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Incest कर्ज और फर्ज - एक कश्मकश

manu@84

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Voh toh baad main bhi dekh sakti hai pehla toh kuch aur dekhna chaiya usse😜🤪
Bhai ekdum Kamal likhte ho 👏🏻👏🏻
बेहतरीन, अद्भुत , ग़ज़ब ,अतुलनीय
प्रशंसा में लिखने को शब्द नहीं मिल रहे।
👌👌
जिस सासू मां के सामने प्रोफेसर साहब के हाथों के तोते उड़े हुए थे संयोगवश वह उन्ही पर मेहरबान हो गई बल्कि यूं कहा जाए कि लट्टु हो गई ।

भई मानो या न मानो , पर प्रोफेसर साहब कामदेव के अवतार तो है । कुँवारी लड़कियां पट जाती है । विवाहित औरतें पट जाती है । भाभी पट जाती है । सालियां पट जाती है । सौतेली पुत्री पट जाती है । सास भी पट जाती है । यहां तक कि उनकी मां भी उनपर मोहित हो उठती है । अब ऐसे मे प्रोफेसर साहब को कामदेव का अवतार न कहें तो क्या कहें ! :D
खैर देखते है प्रोफेसर साहब के दिल के झरोखे मे सासू जी अपना प्रेम का घरौंदा बना पाती है या नही !

और जहां तक बात है शादी के सात फेरे के वादों की तो आप ने वहां मिस्टेक कर दी है । आप गूगल सर्च करके इसे जान सकते है ।

बाकी हमेशा की तरह आपने इस अपडेट मे भी संवाद के साथ साथ किरदारों के मनः मस्तिष्क मे चल रहे अंतर्द्वंद का शानदार चित्रण किया ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग मानु भाई ।
Update पोस्ट कर दिया एक गुजारिश के साथ आप सभी ज्यादा से ज्यादा शब्दों की बारिश से अपने रिव्यू, प्रतिक्रिया, विचार, शिकायते, खूबियां, कमिया, गालियाँ जिसको जैसा ठीक लगे.......बस इस कहानी को अपना प्यार, आशीर्वाद दे...... 🙏🙏🙏
 

manu@84

Well-Known Member
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सास कि बारी है 😍😍😘😘
Next episode kab release hoga? 😶
Bahut kamukh... Jald se kusum or uske baap ka bi lke aao
अरुण साहब मेरे नजरिए से आपने एक बहुत बड़ी ग़लती कर दी है। क्या? तो सुनिए आपकी पत्नी कुसुम ने एक बहुत बड़ी सच बात कही है कि औरत कि एक प्राकृतिक सील होती हैं और एक स्वनिर्मित सील होती है। प्राकृतिक सील तो एक झटके में टूट जाती हैं पर महिलाओं की स्वनिर्मित सील बहुत मजबूत होती है इस सील को हर महिला बहुत संभाल कर रखती हैं इस पर जल्दी आंच नहीं आने देती ना ही किसी को हाथ डालने देती हैं। पर जिस दिन महिला इस सील को तोड़ कर बाहर निकलती है तो फिर उसको रोक पाना नामुमकिन है। और कुसुम ने वो सील तोड़ दी है, अब उसका रुक पाना कठिन है। हां एक रास्ता था जब वो अपने आशिक के साथ लिप्त थी तो आपको इंतजार करना चाहिए था और जैसे ही उनका कार्यक्रम समाप्त होता और आपकी इंट्री होती तो उस समय कुसुम की मानसिक हालत ऐसी होती कि उसे अपने किए पर ग्लानि हो रही होती और उसी समय आपकी इंट्री उसे आगे बड़ने से हमेशा के लिए रोक देती।चलो अब आगे देखते हैं क्या गुल खिलते है।
Update पोस्ट कर दिया एक गुजारिश के साथ आप सभी ज्यादा से ज्यादा शब्दों की बारिश से अपने रिव्यू, प्रतिक्रिया, विचार, शिकायते, खूबियां, कमिया, गालियाँ जिसको जैसा ठीक लगे.......बस इस कहानी को अपना प्यार, आशीर्वाद दे...... 🙏🙏🙏
 

Ek number

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ऐसा नही था कि मुझे अपनी सास किसी आम औरत की भाँति नज़र आ रही थी, मैने कभी अपनी सास को उत्तेजना पूर्ण शब्द के साथ जोड़ कर नही देखा था. वह मेरे लिए उतनी ही पवित्र, उतनी ही निष्कलंक थी जितनी कि कोई दैवीय मूरत. बस एक कसक थी या अजीब सा कौतूहल जो मुझ को मजबूर कर रहा था कि मै उनके विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करू भले वो जानकारी मर्यादित श्रेणी में हो या पूर्न अमर्यादित.. . . . ....!

कौतूहल चंचल मन अश्व समान होता है, विचारों की वल्गा चाहे जितनी भी ज़ोर से तानो लेकिन वह दौड़ता ही जाता है. मेरी सास अधीर हो उठी थी, अवाक हो कर मेरे चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयत्न कर रही थी.चाहती थी कि उसका दामाद अत्यंत तुरंत स्वीकार कर ले कि वो उसको सारे शारीरक् सुख देने की काबिलियत इस अधेड़ यौवन में भी रखती है। निश्चित तौर पर तो नही परंतु हमेशा की तरह ही वह अपनी चूत की गहराई में अत्यधिक सिहरन की तीव्र लहर दौड़ती महसूस करने को बेहद आतुर हो चली थी, जिसके एहसास से वह काफ़ी दीनो से वंचित थी.

उन्होंने मंन ही मंन सोचा और मेरे मुख से ही पूर्ण रूप से सच सुनने की प्रतीक्षा करने लगती है.

" मम्मी! मैं परेशान हूँ" मै हौले से बुद्बुदाया, मेरा कथन और स्वर दोनो एक-दूसरे के परिचायक थे.

मेरी सास को पुष्टिकरण चाहिए था वह भी एक मर्द से, फिर चाहे वह मर्द उसका सगा दामाद ही क्यों ना था. उन्होंने अपने चेहरे की शरमाहट को छुपाने का असफल प्रयास किया और फॉरन चहेक पड़ी.

"हां हां बोल ना, मैं सुनना चाहती हूँ अरुण " उनके अल्फाज़ो में महत्वाकांक्षा की प्रचूरता व्याप्त थी जैसे अपने दामाद के व्यक्तिगत रहस्य अपनी सगी सास के साथ सांझा होने पर उन्हें बेहद प्रसन्नता हो रही हो.

मैने अपनी सास के हैरत भरे चेहरे को विस्मय की दृष्टि से देखते हुए कहा.
"वैसे मम्मी! क्या मैं जान सकता हूँ कि एक अच्छे संभोग सुख की चाहत पूरी करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए ?" मैने प्रश्न किया.

कुच्छ वक़्त पिछे जिस नकारात्मक सोच से सामना हुवा था अब वो नकारात्मकता प्रबलता से अपने पाँव फ़ैलाने लगी थी.

"कुच्छ ख़ास नही! सासु कुर्सी के हैंडल की सतह पर अपने दाएँ हाथ के नाखूनो को रगड़ते हुवे बोली. उनकी आँखें जो अब तक अपने दामाद की आँखों में झाँक कर वार्तालाप कर रही थीं, गहेन मायूसी, अंजाने भय की वजह से उनकी गर्दन समेत निच्चे झुक जाती हैं.

"अक्सर नौकरी पेशा बीवी होने पर तुम्हारी उमर में अक्सर पति पत्नी को सेक्स संबंधी प्राब्लम'स फेस करनी पड़ती हैं बेटा! लेकिन इसमें बुरा कुच्छ भी नही" स्पष्ट-रूप से ऐसा बोल कर वह मेरी गतिविधियों पर गौर फरमाने लगती है.

अरुण बेटा कितने समय से कुसुम तुम्हारी संभोग सुख की चाहत पूरी नही कर रही है... कुछ पल की चुप्पी के बाद वो फिर से बोली????

महीने भर से मम्मी, आप तो समझ लीजिये जब से उसकी नौकरी लगी है तब से... ;

"क्या! महीने भर से" सास चोंकते हुए.

"उससे भी पहले से" मैने दोबारा विस्फोट किया.

"तो .. तो तुमने मुझे कुच्छ बताया क्यों नही बेटा ?" सास ने व्याकुल स्वर में पुछा, उनके मस्तिष्क में अचानक से चिंता का वास हो गया था. पति पत्नी के बीच होने वाले संभोग में इतने लंबे समय तक का अंतराल बने रहना बहुत ही गंभीर परिणामो का सूचक माना जाता है और जो वाकाई संदेह से परिपूर्ण विषय था.

"कैसे बताता मम्मी ? जब किसी अन्य को नही बता पाया तो फिर तुम तो मेरी मम्मी समान हो" बोलते हुए मेरी आँखें मूंद जाती हैं.

मेरे हाथ पर हाथ रखते हुए सास बोली "तो क्या सिर्फ़ घुट'ते रहने से तुम्हारा दर्द समाप्त हो जाता ?"

"बेशरम बनने से तो कहीं अच्छी थी यह घुटन"

अरुण बेटा "तुम किस युग में जी रहे हो ! क्या तुम्हे ज़रा सा भी अंदाज़ा है ?"

मम्मी "युग बदल जाने से क्या इंसान को अपनी हद्द भूल जानी चाहिए ?"

"हद में रह कर ही तो तुम्हारी इतनी गंभीर हालत हुई है, बेटा! काश की तुमने समय रहते ही सही, मुझे अपना दर्द बया कर दिया होता तो आज कुछ देर पहले जो तू अपनी बेटी रिंकी के साथ कर रहा था, वो करने की नौबत ही नही आती। कुच्छ हद्द तक तू बाप बेटी के रिश्ते को बदनाम करने से मुक्त हो गया होता" सास के दुइ-अर्थी शाब्दिक कथन के उपरांत तो जैसे पूरे मेरे दिल दिमाग में सन्नाटा छा जाता है. मेरी जुबां से बस एक ही शब्द बाहर निकला " सॉरी "

"खैर भूल जाते है,उसे जो हुआ सो हुआ! मुझे अपने दामाद की भावनाओ को भी समझने का प्रयास करना चाहिए था और जिसे मैने पूरी तरह से नज़र-अंदाज़ कर दिया था" "तो क्या अब तुम अपनी उस छोटी सी भूल का इस तरह शोक मनाओगे ?" हमारे बीच बहुत देर से छाई शांति को भंग करते हुवे सास बोली.

अजीब सी स्थिति का निर्माण हो चुका था, मेरे बगल में बैठी स्त्री मेरी सगी सास थी जो अपनी ही सगी बेटी के स्त्रीतत्व पर ही दोषा-रोपण कर रही थी और अपने दामाद को आज के परिवेश में ढल जाने की शिक्षा दे रही थी. उत्तेजना अपनी जगह और मान-मर्यादा, लिहाज, सभ्यता, संस्कार अपनी. हर मनुश्य के खुद के कुच्छ सिद्धांत होते हैं और बुद्धिजीवी वो अपने नियम, धरम के हिसाब से ही अपने जीवन का निर्वाह करता है.

माना सास की दुनिया शुरूवात से बहुत व्यापक रही थी, एक अच्छी ग्रहिणी होने के साथ-साथ वह निचले स्तर की मध्यम वर्गीय गरीव घर की काम-काज़ी महिला भी थी. पति व पुत्र के अलावा ऐसे कयि मर्द रहे जिनके निर्देशन में उन्हे छोटे छोटे चूड़ी के कारखानों में काम करना पड़ा था.

वह यौवन से भरपूर अत्यंत सुंदर, कामुक नारी थी. कयि तरह के लोभ-लालच उनके बढ़ते परंतु बंधन-बढ़ते कदमो में खुलेपन की रफ़्तार देने को निरंतर अवतरित होते रहे थे मगर वह पहले से ही इतनी संतुष्ट थी कि किसी भी लालच की तरफ उनका झुकाव कभी नही हुवा था.

हमेशा वस्त्रो से धकि रहना लेकिन पति संग सहवास के वक़्त उन्ही कपड़ो से दुश्मनी निकालना उनकी खूबी थी, चुदाई के लगभग हर आसान से वह भली भाँति परिचित थी. विवाह के पश्चात से अपने पति की इक्षा के विरुद्ध उन्होंने कभी अपनी झांटो को पूर्न-रूप से सॉफ नही किया था बल्कि कैंची से उनकी एक निश्चित इकाई में काट-छांट कर लिया करती थी और तब से ले कर मेरे ससुर के बीमार होने तक हर रात उनसे अपनी चूत चटवाना और स्खलन के उपरांत पुरूस्कार-स्वरूप उन्हें अपनी गाढ़ी रज पिलवाना उनके बेहद पसंदीदा कार्यों में प्रमुख था, चुदाई से पूर्व वह दो बार तो अवश्य ही अपने पति के मूँह के भीतर झड़ती थी क्यों कि उससे कम में उनकी कामोत्तेजना का अंत हो पाना कतयि संभव नही हो पाता था.

अपनी सास के टुकड़ो में बाते कथन को सुनकर मैने एक गहरी सांस ली और अपने दोनो हाथो को कैंची के आकार में ढाल कर उनके अत्यंत सुंदर चेहरे को बड़ी गंभीरता-पूर्वक निहारने लगा परंतु अब वह चेहरा सुंदर कहाँ रह गया था. कभी मायूस तो कभी व्याकुल, कभी विचार-मग्न तो कभी खामोश, कभी ख़ौफ़ से आशंकित तो कभी लाज की सुर्ख लालिमा से प्रफुल्लित.

हां! मुख मंडल पर कुच्छ कम उत्तेजना के लक्षण अवश्य शामिल थे और जो मेरी ठरकी अनुभवी निगाहों से छुप भी नही पाये मगर चेहरे का बेदाग निखार, शुद्ध कजरारी आँखें, मूंगिया रंगत के भरे हुवे होंठ और उनकी क़ैद में सज़ा पाते अत्यधिक सफेद दाँत, तोतपुरि नाक और अधेड़ यौवन के बावजूद खिले-खिले तरो-ताज़ा गालो के आंकलन हेतु अनुभव की ज़रूरत कहाँ आन पड़नी थी और पहली बार मैने जाना कि किसी औरत के सही मूल्यांकन की शुरूवात ना तो उसके गोल मटोल मम्मो से आरंभ होती है और ना ही उभरे हुवे मांसल चूतडो से, चेहरा हक़ीक़त में उसके दिल का आईना होता है.

निराशा, उदासी, उत्तेजना आदि कयि एहसासो से ओत-प्रोत सास कुछ मन ही मन सोचें जा रही थी कि तभी मेरी आवाज़ से उनकी तंद्रा टूट गयी, विवशता में भी उन्होंने अपनी पलकों को उठा कर कर पुनः अपनी गर्दन ऊपर उठा कर अपने दामाद के चेहरे का सामना करना पड़ता है और जिसके लिए वह ज़रा सी भी तैयार नही थी.

"तो कहो मम्मी! मुझे कुसुम की अनुपस्थि में अपनी शारीरिक जरूररतो की पूर्ति किसके साथ करनी चाहिए ? मैने पुछा.

मेरे सवाल के जबाब में कहे जाने वाले मेरी सास के वे अगले लफ्ज़ शायद अब तक के उनके सम्पूर्न बीते जीवन के सबसे हृदय-विदारक अल्फ़ाज़ बनने वाले थे और खुद ब खुद उनकी आँखें क्षण मात्र में खुल कर मेरे चेहरे को निहारने लगती हैं.

म... म.... मुझे नही पता...???

सास हकला सी गयी, उन्हें अपने दामाद द्वारा ऐसे अट-पटे प्रश्न के पुच्छे जाने की बिल्कुल उम्मीद नही थी...! उनके चेहरे का रंग उड़ गया और वो तेज़ी से दूसरी ओर घूम गयी. वो मेरे पास से उठ कर जल्दी जल्दी मुझसे दूर भाग गयी. मैं कह नही सकता था कि वो घबरा गयी है या शर्मिंदा है मगर मैने इतना ज़रूर देखा था कि मेरी साली जूली की विदा होने तक वो जब भी मेरे नज़दीक आती या जब भी मैं उनके पास जाता तो वो अपनी आँखे फेर लेती थी. उनके रवैये में किसी बढ़ाव की बात उस समय पक्की हो गयी ।

मै तो जैसे उनका मन पढ़ लिया था.कड़ी मेहनत के बाद फल की प्राप्ति होती है और जिसकी शुरूवात मै कर चुका था किंतु फल मिलने में अभी काफ़ी वक़्त लगेगा इस बात से भी मै अच्छी तरह परिचित था. दूसरी ओर सास ने मन ही मन सोचा होगा, अभी भी उनके लिए संभावनाए उतनी प्रबल नही थी कि वह निर्लज्जता-पूर्ण तरीके से अपने दामाद के समक्ष अपनी काम-पीपासा का बखान कर पाती... .. !

साली की विदा के बाद दोपहर तक मेहमानों का जाने का सिलसिला लगातार जारी रहा। कुसुम अपनी नौकरी के कारण शाम को ही अपनी ससुराल और अगली सुबह ड्यूटी पर जाने की मुझसे कह रही थी। कुसुम को जब मैने बड़े प्यार से अपने बालों को सवारते हुए देखा वो तो एक जिज्ञासु की तरह पूछ ही लिया।

कुसुम एक बात बताओ महिलाएं, कभी बाल खुले रखती हैं, कभी एक चोटी, कभी दो ,तो कभी जूड़ा,। इसका कोई गूढ़ रहस्य है, या यह फैशन से है जुड़ा,?

वो मुस्कुराते हुए कहने लगी, जब हमारी शादी नही हुई थी, हम अकेले थे,जैसे दो अलग चोटी , फिर शादी हुई एक हुए ,तो एक चोटी। फिर हम दोनो जूडे के जैसे, ऐसे मिल गए कि, अपना सब कुछ ,
एक,दूसरे को दे दिया।

मैने पूछा फिर ये खुले बाल,,,,?

जवाब मिला,एक हो कर भी, हमारा अपना अलग अस्तित्व है, ये खुले बाल,हमारे अलग विचार, अधिकार, वजूद और शख्सियत का प्रतीक हैं ! जो एक दूसरे के सम्मान से उपजता है!

मैने प्रभावित होकर,माहौल को हल्का करने के लिए ,पूछा,,,,और ये जो तुम बालों में ऊपर रबर बैंड लगा कर खुला छोड़ देती हो,यह तो भ्रमित करता है, कि बंधन या आजादी ?

जवाब मिला,एक दूसरे को स्वतंत्रता तो देनी है,पर पतंग और डोर जैसे, स्वतंत्रता में भी मर्यादा का अंकुश। बालों को पहले मर्यादा के रबर बैंड से बांधा,फिर,स्वछंद छोड़ दिया।!

अपनी पत्नी के मुख से केस विन्यास के गूढ़ रहस्य को जान मैं हतप्रभ, विस्मित, प्रभावित, और नतमस्तक हो गया😜


जारि है........ ✍️

Nice update
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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ऐसा नही था कि मुझे अपनी सास किसी आम औरत की भाँति नज़र आ रही थी, मैने कभी अपनी सास को उत्तेजना पूर्ण शब्द के साथ जोड़ कर नही देखा था. वह मेरे लिए उतनी ही पवित्र, उतनी ही निष्कलंक थी जितनी कि कोई दैवीय मूरत. बस एक कसक थी या अजीब सा कौतूहल जो मुझ को मजबूर कर रहा था कि मै उनके विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करू भले वो जानकारी मर्यादित श्रेणी में हो या पूर्न अमर्यादित.. . . . ....!

कौतूहल चंचल मन अश्व समान होता है, विचारों की वल्गा चाहे जितनी भी ज़ोर से तानो लेकिन वह दौड़ता ही जाता है. मेरी सास अधीर हो उठी थी, अवाक हो कर मेरे चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयत्न कर रही थी.चाहती थी कि उसका दामाद अत्यंत तुरंत स्वीकार कर ले कि वो उसको सारे शारीरक् सुख देने की काबिलियत इस अधेड़ यौवन में भी रखती है। निश्चित तौर पर तो नही परंतु हमेशा की तरह ही वह अपनी चूत की गहराई में अत्यधिक सिहरन की तीव्र लहर दौड़ती महसूस करने को बेहद आतुर हो चली थी, जिसके एहसास से वह काफ़ी दीनो से वंचित थी.

उन्होंने मंन ही मंन सोचा और मेरे मुख से ही पूर्ण रूप से सच सुनने की प्रतीक्षा करने लगती है.

" मम्मी! मैं परेशान हूँ" मै हौले से बुद्बुदाया, मेरा कथन और स्वर दोनो एक-दूसरे के परिचायक थे.

मेरी सास को पुष्टिकरण चाहिए था वह भी एक मर्द से, फिर चाहे वह मर्द उसका सगा दामाद ही क्यों ना था. उन्होंने अपने चेहरे की शरमाहट को छुपाने का असफल प्रयास किया और फॉरन चहेक पड़ी.

"हां हां बोल ना, मैं सुनना चाहती हूँ अरुण " उनके अल्फाज़ो में महत्वाकांक्षा की प्रचूरता व्याप्त थी जैसे अपने दामाद के व्यक्तिगत रहस्य अपनी सगी सास के साथ सांझा होने पर उन्हें बेहद प्रसन्नता हो रही हो.

मैने अपनी सास के हैरत भरे चेहरे को विस्मय की दृष्टि से देखते हुए कहा.
"वैसे मम्मी! क्या मैं जान सकता हूँ कि एक अच्छे संभोग सुख की चाहत पूरी करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए ?" मैने प्रश्न किया.

कुच्छ वक़्त पिछे जिस नकारात्मक सोच से सामना हुवा था अब वो नकारात्मकता प्रबलता से अपने पाँव फ़ैलाने लगी थी.

"कुच्छ ख़ास नही! सासु कुर्सी के हैंडल की सतह पर अपने दाएँ हाथ के नाखूनो को रगड़ते हुवे बोली. उनकी आँखें जो अब तक अपने दामाद की आँखों में झाँक कर वार्तालाप कर रही थीं, गहेन मायूसी, अंजाने भय की वजह से उनकी गर्दन समेत निच्चे झुक जाती हैं.

"अक्सर नौकरी पेशा बीवी होने पर तुम्हारी उमर में अक्सर पति पत्नी को सेक्स संबंधी प्राब्लम'स फेस करनी पड़ती हैं बेटा! लेकिन इसमें बुरा कुच्छ भी नही" स्पष्ट-रूप से ऐसा बोल कर वह मेरी गतिविधियों पर गौर फरमाने लगती है.

अरुण बेटा कितने समय से कुसुम तुम्हारी संभोग सुख की चाहत पूरी नही कर रही है... कुछ पल की चुप्पी के बाद वो फिर से बोली????

महीने भर से मम्मी, आप तो समझ लीजिये जब से उसकी नौकरी लगी है तब से... ;

"क्या! महीने भर से" सास चोंकते हुए.

"उससे भी पहले से" मैने दोबारा विस्फोट किया.

"तो .. तो तुमने मुझे कुच्छ बताया क्यों नही बेटा ?" सास ने व्याकुल स्वर में पुछा, उनके मस्तिष्क में अचानक से चिंता का वास हो गया था. पति पत्नी के बीच होने वाले संभोग में इतने लंबे समय तक का अंतराल बने रहना बहुत ही गंभीर परिणामो का सूचक माना जाता है और जो वाकाई संदेह से परिपूर्ण विषय था.

"कैसे बताता मम्मी ? जब किसी अन्य को नही बता पाया तो फिर तुम तो मेरी मम्मी समान हो" बोलते हुए मेरी आँखें मूंद जाती हैं.

मेरे हाथ पर हाथ रखते हुए सास बोली "तो क्या सिर्फ़ घुट'ते रहने से तुम्हारा दर्द समाप्त हो जाता ?"

"बेशरम बनने से तो कहीं अच्छी थी यह घुटन"

अरुण बेटा "तुम किस युग में जी रहे हो ! क्या तुम्हे ज़रा सा भी अंदाज़ा है ?"

मम्मी "युग बदल जाने से क्या इंसान को अपनी हद्द भूल जानी चाहिए ?"

"हद में रह कर ही तो तुम्हारी इतनी गंभीर हालत हुई है, बेटा! काश की तुमने समय रहते ही सही, मुझे अपना दर्द बया कर दिया होता तो आज कुछ देर पहले जो तू अपनी बेटी रिंकी के साथ कर रहा था, वो करने की नौबत ही नही आती। कुच्छ हद्द तक तू बाप बेटी के रिश्ते को बदनाम करने से मुक्त हो गया होता" सास के दुइ-अर्थी शाब्दिक कथन के उपरांत तो जैसे पूरे मेरे दिल दिमाग में सन्नाटा छा जाता है. मेरी जुबां से बस एक ही शब्द बाहर निकला " सॉरी "

"खैर भूल जाते है,उसे जो हुआ सो हुआ! मुझे अपने दामाद की भावनाओ को भी समझने का प्रयास करना चाहिए था और जिसे मैने पूरी तरह से नज़र-अंदाज़ कर दिया था" "तो क्या अब तुम अपनी उस छोटी सी भूल का इस तरह शोक मनाओगे ?" हमारे बीच बहुत देर से छाई शांति को भंग करते हुवे सास बोली.

अजीब सी स्थिति का निर्माण हो चुका था, मेरे बगल में बैठी स्त्री मेरी सगी सास थी जो अपनी ही सगी बेटी के स्त्रीतत्व पर ही दोषा-रोपण कर रही थी और अपने दामाद को आज के परिवेश में ढल जाने की शिक्षा दे रही थी. उत्तेजना अपनी जगह और मान-मर्यादा, लिहाज, सभ्यता, संस्कार अपनी. हर मनुश्य के खुद के कुच्छ सिद्धांत होते हैं और बुद्धिजीवी वो अपने नियम, धरम के हिसाब से ही अपने जीवन का निर्वाह करता है.

माना सास की दुनिया शुरूवात से बहुत व्यापक रही थी, एक अच्छी ग्रहिणी होने के साथ-साथ वह निचले स्तर की मध्यम वर्गीय गरीव घर की काम-काज़ी महिला भी थी. पति व पुत्र के अलावा ऐसे कयि मर्द रहे जिनके निर्देशन में उन्हे छोटे छोटे चूड़ी के कारखानों में काम करना पड़ा था.

वह यौवन से भरपूर अत्यंत सुंदर, कामुक नारी थी. कयि तरह के लोभ-लालच उनके बढ़ते परंतु बंधन-बढ़ते कदमो में खुलेपन की रफ़्तार देने को निरंतर अवतरित होते रहे थे मगर वह पहले से ही इतनी संतुष्ट थी कि किसी भी लालच की तरफ उनका झुकाव कभी नही हुवा था.

हमेशा वस्त्रो से धकि रहना लेकिन पति संग सहवास के वक़्त उन्ही कपड़ो से दुश्मनी निकालना उनकी खूबी थी, चुदाई के लगभग हर आसान से वह भली भाँति परिचित थी. विवाह के पश्चात से अपने पति की इक्षा के विरुद्ध उन्होंने कभी अपनी झांटो को पूर्न-रूप से सॉफ नही किया था बल्कि कैंची से उनकी एक निश्चित इकाई में काट-छांट कर लिया करती थी और तब से ले कर मेरे ससुर के बीमार होने तक हर रात उनसे अपनी चूत चटवाना और स्खलन के उपरांत पुरूस्कार-स्वरूप उन्हें अपनी गाढ़ी रज पिलवाना उनके बेहद पसंदीदा कार्यों में प्रमुख था, चुदाई से पूर्व वह दो बार तो अवश्य ही अपने पति के मूँह के भीतर झड़ती थी क्यों कि उससे कम में उनकी कामोत्तेजना का अंत हो पाना कतयि संभव नही हो पाता था.

अपनी सास के टुकड़ो में बाते कथन को सुनकर मैने एक गहरी सांस ली और अपने दोनो हाथो को कैंची के आकार में ढाल कर उनके अत्यंत सुंदर चेहरे को बड़ी गंभीरता-पूर्वक निहारने लगा परंतु अब वह चेहरा सुंदर कहाँ रह गया था. कभी मायूस तो कभी व्याकुल, कभी विचार-मग्न तो कभी खामोश, कभी ख़ौफ़ से आशंकित तो कभी लाज की सुर्ख लालिमा से प्रफुल्लित.

हां! मुख मंडल पर कुच्छ कम उत्तेजना के लक्षण अवश्य शामिल थे और जो मेरी ठरकी अनुभवी निगाहों से छुप भी नही पाये मगर चेहरे का बेदाग निखार, शुद्ध कजरारी आँखें, मूंगिया रंगत के भरे हुवे होंठ और उनकी क़ैद में सज़ा पाते अत्यधिक सफेद दाँत, तोतपुरि नाक और अधेड़ यौवन के बावजूद खिले-खिले तरो-ताज़ा गालो के आंकलन हेतु अनुभव की ज़रूरत कहाँ आन पड़नी थी और पहली बार मैने जाना कि किसी औरत के सही मूल्यांकन की शुरूवात ना तो उसके गोल मटोल मम्मो से आरंभ होती है और ना ही उभरे हुवे मांसल चूतडो से, चेहरा हक़ीक़त में उसके दिल का आईना होता है.

निराशा, उदासी, उत्तेजना आदि कयि एहसासो से ओत-प्रोत सास कुछ मन ही मन सोचें जा रही थी कि तभी मेरी आवाज़ से उनकी तंद्रा टूट गयी, विवशता में भी उन्होंने अपनी पलकों को उठा कर कर पुनः अपनी गर्दन ऊपर उठा कर अपने दामाद के चेहरे का सामना करना पड़ता है और जिसके लिए वह ज़रा सी भी तैयार नही थी.

"तो कहो मम्मी! मुझे कुसुम की अनुपस्थि में अपनी शारीरिक जरूररतो की पूर्ति किसके साथ करनी चाहिए ? मैने पुछा.

मेरे सवाल के जबाब में कहे जाने वाले मेरी सास के वे अगले लफ्ज़ शायद अब तक के उनके सम्पूर्न बीते जीवन के सबसे हृदय-विदारक अल्फ़ाज़ बनने वाले थे और खुद ब खुद उनकी आँखें क्षण मात्र में खुल कर मेरे चेहरे को निहारने लगती हैं.

म... म.... मुझे नही पता...???

सास हकला सी गयी, उन्हें अपने दामाद द्वारा ऐसे अट-पटे प्रश्न के पुच्छे जाने की बिल्कुल उम्मीद नही थी...! उनके चेहरे का रंग उड़ गया और वो तेज़ी से दूसरी ओर घूम गयी. वो मेरे पास से उठ कर जल्दी जल्दी मुझसे दूर भाग गयी. मैं कह नही सकता था कि वो घबरा गयी है या शर्मिंदा है मगर मैने इतना ज़रूर देखा था कि मेरी साली जूली की विदा होने तक वो जब भी मेरे नज़दीक आती या जब भी मैं उनके पास जाता तो वो अपनी आँखे फेर लेती थी. उनके रवैये में किसी बढ़ाव की बात उस समय पक्की हो गयी ।

मै तो जैसे उनका मन पढ़ लिया था.कड़ी मेहनत के बाद फल की प्राप्ति होती है और जिसकी शुरूवात मै कर चुका था किंतु फल मिलने में अभी काफ़ी वक़्त लगेगा इस बात से भी मै अच्छी तरह परिचित था. दूसरी ओर सास ने मन ही मन सोचा होगा, अभी भी उनके लिए संभावनाए उतनी प्रबल नही थी कि वह निर्लज्जता-पूर्ण तरीके से अपने दामाद के समक्ष अपनी काम-पीपासा का बखान कर पाती... .. !

साली की विदा के बाद दोपहर तक मेहमानों का जाने का सिलसिला लगातार जारी रहा। कुसुम अपनी नौकरी के कारण शाम को ही अपनी ससुराल और अगली सुबह ड्यूटी पर जाने की मुझसे कह रही थी। कुसुम को जब मैने बड़े प्यार से अपने बालों को सवारते हुए देखा वो तो एक जिज्ञासु की तरह पूछ ही लिया।

कुसुम एक बात बताओ महिलाएं, कभी बाल खुले रखती हैं, कभी एक चोटी, कभी दो ,तो कभी जूड़ा,। इसका कोई गूढ़ रहस्य है, या यह फैशन से है जुड़ा,?

वो मुस्कुराते हुए कहने लगी, जब हमारी शादी नही हुई थी, हम अकेले थे,जैसे दो अलग चोटी , फिर शादी हुई एक हुए ,तो एक चोटी। फिर हम दोनो जूडे के जैसे, ऐसे मिल गए कि, अपना सब कुछ ,
एक,दूसरे को दे दिया।

मैने पूछा फिर ये खुले बाल,,,,?

जवाब मिला,एक हो कर भी, हमारा अपना अलग अस्तित्व है, ये खुले बाल,हमारे अलग विचार, अधिकार, वजूद और शख्सियत का प्रतीक हैं ! जो एक दूसरे के सम्मान से उपजता है!

मैने प्रभावित होकर,माहौल को हल्का करने के लिए ,पूछा,,,,और ये जो तुम बालों में ऊपर रबर बैंड लगा कर खुला छोड़ देती हो,यह तो भ्रमित करता है, कि बंधन या आजादी ?

जवाब मिला,एक दूसरे को स्वतंत्रता तो देनी है,पर पतंग और डोर जैसे, स्वतंत्रता में भी मर्यादा का अंकुश। बालों को पहले मर्यादा के रबर बैंड से बांधा,फिर,स्वछंद छोड़ दिया।!

अपनी पत्नी के मुख से केस विन्यास के गूढ़ रहस्य को जान मैं हतप्रभ, विस्मित, प्रभावित, और नतमस्तक हो गया😜


जारि है........ ✍️
Bhai wah. Kya baat hai. Bohot hi taarkik visleshan or aadhyatmik baato ke baad :winknudge: baalo ke uper jo Prakash daala hai uske to hum kayal ho Gaye professor :applause::applause::applause:
Gajab ka update. Or Kamal ka lekhan Kaushal.✍️
Lagta hai SANJU ( V. R. ) bhai se class le rahe ho
😁
 
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कहां से ऐसी - ऐसी फिलॉसफी बातें लेकर आते हो आप मानु भाई ! औरतों के केश के बारे मे जो कुछ आपने कुसुम के माध्यम से कहा , कभी हमने इस तरह से सोचा ही नही । इस विषय पर टिप्पणी करना मेरे वश का नही ।
लेकिन अगर कहानी की बात करें तो हमारी कुसुम मैडम जानकारी के मामले मे , ज्ञानवर्धक उपदेश देने के मामले मे अपने हसबैंड अरूण साहब से जरा भी कम नही है ।
अगर अरूण सर प्रोफेसर है तो कुसुम मैडम अवश्य उस कालेज की प्रिंसिपल होगी , बल्कि चांसलर भी होगी ।

इस अपडेट मे आपने बहुत कुछ घुमा - फिरा कर लिखा है । बहुत ही कठीन कठीन शब्दावली का प्रयोग किया है । जो चीज सहज और आसान भाषा मे कही जानी चाहिए थी , उसके लिए ऐसे शब्द और वाक्य का इस्तेमाल किया है जो अमूमन रीडर्स समझ ही नही सकते । मेरा मानना है कहानी वह हो जो अधिकतर रीडर्स सहजता से समझ सके । आसान लिपि और हमारे ही परिवेश की संवाद हो।

सासू मां ने अपने दामाद को क्या कहा , क्या रिएक्शन दिया , क्या इशारे किए और दामाद जी ने प्रत्युत्तर मे क्या जबाव दिया - अधिकांश रीडर्स के सिर के ऊपर से चला गया होगा । रीडर्स समझ ही न सके होंगे कि कौन किसको सेड्यूश कर रहा है या फिर कोई सेड्यूश हो भी रहा है कि नही ।

अपडेट निस्संदेह अव्वल स्तर का था लेकिन बात वही कि यह उपलब्धि किस काम की जब आपके रीडर्स उस उपलब्धि का ठीक से आकलन न कर सके ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट मानु भाई।
 
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