मनोहर ने अपनी आंखें बंद की और उसके होंठ हिलने लगे…..
आज से कोई 10 वर्ष पहले सीतापुर के प्राथमिक विद्यालय में 26 जनवरी का उत्सव मनाया जा रहा था। तहसीलदार साहब इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे परंतु एक दिन पहले ही उनके न आने की सूचना मिली थी। कार्यक्रम की मुख्य आयोजन कर्ता रजनी परेशान हो गई थी।
चपरासी रामू ने सलाह दी मैडम सलेमपुर के जोरावर सिंह अपनी ससुराल आए हुए हैं वह एक प्रतिष्ठित और मानिंद आदमी हैं क्यों ना आप उन्हें ही मुख्य अतिथि के रुप में बुला लें।
स्कूल के बाकी स्टाफ ने भी इस बात का समर्थन किया और रजनी तैयार हो गई। कुछ ही देर बाद मैं और रजनी स्कूल की जीप में बैठकर जोरावर सिंह की ससुराल के लिए निकल पड़े थे।
विद्यालय के प्रिंसिपल और रजनी के पति शशिकांत जी उस दौरान बीमार रहते थे वह कभी स्कूल आते और कभी नहीं। उन्हें कैंसर की बीमारी थी स्कूल का सारा कार्यभार रजनी ही संभालती थी आखिर वह वहां के सभी टीचरों से ज्यादा पढ़ी लिखी थी और शशिकांत जी की पत्नी थी किसी को भी उस के सानिध्य में काम करने में कोई आपत्ति न थी।
शाम 6:00 का वक्त था जोरावर सिंह हवेली के लॉन में टहल रहे थे तथा अपने घोड़े की पीठ सहला रहे थे मैं और रजनी धीरे-धीरे उनके करीब पहुंच गए। साथ आए व्यक्ति ने जोरावर सिंह को हमारा परिचय दिया और हमारे हाथ उनके अभिवादन में स्वतःही जुड़ गए। जोरावर सिंह उस समय लगभग 35 वर्ष की उम्र में एक बेहद खूबसूरत और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा परंतु रजनी को देखते ही उनकी आंखें उस पर ठहर गई रजनी बेहद सुंदर और आकर्षक लग रही थी आसमानी रंग की साड़ी में उसकी सुंदरता खुल कर बाहर आ रही थी रजनी का गोरा बदन और उसके शरीर के उभार जोरावर सिंह को आकर्षित कर रहे थे रजनी ने हाथ जोड़कर कहा
"हम सीतापुर प्राथमिक विद्यालय से आए हैं कल हमारे स्कूल में गणतंत्र दिवस का उत्सव है यदि आप वहां आकर झंडा फहराएंगे तो हमें और हमारे विद्यार्थियों को प्रेरणा मिलेगी"
जोरावर सिंह मंत्रमुग्ध होकर रजनी को देखे जा रहे थे शायद उन्होंने अपने जीवन में इतनी सुंदर महिला नहीं देखी थी उनकी आंखें रजनी पर टिक गई थी मैंने उनकी तंद्रा थोड़ी और एक बार फिर कहा
"आपके आने से हमारे स्कूल का मान बढ़ेगा"
जोरावर सिंह ने अपने मातहत को आदेश दिया इन्हें बैठाइए और चाय पान का प्रबंध कीजिए मैं 5 मिनट में आता हूं। उन्होंने लान के दूसरी तरफ लगी हुई कुर्सियों की ओर इशारा किया मैं और रजनी उस व्यक्ति के साथ आगे बढ़ गए रजनी अब भी पलट पलट कर उन्हें देख रही थी। उनकी हथेली घोड़े को सहला रही थी परंतु आंखें रजनी पर ही टिकी थीं।
कुछ देर बाद जोरावर सिंह आ गए और उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी चाय के दौरान ढेर सारी बातें की। कुछ ही देर में ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे उन दोनों में दोस्ती हो गई हो।
अगले दिन जोरावर सिंह स्कूल आए और झंडारोहण का कार्यक्रम विधिवत संपन्न किया उनकी गरिमामय उपस्थिति से स्कूल के सभी बच्चे और स्टाफ बेहद प्रसन्न था। उन्होंने स्कूल का मुआयना किया और लड़कियों के टॉयलेट को देखकर बेहद दुखी हो गए उन्होंने स्कूल के लिए ₹100000 का चेक काटा और रजनी की तरफ देख कर बोला बच्चियां देश का भविष्य है उनके लिए समुचित प्रबंध किए जाने चाहिए रजनी ने वह राशि सहर्ष स्वीकार कर ली।
सामान्य औपचारिकताओं के पश्चात जोरावर सिंह स्कूल के प्रिंसिपल और रजनी के प्रति शशिकांत जी से मिलने उनके घर भी गए। उनका उदार व्यक्तित्व सभी को पसंद आ रहा था और रजनी को भी कुछ ही दिनों में रजनी और उनका मिलना जुलना शुरू हो गया।
रजनी का कद और भी बढ़ गया वह जोरावर सिंह के सानिध्य में आकर और प्रभावशाली होती गई। जैसे-जैसे व प्रगति कर दी गई मैं उससे दूर होता गया हमारे बीच फासला बढ़ता गया परंतु मैं उसके प्रति वफादार रहा मैंने हर संभव उसकी मदद की अब रजनी और मेरे बीच अंतरंग संबंध न रहे। मुझे नहीं पता कि उसके और जोरावर सिंह के बीच में ऐसे संबंध बन पाए थे या नहीं परंतु उनमें घनिष्ठता बढ़ती जा रही थी।
जोरावर सिंह की पत्नी शशि कला एक प्रभावशाली और खूबसूरत महिला थी। जोरावर सिंह और उनकी पत्नी सार्वजनिक रूप से आदर्श पति पत्नी की तरह दिखाई पड़ते ।
गांव वाले जोरावर सिंह और रजनी के बीच संबंधों को गलत भाव से नहीं देखते थे। यदि उनके मन में आता भी तो वह अपना यह भाव छुपा ले जाते जोरावर सिंह के खौफ के आगे इस बात को बोलना तो दूर सोचने तक की इजाजत नहीं थी।
यह मुलाकात कई वर्षों तक इसी प्रकार चलती रही इसी बीच रजनी के पति शशिकांत जी का देहांत हो गया।
शशिकांत जी के देहांत के पश्चात रजनी और जोरावर सिंह के बीच नजदीकियां और भी बढ़ती गई ।यही वह दौर था जब जोरावर सिंह और उनकी पत्नी के बीच संबंध धीरे धीरे खराब होते गए गांव वालों को भी इसकी भनक लगनी शुरू हो गई थी परंतु उन्होंने इस बात को अपने मन में ही दबाए रखा परंतु सरयू सिंह और उनके आदमियों ने जोरावर सिंह के चरित्र पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया।
अंततः जोरावर सिंह की पत्नी शशिकला उनसे अलग रहने लगी और रजनी ने न सिर्फ जोरावर सिंह के दिल में जगह बनाई अपितु वह लाल कोठी में भी उनकी पत्नी के रूप में प्रवेश कर गई अब तक उसकी पुत्री रिया भी बड़ी हो गई थी वह अपनी मां के इस संबंध से खुश नहीं रहती थी परंतु उसे भी मजबूरी बस लाल कोठी जाना पड़ा था।
एसीपी राघवन के पास अभी एकमात्र व्यक्ति मनोहर ही था जिससे वह इस केस से संबंधित कुछ जानकारियां इकट्ठा कर पा रहा था परंतु उसकी बातों से वह कुछ भी निष्कर्ष लगा पाने में असमर्थ था।
तभी एसीपी राघवन का फोन बज उठा।
"सर एक जरूरी बात बतानी थी" मूर्ति की अदब भरी आवाज सुनाई पड़ी…
"हां बोलिये"
मूर्ति ने रजनी के मोबाइल में देखी गई उस वीडियो क्लिप बारे में राघवन को सब कुछ बता दिया राघवन का दिमाग घूम गया उसे इस बात का यकीन ही नहीं हो रहा था कि जोरावर जैसा शानदार और दमदार व्यक्तित्व का धनी आदमी इस तरह की काम पिपासु गतिविधियों में लिप्त होगा।
ठीक है मैं आता हूं.
एसीपी राघवन तेजी से वापस अपने ऑफिस की तरफ बढ़ रहा था उसके मन में कई तरह के विचार आ रहे थे क्या जोरावर सिंह का कत्ल उसके इन्ही कामुक कार्यों की वजह से हुआ था? क्या गले पर लगा खंजर का निशान किसी युवती या लड़की की करतूत हो सकती थी ? परंतु जोरावर सिंह का खून बंदूक की गोली से हुआ था। एसीपी राघवन की उधेड़बुन कायम थी।
उधर नर्तकियों की टोली सलेमपुर गांव से वापस लौट कर अपने गांव भीमापुर आ चुकी थी। 15 लड़कियों मे से एक लड़की कम थी। जिसे लाल कोठी में छोड़ दिया गया था।
नर्तकीयों की टोली का प्रबंधक भूरा एक बेहद खूंखार व्यक्ति था वह बड़े-बड़े लोगों के संपर्क में रहता और उनके निजी आयोजनों में इन नर्तकीओ की सेवाएं प्रदान करता।
आवश्यकता पड़ने पर भूरा जवान लड़कियों को बहला-फुसलाकर उन्हें रसूखदार लोगों की कामुक मांगों को पूरा करने के लिए भी राजी कर लेता और इसके एवज में उन्हें ढेर सारे पैसे देता।
बीती रात खाना खाते समय रेडियो पर जोरावर सिंह की मृत्यु का समाचार उसे प्राप्त हो चुका था वह अपने द्वारा पहुंचाई गई उस लड़की सोनी के बारे में सोच कर चिंतित था कहीं जोरावर सिंह की हत्या में उसका नाम न आ जाए। वह उस कोठी में अकेले जोरावर सिंह को ही जानता था अब उसके पास सोनी का हाल-चाल लेने का कोई स्रोत नहीं बचा था।
भूरा की बेचैनी बढ़ रही थी.। क्या वह वापस सलेमपुर जाकर सोनी और उसकी बहन मोनी को वापस ले आए? परंतु वहां जाकर वह किससे बात करेगा सोनी और मोनी कैसी होंगी? वह उन से कैसे संपर्क कर पाएगा? वह इसी उधेड़बुन में खोया हुआ था।
"मोनी को कब पहुंचा रहे हो"
"सोनी और मोनी दोनों एक साथ ही वापस आएंगे तब तक इंतजार करो. पैसे मिल गए हैं ना ? बार-बार फोन करने की जरूरत नहीं है" भूरा ने कड़कती आवाज में उत्तर दिया
सोनी और मोनी का मामा एक नशेबाज व्यक्ति था जिसने सोनी और मोनी को पाल पोस कर बड़ा तो किया था परंतु अब वह उन्हें इन गलत कार्यों की तरफ उकसा कर उन्हें अपने धनोपार्जन का साधन बना चुका था।
उधर लाल कोठी में रिया अपने कमरे में बेहद उदास बैठी हुई थी और अपने भाग्य को कोस रही थी उसके जीवन में अंधेरा छाया हुआ था बाप का साया पहले ही उसके सर से उठ चुका था और अब उसकी मां भी उसका साथ छोड़ कर जा चुकी वह बिस्तर पर बैठी हुई सुबक रही थी तभी जयंत कमरे में दाखिल हुआ
रिया ने उसकी तरफ देखा और बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई रिया बेहद खूबसूरत किशोरी थी जो युवावस्था की दहलीज पर खड़ी थी। तभी जयंत उसके पास आया और रिया उससे लिपट गई।
जयंत के सीने से अपने गाल सटाए हुए रिया सुबक रही थी और जयंत उसके रेशमी बालों पर अपनी उंगलियां फिर आ रहा था वह बार-बार उसे तसल्ली देता और अपने होठों से उसके माथे पर चुंबन ले रहा था।
तभी कमरे में रश्मि ने प्रवेश किया। हरिया और जयंत एक दूसरे से हड़बड़ा कर अलग हुए। रश्मि को भी यह थोड़ा अटपटा लगा परंतु उसने उसे नजरअंदाज कर कहा
"जयंत आपको आपके चाचा जी बुला रहे हैं"
"जी चाची"
जयंत राजा के कमरे की तरफ बढ़ चला. रश्मि रिया के पास आ चुकी थी और रिया की कोमल हथेलियों को अपनी हथेलियों में लेकर सहला रही थी और उसे इस दुख की घड़ी में सहारा देने की कोशिश कर रही थी।
राजा के कमरे में…
"हां चाचा, आपने मुझे बुलाया"
जयंत अब जो होना था हो गया परंतु हमें अपने परिवार का ध्यान रखते हुए अपने पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए कुछ करना होगा तुम अपनी पढ़ाई छोड़ कर उनका कार्यभार संभालो मैं यही चाहता हूं।
"नहीं चाचा आप ही संभालिए मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आपका साथ दूंगा"
"पर चाचा, पिताजी का हत्यारा बचना नहीं चाहिए वह किसी भी हाल में पकड़ा जाना चाहिए आप अपनी पूरी ताकत लगा दीजिए जब तक वह हत्यारा पकड़ा नहीं जाता मैं चैन से नहीं रह पाऊंगा"
उधर एसीपी राघवन अपने ऑफिस पहुंच चुका था। मूर्ति जैसे उसका ही इंतजार कर रहा था उसके कमरे में आते ही मूर्ति ने वह मोबाइल क्लिप राघवन को दिखा दी क्लिप के शुरुआती अंश देखकर ही उसे जोरावर सिंह का चरित्र समझने में देर न लगी।
इस वीडियो क्लिप ने राघवन के मन में केस को लेकर एक नई विचारधारा को जन्म दे दिया उसने मूर्ति को कुछ जरूरी दिशा निर्देश दिए और अपने होटल की तरफ चल पड़ा वह आज बेहद थका हुआ महसूस कर रहा था।
अगली दोपहर एसीपी राघवन पुलिस फोर्स लेकर लाल कोठी पहुंच चुका था …
गाड़ियों की सांय सांय की आवाजें लाल कोठी में गूंज रही थी राजा और जयंत लाल कोठी में ही थे। इस गहमा गहमी को महसूस करना दोनों नीचे आ गए और लाल कोठी का मुख्य द्वार खुलते ही उन्हें एसीपी राघवन के दर्शन हो गए..
मूर्ति ने पूरे तैश में कहा…
"हमे लाल कोठी की तलाशी लेनी है…"
"बाप का माल समझा है क्या? चले आए मुंह उठाकर 3 दिन हो गया अभी तक कातिल को तो पकड़ नहीं पाए चले आए तलाशी लेने"
राजा की बातों पर निश्चय ही पिछले दिन एसीपी राजवन द्वारा किए गए व्यवहार का असर था आज वह भी पूरे तैश में था अब से कुछ देर पहले ही जयंत ने उसे जोरावर सिंह के व्यवसाय का उत्तराधिकारी मान लिया था जिसने राजा को एक नई शक्ति दी थी.
एसीपी राघवन राजा के इस आत्मविश्वास से थोड़ा प्रभावित अवश्य हुआ था परंतु उसने अपनी जेब से कागज निकाला और राजा को दिखाते हुए बोला.
"हमारे पास सर्च वारंट है कृपया हमें अपना काम करने दीजिए"
राजा को एहसास हो चुका था एसीपी राघवन को रोक पाना असंभव था कोर्ट का आदेश उसके हाथ में एक ब्रह्मास्त्र की तरह प्रतीत हो रहा था उसने बात को तूल नहीं दिया और दरवाजे पर से हटकर एसीपी राघवन को अंदर आने का रास्ता दीजिए एसीपी राघवन मूर्ति और अपने 8- 10 अधिकारियों के साथ लाल कोठी में प्रवेश कर चुका था चारों तरफ पुलिस के जूतों की टक टक की आवाज आ रही थी रश्मि और रिया दोनों हॉल में आ चुके थे.
जोरावर सिंह के कमरे की तलाशी शुरू हो चुकी थी..
शेष अगले भाग मेँ..