#अपडेट २२
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और महल के एक गुप्त तहखाने में फिर से साधना शुरू हो गई। मगर इस बार साधना शुरू होने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर तूफान पूरे महल पर मंडराने लगा, और युविका तमतमाई सी उस तहखाने में आ गई। और उसने आते ही राजा को गले से उठा कर दूर फेंक दिया, और फिर वो बाकी तीनों की ओर बढ़ने लगी, उसकी तिलस्मी तलवार उसके हाथ में आ चुकी थी और भैंरवी की गर्दन की ओर उसका वार होने ही वाला था।
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तभी कुछ पानी की बूंदें उस तलवार पर पड़ी और वो तलवार गायब हो गई, फिर भी जिस वेग से तलवार भैंरवी की ओर आ रही थी, उसके झटके से भैंरवी नीचे गिर पड़ी। युविका ने चौंक कर अपनी दाहिनी ओर देखा जहां कुलगुरु अपने कमंडल के साथ खड़े थे, और कुछ मंत्र पढ़ रहे थे।
जब तक युविका को कुछ समझ आता, तभी फिर से कुलगुरु ने एक बार फिर से कुछ बूंदे अभिमंत्रित जल की उसके ऊपर गिरी और युविका के शरीर को एक झटका लगा। इसी झटके के साथ एक परछाईं युविका के शरीर से बाहर निकली, लेकिन वापस से वो उसके शरीर में समा गई।
कुलगुरु, "बहुत शक्तिशाली है ये अघोरी शक्ति बटुक, वरना अभी जो मंत्र जाल मैंने फेका था, उससे तो इसे युविका के शरीर को छोड़ देना चाहिए था।"
बटुकनाथ, "दिखा मुझे गुरुवर, इस शक्ति को संपूर्णानंद ने पशु बलि और काम क्रीड़ा से बुलाया था, और खुद युविका ने इसे नर बलि द्वारा प्राप्त किया। इतनी ज्यादा हिंसक और कामुक तरीके से प्राप्त शक्तियां न ही सात्विक शक्तियों से पराजित की जा सकती हैं न साधारण तामसिक से। हम दोनो को साथ में ही इस पर प्रहार करना होगा, और वो भी बिना रुके।"
कुलगुरु, "सोच क्या रहे हो फिर, शुरू हो जाओ।"
इधर कुलगुरु का अभिमंत्रित जल, और उधर बटुकनाथ की साधना, युविका दोनो के सम्मिलित वार से तड़प रही थी। लेकिन उसकी ये तड़प राजा से सहन नही हुई और उसने कुलगुरु का हाथ पकड़ लिया। बस इतना सा ही मौका काफी था युविका की अपनी शक्तियों को एकत्रित करने के लिए। और उसने इस मौके को नही गंवाया और अपनी काली शक्तियों का वार कुलगुरु की तरफ कर दिया। एक काली परछाई पूरे वेग से कुलगुरु की ओर बढ़ी, तभी भैंरवी ने उनको धक्का दे कर उस वार को खुद अपने ऊपर ले लिया और कुलगुरु ने भी इस समय एक बार फिर से अभिमंत्रित जल को युविका की ओर उछाल दिया।
भैंरवी, "राजन आप जाइए यहां से, ये हमारी युविका नही है अब, ये एक काली शक्ति में परिवर्तित हो चुकी है, और अब इसको खत्म करना जरूरी है। गुरुवर, मैने नियति के साथ छेड़ छाड़ करके बहुत बड़ी गलती की, और अब इसका प्रायश्चित मैं शायद अपनी जान देकर भी न चुका पाऊं, मुझे क्षमा करें।" और इसी के साथ भैंरवी ने अपने प्राण त्याग दिए।
बटुकनाथ, "राजन आप बस युविका के पिता नही हैं, बल्कि पूरे राज्य के पालक हैं, इसे अगर जो नही रोका गया तो आज आपके राज्य का अंत हो जाएगा, कोई जिंदा नही बचेगा। इसीलिए अब आप यहां से जाइए और बाकी सब हमपर छोड़ दीजिए।"
राजा सुरेंद्र भी होश में आते हुए दोनो से क्षमा मांग कर भैंरवी के शव को लेकर बाहर निकल जाते हैं।
उधर अभिमंत्रित जल पड़ते ही युविका का बदन एक बार और तड़पने लगा, मगर तभी उसके शरीर की शक्तियां फिर से प्रबल होने लगती हैं, और बटुकनाथ के वारों का प्रतिउत्तर देने लगती है।
उस कक्ष में इन शक्तियों की लड़ाई बहुत देर तक चलती है और बाहर आंधी तूफान अपना तांडव मचा रहा होता है, पूरे नगर के लोग अपने घरों में ही दुबके रहते हैं, किसी को कोई खबर नहीं होती की उनके राज्य पर इतनी बड़ी विपदा आई है।
बटुकनाथ, "गुरुवर ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक युविका खुद से इन शक्तियों से अलग नहीं होना चाहेगी, हमारी शक्तियां व्यर्थ ही जाएंगी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए अब।
कुलगुरु, "ये तब ही संभव है जब कोई युविका को इस बात के लिए मना सके, और ये सामर्थ्य तो न मुझमें है और न तुममें, भंवरी शायद ये कर सकती थी, मगर वो भी अब नही है हमारे बीच, एक बार राजन से प्रयास करवाकर देखते हैं, मगर मुझे कोई आशा नहीं कि वो अब इनकी बात भी मानेगी।"
बटुकनाथ, "प्रयास करवा कर देखते हैं, नही तो एक अंतिम उपाय है मेरे पास, लेकिन उससे हम बस इसे बांध सकते हैं, खत्म नहीं कर सकते।"
ये सुन कर कुलगुरू राजा सुरेंद्र को आवाज लगा कर बुलाते हैं।
कुलगुरु, "राजन, एक बार आप प्रयास करिए, युविका को समझने का कि वो इन शक्तियों का साथ छोड़ दे। इसी में सबकी भलाई है।"
राजा सुरेंद्र, युविका को पुकारते हुए, "पुत्री, एक बार अपने इस अभागे पिता की बात सुन लो, ये जिद छोड़ दो पुत्री, इन शक्तियों से किसी का भला नहीं हुआ, तो तुम्हारा कैसे होगा पुत्री?"
युविका, "पिताजी, क्या आप मेरा भला कर पाए? पूरे जीवन में बस एक ही बार कुछ मांगा था आपसे, मगर वो भी आप मुझे नहीं दे पाए। अब मैं वही करूंगी, जो मुझे अच्छा लगेगा, और इस बात से आप भी।मुझे नहीं रोक सकते।"
राजा सुरेंद्र, "पर बेटा, किसी और पर हमारा क्या नियंत्रण है भला, कुमार और सुनैना एक दूसरे से प्यार करते हैं, और भला इस को मैं कैसे रोक सकता था? ये तो नियति है।"
युविका, "नियति की बात आप न ही करें पिताजी, मेरा जन्म भी तो आपने नियति के विरुद्ध जा कर ही किया था, फिर भला कुमार को मुझे अपनाने के लिए कैसे नही मना पाए आप? अब मैं किसी भी तरह कुमार को पा कर ही रहूंगी।"
राजा सुरेंद्र, "बेटी तुम्हारे लिए मैने एक बड़ी भूल कर दी थी, पर अब और नियति से छेड़छाड़ नही कर सकता मैं। मान जाओ बेटा, एक तुम्ही सहारा हो मेरा और अपनी माता का।"
युविका, " बिलकुल नहीं, अब मैं निश्चय कर चुकी हूं कि मैं भी नियति के विरुद्ध जाऊंगी, चाहे जैसे भी ये संभव हो।"
ये कहते ही युविका ने एक शक्ति राजा सुरेंद्र की ओर छोड़ दी, हालांकि वो शक्ति इतनी घातक नही थी, फिर भी राजा उसके वेग से उछल कर दूर गिर कर बेहोश हो जाते हैं।
ये देख कर बटुकनाथ ने तुरंत ही एक मंत्र पढ़ कर एक जलती हुई लकड़ी पर कुछ फेंका और देखते ही देखते वो एक अग्नि बाण में बदल गई और युविका के चारो ओर मंडराने हुए उसके शरीर को जलाने लगी। तभी बटुकनाथ ने एक और लकड़ी को मंत्र पढ़ कर युविका की ओर उछाला, जो तुरंत ही एक संदूक में बदल कर युविका के शरीर को अपने में समा कर बंद हो गया।
इतना होते ही बटुकनाथ ने एक और मंत्र पढ़ कर उस संदूक पर कुछ अक्षत के दाने डाल दिए और कुलगुरु से कहा, "आप भी इसे अपने अभिमंत्रित जल से बांध दीजिए, ताकि भीतर से इस संदूक को खोलना असंभव हो जाय।"
कुलगुरू ने भी ऐसा ही किया। उसके बाद दोनो राजा को लेकर बाहर आ गए और उस कक्ष के द्वार को भी अभिमंत्रित कर के उस पर एक ताला लगवा दिया। तब तक बाहर का तूफान भी लगभग शांत हो चुका था।
राजा के होश में आने पर बटुकनाथ और कुलगुरु ने उनको सलाह दी की इस जगह को छोड़ कर किसी और जगह राजधानी बसा लेने की, क्योंकि उन्हें डर था कि कोई उस संदूक को खोल ना दे।
और इसके बाद एक ही सप्ताह में राजा सुरेंद्र ने पूरी प्रजा सहित उस जगह से न सिर्फ दूसरी जगह राजधानी बसा ली बल्कि उस किले में किसी का भी प्रवेश वर्जित कर दिया।
उसके बाद सम्राट ही उस कक्ष में प्रवेश करके युविका को उस संदूक से बाहर लाया।
फ्लैशबैक खतम