सबसे पहले सभी प्यारे मित्रो से हाथ जोड़कर क्षमा चाहता हूँ, देरी से अपडेट के लिए, हुआ यूं है कि मेरे एक मित्र को कैंसर हो गया हैं पिछले बीस एक दिनों से उसे ही लिए घूम रहा हूँ आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं तो डॉक्टर कि फीस और टेस्ट आदि के लिए उसके साथ जाना पड़ता हैं थोड़े दिनों कि और परेशानी हैं एक बार उसकी सर्जरी हो जाये फिर अपडेट रेगुलर हो जायेंगे तब तक अपना प्यार, आशीर्वाद और साथ यूँही बनाये रखे
अब आगे .....
राजा भैया एक निहायत ही धूर्त और लम्पट किस्म का कमीना था, निकट के गाँव में उसका मोचीगरी का ठीया था, आँखों में रंगबिरंगा चश्मा, गले में लाल रुमाल, मुूँह में गुटखा, पीले रंग की जालीदार बनियान, लाल रंग की पैंट के ऊपर पहनकर, वो अपने आपको गोविंदा का फूफा समझता था, बड़ी-बड़ी बातें और वड़ापाव खाते उसके व्यक्तित्व की पहचान थी ।
अपनी बड़ी-बड़ी लम्पट बातों से उसने कुछ अधेड़ उम्र की महिलाओ से अनैतिक शारीरिक संबंध बना रखे थे, जो कभी-कभी अपनी प्यास बुझाने के लिए उसे खेतों के भीतर बुला लिया करती थी, और वो अपने आपको तैमूर खान गुप्ता समझने लगता।
सड़क पे आती जाती हर उम्र की औरतों को वासना की नजर से देखना और फब्तियां कसना ही उसका काम था, कई बार गाँव के लोगों ने इकट्ठे होकर उसकी गुल्लक फोड़ी थी और मार-मार के सुजा दिया था लेकिन वो सुधरता ही न था।
विपु और उसकी दोस्ती ऐसे ही एक किसी खेत में हो रही रासलीला के दौरान हुई थी।
राजा के ठीये पर पहुूँचते-पहुूँचते शाम हो गई। बड़ी गर्मजोशी से आपस में सबका मिलन हुआ। राजा ने अपनी गन्दी नजर बंसी के नितम्बो पे डालते हुए विपु की तरफ आँख मारी और पूछा - “अरे विपु बड़बोला महाराज की जय हो, कैसे आना हुआ और ये बब्बूगोशा कहां से पकड़ लाए?”
विपु एकदम हड़बड़ा गया और हाथ जोड़कर बोला- “मेरे बाप ये मेरा जाने जिगर बंसी लंगुरा है और मेरा मित्र है, हम दोनों एक ही योनि में साथ-साथ मुूँह मारते हैं। बस तू मेरा एक काम करा दे, मैंने तेरे कितने काम कराये हैं, जब तू ठलुए की तरह घूमता था…......”
राजा की हंसी छूट गई और बोला- “अरे मैं तो मजाक कर रिया था, आप बोलो तो सही कहो तो अपनी गुल्लक खोल के सामने खड़ा हो जाऊं …”
विपु - “अरे भाई गुल्लक तो हम दोनों के पास भी है बस तू बंसी लाल को योनि रस पिलवा दे किसी भी तरह। तेरे इस काम से मेरा भी बड़ा भला होगा…”
राजा- “योनि रस पिलवा दे इस लंगुरा को…” सोचते हुए राजा की आँखे भींच गई ये कैसी इच्छा है, हाँ सम्भोग करने को कहता तो समझ आता।
विपु - “बोल राजा तेरे पैर पडू या तेरे आंड चुम लू लेकिन बंसी को योनि रास पिलवा दे पेट भर के भाई एक बार…”
राजा विपु को इशारा करके एक कोने में ले जाता है और विपु के कान में फुसफुसाता है- “मियां विपु मन्ने तो कोई और चक्कर लागे से, आम आदमी योनि रस पीने के लिए इतना नहीं फड़फड़ाता है…......”
विपु - अरे कैसा चक्कर बोल ररया है बे तू लोड़ू प्रसाद ?
राजा- मन्ने तो कोई ऊपरी हवा लाग रही से।
विपु - चल चूतिया मन्ने न विश्वास होता ।
राजा- अ***ह मियां की कसम सही बोल ररया हुूँ, गलत बोला तो अपना खतना करवा दूंगा ।
विपु - अरे हरामी आधा तो तू वैसे ही बन गया है, अब तो तू बस मेरी मदद कर दे।
राजा- “तुम एक काम करो एक लंगड़ा बकरा, एक किलो सूअर के आंड और दो बोतल शराब लेकर शमशान आओ, मैं एक साध्वी का इन्तजाम करता हुूँ, 11 बजे से इस लंगुरे को लेकर आ जाना…” यह बोलकर राजा उधर से फुट लिया ।
राजा के बारे में एक बात पाठको को बता दूँ , उसने 3 साल का तांत्रिक कोर्स उलूकपुर के एक तांत्रिक भोकलभाल नाथ के डेरे से किया था, और सीखने के बाद दक्षिणा दिया बिना ही वहां से रफूचक्कर हो गया, इस विद्या से वो कभी-कभी लोगों का चूतियानन्दन स्यापा बना दिया करता है, अक्सर गाँव कि महिलाये इसके चक्कर में फंस जाया करती थी।
इधर सामान की लिस्ट सुनकर तो विपु की गंडिया ही फट गई, मन ही मन राजा को कोसने लगा- “भोसड़ीचोद मेरा काला लोला ले........”
विपु बंसी के पास गया, और खींसे निपोरता हुआ बोला- “भाई बंसू तेरा काम हो गया। राजा एक बढ़िया कड़क सामान लेने गया है, लेकिन उसका योनि रस पीने की लिए हमें रात को श्मशान जाना पड़ेगा…”
बंसी त्योरियां चढ़ाता हुआ- “क्यों शमशान क्यों जाना है? वो क्या किसी चुड़ैल की दिलाएगा, मैं नहीं जाता उधर चलो वापस चलो मेरे एक ताऊ जी हैं ग़ाज़ियाबाद में वो दिलवा न देंगे मस्त माल…”
विपु - अबे अब यहाँ तक मरवाई है तो योनि रास पी के ही जायेंगे, तू समझा कर वो गाँव से एक कडक माल लेने गया है, शमशान में कोई देखने वाला नहीं होगा, इसलिए उसने उधर प्रोग्राम रखा है। बस एक समस्या है। वो लोंड़िया दारू और मांस की शौकीन है तभी योनि रस पिलाएगी, बोल क्या कहता है?
बंसी आँख मार कर कटीली हंसी हँसता हुआ- “अरे तो इसमें का बात है? दारू और मांस के बाद तो मौज ही कुछ और होगी, खूब योनि रास पियूँगा ससुरी का, ये मेरे पास 3000 रूपये हैं, सेठजी ने आज बिजली का बिल भरने के लिए दिए थे, बोल दूंगा जेब कट गई….....”
ये सुनकर विपुलानन्द को तसल्ली हुई और दोनों बाजार की तरफ निकल लिए , ठेके से इम्पीरियल ब्लू की दो बोतल और, एक हाफ रायल स्टैग का खरीद के दोनों मीट लेने पहुूँच गए, उधर पहुूँच के बंसी को मितली आई तो वो एक तरफ बैठ गया और विपु को ₹1000 देकर बोला खुद ही ले आओ, मेरे से कटा हुआ बकरा नहीं देखा जाता।
विपु कि आँखे चमक उठी और वो घुस गया मीट बाजार में ढूंढता हुआ जा पहुंचा एक कसाई के पास- “सलाम भाईजान एक लंगड़ा बकरा चाहिए क्या भाव है?”
कसाई- ये जो सामने खड़ा है वो ₹7000 का है और दूसरा जो लेटा हुआ है वो ₹200 का।
विपु हैरानी से- “अरे दोनों के रेट में इतना फर्क क्यों? हैं तो दोनों बकरे ही, फर्क क्या है इनमें?
कसाई- ये जो लेटा हुआ है इसे एड्स है, इसका मालिक मुक्की इस बकरे की गाण्ड मारता था, वो पिछले हफ्ते ही मर गया।
विपु - हम्म… क्या जमाना आ गया है, चलो मुझे क्या, मैंने कौन सी बकरे की गाण्ड मारनी है, बस बलि चढ़ानी है, आप दे दो और ये लो ₹200 और हाँ भाईजान सूअर के आंड भी दिलवा दो।
कसाई दुकान के पिछवाड़े में पड़े हैं, छांट लो जा के, एक किलो ₹300 के होंगें।
ववपु- “ठीक है…” और दुकान के पिछवाड़े जाकर उधर फैले हुए आंड छांट-छांट के निकालने लगा, बदबू से उसकी गाण्ड फट के चौबारा हुई जा रही थी लेकिन बंसू के दिए हुए पैसो में टोपी लगा के उसने अपनी जेब गर्म कर ली थी।
एक थैले में आंड और एक हाथ से बकरा ठेलते हुये वो बंसी के पास पहुूँचा और बोला- “ले भाई ₹100 वापिस अपने और देख तेरी दोस्ती में क्या-क्या करता हूँ मैं तेरे लिए ?” मन ही मन में बोला- “भोसड़ी के 400 की चोद दी तेरी आज…” और हंसने लगा।
बंसी- हे हे हे… काहे शर्मिंदा कर रहे हो और एक हाथ विपुए के काले चूतड़ों पे फेर दिया।
विपु - “चलो पहले एक हाफ खिंच लेते हैं जरा मूड बन जायेगा…” दोनों ने ठेले वाले से 10 रूपए की मूंगफली और पानी की दो थैली ली और बैठ गए एक पेड़ के नीचे। दो छोटे-छोटे पेग बना के पहले भूमि नमन किया फिर हवा में चारो और दो बून्द छिड़क कर एक ही सांस में हलक के नीचे उतार ली, आग की तरह गले को चीरती हुई सुरा देवी ने जब अंदरप्रवेश किया तो दोनों की आँखे चमक उठीं, और ठक से 4 दाने मूंगफली के मुूँह में डालकर चबाने लगे। इस समय दोनों अपने आपको किसी सेठ की तरह समझ रहे थे।
बंसी- अरे विपुले अपने साथ रहोगे तो ऐश करोगे।
विपु मन ही मन गाली देता हुआ ऊपर से मुश्कुराया और बोला- “भाई बंसी- दोस्त ने दोस्त की गाण्ड ले ली और दोनों में प्यार हो गया…” ये कहावत मेरे गाँव मोदीनगर में बड़े बूढ़े बोलते थे।
और दोनों मुर्ख ठठाकर हंस पड़े।
इधर हवेली में सेठ अजयनाथ की निंद्रा थोड़ी देर से खुली, गत रात्रि मन के विचारो के निरंतर मंथन से वो काफी थकन सी महसूस कर रहे थे, अपने कक्ष से बाहर आकर देखा तो सामने दीवान खाली पड़ा था, वो एकदम से सारी थकान भूल कर ईशर उधर केशु को ढूंढने लगे ।
रसोई में पहुूँचकर देखा की केशु स्नान ध्यान कर के तैयार एक हल्की गुलाबी साड़ी में उनकी तरफ पीठ किये शायद चाय बना रही थी, पीठ पर कसी हुई चोली की डोरिया इधर उधर ढुलक रही थीं, मांसल पीठ पर कसी हुई डोरियाँ देखकर सेठजी झनझना उठे और धीरे से खांसते हुए बोले- “अब कैसी हो केशु?”
केशु एक झटके से पलटी और सेठजी को सामने रूपा ब्रांड की लुंगी और बनियान में देखकर शर्मा गई, आँखे नीचे करके बोली- “जी ठीक हूँ , आपकी कृपा है…” और मन्द-मन्द मुश्कुराने लगी।
सेठजी- “अब बुखार कैसा है?” कहते हुए वो धीरे से आगे बढ़े और केशु के माथे को अपने हाथ से छुआ, छूते ही हजारों वोल्ट का करेंट दोनों के शरीर में दौड़ पड़ा। सेठजी के लिंग ने अपनी इकलौती आँख मिचमिचाते हुए खोल ली और एक हल्की सी अंगड़ाई ली।
केशु थोड़ा घबराते हुए- “जी सेठजी अब बुखार नहीं है, बस जरा सी कमजोरी महसूस हो रही है…”
सेठजी जो अभी तक करेंट से झनझना रहे थे, और टूटती सी आवाज में धीमे से बोले- “कमजोरी में क्यों काम रही हो, छोड़ो ये सब, चलकर आराम कर लो…” हम डा॰ अमोल को फोन कर देते हैं।
केशु- जी नहीं अब हम ठीक है डा॰ को न बुलवाइए। आप अपने कमरे में जाकर बैठिये मैं चाय लेकर आती हूँ ।
सेठजी बड़े प्यार से उसके मोहक चेहरे को देखते हुए बोले- “सिर्फ चाय ही पिलाओगी ?”
केशु हड़बड़ा गई और नीचे देखते हुए बोली- “जी… और आप हुकुम कीजिये जो आप बोलेंगे वो बना दूंगी …”
सेठजी ठठाकर हंस पड़े और बोले- “अरे मेरा मतलब था आज दुबारा सब्जी बनाने मत बैठ जाना, कहीं फिर उंगली न काट लो अपनी…”
केशु शर्माकर मुूँह पे पल्ला डालकर मुश्कुराने लगी- “धत्त मैं कोई बच्ची थोड़े ही न हुूँ, वो तो मैं गोली की आवाज से डर गई थी…”
सेठजी मुश्कुरा दिए और एक नजर केशु के स्तनों पर से होते हुए उसके पतले पेट पर छोटी सी धुन्नी को देखने लगे। और मुड़कर अपने कमरे की ओर चल दिए ।
क्रमश:........................