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Fantasy कमीना चाहे नगीना

Ajju Landwalia

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समय जैसे थम गया, दिल कि धड़कनो ने जैसे धड़कना ही छोड़ दिया , धमनियों में रक्त का प्रवाह जैसे रुक सा गया, पुरे शरीर को काठ मार गया। चरम शून्य की अवस्था। तभी दूर अंधरे में बिजली कौंधी और एक आवाज धीमे धीमे जैसे किसी गहरे कुंए से आ रही हो।

अब आगे............

“मालिक मालिक ये ये लीजिये गर्म पानी, डा॰ अमोल पालेकर थोड़ी देर में बस पहुूँच रहे हैं…”

एक तेज झटके के साथ सेठजी की तन्द्रा टूटी और वो होश में आये तो देखा सामने धनिया खड़ी थी, हाथ में गरम पानी का भगोना लिए ।
किसी ने सच ही कहा है कि खूबसूरत औरत को देखकर अच्छे से अच्छा मर्द भी अपना आपा खो देता है। और अब सेठ जी का हाल भी अब कुछ ऐसा ही था, वो तो बस एकटक केशु के मुखमंडल को देखे ही जा रहे थे।

केशु का हर एक अंग अपने आप में सांचे में ढला हुआ भरापूरा था, उसका कद 5’4” होगा, वो गोरी चिट्टी एक खूबसूरत अप्सरा सी लग रही थी, उसके भारी ठोस उन्नत स्तन सांसों की गति के साथ धीमे धीमे ऊपर नीचे हो रहे थे, पतली बल खाती कमर, ढलवा पेट और उसपर सुशोमभत छोटी सी प्यारी नाभि, गोरे पेट से हल्के नीचे हल्के भूरे रंग के रोयों की हल्की सी लकीर। घुटनों तक पहने घाघरे से झलकती सुन्दर रेशमी टाँगे, चमकती हुई नरम गुदगुदी पिंडलियाँ, और सुंदर पैरों में पड़ी पतली चेन वाली पाजेब ने सेठजी की आत्मा और दिल को झकझोर के रख दिया।

तभी बाहर आसमान में काले बादलो के साथ बड़ी जोर की घड़घड़ाहट के साथ बिजली चमकी और ठन्डे पानी की फुहारों के साथ रिमझिम वर्षा का आगमन हुआ। ये बिजली कही हद तक सेठजी के दिल की गहराइयों में जाकर उतर चुकी थी। सेठजी के माथे से पशीने की कुछ बुँदे ढुलक कर केशु के ढलवा पेट पर जा गिरी, और एक या दो बून्द तो उसकी नाभि में समा गई। हड़बड़ा के उन्होंने जल्दी से गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर केशु का माथा और चेहरा साफ किया।

केशु का पेट हल्का सा थरथराया, बंद पलकों ने अपने पंख उठाये, और मंद मंद आँखों से केशु ने अपनी पलकें खोली, दोनों की आँखे चार हुई और एक अनबुझा सा मूक सन्देश दोनों में आदानप्रदान हुआ।

उसने सेठजी की तरफ देखा और हल्के से मुश्कुराई, पर कुछ नहीं कहा।

सेठजी- अब कैसी हो केशु?

केशु ने कहा- ठीक हूँ।

तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई, कुछ पल पश्चात डा॰ अमोल पालेकर ने घर के भीतर प्रवेश किया, सेठजी ने जल्दी से डा॰ साहेब से हाथ मिलाया और केशु की जांच पड़ताल के लिए कहा।

डा॰ साहेब ने जल्दी से केशु की प्रारम्भिक जांच की और उसकी अंगुली की मरहम पट्टी की, अपना बेग खोल के स्टेथेस्कोप निकाला और केशु के वक्षस्थल पर रखकर हृदय की गति, एवम् नब्ज इत्यादि की जांच की। अधिक खून बह जाने की वजह से आई कमजोरी के फलस्वरूप हल्का सा बुखार भी आ गया था, कफर भी उन्होंने केशु का ब्लूडप्रेशर चेक किया तो पता लगा की कमजोरी के कारन वो भी न्यूनतम था।

आवश्यक दवाई और इंजेक्शन देने के बाद उन्होंने प्यार से केशु से पूछा - “बिटिया ये उंगली कैसे काट ली?”

केशु मासुमता से बोलै - “जी उसने दो बार गोली चलने की आवाज सुनी तो डर के मारे मेरी उंगली कट गई सब्जी की जगह…”
डा॰ अमोल ने हैरत से सेठ अजयानंद की तरफ देखा।

इतना मासूम जवाब सुनकर सेठजी ठठाकर जोर से हंसने लगे और हँसते हँसते उनकी आँखों से पानी आ गया।

डा॰ अमोल- सेठजी आप हँस क्यों रहे है?

सेठजी- “कुछ नहीं अमोल साहेब- आप आइये मैं समझाता हूँ आपको, दरअसल केशु अभी मासूम है, हमारी गलती थी हमने क्रोध में बंदूक चला दी थी। वो दो गोलियाँ दर-असल दो पापी दुष्टो के लिए हमारी बंदूक से निकली थी, जो जल्द ही हमारा सन्देश उन तक पहुँचा भी देगी…”
सेठजी और डा॰ अमोल- हा हा हा हा हा।

सेठजी- धनिया जाओ एक गिलास गरम हल्दी वाला दूध केशु को पीला दो, और उसे आराम करवाओ।

धनिया - जी मामलक।

डा॰ अमोल- “अच्छा सेठजी आज्ञा दीजिये चलता हूँ …” फिर ठिठकर धीरे से सेठजी के कान में बोले- “ऐसे ही किसी हादसे से केशु की याददाश्त वापस आ सकती है…”

ये सुनकर सेठजी पहले तो खुश हुए फिर अचानक पता नहीं क्यों उन्हें पहली बार अच्छा सा नहीं लगा। लेकिन उन्होंने अपने आपको संभाल लिया ।
हवेली से लौटते समय डा॰ अमोल के दिल और में दिमाग में वासना की तेज लहरे हिलोरे मार रही थी। इतनी ठंडी वर्षा में भी बदन जल सा रहा था। 55 वर्षीय डा॰ अमोल आज कई वर्षों बाद एक नारी शरीर की कमी महसूस कर रहे थे, उनका पुरुषांग आज कई साल बाद विद्रोह पे उतर आया था। वो दृशय जब केशु के उन्नत परवत शिखर समान उरोज मन्द मंद सांसों की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे और वो स्टेथेस्कोप से जांच पड़ताल कर रहे थे। उँगलियों के पोरों में अभी भी उन नर्म स्तनों की अग्नि महसूस हो रही थी।

डा॰ अमोल ने अपने विचारो को झटकने की बेहद कोशिश की। पर उनका मन उन्हें अतीत की ओर ले चला, जब वो 24 वर्षीय थे और मेडिकल कालेज में अपनी रंगीनियो के लिए बेहद मशहूर थे। उनके मित्र उन्हें सेक्स गुरू कहते थे।
वैसे डा॰ साहब दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी थे। एकतरफ पूर्ण धार्मिक एवं सात्वीक, रोज मंदिर जाना, पूजा अर्चना करना, ललाट पे चमकता त्रिपुण्ड

दूसरी तरफ नारी शरीर विज्ञानं में पूर्ण में पारंगत थे। एक नवयौवना को सम्पूर्ण रूप से कैसे संतुष्ट करते हैं, इसका अच्छा ज्ञान था उन्हें। कामक्रीड़ा में बहुत निपुण थे अक्सर कालेज की युवनतयों के साथ प्रेम प्रसंग में व्यस्त रहते थे। कई युवतिया उनसे अपने कामुक शरीर की प्यास बुझाने के लिए लालायित रहती थी।

“योनि उत्पीड़न एवं गुदा मैथुन” में पारंगत थे डा॰ साहब। इस सम्बन्ध में तो उन्होंने कई लेख भी प्रकाशित किये थे जिन्हे सब विधार्थी बड़े ही चाव से पढ़ते थे और अपनाते थे।

पर डा॰ बनने के बाद वो पूर्ण रूप से लोगों की सेवा में व्यस्त हो गए और विवाह भी नहीं किया। सुबह शाम बस मरीजों की सेवा में। लेकिन आज विधि ने एक बार फिर उनके सोये हुए शेर को जगा दिया था। दूर शून्य में सोचते हुए वो क्लिनिक में वापिस आ गए।

क्लिनिक में पहुूँचकर डा॰ अमोल कटे पेड़ की तरह अपनी कुसी पे गिर पड़े, उनके शरीर ने उनके दिलो दिमाग का साथ छोड़ दिया था, वासना के ताप में उनका समस्त शरीर धूं -धूं करके जल रहा था, वो भूल गए थे की 55 वर्ष की इस प्रौढ़ अवस्था में ये सब उन्होंने शोभा नहीं देगा, लेकिन वो अपने दिल के हाथों मज़बूर हो गए थे, उनके मष्तिष्क में केशु के शरीर को लेकर शैतानी विचार आने लगे थे। और वो आगे की योजना बनाने लगे।



क्रमश: ............
 

Nevil singh

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समय जैसे थम गया, दिल कि धड़कनो ने जैसे धड़कना ही छोड़ दिया , धमनियों में रक्त का प्रवाह जैसे रुक सा गया, पुरे शरीर को काठ मार गया। चरम शून्य की अवस्था। तभी दूर अंधरे में बिजली कौंधी और एक आवाज धीमे धीमे जैसे किसी गहरे कुंए से आ रही हो।

अब आगे............

“मालिक मालिक ये ये लीजिये गर्म पानी, डा॰ अमोल पालेकर थोड़ी देर में बस पहुूँच रहे हैं…”

एक तेज झटके के साथ सेठजी की तन्द्रा टूटी और वो होश में आये तो देखा सामने धनिया खड़ी थी, हाथ में गरम पानी का भगोना लिए ।
किसी ने सच ही कहा है कि खूबसूरत औरत को देखकर अच्छे से अच्छा मर्द भी अपना आपा खो देता है। और अब सेठ जी का हाल भी अब कुछ ऐसा ही था, वो तो बस एकटक केशु के मुखमंडल को देखे ही जा रहे थे।

केशु का हर एक अंग अपने आप में सांचे में ढला हुआ भरापूरा था, उसका कद 5’4” होगा, वो गोरी चिट्टी एक खूबसूरत अप्सरा सी लग रही थी, उसके भारी ठोस उन्नत स्तन सांसों की गति के साथ धीमे धीमे ऊपर नीचे हो रहे थे, पतली बल खाती कमर, ढलवा पेट और उसपर सुशोमभत छोटी सी प्यारी नाभि, गोरे पेट से हल्के नीचे हल्के भूरे रंग के रोयों की हल्की सी लकीर। घुटनों तक पहने घाघरे से झलकती सुन्दर रेशमी टाँगे, चमकती हुई नरम गुदगुदी पिंडलियाँ, और सुंदर पैरों में पड़ी पतली चेन वाली पाजेब ने सेठजी की आत्मा और दिल को झकझोर के रख दिया।

तभी बाहर आसमान में काले बादलो के साथ बड़ी जोर की घड़घड़ाहट के साथ बिजली चमकी और ठन्डे पानी की फुहारों के साथ रिमझिम वर्षा का आगमन हुआ। ये बिजली कही हद तक सेठजी के दिल की गहराइयों में जाकर उतर चुकी थी। सेठजी के माथे से पशीने की कुछ बुँदे ढुलक कर केशु के ढलवा पेट पर जा गिरी, और एक या दो बून्द तो उसकी नाभि में समा गई। हड़बड़ा के उन्होंने जल्दी से गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर केशु का माथा और चेहरा साफ किया।

केशु का पेट हल्का सा थरथराया, बंद पलकों ने अपने पंख उठाये, और मंद मंद आँखों से केशु ने अपनी पलकें खोली, दोनों की आँखे चार हुई और एक अनबुझा सा मूक सन्देश दोनों में आदानप्रदान हुआ।

उसने सेठजी की तरफ देखा और हल्के से मुश्कुराई, पर कुछ नहीं कहा।

सेठजी- अब कैसी हो केशु?

केशु ने कहा- ठीक हूँ।

तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई, कुछ पल पश्चात डा॰ अमोल पालेकर ने घर के भीतर प्रवेश किया, सेठजी ने जल्दी से डा॰ साहेब से हाथ मिलाया और केशु की जांच पड़ताल के लिए कहा।

डा॰ साहेब ने जल्दी से केशु की प्रारम्भिक जांच की और उसकी अंगुली की मरहम पट्टी की, अपना बेग खोल के स्टेथेस्कोप निकाला और केशु के वक्षस्थल पर रखकर हृदय की गति, एवम् नब्ज इत्यादि की जांच की। अधिक खून बह जाने की वजह से आई कमजोरी के फलस्वरूप हल्का सा बुखार भी आ गया था, कफर भी उन्होंने केशु का ब्लूडप्रेशर चेक किया तो पता लगा की कमजोरी के कारन वो भी न्यूनतम था।

आवश्यक दवाई और इंजेक्शन देने के बाद उन्होंने प्यार से केशु से पूछा - “बिटिया ये उंगली कैसे काट ली?”

केशु मासुमता से बोलै - “जी उसने दो बार गोली चलने की आवाज सुनी तो डर के मारे मेरी उंगली कट गई सब्जी की जगह…”
डा॰ अमोल ने हैरत से सेठ अजयानंद की तरफ देखा।

इतना मासूम जवाब सुनकर सेठजी ठठाकर जोर से हंसने लगे और हँसते हँसते उनकी आँखों से पानी आ गया।

डा॰ अमोल- सेठजी आप हँस क्यों रहे है?

सेठजी- “कुछ नहीं अमोल साहेब- आप आइये मैं समझाता हूँ आपको, दरअसल केशु अभी मासूम है, हमारी गलती थी हमने क्रोध में बंदूक चला दी थी। वो दो गोलियाँ दर-असल दो पापी दुष्टो के लिए हमारी बंदूक से निकली थी, जो जल्द ही हमारा सन्देश उन तक पहुँचा भी देगी…”
सेठजी और डा॰ अमोल- हा हा हा हा हा।

सेठजी- धनिया जाओ एक गिलास गरम हल्दी वाला दूध केशु को पीला दो, और उसे आराम करवाओ।

धनिया - जी मामलक।

डा॰ अमोल- “अच्छा सेठजी आज्ञा दीजिये चलता हूँ …” फिर ठिठकर धीरे से सेठजी के कान में बोले- “ऐसे ही किसी हादसे से केशु की याददाश्त वापस आ सकती है…”

ये सुनकर सेठजी पहले तो खुश हुए फिर अचानक पता नहीं क्यों उन्हें पहली बार अच्छा सा नहीं लगा। लेकिन उन्होंने अपने आपको संभाल लिया ।
हवेली से लौटते समय डा॰ अमोल के दिल और में दिमाग में वासना की तेज लहरे हिलोरे मार रही थी। इतनी ठंडी वर्षा में भी बदन जल सा रहा था। 55 वर्षीय डा॰ अमोल आज कई वर्षों बाद एक नारी शरीर की कमी महसूस कर रहे थे, उनका पुरुषांग आज कई साल बाद विद्रोह पे उतर आया था। वो दृशय जब केशु के उन्नत परवत शिखर समान उरोज मन्द मंद सांसों की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे और वो स्टेथेस्कोप से जांच पड़ताल कर रहे थे। उँगलियों के पोरों में अभी भी उन नर्म स्तनों की अग्नि महसूस हो रही थी।

डा॰ अमोल ने अपने विचारो को झटकने की बेहद कोशिश की। पर उनका मन उन्हें अतीत की ओर ले चला, जब वो 24 वर्षीय थे और मेडिकल कालेज में अपनी रंगीनियो के लिए बेहद मशहूर थे। उनके मित्र उन्हें सेक्स गुरू कहते थे।
वैसे डा॰ साहब दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी थे। एकतरफ पूर्ण धार्मिक एवं सात्वीक, रोज मंदिर जाना, पूजा अर्चना करना, ललाट पे चमकता त्रिपुण्ड

दूसरी तरफ नारी शरीर विज्ञानं में पूर्ण में पारंगत थे। एक नवयौवना को सम्पूर्ण रूप से कैसे संतुष्ट करते हैं, इसका अच्छा ज्ञान था उन्हें। कामक्रीड़ा में बहुत निपुण थे अक्सर कालेज की युवनतयों के साथ प्रेम प्रसंग में व्यस्त रहते थे। कई युवतिया उनसे अपने कामुक शरीर की प्यास बुझाने के लिए लालायित रहती थी।

“योनि उत्पीड़न एवं गुदा मैथुन” में पारंगत थे डा॰ साहब। इस सम्बन्ध में तो उन्होंने कई लेख भी प्रकाशित किये थे जिन्हे सब विधार्थी बड़े ही चाव से पढ़ते थे और अपनाते थे।

पर डा॰ बनने के बाद वो पूर्ण रूप से लोगों की सेवा में व्यस्त हो गए और विवाह भी नहीं किया। सुबह शाम बस मरीजों की सेवा में। लेकिन आज विधि ने एक बार फिर उनके सोये हुए शेर को जगा दिया था। दूर शून्य में सोचते हुए वो क्लिनिक में वापिस आ गए।

क्लिनिक में पहुूँचकर डा॰ अमोल कटे पेड़ की तरह अपनी कुसी पे गिर पड़े, उनके शरीर ने उनके दिलो दिमाग का साथ छोड़ दिया था, वासना के ताप में उनका समस्त शरीर धूं -धूं करके जल रहा था, वो भूल गए थे की 55 वर्ष की इस प्रौढ़ अवस्था में ये सब उन्होंने शोभा नहीं देगा, लेकिन वो अपने दिल के हाथों मज़बूर हो गए थे, उनके मष्तिष्क में केशु के शरीर को लेकर शैतानी विचार आने लगे थे। और वो आगे की योजना बनाने लगे।



क्रमश: ............
Khubsurat update bhai
Ek anaar sou beemar
Keshu keshu
Konshi chakki ka aata khati hai tu
Sab bemol bik gaye tera hushn dekher
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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Nice update :good:
Kahani mein suspense bnaa hua hai ki aakhir 'Kameena' kaun hai? Is suspense ke liye aapko bahut-bahut dhnywaad mitr.
I was expecting ki kuch hot scene aayega, I hope aage aaye! :hinthint2:
Keshu ke jeevan par thoda or prakaash daaliye, thoda flashback mein le jaaiye.
Adhik se adhik update dene ki koshish karte rahiye.
Dhnywaad 🙏
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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Nice update :good:
Kahani mein suspense bnaa hua hai ki aakhir 'Kameena' kaun hai? Is suspense ke liye aapko bahut-bahut dhnywaad mitr.
I was expecting ki kuch hot scene aayega, I hope aage aaye! :hinthint2:
Keshu ke jeevan par thoda or prakaash daaliye, thoda flashback mein le jaaiye.
Adhik se adhik update dene ki koshish karte rahiye.
Dhnywaad 🙏


Maanu Bhai, Keshu ke pichale jivan ka flash back previous update me diya hain
 

Ajju Landwalia

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योनि उत्पीड़न एवं गुदा मैथुन” में पारंगत थे डा॰ साहब। इस सम्बन्ध में तो उन्होंने कई लेख भी प्रकाशित किये थे जिन्हे सब विधार्थी बड़े ही चाव से पढ़ते थे और अपनाते थे।

पर डा॰ बनने के बाद वो पूर्ण रूप से लोगों की सेवा में व्यस्त हो गए और विवाह भी नहीं किया। सुबह शाम बस मरीजों की सेवा में। लेकिन आज विधि ने एक बार फिर उनके सोये हुए शेर को जगा दिया था। दूर शून्य में सोचते हुए वो क्लिनिक में वापिस आ गए।
क्लिनिक में पहुूँचकर डा॰ अमोल कटे पेड़ की तरह अपनी कुसी पे गिर पड़े, उनके शरीर ने उनके दिलो दिमाग का साथ छोड़ दिया था, वासना के ताप में उनका समस्त शरीर धूं -धूं करके जल रहा था, वो भूल गए थे की 55 वर्ष की इस प्रौढ़ अवस्था में ये सब उन्होंने शोभा नहीं देगा, लेकिन वो अपने दिल के हाथों मज़बूर हो गए थे, उनके मष्तिष्क में केशु के शरीर को लेकर शैतानी विचार आने लगे थे। और वो आगे की योजना बनाने लगे।

अब आगे

उधर सेठ अजयानंद जी- अपने शयनकक्ष के विशाल पलंग पर लेटे करवटे ले रहे थे, मंदिर के 9 पेग पीने के बाद भी निंद्रा रानी उनकी आँखों से कोसों दूर खड़े होकर उन्हें चिढ़ा रही थी, रह-रहकर केशु का मासूम चेहरा, कजरारे नैन, सुर्ख होंठ, सुराहीदार गर्दन, गौर वर्ण उन्नत वक्षस्थल और वो नन्हा सा काला तिल, एवम्
केशु की सुगन्धित सांसें और अंततः उनके नथुनों में अभी तक बसी हुई केशु के शरीर की वो संदली महक ने उनके पुरे दिलो दिमाग और उनकी आत्मा को झकझोर के रख दिया था।

बिस्तर में बिछी नरम रेशमी चादर उन्हें रेगिस्तान की कठिन और निष्ठुर गर्मी का अहसास ददला रही थी। एयरकण्डीशन के चलने के बावजूद भी कमरे का तापमान अत्यंत गर्म था, सेठजी का गला प्यास से सुख रहा था। जब प्यास असहनीय हो गई तो वो अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गए, और बाजू में रखी टेबल की तरफ देखा तो पाया की आज वहां रखी चमड़े की सुराही खाली पड़ी है, रात्रि के तीसरे पहर में उन्हें किसी नौकर को आवाज देना अच्छा नहीं लगा, और वो स्वयं उठकर अपनी लुंगी को व्यस्थित करते हुए सुराही लेकर रसोई घर की तरफ चल पड़े।
रसोई घर का रास्ता दीवाने खास से होकर ही गुजरता था। जैसे ही वो दीवानेखास में दाखिल होकर रसोईघर की तरफ बढ़े, न चाहते हुए भी उनकी उचटती हुई नजर दीवानेखास के दीवान पर सोती हुई केशु पर पड़ी। हालाँकि रात्रि के का तीसरा पहर था। घड़ी ने शायद पौने तीन ही बजाये होंगे।

खिड़की से आती हल्की चांदनी में उन्होंने देखा कि गहरी नींद के आगोश में बेसुध केशु शायद कोई सुखद स्वपन देखती हुई हल्की सी मुश्कान लिए सो रही थी।

वक्षस्थल की चादर दीवान से नीचे लटक रही थी, गहरी निंद्रा की बेध्यानी में कमर का घाघरा घुटनों तक चढ़ा हुआ, सेठजी को चिढ़ाता हुआ सा प्रतीत हुआ। चाँद की रोशनी में चमकती रेत की तरह गोरी सुडौल पिंडलियों को हवा धीमे धीमे बहती हुई चूमती सी हुई प्रतीत हो रही थी, ऐसा सा लग रहा था कि किसी विश्विख्यात मूर्तिकार की रचना सामने लेटी हो।

यह दृश्य देखकर सेठजी बुत बनकर खड़े रह गए और न जाने कितने पलों तक उस सोती हुई सुंदरी के रूप लावण्य को मूक दृष्टि से पीते रहे। वो भूल चुके थे की वो प्यासे हैं, और पानी के लिए रसोई घर जाने वाले थे। धीरे धीरे स्वयं ही उनके कदम दीवान की तरफ बढ़ चले, कुछ समय निहारने के बाद वो धीमे से दीवान के किनारे बैठ गए। केशु के शरीर से उठती वो मादक संदली महक धीरे धीरे उनके नथुनों में उतरने लगी, और सेठजी मदहोश होने लगे।

तभी केशु ने हल्के से करवट ली और नींद में ही एक मासूम बच्चे की तरह अपने दोनों हाथ और घुटने समेट के लेट गई। इस मुद्रा में उसके मादक ठोस नितम्ब और उभर के सेठजी को चिढ़ाने लगे, सेठजी का मुूँह सुंख गया और हाथ कंपकंपाने लगे, उनके सम्पूर्ण शरीर के रोंगटे खड़े हो गए, और बस एक पल के लिए उस रेशमी त्वचा को महसूस करने के लिए बेचैन हो उठे। धीरे धीरे उनका कांपता हाथ उन उन्नत नितम्बो की तरफ बढ़ा।

लेकिन सेठजी की मर्यादा उनके अंतर्मन में उनको कचोटने लगी और उन्होंने घबराते हुए अपना हाथ वापिस खींच लिया, और फिर एक नजर केशु के मासूम चेहरे पर डाली। रक्त रूपी लालिमा लिए वो भरे हुए भरे हुए अधर जिनसे शहद टपकता प्रतीत हो रहा था सेठजी को उलाहना सा दे रहे थे।

फिर सेठजी ने ने एक लंबी सांस लेते हुए धीरे से दीवान के नीचे लटक रही चादर को उठाकर केशु के शरीर को ढक दिया और वापिस बोझिल कदमों से रसोई घर की तरफ मुड़ गए। रसोईघर में 4 गिलास ठंडा पानी पीने के बाद भी उनकी प्यास नहीं बुझी, और वो बोझिल मन से अपने शयनकक्ष की तरफ बढ़ चले। दूर कही उनके मन के कोने में एक मूक अनबुझ प्रेम की कोपलों ने अंकुरित होना शुरू कर दिया था।
अगली सुबह जीवन में एक अन्य अध्याय जोड़ने जा रही थी। सोचते-सोचते सेठजी की आँखे बोझिल हो उठी और नींद के आगोश में चले गए।

भेड़िया बाबू राव छत्तीसगढ़ के जंगलों का राजा था। असली नाम बावरिया सेठ गाँव मांडवा था। छत्तीसगढ़ के सभी नक्सली ग्रुप उसके अधीन थे और उसकी सहमति से कार्य करते थे। उसे रेस के घोड़ों और कई तरह के सौदों की खरीद फरोख्त का शौक था। लेकिन दिल का सौदागर था और ज़ुबान दोधारी तलवार के समान थी। एक तांत्रिक मित्र मिलन में उसकी मुलाकात ठाकुर महेंद्र प्रताप से हुई और दोनों जिगरी यार बन गए। ठाकुर महेंद्र ने खुश होकर उसे भेड़िया बाबू राव कि उपाधि दी थी। क्योंकी उसने एक बड़े तांत्रिक गिरोह का पर्दाफाश अपनी दोधारी तलवार से कर दिया था।

उसका कांटा कोबरा नाग से भी ज्यादा घातक था। आजकल भड़िया बाबू राव ठाकुर साहब के शेरो को ट्रेनिंग दे के उन्हें और खतरनाक बना रहा था। बाब राव की एक और खासियत थी उसका जहरीला पुरुर्षांग, उसका लिंग, अपने जहरीले लिंग और दुधारी तलवार रूपी जबान से आहत कई दुष्ट लोग आज भी अपनी गुदा का इलाज करा रहे है।

इधर काका लंडैत लगातार दो दिन से जीतू तूफानी घोड़े को दौड़ाते हुए नजफगढ़ ठाकुर महेंद्र प्रताप महालण्डधारी की हवेली पहुूँच गया और उनके नौकर को अपने आगमन की सुचना दी। नौकर ने काका लंडैत को मेहमान कक्ष में ठहराया और जलपान ग्रहण कराया। ठाकुर साहब अपने निजी फार्महाउस में अपने पालतू शेरों के साथ व्यस्त थे, ठाकुर महेन्द्र को शेरो को पालने का बहुत शौक था, लंबे चौड़े व्यक्तित्व रोबदार आवाज, धीमी और शेर की तरह ठहरी हुई चाल उनका गुण थी।

उसी शाम गाँव के नुक्कड़ पर काली कड़ाही पे चाउमीन बनाने वाली कुमारी पीपली देवी के अड्डे पर बैठे बंसी लंगुरा और विपु बड़बोला उधार में ली हुई चाउमीन और कच्ची दारू का मजा ले रहे थे।

विपु - यार बंसी ये कच्ची दारू पीने में अब मजा नहीं आवत। कोनउ अंग्रेजी शराब का जुगाड़ कर बे हलुये।

बंसी- यार तुम तो बस रहने दो बाप के गल्ले से पैसे चुरा-चुरा के बड़ी मुजश्कल से इस दारू का जुगाड़ किया हूँ , तुम क्या जानो मुठ्ठी की कीमत? मेरे सेठ को पता लगा तो मेरी गुल्लक का छेद बड़ा करके फाड़ देगा।

विपु - “अबे भिड़ु भाई के लिए इतना नहीं कर सकता। हम दोनों की गुल्लक के छेद तो वैसे ही बड़े हैं…” आँख मारता हुआ- “भूल गया क्या?” कहते हुए विपु ने खींसे निपोरते हुए बंसी लंगुरा की गुल्लक (नितम्ब) पर हाथ फेर दिया ।

बंसी ने उसके हाथ को झटकते हुए कहा- “छोड़ो ना क्या करते हो? सुरसुरी मच जावे ससुरी गाण्ड में…” और पूरा पेग एक झटके में खींच डाला। दो उंगलियों से चाउमीन मुंह में डालते हुए आँखे बंद करके बंसी बोला- “यार बड़े दिन हो गए योनि रस पिये हुए। आजकल तो कोई ससुरी रांड भी उधार न देवे…”

विपु बड़बोला के दिमाग में तभी बिजली कौंधी और केशु के नितम्ब याद आ गए- “हाय भोसडु क्या याद दिला दिया तूने ? वो कुतिया केशु की गुल्लक नजरों के सामने अभी भी मटक रही है…” कहते हुए वो अपने काले निर्जीव लिंग को मसलने लगा।

बंसी- अरे इस बेचारे का गला क्यों दबा रहे हो। लाओ मैं सहला दूँ इसे।

ववपु- नहीं रे आजकल तो ये उठता ही नहीं मरा। लगता है वो अधेड़ डा॰ अमोल के पास जाना पड़ेगा इलाज के लिए , अभी तो उसका पिछले क़र्ज़ भी चुकाना है।

बंसी- तो करा लो इलाज काहे बुड़बुड़ा रहे हो।

ववपु- अरे तू जानत नहीं रे, हम उस डा॰ का कई बार फुद्दू बनाया हूँ । ससुर कहीं गलत इलाज न कर दे। पैसन का इंतेज़ाम करवा दे रे।
बंसी- गुल्लक फुड़वा लूँ क्या तोहार चक्कर में।

खाली बोतल एक तरफ लुढ़की इन दोने धूर्तो का मुँह चिढ़ा रही थी।

विपु - रे बंसी एक बार और मदद कर दे रे, चाहे तू मेरी गुल्लक दो बार फोड़ लियो, चल तुझे अपने एक मित्र चोदू लाल राजा भैया से मिलवाता हूँ वो तेरी योनि रस पीने की ललक पूरी करा देगा।

बंसी की आँखे चमक उठी और वो बिल्लौटे की तरह लार टपकाते हुए चलने को तैयार हो गया, और बदले में विपु को पैसे देने का वचन भी दिया । दोनों ने एक बार फिर चाउमीन की प्लेट को आखिरी बार चाटा और खाली बोतल में थोड़ा पानी डालकर हिला के अपने गले में उत्तार लिया । प्लेट में बची चाउमीन के मसाले से अपनी जीभ को चटपटा महसूस कराके दोनों कुमारी पीपली देवी के अड्डे से बिना पैसा दिए निकल पड़े राजा भैया के पास।

क्रमश....................
 

Rockstar_Rocky

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Maanu Bhai, Keshu ke pichale jivan ka flash back previous update me diya hain
Vaisa flashback nahin mitr, thoda bada or 'rasik' type ka update! :hinthint:
 

Alphatiger

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धमाकेदार अपडेट लण्डवलिया साहब
 
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