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Thriller एक सफेदपोश की....मौत!

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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अभी तक इस कहानी में काफी मोड़ आये जो कहानी को दिलचस्प बनाए हुए है... एक अच्छे राइटर के गुण, लक्षण यह की कहानी की जरिए, कहानी के किरदारों के जरिए कहानी के नाम को सार्थक कर दे.... जिसमे आप पुरे तरीके से कामयाब रहे.....

सच में बढ़ते अपडेट के साथ साथ कहानी और भी ज़्यादा इंटरेस्टिंग होती जा रहीं है....
हर एक पहलु को आपने ध्यान देते हुए कहानी को आगे बढा रहे है....
साजिशें या षड्यंत्रों के साथ साथ थ्रिल्ल और सस्पेंस की भी अनोखी संगम है कहानी में... कुछ चीजो से शायद धीरे धीरे राज़ का पर्दा हटेंगे.... और कुछ किरदारों की असली रूप भी सामने रहे है.... तो कई नए किरदार भी देखने को मिल रही है..... जो अपनी भूमिका सटीक रूप से निभा रहे है कहानी की हर एक पहलु में.....

ये भी एक सच है की आपकी इस कहानी में हर एक किरदार की महत्त्व पूर्ण है...... इनमें से एक किरदार भी हटा दिया जाये तो कहानी अधूरी है.....
हम हमेशा हीरो हीरोइन पे ही ज़्यादा ध्यान केन्द्रित करते है...... लेकिन यह याद रखना चाहिए की बाकी किरदारों बिन मूल किरदार कुछ भी नहीं... और आप कहानी में सभी किरदारों के साथ एक जस्टिफाई करते है... इसलिए आपकी यह कहानी मेरी फेवरिट्स कहानियो में से एक हो गयी है....
ऐसे ही लिखते रहिए और हमारी मनोरंजन करते रहिए :bow: .
 

Lovely Anand

Love is life
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अपडेट 8

धान की लहराती फसलों के बीच ट्यूबवेल की कोठरी में रजिया और रघु एक दूसरे की बाहों में लिपटे हुए एक दूसरे को चूम रहे थे।

"तुम्हें इतना नाटक करने की क्या जरूरत थी?" रजिया ने अपनी आंखें तरेरते हुए कहा

"मेरी जान आज से अब तुम मेरे साथ ही रहोगी"

"और लाल कोठी का काम कौन करेगा?"

"वहां नई भर्ती हो जाएगी पर अब तुम्हें वहां नहीं जाना है"

"राजा भैया को जानते हो ना यदि उन्हें पता चल गया तुम्हारी खैर नहीं"

"मेरी जान, चिंता मत कर तेरा रघु कमजोर नहीं है"

" तो तुम राजा भैया से बगावत करोगे?"

रघु ने रजिया को फिर कसकर बाहों में भर लिया और उसके होंठ रजिया से सटते चले गए।

रजिया अभी भी इस बात को सोच कर परेशान थी की रघु ने उसे इस तरह से क्यों अगवा किया वह दोनों आने वाले कुछ दिनों में विवाह करने ही वाले थे।

इस कठिन समय पर जब जोरावर सिंह की मृत्यु हुई थी रघु का यह उतावलापन उसे समझ नहीं आ रहा था। जब भी रघु से प्रश्न पूछती रघु के होंठ उसके होंठों सट जाते और जवाब उनकी सांसों में गुम हो जाता।

उधर लाल कोठी में रजिया को ढूंढने के लिए जरूरी दिशा निर्देश देने के पश्चात राघवन ने तलाशी का कार्य फिर से शुरू कर दिया।

एसीपी राघवन जोरावर सिंह जी की खिड़की पर पड़े रस्सी के निशान को लेकर उत्सुक था पर लाल कोठी का हर व्यक्ति उस रस्सी के निशान के बारे में अपनी अनभिज्ञता जाहिर कर रहा था।

राघवन परेशान था। लाल कोठी की चारदीवारी इतनी ऊंची थी कि किसी व्यक्ति का मुख्य द्वार के अलावा बाहर जाना संभव न था और मुख्य द्वार से जाने वाला व्यक्ति एकमात्र मनोहर ही था जो पुलिस कस्टडी में था।

जोरावर सिंह के कमरे की तलाशी के पश्चात एसीपी राघवन और उसकी टीम ने लाल कोठी के सभी कमरों को छान मारा। लाल कोठी ने आज से पहले यह दिन कभी नहीं देखा था 30 - 40 पुलिस वाले छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर हर कमरे को लगभग रौंद रहे थे।

एसीपी राघवन का दुर्भाग्य ही था की उसके हाथ कोई पुख्ता सबूत नहीं लग रहा था तभी रिया के कमरे की तलाशी ले रहा एक पुलिस वाला भागता हुआ राघवन के पास आया और बोला…

"सर यह दस्ताने रिया के कमरे की अलमारी के ऊपर से मिले हैं इनमे बारूद के कण भी मिले हैं"

एसीपी राघवन ने उसका निरीक्षण किया और तुरंत ही रिया के कमरे की तरफ बढ़ चला लकड़ी की वह अलमारी जिस पर से वह दस्ताना प्राप्त हुआ था वह लगभग 8 फीट ऊंची थी।

अलमारी के दरवाजे पर सेंटर लॉक लगा हुआ था ।

एसीपी राघवन ने रिया को बुलवाया…

राघवन की इस अप्रत्याशित बुलावे ने रिया के चेहरे पर भय की लकीरे कायम कर दी रश्मि भी आश्चर्य में थी।

रिया अपनी चाची रश्मि के साथ एसीपी राघवन के पास पहुंची...

"यह दस्ताना आपका है?

"जी मेरा ही है?" रिया एक पल के लिए सहम गई।

"क्या आप बंदूक चलाना जानती हैं"

रिया को बुलाए जाने की खबर सुनकर राजा और जयंत भी ऊपर आ गए थे राजा एक बार फिर गुस्से में था…

"मिस्टर राघवन आप अपनी हद पार कर रहे हैं। आप यहां तलाशी लेने आए थे अपना कार्य पूरा कीजिए परिवार के सदस्यों को परेशान मत कीजिए।रिया जैसी कोमल बच्ची क्या बंदूक चलाएगी?"

तभी रिया ने कहा..

"नहीं चाचा मैं बंदूक चला लेती हूं जयंत ने सिखाया था।"

पापा के चुनाव जीतने की खुशी में मैंने और जयंत ने 1-1 फायर भी किया था.

जयंत रिया की तरफ देख रहा था।

"किसकी रिवाल्वर से.. ?" एसीपी राघवन ने पूछा।

"पापा की और किसकी…"

रिया अब विश्वास के साथ एसीपी राघवन के प्रश्नों का उत्तर दे रही थी।

"इस अलमारी की चाबी कहां है?"

"पापा के चाभियों के गुच्छे में"

राघवन को जोरावर के कमरे से मिले चाभी के गुच्छे की याद आई उसने वह गुच्छा मंगाया और कुछ देर के प्रयासों में ही वह अलमारी खुल गई।

उस अलमारी में कई प्रकार की बंदूके रखी हुई थी। तथा ढेरों कारतूस रखे हुए थे। अलमारी का आधा भाग पैसों से भरा हुआ था।

एसीपी राघवन ने राजा से पूछा

आपके परिवार के पास कितने बंदूकों का लाइसेंस है..

"तीन। मेरी, जयंत की और जोरावर भैया की"

एसीपी राघवन ने बाकी सारी बंदूकें जप्त करने का आदेश दिया और रिया के कमरे से बाहर आ गया।

एसीपी राघवन असमंजस में था वह लाल कोठी में खुद को थोड़ा असहज भी महसूस कर रहा था हर बात पर उसे राजा के प्रतिकार और क्रोध का सामना करना पड़ रहा था बिना किसी पुख्ता सबूत और सूत्र के उसकी तफ्तीश कमजोर पड़ रही थी। लाल कोठी में अवैध हथियारों और ढेर सारे पैसे, जोरावर के चरित्र को दर्शाती कामुक सामग्रियों के अलावा उसके हाथ कुछ विशेष नहीं लगा था। अलमारी के ऊपर से मिला दस्ताना भी उसने अपने साथ रख लिया था परंतु रिया द्वारा दिये गये उत्तर ने उस दस्ताने उपयोगिता लगभग खत्म कर दी थी।

आकाश में शाम की लालिमा घुल रही थी चिड़ियों की चहचहाहट माहौल को खुशनुमा की हुई थी परंतु लाल कोठी पर तो ग्रहण लगा हुआ था। एसीपी राघवन की टीम भी अब तलाशी लेकर थक चुकी थी उनके हाथ कुछ विशेष नहीं लगा था।

एसीपी राघवन ने अपना लाल कोठी का तलाशी अभियान बंद किया परंतु उसने 4 पुलिस वालों को कोठी के पीछे वाले हिस्से और 4 पुलिस वालों को सामने वाले बगीचे में तैनात कर दिया। गेट पर पहले ही दो पुलिसवाले तैनात थे।

एसीपी राघवन की टीम के जाने के पश्चात राजा और घर के बाकी सदस्यों ने सांस ली परंतु उनका कार्य अभी बाकी था लाल कोठी का ऐश्वर्य और वैभव चूर चूर हो चुका था हर कमरे का सामान फैला हुआ था। घर की काम करने वाली रजिया अभी भी गायब थी।

सभी ने अपने अपने कमरों को वापस व्यवस्थित करना शुरू कर दिया घर के बाकी नौकरों से सजावट का कार्य कराना लगभग असंभव था। जयंत रिया का साथ दे रहा था। पहले उन्होंने शशि कला का कमरा साफ किया और उन्हें बिस्तर पर सुला कर अपना कमरा साफ करने आ गए कमरे की सफाई पूरी होते होते रिया जयंत से लिपट चुकी थी। जयंत उसके पीठ पर थपकीया देते हुए उसे दिलासा दे रहा था।

"हमारे परिवार के लिए यह बुरे दिन हैं जल्द ही बीत जाएंगे"

जयंत ही रिया की एकमात्र उम्मीद था। उसके सिवा इस दुनिया में रिया का कोई नहीं था…

उधर भूरा अब परेशान हो चुका था सोनी का मामा भीमा उसे बार-बार फोन करके सोनी को वापस लाने की जिद कर रहा था उसकी बातों में आ रही तल्खी इस बात का प्रतीक थी कि यदि उसने और देर की तो सोनी का मामा निश्चय ही पुलिस के पास चला जाएगा और बिना बात का बखेड़ा पैदा हो जाएगा भूरा ने आनन-फानन में ही सलेमपुर जाने की तैयारी की उसने सोनी के मामा को भी साथ ले लिया वह दोनों अधेड़ अपने मन में अलग-अलग चिंताये लिए लिए ट्रेन पर बैठ चुके थे।

ट्रेन के स्टेशन छोड़ते हैं स्टेशन पर की चहल-पहल और रोशनी गायब होती गई कुछ ही देर में ट्रेन अंधेरे को चीरती हुई सरपट दौड़ने लगी भूरा ने पहले से ही शराब पी रखी थी वह तुरंत ही खिड़की पर अपना सर टिका कर सो गया परंतु सोनी का मामा को शराब पीने के बावजूद नींद नहीं आ रही थी उसका मन आशंकाओं से घिरा हुआ था वह अपने पुराने दिनों को याद करने लगा जब उसकी पत्नी को लखनऊ स्टेशन के बाहर सोनी और मोनी मंदिर की सीढ़ियों पर रोती बिलखती हुई दिखाई पड़ीं थीं।

उस रात झमाझम बारिश हो रही थी अंधेरा भी घिर आया था। मंदिर पर भीड़भाड़ कम हो रही थी। मंदिर के बाहर प्रवेश द्वार के नीचे वह दोनों लड़कियां भूखी प्यासी बैठी थी। उस समय मानवीय संवेदना ने उसकी पत्नी को उन दोनों बच्चियों को अपने घर ले जाने पर मजबूर कर दिया। उन बच्चियों से ही उसे पता चला कि उनकी मां उसे उस मंदिर पर बैठा कर किसी आवश्यक कार्य बस गई थी परंतु वह वापस नहीं आई।

उसकी पत्नी मंदिर के पुजारी को अपना पता दे कर उन दोनों बच्चियों को अपने घर ले आयी। उस समय भीमा ने अपनी पत्नी की जिद के कारण उन दोनों बच्चियों को पनाह दी परंतु उनकी मां का कोई अता पता ना चला।

वह दोनों बच्चियां अपने झोले में कुछ कपड़े तथा अपनी मां के साथ खिंचाई भी एक तस्वीर रखे हुए थीं।

समय का पहिया घूमता गया और धीरे-धीरे दोनों बच्चियां बड़ी होती गई इसी बीच भीमा की पत्नी का देहांत हो गया भीमा उन दो बड़ी हो रही बच्चियों का लालन-पालन करने में खुद को असमर्थ पा रहा था अपने व्यवसाय और पत्नी को खोने के बाद वह शराब की शरण में चला गया दिन भर मेहनत मजदूरी करता और शाम को सारे पैसे शराब में उड़ा देता सोनी और मोनी किसी तरह से खाना पीना बनाती और उसे भी देती परंतु धीरे-धीरे भीमा उन बच्चियों से दूर होता गया।

सोनी और मोनी बेहद खूबसूरत थी और यौवन की दहलीज लॉघ चुकी थी 1 दिन भीमा ने मोनी को किसी लड़के के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया तथा घर आने के बाद उसकी पिटाई कर दी मोनी ने भी प्रतिकार किया और बात बढ़ गई। एक छत के नीचे रहने के बावजूद भीमा सोनी और मोनी से दूर होता गया।

मोनी के व्यभिचार ने भीमा के मन में संवेदना खत्म कर दी थी इसी दौरान उसकी मुलाकात भूरा से हुई जिसने सोनी और मोनी के यौवन को बखूबी पहचान लिया।

अंततः भीमा ने मोनी को भूरा के साथ भेज दिया जो लगभग एक महीना पूर्व लाल कोठी गई थी।

मोनी के जाने के बाद सोनी अकेली पड़ गई थी वह बार-बार भीमा से मोनी को वापस लाने की जिद करती परंतु उसे कोई माकूल उत्तर ना मिलता। उन दिनों लड़कियों का गायब होना आम हो रहा था पड़ोस में रहने वाली चाची सोनी को समझाती थी तथा उसका हौसला बढ़ाएं रखती थी।

मोनी के वापस ना आने के कारण सोनी भीमा पर लगातार दबाव बनाए हुए थी वह बार-बार बीमा से जिद करती की मोनी को वापस लाइए परंतु यह भीमा के बस में ना था। सोनी के बार बार तंग करने के कारण भीमा ने सोनी को भी भूरा के हवाले कर दिया जो उसे नर्तकीयों की टोली के साथ लेकर लाल कोठी गया था।

जब सोनी जा रही थी तो चाची ने उसने एक जहर से बुझा हुआ छोटा सा खंजर दिया और कहा

"बेटी ये खंजर अपने पास रख ले कभी तेरी अस्मिता पर आंच आए तो इसका प्रयोग करना. मुझे नहीं पता कि मोनी कहां गई है और तू कहां जा रही है पर मुझे भीमा पर विश्वास नहीं है तू अपना ध्यान रखना"

सोनी ने वह खंजर अपने लहंगे में बांधा और भूरा के साथ चल पड़ी थी।

सोनी और मोनी का चेहरा याद कर भीमा की आंखों में आंसू आ गए उसे अपने निर्णय पर अफसोस हो रहा था परंतु आज सलेमपुर जाते समय वह ऊपर वाले से प्रार्थना कर रहा था कि सोनी और मोनी उसे सुरक्षित मिल जायें।

रात गहरा रही थी परंतु ट्रेन निर्भीक होकर परियों पर दौड़ रही थी भीमा को भी नींद आने लगी।

उधर लाल कोठी के बगीचे में हीरा और कालू शराब पी रहे थे पठान भी उनके साथ बैठा था परंतु वह शराब नहीं पीता था।

"पठान भैया , राघवन साला बहुत दुष्ट है राजा भैया के सामने कैसे जबान लड़ा रहा था" हीरा ने गुस्से से कहा

"पर पठान भैया जोरावर भैया को किसने मारा होगा कहीं घर का ही तो कोई आदमी नहीं है?" कालू बोला

"आदमी या औरत" हीरा अपनी आंखें बड़ी करते हुए कोतुहल से पूछा

"उस दिन मनोहर के अलावा और तो कोई हवेली से बाहर नहीं गया था…" पठान ने गंभीरता से पूछा

"भैया उस दिन तो बहुत सारे लोग थे टेंट वाले नाचने वाले और न जाने कितने कार्यकर्ता। पर कोठी के मुख्य द्वार पर तो आप भी थे आप ही बता सकते हैं कि अंदर कोई गया या नहीं" कालू ने पठान का चेहरा पढ़ते हुए बोला

पठान अपने मन में उस दिन के घटनाक्रम को याद कर रहा था। जोरावर सिंह के

हवेली में प्रवेश कर जाने के बाद वह मुख्य द्वार पर ही खड़ा था। सिर्फ कुछ समय के लिए वह मुख्य द्वार से हटा था जब वह सोनी को जोरावर के कमरे तक पहुंचाने गया था।

पठान के चेहरे पर तनाव देखकर हीरा ने कहा

"अबे कालू चुपचाप दारू पी पठान भैया को भी परेशान कर रहा है और मुझे भी दिनभर की भागा दौड़ी के बाद चार पल सुकून के मिले हैं शांति से पी लेने दे"

" साला हम लोगों का सारा जीवन लाल कोठी की सेवा करते बीत गया जोरावर भैया के जाने के बाद क्या राजा भैया भी हमें वैसे ही अपनाएंगे? हमारा तो कोई परिवार भी नहीं है है।" कालू ने बात बदलते हुए कहा।

"परिवार से याद आया पठान भैया सलमा का कुछ पता चला आपने कभी उसकी खोज खबर नहीं ली?" हीरा ने पूरी संवेदना के साथ पठान से पूछा

पठान रुवांस सा हो गया। वह सलमा को याद करने लगा जो कई वर्षों पहले उसकी एकमात्र बच्ची को लेकर अपने मामू जान के पास चली गई थी पठान और उसकी पत्नी के झगड़े में भी लाल कोठी का ही योगदान था सलमा गर्भवती थी और वह पठान का साथ चाहती थी परंतु पठान जोरावर की स्वामी भक्ति में लीन था वह सलमा को पूरा समय नहीं दे पाता इसी अनबन में सलमा अपनी बच्ची को लेकर चली गई।

पठान कभी-कभी सलमा से मिलने उसके मामू जान के घर जाता परंतु सलमा घर आने को तैयार नहीं थी उसे पठान का लाल कोठी में चाकरी करना कतई पसंद नहीं था। उसने पठान के सामने यह शर्त रख दी थी कि जब तक वह लाल कोठी की नौकरी नहीं छोड़ेगा वह वापस नहीं आएगी। पठान सलमा से प्रेम करता था और अपने बच्चे से भी परंतु जोरावर के उस पर कई एहसान थे वह लाल कोठी छोड़ पाने की स्थिति में नहीं था। उसने सब कुछ वक्त के हवाले कर दिया था।

लाल कोठी के अंदर रजिया की मां अब शांत हो गई थी जाने राजा ने उसके कान में क्या कहा था उसके मन में रजिया को लेकर चल रही चिंता मिट गई वह खुशी खुशी अकेले ही रसोई का कार्य करने लगी।

उधर एसीपी राघवन के पास फॉरेंसिक जांच की रिपोर्ट पहुंच चुकी थी। अपने स्टडी में बैठे हुए उसने अपने सिगरेट जलाई और आंखें रिपोर्ट पर गड़ा दी वह बेहद ध्यान से रिपोर्ट देखने लगा उसके आश्चर्य की सीमा न रही ... उसने डीएसपी भूरेलाल को फोन लगाया….


शेष अगले भाग में।
 
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जबरदस्त अपडेट, ये रघु तो अलग ही रंग में लग रहा है
 

Naina

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is update ko padh yahi lage ki insaani jindagi ki jaise koi Kimat hi nahi reh gayi hai... un dono soni moni masoom bachhiyo ki jindagi dukh aur dard bhari rahi aur akhiri saans bhi li dard sehte huye, us jorawar ke hawas ka shikar hoke....
ghin aati hai aise logo pe.... aur wo bheema ab glani karke kya faida jab sath thi dono, tab to uske liye jaise dono nasur hi ban baithi thi... kayi logo ki lalach, galti aur hawas ke chalte dono ye duniya chhod chali gayi...
yaar kahani ka ye pehlu sach mein bahot tragic hai.....
Bas ek wo padosh wali chachi hi thi jisne fikar jatayi dono ki....
Kahi soni ne to waar nahi kya jorawar par... baad mein jahar ka asar hua ho... to goli kisne chalayi...
aur wo rassi ka nishan..?
rajiya bhi mili huyi raghu sang lekin I think wo is baat se Anjan hai ki jorawar ko kisne mara....
dastane aur bandhuk ye sab to mil gaye sabhi us almari se par waha bhi koi saboot na mila raghwan ko.....
waise bheema agar ab police mein report kare ki soni moni kothi aake gayab huyi hai to raghwan ko bahot madad mil jaye is case ke liye.... aur sath hi un logo ko saza dilane ke liye bhi jinke chalte kayi masoom jindagiya dum tod chuki hai us laal kothi mein.....
Btw ek baat to clear hai ki jorawar ka khoon ki wajah usike dwara kiye gaye julm atyachar hi hai... koi victim ne hi uska shikar kiya hai...
pathan bhale hi chahe apne pariwar ko chahta ho par khoon se sane hath uske bhi hai, wo bhi jorawar dwara kiye gaye paap ka saman bhagidaar hai...
rajni bhi alag nahi thi.... wo bhi sab dekhkar bhi Anjan banti thi ya phir ushe maja aaye ye sab dekhke...
Khair.... lage ki case ko alag rukh milne wale hai
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
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Kahani me sex to mujhe bhi pasand nahi hai bhai,
🤣🤣🤣🤣🤓🤓🤓🤓🤓

कितना झूठ बोलते हैं आप।
अभी अपनी गतिशील कहानी को ही ले लीजिए।
वैभव सिंह को ठरकी किसने बनाया।
उसको सेक्स की लत किसने लगवाई।
गांव की हर लड़की और औरत को वैभव के नीचे लिटा दिया और कह रहे हैं सेक्स पसन्द नहीं।

चटोरे हैं आप महोदय।😜😜😜😜😜
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
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एसीपी राघवन ने परिवार के सदस्यों को लाशों से दूर जाकर खड़े रहने के लिए कहा। राजा अभी भी राघवन के इर्द-गिर्द ही घूम रहा था उसने कहा…

"आपको अलग से बोलना पड़ेगा जाकर वहां खड़े रहिए."

राजा को राघवन का यह अंदाज पसंद नहीं आया उसके चेहरे पर क्रोध स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था वह अपने क्रोध को काबू में नहीं रख पाया और गुर्राते हुए बोला…

"ओए मिस्टर तमीज से बात कीजिए"

राघवन ने संजीदा भाव से अपने मातहत "अधिकारी को कहा इन्हें थाने ले चलो वहीं पर तमीज सीखी और सिखाई जाएगी"

कुछ अधिकारी और पुलिस वाले राजा की तरफ बढ़ने लगे। पठान एसीपी राघवन के सामने नतमस्तक हो गया उसने कहा

"सर माफ कर दीजिए"

वह राजा को लेकर वहां से दूर हट गया.

एसीपी राघवन और राजा की आंखें चार हुई परंतु नजर राजा की ही नीचे हुई हुई एसीपी राघवन एक कड़क अधिकारी की तरह अपनी गरिमा बनाए हुए था।

दोनों लाशों का मुआयना करने के बाद एसीपी राघवन ने तुरंत ही खरोच का वह निशान देख लिया जो जोरावर सिंह जी की गर्दन पर लगा था। उसे स्वयं इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि जब हत्यारे को जोरावर सिंह को गोली मारनी ही थी तो उस छोटे चाकू या खंजर से गर्दन पर वार करने की क्या जरूरत थी।

उसने स्पेक्टर खान से पूछा

"पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है?"

"हां सर आफिस में है"

"ओके"

दोनों लाशों को वापस सफेद चादर से ढक दिया गया. एसीपी राघवन एक बार फिर राजा के पास आया जो अपनी पत्नी रश्मि तथा रजनी की पुत्री रिया के ठीक बगल में खड़ा था। थोड़ी ही दूरी पर व्हीलचेयर में शशि कला और उसका पुत्र जयंत भी था।

उसने जयंत की तरफ देखते हुए पूछा

"आप मृतक के पुत्र हैं ना? उस रात आप कहां थे।"

जयंत को महसूस हुआ जैसे वह उससे पूछताछ कर रहा हो। जयंत वैसे तो एक हंसमुख युवा था परंतु वह जोरावर सिंह का खून था जिसने आज तक झुकना नहीं सीखा था उसने राघवन को पलट कर बढ़ी तल्खी से जवाब दिया..

"अपने घर पर"

"लाल कोठी में?"

"नहीं "

"सीतापुर में"

एसीपी राघवन ने जयंत के चेहरे पर एक अजब किस्म के भाव देख लिए उसे यह पूछताछ अच्छी नहीं लग रही थी। राघवन कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। उसने अपने मातहत अधिकारियों को निर्देश दिए और रश्मि की तरफ मुखातिब होकर बोला

"आप सब ने उस रात जो भी देखा, जो भी सुना उसकी सारी जानकारी इन्हें दे दे। ध्यान रहे आप जो बातें इन्हें बताएंगे उसमें आगे जाकर बदलाव संभव नही होगा। इसलिए आप लोगों को जो भी पता हो सच सच बता दीजिए।

यह बात ध्यान रहे कि यह कत्ल लाल कोठी में हुआ है और मृतक के रिवाल्वर से ही हुआ है। इसमें घर का भी कोई सदस्य शामिल हो सकता है। हां एक बात और, आप में से कोई बिना अनुमति के शहर छोड़कर नहीं जाएगा।

राजा के चेहरे पर भी गुस्सा था परंतु वह एसीपी राघवन से टकराना नहीं चाहता था वैसे भी आज लाल कोठी पर ग्रहण लगा हुआ था।

एसीपी राघवन अपनी टीम के साथ जोरावर सिंह के कमरे में आ गया और घटनास्थल को देखकर घटनाक्रम को समझने का प्रयास करने लगा। उसने कमरे का बारीकी से मुआयना किया और अपने मोबाइल से कई सारे फोटोग्राफ्स भी लिए।

कुछ देर बाद लाल कोठी से सारे पुलिस वाले वापस जा चुके थे सिर्फ गेट पर 4-6 पुलिसवाले तैनात थे जो बाहर से आने वाले और कोठी से बाहर जाने वालों पर नजर गड़ाए हुए थे.

जोरावर सिंह और रजनी के अंतिम संस्कार की तैयारियां होने लगीं।

रिया अपनी मां को एक बार फिर सुहागन के कपड़े में देखकर भावुक हो गई। रजनी सच में बेहद सुंदर थी परंतु आज उसके चमकदार चेहरे से रौनक गायब थी। जो शरीर अब से कुछ घंटों पहले तक एक रानी के शरीर की भांति चमक रहा था वह अब मिट्टी के ढेर की तरह आभाहीन जमीन पर पड़ा था। उस पर किए जा रहे श्रृंगार अब कोई मायने नहीं रखते थे फिर फिर भी सामाजिक विधि विधान से अंतिम संस्कार की तैयारियां हो रही थी।

रजनी ने अपनी मां के पैर छुए और पुष्प अर्पित किये तथा चुपचाप एक कोने में जाकर बैठ गई वह सुबक रही थी। जयंत उसके ठीक बगल में आकर बैठा और उसे सांत्वना देने का प्रयास कर रहा था। इन दोनों ने ही अपने अपने मां-बाप को खोया था यह अलग बात थी कि न तो जयंत को रजनी से कोई सरोकार था न हीं रिया को जोरावर सिंह से।

जोरावर सिंह के पार्थिव शरीर को देखने के लिए शहर से भी भीड़ उमड़ रही थी। पुलिस व्यवस्था एक बार फिर चाक चौबंद हो गई शाम के 4:00 बज चुके थे। पार्थिव शरीर को कंधे पर लिए जयंत, राजा और दो करीबी समर्थक श्मशान घाट के लिए निकल पड़े और उनके पीछे समर्थकों का बड़ा हुजूम चल पड़ा।

लाल कोठी लाली नदी के तट पर बनी थी इस नदी में पानी ज्यादा तो न था परंतु सलेमपुर के निवासियों के लिए वह गंगा नदी से कम न थी लाली नदी का जल न सिर्फ सिंचाई के काम आता अभी वह गरीब तबके के लोगों की प्यास भी बुझाता था।

उसी नदी के तट पर जोरावर सिंह का अंतिम संस्कार होना था। दोपहर में ही एक साफ सुथरी जगह जगह देख कर जोरावर सिंह के अंतिम संस्कार की तैयारी कर दी थी।

समर्थकों के हुजूम और झुके हुए गमगीन चेहरों के बीच चिता सजाई गई और जोरावर सिंह और उनकी पत्नी रजनी पंचतत्व में विलीन हो गए। जयंत के चेहरे पर अपने पिता के जाने का गहरा दुख दिखाई पड़ रहा था।

जोरावर सिंह और रजनी का अंत हो चुका था परंतु वह अपने पीछे कई रहस्य छोड़ गए थे जिन्हें सुलझाने का दायित्व एसीपी राघवन पर था। पठान, कालू और हीरा उस अनजान लड़की और न जाने कितनी हत्याओं में शामिल थे परंतु वह जोरावर सिंह के वफादार थे उन्होंने जोरावर सिंह के लिए न जाने कितनी हत्याएं की थी परंतु कभी उनका मुंह न खुला था और न हीं कभी किसी ने खुलवाने की कोशिश की थी। जोरावर सिंह की छत्रछाया में उन पर हाथ डालने की ताकत न पुलिस में थी न हीं विरोधियों में।

उधर एसीपी राघवन के लिए एसपी ऑफिस में विशेष कक्ष तैयार करा दिया गया था। मूर्ति जो राघवन का खास आदमी था वह जोरावर सिंह का मोबाइल अनलॉक करा कर एसीपी राघवन के कमरे में आ चुका था।

जोरावर सिंह का मोबाइल का मोबाइल खंगाला जाने लगा परंतु रात 10:00 बजे के बाद कोई कॉल नहीं आया हां, व्हाट्सएप और मैसेज पर बधाइयां देने का तांता लगा हुआ था।

जोरावर सिंह के मोबाइल में कुछ भी आपत्तिजनक ना मिला जिससे राघवन कोई सुराग ढूंढ पाता। फिर भी उसने मूर्ति से उन सभी व्यक्तियों के डिटेल निकालने को कहा जिन्होंने आज जोरावर सिंह को कॉल किया था। मूर्ति ने जोरावर का फोन अपने हाथों में ले लिया और रजनी का फोन राघवन के हाथों में दिया।

राघवन रजनी के फोन में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहा था उसने मूर्ति से कहा तुम ही चेक कर लो कुछ इंपॉर्टेंट हो तो बताना मैं जरा उस मनोहर से मिल कर आता हूं।

इधर लाल कोठी में मातम पसरा हुआ था उधर सीतापुर के पास रामपुर गांव में सरयू सिंह के यहां दोपहर में ही शराब का दौर चल रहा था। सरयू सिंह के चेहरे पर एक अजीब किस्म की खामोशी थी परंतु उनके साथी बिना किसी गम के शराब के जाम छलकाए जा रहे थे।

सरयू सिंह भी जमीदार परिवार से थे परंतु उनके पुरखों ने अपनी अय्याशी में अपनी ढेर सारी जमीन बेच दी थी और सरयू सिंह के खाते में अब ज्यादा कुछ नहीं बचा था परंतु फिर भी सलेमपुर जिले में वह दूसरे धनाढ्य व्यक्तियों में गिने जाते थे।

कई वर्षों पहले सरयू सिंह का परिवार जोरावर सिंह के परिवार से कहीं बढ़कर था परंतु समय ने सरयू सिंह का पलड़ा झुका दिया था और जोरावर सिंह सलेमपुर के बादशाह बन चुके थे। सरयू सिंह 50 वर्ष की आयु में आज भी अपना शारीरिक सौष्ठव बनाए हुए थे तथा देखने में एक पहलवान जैसे प्रतीत होते थे थे बड़ी-बड़ी मूछें और चेहरे पर ठाकुरों वाला रौब उन्हें विरासत में मिला था।

"सरयू भैया अब काहे उदास हैं दो-चार महीना में आप ही सलेमपुर के राजा होंगे" सरयू सिंह के साथ बैठे एक आदमी ने कहा।

सरयू सिंह मैं अपना मौन तोड़ा और बोला

"पता करो यह काम किसने किया है जो भी हुआ वह ठीक नहीं हुआ है। कलुआ आज दिन भर से दिखाई नहीं दिया उसको ढूंढ कर बोलो मुझसे मिले"

"वह तो कल शाम को सलेमपुर गया था हमको लगता है तब से ही नहीं लौटा है"

" साला कहीं वही तो नहीं मार दिया है पागल किस्म का आदमी है" साथ बैठे एक और व्यक्ति ने करना

" पगला जैसे से बात मत कर" सरयू सिंह ने उसे डांटा।

सरयू सिंह जोरावर सिंह के प्रतिद्वंद्वी थे उनका कद जोरावर सिंह की तुलना में छोटा था परंतु वह अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो जोरावर सिंह के साम्राज्य पर बराबर उंगलियां उठाते तथा अपना वजूद कायम रखते हुए उनके प्रतिरोध में अपना स्वर मुखर करते।

जोरावर सिंह से दुखी व्यक्ति स्वतः ही उनके साथ आ जाते। जोरावर ने उनके साथ कभी कोई बुरा नहीं किया था परंतु जोरावर के कद की अहमियत सरयू सिंह को पता थी।

सरयू सिंह स्वयं भी अपने से कमजोर लोगों पर अपना खौफ जमाने की कोशिश करते थे और काफी हद तक कामयाब भी होते थे परंतु जोरावर सिंह की बराबरी करना उनके बस में न था। उनका मातहत कलुआ पठान जैसा ही था परंतु वह सरयू सिंह की छाया न था। कभी-कभी वह उनको छोड़कर कुछ दिनों के लिए अपने रास रंग में रम जाया करता था।

राघवन का साथी मूर्ति रजनी का मोबाइल खंगाल रहा था उसकी आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी रजनी का मोबाइल पोर्न फिल्मों से भरा हुआ था। ज्यादातर फिल्म की नायिका कमसिन लड़कियां थी और पुरुष लगभग अधेड़ किस्म का। ऐसा प्रतीत होता था जैसे कुछ विशेष प्रकार की फिल्में ही उसने अपने मोबाइल में संजो कर रखी थीं।

तभी एक सिस्टम फोल्डर के अंदर एक ऐसी वीडियो क्लिप मिली जिसे देखकर मूर्ति खुशी से उछल पड़ा। उस क्लिप में जोरावर सिंह एक एक बेहद कम उम्र की लड़की के साथ संभोग रत थे। लड़की पूरी तरह रजामंद नहीं थी ऐसा लग रहा था जैसे किसी मजबूरी बस उसे जोरावर सिंह के पास आना पड़ा था। उसने तुरंत ही अपने मोबाइल से राघवन को फोन लगाया परंतु राघवन ने उसका फोन नहीं उठाया शायद वह कहीं व्यस्त था.

उस शाम रजनी में भी कई लोगों से फोन पर बात की पर मूर्ति ने एक कदम आगे बढ़ कर उनके भी डिटेल निकालने शुरू कर दीये।

रजनी और मनोहर के बीच s.m.s. पर हुई वार्तालाप भी रजनी के मोबाइल में कैद थी और आखरी मैसेज भी वहीं था जैसा मनोहर ने बताया था.

"Ok 1:00 o clock same place."

एसीपी राघवन मनोहर के पास आ चुका था…

मनोहर एक बार फिर खौफजदा था। उसने अपनी कहानी एक बार फिर राघवन को सुना दी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसे अब यह कहानी रट गई हो।

राघवन ने कहा

"यह बता जोरावर और रजनी की मुलाकात कैसे हुई"

मनोहर अपने मन में उस मुलाकात को याद कर रहा था।


शेष अगले भाग में।
बहुत ही जबरदस्त महोदय।
तो जोरावर सिंह का भाई राजा को पुलिस कार्रवाई से कुछ दिक्कत प्रतीत हो रही है जो फिलहाल होनी नही चाहिए। पुलिस ही इस मामले में जोरावर के परिवार की मदद कर सकती है कातिल को ढूंढने में। वैसे जोरावर का कत्ल का मसला काफी उलझा हुआ लग रहा है। एस पी राघवन के समझ में एक बात नहीं आ रही थी कि अगर कत्ल गोली मारकर ही करना था तो फिर चाकू के इस्तेमाल की जरूरत कईं पड़ गई।।
पुलिस का काम शक करना होता है इसी बिना पर बिना अनुमति शहर से बाहर जाने पर रोक लगा दी राघवन ने जोरावर के परिवार पर। पुलिस थाने में राघवन को जोरावर के मोबाइल पर कुछ नहीं मिला लेकिन रजनी के मोबाइल पर मूर्ति को बहुत पोर्न फिल्में मिली। जो रजनी देखती थी।। एक वीडियो ने मूर्ति को चौका दिया। जोरावर का सेक्स वीडियो था किसी कमसिन लड़की के साथ जो देखने से लग रहा था कि उसके साथ जबरदसती की जा रही है। इसका मतलब रजनी ने ये वीडियो बनाया था। मतलब ये की वो भी कॉकोल्ड थी क्या पुरुषों की तरह। जिसे अपने पति को किसी दूसरी महिला के साथ सेक्स करते देखकर मज़ा आता था।। एसपी राघवन मनोहर से पूछताछ करने के लिए जाता है।।
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
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304
मनोहर ने अपनी आंखें बंद की और उसके होंठ हिलने लगे…..
आज से कोई 10 वर्ष पहले सीतापुर के प्राथमिक विद्यालय में 26 जनवरी का उत्सव मनाया जा रहा था। तहसीलदार साहब इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे परंतु एक दिन पहले ही उनके न आने की सूचना मिली थी। कार्यक्रम की मुख्य आयोजन कर्ता रजनी परेशान हो गई थी।
चपरासी रामू ने सलाह दी मैडम सलेमपुर के जोरावर सिंह अपनी ससुराल आए हुए हैं वह एक प्रतिष्ठित और मानिंद आदमी हैं क्यों ना आप उन्हें ही मुख्य अतिथि के रुप में बुला लें।
स्कूल के बाकी स्टाफ ने भी इस बात का समर्थन किया और रजनी तैयार हो गई। कुछ ही देर बाद मैं और रजनी स्कूल की जीप में बैठकर जोरावर सिंह की ससुराल के लिए निकल पड़े थे।
विद्यालय के प्रिंसिपल और रजनी के पति शशिकांत जी उस दौरान बीमार रहते थे वह कभी स्कूल आते और कभी नहीं। उन्हें कैंसर की बीमारी थी स्कूल का सारा कार्यभार रजनी ही संभालती थी आखिर वह वहां के सभी टीचरों से ज्यादा पढ़ी लिखी थी और शशिकांत जी की पत्नी थी किसी को भी उस के सानिध्य में काम करने में कोई आपत्ति न थी।
शाम 6:00 का वक्त था जोरावर सिंह हवेली के लॉन में टहल रहे थे तथा अपने घोड़े की पीठ सहला रहे थे मैं और रजनी धीरे-धीरे उनके करीब पहुंच गए। साथ आए व्यक्ति ने जोरावर सिंह को हमारा परिचय दिया और हमारे हाथ उनके अभिवादन में स्वतःही जुड़ गए। जोरावर सिंह उस समय लगभग 35 वर्ष की उम्र में एक बेहद खूबसूरत और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा परंतु रजनी को देखते ही उनकी आंखें उस पर ठहर गई रजनी बेहद सुंदर और आकर्षक लग रही थी आसमानी रंग की साड़ी में उसकी सुंदरता खुल कर बाहर आ रही थी रजनी का गोरा बदन और उसके शरीर के उभार जोरावर सिंह को आकर्षित कर रहे थे रजनी ने हाथ जोड़कर कहा
"हम सीतापुर प्राथमिक विद्यालय से आए हैं कल हमारे स्कूल में गणतंत्र दिवस का उत्सव है यदि आप वहां आकर झंडा फहराएंगे तो हमें और हमारे विद्यार्थियों को प्रेरणा मिलेगी"
जोरावर सिंह मंत्रमुग्ध होकर रजनी को देखे जा रहे थे शायद उन्होंने अपने जीवन में इतनी सुंदर महिला नहीं देखी थी उनकी आंखें रजनी पर टिक गई थी मैंने उनकी तंद्रा थोड़ी और एक बार फिर कहा
"आपके आने से हमारे स्कूल का मान बढ़ेगा"
जोरावर सिंह ने अपने मातहत को आदेश दिया इन्हें बैठाइए और चाय पान का प्रबंध कीजिए मैं 5 मिनट में आता हूं। उन्होंने लान के दूसरी तरफ लगी हुई कुर्सियों की ओर इशारा किया मैं और रजनी उस व्यक्ति के साथ आगे बढ़ गए रजनी अब भी पलट पलट कर उन्हें देख रही थी। उनकी हथेली घोड़े को सहला रही थी परंतु आंखें रजनी पर ही टिकी थीं।
कुछ देर बाद जोरावर सिंह आ गए और उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी चाय के दौरान ढेर सारी बातें की। कुछ ही देर में ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे उन दोनों में दोस्ती हो गई हो।
अगले दिन जोरावर सिंह स्कूल आए और झंडारोहण का कार्यक्रम विधिवत संपन्न किया उनकी गरिमामय उपस्थिति से स्कूल के सभी बच्चे और स्टाफ बेहद प्रसन्न था। उन्होंने स्कूल का मुआयना किया और लड़कियों के टॉयलेट को देखकर बेहद दुखी हो गए उन्होंने स्कूल के लिए ₹100000 का चेक काटा और रजनी की तरफ देख कर बोला बच्चियां देश का भविष्य है उनके लिए समुचित प्रबंध किए जाने चाहिए रजनी ने वह राशि सहर्ष स्वीकार कर ली।
सामान्य औपचारिकताओं के पश्चात जोरावर सिंह स्कूल के प्रिंसिपल और रजनी के प्रति शशिकांत जी से मिलने उनके घर भी गए। उनका उदार व्यक्तित्व सभी को पसंद आ रहा था और रजनी को भी कुछ ही दिनों में रजनी और उनका मिलना जुलना शुरू हो गया।
रजनी का कद और भी बढ़ गया वह जोरावर सिंह के सानिध्य में आकर और प्रभावशाली होती गई। जैसे-जैसे व प्रगति कर दी गई मैं उससे दूर होता गया हमारे बीच फासला बढ़ता गया परंतु मैं उसके प्रति वफादार रहा मैंने हर संभव उसकी मदद की अब रजनी और मेरे बीच अंतरंग संबंध न रहे। मुझे नहीं पता कि उसके और जोरावर सिंह के बीच में ऐसे संबंध बन पाए थे या नहीं परंतु उनमें घनिष्ठता बढ़ती जा रही थी।
जोरावर सिंह की पत्नी शशि कला एक प्रभावशाली और खूबसूरत महिला थी। जोरावर सिंह और उनकी पत्नी सार्वजनिक रूप से आदर्श पति पत्नी की तरह दिखाई पड़ते ।
गांव वाले जोरावर सिंह और रजनी के बीच संबंधों को गलत भाव से नहीं देखते थे। यदि उनके मन में आता भी तो वह अपना यह भाव छुपा ले जाते जोरावर सिंह के खौफ के आगे इस बात को बोलना तो दूर सोचने तक की इजाजत नहीं थी।
यह मुलाकात कई वर्षों तक इसी प्रकार चलती रही इसी बीच रजनी के पति शशिकांत जी का देहांत हो गया।
शशिकांत जी के देहांत के पश्चात रजनी और जोरावर सिंह के बीच नजदीकियां और भी बढ़ती गई ।यही वह दौर था जब जोरावर सिंह और उनकी पत्नी के बीच संबंध धीरे धीरे खराब होते गए गांव वालों को भी इसकी भनक लगनी शुरू हो गई थी परंतु उन्होंने इस बात को अपने मन में ही दबाए रखा परंतु सरयू सिंह और उनके आदमियों ने जोरावर सिंह के चरित्र पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया।
अंततः जोरावर सिंह की पत्नी शशिकला उनसे अलग रहने लगी और रजनी ने न सिर्फ जोरावर सिंह के दिल में जगह बनाई अपितु वह लाल कोठी में भी उनकी पत्नी के रूप में प्रवेश कर गई अब तक उसकी पुत्री रिया भी बड़ी हो गई थी वह अपनी मां के इस संबंध से खुश नहीं रहती थी परंतु उसे भी मजबूरी बस लाल कोठी जाना पड़ा था।
एसीपी राघवन के पास अभी एकमात्र व्यक्ति मनोहर ही था जिससे वह इस केस से संबंधित कुछ जानकारियां इकट्ठा कर पा रहा था परंतु उसकी बातों से वह कुछ भी निष्कर्ष लगा पाने में असमर्थ था।
तभी एसीपी राघवन का फोन बज उठा।
"सर एक जरूरी बात बतानी थी" मूर्ति की अदब भरी आवाज सुनाई पड़ी…
"हां बोलिये"
मूर्ति ने रजनी के मोबाइल में देखी गई उस वीडियो क्लिप बारे में राघवन को सब कुछ बता दिया राघवन का दिमाग घूम गया उसे इस बात का यकीन ही नहीं हो रहा था कि जोरावर जैसा शानदार और दमदार व्यक्तित्व का धनी आदमी इस तरह की काम पिपासु गतिविधियों में लिप्त होगा।
ठीक है मैं आता हूं.
एसीपी राघवन तेजी से वापस अपने ऑफिस की तरफ बढ़ रहा था उसके मन में कई तरह के विचार आ रहे थे क्या जोरावर सिंह का कत्ल उसके इन्ही कामुक कार्यों की वजह से हुआ था? क्या गले पर लगा खंजर का निशान किसी युवती या लड़की की करतूत हो सकती थी ? परंतु जोरावर सिंह का खून बंदूक की गोली से हुआ था। एसीपी राघवन की उधेड़बुन कायम थी।
उधर नर्तकियों की टोली सलेमपुर गांव से वापस लौट कर अपने गांव भीमापुर आ चुकी थी। 15 लड़कियों मे से एक लड़की कम थी। जिसे लाल कोठी में छोड़ दिया गया था।
नर्तकीयों की टोली का प्रबंधक भूरा एक बेहद खूंखार व्यक्ति था वह बड़े-बड़े लोगों के संपर्क में रहता और उनके निजी आयोजनों में इन नर्तकीओ की सेवाएं प्रदान करता।
आवश्यकता पड़ने पर भूरा जवान लड़कियों को बहला-फुसलाकर उन्हें रसूखदार लोगों की कामुक मांगों को पूरा करने के लिए भी राजी कर लेता और इसके एवज में उन्हें ढेर सारे पैसे देता।
बीती रात खाना खाते समय रेडियो पर जोरावर सिंह की मृत्यु का समाचार उसे प्राप्त हो चुका था वह अपने द्वारा पहुंचाई गई उस लड़की सोनी के बारे में सोच कर चिंतित था कहीं जोरावर सिंह की हत्या में उसका नाम न आ जाए। वह उस कोठी में अकेले जोरावर सिंह को ही जानता था अब उसके पास सोनी का हाल-चाल लेने का कोई स्रोत नहीं बचा था।
भूरा की बेचैनी बढ़ रही थी.। क्या वह वापस सलेमपुर जाकर सोनी और उसकी बहन मोनी को वापस ले आए? परंतु वहां जाकर वह किससे बात करेगा सोनी और मोनी कैसी होंगी? वह उन से कैसे संपर्क कर पाएगा? वह इसी उधेड़बुन में खोया हुआ था।
"मोनी को कब पहुंचा रहे हो"
"सोनी और मोनी दोनों एक साथ ही वापस आएंगे तब तक इंतजार करो. पैसे मिल गए हैं ना ? बार-बार फोन करने की जरूरत नहीं है" भूरा ने कड़कती आवाज में उत्तर दिया
सोनी और मोनी का मामा एक नशेबाज व्यक्ति था जिसने सोनी और मोनी को पाल पोस कर बड़ा तो किया था परंतु अब वह उन्हें इन गलत कार्यों की तरफ उकसा कर उन्हें अपने धनोपार्जन का साधन बना चुका था।
उधर लाल कोठी में रिया अपने कमरे में बेहद उदास बैठी हुई थी और अपने भाग्य को कोस रही थी उसके जीवन में अंधेरा छाया हुआ था बाप का साया पहले ही उसके सर से उठ चुका था और अब उसकी मां भी उसका साथ छोड़ कर जा चुकी वह बिस्तर पर बैठी हुई सुबक रही थी तभी जयंत कमरे में दाखिल हुआ
रिया ने उसकी तरफ देखा और बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई रिया बेहद खूबसूरत किशोरी थी जो युवावस्था की दहलीज पर खड़ी थी। तभी जयंत उसके पास आया और रिया उससे लिपट गई।
जयंत के सीने से अपने गाल सटाए हुए रिया सुबक रही थी और जयंत उसके रेशमी बालों पर अपनी उंगलियां फिर आ रहा था वह बार-बार उसे तसल्ली देता और अपने होठों से उसके माथे पर चुंबन ले रहा था।
तभी कमरे में रश्मि ने प्रवेश किया। हरिया और जयंत एक दूसरे से हड़बड़ा कर अलग हुए। रश्मि को भी यह थोड़ा अटपटा लगा परंतु उसने उसे नजरअंदाज कर कहा
"जयंत आपको आपके चाचा जी बुला रहे हैं"
"जी चाची"
जयंत राजा के कमरे की तरफ बढ़ चला. रश्मि रिया के पास आ चुकी थी और रिया की कोमल हथेलियों को अपनी हथेलियों में लेकर सहला रही थी और उसे इस दुख की घड़ी में सहारा देने की कोशिश कर रही थी।
राजा के कमरे में…
"हां चाचा, आपने मुझे बुलाया"
जयंत अब जो होना था हो गया परंतु हमें अपने परिवार का ध्यान रखते हुए अपने पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए कुछ करना होगा तुम अपनी पढ़ाई छोड़ कर उनका कार्यभार संभालो मैं यही चाहता हूं।
"नहीं चाचा आप ही संभालिए मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आपका साथ दूंगा"
"पर चाचा, पिताजी का हत्यारा बचना नहीं चाहिए वह किसी भी हाल में पकड़ा जाना चाहिए आप अपनी पूरी ताकत लगा दीजिए जब तक वह हत्यारा पकड़ा नहीं जाता मैं चैन से नहीं रह पाऊंगा"
उधर एसीपी राघवन अपने ऑफिस पहुंच चुका था। मूर्ति जैसे उसका ही इंतजार कर रहा था उसके कमरे में आते ही मूर्ति ने वह मोबाइल क्लिप राघवन को दिखा दी क्लिप के शुरुआती अंश देखकर ही उसे जोरावर सिंह का चरित्र समझने में देर न लगी।
इस वीडियो क्लिप ने राघवन के मन में केस को लेकर एक नई विचारधारा को जन्म दे दिया उसने मूर्ति को कुछ जरूरी दिशा निर्देश दिए और अपने होटल की तरफ चल पड़ा वह आज बेहद थका हुआ महसूस कर रहा था।
अगली दोपहर एसीपी राघवन पुलिस फोर्स लेकर लाल कोठी पहुंच चुका था …
गाड़ियों की सांय सांय की आवाजें लाल कोठी में गूंज रही थी राजा और जयंत लाल कोठी में ही थे। इस गहमा गहमी को महसूस करना दोनों नीचे आ गए और लाल कोठी का मुख्य द्वार खुलते ही उन्हें एसीपी राघवन के दर्शन हो गए..
मूर्ति ने पूरे तैश में कहा…
"हमे लाल कोठी की तलाशी लेनी है…"
"बाप का माल समझा है क्या? चले आए मुंह उठाकर 3 दिन हो गया अभी तक कातिल को तो पकड़ नहीं पाए चले आए तलाशी लेने"
राजा की बातों पर निश्चय ही पिछले दिन एसीपी राजवन द्वारा किए गए व्यवहार का असर था आज वह भी पूरे तैश में था अब से कुछ देर पहले ही जयंत ने उसे जोरावर सिंह के व्यवसाय का उत्तराधिकारी मान लिया था जिसने राजा को एक नई शक्ति दी थी.
एसीपी राघवन राजा के इस आत्मविश्वास से थोड़ा प्रभावित अवश्य हुआ था परंतु उसने अपनी जेब से कागज निकाला और राजा को दिखाते हुए बोला.
"हमारे पास सर्च वारंट है कृपया हमें अपना काम करने दीजिए"
राजा को एहसास हो चुका था एसीपी राघवन को रोक पाना असंभव था कोर्ट का आदेश उसके हाथ में एक ब्रह्मास्त्र की तरह प्रतीत हो रहा था उसने बात को तूल नहीं दिया और दरवाजे पर से हटकर एसीपी राघवन को अंदर आने का रास्ता दीजिए एसीपी राघवन मूर्ति और अपने 8- 10 अधिकारियों के साथ लाल कोठी में प्रवेश कर चुका था चारों तरफ पुलिस के जूतों की टक टक की आवाज आ रही थी रश्मि और रिया दोनों हॉल में आ चुके थे.
जोरावर सिंह के कमरे की तलाशी शुरू हो चुकी थी..
शेष अगले भाग मेँ..
बहुत ही जबरदस्त।
तो रजनी सीतापुर प्राथमिक विद्यालय की प्राचार्या थी जो अपने पति शशिकांत की बीमारी की वजह से उनका पद संभाल रही थी। 26 जनवरी के लिए झंडारोहण के अवसर पर तहसीलदार के किसी कारणवश न आने पर जोरावर सिंह के आने का प्रस्ताव सभी अध्यापकों द्वारा रखा गया। रजनी खुद जोरावर को मनोहर के साथ आमंत्रित करने गई। दोनों एक दूसरे को देखते ही लट्टू हो गए एक दूसरे पर। दोनों का चरित्र ढीला था उस समय। तभी तो अपनी पत्नी और पति के होते हुए भी एक दूसरे की तरफ आकर्षित हो गए और मिलना जुलना चालू हो गया और एक दिन रजनी ने जोरावर से शादी कर ली।।
इस बीच रजनी की पैठ बहुत ज्यादा हो गई समाज में इधर शशिकांत की मृत्यु, उधर शशिकला से मन मुटाव ने जोरावर और रजनी के रिश्ते को मज़बूती प्रदान की।।
वीडियो देखने के बाद राघवन ने ये अंदाज़ा लगा लिया कि जोरावर की हत्या किसलिए हुई होगी, इसलिए अगले दिन वो पूरी पुलिस फोर्स लेकर जोरावर के घर की तलाशी लेने के लिए निकल गया। अब चूंकि जयंत ने राजा को अपने पापा के कार्य को संभालने के लिए कह दिया था तो राजा ने राघवन को रोका, लेकिन न्यायालय का आदेश होने के कारण वो कुछ न कर सका।। अब देखते हैं क्या होता है आगे।
 
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