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Fantasy कटोरा भर खून (by hirak01)

# यह कहानी कैसा लगा आपको ?

  • बहुत अच्छा

  • अच्छा

  • अच्छा ही था

  • मैं कहानी को समझ ही कही पा रहा हु तो क्या ही कहूं।


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hirak01

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Index
खंड - 01अ (आरंभ)
खंड -01ब (प्रेम)
खंड - 02अ (हत्या - एक शाजिस......01)
खंड -02ब(हत्या - एक शाजिस.....02)
खंड - 03 (कैदी और डाकू नाहरशिंह और चिट्ठी)
खंड - 04 (बाबू साहब और नाहर सिंह)
खंड - 05 (चिट्ठी में छुपा एक राज)
खंड - 06 (करन सिंह की कहानी और बीरसिंह के भाई और बहन )
खंड - 07 (एक छल और बीरसिंह की जान खतरे में)
खंड - 08 (बीरसिंह बच गया, बाबू साहब मिले नाहर सिंह और खड़ग सिंह से)
खंड - 09 (तारा जिंदा है, कहानी कटोरा भर खून की)
खंड - 10(आताताई का अंत और एक खुशहाली भरा समाप्ति)


****THE END****
 
Last edited:

Ajju Landwalia

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खंड - 02अ

एक व्यक्ति घूमते हुए उसी अंगूर की खेत के पास पहुँचा जहा तारा को उसके पिता ने मरने के लिए दबा रखा था और एकाएक जमीन पर एक लाश देख कर चौंक पड़ता है। उसे विश्वास हो गया कि यह तारा की लाश है। उस व्यक्ति को रुकते देख लौंडियों(नौकरानियों) ने मशाल को आगे किया और वह व्यक्ति बड़े गौर से उस लाश की तरफ देखने लगा।
वह व्यक्ति समझ गया कि यह तारा की लाश नही है, वह तो एक कमसिन लड़के की लाश थी, जिसकी उम्र दस वर्ष से ज्यादे की न होगी। लाश का सिर न था जिससे पहिचाना जाता कि कौन है, मगर बदन के कपड़े बेशकीमती थे, हाथ में हीरे का जड़ाऊ कड़ा पड़ा हुआ था; उंगलियों में कई अंगूठियाँ भी थीं, गर्दन के नीचे जमीन पर गिरी हुई मोती की एक माला भी मौजूद थी।
और ये सारे सामान देखकर वह व्यक्ति कहता है की :-

व्यक्ति : चाहे इसका सिर शरीर पर मौजूद नही है, मगर गहने और कपड़े की तरफ देखकर मैं कह सकता हूँ कि यह हमारे महाराज के छोटे लड़के सूरज सिंह की लाश है।

एक नौकरानी : यह क्या हुआ ? कुंअर साहब यहाँ कैसे आये और उन्हें किसने मारा?

व्यक्ति : यह तो गजब हो गया है, अब कोईभी किसी तरह से हम लोगों की जान नहीं बचा सकता है। जिस समय महाराज को खबर होगी कि कुंअर साहब की लाश बीरसिंह के बाग में पाई गई तो बेशक मैं खूनी ठहराया जाऊंगा।(जी हा वह व्यक्ति और कोई नही बीरसिंह था पर यह यह क्या कर रहा है क्योंकि यह तो डाकू को पकड़ने गया था तो बस यही कहूंगा की थोड़ा सब्र करे) मेरी बेकसूरी किसी तरह साबित नहीं हो सकेगी और दुश्मनों को भी बात बढ़ाने और दुःख देने का मौका मिल जायेगा। हाय ! अब हमारे साथ हमारे रिश्तेदार लोग को भी फांसी दे दिये जायेंगे। हे ईश्वर । धर्म पथ पर चलने का क्या यही बदला है ! !
यह सब सोचते हुए बीरसिंह इधर उधर देखते हुए तारा को अंगूर के खेत में ढूंढने लगा क्योंकि उसे नौकरानियों से पता चल गया था की तारा उसे फटक तक छोड़कर बंगले में नही लौटी थी उसे आशंका थी की कोई तारा के ऊपर तो जानलेवा हमला करके उसे भी जान से मार तो नही दिया क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले उसके ऊपर भी एक जानलेवा हमला हुआ था…
यह सोचते हुए बीरसिंह कुछ देर हुए अपने साथ हुए घटना को याद में को जाता है…….
थोड़ी देर पहले……..

बीरसिंह तारा से विदा लेकर फाटक से बाहर सड़क पर आ जाता है. इस सड़क के किनारे बड़े - बड़े पेड़ लगे हुए थे, जिनकी दलिया आपस में मिलकर ऊपर की ओर जा रही थी और पूरे सड़क पर अंधेरा पसरा हुआ था.
एक तो अंधेरा ऊपर से आसमान में छाई बादल पूरे सड़क को अंधेरे में घेर रखा था.
मगर बीरसिंह इस सबसे बेखौफ आगे कदम बढ़ाए जा रहा था. जब वह अपने बंगले से काफी दूर आ गया तो अचानक बीरसिंह को अपने पीछे से किसी की आहट आती हुई महसूस होती है जिसे महसूस करने के बाद बीरसिंह रुक जाता है और पीछे मुड़कर देखने लगता है मगर उसे अपने पीछे कुछ दिखाई नहीं देता है और वह एक गहरी सांस छोड़ आगे की तरफ अपना रुख कर लेता है और आगे बढ़ जाता है. पर वह अब चौकन्ना हो गया था क्योंकि उसे कुछ बुरा होने की आशंका हो गया था.
आखिर जब बीरसिंह थोड़ी ही दूर आगे बढ़ा था की उसके बाई तरफ से एक आदमी ने बीरसिंह के गर्दन पर अपनी तलवार से एक जानलेवा वार किया जैसे वह बीरसिंह का एक ही बार में काम तमाम कर देना चाहता हो मगर बीरसिंह भी चौकन्ना था उसने तुरान अपनी गर्दन दाई तरफ करते हुए फुर्ती से अपना तलवार निकाल कर उस हमलावर के सीने में भोंक देता है, और वह व्यक्ति अपने ऊपर हुए इस हमले का प्रतिकार न कर सका और वही ढेर हो गया….
बीरसिंह अपनी तलवार से उस हमलावर के चेहरे पर बंधे मास्क को हटाता है और देखता है की वह व्यक्ति अपने आंखे अचंभे और अपने मुख आश्चर्य से खोले हुए था ऐसा लग रहा था की वह कुछ बोलने वाला था पर उसकी आवाज निकलने से पहले ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए.
तभी बीरसिंह को अपने गले में दर्द सा महसूस हुआ तो उसने अपने गर्दन पर हाथ फेरते हुए देखा की उस हमलावर के तलवार ने बीरसिंह के बचाव के बाद भी एक खरोच दे ही दिया था.
अभी बीरसिंह कुछ समझ पाता की उसके पीछे से म्यान से तलवार निकलने की आवाज आती है और वह तुरंत पीछे मुड़ता है और देखता है की पेड़ो के पीछे से तीन आदमी बाहर निकल रहे है जिनके हाथो में नगी तलवारे थी. अब बीरसिंह को तीन हमलावरों से मुकाबला करना होगा यह सोचकर बीरसिंह उन हमलावरों की तरफ बढ़ता है.
बीरसिंह एक बहादुर इंसान था उसके शरीर में ताकत के साथ साथ चुस्ती और फुर्ती दोनो ही था. तलवार के साथ उसे और भी हथियारों को चलाने की कला मालूम थी. खराब से खराब तलवार भी बीरसिंह के हाथो में आकर खतरनाक हो जाति थी और अपने दुसामानो के छक्के छुड़ा देती थी.
इस समय बीरसिंह के जान लेने के लिए वह तीन आदमी मौजूद थे वह तीनों हमलावर आकर बीरसिंह को तीन और से घेर लेते है…

एक हमलावर :- मधर चोद तूने हमारे एक साथी को मार दिया आज तू जिंदा नही बच पाएगा.

बीरसिंह :- तू अपनी जान की खैर मना. अभी भी मौका है अपनी जान बचा और बता दे की किसने तुम सबको भेजा है यहां.

तीसरा हमलावर :- अकेला है और हम तीन फिर फिर अकड़. यहां हम तेरा काम तमाम करेंगे और वहां तेरी बीवी का काम तमाम होगा.

बीरसिंह तारा के बारे में सुनकर थोड़ा परेशान हो गया क्योंकि अब उसे पता चल गया था की वहां तारा पर भी हमला होने वाला है या फिर हो गया होगा और तारा उन सभी से कैसे निपट रही होगी.
अभी बीरसिंह अपनी सोच में ही गुम था की अचानक उसे कुछ चमकते हुए दिखाई देता है जो और कुछ नही उन हमलावरों में से एक हमलावर की तलवार थी जो बीरसिंह की अपने में गुम देख और मौके का फायदा उठाने के लिए अचानक बीरसिंह पर वार कर दिया था. मगर वीर सिंह भी कोई नौसिखिया नही था उसने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए उस हमले से बचाने के लिए अपने शरीर की घुमा देता है जिससे उस हमलावर की तलवार बीरसिंह को छूते हुए निकल जाति है और एक तेज चीखने की आवाज आती है जो और किसी की नही बल्कि उस हमलावर की थी जो मौके का फायदा उठाकर बीरसिंह पर हमला किया था और वह हमलावर का शरीर धरती पर गिरकर कुछ देर छटपटाता है और शांत हो जाता है और उसका सिर उसके धड़ से अलग होकर दूसरे हमलावर के सामने गिर जाता है जिससे बचे हुए दो हमलावर दो कदम पीछे हो जाते है.

बीरसिंह :- अभी तुम कच्चे हो बीरसिंह को मरने के लिए अब भी तुम लोगो के पास समय है अपनी जान बचाने का और मुझे केवल उसका नाम बता दो जिसने तुम लोगो को यह भेजा है. नही तो अपनी मां चुदाने के लिए तैयार हो जाओ.

तीसरा हमलावर :- बेटीचोद तूने हमारे दूसरे साथी को भी मार डाला अब तू जिंदा नही बचेगा. तेरा हम वो हाल करेंगे की तेरी मां भी सोचेगी की इसे मैने ही अपने चूत से पैदा किया है.
और अपनी मां के बारे में ऐसी बाते सुनकर बीरसिंह उससे में आ जाता है और तेजी से उस बोलने वाले हमलावर की तरफ अपनी कोन से सनी तलवार लहराते हुए बढ़ा और एक और खचाक की आवाज आती है और उस गली देने वाले हमलावर को बीरसिंह के हमले के उत्तर में में हमला करने से पहले ही उसके गर्दन उसके शरीर से अलग हो जाति है और उसका सिर आश्चर्य से हुई अपनी आंखो के साथ सड़क पर लुढ़क कर सड़क के किनारे बनी झाड़ियों के पास चला जाता है और तीसरे हमलावर के कुछ करने से पहले ही उसका भी सिर धड़ से अलग था और वह भी प्रलोक सिधार गया…..

अपने हमलावरों पर जीत पाने के बाद बीरसिंह तेजी से अपने बंगले की तरफ बढ़ गया
तभी उसका ध्यान उसके नौकरानियों के आपस में खुसफुसाने की आवाज टूटता है और वह अपने वर्तमान में लौट जाता है…….

तो यहां खंड - 02अ समाप्त होता है और इस खंड को लाइक करना ना
भूले और अपनी राय भी कॉमेंट में लिखे…..

Sabse pehle to ek nayi khani shuru karne ke hardik shubhkamnaye hirak01 Bhai

Sabhi updates bahut hi badhiya he................lekin kalkhand ka hisab aap nahi rakh rahe he.............ye kahani aaj se lagbhag 100-200 saal pehle ki lagti he..........lekin isme fridge ka hona kuch atpata sa laga.........

Keep posting Bhai
 

hirak01

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Sabse pehle to ek nayi khani shuru karne ke hardik shubhkamnaye hirak01 Bhai

Sabhi updates bahut hi badhiya he................lekin kalkhand ka hisab aap nahi rakh rahe he.............ye kahani aaj se lagbhag 100-200 saal pehle ki lagti he..........lekin isme fridge ka hona kuch atpata sa laga.........

Keep posting Bhai
मैं आपके बातो को समझ गया इसके साथ ही मैं जनता था की यह बात मेरे सामने जरूर आएगी और मैने भी दोबारा पढ़ा था तो कुछ अटपटा सा लगा था पर फिर भी मैं बता दू की फ्रीज 1805 में आ गया था वैसे भी फ्रीज कैसा है यह मैने नही लिखा है और कहानी अब इतना भी पुराना नही है।
हा यहां अगर मैं प्रशितक या शीतक यंत्र लिख दिया होता तो कहानी के हिसाब से यह शब्द फिट बैठते है लेकिन मैने बस समझने के लिए फ्रीज लिखा है।।।

आपकी प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया।🙏🙏🙏🙏🙏
 

kamdev99008

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यह शर्ते कौन रख रहा है हमने तो बस कहा है की भाई केवल पढ़ो नही बल्कि पढ़ने के बाद कुछ लिखा भी करो की आखिर कहानी लग कैसा रहा है।
हमने ये भी कहा है की कोई न भी करे तो मैं कहानी के अपडेट्स तो दूंगा ही....
लेकिन क्या होता है न अगर लोग कमेंट करते है तो लगता है की लिखना सफल हो रहा है नही तो यह कोई पैसे के लिए नही लिखता है।
मैं आपकी भावनाएँ समझ रहा हूँ...... लेकिन ध्यान रखें
यदि आपकी लेखनी में आग है तो पाठक भी कुछ ना कुछ चिंगारी जैसे रिवियू लिखेंगे ही......... रुक नहीं सकते
इसलिए लेखन जारी रखें प्रतिक्रिया आने लगेंगी
 

kamdev99008

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मैं आपके बातो को समझ गया इसके साथ ही मैं जनता था की यह बात मेरे सामने जरूर आएगी और मैने भी दोबारा पढ़ा था तो कुछ अटपटा सा लगा था पर फिर भी मैं बता दू की फ्रीज 1805 में आ गया था वैसे भी फ्रीज कैसा है यह मैने नही लिखा है और कहानी अब इतना भी पुराना नही है।
हा यहां अगर मैं प्रशितक या शीतक यंत्र लिख दिया होता तो कहानी के हिसाब से यह शब्द फिट बैठते है लेकिन मैने बस समझने के लिए फ्रीज लिखा है।।।

आपकी प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया।🙏🙏🙏🙏🙏
कहानी को फिर भी मूल रूप के निकट ही बनाए रखें........ इससे पाठक उसी कालखंड से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे
फोन, फ्रिज, गाडियाँ तब छोटे ब्रिटिश अधिकारियों के पास भी नहीं होती थीं केवल महानगरों में बड़े अधिकारियों के पास होती थीं
 

hirak01

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खंड - 02ब

अपनी जान की फिक्र सभी को होती है, चाहे भाई- बंधु हो, रिश्तेदार हों या नौकर,जो समय पर काम आता है वही आदमी है, वही रिश्तेदार है, और वही भाई है। कुंअर साहब की लाश देख और बीरसिंह को आफत में फंसा जानकर धीरे-धीरे नौकरानियों ने खिसकना शुरू कर दिया, कई तो तारा को खोजने का बहाना करके चली गईं, कई तो यह कह कर चली गई की ‘देखें इधर कोई छिपा तो नहीं है”और यह बात कहकर इसी बात के आड़ में हो गई और मौका पा अपने घर में जा छिपी, और कोई बिना कुछ कहे बिना शोर किए सामने से हट गईं और पीछा होकर भाग गई।


अगर किसी दूसरे की लाश होती तो शायद किसी तरह बचने की उम्मीद भी होती मगर यहाँ तो महाराज के लड़के की लाश थी— पता नही इसके लिए कितने आदमी मारे जाएंगे, ऐसे मौके पर मालिक का साथ देना बड़े अपने जान को दांव पर लगाने वाला काम है। हाँ, अगर मर्दों की मण्डली होती तो शायद दो-एक आदमी रह भी जाते मगर औरतों का इतना बड़ा कलेजा कहाँ? अब उस लाश के पास केवल बेचारा बीरसिंह रह गया। वह आधे घण्टे तक उस जगह खड़ा कुछ सोचता रहा, आखिर उस लाश को उठा कर अपने बंगले के एक तरफ चल दिया , जिधर लोगों की आना जान भी बहुत कम होता था।


बीरसिंह ने वहां उस लाश को एक जगह रख दिया और वहाँ से लौट कर उस तरफ गया, जिधर मालियों के रहने के लिए एक कच्चा मकान जो की घास फूस का बना हुआ था। आसमान में बादल तो पहले से ही थे लेकिन अब बिजली चमकने के साथ साथ छोटी-छोटी बूंदें भी पड़ने लगीं थीं।


बीरसिंह एक माली की झोपड़ी में पहुँचा। माली को गहरी नींद में पाया। एक तरफ कोने में दो-तीन कुदाल और फावड़े पड़े हुए थे। बीरसिंह ने एक कुदाल और एक फावड़ा उठा लिया और फिर उस जगह पर गया जहाँ लाश छोड़ आया था। इस समय तक वर्षा अच्छी तरह होने लगी थी और चारों तरफ अन्धकारमय हो रहा था। कभी-कभी बिजली चमकती थी तो जमीन दिखाई दे जाती, नहीं तो एक पैर भी कीचड़ में आगे रखना मुश्किल था।


इस काली अंधेरी रात में बीरसिंह को उस लाश का पता लगाना कठिन हो गया,क्योंकि जिस जगह पर उसने लाश को रखा था वह लाश नही थी। वह चाहता था कि जल्द से जल्द उस लाश के पास वह पहुंच कर कुदाल से जमीन खोदे ओर जहाँ तक जल्द हो सके उसे जमीन में गाड़ दे, मगर यह न हो सका, क्योंकि इस अंधेरी रात में हजार ढूँढ़ने और सर पटकने पर भी वह लाश न मिली। जब-जब बिजली चमकती, वह उस निशान को अच्छी तरह पहिचानता, जिसके पास उस लाश को छोड़ गया था मगर ताज्जुब की बात थी कि लाश उसे दिखाई न पड़ी।


पानी ज्यादा बरसने के कारण बीरसिंह को कष्ट उठाना पड़ा, एक तो तारा की फिक्र ने उसे बेकाबू कर दिया था दूसरे कुंअर साहब की लाश न पाने से वह अपनी जिन्दगी से भी नाउम्मीद हो गया था और अब वह अपने को तारा का पता लगाने लायक भी नहीं समझता पा रहा था उसकी मानसिक स्थिति इस समय बहुत ज्यादा ही खराब हो गई थी। बेशक, उसे अपने मालिक महाराज और कुंअर साहब से बहुत मुहब्बत थी, मगर इस समय वह यही चाहता था कि कुंअर साहब की लाश छिपा दी जाये और असली खूनी का पता लगाने के बाद ही यह भेद सभी को बताया जाये। लेकिन यह न हो सका, क्योंकि कुंअर साहब की लाश जब तक वह कुदाल लेकर वहां पर आता की इसी बीच में लाश वह से आश्चर्य रूप से गायब हो गई थी।


बीरसिंह हैरान और परेशान सा होकर इधर उधर उस लाश को चारों तरफ खोज रहा था, पानी से उसकी पोशाक बिल्कुल भींग थी। यकायक बाग के फाटक की तरफ उसे कुछ रोशनी नजर आई और वह उसी तरफ देखने लगा। वह रोशनी भी उसी की तरफ आ रही थी। जब बाग के अन्दर पहुँची, तो मालूम हुआ कि दो मशालों(लालटेन) की रोशनी में कई आदमी मोमजामे का छाता लगाये और मशालों को भी छाते की आड़ में लिए बंगलो की तरफ जा रहे है।


यह सही समय नही था लाश को ढूंढने का तो बीरसिंह वहाँ से हटा और जल्दी से उन आदमियों को पहुंचने से पहले ही उन आदमियों के पहले ही अपने बंगले में जा पहुंचा। अपने बंगले में जल्दी से पहुंचकर अपने गीले कपड़े उतार दिये और सूखे कपड़े पहनने ही वाला था कि रोशनी लिये वे लोग बंगले के गेट से होते हुए वह अंदर प्रवेश कर गए ।


बीरसिंह केवल सूखी धोती पहन कर उन लोगों के सामने आया। सभी ने झुक कर सलाम किया । इन आदमियों में दो महाराज करनसिंह के खास लोग के साथ बाकी के आठ महाराज के खास गुलाम थे। महाराज करनसिंह के यहाँ बीरसिंह की अच्छी इज्जत थी। यही कारण था कि महाराज के खास लोग भी बीरसिंह का इज्जत करते थे। (बीरसिंह की इज्जत और मिलनसारी तथा नेकियों का हाल आगे चलकर मालूम होगा।।)


बीर० : [दोनों खास लोगो की तरफ देख कर) आप लोगों को इस समय ऐसे आंधी-तूफान में यहाँ आने की जरूरत क्यों पड़ी?


एक खास आदमी : महाराज ने आपको याद किया है।


बीर० : कुछ कारण भी मालूम है?


खास आदमी : जी हाँ, महाराज के दुश्मनों से संबंधित सरकार (दुश्मनों का दमन करने वाली संस्थान) ने कुछ बुरी खबर सुनाई है इससे वह बहुत ही बेचैन हो रहे हैं।


बीर० : ( चौंक कर ) बुरी खबर? और वह क्या है ?


खास आदमी : (एक गहरी सांस लेकर) यही कि कुंवर सूरज सिंह की जिन्दगी शायद नहीं रही।


बीर० : (कांप कर) क्या ऐसी बात है?


खास आदमी : जी हाँ।


बीर० : मैं अभी चलता हूँ।


कपड़े पहनने के लिए बीरसिंह अपने कमरे में गया । इस समय बंगले में कोई भी नौकरानी मौजूद नहीं थी जो कुछ काम करती। बीरसिंह की परेशानी का हाल लिखना इस किस्से को व्यर्थ बढ़ाना है। तो भी पाठक लोग ऊपर का हाल पढ़ कर जरूर समझ गये होंगे कि उसके लिए यह‌ समय कैसा कठिन और भयानक था। बेचारे को इतनी मोहलत भी न मिली कि अपनी पत्नी तारा का पता तो लगा लेता, जिसे वह अपनी जान से भी ज्यादे चाहता और मानता था।


बीरसिंह कपड़े पहन कर महाराज के खास आदमियों और बाकी के आठ आदमियों के साथ रवाना हुआ। इस समय पानी का बरसना बिल्कुल बन्द हो गया था और रात एक पहर से भी कम रह गई थी। बीरसिंह खास महल की तरफ जा रहा था मगर तरह-तरह के खयालों को अपने दिमाग में आने से उसने बाहर रक्खा अर्थात्‌ वह अपने विचारों में ऐसा लीन हो रहा था कि तन-बदन की सुध न थी, केवल मशाल की रोशनी में महाराज के आदमियों के पीछे चलता जा रहा था।


बीरसिंह कभी तो तारा के खयाल में डूब जाता और सोचने लगता कि वह अचानक तारा कहाँ गायब हो गई या मुसीबत में तो नही फंस गई? और कभी उसका ध्यान कुंअर साहब की लाश की तरफ जाता और यह जो ताज्जुब की बातें हो चुकी थीं, उन्हें याद कर और उनके नतीजे के साथ अपने और अपने रिश्तेदारों पर भी आफत आई हुई जान उसका मजबूत कलेजा कांप जाता, क्योंकि बदनामी के साथ अपनी जान देना वह बहुत ही बुरा समझता था और लड़ाई में वीरता दिखाने के समय वह अपनी जान की कुछ भी कदर नहीं करता था। इसी के साथ-साथ वह जमाने की चालबाजियों पर भी ध्यान देता था और अपनी नौकरानियों की नमक हलाली को याद कर क्रोध के मारे दांत पीसने लगता था। कभी-कभी वह इस बात को भी सोचता कि आज महाराज ने इतने आदमियों को भेजकर मुझे क्यों बुलवाया ?


इस काम के लिये तो एक अदना नौकर काफी था। खैर इस बात का तो ऐसे जवाब देकर अपने दिल को समझा देता कि इस समय महाराज पर आफत आई हुई है, बेटे के गम में उनका मिजाज बदल गया होगा, घबराहट के मारे बुलाने के लिए इतने आदमियों को उसके पास उसे बुलाने के लिए भेजा होगा।


इन्हीं सब बातों को सोचते हुए महाराज के आदमियों के पीछे-पीछे बीरसिंह जा रहा था। जब वह अंगूर की बाग के पास पहुंचा जिसका जिक्र कई दफे ऊपर आ चुका है या जिस जगह अपने निर्दयी बाप के हाथ में बेचारी तारा ने अपनी जान सौंप दी थी या जिस जगह कुंअर सूरज सिंह की लाश पाई गई थी तो यकायक दोनों मशालची रुके और चौंक कर बोले, “हैं! देखिए तो सही यह किसकी लाश है?”


इस आवाज ने सभी को चौंका दिया। दोनों खास आदमी के साथ बीरसिंह भी आगे बढ़ा और पटरी पर एक लाश पड़ी हुई देख ताज्जुब करने लगा ! चाहे यह लाश बिना सिर की थी, तो भी बीरसिंह के साथ-ही-साथ महाराज के आदमियों ने भी पहिचान लिया कि कुंअर साहब की लाश है। अब बीरसिंह के ताज्जुब का कोई ठिकाना न रहा, क्योंकि इसी लाश को उठा कर वह गाड़ने के लिए एकान्त में ले गया था और जब माली की झोंपड़ी में से कुदाल लेकर आया तो वहाँ से गायब पाया था। बहुत देर तक ढूँढने पर भी जो लाश उसे न मिली, अब यकायक उसी लाश को फिर उसी जगह पर देखता है, जहाँ पहिले देखा था या जहाँ से उठा कर गाड़ने के लिए एकान्त में ले गया था।


महाराज के आदमियों ने इस लाश को देख कर रोना और चिल्लाना शुरू किया। खूब ही गुल-शोर मचा। अपनी-अपनी झोंपड़ियों में बेखबर सोए हुए माली भी सब जाग पड़े और उसी जगह पहुंच कर रोने और चिल्लाने वाले में सामिल हो गए।


थोड़ी देर तक वहाँ हाहाकार मचा रहा, इसके बाद बीरसिंह ने अपने दोनों हाथों पर उस लाश को उठा लिया तथा रोता और आंसू गिराता महाराज की तरफ रवाना हुआ।


तो यहां पर खंड- 02 समाप्त होने के साथ साथ कई सवाल भी छोड़ जाता है की….

  1. आखिर तारा के साथ क्या हुआ क्या उसे उसके पिता ने मार दिया.
  2. कुंवर सूरज सिंह को किसने मारा.
  3. अचानक कुंवर की लाश वहां से कैसे गायब होकर फिर से वही आ गई थी जहां से बीरसिंह उठाकर ले गया था.
  4. क्या इतने आदमियों को एक आदमी को बुलाना कोई गहरी चाल का संकेत तो नही है…

इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए बने रहिए इस कहानी के साथ मिलते है इस कहानी के अगले खंड - 03 में तब तक आप अपनी राय और यह खंड कैसा लगा उसके बारे में बताना और इस खंड को लाइक करना ना भूले…..
 

hirak01

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अब मैंने सही कर दिया है ।
और एक नया खंड जोड़ा है पढ़िए और अपनी राय दीजिए।
 

kamdev99008

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अब मैंने सही कर दिया है ।
और एक नया खंड जोड़ा है पढ़िए और अपनी राय दीजिए।
अभी राय देने के लिए कुछ विशेष नहीं............ कहानी की भूमिका बन रही है...........


मेरे मन में भी वही सवाल हैं जो वीर के मन में हैं............

जवाब देखते हैं....... कब और कहाँ मिलेंगे
 
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