Darkk Soul
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#अपडेट १८
अब तक आपने पढ़ा -
उस मार्ग से आगे जाते ही युविका के सामने एक नदी आई जिसमे मगरमच्छ भरे हुए थे। जिसे देख युविका ने तुरंत ही अपने बाणों से सबको भेद कर पर जाने के लायक रास्ता बना लिया। और जैसे ही युविका ने नदी के दूसरे किनारे पर पैर रखा, उसे एक जोरदार अट्टहास सुनाई दिया ......
अब आगे -
वो अट्टहास सुनते ही युविका ने बिना डरे हुए आगे बढ़ना जारी रखा, तभी उसे सामने आ एक विचित्र जीव आता दिखा जिसका ऊपर आधा धड़ मनुष्य का था और नीचे का घोड़े के जैसा, वो अपने हाथों में एक तलवार पकड़े हुए अट्टहास करते हुए, बड़ी तेजी से युविका की ओर बढ़ रहा था। उसे देखते ही युविका कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगी और तभी उसके हाथ में एक तलवार आ गई जिससे बिजलियां निकल रही थी। युविका भी तेजी से दौड़ते हुए उस जीव की ओर भागी और उछलते हुए उसके मस्तक के बीचों बीच अपनी तलवार से प्रहार किया। उस जीव ने भी अपनी तलवार को आगे कर युविका के बार को रोकने की कोशिश की, मगर युविका की तलवार ने न सिर्फ उसकी तलवार, बल्कि उसके मस्तक के भी २ टुकड़े कर दिए।
ऐसा करते ही वो जीव एक चमक के साथ गायब हो गया। और जंगल से एक व्यक्ति निकला जो अघोरी के जैसे दिखता था।
"अदभुत बालिके, तुमने यहां तक पहुंच कर मेरे सारे तिलिस्म तोड़ दिए।" उस अघोरी ने कहा। "कौन हो तुम, और क्या चाहती हो इस बियाबान में आ कर, देखने में तो तुम किसी राज्य की राजकुमारी लगती हो।"
"जी सही पहचाना आपने, युविका ने कहा, "मैं महेंद्रगढ़ के महराज सुरेंद्र की पुत्री युविका हूं, और आपके आशीर्वाद की आकांक्षा ले कर आई हूं।"
"अच्छा तुम ही वो हो, भैरवी के तप का फल। पर अब मेरा आशिर्वाद क्यों चाहिए? अघोरी वैसे भी किसी को कोई आशीर्वाद नही देता।"
"गुरुजी, आशीर्वाद न सही कम से कम अपनी शिष्या बना लीजिए।"
"पर एक राजकुमारी को भला एक अघोरी की शिष्या क्यों बनना है, एक अघोरी की शक्तियां जिन चीजों को पाने के लिए होती है वो राजकुमारी जी आके पास पहले से ही है, धन, राज्य और क्या ही चाहिए होता है है किसी को अघोरी की शक्तियां प्राप्त करके?"
"प्रेम गुरुवर, प्रेम पाना चाहती हूं आपकी शक्तियों द्वारा।"
बटुकनाथ ये सुन कर मुस्कुरा देता है।
"खैर, अभी आश्रम में चलो, शाम हो रही है, हम सुबह बात करेंगे। चलो और कुछ खा लो, मुझे पता होता की राजकुमारी जी आने वाली हैं तो कुछ अच्छा बनवाता पर अभी तो कुछ कच्चे पक्के से ही काम चलाना होगा।"
अगली सुबह बटुकनाथ युविका को ले कर अपने साधना कक्ष में बैठ कर बात करने लगे।
"तो पुत्री, तुम्हे लगता है कि तुम काली शक्तियों की सिद्ध करके प्रेम को पा सकती हो?" बटुकनाथ ने युविका से पूछा।
"कम से कम जिससे प्रेम करती हूं उसे अपने बस में करके तो खुद को प्रेम करवा सकती हूं।" युविका ने जवाब दिया।
"मतलब तुम उसके शरीर से प्रेम करती हो बस, उसके दिल, उसकी आत्मा से तुम्हे कोई प्रेम नही है। बस शरीर ही पाना है तुमको?"
"नही, मैं तो उसे हर तरीके से प्रेम करती हूं।"
"तो उसको वश में करके तो तुम सिर्फ उसके शरीर को ही प्राप्त कर पाओगी, उसका हृदय और आत्मा तो तुम्हारे बस में नही ही आयेगी न।" बटुकनाथ ने कहा। "इसीलिए पुत्री ये हठ छोड़ो और जाओ जिस उद्देश्य के लिए तुम्हारे मां पिताजी और भैंरवी ने तप करके तुमको प्राप्त किया था, उसे पूरा करो, और विश्वास रखो, अगर जो तुम्हारा प्रेम सच्चा है तो वो तुम तक स्वयं आएगा, ऐसे हथकंडों से तुम उससे और दूर ही होती जाओगी।"
ये कह कर बटुकनाथ ने युविका को वहां से जानेका इशारा किया।
युविका निराशा से भरी हुई आश्रम से वापस चली गई।
जब युविका जंगल से बाहर निकली तभी उसे एक और अघोरी मिला जो लगभग बटुकनाथ की ही उम्र का था, और वो युविका को देखते ही उसे नाम से पुकारता है।
"राजकुमारी युविका, आपको हर जगह से निराशा ही हाथ लगी न?"
युविका चौंकते हुए, "कौन हैं आप, और मुझे कैसे जानते हैं?"
अघोरी, "में भी एक अघोरी हूं, लेकिन बटुकनाथ के जैसा जालसाज नही हूं, वो तो अघोरी के नाम पर एक जादूगर है बस, असली काली शक्तियों के बारे में वो सही से जनता तक नही है राजकुमारी, वो भला तुम्हारी कैसे मदद करता। आपको जो चाहिए वो शक्तियां मैं तुम्हे दिलवा सकता हूं।"
युविका, "लेकिन आप हैं कौन? और मैं कैसे भला आप पर भरोसा करूं?"
अघोरी, "मेरा नाम संपूर्णानंद हैं, और मैं बटुकनाथ का गुरुभाई हूं। हम दोनो ने एक ही गुरु से शिक्षा ली थी। मुझे आपके विषय में सारी बातें ज्ञात हैं, आप किसी से प्रेम करती हैं और उसे ही पाना है आपको।"
युविका, "हां, लेकिन वो शायद संभव नहीं है। गुरु जी ने कहा है की ऐसे मैं बस उसका शरीर पा सकती हूं, दिल और आत्मा मेरी नही होगी कभी।"
अघोरी, "और ये आपको बटुकनाथ ने कहा, उसे जब पता ही नही की असली काली शक्तियों होती क्या हैं, तो भला उसे ये कैसे पता होगा कि उनसे क्या प्राप्त किया जा सकता है।"
"तो क्या ये संभव है कि मुझे कुमार का प्रेम मिल जायेगा?" युविका चहकते हुए कहती है।
अघोरी, "संभव तो है राजकुमारी, लेकिन वैसी शक्तियां प्राप्त करने के लिए आपको मूल्य चुकाना पड़ेगा?"
युविका, "हम राजकुमारी हैं, बोलिए कितना मूल्य देना पड़ेगा मुझे?"
"हहाहा, अघोरी ने हस्ते हुए कहा, "राजकुमारी आप खुद एक साधक हैं, और इस साधना में क्या मूल्य लगता है वो भी ज्ञात नही आपको?"
"फिर क्या मूल्य लगेगा?"
"वो तो आपको वही शक्तियां बताएंगी, पर उसके पहले आपको अपने इस शरीर से भी मूल्य देना पड़ेगा, स्वीकार हो तभी आगे बढ़िएगा राजकुमारी।"
"मैं अपनी जान भी दे दूंगी अपना लक्ष्य पाने के लिए।"
"राजकुमारी मूल्य जान नही शरीर का भोग है। आपकी शक्तियां और उनको पाने के लिए जो भी सह साधक होगा उनको करना होगा आपको, बोलो मंजूर है, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं, वरना भूल जाओ अपने लक्ष्य को।".........
हम्म, बात कुछ - कुछ समझ में आ रहा है की युविका को क्या - क्या करना पड़ा होगा...
देखते हैं लेखक महोदय ने अगले अपडेट में युविका से क्या कुछ नहीं करवाया होगा और इस दूसरे अघोरी का क्या सीन है?
(बेचारी मेरी युविका को कितना निष्ठुर लेखक मिला है... पता नहीं किस - किससे सील तुड़वाएगा.)