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Fantasy कमीना चाहे नगीना

Alphatiger

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सबसे पहले सभी प्यारे मित्रो से हाथ जोड़कर क्षमा चाहता हूँ, देरी से अपडेट के लिए, हुआ यूं है कि मेरे एक मित्र को कैंसर हो गया हैं पिछले बीस एक दिनों से उसे ही लिए घूम रहा हूँ आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं तो डॉक्टर कि फीस और टेस्ट आदि के लिए उसके साथ जाना पड़ता हैं थोड़े दिनों कि और परेशानी हैं एक बार उसकी सर्जरी हो जाये फिर अपडेट रेगुलर हो जायेंगे तब तक अपना प्यार, आशीर्वाद और साथ यूँही बनाये रखे

अब आगे .....

राजा भैया एक निहायत ही धूर्त और लम्पट किस्म का कमीना था, निकट के गाँव में उसका मोचीगरी का ठीया था, आँखों में रंगबिरंगा चश्मा, गले में लाल रुमाल, मुूँह में गुटखा, पीले रंग की जालीदार बनियान, लाल रंग की पैंट के ऊपर पहनकर, वो अपने आपको गोविंदा का फूफा समझता था, बड़ी-बड़ी बातें और वड़ापाव खाते उसके व्यक्तित्व की पहचान थी ।

अपनी बड़ी-बड़ी लम्पट बातों से उसने कुछ अधेड़ उम्र की महिलाओ से अनैतिक शारीरिक संबंध बना रखे थे, जो कभी-कभी अपनी प्यास बुझाने के लिए उसे खेतों के भीतर बुला लिया करती थी, और वो अपने आपको तैमूर खान गुप्ता समझने लगता।
सड़क पे आती जाती हर उम्र की औरतों को वासना की नजर से देखना और फब्तियां कसना ही उसका काम था, कई बार गाँव के लोगों ने इकट्ठे होकर उसकी गुल्लक फोड़ी थी और मार-मार के सुजा दिया था लेकिन वो सुधरता ही न था।

विपु और उसकी दोस्ती ऐसे ही एक किसी खेत में हो रही रासलीला के दौरान हुई थी।
राजा के ठीये पर पहुूँचते-पहुूँचते शाम हो गई। बड़ी गर्मजोशी से आपस में सबका मिलन हुआ। राजा ने अपनी गन्दी नजर बंसी के नितम्बो पे डालते हुए विपु की तरफ आँख मारी और पूछा - “अरे विपु बड़बोला महाराज की जय हो, कैसे आना हुआ और ये बब्बूगोशा कहां से पकड़ लाए?”

विपु एकदम हड़बड़ा गया और हाथ जोड़कर बोला- “मेरे बाप ये मेरा जाने जिगर बंसी लंगुरा है और मेरा मित्र है, हम दोनों एक ही योनि में साथ-साथ मुूँह मारते हैं। बस तू मेरा एक काम करा दे, मैंने तेरे कितने काम कराये हैं, जब तू ठलुए की तरह घूमता था…......”

राजा की हंसी छूट गई और बोला- “अरे मैं तो मजाक कर रिया था, आप बोलो तो सही कहो तो अपनी गुल्लक खोल के सामने खड़ा हो जाऊं …”
विपु - “अरे भाई गुल्लक तो हम दोनों के पास भी है बस तू बंसी लाल को योनि रस पिलवा दे किसी भी तरह। तेरे इस काम से मेरा भी बड़ा भला होगा…”

राजा- “योनि रस पिलवा दे इस लंगुरा को…” सोचते हुए राजा की आँखे भींच गई ये कैसी इच्छा है, हाँ सम्भोग करने को कहता तो समझ आता।

विपु - “बोल राजा तेरे पैर पडू या तेरे आंड चुम लू लेकिन बंसी को योनि रास पिलवा दे पेट भर के भाई एक बार…”

राजा विपु को इशारा करके एक कोने में ले जाता है और विपु के कान में फुसफुसाता है- “मियां विपु मन्ने तो कोई और चक्कर लागे से, आम आदमी योनि रस पीने के लिए इतना नहीं फड़फड़ाता है…......”

विपु - अरे कैसा चक्कर बोल ररया है बे तू लोड़ू प्रसाद ?

राजा- मन्ने तो कोई ऊपरी हवा लाग रही से।

विपु - चल चूतिया मन्ने न विश्वास होता ।

राजा- अ***ह मियां की कसम सही बोल ररया हुूँ, गलत बोला तो अपना खतना करवा दूंगा ।

विपु - अरे हरामी आधा तो तू वैसे ही बन गया है, अब तो तू बस मेरी मदद कर दे।

राजा- “तुम एक काम करो एक लंगड़ा बकरा, एक किलो सूअर के आंड और दो बोतल शराब लेकर शमशान आओ, मैं एक साध्वी का इन्तजाम करता हुूँ, 11 बजे से इस लंगुरे को लेकर आ जाना…” यह बोलकर राजा उधर से फुट लिया ।

राजा के बारे में एक बात पाठको को बता दूँ , उसने 3 साल का तांत्रिक कोर्स उलूकपुर के एक तांत्रिक भोकलभाल नाथ के डेरे से किया था, और सीखने के बाद दक्षिणा दिया बिना ही वहां से रफूचक्कर हो गया, इस विद्या से वो कभी-कभी लोगों का चूतियानन्दन स्यापा बना दिया करता है, अक्सर गाँव कि महिलाये इसके चक्कर में फंस जाया करती थी।

इधर सामान की लिस्ट सुनकर तो विपु की गंडिया ही फट गई, मन ही मन राजा को कोसने लगा- “भोसड़ीचोद मेरा काला लोला ले........”
विपु बंसी के पास गया, और खींसे निपोरता हुआ बोला- “भाई बंसू तेरा काम हो गया। राजा एक बढ़िया कड़क सामान लेने गया है, लेकिन उसका योनि रस पीने की लिए हमें रात को श्मशान जाना पड़ेगा…”

बंसी त्योरियां चढ़ाता हुआ- “क्यों शमशान क्यों जाना है? वो क्या किसी चुड़ैल की दिलाएगा, मैं नहीं जाता उधर चलो वापस चलो मेरे एक ताऊ जी हैं ग़ाज़ियाबाद में वो दिलवा न देंगे मस्त माल…”

विपु - अबे अब यहाँ तक मरवाई है तो योनि रास पी के ही जायेंगे, तू समझा कर वो गाँव से एक कडक माल लेने गया है, शमशान में कोई देखने वाला नहीं होगा, इसलिए उसने उधर प्रोग्राम रखा है। बस एक समस्या है। वो लोंड़िया दारू और मांस की शौकीन है तभी योनि रस पिलाएगी, बोल क्या कहता है?

बंसी आँख मार कर कटीली हंसी हँसता हुआ- “अरे तो इसमें का बात है? दारू और मांस के बाद तो मौज ही कुछ और होगी, खूब योनि रास पियूँगा ससुरी का, ये मेरे पास 3000 रूपये हैं, सेठजी ने आज बिजली का बिल भरने के लिए दिए थे, बोल दूंगा जेब कट गई….....”

ये सुनकर विपुलानन्द को तसल्ली हुई और दोनों बाजार की तरफ निकल लिए , ठेके से इम्पीरियल ब्लू की दो बोतल और, एक हाफ रायल स्टैग का खरीद के दोनों मीट लेने पहुूँच गए, उधर पहुूँच के बंसी को मितली आई तो वो एक तरफ बैठ गया और विपु को ₹1000 देकर बोला खुद ही ले आओ, मेरे से कटा हुआ बकरा नहीं देखा जाता।

विपु कि आँखे चमक उठी और वो घुस गया मीट बाजार में ढूंढता हुआ जा पहुंचा एक कसाई के पास- “सलाम भाईजान एक लंगड़ा बकरा चाहिए क्या भाव है?”

कसाई- ये जो सामने खड़ा है वो ₹7000 का है और दूसरा जो लेटा हुआ है वो ₹200 का।

विपु हैरानी से- “अरे दोनों के रेट में इतना फर्क क्यों? हैं तो दोनों बकरे ही, फर्क क्या है इनमें?

कसाई- ये जो लेटा हुआ है इसे एड्स है, इसका मालिक मुक्की इस बकरे की गाण्ड मारता था, वो पिछले हफ्ते ही मर गया।

विपु - हम्म… क्या जमाना आ गया है, चलो मुझे क्या, मैंने कौन सी बकरे की गाण्ड मारनी है, बस बलि चढ़ानी है, आप दे दो और ये लो ₹200 और हाँ भाईजान सूअर के आंड भी दिलवा दो।

कसाई दुकान के पिछवाड़े में पड़े हैं, छांट लो जा के, एक किलो ₹300 के होंगें।

ववपु- “ठीक है…” और दुकान के पिछवाड़े जाकर उधर फैले हुए आंड छांट-छांट के निकालने लगा, बदबू से उसकी गाण्ड फट के चौबारा हुई जा रही थी लेकिन बंसू के दिए हुए पैसो में टोपी लगा के उसने अपनी जेब गर्म कर ली थी।

एक थैले में आंड और एक हाथ से बकरा ठेलते हुये वो बंसी के पास पहुूँचा और बोला- “ले भाई ₹100 वापिस अपने और देख तेरी दोस्ती में क्या-क्या करता हूँ मैं तेरे लिए ?” मन ही मन में बोला- “भोसड़ी के 400 की चोद दी तेरी आज…” और हंसने लगा।

बंसी- हे हे हे… काहे शर्मिंदा कर रहे हो और एक हाथ विपुए के काले चूतड़ों पे फेर दिया।

विपु - “चलो पहले एक हाफ खिंच लेते हैं जरा मूड बन जायेगा…” दोनों ने ठेले वाले से 10 रूपए की मूंगफली और पानी की दो थैली ली और बैठ गए एक पेड़ के नीचे। दो छोटे-छोटे पेग बना के पहले भूमि नमन किया फिर हवा में चारो और दो बून्द छिड़क कर एक ही सांस में हलक के नीचे उतार ली, आग की तरह गले को चीरती हुई सुरा देवी ने जब अंदरप्रवेश किया तो दोनों की आँखे चमक उठीं, और ठक से 4 दाने मूंगफली के मुूँह में डालकर चबाने लगे। इस समय दोनों अपने आपको किसी सेठ की तरह समझ रहे थे।

बंसी- अरे विपुले अपने साथ रहोगे तो ऐश करोगे।

विपु मन ही मन गाली देता हुआ ऊपर से मुश्कुराया और बोला- “भाई बंसी- दोस्त ने दोस्त की गाण्ड ले ली और दोनों में प्यार हो गया…” ये कहावत मेरे गाँव मोदीनगर में बड़े बूढ़े बोलते थे।
और दोनों मुर्ख ठठाकर हंस पड़े।



धर हवेली में सेठ अजयनाथ की निंद्रा थोड़ी देर से खुली, गत रात्रि मन के विचारो के निरंतर मंथन से वो काफी थकन सी महसूस कर रहे थे, अपने कक्ष से बाहर आकर देखा तो सामने दीवान खाली पड़ा था, वो एकदम से सारी थकान भूल कर ईशर उधर केशु को ढूंढने लगे ।

रसोई में पहुूँचकर देखा की केशु स्नान ध्यान कर के तैयार एक हल्की गुलाबी साड़ी में उनकी तरफ पीठ किये शायद चाय बना रही थी, पीठ पर कसी हुई चोली की डोरिया इधर उधर ढुलक रही थीं, मांसल पीठ पर कसी हुई डोरियाँ देखकर सेठजी झनझना उठे और धीरे से खांसते हुए बोले- “अब कैसी हो केशु?”

केशु एक झटके से पलटी और सेठजी को सामने रूपा ब्रांड की लुंगी और बनियान में देखकर शर्मा गई, आँखे नीचे करके बोली- “जी ठीक हूँ , आपकी कृपा है…” और मन्द-मन्द मुश्कुराने लगी।

सेठजी- “अब बुखार कैसा है?” कहते हुए वो धीरे से आगे बढ़े और केशु के माथे को अपने हाथ से छुआ, छूते ही हजारों वोल्ट का करेंट दोनों के शरीर में दौड़ पड़ा। सेठजी के लिंग ने अपनी इकलौती आँख मिचमिचाते हुए खोल ली और एक हल्की सी अंगड़ाई ली।

केशु थोड़ा घबराते हुए- “जी सेठजी अब बुखार नहीं है, बस जरा सी कमजोरी महसूस हो रही है…”

सेठजी जो अभी तक करेंट से झनझना रहे थे, और टूटती सी आवाज में धीमे से बोले- “कमजोरी में क्यों काम रही हो, छोड़ो ये सब, चलकर आराम कर लो…” हम डा॰ अमोल को फोन कर देते हैं।

केशु- जी नहीं अब हम ठीक है डा॰ को न बुलवाइए। आप अपने कमरे में जाकर बैठिये मैं चाय लेकर आती हूँ ।

सेठजी बड़े प्यार से उसके मोहक चेहरे को देखते हुए बोले- “सिर्फ चाय ही पिलाओगी ?”

केशु हड़बड़ा गई और नीचे देखते हुए बोली- “जी… और आप हुकुम कीजिये जो आप बोलेंगे वो बना दूंगी …”

सेठजी ठठाकर हंस पड़े और बोले- “अरे मेरा मतलब था आज दुबारा सब्जी बनाने मत बैठ जाना, कहीं फिर उंगली न काट लो अपनी…”

केशु शर्माकर मुूँह पे पल्ला डालकर मुश्कुराने लगी- “धत्त मैं कोई बच्ची थोड़े ही न हुूँ, वो तो मैं गोली की आवाज से डर गई थी…”

सेठजी मुश्कुरा दिए और एक नजर केशु के स्तनों पर से होते हुए उसके पतले पेट पर छोटी सी धुन्नी को देखने लगे। और मुड़कर अपने कमरे की ओर चल दिए ।


क्रमश:........................
मस्त अपडेट भाई जी फाडू एक दम ,आखिरकार कहानी के घोड़े दौड़ ही पड़े:vhappy1::horseride:
 

Nevil singh

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सबसे पहले सभी प्यारे मित्रो से हाथ जोड़कर क्षमा चाहता हूँ, देरी से अपडेट के लिए, हुआ यूं है कि मेरे एक मित्र को कैंसर हो गया हैं पिछले बीस एक दिनों से उसे ही लिए घूम रहा हूँ आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं तो डॉक्टर कि फीस और टेस्ट आदि के लिए उसके साथ जाना पड़ता हैं थोड़े दिनों कि और परेशानी हैं एक बार उसकी सर्जरी हो जाये फिर अपडेट रेगुलर हो जायेंगे तब तक अपना प्यार, आशीर्वाद और साथ यूँही बनाये रखे

अब आगे .....

राजा भैया एक निहायत ही धूर्त और लम्पट किस्म का कमीना था, निकट के गाँव में उसका मोचीगरी का ठीया था, आँखों में रंगबिरंगा चश्मा, गले में लाल रुमाल, मुूँह में गुटखा, पीले रंग की जालीदार बनियान, लाल रंग की पैंट के ऊपर पहनकर, वो अपने आपको गोविंदा का फूफा समझता था, बड़ी-बड़ी बातें और वड़ापाव खाते उसके व्यक्तित्व की पहचान थी ।

अपनी बड़ी-बड़ी लम्पट बातों से उसने कुछ अधेड़ उम्र की महिलाओ से अनैतिक शारीरिक संबंध बना रखे थे, जो कभी-कभी अपनी प्यास बुझाने के लिए उसे खेतों के भीतर बुला लिया करती थी, और वो अपने आपको तैमूर खान गुप्ता समझने लगता।
सड़क पे आती जाती हर उम्र की औरतों को वासना की नजर से देखना और फब्तियां कसना ही उसका काम था, कई बार गाँव के लोगों ने इकट्ठे होकर उसकी गुल्लक फोड़ी थी और मार-मार के सुजा दिया था लेकिन वो सुधरता ही न था।

विपु और उसकी दोस्ती ऐसे ही एक किसी खेत में हो रही रासलीला के दौरान हुई थी।
राजा के ठीये पर पहुूँचते-पहुूँचते शाम हो गई। बड़ी गर्मजोशी से आपस में सबका मिलन हुआ। राजा ने अपनी गन्दी नजर बंसी के नितम्बो पे डालते हुए विपु की तरफ आँख मारी और पूछा - “अरे विपु बड़बोला महाराज की जय हो, कैसे आना हुआ और ये बब्बूगोशा कहां से पकड़ लाए?”

विपु एकदम हड़बड़ा गया और हाथ जोड़कर बोला- “मेरे बाप ये मेरा जाने जिगर बंसी लंगुरा है और मेरा मित्र है, हम दोनों एक ही योनि में साथ-साथ मुूँह मारते हैं। बस तू मेरा एक काम करा दे, मैंने तेरे कितने काम कराये हैं, जब तू ठलुए की तरह घूमता था…......”

राजा की हंसी छूट गई और बोला- “अरे मैं तो मजाक कर रिया था, आप बोलो तो सही कहो तो अपनी गुल्लक खोल के सामने खड़ा हो जाऊं …”
विपु - “अरे भाई गुल्लक तो हम दोनों के पास भी है बस तू बंसी लाल को योनि रस पिलवा दे किसी भी तरह। तेरे इस काम से मेरा भी बड़ा भला होगा…”

राजा- “योनि रस पिलवा दे इस लंगुरा को…” सोचते हुए राजा की आँखे भींच गई ये कैसी इच्छा है, हाँ सम्भोग करने को कहता तो समझ आता।

विपु - “बोल राजा तेरे पैर पडू या तेरे आंड चुम लू लेकिन बंसी को योनि रास पिलवा दे पेट भर के भाई एक बार…”

राजा विपु को इशारा करके एक कोने में ले जाता है और विपु के कान में फुसफुसाता है- “मियां विपु मन्ने तो कोई और चक्कर लागे से, आम आदमी योनि रस पीने के लिए इतना नहीं फड़फड़ाता है…......”

विपु - अरे कैसा चक्कर बोल ररया है बे तू लोड़ू प्रसाद ?

राजा- मन्ने तो कोई ऊपरी हवा लाग रही से।

विपु - चल चूतिया मन्ने न विश्वास होता ।

राजा- अ***ह मियां की कसम सही बोल ररया हुूँ, गलत बोला तो अपना खतना करवा दूंगा ।

विपु - अरे हरामी आधा तो तू वैसे ही बन गया है, अब तो तू बस मेरी मदद कर दे।

राजा- “तुम एक काम करो एक लंगड़ा बकरा, एक किलो सूअर के आंड और दो बोतल शराब लेकर शमशान आओ, मैं एक साध्वी का इन्तजाम करता हुूँ, 11 बजे से इस लंगुरे को लेकर आ जाना…” यह बोलकर राजा उधर से फुट लिया ।

राजा के बारे में एक बात पाठको को बता दूँ , उसने 3 साल का तांत्रिक कोर्स उलूकपुर के एक तांत्रिक भोकलभाल नाथ के डेरे से किया था, और सीखने के बाद दक्षिणा दिया बिना ही वहां से रफूचक्कर हो गया, इस विद्या से वो कभी-कभी लोगों का चूतियानन्दन स्यापा बना दिया करता है, अक्सर गाँव कि महिलाये इसके चक्कर में फंस जाया करती थी।

इधर सामान की लिस्ट सुनकर तो विपु की गंडिया ही फट गई, मन ही मन राजा को कोसने लगा- “भोसड़ीचोद मेरा काला लोला ले........”
विपु बंसी के पास गया, और खींसे निपोरता हुआ बोला- “भाई बंसू तेरा काम हो गया। राजा एक बढ़िया कड़क सामान लेने गया है, लेकिन उसका योनि रस पीने की लिए हमें रात को श्मशान जाना पड़ेगा…”

बंसी त्योरियां चढ़ाता हुआ- “क्यों शमशान क्यों जाना है? वो क्या किसी चुड़ैल की दिलाएगा, मैं नहीं जाता उधर चलो वापस चलो मेरे एक ताऊ जी हैं ग़ाज़ियाबाद में वो दिलवा न देंगे मस्त माल…”

विपु - अबे अब यहाँ तक मरवाई है तो योनि रास पी के ही जायेंगे, तू समझा कर वो गाँव से एक कडक माल लेने गया है, शमशान में कोई देखने वाला नहीं होगा, इसलिए उसने उधर प्रोग्राम रखा है। बस एक समस्या है। वो लोंड़िया दारू और मांस की शौकीन है तभी योनि रस पिलाएगी, बोल क्या कहता है?

बंसी आँख मार कर कटीली हंसी हँसता हुआ- “अरे तो इसमें का बात है? दारू और मांस के बाद तो मौज ही कुछ और होगी, खूब योनि रास पियूँगा ससुरी का, ये मेरे पास 3000 रूपये हैं, सेठजी ने आज बिजली का बिल भरने के लिए दिए थे, बोल दूंगा जेब कट गई….....”

ये सुनकर विपुलानन्द को तसल्ली हुई और दोनों बाजार की तरफ निकल लिए , ठेके से इम्पीरियल ब्लू की दो बोतल और, एक हाफ रायल स्टैग का खरीद के दोनों मीट लेने पहुूँच गए, उधर पहुूँच के बंसी को मितली आई तो वो एक तरफ बैठ गया और विपु को ₹1000 देकर बोला खुद ही ले आओ, मेरे से कटा हुआ बकरा नहीं देखा जाता।

विपु कि आँखे चमक उठी और वो घुस गया मीट बाजार में ढूंढता हुआ जा पहुंचा एक कसाई के पास- “सलाम भाईजान एक लंगड़ा बकरा चाहिए क्या भाव है?”

कसाई- ये जो सामने खड़ा है वो ₹7000 का है और दूसरा जो लेटा हुआ है वो ₹200 का।

विपु हैरानी से- “अरे दोनों के रेट में इतना फर्क क्यों? हैं तो दोनों बकरे ही, फर्क क्या है इनमें?

कसाई- ये जो लेटा हुआ है इसे एड्स है, इसका मालिक मुक्की इस बकरे की गाण्ड मारता था, वो पिछले हफ्ते ही मर गया।

विपु - हम्म… क्या जमाना आ गया है, चलो मुझे क्या, मैंने कौन सी बकरे की गाण्ड मारनी है, बस बलि चढ़ानी है, आप दे दो और ये लो ₹200 और हाँ भाईजान सूअर के आंड भी दिलवा दो।

कसाई दुकान के पिछवाड़े में पड़े हैं, छांट लो जा के, एक किलो ₹300 के होंगें।

ववपु- “ठीक है…” और दुकान के पिछवाड़े जाकर उधर फैले हुए आंड छांट-छांट के निकालने लगा, बदबू से उसकी गाण्ड फट के चौबारा हुई जा रही थी लेकिन बंसू के दिए हुए पैसो में टोपी लगा के उसने अपनी जेब गर्म कर ली थी।

एक थैले में आंड और एक हाथ से बकरा ठेलते हुये वो बंसी के पास पहुूँचा और बोला- “ले भाई ₹100 वापिस अपने और देख तेरी दोस्ती में क्या-क्या करता हूँ मैं तेरे लिए ?” मन ही मन में बोला- “भोसड़ी के 400 की चोद दी तेरी आज…” और हंसने लगा।

बंसी- हे हे हे… काहे शर्मिंदा कर रहे हो और एक हाथ विपुए के काले चूतड़ों पे फेर दिया।

विपु - “चलो पहले एक हाफ खिंच लेते हैं जरा मूड बन जायेगा…” दोनों ने ठेले वाले से 10 रूपए की मूंगफली और पानी की दो थैली ली और बैठ गए एक पेड़ के नीचे। दो छोटे-छोटे पेग बना के पहले भूमि नमन किया फिर हवा में चारो और दो बून्द छिड़क कर एक ही सांस में हलक के नीचे उतार ली, आग की तरह गले को चीरती हुई सुरा देवी ने जब अंदरप्रवेश किया तो दोनों की आँखे चमक उठीं, और ठक से 4 दाने मूंगफली के मुूँह में डालकर चबाने लगे। इस समय दोनों अपने आपको किसी सेठ की तरह समझ रहे थे।

बंसी- अरे विपुले अपने साथ रहोगे तो ऐश करोगे।

विपु मन ही मन गाली देता हुआ ऊपर से मुश्कुराया और बोला- “भाई बंसी- दोस्त ने दोस्त की गाण्ड ले ली और दोनों में प्यार हो गया…” ये कहावत मेरे गाँव मोदीनगर में बड़े बूढ़े बोलते थे।
और दोनों मुर्ख ठठाकर हंस पड़े।



धर हवेली में सेठ अजयनाथ की निंद्रा थोड़ी देर से खुली, गत रात्रि मन के विचारो के निरंतर मंथन से वो काफी थकन सी महसूस कर रहे थे, अपने कक्ष से बाहर आकर देखा तो सामने दीवान खाली पड़ा था, वो एकदम से सारी थकान भूल कर ईशर उधर केशु को ढूंढने लगे ।

रसोई में पहुूँचकर देखा की केशु स्नान ध्यान कर के तैयार एक हल्की गुलाबी साड़ी में उनकी तरफ पीठ किये शायद चाय बना रही थी, पीठ पर कसी हुई चोली की डोरिया इधर उधर ढुलक रही थीं, मांसल पीठ पर कसी हुई डोरियाँ देखकर सेठजी झनझना उठे और धीरे से खांसते हुए बोले- “अब कैसी हो केशु?”

केशु एक झटके से पलटी और सेठजी को सामने रूपा ब्रांड की लुंगी और बनियान में देखकर शर्मा गई, आँखे नीचे करके बोली- “जी ठीक हूँ , आपकी कृपा है…” और मन्द-मन्द मुश्कुराने लगी।

सेठजी- “अब बुखार कैसा है?” कहते हुए वो धीरे से आगे बढ़े और केशु के माथे को अपने हाथ से छुआ, छूते ही हजारों वोल्ट का करेंट दोनों के शरीर में दौड़ पड़ा। सेठजी के लिंग ने अपनी इकलौती आँख मिचमिचाते हुए खोल ली और एक हल्की सी अंगड़ाई ली।

केशु थोड़ा घबराते हुए- “जी सेठजी अब बुखार नहीं है, बस जरा सी कमजोरी महसूस हो रही है…”

सेठजी जो अभी तक करेंट से झनझना रहे थे, और टूटती सी आवाज में धीमे से बोले- “कमजोरी में क्यों काम रही हो, छोड़ो ये सब, चलकर आराम कर लो…” हम डा॰ अमोल को फोन कर देते हैं।

केशु- जी नहीं अब हम ठीक है डा॰ को न बुलवाइए। आप अपने कमरे में जाकर बैठिये मैं चाय लेकर आती हूँ ।

सेठजी बड़े प्यार से उसके मोहक चेहरे को देखते हुए बोले- “सिर्फ चाय ही पिलाओगी ?”

केशु हड़बड़ा गई और नीचे देखते हुए बोली- “जी… और आप हुकुम कीजिये जो आप बोलेंगे वो बना दूंगी …”

सेठजी ठठाकर हंस पड़े और बोले- “अरे मेरा मतलब था आज दुबारा सब्जी बनाने मत बैठ जाना, कहीं फिर उंगली न काट लो अपनी…”

केशु शर्माकर मुूँह पे पल्ला डालकर मुश्कुराने लगी- “धत्त मैं कोई बच्ची थोड़े ही न हुूँ, वो तो मैं गोली की आवाज से डर गई थी…”

सेठजी मुश्कुरा दिए और एक नजर केशु के स्तनों पर से होते हुए उसके पतले पेट पर छोटी सी धुन्नी को देखने लगे। और मुड़कर अपने कमरे की ओर चल दिए ।


क्रमश:........................
Julmi update bhai
Waah bhai leta hua bakra dekar vipu ne banshi ko bhi chuna laga diya
Idher yeh nagina kesho to katal karva kar maane gi har aur chha gai yeh kachnaar
 

Naik

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सबसे पहले सभी प्यारे मित्रो से हाथ जोड़कर क्षमा चाहता हूँ, देरी से अपडेट के लिए, हुआ यूं है कि मेरे एक मित्र को कैंसर हो गया हैं पिछले बीस एक दिनों से उसे ही लिए घूम रहा हूँ आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं तो डॉक्टर कि फीस और टेस्ट आदि के लिए उसके साथ जाना पड़ता हैं थोड़े दिनों कि और परेशानी हैं एक बार उसकी सर्जरी हो जाये फिर अपडेट रेगुलर हो जायेंगे तब तक अपना प्यार, आशीर्वाद और साथ यूँही बनाये रखे

अब आगे .....

राजा भैया एक निहायत ही धूर्त और लम्पट किस्म का कमीना था, निकट के गाँव में उसका मोचीगरी का ठीया था, आँखों में रंगबिरंगा चश्मा, गले में लाल रुमाल, मुूँह में गुटखा, पीले रंग की जालीदार बनियान, लाल रंग की पैंट के ऊपर पहनकर, वो अपने आपको गोविंदा का फूफा समझता था, बड़ी-बड़ी बातें और वड़ापाव खाते उसके व्यक्तित्व की पहचान थी ।

अपनी बड़ी-बड़ी लम्पट बातों से उसने कुछ अधेड़ उम्र की महिलाओ से अनैतिक शारीरिक संबंध बना रखे थे, जो कभी-कभी अपनी प्यास बुझाने के लिए उसे खेतों के भीतर बुला लिया करती थी, और वो अपने आपको तैमूर खान गुप्ता समझने लगता।
सड़क पे आती जाती हर उम्र की औरतों को वासना की नजर से देखना और फब्तियां कसना ही उसका काम था, कई बार गाँव के लोगों ने इकट्ठे होकर उसकी गुल्लक फोड़ी थी और मार-मार के सुजा दिया था लेकिन वो सुधरता ही न था।

विपु और उसकी दोस्ती ऐसे ही एक किसी खेत में हो रही रासलीला के दौरान हुई थी।
राजा के ठीये पर पहुूँचते-पहुूँचते शाम हो गई। बड़ी गर्मजोशी से आपस में सबका मिलन हुआ। राजा ने अपनी गन्दी नजर बंसी के नितम्बो पे डालते हुए विपु की तरफ आँख मारी और पूछा - “अरे विपु बड़बोला महाराज की जय हो, कैसे आना हुआ और ये बब्बूगोशा कहां से पकड़ लाए?”

विपु एकदम हड़बड़ा गया और हाथ जोड़कर बोला- “मेरे बाप ये मेरा जाने जिगर बंसी लंगुरा है और मेरा मित्र है, हम दोनों एक ही योनि में साथ-साथ मुूँह मारते हैं। बस तू मेरा एक काम करा दे, मैंने तेरे कितने काम कराये हैं, जब तू ठलुए की तरह घूमता था…......”

राजा की हंसी छूट गई और बोला- “अरे मैं तो मजाक कर रिया था, आप बोलो तो सही कहो तो अपनी गुल्लक खोल के सामने खड़ा हो जाऊं …”
विपु - “अरे भाई गुल्लक तो हम दोनों के पास भी है बस तू बंसी लाल को योनि रस पिलवा दे किसी भी तरह। तेरे इस काम से मेरा भी बड़ा भला होगा…”

राजा- “योनि रस पिलवा दे इस लंगुरा को…” सोचते हुए राजा की आँखे भींच गई ये कैसी इच्छा है, हाँ सम्भोग करने को कहता तो समझ आता।

विपु - “बोल राजा तेरे पैर पडू या तेरे आंड चुम लू लेकिन बंसी को योनि रास पिलवा दे पेट भर के भाई एक बार…”

राजा विपु को इशारा करके एक कोने में ले जाता है और विपु के कान में फुसफुसाता है- “मियां विपु मन्ने तो कोई और चक्कर लागे से, आम आदमी योनि रस पीने के लिए इतना नहीं फड़फड़ाता है…......”

विपु - अरे कैसा चक्कर बोल ररया है बे तू लोड़ू प्रसाद ?

राजा- मन्ने तो कोई ऊपरी हवा लाग रही से।

विपु - चल चूतिया मन्ने न विश्वास होता ।

राजा- अ***ह मियां की कसम सही बोल ररया हुूँ, गलत बोला तो अपना खतना करवा दूंगा ।

विपु - अरे हरामी आधा तो तू वैसे ही बन गया है, अब तो तू बस मेरी मदद कर दे।

राजा- “तुम एक काम करो एक लंगड़ा बकरा, एक किलो सूअर के आंड और दो बोतल शराब लेकर शमशान आओ, मैं एक साध्वी का इन्तजाम करता हुूँ, 11 बजे से इस लंगुरे को लेकर आ जाना…” यह बोलकर राजा उधर से फुट लिया ।

राजा के बारे में एक बात पाठको को बता दूँ , उसने 3 साल का तांत्रिक कोर्स उलूकपुर के एक तांत्रिक भोकलभाल नाथ के डेरे से किया था, और सीखने के बाद दक्षिणा दिया बिना ही वहां से रफूचक्कर हो गया, इस विद्या से वो कभी-कभी लोगों का चूतियानन्दन स्यापा बना दिया करता है, अक्सर गाँव कि महिलाये इसके चक्कर में फंस जाया करती थी।

इधर सामान की लिस्ट सुनकर तो विपु की गंडिया ही फट गई, मन ही मन राजा को कोसने लगा- “भोसड़ीचोद मेरा काला लोला ले........”
विपु बंसी के पास गया, और खींसे निपोरता हुआ बोला- “भाई बंसू तेरा काम हो गया। राजा एक बढ़िया कड़क सामान लेने गया है, लेकिन उसका योनि रस पीने की लिए हमें रात को श्मशान जाना पड़ेगा…”

बंसी त्योरियां चढ़ाता हुआ- “क्यों शमशान क्यों जाना है? वो क्या किसी चुड़ैल की दिलाएगा, मैं नहीं जाता उधर चलो वापस चलो मेरे एक ताऊ जी हैं ग़ाज़ियाबाद में वो दिलवा न देंगे मस्त माल…”

विपु - अबे अब यहाँ तक मरवाई है तो योनि रास पी के ही जायेंगे, तू समझा कर वो गाँव से एक कडक माल लेने गया है, शमशान में कोई देखने वाला नहीं होगा, इसलिए उसने उधर प्रोग्राम रखा है। बस एक समस्या है। वो लोंड़िया दारू और मांस की शौकीन है तभी योनि रस पिलाएगी, बोल क्या कहता है?

बंसी आँख मार कर कटीली हंसी हँसता हुआ- “अरे तो इसमें का बात है? दारू और मांस के बाद तो मौज ही कुछ और होगी, खूब योनि रास पियूँगा ससुरी का, ये मेरे पास 3000 रूपये हैं, सेठजी ने आज बिजली का बिल भरने के लिए दिए थे, बोल दूंगा जेब कट गई….....”

ये सुनकर विपुलानन्द को तसल्ली हुई और दोनों बाजार की तरफ निकल लिए , ठेके से इम्पीरियल ब्लू की दो बोतल और, एक हाफ रायल स्टैग का खरीद के दोनों मीट लेने पहुूँच गए, उधर पहुूँच के बंसी को मितली आई तो वो एक तरफ बैठ गया और विपु को ₹1000 देकर बोला खुद ही ले आओ, मेरे से कटा हुआ बकरा नहीं देखा जाता।

विपु कि आँखे चमक उठी और वो घुस गया मीट बाजार में ढूंढता हुआ जा पहुंचा एक कसाई के पास- “सलाम भाईजान एक लंगड़ा बकरा चाहिए क्या भाव है?”

कसाई- ये जो सामने खड़ा है वो ₹7000 का है और दूसरा जो लेटा हुआ है वो ₹200 का।

विपु हैरानी से- “अरे दोनों के रेट में इतना फर्क क्यों? हैं तो दोनों बकरे ही, फर्क क्या है इनमें?

कसाई- ये जो लेटा हुआ है इसे एड्स है, इसका मालिक मुक्की इस बकरे की गाण्ड मारता था, वो पिछले हफ्ते ही मर गया।

विपु - हम्म… क्या जमाना आ गया है, चलो मुझे क्या, मैंने कौन सी बकरे की गाण्ड मारनी है, बस बलि चढ़ानी है, आप दे दो और ये लो ₹200 और हाँ भाईजान सूअर के आंड भी दिलवा दो।

कसाई दुकान के पिछवाड़े में पड़े हैं, छांट लो जा के, एक किलो ₹300 के होंगें।

ववपु- “ठीक है…” और दुकान के पिछवाड़े जाकर उधर फैले हुए आंड छांट-छांट के निकालने लगा, बदबू से उसकी गाण्ड फट के चौबारा हुई जा रही थी लेकिन बंसू के दिए हुए पैसो में टोपी लगा के उसने अपनी जेब गर्म कर ली थी।

एक थैले में आंड और एक हाथ से बकरा ठेलते हुये वो बंसी के पास पहुूँचा और बोला- “ले भाई ₹100 वापिस अपने और देख तेरी दोस्ती में क्या-क्या करता हूँ मैं तेरे लिए ?” मन ही मन में बोला- “भोसड़ी के 400 की चोद दी तेरी आज…” और हंसने लगा।

बंसी- हे हे हे… काहे शर्मिंदा कर रहे हो और एक हाथ विपुए के काले चूतड़ों पे फेर दिया।

विपु - “चलो पहले एक हाफ खिंच लेते हैं जरा मूड बन जायेगा…” दोनों ने ठेले वाले से 10 रूपए की मूंगफली और पानी की दो थैली ली और बैठ गए एक पेड़ के नीचे। दो छोटे-छोटे पेग बना के पहले भूमि नमन किया फिर हवा में चारो और दो बून्द छिड़क कर एक ही सांस में हलक के नीचे उतार ली, आग की तरह गले को चीरती हुई सुरा देवी ने जब अंदरप्रवेश किया तो दोनों की आँखे चमक उठीं, और ठक से 4 दाने मूंगफली के मुूँह में डालकर चबाने लगे। इस समय दोनों अपने आपको किसी सेठ की तरह समझ रहे थे।

बंसी- अरे विपुले अपने साथ रहोगे तो ऐश करोगे।

विपु मन ही मन गाली देता हुआ ऊपर से मुश्कुराया और बोला- “भाई बंसी- दोस्त ने दोस्त की गाण्ड ले ली और दोनों में प्यार हो गया…” ये कहावत मेरे गाँव मोदीनगर में बड़े बूढ़े बोलते थे।
और दोनों मुर्ख ठठाकर हंस पड़े।



धर हवेली में सेठ अजयनाथ की निंद्रा थोड़ी देर से खुली, गत रात्रि मन के विचारो के निरंतर मंथन से वो काफी थकन सी महसूस कर रहे थे, अपने कक्ष से बाहर आकर देखा तो सामने दीवान खाली पड़ा था, वो एकदम से सारी थकान भूल कर ईशर उधर केशु को ढूंढने लगे ।

रसोई में पहुूँचकर देखा की केशु स्नान ध्यान कर के तैयार एक हल्की गुलाबी साड़ी में उनकी तरफ पीठ किये शायद चाय बना रही थी, पीठ पर कसी हुई चोली की डोरिया इधर उधर ढुलक रही थीं, मांसल पीठ पर कसी हुई डोरियाँ देखकर सेठजी झनझना उठे और धीरे से खांसते हुए बोले- “अब कैसी हो केशु?”

केशु एक झटके से पलटी और सेठजी को सामने रूपा ब्रांड की लुंगी और बनियान में देखकर शर्मा गई, आँखे नीचे करके बोली- “जी ठीक हूँ , आपकी कृपा है…” और मन्द-मन्द मुश्कुराने लगी।

सेठजी- “अब बुखार कैसा है?” कहते हुए वो धीरे से आगे बढ़े और केशु के माथे को अपने हाथ से छुआ, छूते ही हजारों वोल्ट का करेंट दोनों के शरीर में दौड़ पड़ा। सेठजी के लिंग ने अपनी इकलौती आँख मिचमिचाते हुए खोल ली और एक हल्की सी अंगड़ाई ली।

केशु थोड़ा घबराते हुए- “जी सेठजी अब बुखार नहीं है, बस जरा सी कमजोरी महसूस हो रही है…”

सेठजी जो अभी तक करेंट से झनझना रहे थे, और टूटती सी आवाज में धीमे से बोले- “कमजोरी में क्यों काम रही हो, छोड़ो ये सब, चलकर आराम कर लो…” हम डा॰ अमोल को फोन कर देते हैं।

केशु- जी नहीं अब हम ठीक है डा॰ को न बुलवाइए। आप अपने कमरे में जाकर बैठिये मैं चाय लेकर आती हूँ ।

सेठजी बड़े प्यार से उसके मोहक चेहरे को देखते हुए बोले- “सिर्फ चाय ही पिलाओगी ?”

केशु हड़बड़ा गई और नीचे देखते हुए बोली- “जी… और आप हुकुम कीजिये जो आप बोलेंगे वो बना दूंगी …”

सेठजी ठठाकर हंस पड़े और बोले- “अरे मेरा मतलब था आज दुबारा सब्जी बनाने मत बैठ जाना, कहीं फिर उंगली न काट लो अपनी…”

केशु शर्माकर मुूँह पे पल्ला डालकर मुश्कुराने लगी- “धत्त मैं कोई बच्ची थोड़े ही न हुूँ, वो तो मैं गोली की आवाज से डर गई थी…”

सेठजी मुश्कुरा दिए और एक नजर केशु के स्तनों पर से होते हुए उसके पतले पेट पर छोटी सी धुन्नी को देखने लगे। और मुड़कर अपने कमरे की ओर चल दिए ।


क्रमश:........................
Bahot behtareen zaberdast shaandaar update
 

Ajju Landwalia

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सभी मित्रो को नमस्कार

देरी के लिए क्षमा चाहूंगा जैसा की मैंने बताया था मेरे एक परिचित को कैंसर हो गया हैं उसको ही लेकर थोड़ा व्यस्त था
हॉस्पिटल्स के चक्कर काट काट कर मुझे भी 8-10 दिन बुखार हो गया था ईश्वर की कृपा और सबके प्यार से covid की रिपोर्ट नेगेटिव आयी हैं, लेकिन कमज़ोरी बहुत ज्यादा हैं, आप लोगो का समय बर्बाद न करते हुए अगली अपडेट आप सबके लिए






नजफगढ़
30 जनवरी 2021

ठाकुर महेंद्रप्रताप की जीपों का काफिला हवेली के पोर्च में आकर रुका, दरबान ने सलाम मारते हुए ठाकुर साहब की जीप का दरवाजा खोलकर सर झुकाते हुए धीरे से काका लंडैत के आने की सुचना दी। ठाकुर महेंद्र ने अपनी मूंछो को ताव देते हुए उसे बैठक में हाज़िर होने का आदेश दिया।

थोड़ी देर बाद काका लंडैत ने बैठक में प्रवेश किया और सर झुका कर आदर से ठाकुर साहब को सलाम ठोंका, अपने साथ हिसार का लाया हुआ प्रसिद्ध खोया पनीर और खीस के थाल ठाकुर साहब को पेश किये ।

ये देखकर ठाकुर महेन्द्र अत्यंत प्रसन्न हुए और अपनी रोबदार आवाज में काका से बोले- “और काका कैसे हाल है तोहार, अभी तक हरे हुए या नहीं, या ऐसे ही झुलाये घूम रहे हो? हा हा हा…”

काका- “हे हे हे… ठाकुर साहब मुझे शरम आवत है…” कह के काका जमीन पर अपने पैर के अंगूठे से खुरचने लगा।

ठाकुर- “अबे काका जिसने की शर्म उसके फूटे कर्म , चल तुझे इनाम में आज हरा करवा देते हैं…” कह के ठाकुर साहब ने अपने खास आदमी नीरज नवरत्न को आवाज लगाई।

नीरज राजस्थान बीकानेर से एक 6 फूटा लम्बा हट्टा-कट्टा युवक था। बीकानेर में नीरज के जलवे आज भी मशहूर थे और वहां की युवतिया आज भी आहें भर के याद करती थी नीरज के साथ खेली हुई कुश्तिया ।

ठाकुर- “नीरज ये हमारे काकाजी को ले जाओ बिंदिया के पास और इनकी सेवा पानी करवाओ और बिंदिया से कहना काका को हरी चटनी जरूर चटाये। हा हा हा…”

काका घबरा के- “हुज़ूर मुझे माफ कीजिये, मैंने अपने लंगराज की लाज अपनी सुहागरात के लिए बचा रखी है, मैं तो बस आपके लिए सेठ अज्जू जी का संदेशा लाया हुूँ…” कह के धीरे-धीरे काका ने ठाकुर साहब को सारी बात बता दी।

सारी बात सुनते-सुनते ठाकुर महेंद्र की त्योरियां चढ़ गई, और धीरे से बोले- “हम्म… चलो अब बहुत दिनों बाद आदम शिकार करने का टेम आया है…” भेड़िया बाबू राव को कल सुबह के लिए तैयारी करने को कहो।

ठाकुर काका की तरफ मुड़े और बोले- “तू जा काका आराम कर, कल सुबह ही हम अपने दोस्त अज्जू नाथ के लिए कुछ करेंगे…”
नीरज नवरत्न काका लंडैत को आदर से रास्ता दिखाता हुआ हवेली के पिछवाड़े बने रंगमहल में ले गए, रंगमहल देखते ही काका की आूँखें फटी की फटी रह गई, फर्श पर बिछा ईरानी कालीन काका को मुंह चिढ़ा सा रहा था, छत पर तरह-तरह के रंगबिरंगे आबुनिसि फानूसों से आती झिलमिल प्रकाश की किरणे एक अलौककक दृश्य प्रस्तुत कर रही थी, पुरे कक्ष में एक सुगन्धित मादक सुगंध फैली हुई थी। कुछ पल के लिए तो काका मदहोश सा हो गया।

नीरज- “बिंदिया ओ बिंदिया …”

और भीतरी कक्ष से पायलों की झन-झन के साथ एक सुरीली आवाज सुनाई दी- “जी आती हूँ …” और एक अत्यंत सुंदर रूपसी ने कक्ष में प्रवेश किया । उफ्फ… क्या रूप था उसका। कक्ष में उस सुंदरी ‘बिंदिया’ के प्रवेश करते ही जैसे कक्ष का प्रकाश चौगुना बढ़ गया। अंदर आते ही उस रूपसी ने हाथ जोड़कर और अपने नैन झुका के नीरज और काका को प्रणाम किया ।

उस सुंदरी बिंदिया रानी का रूप सौंदर्य देखकर काका अपनी सुधबुध खो बैठा और, अपलक मूक दृष्टि से बिंदिया के मोहक चेहरे को निहारता हुआ हाथ जोड़े ही खड़ा रह गया। कामदेव की देवी जैसा रूप लावण्य।

उसकी दशा देखकर नीरज नवरत्न ठठाकर हँस पड़े और एक हल्की सी धौल काका के कंधे पर मारी और बोले- “काकाजी जाग जाओ और आराम करो…”

नीरज- “सुनो बिंदिया ये ठाकुर साहब के मेहमान हैं। कल सुबह ठाकुर साहब के साथ जायेंगे, तब तक इनकी सेवा में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए


बिंदिया- “जी हुज़ूर…” और पलकें उठाकर निचला होंठ दबाते हुए काका की तरफ देखने लगी।

काका ने फौरन अपनी नजर घुमा ली, उसके पूरे शरीर में कंपकंपी दौड़ गई- “नीरज सा आप आज्ञा दे, तो मैं हवेली के बाहर वाले मेहमानकक्ष में ही ठीक हूँ । मेरा घोड़ा जीतू तूफानी भी थका हुआ है…”

नीरज- काकाजी, ठाकुर साहब का हुकुम टालने की जुर्रत इस हवेली में तो क्या पूरे नजफगढ़ में किसी की नहीं है। आपजीतू की चिंता न करो, उसकी खुराक और मालिश का इजन्तजाम भी हो रहा है…”

नीरज- “जाओ बिंदिया काका को ले जाओ और हाँ इन्हें एक बार अपने हरे धनिये की चटनी जरूर चटाना, ठाकुर सहम का आदेश हैं । हा हा हा हा…........”

बिंदिया एक कातिल मुश्कान के साथ- “काकाजी कृपया भीतर आइए…” झन-झन-झन पायल की आवाजें काका के कान में मंदिर की घंटी के समान प्रतीत हो रही थीं।

पाठकों, मित्रो, इस समय काका लंडैत की दशा उस मासूम मेमने की तरह हो रही थी, जिसे ज़िबह करने के लिए ले जाया जा रहा हो।
भीतरी कक्ष में प्रवेश करते ही काका की आँखे खुली की खुली रह गई, सामने एक विशाल नरम गद्देदार सुखध लाल रंग के शनील का पलंग जैसे काका की ही अगुवाई के लिए ही रखा गया था, छत पर लटका हुआ धीमी रोशनी का ईरानी फानूस अपनी अलौकिक आभा बखेर रहा था, फर्श पर बिछे नरम ईरानी कालीन जैसे बोल रहा हो- “आओ काकाजी रौंद डालो हमें…”

काकाजी की तो जैसे झंड हो गई थी।

बिंदिया अपनी मीठी और सुरीली खनकती आवाज में काकाजी की तरफ मुड़कर अपना निचला होंठ दबा के बोली- “बैठिये काकाजी आप थक गए होंगे। मैं आपके लिए महीने शरबत लेकर आती हुूँ, जिसे से पीते ही आपके शरीर की थकान दूर हो जाएगी, बैठिये न आप…”

काका धीमे से घबराई आवाज में- “जी मैं ठीक हूँ बस प्-प-पानी ही पिलवा दीजिये और मन्ने जाने की इजाजत दीजिये, बड़ी घबराहट सी हो रही है यहाँ ..…”

बिंदिया खिलखिलाकर हँस पड़ी- “अरे अभी तो आप आये हैं जरा हमें सेवा तो करने दीजिये …” और काका का हाथ पकड़कर- “चलिए यहाँ बैठिये आप, बिलकुल भोले-भाले बच्चे जैसे हैं आप…”

बिंदिया के नरम हाथ का स्पर्श पाते ही काका की आँखों के आगे जैसे कई अनार जल उठे हो और इतना अपनापन देखकर काका की गाण्ड में सुरसुराहट सी हो गई, और वो हे हे हे… करता हुआ सोफे पर बैठ गया। बिंदिया की मोहक देह से उठती पशीने और परफ्युम की मिलीझुली मादक स्त्री गंध का मौन निमंत्रण उसके अंदर कहीं आँच देने लगा था। वह अपनी रग-रग में उत्तेजना महस स कर रहा था- स्वयं को पूरी तरह देकर उसे उसकी सम्पूर्णता में पाने की एक पागल इच्छा काका के मन में कहीं दूर उठने लगी थी, शरीर के रोये अंगड़ाई लेने लगे थे।

बिंदिया ने हल्के से उसके होंठों को अपनी उंगली से सहलाया और धीरे से बोली- “आज की ये खूबसूरत रात हमेशा के लिए रहने दो हमारे बीच…” बिंदिया काका की आँखों में देखते हुए अपने होंठों पर अपनी एक उंगली रखकर उसे मौन रहने का इशारा करती है, और मुड़कर भीतर एक छोटे से कक्ष में चली जाती है।

काका कुछ न समझ पाने की स्थिति में उसे चुपचाप देखता रह गया था। वह अभी भी अपने शरीर की आँच और उत्तेजना से उभर नहीं पाया था। कुछ पलो तक काका अवाक् कक्ष को चारों तरफ से देखता रहा, पूरे कक्ष में भीनी-भीनी सी चम्पा चमेली के फूलों की महक फैली हुई थी।
तभी छन-छन की ध्वनि के साथ बिंदिया और एक दासी ने प्रवेश किया, दासी के हाथों में एक चांदी का थाल था, जिस पर चांदी की सुराही, दो गिलास और मेवे से भरी हुई थाली थी, थाली में गुरबंदी और मामरा बादाम, चिलगोजे, काजू अखरोट की गिरी , किशमिश, छुहारे, अंजीर, सूखी खुबानी और भी कई तरह के मेवे जो खास ईरान अफगानिस्तान और उजेबेकस्तान से मंगवाए गए थे।

ठाकुर महेन्द्र बहुत शौकीन थे मेवों के, तभी तो कई तरह की काम-कलाओं में पारंगत थे। कई रुपसिया ठाकुर महेन्द्र के नीचे बिछने को लालायित रहती थी।

बिंदिया ने काका के समीप जाकर आसन ग्रहण किया और दासी को मोहनी जाम बनाने को कहा, दासी ने झुककर काका के पास रखी तिपाई की टेबल पर उस थाल को रखा और काका को हाथ जोड़ के नमस्कार किया । न चाहते हुए भी काका की नजर दासी के सीने पर चली गई, जहां से दो कच्चे अमरुद अपनी गुलाबी आभा बबखेर रहे थे।

काका एकदम स्तब्ध रह गया और एक बुत की तरह हाथ जोड़े बैठा रहा, उसकी जबान सूख गई थी और निगाहे उन अधखिले कच्चे अमरूदों पर थीं।


ये सब बिंदिया से भी छुपा न रहा और वो निचला होंठ दबा के धीरे से मुश्कुरा के काका से बोली- “हुज़ूर नागपुरी संतरे भी है हमारे पास, आप कहें तो पेश करूं?”

काका एकदम से हड़बड़ा गया और अपनी नजर नीची कर ली।

बिंदिया और दासी काका की इस हालत पर खिलखिलाकर हँस पड़ी। उन्हें देखकर काका भी खिसियानी सी हंसी हँस पड़ा। अंदर ही अंदर वो बहुत शर्मिंदा सा हो रहा था।

तभी बिंदिया ने अपने हाथ से सुराही उठाकर एक जाम बनाया, सुर्ख लाल रंग का वो शरबत चांदी के गिलास में गिरता हुआ देखकर काका को अपने नथुनों में एक अजीब सी भीनी महक का आभास होने लगा, और वो जरा मुस्तैदी से बैठ गया।

बिंदिया ने जाम काका की तरफ बढ़ाया और मुश्कुरा के बोला- लीजिये काकाजी गीला कीजिये ।

काका ने चौंक कर बिंदिया की तरफ देखा।

बिंदिया ने टपक से कहा- “अपना गला…” और दोनों ठठा के हंसने लगी।

काका ने झेंपते हुए जाम की तरफ हाथ बढ़ाया, जाम पकड़ने के साथ उसकी उंगलियों ने जैसे ही बिंदिया की उंगलियों को स्पर्श किया , उसके पूरे शरीर में 10000 वोल्ट का तीव्र विधुत प्रवाह कौंध उठा। अचानक काका को अपना लिंग सुन्न सा महसूस हुआ, और वो घबरा गया, उसकी धोती में उसके एक नेत्रधारी लिंग ने अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया था।

ये देखकर बिंदिया हल्की से कातिल मुश्कान के साथ बोली- “अभी जल्दी क्या है हुज़ूर आराम से जाम तो पीजिये .........”

काका- “जी क्या मतलब?

बिंदिया - “जी आप आराम से पहले जाम पीजिये …” फिर बिंदिया ने अपनी बायीं भौंह उठाकर दासी की तरफ देखा। यह देखकर दासी सर झुका के काका को सलाम करके वापिस चली गई।

काका ने धीरे से उस रूहानी मोहनी शरबत का एक घूंट भरा, जैसे ही शरबत ने काका के कण्ठ का रास्ता पार कर उदर में उतरना शुरू किया एक असीम आनन्द अतिरेक से काका की आँखे मूँद गई- “वाह वाह क्या शरबत है… आज तक ऐसा शरबत मैंने अपनी इस खड़ूस जिंदगी में नहीं पिया, वाह वाह…” दूसरा और तीसरा घूंट भरते-भरते काका एकदम तरोताजा हो उठा, उसे अपनी मांसपेशियों में एक उन्माद और खास जोशे बल महसूस होने लगा।

तभी काका चौंक उठा और झेप के धीरे से बोला- “बिंदिया जी आप भी तो पीजिये ....…”


बिंदिया उसकी आँखों में आँख डाल के एक कातिल मुश्कान के साथ धीरे से बोली- “आप पीजिये हुज़ूर , हम तो आप ही को पी लेंगे.......…”


कर्मश:..............................






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Alphatiger

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Pahle to aapke mitr or aapke liye shubhkamnaye ,aapke mitr or aap svasth rhe.
DHAMAKEDAR UPDATE:love3:
 

Anuj.Sharma

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Adbhut hai bahut hi jabardast update… Ajju bhai chaa gaye … 🌷🌷🌷
 
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