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Horror कामातुर चुड़ैल! (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Badhiya but kafi chota update sir jee
पता है भाई जी, लेकिन यहां पर एक ब्रेक जरूरी था। क्योंकि नेक्स्ट अपडेट में फ्लैशबैक खत्म हो जाएगा, और अगला भी संडे तक पोस्ट कर दूंगा
 

parkas

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#अपडेट 21

अब तक आपने पढ़ा -


"महराज ये संकट उसी के कारण आया है शायद। मैं अभी दावे से तो ये नही कह सकता, लेकिन मुझे इसमें कोई शक भी नहीं लग रहा है की वही कारण है इन घटनाओं का।" बटुकनाथ ने कहा।

"मगर क्यों?" भैंरवी ने दुख भरे अंदाज में पूछा।

"युविका को मैने समझा कर भेजा तो था, लेकिन मुझे लगता नही कि उसे वो बात इतनी आसानी से समझ आई होगी। और फिर मेरे आश्रम से जाने के बाद भी वो कई दिनों के बाद ही अपने घर गई। और सबसे बड़ी बात, जब वो मेरे आश्रम में आई थी, उसी समय संपूर्णानद भी आश्रम के आस पास ही था, और यही मेरे शक करना का मुख्य कारण है।" बटुकनाथ ने भैरवी और कुलगुरु को देखते हुए कहा।

"क्या, संपूर्णानंद?"


अब आगे -


दोनो कुलगुरु और भैंरवी के मुंह खुले रह गए बटुकनाथ के बात सुन कर

"ऐसा क्या हुआ गुरुवर, आप इतने चिंतित क्यों हो गए हैं?" महराज ने आश्चर्य से पूछा।

"चिंता की ही बात है राजन, क्योंकि अगर जो संपूर्णानंद का कुछ भी हाथ इस संकट में है, तो समझ लीजिए मुसीबत बहुत ही भयंकर होगी। क्योंकि वो न सिर्फ मेरा गुरु भाई है, बल्कि वो अघोर के उस रूप का साधक हो गया है, जो केवल विनाश की ओर ले जाती है, और युविका का उसके संपर्क में आना भी आपके राज्य में व्याप्त संकट का कारण हो सकता है।"

"मैं अभी अपनी डाकनी शक्ति से संपूर्णानंद का पता लगाने की कोशिश करती हूं।" भैंरवी ने खड़े होते हुए कहा।


बटुकनाथ भी खड़े होते हुए, "गुरुवर और राजन, आप आराम करिए, मुझे भी कुछ साधनाएं करनी पड़ेगी। हम परसों प्रातः ही आपके राज्य की ओर प्रस्थान करेंगे।"

ये बोल कर बटुकनाथ जंगल की ओर चल दिए, और भैंरवी अपनी कुटिया में चली गई।

दो दिन बाद, सब लोग पुनः सवेरे एकत्रित हुए। बटुकनाथ को देखते हुए भैंरवीं ने कहा, "संपूर्णानंद का कुछ पता नहीं चल पाया गुरुदेव।"

"हम्म्म, मुझे लगा था की आपकी शक्तियां काम नही कर पाएंगी इस मामले में, खैर वो किसी जिंदा इंसान को ही ढूंढ पाती, मारे हुए को कहां तलाश कर पाएंगी।"

कुलगुरु, "अर्थात?"

"अर्थात, संपूर्णानंद की मृत्यु हो चुकी है, और उसको मरने वाली वही , लेकिनअघोरी शक्ति है जिसके बल पर वो शक्तिशाली बनना चाहता था। पर उसकी मृत्यु का सही कारण मुझे नहीं पता।"

राजन, "गुरुदेव, अब आगे क्या, मेरी प्रजा क्या ऐसे ही सजा भुगतेगी?"

"नही राजन, हम सब अभी चलते हैं, भैंरवी, गुरुवर, आप दोनो भी चलने की तैयारी करें, लगता है, शायद मुझे आप की भी जरूरत पड़े महेंद्रगढ़ में।"

शाम होते होते सारे लोग महेंद्रगढ़ की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। बटुकनाथ की योजना के अनुसार, राजन के अलावा सब वहीं जंगलों में ही विश्राम करते हैं, और राजा अकेले ही महल चले जाते हैं, जहां वो सबको यही बताते हैं कि कुलगुरू कुछ समय पश्चात ही यहां आ कर कुछ उपाय कर पाएंगे।

इधर, रात को ही बटुकनाथ और भैंरवी अपनी साधना में बैठ गए, और कुछ समय बाद ही उनकी साधना में अनेक प्रकार के विघ्न पड़ने लगे, जैसे कभी कोई भयंकर जंगली जानवर आ जाता तो कभी आंधी पानी के लक्षण बन जाते। लेकिन बटुकनाथ ने साधना स्थल के चारो ओर ऐसा सुरक्षा चक्र बनाया था कि कोई भी साधारण काली शक्ति उसे पार नहीं कर पाई और नष्ट हो गई।

रात गहरी होते होते बटुक नाथ ने युविका की शक्ति द्वारा बुना हुआ सुरक्षा जाल तोड़ दिया था, और रात के तीसरे पहर (second last quater) में वो सब राजमहल के भीतर आ चुके थे।


और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था...
Bahut hi badhiya update diya hai Riky007 bhai....
Nice and beautiful update....
 

dhparikh

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"महराज ये संकट उसी के कारण आया है शायद। मैं अभी दावे से तो ये नही कह सकता, लेकिन मुझे इसमें कोई शक भी नहीं लग रहा है की वही कारण है इन घटनाओं का।" बटुकनाथ ने कहा।

"मगर क्यों?" भैंरवी ने दुख भरे अंदाज में पूछा।

"युविका को मैने समझा कर भेजा तो था, लेकिन मुझे लगता नही कि उसे वो बात इतनी आसानी से समझ आई होगी। और फिर मेरे आश्रम से जाने के बाद भी वो कई दिनों के बाद ही अपने घर गई। और सबसे बड़ी बात, जब वो मेरे आश्रम में आई थी, उसी समय संपूर्णानद भी आश्रम के आस पास ही था, और यही मेरे शक करना का मुख्य कारण है।" बटुकनाथ ने भैरवी और कुलगुरु को देखते हुए कहा।

"क्या, संपूर्णानंद?"


अब आगे -


दोनो कुलगुरु और भैंरवी के मुंह खुले रह गए बटुकनाथ के बात सुन कर

"ऐसा क्या हुआ गुरुवर, आप इतने चिंतित क्यों हो गए हैं?" महराज ने आश्चर्य से पूछा।

"चिंता की ही बात है राजन, क्योंकि अगर जो संपूर्णानंद का कुछ भी हाथ इस संकट में है, तो समझ लीजिए मुसीबत बहुत ही भयंकर होगी। क्योंकि वो न सिर्फ मेरा गुरु भाई है, बल्कि वो अघोर के उस रूप का साधक हो गया है, जो केवल विनाश की ओर ले जाती है, और युविका का उसके संपर्क में आना भी आपके राज्य में व्याप्त संकट का कारण हो सकता है।"

"मैं अभी अपनी डाकनी शक्ति से संपूर्णानंद का पता लगाने की कोशिश करती हूं।" भैंरवी ने खड़े होते हुए कहा।


बटुकनाथ भी खड़े होते हुए, "गुरुवर और राजन, आप आराम करिए, मुझे भी कुछ साधनाएं करनी पड़ेगी। हम परसों प्रातः ही आपके राज्य की ओर प्रस्थान करेंगे।"

ये बोल कर बटुकनाथ जंगल की ओर चल दिए, और भैंरवी अपनी कुटिया में चली गई।

दो दिन बाद, सब लोग पुनः सवेरे एकत्रित हुए। बटुकनाथ को देखते हुए भैंरवीं ने कहा, "संपूर्णानंद का कुछ पता नहीं चल पाया गुरुदेव।"

"हम्म्म, मुझे लगा था की आपकी शक्तियां काम नही कर पाएंगी इस मामले में, खैर वो किसी जिंदा इंसान को ही ढूंढ पाती, मारे हुए को कहां तलाश कर पाएंगी।"

कुलगुरु, "अर्थात?"

"अर्थात, संपूर्णानंद की मृत्यु हो चुकी है, और उसको मरने वाली वही , लेकिनअघोरी शक्ति है जिसके बल पर वो शक्तिशाली बनना चाहता था। पर उसकी मृत्यु का सही कारण मुझे नहीं पता।"

राजन, "गुरुदेव, अब आगे क्या, मेरी प्रजा क्या ऐसे ही सजा भुगतेगी?"

"नही राजन, हम सब अभी चलते हैं, भैंरवी, गुरुवर, आप दोनो भी चलने की तैयारी करें, लगता है, शायद मुझे आप की भी जरूरत पड़े महेंद्रगढ़ में।"

शाम होते होते सारे लोग महेंद्रगढ़ की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। बटुकनाथ की योजना के अनुसार, राजन के अलावा सब वहीं जंगलों में ही विश्राम करते हैं, और राजा अकेले ही महल चले जाते हैं, जहां वो सबको यही बताते हैं कि कुलगुरू कुछ समय पश्चात ही यहां आ कर कुछ उपाय कर पाएंगे।

इधर, रात को ही बटुकनाथ और भैंरवी अपनी साधना में बैठ गए, और कुछ समय बाद ही उनकी साधना में अनेक प्रकार के विघ्न पड़ने लगे, जैसे कभी कोई भयंकर जंगली जानवर आ जाता तो कभी आंधी पानी के लक्षण बन जाते। लेकिन बटुकनाथ ने साधना स्थल के चारो ओर ऐसा सुरक्षा चक्र बनाया था कि कोई भी साधारण काली शक्ति उसे पार नहीं कर पाई और नष्ट हो गई।

रात गहरी होते होते बटुक नाथ ने युविका की शक्ति द्वारा बुना हुआ सुरक्षा जाल तोड़ दिया था, और रात के तीसरे पहर (second last quater) में वो सब राजमहल के भीतर आ चुके थे।


और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था...
Nice update....
 

Darkk Soul

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अपडेट पोस्टेड

:hide2:

मरना मत अब कहानी पूरी कर के ही कोई ब्रेक लूंगा।



भाई... कनेक्शन देखो... कनेक्शन... मेरा और युविका का... आज कमेंट किया और आज ही अपडेट आ गया...!

दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए.... 🎼


 

Darkk Soul

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"महराज ये संकट उसी के कारण आया है शायद। मैं अभी दावे से तो ये नही कह सकता, लेकिन मुझे इसमें कोई शक भी नहीं लग रहा है की वही कारण है इन घटनाओं का।" बटुकनाथ ने कहा।

"मगर क्यों?" भैंरवी ने दुख भरे अंदाज में पूछा।

"युविका को मैने समझा कर भेजा तो था, लेकिन मुझे लगता नही कि उसे वो बात इतनी आसानी से समझ आई होगी। और फिर मेरे आश्रम से जाने के बाद भी वो कई दिनों के बाद ही अपने घर गई। और सबसे बड़ी बात, जब वो मेरे आश्रम में आई थी, उसी समय संपूर्णानद भी आश्रम के आस पास ही था, और यही मेरे शक करना का मुख्य कारण है।" बटुकनाथ ने भैरवी और कुलगुरु को देखते हुए कहा।

"क्या, संपूर्णानंद?"


अब आगे -


दोनो कुलगुरु और भैंरवी के मुंह खुले रह गए बटुकनाथ के बात सुन कर

"ऐसा क्या हुआ गुरुवर, आप इतने चिंतित क्यों हो गए हैं?" महराज ने आश्चर्य से पूछा।

"चिंता की ही बात है राजन, क्योंकि अगर जो संपूर्णानंद का कुछ भी हाथ इस संकट में है, तो समझ लीजिए मुसीबत बहुत ही भयंकर होगी। क्योंकि वो न सिर्फ मेरा गुरु भाई है, बल्कि वो अघोर के उस रूप का साधक हो गया है, जो केवल विनाश की ओर ले जाती है, और युविका का उसके संपर्क में आना भी आपके राज्य में व्याप्त संकट का कारण हो सकता है।"

"मैं अभी अपनी डाकनी शक्ति से संपूर्णानंद का पता लगाने की कोशिश करती हूं।" भैंरवी ने खड़े होते हुए कहा।


बटुकनाथ भी खड़े होते हुए, "गुरुवर और राजन, आप आराम करिए, मुझे भी कुछ साधनाएं करनी पड़ेगी। हम परसों प्रातः ही आपके राज्य की ओर प्रस्थान करेंगे।"

ये बोल कर बटुकनाथ जंगल की ओर चल दिए, और भैंरवी अपनी कुटिया में चली गई।

दो दिन बाद, सब लोग पुनः सवेरे एकत्रित हुए। बटुकनाथ को देखते हुए भैंरवीं ने कहा, "संपूर्णानंद का कुछ पता नहीं चल पाया गुरुदेव।"

"हम्म्म, मुझे लगा था की आपकी शक्तियां काम नही कर पाएंगी इस मामले में, खैर वो किसी जिंदा इंसान को ही ढूंढ पाती, मारे हुए को कहां तलाश कर पाएंगी।"

कुलगुरु, "अर्थात?"

"अर्थात, संपूर्णानंद की मृत्यु हो चुकी है, और उसको मरने वाली वही , लेकिनअघोरी शक्ति है जिसके बल पर वो शक्तिशाली बनना चाहता था। पर उसकी मृत्यु का सही कारण मुझे नहीं पता।"

राजन, "गुरुदेव, अब आगे क्या, मेरी प्रजा क्या ऐसे ही सजा भुगतेगी?"

"नही राजन, हम सब अभी चलते हैं, भैंरवी, गुरुवर, आप दोनो भी चलने की तैयारी करें, लगता है, शायद मुझे आप की भी जरूरत पड़े महेंद्रगढ़ में।"

शाम होते होते सारे लोग महेंद्रगढ़ की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। बटुकनाथ की योजना के अनुसार, राजन के अलावा सब वहीं जंगलों में ही विश्राम करते हैं, और राजा अकेले ही महल चले जाते हैं, जहां वो सबको यही बताते हैं कि कुलगुरू कुछ समय पश्चात ही यहां आ कर कुछ उपाय कर पाएंगे।

इधर, रात को ही बटुकनाथ और भैंरवी अपनी साधना में बैठ गए, और कुछ समय बाद ही उनकी साधना में अनेक प्रकार के विघ्न पड़ने लगे, जैसे कभी कोई भयंकर जंगली जानवर आ जाता तो कभी आंधी पानी के लक्षण बन जाते। लेकिन बटुकनाथ ने साधना स्थल के चारो ओर ऐसा सुरक्षा चक्र बनाया था कि कोई भी साधारण काली शक्ति उसे पार नहीं कर पाई और नष्ट हो गई।

रात गहरी होते होते बटुक नाथ ने युविका की शक्ति द्वारा बुना हुआ सुरक्षा जाल तोड़ दिया था, और रात के तीसरे पहर (second last quater) में वो सब राजमहल के भीतर आ चुके थे।


और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था...

Wow! Amazing!!

गज़ब... बवाल होने वाला है अब, लगता है.

जिसने राजा / पिता तक को गले से पकड़ कर फेंक दे, वो दूसरों को कम हानि पहुँचाए ऐसा लगता तो नहीं है.... और जिस गुस्से में वो आई है उससे तो यही लगता है की कम से कम किसी एक को तो मार ही डालेगी...

इतना तो तय है की पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली युविका डार्लिंग को आसानी से काबू में नहीं किया जा सकता है. जो युवती एक अघोरी को उसी की शक्तियों से मार डाले; ऐसे किसी को काबू तो क्या उसका सामना करने के लिए भी अपने आप में एक अलग ही लेवल का होना पड़ेगा.... बहुत मुश्किल होगा बटुकनाथ जी के लिए.

देखते हैं आगे क्या होता है...? :waiting:
 
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park

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"महराज ये संकट उसी के कारण आया है शायद। मैं अभी दावे से तो ये नही कह सकता, लेकिन मुझे इसमें कोई शक भी नहीं लग रहा है की वही कारण है इन घटनाओं का।" बटुकनाथ ने कहा।

"मगर क्यों?" भैंरवी ने दुख भरे अंदाज में पूछा।

"युविका को मैने समझा कर भेजा तो था, लेकिन मुझे लगता नही कि उसे वो बात इतनी आसानी से समझ आई होगी। और फिर मेरे आश्रम से जाने के बाद भी वो कई दिनों के बाद ही अपने घर गई। और सबसे बड़ी बात, जब वो मेरे आश्रम में आई थी, उसी समय संपूर्णानद भी आश्रम के आस पास ही था, और यही मेरे शक करना का मुख्य कारण है।" बटुकनाथ ने भैरवी और कुलगुरु को देखते हुए कहा।

"क्या, संपूर्णानंद?"


अब आगे -


दोनो कुलगुरु और भैंरवी के मुंह खुले रह गए बटुकनाथ के बात सुन कर

"ऐसा क्या हुआ गुरुवर, आप इतने चिंतित क्यों हो गए हैं?" महराज ने आश्चर्य से पूछा।

"चिंता की ही बात है राजन, क्योंकि अगर जो संपूर्णानंद का कुछ भी हाथ इस संकट में है, तो समझ लीजिए मुसीबत बहुत ही भयंकर होगी। क्योंकि वो न सिर्फ मेरा गुरु भाई है, बल्कि वो अघोर के उस रूप का साधक हो गया है, जो केवल विनाश की ओर ले जाती है, और युविका का उसके संपर्क में आना भी आपके राज्य में व्याप्त संकट का कारण हो सकता है।"

"मैं अभी अपनी डाकनी शक्ति से संपूर्णानंद का पता लगाने की कोशिश करती हूं।" भैंरवी ने खड़े होते हुए कहा।


बटुकनाथ भी खड़े होते हुए, "गुरुवर और राजन, आप आराम करिए, मुझे भी कुछ साधनाएं करनी पड़ेगी। हम परसों प्रातः ही आपके राज्य की ओर प्रस्थान करेंगे।"

ये बोल कर बटुकनाथ जंगल की ओर चल दिए, और भैंरवी अपनी कुटिया में चली गई।

दो दिन बाद, सब लोग पुनः सवेरे एकत्रित हुए। बटुकनाथ को देखते हुए भैंरवीं ने कहा, "संपूर्णानंद का कुछ पता नहीं चल पाया गुरुदेव।"

"हम्म्म, मुझे लगा था की आपकी शक्तियां काम नही कर पाएंगी इस मामले में, खैर वो किसी जिंदा इंसान को ही ढूंढ पाती, मारे हुए को कहां तलाश कर पाएंगी।"

कुलगुरु, "अर्थात?"

"अर्थात, संपूर्णानंद की मृत्यु हो चुकी है, और उसको मरने वाली वही , लेकिनअघोरी शक्ति है जिसके बल पर वो शक्तिशाली बनना चाहता था। पर उसकी मृत्यु का सही कारण मुझे नहीं पता।"

राजन, "गुरुदेव, अब आगे क्या, मेरी प्रजा क्या ऐसे ही सजा भुगतेगी?"

"नही राजन, हम सब अभी चलते हैं, भैंरवी, गुरुवर, आप दोनो भी चलने की तैयारी करें, लगता है, शायद मुझे आप की भी जरूरत पड़े महेंद्रगढ़ में।"

शाम होते होते सारे लोग महेंद्रगढ़ की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। बटुकनाथ की योजना के अनुसार, राजन के अलावा सब वहीं जंगलों में ही विश्राम करते हैं, और राजा अकेले ही महल चले जाते हैं, जहां वो सबको यही बताते हैं कि कुलगुरू कुछ समय पश्चात ही यहां आ कर कुछ उपाय कर पाएंगे।

इधर, रात को ही बटुकनाथ और भैंरवी अपनी साधना में बैठ गए, और कुछ समय बाद ही उनकी साधना में अनेक प्रकार के विघ्न पड़ने लगे, जैसे कभी कोई भयंकर जंगली जानवर आ जाता तो कभी आंधी पानी के लक्षण बन जाते। लेकिन बटुकनाथ ने साधना स्थल के चारो ओर ऐसा सुरक्षा चक्र बनाया था कि कोई भी साधारण काली शक्ति उसे पार नहीं कर पाई और नष्ट हो गई।

रात गहरी होते होते बटुक नाथ ने युविका की शक्ति द्वारा बुना हुआ सुरक्षा जाल तोड़ दिया था, और रात के तीसरे पहर (second last quater) में वो सब राजमहल के भीतर आ चुके थे।


और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था...
Nice and superb update....
 
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DesiPriyaRai

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"महराज ये संकट उसी के कारण आया है शायद। मैं अभी दावे से तो ये नही कह सकता, लेकिन मुझे इसमें कोई शक भी नहीं लग रहा है की वही कारण है इन घटनाओं का।" बटुकनाथ ने कहा।

"मगर क्यों?" भैंरवी ने दुख भरे अंदाज में पूछा।

"युविका को मैने समझा कर भेजा तो था, लेकिन मुझे लगता नही कि उसे वो बात इतनी आसानी से समझ आई होगी। और फिर मेरे आश्रम से जाने के बाद भी वो कई दिनों के बाद ही अपने घर गई। और सबसे बड़ी बात, जब वो मेरे आश्रम में आई थी, उसी समय संपूर्णानद भी आश्रम के आस पास ही था, और यही मेरे शक करना का मुख्य कारण है।" बटुकनाथ ने भैरवी और कुलगुरु को देखते हुए कहा।

"क्या, संपूर्णानंद?"


अब आगे -


दोनो कुलगुरु और भैंरवी के मुंह खुले रह गए बटुकनाथ के बात सुन कर

"ऐसा क्या हुआ गुरुवर, आप इतने चिंतित क्यों हो गए हैं?" महराज ने आश्चर्य से पूछा।

"चिंता की ही बात है राजन, क्योंकि अगर जो संपूर्णानंद का कुछ भी हाथ इस संकट में है, तो समझ लीजिए मुसीबत बहुत ही भयंकर होगी। क्योंकि वो न सिर्फ मेरा गुरु भाई है, बल्कि वो अघोर के उस रूप का साधक हो गया है, जो केवल विनाश की ओर ले जाती है, और युविका का उसके संपर्क में आना भी आपके राज्य में व्याप्त संकट का कारण हो सकता है।"

"मैं अभी अपनी डाकनी शक्ति से संपूर्णानंद का पता लगाने की कोशिश करती हूं।" भैंरवी ने खड़े होते हुए कहा।


बटुकनाथ भी खड़े होते हुए, "गुरुवर और राजन, आप आराम करिए, मुझे भी कुछ साधनाएं करनी पड़ेगी। हम परसों प्रातः ही आपके राज्य की ओर प्रस्थान करेंगे।"

ये बोल कर बटुकनाथ जंगल की ओर चल दिए, और भैंरवी अपनी कुटिया में चली गई।

दो दिन बाद, सब लोग पुनः सवेरे एकत्रित हुए। बटुकनाथ को देखते हुए भैंरवीं ने कहा, "संपूर्णानंद का कुछ पता नहीं चल पाया गुरुदेव।"

"हम्म्म, मुझे लगा था की आपकी शक्तियां काम नही कर पाएंगी इस मामले में, खैर वो किसी जिंदा इंसान को ही ढूंढ पाती, मारे हुए को कहां तलाश कर पाएंगी।"

कुलगुरु, "अर्थात?"

"अर्थात, संपूर्णानंद की मृत्यु हो चुकी है, और उसको मरने वाली वही , लेकिनअघोरी शक्ति है जिसके बल पर वो शक्तिशाली बनना चाहता था। पर उसकी मृत्यु का सही कारण मुझे नहीं पता।"

राजन, "गुरुदेव, अब आगे क्या, मेरी प्रजा क्या ऐसे ही सजा भुगतेगी?"

"नही राजन, हम सब अभी चलते हैं, भैंरवी, गुरुवर, आप दोनो भी चलने की तैयारी करें, लगता है, शायद मुझे आप की भी जरूरत पड़े महेंद्रगढ़ में।"

शाम होते होते सारे लोग महेंद्रगढ़ की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। बटुकनाथ की योजना के अनुसार, राजन के अलावा सब वहीं जंगलों में ही विश्राम करते हैं, और राजा अकेले ही महल चले जाते हैं, जहां वो सबको यही बताते हैं कि कुलगुरू कुछ समय पश्चात ही यहां आ कर कुछ उपाय कर पाएंगे।

इधर, रात को ही बटुकनाथ और भैंरवी अपनी साधना में बैठ गए, और कुछ समय बाद ही उनकी साधना में अनेक प्रकार के विघ्न पड़ने लगे, जैसे कभी कोई भयंकर जंगली जानवर आ जाता तो कभी आंधी पानी के लक्षण बन जाते। लेकिन बटुकनाथ ने साधना स्थल के चारो ओर ऐसा सुरक्षा चक्र बनाया था कि कोई भी साधारण काली शक्ति उसे पार नहीं कर पाई और नष्ट हो गई।

रात गहरी होते होते बटुक नाथ ने युविका की शक्ति द्वारा बुना हुआ सुरक्षा जाल तोड़ दिया था, और रात के तीसरे पहर (second last quater) में वो सब राजमहल के भीतर आ चुके थे।


और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था...
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