shahrukh1995
New Member
- 11
- 20
- 18
बढ़िया है फिर तो, वैसे मैने नही पढ़ी थी भाई।ye story already kafi time tlpahle me kisi forum oar padh chuka hu
Jara PM me uska link Dena to, wese bhi Riky007 final updates post krenge tab tak me 90s me ho jaungiye story already kafi time tlpahle me kisi forum oar padh chuka hu
लगता है ये कथन सही सिद्ध हो कर रहेगी.Jara PM me uska link Dena to, wese bhi Riky007 final updates post krenge tab tak me 90s me ho jaungi
Nice update....
अपडेट बहुत अच्छा था इसलिए की इस कहानी में जो एक नैतिक द्वन्द है अब वह खुल कर सामने आ रहा है दूसरी बात जो काली शक्ति है, उसका भी असर दिख रहा है और सबसे बड़ी बात साधन और साध्य का संबंध। आज कल काफी लोग यह मानते हैं की किसी अच्छे उद्देश्य के लिए किया गया कोई भी कार्य उचित है। परन्तु साधन और साध्य दोनों ही उचित होना चाहिए। युविका का साध्य प्रेम था और वह उसने भुला भी दिया और अपना साध्य राज्य का कल्याण बनाया , सत्ता का विस्तार। लेकिन साधन उसने जो अपनाया, अनजाने में उसका असर उसके राज्य के ऊपर ही पड़ रहा है।
बहुत ही बढ़िया अपडेट
Bahut hi behtarin updates…
Nice update sir jee
Nice update
Nice and superb update.....
बहुत ही मजेदार अपडेट था।
सच्ची कहा हे, नियति के साथ खेलोगे तो, उसका खामयाजा भी भुगतना होगा, और बड़े ही गंदे तरीके से।
Riky007 जी आप समय लगाते हो पर अपडेट पढ़ने में मजा आता है। तो अच्छी चीज पढ़ने के लिए, उसे लिखने में भी समय लगता है। हम तो सिर्फ आपको याद दिलाने के लिए अपडेट मांगते रहते हे।
काली शक्तियों के अनुसार युविका को अघोरी की हत्या इसलिए करनी पड़ी क्योंकि उसने बेवजह युविका के साथ संभोग किया था ।
लेकिन इसी अपडेट मे यह जिक्र भी किया गया है कि युविका ने सिर्फ सम्पूर्णानंद के साथ सेक्सुअल सम्बन्ध स्थापित किया था ।
यह विरोधाभास है ।
होना यह चाहिए था कि युविका का सेक्सुअल सम्बन्ध दोनो के साथ बना था । चूंकि अघोरी एक विकृत स्वरूप और काली शक्तियों का पुजारी था इसलिए युविका का सेक्सुअल हार्मोन पुरी तरह से उफान पर आ गया ।
खैर यह स्पष्ट हुआ कि युविका मरने के बाद भी क्यों एक काम - पिपासिनी आत्मा बनकर भटकती रही ।
शायद यही वजह होगी जो उसके मृत्यु का कारण बनी ।
अब देखना यह है कि उसकी आत्मा क्या इसी तरह अतृप्त रहेगी या उसे इन सब से मुक्ति प्राप्त होगी !
बहुत ही बेहतरीन अपडेट रिकी भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
ye story already kafi time tlpahle me kisi forum oar padh chuka hu
अपडेट पोस्टेडलगता है ये कथन सही सिद्ध हो कर रहेगी.
Nice update....#अपडेट 21
अब तक आपने पढ़ा -
"महराज ये संकट उसी के कारण आया है शायद। मैं अभी दावे से तो ये नही कह सकता, लेकिन मुझे इसमें कोई शक भी नहीं लग रहा है की वही कारण है इन घटनाओं का।" बटुकनाथ ने कहा।
"मगर क्यों?" भैंरवी ने दुख भरे अंदाज में पूछा।
"युविका को मैने समझा कर भेजा तो था, लेकिन मुझे लगता नही कि उसे वो बात इतनी आसानी से समझ आई होगी। और फिर मेरे आश्रम से जाने के बाद भी वो कई दिनों के बाद ही अपने घर गई। और सबसे बड़ी बात, जब वो मेरे आश्रम में आई थी, उसी समय संपूर्णानद भी आश्रम के आस पास ही था, और यही मेरे शक करना का मुख्य कारण है।" बटुकनाथ ने भैरवी और कुलगुरु को देखते हुए कहा।
"क्या, संपूर्णानंद?"
अब आगे -
दोनो कुलगुरु और भैंरवी के मुंह खुले रह गए बटुकनाथ के बात सुन कर
"ऐसा क्या हुआ गुरुवर, आप इतने चिंतित क्यों हो गए हैं?" महराज ने आश्चर्य से पूछा।
"चिंता की ही बात है राजन, क्योंकि अगर जो संपूर्णानंद का कुछ भी हाथ इस संकट में है, तो समझ लीजिए मुसीबत बहुत ही भयंकर होगी। क्योंकि वो न सिर्फ मेरा गुरु भाई है, बल्कि वो अघोर के उस रूप का साधक हो गया है, जो केवल विनाश की ओर ले जाती है, और युविका का उसके संपर्क में आना भी आपके राज्य में व्याप्त संकट का कारण हो सकता है।"
"मैं अभी अपनी डाकनी शक्ति से संपूर्णानंद का पता लगाने की कोशिश करती हूं।" भैंरवी ने खड़े होते हुए कहा।
बटुकनाथ भी खड़े होते हुए, "गुरुवर और राजन, आप आराम करिए, मुझे भी कुछ साधनाएं करनी पड़ेगी। हम परसों प्रातः ही आपके राज्य की ओर प्रस्थान करेंगे।"
ये बोल कर बटुकनाथ जंगल की ओर चल दिए, और भैंरवी अपनी कुटिया में चली गई।
दो दिन बाद, सब लोग पुनः सवेरे एकत्रित हुए। बटुकनाथ को देखते हुए भैंरवीं ने कहा, "संपूर्णानंद का कुछ पता नहीं चल पाया गुरुदेव।"
"हम्म्म, मुझे लगा था की आपकी शक्तियां काम नही कर पाएंगी इस मामले में, खैर वो किसी जिंदा इंसान को ही ढूंढ पाती, मारे हुए को कहां तलाश कर पाएंगी।"
कुलगुरु, "अर्थात?"
"अर्थात, संपूर्णानंद की मृत्यु हो चुकी है, और उसको मरने वाली वही , लेकिनअघोरी शक्ति है जिसके बल पर वो शक्तिशाली बनना चाहता था। पर उसकी मृत्यु का सही कारण मुझे नहीं पता।"
राजन, "गुरुदेव, अब आगे क्या, मेरी प्रजा क्या ऐसे ही सजा भुगतेगी?"
"नही राजन, हम सब अभी चलते हैं, भैंरवी, गुरुवर, आप दोनो भी चलने की तैयारी करें, लगता है, शायद मुझे आप की भी जरूरत पड़े महेंद्रगढ़ में।"
शाम होते होते सारे लोग महेंद्रगढ़ की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। बटुकनाथ की योजना के अनुसार, राजन के अलावा सब वहीं जंगलों में ही विश्राम करते हैं, और राजा अकेले ही महल चले जाते हैं, जहां वो सबको यही बताते हैं कि कुलगुरू कुछ समय पश्चात ही यहां आ कर कुछ उपाय कर पाएंगे।
इधर, रात को ही बटुकनाथ और भैंरवी अपनी साधना में बैठ गए, और कुछ समय बाद ही उनकी साधना में अनेक प्रकार के विघ्न पड़ने लगे, जैसे कभी कोई भयंकर जंगली जानवर आ जाता तो कभी आंधी पानी के लक्षण बन जाते। लेकिन बटुकनाथ ने साधना स्थल के चारो ओर ऐसा सुरक्षा चक्र बनाया था कि कोई भी साधारण काली शक्ति उसे पार नहीं कर पाई और नष्ट हो गई।
रात गहरी होते होते बटुक नाथ ने युविका की शक्ति द्वारा बुना हुआ सुरक्षा जाल तोड़ दिया था, और रात के तीसरे पहर (second last quater) में वो सब राजमहल के भीतर आ चुके थे।
और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था...
#अपडेट 21
अब तक आपने पढ़ा -
"महराज ये संकट उसी के कारण आया है शायद। मैं अभी दावे से तो ये नही कह सकता, लेकिन मुझे इसमें कोई शक भी नहीं लग रहा है की वही कारण है इन घटनाओं का।" बटुकनाथ ने कहा।
"मगर क्यों?" भैंरवी ने दुख भरे अंदाज में पूछा।
"युविका को मैने समझा कर भेजा तो था, लेकिन मुझे लगता नही कि उसे वो बात इतनी आसानी से समझ आई होगी। और फिर मेरे आश्रम से जाने के बाद भी वो कई दिनों के बाद ही अपने घर गई। और सबसे बड़ी बात, जब वो मेरे आश्रम में आई थी, उसी समय संपूर्णानद भी आश्रम के आस पास ही था, और यही मेरे शक करना का मुख्य कारण है।" बटुकनाथ ने भैरवी और कुलगुरु को देखते हुए कहा।
"क्या, संपूर्णानंद?"
अब आगे -
दोनो कुलगुरु और भैंरवी के मुंह खुले रह गए बटुकनाथ के बात सुन कर
"ऐसा क्या हुआ गुरुवर, आप इतने चिंतित क्यों हो गए हैं?" महराज ने आश्चर्य से पूछा।
"चिंता की ही बात है राजन, क्योंकि अगर जो संपूर्णानंद का कुछ भी हाथ इस संकट में है, तो समझ लीजिए मुसीबत बहुत ही भयंकर होगी। क्योंकि वो न सिर्फ मेरा गुरु भाई है, बल्कि वो अघोर के उस रूप का साधक हो गया है, जो केवल विनाश की ओर ले जाती है, और युविका का उसके संपर्क में आना भी आपके राज्य में व्याप्त संकट का कारण हो सकता है।"
"मैं अभी अपनी डाकनी शक्ति से संपूर्णानंद का पता लगाने की कोशिश करती हूं।" भैंरवी ने खड़े होते हुए कहा।
बटुकनाथ भी खड़े होते हुए, "गुरुवर और राजन, आप आराम करिए, मुझे भी कुछ साधनाएं करनी पड़ेगी। हम परसों प्रातः ही आपके राज्य की ओर प्रस्थान करेंगे।"
ये बोल कर बटुकनाथ जंगल की ओर चल दिए, और भैंरवी अपनी कुटिया में चली गई।
दो दिन बाद, सब लोग पुनः सवेरे एकत्रित हुए। बटुकनाथ को देखते हुए भैंरवीं ने कहा, "संपूर्णानंद का कुछ पता नहीं चल पाया गुरुदेव।"
"हम्म्म, मुझे लगा था की आपकी शक्तियां काम नही कर पाएंगी इस मामले में, खैर वो किसी जिंदा इंसान को ही ढूंढ पाती, मारे हुए को कहां तलाश कर पाएंगी।"
कुलगुरु, "अर्थात?"
"अर्थात, संपूर्णानंद की मृत्यु हो चुकी है, और उसको मरने वाली वही , लेकिनअघोरी शक्ति है जिसके बल पर वो शक्तिशाली बनना चाहता था। पर उसकी मृत्यु का सही कारण मुझे नहीं पता।"
राजन, "गुरुदेव, अब आगे क्या, मेरी प्रजा क्या ऐसे ही सजा भुगतेगी?"
"नही राजन, हम सब अभी चलते हैं, भैंरवी, गुरुवर, आप दोनो भी चलने की तैयारी करें, लगता है, शायद मुझे आप की भी जरूरत पड़े महेंद्रगढ़ में।"
शाम होते होते सारे लोग महेंद्रगढ़ की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। बटुकनाथ की योजना के अनुसार, राजन के अलावा सब वहीं जंगलों में ही विश्राम करते हैं, और राजा अकेले ही महल चले जाते हैं, जहां वो सबको यही बताते हैं कि कुलगुरू कुछ समय पश्चात ही यहां आ कर कुछ उपाय कर पाएंगे।
इधर, रात को ही बटुकनाथ और भैंरवी अपनी साधना में बैठ गए, और कुछ समय बाद ही उनकी साधना में अनेक प्रकार के विघ्न पड़ने लगे, जैसे कभी कोई भयंकर जंगली जानवर आ जाता तो कभी आंधी पानी के लक्षण बन जाते। लेकिन बटुकनाथ ने साधना स्थल के चारो ओर ऐसा सुरक्षा चक्र बनाया था कि कोई भी साधारण काली शक्ति उसे पार नहीं कर पाई और नष्ट हो गई।
रात गहरी होते होते बटुक नाथ ने युविका की शक्ति द्वारा बुना हुआ सुरक्षा जाल तोड़ दिया था, और रात के तीसरे पहर (second last quater) में वो सब राजमहल के भीतर आ चुके थे।
और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था...