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Horror कामातुर चुड़ैल! (Completed)

Ajju Landwalia

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#अपडेट १८

अब तक आपने पढ़ा -



उस मार्ग से आगे जाते ही युविका के सामने एक नदी आई जिसमे मगरमच्छ भरे हुए थे। जिसे देख युविका ने तुरंत ही अपने बाणों से सबको भेद कर पर जाने के लायक रास्ता बना लिया। और जैसे ही युविका ने नदी के दूसरे किनारे पर पैर रखा, उसे एक जोरदार अट्टहास सुनाई दिया ......

अब आगे -

वो अट्टहास सुनते ही युविका ने बिना डरे हुए आगे बढ़ना जारी रखा, तभी उसे सामने आ एक विचित्र जीव आता दिखा जिसका ऊपर आधा धड़ मनुष्य का था और नीचे का घोड़े के जैसा, वो अपने हाथों में एक तलवार पकड़े हुए अट्टहास करते हुए, बड़ी तेजी से युविका की ओर बढ़ रहा था। उसे देखते ही युविका कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगी और तभी उसके हाथ में एक तलवार आ गई जिससे बिजलियां निकल रही थी। युविका भी तेजी से दौड़ते हुए उस जीव की ओर भागी और उछलते हुए उसके मस्तक के बीचों बीच अपनी तलवार से प्रहार किया। उस जीव ने भी अपनी तलवार को आगे कर युविका के बार को रोकने की कोशिश की, मगर युविका की तलवार ने न सिर्फ उसकी तलवार, बल्कि उसके मस्तक के भी २ टुकड़े कर दिए।


ऐसा करते ही वो जीव एक चमक के साथ गायब हो गया। और जंगल से एक व्यक्ति निकला जो अघोरी के जैसे दिखता था।


"अदभुत बालिके, तुमने यहां तक पहुंच कर मेरे सारे तिलिस्म तोड़ दिए।" उस अघोरी ने कहा। "कौन हो तुम, और क्या चाहती हो इस बियाबान में आ कर, देखने में तो तुम किसी राज्य की राजकुमारी लगती हो।"


"जी सही पहचाना आपने, युविका ने कहा, "मैं महेंद्रगढ़ के महराज सुरेंद्र की पुत्री युविका हूं, और आपके आशीर्वाद की आकांक्षा ले कर आई हूं।"


"अच्छा तुम ही वो हो, भैरवी के तप का फल। पर अब मेरा आशिर्वाद क्यों चाहिए? अघोरी वैसे भी किसी को कोई आशीर्वाद नही देता।"


"गुरुजी, आशीर्वाद न सही कम से कम अपनी शिष्या बना लीजिए।"


"पर एक राजकुमारी को भला एक अघोरी की शिष्या क्यों बनना है, एक अघोरी की शक्तियां जिन चीजों को पाने के लिए होती है वो राजकुमारी जी आके पास पहले से ही है, धन, राज्य और क्या ही चाहिए होता है है किसी को अघोरी की शक्तियां प्राप्त करके?"


"प्रेम गुरुवार, प्रेम पाना चाहती हूं आपकी शक्तियों द्वारा।"


बटुकनाथ ये सुन कर मुस्कुरा देता है।


"खैर, अभी आश्रम में चलो, शाम हो रही है, हम सुबह बात करेंगे। चलो और कुछ खा लो, मुझे पता होता की राजकुमारी जी आने वाली हैं तो कुछ अच्छा बनवाता पर अभी तो कुछ कच्चे पक्के से ही काम चलाना होगा।"


अगली सुबह बटुकनाथ युविका को ले कर अपने साधना कक्ष में बैठ कर बात करने लगे।



"तो पुत्री, तुम्हे लगता है कि तुम काली शक्तियों की सिद्ध करके प्रेम को पा सकती हो?" बटुकनाथ ने युविका से पूछा।


"कम से कम जिससे प्रेम करती हूं उसे अपने बस में करके तो खुद को प्रेम करवा सकती हूं।" युविका ने जवाब दिया।


"मतलब तुम उसके शरीर से प्रेम करती हो बस, उसके दिल, उसकी आत्मा से तुम्हे कोई प्रेम नही है। बस शरीर ही पाना है तुमको?"


"नही, मैं तो उसे हर तरीके से प्रेम करती हूं।"


"तो उसको वश में करके तो तुम सिर्फ उसके शरीर को ही प्राप्त कर पाओगी, उसका हृदय और आत्मा तो तुम्हारे बस में नही ही आयेगी न।" बटुकनाथ ने कहा। "इसीलिए पुत्री ये हठ छोड़ो और जाओ जिस उद्देश्य के लिए तुम्हारे मां पिताजी और भैंरवी ने तप करके तुमको प्राप्त किया था, उसे पूरा करो, और विश्वास रखो, अगर जो तुम्हारा प्रेम सच्चा है तो वो तुम तक स्वयं आएगा, ऐसे हथकंडों से तुम उससे और दूर ही होती जाओगी।"


ये कह कर बटुकनाथ ने युविका को वहां से जानेका इशारा किया।


युविका निराशा से भरी हुई आश्रम से वापस चली गई।


जब युविका जंगल से बाहर निकली तभी उसे एक और अघोरी मिला जो लगभग बटुकनाथ की ही उम्र का था, और वो युविका को देखते ही उसे नाम से पुकारता है।


"राजकुमारी युविका, आपको हर जगह से निराशा ही हाथ लगी न?"



युविका चौंकते हुए, "कौन हैं आप, और मुझे कैसे जानते हैं?"


अघोरी, "में भी एक अघोरी हूं, लेकिन बटुकनाथ के जैसा जालसाज नही हूं, वो तो अघोरी के नाम पर एक जादूगर है बस, असली काली शक्तियों के बारे में वो सही से जनता तक नही है राजकुमारी, वो भला तुम्हारी कैसे मदद करता। आपको जो चाहिए वो शक्तियां मैं तुम्हे दिलवा सकता हूं।"


युविका, "लेकिन आप हैं कौन? और मैं कैसे भला आप पर भरोसा करूं?"


अघोरी, "मेरा नाम संपूर्णानंद हैं, और मैं बटुकनाथ का गुरुभाई हूं। हम दोनो ने एक ही गुरु से शिक्षा ली थी। मुझे आपके विषय में सारी बातें ज्ञात हैं, आप किसी से प्रेम करती हैं और उसे ही पाना है आपको।"


युविका, "हां, लेकिन वो शायद संभव नहीं है। गुरु जी ने कहा है की ऐसे मैं बस उसका शरीर पा सकती हूं, दिल और आत्मा मेरी नही होगी कभी।"


अघोरी, "और ये आपको बटुकनाथ ने कहा, उसे जब पता ही नही की असली काली शक्तियों होती क्या हैं, तो भला उसे ये कैसे पता होगा कि उनसे क्या प्राप्त किया जा सकता है।"


"तो क्या ये संभव है कि मुझे कुमार का प्रेम मिल जायेगा?" युविका चहकते हुए कहती है।


अघोरी, "संभव तो है राजकुमारी, लेकिन वैसी शक्तियां प्राप्त करने के लिए आपको मूल्य चुकाना पड़ेगा?"


युविका, "हम राजकुमारी हैं, बोलिए कितना मूल्य देना पड़ेगा मुझे?"


"हहाहा, अघोरी ने हस्ते हुए कहा, "राजकुमारी आप खुद एक साधक हैं, और इस साधना में क्या मूल्य लगता है वो भी ज्ञात नही आपको?"


"फिर क्या मूल्य लगेगा?"


"वो तो आपको वही शक्तियां बताएंगी, पर उसके पहले आपको अपने इस शरीर से भी मूल्य देना पड़ेगा, स्वीकार हो तभी आगे बढ़िएगा राजकुमारी।"



"मैं अपनी जान भी दे दूंगी अपना लक्ष्य पाने के लिए।"



"राजकुमारी मूल्य जान नही शरीर का भोग है। आपकी शक्तियां और उनको पाने के लिए जो भी सह साधक होगा उनको करना होगा आपको, बोलो मंजूर है, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं, वरना भूल जाओ अपने लक्ष्य को।".........

Bahut hi badhiya update he Riky007 Bhai,

Is sampurnanand ne mulya bataya he wo apna ullu sidha karna chahta he.............sadhna ke dauran yuvika ko bhogna ke plan bana raha he ye aghori.......

Agli update thoda jaldi post karna bhai
 

parkas

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#अपडेट १८

अब तक आपने पढ़ा -



उस मार्ग से आगे जाते ही युविका के सामने एक नदी आई जिसमे मगरमच्छ भरे हुए थे। जिसे देख युविका ने तुरंत ही अपने बाणों से सबको भेद कर पर जाने के लायक रास्ता बना लिया। और जैसे ही युविका ने नदी के दूसरे किनारे पर पैर रखा, उसे एक जोरदार अट्टहास सुनाई दिया ......

अब आगे -

वो अट्टहास सुनते ही युविका ने बिना डरे हुए आगे बढ़ना जारी रखा, तभी उसे सामने आ एक विचित्र जीव आता दिखा जिसका ऊपर आधा धड़ मनुष्य का था और नीचे का घोड़े के जैसा, वो अपने हाथों में एक तलवार पकड़े हुए अट्टहास करते हुए, बड़ी तेजी से युविका की ओर बढ़ रहा था। उसे देखते ही युविका कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगी और तभी उसके हाथ में एक तलवार आ गई जिससे बिजलियां निकल रही थी। युविका भी तेजी से दौड़ते हुए उस जीव की ओर भागी और उछलते हुए उसके मस्तक के बीचों बीच अपनी तलवार से प्रहार किया। उस जीव ने भी अपनी तलवार को आगे कर युविका के बार को रोकने की कोशिश की, मगर युविका की तलवार ने न सिर्फ उसकी तलवार, बल्कि उसके मस्तक के भी २ टुकड़े कर दिए।


ऐसा करते ही वो जीव एक चमक के साथ गायब हो गया। और जंगल से एक व्यक्ति निकला जो अघोरी के जैसे दिखता था।


"अदभुत बालिके, तुमने यहां तक पहुंच कर मेरे सारे तिलिस्म तोड़ दिए।" उस अघोरी ने कहा। "कौन हो तुम, और क्या चाहती हो इस बियाबान में आ कर, देखने में तो तुम किसी राज्य की राजकुमारी लगती हो।"


"जी सही पहचाना आपने, युविका ने कहा, "मैं महेंद्रगढ़ के महराज सुरेंद्र की पुत्री युविका हूं, और आपके आशीर्वाद की आकांक्षा ले कर आई हूं।"


"अच्छा तुम ही वो हो, भैरवी के तप का फल। पर अब मेरा आशिर्वाद क्यों चाहिए? अघोरी वैसे भी किसी को कोई आशीर्वाद नही देता।"


"गुरुजी, आशीर्वाद न सही कम से कम अपनी शिष्या बना लीजिए।"


"पर एक राजकुमारी को भला एक अघोरी की शिष्या क्यों बनना है, एक अघोरी की शक्तियां जिन चीजों को पाने के लिए होती है वो राजकुमारी जी आके पास पहले से ही है, धन, राज्य और क्या ही चाहिए होता है है किसी को अघोरी की शक्तियां प्राप्त करके?"


"प्रेम गुरुवार, प्रेम पाना चाहती हूं आपकी शक्तियों द्वारा।"


बटुकनाथ ये सुन कर मुस्कुरा देता है।


"खैर, अभी आश्रम में चलो, शाम हो रही है, हम सुबह बात करेंगे। चलो और कुछ खा लो, मुझे पता होता की राजकुमारी जी आने वाली हैं तो कुछ अच्छा बनवाता पर अभी तो कुछ कच्चे पक्के से ही काम चलाना होगा।"


अगली सुबह बटुकनाथ युविका को ले कर अपने साधना कक्ष में बैठ कर बात करने लगे।



"तो पुत्री, तुम्हे लगता है कि तुम काली शक्तियों की सिद्ध करके प्रेम को पा सकती हो?" बटुकनाथ ने युविका से पूछा।


"कम से कम जिससे प्रेम करती हूं उसे अपने बस में करके तो खुद को प्रेम करवा सकती हूं।" युविका ने जवाब दिया।


"मतलब तुम उसके शरीर से प्रेम करती हो बस, उसके दिल, उसकी आत्मा से तुम्हे कोई प्रेम नही है। बस शरीर ही पाना है तुमको?"


"नही, मैं तो उसे हर तरीके से प्रेम करती हूं।"


"तो उसको वश में करके तो तुम सिर्फ उसके शरीर को ही प्राप्त कर पाओगी, उसका हृदय और आत्मा तो तुम्हारे बस में नही ही आयेगी न।" बटुकनाथ ने कहा। "इसीलिए पुत्री ये हठ छोड़ो और जाओ जिस उद्देश्य के लिए तुम्हारे मां पिताजी और भैंरवी ने तप करके तुमको प्राप्त किया था, उसे पूरा करो, और विश्वास रखो, अगर जो तुम्हारा प्रेम सच्चा है तो वो तुम तक स्वयं आएगा, ऐसे हथकंडों से तुम उससे और दूर ही होती जाओगी।"


ये कह कर बटुकनाथ ने युविका को वहां से जानेका इशारा किया।


युविका निराशा से भरी हुई आश्रम से वापस चली गई।


जब युविका जंगल से बाहर निकली तभी उसे एक और अघोरी मिला जो लगभग बटुकनाथ की ही उम्र का था, और वो युविका को देखते ही उसे नाम से पुकारता है।


"राजकुमारी युविका, आपको हर जगह से निराशा ही हाथ लगी न?"



युविका चौंकते हुए, "कौन हैं आप, और मुझे कैसे जानते हैं?"


अघोरी, "में भी एक अघोरी हूं, लेकिन बटुकनाथ के जैसा जालसाज नही हूं, वो तो अघोरी के नाम पर एक जादूगर है बस, असली काली शक्तियों के बारे में वो सही से जनता तक नही है राजकुमारी, वो भला तुम्हारी कैसे मदद करता। आपको जो चाहिए वो शक्तियां मैं तुम्हे दिलवा सकता हूं।"


युविका, "लेकिन आप हैं कौन? और मैं कैसे भला आप पर भरोसा करूं?"


अघोरी, "मेरा नाम संपूर्णानंद हैं, और मैं बटुकनाथ का गुरुभाई हूं। हम दोनो ने एक ही गुरु से शिक्षा ली थी। मुझे आपके विषय में सारी बातें ज्ञात हैं, आप किसी से प्रेम करती हैं और उसे ही पाना है आपको।"


युविका, "हां, लेकिन वो शायद संभव नहीं है। गुरु जी ने कहा है की ऐसे मैं बस उसका शरीर पा सकती हूं, दिल और आत्मा मेरी नही होगी कभी।"


अघोरी, "और ये आपको बटुकनाथ ने कहा, उसे जब पता ही नही की असली काली शक्तियों होती क्या हैं, तो भला उसे ये कैसे पता होगा कि उनसे क्या प्राप्त किया जा सकता है।"


"तो क्या ये संभव है कि मुझे कुमार का प्रेम मिल जायेगा?" युविका चहकते हुए कहती है।


अघोरी, "संभव तो है राजकुमारी, लेकिन वैसी शक्तियां प्राप्त करने के लिए आपको मूल्य चुकाना पड़ेगा?"


युविका, "हम राजकुमारी हैं, बोलिए कितना मूल्य देना पड़ेगा मुझे?"


"हहाहा, अघोरी ने हस्ते हुए कहा, "राजकुमारी आप खुद एक साधक हैं, और इस साधना में क्या मूल्य लगता है वो भी ज्ञात नही आपको?"


"फिर क्या मूल्य लगेगा?"


"वो तो आपको वही शक्तियां बताएंगी, पर उसके पहले आपको अपने इस शरीर से भी मूल्य देना पड़ेगा, स्वीकार हो तभी आगे बढ़िएगा राजकुमारी।"



"मैं अपनी जान भी दे दूंगी अपना लक्ष्य पाने के लिए।"



"राजकुमारी मूल्य जान नही शरीर का भोग है। आपकी शक्तियां और उनको पाने के लिए जो भी सह साधक होगा उनको करना होगा आपको, बोलो मंजूर है, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं, वरना भूल जाओ अपने लक्ष्य को।".........
Bahut hi shaandar update diya hai Riky007 bhai....
Nice and lovely update....
 

drx prince

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Very Nice
 
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dhparikh

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उस मार्ग से आगे जाते ही युविका के सामने एक नदी आई जिसमे मगरमच्छ भरे हुए थे। जिसे देख युविका ने तुरंत ही अपने बाणों से सबको भेद कर पर जाने के लायक रास्ता बना लिया। और जैसे ही युविका ने नदी के दूसरे किनारे पर पैर रखा, उसे एक जोरदार अट्टहास सुनाई दिया ......

अब आगे -

वो अट्टहास सुनते ही युविका ने बिना डरे हुए आगे बढ़ना जारी रखा, तभी उसे सामने आ एक विचित्र जीव आता दिखा जिसका ऊपर आधा धड़ मनुष्य का था और नीचे का घोड़े के जैसा, वो अपने हाथों में एक तलवार पकड़े हुए अट्टहास करते हुए, बड़ी तेजी से युविका की ओर बढ़ रहा था। उसे देखते ही युविका कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगी और तभी उसके हाथ में एक तलवार आ गई जिससे बिजलियां निकल रही थी। युविका भी तेजी से दौड़ते हुए उस जीव की ओर भागी और उछलते हुए उसके मस्तक के बीचों बीच अपनी तलवार से प्रहार किया। उस जीव ने भी अपनी तलवार को आगे कर युविका के बार को रोकने की कोशिश की, मगर युविका की तलवार ने न सिर्फ उसकी तलवार, बल्कि उसके मस्तक के भी २ टुकड़े कर दिए।


ऐसा करते ही वो जीव एक चमक के साथ गायब हो गया। और जंगल से एक व्यक्ति निकला जो अघोरी के जैसे दिखता था।


"अदभुत बालिके, तुमने यहां तक पहुंच कर मेरे सारे तिलिस्म तोड़ दिए।" उस अघोरी ने कहा। "कौन हो तुम, और क्या चाहती हो इस बियाबान में आ कर, देखने में तो तुम किसी राज्य की राजकुमारी लगती हो।"


"जी सही पहचाना आपने, युविका ने कहा, "मैं महेंद्रगढ़ के महराज सुरेंद्र की पुत्री युविका हूं, और आपके आशीर्वाद की आकांक्षा ले कर आई हूं।"


"अच्छा तुम ही वो हो, भैरवी के तप का फल। पर अब मेरा आशिर्वाद क्यों चाहिए? अघोरी वैसे भी किसी को कोई आशीर्वाद नही देता।"


"गुरुजी, आशीर्वाद न सही कम से कम अपनी शिष्या बना लीजिए।"


"पर एक राजकुमारी को भला एक अघोरी की शिष्या क्यों बनना है, एक अघोरी की शक्तियां जिन चीजों को पाने के लिए होती है वो राजकुमारी जी आके पास पहले से ही है, धन, राज्य और क्या ही चाहिए होता है है किसी को अघोरी की शक्तियां प्राप्त करके?"


"प्रेम गुरुवार, प्रेम पाना चाहती हूं आपकी शक्तियों द्वारा।"


बटुकनाथ ये सुन कर मुस्कुरा देता है।


"खैर, अभी आश्रम में चलो, शाम हो रही है, हम सुबह बात करेंगे। चलो और कुछ खा लो, मुझे पता होता की राजकुमारी जी आने वाली हैं तो कुछ अच्छा बनवाता पर अभी तो कुछ कच्चे पक्के से ही काम चलाना होगा।"


अगली सुबह बटुकनाथ युविका को ले कर अपने साधना कक्ष में बैठ कर बात करने लगे।



"तो पुत्री, तुम्हे लगता है कि तुम काली शक्तियों की सिद्ध करके प्रेम को पा सकती हो?" बटुकनाथ ने युविका से पूछा।


"कम से कम जिससे प्रेम करती हूं उसे अपने बस में करके तो खुद को प्रेम करवा सकती हूं।" युविका ने जवाब दिया।


"मतलब तुम उसके शरीर से प्रेम करती हो बस, उसके दिल, उसकी आत्मा से तुम्हे कोई प्रेम नही है। बस शरीर ही पाना है तुमको?"


"नही, मैं तो उसे हर तरीके से प्रेम करती हूं।"


"तो उसको वश में करके तो तुम सिर्फ उसके शरीर को ही प्राप्त कर पाओगी, उसका हृदय और आत्मा तो तुम्हारे बस में नही ही आयेगी न।" बटुकनाथ ने कहा। "इसीलिए पुत्री ये हठ छोड़ो और जाओ जिस उद्देश्य के लिए तुम्हारे मां पिताजी और भैंरवी ने तप करके तुमको प्राप्त किया था, उसे पूरा करो, और विश्वास रखो, अगर जो तुम्हारा प्रेम सच्चा है तो वो तुम तक स्वयं आएगा, ऐसे हथकंडों से तुम उससे और दूर ही होती जाओगी।"


ये कह कर बटुकनाथ ने युविका को वहां से जानेका इशारा किया।


युविका निराशा से भरी हुई आश्रम से वापस चली गई।


जब युविका जंगल से बाहर निकली तभी उसे एक और अघोरी मिला जो लगभग बटुकनाथ की ही उम्र का था, और वो युविका को देखते ही उसे नाम से पुकारता है।


"राजकुमारी युविका, आपको हर जगह से निराशा ही हाथ लगी न?"



युविका चौंकते हुए, "कौन हैं आप, और मुझे कैसे जानते हैं?"


अघोरी, "में भी एक अघोरी हूं, लेकिन बटुकनाथ के जैसा जालसाज नही हूं, वो तो अघोरी के नाम पर एक जादूगर है बस, असली काली शक्तियों के बारे में वो सही से जनता तक नही है राजकुमारी, वो भला तुम्हारी कैसे मदद करता। आपको जो चाहिए वो शक्तियां मैं तुम्हे दिलवा सकता हूं।"


युविका, "लेकिन आप हैं कौन? और मैं कैसे भला आप पर भरोसा करूं?"


अघोरी, "मेरा नाम संपूर्णानंद हैं, और मैं बटुकनाथ का गुरुभाई हूं। हम दोनो ने एक ही गुरु से शिक्षा ली थी। मुझे आपके विषय में सारी बातें ज्ञात हैं, आप किसी से प्रेम करती हैं और उसे ही पाना है आपको।"


युविका, "हां, लेकिन वो शायद संभव नहीं है। गुरु जी ने कहा है की ऐसे मैं बस उसका शरीर पा सकती हूं, दिल और आत्मा मेरी नही होगी कभी।"


अघोरी, "और ये आपको बटुकनाथ ने कहा, उसे जब पता ही नही की असली काली शक्तियों होती क्या हैं, तो भला उसे ये कैसे पता होगा कि उनसे क्या प्राप्त किया जा सकता है।"


"तो क्या ये संभव है कि मुझे कुमार का प्रेम मिल जायेगा?" युविका चहकते हुए कहती है।


अघोरी, "संभव तो है राजकुमारी, लेकिन वैसी शक्तियां प्राप्त करने के लिए आपको मूल्य चुकाना पड़ेगा?"


युविका, "हम राजकुमारी हैं, बोलिए कितना मूल्य देना पड़ेगा मुझे?"


"हहाहा, अघोरी ने हस्ते हुए कहा, "राजकुमारी आप खुद एक साधक हैं, और इस साधना में क्या मूल्य लगता है वो भी ज्ञात नही आपको?"


"फिर क्या मूल्य लगेगा?"


"वो तो आपको वही शक्तियां बताएंगी, पर उसके पहले आपको अपने इस शरीर से भी मूल्य देना पड़ेगा, स्वीकार हो तभी आगे बढ़िएगा राजकुमारी।"



"मैं अपनी जान भी दे दूंगी अपना लक्ष्य पाने के लिए।"



"राजकुमारी मूल्य जान नही शरीर का भोग है। आपकी शक्तियां और उनको पाने के लिए जो भी सह साधक होगा उनको करना होगा आपको, बोलो मंजूर है, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं, वरना भूल जाओ अपने लक्ष्य को।".........
Nice update....
 
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DesiPriyaRai

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उस मार्ग से आगे जाते ही युविका के सामने एक नदी आई जिसमे मगरमच्छ भरे हुए थे। जिसे देख युविका ने तुरंत ही अपने बाणों से सबको भेद कर पर जाने के लायक रास्ता बना लिया। और जैसे ही युविका ने नदी के दूसरे किनारे पर पैर रखा, उसे एक जोरदार अट्टहास सुनाई दिया ......

अब आगे -

वो अट्टहास सुनते ही युविका ने बिना डरे हुए आगे बढ़ना जारी रखा, तभी उसे सामने आ एक विचित्र जीव आता दिखा जिसका ऊपर आधा धड़ मनुष्य का था और नीचे का घोड़े के जैसा, वो अपने हाथों में एक तलवार पकड़े हुए अट्टहास करते हुए, बड़ी तेजी से युविका की ओर बढ़ रहा था। उसे देखते ही युविका कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगी और तभी उसके हाथ में एक तलवार आ गई जिससे बिजलियां निकल रही थी। युविका भी तेजी से दौड़ते हुए उस जीव की ओर भागी और उछलते हुए उसके मस्तक के बीचों बीच अपनी तलवार से प्रहार किया। उस जीव ने भी अपनी तलवार को आगे कर युविका के बार को रोकने की कोशिश की, मगर युविका की तलवार ने न सिर्फ उसकी तलवार, बल्कि उसके मस्तक के भी २ टुकड़े कर दिए।


ऐसा करते ही वो जीव एक चमक के साथ गायब हो गया। और जंगल से एक व्यक्ति निकला जो अघोरी के जैसे दिखता था।


"अदभुत बालिके, तुमने यहां तक पहुंच कर मेरे सारे तिलिस्म तोड़ दिए।" उस अघोरी ने कहा। "कौन हो तुम, और क्या चाहती हो इस बियाबान में आ कर, देखने में तो तुम किसी राज्य की राजकुमारी लगती हो।"


"जी सही पहचाना आपने, युविका ने कहा, "मैं महेंद्रगढ़ के महराज सुरेंद्र की पुत्री युविका हूं, और आपके आशीर्वाद की आकांक्षा ले कर आई हूं।"


"अच्छा तुम ही वो हो, भैरवी के तप का फल। पर अब मेरा आशिर्वाद क्यों चाहिए? अघोरी वैसे भी किसी को कोई आशीर्वाद नही देता।"


"गुरुजी, आशीर्वाद न सही कम से कम अपनी शिष्या बना लीजिए।"


"पर एक राजकुमारी को भला एक अघोरी की शिष्या क्यों बनना है, एक अघोरी की शक्तियां जिन चीजों को पाने के लिए होती है वो राजकुमारी जी आके पास पहले से ही है, धन, राज्य और क्या ही चाहिए होता है है किसी को अघोरी की शक्तियां प्राप्त करके?"


"प्रेम गुरुवार, प्रेम पाना चाहती हूं आपकी शक्तियों द्वारा।"


बटुकनाथ ये सुन कर मुस्कुरा देता है।


"खैर, अभी आश्रम में चलो, शाम हो रही है, हम सुबह बात करेंगे। चलो और कुछ खा लो, मुझे पता होता की राजकुमारी जी आने वाली हैं तो कुछ अच्छा बनवाता पर अभी तो कुछ कच्चे पक्के से ही काम चलाना होगा।"


अगली सुबह बटुकनाथ युविका को ले कर अपने साधना कक्ष में बैठ कर बात करने लगे।



"तो पुत्री, तुम्हे लगता है कि तुम काली शक्तियों की सिद्ध करके प्रेम को पा सकती हो?" बटुकनाथ ने युविका से पूछा।


"कम से कम जिससे प्रेम करती हूं उसे अपने बस में करके तो खुद को प्रेम करवा सकती हूं।" युविका ने जवाब दिया।


"मतलब तुम उसके शरीर से प्रेम करती हो बस, उसके दिल, उसकी आत्मा से तुम्हे कोई प्रेम नही है। बस शरीर ही पाना है तुमको?"


"नही, मैं तो उसे हर तरीके से प्रेम करती हूं।"


"तो उसको वश में करके तो तुम सिर्फ उसके शरीर को ही प्राप्त कर पाओगी, उसका हृदय और आत्मा तो तुम्हारे बस में नही ही आयेगी न।" बटुकनाथ ने कहा। "इसीलिए पुत्री ये हठ छोड़ो और जाओ जिस उद्देश्य के लिए तुम्हारे मां पिताजी और भैंरवी ने तप करके तुमको प्राप्त किया था, उसे पूरा करो, और विश्वास रखो, अगर जो तुम्हारा प्रेम सच्चा है तो वो तुम तक स्वयं आएगा, ऐसे हथकंडों से तुम उससे और दूर ही होती जाओगी।"


ये कह कर बटुकनाथ ने युविका को वहां से जानेका इशारा किया।


युविका निराशा से भरी हुई आश्रम से वापस चली गई।


जब युविका जंगल से बाहर निकली तभी उसे एक और अघोरी मिला जो लगभग बटुकनाथ की ही उम्र का था, और वो युविका को देखते ही उसे नाम से पुकारता है।


"राजकुमारी युविका, आपको हर जगह से निराशा ही हाथ लगी न?"



युविका चौंकते हुए, "कौन हैं आप, और मुझे कैसे जानते हैं?"


अघोरी, "में भी एक अघोरी हूं, लेकिन बटुकनाथ के जैसा जालसाज नही हूं, वो तो अघोरी के नाम पर एक जादूगर है बस, असली काली शक्तियों के बारे में वो सही से जनता तक नही है राजकुमारी, वो भला तुम्हारी कैसे मदद करता। आपको जो चाहिए वो शक्तियां मैं तुम्हे दिलवा सकता हूं।"


युविका, "लेकिन आप हैं कौन? और मैं कैसे भला आप पर भरोसा करूं?"


अघोरी, "मेरा नाम संपूर्णानंद हैं, और मैं बटुकनाथ का गुरुभाई हूं। हम दोनो ने एक ही गुरु से शिक्षा ली थी। मुझे आपके विषय में सारी बातें ज्ञात हैं, आप किसी से प्रेम करती हैं और उसे ही पाना है आपको।"


युविका, "हां, लेकिन वो शायद संभव नहीं है। गुरु जी ने कहा है की ऐसे मैं बस उसका शरीर पा सकती हूं, दिल और आत्मा मेरी नही होगी कभी।"


अघोरी, "और ये आपको बटुकनाथ ने कहा, उसे जब पता ही नही की असली काली शक्तियों होती क्या हैं, तो भला उसे ये कैसे पता होगा कि उनसे क्या प्राप्त किया जा सकता है।"


"तो क्या ये संभव है कि मुझे कुमार का प्रेम मिल जायेगा?" युविका चहकते हुए कहती है।


अघोरी, "संभव तो है राजकुमारी, लेकिन वैसी शक्तियां प्राप्त करने के लिए आपको मूल्य चुकाना पड़ेगा?"


युविका, "हम राजकुमारी हैं, बोलिए कितना मूल्य देना पड़ेगा मुझे?"


"हहाहा, अघोरी ने हस्ते हुए कहा, "राजकुमारी आप खुद एक साधक हैं, और इस साधना में क्या मूल्य लगता है वो भी ज्ञात नही आपको?"


"फिर क्या मूल्य लगेगा?"


"वो तो आपको वही शक्तियां बताएंगी, पर उसके पहले आपको अपने इस शरीर से भी मूल्य देना पड़ेगा, स्वीकार हो तभी आगे बढ़िएगा राजकुमारी।"



"मैं अपनी जान भी दे दूंगी अपना लक्ष्य पाने के लिए।"



"राजकुमारी मूल्य जान नही शरीर का भोग है। आपकी शक्तियां और उनको पाने के लिए जो भी सह साधक होगा उनको करना होगा आपको, बोलो मंजूर है, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं, वरना भूल जाओ अपने लक्ष्य को।".........
बहुत ही अच्छा अपडेट था। युविका एक तरफा प्यार में इतना नीचे गिर गई!!



गुरुवार
छोटी सी भूल है सुधार लीजिएगा। गुरुवर आएगा।
 
Last edited:

Ek number

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अब तक आपने पढ़ा -

कई दिन तक महाराज और महारानी युविका को समझते हैं, इसी बीच कुमार और नैना की सगाई भी हो जाती है। इधर सबके इतना समझने पर भी युविका अपनी जिद नही छोड़ पाती, लेकिन ऊपर से वो अब शांत दिखती थी, और एक दिन वो कुछ निर्णय ले कर भैंरवी के पास कुछ साधना करने चली जाती है.....

अब आगे


इधर कुमार की शादी नजदीक आती जा रही थी, और उधर युविका किसी साधना को करने के लिए भैंरवी से मिलने जाती है।


भैंरवी को युविका से कुछ ज्यादा ही लगाव था, और वो उसको अपनी ही पुत्री समान मानती थी। दोनो मे गहरी मित्रता भी थी और युविका उससे अपनी सारी बातें बताती थी। उसे युविका के कुमार के प्रति प्रेम का भी पता था, और कुमार और सुनैना की सगाई का सुन कर उसे भी झटका सा लगा था, क्योंकि वो भी मानती थी कि राजपुत्री होने के कारण कुमार उससे शादी करने को आसानी से मान जायेगा।


"प्रणाम मौसी।" युविका ने आश्रम में पहुंचते ही भैंरवी से मिलते हुए कहा।


"चिरंजीवी हो पुत्री। सदा खुश रहो।"


"अब कैसी खुशी मुझे रास आयेगी मौसी?" युविका ने उदास होते हुए कहा।


"क्यों पुत्री, ऐसे क्यों बोल रही हो?" भैंरवी ने चिंता से पूछा।


"सब जान कर भी अनजान क्यों बन रही हो मौसी?" युविका ने कहा, "क्या आपको पता नही कुमार मुझसे नही सुनैना से प्यार करता है, और शादी भी उसी से कर रहा है? मैने उसकी कितनी मिन्नतें की, लेकिन वो नही माना, उसका कहना है की उसने मुझेकभी दोस्त सा ऊपर समझा ही नही, और मुझसे शादी करके वो मुझसे शायद ही कभी प्यार कर पाएगा। उसकी इस बात का पिताजी ने भी समर्थन किया, मौसी।"


इतना बोलते ही वो रोते हुए भैंरवीं के गले लग गई। भैंरवी भी भावुक हो कर उसके सर को प्यार से सहलाने लगी। युविका बहुत ही जोर जोर से रो रही थी जिसे सुन कर भैंरवी का दिल भी दहलने लगा। वो उसे हर तरह से संतावना देते हुए चुप कराने लगी।


कुछ देर बाद युविका शांत हुई तो भैंरवी ने उसे समझाते हुए कहा: "देख बेटा दुनिया में सबको सब कुछ मिले वो संभव नहीं है। इसीलिए अब तू इस बात को भूल कर आगे बढ़, पूरी जिंदगी पड़ी है तेरे लिए, क्या पता ईश्वर ने कोई और भी अच्छा साथी चीन हो तेरे लिए।"


"मैं अब ईश्वर में कोई भरोसा नहीं रखती मौसी," युविका ने सुबकते हुए कहा, "मैं अब ईश्वर से आशा न रखते हुए जो मैं चाहूंगी वो पा कर रहूंगी।"


"कैसे?" भैंरवी ने कुछ हैरान होते हुए कहा।


"काली शक्तियों के द्वारा, और आप इसमें मेरा साथ देंगी, बोलिए देंगी न?"


"बेटा तुम अभी आपे में नहीं हो, कुछ दिन मेरे पास रुको, फिर हम इस बारे में बात करेंगे।"


"नही मैं निश्चय करके आई हूं कि मैं उन शक्तियों को पा कर रहूंगी जो मुझे दुनिया की सबसे ताकतवर स्त्री बना दे, और वो जो चाहे वो हासिल कर सके। और आप मेरा इसमे साथ देंगी।"


बहुत देर तक भैंरवी युविका को समझती रही, लेकिन वो नही मानी, अंत में भैंरवी ने उसे सोच कर एक दो दिन में बताने का फैसला किया।


कुछ दिनों बाद भैंरवी ने उसे एक जगह जाने को कहा, और उसे ये बताया कि यहां उसके गुरु बटुकनाथ रहते हैं जो बहुत पहुंचे हुए अघोरी हैं, और अगर जो युविका ने उन्हें मना लिया तो वो उन काली शक्तियों तक पहुंच सकती है जो उसे सब कुछ दिलवा सकती हैं। भैंरवी से आज्ञा लेकर युविका उसके बताए हुए स्थान की ओर पैदल ही चल देती है

कुछ दिनों के बाद युविका उस स्थान के पास पहुंचती है, जो एक बहुत ही भयंकर जंगल के अंदर होता है। वो जंगल इतना घना होता है की दिन में भी शाम सा अंधेरा रहता था, उस जंगल में लोग अकेले जाने से घबराते थे, क्योंकि वहां न सिर्फ जंगली जानवरों का खतरा था, बल्कि बटुकनाथ ने वहां अपनी काली शक्तियों का तिलिस्म भी बीच रखा था वहां पर। युविका को भैंरवी ने ये सब पहले ही बता दिया था, और युविका खुद कुछ काली शक्तियों की स्वामिनी थी, वो निर्भीक हो कर जंगल में चली गई।


कुछ अंदर जाते ही युविका को अपने दाई ओर से कुछ हलचल महसूस हुई, और उसने अपने धनुष बाण को तैयार कर लिया, तभी उसे एक जंगली सुवर पूरी रफ्तार से अपनी ओर आते दिखा, और ये देखते ही युविका ने अपना बाण उसकी तरफ छोड़ दिया जो सीधा उस सुवर के मस्तक को चीरता हुआ उसका काल साबित हुआ।


इसके बाद युविका और सावधानी पूर्वक आगे की ओर बढ़ते हुए एक बड़ी सी खाई के पास पहुंची जहां उसे एक भयानक आग सी जलती दिखी। युविका उसे देखते ही समझ गई कि ये एक तिलिस्म है, और वो चारों ओर देख कर फौरन साधना में बैठ गई, और कुछ समय के पश्चात उसे आग के बीच से आगे बढ़ने का मार्ग मिल गया।


उस मार्ग से आगे जाते ही युविका के सामने एक नदी आई जिसमे मगरमच्छ भरे हुए थे। जिसे देख युविका ने तुरंत ही अपने बाणों से सबको भेद कर पर जाने के लायक रास्ता बना लिया। और जैसे ही युविका ने नदी के दूसरे किनारे पर पैर रखा, उसे एक जोरदार अट्टहास सुनाई दिया ......
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बहुत ही अच्छा अपडेट था। युविका एक तरफा प्यार में इतना नीचे गिर गई!!




छोटी सी भूल है सुधार लीजिएगा। गुरुवर आएगा।
👍
 

Ek number

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#अपडेट १८

अब तक आपने पढ़ा -



उस मार्ग से आगे जाते ही युविका के सामने एक नदी आई जिसमे मगरमच्छ भरे हुए थे। जिसे देख युविका ने तुरंत ही अपने बाणों से सबको भेद कर पर जाने के लायक रास्ता बना लिया। और जैसे ही युविका ने नदी के दूसरे किनारे पर पैर रखा, उसे एक जोरदार अट्टहास सुनाई दिया ......

अब आगे -

वो अट्टहास सुनते ही युविका ने बिना डरे हुए आगे बढ़ना जारी रखा, तभी उसे सामने आ एक विचित्र जीव आता दिखा जिसका ऊपर आधा धड़ मनुष्य का था और नीचे का घोड़े के जैसा, वो अपने हाथों में एक तलवार पकड़े हुए अट्टहास करते हुए, बड़ी तेजी से युविका की ओर बढ़ रहा था। उसे देखते ही युविका कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगी और तभी उसके हाथ में एक तलवार आ गई जिससे बिजलियां निकल रही थी। युविका भी तेजी से दौड़ते हुए उस जीव की ओर भागी और उछलते हुए उसके मस्तक के बीचों बीच अपनी तलवार से प्रहार किया। उस जीव ने भी अपनी तलवार को आगे कर युविका के बार को रोकने की कोशिश की, मगर युविका की तलवार ने न सिर्फ उसकी तलवार, बल्कि उसके मस्तक के भी २ टुकड़े कर दिए।


ऐसा करते ही वो जीव एक चमक के साथ गायब हो गया। और जंगल से एक व्यक्ति निकला जो अघोरी के जैसे दिखता था।


"अदभुत बालिके, तुमने यहां तक पहुंच कर मेरे सारे तिलिस्म तोड़ दिए।" उस अघोरी ने कहा। "कौन हो तुम, और क्या चाहती हो इस बियाबान में आ कर, देखने में तो तुम किसी राज्य की राजकुमारी लगती हो।"


"जी सही पहचाना आपने, युविका ने कहा, "मैं महेंद्रगढ़ के महराज सुरेंद्र की पुत्री युविका हूं, और आपके आशीर्वाद की आकांक्षा ले कर आई हूं।"


"अच्छा तुम ही वो हो, भैरवी के तप का फल। पर अब मेरा आशिर्वाद क्यों चाहिए? अघोरी वैसे भी किसी को कोई आशीर्वाद नही देता।"


"गुरुजी, आशीर्वाद न सही कम से कम अपनी शिष्या बना लीजिए।"


"पर एक राजकुमारी को भला एक अघोरी की शिष्या क्यों बनना है, एक अघोरी की शक्तियां जिन चीजों को पाने के लिए होती है वो राजकुमारी जी आके पास पहले से ही है, धन, राज्य और क्या ही चाहिए होता है है किसी को अघोरी की शक्तियां प्राप्त करके?"


"प्रेम गुरुवर, प्रेम पाना चाहती हूं आपकी शक्तियों द्वारा।"


बटुकनाथ ये सुन कर मुस्कुरा देता है।


"खैर, अभी आश्रम में चलो, शाम हो रही है, हम सुबह बात करेंगे। चलो और कुछ खा लो, मुझे पता होता की राजकुमारी जी आने वाली हैं तो कुछ अच्छा बनवाता पर अभी तो कुछ कच्चे पक्के से ही काम चलाना होगा।"


अगली सुबह बटुकनाथ युविका को ले कर अपने साधना कक्ष में बैठ कर बात करने लगे।



"तो पुत्री, तुम्हे लगता है कि तुम काली शक्तियों की सिद्ध करके प्रेम को पा सकती हो?" बटुकनाथ ने युविका से पूछा।


"कम से कम जिससे प्रेम करती हूं उसे अपने बस में करके तो खुद को प्रेम करवा सकती हूं।" युविका ने जवाब दिया।


"मतलब तुम उसके शरीर से प्रेम करती हो बस, उसके दिल, उसकी आत्मा से तुम्हे कोई प्रेम नही है। बस शरीर ही पाना है तुमको?"


"नही, मैं तो उसे हर तरीके से प्रेम करती हूं।"


"तो उसको वश में करके तो तुम सिर्फ उसके शरीर को ही प्राप्त कर पाओगी, उसका हृदय और आत्मा तो तुम्हारे बस में नही ही आयेगी न।" बटुकनाथ ने कहा। "इसीलिए पुत्री ये हठ छोड़ो और जाओ जिस उद्देश्य के लिए तुम्हारे मां पिताजी और भैंरवी ने तप करके तुमको प्राप्त किया था, उसे पूरा करो, और विश्वास रखो, अगर जो तुम्हारा प्रेम सच्चा है तो वो तुम तक स्वयं आएगा, ऐसे हथकंडों से तुम उससे और दूर ही होती जाओगी।"


ये कह कर बटुकनाथ ने युविका को वहां से जानेका इशारा किया।


युविका निराशा से भरी हुई आश्रम से वापस चली गई।


जब युविका जंगल से बाहर निकली तभी उसे एक और अघोरी मिला जो लगभग बटुकनाथ की ही उम्र का था, और वो युविका को देखते ही उसे नाम से पुकारता है।


"राजकुमारी युविका, आपको हर जगह से निराशा ही हाथ लगी न?"



युविका चौंकते हुए, "कौन हैं आप, और मुझे कैसे जानते हैं?"


अघोरी, "में भी एक अघोरी हूं, लेकिन बटुकनाथ के जैसा जालसाज नही हूं, वो तो अघोरी के नाम पर एक जादूगर है बस, असली काली शक्तियों के बारे में वो सही से जनता तक नही है राजकुमारी, वो भला तुम्हारी कैसे मदद करता। आपको जो चाहिए वो शक्तियां मैं तुम्हे दिलवा सकता हूं।"


युविका, "लेकिन आप हैं कौन? और मैं कैसे भला आप पर भरोसा करूं?"


अघोरी, "मेरा नाम संपूर्णानंद हैं, और मैं बटुकनाथ का गुरुभाई हूं। हम दोनो ने एक ही गुरु से शिक्षा ली थी। मुझे आपके विषय में सारी बातें ज्ञात हैं, आप किसी से प्रेम करती हैं और उसे ही पाना है आपको।"


युविका, "हां, लेकिन वो शायद संभव नहीं है। गुरु जी ने कहा है की ऐसे मैं बस उसका शरीर पा सकती हूं, दिल और आत्मा मेरी नही होगी कभी।"


अघोरी, "और ये आपको बटुकनाथ ने कहा, उसे जब पता ही नही की असली काली शक्तियों होती क्या हैं, तो भला उसे ये कैसे पता होगा कि उनसे क्या प्राप्त किया जा सकता है।"


"तो क्या ये संभव है कि मुझे कुमार का प्रेम मिल जायेगा?" युविका चहकते हुए कहती है।


अघोरी, "संभव तो है राजकुमारी, लेकिन वैसी शक्तियां प्राप्त करने के लिए आपको मूल्य चुकाना पड़ेगा?"


युविका, "हम राजकुमारी हैं, बोलिए कितना मूल्य देना पड़ेगा मुझे?"


"हहाहा, अघोरी ने हस्ते हुए कहा, "राजकुमारी आप खुद एक साधक हैं, और इस साधना में क्या मूल्य लगता है वो भी ज्ञात नही आपको?"


"फिर क्या मूल्य लगेगा?"


"वो तो आपको वही शक्तियां बताएंगी, पर उसके पहले आपको अपने इस शरीर से भी मूल्य देना पड़ेगा, स्वीकार हो तभी आगे बढ़िएगा राजकुमारी।"



"मैं अपनी जान भी दे दूंगी अपना लक्ष्य पाने के लिए।"



"राजकुमारी मूल्य जान नही शरीर का भोग है। आपकी शक्तियां और उनको पाने के लिए जो भी सह साधक होगा उनको करना होगा आपको, बोलो मंजूर है, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं, वरना भूल जाओ अपने लक्ष्य को।".........
Shandaar update
 

mrDevi

There are some Secret of the past.
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अब तक आपने पढ़ा -



उस मार्ग से आगे जाते ही युविका के सामने एक नदी आई जिसमे मगरमच्छ भरे हुए थे। जिसे देख युविका ने तुरंत ही अपने बाणों से सबको भेद कर पर जाने के लायक रास्ता बना लिया। और जैसे ही युविका ने नदी के दूसरे किनारे पर पैर रखा, उसे एक जोरदार अट्टहास सुनाई दिया ......

अब आगे -

वो अट्टहास सुनते ही युविका ने बिना डरे हुए आगे बढ़ना जारी रखा, तभी उसे सामने आ एक विचित्र जीव आता दिखा जिसका ऊपर आधा धड़ मनुष्य का था और नीचे का घोड़े के जैसा, वो अपने हाथों में एक तलवार पकड़े हुए अट्टहास करते हुए, बड़ी तेजी से युविका की ओर बढ़ रहा था। उसे देखते ही युविका कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगी और तभी उसके हाथ में एक तलवार आ गई जिससे बिजलियां निकल रही थी। युविका भी तेजी से दौड़ते हुए उस जीव की ओर भागी और उछलते हुए उसके मस्तक के बीचों बीच अपनी तलवार से प्रहार किया। उस जीव ने भी अपनी तलवार को आगे कर युविका के बार को रोकने की कोशिश की, मगर युविका की तलवार ने न सिर्फ उसकी तलवार, बल्कि उसके मस्तक के भी २ टुकड़े कर दिए।


ऐसा करते ही वो जीव एक चमक के साथ गायब हो गया। और जंगल से एक व्यक्ति निकला जो अघोरी के जैसे दिखता था।


"अदभुत बालिके, तुमने यहां तक पहुंच कर मेरे सारे तिलिस्म तोड़ दिए।" उस अघोरी ने कहा। "कौन हो तुम, और क्या चाहती हो इस बियाबान में आ कर, देखने में तो तुम किसी राज्य की राजकुमारी लगती हो।"


"जी सही पहचाना आपने, युविका ने कहा, "मैं महेंद्रगढ़ के महराज सुरेंद्र की पुत्री युविका हूं, और आपके आशीर्वाद की आकांक्षा ले कर आई हूं।"


"अच्छा तुम ही वो हो, भैरवी के तप का फल। पर अब मेरा आशिर्वाद क्यों चाहिए? अघोरी वैसे भी किसी को कोई आशीर्वाद नही देता।"


"गुरुजी, आशीर्वाद न सही कम से कम अपनी शिष्या बना लीजिए।"


"पर एक राजकुमारी को भला एक अघोरी की शिष्या क्यों बनना है, एक अघोरी की शक्तियां जिन चीजों को पाने के लिए होती है वो राजकुमारी जी आके पास पहले से ही है, धन, राज्य और क्या ही चाहिए होता है है किसी को अघोरी की शक्तियां प्राप्त करके?"


"प्रेम गुरुवर, प्रेम पाना चाहती हूं आपकी शक्तियों द्वारा।"


बटुकनाथ ये सुन कर मुस्कुरा देता है।


"खैर, अभी आश्रम में चलो, शाम हो रही है, हम सुबह बात करेंगे। चलो और कुछ खा लो, मुझे पता होता की राजकुमारी जी आने वाली हैं तो कुछ अच्छा बनवाता पर अभी तो कुछ कच्चे पक्के से ही काम चलाना होगा।"


अगली सुबह बटुकनाथ युविका को ले कर अपने साधना कक्ष में बैठ कर बात करने लगे।



"तो पुत्री, तुम्हे लगता है कि तुम काली शक्तियों की सिद्ध करके प्रेम को पा सकती हो?" बटुकनाथ ने युविका से पूछा।


"कम से कम जिससे प्रेम करती हूं उसे अपने बस में करके तो खुद को प्रेम करवा सकती हूं।" युविका ने जवाब दिया।


"मतलब तुम उसके शरीर से प्रेम करती हो बस, उसके दिल, उसकी आत्मा से तुम्हे कोई प्रेम नही है। बस शरीर ही पाना है तुमको?"


"नही, मैं तो उसे हर तरीके से प्रेम करती हूं।"


"तो उसको वश में करके तो तुम सिर्फ उसके शरीर को ही प्राप्त कर पाओगी, उसका हृदय और आत्मा तो तुम्हारे बस में नही ही आयेगी न।" बटुकनाथ ने कहा। "इसीलिए पुत्री ये हठ छोड़ो और जाओ जिस उद्देश्य के लिए तुम्हारे मां पिताजी और भैंरवी ने तप करके तुमको प्राप्त किया था, उसे पूरा करो, और विश्वास रखो, अगर जो तुम्हारा प्रेम सच्चा है तो वो तुम तक स्वयं आएगा, ऐसे हथकंडों से तुम उससे और दूर ही होती जाओगी।"


ये कह कर बटुकनाथ ने युविका को वहां से जानेका इशारा किया।


युविका निराशा से भरी हुई आश्रम से वापस चली गई।


जब युविका जंगल से बाहर निकली तभी उसे एक और अघोरी मिला जो लगभग बटुकनाथ की ही उम्र का था, और वो युविका को देखते ही उसे नाम से पुकारता है।


"राजकुमारी युविका, आपको हर जगह से निराशा ही हाथ लगी न?"



युविका चौंकते हुए, "कौन हैं आप, और मुझे कैसे जानते हैं?"


अघोरी, "में भी एक अघोरी हूं, लेकिन बटुकनाथ के जैसा जालसाज नही हूं, वो तो अघोरी के नाम पर एक जादूगर है बस, असली काली शक्तियों के बारे में वो सही से जनता तक नही है राजकुमारी, वो भला तुम्हारी कैसे मदद करता। आपको जो चाहिए वो शक्तियां मैं तुम्हे दिलवा सकता हूं।"


युविका, "लेकिन आप हैं कौन? और मैं कैसे भला आप पर भरोसा करूं?"


अघोरी, "मेरा नाम संपूर्णानंद हैं, और मैं बटुकनाथ का गुरुभाई हूं। हम दोनो ने एक ही गुरु से शिक्षा ली थी। मुझे आपके विषय में सारी बातें ज्ञात हैं, आप किसी से प्रेम करती हैं और उसे ही पाना है आपको।"


युविका, "हां, लेकिन वो शायद संभव नहीं है। गुरु जी ने कहा है की ऐसे मैं बस उसका शरीर पा सकती हूं, दिल और आत्मा मेरी नही होगी कभी।"


अघोरी, "और ये आपको बटुकनाथ ने कहा, उसे जब पता ही नही की असली काली शक्तियों होती क्या हैं, तो भला उसे ये कैसे पता होगा कि उनसे क्या प्राप्त किया जा सकता है।"


"तो क्या ये संभव है कि मुझे कुमार का प्रेम मिल जायेगा?" युविका चहकते हुए कहती है।


अघोरी, "संभव तो है राजकुमारी, लेकिन वैसी शक्तियां प्राप्त करने के लिए आपको मूल्य चुकाना पड़ेगा?"


युविका, "हम राजकुमारी हैं, बोलिए कितना मूल्य देना पड़ेगा मुझे?"


"हहाहा, अघोरी ने हस्ते हुए कहा, "राजकुमारी आप खुद एक साधक हैं, और इस साधना में क्या मूल्य लगता है वो भी ज्ञात नही आपको?"


"फिर क्या मूल्य लगेगा?"


"वो तो आपको वही शक्तियां बताएंगी, पर उसके पहले आपको अपने इस शरीर से भी मूल्य देना पड़ेगा, स्वीकार हो तभी आगे बढ़िएगा राजकुमारी।"



"मैं अपनी जान भी दे दूंगी अपना लक्ष्य पाने के लिए।"



"राजकुमारी मूल्य जान नही शरीर का भोग है। आपकी शक्तियां और उनको पाने के लिए जो भी सह साधक होगा उनको करना होगा आपको, बोलो मंजूर है, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं, वरना भूल जाओ अपने लक्ष्य को।".........
Nice update, batuk nath ke samjane par bhi nhi mani, ab har kisi ki hawas ka bhog banegi
 
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Darkk Soul

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#अपडेट १७

कुछ देर बाद युविका शांत हुई तो भैंरवी ने उसे समझाते हुए कहा: "देख बेटा दुनिया में सबको सब कुछ मिले वो संभव नहीं है। इसीलिए अब तू इस बात को भूल कर आगे बढ़, पूरी जिंदगी पड़ी है तेरे लिए, क्या पता ईश्वर ने कोई और भी अच्छा साथी चीन हो तेरे लिए।"

बढ़िया अपडेट...

पर भाई, "भैरवी जी" को बताना की "चीन" कभी भी अच्छा साथी नहीं हो सकता. :nope:
 
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