#अपडेट १९
अब तक आपने पढ़ा
"राजकुमारी मूल्य जान नही शरीर का भोग है। आपकी शक्तियां और उनको पाने के लिए जो भी सह साधक होगा उनको किस करना होगा आपको, बोलो मंजूर है, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं, वरना भूल जाओ अपने लक्ष्य को।".........
अब आगे -
युविका, "स्वीकार है, मैं अपने प्रेम को पाने के लिए कुछ भी कर जाऊंगी।"
अघोरी, खुश होते हुए, " फिर चलो मेरे साथ, कल अमावस्या है, अच्छा दिन है साधना शुरू करने के लिए।"
और दोनो घने जंगलों में अंदर चले जाते हैं।
अंदर अघोरी एक गुफा में अपना डेरा बना कर रहता था, उसने उसी गुफा में युविका के रहने का भी इंतजाम कर दिया।
अगली शाम अघोरी ने युविका से उससे उसके राजसी वस्त्रों का त्याग करके हिरण की खाल से बने कपड़े पहनने को कहा, और स्नान के बाद उन दोनो ने साधना की शुरुवात की।
सबसे पहले अघोरी ने एक हवन कुंड में अग्नि को प्रज्वलित करके उसके पास एक मानव खोपड़ी को रख कर उस पर सिंदूर का छिड़काव किया और युविका से कहा, "ये कपाल ही हमारा साधन बनेगा us शक्तियों के आवाहन का, लेकिन चूंकि ये साधना मुख्य रूप से तुम्हे ही करनी है, तो जब भी वो शक्तियां आएंगी, वो बस तुम्हे ही दिखाई और सुनाई देंगी, इसीलिए उनकी बात पर अमल करना, और जैसा भी वो भोग मांगें बिना झिझक कर चढ़ा देना। लेकिन उसके पहले हमें उन्हें कई तरह की बलि दे कर उनको बुलाना होगा, और इस काम में कई दिन भी लग सकते है।"
"कोई बात नही, बस उनको साधना ही मेरा लक्ष्य है।"
"तो फिर शुरू करें."
और इसी के साथ अघोरी ने मंत्रोच्चार शुरू करते हुए सबसे पहले उस कपाल पर एक नींबू काट कर चढ़ाया और अग्नि में कई तरह की वस्तुएं युविका को देकर होम करवाता रहा। ये कुछ घंटे चलने के बाद अघोरी ने एक चूहे को पकड़ कर युविका के द्वारा उस कपाल पर बलि चढ़वाई।
"आज अभी की क्रिया संपन्न हुई राजकुमारी, अब इसके बाद कुछ विश्राम करके कल के लिए कुछ बड़ा बलि का पशु ढूंढना होगा, और रात को एक विशेष क्रिया करेंगे जो हमें हर रात करनी पड़ेगी, जब तक शक्तियां आ नही जाती तब तक। याद रखो,भयंकर काली शक्तियों के अहवहन के लिए नीच कर्म का होना जरूरी है। ये बलि से बस उनको आकर्षित किया जा सकता है, लेकिन उनको साधने के लिए नीच कर्म करना जरूरी है। चलो पहले विश्राम करो, और फिर एक पशु को ढूंढना है, बाकी बातें बाद में बताऊंगा।"
थोड़ी देर आराम करने के बाद, दोनो जंगल में जा कर एक खरगोश को पकड़ लाते हैं, और एक पिंजरे में बंद कर देते हैं, साथ ही साथ कुछ कंदमूल, और एक हिरण का शिकार भी करके लाए थे दोनो, ताकि कुछ खाने को भी बनाया जाय।
युविका ने भोजन बना दिया था और तब तक अंधेरा भी हो चुका था।
भोजन करने के लिए दोनो बैठे तो अघोरी ने एक कमंडल लाकर रखा और उसमे से मदिरा को 2 पात्रों में डाल कर एक युविका को दे दिया, और कहा, "राजकुमारी, नीच कर्म की शुरुवात करिए, ये मदिरा पान करने से आप के मन में नीच विचार आयेंगे और आप उनको करने में हिचकिचाएंगी भी नही।"
ये सुन कर युविका उस पात्र को उठा कर एक ही सांस में खाली कर देती है, और इसे देख अघोरी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान क्षण भर के लिए आ जाती है। थोड़ी देर के बाद युविका मदहोश हो जाती है, और अपने शरीर के वस्त्र उतार देती है।
अघोरी के सामने एक भरी पूरी युवती पूरी तरह से नग्न रूप में खड़ी थी, जिसे देख अघोरी का लंड भी खड़ा हो गया। उसने युविका को अपनी ओर खींचा और उसे अपनी गोद में बैठा लिया। वो हल्के हल्के युविका के बदन को सहलाने लगा और युविका के कान में कहा, "राजकुमारी, अब आपको अपने शरीर का भोग चढ़ाना पड़ेगा, और अब हम दोनो इस क्रिया को शुरू करेंगे। क्या आप तैयार हैं?"
युविका, कुछ झिझकते हुए, "हां, पर करना क्या है, वो बताइए।"
ये सुनकर, अघोरी ने उसके उरेजों को अपने हाथ में पूरी तरह से पकड़ते हुए कहा, "बताना नही करना है, जो मैं कर रहा हूं वो करने दो, बाकी काम अपने आप ही जायेगा।" और वो उसके कंधों पर अपनी जीभ से चाटने लगता है।
युविका को एकदम से चोरी छिपे देखे हुए सारे दृश्य याद आ जाते हैं। और उसके बदन में एक झनझनाहट होती है, पूरा शरीर गरम होने लगता है।
अघोरी की जीभ और उसके हाथ युविका के शरीर पर जादू कर रहे थे, और युविका पूरी तरह से काम वासना में डूबे जा रही थी। उसे अपने बदन में चीटियां रेंगती महसूस होने लगी, खास कर योनि में, जो धीरे धीरे पानियायना शुरू कर रही थी। मस्ती में युविका के मुंह से सिसकारियां फूटने लगी, और उसके हाथ अपने आप अघोरी के हाथों के ऊपर आ गए और खुद के ही स्तनों को दबाने लगे। ये देख अघोरी ने युविका को अपनी ओर घुमा लिया और दोनों स्तनों को जोर से भींच दिया।
युविका के मुंह से आहें निकलने लगी, तभी अघोरी ने झुकते हुए उसके एक स्तन के चूचक को अपने मुंह पर भर लेता है, और एक हाथ से उसके नितम्बों को मसलने लगता है। युविका इससे और उत्तेजित हो जाती है, और इतने में ही उसका पहला स्खलन हो जाता है, और वो कुछ निढाल सी हो जाती है। ये देख अघोरी आराम आराम से उसके स्तनों को मसलने लगता है और युविका के होंठ से अपने होठ मिला देता है। कुछ देर ऐसे ही निढाल रहने के बार युविका के शरीर में दुबारा से उत्तेजना बढ़ने लगती है और वो भी अघोरी के होंठों को चूसने लगती है, उसके हाथ अघोरी की पीठ पर चलने लगते हैं।
ये देख अघोरी युविका को उठा देता है, और खुद भी निर्वस्त्र हो जाता है। उसका लिंग पूरी तरह से स्तंभित हो चुका था, और युविका उसे ही देखने लगती है। अब तक के देखे हुए पुरुषों के लिंगों में सबसे बड़ा लिंग था वो, जिसे देख वो थोड़ा घबराई, लेकिन अघोरी ने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया और उसका इशारा समझ युविका भी अपने हाथ में उस लिंग के पकड़ लेती है। तब तक अघोरी फिर से उसके स्तनों पर अपना मुंह लगा देता है, और एक हाथ से युविका की योनि को छेड़ने लगता है। युविका भी मदहोशी में अपना हाथ अघोरी के लिंग पर आगे पीछे करने लगती है।
तभी अघोरी नीचे बैठ कर युविका के एक पैर के अपने एक कंधे पर रख देता है और युविका की योनि पर अपना मुंह लगा देता है। इस हरकत से युविका के पूरे शरीर में एक कपकपी सी आ जाती है और वो थोड़ा लड़खड़ा जाती है, लेकिन अघोरी उसे सम्हाल लेता है, और अपनी जीभ से उसके योनि को कुरेदने लगता है, और धीरे से युविका को नीचे लिटा देता है।
युविका की योनि से फिर से पानी रिसने लगता है, तो अघोरी उठ कर अपना लिंग युविका की योनि से लगता है और एक धक्का लगाता है, चिकनी योनि में लिंग थोड़ा सा ही जाता है और युविका की एक जोर की चीख निकल जाती है। अघोरी तुरंत उसके मुंह पर अपना मुंह रख कर उसको चीख की आवाज को कम करता और धीरे धीरे उसके स्तनों को सहलाने लगता है, थोड़ी देर में युविका शांत होती है तो अघोरी फिर से एक धक्का लगाता है, और फिर से एक चीख निकल जाती है युविका की। कुछ देर बाद अघोरी हल्के हल्के धक्के युविका की योनि में लगाने लगता है, और युविका का दर्द अब उत्तेजना से कम होने लगा और युविका मजे से सिसकियां लेते हुए अघोरी का साथ देने लगी। ये देख अघोरी ने धक्के तेज किए और युविका को पलट कर अपने ऊपर ले लिया और युविका भी उतेजना से भरी हुई उसके लिंग पर उछलने लगी, दोनो की कामुक आहें पूरी गुफा में गूंजने लगी, और एक बहुत ही मादक माहौल बन गया उस गुफा में।
कुछ समय के बाद युविका फिर से स्खलित हो गई, और अघोरी ने अपने लिंग को युविका की योनि से बाहर निकल कर उसे हिलाते हुए युविका के वक्षों पर अपना वीर्य गिरा दिया।
"इस वीर्य को अपने शरीर पर लगा लो राजकुमारी, वीर्य का सेवन और वीर्य को अपने शरीर पर लगाने से काली शक्तियां और खुश होती हैं।"
ये सुन कर युविका न सिर्फ उस वीर्य को अपने स्तनों पर मल लेती है, वो अघोरी का लिंग पकड़ कर फिर से हिलाने लगती है। अघोरी भी ये देख मुस्कुरा देता है, और दोनो फिर से आलिंगनबद्ध हो जाते हैं।
अब ये रोज का नियम बन गया था, आधी रात के बाद साधना करना, दिन में आराम और शिकार, और सुबह शाम संभोग। चूहे से शुरू हुआ बलि का सिलसिला बड़े जानवरों से अब जंगली भैंसे तक पहुंच चुका था। और संभोग का नशा ऐसा सवार हुआ था युविका पर कि कई बार वो साधना होते होते ही रति क्रिया करने लगती थी।
आज जब जंगली भैंसे की बलि दी गई, उसके बाद युविका को कपाल के ऊपर कुछ परछाई दिखने लगी और उसके कानो में आवाज आई....