अगली सुबह बिल्लू का घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था, बिल्लू की बीवी सोनिया और उसके बेटे की अंतिम शव यात्रा की तैयारी हो रही थी। बिल्लू की बेटी की आंखो के आँसू सूख तो जरूर गए थे....लेकिन सूखे हुए आँसुओ के निशान उसकी आँखों में साफ नजर आ रहे थे। अधिकतर रिश्तेदार शोक कम.....कानाफूसि मे ज्यादा लगे हुए थे। तीन-तीन, चार-चार लोगों के समूह घर के बाहर अपनी-अपनी बुद्धि स्तर पर इस पूरे हत्याकांड की समीक्षा कर अपने अपने मत देकर फैसले सुना रहे थे।
सच्चाई छुपाई जा रही थी , अफवाहे उड़ाई जा रही थी, कहानी कुछ और थी बताई कुछ और ही जा रही थी.......!
मातमी घर में, इस मातमी समय में जो रिश्तेदार नही आ पाये थे वो अपने-अपने घरों में अफ़वाहो से भरी बातों से सुलग रहे थे और जो रिश्तेदार आ चुके थे वो अपनी-अपनी बातों से बिल्लू की बेटी बुलबुल के तन-मन को सुलगाने मे कोई कसर नही छोड़ रहे थे। कुछ रिश्तेदार दिखावटी शोक के साथ बिल्लू को कोस रहे थे और कुछ रिश्तेदार बनावटी संवेदना के साथ बिल्लू की बेटी बुलबुल के भविष्य की चिंता कर रहे थे...??? बुलबुल अपनी बुआ कलावती के कंधे पर सर रखे हुए इन सच्चे रिश्तेदारों की सच्ची असलियत को पहचान रही थी। अगर इन रिश्तेदारों की भीड़ में मृत शवों पर किसी की आँखों में दुख के असली आँसू थे तो वो थी बुलबुल की बुआ कलावती....!
(कलावती और सोनिया दोनों पक्की सहेलिया थी, सोनिया अक्सर कलावती के साथ स्कूल जाती थी और कभी कभी देर होने पर बिल्लू उन दोनों को अपनी मोटर साइकिल पर छोड़ दिया करता था। धीरे धीरे सोनिया और बिल्लू एक दूसरे को पसंद करने लगे थे... जाति-बिरादरी, आर्थिक स्थिति एक जैसी होने की वजह से बिल्लू और सोनिया की शादी में कोई अड़चन नही हुई.. और दोनों के परिवार वालों ने खुशी खुशी दोनों को सदा सुखी जीवन जीने का आशीर्वाद दिया था।)
बरामदे के पीछे सबसे कोने में सर पर घूघट डाले बैठी जिला इटावा से आई चार औरते शोक व्यक्त करते हुए आपस में फुसफुस्सा रही थी...।
शराब् तो हमाओ आदमी पियत...पर कभी मार पिटाई नही करत है...पहली औरत दूसरी औरत के कान में फूसफुस्सायी,
जिजि पियत तो हमाओ आदमी भी, एक बार बाने हाथ उ उठाओ तो... लेकिन हमने वा, कि उल्टी खटिया खड़ी कर दयि.. ता दिन से आज दिन तक हमाए आदमी ने हाथ लगाए की कोशिस ना करी....!
हमें तो लगत है जे शराब् की वजह से ना भओ....! तीसरी औरत ने पहली और दूसरी औरत की बात काटते हुए अपनी बात रखी।
तो फिर तुम बताओ भरतना वाली.. जे सब के पीछे का वजह हती....??? पहली और दूसरी औरत दोनों एक साथ बोली।
मोये तो लगत है "सोनिया...,छिनरिया होए गयी थी".....बिल्लुआ इत्ते साल से जेल में बंद हतो... सोनिया लगी होएगी काउ के संग.. ????
तेइसो....ओ मोरी मैया...जिजि, जे का कह रही...??? पहली और दूसरी औरत दोनों एक साथ चोंकते हुए बोली।
जेई हमें भ्यास रही है...! वा को पेहनन नही देखो तुमने जिजि..., वा कबहु दोय-,,,,कबहु तीन हुक वारे ब्लाउस पहनत हती....!चौथी औरत तीसरी औरत की बात का पूर्ण समर्थन करते हुए बोली।
इन चारों औरतों की खुसर फुसर की फुसफुसाहट सुन बगल से बैठी एक अन्य औरत इनकी तरफ बड़े ही गौर से घूरने लगी...!
अपनी तरफ इस तरह घूरता देख इन चारों औरतो ने अपने-अपने मुह में साड़ी के पल्लू के कोने दबा कर एक दूसरे को चुप होने का इशारा करते हुए.....होए गयी बस, अब चुप रओ...!!
कुछ मिनिट की खामोशी के बाद चारों औरतो की ज्ञान चर्चा फिर से शुरु हुई।
सोनिया कौ के संग लगी थी.. ???? पहली औरत ने अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए अगला सवाल किया...!
जे मोय का पतो... बिल्लुआ पतो होगो वा से पूछ लियो.. ???? तीसरी औरत ने तंज कसते धीरे से बोली ह्म्म्म।
जे सब तो ठीक है...जिजि,...पर बिल्लुआ ने मोड़ा काये मार दओ...??? तीनों औरते एक साथ सोनिया को छिनरियाँ कहने वाली औरत से अगला सवाल करती हैं...!
वो औरत इस सवाल का जबाब देने ही वाली थी कि पुलिस के साईरन की आवाज घर के बाहर से आने लगी।
पुलिस आय गयी..... पुलिस आय गयी। कह चारों औरते फिर से शोक मुद्रा में आ गयी।
जैसे ही घर के बाहर सायरन देते हुए एक पुलिस की गाड़ी आई.. गाड़ी में से दो पुलिस वालों के साथ बिल्लू भी नीचे उतरा...! बिल्लू को देखते ही घर के बाहर खड़ी सगे संब्ंधियो की भीड़ आपस में धीरे धीरे खुसर फुसर करने लगी..।
भीड़ में खड़े कुछ बुधजीवियो के लिए बड़े ही आश्चर्य का विषय था तीन स्टार रेंक का पुलिस दरोगा यादव अपनी ही बीवी बेटे की हत्त्या करने वाले अपराधी बिल्लू के साथ खुद गाड़ी में लेकर इस वक्त यहाँ क्यों आया था...????
बिल्लू उस भीड़ की नजरों से नजरे बचाता हुआ अपने घर के बरामदे मे दाखिल हो गया। बिल्लू को देखते ही उसके सास ससुर उसकी छाती पर हाथ पटकते हुए बस एक ही सवाल कर रहे थे.....????
आखिर ये सब तूने क्यो किया....?????
बिल्लू के पास उस वक्त इस सवाल का कोई जबाब नही था वो तो बस कफन मे लिपटे अपनी प्यारी बीवी सोनिया और अपने जवान बेटे के मृत शव को देख रहा था। उसकी आँखों में से आँसुओ का सैलाब उमड़ रह था।
ये आँसुओ का उमड़ता हुआ सैलाब पश्चताप था, या इंसाफ इस सवाल का जबाब खुद बिल्लू के पास नही था।
जब बिल्लू की नजर सूखी पथरायी आँखों के साथ जिंदा लाश बनी बैठी अपनी बेटी बुलबुल पर पड़ी तो बिल्लू से रहा नही गया और उसके मुह से सिर्फ एक ही शब्द निकला बुलबुल...!
अपने बाप के मुह से अपना नाम सुनते ही बुलबुल उठ कर अपने पापा के सीने से लिपट कर फुट फुट कर रोने लगी...! दोनों बाप बेटी को इस तरह रोते बिलखते देख कलावती दोनों को चुप करते हुए कहती हैं
बस करो.... जो होना था, सो हो गया...!
दुःख का ये मंजर और बाप बेटी का रोना धोना पांच-सात मिनिट चल ही रहा था कि पीछे से दरोगा यादव की आवाज आती हैं बहुत हुआ....?? अब चलो अंतिम संस्कार करने भी जाना है....!
बिल्लू ने दरोगा यादव की तरफ देख कर अपने आँसू पोछते हुए हा, मे मुंडी हिलाई। दोनों ही मृत शव को उठाने के लिए लोग आगे आये और बिल्लू अपनी रोती हुई बेटी से लिपटा खड़ा उसको दिलासा दे रहा था।
जैसे ही लोगो का बरामदे मे से निकलना शुरु हुआ बिल्लू अपनी रोती हुई बेटी बुलबुल के कान में बहुत धीरे से फुसफुसाते हुए बोला.....!
""" बुलबुल इस किस्से का......,अपने हिस्से का.......,सच......मेंने पुलिस दरोगा यादव को बता दिया है...... इस किस्से का.....; तेरे हिस्से का......; सच......तू पुलिस दरोगा को यादव बता देना """""
भीम नाम सत्य है... भीम नाम सत्य है... के नारों के साथ धीरे धीरे शव यात्रा गली के नुक्कड़ पर पहुँची थी कि तभी नुक्कड़ पर बनी पंडितजी लाइट एण्ड डीजे साउंड दुकान पर किसी सरफिरे शरारती अथवा खुरापाती लड़के ने बहुत तेज आवाज में गाना बजाना शुरू कर दिया।
"तेरी मेहरबानियां... तेरी कदरदानिया...!
कुर्बान तुझ पर, मेरी जिंदग़ानिया....!!"
अपनी बीवी सोनिया और बेटे संजू की चिता को आग देने के बाद बिल्लू पुलिस वेन मे बैठ कर फिर से अपनी बीती जिंदगी के पन्ने उलटने लगा.....!
--------------------
बीती हुयी जिंदगी पेज - 3 (योवना आरंभ : स्वभाव में बदलाव)
फिर वो आते हैं बस हम लग जाते हैं अपने काम निपटाने में और धीरे धीरे करके दिन कटने लग जाते हैं जब जाने का 1-2 दिन बचता है तब पता चलता है यार ये एक हफ्ता हो गया ऐसा लग रहा है कल ही आए थे, फिर बहुत सारी बातें मन ही मन में रह जाती हैं फिर अगले एक डेढ़ महीने का इंतज़ार......?????
अब आगे.......!
-----------------
किसी भी सामान्य पत्नी की तरह ही जीवन था सोनिया का. कुछ देर बाद नहाने के बाद, डॉ भीम राव अम्बेडकर की तस्वीर को नमन कर, तैयार होकर और चाय नाश्ता करने बिल्लू किचन में आया और आते ही अपनी प्यारी पत्नी को पिछे से गले लगा लिया. सोनिया तब पोहा का डब्बा बंद ही कर रही थी. एक शरारती पति की तरह बिल्लू ने सोनिया के ब्लाउज पर हाथ फेरना शुरू कर दिया......!
“तुम फिर शुरू हो गए? छोडो न… बुलबुल-संजू बड़े हो गये है, देख लेंगे…तो क्या सोचेंगे, अभी छोड़ दो. आज रात को जो चाहो वो कर लेना. वैसे भी मैं कहाँ भागी जा रही हूँ.”, सोनिया ने अपनी पति की बांहों से खुद को छुडाते हुए कहा.
पर पति की बांहों से आज़ाद होना आसान कहाँ होता है? पत्नियों के लिए..! बिल्लू ने सोनिया को तब तक न छोड़ा जब तक सोनिया ने उसे अपने होंठो पर किस करने नहीं दिया.....!
(बिल्लू के स्वभाव में अब काफी बदलाव आ गया था, उसने अब मौत के कुँवे मे गाड़ी खुद गाड़ी चलाना बंद कर दिया था, बल्कि चार साझेदारों के साथ खुद का ही मौत के कुवें का खेल दिख्वाना शुरू कर कर दिया था..... चारों साझेदारों ने साल भर अलग अलग शहरों में लगने वाले मेलों को शहरों के हिसाब से बाँट लिया था... जिससे अब बिल्लू को साल में सिर्फ पांच-छे महीने ही अपनी परिवार से दूर रहना पड़ता था...। साथ ही साथ अब उसने दलित संगठनो, और स्थानीय दलित राजनीतिक पार्टियों में ज्यादा से ज्यादा भाग लेना शुरु कर दिया था... उसको एक दलित पार्टी ने अपनी पार्टी का सचिव के पद का दायित्व भी सौंप दिया था।
स्थानीय पार्टी के सचिव बनने पर भी बिल्लू को खुशी नही मिल रही थी क्योकि उसके नाम से छपे लेटर हेड पर लिखी शिकायते, सिफ़ारिशों पर कभी भी किसी भी विभाग में कोई भी कार्यवाही नही की जाती थी... इसलिए वो शासन-प्रशासन से खुन्नस् खाये रहता था। और इस वजह से बिल्लू अंदर ही अंदर कुछ बड़ा करने की सोचता रहता... जिससे उसकी दलित समाज और दलित राजनीति मे एक मिसाल बन जाये।)
और मेरे संजय दत्त....???? तैयार हो गया....?????? अपने बेटे संजू को स्कूल ड्रेस में बरामदे मे बैठा देख, कहते हुए वो अपनी पत्नी को किचिन् मे अकेली खड़ा छोड़ घर के बरामदे आ गया।
हाँ....... पापा... !, बड़े ही रूखे और बेमन से संजू ने जबाब दिया।
(संजू के बेमन और रूखे स्वभाव का बड़ा ही विचित्र कारण था..... दरसल खेल के मैदान से लेकर, स्कूल और बाजार में शायद ही उसका कोई ऐसा दिन बीतता हो जब किसी को संजू ने उसे लड़की बताकर खुसपुसाते हुए न सुना हो।
इसका कारण संजू का चेहरा तो था ही जो बिल्कुल गोरा, चिकना और स्मूथ था, ऊपर से उसकी आंखें। हां, उसकी आंखें इतनी काली थीं कि कई बार जो पहली बार देखता था वो यह पूछता था कि क्या उसने काजल लगाया है????
यह कम था क्या जो उसने अपने बाल भी कंधे तक बढ़ा रखे थे। जिसकी वजह थी उसका बाप..... जिसे अपने बेटे संजू को संजय दत्त बनाने का भूत चढ़ा था। बिल्लू को खलनायक का संजय दत्त पसंद था तो उसे लगता था कि उसका बेटा गोरा है, लंबे बालों में संजय दत्त लगेगा। क्योकि बिल्लू का खुद के चेहरे का पक्का रंग था। इसलिए उसने अपने बेटे के बाल बढ़ाना शुरू किए थे।
एक कारण यह भी था कि संजू का चेहरा शरीर के मुकाबले छोटा था। बड़े बालों से वह थोड़ा भरा हुआ और आकर्षक दिखता था।
संजू बचपन से ही मोटा और थुलथुला भी था। जब खेलने लगा, तो उसके बाप बिल्लू को उसको शारीरिक फिट करने का भूत चढ़ा। संजू दुबला होता गया। लेकिन हाथ-पैर तो पतले हुए पर कमर के चारों और की चर्बी और कूल्हे अधिक कम नहीं हुए। शरीर के मुकाबले चेहरा उसका हमेशा से ही छोटा था। अब वह और छोटा हो गया। वजन कम होने से छाती पर जमा चर्बी लटकने लगी।
चलते वक्त बड़े-बड़े कूल्हे हिलते थे और दौड़ते वक्त छाती। गोरा बदन, छोटा चेहरा, कजरारी आंखें, लंबे बाल और शरीर की ऐसी बनावट। पूरे स्कूल के लड़के उसे लड़की बुलाने लगे थे। लेकिन इस सबका उसके बाप बिल्लू को पता ही नहीं था।
इन्ही तानो की वजह से संजू अब स्कूल ना जाने के नये नये बहाने खोजता अपनी माँ सोनिया के लाड़ मे तो बहाने काम कर जाते लेकिन अपने बाप के आगे उसके बहाने फैल हो जाते।)
बुलबुल ओ बुलबुल.... तैयार हो गयी..???
काहे इतनी जोर जोर से गला फाड़ कर पूरा घर सर पर उठाये हो...????? किचिन से निकल कर बुलबुल के कमरे की ओर जाते हुए सोनिया बोली.....!
बुलबुल के कमरे के बाहर से ही सोनिया ने आवाज़ दी… “बुलबुल”.
बाथरूम मे ही खड़े खड़े बुलबुल आईने मे खुद को देख रही थी तो उसे लगा कि उसके स्तन कुछ ज्यादा उठे और उभरे हुए लग रहे है। और दोनों स्तनों के बीच गहराई भी ज्यादा दिख रही थी। ब्रा के अंदर जो सॉफ्ट लेयर थी उसकी वजह से उसके स्तन और बड़े लग रहे थे। उसे लगा कि शायद उसने स्ट्रेप्स को कुछ ज्यादा छोटा कर दिया है तभी उसके स्तन ज्यादा उभरे हुए और बड़े लग रहे है।
इसलिए उसने उन्हे फिर से एडजस्ट करने की कोशिश की पर फिर भी स्तनों के उभार पर कुछ ज्यादा फर्क न पड़ा। “अब तो मम्मी से ही हेल्प लेनी पड़ेगी”, बुलबुल ने सोचा। और फिर उसने अपनी पोनीटैल को खोल और अपने लंबे बालों को सामने लाकर अपने स्तनों के बीच की गहराई को उनसे ढंकने की कोशिश करने लगी। उस वक्त लाल रंग की ब्रा उसके स्किन के रंग पर अच्छी तरह से निखर रही थी और बुलबुल अपने बालों को सहेजते हुए बेहद खूबसूरत लग रही थी।
उसके बाद बुलबुल ने अपनी यूनिफॉर्म की सलवार पहनने लगी। सलवार का आकार कुछ ऐसा था कि वो उसके कूल्हों पर बिल्कुल फिट आ रही थी। उसने सलवार का नाड़ा कुछ वैसे ही बांधा जैसे अक्सर वो अपनी अन्य सलवार का बांधती थी।
अब बाथरूम से बाहर निकलने से पहले उसने एक बार फिर से खुद को एक साइड पलटकर देखा तब उसे एहसास हुआ कि उसके स्तन आज लगभग मम्मी के स्तनों के बराबर लग रहे है। मम्मी को याद करते ही उसके चेहरे पर खुशी आ गई। साथ ही अपने स्तनों के बड़े आकार को देखकर उसे एक संकोच भी हो रहा था। किसी तरह संकोच करते हुए वो अपने सीने को अपने हाथों और बालों से ढँकते हुए बाथरूम से बाहर आई।
“क्या हुआ? तेरा चेहरा इतना मुरझाया हुआ क्यों है?”, सोनिया ने पूछा।
“ मम्मी .. वो बात ये है ..”, बुलबुल नजरे झुकाकर कहने मे झिझक महसूस कर रही थी।
“हाँ, बोल न”, सोनिया बोली।
“मम्मी, बात ये है कि मुझे लगता है कि इस ब्रा मे कुछ प्रॉब्लेम है। इसे पहनकर मेरे साइज़ मे कुछ फर्क आ गया है।”, किसी तरह से शरमाते हुए बुलबुल ने बात कह ही दी।
सोनिया ने मुसकुराते हुए बुलबुल का हाथ हटाया और बोली,”पगली, सब ठीक तो लग रहा है। ये पुश अप ब्रा है। इसका तो काम ही है कि स्तनों को थोड़ा लिफ्ट दे।”
“मम्मी!”, बुलबुल शरमाते हुए सोनिया को रोकने की कोशिश करने लगी।
“चल अब ज्यादा शर्मा मत। उभरे हुए शेप के साथ ब्रा तुझ पर और निखर कर आएगी। ले अब ये कुर्ता पहन ले।”
बुलबुल ने अपनी मम्मी की ओर जरा शंका से देखा। उसकी मम्मी अभी भी उसी चंचलता के साथ बुलबुल की ओर देख रही थी। “अरे देख क्या रही है। जल्दी पहनकर आ न!” मै जब तक तेरा टिफिन लगाती हू...तेरे पापा तेरा नाम लेकर नीचे कितना शोर मचा रहे हैं....??
बुलबुल भी चुपचाप बाथरूम मे आ गयी।
“आखिर मम्मी को ये नई ब्रा देने की क्या जरूरत पड़ गई? मेरे पास तो पहले ही कई ब्रा है”, बुलबुल मन ही मन सोचते हुए उसने मम्मी की दी हुई लाल रंग की ब्रा की ओर देखा। थोड़ी प्लेन सी थी मगर बेहद खूबसूरत थी। जैसी ब्रा उसके पास पहले से थी, उनमे जो फूल पत्ती के प्रिन्ट थे उसे वो पसंद नहीं आती थी। मगर ये ब्रा कुछ अलग थी। फेमिनीन होते हुए भी थोड़ी न्यूट्रल डिजाइन थी उसकी और उसे बेहद अच्छी लग रही थी।
फिर भी कुछ तो अलग था उस ब्रा में जो वो समझ नहीं पा रही थी। उसने स्ट्रेप्स मे अपने हाथ डाले और जब पीछे हुक लगाने की कोशिश की तब उसे महसूस हुआ कि यह ब्रा अंदर से कुछ सॉफ्ट थी जिसकी वजह से उसके निप्पल को कुछ आराम लग रहा था। “चलो कम्फ्टबल तो है यह ब्रा।”, बुलबुल ने मन ही मन सोचा और फिर कंधे पर ब्रा के स्ट्रेप्स की लंबाई एडजस्ट करने लगी।
इतने दिनों मे वह ये तो सिख चुकी थी कि नई ब्रा के साथ लंबाई एडजस्ट करनी पड़ती है। लड़कों की बनियान की तरह नहीं कि बस सीधे पहन लो बिना कुछ सोचे समझे। लड़कियों को हर कपड़े मे कुछ न कुछ ध्यान देना पड़ता है.....!!!!!
उधर अपने बाप के साथ बात करने के बाद से संजू थोडा चिडचिडा सा गया था. बाप से बिना कुछ कहे ही वो बरामदे के बाहर आँगन में आ गया. वो कुछ देर बाहर अकेले में समय बिताना चाहता था. पर शायद ये उसके नसीब में नहीं था......?????