखाई पड़ीं थीं।
उस रात झमाझम बारिश हो रही थी अंधेरा भी घिर आया था। मंदिर पर भीड़भाड़ कम हो रही थी। मंदिर के बाहर प्रवेश द्वार के नीचे वह दोनों लड़कियां भूखी प्यासी बैठी थी। उस समय मानवीय संवेदना ने उसकी पत्नी को उन दोनों बच्चियों को अपने घर ले जाने पर मजबूर कर दिया। उन बच्चियों से ही उसे पता चला कि उनकी मां उसे उस मंदिर पर बैठा कर किसी आवश्यक कार्य बस गई थी परंतु वह वापस नहीं आई।
उसकी पत्नी मंदिर के पुजारी को अपना पता दे कर उन दोनों बच्चियों को अपने घर ले आयी। उस समय भीमा ने अपनी पत्नी की जिद के कारण उन दोनों बच्चियों को पनाह दी परंतु उनकी मां का कोई अता पता ना चला।
वह दोनों बच्चियां अपने झोले में कुछ कपड़े तथा अपनी मां के साथ खिंचाई भी एक तस्वीर रखे हुए थीं।
समय का पहिया घूमता गया और धीरे-धीरे दोनों बच्चियां बड़ी होती गई इसी बीच भीमा की पत्नी का देहांत हो गया भीमा उन दो बड़ी हो रही बच्चियों का लालन-पालन करने में खुद को असमर्थ पा रहा था अपने व्यवसाय और पत्नी को खोने के बाद वह शराब की शरण में चला गया दिन भर मेहनत मजदूरी करता और शाम को सारे पैसे शराब में उड़ा देता सोनी और मोनी किसी तरह से खाना पीना बनाती और उसे भी देती परंतु धीरे-धीरे भीमा उन बच्चियों से दूर होता गया।
सोनी और मोनी बेहद खूबसूरत थी और यौवन की दहलीज लॉघ चुकी थी 1 दिन भीमा ने मोनी को किसी लड़के के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया तथा घर आने के बाद उसकी पिटाई कर दी मोनी ने भी प्रतिकार किया और बात बढ़ गई। एक छत के नीचे रहने के बावजूद भीमा सोनी और मोनी से दूर होता गया।
मोनी के व्यभिचार ने भीमा के मन में संवेदना खत्म कर दी थी इसी दौरान उसकी मुलाकात भूरा से हुई जिसने सोनी और मोनी के यौवन को बखूबी पहचान लिया।
अंततः भीमा ने मोनी को भूरा के साथ भेज दिया जो लगभग एक महीना पूर्व लाल कोठी गई थी।
मोनी के जाने के बाद सोनी अकेली पड़ गई थी वह बार-बार भीमा से मोनी को वापस लाने की जिद करती परंतु उसे कोई माकूल उत्तर ना मिलता। उन दिनों लड़कियों का गायब होना आम हो रहा था पड़ोस में रहने वाली चाची सोनी को समझाती थी तथा उसका हौसला बढ़ाएं रखती थी।
मोनी के वापस ना आने के कारण सोनी भीमा पर लगातार दबाव बनाए हुए थी वह बार-बार बीमा से जिद करती की मोनी को वापस लाइए परंतु यह भीमा के बस में ना था। सोनी के बार बार तंग करने के कारण भीमा ने सोनी को भी भूरा के हवाले कर दिया जो उसे नर्तकीयों की टोली के साथ लेकर लाल कोठी गया था।
जब सोनी जा रही थी तो चाची ने उसने एक जहर से बुझा हुआ छोटा सा खंजर दिया और कहा
"बेटी ये खंजर अपने पास रख ले कभी तेरी अस्मिता पर आंच आए तो इसका प्रयोग करना. मुझे नहीं पता कि मोनी कहां गई है और तू कहां जा रही है पर मुझे भीमा पर विश्वास नहीं है तू अपना ध्यान रखना"
सोनी ने वह खंजर अपने लहंगे में बांधा और भूरा के साथ चल पड़ी थी।
सोनी और मोनी का चेहरा याद कर भीमा की आंखों में आंसू आ गए उसे अपने निर्णय पर अफसोस हो रहा था परंतु आज सलेमपुर जाते समय वह ऊपर वाले से प्रार्थना कर रहा था कि सोनी और मोनी उसे सुरक्षित मिल जायें।
रात गहरा रही थी परंतु ट्रेन निर्भीक होकर परियों पर दौड़ रही थी भीमा को भी नींद आने लगी।
उधर लाल कोठी के बगीचे में हीरा और कालू शराब पी रहे थे पठान भी उनके साथ बैठा था परंतु वह शराब नहीं पीता था।
"पठान भैया , राघवन साला बहुत दुष्ट है राजा भैया के सामने कैसे जबान लड़ा रहा था" हीरा ने गुस्से से कहा
"पर पठान भैया जोरावर भैया को किसने मारा होगा कहीं घर का ही तो कोई आदमी नहीं है?" कालू बोला
"आदमी या औरत" हीरा अपनी आंखें बड़ी करते हुए कोतुहल से पूछा
"उस दिन मनोहर के अलावा और तो कोई हवेली से बाहर नहीं गया था…" पठान ने गंभीरता से पूछा
"भैया उस दिन तो बहुत सारे लोग थे टेंट वाले नाचने वाले और न जाने कितने कार्यकर्ता। पर कोठी के मुख्य द्वार पर तो आप भी थे आप ही बता सकते हैं कि अंदर कोई गया या नहीं" कालू ने पठान का चेहरा पढ़ते हुए बोला
पठान अपने मन में उस दिन के घटनाक्रम को याद कर रहा था। जोरावर सिंह के
हवेली में प्रवेश कर जाने के बाद वह मुख्य द्वार पर ही खड़ा था। सिर्फ कुछ समय के लिए वह मुख्य द्वार से हटा था जब वह सोनी को जोरावर के कमरे तक पहुंचाने गया था।
पठान के चेहरे पर तनाव देखकर हीरा ने कहा
"अबे कालू चुपचाप दारू पी पठान भैया को भी परेशान कर रहा है और मुझे भी दिनभर की भागा दौड़ी के बाद चार पल सुकून के मिले हैं शांति से पी लेने दे"
" साला हम लोगों का सारा जीवन लाल कोठी की सेवा करते बीत गया जोरावर भैया के जाने के बाद क्या राजा भैया भी हमें वैसे ही अपनाएंगे? हमारा तो कोई परिवार भी नहीं है है।" कालू ने बात बदलते हुए कहा।
"परिवार से याद आया पठान भैया सलमा का कुछ पता चला आपने कभी उसकी खोज खबर नहीं ली?" हीरा ने पूरी संवेदना के साथ पठान से पूछा
पठान रुवांस सा हो गया। वह सलमा को याद करने लगा जो कई वर्षों पहले उसकी एकमात्र बच्ची को लेकर अपने मामू जान के पास चली गई थी पठान और उसकी पत्नी के झगड़े में भी लाल कोठी का ही योगदान था सलमा गर्भवती थी और वह पठान का साथ चाहती थी परंतु पठान जोरावर की स्वामी भक्ति में लीन था वह सलमा को पूरा समय नहीं दे पाता इसी अनबन में सलमा अपनी बच्ची को लेकर चली गई।
पठान कभी-कभी सलमा से मिलने उसके मामू जान के घर जाता परंतु सलमा घर आने को तैयार नहीं थी उसे पठान का लाल कोठी में चाकरी करना कतई पसंद नहीं था। उसने पठान के सामने यह शर्त रख दी थी कि जब तक वह लाल कोठी की नौकरी नहीं छोड़ेगा वह वापस नहीं आएगी। पठान सलमा से प्रेम करता था और अपने बच्चे से भी परंतु जोरावर के उस पर कई एहसान थे वह लाल कोठी छोड़ पाने की स्थिति में नहीं था। उसने सब कुछ वक्त के हवाले कर दिया था।
लाल कोठी के अंदर रजिया की मां अब शांत हो गई थी जाने राजा ने उसके कान में क्या कहा था उसके मन में रजिया को लेकर चल रही चिंता मिट गई वह खुशी खुशी अकेले ही रसोई का कार्य करने लगी।
उधर एसीपी राघवन के पास फॉरेंसिक जांच की रिपोर्ट पहुंच चुकी थी। अपने स्टडी में बैठे हुए उसने अपने सिगरेट जलाई और आंखें रिपोर्ट पर गड़ा दी वह बेहद ध्यान से रिपोर्ट देखने लगा उसके आश्चर्य की सीमा न रही ... उसने डीएसपी भूरेलाल को फोन लगाया….
शेष अगले भाग में।
bahut hi badiyaलाल कोठी का निर्माण उन्हीं पत्थरों से हुआ था जिन पत्थरों से लाल किला बनाया गया है समय के साथ कोठी के अंदर की खूबसूरती बदलती गई और आज कोठी के अंदर का फर्श इटालियन मार्बल से सुशोभित हो रहा था। कोठी के अंदर सभी कमरे आधुनिक साज-सज्जा से सुशोभित परंतु कमरे के पलंग जो पूरी तरह राजशाही थे वह अब भी घर की खूबसूरती बढ़ा रहे थे।
कोठी यह दोनों मंजिलों पर आठ - आठ कमरे थे ऊपर की मंजिल पर जोरावर सिंह अपनी नई नवेली पत्नी रजनी और उसकी पुत्री रिया के साथ रहते थे इसी मंजिल के दूसरे भाग पर उनका भाई राजा अपनी पत्नी रश्मि तथा दो छोटे बच्चों के साथ रहता था।
लाल कोठी के आगे और पीछे की जमीन को खूबसूरत पार्क की शक्ल दी गई थी आगे का पार्क सामान्यतः जोरावर सिंह और उनके भाई राजा अपने बिजनेस से संबंधित लोगों के साथ उठने बैठने में प्रयोग करते थे तथा वहां पर अक्सर सामाजिक पार्टियां आयोजित हुआ करती थी आज का उत्सव भी उसी पार्क में होना था।
पीछे का पार्क सामान्यतः घर की महिलाओं और बच्चों द्वारा प्रयोग किया जाता था वह आगे के पार्क से ज्यादा खूबसूरत था। यही वह जगह थी रजनी की पुत्री रिया अपना ज्यादातर समय व्यतीत किया करती थी उसे लाल कोठी में रहना कमल रास आता था।
कोठी के निचले हिस्से पर कुछ कमरे घर में लगातार रहने और काम करने वाले नौकरों के लिए सुरक्षित था। इस लाल कोठी में रहने वाले जोरावर सिंह के तीन मुख्य मातहत थे।
पठान मुख्य सुरक्षाकर्मी था और वह जोरावर सिंह का विश्वासपात्र था हम उम्र होने के साथ-साथ वह जोरावर सिंह के वफादार था वह जोरावर सिंह के एक इशारे पर मरने मारने को तैयार रहता था उसने जोरावर सिंह के इशारे पर कई कत्ल किए थे।
रहीम उनका ड्राइवर था जो लगभग 35 वर्ष का हट्टा कट्टा युवक था जरूरत पड़ने पर पठान की तरह अस्त्र-शस्त्र चला लेता था और जोरावर सिंह को सुरक्षा कवच दिया रहता था।
रजिया और उसकी मां घर की मुख्य कुक थीं। रजिया 25 वर्षीय बेहद खूबसूरत युवती थी जो इसी घर में अपनी मां के साथ पली-बढ़ी थी और अब धीरे-धीरे अपनी मां की जगह ले रही थी।
यह एक संयोग ही था की जोरावर सिंह के परिवार के सभी पुरुषों की कद काठी आकर्षक थी और उनके घर की महिलाएं तथा नौकर भी बेहद आकर्षक और खूबसूरत थे सिर्फ वस्त्रों का अंतर हटा दिया जाए तो यह पहचानना मुश्किल होता की कौन जोरावर सिंह के परिवार का व्यक्ति है और कौन उनका मातहत।
रात गहरा रही थी बाहर वाले पार्क में खाने पीने की व्यवस्था की गई थी रास रंग के लिए नर्तकों की विशेष टोली बुलाई गई थी जिनके लिए स्टेज सजा दिया गया था दरअसल जोरावर सिंह को अपनी जीत का पूरा भरोसा था और उन्होंने इस उत्सव की तैयारी पहले से कर रखी थी परंतु वह चुनाव परिणाम आने से पहले इन तैयारियों का प्रदर्शन किसी के सामने नहीं करना चाहते थे आखिर चुनाव परिणाम कभी-कभी अप्रत्याशित भी होते हैं यह बात जोरावरसिंह भली-भांति जानते थे।
आगंतुकों का आना शुरू हो गया था धीरे ही धीरे जोरावर सिंह के पार्क में लगभग 300 व्यक्ति उपस्थित हो चुके थे गेट पर सिक्योरिटी अपना काम मुस्तैदी से कर रही परंतु जीत का अपना नशा होता वह जोरावर सिंह पर भी था और उनके सुरक्षाकर्मियों पर भी आयोजन के लिए कई अपरिचित व्यक्तियों का आना जाना भी लगा हुआ था।
आज इस आयोजन के लिए जोरावर सिंह ने कुछ विशेष सिक्योरिटी गार्ड्स बुलाए थे जिनमें से कुछ तो पुलिस वाले थे और कुछ उनकी रियल स्टेट की सुरक्षा में लगे सिक्योरिटी गार्ड थे।
पार्टी अपने रंग पर आ रही नर्तकीओ की टोली ने समा बांध दिया था। गालों पर लाली और मस्कारा लगाएं हुए अर्धनग्न स्थिति में युवतियां थिरक रही थी तथा चोली में कैद हुए यू उनके वक्ष स्थल कामुक पुरुषों के तन बदन में हलचल पैदा कर थे। शराब ने इस पल को और उत्तेजक बना दिया था। मंच के पीछे एक बेहद सुंदर और कमसिन किशोरी तनाव में बैठी हुई थी वह भी नर्तकी की वेशभूषा में थी परंतु वह स्टेज पर नहीं आ रही थी उसके चेहरे पर तनाव था।
धीरे-धीरे रात के 11:00 बज चुके थे अधिकतर मेहमान वापस जा चुके थे लगभग 20 - 25 ठरकी किस्म के व्यक्ति अभी भी नृत्य का आनंद ले रहे थे। जोरावर सिंह ने भी सबसे विदा ली और अपनी लाल कोठी में प्रवेश कर गए। पार्टी का समापन हो चला था। कुछ देर बाद स्टेज के पीछे बैठी हुई सुंदर किशोरी, लाल कोठी के पीछे वाले भाग्य में पठान के पीछे पीछे पहनी हुई जा रही थी।
रिया अपनी खिड़की पर खड़ी चांद को निहार रही थी उसने इन 17 सालों में कई उतार-चढ़ाव देखे थे वह व्यथित थी उसके मन में अजीब ख्याल आ रहे तभी उसने पठान और उस लड़की को पीछे के दरवाजे से लाल कोठी में अंदर आते हुए देखा उसकी आंखें डर से कांप उठी उसकी सांसे तेज हो गई। वह अपनी कोठरी के मुख्य दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई उसने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ पठान उस लड़की को लेकर जोरावर सिंह के कमरे की तरफ जा रहा था रिया ने अपनी आंखों से वह दृश्य देखा लड़की के चेहरे पर डर कायम था।
रिया का दिल तेजी से धड़क रहा था। उसकी छठी इंद्री किसी अनिष्ट की तरफ इशारा कर रही थी पठान वापस आ रहा था उसके कदमों की टॉप घोड़े की टॉप जैसी लग रही थी।
पठान लाल कोठी के पीछे वाली भाग में पड़ी बेंच पर बैठ गया। हरिया वापस अपनी खिड़की पर आकर पठान को देख रही थी वह उस लड़की के बारे में सोच कर चिंतित हो रही थी।
लगभग 15 मिनट बाद रिया के कानों में जोरावर सिंह की आवाज आई पठान ऊपर आओ।
जी मालिक अभी आया।
हीरा और कालू को भी बुला लो
रिया को जोरावर सिंह दिखाई नहीं पड़ रहे थे परंतु उनमें और पठान के बीच में इशारों में कुछ बातें हो रही थी जो रिया को समझ ना आयीं।
कुछ देर बाद पठान वापस जोरावर सिंह के कमरे की तरफ आया रिया एक बार फिर अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ी होकर पठान को जोरावर के कमरे में जाते हुए देख रही थी।
रिया अपने कमरे में बेचैनी से घूम रही थी वह बेहद डरी हुई थी। तभी उसमें अपनी खिड़की के नीचे कुछ हलचल होती महसूस कि वह भागकर खिड़की पर आई वह किशोर लड़की कालू के कंधे पर थी। कालू 6 फीट 5 इंच का एक मजबूत आदमी था जो देखने में हलवाई की तरह लगता था परंतु उसका रंग उसके नाम से पूरी तरह मेल खाता था। कालू के सफेद कुर्ते पर जगह-जगह रक्त के निशान थे। रिया बेहद घबरा गई उसे लगा जैसे उस लड़की को मार दिया गया था। उसने अपने हाथों से अपने मुंह को दबाकर अपनी चीख रोक ली।उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें आ गई।
कालू उस लड़की को लेकर पार्क में बने चबूतरे की तरफ जा रहा था जिस पर एक बेहद खूबसूरत मूर्ति लगी हुई थी। पठान भी अब नीचे आ चुका था उसके हाथ में एक चादर थी वह हीरा को लेकर कालू के पीछे पीछे चबूतरे की तरफ जा रहा था।
चबूतरे पर पहुंचकर पठान ने अपनी मजबूत भुजाओं से उस मूर्ति को उठा लिया हीरा ने तुरंत ही मूर्ति के नीचे बड़े लाल पत्थर को पूरी ताकत लगाकर हटाया। कालू ने उस लड़की को अपने कंधे से उतारा उसने अपने दोनों पर उस खाली जगह के दोनों तरफ किए और उस लड़की को नीचे करता गया रिया आश्चर्य में डूबी हुई वह दृश्य देख रही लड़की के पैर उस अनजान गड्ढे में जा रहे थे कुछ ही देर में लड़की की कमर उसका सीना और उसका चेहरा उस अनजान गड्ढे में विलुप्त होता चला गया अचानक उसने कालू के हाथों को ऊपर उठते हुए देखा लड़की उस अनजान गुफा में विलुप्त हो चुकी थी हीरा और कालू ने मिलकर उस पत्थर को वापस अपनी जगह पर किया और पठान ने वह खूबसूरत मूर्ति उसी जगह पर लगा दी। देखते ही देखते वह किशोरी गायब हो गई थी। रिया यह दृश्य देखकर बेहद परेशान हो गई। वह डर से कांप रही थी।
कोठी के सामने वाले भाग में अभी भी पटाखों की आवाज सुनाई पड़ रही थी कुछ उत्साही समर्थक इस उत्सव का आनंद अब भी ले रहे थे।
डरी हुई रिया ने अपनी मां रजनी को फोन किया वह थोड़ी ही देर में रिया के कमरे में आ गई उसने अपनी मां रजनी से अब से कुछ देर पहले हुई घटना के बारे में बताना चाहा परंतु रजनी ने कहा...
" बेटा तुम अपने काम से काम रखा करो यह बड़े लोग की हवेली है तुम्हें इन मामलों में अपनी टांग नहीं फसांनी चाहिए"
रजनी ने रिया के चेहरे पर डर देखा था उसने जाते हुए कहा..
" बेटा हिम्मत रखो डरो मत आराम से सो जाओ कोई बात हो तो आकर मुझे जगा लेना मैं कमरे का दरवाजा बंद नहीं करूंगी"
रजनी जोरावर सिंह के एक कमरे की तरफ बढ़ गई। रिया इस अप्रत्याशित घटना के बारे में सोच सोच कर दुखी हो रही थी और अपने बिस्तर पर लेटे हुए इस लाल कोठी में आने के दिन को याद कर रही थी।
रजिया अपनी मां के साथ सोने जा रही आज भी दोनों मां बेटी एक ही बिस्तर पर सोया करते थे रजिया की शादी को लेकर उसकी मां चिंतित थी आखिर कब तक वह यहां जोरावर सिंह के परिवार की सेवा करती रहेगी। रजिया भी अपने आंखों में सुनहरे सपने लिए सोने का प्रयास कर रही थी तभी
ठांय… ठांय……….. आईईईईई …. ठांय…
की आवाज सुनाई दी।
आवाज लाल कोठी के अंदर से ही आए रजिया और उसकी मां उठकर कोठी के ऊपर वाली मंजिल की तरफ भागे। वह दोनों गोली की आवाज की दिशा में लगभग दौड़ते रहे यह आवाज जोरावर
सिंह के कमरे से आई थी जोरावर सिंह के कमरे से पहुंचने के ठीक पहले रिया अपने कमरे से निकलकर बाहर आ गई और लगभग रजिया से टकरा गई।
"माफ कीजिएगा दीदी. मालिक के कमरे से गोली की आवाज आई है"
हां मैंने भी सुना और वह तीनों भागते हुए जोरावर सिंह के कमरे में प्रवेश कर गए।
राजसी पलंग पर पूर्ण नग्न अवस्था में जोरावर सिंह और उनकी पत्नी रजनी बिस्तर पर लेटी हुई थी।
जोरावर सिंह का पैर बिस्तर से बाहर लटका हुआ था। उनके शरीर पर पड़ी चादर जिसने उनके गुप्तांगों को ढक रखा था पूरी तरह खून से लथपथ थी एक गोली उनके कान के पास मारी गई थी जिससे वह हुआ रक्त उनके चेहरे और गले पर लगा हुआ था।
रजनी तो पूरी तरह नंगी थी उसके शरीर पर कोई कपड़ा ना था। रिया तो वह दृश्य देख कर बेहोश हो गई और कटे हुए पेड़ की भांति जमीन पर गिर पड़ी। रजिया ने भागकर चादर खींचकर रजनी के गुप्तांगों को ढकने की कोशिश की।
राजा की पत्नी रश्मि अब तक आ चुकी थी वह रिया के माथे को अपनी गोद में लेकर उसे होश में लाने का प्रयास कर रही थी….
लाल कोठी के गेट पर खड़े पुलिस वाले भी अब तक अंदर आ चुके उनमें से एक ने फोन लगाया..
"सर विधायक जी का मर्डर हो गया है आप जल्दी आइए"
शेष अगले भाग में।
bahut hi badhiyaमनोहर ने लाल कोठी से निकलते समय पुलिस वाले को धक्का दे दिया था जिसका उसे अब अफसोस हो रहा था। परंतु यह क्रिया उसकी झुंझलाहट की वजह से हुई थी। बीती रात एक तो उस पर शराब की खुमारी छाई हुई थी और रजनी के आश्वासन के बावजूद पैसों का प्रबंध ना हो पाया था था।
वह कोठी से निकलकर वह सीधा बस स्टैंड आकर अपने गांव जाने के लिए बस का इंतजार करने लगा। बस स्टैंड की बेंच पर लेटे-लेटे उसे नींद आ गई। सुबह सुबह पिछवाड़े पर पुलिस का डंडा पढ़ते ही उसकी नींद खुल गई।
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता 3-4 पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और उसे घसीटते हुए पुलिस जीप के पीछे बैठाया और उसे लेकर थाने की तरफ बढ़ चले।
मनोहर ने उन पुलिस वालों को सब कुछ बताने की कोशिश की परंतु जैसे उन्होंने अपने कान बंद कर रखे थे उन्हें इस बात से कोई सरोकार न था की मनोहर द्वारा बताई जा रही बातों का कोई औचित्य था भी या नहीं वह बेचारे मामूली पुलिस वाले थे।
जिस जीप में मनोहर को पुलिस स्टेशन ले जाया जा रहा था उसके पीछे एक और गाड़ी उनका पीछा कर रही थी जिसमें इंस्पेक्टर खान और पठान बैठे हुए थे। पठान की ही शिनाख्त पर मनोहर को धर दबोचा गया था।
पुलिस स्टेशन में मनोहर के साथ वही व्यवहार हुआ जिस की कल्पना पाठक कर सकते हैं।
हवलदार रतन सिंह नया नया भर्ती हुआ था उसकी बीवी शादी के पश्चात कुछ ही दिनों बाद उसे छोड़ कर भाग गई थी रतन सिंह के दिलों दिमाग पर नफरत छाई हुई थी। वह मनोहर की कोई बात सुनने को तैयार न था और अपने डंडे से लगातार उसके पैरों और जांघों पर प्रहार किए जा रहा था। मनोहर दर्द से तड़प रहा था और साहब साहब चिल्ला रहा था।
अंततः इंस्पेक्टर खान के आने के बाद मनोहर को राहत मिली। मनोहर ने इंस्पेक्टर खान को उस रात की कहानी अपनी जुबान में सुना दी।
साहब मैं और रजनी कई वर्षों से सीतापुर के प्राथमिक स्कूल में एक साथ कार्य किया करते थे। रजनी उस स्कूल में प्राध्यापिका थी और मैं क्लर्क। हम दोनों एक दूसरे के दोस्त थे और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के काम भी आते थे।
रजनी के लाल कोठी में आने के पश्चात भी कभी-कभी मैं उससे मिलने आ जाया करता था। परंतु जोरावर साहब को हमारा मिलना पसंद ना था। वह रजनी से बार-बार कहा करते अब तुम लाल कोठी की रानी हो तुम्हारा आम आदमियों से मिलना उचित नहीं है।
परंतु रजनी ने मेरी दोस्ती का हमेशा आदर किया था। इसलिए मैं कभी-कभी उससे मिलने लाल कोठी चला जाया करता था। कभी वहां के सिक्योरिटी गार्ड्स को पटाकर और कभी चोरी छुपे इसकी जानकारी रजनी को नहीं थी।
उस दिन मुझे पैसों की सख्त आवश्यकता थी मैंने अपना दर्द रजनी को बताया था उसने मुझे लाल कोठी आकर पैसे ले जाने को कहा था। मुझे पहुंचने में थोड़ा देर हो गई तभी जोरावर साहब के चुनाव का परिणाम आ गया और लाल कोठी उनके समर्थकों से भर गई मैं डर गया और लाल कोठी के पार्क में छुप गया।
रास रंग का माहौल शुरू होते ही मैं भी उस पार्टी का आनंद लेने लगा। पठान को छोड़कर मुझे और कोई सिक्योरिटी गार्ड नहीं जानता था। मैं पठान से दूरी बनाए रखते हुए उत्सव और लजीज खाने का आनंद ले रहा था। वैसे भी सीतापुर जाने वाली आखरी बस निकल चुकी थी मुझे सुबह तक इंतजार करना ही था इसीलिए मैं लाल कोठी में रुका रहा।
रजनी ने मुझे एस एम एस कर रात 01:00 बजे खिड़की के नीचे से पैसों का पैकेट ले जाने के लिए कहा था।
मनोहर ने अपना नोकिया 1100 फोन का मैसेज बॉक्स खोल कर इस्पेक्टर खान को दिखाया जिस पर रजनी का मैसेज था
"OK 1.00 O clock, same place."
मैं खिड़की के पास वाले सिक्योरिटी गार्ड के हटने का इंतजार कर रहा था जिससे मैं खिड़की के नीचे जाकर रजनी द्वारा फेंका गया पैसों का पैकेट उठा लू। तभी गोलियों की आवाज सुनाई दी मैं घबरा गया मुझे लगा उस समय यदि मैंने भागने की कोशिश की तो निश्चय ही पकड़ा जाऊंगा मैं चुपचाप आकर वापस पार्क में छुप गया.
जब मुख्य गेट पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड आप लोगों के साथ-साथ अंदर चले गए और सिर्फ एक पुलिस वाला बच गया तो मैंने हिम्मत जुटाई और विकेट गेट खोल कर बाहर जाने लगा उस पुलिस वाले ने मुझे रोकने की कोशिश की परंतु मैंने उसे धक्का देकर वहां से भाग निकला.
इंस्पेक्टर खान को मनोहर की कहानी पर पूरा यकीन ना हुआ उसने बाहर आकर पठान से मनोहर के बारे में जानना चाहा मनोहर द्वारा बताई गई कई बातें पठान द्वारा बताई गई बातों से मेल खाती थीं।
सुबह के 10:00 बज चुके थे. पुलिस थाने पर मीडिया का जमावड़ा लग चुका था। भूरेलाल भी अब तक थाने पर आ चुके थे मनोहर के पकड़े जाने से वह बेहद प्रसन्न थे उन्होंने इंस्पेक्टर खान से मशवरा किए बिना मीडिया को बयान जारी कर दिया..
देखिए हमने अभी एक संदिग्ध को पकड़ा है जो उस लाल कोठी में बिन बुलाए मेहमान की तरफ पहुंचा था और वारदात के समय वह लाल कोठी में उपस्थित था। उसने चकमा देकर वहां से भागने की कोशिश की परंतु हमारी सक्षम टीम ने उसे बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया है अभी पूछताछ जारी है।
मीडिया कर्मियों का शोर लगातार हो रहा था। एक सुंदर सी कटीली पत्रकार ने कर्कश आवाज में पूछा "जोरावर सिंह को मारने का क्या मकसद था?"
भूरेलाल को अभी उस आदमी के बारे में कुछ ज्यादा पता न था। उसने उस लड़की को कोई जवाब न दिया और पीछे मुड़ कर वापस थाने की तरफ आ गया।
मनोहर थाने की एक कोठरी में पड़ा कराह रहा था। उस हवलदार रतन सिंह ने उसकी कुटाई कुछ ज्यादा ही कर दी थी। आज रजनी से उसके संबंधों की वजह से उसे यह दिन देखना पड़ा था। मनोहर पिछले 18 वर्षों से रजनी को जानता था।
मनोहर जिस प्राथमिक स्कूल में क्लर्क का काम करता था रजनी उसी स्कूल के प्रधानाध्यापक शशीकांत की नई नवेली पत्नी थी। शशीकांत एक शांत स्वभाव के 32 वर्षीय युवक थे जो 20 वर्षीय अद्भुत सुंदरी रजनी को ब्याह कर ले आए थे। रजनी की सुंदरता अप्रतिम थी वह जितनी सुंदर थी उतनी ही चंचल थी। उसे जीवन से बड़ी उम्मीदें थीं। वह बंधनों में नहीं बंधना चाहती थी। रजनी के विवाह के उपरांत भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और कुछ ही दिनों में B.Ed की परीक्षा पास कर ली। यह एक संयोग ही था और शशिकांत जी के संबंधों का प्रभाव की रजनी भी उसी स्कूल में प्राध्यापिका बन गई।
मनोहर उस समय रजनी का हम उम्र था वह दोनों एक दोस्त की तरह ढेर सारी बातें करते उन दोनों में दोस्ती बढ़ती गई मनोहर दिन पर दिन उसके करीब आता गया। कजरी की महत्वाकांक्षा सिर्फ पद और प्रतिष्ठा को लेकर नहीं थी वह जीवन में हर सुख का अतिरेक चाहती थी। रजनी की इन्हीं विचारों ने एक दिन उसे और मनोहर को एक ही बिस्तर पर ला दिया रजनी की खूबसूरती को भोगने की मनोहर की हैसियत न थी परंतु उसने रजनी का दास बनकर उसे कामकला के हर सुख दिए जो शशिकांत जैसे सभ्य पुरुष के बस का कतई न था।
रजनी हमेशा से अपना प्रभुत्व बनाए रखती थी पढ़ी-लिखी होने के कारण और प्रधानाध्यापक की पत्नी होने के कारण स्कूल में उसका प्रभाव और दबदबा रहता था। धीरे-धीरे उसका दखल उस गांव की राजनीति में भी होने लगा। अपनी सुंदरता और दमदार व्यक्तित्व की वजह से कुछ ही वर्षों में वह न सिर्फ सीतापुर बल्कि आसपास के कई गांवों में प्रसिद्ध हो गए उसकी सुंदरता उसका सबसे बड़ा हथियार थी।
भूरेलाल और इंस्पेक्टर खान मनोहर के बयान पर चर्चा कर रहे थे तभी एक पुलिस वाला पोस्टमार्टम की रिपोर्ट लेकर कमरे में दाखिल हुआ भूरे लाल ने वह रिपोर्ट अपने हाथ में ले ली और भौचक्का होकर बोला
"अरे जोरावर सिंह को किसी ने चाकू भी मारा था तुमने देखा था क्या?"
" सर, डॉक्टर शर्मा अब ज्यादा दिन नौकरी नहीं कर पाएगा दिनभर टुन्न रहता है जोरावर सिंह को दो दो गोलियां लगी थी उस साले को चाकू कहां दिखाई पड़ गया?"
भूरेलाल ने फिर कहा
"नहीं उसने गर्दन पर दो दो जगह चाकू से खरोच के निशान देखे हैं और तो और वह चाकू जहर से बुझा हुआ था। जोरावर सिंह के शरीर से विश्व के अंश मिले हैं किसी ने उसे जहर लगे हुए चाकू से वार करके मारने की कोशिश की थी और असफल रहने पर उसकी ही बंदूक से उस पर वार कर दिया"
"अरे सर आप क्या बात कर रहे हैं? किसकी इतनी हिम्मत है कि वो चाकू लेकर वह जोरावर सिंह के कमरे में जाए और उस पर वार करें और तो और उस पर असफल रहने के बाद वह जोरावर से उसकी बंदूक मांगकर उसका ही कत्ल कर दे। यह हास्यास्पद व्याख्या है। जोरावर सिंह कोई कमजोर व्यक्ति नहीं था वह चाकू से हमला करने वाले व्यक्ति को आसानी से दबोच लेता और उसे वही खत्म कर देता।"
"इस रिपोर्ट में एक बात और भी लिखी है की जोरावर सिंह के शरीर में पाए जाने वाले विष के कारण शरीर में रक्त का संचार असामान्य रूप से बढ़ जाता है और कुछ मिनटों के बाद वह व्यक्ति अचेत हो जाता है और उचित उपचार न मिलने की दशा में वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है"
"इसका मतलब कि उस जिसके कारण ही जोरावर सिंह ने रजनी के साथ मरने से पहले रंगरेलियां मनाई और फिर गोली खा कर मर गया. पर यह गोली चलाई किसने?"
इंस्पेक्टर खान मैं अपने मातहत को बुलाया और पूछा फॉरेंसिक वाले अपनी रिपोर्ट कब तक देंगे साहब 2 दिन बाद।
उधर हवेली में जोरावर सिंह की पहली पत्नी और जयंत की मां शशि कला भी अपनी व्हीलचेयर में आ चुकी थी। जोरावर सिंह और रजनी का मृत शरीर लेकर उनका भाई राजा और पुत्र जयंत थोड़ी ही देर में लाल कोठी पहुंचने वाले थे।
जोरावर सिंह के समर्थकों का हुजूम लाल कोठी के बाहर इकट्ठा था परंतु कोठी के परिसर में चुनिंदा व्यक्तियों को ही आने दिया गया था।
रिया राजा की पत्नी रश्मि के कमरे में मुरझाई जी बैठी हुई थी। वह पूरी तरह लावारिस हो गई थी। रश्मि और जयंत ही इस धरती पर ऐसे दो व्यक्ति थे जो उस से हमदर्दी रखते थे। लाल कोठी में आने के पश्चात उसके किशोर दोस्तों ने भी उससे मिलना बंद कर दिया था ।
सच पूछिए तो उन्होंने रिया को नहीं छोड़ा था अपितु रिया को मजबूरन उन्हें छोड़ना पड़ा था। सामाजिक कद और हैसियत का यह अंतर इतना बड़ा था जिसे न रिया पाट पाई और न हीं उसके दोस्त।
एंबुलेंस की सायं...सांय … करती आवाज लाल कोठी की खामोशी को चीरते हुए बेहद करीब आ चुकी थी रिया अपनी मां रजनी को देखने के लिए नीचे आने लगी रश्मि भी इसे सहारा देते हुए साथ साथ चल रही थी।
एक प्रभावशाली और दमदार व्यक्तित्व का व्यक्ति जमीन पर पड़ा हुआ था। एक महत्वाकांक्षी युवती निर्वस्त्र सफेद कपड़ों में लिपटी हुई उसके बगल में लेटी हुई अर्श से फर्श तक का सफर उन दोनों महत्वाकांक्षी लोगों ने चंद घंटों में देख लिया था।..
राजा के फोन की घंटी बजी होम मिनिस्टर द्वारिका राय का फोन था…
राजा भैया हमें माफ कीजिएगा इस केस का इंचार्ज अब बीएसपी भूरेलाल नहीं रहेंगे मुख्यमंत्री ने दखल देकर एसीपी राघवन को इस केस का इंचार्ज बना दिया है….
तभी दो पुलिस की गाड़ियां लाल कोठी के अंदर दाखिल जो राजधानी से आई प्रतीत होती एक हैंडसम युवक आंखों पर काला चश्मा लगाए जीप से उतर रहा था वह कोई 30 वर्ष का हीरो जैसे दिखने वाला व्यक्ति था…
उसके साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और वह सधे हुए कदमों से दोनों लाशों के पास आ गया।
शेष अगले भाग में