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deeppreeti

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छोटी छोटी मस्त कहानियो का एक संग्रह एक पाठक ने भेजा है उसे पोस्ट कर रहा हूँ

संग्रह मेरा नहीं हैं और अन्य साइट पर भी उपलब्ध हैं ..

अपडेट आपको रेगुलर मिलेंगे

आशा है आपको पसंद आएँगी


INDEX

1.
एक नम्बर के हरामी बूढ़े

कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिसमें आदमी खूद-ब-खुद खिंचता चला जाता है। चाहे वो चाहे या न चाहे। आदमी कितना भी समझदार हो लेकिन कभी-कभी उसकी समझदारी उसे ले डूबती है। ऐसी ही एक घटना मेरे साथ हुई थी। जिसे आज तक मेरे अलावा कोई नही जानता है। शुरआत इसी कहानी से ...

Update 01, Update 02, Update 03, Update 04.


2. पत्नी की खूबसूरत दोस्त की चुदाई

मैं-कुणाल और मेरी पत्नी- शिप्रा कानपुर में रहती हैं। मेरी पत्नी की चचेरी बहन में से एक टीना की शादी हो रही है। यह उदयपुर में एक गंतव्य शादी होती है। शिप्रा और तेना वास्तव में एक दूसरे के करीब हैं। रेशम बचपन से शिप्रा की सबसे अच्छी दोस्त है। रेशम अपनी शादी के बाद उदयपुर में रह रही है।
रेशम ने हमारी (मेरी और शिप्रा) से एक साल पहले शादी कर ली। इसलिए हम व्यक्ति से नहीं मिले। शिप्रा और रेशम हमेशा एक-दूसरे के संपर्क में रहे हैं और वे वास्तव में एक मजबूत बंधन साझा करते हैं। .....

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3. लंड छोटा या बड़ा नही होता


नौकरानी ने बताया लंड छोटा या बड़ा नही होता.. मेरा नाम रेमो है. मेरी उम्र 24 साल की है. मै दिल्ली के एक अमीर घर का इकलौता वारिस हूँ. मेरे घर पर मेरे पापा और मम्मी के अलावा और कोई नहीं रहता. मेरे पापा एक जाने माने बिजनसमैन हैं. मम्मी घर पर ही रहती हैं. घर काफी बड़ा होने के कारण घर के काम काज करने घर में एक नौकरानी भी रख ली गयी है. नौकरानी का नाम मोहिनी है. वो बिहार के किसी गाँव की थी. उम्र कोई 25- 26 साल की होगी. तीन बच्चों की माँ होने के बावजूद देखने में काफी खुबसूरत भी थी. लेकिन मेरा ध्यान उस पर नही जाता था. मै अपने कालेज से आ कर सीधे अपने कमरे में चला जाता और अपना काम करता.मोहिनी सुबह के छः बजे ही आ जाती थी जब सभी कोई सोये रहते थे. वो आ कर सबसे पहले सभी कमरों की सफाई करती थी.एक दिन घर में पापा और मम्मी नहीं थे . वो दोनों मेरे मामा के यहाँ गए थे. उस रात मै अपने कंप्यूटर पर ब्लू फिल्म देख रहा था. मै आराम से नंगा हो कर पूरी रात फिल्म देखता रहा. फिल्म देखने के दौरान मैंने 3 बार मुठ मार लिया.


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4. सेलगर्ल रेशमा

चोद गयेे बालम, मुझे हय अकेला छोड़ गये
एक बहुत पुराने गाने कि तलाश थी मुझे। इसे मुकेश और लता ने गाया था। फ़िल्म का नाम मुझे याद नहीं था। सिर्फ़ गाने के बोल ही याद थे। कुछ इस तरह था वो गाना---छोड़ गये बालम, मुझे हय अकेला छोड़ गये। सीडी, कैसेटों की दुकानों मे काफ़ी ढूंढा, पर नहीं मिला। किसी ने कहा कि शायद लैमिन्ग्टन रोड पर मिल जाये।

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5. रेणुका और पूजा की पूजा

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6. गाँव की डॉक्टर साहिबा


दोपहर की कड़ी धूप मे श्रीमती काव्या शर्मा एक देहाती गाँव के कच्चे रास्ते पे अपनी एक सामान की बैग लेकर खड़ी थी. मई का महीना था तो छुटियो के दिन थे. हर दम देल्ही रहने वाली एक हाइ प्रोफाइल महिला डॉ. काव्या अपनी यह छुटिया बिताने के लिए अपने नानी के गाँव मे जाने का प्रोग्राम बना चुकी थी. डॉ काव्या के बारे मे बताए तो यू समझ लीजिए के जिसका जनम ही सिर्फ़ लोगो के अंदर वासना उभारकर उनको तड़पाना था. काव्या एक 28 साल की शादी शुदा संभोग की देवी थी.

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7. ठरकी राजा की रखैल

ऐसे देश की कहानी जहाँ का राजा बहुत ही क्रूर, ठरकी और कामोत्तेजित है, उसके देश में लड़कियाँ जैसे ही जवान होती हैं, उन्हें राजा के पास एक महीने के लिए भेज दिया जाता है और वो उनकी रखैल बना लेर्ता है और उनका कामार्य भंग करता है, उन्हें भोगता है और एक महीने बाद उन्हें अपने घर वापिस भेज देता है।



8. पलंग तोड़ कबड्डी और पलंग पोलो
 
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6. गाँव की डॉक्टर साहिबा

Part 09



काला बदबूदार मुसल ८ इंच का सुलेमान का तगड़ा नन्गा मादरजाद लंड काव्या के ठीक नजदीक था. एकदम तना हुआ साप जैसा डुलता हुआ लंड को इतने करीब से देखके काव्या के गाल लाल-लाल हो गए. वो अपने होशो आवाज में नहीं रही. सुलेमान को तो ये सब पता ही था. वो जान बूझकर सब कर रहा था. दूसरी और सलमा को वो उसी समय सरे आम रगड़े भी जा रहा था. जहा सुलेमान अपने मादरजाद लंड को सरे आम खुला करके बैठा था उस समय भले उसका चेहरा सलमा की और था पर ध्यान था काव्या की और. उसका मुसल लंड एक दम तन गया था. घने काले झाटो के ऊपर तना हुआ हथियार बहुत आकर्षक दिख रहा था. जिसने सुन्दर काव्या की आखे चमका दी.

उसने सलमा को अपनी और जोर से खीच और उसके कमीज़ के ऊपर से उसके दूध मसल दिए. जैसे ही उसने उसने सलमा के दूध मसले तुरंत उसके लंड ने एक अंगड़ाई ली. वो सप बोलके तन गया जैसे वो किसीको सलामी दे रहा हो. काव्या की आंखे मानो ऊपर जम से गयी थी. वो बिना किसी सोच से एक दम से लंड को गौर से देख रही थी. लंड जब जब सलामी देता उसके छाती में ‘धस’ हो जाता. शहर की डोक्टोरिन साहिबा की धड़कन धक् धक् गर्ल की तरह भाग रही थी. डर और वासना काव्या के मन पे हावी हो रहें थे. बस ये देखना था के जीत किसकी होती हैं.

सत्तू जो ऑटो बहुत धीरे चलाकर सामने वाले शीशे में पूरा ध्यान लगाके सब मजे देख रहा था, उसने भी काव्या की नज़रे ताड़ ली. जो गए २-३ मिनट से एक जैसे सुलेमान के लंड को निहार रही थी. उसने सुलेमान से कहा,

“अरे सुलेमान भाई ..तनिक बस भी करियो. क्या पूरा प्यार यहाँ पर ही कर लोगे भाभी से?..हा हा हा”

सुलेमान सलमा को अपनी बाहों पे पकडे हुए बोला,

“अरे सत्तू मादरचोद, क्या बताए हम कितना खुश हु आज ..लगता है बेगम को उठा के नाच दू. बहुत प्यार करू.”

“मिया, पर जरा संभलके. वरना गए टाइम की तरह हमको ऑटो कही रुकवा कर बाहर निकलना होगा. तुम शुरू होने के बाद नहीं रुकते. तुम तो मजे करोगे भाभी जान के साथ हमरी तो जाने दो पर बीबीजी क्या करेगे फिर...?”

तभी सुलेमान ने अपना गन्दा चेहरा काव्या की तरफ किया. जैसे ही उसने काव्या की और देखा काव्या ने अपनी निगाहें दूसरी और कर दी. उसको लगा कही सुलेमान को ऐसा प्रतीत न हो के वो उसके लिंग को देह रही थी. भले उसके लिए ये सब अनजाने में हो रहा था किन्तु सुलेमान के लिए तो ये सब सोची समझी करतूत की तरह था.

“अबे हाँ..मैं भूल ही गया था बीबीजी..काव्या हमरी बाजू में हैं”, काव्या की तेज़ धडकनों को सुलेमान समझ गया था.

सत्तू ने सुलेमान से कहा, ”अरे सुलेमान भाई, भाभी के लिए तनिक काव्याजी को भी धन्यवाद् करियो”

“अरे हां...सत्तू, मादरचोद पहले बार अकल की बात की तूने. भाई, सच में काव्या ही तो है वो, जिसके कारण आज इतनी ख़ुशी हो रही हैं हमको”

ऐसा बोलते समय उसने अपना बाया हाथ सीधे काव्या की दाए (थाइस) जांघ पे रख दिया. काव्या जो पहले ही उसके मुसल खुले लंड से सदमे में थी अब तो उसके योनी में भी सिरहन आ गयी. सुलेमान ने बिना किसी खौफ से उसके जांघो पे अपना सख्त हाथ रख दिया. उसने उसको और ऊपर की और सहलाते हुए धीरे से काव्या की कानो में कहा,

“काव्या..शुक्रिया..जी तनिक इधर तो देखिये ”

काव्या के पुरे बदन में सनसनी आ गयी. उसके माथे पे पसीना आ गया. खुला मुसल लंड, जांघो पे सख्त हाथ और कानो में आती हुयी गर्म सासे इन सबसे उसका बदन अकड़ने लगा. सुलेमान का लंड उसके जैसा ही निकम्मा था. जैसे वो कोई भैंसा हो और तमाम चूत उसके लिए भैंसिया. शायद जिस तरह सुलेमान को काव्या चाहिए थी, ठीक वैसेही उसके लंडको घुसने के लिए उसकी राजसी चूत चाहिए थी जो के नयी दुल्हन की तरह अभी भी छुपी हुयी थी. वो और तन-तन के सलामिया देने लगा. काव्या ने अपनी आँखे मूँद ली. अपनी हथेलियों को कसके अपने हैण्ड बैग पे रोंद दिया. उसकी साँसे रुक सी गयी.

“काव्या...देखोगी नहीं..बताओ न..”, अपने हाथ काव्या के गद्देदार जान्घो पे उसकी महंगी शिफोन सारी के ऊपर से चलाते हुए सुलेमान ने बड़े ही कामुक अंदाज़ में कहा.

“जी..जी....वो....” हडबड़ाती काव्या कापते स्वर में बोल पड़ी.

“हाँ बोलो न...क्या हुआ?”

“जी मैं कैसे कहूँ..?”मैं नहीं देख सकती आपकी और...”

“क्यों बीबीजी..क्या हम गरीब हैं इसिलिये? हम समझ गए...” अपना चेहरा दुखी करके सुलेमान अपने हाथो को काव्या के पेट पे लेके जाते हुए बोल पड़ा.

“बात वो नहीं हैं....” कस्म्कसते हुए काव्या ने अपना हाथ सुलेमान के हाथ पर रख दिया. शायद वो उसको आगे जाने से रोक रही थी.

“फिर का हैं? बोलो न..” बड़े ही कामुक अंदाज़ में सुलेमान काव्या की हाथो की पर्व न करता अपने हाथ की बिचवाली ऊँगली काव्या किए गोरी सुन्हेरी नाभि में डालते हुए बोल पड़ा.

काव्या इन सभी हरकतों से पिघल रही थी. उसने सुलेमान के हाथ को पकड़ते हुए थोड़े जोर से कहा, “आप प्लीज निचे देखिये” पर उसने उसका हाथ हटाया नहीं.

“कहा नीचे...कुछ भी तो नहीं हैं “ अपनी उसके नाभि के निचे सरकाते उसने कहा. शायद वो खुदके निचे नहीं काव्या के निचे देख रहा था.

अब काव्या ने उसके हाथ को और निचे जाने से रोक कर खुद उसकी और हिम्मत कर के देखा और जरा डांटते स्वर में कहा,

“अरे.. अब कैसे बताऊ ,, आप का वो प्लीज् आप नीचे देखो न ज़रा”

सुलेमान ने मौके को समझ कर अपना हाथ वह से हटा दिया. उसको अपने इतने देर से चलते हुए खेल पे पानी नहीं चलाना था. उसने अपने निचे की और देखा और नार्मल समझते हुए ऐसा रिएक्शन दिया जो उसके लिए कोई आम बात हो.

“अबे इसकी मा का..तो ये मा का लोडा हैं, अरे काव्या, गलती से बाहर आ गया ससुरा. रुको इसको हम अभी अन्दर डलवा देते हैं. तुम फिकर ना करो. इस ससुरे को चैन ही नहीं हैं जब भी हम भावुक हो जाते न इ ससुरा ऐसे बिच में आ जाता हैं..चल हट मादरचोद अन्दर ”

काव्या को उसकी बाते सुनके हंसी बी आ रही थी और शर्म भी आ रही थी. उसको समझ नही आ रहा था करू तो क्या करू.

अपना मुसल ताना हुआ लं लुंगी अन्दर डालके सुलेमा ने काव्या पे एक और चुटकी ले ली,

“लो डाल दिया इसको अन्दर काव्या. अब नाही आएगा बाहर. बस तुम पे भावुक हो गए थे हम ज़रासा”

काव्या ने अपने सुन्ग्लासेस आँखों पे दाल दिए. और ओने मूह हें हाथ रख दिया. वो अपनी हंसी दबा रही थी. पर वो थोड़े ही ऐसे छुपने वाली थी.

१ घंटे से चल रहा ये ऑटो का सफ़र का ठिकाना आखिरकर आ गया. १८ साल के बाद काव्या ने अपने गाँव को देखा. बरवाड़ी की ताज़ी ताज़ी हवाओने ने उसका पुरे जोश के साथ स्वागत किया.

सत्तू ने जोर से सुलेमान को कहा “लो सुलेमान भाई गाओ आ गया अब ज्यादा भावुक मत होना. वरना ऑटो वापस मोड़ना पड़ेगा” और दोनों कलूटे जोर से हसने लगे.

गाओ में काव्या का आगमन हो गया था. सुलेमान का शातिर दिमाग बस वो दिन का इंतज़ार कर रहा था के कब वो काव्य को अपने निचे सुलाएगा. मानो न मनो कही पे जुदाई का गम उसको सता रहा था. ऑटो का सफ़र आज उसके लिए बहुत छोटा लग रहा था. पर गाँव का सफ़र अभि भी उसके लिए आगे की परिकल्पना के लिय सशक्त किये जा रह था.

शहर की डोक्टोरिन साहिबा काव्या के नाना जी के बंगले की तरफ औटो ने रुख मोड़ लिया. बस १०-१५ मीनट में ही काच्ची सडको पे से हिलते डुलते देहाती ऑटो काव्या के घर पे रुकने वाला था. जहा पे कोई और उसका स्वागत करने के लिए इंतेज़ार में खड़ा था. बस समझ लो काव्या अब अपनी छुटिया में इतना सारा अनुभव प्राप्त करने वाली थी जो उसके जीवन को नयी नयी बातो से अवगत करने वाली थी.

“वो देखो बीबी जी आपका बंगला आ गया” सत्तू ने एक दम खुश होके पुरे दम से काव्या को बोला.

काव्य ने ख़ुशी से नज़र दौड़ाई तो उसको वही १८ साल पुराना किशोरीलाल अग्रवाल भवन दिख गया. वही जिसमे वो बचपन में लुका छुपी खेलती थी, दौड़ती थी, अपनी गुडिया संग खेलती थी, नाना के साथ सैर पे जाती थी, नानी से कहानिया सुनती थी. उसका ख़ुशी का कोई किनारा न रहा. वो ख़ुशी से फुले नहीं समां रही थी. उसके घर के गेट से ही अंदर की पौधों फुलोकी बगिया दिख रही थी. बचपन में वो उन पौधों को पानी डालती थी. आज वही बगिया अब बहुत खुबसूरत हो गयी बिलकुल काव्या की तरह. पर्यावरण का देखभाल करो तो वो भी तुम्हारा देखभाल करेगा ये विचार यहाँ पे हमें मिलता हैं. उस बगिया से आने वाली फूलो की महक बाहर तक आ रही थी. पूरा वातावरण जैसे महक गया था और साथ ही वो भव्य बंगला उसमे जैसे किसी राज महल जैसे प्रतीत हो रहा था. मानो वो अपनी राजकुमारी के स्वागत में सज धज के खड़ा हो.

जैसे तैसे देहाती ऑटो बंगले के गेट के पास रुक गया. काव्या ने अपने पैर ऑटो के बाहर रख दिए. अपने घर को इतने सालो के बाद देख वो बहुत ज्यादा खुश नज़र आ रही थी. फूलों की महक उसको और सकारात्मक हवा प्रदान कर रही थी. उसने वही बड़े ही आराम से खड़े-खड़े एक लम्बी आह भरी और भारी अंगडाई ली. जिससे उसके दोनों हाथ ऊपर हो गए और आखे बंद हो गयी. होठो पे सतुष्टि से भरी मुस्कान आ गयी.

“हम्म....आई लव माय होम..आव....”

जैसे ही उसको ऐसे खड़े मुद्रा में सबने देखा, सुलेमान झट से ऑटो से उतर गया. उसने बिना कोई देरी किये काव्या के नजदीक जाकर अपनी नाक उसके गोरी चिकनी खुली बघलों में घुसा दी. और एक लम्बी सांस भरी.

“स......आह.....”

अपनी बघलो में अचानक कुछ गुदगुदी महसूस हुए काव्या ने अपनी आखे खोली और एकदम से दोनों हाथ निचे करके थोडा पिच्छे हट गयी. सुलेमान अपने इतने करीब खड़ा देख के वो चौक गयी.

“ये क्या कर रह थे तुम?” उसने बड़े आश्चर्यता से और जोर से सुलेमान से कहा.

“जी...मैं बीबीजी..काव्या मैं तो बस फूलो की खुशबू ले रहा था....” ऐसा बोलके और उसने यहाँ वहा देखा जैसे वो उसको दिखा रहा हो, फूल उसको कितने पसंद हैं.

काव्या ने थोडा मूह टेढा किया. पर उसका ध्यान फिलहाल सुलेमान से हटकर अपनी पुराणी यादो पे था. सो उसने खुद ही उसकी बात को इग्नोर किया.

“अछ्छा,...ओके..”

“हा काव्या..मुझे तो फूलो को सूंघना पसंद हैं. मैं तो उसको चाटता भी हूँ कभी कभी..” अपने भद्दे होठो पे अपनी जुबान फिरते उसने काव्या की बघलो की तरफ देखके बड़े ही कामुक अंदाज़ में ये बोल दिया.

काव्या उसके हर बात को इगनोर करके बस अपने घर की और देख रही थी. तभी उसने कहा ,”अच्छा ये लो पैसे”

उसने अपनी पर्स से २००० की नोट निकाल के उसको दे दी. उसको देख के सत्तू बोला “अरे बीबीजी..हमारे पास इतना पैसा कहा होगा..इसका छूटटा नहीं हैं हमरे पास.”

“ऊप्स..मेरे पास तो यही सब नोट हैं. बाकि १०-२० के हैं थोड़े ”

बस सुलेमान को यही चांस मिल गया उसने झट से कहा,

“अरे काव्या तुम क्यों सोच रही हो इतना..पैसे रहने दो हम ले लेगे तुमसे बाद में. सलमा की इलाज के लिए आना ही हैं न तुमको तब दे देना..जो देना हैं वो”

“अरे हाँ...थैंक्स ..मैं भूल ही गयी थी”, काव्या ने एक मुस्कान के साथ जवाब दिया.

एक बार फिर से काव्या के बदन पर नज़र फिराते हुए सुलेमान के बड़े कामुक स्वर में धीरे से कहा,

“ऐसे भूल मत जाना बीबीजी..हमरे पैसे हैं आप के पास..सूद के साथ वापस लेंगे फिर तो..और हिसाब के पक्के हैं हम आप से तो ले कर रहेंगे“

और इस बात पे सब हसने लगे. काव्या भी उन सब के साथ ताल में ताल मिला कर हस गयी.

“ओके बाबा..ओके..मैं दूंगी तुमको पैसे”, हस्ते हुए अपनी बैग ले कर वो गेट के अंदर आ गयी.

“बाय..सी यू,....” सबको बाय बोलते हुए वो जब मूडी तब वो नज़ारा सच में देखने लायक था. जैसे कोई रानी अपने महल में जा रही हो. मटक मटक के उसका पिचवाडा घुमे जा रहा था. दोनों कलूटे आखरी मंजील तक उसके पिछवाड़े को निहारते रहे.

फिर एक बार काव्या ने घर के मैं दरवाजे के पास जाके वापस मुडके अपनी हाथो से सबको बाय बोला. यहाँ दोनों कलूटे भी जोर से बोल पड़े ”मिलना बिबीजी..हम आयेंगे वापस..” और काव्या ने दरवाजे की बेल बजायी और अपने घर के अन्दर प्रवेश किया.

जैसे ही वो अन्दर गयी यहाँ सुलेमान सत्तू से बोल पड़ा,

” मादरचोद..इस डोक्टोरनी ने आग लगा दी हैं मेरे लवडे में”

सत्तू बोला” बात तो ठीक हैं गुरु, मेरा भी हाल वैसा ही हैं जैसा तुम्हारा..”

“कुछ भी बोल माल हाथ से नहीं जाने देना हैं सत्तू...”

“वो बात तो सही हैं गुरु पर अपनी तो हालत अभी भी ख़राब हो गयी हैं,.इसको ठंडा करना होगा..”

“तो फिर सोच क्या रहा हैं गांडू..भगा ऑटो अपने झोपडी की तरफ”

और दोनों कलूटे हस कर ऑटो में बैठ गए. ऑटो चालू करके सत्तू ने उसको खेतो की और मोड़ा सलमा को समझ में देरी नहीं लगी के ने उसको वक़्त ने फिर से एक घंटा पिच्छे की और मोड़ दीया था.

जैसे ही काव्या ने डोर बेल बजाई नानी ने दरवाजा खोला. वो पहले अपनी नानी से मिली. उनके पैर छुए. और उनको गले लगा लिया. अपनी पोती को देख नानी बड़ी खुश हुयी. काव्या जब १० साल की थी तब वह आई थी. तब उसने खेल खेल के पूरा घर सर पे रख दिया था. नानी को वो दिन याद आये. लेकिन अब उसको क्या पता के २८ साल की काव्या अब जो खेल यहाँ खेलने वाली हैं शायद उससे पूरा समा, सर चढ़ना हैं. काव्या ने नानी को एक जोर से ज़प्पी दी.

“जुग जुग जियो बेटी. बड़ी लेट आई हो गाडी सब खैरियत से मिली न?”

“ओह नानी वो सब ठीक मिला. पता हैं यहाँ के लोग भी काफी अच्छे हैं, एक औटोवाला था उसने यहाँ तक लाके छोड़ा मुझे”

“हाँ बेटी वो तो हैं, इसीलिए मुझे गाँव से शहर आने का कभि मन नहीं करता. तेऋ मा हर बार बोलती हैं पर मैं नहीं सुनती उसकी कभी...हा हा ” और नानी हसने लगी.

“सच नानी. कितनी ताज़ी हवा हैं यहाँ. कितने अच्छे लोग हैं यहाँ. अब तो मैं फुल आराम करुँगी देखो”

“अरे क्यों नहीं बेटी जब तक रहो तब तक सिर्फ आराम करो कोई बात लगे तो बता देना. तेरे नाना की आत्मा को शान्ति मिलेगी आज कितने दिन के बाद पोती घर आई हैं”

दोनों हॉल में लगी हुयी किशोरीलाल के बड़े तस्वीर के सामने आ गए.

“सच नानी, नाना जी की बहुत याद आती हैं मुझे भी.”

“हा बेटी. पर सब उसके हाथ में हैं. हम क्या कर सकते हैं.”

और सब तरफ एक दम शांति छा गयी. तभी खिड़की से ठंडी हवा का झोका आया और नानाजी के तस्वीर से एक फूल निचे गिर गया.

“अरे बेटी लो. नाना भी खुश हुए, देखो प्रकृति का सन्देश. ”

आगे की कहानी अगले भाग में ........
 
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6. गाँव की डॉक्टर साहिबा

Part 10

सच में भारत देश की महिमा भी काफी अलग हैं. यहाँ लोग एकदूसरे के साथ प्रकृति, जानवर और चीजो को भी जोड़ लेते हैं. कितना एक हैं हम सब फिर भी लड़ते रहते हैं. प्रकृति तो अच्छी हैं पर मानव बदल गया हैं.

वो फूल ओने हाथो से उठाकर के अपनी पोती की तरफ देख कर नानी ने कहा, “जाओ काव्या, तुम आराम करो. थक गयी होगी. फिर शाम नजमा आएगी तब खाना खा लेते हैं”

“ओह सच नानी .. नजमा फूफा अभी भी हैं यहाँ “

“हां बेटी वो बेचारी कहा जायगी और अब ऐसे लोग मिलते भी नहीं “काव्या ने नानी को एक जोर की झप्पी दे दी और सीधे अपने रूम की तरफ निकल पड़ी.

“कमरा याद हैं न बेटी”

“हा दादी मैं कैसे भूलूंगी कितना खेलती थी मैं वहां बचपन में. आप आराम करो मैं खुद जाती हु”

“ओके बेटी. कुछ लगे तो आवाज दे न. घर में नौकर हैं मैं भी हैं वो नजमा का बेटा हैं आने वाला था शायद उसने साफ़ करके राखी होगी तुम्हारी खोली”

काव्या सीडिया चढ़ते हुए बोली “ओके नानी.. आप फ़िक्र मत करो मैं देखती हूँ”

उसका घर सबसे पुराना और बड़ा था उस गाँव में. उसके नाना जी को सब पहचानते थे. बड़ा रुतबा था उनका. पर उनके गुज़र जाने के बाद मकान सुना हो गया. अब वह सिर्फ नानी और नौकरानी नजमाँ और उसका बेटा रहते थे. नजमाँ एक पुराणी नौकरानी थी वो काव्या को बचपन से जानती थी.

जब काव्या २ साल की थी तबसे वो वह काम करती थी. वैसे तो नजमा पे काव्या के नाना का बहुत सारे उपकार थे. उसका पति शराब में गिरा हुआ था और वो किसी औरत के साथ भाग गया.. तबसे वो वापस नहीं आया था. उसके पति को एक बेटा था रफ़ीक. फिर उसीने उसको पला पोसा अपने बेटे की तरह रखा. उसके बाद यही सब वो काम कर लेती थी. कहा जाता हैं के वो जवानी में बहुत भरी हरी भरी थी. और रफ़ीक के बाप के भाग जाने के बाद काव्या के नाना ने भी उसको चोदा था. शायद उसी काम के लिए उन्होंने उसको काम पे रख लिया.

काव्या को वो अपने हाथो से खाना खिलाती थी, नेहलाती थी और सुलाया करती थी. अब वो ४२ साल की हो चुकी थी. पर आज भी वो गरम थी. उसका बदन भरा हुवा था. आज भी वो उसके पडोसी रहीम चाचा से चुदवाया करती हैं. रहीम चाचा जो ६० साल का अधेड़ बुजुर्ग आदमी हैं. वो उसके पड़ोस में ही एक जुग्गी में रहता था. रफ़ीक के साथ उसकी बहुत जमती थी. बुढा बड़ा ठरकी था. उसने नजमा को बेटी बेटी बोल के एक रात उसपे हाथ मार ही दिया. दिखने में तो वो ६० साल का था पर चुदाई करते टाइम उसने ४२ साल की विधवा नजमा की नस नस तोड़ दी थी.

उस रात के बाद नजमा उससे हफ्ते में एक बार तो चुदवा ही लेती थी. जब भी रफ़ीक दोस्तों के साथ रात-रात बाहर रहता यहाँ उसकी सौतेली माँ अपना बदन रहीम चाचा से सेक लेती थी. रहीम चाचा की भी बीवी नहीं थी. दोनों का हाल एक जैसा ही था. वो शहर में ब्रा-पेंटी बेचने का धंदा करता था. उसका मालिक उसको इस काम के बदले छोटी मोठी रकम देता था. उससे उसका गुज़ारा चल जाता था. देसी शराब और मुर्गी खाके सोना और अपने दमदार लंड से नजमा की कस कर चुदाई करना जैसा उसके जीवन का एक अंग हो गया था.

दादी से मुलाकात करके काव्या अपने रूम में चली गयी. वो बहुत सालो बाद वह आई थी. रूम साफ़ तो नहीं थी. शायद रफ़ीक ने वो साफ़ नहीं की थी. उसने काव्या को बचपन में देखा था. वो काव्या से ८ साल छोटा था. काव्या उसको ज़र्ता पहचानती थी पर वो भी अब भूल गयी थी. खैर अपनी बैग बीएड पे डालके उसने रूम की विंडो खोली. एक बड़ी विंडो थी. जिसको खोलते ही सूरज की रौशनी अन्दर आ गयी और गाँव की ताज़ी हवा के साथ. और काव्या ने चैन की एक लम्बी आह भरी.
वो बहुत सालो बाद वह आई थी. रूम साफ़ तो नहीं थी. शायद रफ़ीक ने वो साफ़ नहीं की थी. उसने काव्या को बचपन में देखा था. वो काव्या से ८ साल छोटा था. काव्या उसको जादा पहचानती थी पर वो भी अब भूल गयी थी. रफीक के बारे में बताया जाए तो, रफ़ीक एक २० साल का युवक था. उसको पता था के उसकी माँ किसी गैर मर्द से चुद्वाती हैं. उसने कही बार उसके कच्छी पे सफ़ेद दाग देखे थे. और जब वो छोटा था तबसे उसको भनक लगी थी के रात में उसकी माँ कहराति क्यों हैं. इन सभी बातो से उसके मन में बचपन से ही सेक्स से भरी बाते बैठ गयी थी. वो बहुत उसमे रूचि लेता था.

उसके मवाली दोस्त उसको गन्दी गन्दी चुदाई की किताबे देते थे. पर वो था बड़ा शर्मीला वो उनके सामने उसको देखता भी नहीं था. पर उसको खुद पता नहीं चला कब वो उनको पढके अपनि मूठ मारने लगा था. रफ़ीक का लंड भी बड़ा मजेदर था. ७ इंच का एकदम कोरा लंड था उसका. वो हर बार फिल्मी किताबे देखता था उसमे सुन्दर अभिनेत्रिओं के फोटो देखके अपनी मुठ मारता था. उसने कही बार ब्लू फिल्मे भी देखि थी. इन सब से वो एकदम मर्द बन गया था. ये उसे तब पता चला जब उसका लंड रात में अपनी माँ के गांड को देखे फूलने लगा था.भले ही नजमाँ की वो सौतेली संतान थी पर सलमा उसका ख्याल बहुत रखती थी.
बचपन से नजमा उसको अपने साथ ही रखके सब काम करती थी जैसे खाना पकाना, कपडे धोना, नहाना, सोना. बात तो इतनी ज्यादा थी के आज भी वो रफ़ीक को एक बच्चे की तरह समझती थी. आज भी रफ़ीक अपनी हरी भरी माँ को अगर मन चाहे तो उसके ३८ के बड़े बड़े मम्मो को चुसकर सोता था. और वो भी उसको बच्चे की तरह पिलाती थी. शायद उसको वो बच्चा ही लगता था पर फर्क था के रफ़ीक अब जरा बड़ा हो गया था और वो उसपे ज्यादा जोर लगाया करता था.

मर्द सम्भोग में मादी पे हावी हो ही जाता हैं. वो उसको भोगना चाहता हैं. भले ही आधुनिक युग में नारी को पूर्ण रूप से भोग विलास में किरदार निभाये दिखाते हैं फिर भी अंतिम सत्य यही हैं के सौंदर्य और नाजुकता नारी का प्रतिक हैं. और मर्द उसका भूका. ये नियम से रफीक भला कहा बचने वाला था. अब रात में सोते वक़्त रफ़ीक के अन्दर का मर्द उसको ललकार रहा था. दिन भर दिन उसके हरकते बढती जा रही थी. शायद उसको वो नहीं समझ रहा था पर नजमा भले भाति सब समझ रही थी. उसकी नज़रे नजमा के मम्मो से हटकर अब उसके साडी के अन्दर जाने लगी थी. और नजमा भी उस बात को अच्छी खासी जान चुकी थी. रात में रफ़ीक कभी उसको चिपक के सोता था तो अपना हाथ उसके साडी के अन्दर डालने की कोशिश करता था पर वो उसके हातो को भिन्च्के अपने सिने से लगा लेती थी. और उसको सुलाने के सब उपाय करती थी. बिना बाप के और गरीबी की वजह से उसके कदम कही बहक न जाये इसलिए उसको आज भी वो बच्चे की तरह संभालती थी. उसके शादी तक उसको कही गलत लत न लगे इसकी वो पूरी कोशिश करती थी. सौतेली संतान को इतना प्यार देने वाली नज्म को बचपन की तरह अब उसको सुलाना इतना आसान नहीं रह गया था.



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Part 11

यहाँ काव्या अपने रूम की खिड़की खोलती हैं. बाहर की ताज़ी ताज़ी हवा से उसके रेशम जैसे बाल उड़ने लगते हैं. उसको बहुत सुकून का एहसास होता हैं. उसके रूम में एयर कन्दिश्नर था पर उसको उसकी ज़रूरत ही नहीं लगी. उसने चारो और नज़र दौड़ाई उसको सब तरफ बस खेत और खली सडके ही नज़र आये. उसका घर उस इलाके में बहुत शांत और सुनसान जगह पे था और मुश्किल से १ या २ मकान थोड़ी दुरी पे होगे. उसने एक गहरी सांस ली उसकी नज़र ठीक एक जगह गयी. उसके घर के ठीक सामने कुछ दुरी पे कुछ जुगिया थी. शायद वो मजदूर लोगो के लिए बनायीं गयी थी . वह पे कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. पर फ़िलहाल वह काम बंद था. सो उस इलाके में पूरा वीराना भरा पड़ा था.

खिड़की वैसे ही खुली छोडके वो वापस अपने बेड की तरफ चल दी. उसके बेड के सामने एक बड़ा शीशा था. और उसके बाजू में उसका वार्डोब. शीशे के ठीक सामने ही रूम का दरवाज़ा था. दरवाजे से कोई भी शीशे में से अन्दर का झांक सके ऐसी कुछ बनावट थी रूम की. खैर काव्या ने अपने आप को शीशे में निहारा वो इतनी सुन्दर थी के उस वक़्त भी उसका बदन गजब ढा रह था. जाने क्यूँ उसके मन में अचानक ऑटो का सीन आ गया और सुलेमान का लंड ... और अचानक से खिड़की से आती हुई ठंडी हवा के साथ काव्या के होठों पे एक हसी झलक गयी.

“हा..हा...पागल कही का “काव्य उस समय को याद करके खुदे बड बड़ाई. और शीशी में देख के शर्मा गयी.

वो उठी अपने बाल सवारे. दिन भर की थकान से वो थक गयी थी. उसने अपना बैग बेड पे ही डाल दिया और उसमे से एक तोवेल निकाला और ब्रा प्यांति निकाली. उसकी इम्पोर्टेड ब्रा और प्यान्ति उसके पति ने उसको गिफ्ट दी थी. उसने अपनी शिफोन की साडी निकाल के निचे फेकी और अपना ब्लाउज निकाल के बाजु कुर्सी पे दाल दिया. क्या नज़ारा था, ब्रा और पेटीकोट में एक राजसी महिला खड़ी थी. ठीक वैसे ही वो बेड पे बैठती हैं.
उसको मोबाइल देख रमण की याद आई. उसने मोबाइल उठाया और रमण का नंबर डायल किया.

काव्या: “हेलो..जाणू”

रमण: “ओह..ही..डिअर.कहा हो पहुच गयी?”

काव्या: “हा..जस्ट..नानी से मिली और तुम्हारी याद आई..”

अपने ब्रा की straps को सीधा करते हुए वो रमण से बात कर रही थी.

रमण: “ओह हनी आई मिस यू टू”

काव्या: “मुझे बहुत मनन कर रहा हैं तुमसे बात करने का..जानू”

रमण: “ओह डिअर..अभी नहीं मैं मीटिंग में हूँ. मैं शाम में फ़ोन लगाता हु”

काव्या: “जाओ तुमको मेरे लिए हमेशा वक़्त ही नहीं रहता..जाओ मैं नहीं बात करती”

रमण: “ओह डिअर वेट“

और गुस्से से काव्या फ़ोन कट कर देती हैं. रमण हमेशा अपने काम में बीजी रहने से उसको वक़्त नहीं दे पाता. सो उसकी कमी अब काव्या को बहुत खल रही थी. उसने गुस्से से मोबाइल लिया और कुछ चाट निकाला. उसमे कुछ फोटोस और चाट वो पढ़ते बैठी. अपनी ब्रांडेड ब्रा और पेतिकोट में बेड पे बैठी काव्या को, मोबाइल से पुराणी यादे पढ़ते पढ़ते और ठंडी ठंडी खिड़की से आती हुयी हवा से कब आँख लग गयी समझा ही नहीं. और वो वही नींद के मारे ढेर हो गयी.

आह,,,याह फ़क मी...उम्म्म्म..”

यहा नजमा का सौतेला बेटा रफीक अपने दोस्त बीजू के घर टीवी पे पोर्न देखते बैठा था. उसमे एक जवान नौकर अपने मालकिन को चोदते हुए सीन चल रहा था. जिसमे मालकिन बड़ी उछाल उछाल के नौकर का लंड अपने योनी में ले रही हैं.

“आह...साले रफीक..क्या माल हैं रे..ऐसा मिले न मैं तो दिन रात चोदु..” आवारा बीजू रफीक से बोला.

रफीक थोडा शर्मीला किस्म का लड़का रहने से ज्यादा खुलके बात नहीं करता था. बड़ी एकाग्रता से वो हर एक सीन देखे जा रहा था. उसका जवान लंड वो सब देख के तम्बु बन गया था. बीजू जहा एक आवारा लड़का था. पढ़ाई कम और मस्ती जादा करना उसको पसंद था. न जाने कैसे रफीक उसके चक्कर में गिर गया. वो उसको अलग अलग सेक्स की किताबे, फिल्मे देखने देता था. उसके पास कही पोर्न फिल्मो की CD और किताबे थी. उसकी PHD उसमे ही शायद उसको करनी थी. दोनों की इम्तेहान १ महिने पे लटकी थी पर सब भूलकर दोनों नवाबो की तरह पोर्न देखते बैठे थे.

बीजू अपना लंड बाहर निकाल के उसे मलते हुए बोला,” रफीक. लाइफ हो तो ऐसी देख. रोज सिर्फ आराम हो और चुदाई को नए नये माल”

रफीक थोडा शर्मीला था उसने कच्छे के अन्दर ही अपना लंड मलते हुए चुपचाप टीवी पे नज़रे रखी.

“अच्छा रफीक, साले तू तो तेरा लंड छुपाके रख बस. मैंने तो इसको बहुतो को दिखाया हैं.”

“अच्छा किसको?” रफीक ने बड़ी विलोभनीय अंदाज़ में पुछा.

“अपने क्लास की लडकि हैं देख वो माल मीनू, उसकी छोटी बहन मंजू परसों दोपहर खेत में घूम रही थी. मैंने उसको लपक लिया”

“फेक मत बीजू..कुछ भी”

“अबे साले, तेरे जैसा समझ रहा क्या? सुन..उसका हाथ मरोड़ के उसको वही मसल दिया”

“फिर..आगे ? क्या किया”

“आगे उसके आम दबाये पर साली मेरा नंगा लंड देखके भाग गयी”

“अबे भागे गे ही न, वो तो दसवी कक्षा में हैं सिर्फ”

“माल हैं माल..कैसे आम हैं साली के .. दबा के देख गांडू फिर बोल मीनू से भी आगे हैं“

“तुझे क्या काम हैं बे दूसरा?”

काम से रफीक एकदम चौक गया. उसको याद आया उसको आज काव्या का कमरा साफ़ रखना था. जो वो भूल गया था. अब उसको पक्क्का लगने लगा आज तो गाली पडनी हैं. बुढहीया भी और उसकी मा , दोनों तरफ से. वो अचानक से उठ के बाहर जाने लगा.

“अबे डरपोक..कहा भाग रहा ? उसका बाप आया क्या?”

“अबे नहीं..मुझे काम याद आ गया वो करने जा रह हु”

“कौनसा वो तेरी बुध्हिया मालकिन का काम या तेरी मस्त मा का काम”

“देख बीजू. मा के बारे में ऐसा वैसा मत बोल मैंने पहले ही कहा हैं तुझसे “

“अबे साले, तारीफ़ की और क्या किया ? सुना हैं तेरा पडोसी वो बुढह रफीक बड़ा तारीफ़ करता हैं तेरे मा की. मैंने की तो क्या हुवा बे हरामी “

“ देख बीजू बस हो गया. मुझे जाना हैं इसलिए जाने दे रहा हु”

“ अबे मर कमीने..गांड मरवा अपनी मालकिन से “

रफीक सब भुला के अपनी साइकिल पे काव्या के घर भाग पड़ा. साइकिल चलाने में मशहूर आज उसको किसि फरारी के जैसे भगा रहा था. सर पे टोपी, एक शर्ट और गाओ वाला कछा पहन के वो किसी सुपरमैन जैसा साइकिल भगा रहा था. गाँव में वो वैसा ही रहता था. २० साल का होकर भी उसके कछे की आदत नहीं गयी थी. जाने कितनी बार गाँव की लडकिया उसके जवान लंड को घुर के आहे भर लेती. नदी किनारे जब वो नहाने जाता तब उसका जवान लंड देख कितनी औरते अपनी चुचिया मसल लेती. नजमा ने उसको उसको बच्चे की परवरिश की थी उसका असर अभी भी चल रहा था. पर हर कोई उसको उस नज़र से थोड़ी देखेगा. अपना ताना हुआ लंड लेकर वो ऐसे भाग रहा था जैसे कोई रेस लगी हो.

कैसे तो करके वो काव्या के घर पहुच गया. उसने पिच्छे के दरवाजे से अन्दर की और छलाँ मारी. उसको घर का कोना कोना पता था. उसको यह भी मालूम था के बुधिया अब सो गयी होगी. उसको बस अपना काम करके चुप चाप निकलना था. वो घर की छत पे आ गया. और वह से सीधे घर के अन्दर. बात जैसे सोची थी वैसे ही निकली. काव्या की नानी अपने रूम में सो गयी थी.

“हम्म...चलो अब आराम से खोली साफ़ कर लेता हूँ”

उसने थोडा रुक के सासे ली.उसकी धड़कन तेज़ भाग रही थी. २० मिनट से बिना रुके वो साइकिल भगा जो रहा था. घडी में देखा तो शाम के ४ बजे थे. उसने सोचा अब जल्दी से रूम साफ़ करके निकल जाता हु. शाम में नजमा आएगी तब तक निकलना होगा. शायद काव्या आइ नहीं अभी तक ऐसा उसने सोचा. सो बड़े सुकून से वो अब चल रहा था.

हॉल में एक सेब उठा के उसको खाते खाते अगले ही पल उसने झाड़ू हाथ में लिया और काव्या की रूम की तरफ अपने कदम बढ़ाये. खोली का दरवाजा जो पहले ही खुला था उसमे उसने प्रवेश किया. जवान शर्मीला रफीक के किस्मत के दरवाजा आज खुला होने वाला था. शायद वो उसकी पोर्न फिल्म को भी भूल जाए

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Part 12

“उईईईइ अम्म्मी......मर गयी.......”

सलमा के मूह से चिख निकली. यहाँ सुलेमान अपना मुसल तना हुआ लंड सलमा के योनी में घुसेडता जा रहा था. जो सर सर करके साप के भांति उसके बिल में घुसे जा रहा था. सलमा को सुलेमान और सत्तु खेतो में सुलेमान के झोपडी में लाये हुए थे. काव्या के बंगले से ऑटो मोड़ उन्होंने सीधे वही अपना डेरा जमाया. जैसे ही ऑटो झोपडी के पास रुका. ऑटो में से सलमा को बाहों में उठाके दोनों कलुटे उसको अन्दर की खाट पे पटक के चालू हो गए. पलक झपकते ही सलमा के कमसिन योनी में सुलेमान ने अपना तना हुवा लंड घुसा दिया था. एक घंटे पहेले की चुदाई फिर से शुरू हो गयी थी. ये इतना तेज़ हुआ के सलमा को समझने का मौका ही नहीं मिला.

“आः....सलमा... रानी... इतना क्यों चीख रही हो?? अब तो इसकी आदत कर लो जान”

सलमा की चूत ने अपना मुसल लंड धसाते हुए सुलेमान सलमा के बदन पर टूट पड़ा. उसकी चुन्चियों को मसलते हुए वो उसकी योनी में कोहराम मचा रहा था. बाजू में सत्तू मादरजाद भी अपनि पतलून निकल के नंगा खड़ा हो गया. उसने अपना लंड हाथे में हिलाते कहा,

”अरे सुलेमान भाई..जरा तनिक जगह दियो..हमका भी सलमा के साथ खेलन खेलन हैं”

“अबे रुक..मादरचोद..पहले बाप को करने दे. पहले ही उस रंडी डोक्टोरनी ने लवडे में आग लगा दी हैं. साला कब से तना पड़ा हैं. इसको चूत खाने दे बहनचोद..आह...”

काव्या को अपने आँखों के सामने लाके सपाक बोलके सुलेमान ने अपना लंड पूरा का पूरा सलमा के योनी में बड़ी तेज़ी से और निर्दयता से भीच दिया.

“ आआआआआआआआ...... छोड...मार दिया कमीने.........”

सलमा के मूह से फिर से एक जोरदार आह निकली. उसकी चीख इतनी दमदार थी के सत्तू के कानो में भूचाल आ गया. आर उसके हाथ उसके लंड से सीधे उसके कान पे जा रुके.

“अबे साली, कान फाड़ देगी क्या? रुक, तेरा इलाज करना पड़ेगा..”

सत्तू ने यहाँ वह देखा. और नन्गा मादरजाद किसी रेडे के माफिक ज़मीन पे बैठ गया. खाट के नीचे रखी हुयि एक देसी शराब की बोतल उसको दिख गयी. उसने अपना हाथ खाट के निचे डाल दिया और वो बोतल निकाली. उसमे से थोड़ी शराब निकाल के बाजु पड़े एक गिलास में दाल दी. एक घूँट में ही उसने वो गिलास गटक लिया.

“आह....मजा आ गया ..तनिक अब अच्छा लग रहा मादरचोद..”

अपने गंदे मूह से सलमा की और देख के उसने कहा,

“हम्म..आई हाई..क्या मस्त ले गयी अन्दर तू तो ...चीलाती बहुत हो सलमा तनिक..पियोगी? मजा आएगा तुझे भी...”

और शराब गिलास में डालकर वो सलमा के पास आया. उसने वो कडवी शराब सलमा के मूह को लगाके बोला,

“इससे पियो सलमा...चिल्लाओगी नहीं..तनिक मजा लोगी“....

सलमा ने मूह दूसरी तरफ गुस्से से फेर लिया.

इसपे सुलेमान बोला ,“अबे चूतिये, ये ऐसे नहीं मानेगी..इसका इलाज हैं देख अब..”

सुलेमान ने उसकी नाक दबाई और अपना लंड एकदम से पूरा बाहर निकल के ज़पाक से एक और बार अन्दर चूत में भीच दिया. किसी सुनामी के प्रति उसने सलमा के चूत में हमला बोल दिया. वो दृश्य भी अजीब था ऐसा जैसे काऊबॉय की तरह सुलेमान सलमा को घोड़ी की तरह नचा रहा हो.

ना चाहते हुए भी सलमा का मूह खुल गया और तुरंत बाद सत्तू ने वो गिलास उसके मूह पे लगा दिया. कडवी देसी शराब उसके गले के अन्दर पूरी की पूरी उतर गयी. जैसे ही सुलेमान ने सलमा का नाक छोड़ा, सलमा ने धस करके अपनि सांस छोड़ी. और नीचे मूह में बची थोड़ी बहुत शराब थूक दी. दोनों कलूटे राक्षस की तरह हंस पड़े. देसी शराब का असर अब सलमा पर जो पड़ने वाला था. झोपडी में मानो शराब और शबाब का मौसम चालू हो गया. और दोनों कलूटे उसमे मन चाहे डूबकी लगा रहे थे.

इधर रफीक बड़े आराम से काव्या के कमरे की और बढा जा रह था. वो जैसे ही कमरे के चौकट पे आया..

उसके कच्छे में कुछ वायब्रेट हुआ. शायद उसका मोबाइल बज रहा था. उसने तुरंत कच्छे की जेब से वो अपना पुराना मोबाइल फ़ोन निकला तो देखा तो उसके दोस्त बीजू का फ़ोन था. वो कमरे से थोडा दूर गया और फ़ोन उठाके बोला:

रफीक: हां बोल बीजू क्या हैं?

बीजू: अबे कमीने कहा पर हैं?

रफीक: मैं मालकिन के पास हु काम पे क्यों फ़ोन कर के सता रहा हैं बे?

बीजू: अबे गांडू तू गांड मरवा वही. मैंने इसके लिए फ़ोन किया था तुझे कुछ बताना था..

रफीक: क्या हैं जल्दी बता दिमाग मत ख़राब कर पहले ही काम बहुत हैं

बीजू: अबे डिब्बे सुन..तेरी मा को अभी मैं रहीम बुढ्ढे के साथ देखा दोनों बडी हंस हंस के बाते कर रहे थे. शायद आज कुछ हैं..

रफीक: देख बिजु मैंने पहले ही बोला हैं मा के बाते में कुछ मत बोला कर. इसलिए फ़ोन किया क्या तूने

बीजू: अबे बीमार लंड तेरी मैं मदत कर रहा हु और तुम मुझे ही बोल रहा हैं.जा मा चुदा मुझे क्या? पर देखना आज तेरी मा रात में कैसे खिली खिली लगेगी,,हां,,

और उसने फ़ोन काट दिया. रफीक को उसके मा के बारे में कुछ सुनना ठीक नहीं लगता था. भले सौतेले थे दोनों, पर एक दुसरे के प्रति सम्मान की भावना रखे हुए थे. पर आज बीजू की बातो से उसको बहुत गुसा आया था उसने कुछ न कहते गुस्से से फ़ोन पटक दिया. और जेब में रख दिया. उसने कैसे तो खुदपे नियत्रण कर के झाड़ू उठा या और काव्य की खोली की और मुडा. नद्दान रफीक को नहीं पता था यह गुस्सा और अब जो उसको दिखने वाला था वो हकीकत उसको शायद बीजू की कामुक बातो पे गौर करने को मजबूर कर दे.

बड़े आराम से रफीक काव्या के कमरे की तरफ बढ़ा. उसने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया उसको एक अजीब सी गंध आ गयी. वो खुशबू थी काव्या के डियो और पाउडर की. उसने ज़िन्दगी में पहली बार ऐसी कड़क खुशबू ली थी. उसको वो इतनी पसंद आई के उसकी आँखे खुद बे खुद बंद हो गयी. और वो उस खुशबु में बहता चला गया. उसने उस खुशबू का पिछा लिया तो काव्या के ड्रेसिंग टेबल पे बड़े शीशे के सामने राखी हुई वो डियो की बोतल उसको दिख गयी. उसने वो हाथ में उठायी और नाक को लगा के सूंघी. जैसे ही वो बोतल के पास रखने गया उसकी नज़र शीशे पे चली गयी. उसने शीशे में देखा, तो उस नज़ारे के सामने उसकी वो खुशबू मानो कही दौड़ के चली गयी हो. उसके होश उड गए. आँखों पे अँधेरा छा गया. उसके हाथ पैर कापने लगे. और उसका मूह खुला का खुला ही रह गया.

सामने बेड पर एक योवन सुंदरी निद्रामय अवस्था में थी. उसके बाल बिखरे हुए थे, जो उसकी सुन्दरता को और निखार रहे थे. उसके चेहरे पे एकदम कामुक और सुकून के भाव देख कर जैसे किसीको भी ह्रदय से प्यार करने के और मन चाहा भोग भोगने के भाव एक ही समय पे आ जाये. और वो इन्सान पागल हो उसको पाने के लिए. अपने पेट के बल सोने के कारन उसकी गोरी दूध जैसी मखमली पीठ और विशाल उभरा हुआ सुडोल पिछवाडा उठकर दिख रहा था. गोरी गोरी पीठ पे उसकी ब्रा तो कहर मचा रही थी. गहरे नींद में होने कारन उसका पेटीकोट भी जांघो तक ऊपर उठ गया था. जिससे उसके ब्रांडेड प्यान्टी की झलक बाहर आ रही थी. चिकने गोर मुलायम पैर जैसे भोजन के लिए दावत दे रहे थे. उसकी सुन्दरता और उसका कामुक बदन देख के अच्छे अच्छो का मन डोल जाए. कोई अप्सरा निद्रा अवस्था में आज रफीक ने देख ली थी जिसके कारन २० साल का देहाती युवक होश के बाहर हो गया.

कुछ देर तक वैसे ही देखते रहने के बाद अचनक उसका ध्यान टूटा. उसका मोबाइल वायब्रेट हो रह था, उसने होश में आके फ़ोन देखा बीजू का कॉल देखकर उसने वो कॉल काट दिया. और मोबाइल अपने जेब में रख दिया.

जाने किस बात की उसमे ताकद आ गयी के हमेशा डरपोक किस्म का रफीक आज किसी योध्हा की तरह आगे बढ़ रहा था. उसको काव्या की खूबसूरती अपने तरफ खीच रही थी. और वो सम्मोहन की तरह उसके तरफ बढ़ते जा रहा था. उसका बदन तो डर के मारे काप रहा था पर उसका जवान कमसिन लंड ने उसपे दीमाक पे अपना ताबा कर रखा था. और उसकी गर्मी उसको मिल रही थी.

वो काव्या के ठीक सामने खड़ा हो गया. उसने गौर से अपनी नज़रे उसके सर से लेकर पाओ तक घुमाई. क्या लग रही थी वो. उसके मनन में डर और वासना दोनों हावी हो रहे थे. काव्या जैसी खुबसूरत और मादक महिला उसने सिर्फ फिल्मो में देखि थी. उसको वो पोर्न फिलम का सीन आँखों के सामने आया जिसमे विदेशी औरत अपने नौकर से उछाल उछाल के चुदवा लेती हैं.

उसके लंड ने झटका लिया. “आह”, उसके मूह से हलकी सिसक निकल गयी.

तुरंत उसने अपने मूह पे हाथ रख दिया और खुदको चुप किया. सन्नाटा पुरे खोली में छाया था. खिड़की से हवा की एक पहल अन्दर आई और सन्नाटे को थोडा कम कर के चली गयी. हवा से बदन को रहत तो मिली पर लंड को कहा कुछ हुआ. वो तो ललकार रह था. और रफिक पूरी तरह से उसके चुंगुल में बांध चूका था.

उसने यहाँ वह देखा. एक बार काव्य के चेहरे की और देखा जो घने रेशमी बालो में दबा हुआ था. सब तरफ सन्नाटा देख के उसकी हिमात उसने लंड ने बढ़ा दी. वो काव्य के नज्दिल सरका और बेड पे बैठ गया. काव्य के पैर उसकी तरफ थे. रफीक की नज़रे उसपे दौड़े जा रहे थे. पर साथ ही उसकी धड़कन जो राजधानी जैसे भाग रही थी. उसको डर भी था कही कोई देख न ले पर उत्सुकता भी थी के एक बार बस..दोनों बड़ी उल्ज़नो में फस रफीक अपने लंड की ही बात सुनता हैं और वो करने लगता हैं जिसका कुछ देर पहले शायद विचार भी उसने ना किया था.

यहाँ दूसरी तरफ सुलेमान कस कस के सलमा को चोदे जा रहा था. १५ मीनट हुए वो सलमा की चूत में अपने लंड को पेले हुए था. और देसी शराब का नशे का असर अब उसपे भी होने लगा.

“आह...मेरी रानी...रंडी ...चुदवा ले.....”

सुलेमान की इस गाली का जवाब भोली भली सलमा ने ऐसा दिया के दोनों कलूटो के पैरो निचे ज़मीन खिसक गयी.

“ हां.. भडवे..चोद..उम्...जितना चाहता हैं चोद..आन्न्न....तू तो, तेरी, आह....सगी बहन को भी न छोड़े... उम्..मैं तो भांजी हु...भडवे..आह..” दोनों मादरजाद उसकी ये बाते सुनके चौक तो गए पर जोर से हसने लगे.

सत्तू बोला, “ अरे वा... सलमा बोला था न शराब पीकर देखो मजा आएगा तुमको भी...देखी हमरी राय सुनने का फायदा..”

सुलेमान अपना लंड सलमा की चूत वैसे ही मार मार ते बोला, “ अबे बहनचोद...आह...साले शराब नहीं,, ये मेरे लंड का कमाल हैं...आह....मेरी सलमा...चुद...”

“बात तो सही हैं गुरु..हमें भी अपना हिस्सा खाने दो .कबसे अकेले ही खा रहे हो...”

सत्तू को अपने तरफ आते देख सलमा भी नशे से चूर बोल पड़ी, ““अबे भडवे...रुक..आआः....रुक तू ज़रा..इस कमीने का... होने दे..अम्मी....”

सलमा की इस बात पे और दोनों जोर से हंस पड़े. सुलेमान आज जादा ही जोश में चुदाई कर रहा था शायद उसको सलमा की बाते सुनके और नशा चढ़ रहा था. २० मिनट होने को थे, उसका लंड हैं के झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था. सलमा की शराब उसको इस कसी हुयी चुदाई का मजा लेना सिखा रही थी जिसका वो खुद होक मजा ले रही थी.

सच में शराब कैसी बुरी बला हैं जो मर्द तो मर्द , औरत को भी अपने जैसा बना देती हैं. भोली सलमा भी शराब के नशे धुत अनाब शनाब बके जा रही थी. भले ही उसने उनके तौर तरीको में ही पलटवार किया था पर ये उसका आत्मविशवास नहीं था बल्कि शराब का नशा बोल रहा था. पर क्या सिर्फ शराब ही यह साहस दे सकती ?हैं ऐसा नहीं. क्योंकि रफीक बिना शराब के साहस करने जा रहा था. कुछ भी हो दोष किसका भी हो, यह अंतिम सत्य हैं के मनुष्य भोग और नशे में खुदको भी भूल जाता हैं इसका सलमा और रफीक प्रत्यक्ष उदहारण हैं. बस फर्क था एक तरफ एक कमसिन औरत थी और एकतरफ नव युवक.

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Part 13



यहाँ सुलेमान धक्के पे धक्के मार रहा था. २० मिनट होने को थे लेकिन वो तो झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. चुदाई का जैसे कोई भूत उसपे सवार हो गया था. ये सब देख सत्तु नशे में धूत, बाजु में ही खुदका लंड हिलाते हुए खड़ा का खड़ा देख रहा था.

“गुरु...बस भी करो...हमका भी खाने दो माल...”

सुलेमान अपने धक्के चालू रखते हुए वैसे ही हाफ्ते हाफ्ते बोला, ”अबे मादरचोद...रुक ..आज साला मन नहीं कर रहा रुकने का..आआह्ह...आज खाने दे..डोक्टोरनी ने आग लगा दी हैं...आह..”

उसके मूह से डोक्टोरनी का नाम सुनते ही सलमा को थोडा समझने लगा. और उसका शक यकीन में बदल गया. दोनों कलूटो ने क्यों इतनी दरियादिली दिखाई थी काव्या के प्रति इसका राज उसको पता चल गया. ये सब बाते जानकार नशे में धूत सलमा गुस्से से आग बबूला हो गयी और उसने चुदते-चुदते ही सुलेमान की और देख बोला,

” आः....आ...कुत्ते..इसलिए ये सब चल रहा हैं...आःह्ह...तो बीबी जी की ले न...मेरी क्यों ले रहा हैं..आह...अम्मी......”

२० मिनट से लगातार धक्के खाती हुयी सलमा अटक अटक के बड़े कामुक अंदाज़ में गुस्से से सब बोल रही थी. पर इसका परिणाम होता उल्टा. उसकी ऐसी बाते सुनके असलम को और ज्यादा जोर आता. वो हर आगे का धक्का पिछेवाले से जोर से लगाता. और उसका हिसाब बराबर करता. उसने अपने धक्को की रफ़्तार बधाई और बोला,

“आह्ह,,,ये ले मेरी सलमा रानी...अब उस रंडी को भी चोदुंगा..पर पहले ..आः....तेरी चूत तो खाने दे..”

और एक जोर का धक्का लगाके उसने सलमा की चूत के कोने कोने में अपनी मौजूदगी दिखा दी. झोपडी में आहो की चीखों की आवाजे घूम रही थी. शराब की बदबू और शबाब की खुशबू से वो समा इतना मादक बन गया था के मत पूछो. सलमा भी अब खुद होके इन सब का मजा ले रही थी. उसको ये सब पसंद आने लग रहा था. जो नफरत उसको एक घंटे पहले आ रही थी अब वो नफरत वासना में परिवर्तित हो गयी थी. इसमें कारन सुलेमान था के काव्या थी ये बड़ी रोचक बात हैं. सुलेमान से हो रही चुदाई को देख उसको ये भी लगने लगा था के सुलेमान के इस रफ़्तार को रोकना हैं तो उसीको ही कुछ करना पड़ेगा.

झोपडी से ठीक उल्टा समा काव्या के रूम में था. एकदम सन्नाटा और ठंढी शीतल हवाओं से वह सब तरफ एक अलग ही रम्यता आई हुई थी. उस वक़्त अगर वह कोई चीज शोर कर रही थी तो वो थी रफीक के दिल की धड़कने. अपने धड़कने और कापते हाथो को संभाल के वो काव्या का रूप पूरी सयमता से निहार रहा था. उसकी पिंडलिया जांघो से लेकर पीठ तक की खूबसूरती उसके जवान लंड में उतर रही थी. पर ये सयमता का बाँध टूटने जा रहा था. उसके मूह में पानी तो आ रहा था लेकिन हाथ काप रहे थे.

उसने थोड़ी हिम्मत बढायी, चुपके से यहाँ वह देख वो काव्या के करीब गया. अपना एक हाथ उसने काव्या के पैर पे रखा. आह...क्या मुलायम पैर थे उसके. उसका हाथ थर थर काप रहा था. धड़कने इतनी तेज़ हो गयी थी के मानो वो दिल को चीर के बाहर आ जाये. काव्या के बदन की खुशबू उसको पागल बना रही थी और उकसाने का काम भी कर रही थी. उसने अपना हाथ वैसे ही उसके पिंडलियों पे थोड़ी देर के लिए रखा. और धीरे से उसके जांघो की तरफ उनका रूख मोड़ लिया.

थोडा आगे जाके वो थोडा और झुक गया. किसी सम्मोहन की तरह काव्या की जांघो को घूरता बैठा. काव्या की और से कोई हरकत ना देख उसकी हिम्मत और बढ़ी. और बड़े ही वीरता से उसने अपने दोनों हाथो से काव्या की जांघो को बहुत ही धीरे से पकड़ लिया. जसी उसने कोई किला जीत लिया हो. मुलायम, गोरी, दूध जैसे जाँघों को हाथ में लेते ही उसके लंड में बहुत ज्यादा तनाव आया गया. जीवन में पहली बार ऐसी रूप सुंदरी सामने देख और उसको छू कर उसकी हालत और ख़राब होने लगी जिसके कारण उसके मूह से सिसक निकल गयी.

”आह....”..

“आह....आह....सलमा...तेरी चूत की तो....आह....डोक्टोरनी.. आह...”

सुलेमान के धक्को को बर्दाश्त कर के सलमा भी अब चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी. अचानक उसनके वो किया जो उन दोनों ने पहली बार देखा. उसने अपने दोनों पाँव उठा लिए और सुलेमान की पेट के ऊपर जकड दिये. सत्तू ये देखकर चौक गया. सलमा का ये रूप उसने कभी नहीं देखा था. सलमा वही नहीं रुकी तो उसने सुलेमान का सर अपने हाथो में भींच कर के उसको अपने सीने से रगड़ के रखा. इस कारन सुलेमान के लंड में तनाव आना शुरू हो गया. क्योंकि सलमा अपने चूत में खुद होकर उसका लंड निगल रही थी.

“चोद..भड़वे...चोद...मिटा दे अपनी भूक...आः.....”

सलमा की ये बाते और उसका रूप देख सत्तू हस पड़ा. अपने नशे में धूत वो सलमा के करीब आ के बोल पड़ा,
“भूक तो तुझे भी लगी हैं रानी... अब बर्दाश्त हमका भी नहीं हो रहा चल पकड़...”

और अपना खड़ा लंड वही उसके हाथ में दे दिया. सलमा ने कोई देरी ना करते उसका लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और उसको आगे पिच्छे करना चालू कर दिया. दृश्य बहुत ही विचित्र बन गया था. बड़े कामुकता से सलमा उसका लंड भी मसल रही थी और सुलेमान का लंड जकड भी रही थी. उसकी इस हरकत से दोनों कलूटो को असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी. ऐसा लग रहा था मनो दो नर एक मादी को भोगने चले हो लेकिन असल में मादी ही नरो का भोग करने बैठ जाए. ठीक ऐसे विलोभनीय कामुक अंदाज़ में काम वासना का चल चित्र वह प्रतीत हो रहा था. दोनों तरफ नारी ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रही थी. वो थी उसकी सुन्दरता और कामुकता.
काव्या के जांघो से आती हुई खुशबू रफीक को पागल बना रही थी. वो उसको महसूस कर रहा था. उसको और ज्यादा करीब से वह मखमली जिस्म महसूस करना था. लेकिन उसको डर था कही काव्या जाग न जाए. उसकी संयमता की दाद देनी पड़ेगी. वो वह से उठ गया और काव्या के चेहरे की तरफ चला गया. एक बार उसने काव्या को थोडा सा कंधे से हिलाया, या मानो, सीर्फ हलकासा स्पर्श किया के कही वो अगर जागी हो तो समझ जाए.

किन्तु दिनभर की थकान से ये युवती गहरी नींद में इस कदर डूब गयी थी के उसको अब किसी हाल की परवाह नहीं थी. रफीक की हिम्मत इससे बढ़ गयी. उसने अपना रुख फिर से काव्या के बदन की और मोड़ दिया.

उसके गोरे मुलायम पीठ पे जैसे ही उसने हाथ रखा. उसके अन्दर जकडन आने लगी. वो पागल हो गया क्या करू क्या नहीं. काव्या की सुन्दरता की और उसने घुटने टेक दिए. नौजवान युवक ने अपने होठ काव्या के पीठ पे लेके टिका दिए. वो तो उसको बाहों में भरना चाहता था पर उसकी हिम्मत उतनी ज्यादा नहीं थी. उस समय वो काप रहा था पर साथ ही काव्या के बदन से आती हर मादक खुशबू सूंघने में वो मशगुल भी था.

तभी एक हवा का झोका किसी बिन बुलाये मेहमान के भाति खिड़की से आया और काव्या ने अपना शरीर नींद में ही थोडा हिलाया.रफीक को मानो दिन में तारे दिख गए हो. वो वही जम कर अकड गया. पल भर के लिए उसको लगा के काव्या जाग ही गयी. वो हिल भी नहीं सकता था. वैसे ही काव्या की पीठ पे वो चिपक के वो चीपका रहा. कुछ समय के लिए उसने अपनी साँसे तक रोक ली, पर काव्या तो गहरी नींद में थि बस ये हवा का झोका शायद उसको नींद में छेड़ने के लिए आया हो. कोई हलचल न देख राहत से रफीक ने अपनी रुकी हुयी गरम सांसे काव्या की पीठ पर ही छोड़ दी. पर काव्या जब हिली थी तब उसका पेट ऊपर की और आ गया और उसका गोरा मुलायम पेट साथ ही भरे भरे स्तन ब्रांडेड ब्रा में कैद रफीक की नजरो के सामने आ गए.

“आह....ले रंडी...आह....और ले...”

यहाँ दूसरी और सुलेमान के पलंगतोड हमलो से सलमा की योनी में सिरहन आने लगी. थोड़ी देर बाद सुलेमान ने अपना लंड निकाला और उसकी चूत में सपाक बोलके ऐसा भींच दिया मानो कोई तलवार। उसकी चूत इतनी गीली हो गयी थी कि लंड उसकी चूत में जड़ तक समा गया। उसने जोर से सिसकारी भरी और सुलेमान को अपनी बांहों में जकड़ लिया। सुलेमान ने और तेजी से धक्के मारना चालू कर दिया। हर धक्के पर उसकी सिसकारियाँ तेज होती जा रही थी। इस लम्बी हुई चुदाई से एकदम से उसका बदन थरथराया और उसने कस कर सुलेमान की पीठ पर नाख़ून गाड दिए. सत्तू का लंड अपने एक हाथ में मसलते हुए उसने अपनी आँखे बहुत जोर लगाके मीटा दी और अपने होठ चबाके एक आह भरी...

“आह....अम्मी....मई तो गयी......”

यहाँ सलमा ने अपना पानी छोड़ दिया था. वो झड गयी थी. उसके बुर में से उसका काम रस रिस होकर बह उठा जो सीधे सुलेमान के लंड के ऊपर से चलते होके खाट पे बह गया. वो निढाल होकर ढेर हो गयी. अब सुलेमान भी अपने चरम सीमा पर था. आधे घंटे से वो सलमा को चोदे जा रह था. उसका भीगा लंड अब अकड़ कर फुल रहा था. सलमा को उसके गरम फुलेहुये लंड की हलचल अपने योनि में महसूस हो गयी.

महसूस तो रफीक को भी बहुत कुछ हो रहा था सलमा की तरह. बस एकतरफ शोर का माहोल था और दूसरी तरफ वीराने का. एक तरफ बदन से बदन घिस रहा था तो दूसरी तरफ एक हल्का सा स्पर्श मिल रहा था. कितने अलग दृश्य थे दोनों भी. एक तरफ तूफ़ान था तो दूसरी तरफ पहल. एक तरफ अंत था तो एक तरफ प्रारंभ. जहा सुलेमान नोच-नोच के देहाती खाना खा रहा था और एक तरफ रफीक जो फुक-फुक के शाही दावत का लुफ्त उठा रहा था. पर दोनों में एक बात एक जैसी थी और वो थी “काम वासना” जो उस वक़्त अपने शिखर पर विराजमान थी.

रफीक अब ज़रासा निचे हटा काव्या के पेट को देख बैठा. उसकी लालसा और बढ़ गयी थी. वो हल्का सा निचे आया और अपने होठो से उसके पेट की एक चुम्मी ले ली. वो जैसे दूसरी दुनिया में चले गया. उसको कुछ होश नही रहा. भरपूर जवानी और खूबसूरती से भरी पड़ी राजसी शहर की महिला उसके लिए मानो एक ऐसे बला थी जिसको वो प्यार करना चाहता था, और शोषण भी. बड़े आराम से वो उसके बदन की खुशबू और गर्मी को सेक रहा था. उसके मुलायम बदन के कोने कोने को वो चाटना चाहता था. उसने वैसे ही काव्या के बदन से अपना बदन धीरे से लपेट लिया. और अपने कानो से उसकी धड़कन की आवाज को सुनने लगा.

उसके लिए ये सब अनुभव नए थे. वो नया खिलाडी था इसलिए खुद ही कभी हिम्मत दिखाता और कभी कमजोर गिर जाता. दोहरे परेशानी में उसको काव्या का बदन आत्मविशवास की शक्ति प्रदान कर रहा था. उसने काव्या के बदन से लिपटे हुए बहुत ज्यादा आनन्द प्राप्त हुआ. शायद ये बड़ा फर्क था सुलेमान और रफीक में. सुलेमान ने कभी किसी औरत को ऐसी नज़र से नहीं देखा था वो सिर्फ उनको चखना चाहता था. वहि रफीक उसका अराम से स्वाद लेना चाहता था. सुलेमान को काव्या एक रंडी की तरह लगती थी जिसको वो अपने निचे सुलाके उसको अपने लंड से तडपाना चाहता था ठीक जैसे वो सलमा को चोद रहा था, रगड़ रहा था. पर रफीक एक नवयुवक था उसके दिल में प्रेम के भाव जाग रहे थे. काव्या उसको किसी गुडिया की तरह लग रही थी. जिसके वो बाल बनाना चाहता था, श्रृंगार कराना चाहता था, उसको नेह्लाके उसको कपडे पह्नाके एक दम दुल्हन की तरह सजा धजा के प्यार करना चाहता था. उसके साथ मनपसंद भोजन करना चाहता था, खेलना चाहता था. उसको लिपट के सोना चाहता था. गहरी नींद में सोयी हुयी काव्या उसको उस मादक और खुबसूरत सेक्स डॉल की तरह लग रहि थी जिसके साथ वो अपनी हर तमन्ना पूरी कर सके.

अपने मन में प्रेम के असीम भाव जगाकर रफिक को बहुत सुकून मिल रहा था. उसके अंतर्मन में प्रेम के उच्त्तम भाव जग रहे थे. उसके लिए काव्या उस वक़्त सबसे नाजुक सुंदरी थी और उसके लिए बस उसको संभाल के रखना ही मानो जिम्मेवारी थी. ब्यूटी एंड बीस्ट के माफिक एक नाजुक रिश्ता उमढ रहा था. किन्तु मनुष्य को ये पता ही नहीं चलता के कब वो प्रेम के इस कोमल भाव से वासना के सख्त भाव पे परिवर्तित हो जाता हैं. प्रेम जहा राफिक को काव्या से ऊर्जा दे रहा था वहि वासना अब उसको उसी उर्जा से उकसा रही थी. और हुआ यही रफीक ने अपने आखे खोली और उसकी नज़रे काव्या की जान्घो पे फिर से आ गयी. काव्या सोयी भी ऐसी थी के उसके अंतरपटल साफ़ दिख रहे थे. जो रफीक के प्रेम का मजाक उड़ा रहे थे. उसकी हालात ऐसी हो गयी थी के मानो किसी भूके के सामने चिकन तंदूर रखा हो और उस दिन उपवास आ जाये. खैर काव्या की सुन्दरता और मादकता के सामने एक बार फिर उसने घुटने टेक दिए और उसने उस भूके इंसान के तरह अपना हाथ बड़ी निडरता से काव्या की जांघो की और फिर से मोड़ दिया.

बहुत धीरे से उसने उसका पेटीकोट और ऊपर की और ढकेला. उसकी धड़कने तेज़ हो गयि थी. फिर भी उसका तना हुआ लिंग उसको धीरज दे रहा था. उसका मूह और उसकी आखे जाने कितने समय से खुली थी. पेटीकोट पूरा ऊपर हो गया था उसकी मेहनत को फल मिल गया. काव्या की पूरी पयांटी उसके आँखो के सामने थी. गोरी दूध जैसे जांघो में उसकी ब्रांडेड निकर उसके खूबसरती को चार चाँद लगा रही थी. किसी सेक्सी मॉडल की तरह वो उस समय प्रतित हो रही थी. इतने सुडोल पैर, जांघे और निकर में उभरी हुई चूत देखके रफीक की तो किस्मत सवार गयी. पोर्न फिल्मो में उसने अभी तक ऐसे दृश्य देखे थे. आज बड़ा ही वो खुदको किस्मतवाला समझ रहा था. उसको छूने की लालसा जाग रही थी. कामूक किताबे. पिक्चरे देख के उसका मन हर उस बात से अवगत था जो पूर्ण रूप से आनंद दान दे सके.

आगे की कहानी अगले भाग में ........
 

deeppreeti

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6. गाँव की डॉक्टर साहिबा

Part 14


उसने उसी पोर्न फिल की तरह बहुत धीरे से अपने दोनों हाथ काव्या के पैरो के बाजु में रखे. और खुदको को झुकाके उसके जांघो की तरफ मूह ले लिया. बहुत ही धीरे धीरे वो ये सब किये जा रहा था. काव्या की जांघो से आती हुयी मादक खुशबू उसको करीब से सुंघनी थी. उसने ठीक वैसा ही किया अपनी नाक को उसके बड़ी कुशलता से उसके गद्देदार जांघो से सटा दिया.

“आह...रंडी....मेरा निकल रहा हैं...आह..”

वहां सुलेमान अब अपनी चरम सीमा पे खड़ा था. उसका लंड अब सलमा की चूत खा के तृप्त होने जा रहा था. सलमा जो बस कुछ ही पल के पहले अपना पानी छोड़ गयी थी. उसको भी ये अंदाजालग गया के सुलेमान अपनी पिचकारी कभि भी छोड़ सकता हैं. लेकिन उस भोली कमसिन को ये नहीं समझ रहा था के वो लंड और अन्दर की तरफ क्यों सरका रहा हैं. तभी सुलेमान अपने आखरी धक्के देते हुए बोल पड़ा,

”आह...मेरी रंडी..बोल हमारी मदत करेगी न...”

“किस बात में भड़वे...आह..”

लंड और चूत के अन्दर की और घुसाते वो बोला, “कल तू उस डोक्टोरनी से मिलने जाएगी,,आह...और..और उसको मेरे घर तक लाएगी..”

“आह,...तेरे पाप में मुझे क्यों मिला रहा हैं...नहीं करती मैं ऐसा कुछ...”

“रंडी..तेरी क्या जा रही हैं....आह...इतना नहीं कर सकती क्या ...लंड तो ले रही हैं गपा गप...”

“नही...आह...म्म...नहीं करुँगी...क्या करेगा तु...कमीने....”, गुस्से से और कसमसाते हुए सलमा ने जवाब दिया.

“साली तू ऐसी नहीं मानेगी..रुक तेरा इन्तेजाम हैं मेरे पास..”

ऐसा बोलकर सुलेमान ने सलमा को जोर से अपनी बाहों में भींच लिया और उसके होठो को अपने होठो में कैद कर डाला. उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी के सलमा हिल भी नही पा रही थी. उसका नाक उसकी नाक से साँसे चुरा रहा था. होठ उसके होठो की गिरफ्त में थे. बड़े कस के वो उस्को चूस रहा था. अपना बदन फेविकोल की तरह चिपकाके दोनों भी पसीने से एकदम लदबद खाट पे पड़े थे. वैसे ही अंग से अंग रगडके सुलेमान ने वो किआ जो सलमाने कभी सोचा ही नहीं था. उसने सलमा के चूत में अन्दर तक घुसे अपने लंड से वीर्य की धार सर्रर्रर्र ... बोलके छोड़ डी.

उसका लिंग आधे घंटे से फुला हुआ था. मुसल लंड सलमा की चूत में ही अपना वीर्य थूक रहा था. एक बड़ी पिचकारी ऐसे निकली के वो सलमा के बच्चेदानी पे जा कर ही रुक गयी. गरम गरम लावा उसको महसूस हुआ. सलमा ने भी आह निकली, “हाअय्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य...हाआआआआआआ..गयीईईईई
ईईईईईईईईईईईईईईईईए....मीईईईईईईई,,,,हाआआआअ..कमीने.....कुत्ते”

पहली बार किसी ने कमसिन के चूत के अन्दर अपना पानी छोड़ा था. सलमा उस वक़्त सब चीजो से परे हो गयी. उसकी आवाज भी कमजोर गिरने लगी और उसकी आँखे संतुष्टि से बंद हो गयी और साथ ही नये अनुभव में उसका अंतर्मन लीन हो गया.

“आः.......रंडी.......ले साली.....आह...काव्या....”

सुलेमान वैसे हो दबोच के सलमा के चूत में अपने लंड की पिचकारी छोड़े जा रहा था. कुछ समय के बाद उसके लंड ने पिचकारी बंद कर दी. सलमा की चूत से उसका वीर्य निचे सर्र होक टपक रहा था. दोनों निढाल हो पड़े थे. सुलेमान वैसे ही उसके बदन पर चिपके हुए ढेर हो गया. काव्या का नाम अंतिम क्षण में लेके जैसे उसने आने वाले समय के संकेत दिए. पसीना शराब और वीर्य तीनो की खुशबू से झोपडी का समा रंगीन हो गया था. सत्तू बाजु में ही शराब में चूर अपना लंड हाथ में लिए अभी भी इंतज़ार में लगा हुआ था. शायद उसको आज इंतज़ार से ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला था. तभी मौसम ने भी रुख बदल दिया. शाम होने को थी गाँव क बादलो ने भी इस नज़ारे पे करवट बदल दी. आसमान में बादल आने लगे. और हलकी सी बूंदा बंदी शुरू हो गयी.

बस फिर क्या? अब वो उसके वश में हो गया था. उसने अपनी हिम्मत बढाई और दायने हाथ की उँगलियों से काव्या की प्यांति को एक तरफ से उठा लिया और बाए हाथ से उसको बहुतही हल्का सा महसूस किया. प्यांति बाजु में करने के कारन काव्या की चूत पूरी बाहर आ गयी. कुछ भी हो आज काव्या की चूत का दर्शन बार बार मिल रहा था. कुछ घंटो के पहले ही झाड़ियो में उसकी चूत ने अपना पेशाब छोड़ा था तब सब ने उसका नयनसुख लिया. और अब तो इतने करीब से कोई उसके साथ अपनी उँगलियों से खेल रहा था. वक़्त इतना तेज़ी से करवट बदलेगा ये तो काव्या की खुबसूरत चूत को भी पता चल गया होगा.

रफीक ने एक टक से उसकी चूत पे नजर डाली. उसका लंड तो मानो चीख रहा था, कबका कच्छे के बाहर आकर दंगल मचा रहा था. बस उसको चाहिए था वो सुनहरा छेद जिसका मजा रफीक की आँखे उठा रही थी. रफीक थोडा नजदीक गया. उसने अपनी जुबान काव्या के अंगो पे बेहद धीरे से चलाई. बड़े कोमलता से वो उनको चाट रहा था. उसका रोम रोम उत्तेंजित हो रहा था.

उसने अपनी नाक काव्या के योनी पे टिकाई. उसकी मादक खुशबू लेकर के वो और बेकाबू हो गया. उसने अपने बाये हाथ की बिच वाली ऊँगली काव्या के चूत के ऊपर से नीचे की तरफ बहुत ही हलके से घुमाई. वो स्पर्श, वो एहसास, वो महक उसकी उत्तेजना को सीमा पार बढ़ा रही थी. अब प्रेम जो चरम सीमा पर था वो रफीक को अलग दुनिया में ले जा रहा था. उसी बहाव में बहते उसकी जबान उसके मूह से बाहर आ गयी. बिना कुछ देरी लगाते उसकी उँगलियों की जगह उसके जबान ने ले ली. और देहाती नवयुवक ने देखते ही देखते शहरी राजसी महिला के मखमली चूत पे अपनी जबान फिरा दी.

यहाँ दूसरी और सलमा की जबान और मूह भी कहा खुले थे. सत्तु मादरजाद अपना मुसल लंड उसके मूह में दबाते जा रहा था. उसके बालों को पकड़ के वो लंड को पूरी तकाद से उसके मूह के अन्दर बाहर कर रहा था.

“आह...रंडी...सलमा....चूस....रंडी...”

उम..उ...ऊउम्मम्म...की आवाज के अलावा सलमा के पास कोई शब्द नहीं थे. मुसल लंड उसके मूह चोदे जा रह था. उसकी चीखे आवाज सब दब रही थी. ऊपर से सुलेमान का सांड जैसा बदन उसके ऊपर कहर बरसाके सो गया था.

गल्प गल्प.....कर कर के सलमा का मूह को अछि तरह चोद के सत्तू अपनी प्यास बुझा रहा था. उसने अपने एक हाथ से सलमा के दूध के ऊपर की घुंडी को चिकोटी काट ली.

“आई.....हाई.....चूस रंडी....जोर लगा..:”

सालमाँ की आँखों से पानी टपक गया. वो पानी रोने का नहीं था बस एक मीठा सा दर्द था. जो अब उसको सहने की आदत लग गयी थी. लंड का पसीना, खोली में शराब का असर उसका गला सुखा रही थी. बस राहत थी तो बाहर से आती हुई ठंडी हवा और मीट्टी की खुशबु. उसके मूह से निकलती थूक से सत्तू का लंड पूरा का पूरा भीग गया था. सलमा को भी ये पता था के दोनों कलुटो से पीछा छूडाना हैं तो उसको खुद खेल में उतरना ही होगा. ठीक जैसे सुलेमान के साथ उसने अपना सहयोग दिखाया. उसने वक़्त ना गवाते ठीक उसी समय अपने बाय हात मे सत्तू का लंड पकड़ा और मूह के अन्दर चलने दिया.

सत्तू ये देख के बहुत खुश हुआ और बोल पड़ा..”आज पक्की रंडी बन गयी हो सलमा...आः...मजा आ गया तुमको ऐसा देखके.,,...मेरी रंडी...चूस और चूस...“

वासना भी अजीबी होती हैं. हर वो शरीर का पुर्जा जो इसमें जुट जाए वो पूरी तरह से उसके आधीन हो जाता हैं. एक तरफ एक लंड और एक तरफ एक चूत दोनों को भी बड़ी तबियत से चूसा जा रहा था.

रफीक जो बेकाबू बन गया था उसने अपने होठ काव्या के चूत को लगा दिए. उसको कुछ खारा और मीठा मिक्स स्वाद आने लगा. वो बस उसको और चखना चाहता था. उसने बेकाबू में अपनी जीभ को थोडा अन्दर की और सरकाया..और काव्या के मूह से पहली बार सिसक निकल गयी....स्स्सीईईई.......

रफीक की मानो साँसे रुक गयी. वो वैसे ही प्यांति को पकड़ के जुबान अन्दर डालके अटक गया. बिलकुल किसी मूर्ति के माफिक. पर काव्या ने जो बडबडाया उसको देख के उसने चैन की सांस छोड़ी..

“ऊओम्म्म......रमण,,,,लव मी,...बेबी.....”

काव्या नींद में रमण के ख्वाब देख रही थी. उसके योनी में लगी आग उसके नींद को भड़का रही थी. उसका दीमाग समझ रहा था के वो पति रमण के साथ हैं और रमण उसको प्यार कर रहा हैं. खैर रमण की याद में खोयी काव्या को सपनो में देख रफीक को समझ गया वो अभी भी नींद में ही हैं. उसने अपना ध्यान फिर से काव्या की चूत पे ले लिया पर अपने नज़रे काव्या के चेहरे पे ही रखी.

अपना दबाव उसने बड़ी आहिस्ते से काव्या के चूत पे बढ़ाया. उसको अपनी जीभ से वो चाट रहा था. बहुत ही नाजुकता से और धीरे से वो ये सब कर रहा था. उसको हर वो सिन याद रहा था जिस पोर्न में वो लड़का उस महिला की योनी में अपन मूह दबाता हैं, उसको चाटता हैं. उसी तरह से वो कर रहा था.उसने मूह ऊपर किया और अपना थूक काव्या के योनी पे बड़े तरीके से थूक दिया. काव्य की चूत उससे लदबद भर गयी. बस फिर क्या उसने उसके चूत के समुन्दर में अपना मूहसे एक छलाग लागा दी. और जीभ को अन्दर की और सरकाने का प्रयास शुरू रखा.

यहाँ वो चाट रहा था वह काव्या सिसक रही थी काव्या की हर सिसक की तरफ ध्यान डे के वो सब कर रहा था. वही दूसरी तरफ सलमा जो के सत्तू का लंड चूस रही थी. जैसे सब तरफ वासना ने अपनि बाजी चलायी थी फरक था तो किसिकी आँखे खुली थी किसीकी बंद. कोई जाग रहा था तो कोई नींद में था.

आगे की कहानी अगले भाग में ........
 

karan77

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एक नम्बर के हरामी बूढ़े

Update 04


सेक्स चीज़ ही ऐसी है की इसमें जितनी सीमाओं का उल्लंघन होता है उतना ही मज़ा आता है।


"आआआआअहह....म्*म्म्ममममममम म.........उंकलीईई.......ऊऊफोफ़ फ्फूफ्फ.........नहियीईईईई.......म्*म्म्मममममाआआ.........
क्य्आअ काआरररर रहीई हूऊऊऊओ.....चछूड्डू.........मुझीईए"इस तरह की आवाज़ें मेरे मुँह से निकल रही थी।


कंदर अंकल कुछ देर तक हम दोनो के खेल देखते रहे। उनका लिंग पूरी तरह तन चुका था। पूरी तरह तना हुआ उनका लिंग काफ़ी मोटा और लंबा था। वो अपने लिंग को हाथों में लेकर सहला रहे थे। मुझे उनपर दया आ गयी और मैने हाथ बढ़ा कर उनके लिंग को अपने हाथों में थाम लिया। अब मैं अपने हाथों से उनके लिंग को सहला रही थी। मेरी आँखें उत्तेजना से बंद हो गयी थी। कंदर अंकल मेरे बूब्स को सहला रहे थे। फिर उन्होंने झुक कर मेरे निपल को अपने मुँह में भर लिया और हाथों से उस बूब को मसलते हुए मेरे निपल को चूसने लगे। मानो मेरे स्तन से दूध पी रहे हों।


अचानक मेरे बदन में ऐसा लगा मानो किसी ने बिजली का तार छुआ दिया हो। मैं ज़ोर से तड़पी और मेरी योनि से रस बह निकला। मैं खल्लास हो कर बिस्तर पर गिर पड़ी। अब कंदर अंकल ने आगे बढ़ कर मेरे सिर को बालो से पकड़ा और मेरे होंठों पर अपने लिंग को रगड़ने लगे।


" ले मुँह खोल। इसे मुँह में लेकर चूस" मैने अपना मुँह खोल दिया और उनका मोटा लिंग मेरे मुँह में घुस गया। मैने उनके लिंग को अपने हाथों से पकड़ रखा था जिससे एक बार में पूरा लिंग मेरे मुँह में ना ठूंस दें। पहले वो धीरे धीरे अपने कमर से धक्के मार रहे थे लेकिन कुछ ही देर में उनके धक्कों की गति बढ़ती गयी। वो अब ज़ोर ज़ोर से मेरे मुँह में धक्के लगाने लगे। मेरे हाथ को अपने लिंग से उन्होंने हटा दिया जिससे उनका लिंग जड़ तक मेरे मुँह में घुस सके। उनका लिंग मेरे मुँह को पार करके मेरे गले के अंदर तक घुस रहा था। लेकिन आगे कहीं फँस जाने के कारण लिंग का कुछ भाग बाहर ही रह रहा था। मैं चाह रही थी की वो मुँह में ही खल्लास हो जाए जिससे मेरी योनि को करने लायक दम नही बचे। लेकिन उनका इरादा तो कुछ और ही था।


" शर्मा तू रुक क्यों गया फाड़ दे साली की चूत।" कंदर अंकल ने कहा। शर्मा अंकल कुछ देर सुस्ता चुके थे सो अब वापस मेरी टाँगों के बीच आकर उन्होंने अपने लिंग को मेरी योनि के छेद पर सटाया और एक धक्के में पूरे लिंग को जड़ तक अंदर डाल दिया। अपने लिंग को पूरा अंदर करके वो मेरे ऊपर लेट गये। उनके बॉल्स मेरी योनि के नीचे गाँड़ के छेद के ऊपर सटे हुए थे। मैने उनके लिंग को अपनी योनि में काफ़ी अंदर तक महसूस किया। कंदर अंकल मेरे मुँह में अपना लिंग ठूंस कर धक्के मारना कुछ समय के लिए भूल कर शर्मा अंकल के लिंग को मेरी योनि के अंदर घुसता हुआ देख रहे थे। फिर दोनो एक साथ धक्के लगाने लगे। दोनो दो तरफ से ज़ोर ज़ोर से धक्के लगा रहे थे। मेरा बदन दोनो के धक्कों से बीच में आगे पीछे हो रहा था। कुछ देर इसी तरह करने के बाद कंदर अंकल का लिंग फूलने लगा। मुझे लगा की अब उनका रस निकलने वाला ही है। मैं उनके लिंग को अपने मुँह से उगल देना चाहती थी लेकिन उन्होंने खुद ही अपना लिंग मेरे मुँह से निकाल लिया। वो मेरे मुँह में नही शायद मेरी चूत में अपना रस डालना चाहते थे। दो मिनिट अपने उत्तेजना को काबू में कर के वो शर्मा अंकल के करीब आए।


" शर्मा ऐसे नही दोनो एक साथ करेंगे।" कंदर अंकल ने कहा।


" दोनो कैसे करेंगे एक साथ।" शर्मा अंकल ने मेरी योनि में ठोकते हुए कहा। " मैं इसकी गाँड़ में डालता हू और तू इसकी चूत फाड़" कह कर कंदर अंकल मेरे बगल में लेट गये। शर्मा अंकल ने अपना लिंग मेरी योनि से निकाल लिया।


मैं बिस्तर से उठी। मैने देखा की कंदर अंकल का मोटा लंड छत की ओर ताने हुए खड़ा है।


" आजा मेरे ऊपर आजा।" कंदर अंकल ने मुझे बाँह से पकड़ कर अपने ऊपर खींचा। मैं उठ कर उनके कमर के दोनो ओर पैर रख कर बैठ गयी। उन्होंने मेरी दोनो नितंबों को अलग कर मेरे आस होल के ऊपर अपना लिंग टिकाया।


" अंकल मैने कभी इसमें नही लिया। बहुत दर्द होगा। " मैने उनसे हल्के से मना किया। मुझे मालूम था की मेरे मना करने पर भी दोनो में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नही होगा।


मुझे कमर से पकड़ कर उन्होंने नीचे खींचा। लेकिन उसका लिंग थोड़ा भी अंदर नही घुस पाया।


" शर्मा तेल लेकर आ। साली इस होल में अभी भी कुँवारी है। काफ़ी टाइट छ्ल्ला है।"


शर्मा अंकल बिस्तर से उतर कर किचन में जाकर एक तेल की कटोरी ले आए। कंदर अंकल ने ढेर सारा तेल अपने लिंग पर लगाया और एक उंगली से कुछ तेल मेरे गुदा के अंदर भी लगाया। एक उंगली जाने से ही मुझे दर्द होने लगा था। मैं "आआहह" कर उठी।


वापस उन्होंने मेरे दोनो चूतरों को अलग करके मेरे गुदा द्वार पर अपना लिंग सेट करके मुझे नीचे की ओर खींचा। इसमें शर्मा अंकल भी मदद कर रहे थे। मेरे कंधे पर अपना हाथ रख कर मुझे नीचे की ओर धकेल रहे थे। मुझे लगा मानो मेरी गुदा फट जाएगा। लेकिन इस बार भी उनका लिंग अंदर नही जा पाया। अब उन्होंने मुझे उठा कर चौपाया बनाया और पीछे से मेरे छेद पर अपना लिंग टीका कर एक ज़ोर का धक्का मारा। दर्द से मेरी चीख निकल गयी। लेकिन इस बार उनके लिंग के आगे का सूपाड़ा अंदर घुस गया। मुझे बहुत तेज दर्द हुआ और मेरी चीख निकल गई-"उईईईईईई माआआआआ मररर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर गैईईईईईईईईईईईईईईईईई"


"माआआअ…………ऊऊऊफफफफफफफफ्फ़……माआआअ" मैं कराह उठी।


धीरे धीरे उनके लिंग में हरकत आ गयी और वो मेरी गुदा के अंदर आगे पीछे होने लगी। धीरे धीरे दर्द भी कम हो गया। कुछ देर बाद मैने अपने हाथ से छू कर देखा तो पाया उनका लिंग पूरा मेरे होल में समा चुका था। अब इसी तरह मेरे गुदा में धक्के मारते हुए उन्होंने मेरी कमर को अपनी बाहों में लिया और पीछे की ओर लुढ़क गये। अपनी गुदा में उनका लिंग लिए-लिए ही मैं उनके ऊपर लेट गयी। अब शर्मा अंकल ने मेरी टाँगों को उठा कर मेरे सीने पर मोड़ दिया। इससे मेरी चूत उनके सामने हो गयी। उन्होंने अब मेरी चूत की फांकों को अलग करके मेरे अंदर अपना लिंग प्रवेश कर दिया। अब दोनो आगे और पीछे से मेरे दोनो होल में धक्के मारने लगे। मैं उनके बीच में सॅंडविच बनी हुई थी। दोनो इस तरह ज़्यादा देर नही कर पाए। कुछ ही देर में कंदर अंकल ने अपना रस मेरी गुदा के अंदर डाल दिया और नीचे से निकल कर अलग हो गये। अब शर्मा अंकल ही सिर्फ़ धक्के लगा रहे थे। काफ़ी देर तक धक्के देने के बाद उनके लिंग ने मेरी योनि में पिचकारी की तरह रस छोड़ दिया। हम तीनो अब बिस्तर पर लेटे लेटे हाँफ रहे थे। कंदर अंकल उठ कर फ्रीज से ठंडे पानी की बॉटल निकाल कर ले आए। हम तीनो अपनी अपनी प्यास बुझा कर थोड़े शांत हुए। मगर मैं इतनी जल्दी शांत होने वाली थी नही। मैं दोनो के लिंग सहला कर वापस उन्हे उत्तेजित कर रही थी। दोनो शांत पड़े हुए थे। मुझे गुस्सा तो तब आया जब मैने कंदर अंकल के ख़र्राटों की आवाज़ सुनी।


" क्या अंकल इतनी जल्दी सो गये क्या।" मैने उन्हे हिलाया मगर उनकी आँख नही खुली।


" चल छोड़ इन्हे। मैं हूँ ना। तू तो मेरे लिंग से खेल। " कह कर वो मेरे बूब्स को मसल्ने लगे। मैं करवट बदल कर पूरी तरह उनके बदन के ऊपर लेट गयी। मेरा सिर उनके बालों भरे सीने पर रखा हुआ था चूचिया उनके छाती की ऊपर चपटी हो रही थी। और योनि के ऊपर उनका लिंग था। इसी तरह कुछ देर हम लेटे रहे। फिर मैने अपनी दोनो कोहनी को मोड़ कर उनके सीने पर रखी और उसके सहारे अपने चेहरे को उठाया। कुछ देर तक हमारी नज़रें एक दूसरे में खोई रही फिर मैने पूछा।


"अब तो आपकी मुराद पूरी हो गयी?" मैने पूछा


" हां… जब से तुम इस बिल्डिंग में रहने आई हो मैं तो बस तुम्हे ही देखता रहता था। रात को तुम्हारी याद कर के करवटें बदलता रहता था। लेकिन तुम मेरी बहू के उम्र की थी इसलिए मुझमें साहस नही हो पाता था कि मैं तुम्हे कुछ कहूँ।…… मुझे क्या मालूम था कि गीदड़ की किस्मत में कभी अंगूर का गुच्छा टूट कर भी गिर सकता है।"


"एक बात बताओ? सपना भी तो इतनी खूबसूरत और सेक्सी है। उसे चोदा है कभी?" मैने उन्हे उनकी पुत्रवधू के बारे में पूछा।


"नही, कभी मौका ही नही मिला। एक बार कोशिश की थी। लेकिन उसने इतनी खरी खोटी सुनाई की मेरी पूरी गर्मी शांत हो गयी। उसने दीपू से शिकायत करने की धमकी दी थी। इसलिए मैने चुप रहना ही उचित समझा।"


"बेचारी…उसे क्या मालूम कि वो क्या मिस कर रही है।" मैने उनके हल्के हल्के से उभरे निपल्स पर अपनी जीभ फिराते हुए कहा।


फिर हम दोनो एक दूसरे को चूमने चाटने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने मुझे बिस्तर से उठाया और अपने साथ लेकर ड्रेसिंग टेबल के पास गये। मुझे ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा करके मेरे बदन से पीछे की ओर से लिपट गये। हम दोनो एक दूसरे में हमारे गूँथे हुए अक्स देख रहे थे। मुझे बहुत शर्म आ रही थी। उनके हाथ मेरे बूब्स को मसल रहे थे, मेरे निपल्स को खींच रहे थे, मेरी योनि में उंगलियाँ डाल कर अंदर बाहर कर रहे थे। मैने महसूस किया कि उनका लिंग अब वापस खड़ा होने लगा है। फिर वो मुझे लेकर बिस्तर के किनारे पर आकर मुझे झुका दिया। उनके झुकने से मैं बिस्तर पर सोए हुए कंदर अंकल पर झुक गयी थी। मेरे पैर ज़मीन पर थे। पीछे से शर्मा अंकल ने अपने लिंग को मेरे योनि के द्वार पर सेट किया। एक धक्का देते ही उनका लिंग योनि में घुस गया। अब तो योनि में घुसने में उसे कोई भी तकलीफ़ नही हुई। वो पीछे से धक्के लगाने लगे। साथ साथ वो अपने दोनो हाथों से मेरे बूब्स को भी मसल रहे थे। मेरा सिर कंदर अंकल के लिंग के कुछ ऊपर हिल रहा था। मैने एक हाथ से उनके ढीले पड़े लिंग को खड़ा करने की नाकाम कोशिश की मगर मेरे बहुत चूसने और सहलाने के बाद भी उनके लिंग में कोई जान नही आई। शर्मा अंकल ने उसी तरह से काफ़ी देर तक धक्के मारे। मेरा वापस रस बह निकला। मैं निढाल हो कर बिस्तर पर गिर पड़ी। शर्मा अंकल ने अपने हाथों से पकड़ कर मेरी कमर को अपनी ओर खींचा और वापस धक्के मारने लगे। कुछ ही देर में उनका भी रस निकल गया। हम वापस बिस्तर पर आकर सो गये। सुबह सबसे पहले कंदर अंकल की नींद खुली। मैने अपने शरीर पर उनकी कुछ हरकत महसूस की तो मैने अपनी आँखों को थोड़ा सा खोल कर देखा की वो मेरी टाँगों को अलग कर के मेरी योनि को देख रहे थे। मैं बिना हीले दुले पड़ी रही। कुछ देर बाद वो मेरे निपल्स को चूसने लगे। उनके चूसे जाने पर नरम पड़े निपल्स फिर से खड़े होने लगे। कुछ देर बाद वो उठ कर मेरे सीने के दोनो तरफ अपनी टाँगे रख कर मेरे दोनो बूब्स के बीच अपने लिंग को रखा फिर मेरे दोनो बूब्स को पकड़ कर अपने लिंग को उनके बीच दाब लिया फिर अपने कमर को आगे पीछे करने लगे। मानो वो मेरी दोनो चूचियो के बीच की खाई नही होकर मेरी योनि हो। उनकी हरकतों से मुझे भी मज़ा आने लगा। मैं भी फिर से गर्म होने लगी। लेकिन मैने उसी तरह से पड़े रहना उचित समझा।


कुछ देर बाद वो उठ कर मेरे दोनो टाँगों के बीच आ गये। अब तक उनके उस मोटे लिंग को मैने अपनी योनि में नही लिया था। मैं उनके लिंग का अपनी योनि में इंतजार करने लगी। वो शायद जान गये थे कि मैं जाग चुकी हूँ इसलिए वो मेरी योनि और गुदा के ऊपर अपने लिंग को कुछ देर तक फिराते रहे। मैं हार मान कर अपनी कमर को ऊपर उठाने लगी। लेकिन उन्होंने अपने लिंग को मेरी योनि से हटा लिया। मैने तड़प कर उनके लिंग को अपने हाथों में थाम कर अपनी योनि में डाल लिया। उनके लिंग को लेने एक बार में हल्की सी दर्दीली चुभन महसूस हुई लेकिन उसके बाद उनके धक्कों से तो बस आनंद आ गया। मैं भी उनका पूरी तरह सहयोग देने लगी। वो मेरे ऊपर लेट गये। उनके होंठ मेरे होंठों पर फिरने लगे। उनके मुँह से बासी मुँह की बदबू आ रही थी। लेकिन इस समय उस बदबू की किसे परवाह थी। मुझे तो सिर्फ़ उनके धक्के याद रहे। काफ़ी देर इसी तरह करने के बाद उन्होंने अपना रस छोड़ दिया।


तब तक शर्मा अंकल भी उठ गये थे। वो भी हम दोनो के साथ हो लिए। शाम तक इसी तरह खेल चलते रहे। हम तीनो एक दूसरे को हराने की पूरी कोशिश में लगे हुए थे। उस दिन उन बूढो ने मुझे वो मज़ा दिया जिस की मैने कभी कल्पना भी नही की थी। कंदर अंकल के साथ फिर तो कभी सहवास का दुबारा मौका नही मिला लेकिन जब तक मैं उस अपार्टमेंट में रही तब तक मैं शर्मा अंकल से चुदवाती रही। आखिर दोंनों ही एक नम्बर के हरामी बूढ़े थे।



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badhiya
 

deeppreeti

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7. ठरकी राजा की रखैल

Update 01


मैं वृंदा पहली बार अपना एक स्वप्न प्रस्तुत कर रही हूँ, मुझे अक्सर इस तरह के स्वप्न आते हैं !

और मैंने आज तक किसी को इनके बारे में नहीं बताया है, आज पहली बार बहुत हिम्मत करके लिखने का प्रयास कर रही हूँ !

इस स्वप्न में मैं एक ऐसे देश में पहुँच गई हूँ जहाँ का राजा बहुत ही क्रूर और कामोत्तेजित है, उसके देश में लड़कियाँ जैसे ही जवान होती हैं, उन्हें राजा के पास एक महीने के लिए भेज दिया जाता है और वो उनका कामार्य भंग करता है, उन्हें भोगता है और एक महीने बाद उन्हें अपने घर वापिस भेज देता है।

यदि कोई लड़की उसके बाद माँ बनती है, तो उसकी महल में वापसी राजा की रखैल के रूप में होती है वो वहाँ बच्चे को जन्म देने और चालीस साल पार करने के बाद दासी बन कर रहती है, जो कोई परिवार अपनी बेटी को राजा से भोग लगवाने नहीं भेजता, उसकी बेटी उठवा ली जाती और उसकी बाज़ार में बोली लगवाई जाती, जो उसे खरीदता वो सबके सामने उसे चोदता, खसोटता और उसे अपनी नोकरानी बना कर रखता अपने ख़ास आदमियों से उसे चुदाता और जब मन भर जाता तो फिर किसी को बेच देता!!

इस तरह जब मैंने वहाँ कदम रखातो बहुत से मर्द मुझे बेचैन निगाहों से देखने लगे मेरे आसपास मंडराने लगेकोई मेरी गाण्ड छूकर चला जाता तो कोई फबतियाँ कसता यह कहते हुए कि आज तुझेरखैल नहीं, अपनी रानी बनाऊँगा।

एक ने तो हद ही कर दी, पीछेसे आते हुए मेरी अन्तःचोली कपड़ों के भीतर से ही खोल दी !!! वहाँ कहीं जाकरचोली फिर से बंद करने की जगह नहीं थी तो मैं कुछ आगे बढ़ी, चलने से मेरी चूचियाँ हिलने लगी, तो एक आदमी सामने से आया और कहने लगा- तुम से नहीं संभल रही तो मैं थाम लूँ !!

उस पर मैंने उस आदमी पर हाथ उठा दिया, उसने हाथ पकड़ लिया और मुझे अपनी और खींच कर दूसरे हाथ से मेरी चूचियाँ मसल दी।

तभी वहाँ खड़े भूखे मर्द मेरी और बढ़ने लगे और बोले- आओ, इसे राजा के पास ले जाते हैं ! खूब बड़ा इनाम मिलेगा !

और सभी मुझे पकड़ कर राजा के दरबार में ले गए, दरबार बहुत बड़ा था, वहाँ बहुत सी दासियाँ थी, सभी दासियाँ अधनंगी थी, आते जाते मंत्री, तंत्री, रक्षक उन दासियों को छेड़ रहे थे, उनका बदन मसल रहे थे, बहुत कामुक माहौल था।

राजा ने सुनवाई शुरू की तो एकरखैल राजा की गोद में आ बैठी। राजा ने उसके बदन से सारे कपड़े उतार दिए औरसुनवाई करते करते अपना लण्ड चुसवाने लगा।

सभी मंत्री इतनी सारी नंगी औरतों को देख कर अपना लण्ड अपने हाथों से मसल रहे थे।

तभी मेरी सुनवाई की बारी आई, बाहर हुई घटना विस्तार में बताई गई।

सब कुछ सुनकर राजा ने पूछा- इतना गुरूर किस बात का तुझे लड़की...? आखिर ऐसा क्या है तेरे पास? ये चूचियाँ? यह गाण्ड? यह चूत? ये तो हर औरत के पास होती है और इस देश में औरतों की कमी नहीं ! मेरी एक आवाज़ पर यहाँ चूतों की कतार लग जाती है।

तभी वो अपनी रखैल को चूमने लगा और उसने अपनी रखैल को कुछ इशारा किया और ताली बजाई।

रखैल उसके पैरों के पास लेट गईऔर हवा में टांगें करके उसने अपनी टांगें खोल के चूत उसके सामने पेश कर दी।देखते ही देखते बीस-पच्चीस रखैलें आई और अपनी टांगें खोल कर हर मंत्री केसामने चूत पेश करने लगी !!

मंत्रियों के मसलते लण्ड फुफकारने लगे, और सभी ने रखैलो की चूतों में अपने अपने लण्ड घुसा दिए और चुदाई करने लगे।

राजा ने पूछा- अब बोल लड़की !

मैं शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी, मैंने राजा से जबान लड़ाई- आप यह सब क्यों कर रहे हैं...?

राजा बोला- ताकि तुझे तेरी औकातपता लगे कि तुम औरतें सिर्फ मर्दों से चुदने और चूसने-चुसवाने के लिए पैदाहोती हो ! हाथ उठाने के लिए नहीं, और अगर हाथ उठ भी जाता है तो भी लण्ड के लिए उठना चाहिए...!!!

कहते हुए राजा ने फैसला सुनाया- आज से लेकर कल इसी समय तक तेरी लगातार चुदाई होगी और वो भी भरे महल में..!!!

राजा: सिपाहियो ले जाओ इस लड़की को और तैयार करो हमारे लिए ! इसकी अक्ल तो हम ठिकाने लगायेंगे, आजकल बहुत पर निकल आए हैं इन रांडों के !!

मुझे महल में ले जाया गया औरस्नानघर में ले जाकर एक तालाब में कपड़ों समेत धकेल दिया गया। फिर सिपाही भीनंगे हो अन्दर उतर आए और मेरे बदन को धोने के बहाने मसलने लगे।

एक ने मेरी चूत में ऊँगली डाल दी, एक ने गाण्ड में अंगूठा घुसा दिया और हाथों की उंगलियों और हथेलियों से मेरी गोल-गोल गाण्ड को मसल कर मज़े लेने लगा।

एक ने मेरे चूचे दबोच लिए और एक मेरा दाना हिला हिला के मुझे तड़पाने लगा।

मेरे मुँह से आनन्द भरी आहें निकलने लगी।

तभी एक ने मेरे मुँह में दो उंगलियाँ डाल दी, कोई भी अपने औजार का प्रयोग नहीं कर रहा था, क्यूंकि सबको पता था कि मैं राजा का माल हूँ, और मुझ में मुँह मारना यानि जान से हाथ धोना !

तभी राजा अन्दर आया और मुझे 5-6 सिपाहियों के बीच कसमसाता देख मजे लेने लगा। मैं आँखें बंद कर आहें भर रही थी, मेरी Xforum जाग चुकी थी, आँखों में कामवासना भर चुकी थी।

तभी जाने अनजाने मेरे हाथ एक सिपाही के लण्ड तक जा पहुँचे, सिपाही झेंपते हुए पीछे हो गया यह सोच कर कि राजा को पता लगा तो लण्ड कटवा देंगे!

मैं चुदने को तड़पने लगी।

तभी राजा ने सिपाहियों को जाने का इशारा किया और मेरी कामतन्द्रा टूट गई।

राजा पानी में उतर आया और उसने मेरे कंधे पर जोर से काट खाया, मेरा खून निकलने लगा और मुझे अपनी ओर खींचा...

राजा : मैं जानता हूँ कि तू अब खुद के काबू में भी नहीं है...

मैं : जा जा ! तुझ में इतनी हिम्मत नहीं कि किसी औरत का सतीत्व बिना उसकी मर्जी के तोड़ सके ! इतनी हिम्मत होती तो क्या औरतों पर जुल्म करता? उन्हें मजबूर करके अपनी रखैल बनाता? अपने फरमान से प्रजा को दुखी करता?? नहीं, तू तो एक नपुंसक है, जब तेरी कोई भी पत्नी माँ नहीं बन सकी तो तूने बाहरी औरतों का शोषण किया, तेरे जैसा बुज़दिल और बेगैरत इन्सान मैंने आज तक नहीं देखा..!!

राजा : मैं बेगैरत..? मैं बुज़्दिल..? तो तू क्या है? रण्डियो की रानी? जब सिपाही तुझे मसल कुचल रहे थे, तब कहाँ था तेरा सतीत्व..!!!

मैं : वो तेरे आदेश का पालन कर रहे थे और अगर मैं साथ न देती तो तू उनका क़त्ल करवा देता ! मेरी वजह से किसी बेक़सूर की जान जाये, यह पाप मैं अपने सर नहीं ले सकती..!!

राजा : अच्छा !!!

यह कहते ही राजा ने मेरी चूचियों पर से कपड़ा नीचे सरका दिया। मैंने बिन कंधे का टॉप पहना था और ब्रा तो रास्ते में ही खुल चुकी थी, सो चूचियाँ उसके सामने झूलने लगी और राजा की आँखों में लालच आने लगा...

उसने मेरी चूचियाँ थामने के लिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए, मैं दो कदम पीछे हो गई, राजा भी देखते ही देखते आगे आ गया।

मेरे मन में एक तरकीब सूझी, राजा जैसे ही और आगे बढ़ा, मैंने पानी के अन्दर ही उसके लण्ड पर दबाव बनाया, राजा मन ही मन खुश हो रहा था, तभी उसकी शरारत भरी मुस्कान, दर्द भरी कराह में बदल गयी, मैंने उसका लण्ड जो मरोड़ दिया था।

राजा लण्ड पकडे वहीं खड़ा रहा और मैं वहाँ से भाग निकली।

राजा ने मेरे पीछे सैनिक लगा दिए, मैं एक शयनकक्ष में जा घुसी, शयन कक्ष खाली था, मैंने परदे उतार कर जल्दी से अपना बदन ढका, और एक मूरत के पीछे छिप गई।

तभी दरवाजे पे दस्तक हुई...



आगे की कहानी अगले भाग में ........
 
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7. ठरकी राजा की रखैल

Update 02

सिपाही: महारानी जी, यहाँ कोई स्त्री आई है..??

मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था सो मैंने जवाब दिया.. अगर जवाब न देती तो वो सिपाही अन्दर चला आता .!!!

मैं कमरे के भीतर से : नहीं यहाँ कोई नहीं आया, तुम जाओ हम कुछ देर विश्राम करना चाहते हैं..!!

सिपाही: महारानी जी, क्षमा करें, महाराज का आदेश है...!!!

तब तक मैंने महारानी के वस्त्र पहन लिए थे और खिड़की की तरफ मुँह करके खड़ी हो गई और थोड़ा सा घूँघट भी निकाल लिया..

मैं : ठीक है, आ जाओ..

सिपाही कमरे में घुसा और कमरा तलाशने लगा, मेरे पास आया और सर झुका कर कहने लगा- क्षमा कीजिए महारानी जी ! यहाँ कोई नहीं है..!!

सिपाही के जाते ही मैं भी रानी के वेश में कमरे से बाहर निकली, ताज्जुब की बात तो यह थी कि कहीं पर भी कच्छी और ब्रा नाम की चीज़ नहीं थी, मैं महारानी के वस्त्रों में तो थी पर अन्दर से एकदम नंगी

! मेरे चूचे चलते-भागते हिल रहे थे, कि तभी मैं एक जगह जाकर छुपी..... और पकड़ ली गई।

जगह थी "वासना गृह"



वहाँ राजा नग्नावस्था में था, उसके आसपास उसकी बहुत सी रखैलें थी, एक की चूची एक हाथ में दूसरी की चूची दूसरे हाथ में, तीसरी छाती पर बैठी चूत चटवा रही थी, चौथी टट्टे चाट रही थी, पांचवी लण्ड
एक बार गाण्ड में लेती फिर उछल कर चूत में लेती।


परदे के पीछे से देख देख कर मैं अपना घाघरा उठा कर ऊँगली करने लगी, महारानी के कंगनों की आवाज़ से मैं पकड़ी गई।

राजा ने आपातकाल बैठक बुलाई, राज्य के सभी मर्दों को न्योता दिया गया, राजा नग्न अवस्था में ही बैठक में आया...


राजा ने फरमान सुनाया- इस लड़की ने मुझसे चुदने से इनकार किया है, इसलिए इसकी इसी दरबार में बोली लगेगी, ऐसी बोली जैसी आज तक किसी की नहीं हुई होगी। इस बोली के बाद इसका इसी सभा में चीरहरण होगा, उसके बाद यह रखैल तो क्या किसी की दासी बनने के लायक भी नहीं रह जाएगी, इसके चीर और यौवनहरण के बाद इसकी चूत और गांड सिल दी जाएगी, चूचे और जबान काट लिए जायेंगे। और हाँ, बोली लड़की की नहीं उसकी जवानी की लगेगी, चूचे, गाण्ड, गदराया बदन, जांघें, बाहें, होंठ, बगलें जिस्म के हर हिस्से की बोली लगेगी..!!!


यह सुन कर तो मेरे होश उड़ गए.. अब और क्या होना बाकी है मेरे साथ...? मुझे मन ही मन डर लग रहा था..!!!


यह सुन सभा में ख़ुशी से शोरगुल होने लगा, लोग ठहाके लगाने लगे, फबतियाँ कसने लगे, भीड़ में से आवाज़ आई- आज मज़ा आयेगा ! मैं अभी घर से अशर्फ़ियाँ उठा लाता हूँ !

मेरी तो हवा निकल रही थी कि अब जाने आगे मेरे साथ क्या होने वाला है, इससे पहले जो हुआ वो कम था क्या...!!!
कि अचानक आवाज़ आई..

राजा : बोली ठीक15 मिनट बाद आरम्भ होगी ताकि आप सभी इस समय में इसके जिस्म का मुआयना कर लें और अपने हिसाब से बोली लगायें..!!!

मेरे जिस्म से कपड़े फाड़ कर फिंकवा दिए गए, लोगों की तो मौज हो गई।

तभी एक मंत्री ने राजा से अनुरोध किया- महाराज, क्या हम इसे छूकर देख सकते हैं? ताकि हमें भी भरोसा हो जाये कि जो माल हम खरीद रहे हैं उसमें किसी बात की कमी तो नहीं..!!!

राजा : ठीक है छू लो !! आखिर ग्राहक को भी पता होना चाहिए कि जिस चीज की वो कीमत दे रहा है वो असल में क्या है और कैसा है..!!! हा ह़ा हा हा !!

मंत्री मेरी तरफ बढ़ चला, तो भीड़ से आवाज़ आई- मंत्री जी छुइएगा नहीं ! कहीं पानी न छोड़ दे राण्ड..!!!

एक और आवाज़ आई- और अगर छू भी रहे हैं जनाब, तो मसल डालियेगा ! और हाँ ! जिस्म का कोई अंग ना रहने पाए..!!!

यह सुन कर लोग ठहाके लगाने लगे..

मैं नंगी खड़ी पानी-पानी हो रही थी, मुझे अब तक केवल पाँच लोगो ने छुआ था, राजा और उसके सिपाहियों ने और अब छठे की बारी थी।

वो आया और आते ही उसने मेरे केशों में हाथ फेरा, फिर अचानक से बालों को खींच कर उसने मुझे धक्का दिया और भीड़ की तरफ मुँह करके बोला- क्यों कैसी रही?

सभी लोगों ने उसे वाह-वाही दी।

फिर वो मेरी तरफ बढ़ा, दोनों हाथों से मेरे चूचे थाम कर बोला- बहुत गरम माल है ! ऐसा लग रहा है कि हाथों में पिघल रहा है !

और मेरे चूचे बेदर्दी से मसलने लगा। चूचे पकड़ कर उसने यकायक मुझे अपनी ओर खींचा और मेरी गाण्ड पर ज़ोरदार तमाचे लगाने शुरू कर दिए, कहने लगा- नीचे से भी कड़क है !

फिर उसने मुझे ज़मीन पर धकेल दिया और दो सिपाही बुलवा कर मेरी टांगें हवा में खुलवा दी, मेरी चूत की फांकें खोल कर बोलने लगा- अरे कोई चोदो इस राण्ड को ! वरना पानी बहा बहा कर पूरा महल अपने काम रस से भर देगी...!!!

भीड़ से आवाज़ आई- हम भी तो उसमें डूबना चाहते हैं !

तभी महामंत्री ने एलान किया- बोली शुरू की जाये !

पहली बोली महाराज की।

महाराज ने कहा- सबसे पहले होंठो की बोली, एक सौ सोने की अशर्फियाँ !

बोली बढ़ते-बढ़ते 2500 अशर्फियों तक पहुँची और फिर मेरे होंठ आखिरकार बिक गए, किसी साहूकार ने खरीदे थे।

साहूकार आगे आया और मेरे होंठो पर चूमने लगा, भरा दरबार मेरी लुट ती हुई इज्ज़त देख रहा था, मेरे होंठ चूसते हुए उसने अपनी जबान मेरे मुँह में डाल दी और मेरी गर्दन पकड़ ली।

सभी लोगों के मुँह में पानी आ रहा था, लार टपक रही थी।

फिर मेरी बगलों की बोली हुई, जिन्हें 1500 अशर्फियों में दो भाइयों ने खरीदा।

दोनों अपना लण्ड झुलाते, मेरे दोनों तरफ आ गए और दोनों ने अपने अपने लण्ड मेरी बगलों में घुसा दिए और घिसने लगे।

उधर साहूकार ने भी अपने फनफ़नाता लण्ड निकाला और सर की तरफ खड़े हो मेरा चेहरा अपनी ओर करते हुए अपना लण्ड मेरे मुंह में पेल दिया...

अब मेरे जिस्म पर तीन लण्ड थे।

फिर मेरे चूचों की बोली शुरू हुई।

महामंत्री ने मेरे चूचे 5000 अशर्फियों में खरीद लिए और आकर मेरी कमर पर बैठ मेरे चूचे चूसने लगे।
फिर मेरे हाथों की बोली लगी।

दो व्यपारियो ने मेरे हाथ खरीदे और अपने अपने लण्ड मेरे हाथों में मुठ मराने के लिए दे दिए।फिर बोली लगी मेरी गांड की !

दस हज़ार अशर्फियों में गाण्ड भी बिक गई।

गाण्ड का फूल कोमल था, उसे एक बलिष्ठ पहलवान ने खरीदा था।

वो आया और मुझे अपने नीचे सीधा करके लेटा लिया। इस तरह कि मेरा चेहरा छत की तरफ हो।

अब मुझ पर सात लण्ड सवार थे, दो हाथों में, दो बगलों में, एक चूचों में, एक मुँह में और एक गाण्ड में !
और अब बारी राजकुमारी चूत की थी !

वो इतने लण्डों की वजह से रस चो चो कर बेहाल थी।

मैं जल्दी ही अपनी चूत में एक मोटा ताज़ा लौड़ा लेना चाहती थी।

मेरी इज्ज़त तो लुट ही चुकी थी, मैं सबके सामने नंगी हुई अलग अलग जगह से चुद रही थी, मैं खुद पर अपना नियंत्रण खो चुकी थी।

इतने मर्द मेरे जिस्म से लिपटे थे, मैं इसी सोच में थी कि मुझे सुनाई पड़ा- इसकी चूत आपकी हुई !
मैंने मुँह से साहूकार का लण्ड निकाला और चेहरा उठा कर इधर-उधर देखा तो क्या देखती हूँ,

चूत राजा ने खरीदी थी, वो भी दस-बीस हज़ार में नहीं, पूरे एक लाख अशर्फियों में !

राजा आया, जो कि पहले से नंगा था, आकर मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरी चूत में अपना लण्ड घुसाने की नाकाम कोशिश करने लगा...

उधर मेरा मुँह लण्ड खा-खा कर थक चुका था...कि साहूकार ने अपना काम रस छोड़ दिया, मेरे मुँह में भर दिया और उठ कर पूरी कामलीला देखने लगा..

मेरी बगलों से लंड-रस बह रहा था, चूचो पर महामंत्री जी अपने हाथों से घुन्डियाँ घुमा कर मुझे मीठी सी टीस दे रहे थे, हाथ वाले लण्ड, मैं अभी भी जोर जोर से हिला रही थी, और पहलवान मेरी गाण्ड फाड़ रहा था।

उस पर चोट खाए राजा ने जोर से एक झटका मारा और मेरी चूत फाड़ डाली।

मेरी चूत से खून नहीं निकला तो राजा बोला- तू तो खेली-खाई है, तो भी तेरे इतने नखरे हैं... ये ले ...!!!

कह कर उसने एक और ज़ोर से झटका मारा.... एक मीठी सी आह के साथ एक .. तैरती सी तरंग मेरे जिस्म में फ़ैल गई।

अब तो गाण्ड का दर्द भी जा चुका था... ऐसा लग रहा था जैसी दुनिया भर का समंदर मेरी दो टांगों के बीच समा गया है।

सभी मंत्रिगण मेरे हाल देख कर मुठ मार रहे थे...

महामंत्री मेरे चूचे और जोर से मसल मसल के दाँतों से काटने लगे...

मैं कराह रही थी.. आःह्ह्ह आआह्ह्ह्ह से दरबार गूँज रहा था...

मेरी आहें.. राजा और पहलवान को लुभा रही थी कि तभी राजा अपने हाथ से मेरी चूत का दाना छेड़ने लगा..

मैं तड़प उठी...

मैंने अपने हाथ से एक लण्ड छोड़ राजा के हाथ पर हाथ रख दिया और जोर-जोर से भींचने लगी.. राजा के हाथ को अपने दाने पर दबाने लगी..

तभी मंत्री जी ने अपना काम रस मेरे चूचों पर छोड़ दिया... और जिस्म से हट गए..

उन्होंने हटते ही मेरे होंठों पे ज़ोरदार चुम्मा दिया और बोले-. तू कमाल की है... अगर राजा का चूचे काटने का फरमान नहीं होता तो शायद में तेरे चूचे चूसने, दबाने के लिए तुझे हमेशा के लिए अपने पास रख लेता...

आगे की कहानी अगले भाग में ........
 

deeppreeti

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7. ठरकी राजा की रखैल

Update 03

तभी साहूकार पिनियाते हुए आया और बोला- इसके होंठ मेरे हैं... तू क्यों चूम रहा है..?

महामंत्री बोला-अरे सबसे पहले तो तूने ही मुँह मारा है इस पर.. तू हट गया तो मैंने भी मारलिया अपना मुँह ! अब कुआँ चाहे किसी का भी हो, कुआँ पानी तो हर किसी को पिलाता है ना...?

दोनों व्यापारियों की भी पिचकारी छूटने लगी थी, दोनों ने मेरे चेहरे पर पिचकारी दे मारी.. और बोले- चाट इसको... नहीं तो फिर से मुठ मारेगी तू हमारी...

मेरी हालत..सचमुच की रांडों जैसी हो गई थी कि तभी पहलवान छूटने लगा और दोनों हाथों सेमेरे चूचों पर जो माल गिरा था उसे मेरे चूचों पर मसलने लगा...

महामंत्री खड़े खड़े तमाशा देख रहा था.. कि कराहट से मेरा मुँह खुल गया है...

तभी राजा मेरे ऊपर आया और मेरे होंठो को उसने अपने मुँह में भर लिया, काटने-खसोटने लगा...

तभी पहलवान झड़ने लगा और उसने सारा रास मेरी गाण्ड में ही छोड़ दिया...

उसका लण्ड छोटा होकर मेरी गाण्ड से बाहर आ गया..

अब राजा को मौका मिल गया.. वो तो पहले से ही मुझ पर सवार था..

अब मेरे जिस्म पर वो हक़ ज़माने लगा, कभी मेरे चूचे मसलता, कभी मेरे मुँह में हाथ डाल देता..

वो मेरी जवानी लूट रहा था और मैं कुछ नहीं कर पा रही थी..

इतने में उसने पहलवान को मेरे नीचे से हटने का मौका दिया..

अब मैं कालीन पर और राजा मेरी चूत में घुसा बैठा था...

वो अब मेरी गाण्ड में दो ऊँगलियाँ घुसाने लगा.. और मैं मदमस्त हुई अपनी जवानी का रस लुटा रही थी..

कि तभी अचानक राजा ने लण्ड निकाल कर मेरी गाण्ड में पेल दिया...

राजा अब झड़ने वाला था... राजा ने एक झटके से अपना लण्ड फिर मेरी चूत में पेला और झड़ने लगा...
आगे बढ़ कर मेरे होंठ चूसने लगा... उसने मेरी चूचक मसले ... और मेरे अन्दर ही झड़ गया... उसके बाद वो मुझ पर से हट गया ..

उसने सिपाहियो को मुझे खड़ा करने को बोला..

मैं कामरस में भीगी हुई थी, मेरे से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था..

जैसे तैसे मैं सिपाहियो के सहारे खड़ी हुई।

हवा में कामरस की खुशबू मुझे और चुदने को मजबूर कर रही थी...

सभी मर्द मुझ पर हंस रहे थे, मेरी बेबसी का मजाक बना रहे थे, राजा ठहाके लगा रहा था...

कि तभी मुझ पर जोर से पानी फेंका गया..

मेरी आधी बेहोशी चूर चूर हो गई, मेरे जिस्म से काम रस हट गया..

मेरा गोरा जिस्म सबकी निगाहों में चमकने लगा..

मेरे गीले बाल मेरी चूचियों को ढकने की नाकाम कोशिश कर रहे थे..

मेरे थरथराते होंठ पानी से भीग कर कई लण्डों को आमंत्रित कर रहे थे...

मेरी चमकती गाण्ड चुद कर और चौड़ी हो गई थी...

मेरी हालत देखने लायक थी...

सभी सभासद मेरा आँखों से बलात्कार कर रहे थे..

मैंने अपने हाथों से अपने लाल चूचों और बहती चूत को छिपाने की कोशिश की..

कि तभी दो सिपाही आए और मेरे जिस्म से मेरे हाथों को अलग कर अलग अलग दिशा में थाम लिया।

मैं नंगी खड़ी जमीन में गड़े जा रही थी..!!

सब मंत्री खड़े होकर मुझ पर थूकने लगे.. और ठहाके लगा कर हंसने लगे...

मैं चिल्लाने लगी...

तभी एक कसाई को बुलवाया गया.. ताकि वो मेरे चूचे और ज़बान काट सके..

कसाई अपने औज़ारों की धार तेज कर रहा था..

वो मेरे करीब आया और काटने के लिए उसने अपनी कटार उठाई..

कि तभी पीछे से आवाज़ आई..

राजा : रुको ...!!!

सभी सभासद बातें बनाने लगे..- यह क्या हो गया .. चिकने बदन पर राजा फिसल गया...!!!

राजा : इस लड़की ने जितना दर्द सहना था, सहचुकी... और ऐसा नहीं कि इसने सिर्फ दर्द सहा... इसने सिपाहियों के हाथोंसे मसले जाने पर आहें भी भरी.. और अपनी चूत की मादक सुगंध सूंघ कर यह भीचुदने को बेताब हुई.. इससे यह साबित होता है कि लड़की में जिस्म का गुरूर जरूर है.. पर यदि इसे ठीक ढंग से गर्म किया जाये तो यह 8-10 लड़कियों का मज़ा एक ही बार में दे सकती है... इसलिए मैं इसकी चूत, गाण्ड सिलने का आदेश वापिस लेता हूँ और लड़की पर छोड़ता हूँ कि वो मेरी सब से प्यारी रखैल बनना चाहती है या गली मोहल्ले में नंगी घूमने वाली रंडी? या फिर किसी टुच्चे की रखैल बन कर अपनी जवानी बर्बाद करना चाहती है और नौकरानी बने रहना चाहती है सारी ज़िन्दगी..!!!

मैं राजा के हाथलुट चुकी थी और कई मर्द मुझे अब भोग चुके थे... राजा की बाकी दासियों कीतरह मैं भी उसके लण्ड की दीवानी हो चुकी थी..

इसलिए मैंने उसकी रखैल बन कर रहना मंज़ूर किया।

अब राजा हर रात मेरे साथ गुज़ारता, मैं हर वक़्त नंगी रहती...मेरी Xforum हर समय जागृत रहती...
राजा जब आता, तब मुझे चोदता...

मेरे जीवन में अब वासना.. काम .. चुदाई.. लंड के सिवा कुछ नहीं रह गया था...

समाप्त !!!!
कैसा लगा मेरा स्वप्न.?
 
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