जैसा की आपने पढा बिजली ना होने के कारण मैने अन्धेरे का फायदा उठाकर अपनी भाभी को पकङ लिया था मगर जैसे ही मैने उनकी चुँचियो को हाथ लगाया मुझे उनकी चुँचियाँ कुछ छोटी व मेरी भाभी के मुकाबले काफी कसी हुई सी महसूस हुई..
तभी मेरे दिमाग मेये सवाल कौँध गया की कही ये सुमन दीदी तो नही..? क्योंकि आज मुझे भाभी का व्यवहार भी कुछ अजीब ही लग रहा था, पहले जब कभी मैं भाभी को चुमता था तो वो हमेशा मेरा साथ देती थी मगर आज वो साथ देने की बजाय कसमसा रही थी और काफी घबरा भी रही थी।
मेरे दिमाग अब ये बात आते ही मैं बुरी तरह घबरा गया...! मेरा हाथ अब जहाँ था वहीं के वहीं रूक गया तो मेरे होठो ने भी उनके होठो को चुशना बन्द कर दिया....
मेरी भाभी की व सुमन दीदी की लम्बाई एक समान ही थी और उस दिन दोनों ने ही सलवार सूट पहन रखा था इसलिये अन्धेरे में मैं पहचान नहीं सका कि ये मेरी भाभी है या सुमन दीदी...?
चलो मैंने तो गलती से सुमन दीदी को पकड़ लिया था।
पर सुमन दीदी....?
सुमन दीदी भी तो कुछ बोल नहीं रही थी। मेरा तो ठीक है पर वो तो बोल सकती थी..?
पर शायद सुमन दीदी इस वजह से शर्मा रही थी की, अगर वो कुछ कहेगी तो मैं ये, जान जाऊँगा की उसे मेरे और मेरी भाभी के सम्बन्धों के बारे में पता है और उस दिन उन्होने मुझे व भाभी को देख लिया था...
वैसे भी सुमन दीदी बहुत डरपोक तो थी ही, उपर से मैने उन्हे कुछ बोलने का मौका भी तो कहाँ दिया था.? जब से उन्हे पकङा था तब से ही मै उनके होठो को चुशे ही जा रहा था...?
सुमन दीदी अभी भी वैसे ही मेरी बाँहो मे कसमसा सी रही थी। मुझे पता तो चल गया था की ये पायल भाभी नही बल्कि सुमन दीदी है मगर फिर मै अब कोई फैसला नही कर पा रहा था की सुमन दीदी को छोड़ दूँ या फिर पकड़े रहूँ?
क्योंकी इतना सब करने के बाद मैं अब अगर उनको छोड़ देता हुँ तो वो भी समझ जायेगी की मैंने उन्हे क्यों छोड़ दिया, और नही छोङु तो करु क्या..? सुमन दीदी के जैसी ही स्थिति में अब मै भी फँस गय था...?
इस असमंजस की स्थिति के बीच, पता नही क्यो ये जानकर की, ये मेरी भाभी नही बल्की सुमन दीदी है और डर व शरम के कारण वो कुछ बोल नहीं रही, तो बहुत ही रोमाँचित सा भी लग रहा था।
मेरे दिमाग में अब एक साथ अनेक विचारों का भूचाल सा मच रहा था और रह रह कर सुमन दीदी के प्रति मेरी वासना सी भी जोर मारने लगी थी।
दरअसल मैं अब सोच रहा था कि अगर सुमन दीदी डर व शरम की वजह से कुछ बोल नहीं रही है तो क्यों ना मैं अब इसी बात का फायदा ही उठा लूँ...?
अब सुमन दीदी को पकङे पकङे मै कुछ देर तो ऐसे ही खङा रहा, फिर आखिरकार वासना मेरे विचारों पर भारी पड़ गयी और अपने आप ही मेरे हाथों की पकड़ सुमन दीदी के चुँची पर फिर से कसती चली गई।
सुमन दीदी के होंठों को भी मैने अब फिर से चुशना शुरु कर दिया था मगर पहले के चुशने मे और अब मे थोङा अन्तर था। अबकी बार मै उनको थोङे प्यार से चुश रहा था जिसका सुमन दीदी विरोध तो नहीं कर रही थी मगर अब भी वैसे ही कसमसाये जा रही थी।
मै अब आगे कुछ करता की तभी बाहर से किसी की आहट सी सुनाई दी, शायद ये मेरी भाभी थी। मुझसे छुङाने के लिये सुमन दीदी तो जैसे अब छटपटा ही पङी।
मैं भी नहीं चाहता था की सुमन दीदी को या मेरी भाभी को कुछ पता चले इसलिये सुमन दीदी को छोड़कर मै अब उनसे अलग हो गया। और सुमन दीदी भी मुझसे छुटते ही जल्दी से ड्राईंगरूम से बाहर निकल गई।
अब सुमन दीदी तो चली गयी मगर मेरे अन्दर हवस का एक तूफान सा छोङ गयी जिसे उस रात मैंने दो बार मुठ मारकर शाँत किया तब जाके कही मुझे नींद आ सकी।