• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy कमीना चाहे नगीना

sunoanuj

Well-Known Member
3,377
9,009
159
Bahut gajab Mitr ajju …

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻🌷🌷🌷🌷
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,005
173
योनि उत्पीड़न एवं गुदा मैथुन” में पारंगत थे डा॰ साहब। इस सम्बन्ध में तो उन्होंने कई लेख भी प्रकाशित किये थे जिन्हे सब विधार्थी बड़े ही चाव से पढ़ते थे और अपनाते थे।

पर डा॰ बनने के बाद वो पूर्ण रूप से लोगों की सेवा में व्यस्त हो गए और विवाह भी नहीं किया। सुबह शाम बस मरीजों की सेवा में। लेकिन आज विधि ने एक बार फिर उनके सोये हुए शेर को जगा दिया था। दूर शून्य में सोचते हुए वो क्लिनिक में वापिस आ गए।
क्लिनिक में पहुूँचकर डा॰ अमोल कटे पेड़ की तरह अपनी कुसी पे गिर पड़े, उनके शरीर ने उनके दिलो दिमाग का साथ छोड़ दिया था, वासना के ताप में उनका समस्त शरीर धूं -धूं करके जल रहा था, वो भूल गए थे की 55 वर्ष की इस प्रौढ़ अवस्था में ये सब उन्होंने शोभा नहीं देगा, लेकिन वो अपने दिल के हाथों मज़बूर हो गए थे, उनके मष्तिष्क में केशु के शरीर को लेकर शैतानी विचार आने लगे थे। और वो आगे की योजना बनाने लगे।

अब आगे

उधर सेठ अजयानंद जी- अपने शयनकक्ष के विशाल पलंग पर लेटे करवटे ले रहे थे, मंदिर के 9 पेग पीने के बाद भी निंद्रा रानी उनकी आँखों से कोसों दूर खड़े होकर उन्हें चिढ़ा रही थी, रह-रहकर केशु का मासूम चेहरा, कजरारे नैन, सुर्ख होंठ, सुराहीदार गर्दन, गौर वर्ण उन्नत वक्षस्थल और वो नन्हा सा काला तिल, एवम्
केशु की सुगन्धित सांसें और अंततः उनके नथुनों में अभी तक बसी हुई केशु के शरीर की वो संदली महक ने उनके पुरे दिलो दिमाग और उनकी आत्मा को झकझोर के रख दिया था।

बिस्तर में बिछी नरम रेशमी चादर उन्हें रेगिस्तान की कठिन और निष्ठुर गर्मी का अहसास ददला रही थी। एयरकण्डीशन के चलने के बावजूद भी कमरे का तापमान अत्यंत गर्म था, सेठजी का गला प्यास से सुख रहा था। जब प्यास असहनीय हो गई तो वो अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गए, और बाजू में रखी टेबल की तरफ देखा तो पाया की आज वहां रखी चमड़े की सुराही खाली पड़ी है, रात्रि के तीसरे पहर में उन्हें किसी नौकर को आवाज देना अच्छा नहीं लगा, और वो स्वयं उठकर अपनी लुंगी को व्यस्थित करते हुए सुराही लेकर रसोई घर की तरफ चल पड़े।
रसोई घर का रास्ता दीवाने खास से होकर ही गुजरता था। जैसे ही वो दीवानेखास में दाखिल होकर रसोईघर की तरफ बढ़े, न चाहते हुए भी उनकी उचटती हुई नजर दीवानेखास के दीवान पर सोती हुई केशु पर पड़ी। हालाँकि रात्रि के का तीसरा पहर था। घड़ी ने शायद पौने तीन ही बजाये होंगे।

खिड़की से आती हल्की चांदनी में उन्होंने देखा कि गहरी नींद के आगोश में बेसुध केशु शायद कोई सुखद स्वपन देखती हुई हल्की सी मुश्कान लिए सो रही थी।

वक्षस्थल की चादर दीवान से नीचे लटक रही थी, गहरी निंद्रा की बेध्यानी में कमर का घाघरा घुटनों तक चढ़ा हुआ, सेठजी को चिढ़ाता हुआ सा प्रतीत हुआ। चाँद की रोशनी में चमकती रेत की तरह गोरी सुडौल पिंडलियों को हवा धीमे धीमे बहती हुई चूमती सी हुई प्रतीत हो रही थी, ऐसा सा लग रहा था कि किसी विश्विख्यात मूर्तिकार की रचना सामने लेटी हो।

यह दृश्य देखकर सेठजी बुत बनकर खड़े रह गए और न जाने कितने पलों तक उस सोती हुई सुंदरी के रूप लावण्य को मूक दृष्टि से पीते रहे। वो भूल चुके थे की वो प्यासे हैं, और पानी के लिए रसोई घर जाने वाले थे। धीरे धीरे स्वयं ही उनके कदम दीवान की तरफ बढ़ चले, कुछ समय निहारने के बाद वो धीमे से दीवान के किनारे बैठ गए। केशु के शरीर से उठती वो मादक संदली महक धीरे धीरे उनके नथुनों में उतरने लगी, और सेठजी मदहोश होने लगे।

तभी केशु ने हल्के से करवट ली और नींद में ही एक मासूम बच्चे की तरह अपने दोनों हाथ और घुटने समेट के लेट गई। इस मुद्रा में उसके मादक ठोस नितम्ब और उभर के सेठजी को चिढ़ाने लगे, सेठजी का मुूँह सुंख गया और हाथ कंपकंपाने लगे, उनके सम्पूर्ण शरीर के रोंगटे खड़े हो गए, और बस एक पल के लिए उस रेशमी त्वचा को महसूस करने के लिए बेचैन हो उठे। धीरे धीरे उनका कांपता हाथ उन उन्नत नितम्बो की तरफ बढ़ा।

लेकिन सेठजी की मर्यादा उनके अंतर्मन में उनको कचोटने लगी और उन्होंने घबराते हुए अपना हाथ वापिस खींच लिया, और फिर एक नजर केशु के मासूम चेहरे पर डाली। रक्त रूपी लालिमा लिए वो भरे हुए भरे हुए अधर जिनसे शहद टपकता प्रतीत हो रहा था सेठजी को उलाहना सा दे रहे थे।

फिर सेठजी ने ने एक लंबी सांस लेते हुए धीरे से दीवान के नीचे लटक रही चादर को उठाकर केशु के शरीर को ढक दिया और वापिस बोझिल कदमों से रसोई घर की तरफ मुड़ गए। रसोईघर में 4 गिलास ठंडा पानी पीने के बाद भी उनकी प्यास नहीं बुझी, और वो बोझिल मन से अपने शयनकक्ष की तरफ बढ़ चले। दूर कही उनके मन के कोने में एक मूक अनबुझ प्रेम की कोपलों ने अंकुरित होना शुरू कर दिया था।
अगली सुबह जीवन में एक अन्य अध्याय जोड़ने जा रही थी। सोचते-सोचते सेठजी की आँखे बोझिल हो उठी और नींद के आगोश में चले गए।

भेड़िया बाबू राव छत्तीसगढ़ के जंगलों का राजा था। असली नाम बावरिया सेठ गाँव मांडवा था। छत्तीसगढ़ के सभी नक्सली ग्रुप उसके अधीन थे और उसकी सहमति से कार्य करते थे। उसे रेस के घोड़ों और कई तरह के सौदों की खरीद फरोख्त का शौक था। लेकिन दिल का सौदागर था और ज़ुबान दोधारी तलवार के समान थी। एक तांत्रिक मित्र मिलन में उसकी मुलाकात ठाकुर महेंद्र प्रताप से हुई और दोनों जिगरी यार बन गए। ठाकुर महेंद्र ने खुश होकर उसे भेड़िया बाबू राव कि उपाधि दी थी। क्योंकी उसने एक बड़े तांत्रिक गिरोह का पर्दाफाश अपनी दोधारी तलवार से कर दिया था।

उसका कांटा कोबरा नाग से भी ज्यादा घातक था। आजकल भड़िया बाबू राव ठाकुर साहब के शेरो को ट्रेनिंग दे के उन्हें और खतरनाक बना रहा था। बाब राव की एक और खासियत थी उसका जहरीला पुरुर्षांग, उसका लिंग, अपने जहरीले लिंग और दुधारी तलवार रूपी जबान से आहत कई दुष्ट लोग आज भी अपनी गुदा का इलाज करा रहे है।

इधर काका लंडैत लगातार दो दिन से जीतू तूफानी घोड़े को दौड़ाते हुए नजफगढ़ ठाकुर महेंद्र प्रताप महालण्डधारी की हवेली पहुूँच गया और उनके नौकर को अपने आगमन की सुचना दी। नौकर ने काका लंडैत को मेहमान कक्ष में ठहराया और जलपान ग्रहण कराया। ठाकुर साहब अपने निजी फार्महाउस में अपने पालतू शेरों के साथ व्यस्त थे, ठाकुर महेन्द्र को शेरो को पालने का बहुत शौक था, लंबे चौड़े व्यक्तित्व रोबदार आवाज, धीमी और शेर की तरह ठहरी हुई चाल उनका गुण थी।

उसी शाम गाँव के नुक्कड़ पर काली कड़ाही पे चाउमीन बनाने वाली कुमारी पीपली देवी के अड्डे पर बैठे बंसी लंगुरा और विपु बड़बोला उधार में ली हुई चाउमीन और कच्ची दारू का मजा ले रहे थे।

विपु - यार बंसी ये कच्ची दारू पीने में अब मजा नहीं आवत। कोनउ अंग्रेजी शराब का जुगाड़ कर बे हलुये।

बंसी- यार तुम तो बस रहने दो बाप के गल्ले से पैसे चुरा-चुरा के बड़ी मुजश्कल से इस दारू का जुगाड़ किया हूँ , तुम क्या जानो मुठ्ठी की कीमत? मेरे सेठ को पता लगा तो मेरी गुल्लक का छेद बड़ा करके फाड़ देगा।

विपु - “अबे भिड़ु भाई के लिए इतना नहीं कर सकता। हम दोनों की गुल्लक के छेद तो वैसे ही बड़े हैं…” आँख मारता हुआ- “भूल गया क्या?” कहते हुए विपु ने खींसे निपोरते हुए बंसी लंगुरा की गुल्लक (नितम्ब) पर हाथ फेर दिया ।

बंसी ने उसके हाथ को झटकते हुए कहा- “छोड़ो ना क्या करते हो? सुरसुरी मच जावे ससुरी गाण्ड में…” और पूरा पेग एक झटके में खींच डाला। दो उंगलियों से चाउमीन मुंह में डालते हुए आँखे बंद करके बंसी बोला- “यार बड़े दिन हो गए योनि रस पिये हुए। आजकल तो कोई ससुरी रांड भी उधार न देवे…”

विपु बड़बोला के दिमाग में तभी बिजली कौंधी और केशु के नितम्ब याद आ गए- “हाय भोसडु क्या याद दिला दिया तूने ? वो कुतिया केशु की गुल्लक नजरों के सामने अभी भी मटक रही है…” कहते हुए वो अपने काले निर्जीव लिंग को मसलने लगा।

बंसी- अरे इस बेचारे का गला क्यों दबा रहे हो। लाओ मैं सहला दूँ इसे।

ववपु- नहीं रे आजकल तो ये उठता ही नहीं मरा। लगता है वो अधेड़ डा॰ अमोल के पास जाना पड़ेगा इलाज के लिए , अभी तो उसका पिछले क़र्ज़ भी चुकाना है।

बंसी- तो करा लो इलाज काहे बुड़बुड़ा रहे हो।

ववपु- अरे तू जानत नहीं रे, हम उस डा॰ का कई बार फुद्दू बनाया हूँ । ससुर कहीं गलत इलाज न कर दे। पैसन का इंतेज़ाम करवा दे रे।
बंसी- गुल्लक फुड़वा लूँ क्या तोहार चक्कर में।

खाली बोतल एक तरफ लुढ़की इन दोने धूर्तो का मुँह चिढ़ा रही थी।

विपु - रे बंसी एक बार और मदद कर दे रे, चाहे तू मेरी गुल्लक दो बार फोड़ लियो, चल तुझे अपने एक मित्र चोदू लाल राजा भैया से मिलवाता हूँ वो तेरी योनि रस पीने की ललक पूरी करा देगा।

बंसी की आँखे चमक उठी और वो बिल्लौटे की तरह लार टपकाते हुए चलने को तैयार हो गया, और बदले में विपु को पैसे देने का वचन भी दिया । दोनों ने एक बार फिर चाउमीन की प्लेट को आखिरी बार चाटा और खाली बोतल में थोड़ा पानी डालकर हिला के अपने गले में उत्तार लिया । प्लेट में बची चाउमीन के मसाले से अपनी जीभ को चटपटा महसूस कराके दोनों कुमारी पीपली देवी के अड्डे से बिना पैसा दिए निकल पड़े राजा भैया के पास।


क्रमश....................
Jabra update bandhuvar
 

Naik

Well-Known Member
21,420
77,244
258
समय जैसे थम गया, दिल कि धड़कनो ने जैसे धड़कना ही छोड़ दिया , धमनियों में रक्त का प्रवाह जैसे रुक सा गया, पुरे शरीर को काठ मार गया। चरम शून्य की अवस्था। तभी दूर अंधरे में बिजली कौंधी और एक आवाज धीमे धीमे जैसे किसी गहरे कुंए से आ रही हो।

अब आगे............

“मालिक मालिक ये ये लीजिये गर्म पानी, डा॰ अमोल पालेकर थोड़ी देर में बस पहुूँच रहे हैं…”

एक तेज झटके के साथ सेठजी की तन्द्रा टूटी और वो होश में आये तो देखा सामने धनिया खड़ी थी, हाथ में गरम पानी का भगोना लिए ।
किसी ने सच ही कहा है कि खूबसूरत औरत को देखकर अच्छे से अच्छा मर्द भी अपना आपा खो देता है। और अब सेठ जी का हाल भी अब कुछ ऐसा ही था, वो तो बस एकटक केशु के मुखमंडल को देखे ही जा रहे थे।

केशु का हर एक अंग अपने आप में सांचे में ढला हुआ भरापूरा था, उसका कद 5’4” होगा, वो गोरी चिट्टी एक खूबसूरत अप्सरा सी लग रही थी, उसके भारी ठोस उन्नत स्तन सांसों की गति के साथ धीमे धीमे ऊपर नीचे हो रहे थे, पतली बल खाती कमर, ढलवा पेट और उसपर सुशोमभत छोटी सी प्यारी नाभि, गोरे पेट से हल्के नीचे हल्के भूरे रंग के रोयों की हल्की सी लकीर। घुटनों तक पहने घाघरे से झलकती सुन्दर रेशमी टाँगे, चमकती हुई नरम गुदगुदी पिंडलियाँ, और सुंदर पैरों में पड़ी पतली चेन वाली पाजेब ने सेठजी की आत्मा और दिल को झकझोर के रख दिया।

तभी बाहर आसमान में काले बादलो के साथ बड़ी जोर की घड़घड़ाहट के साथ बिजली चमकी और ठन्डे पानी की फुहारों के साथ रिमझिम वर्षा का आगमन हुआ। ये बिजली कही हद तक सेठजी के दिल की गहराइयों में जाकर उतर चुकी थी। सेठजी के माथे से पशीने की कुछ बुँदे ढुलक कर केशु के ढलवा पेट पर जा गिरी, और एक या दो बून्द तो उसकी नाभि में समा गई। हड़बड़ा के उन्होंने जल्दी से गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर केशु का माथा और चेहरा साफ किया।

केशु का पेट हल्का सा थरथराया, बंद पलकों ने अपने पंख उठाये, और मंद मंद आँखों से केशु ने अपनी पलकें खोली, दोनों की आँखे चार हुई और एक अनबुझा सा मूक सन्देश दोनों में आदानप्रदान हुआ।

उसने सेठजी की तरफ देखा और हल्के से मुश्कुराई, पर कुछ नहीं कहा।

सेठजी- अब कैसी हो केशु?

केशु ने कहा- ठीक हूँ।

तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई, कुछ पल पश्चात डा॰ अमोल पालेकर ने घर के भीतर प्रवेश किया, सेठजी ने जल्दी से डा॰ साहेब से हाथ मिलाया और केशु की जांच पड़ताल के लिए कहा।

डा॰ साहेब ने जल्दी से केशु की प्रारम्भिक जांच की और उसकी अंगुली की मरहम पट्टी की, अपना बेग खोल के स्टेथेस्कोप निकाला और केशु के वक्षस्थल पर रखकर हृदय की गति, एवम् नब्ज इत्यादि की जांच की। अधिक खून बह जाने की वजह से आई कमजोरी के फलस्वरूप हल्का सा बुखार भी आ गया था, कफर भी उन्होंने केशु का ब्लूडप्रेशर चेक किया तो पता लगा की कमजोरी के कारन वो भी न्यूनतम था।

आवश्यक दवाई और इंजेक्शन देने के बाद उन्होंने प्यार से केशु से पूछा - “बिटिया ये उंगली कैसे काट ली?”

केशु मासुमता से बोलै - “जी उसने दो बार गोली चलने की आवाज सुनी तो डर के मारे मेरी उंगली कट गई सब्जी की जगह…”
डा॰ अमोल ने हैरत से सेठ अजयानंद की तरफ देखा।

इतना मासूम जवाब सुनकर सेठजी ठठाकर जोर से हंसने लगे और हँसते हँसते उनकी आँखों से पानी आ गया।

डा॰ अमोल- सेठजी आप हँस क्यों रहे है?

सेठजी- “कुछ नहीं अमोल साहेब- आप आइये मैं समझाता हूँ आपको, दरअसल केशु अभी मासूम है, हमारी गलती थी हमने क्रोध में बंदूक चला दी थी। वो दो गोलियाँ दर-असल दो पापी दुष्टो के लिए हमारी बंदूक से निकली थी, जो जल्द ही हमारा सन्देश उन तक पहुँचा भी देगी…”
सेठजी और डा॰ अमोल- हा हा हा हा हा।

सेठजी- धनिया जाओ एक गिलास गरम हल्दी वाला दूध केशु को पीला दो, और उसे आराम करवाओ।

धनिया - जी मामलक।

डा॰ अमोल- “अच्छा सेठजी आज्ञा दीजिये चलता हूँ …” फिर ठिठकर धीरे से सेठजी के कान में बोले- “ऐसे ही किसी हादसे से केशु की याददाश्त वापस आ सकती है…”

ये सुनकर सेठजी पहले तो खुश हुए फिर अचानक पता नहीं क्यों उन्हें पहली बार अच्छा सा नहीं लगा। लेकिन उन्होंने अपने आपको संभाल लिया ।
हवेली से लौटते समय डा॰ अमोल के दिल और में दिमाग में वासना की तेज लहरे हिलोरे मार रही थी। इतनी ठंडी वर्षा में भी बदन जल सा रहा था। 55 वर्षीय डा॰ अमोल आज कई वर्षों बाद एक नारी शरीर की कमी महसूस कर रहे थे, उनका पुरुषांग आज कई साल बाद विद्रोह पे उतर आया था। वो दृशय जब केशु के उन्नत परवत शिखर समान उरोज मन्द मंद सांसों की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे और वो स्टेथेस्कोप से जांच पड़ताल कर रहे थे। उँगलियों के पोरों में अभी भी उन नर्म स्तनों की अग्नि महसूस हो रही थी।

डा॰ अमोल ने अपने विचारो को झटकने की बेहद कोशिश की। पर उनका मन उन्हें अतीत की ओर ले चला, जब वो 24 वर्षीय थे और मेडिकल कालेज में अपनी रंगीनियो के लिए बेहद मशहूर थे। उनके मित्र उन्हें सेक्स गुरू कहते थे।
वैसे डा॰ साहब दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी थे। एकतरफ पूर्ण धार्मिक एवं सात्वीक, रोज मंदिर जाना, पूजा अर्चना करना, ललाट पे चमकता त्रिपुण्ड

दूसरी तरफ नारी शरीर विज्ञानं में पूर्ण में पारंगत थे। एक नवयौवना को सम्पूर्ण रूप से कैसे संतुष्ट करते हैं, इसका अच्छा ज्ञान था उन्हें। कामक्रीड़ा में बहुत निपुण थे अक्सर कालेज की युवनतयों के साथ प्रेम प्रसंग में व्यस्त रहते थे। कई युवतिया उनसे अपने कामुक शरीर की प्यास बुझाने के लिए लालायित रहती थी।

“योनि उत्पीड़न एवं गुदा मैथुन” में पारंगत थे डा॰ साहब। इस सम्बन्ध में तो उन्होंने कई लेख भी प्रकाशित किये थे जिन्हे सब विधार्थी बड़े ही चाव से पढ़ते थे और अपनाते थे।

पर डा॰ बनने के बाद वो पूर्ण रूप से लोगों की सेवा में व्यस्त हो गए और विवाह भी नहीं किया। सुबह शाम बस मरीजों की सेवा में। लेकिन आज विधि ने एक बार फिर उनके सोये हुए शेर को जगा दिया था। दूर शून्य में सोचते हुए वो क्लिनिक में वापिस आ गए।

क्लिनिक में पहुूँचकर डा॰ अमोल कटे पेड़ की तरह अपनी कुसी पे गिर पड़े, उनके शरीर ने उनके दिलो दिमाग का साथ छोड़ दिया था, वासना के ताप में उनका समस्त शरीर धूं -धूं करके जल रहा था, वो भूल गए थे की 55 वर्ष की इस प्रौढ़ अवस्था में ये सब उन्होंने शोभा नहीं देगा, लेकिन वो अपने दिल के हाथों मज़बूर हो गए थे, उनके मष्तिष्क में केशु के शरीर को लेकर शैतानी विचार आने लगे थे। और वो आगे की योजना बनाने लगे।



क्रमश: ............
Bahot behtareen shaandaar update bhai
 

Naik

Well-Known Member
21,420
77,244
258
योनि उत्पीड़न एवं गुदा मैथुन” में पारंगत थे डा॰ साहब। इस सम्बन्ध में तो उन्होंने कई लेख भी प्रकाशित किये थे जिन्हे सब विधार्थी बड़े ही चाव से पढ़ते थे और अपनाते थे।

पर डा॰ बनने के बाद वो पूर्ण रूप से लोगों की सेवा में व्यस्त हो गए और विवाह भी नहीं किया। सुबह शाम बस मरीजों की सेवा में। लेकिन आज विधि ने एक बार फिर उनके सोये हुए शेर को जगा दिया था। दूर शून्य में सोचते हुए वो क्लिनिक में वापिस आ गए।
क्लिनिक में पहुूँचकर डा॰ अमोल कटे पेड़ की तरह अपनी कुसी पे गिर पड़े, उनके शरीर ने उनके दिलो दिमाग का साथ छोड़ दिया था, वासना के ताप में उनका समस्त शरीर धूं -धूं करके जल रहा था, वो भूल गए थे की 55 वर्ष की इस प्रौढ़ अवस्था में ये सब उन्होंने शोभा नहीं देगा, लेकिन वो अपने दिल के हाथों मज़बूर हो गए थे, उनके मष्तिष्क में केशु के शरीर को लेकर शैतानी विचार आने लगे थे। और वो आगे की योजना बनाने लगे।

अब आगे

उधर सेठ अजयानंद जी- अपने शयनकक्ष के विशाल पलंग पर लेटे करवटे ले रहे थे, मंदिर के 9 पेग पीने के बाद भी निंद्रा रानी उनकी आँखों से कोसों दूर खड़े होकर उन्हें चिढ़ा रही थी, रह-रहकर केशु का मासूम चेहरा, कजरारे नैन, सुर्ख होंठ, सुराहीदार गर्दन, गौर वर्ण उन्नत वक्षस्थल और वो नन्हा सा काला तिल, एवम्
केशु की सुगन्धित सांसें और अंततः उनके नथुनों में अभी तक बसी हुई केशु के शरीर की वो संदली महक ने उनके पुरे दिलो दिमाग और उनकी आत्मा को झकझोर के रख दिया था।

बिस्तर में बिछी नरम रेशमी चादर उन्हें रेगिस्तान की कठिन और निष्ठुर गर्मी का अहसास ददला रही थी। एयरकण्डीशन के चलने के बावजूद भी कमरे का तापमान अत्यंत गर्म था, सेठजी का गला प्यास से सुख रहा था। जब प्यास असहनीय हो गई तो वो अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गए, और बाजू में रखी टेबल की तरफ देखा तो पाया की आज वहां रखी चमड़े की सुराही खाली पड़ी है, रात्रि के तीसरे पहर में उन्हें किसी नौकर को आवाज देना अच्छा नहीं लगा, और वो स्वयं उठकर अपनी लुंगी को व्यस्थित करते हुए सुराही लेकर रसोई घर की तरफ चल पड़े।
रसोई घर का रास्ता दीवाने खास से होकर ही गुजरता था। जैसे ही वो दीवानेखास में दाखिल होकर रसोईघर की तरफ बढ़े, न चाहते हुए भी उनकी उचटती हुई नजर दीवानेखास के दीवान पर सोती हुई केशु पर पड़ी। हालाँकि रात्रि के का तीसरा पहर था। घड़ी ने शायद पौने तीन ही बजाये होंगे।

खिड़की से आती हल्की चांदनी में उन्होंने देखा कि गहरी नींद के आगोश में बेसुध केशु शायद कोई सुखद स्वपन देखती हुई हल्की सी मुश्कान लिए सो रही थी।

वक्षस्थल की चादर दीवान से नीचे लटक रही थी, गहरी निंद्रा की बेध्यानी में कमर का घाघरा घुटनों तक चढ़ा हुआ, सेठजी को चिढ़ाता हुआ सा प्रतीत हुआ। चाँद की रोशनी में चमकती रेत की तरह गोरी सुडौल पिंडलियों को हवा धीमे धीमे बहती हुई चूमती सी हुई प्रतीत हो रही थी, ऐसा सा लग रहा था कि किसी विश्विख्यात मूर्तिकार की रचना सामने लेटी हो।

यह दृश्य देखकर सेठजी बुत बनकर खड़े रह गए और न जाने कितने पलों तक उस सोती हुई सुंदरी के रूप लावण्य को मूक दृष्टि से पीते रहे। वो भूल चुके थे की वो प्यासे हैं, और पानी के लिए रसोई घर जाने वाले थे। धीरे धीरे स्वयं ही उनके कदम दीवान की तरफ बढ़ चले, कुछ समय निहारने के बाद वो धीमे से दीवान के किनारे बैठ गए। केशु के शरीर से उठती वो मादक संदली महक धीरे धीरे उनके नथुनों में उतरने लगी, और सेठजी मदहोश होने लगे।

तभी केशु ने हल्के से करवट ली और नींद में ही एक मासूम बच्चे की तरह अपने दोनों हाथ और घुटने समेट के लेट गई। इस मुद्रा में उसके मादक ठोस नितम्ब और उभर के सेठजी को चिढ़ाने लगे, सेठजी का मुूँह सुंख गया और हाथ कंपकंपाने लगे, उनके सम्पूर्ण शरीर के रोंगटे खड़े हो गए, और बस एक पल के लिए उस रेशमी त्वचा को महसूस करने के लिए बेचैन हो उठे। धीरे धीरे उनका कांपता हाथ उन उन्नत नितम्बो की तरफ बढ़ा।

लेकिन सेठजी की मर्यादा उनके अंतर्मन में उनको कचोटने लगी और उन्होंने घबराते हुए अपना हाथ वापिस खींच लिया, और फिर एक नजर केशु के मासूम चेहरे पर डाली। रक्त रूपी लालिमा लिए वो भरे हुए भरे हुए अधर जिनसे शहद टपकता प्रतीत हो रहा था सेठजी को उलाहना सा दे रहे थे।

फिर सेठजी ने ने एक लंबी सांस लेते हुए धीरे से दीवान के नीचे लटक रही चादर को उठाकर केशु के शरीर को ढक दिया और वापिस बोझिल कदमों से रसोई घर की तरफ मुड़ गए। रसोईघर में 4 गिलास ठंडा पानी पीने के बाद भी उनकी प्यास नहीं बुझी, और वो बोझिल मन से अपने शयनकक्ष की तरफ बढ़ चले। दूर कही उनके मन के कोने में एक मूक अनबुझ प्रेम की कोपलों ने अंकुरित होना शुरू कर दिया था।
अगली सुबह जीवन में एक अन्य अध्याय जोड़ने जा रही थी। सोचते-सोचते सेठजी की आँखे बोझिल हो उठी और नींद के आगोश में चले गए।

भेड़िया बाबू राव छत्तीसगढ़ के जंगलों का राजा था। असली नाम बावरिया सेठ गाँव मांडवा था। छत्तीसगढ़ के सभी नक्सली ग्रुप उसके अधीन थे और उसकी सहमति से कार्य करते थे। उसे रेस के घोड़ों और कई तरह के सौदों की खरीद फरोख्त का शौक था। लेकिन दिल का सौदागर था और ज़ुबान दोधारी तलवार के समान थी। एक तांत्रिक मित्र मिलन में उसकी मुलाकात ठाकुर महेंद्र प्रताप से हुई और दोनों जिगरी यार बन गए। ठाकुर महेंद्र ने खुश होकर उसे भेड़िया बाबू राव कि उपाधि दी थी। क्योंकी उसने एक बड़े तांत्रिक गिरोह का पर्दाफाश अपनी दोधारी तलवार से कर दिया था।

उसका कांटा कोबरा नाग से भी ज्यादा घातक था। आजकल भड़िया बाबू राव ठाकुर साहब के शेरो को ट्रेनिंग दे के उन्हें और खतरनाक बना रहा था। बाब राव की एक और खासियत थी उसका जहरीला पुरुर्षांग, उसका लिंग, अपने जहरीले लिंग और दुधारी तलवार रूपी जबान से आहत कई दुष्ट लोग आज भी अपनी गुदा का इलाज करा रहे है।

इधर काका लंडैत लगातार दो दिन से जीतू तूफानी घोड़े को दौड़ाते हुए नजफगढ़ ठाकुर महेंद्र प्रताप महालण्डधारी की हवेली पहुूँच गया और उनके नौकर को अपने आगमन की सुचना दी। नौकर ने काका लंडैत को मेहमान कक्ष में ठहराया और जलपान ग्रहण कराया। ठाकुर साहब अपने निजी फार्महाउस में अपने पालतू शेरों के साथ व्यस्त थे, ठाकुर महेन्द्र को शेरो को पालने का बहुत शौक था, लंबे चौड़े व्यक्तित्व रोबदार आवाज, धीमी और शेर की तरह ठहरी हुई चाल उनका गुण थी।

उसी शाम गाँव के नुक्कड़ पर काली कड़ाही पे चाउमीन बनाने वाली कुमारी पीपली देवी के अड्डे पर बैठे बंसी लंगुरा और विपु बड़बोला उधार में ली हुई चाउमीन और कच्ची दारू का मजा ले रहे थे।

विपु - यार बंसी ये कच्ची दारू पीने में अब मजा नहीं आवत। कोनउ अंग्रेजी शराब का जुगाड़ कर बे हलुये।

बंसी- यार तुम तो बस रहने दो बाप के गल्ले से पैसे चुरा-चुरा के बड़ी मुजश्कल से इस दारू का जुगाड़ किया हूँ , तुम क्या जानो मुठ्ठी की कीमत? मेरे सेठ को पता लगा तो मेरी गुल्लक का छेद बड़ा करके फाड़ देगा।

विपु - “अबे भिड़ु भाई के लिए इतना नहीं कर सकता। हम दोनों की गुल्लक के छेद तो वैसे ही बड़े हैं…” आँख मारता हुआ- “भूल गया क्या?” कहते हुए विपु ने खींसे निपोरते हुए बंसी लंगुरा की गुल्लक (नितम्ब) पर हाथ फेर दिया ।

बंसी ने उसके हाथ को झटकते हुए कहा- “छोड़ो ना क्या करते हो? सुरसुरी मच जावे ससुरी गाण्ड में…” और पूरा पेग एक झटके में खींच डाला। दो उंगलियों से चाउमीन मुंह में डालते हुए आँखे बंद करके बंसी बोला- “यार बड़े दिन हो गए योनि रस पिये हुए। आजकल तो कोई ससुरी रांड भी उधार न देवे…”

विपु बड़बोला के दिमाग में तभी बिजली कौंधी और केशु के नितम्ब याद आ गए- “हाय भोसडु क्या याद दिला दिया तूने ? वो कुतिया केशु की गुल्लक नजरों के सामने अभी भी मटक रही है…” कहते हुए वो अपने काले निर्जीव लिंग को मसलने लगा।

बंसी- अरे इस बेचारे का गला क्यों दबा रहे हो। लाओ मैं सहला दूँ इसे।

ववपु- नहीं रे आजकल तो ये उठता ही नहीं मरा। लगता है वो अधेड़ डा॰ अमोल के पास जाना पड़ेगा इलाज के लिए , अभी तो उसका पिछले क़र्ज़ भी चुकाना है।

बंसी- तो करा लो इलाज काहे बुड़बुड़ा रहे हो।

ववपु- अरे तू जानत नहीं रे, हम उस डा॰ का कई बार फुद्दू बनाया हूँ । ससुर कहीं गलत इलाज न कर दे। पैसन का इंतेज़ाम करवा दे रे।
बंसी- गुल्लक फुड़वा लूँ क्या तोहार चक्कर में।

खाली बोतल एक तरफ लुढ़की इन दोने धूर्तो का मुँह चिढ़ा रही थी।

विपु - रे बंसी एक बार और मदद कर दे रे, चाहे तू मेरी गुल्लक दो बार फोड़ लियो, चल तुझे अपने एक मित्र चोदू लाल राजा भैया से मिलवाता हूँ वो तेरी योनि रस पीने की ललक पूरी करा देगा।

बंसी की आँखे चमक उठी और वो बिल्लौटे की तरह लार टपकाते हुए चलने को तैयार हो गया, और बदले में विपु को पैसे देने का वचन भी दिया । दोनों ने एक बार फिर चाउमीन की प्लेट को आखिरी बार चाटा और खाली बोतल में थोड़ा पानी डालकर हिला के अपने गले में उत्तार लिया । प्लेट में बची चाउमीन के मसाले से अपनी जीभ को चटपटा महसूस कराके दोनों कुमारी पीपली देवी के अड्डे से बिना पैसा दिए निकल पड़े राजा भैया के पास।


क्रमश....................
Bahot behtareen zaberdast shaandaar update bhai
 

Alphatiger

New Member
8
22
3
सेठ जी प्यासे बैठे हैं, दारू ओर पानी पी पी के परेशान हो गए:beer2:।उधर डॉ० बाबू हाथ मे:firing: लिए प्लान बना रहे है।जीतूूतूफानी की थकान नहीी उतरी अभी तक:crosseyed: ।काका लँडेत जलपान कर कर केे परेशान हो गया।कोई खाने को नही दे पा रहा:coffee1::don: बाबु भेड़िया शेरो को ।ट्रेनिग दे देे के थक चुका हैै:dancing2:। janta :bored:|keshu:booby2: sapno me hi khoi hai.:slap:विपु ओर . Bansi bareli se bhi aage nikal gye chlte chlte..Ab to update de do.:deal:
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,519
13,795
159
सबसे पहले सभी प्यारे मित्रो से हाथ जोड़कर क्षमा चाहता हूँ, देरी से अपडेट के लिए, हुआ यूं है कि मेरे एक मित्र को कैंसर हो गया हैं पिछले बीस एक दिनों से उसे ही लिए घूम रहा हूँ आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं तो डॉक्टर कि फीस और टेस्ट आदि के लिए उसके साथ जाना पड़ता हैं थोड़े दिनों कि और परेशानी हैं एक बार उसकी सर्जरी हो जाये फिर अपडेट रेगुलर हो जायेंगे तब तक अपना प्यार, आशीर्वाद और साथ यूँही बनाये रखे

अब आगे .....

राजा भैया एक निहायत ही धूर्त और लम्पट किस्म का कमीना था, निकट के गाँव में उसका मोचीगरी का ठीया था, आँखों में रंगबिरंगा चश्मा, गले में लाल रुमाल, मुूँह में गुटखा, पीले रंग की जालीदार बनियान, लाल रंग की पैंट के ऊपर पहनकर, वो अपने आपको गोविंदा का फूफा समझता था, बड़ी-बड़ी बातें और वड़ापाव खाते उसके व्यक्तित्व की पहचान थी ।

अपनी बड़ी-बड़ी लम्पट बातों से उसने कुछ अधेड़ उम्र की महिलाओ से अनैतिक शारीरिक संबंध बना रखे थे, जो कभी-कभी अपनी प्यास बुझाने के लिए उसे खेतों के भीतर बुला लिया करती थी, और वो अपने आपको तैमूर खान गुप्ता समझने लगता।
सड़क पे आती जाती हर उम्र की औरतों को वासना की नजर से देखना और फब्तियां कसना ही उसका काम था, कई बार गाँव के लोगों ने इकट्ठे होकर उसकी गुल्लक फोड़ी थी और मार-मार के सुजा दिया था लेकिन वो सुधरता ही न था।

विपु और उसकी दोस्ती ऐसे ही एक किसी खेत में हो रही रासलीला के दौरान हुई थी।
राजा के ठीये पर पहुूँचते-पहुूँचते शाम हो गई। बड़ी गर्मजोशी से आपस में सबका मिलन हुआ। राजा ने अपनी गन्दी नजर बंसी के नितम्बो पे डालते हुए विपु की तरफ आँख मारी और पूछा - “अरे विपु बड़बोला महाराज की जय हो, कैसे आना हुआ और ये बब्बूगोशा कहां से पकड़ लाए?”

विपु एकदम हड़बड़ा गया और हाथ जोड़कर बोला- “मेरे बाप ये मेरा जाने जिगर बंसी लंगुरा है और मेरा मित्र है, हम दोनों एक ही योनि में साथ-साथ मुूँह मारते हैं। बस तू मेरा एक काम करा दे, मैंने तेरे कितने काम कराये हैं, जब तू ठलुए की तरह घूमता था…......”

राजा की हंसी छूट गई और बोला- “अरे मैं तो मजाक कर रिया था, आप बोलो तो सही कहो तो अपनी गुल्लक खोल के सामने खड़ा हो जाऊं …”
विपु - “अरे भाई गुल्लक तो हम दोनों के पास भी है बस तू बंसी लाल को योनि रस पिलवा दे किसी भी तरह। तेरे इस काम से मेरा भी बड़ा भला होगा…”

राजा- “योनि रस पिलवा दे इस लंगुरा को…” सोचते हुए राजा की आँखे भींच गई ये कैसी इच्छा है, हाँ सम्भोग करने को कहता तो समझ आता।

विपु - “बोल राजा तेरे पैर पडू या तेरे आंड चुम लू लेकिन बंसी को योनि रास पिलवा दे पेट भर के भाई एक बार…”

राजा विपु को इशारा करके एक कोने में ले जाता है और विपु के कान में फुसफुसाता है- “मियां विपु मन्ने तो कोई और चक्कर लागे से, आम आदमी योनि रस पीने के लिए इतना नहीं फड़फड़ाता है…......”

विपु - अरे कैसा चक्कर बोल ररया है बे तू लोड़ू प्रसाद ?

राजा- मन्ने तो कोई ऊपरी हवा लाग रही से।

विपु - चल चूतिया मन्ने न विश्वास होता ।

राजा- अ***ह मियां की कसम सही बोल ररया हुूँ, गलत बोला तो अपना खतना करवा दूंगा ।

विपु - अरे हरामी आधा तो तू वैसे ही बन गया है, अब तो तू बस मेरी मदद कर दे।

राजा- “तुम एक काम करो एक लंगड़ा बकरा, एक किलो सूअर के आंड और दो बोतल शराब लेकर शमशान आओ, मैं एक साध्वी का इन्तजाम करता हुूँ, 11 बजे से इस लंगुरे को लेकर आ जाना…” यह बोलकर राजा उधर से फुट लिया ।

राजा के बारे में एक बात पाठको को बता दूँ , उसने 3 साल का तांत्रिक कोर्स उलूकपुर के एक तांत्रिक भोकलभाल नाथ के डेरे से किया था, और सीखने के बाद दक्षिणा दिया बिना ही वहां से रफूचक्कर हो गया, इस विद्या से वो कभी-कभी लोगों का चूतियानन्दन स्यापा बना दिया करता है, अक्सर गाँव कि महिलाये इसके चक्कर में फंस जाया करती थी।

इधर सामान की लिस्ट सुनकर तो विपु की गंडिया ही फट गई, मन ही मन राजा को कोसने लगा- “भोसड़ीचोद मेरा काला लोला ले........”
विपु बंसी के पास गया, और खींसे निपोरता हुआ बोला- “भाई बंसू तेरा काम हो गया। राजा एक बढ़िया कड़क सामान लेने गया है, लेकिन उसका योनि रस पीने की लिए हमें रात को श्मशान जाना पड़ेगा…”

बंसी त्योरियां चढ़ाता हुआ- “क्यों शमशान क्यों जाना है? वो क्या किसी चुड़ैल की दिलाएगा, मैं नहीं जाता उधर चलो वापस चलो मेरे एक ताऊ जी हैं ग़ाज़ियाबाद में वो दिलवा न देंगे मस्त माल…”

विपु - अबे अब यहाँ तक मरवाई है तो योनि रास पी के ही जायेंगे, तू समझा कर वो गाँव से एक कडक माल लेने गया है, शमशान में कोई देखने वाला नहीं होगा, इसलिए उसने उधर प्रोग्राम रखा है। बस एक समस्या है। वो लोंड़िया दारू और मांस की शौकीन है तभी योनि रस पिलाएगी, बोल क्या कहता है?

बंसी आँख मार कर कटीली हंसी हँसता हुआ- “अरे तो इसमें का बात है? दारू और मांस के बाद तो मौज ही कुछ और होगी, खूब योनि रास पियूँगा ससुरी का, ये मेरे पास 3000 रूपये हैं, सेठजी ने आज बिजली का बिल भरने के लिए दिए थे, बोल दूंगा जेब कट गई….....”

ये सुनकर विपुलानन्द को तसल्ली हुई और दोनों बाजार की तरफ निकल लिए , ठेके से इम्पीरियल ब्लू की दो बोतल और, एक हाफ रायल स्टैग का खरीद के दोनों मीट लेने पहुूँच गए, उधर पहुूँच के बंसी को मितली आई तो वो एक तरफ बैठ गया और विपु को ₹1000 देकर बोला खुद ही ले आओ, मेरे से कटा हुआ बकरा नहीं देखा जाता।

विपु कि आँखे चमक उठी और वो घुस गया मीट बाजार में ढूंढता हुआ जा पहुंचा एक कसाई के पास- “सलाम भाईजान एक लंगड़ा बकरा चाहिए क्या भाव है?”

कसाई- ये जो सामने खड़ा है वो ₹7000 का है और दूसरा जो लेटा हुआ है वो ₹200 का।

विपु हैरानी से- “अरे दोनों के रेट में इतना फर्क क्यों? हैं तो दोनों बकरे ही, फर्क क्या है इनमें?

कसाई- ये जो लेटा हुआ है इसे एड्स है, इसका मालिक मुक्की इस बकरे की गाण्ड मारता था, वो पिछले हफ्ते ही मर गया।

विपु - हम्म… क्या जमाना आ गया है, चलो मुझे क्या, मैंने कौन सी बकरे की गाण्ड मारनी है, बस बलि चढ़ानी है, आप दे दो और ये लो ₹200 और हाँ भाईजान सूअर के आंड भी दिलवा दो।

कसाई दुकान के पिछवाड़े में पड़े हैं, छांट लो जा के, एक किलो ₹300 के होंगें।

ववपु- “ठीक है…” और दुकान के पिछवाड़े जाकर उधर फैले हुए आंड छांट-छांट के निकालने लगा, बदबू से उसकी गाण्ड फट के चौबारा हुई जा रही थी लेकिन बंसू के दिए हुए पैसो में टोपी लगा के उसने अपनी जेब गर्म कर ली थी।

एक थैले में आंड और एक हाथ से बकरा ठेलते हुये वो बंसी के पास पहुूँचा और बोला- “ले भाई ₹100 वापिस अपने और देख तेरी दोस्ती में क्या-क्या करता हूँ मैं तेरे लिए ?” मन ही मन में बोला- “भोसड़ी के 400 की चोद दी तेरी आज…” और हंसने लगा।

बंसी- हे हे हे… काहे शर्मिंदा कर रहे हो और एक हाथ विपुए के काले चूतड़ों पे फेर दिया।

विपु - “चलो पहले एक हाफ खिंच लेते हैं जरा मूड बन जायेगा…” दोनों ने ठेले वाले से 10 रूपए की मूंगफली और पानी की दो थैली ली और बैठ गए एक पेड़ के नीचे। दो छोटे-छोटे पेग बना के पहले भूमि नमन किया फिर हवा में चारो और दो बून्द छिड़क कर एक ही सांस में हलक के नीचे उतार ली, आग की तरह गले को चीरती हुई सुरा देवी ने जब अंदरप्रवेश किया तो दोनों की आँखे चमक उठीं, और ठक से 4 दाने मूंगफली के मुूँह में डालकर चबाने लगे। इस समय दोनों अपने आपको किसी सेठ की तरह समझ रहे थे।

बंसी- अरे विपुले अपने साथ रहोगे तो ऐश करोगे।

विपु मन ही मन गाली देता हुआ ऊपर से मुश्कुराया और बोला- “भाई बंसी- दोस्त ने दोस्त की गाण्ड ले ली और दोनों में प्यार हो गया…” ये कहावत मेरे गाँव मोदीनगर में बड़े बूढ़े बोलते थे।
और दोनों मुर्ख ठठाकर हंस पड़े।


धर हवेली में सेठ अजयनाथ की निंद्रा थोड़ी देर से खुली, गत रात्रि मन के विचारो के निरंतर मंथन से वो काफी थकन सी महसूस कर रहे थे, अपने कक्ष से बाहर आकर देखा तो सामने दीवान खाली पड़ा था, वो एकदम से सारी थकान भूल कर ईशर उधर केशु को ढूंढने लगे ।

रसोई में पहुूँचकर देखा की केशु स्नान ध्यान कर के तैयार एक हल्की गुलाबी साड़ी में उनकी तरफ पीठ किये शायद चाय बना रही थी, पीठ पर कसी हुई चोली की डोरिया इधर उधर ढुलक रही थीं, मांसल पीठ पर कसी हुई डोरियाँ देखकर सेठजी झनझना उठे और धीरे से खांसते हुए बोले- “अब कैसी हो केशु?”

केशु एक झटके से पलटी और सेठजी को सामने रूपा ब्रांड की लुंगी और बनियान में देखकर शर्मा गई, आँखे नीचे करके बोली- “जी ठीक हूँ , आपकी कृपा है…” और मन्द-मन्द मुश्कुराने लगी।

सेठजी- “अब बुखार कैसा है?” कहते हुए वो धीरे से आगे बढ़े और केशु के माथे को अपने हाथ से छुआ, छूते ही हजारों वोल्ट का करेंट दोनों के शरीर में दौड़ पड़ा। सेठजी के लिंग ने अपनी इकलौती आँख मिचमिचाते हुए खोल ली और एक हल्की सी अंगड़ाई ली।

केशु थोड़ा घबराते हुए- “जी सेठजी अब बुखार नहीं है, बस जरा सी कमजोरी महसूस हो रही है…”

सेठजी जो अभी तक करेंट से झनझना रहे थे, और टूटती सी आवाज में धीमे से बोले- “कमजोरी में क्यों काम रही हो, छोड़ो ये सब, चलकर आराम कर लो…” हम डा॰ अमोल को फोन कर देते हैं।

केशु- जी नहीं अब हम ठीक है डा॰ को न बुलवाइए। आप अपने कमरे में जाकर बैठिये मैं चाय लेकर आती हूँ ।

सेठजी बड़े प्यार से उसके मोहक चेहरे को देखते हुए बोले- “सिर्फ चाय ही पिलाओगी ?”

केशु हड़बड़ा गई और नीचे देखते हुए बोली- “जी… और आप हुकुम कीजिये जो आप बोलेंगे वो बना दूंगी …”

सेठजी ठठाकर हंस पड़े और बोले- “अरे मेरा मतलब था आज दुबारा सब्जी बनाने मत बैठ जाना, कहीं फिर उंगली न काट लो अपनी…”

केशु शर्माकर मुूँह पे पल्ला डालकर मुश्कुराने लगी- “धत्त मैं कोई बच्ची थोड़े ही न हुूँ, वो तो मैं गोली की आवाज से डर गई थी…”

सेठजी मुश्कुरा दिए और एक नजर केशु के स्तनों पर से होते हुए उसके पतले पेट पर छोटी सी धुन्नी को देखने लगे। और मुड़कर अपने कमरे की ओर चल दिए ।

क्रमश:........................
 
Top