सुमन दीदी के कुवाँरेप का ख्याल करते हुवे मैन भी अब अपना हाथ उनकी शलवार से बाहर निकाल लिया। मगर हाथ निकाले हुए मैंने अब उनकी सलवार का नाड़ा अपनी उंगलियों में फंसा लिया...जिससे मेरे हाथ के खिंचने से उनकी शलवार का नाड़ा भी खिंचने लगा...
मैने अपना हाथ सुमन दीदी की शलवार से बाहर निकाल कर अब एक ही झटके में नाड़े को भी पूरा खींच दिया जिससे वो 'टक' की आवाज के साथ खुल गया और सुमन दीदी जब तक कुछ समझ पाती, तब तक शलवार उसके पैरों में जा गीरी।
सुमन दीदी उसे झुककर वापस उठाना चाहती थी मगर मैंने अपने बदन का भार डालकर उन्हें वहीं दीवार से लगाये रखा और उनके होठो को मुँह में भरकर फिर से चूसना शुरु कर दिया। तब तक मेरा एक हाथ भी उनकी नंगी जांघों और मासंल भरे हुए नितम्बों पर रेंगने लग गया...
सुमन दीदी की जांघें एकदम भरी हुई और बिल्कुल चिकनी थी। क्योकी उनकी जाँघो की चमङी एकदम पतली थी जिससे मेरा हाथ उन पर अब अपने आप ही फिसल सा रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे मेरा हाथ किसी मखमल पर चल रहा हो।
अब कुछ देर तक तो मैं सुमन दीदी की होठ को चूसता रहा फिर आहिस्ता आहिस्ता से से उनकी पीठ कमर व नितम्बो को सहलाते मै धीरे धीरे अपने घुटने मोड़ते हुवे नीचे बैठ गया।
मेरे नीचे बैठ जाने से मेरे दोनों हाथ अब सुमन दीदी के भरे हुवे नितम्बो पर आ गये तो, मेरा मुँह भी उनकी जाँघो के जोङ पर आ गया, जहाँ से सुमन दीदी के कुँवारेपन की बेहद ही तीखी और मादक सी गँध फुट रही थी।
सुमन दीदी की कुवाँरी चुत की गँध पाकर तो मुझे जैसे अब कोई नशा ही हो गया। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और पेंटी के उपर से ही उनकी चुत को जोरो से चूस लिया...
सुमन दीदी के मुँह से अब फिर से हल्की एक सीत्कार सी फ़ूट पड़ी और उन्होने तुरन्त मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चुत से दूर हटा दिया।
सुमन दीदी की चुतरस से लबालब उस पेंटी को चूसने से मेरे मुँह का स्वाद अब एकदम नमकीन हो गया था और चुतरश की जैसे एक खारिश सी मेरे होठो पर जम गयी थी।
अब एक बार चुतरस का स्वाद चखने के बाद मै उसे कहाँ छोङता हुँ। फिर सुमन दीदी की चुत तो कुँवारी थी जिससे उसका स्वाद ही कुछ और था..?
सुमन दीदी के हटाने से मैंने बस अब एक बार ही उनकी पेँटी से अपने होठो को दूर किया। फिर उसके अगले ही पल मैने फिर से अपने होंठो को उनकी पेंटी पर लगा दिया...
इस बार सुमन दीदी ने भी मुझे हटाने की इतनी अधिक कोशिश नहीं की बस दोनों हाथो से मेरे सिर को पकङे खङी रही...इसलिये मै भी चुत के पास से उनकी पेँटी को चूसता चला गया...
सुमन दीदी की पेंटी को चूसने से मेरे मुँह मे उनकी चुत का हल्का सा रश आ तो रहा था मगर मुझे अब इतने से कहा सब्र होने वाला था..?
उनकी पेँटी को चुसते चाटते मैं अब धीरे धीरे अपने दोनों हाथ उनकी कमर पर ले आया और पेंटी के किनारों को पकड़ कर एक ही झटके में उसे नीचे खींच लिया... पेंटी गीली होने के कारण वो एक दो जगह जांघों में फंसी तो सही मगर फिर भी मैंने उसे घुटनों तक उतार दिया...
सुमन दीदी शायद अब अपनी पेंटी को वापस पहनने की कोशिश तो करती...! मगर जब तक वो कुछ करती, तब तक मैंने दोनो हाथो से उनके नितम्बो को पकङकर सीधा ही अपने प्यासे होठो को उनकी चुत के फाँको से जोङ दिया...
अपनी नँगी चुत पर मेरे गर्म गर्म होठो का स्पर्श पाते ही सुमन दीदी के मुँह से अब ना चाहते भी एक हल्की हल्की सिसकारी सी फुट पङी... मेरे इस चुम्बन से उनके पैर भी कँपकँपा गये थे इसलिये मेरे होठो की छुवन से बचने के लिये उन्होने अपनी जाँघो को भीँचने की कोशिश की, मगर उनके घुटनो के बीच मै बैठा हुवा था..?
वो अब अपनी जाँघो को तो नही भीँच सकी पर मेरे सिर को पकङकर हल्का सा पीछे हो गयी। सुमन दीदी के पीछ दिवार थी इसलिये वो ज्यादा पीछे भी नही हो सकी थी। बस उन्होने अपने नितम्बो को ही दिवार से दबा लिया था जिससे मेरे होठ उनकी चुत से अलग तो नही हुवे पर उनकी चुत पर मेरे होठो का दबाव कुछ कम हो गया..
मुझे अब आगे कुछ करने से रोकने के लिये सुमन दीदी ने दोनों हाथों से मेरे सिर को कस कर पकङ लिया था। मगर मै तो पङा ही सुमन दीदी की चुत के पीछे था इसलिये सुमन दीदी के पकङने के बावजुद भी मै धीरे धीरे आहिस्ता आहिस्ता उनकी चुत को चुमता चला गया...
मैंने अपने होंठो से चुत के अग्र भाग को चूमना शुरू किया था और धीरे से चुत की नाजुक फांकों पर आ गया। कामरस से भीगी चुत की फांकों को मैने अपने होंठों में हल्का सा अब दबाया ही था कि सुमन दीदी ने मुँह से "इईईई… श्श्श्शशशश…" की आवाज करके फिर से पीछे होने की कोशिश की...
मगर इस बार मैंने अपने दोनों हाथों से उसके नितम्बो को पकड़कर उन्हे फिर से अपनी तरफ खींच लिया और धीरे से अपनी जीभ निकाल कर चुत की फाँको के बीच मे घुसा दिया। एक बार फिर से अब सुमन दीदी जोरो से सीसक उठी...
उन्होने अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ कर मुझे अब पीछे भी धकेलने की कोशिश की.. मगर अब मैं कहाँ हटने वाला था, मैं धीरे धीरे जीभ से ही चुत की दरार को सहलाते हुवे नीचे चुत के अन्तिम छोर पर आ गया जहाँ से सुमन दीदी के यौवनरस का वो झरना फुट रहा था।
सुमन दीदी के उस झरने के कुप पर आकर मैंने अब पहले तो एक बार उसे हल्के से चाटा। फिर उसे जोर से चूस लिया जिससे सुमन दीदी दोनों हाथों से मेरे सिर के बालों को मुट्ठी में भरकर जोरो से सिसक उठी।
वो शायद मुझे अब फिर से अपनी चुत से हटाने की कोशिश तो करती मगर तब तक मेरी जीभ ने उनकी चुत के प्रवेशद्वार को चाटना शुरू कर दिया था जिससे सुमन दीदी के मुँह से अब अपने आप ही हल्की हल्की सिसकारियाँ सी फ़ूटना शुरु हो गयी..
सुमन दीदी के साथ ये सब पहली बार हो रहा था। उन्हे तो शायद ये पता भी नहीं था की चुत के साथ ऐसा भी कुछ करते है। इसलिये वो मुझे हटाने प्रयास तो कर रही थी मगर मैने उन्हे वैसे ही पकङे रखा और अपनी जीभ को नुकीला करके उसे अब सीधा ही चुत के प्रवेशद्वार में घुसा दिया....
सुमन दीदी तो अब जोरो से सिसक..!
सिसकी नहीं बल्कि ये कहो की जैसे चीख ही पङी..... सुमन दीदी की चुत के साथ ये सब पहली बार हो रहा था जोकी उनकी बर्दाश्त के बाहर था इसलिये मेरी जीभ से बचने के लिये वो अब अपने पंजों के बल ऊपर की तरफ उचक गयी...
मगर मैंने भी उनके नितम्बो को अपनी हथेलियों में भर कर उन्हे अपनी तरफ दबा लिया और अपनी जीभ को चुत के प्रवेशद्वार मे घुसाकर धीरे धीरे चुत की दिवारो को घिसना शुरु कर दिया....
सुमन दीदी की सिसकारियाँ अब तो और भी तेज हो गयी। उनकी चुत से तो अब इतना कामरस बहने लगा की शायद वो फिर से स्खलित होने की कगार पर ही पहुँच गयी थी। और इस तरह का अपनी ज़िंदगी में पहली बार महसूस कर रही थी।
ये सब उनके सहन के बिल्कुल बाहर था इसलिये उन्होने अपने दोनों पैरो की एडिया ऊँची उठा रखी थी। वो पूरी कोशिश तो कर रही थी की मैं अपना मुँह उनकी चुत से हटा लूँ, मगर मै उन्हें वैसे ही पकङे रहा...
मेरी जीभ को तो जैसे अब सुमन दीदी की कुँवारी चुत के रस का चस्का ही लग गया था इसलिये मैने उनकी चुत को अब और भी जल्दी जल्दी और जोरो से चुशना व चाटना शुरु कर दिया.. जिससे सुमन दीदी की सिसकारियाँ भी अब और अधिक तेज हो गई।
सुमन दीदी पर भी उत्तेजना का खुमार चढ़ता जा रहा था। वो अब खुद को रोक नहीं पा रही थी इसलिये अपने आप ही उनकी कमर ने धीरे धीरे मेरी जीभ की ताल पर थिरकना सा शुरु कर दिया...
उनका अपने आप पर अब जोर नहीं चल रहा था इसलिये उन्होने भी समर्पण कर दिया और खुद ही कमर को थोड़ा सा आगे बढ़ा कर अपनी चुत को मेरे मुँह पे घिसना शुरु कर दिया ताकि यह खेल जल्दी से जल्दी समाप्त हो जाये।
उत्तेजना के वश सुमन दीदी अब अपनी जांघों को भी पूरी तरह से फैलाना चाह रही थी मगर उनके पैरों में पेंटी व सलवार फंसी होने के कारण पैर खुल नही रहे थे।
मगर तभी सुमन दीदी ने पीठ को दिवार से टिका के थोङा सा अपने घुटनो को मोड़ लिया। ताकि उनकी जांघें फैल जाये और मेरी जीभ अधिक से अधिक उनकी चुत की गहराई तक जा सके।
सुमन दीदी की ये हालत देख कर अब मैं भी जोश में आ गया और तेजी से अपनी जीभ को उनकी चुत मे चलाते हुवे अपने नाक से भी चुत की दरार को घिसना शुरु कर दिया...
अब तो जैसे सुमन दीदी की हालत पागलों की सी हो गयी। उन्होने मेरे सिर को जोरों से अपनी चुत पर दबा लिया और जोर जोर से..
"अहहन्न न्न्न्न्ना… आआ… आह्ह्ह ह्ह्ह्ह्हीईईई… ऊओहन्न्न नाह्ह्ह्ह्ही ईईइ...." की आवाज़ें निकालते हुवे अपनी चुत को मेरे मुँह व नाक पर इतनी जोरो से घिसना शुरु कर दिया मानो मेरे सिर को ही अपनी चुत में समा लेगी।
पर सुमन दीदी की सिसकियाँ अब एक बार तो तेज हुई फिर उनके चर्म पर पहुँचने की आखिरी घड़ी भी आ गयी… क्योंकि कुछ देर बाद ही उनकी सिसकारियाँ अब गले में ही अटकना शुरु हो गयी।
उनके दोनों पैर अब पहले तो जोरो से कँपकँपाये फिर एक दूसरे मे ही कसमसा से गये। अब इसी के साथ सुमन दीदी ने गले से भारी भारी चीख सी निकालते हुए अपनी पूरी ताकत से मेरे सिर को अपनी चुत पर दबा लिया और अपनी चुत का सारा यौवन रस चार पांच किश्तों में ही मेरे मुँह पर उबाल फेँका...