• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

deeppreeti

Active Member
1,708
2,344
144
छोटी छोटी मस्त कहानियो का एक संग्रह एक पाठक ने भेजा है उसे पोस्ट कर रहा हूँ

संग्रह मेरा नहीं हैं और अन्य साइट पर भी उपलब्ध हैं ..

अपडेट आपको रेगुलर मिलेंगे

आशा है आपको पसंद आएँगी


INDEX

1.
एक नम्बर के हरामी बूढ़े

कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिसमें आदमी खूद-ब-खुद खिंचता चला जाता है। चाहे वो चाहे या न चाहे। आदमी कितना भी समझदार हो लेकिन कभी-कभी उसकी समझदारी उसे ले डूबती है। ऐसी ही एक घटना मेरे साथ हुई थी। जिसे आज तक मेरे अलावा कोई नही जानता है। शुरआत इसी कहानी से ...

Update 01, Update 02, Update 03, Update 04.


2. पत्नी की खूबसूरत दोस्त की चुदाई

मैं-कुणाल और मेरी पत्नी- शिप्रा कानपुर में रहती हैं। मेरी पत्नी की चचेरी बहन में से एक टीना की शादी हो रही है। यह उदयपुर में एक गंतव्य शादी होती है। शिप्रा और तेना वास्तव में एक दूसरे के करीब हैं। रेशम बचपन से शिप्रा की सबसे अच्छी दोस्त है। रेशम अपनी शादी के बाद उदयपुर में रह रही है।
रेशम ने हमारी (मेरी और शिप्रा) से एक साल पहले शादी कर ली। इसलिए हम व्यक्ति से नहीं मिले। शिप्रा और रेशम हमेशा एक-दूसरे के संपर्क में रहे हैं और वे वास्तव में एक मजबूत बंधन साझा करते हैं। .....

Update 01, Update 02, Update 03, Update 04. Update 05 Update 06

3. लंड छोटा या बड़ा नही होता


नौकरानी ने बताया लंड छोटा या बड़ा नही होता.. मेरा नाम रेमो है. मेरी उम्र 24 साल की है. मै दिल्ली के एक अमीर घर का इकलौता वारिस हूँ. मेरे घर पर मेरे पापा और मम्मी के अलावा और कोई नहीं रहता. मेरे पापा एक जाने माने बिजनसमैन हैं. मम्मी घर पर ही रहती हैं. घर काफी बड़ा होने के कारण घर के काम काज करने घर में एक नौकरानी भी रख ली गयी है. नौकरानी का नाम मोहिनी है. वो बिहार के किसी गाँव की थी. उम्र कोई 25- 26 साल की होगी. तीन बच्चों की माँ होने के बावजूद देखने में काफी खुबसूरत भी थी. लेकिन मेरा ध्यान उस पर नही जाता था. मै अपने कालेज से आ कर सीधे अपने कमरे में चला जाता और अपना काम करता.मोहिनी सुबह के छः बजे ही आ जाती थी जब सभी कोई सोये रहते थे. वो आ कर सबसे पहले सभी कमरों की सफाई करती थी.एक दिन घर में पापा और मम्मी नहीं थे . वो दोनों मेरे मामा के यहाँ गए थे. उस रात मै अपने कंप्यूटर पर ब्लू फिल्म देख रहा था. मै आराम से नंगा हो कर पूरी रात फिल्म देखता रहा. फिल्म देखने के दौरान मैंने 3 बार मुठ मार लिया.


Part 01 Part 02 Part 03 Part 04 Part 05


4. सेलगर्ल रेशमा

चोद गयेे बालम, मुझे हय अकेला छोड़ गये
एक बहुत पुराने गाने कि तलाश थी मुझे। इसे मुकेश और लता ने गाया था। फ़िल्म का नाम मुझे याद नहीं था। सिर्फ़ गाने के बोल ही याद थे। कुछ इस तरह था वो गाना---छोड़ गये बालम, मुझे हय अकेला छोड़ गये। सीडी, कैसेटों की दुकानों मे काफ़ी ढूंढा, पर नहीं मिला। किसी ने कहा कि शायद लैमिन्ग्टन रोड पर मिल जाये।

Part 01 Part 02 Part 03 Part 04

5. रेणुका और पूजा की पूजा

Part 01 Part 02 Part 03 Part 04 Part 05 Part 06



6. गाँव की डॉक्टर साहिबा


दोपहर की कड़ी धूप मे श्रीमती काव्या शर्मा एक देहाती गाँव के कच्चे रास्ते पे अपनी एक सामान की बैग लेकर खड़ी थी. मई का महीना था तो छुटियो के दिन थे. हर दम देल्ही रहने वाली एक हाइ प्रोफाइल महिला डॉ. काव्या अपनी यह छुटिया बिताने के लिए अपने नानी के गाँव मे जाने का प्रोग्राम बना चुकी थी. डॉ काव्या के बारे मे बताए तो यू समझ लीजिए के जिसका जनम ही सिर्फ़ लोगो के अंदर वासना उभारकर उनको तड़पाना था. काव्या एक 28 साल की शादी शुदा संभोग की देवी थी.

Part 01 Part 02 Part 03


7. ठरकी राजा की रखैल

ऐसे देश की कहानी जहाँ का राजा बहुत ही क्रूर, ठरकी और कामोत्तेजित है, उसके देश में लड़कियाँ जैसे ही जवान होती हैं, उन्हें राजा के पास एक महीने के लिए भेज दिया जाता है और वो उनकी रखैल बना लेर्ता है और उनका कामार्य भंग करता है, उन्हें भोगता है और एक महीने बाद उन्हें अपने घर वापिस भेज देता है।



8. पलंग तोड़ कबड्डी और पलंग पोलो
 
Last edited:

deeppreeti

Active Member
1,708
2,344
144
6. गाँव की डॉक्टर साहिबा

Part 04


एक तरफ सत्तू का मुसल हथियार और दूसरी तरफ उसके बाजू में ही सुलेमान की कामुक हरकते देख वो जैसे अन्दर से मोम की तरह पिघल रही थी. सुलेमान ये जान बुज़के कर रहा था. एक और बार काव्या के तरफ अपनी गंदे मूह से मुस्कान दिखाके उसने गहरी सांस भरी. इलायची जैसे खुशबु काव्य के मूह से आरही थी. सुलेमान को वो नशा किसी भांग से कम नहीं था. उसको काव्या के जिस्म की हर एक कोने की खुशबू बहुत पसंद आ रही थी. और वो हर मौके का हिसाब बराबरी का उठा रहा था.

सुलेमान भी अब ऑटो से उतरने लगा. तभी जान बुज़कर उसने काव्या के साइड से उतरने का प्रयास किया और उतरते टाइम उसने वो किया जो काव्या ने शायद कभी सोचा न था.

उसने उतरते समय अपना दाया हाथ काव्या के लेफ्ट थाइस पे रखा और ऑटो से उतर गया. उसके मजबूत हाथो ने कुछ सेकेंड के लिए काव्या की मुलायम थाइस को जैसे कुचल ही दिया था. इस अचानक हुए हमले से काव्या डर के मारे चौक सी गयी. उसको जैसे लगा के किसीने उसको दबा दिया हो. उसके मन मे एक जैसे भूचाल आ गया पर साथ ही बहुत महीनो के बाद, वो भी किसी अंजान पर पुरुष के ऐसे सख़्त हाथो का स्पर्श उसके भी मन को भा लिया. सुलेमान की मजबूत पकड़ शायद एकदम सही जगह बैठी थी और कौन जाने उसने इसी वजह से उसका कोई विरोध नही किया. सुलेमान का स्पर्ष इतना कठोर था के काव्या को छोटी सी सनसनी अपनी योनी में आती हुयी महसूस हुयी.

सुलेमान भी सत्तू के पास जाके खड़ा हुवा और ठीक उसके बाजू में ही बेशर्मी से अपना ७.५ इंच का काला मुसल लंड निकाल के चालू हो गया. उसका लंड तो सत्तू जैसा ही बड़ा था पर उसपे कही सारे बाल थे. सुलेमान बड़ी मुश्किल से अपने चेहरे की दाढ़ी साफ़ करता था ये तो बात बहुत दूर की थी.

वो इतना बेशरम था के उसने पलट के भी देखा और वैसे ही अपना खुला लंड हाथ मे पकड़े हुए काव्या की तरफ शैतानी मुस्कान दे के सलमा से बोला...
"अरी ओ सलमा रानी..जाओ जल्दी वरना आऊ क्या गोदी मे उठाने?"

अपने सख़्त हाथों मे खुदका साप जैसा लंड लिए वो ऐसे बोल रा था जैसे उसने नुमाइश रखी हैं उसकी. खुद के लंड से पेशाब के फवारे वो उड़ा रहा था. जो यहाँ तो कभी वह गिर रहे थे. दोनों कलुटो ने जैसे पेशाब के झरने बहाने चालू किया था जैसे कोई कॉम्पटीशन लगी हो.

यहा ये सब देखकरके काव्या का हाल हद से ज्यादा बेहाल हो रहा था उन दोनो के लंड देख के अब काव्या तो जैसे शर्म से मरी जा रही थी. रमण के प्रति उसका आदर अब कम हो रह था. जिसके लिंग को वो अपनी संतुष्टि समझती थी वो असल में नकली नोटों की माफिक उसके सामने फीका गिर रहा था. उसके दिल में भले ही रमण के लिए बहुत ज्यादा प्रेम था लेकिन उसकी शारीरिक भूक उसको कही और लेके जा रही थी. इतने बड़े दो मुसल लंड देखके उसकी हालत पतली हो रही थी. जिस लिंग को वो अपनी जिंदगी समझ बैठी थी वो तो इनके सामने जैसे किसी पंक्चर हुए टायर के जैसा था. उसका मन उसे टटोल रहा था. पर उसका आत्मसम्मान उसे ये देखने से रोक रहा था. लालसा और नियमोके बिच फासी काव्या ने तभी अपने आखो पे हाथ रख दिए और मूह निचे छुपा दिया.

शायद अब सूरज भी सर चढ़ के बोल रहा था और काव्या के चूत मे भी हौले से कही सिरहन दौड़ रही थी. अब तो शर्म और आत्मसम्मान से उसकी हालत इतनी ख़राब हो गइ थी के उन दोनो को छोड़ वो बाजू बैठी सलमा से भी अपनी नज़रे नही मिला पा रही थी. लेकिन उसे ये कहा पता था? जो वो सलमा से छुपा रही हैं, वो काम वासना की अंगारे सलमा अब भाप गयी थी.

दूसरी और सलमा करती भी क्या उन कलुटो को वो अभी अभी झेल चुकी थी इसिलिये वो शर्मा तो नही रही थी पर थोड़ा झुठ मूठ का गुस्सा दिखा के अपने नाराज़गी के भाव बता रही थी. उन कलूटो के मुसंडे लंडो ने उसकी कमसिन सावली चूत का चोद चोद के भोसड़ा बना दिया था. उसकी अन् छुई कमसिन चूत को पहली बार सुलेमान ने जब चोदा था तब उसको पता था दर्द के मारे वो दो दिन ठीक से खड़ी तक नहीं हुयी थी. बाद में तो जाने कैसे कैसे दोनों निकम्मोने अपने अरमान उससे पुरे किये थे. अब वो भी इन सबसे जानी पहचानी हो गयी थी. इसीलिए गन्ने के खेतो में हुई चुदाई में उसने भी अब की बार खुद होके मजा लिया था. आखिर गन्ने के खेतो में उसीका तो रस निचोड़ के पिया था दोनों ने और उसने भी पिलाया था. शायद इसी कारण से उसको भी बड़ी देर से पेशाब लगी थी.

और उसने थोडासा साहस करके काव्या की बाहों पे हाथ रख के कुछ कहना चाहा. वो पहली बार काव्या की तरफ मूह कर के बोली .."ब,बीबीजी.."

काव्या ने अपना चहरे पर से अपने हाथ हटाके हटाके सलमा की और देखा और हिचकिचाते हुए बोली.."हा ब्ब,,बोलो..स,,सलमा"

पढ़िलिखी शहर की मॉडर्न हाई प्रोफाइल काव्या की बोली भी जैसे अटके अटके रह गयी थी दोनो कलूटो के मुसल लंड देखके. हालाकी काव्या पेशे से डॉक्टर थी पर इस कदर उसने कभी सीधी देहाती जिंदगी देखि नहीं थी. शादी के ४ महीने बाद से ही रमण के बिजनेस में बीजी हो जाने से उसके सेक्स लाइफ मे मानो सूखा गिर गया था. सो अब इन दो गैर लंडो को देख उसके काम जीवन मे नयी वर्षा की तरह प्रतीत हो रहा था.

सलमा बहुत धीरे स्वरों में आगे बोली, "बीबीजी मैं भी ज़रा कर लेती हु. और बुरा न मानियेगा पर लगा तो आप भी कर लो ..गाओं मे जाने तक वक़्त लगेगा थोडा. अगर आपको लगे तो..."

उसकी सहमी बाते सुन के काव्या जरा अपने होश में आ रही थी. काव्या ने जरा धीरता से कहा, “अरे इसमें बुरा मानने की क्या बात? ये तो नेचुरल हैं. तुम्हे आई है न वैसे मुझे भी आती हैं.”

काव्या ने भी सोचा उसको भी पेशाब लगी हैं. पूरी धूप मे वो अपनी इकलोती बिसलेरी की बॉटल ख़त्म कर चुकी थी. पर वो ज़रा अकड़ रही थी क्योंकि अपने शानदार बाथरूम और बड़े बड़े होटेल के कामोड पे मूतने वाली काव्या को खुले आसमान के नीचे पेशाब करने का कोई अनुभव नही था. पर सलमा को देख उसने भी आख़िर हा मे हा भर ही दी. और दोनो एक साथ ही ऑटो मे से उतर गये.

वहा दोनो कलूटे अपनी धारो मे व्यस्त थे तभी उन्होने देखा सलमा और उसके पिछे काव्या जो अपने हाइ हील्स से अटक अटक के कच्ची सड़को से झाड़ियो के अन्दर चली जा रही हैं उनको देख सुलेमान जोर से बोला

"अरी ओ सलमा रानी..बीबीजी को संभाल के लेके जाओ..और ज़्यादा अंदर मत जाना साप वाप होते हैं यहा. अगर कही घुस गया तो हमको रात मे हमें ही निकालना पड़ेगा..हा...."

दोनों निकम्मे इस बात पे जोर जोर से हस पड़े. जैसे कोई हैवान अपनी हैवानियत पे हसे.

सलमा ने उसकी तरफ़ मूह टेडा करते हुए गुस्से वाले इशारे में जवाब दिया और बिना कुछ बोले आगे चल दी. उसको अपनी हाई हील्स से बहुत प्यार था. हर ड्रेस पे म्याचिंग हील्स पहननेवाली काव्या को पहली बार देहाती कच्ची सडक पर चलते समय वही हील्स सरदर्द जैसा प्रतीत हो रही थी. वो जरा रुकी और अपने हील्स को थोडा एडजस्ट करने लगी सीधी होने के बाद ज़दियो से ठंडी हवा का एक झोंका उसकी तरफ आया. उस गर्मी में उसको इतना सुकून मिला के उसका स्वागत उसने अपनी गोरी मुलायम बाहे फैलाके किया. पल भर के लिए ऐसा लगा के सुनसान जंगले में कोई मोरनी जैसे सुंदरी ने अपने पंख बाहर निकाले हो और कोई नृत्य करने के लिए. एक अंगडाई देने के बाद, काव्या सलमा के पिच्छे धीरे धीरे से जाने लगी.

उन दोनों के थोड़ी दूर जाने के बाद झट से सुलेमान ने सत्तू से धीरे से कहा “अबे बहनचोद, अब क्या दिन यहाँ पे ही डाल देगा,चल तुझे जन्नत की फिल्म दिखाता हु".

तब तक सत्तू जो अपना पेशाब कर चूका था सो वो दोनो भी मौके का फायदा उठाके उन् दोनो के पीछे चुप चाप चल धीरे कदम चल दिए.

आगे की कहानी अगले भाग में ........
 

Punnu

Active Member
1,087
2,148
143
6. गाँव की डॉक्टर साहिबा

Part 04


एक तरफ सत्तू का मुसल हथियार और दूसरी तरफ उसके बाजू में ही सुलेमान की कामुक हरकते देख वो जैसे अन्दर से मोम की तरह पिघल रही थी. सुलेमान ये जान बुज़के कर रहा था. एक और बार काव्या के तरफ अपनी गंदे मूह से मुस्कान दिखाके उसने गहरी सांस भरी. इलायची जैसे खुशबु काव्य के मूह से आरही थी. सुलेमान को वो नशा किसी भांग से कम नहीं था. उसको काव्या के जिस्म की हर एक कोने की खुशबू बहुत पसंद आ रही थी. और वो हर मौके का हिसाब बराबरी का उठा रहा था.

सुलेमान भी अब ऑटो से उतरने लगा. तभी जान बुज़कर उसने काव्या के साइड से उतरने का प्रयास किया और उतरते टाइम उसने वो किया जो काव्या ने शायद कभी सोचा न था.

उसने उतरते समय अपना दाया हाथ काव्या के लेफ्ट थाइस पे रखा और ऑटो से उतर गया. उसके मजबूत हाथो ने कुछ सेकेंड के लिए काव्या की मुलायम थाइस को जैसे कुचल ही दिया था. इस अचानक हुए हमले से काव्या डर के मारे चौक सी गयी. उसको जैसे लगा के किसीने उसको दबा दिया हो. उसके मन मे एक जैसे भूचाल आ गया पर साथ ही बहुत महीनो के बाद, वो भी किसी अंजान पर पुरुष के ऐसे सख़्त हाथो का स्पर्श उसके भी मन को भा लिया. सुलेमान की मजबूत पकड़ शायद एकदम सही जगह बैठी थी और कौन जाने उसने इसी वजह से उसका कोई विरोध नही किया. सुलेमान का स्पर्ष इतना कठोर था के काव्या को छोटी सी सनसनी अपनी योनी में आती हुयी महसूस हुयी.

सुलेमान भी सत्तू के पास जाके खड़ा हुवा और ठीक उसके बाजू में ही बेशर्मी से अपना ७.५ इंच का काला मुसल लंड निकाल के चालू हो गया. उसका लंड तो सत्तू जैसा ही बड़ा था पर उसपे कही सारे बाल थे. सुलेमान बड़ी मुश्किल से अपने चेहरे की दाढ़ी साफ़ करता था ये तो बात बहुत दूर की थी.

वो इतना बेशरम था के उसने पलट के भी देखा और वैसे ही अपना खुला लंड हाथ मे पकड़े हुए काव्या की तरफ शैतानी मुस्कान दे के सलमा से बोला...
"अरी ओ सलमा रानी..जाओ जल्दी वरना आऊ क्या गोदी मे उठाने?"

अपने सख़्त हाथों मे खुदका साप जैसा लंड लिए वो ऐसे बोल रा था जैसे उसने नुमाइश रखी हैं उसकी. खुद के लंड से पेशाब के फवारे वो उड़ा रहा था. जो यहाँ तो कभी वह गिर रहे थे. दोनों कलुटो ने जैसे पेशाब के झरने बहाने चालू किया था जैसे कोई कॉम्पटीशन लगी हो.

यहा ये सब देखकरके काव्या का हाल हद से ज्यादा बेहाल हो रहा था उन दोनो के लंड देख के अब काव्या तो जैसे शर्म से मरी जा रही थी. रमण के प्रति उसका आदर अब कम हो रह था. जिसके लिंग को वो अपनी संतुष्टि समझती थी वो असल में नकली नोटों की माफिक उसके सामने फीका गिर रहा था. उसके दिल में भले ही रमण के लिए बहुत ज्यादा प्रेम था लेकिन उसकी शारीरिक भूक उसको कही और लेके जा रही थी. इतने बड़े दो मुसल लंड देखके उसकी हालत पतली हो रही थी. जिस लिंग को वो अपनी जिंदगी समझ बैठी थी वो तो इनके सामने जैसे किसी पंक्चर हुए टायर के जैसा था. उसका मन उसे टटोल रहा था. पर उसका आत्मसम्मान उसे ये देखने से रोक रहा था. लालसा और नियमोके बिच फासी काव्या ने तभी अपने आखो पे हाथ रख दिए और मूह निचे छुपा दिया.

शायद अब सूरज भी सर चढ़ के बोल रहा था और काव्या के चूत मे भी हौले से कही सिरहन दौड़ रही थी. अब तो शर्म और आत्मसम्मान से उसकी हालत इतनी ख़राब हो गइ थी के उन दोनो को छोड़ वो बाजू बैठी सलमा से भी अपनी नज़रे नही मिला पा रही थी. लेकिन उसे ये कहा पता था? जो वो सलमा से छुपा रही हैं, वो काम वासना की अंगारे सलमा अब भाप गयी थी.

दूसरी और सलमा करती भी क्या उन कलुटो को वो अभी अभी झेल चुकी थी इसिलिये वो शर्मा तो नही रही थी पर थोड़ा झुठ मूठ का गुस्सा दिखा के अपने नाराज़गी के भाव बता रही थी. उन कलूटो के मुसंडे लंडो ने उसकी कमसिन सावली चूत का चोद चोद के भोसड़ा बना दिया था. उसकी अन् छुई कमसिन चूत को पहली बार सुलेमान ने जब चोदा था तब उसको पता था दर्द के मारे वो दो दिन ठीक से खड़ी तक नहीं हुयी थी. बाद में तो जाने कैसे कैसे दोनों निकम्मोने अपने अरमान उससे पुरे किये थे. अब वो भी इन सबसे जानी पहचानी हो गयी थी. इसीलिए गन्ने के खेतो में हुई चुदाई में उसने भी अब की बार खुद होके मजा लिया था. आखिर गन्ने के खेतो में उसीका तो रस निचोड़ के पिया था दोनों ने और उसने भी पिलाया था. शायद इसी कारण से उसको भी बड़ी देर से पेशाब लगी थी.

और उसने थोडासा साहस करके काव्या की बाहों पे हाथ रख के कुछ कहना चाहा. वो पहली बार काव्या की तरफ मूह कर के बोली .."ब,बीबीजी.."

काव्या ने अपना चहरे पर से अपने हाथ हटाके हटाके सलमा की और देखा और हिचकिचाते हुए बोली.."हा ब्ब,,बोलो..स,,सलमा"

पढ़िलिखी शहर की मॉडर्न हाई प्रोफाइल काव्या की बोली भी जैसे अटके अटके रह गयी थी दोनो कलूटो के मुसल लंड देखके. हालाकी काव्या पेशे से डॉक्टर थी पर इस कदर उसने कभी सीधी देहाती जिंदगी देखि नहीं थी. शादी के ४ महीने बाद से ही रमण के बिजनेस में बीजी हो जाने से उसके सेक्स लाइफ मे मानो सूखा गिर गया था. सो अब इन दो गैर लंडो को देख उसके काम जीवन मे नयी वर्षा की तरह प्रतीत हो रहा था.

सलमा बहुत धीरे स्वरों में आगे बोली, "बीबीजी मैं भी ज़रा कर लेती हु. और बुरा न मानियेगा पर लगा तो आप भी कर लो ..गाओं मे जाने तक वक़्त लगेगा थोडा. अगर आपको लगे तो..."

उसकी सहमी बाते सुन के काव्या जरा अपने होश में आ रही थी. काव्या ने जरा धीरता से कहा, “अरे इसमें बुरा मानने की क्या बात? ये तो नेचुरल हैं. तुम्हे आई है न वैसे मुझे भी आती हैं.”

काव्या ने भी सोचा उसको भी पेशाब लगी हैं. पूरी धूप मे वो अपनी इकलोती बिसलेरी की बॉटल ख़त्म कर चुकी थी. पर वो ज़रा अकड़ रही थी क्योंकि अपने शानदार बाथरूम और बड़े बड़े होटेल के कामोड पे मूतने वाली काव्या को खुले आसमान के नीचे पेशाब करने का कोई अनुभव नही था. पर सलमा को देख उसने भी आख़िर हा मे हा भर ही दी. और दोनो एक साथ ही ऑटो मे से उतर गये.

वहा दोनो कलूटे अपनी धारो मे व्यस्त थे तभी उन्होने देखा सलमा और उसके पिछे काव्या जो अपने हाइ हील्स से अटक अटक के कच्ची सड़को से झाड़ियो के अन्दर चली जा रही हैं उनको देख सुलेमान जोर से बोला

"अरी ओ सलमा रानी..बीबीजी को संभाल के लेके जाओ..और ज़्यादा अंदर मत जाना साप वाप होते हैं यहा. अगर कही घुस गया तो हमको रात मे हमें ही निकालना पड़ेगा..हा...."

दोनों निकम्मे इस बात पे जोर जोर से हस पड़े. जैसे कोई हैवान अपनी हैवानियत पे हसे.

सलमा ने उसकी तरफ़ मूह टेडा करते हुए गुस्से वाले इशारे में जवाब दिया और बिना कुछ बोले आगे चल दी. उसको अपनी हाई हील्स से बहुत प्यार था. हर ड्रेस पे म्याचिंग हील्स पहननेवाली काव्या को पहली बार देहाती कच्ची सडक पर चलते समय वही हील्स सरदर्द जैसा प्रतीत हो रही थी. वो जरा रुकी और अपने हील्स को थोडा एडजस्ट करने लगी सीधी होने के बाद ज़दियो से ठंडी हवा का एक झोंका उसकी तरफ आया. उस गर्मी में उसको इतना सुकून मिला के उसका स्वागत उसने अपनी गोरी मुलायम बाहे फैलाके किया. पल भर के लिए ऐसा लगा के सुनसान जंगले में कोई मोरनी जैसे सुंदरी ने अपने पंख बाहर निकाले हो और कोई नृत्य करने के लिए. एक अंगडाई देने के बाद, काव्या सलमा के पिच्छे धीरे धीरे से जाने लगी.

उन दोनों के थोड़ी दूर जाने के बाद झट से सुलेमान ने सत्तू से धीरे से कहा “अबे बहनचोद, अब क्या दिन यहाँ पे ही डाल देगा,चल तुझे जन्नत की फिल्म दिखाता हु".

तब तक सत्तू जो अपना पेशाब कर चूका था सो वो दोनो भी मौके का फायदा उठाके उन् दोनो के पीछे चुप चाप चल धीरे कदम चल दिए.

आगे की कहानी अगले भाग में ........
Continue karo dost.....bahut mast khanaiya hai ...likh rhe ho aap....dil se thanks uske liye....
 

deeppreeti

Active Member
1,708
2,344
144
कुछ व्यस्तता के कारण अगले कुछ दिन तक अपडेट नहीं दे पाऊँगा
कहानी बंद नहीं हुई है

क्षमा प्राथना के साथ

आपका
दीपक कुमार
 
  • Like
Reactions: Punnu

Punnu

Active Member
1,087
2,148
143
कुछ व्यस्तता के कारण अगले कुछ दिन तक अपडेट नहीं दे पाऊँगा
कहानी बंद नहीं हुई है

क्षमा प्राथना के साथ

आपका
दीपक कुमार
Brother intzaar rahega. .... next update ka
 

deeppreeti

Active Member
1,708
2,344
144
6. गाँव की डॉक्टर साहिबा

Part 05

बस थोडा सा आगे जाके दो तीन झाड़ियो के बाद एक जगह सलमा रुक गयी. वो जगह थोड़ी साफ़ थी और वहा बस थोड़ी सी घास उगोई हुई थी. काव्या भी अपनी हील्स से अटक अटक के चलके कैसे तो उसके बाजु खड़ी हो गयी.

सलमा जो के इन सब हालात जुदा नही थी उसने बडी आदरता से काव्या से कहा,-"बीबीजी..यहा ठीक रहेगा. कर लो आप यहा."

काव्या ने पहले आसपास एक नज़र दौड़ाई. सचमुच उसको वहा बहुत नयी जैसी अनकही फीलिंग आ रही थी. उसने कभी खुदको वैसे हालात में नहीं पाया था. चारो तरफ झाडिया, दोपहर की धुप और सुनसान इलाका ये सब बाते उसको नयी थी. कहा एक तरफ आलिशान बंगले में मेहन्गे विलायती कमोड पे बैठके अपने सबसे अनमोल अंग से पेशाब की धार छोड़ने वाली काव्या आज, वही धार एक देहाती कच्ची जगह पे छोड़ने वाली थी. बात तो तब और बिगड़ जाती जब कभीकबार उन्ही झाड़ियों से कोई हवा का झोका उसके कमसिन बदनको छू के निकल जाता और उसमे एक रोमांचभरी सिरहन उठा देता.

उसने थोडासा हिचक के सलमा से कहा, "अरे.. नही तुम भी करो यही ,और मैं..?”और वो बोलते बोलते रूक गयी.

सलमा समझ गयी शहर की डोक्टोरिन को ऐसे जगह की आदत नहीं होगी इसलिए शायद वो शर्मा रही हैं. उसपे सलमा ने कहा “ बीबीजी..मुझे पता हैं आप बड़े लोगो को इसकी आदत नहीं होगी पर हम गाँव वाले ऐसे ही सब करते हैं, खुले में”

काव्या ने उसकी बाते सुनके सिर्फ गर्दन हाँ में हिलाकर रेस्पोंसे दिया. और फिर से नज़रे आस पास दौड़ा दी.

सलमा ने उसकी इस हरकत पे जरा हस के चुटकी लेते कहा “ बीबीजी..भला आप भी इतना क्यों शर्मा रहे हो?”


काव्या को ये बात ज़रा लग गयी. उसको लगा सलमा उसको कही शर्मीली तो नहीं समझ रही. काव्या के बारे में एक बात थी. वो बहुत प्रोफेशनल किस्म की महिला थी. उसके सहेलियोके ग्रुप में भी कोई अगर उसको कुछ चिडाता या चैलेंज देता तो उसको ये बात बिलकुल हजम नहीं होती थी. उसको कभी ये पसंद नहीं था के कोई उसको किसी बात पे कम समझे. बस सलमा की मंद हसी को देख अपना ईगो सम्भालाते काव्या ने थोड़े उचे स्वर में कहा “ अरे, वो बात नहीं हैं. अक्चुअली, मुझे न ऐसे आदत नहीं हैं इसलिए लग रहा था कैसे करते हो तुम सब ऐसे, कोई आता तो नहीं न बिचमे ही?”

सलमा काव्या के इस बात पे और ज़रा हस दी. उसने इस बार ज़रा खुलके बात की. -“अरे नही बीबीजी..आप ऐसा मत समझो..बस आप कर लो तनिक, कोई नही आएगा इधर देखिएगा..”

खुद में विश्वास भर के अपने ईगो को बिना हर्ट करके के काव्या और देहाती कमसिन सलमा दोनों एक बार अपने आस पास नज़र डालके अपने आपको पेशाब करने के लिए तय्यार कर रही थी. तब तक सत्तू और सुलेमान जो उनको टटोल रहे थे वो दोनों वहा नज़दीक एक पेड़ के पीछे छुप गये. वहा से उनको उन दोनो के पिछेका का पूरा हिस्सा जैसे 'सीधा' दिख रहा था. दोनों को वैसा देख के, पिछे कलुटो के मन में तो जैसे दावत के बाँध फुल रहे थे.

तभी सलमा अपना सलवार का नाडा खोलते खोलते काव्या से बोली,“बीबीजी, डरो नही साडी कर लो उपर..यहा कोई नही आएगा"

जैसे ही काव्या ने उसकी तरफ़ हा मे इशारा करते देखा वो जैसे चौक ही गयी.

सलमा जिसने अपना सलवार के नाड़े की गाथ ढीली कर दी थी जिसके कारन उसका सलवार उसके जवान पैरो से नीचे सटक कर ज़मीन पे गिर गया था. और उसके पिंडलिया नग्न हो गयी थी. जैसे ही नीचे पेशाब करने के लिए उकड़ू बैठी उसकी खुली चुत काव्या के नज़रो के सामने आ गयी. उसकी चूत उसके ही जैसी सावली थी और उसके उपर बालो का घना साया था. अभी अभी हुयी चुदाई के वजह से उसकी चूत थोड़ी सुज़ भी गयी थी.

क्योंकि पेशे से डॉक्टर होने से उसके इस हालत पे देख काव्या ने एकदम सब भूलके अपनी चुप्पी तोड़ के सलमा से पुछा,

"ओह माय गॉड, डिअर...एक बात पुछू?"

सलमा थोडा शर्मांके वैसे ही अपनी कमीज को अपने हाथ मे पकड़ते हुई बोली "अरे बोलिए ना बीबीजी..क्या हुआ?.."

काव्या उसके चूत पे नज़र टीकाके बोली, "वही जो दिख रहा हैं..डिअर तुम कभी शेव नही करती नीचे?"

सलमा इस बात पे शर्म से पानी हो गयी. उसने अपनी तिर्छी नज़रो से नीचे देखा तो सच मे बालो का जंजाल बन चुका था. शायद जवानी मे जब से कदम रखा था उसने वहा कभी रेज़र लगाई ही नही थी. देहाती सलमा को यह सवाल अजीब लगना स्वाभिविक था. शरमाते हुए वो झिजकते हुए काव्या से बोली "जी वो न..नही बीबीजी.."

काव्या जो एक डॉक्टर थी, उसके लिए ऐसी बातों पे शरमाने की कोई वजह ही नही थी. वो इसपे और खुलके बोली, "अरे...ऐसे कैसे..तुमको ये जगह बिलकुल साफ रखनी चाहिए. इसको ऐसे नहीं रखना कभी. तुम्हे किसीने नहीं बताया क्या? तुम्हारे हज़्बेंड को कुछ नहीं लगा क्या इसका ?"

काव्या ने और बात चलाते हुए बोला, "और तो और तुम उसको ढक कर भी नही रखती? कुछ अंदर पहना भी नही हैं तुमने तो..?"

भले ही काव्या एक डॉक्टर की तरह सीधे उसको सवाल पे सवाल पूछ रही थी पर सलमा ये सब बाते सुनके शर्म से लाल हुए जा रही थी. ठीक वैसे जैसे कुछ समय पहले काव्या को ये माहोल देख के लग रहा था. लेकिन काव्या के इन सवालों का उसके पास कोई जवाब नही था.

सलमा जिसको ये पता था के सुलेमान उसका पति नहीं हैं वो सिर्फ काव्या के सामने ये सब नाटक कर रहा हैं. उसका मकसद सलमा को पता नहीं था पर उसको काव्या को बताने के लिए कोई शब्द भी नहीं थे. वैसे सलमा बोले तो क्या बोले? के 1 घंटे पहले ही सुलेमान ने खुद सलमा की कच्छी उतार के अपने पास रख दी थी जो शायद उस वक़्त उसके जेब मे ही ठुसी हुई थी. बस सलमा कुछ ना बोलते निचे देखते हुए चुप रही और कुछ ही पल मे उसके चूत मे से पेशाब की धार स्रर्र्र्ररर्र्र्रर्र्र्रर्र्र...........हो के निकलने लगी.

पिछे झाड़ी के बगल खड़े हुए सत्तू और सुलेमान तो जैसे इस सबका मज़ा लेने मे मगन थे. सत्तू ने धीरे से सुलेमान के कानो मे बोला " क्यो बे हरामी..सलमा की चूत चोदने के बाद तूने उसकी कच्छी कहा डाल दी?"

सुलेमान अपनी गन्दि शैतानी मुस्कान देके धीरे से बोला, "अबे मादरचोद..मैने वो अपने जेब मे रखी हैं. उसको तेरे ऑटो मे और चोदने का प्लान था मेरा. पर मा की लोडी बच गयी"

उसपे सत्तू बोला " चल जाने दे..अब तो इसको इस डोक्टोरिन के साथ चोदेगे.."

और इस बात पर दोनों कलूटे अपनी गन्दी हंसी हंस रहे थे. उन् दोनो से अंजान यहा सलमा और काव्या अपने काम मे व्यस्त थे. स्रर्र्र्र्ररर.......धार की आवाज से वहा की शांति थोड़ी ख़त्म हुई. काव्या ने यहा वहा एक और बार देखा और अब वहा वो होने वाला था जो शायद सत्तू और सुलेमान को कोई जन्नत के दरवाजो से कम नही था.

सलमा अपनी धार छोड़ने में व्यस्त थी अब काव्या को भी पेशाब संभाली नहीं जा रही थी. सो काव्या थोड़ासा आगे बढ़ी और सलमा के थोडा बाजू में ही खड़ी हो गयी.

वो ज़रा नीचे बेंड होके अपनी साडी दोनो हाथो से उठाने लगी. धीरे धीरे करते हुए उसकी महंगी शिफोन की साड़ी उसके पैरो से लेके पिंडलीओ तक पूरी गांड के उपर चढ़ जैसे गयी, और वहा वो उसको दोनो हातो से समेट कर खड़ी हो गयी.

यह देख पीछे खड़े दोनो कलूटो के लिंग मे तो जैसे भुचाल आ गया. वो दृश्य ही कुछ ऐसा था के अच्छे अच्छो का पानी निकल जाए. काव्या ने उसकी की साडी कमर तक पकड़ी हुई थी, जिससे उसका पिछवाडा पूरी तरह से साडी से बाहर नग्न हो गया था उसके कारण उसकी महंगी प्यांटी जो के कोटन मटीरियल की पिंक आउटलाइन की एक विलायती ब्रांड कंपनी की थी वो साफ दिख रही थी. उसके पिछवाड़े को वो चिपक के लगी हुयी थी. काव्या की टांगे दूध जैसी गोरी थी के जो किसी भी लंड को पिघला दे. गोरी, दूध जैसे एकदम चिकनी टांगे और उसपे पिच्छेसे भरी उभरी हुई गद्देदार गोल मटोल सुडोल गांड को देखके दोनो कलूटो के मूह मे पानी आ गया.

अप्सरा जैसी सुंदरी काव्या को देख के सामने बैठी सलमा भी चौक गयी. उसने काव्या की खूबसूरती का नज़ारा देख कर उसके प्रति सहिष्णुता दिखाई. अब बारी सलमा की थी जो सवालो के घेरो में बंध रही थी. वैसे ही अपना पेशाब चालू रखते भोली देहाती सलमा ने काव्या से बिना शर्माके पूछा,
"बीबीजी..आपके टाँगो पे तो एके भी बाल नही हैं?"

काव्या उसके इस नादान सवाल पे थोड़ी मुस्कुराते हुए बोली, "अरे, वो वॅक्स किया हैं मैने.”

देहाती सलमा को भले इन चीजो से क्या वास्ता वो चौकके बोली, “क्या?..’वकास’, ...वो क्या होता हैं, कोई इंजेक्शन या तनिक कोणी ओपरेशन होता क्या बीबीजी?”

काव्या को उसके भोलेपन पे मन से हंसी आई. सच में क्या दृश्य था, मेनका जैसी राजसी महिला एक मीठी मुस्कान के साथ साडी कमर तक पकडे हुए अपने हाई हील्स पे कच्ची देहाती जगह खड़ी थी. और उसके बाजू में ही एक देहाती कमसिन जवान लड़की अपने योनी से मूत्र की धार छोड़े जा रही थी. भला कामदेव भी ऐसे चित्र को देख खुदको संभाल न पाएं.

“तुमको भी बताऊगी मैं ओके, हें हें.." काव्या ने उसको मीठी मुस्कान के साथ कवाब दिया.

सलमा को उसके जवाब से संतुष्टि तो नहीं हुयी पर असमझ में गिरी सलमा ने निचे देख अपने काम पे ध्यान केन्द्रित किया. अब आगे जो होने वाला था वो देख के जैसे काम देव भी सत्तू और सुलेमान की किसमत पे जलन महसूस करते होगे.

तभी काव्या ने साडी को एक हाथ से पकड़ा और अपने दूसरे हाथ की नाजुक उंगलिया अपने ब्रांडेड प्यान्ति के अन्दर डलवा दी. आह... अपने नाजुक अंगो से प्यांटी की इलास्टिक को उसने धीरे धीरे नीचे कर दिया.

जैसे ही प्यांटी उसके नाज़ुके अंगो से घुटनों पे अटकी, सप बोलके वो खिसक के निचे गिर गयी. और उसकी साफ सपाट चिकनी दूध जैसी गोरी भरी भरी चूत सलमा के नज़रो के सामने आ गयी.

काव्या वही पे उकड़ू बैठ गयी और साडी को हाथो मे समेट लिया. अंत में वो क्षण आया और खुले आसमान मे अपनी चूत के फाको से बहती पेशाब को काव्या ने देहाती ज़मीन पे छोड़ दिया... स्रर्र्र्र्रररर्र्रर्र्रर्र्र........

ये सब देखकर वह सत्तू और सुलमन होश खो बैठे थे. एक बार भी उन्होंने अपनी पलके तक नहीं झुकाई थी. एक जैसे वो ये सब देखे जा रहे थे. और काव्या की पिछवाड़े का आँखों से ही स्वाद ले जा रहे थे. जब वो उकडू बैठके पेशाब करने लगी तन उसके योनी से निकली हर वो बूँद उनको किसी अमृत से कम नहीं लग रहा था. उनके मूह में जैसे पानी की बाढ़ आगई थी. किसी बूत की तरह वो उसी जगह पे जकड गए थे.

"आहह....मा कसम..सत्तू इस मादरज़ाद की गांड तो देख. साला कितनी कसी हुई, कितनी गोरी, भरी भरी हैं. इसकी गांड तो मैं पहले मूह से चोदुंगा और फिर इसको हवा अपने गोदी में उठाके मेरे लवडे से दना दन ठोकुंगा."

सुलेमान जो कई बार शहर की सस्ती रंडियो को चोदे हुए था और एक बार एक की गांड भी मार चुका था उसके लिए काव्या जैसे राजसी युवती की गांड मानो जैसे ज़िंदगी का मकसद हो.

दोनों निकम्मे अपने लंड को मल रहे थे. सत्तू ने तो वहा पे ही अपने लंड को निकल के हाथ में पकड़ लिया और वैसे ही मूठ मारते हुए बोल पड़ा, "बहनचोद..इस की गांड देख के तो लवडा पागल बन गया हैं.. कसम जुवे की, लग रा के अभी लंड कही घुसाऊ और मूठ मारू....बोल डालु क्या तेरी गांड मे ही?"

उसकी बाते सुनके दोनो कलूटे शैतानो की तरह हस दिए.


आगे की कहानी अगले भाग में ........



 

deeppreeti

Active Member
1,708
2,344
144
6. गाँव की डॉक्टर साहिबा

Part 06


वहा सलमा अपनी निगाहे काव्या के साफ गोरी चूत से हटा ही नही पा रही थी. क्यों जाने उसको उस समय काव्या पे बहुत ज़्यादा जलन आने लगी थी. उसकी चूत जो के जवानी के चरम पे थी काव्या के सामने मानो फीकी गिर गयी थी. अब वो काव्या से दूरी नही बल्कि नज़दीकिया बढ़ाना चाहती थी शायद उसको भी स्त्री के सौंदर्य की पहचान हो रही थी.

उसने वैसे ही काव्य के योनी पे नज़ारे गड़ाकर कहा, "जी ज़रूर बीबीजी. मैं आपकी हर बात मानूँगी वो ‘वाकस’ करना आप मेरा भी."

वॅक्स को वाकस बोलने वाली सलमा को काव्य हर बारी की तरह थोडा हंस के हा मे जवाब दे दिया. उसके पेशाब से निकली हर बूँद मानो एक खुश्बू लेके निकल रही थी जिससे पूरा समां मादक बन गया था. तभी अचानक झाड़ियो से एक हल्का हवा का झोंका भागा चला आया. दोनों के पैरो के नीचे वो बह के निकल गया.

“आह....स्सीई....”
एक बहुत हलकी सी सिसकारी काव्या ने छोड़ दी. पहली बार खुले में पेशाब करने वाली काव्या को ये अनुभव एक ऐसी भेट दे दिया के उसके योनी में सिरहन की लाट आ गयी. वो आवारा हवा का झोंका उसके नाजुक कमसिन योनी के फाको को छु कर जो गुजरा था. जो उसको भरी गर्मी में भी ठंडी की राहत दे बैठा.

कुछ देर बाद दोनो का मूतना बंद हो गया. काव्या ने अपने पास से एक टिश्यू पेपर निकाला और अपनी चूत को साफ़ करने लगी. उसपे कुछ एंटीबायोटिक भी था जिससे कोई इन्फेक्शन न हो. ये सब सलमा को कहा पता. उसको देख के काव्य ने तीन-चार पेपर निकाले और सलमा को देते हुए कहा, "ये लो, तुम भी. पेशाब के बाद वहा इससे साफ करती जाओ"

सलमा जो ये सब बाते पहली बार देख रही थी उसने हैरत से पेपर लिया और ठीक काव्या को देख वैसे ही खुदकी चूत को साफ करना आरंभ किया. उसके बाद जैसे ही दोनो खड़ी हुई उनको देख दोनो कलूटे धीरे से वहा से निकल गये और वापस ऑटो की तरफ भागने लगे. वहा सलमा अपनी सलवार फिर से चढ़ा रही थी और काव्या भी अपनी प्यांटी वापस अपने कोमल अंगो पे खिसका रही थी. महंगी साड़ी ठीक करके उसने साड़ी को निचे कर दिया. जाने कितनो का दिल जैसे उसने तोड़ दिया हो. अचानक से उसकी जवानी फिर से ढक जो गयी थी. देर तक हवा में रहने से उसका पिछवाड़े को ठंडक महसूस हो रही थी. न जाने क्यों उसको अब ये सब अच्छा लगने लग रहा था.
शहर की डोक्टोरिन साहिबा को देहाती जीवन में रूचि आने लगी थी शायद ये दिलचस्पी उसको आगे और कही नए रोमांच का किरदार बनाने वाली थी. दोनों ने पेपर बाजू में फेक दिये और वापस ऑटो की तरफ चल पड़ी.
यहा सुलेमान और सत्तू जो अभी अभी काव्या के अप्सरा जैसे बदनको उसके सुनहरी नंगे पिछवाड़े के साथ देखके आ रहे थे वो दोनों जल्दी से ऑटो मे जाके बैठ गये. दोनो के दिमाग़ मे से वो तस्वीर जाने का नाम नहीं ले रह थी.
सत्तू अपने पजामे के ऊपर हाथ मलते हुए सुलेमान से बोलता हैं," सुलेमान मिया...क्या माँदरज़ाद गांड हैं इस डोक्टोरनी की...बड़ा मज़ा आ गया.. बेहनचोद पहली बार अखी ज़िन्दगी में ऐसी माल औरत देखि हैं. साला लवडा है के तम्बू के माफिक खड़ा हो गया"
जब उसने सुलेमान की तरफ देखा तो उसने उसको खोया खोया पाया. सुलेमान जो अपने शैतानी दिमाग़ के सोच मे जो डूबा था.
सत्तू ने उसको जोर का धक्का मारा और बोला, "अरे ..भाई किधर खो गये तुम? हमरी बात तनिक सुने हो के नाहीं?"

उसपे सुलेमान बोला, "अबे चुतिए..इतना जोर का धक्का क्यों मारा? सोया नही मैं सोच रहा था.."

“क्या गुरु? मुझे भी बताओ आखिर क्या सोच रहे हो?”

सत्तू ने बड़े गौर से और सुलेमान की चापलूसी करते कहा. सत्तू को पता था सुलेमान का दिमाग इन बातो में कैसे तेज तर्रार चलता हैं. सत्तू को उसने अपने तौरतरीके जो सिखाये थे. मानो वो उसका चेला हो और ये गुरु. और वो सच भी था. सुलेमान ने सत्तु को अपने झोली से बहुत कुछ दिया था. जैसे शहर की रंडियों से मिलवाना, जुवा सिखाना, और खुबसूरत औरतो के अंतरिम अंगों के नजारों के दर्शन करवाना.
सुलेमान और सत्तू थे तो मजदूर उच्चके पर अपने शोक को वो शान से पालते. खासकर चिंधी चोर सुलेमान को शहर में घूमना, औरतो को टटोलना, किसी साहब की तरह रहना बड़ा पसंद था. जब पहली बार सत्तू सुलेमान के साथ बड़े शहर गया था, तब कोठे पे जाने के बाद वो एक बड़े से शौपिंग मॉल के अन्दर गए थे. वहा के नज़ारे देख के दोनों को ऐसा प्रतीत हुवा मानो वो किसी स्वर्ग में आ गये हो. चारो तरफ सुन्दर और जवानी से भरपूर मॉडर्न औरते और लडकिया. सत्तू वो बात कभी भूलनेवाला नहीं था, के कैसे सुलेमान ने वहा पे एक हाई प्रोफाइल औरत के पिछवाड़े को भीड़ में कस-कस के मसला था. सत्तू की हिम्मत तो नहीं हो पायी पर, इसके बाद सुलेमान उसके लिए किसी गुरु के माफिक बन गया था.

जब आशावादी होकर सत्तू ने सुलेमान से पुछा तब सुलेमान अपने खड़े नंगे लंड पे जो लुंगी के आधा बाहर था उसपे हाथ मलते हुए बोला, "अबे भूतनी के, यही के इस डॉक्टोरिनिया को नंगी कैसे किया जाये, चोदा कैसे जाए....साली क्या माल हैं..अंगार हैं..आज तक मैने ऐसी गांड नहीं देखा ...साली को अपना लंड खिलवाना ही पड़ेगा.आह...हरामी लंड"

सुलेमान को शायद काव्या की सुनहरी मखमली भरा हुआ पिछवाडा देख याद आया के कैसे एक बार उसने ज़बरदस्ती रजनी नाम के धन्देवाली की गांड मरवा दी थी. उसको उसमे बड़ा मज़ा आया था. रजनी जिसकी गांड उसने धोके से मार दि थी, उसको सुलेमान के मुसल लंड से बहुत दर्द हुआ था उसके बाद उसने सुलेमान को अपने आस-पास भी आने नही दिया. सस्ती रंडिया 200 से 500 रुपयो तक पैसा मांगती थी. उसके लिए तो वही सस्ती रंडिया चोदने के लिए नसीब में रहती.
सलमा उन रंडियों से कही ज़्यादा सुंदर और कमसिन थी उसी कारण उस मादरजादने उसको ढंग से पेल दिया था. इंसान जब चोदने पे उतर जाता हैं तब रिश्तो की अहमियत भी मिट्टी मे मिल जाती हैं. वासना सभी बातो पे हावी हो जाती हैं फिर कौन क्या हैं ये भूल कर बस मनुष्य भूक मिटने को देखता है. सुलेमान इसका प्रत्यक्ष उदहारण हैं. अपनी चाचा की लड़की सलमा की कमसिन सील उसने अपने पहले ही चुदाई मे तोड़ दी थी. दो दिन तक चलन मुनासिफ नहीं हुआ बेचारी को. पर उसकी गांड माँरने का मौका उसे कभी नही मिला था. आज काव्या जो के उसके लिए मानो किसी सपनो की अप्सरा जैसी थी अब वो ये मौका भले हाथ से कैसे जाने दे.

सत्तू ने सुलेमान की इस बात पे अपना सवाल रखा, "सुलेमान भाई..बात तो सही हैं..माल तो बढ़िया हैं..वू शोपिंग मौल में देखे थे वैसे ही. आज तक नाही भूले हम गुरु. पर तनिक ये बताओ. इसको कैसे पटाओगे..साली शहर की डॉक्टोरीं हैं. ऐसे सीधे सीधे हाथ तो नही आने वाली.."

इसपे सुलेमान बोला, "इसकी सारी अकड़ निकाल दूँगा मैं. बहनचोद तू सिर्फ़ देखते जा. इसके गांड मे मेरा लंड जाता हैं के नही .अल्लाह कसम साली की गांड को तो मैं फाड़ के रहूँगा मेरे हथियार से.." और दोनो कलूटे हसने लगे.

तभी सामने से काव्या और सलमा को आते हुए देख सत्तू झट से सीधा हो गया और सुलेमान भी अपने जगह जाके बैठा. उसके शैतानी दिमाग़ मे जाने क्या सूझा के उसने अपनि लुंगी में से लंड जरा बाहर दिखे ऐसे अपनी लुंगी सेट की. बस थोडा सा अगर वो लुंगी को सरकाता तो उसका मुसल लिंग पूरा का पूरा सप बोलके बाहर निकल जाता. और वैसे ही अपने जालीदार बनियान और गंदे दस्ताने को गले में डाल के पीछे जाके बैठ गया.

"ओह हो...आ गयी बेगम..कुछ तकल्लूफ तो नही हुई ना करने मे?"

सलमा जो अभी अभी काव्या को बेज़िज़क बोल रही थी उसने अपना मूह फिर से गुस्से जैसा बना दिया. कोई जवाब ना देते हुए वो ऑटो मे आके बैठ गयी. काव्या सलमा के बाजू आके बैठ गयी. तभी सुलेमान झट से उठा और सलमा को खींच के फिर से वही पहले के कॉर्नर मे सरका दिया और खुद उनके बीच मे जाके बैठ गया.

"आहा...बेगम..हम भी बच्चे हैं.. अपनी जगह नही जाने देते.."

बचकानी बातो से अपने खेल खेलने वाला सुलेमान ने और एक बार अपनी गंदी मुस्कान ली. ये देखके के दोनो कलूटे जोर जोर से हसने लगे. सत्तू ने ऑटो स्टार्ट किया और फिर से सफ़र चालू हो गया.

थोड़ी देर बाद सत्तू आगे के शीशे में देख के बोला, "अरे सुलेमान मिया..आप भी क्या बच्चो जैसे करते हैं..भाभी को हमेशा तंग करते हो, अब बीबीजी के सामने तो तंग मत करियो"

सुलेमान बोला "अरे सत्तू मिया, आप शादी कर लो फिर समझेगा..इसमे कितना मज़ा होता. हैं ना बेगम?"
और उसने अपने गंदे होठ सलमा की गाल पे रख के एक चुम्मी ले ली.

सलमा ने गुस्से से मूह फेर लिया तो सुलेमान हस के बोला "अरे बेगम रानी, लगता हैं अभी भी नाराज़ हो मेरे पे. पता हैं? मैं तुम्हारे हर बात का ध्यान रखता हूँ और तुम नाराज़ हो हम से"

इसपे सत्तू बोला" क्या कह रहे हो मिया..भाभी फिर नाराज़ क्यों हैं"

सुलेमान ने काव्या की तरफ़ मूह किया और बोला, "बीबीजी..अब तुमसे क्या छुपाए..डॉक्टोरीं हो तो बोलिए ना. किसी बेगम को अपने मिया से ऐसा रूठना ठीक हैं क्या? और वो भी इतनी छोटी बात पे?"

काव्या के मन मे वो अपनी बाते इस तरह बिठा रहा था के काव्या की उन बातों में दिलचस्पी और बढ़े. काव्या ठीक दिलचस्पी से बोली, "ह्ममम्म..वैसे देखे तो नो..नहीं...वाइफ को मीन्स आपके बेगम को ऐसे रूठना तो नही चाहिए पर डोंट माइंड आप वो वजह बोल सकेते हो तो शायद मैं समझ लू के वो क्यों रूठी हैं?"

झूठ मूठ का दुखी चेहरा बनके बड़ी गंभीरता से उसने काव्या की आखो में देख के कहा,
"ठीक हैं बीबीजी..अगर आप कहे तो बता ही देते हैं हमारी बेगम की बीमारी"

"वॉट? बीमारी?" काव्या शॉक होके पूछने लगी.

इसपे असलम झुठ मूठ का दुखी चेहरा करके अपने सर पे हाथ रखके बोला," हा बीबीजी..सलमा रानी को एक बीमारी हैं शादी से ही हमको समझ आ गया था.."

काव्या एक डॉक्टर थी. वो अपने प्रोफेशन से बहुत प्यार करती थी. वो तुरंत बोली, "अरे....प्लीज़ बोलो आई विल हेल्प यु..मैं मदत करूँगी..कौनसी बीमारी हैं सलमा को?"

इसपे सत्तू जो बडे ध्यान से बाते सुन रहा था उसने भी थोड़ी आग सेक ली और बोला, "बता भी दो सुलेमान मिया..मेडम जी मदत करने को तयार हैं..बोल भी दो..मुझे बोला वैसा इनको भी बोल दो"

काव्या बड़ी डेस्पेरेट हो गयी थी, भोली सी काव्या का हाथ ढोंग करने वाले सुलेमान के कंधो पे न चाहते हुए चला गया और पुरे भरे स्वर में उसने पूछा, ”प्लीज् सुलेमान, आप बताइए क्या हुआ सलमा को?”

बस सुलेमान को यही तो पाना था. मछली जाल मे फँस गयी सोचके सुलेमान बड़ा खुश हुआ. वो अपना हर पेंतरा फूँक फूँक के डाल रहा था. और अपनि मनचली बातो से काव्या को अपनी तरफ खींचे जा रहा था. काव्य का मदद भरा हाथ अब वो अपने हाथो से कहा जाने देने वाला था

काव्या का हाथ अपने बाहों पे पाके सुलेमान तो जैसे परलोक सिद्ध हो गया. बस उसको यकीन हो रहा था बहुत जल्दी वो हाथ उसके मुसल लिंग पे होगा सिर्फ उसको वो पल आने तक का इंतज़ार करना था.

सुलेमान झुठमूठ के दुखी स्वर मे थोडा नौटंकी करते हुए बोला "बीबीजी..वो ..उसको.."

बिच बिच में बात काटके वो खुदको ऐसा प्रतीत करवा रहा था जैसे उसको बहुत दर्द हो रहा हो बताने के लिए. सच में नौटंकी का कोई पदक उसको देना उचित रहता. और दूसरी तरफ पधिलिखी काव्या तो, मानो उसके जवाबो में ऐसी धसती जा रही थी के वो उसके लिए कोई जिम्मेदारी बन गयी हो. उसकी बैचैनी देख काव्या भी अब बैचैन हो रही थी. उसके चेहरे पे तनाव के भाव स्पष्ट झलक रहे थे .

काव्याने भी बड़ी बैचिने से सुलेमान पुछा, “प्लीज बोलो...क्या हुआ सलमा को...हाँ बोलो सुलेमान..प्लीज्”

सुलेमान इस गहरी बात पे और ज्यादा नौटंकी करते बडी बैचेनी दिखाते हुए बोला “बीबीजी..वो..उसको..”

आगे की कहानी अगले भाग में ........


 

deeppreeti

Active Member
1,708
2,344
144
6. गाँव की डॉक्टर साहिबा

Part 07

काव्या को अब बिलकुल संभला नहीं जा रह था. उसको कैसे भी करके सुलेमान से इसका जवाब निकलवाना था. उसने थोडा अपने हाथो का भार उसके कंधे पे और बढाया और धीरे मधुर स्वर में पुछा, “हाँ..बोलो न प्लीज्”..

बस और क्या सुलेमान के लिए तो ये कोइ सिग्नल से कम नहीं था. काव्या के बदन की आग के साथ अब उसके मधुर आवाज ने सुलेमान को जैसे और उकसा दिया. शैतानी दिमाग सुलेमान ने, कोई वक्त जाया ना करते उसका हाथ अपने हाथो में ऐसे भींच लिया जैसे डाली से कोई फूल को तोड़ लिया जाये. उसने वैसे ही बहुत मजबूती से काव्या की नाजुक हतेली अपने सख्त काले हाथो में पकड़ के बड़े ही नौटंकी अंदाज़ में रोती सूरत बनाकर कहा, “बीबीजी...हमरी सलमा को भूलने की बीमारी हैं"..

“क्या? भूलने की बीमारी,.ओह गोड..कब से?” काव्या एकदम से शॉक होकर बोली.

इसपे अपने मन ही मन में खुश होकर साथ ही साथ चेहरे पे अफ़सोस के भाव जताते हुए सुलेमान ने काव्या का हाथ वैसे ही भिन्च्के बोला, “हा बीबीजी...वो शादी से ही वैसी हैं...बाते भूल जाती हैं”

काव्या उसके जवाबो से नया सवाल बनाती. ठीक उसने वैसा ही किया. सुलेमान के इस जवाब पे उसने उसको पुछा, ”बाते भूल जाती हैं?...लाइक कैसी? किस प्रकार की बाते?”

सुलेमान ने उसको हर बार की तरह घुमा घुमा के जवाब दिया, “हां न बीबीजी..हर दिन कुछ कुछ ना कुछ भूल जाती हैं. एक दिन गहने, कभी पैसे, कभी कपड़े और कभी कभी तो ये भी भूल जाती हैं के मैं उसका शोहर हूँ"

काव्या इसमे इंटरेस्ट लेने लगी थी. उसको अन्दर की डोक्टोरिन को नया केस जो मिल गया था. उसके अन्दर का डॉक्टर अब इस देहाती गाँव में जाग गया था. वो खुलके इस बात पर बोल रही थी.

"ओह,,,आई सी...ये तो मुश्किल हैं. पर तुम मायूस मत हो इसका इलाज भी हैं. ओके"

सुलेमान दुखी चेहरा बनाते हुए उसके स्लीवलेस ब्लाउज के दीखते हुए दूध के नजारो की तरफ अपनि नज़रे गिडाते हुए बोला, "नही बीबीजी..हमरे पास इतने पैसे नही. शहर के डॉक्टर तो बस पैसे लेते हैं. हमरा बिसवास नही उनपे..हम ऐसे ही ज़िंदगी काट लेंगे, गरीबो का कोनो नाही दुनिया में.."

सुलेमान का भोला चेहरा देख काव्या को उसपे बहुत दया आई और खास कर के उसके गरीब शब्द पर. जैसा का काव्य के बारे में कहा था वो भोली थी. कही जानो को वो फीस भी नहीं लेती थी. बस फिर क्या अन्दर से करुना से पिघल्के वो उसको बड़ी सादगी से बोल पड़ी,

"ओह हो.... सुलेमान.. ऐसा नही हैं तुम मुझपे ट्रस्ट करो ओके. चलो मैं पैसे नही लूँगी जब तक सलमा ठीक ना हो जाए"

"सच काव्या???? हमरी बेगम ठीक हो जाएगी????"

एकदम से चेहरे के भाव बदलकर, एक ख़ुशी की मुस्कान ले के सुलेमान ने बीबीजी से काव्या पे ऐसी करवट ली के काव्या के साथ ही सलमा और सत्तू भी सन्न रह गए. सत्तू को उस टाइम सुलेमान को पकड़ के गले लगाने का मन किया. जिस तरह से उसकी स्पीड थी लग रहा था काव्या को जल्द ही वो अपने गोदी में खिलायेगा. काव्या भी उसके इस बात पे शॉक तो बहुत हुयी लेकिन पर वो उसकी ख़ुशी को देखके कुछ नहीं बोली. उसने उल्टा उसको और दिलासा देने की कोशिश की.

"हा हाँ ज़रूर..मैं करूँगी तुमको मदत अब तो विश्वास हैं?"

काव्य की तरफ से कोई विरोध ना देख सुलेमान ने अपनी बाते जारे रखी. उसका हात और कास के पकड़ कर उसने कहा, "अरे काव्या...आप पे तो बहुत भरोसा हैं हमरा. अब हम खुश हुए...आप तो महान हैं..बड़ी प्यारी है "

तभी सत्तू जो के ये सब बाते देखे जा रहा था. न जाने उसको कौनसी अचानक से जलन हुयी उसने बात काटते हुए बिच में ही कुछ बोल दिया,
"अरे सुलेमान भाई, भाभी के इलाज मे गुम तुम मेडम जी को नाम से पुकारे हो..पागल हो गये क्या? "

सुलेमान ज़रा ढोंग करते हुए बोला, "अरे हन..काव्या ग..ब्ब..बीबीजी..हमसे ग़लती हो गयी माफ़ कीजिएगा..
वो हुम गरीब हैं न इसलिए बहक गए"

उसने फिर से काव्या की कमजोर नस पे वार किया था. गरिबी की हालात को बार बार वो उसके सामने बता रहा था. और काव्य भी उसको ढील पे ढील डे जा रही थी. उसने तुरंत अपना मूह दुखी बना दिया.

बस काव्या को और चाहिये ही क्या था उसने फिर से सुलेमानको दिलासा देना चाहा. यही भूल वो बार बार किये जा रही थी.

उसने सत्तु की तरफ मूह करके बोला, “"अरे..उसमे क्या? मेरा नाम ही काव्या हैं. ईटस ओके. आई डोंट माइंड..तुम मुझे नाम से पुकार सकते हो, आई मीन आप सुलेमान. अब सलमा मेरी ज़िम्मेदारी है ओके. और वो ठीक नहीं होती तब तक मैं उसकी जांच करुँगी. बट प्लीज, खुदको गरीब बोलके उदास मत करना"

सुलेमान ने काव्य की इतनी ढील का नदाजा नहीं लगाया था. उसने इसका पूरा फायदा उठाया. और जोर से कहा, "सच काव्या...तुम कितनी अच्छी हो..जी कर रहा हैं तुमको उठाके झूम लू"

इस्पे भी काव्य ने कोई गुस्से वाला रिअक्शन नहीं दिया. वो सिर्फ शरमाके शरमाके हस दी.

बीबीजी से...काव्या जी..और अब काव्या जी से सीधे काव्या पे आने वाले सुलेमान के खेल को काव्या बिलकुल समझ ही नही पा रही थी. शायद उसको अपने मरीज़ के लिए सब ठीक ही लग रहा था और वो सुलेमान की जाल मे फसे जा रही थी. दूसरी तरफ़ सलमा ये सब बाते सुनके हैरान और चुपचाप बैठी थी.

कहते हैं अन्होनी और हादसे बता के नहीं आते. वही काव्या के साथ हो. जाने क्या सुझा वक़्त ने पूरी तरह से बाजी सुलेमान को जैसे दे दी. सुलेमान उसी पल मौका गरमा देख काव्या का हाथ छोड़ तो दिया. पर सामने रास्ते पे जैसा एक मोड़ आया वैसे ही अब एक और मोड़ काव्या के लिए उसने ला दिया. वहां ऑटो ने करवट ली और यहाँ सुलेमान ने पूरे हाथो से काव्या को अपने बाहों में भींच लिया. उसके सख्त बदन ने काव्या को को पलक झपकते ही दबोच लिया. अचानक से हुए इस बदलाव से काव्या को ज़रा असमंजसता हुयी. वो उसकी पकड़ में अकड गयी. लेकिन उससे ज्यादा बड़ा करंट उसको तब लगा जब उसका हाथ इस पूरी गड़बड़ में कही और जाके टिक गया.

“नहीं काव्या....तुम महान हो..,मै आजसे तुम्हारा मुरीद बन गया..आह..”

सुलेमान काव्या को अपनी बाहो में जकड़े हुय ये सब बात कर रहा था. सत्तू के तो आँखों पे पट्टी बंध गयी हो, उसका मूह खुला का खुला ही रह गया. ऑटो की स्पीड इतनी कम हो गयी, के मानो वो लगभग बंद ही गिरने वाला हो. क्योंकि असलम ने काव्या को अपनी बाहों में भींच लिया था उसके कारण काव्या का मूह सलमा की और था. सो सलमा भी काव्या को देख के आँखे चुरा रही थी.

“ओह...काव्या...तुम बहुत अच्छी हो..” अपने हाथ काव्या के गोरी और मुलायम पीठ पे चलाते हुए देहाती सुलेमान हर पल का मजा ले रहा था.

काव्या के गर्दन पे उसकी नाक थी और वो उसके बदन की हर आती मादक खुशबू सूंघे जा रहा था. मुलायम, गद्देदार, राजसी महिला को ऐसे बाहों में ले कर के, उसको अपने से चिपका कर उसमे वासना के शोले उमढ पड़े.

यहाँ काव्या का चेहरा आश्चर्यता से भरा हुआ था. पर वो सब नॉर्मल समझकर सुलेमान की ख़ुशी की खातिर चुप थी. लेकिन जैसे ही सुलेमान ने धीरे धीरे अपना हाथ उसके पीठ पे चलाना शुरू किया उसके कारण उसको अब थोडा अजीब लगने लगा. सुलेमान अपनी गरम सासे काव्या की गर्दन पे छोड़े जा रहा था और उसको हर पल जोर-जोर से अपने पास भींछे जा रहा था. अचानक से हुए इस बदलाव से काव्या को ज़रा असमंजसता हुयी. वो उसकी पकड़ में अकडसी गयी. लेकिन उससे ज्यादा बड़ा करंट उसको तब लगा जब उसका हाथ इस पूरी गड़बड़ में कही और जाके टिक गया. वो था सुलेमान का मुसल लिंग.

उसका मुसल काला लिंग फुल के कद्दू जैसा बन गया था. और उस पुरे हलबल में वो फुला हुआ कद्दू उसके लुंगी के उपरी कोने में से ठीक जैसे उसने सोचा था वैसे ही सपाक बोलके पूरा का पूरा बाहर किसी रोंकेट की तरह कूद पड़ा. काव्या का हाथ न जाने उसके ऊपर आ गया. गरम और एकदम तना हुआ काला मुसल लंड काव्या के नाजुक कोमल हथेली के निचे आ गया. काव्या की नज़रे सलमा की तरफ थी सो उसको इसकी भनक नहीं लगी के उसका हाथ सुलेमान की लिंग पे जकड़ा था.


आगे की कहानी अगले भाग में ........
 

deeppreeti

Active Member
1,708
2,344
144
6. गाँव की डॉक्टर साहिबा

Part 08

काव्या का हाथ अपने लंड पे छूते ही सुलेमान को एक तगड़ा झटका लग गया. उसका एक सपना जो पूरा हो गया था. बस फिर क्या? उसके साथ ही उसने काव्या को और जोर से अपने बाहो में भीच लिया. जिसके कारण उसका ब्लाउज उसकी जालीदार बनियान की छाती से सट गया. उसको काव्या के उभारो का स्पर्ष प्रतीत हुआ. उसके सख्त छाती से वो दबे जा रहे थे. क्या एहसास था जिस सुन्दरता को वो कितने देर घुर रहा था अब वो उसके छाती से सट हो गए दबे जा रहे थे. उसका मन तो किया वही उन उभारो को मसल कर उनका अमृतपान किया जाए. पर उसने खुदपे लगाम लगा दी. इस मामले में संयमता कोई इस निकम्मे से सीखे. पर उसने बाकी के सभी मौको का भरपूर फायदा उठाया. भागते को लंगोटी सही, सुलेमान ने अपना नाक काव्या के घने खुशबूदार बालो में सटाके एक लम्बी आह भरी. जिससे उसके लिंग में और तनाव आया और उसने भी काव्या कि नाजुक हथेली में एक तगड़ा झटका मार ही दिया.

क्या तकदीर पायी थी आज उस कलुटे ने. वो दृश्य ही इतना कामुक था के देखने वाले के होश उड जाए. ३३ साल का अधेड़ देहाती कलूटे ने २८ साल की शहर की सुन्दर राजसी डोक्टोरिन साहिबा को अपने बाहों में कस के जकड़ा हुआ था. उसके गन्दी लुंगी के कोने में से उसका मुसल लिंग पुरे गर्व से बाहर झूम रहा था. जो के इस राजसी महिला के नाजुक हथेली में लपका गया. जिससे वो पूरी तरह अनजान थी.

सत्तू जो के कही समय से ये सब देखे जा रह था. उसकी आँखों में जैसे अँधेरा छा गया. वो पूरी तरह से पिछे की और गर्दन करके ये सब नज़ारा देखे जा रहा था. वही सलमा अपनी नज़रे निचे की और करके बूत बन गयी थी जैसे मानो सच में उसको कोई सौतन मिल गयी हो. ये रंगीन नज़ारा देखके पूरा ऑटो जैसे मादकता का मंच को दर्शा रहा था.

सुलेमान की स्पीड शायद इस नज़ारे को कही ज्यादा आगे ले जाती पर उसको रोकने का काम किया एक कच्ची सड़क ने. अचानक से रास्ते पे गड्डा आ गया और ऑटो थोडा धपाक से हिल के एकदम से रुक गया. इसके साथ ही दोनों की बाहों की जकड टूट गयी और काव्या सुलेमान की बाहों से आज़ाद हो गयी.

अपना पूरा मजा कीरकिरा होने के कारण सुलेमान गुस्से से आग बबूला हो गया. वो सत्तू की तरफ मूह करके

जोर से चिल्लाया,“क्या हुआ बे मादरचोद.. सरफिरे लवडे..तेरी गांड क्यों फट गयी. क्या डंडा घुस गया तेरी गांड में..ऑटो क्यों रुक गया”

सत्तू को सुलेमान की गलियों की आदत थी. बस काव्या के सामने सुनके उसको खुदका अपमान लगा. पर वो करता भी क्या? उसको भी काव्या को अपने बाहों में भींचना था जो सिर्फ सुलेमान ही उसके लिए करवा सकता था. वो चुप चाप से बोल पड़ा, “सुलेमान भाई...वो रास्ता कच्चा था इसलिए हुआ..मेरी गलती नाही थी”

“अबे मादरचोद..फिर आगे देख के चलाना ऑटो पीछे क्या अपनी अम्मा को देखे जा रहा था तबसे?”

बार-बार गालिया सुनकर सत्तू ने भी इस बार एक चुटकी सुलेमान पे डाल दी, “भाई ..तुम बिबीजी को ऐसे प्यार कर रहे थे न तो हमरी भी नज़र वैसे ही अटक गयी. गलती तो तुम्हारी हुयी न ”

“अबे चूतिये..मैं तो बस काव्या का शुक्रिया कर रहा था. अब हमरी बेगम अच्छी हो जाएगी तुझे क्या मालुम भडवे? बीवी क्या होती हैं. तू रंडियों को चोदते बैठ सिर्फ ”

सुलेमान के मूह से इतनी सारि गालिया और चोदने चुदाने की बाते सुन काव्या के गाल लाल हो गए. अभी अभी उसके सख्त जिस्म से छुठ के वो खुदसे आझाद फील कर रही थी. पर साथी ही उसको गैर आदमी का ऐसा कसा हुआ बदन उसके मुलायम बदन को एक नयी उर्जा दे गया था.

सुलेमान ने काव्या के और बड़े प्यार से देखा और बोला, “ बोलो न काव्या...मैंने गलत किया? तुम्हारा शुक्रिया मानके..क्या तुमको हम गरीबो को गले लगाना पसंद नहीं ?”

काव्या के नाजुक भावनाओं पे तीर चलाते सुलेमान ने अपना चेहरा फिर से दुखी बना दिया. बस हमेशा की तरह काव्या पिघल गयी. और उसने कहा,

“ अरे..नहीं मैंने कुछ कहा क्या? आई डोंट माइंड..इट्स ओके” और अपने गले से पसीना पोंछ लिया.

“ देख भड़वे, कमीने इसे कहते डोक्टोरिन साहिबा. इनके पैर धो के पि ले तू ”, सुलेमान ने सत्तू को गुस्से से कहा और फिर से अपनी शैतानी मुस्कान काव्या की और बढाई.

“ क्यों काव्या पिलाओगी न ?”

बड़े ही मादक स्वर में उसने काव्या को पुछा. काव्या को बात समझी नहीं उसने बस थोड़ी स्माइल दे कर अपनी नज़रे बाजू कर दी.

“आई.हाई...काव्या शर्मा गयी..अब तो पिलाना ही पड़ेगा बीबीजी..”

और अपनी गन्दी मुस्कान के साथ सुलेमान ने इस बार सलमा को अपनों बाहों में जकड लिया.

स्त्री की अजीब विडम्बना होटी हैं. सलमा को काव्या सौतन लग रही थी अब ठीक काव्या को वैसा लगने लगा. सलमा को सुलेमान की बाहों में देख उसने ना चाहते हुए भी अपने चेहरे पे इर्षा वाले भाव बना दिए. पर तभी वो हुआ जो काव्या के जज्बातों को किसी सुनामी की तरह बहा ले गया.

जैसे ही काव्या ने सलमा की और इर्षा से देखा काव्या की मानो सासे रुक गयी उसके सामने अँधेरा जैसा छा गया. उसकी आँखे इस बार जम गयी. कारण था सुलेमान का मुसल लंड. जो कबसे पूरा लुंगी के बाहर झूम था, बस काव्या की नजर उसपे अभी चली गयी थी. काव्या तब सिहर गयी जब उसके पढ़ाकू दिमाग को दो पल में ही समझ गया के उसकी हथेली ने कुछ देर पहले किस चीज को अपने में समेटा हुआ था.

आगे की कहानी अगले भाग में ........
 
  • Like
Reactions: kamdev99008
Top