अध्याय - 24 --- " आख़िर क्यों ""
“लव यू मेरी जान आप भी अपना ख्याल रखना और ज्यादा जलना मत..”एक हँसी के साथ हम दोनो थोड़ा इमोशनल हो गए और फोन कट गया… ।
अपने घर पहुँच कर मैंने फोन उठा के कुसुम को डायल किया लेकिन मेरे दिल में अजीब सी कसक उठी की अभी मेरी जान क्या कर रही होगी,अगर मैंने उसे ये बता दिया की उसकी रिकॉर्डिंग चालू है तो कुसुम कैमरे बंद कर देगी, मैंने उसे कुछ न बताने और चुपके से उसके लाइव विडिओ को देखने का प्लान बना लिया...।
रात को वो अकेली ही थी, शायद शर्मा के साथ dinner वाली बात उसने मुझे जलाने के लिए बताई थी। सफर की थकान से मै भी बेचिंत होकर कुसुम को बिस्तर पर सोता देख मै भी सो गया। सुबह जब मै सो कर उठा तो मैं आदत के मुताबिक तैयार हुआ लेकिन लेपटॉप को देखकर उसे खोल कर विडियो रिकाडिंग चालू कर दी,मैं बस चेक कर रहा था लेकिन जल्बाजी में उसे बंद करना भूल गया और नास्ता करने चला गया, मुझे क्या पता था की ये छोटी सी गलती मेरे जीवन का नया अध्याय लिखने वाली है।
वापस जब कमरे में आया और वीडियो में देखा तो सोकर उठने के बाद कुसुम नहाने चली गयी जब वो गिले बालो के साथ बाथरूम में से निकली जैसे कोई ओश की बूंद ताजा हरी घास पर अटखेलिया कर रहा हो,मेरे सामने कुसुम के रूम का पूरा नजारा था पर मैं अपने जान के चहरे को देखकर दीवाना हो रहा था, उसकी लाली ताजा सेब की तरह, टबेल में लिपटी हुई बलखाती कमर उन्नत वक्ष जो तोलिये मे लिपटे हुए भी अपने शबाब की झलक दिखा रहे थे।
उसने अंग अंग को आईने में निहारा और बड़ी शरमाते हुए अपने कपडे उठा लिए मुझे लगा था की वो अपना तोलिया गिरा देगी लेकिन उसकी शर्म ने मेरी जान की इज्जत मेरी नजरो में और बढ़ा दी,वो अकेले में भी अपने नग्नता से शर्मा रही थी, वही नग्नता जिसका भोग मै महीनों से करता आ रहा था,उसने बड़े सलीके से अपनी साड़ी पहन ली और पुरे मनोयोग से सजने लगी,उसने गहरा सिन्दूर अपने माथे में लगाया और चूडियो को हाथो में डाल कर चूम लिया ये देख मेरे दिल में ऐसा प्यार जगा की अभी फोन कर उसे चूम लू।
जब वो सजके तैयार हो गयी तो उठकर बिस्तर के पास आई और मेरी और उसकी फोटो को उठा कर चूम लिया मेरा दिल तो भर आया की कोई किसी को इतना प्यार कैसे कर सकता है,वो कमरे से बहार किचिन मे चली गयी और मैं अपनी ही सोच में डूब गया,की मैं कितना खुश किस्मत हु,लगभग 1 घंटे तक कमरा खाली रहा।
लेकिन अचानक किसी के हसने की आवाज आई मैं विडिओ फॉरवर्ड करके देख रहा था लेकिन कुछ परछाई सी कमरे में हुई जैसे कोई हाल में चल रहा हो,मैंने विडिओ फिर से देखा मुझे आवाजे भी सुनाई दी, जैसे कुसुम हँस हस कर वीडियो काल पर चलते हुए बातें कर रही है...मेरा माथा खनका,मैंने कुछ बुरा नहीं सोचा था न ही सोचना चाहता था,पर ये अजीब था,क्योंकि मेरी बीवी कुसुम किसी गैर मर्द से वीडियो काल पर ऐसे हँस हस कर बातें कर रही थी।
लगभग 1 घंटे के सन्नाटा के बाद, कुसुम रूम में आई आते ही उसने मेरे फोटो को ऐसे ही चूमा जैसे जाने के पहले,उसके चहरे में संतोष के भाव थे तब......वो फिर से बाथरूम चली गयी और घर में ताला लगाकर शायद ऑफिस चली गई,.....।
इस विडियो ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया दिल कुछ गलत सोचने से भी इंकार कर रहा था पर दिमाग ने एक अंतर्द्वंद की स्तिथि पैदा कर दी थी, कुसुम का प्यार महसूस कर और देखकर मैं सोच भी नही पा रहा था की वो मुझे कभी धोखा भी देगी,मैंने आँखों देखि साँच पर ही विश्वाश करने की ठान ली,और भगवान से दुआ की की मेरा दिमाग गलत हो,..........।
और इधर मेरा दोस्त कार्तिक मुझ पर जल्दी ही ‘कुछ’ करने का दबाव बनाने लगा और मैं भी अब कुछ करने को बैचैन हो रहा था क्यूँकि उसकी बीवी डॉली वाकयी बहुत ही हसीन और सेक्सी थी इसमें कोई शक नहीं था और ऊपर से भोली-भाली और निहायत शर्मीली भी ! अगले दिन से मैने अपने मित्र कार्तिक के घर शाम के समय उसकी पत्नी डॉली को कार driving सिखाना शुरु कर दिया।
कुछ बातें मैं संक्षेप में बता देता हूँ, उनके पास एक पुरानी वेगन आर कार थी जिसमे डॉली को मैंने ले जाना शुरू किया, उसका ध्यान सही में ड्राइविंग में था और मेरा उसमें, मुझे उसको छूने पकड़ने के बहुत मौके मिलते थे, शुरू में उसे अज़ीब लगा उसने कार्तिक को भी इस बारे में मेरी शिकायत कि पर उसने नज़रअंदाज़ भी किया और उसे कहा भी कि ‘अरुण ऐसा ही है और फिर तुम अपना मतलब देखो कार सीखने का और थोड़ी बिंदास बनो !’ और फिर उसे ड्राइविंग में मज़ा भी आ रहा था और धीरे धीरे डॉली को मेरा हंसी मज़ाक, मेरा बिंदास व्यवहार पसंद भी आने लगा।
किसी छिनार के साथ बैठने से भी ज्यादा मज़ा डॉली के साथ चिपक कर बैठने उसे छूने और उसके साथ शरारतें करने में आ रहा था मुझे, पर यह सब कार्तिक नहीं देख पा रहा था क्यूंकि वेब कैम तो घर में लगे हुए थे।
आखिर कार्तिक के दवाब के आगे झुकते हुए मैंने एक दिन सच में डॉली के वक्ष-उभार दबा ही दिए ! हुआ यूँ कि उससे सीट-बेल्ट नहीं लग रही थी, वो परेशान होकर बोली- न जाने क्यूँ नहीं लग रही? सीट-बेल्ट छोटी है शायद !
मैंने शरारत से उसके बूब्स दबाते हुए कहा- सीट-बेल्ट छोटी नहीं है मैडम, तुम्हारे ये चूचे बहुत बड़े बड़े हैं, एकदम मस्त और टाइट।
वो हक्की-बक्की रह गई और ‘धत्त !!! ये क्या कर रहे हो?’ कहते हुए मेरा हाथ हटा दिया।
मैंने कहा- इसमें गलत क्या कहा मैंने? ये तो नारी की सुंदरता के ‘उभार’ हैं !
वो बोली- मुझे ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती !
मैं चुप हो गया और फिर उस दिन कुछ नहीं बोला और अगले दिन से डॉली के पास जाना बंद कर दिया। यह बात कार्तिक को बता भी दी वो बोला कि इंतज़ार करो, डॉली खुद ही मुझे बुलाएगी।
इस से मुझे थोड़ी आस बँधी कि शायद मुझे कल कोई डॉली का मैसेज या काल से इशारा मिल जाएगा. मगर कयि दिनो के इंतज़ार के बाद भी ना उम्मीदी और हताशा ही हाथ आई. आख़िरकार एक साप्ताह बाद मैने हार मान ली, शायद इस विषय पर हम दोनों दोस्त आपस में अब ज्यादा बातचीत नही कर सकते थे.
कार्तिक से उम्र में बड़ा और अधिक समझदार होने के कारण मैने भी बढ़ावा देने की बजाए चुप रहने में ही भलाई समझी, और कार्तिक ने भी शायद कोई इशारा ना देकर उसने मुझे उसकी पत्नी से दूर रहने का संकेत दिया था. खैर कुछ भी हो अब वो विषय बंद हो चुका था. अंत में जब मैने एक साप्ताह गुजर जाने के बाद उसके इशारे की उम्मीद छोड़ी तो मेरा मन कुछ शांत पड़ गया था. मैं अपने सपनो, अपनी रंग बिरंगी काल्पनिक दुनिया में लौट गया जहाँ कार्तिक की बीवी डॉली की मौजूदगी अब बहुत कम हो गयी थी और मैं अब सिर्फ़ अपनी बीवी कुसुम को ही छिपे केमरो में देख कर अपनी सपनो की ख़याली दुनिया में मुट्ठ मारता. और यह थोड़ा अच्छा भी था क्योंकि 'मैं कम से कम खुद को किसी मन पसंद स्त्री के द्वारा ठुकराया हुआ महसूस तो नही करता था'.
मेरी यह चुप्पी मेरी असली ज़िंदगी में भी दिखाई देने लगी थी. मेरी लाडो रिंकी का ध्यान भी इस ओर गया और कुछ दिनो बाद जब हम खाना खा रहे थे तो उसने पूछा " पापा तुम ठीक तो हो?"
"मैं ठीक हूँ" मेने जवाब दिया "बस यह हल्का सा सरदर्द कयि दिनो से परेशान कर रहा है"
उस रात जब मैं अपने बेड में लेटा हुआ था तो वो मेरे कमरे में आई. उसके एक हाथ में पानी का गिलास था और दूसरे हाथ में कुछ देसी दवाई थी जिसका नुस्ख़ा मेरे पूज्य पिताजी ने इज़ाद किया था.
"यह लो, इससे तुम्हे राहत मिलेगी. मेरे सरदर्द में मुझे हमेशा इससे आराम आता है" दोनो चीज़ें मुझे पकड़ाते हुए वो बोली.
"मेरे सरदर्द" उसका क्या मतलब था मैं नही जानता था. या तो उसे मेरे जैसा सिरदर्द था जिसका मतलब उसे भी मेरे वाली ही बीमारी (मनपसंद पुरुष से ठुकराई हुई लड़की) थी. या वो साधारण सरदर्द की बात कर रही थी और वो बस मेरी बेटी होने के नाते मेरी मदद कर रही थी.
उस रात सपना देखते हुए मेरे जिस्म से असीम वीर्य निकला जब मैं अपनी बेटी को सपने में चोदते हुए उस गहराई तक पहुँच गया. अपनी बेटी के साथ चुदाई के सपने देखना ठीक था मगर उसे असलियत में करना मेरे लिए ठीक नही था.
अगली सुबह मैं देर तक सोता रहा. वो मेरे रूम में आई और मेरे पास बैठ गयी.
"कुछ फरक पड़ा?' उसने पूछा.
मैं उसके जिस्म से निकलने वाली गर्मी को महसूस कर रहा था. वो मेरे इतने नज़दीक बैठी थी कि मेरा दिल करता था कि हाथ आगे बढ़ा कर बस उसे छू लूँ. "नही अभी भी पहले जैसा ही है" मेने उसे जवाब दिया
उसने हाथ बढ़ा कर मेरे माथे को छुआ और बोली "शुक्र है तुम्हे बुखार नही है, इसलिए चिंता मत करो जल्दी ठीक हो जाओगे"
उसका हाथ नाज़ुक और गरम महसूस हो रहा था. हाथ की कोमलता का एहसास बिल्कुल नया था. ना जाने कितने समय बाद हम दोनो किसी शारीरिक संपर्क में आए थे. और हमारे बीते दिनों की घटनाओ के बाद मेरी बेटी का स्पर्श बहुत सुखद था.
आज सुबह के नाश्ते समय एक अजीब सी शांति थी, कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। मै चोरी छुपे रिंकी की छाती पर नज़र फिरा कर टॉप के अंदर तक झांक लेना चाहता था।
वहीं रिंकी भी जानती थी कि पापा क्या देख रहे हैं। आज वो ज्यादा तन कर बैठी थी।
पापा देख रहे हैं इसलिए वो शेप खराब नही होने देना चाहती।
नाश्ता कर मै उठा और रोजाना की तरह अपने कॉलेज का बैग लेकर ड्यूटी पर जाने से पहले रिंकी से बाय बाय किया लेकिन आज उसके नजदीक जाते समय बाय करते वक़्त मैने रिंकी के गाल पर हाथ भी फिरा दिया।
उसी दोपहर जब मै कॉलेज में लेक्चर दे रहा था मेरे पिताजी का फोन आया वो और मम्मी किसी दूर के रिश्तेदार के यहाँ 'गमी
' में जा रहे थे और अगले दिन सुबह तक वापिस आने वाले थे। ये मौका मेरे लिए "आज नही तो कभी नही" वाला था।
जारी है....