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धन्यवाद भाई!Bohot sunder chitran Kiya hai aapne prem aur aapsi meethi nokjhok ka, but ek shikayat bhi hai ki update ko regular rakho plzzzx
lovely updateहम दोनों ने बाथरूम में जा कर मूत्र त्याग किया और अपने गुप्तांगो को पानी से साफ़ किया और वापस बिस्तर पर आ कर नग्न ही लेट गए। संध्या ने अपने आप को मुझसे लिपटा लिया – उसका सर मेरे कंधे पर, एक जांघ मेरी जांघ पर, एक स्तन मेरे सीने से सटा हुआ और एक बाँह मेरे सीने के ऊपर। मैंने संध्या को सहलाते और पुचकारते हुए देर तक प्यार की बातें करता रहा और फिर पूरी तरफ अघा कर सो गया।
रात को सोते-सोते हमको काफी देर हो गई, इसलिए सवेरे उठने में भी समय लगा। शॉपिंग मॉल सवेरे 10 बजे तक पूरी तरह से चलने लगते हैं, और चूंकि हमारे पास समय का काफी अभाव था, इसलिए मेरा लक्ष्य यह था की जल्दी से जल्दी सब सामान खरीद लिया जाय। वैसे भी हनीमून के लिए कल सवेरे ही निकलना था (अरे! उसकी टिकट भी बुक करनी है!)। अंडमान द्वीप-समूह चूंकि बीच वाली जगह हैं, इसलिए उसी के मुताबिक़ कपड़े-लत्ते भी लेने होंगे।
खैर, जल्दी से उठ कर और तैयार हो कर हम लोग ठीक 10 बजे ही पास के एक बड़े मॉल पहुँच गए। पूरे माल में हम लोग ही पहले ग्राहक थे। हम लोग सबसे पहले एक पारंपरिक परिधानों वाले शो-रूम में पहुंचे। वहां के मालिक को मैंने अपनी ज़रुरत के बारे में आगाह किया, तो उन्होंने वायदा किया की वो एक घंटे के अन्दर ही कपड़ों को पूरी तरह से नाप के अनुसार नियोज्य करके दे देंगे। अपना काम तो हो गया – संध्या के लिए कोरल-पिंक रंग का और नीले बार्डर वाला शिफॉन का लेहेंगा-चोली खरीदा। शो-रूम के मालिक (जो खुद भी एक ड्रेस-डिज़ाइनर हैं, और महिला भी) ने खुद ही संध्या की नाप ली और अधोवस्त्रों के लिए उसको सुझाव दिया। चोली एक बैक-लेस प्रकार की थी, अतः अन्दर कुछ पहन नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने सिलिकॉन ब्रैस्ट पैड्स दिए, जो त्वचा के रंग के ही होते हैं। उन्होंने ही संध्या के स्तनों की माप भी ली और बताया की हम 32B साइज़ की ब्रा खरीद सकते हैं।
वहां से हम संध्या के लिए अंतर्वस्त्र, बीच-वियर, और नाइटी लेने दूसरे शो-रूम को गए। वहां भी हम लोग पहले ही ग्राहक थे। वहां पर एक ब्रा-फिटर हमारे साथ हो ली – मैंने उनको बताया की संध्या ने पहले कभी भी ब्रा नहीं पहनी है और जाहिर है की उसको उनकी आदत नहीं है, इसलिए ऐसी ब्रा दिखाए, जो आरामदायक हों, और साथ ही सेक्सी भी, क्योंकि यह हमारा हनीमून भी है। साथ ही मैचिंग पैंटीज भी दिखाएँ। वो ब्रा-फिटर पक्की पेशेवर थीं। वो अपना मापक-टेप लेकर आयीं, और संध्या के साथ चेंज-रूम में चली गई, और मुझे भी साथ आने को बोला। फिटिंग रूम में पहुँच कर उन्होंने संध्या को निर्वस्त्र होने को कहा। संध्या पहले ही इस पूरे अनुभव से अभिप्लुत थी – यह सब कुछ उसने पहली बार ही देखा था, और शॉपिंग इस तरह से भी होती है उसको मालूम ही नहीं था। और अब, उसको एक अज्ञात महिला निर्वस्त्र होने को कह रही थी – मैंने संध्या को माथे पर चूमा, और कपड़े उतारने को कहा। मेरे कहने पर संध्या को थोड़ी स्वान्त्वना मिली और उसने कुछ और हिचकिचाहट के बाद अपना कुर्ता और शलवार उतार दिया।
“शी इस सो ब्यूटीफुल, सर!” संध्या के रूप का अवलोकन और आंकलन करते हुए उसने कहा।
“थैंक यू सो मच! शी इस इन्डीड! एंड, आई ऍम इन लव विद हर!” मुझे समझ नहीं आया की और क्या कहा जाए।
“श्योर! नाउ सर, प्लीज़ सिट एंड वेट! लेट अस सरप्राइज यू!” उसने मुस्कुराते हुए कहा। उन दोनों को कुछ देर लगने वाली थी, इसलिए मैंने ब्रा-फिटर को बीच-वियर, और स्विम-वियर भी चुनने को कह दिया और अपने लिए भी कुछ सामान लेने चला गया। कोई डेढ़-दो घंटे के बाद हमारे पास तीन बैग भर कर सामान हो गया।
ब्रा-फिटर ने बिल का भुगतान लेटे हुए मुझसे फुसफुसा कर कहा, “सर, यू आर अ वेरी लकी मैन टू हैव अ गर्ल लाइक योर वाइफ! एंड, यू आर गोइंग टू बी अ वेरी वेरी हैप्पी मैन ऑन योर हनीमून!”
‘ऐसा क्या खरीद लिया!?’ मैने सोचा।
अगली दुकान में मैंने संध्या के लिए कुछ जीन्स, स्कर्ट, हाफ-पैन्ट्स, और टी-शर्ट खरीदीं। उसने मुझे ऐसी फ़िज़ूल-खर्ची के लिए बहुत मना किया, लेकिन मेरे लिए यह पहला मौका था जब मैं किसी अपने को किसी भी तरह का उपहार दे पाया, इसलिए मैं रुकना नहीं चाहता था। अगला पड़ाव जूते खरीदने के लिए था – संध्या के लिए एक जोड़ी सैंडल, स्पोर्ट-शूज, और स्लिपर्स खरीदीं। हमने खाना खाया, संध्या की लहँगा-चोली ली, और वापस घर आ गए।
superb updateघर आते ही सबसे पहले पोर्ट-ब्लेयर जाने का टिकट लिया। सामान पैक करने के लिए कुछ तैयारी नहीं करनी थी – ज्यादातर सामान नया था और तुरंत ही पैक किया जा सकता है। मैंने अपना डिजिटल कैमरा और पर्सनल लैपटॉप भी बाहर ही रख लिया, और फिर अपने रिसेप्शन के इवेंट आर्गेनाइजर से बात की। उसने बताया की सब पूरी तरह नियत रूप से चल रहा है और शाम को बहुत अच्छा रिसेप्शन होगा।
हमारा रिसेप्शन बिलकुल मॉडर्न समारोह था। बहुत ज्यादा लोग नहीं बुलाये गए थे – बस मेरे सोसाइटी के कुछ परिवार, देवरामनी दंपत्ति, मेरे ऑफिस के ज्यादातर सहकर्मी, मेरे बॉस और उसका परिवार आये थे। संध्या के लिए यह रिसेप्शन वाली संकल्पना ही पूरी तरह से नई थी – वह हाँलाकि नर्वस थी, लेकिन सारे लोग उससे इतने प्यार, अदब और प्रशंसा से मिल रहे थे की धीरे-धीरे वह समारोह का आनंद उठाने लगी। हमेशा की तरह वह आज भी बेहद सुन्दर लग रही थी। एक अप्रत्याशित बात हुई - मेरी दो भूतपूर्व प्रेमिकाएँ भी बिना बुलाए आ गईं, लेकिन अच्छी बात यह, की उन्होंने कोई बखेड़ा नहीं खड़ा किया। उलटे, वो दोनों मेरे लिए बहुत ख़ुश थीं – दोनों ने ही संध्या को गाल पर चूमा, शादी की बधाइयाँ और उपहार भी दिए! मुझे भी बधाइयाँ मिली और दोनों ने ही मुझको बताया की मेरी बीवी बहुत सुन्दर है! अब यह दिखावा था, या सचमुच की ख़ुशी, कह नहीं सकता।
रिसेप्शन में होता ही क्या है? खाना-पीना, नाच-गाना, और मदिरा। कोई तीन घंटे तक सबने खूब मस्ती करी। मेरे मित्र-गण मुझे और संध्या को पकड़ कर डांस-फ्लोर पर ले गए जहाँ हमने दो-तीन धुनों पर नृत्य किया। नाचने में मैं तो खैर काफी बेढंगा हूँ, लेकिन संध्या को सुर-ताल-और-लय पर नाचना आता है। बड़ा मज़ा आया। समारोह के बाद सबने विदा ली। मैंने अपने बॉस को बोला की वो अपने मित्र को कह दें की हम कल सवेरे पोर्ट ब्लेयर पहुँच जायेंगे, और हमारे लिए इंतजाम कर दे। बॉस ने कहा की उन्होंने पहले ही अपने मित्र को कह दिया है, और अभी वो फिर से बात कर लेंगे। फिर उन्होंने अपने मित्र का भी नंबर दिया और मुझसे बात करायी। उन्होंने फ़ोन पर मुझे बताया की उन्होंने एक कमरा बुक कर रखा है और हमारे आनंद की पूरी व्यवस्था कर दी गई है। उन्होंने मुझे आगे का प्लान बताया और कहा की हम लोग पोर्ट ब्लेयर से सीधा हेवलॉक द्वीप पहुँच जाएँ। हमारे लिए फेरी का टिकट भी प्लान कर लिया गया है। ये होती है निर्बाध व्यवस्था!
लोगों के दिए गए उपहारों को समेट कर घर आते-आते पुनः रात के बारह बज गए। देर तक सोने का समय ही नहीं बचा। सबसे पहले अपने कपड़े बदले, दो बैग तैयार किये, अपना कैमरा और लैपटॉप रखा। सोने का कोई सवाल ही नहीं था, इसलिए मैं संध्या को लेकर अपनी बालकनी में आ गया।
“कितनी शान्ति है – लगता ही नहीं की यह वही शहर है जहाँ दिन भर इतना शोर होता रहता है।“ संध्या ने कहा।
“हा हा! हाँ, रात में ही लोगो को ठंडक पड़ती है यहाँ तो! पूरा दिन बदहवासी में भटकते रहते हैं सब! आपने अभी मुंबई शहर नहीं देखा – देखेंगी तो डर जाएँगी।”
“इतना खराब है?”
“खराब छोटा शब्द है! बहुत खराब है।”
कुछ देर चुप रहने के बाद,
“आप क्यों इतना खर्च कर रहे हैं? मैं ... हम, अपने घर में, मतलब यहीं क्यों नहीं रह सकते?”
“जानेमन, अपने ही घर में रहेंगे। हनीमून घर में नहीं मनाते! और इसी बहाने कहीं घूम भी आयेंगे!! मैंने अपनी पूरी लाइफ में सिर्फ एक ही यात्रा की है – और उसमें ही भगवान को इतनी दया आ गई की आपको मेरे जीवन में भेज दिया। सोचा, की एक बार और अपने लक को ट्राई कर लेता हूँ। न जाने और क्या क्या मिल जाए! हा हा!”
“अच्छा, तो आपका मन मुझसे अभी से भर गया, की अब दूसरी की खोज में निकल पड़े?” संध्या ने मुझे छेड़ा।
“दूसरी की खोज! अरे नहीं बाबा! फिलहाल तो पहली की ही खोज चल रही है! न तो आपने कभी बीच देखे, और न ही मैंने! बीच भी देखेंगे, और.... और भी काफी कुछ!” मैंने आँख मारते हुए कहा।
“काफी कुछ मतलब?”
उत्तर में मैंने संध्या के कुरते के ऊपर से उसके स्तन को उंगली से तीन चार बार छुआ।
“आप थके नहीं अभी तक?” संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।
“ऐसी बीवी हो तो कोई गधा हस्बैंड ही होगा जो थकेगा! तो बताओ, मैं गधा हूँ क्या?”
संध्या ने प्यार से मेरे गले में गलबैंयां डालते हुए कहा, “नहीं... आप तो मेरे शेर हैं!”
“आपको मालूम है की शेर और शेरनी दिन भर में कोई 40-50 बार सेक्स करते हैं?”
“क्या?... आप सचमुच, बहुत बदमाश हैं! न जाने कैसे ऐसी बाते मालूम रहती हैं आपको!”
“इंटरेस्टिंग बाते मुझको हमेशा मालूम रहती हैं!”
“तो, जब आपने मान ही लिया है, की मैंने आपका शेर हूँ.... और आप... मेरी शेरनी... तो....”
“हःहःहःह...” संध्या हल्का सा हंसी, “शेर आपके जैसा हो, और शेरनी मेरे जैसी, तो शेरनी तो बेचारी मर ही जाए!”
मैंने कुछ और खींचने की ठानी, “मेरे जैसा मतलब?”
“जब हमारी शादी पास आ रही थी, तो पास-पड़ोस की 'भाभियां' मुझे.... सेक्स... सिखाने के लिए न जाने क्या-क्या बताती रहती थीं।“
“आएँ! आपको भाभियाँ यह सब सिखाती है?”
“तो और कौन बतायेगा? उनके कारण मुझे कम से कम कुछ तो मालूम पड़ा – भले ही उन्होंने सब कुछ उल्टा पुल्टा बताया हो! अब तो लगता है की शायद उनको ही ठीक से नहीं मालूम!”
मुझे संध्या की बात में कुछ दिलचस्पी आई, “अच्छा, ऐसा क्या बताया उन्होंने जो आपको उल्टा पुल्टा लगा? मुझे भी मालूम पड़े!”
संध्या थोड़ा शरमाई, और फिर बोली, “उन्होंने मुझे बताया की पुरुषों का... ‘वो’.. ककड़ी के जैसा होता है। मैं तो उसी बात से डर गई! मैंने तो सिर्फ बच्चों के ही... ‘छुन्नू’ देखे थे, लेकिन उस दिन जब मैंने पहली बार आपका.... देखा, तो समझ आया की ‘वो’ उनके बताये जैसा तो बिलकुल भी नहीं था। आपका साइज़ तो बहुत बड़ा है! मुझे लगा की मेरी जान निकल जाएगी। और फिर आप इतनी देर तक करते हैं की.....!”
“मतलब आपको मज़ा नहीं आता?” मैंने आश्चर्य से कहा – मुझे लगा की मैंने संध्या को बहुत मज़े दे रहा हूँ! कहीं देर तक करने के कारण उसको तकलीफ तो नहीं होती!
“नहीं! प्लीज! ऐसा न कहिये! मैं सिर्फ यह कह रही हूँ की आप वैसे बिलकुल भी नहीं हैं, जैसा मुझे भाभियों ने मर्दों के बारे में बताया है! भाभियों के हिसाब से सेक्स.... बस दो-चार मिनट में ख़तम हो जाता है, और यह भी की यह मर्दों के अपने मज़े के लिए है। लेकिन आप.... आप एक तो कम से कम पंद्रह-बीस मिनट से कम नहीं करते, और आप हमेशा मेरे मज़े को तरजीह देते हैं। और बात सिर्फ सेक्स की नहीं है......”
संध्या थोड़ी भावुक हो कर रुक गई, “मेरे शेर तो आप ही हैं!” कहते हुए संध्या ने मेरे लिंग को अपने हाथ की गिरफ्त में ले लिया – मेरा लिंग फूलता जा रहा था।
“आई ऍम सो लकी! .... और अगर मैं यह बात आपको बोलूँ, तो आप मेरे बारे में न जाने क्या सोचेंगे! लेकिन फिर भी मुझे कहना ही है की मैं आपकी फैन हूँ! फैन ही नहीं, गुलाम! आप मेरे हीरो हैं... आप जो कुछ भी कहेंगे मैं करूंगी। आज आपने मुझे जब कपड़े उतारने को कहा, तो मुझे डर या शंका नहीं हुई। मुझे मालूम था की आप मेरे लिए वहां हैं, और मुझे कोई नुक्सान नहीं होने देंगे। और... आप चाहे तो दिन के चौबीसों घंटे मेरे साथ सेक्स कर सकते हैं, और मैं बिलकुल भी मना नहीं करूंगी!”
“हम्म्म्म! गुड!” फिर कुछ सोच कर, “... लगता है आपकी भाभियों को मेरे पीनस (लिंग) का स्वाद देना पड़ेगा!”
“न न ना! आप बहुत गंदे हैं!” संध्या ने मेरे लिंग पर अपनी गिरफ्त और मज़बूत करते हुए कहा, “ऐसा सोचिएगा भी नहीं। ये सिर्फ मेरा है!”
कह कर संध्या ने मेरे लिंग को दबाया, सहलाया और हल्का सा झटका दिया।
“ये करना आपकी भाभियों ने सिखाया है?” मैंने शरारत से पूछा।
“चलिए, आपको थकाते हैं!” संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।
hot updateमैंने भी मुस्कुराते हुए संध्या को चूमने के लिए उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खीचा और उसके मुँह में मुँह डाल कर उसको चूमने लगा। कुछ देर चूमने के बाद मैंने संध्या का कुरता उसके शरीर से खींच कर अलग किया और अपना भी टी-शर्ट उतार दिया। मेरी हुस्न-परी के स्तन अब मेरे सामने परोसे हुए थे – मैंने संध्या के दाहिने निप्पल को अपनी जीभ से कुछ देर तक चुभलाया, फिर मुँह में भर लिया। संध्या के मुँह से मीठी सिसकारी निकल पड़ी। मैं बारी-बारी से उसके स्तनों को चूमता और चूसता गया - जब मैं एक स्तन को अपने मुँह से दुलारता, तो दूसरे को अपनी उँगलियों से। उसके निप्पल उत्तेजना से मारे कड़े हो गए, और सांसे तेज हो गईं। अब समय था अगले वार का - मैंने अपने खाली हाथ को उसकी शलवार के अन्दर डाल दिया, और उसकी योनि को टटोला। योनि पर हाथ जाते ही मुझे वहां पर गीलेपन का एहसास हुआ। कुछ देर उसको सहलाने के बाद मैंने अपनी उंगली संध्या की योनि में डाल कर अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।
संध्या कुछ देर आँखें बंद करके आनंद लेती रही, फिर उसने मेरे लिंग को मुक्त कर दिया – मैं पूरी तरह उत्तेजित था। कुछ देर संध्या ने मेरे लिंग को अपने हाथ से पकड़ कर मैथुन किया, और फिर झुक कर उसको अपने मुँह में भर लिया। दोस्तों, लिंग को चूसे जाने का एहसास अत्यंत आंदोलित करने वाला होता है। उत्तेजना के उन्माद में मैं बालकनी की रेलिंग के सहारे आधा लेट गया, और लिंग चुसवाता रहा। संध्या कोई निपुण नहीं थी – लेकिन उसका अनाड़ीपन, और मुझे प्रसन्न करने की उसकी कोशिश मुझे अभूतपूर्व आनंद दे रही थी। कुछ देर के बाद संध्या ने चूसना रोक दिया, और अपनी शलवार और चड्ढी उतार फेंकी। फिर उसने वो किया जो मैंने कभी सोचा भी नहीं – मेरे दोनों तरफ अपनी टांगे फैला कर वह मेरे लिंग को अपनी नम योनि में डाल कर धीरे-धीरे नीचे बैठने गई।
“आअह्ह्ह्ह....” उन्माद में संध्या की साँसे उखड गई।
संध्या ने उत्साह के साथ मैथुन करना प्रारंभ कर दिया – मैं वैसे भी दो दिन से भरा बैठा था, इसलिए वैसे भी बहुत कामोत्तेजित हो गया था। मेरा लिंग एकदम कड़क हो गया, और संध्या की पहल भरी यौन-क्रिया से और भी दमदार हो गया। मैं बस संध्या के स्तनों और नितम्बो को बारी-बारी से दबाता रहा। इस बीच संध्या पूरे अनाड़ीपन में मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे होती रही – कभी कभी लिंग उसकी योनि से बाहर भी निकल जाता। वैसा होने पर मैं वापस उसको अन्दर डाल देता। संध्या को संभवतः एक पूर्व संसर्ग की याद हो आई हो – वह अपने नितम्बो को न केवल ऊपर नीचे, बल्कि गोलाकार गति में भी घुमा रही थी - इससे मेरे लिंग का दो-आयामी दोहन होने लगा था। इससे उसके भगनासे का भी बराबर उत्तेजन हो रहा था। उसकी गति भी बढ़ने लगी थी - सम्भवतः वह स्खलित होने ही वाली थी। बस अगले 2 ही मिनटों में संध्या का शरीर चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर थरथराने लगा, और उसी समय मैं भी अपने उन्माद के आखिरी सिरे पर पहुँच गया। कुछ ही धक्को में मैं स्खलित हो गया। संध्या जैसी सौंदर्य की देवी की योनि में वीर्य की धाराएँ छोड़ने का एहसास बहुत ही सुखद था।
सम्भोग का ज्वार थमते ही संध्या मेरे सीने पर गिर कर हांफने लगी! मेरे तेजी से सिकुड़ते लिंग पर उसकी योनि का मादक संकुचन – मानो उसकी मालिश हो रही हो।
“बाप रे! आप कैसे करते हैं, इतना देर! ..... आपका तो नहीं मालूम, लेकिन मैं थक गई! आअह्ह!”
हम दोनों ही इस बात पर हंसने लगे। फिर संध्या को कुछ याद आया,
“अच्छा, आपने बताया ही नहीं की उस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?”
“किस कहानी से?” मैंने दिमाग पर जोर डाला, “अच्छा, वो! हा हा हा! तो आपको याद आ ही गया। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है की साँवली लड़कियाँ सेक्स में बहुत तेज़ होती हैं... और... गोरी लड़कियों को सिखाना पड़ता है!”
“छी! धत्त! आप न! आपके साथ दो दिन क्या रह ली, मैं भी बेशरम हो गई हूँ!”
“हा हा! बेशरम? कैसे?”
“ऐसे ही आपके सामने नंगी पड़ी हूँ।“
“तो फिर किसके सामने नंगा पड़ा होना था आपको?”
“किसी के सामने नहीं! नंगा होना क्या ज़रूरी है? और तो और, उस दिन तो नीलम ने भी देख लिया। और आप भी पूरे बेशरम हो कर उसको दिखाते रहे।”
“अरे! देख लिया तो देख लिया! बच्ची है वह! सीखने के दिन हैं... अच्छा है, हमसे सीख रही है!”
“जी नहीं! कोई ज़रुरत नहीं!”
हम लोग ऐसी ही फ़िज़ूल की बातें कुछ देर तक करते रहे। नव-विवाहितों के बीच में शुरू शुरू में एक दीवार होती है। हमारे बीच में वह दीवार अब नहीं थी। ये सब शिकायतें, छेड़खानी, हंसी-मज़ाक, सब कुछ मृदुलता और नेकदिली से हो रहा था। हमारे बीच की अंतरंगता अब सिर्फ शारीरिक नहीं रह गई थी। मैंने एक कैब सर्विस को फ़ोन कर बैंगलोर हवाई अड्डे के लिए टैक्सी मंगाई, और हम दोनों एक साथ नहाने के लिए गुसलखाने में चले गए।
संध्या भले ही न दिखा रही हो, लेकिन वह हनीमून को लेकर उतना ही रोमांचित थी, जितना की मैं। मैंने जब भी द्वीपों के बारे में सोचा, मुझे बस यही लगता की वह कोई ऐसी एकांत जगह होगी, जहाँ सफ़ेद बलुई बीच होंगे, लहराते ताड़ और नारियल के पेड़ होंगे, और गरम उजले दिन होंगे! सच मानिए, उन तीन चार दिनों की ठंडी में ही मेरा मन भर गया। इतने दिनों तक बैंगलोर की सम जलवायु में रहते हुए उस प्रकार की कड़क ठंडक से दो-चार होने की हिम्मत मुझमे नहीं थी। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह बिलकुल वैसी जगह थी, जहाँ मैं अभी जाना पसंद करता। संध्या का साथ, इस यात्रा में सोने पर सुहागा थी।
awesome updateबैंगलोर हवाई-अड्डे पर पुनः कोई समस्या नहीं हुई। बस यही की चेक-इन काउंटर पर बैठी ऑफिसर, संध्या जैसी अल्पवय तरुणी को विवाहित सोच कर उत्सुकता पूर्वक देख रही थी। मेरे लाख मना करने के बावजूद आज भी संध्या ने साड़ी-ब्लाउज़ पहना हुआ था – हाथों में मेहंदी, सुहाग की चूड़ियाँ, सिन्दूर, मंगलसूत्र, इत्यादि सब पहना हुआ था उसने। मैंने लाख समझाया की गहनों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है, फिर भी! अल्प-वय पत्नी होने के अपने ही नुकसान हैं – लोग कैसी कैसी नज़रों से देखते रहते हैं! और तो और, सारे मॉडर्न कपड़े-लत्ते खरीदना बेकार सिद्ध हो रहा था। जवान लोगो के शौक होते हैं... लेकिन ये तो परंपरागत परिधान छोड़ ही नहीं रही है।
फ्लाइट अपने निर्धारित समय पर निकली – मैंने संध्या को विंडो सीट पर बैठाया, जिससे वो बाहर के नज़ारे देख सके। बंगाल की खाड़ी पर उड़ते समय कुछ भी साफ़ नहीं दिख रहा था – अधिक रोशनी और धूल-भरी धुंध के कारण कुछ भी नहीं समझ आ रहा था। लेकिन, जब हम द्वीप समूह के निकट पहुंचे, तब नजारे एकदम से अलग दिखने लगे। नीले रंग का पानी, उसके बीच में अनगिनत हरे रंग के टापू, नीला आसमान, उसमें छिटपुट सफ़ेद बादल! फ्लाइट पूरा समय सुगम रूप से चली, लेकिन आखिरी पंद्रह मिनट किसी एयर-पॉकेट के कारण हमको झटके लगते रहे। बेचारी संध्या ने डर के मारे मेरा हाथ कस के पकड़ रखा था (अब कोई किसी को कैसे समझाए की अगर हवाई जहाज गिर जाए, तो कुछ भी पकड़ने का कोई फायदा नहीं!)।
खैर, उतरते समय नीचे का जो भी दृश्य दिखा वो अत्यंत मनोरम था। एअरपोर्ट पर हवाई पट्टी के चहुँओर छोटे-छोटे पहाड़ी टीले थे, जिन पर प्रचुर मात्रा में हरे हरे पेड़ लगे हुए थे। देख कर ऐसा लग रहा था की यहाँ बहुत ठंडक होगी, लेकिन सूरज की गर्मी और समुद्री प्रभाव के कारण वातावरण गुनगुना गरम था। उत्तराँचल की ठंडी (जो की मेरे दिलोदिमाग में बस गई थी) से तुरंत ही बहुत राहत मिली।
कुछ शब्द अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के बारे में :
अंडमान में मानव जीवन हजारों सालों से है – तब से जब से मानव-जाति अफ्रीका से बाकी विश्व में प्रवास कर रही थी। वहां पर मिलने वाले पुरातात्विक प्रमाण कोई ढाई हज़ार साल पुराने हैं। माना जाता है की प्राचीन ग्रीक भूगोलवेत्ता टालमी को इनके बारे में मालूम था। महान चोल राजाओं को भी इनके बारे में मालूम था और वे इन द्वीप समूहों को ‘अशुद्ध द्वीप’ कहते थे। खैर, उनके लिए इन द्वीपों की आवश्यकता एक नौसेना छावनी से अधिक नहीं थी। बाद में महान मराठा योद्धा, शिवाजी महाराज ने भी इन द्वीपों पर राज किया। अंततः अंग्रेजों ने 1780 के आस पास इन पर अपना प्रभुत्त्व जमा लिया, और इनका प्रयोग एक दण्ड-विषयक कॉलोनी जैसे करना आरम्भ किया। 1857 की क्रान्ति के बाद अनगिनत युद्ध बंदियों को यहाँ पर कारावास दिया गया और अंततः, आजादी की लड़ाई के समय बहुत से महत्त्वपूर्ण राजनीतिकी बंदियों को यहाँ बनायीं हुई ‘सेलुलर जेल’ में बंधक बना कर रखा गया। इसी अतीत के कारण, इनको ‘काला पानी’ कहते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के समय थोड़े समय के लिए जापानियों ने इन पर कब्ज़ा कर लिया था, जिनके अवशेष वहां अभी भी मौजूद हैं। स्वतंत्रता मिलने के पश्चात इनको केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा मिला, और तब से यह स्थान शान्ति से है।
अंडमान की सबसे ख़ास बात यह है की पूरे भारत में यही एक जगह है, जिसको सही मायने में अवकाश वाली जगह कहा जा सकता है। पूरा देश, जब टी-टी पो-पो के शोर से, गंदगी और दुर्गन्ध से, और हर प्रकार के प्रदूषण से दो चार होता रहता है, तब साफ़, स्वच्छ, उच्च-दृश्य, और नीले पानी से घिरा यह स्थान, हमको सच में आनंदित करता है। देश के काफी पूर्वी हिस्से में रहने के कारण यहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त दिल्ली या मुंबई के मुकाबले कम से कम एक घंटे पहले होता है।
हमने पूरे दस दिनों का प्रोग्राम बनाया था (दरअसल, बॉस ने बनाया था... और एक बात, मेरे ऑफिस के सभी सहकर्मियों ने हमारे हनीमून के लिए योगदान किया था। यह एक अभूतपूर्व घटना थी, और लोगो के प्रेम के इस संकेत से में पहले ही बहुत प्रभावित और भावुक था), और उसका सारा दारोमदार बॉस के मित्र पर था। उन्होंने पूरी दयालुता से हमारे हनीमून को अविस्मरणीय अनुभव बनाने की गारंटी ली थी।
पोर्ट ब्लेयर आते ही एक टैक्सी ने हमको एक जेटी (जलबंधक) तक पहुँचाया, जहाँ एक उत्तम प्रकार की फेरी में फर्स्ट-क्लास में हमारी बुकिंग थी। यह सब कुछ हम दोनों के लिए ही नया था और रोमांचक भी। फिरोज़ी नीला समुद्री जल, उसमें उठती अनंत लहरें, हमारे जहाज द्वारा छोड़े जाने वाला फेन और शोर – सब कुछ रोमांचक था। फर्स्ट क्लास में हमारे अलावा एक और नव-विवाहित जोड़ा भी था, लेकिन वो दोनों अपने में ही इतना मगन थे, की उनसे बात करने का अवाल ही नहीं उठा, और ऐसा भी नहीं है की मुझको उनसे बात करने की तीव्र इच्छा थी। खैर, इन सब में समय यूँ ही निकल गया, और हम लोग वहां के हेवलॉक द्वीप पर पहुँच गए।
वहां जेटी पर हमें लेने होटल की गाड़ी आई। कार की खुली खिड़की से गुनगुनी धूप मिली हुई हवा और समुद्री महक बहुत अच्छी लग रही थी। कोई दस मिनट में ही हम लोग अपने रिसोर्ट पर पहुँच गए। आज सवेरे हवाई अड्डे पर ही जो खाया था, वही था, इसलिए अभी बहुत तेज भूख लग रही थी। हमने होटल में चेक-इन किया और अपने कमरे में पहुँच गए। यह रिसोर्ट एक विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ था – उसमे कुछ टेंट लगे हुए कमरे थे, और कुछ झोपड़े-नुमा कमरे। टेंट और झोपड़े सिर्फ कहने के लिए है – दरअसल ज्यादातर कमरों में वातानुकूलन लगा हुआ था। पूरे रिसोर्ट में नारियल के पेड़ और बहुत सारे फूल लगे हुए थे, जिससे दृश्य बहुत ही सुन्दर बन पड़ता था। इस समय मुझे जितने भी ग्राहक वहां दिखे, वो सारे ही विदेशी थे। इस रिसोर्ट में खूबी यह भी थी की यहाँ पर समुद्री एडवेंचर स्पोर्ट्स का भी बंदोबस्त करते थे। हमारा कमरा उनके सबसे अच्छे कमरों में से एक था, और रिसोर्ट के अपने बीच के ठीक सामने था। कमरे को सफ़ेद रंग से रंग गया था, और लिनेन फिरोज़ी नीले रंग के विभिन्न शेड्स के थे। पेंटिंग में भी समुद्र ही दिख रहा था। बिस्तर के सामने की तरफ फ्लैट-स्क्रीन टीवी लगी हुई थी, और दाहिनी तरफ लकड़ी का ड्रेसर – कुल मिला कर एक स्टैण्डर्ड रख रखाव!
“हियर वी आर!” बेलहॉप ने हमारा सामान ड्रेसर में रखते हुए कहा, और फिर दरवाज़े की तरफ बढ़ते हुए, “कान्ग्रेचुलेशंस ऑन योर वेडिंग, मिस्टर एंड मिसेज़ सिंह! आपको अगर कुछ आर्डर करना है तो मेनू साइड टेबल पर है और रेस्त्राँ का नंबर 10 है।“
कह कर वह कमरे से बाहर चला गया। खैर, मैंने अपने आपको बिस्तर पर पटका और खाने का मेनू उठाया, और संध्या को पूछा की वो क्या खाएगी। जैसा पहले भी हो चुका है, अंततः मुझे ही आर्डर करना पड़ा। खाने के साथ-साथ फ्रेश लाइम सोडा भी मंगाया।
“चलिए, आपको इन कपड़ों से छुट्टी दिलाते हैं?” आर्डर देते ही मैंने जैसे ही संध्या की तरफ हाथ बढाया, वह झट से पीछे हट गई।
“धत्त! आप भी न, जब देखो तब शुरू हो जाते हैं! आपके छुन्नू पर आपका कोई कंट्रोल नहीं है!”
“छुन्नू? ये छुन्नू है?” कहते हुए मैंने संध्या का हाथ पकड़ कर अपने सख्त होते लिंग पर फ़िराया.... “जानेमन, इसको लंड कहते हैं.... क्या कहते हैं?”
“मुझे नहीं मालूम।“ संध्या ने ठुनकते हुए कहा।
“अरे! अभी तो बताया – इसको ल्ल्ल्लंड कहते हैं।“ मैंने थोडा महत्व देकर बोला। “अब बोलो।“
अब तक मैं बिस्तर के कोने पर बैठ गया था, और संध्या मेरे बांहों के घेरे में थी।
“नहीं नहीं!.. मैं नहीं बोल सकती!”
मैंने संध्या के नितम्ब पर एक हल्की सी चपत लगाई, “बोलो न! प्लीईईज्! क्या कहते हैं इसको?”
संध्या, हिचकते और शर्माते हुए, “ल्ल्ल्लंड...”
“वेरी गुड! और लंड कहाँ जाता है?”
“मेरे अन्दर...”
“नहीं, ऐसे कहो, ‘मेरी चूत के अन्दर..’ .... कहाँ?”
संध्या अब तक शर्मसार हो चली थी, लेकिन गन्दी भाषा का प्रयोग हम दोनों के ही लिए बहुत ही रोमांचक था, “मेरी .. चूत.. के अन्दर...”
“गुड! कल ही आपने कहा था की मैं चाहूँ तो दिन के चौबीसों घंटे आपकी चूत में अपना लंड डाल सकता हूँ, और आप बिलकुल भी मना नहीं करेंगी! कहा था न?”
“मैंने कहा था? कब?” संध्या भी खेल में शामिल हो गई।
“जब आप मेरे लंड को अपनी चूत में डाल कर उछल-कूद कर रहीं थी तब...” मैंने संध्या की साड़ी का फेंटा उसके पेटीकोट के अंदर से निकाल लिया और ज़मीन पर फेंक दिया। “बोलिए न, मुझे रोज़ डालने देंगी?”
“आप भी न! जाइए, मैं अब और कुछ नहीं बोलूंगी..”
“अरे! मुझसे क्या शर्माना? यहाँ मेरे सिवाय और कौन है यह सब सुनने को? बोलिए न!”
“नहीं! आप बहुत गंदे हैं! और, मैं अब कुछ नहीं बोलूंगी.... जो बोलना था, वो सब बोल दिया।“
अब उसकी पेटीकोट का नाडा खुल गया और खुलते ही पेटीकोट नीचे सरक गया। संध्या सिर्फ ब्लाउज और चड्ढी में मेरे सामने खड़ी हुई थी।
“ऐसे मत सताओ! प्लीज! बोलो न!”
“हाँ!”
“क्या हाँ? ऐसे बोलो, ‘हाँ, मैं तुमको रोज़ डालने दूंगी’...”
“छी! मुझे शरम आती है।“
“कल तो बड़ी-बड़ी बाते कह रही थी, और आज इतना शर्मा रही हैं! अब क्या शरमाना? ये देखो, मेरी उंगली आपकी चूत के अन्दर घुस रही है! और कुछ ही देर में मेरा लंड भी घुस जाएगा! अब बोल दो प्लीज। मेंरे कान तरस रहे हैं!” संध्या की चड्ढी मैंने थोड़ा नीचे सरका दी और उसकी योनि को अपनी तर्जनी से प्यार से स्पर्श कर रहा था।
“बोलो न!”
“हाँ, मैं रोज़ डालने दूंगी।“
“कभी मना नहीं करोगी?”
“कभी नहीं... जब आपका मन हो, तब डाल लीजिये!”
“क्या डाल लीजिये?”
“जो आप थोड़ी देर में डालने वाले हैं!”
“क्या डालने वाले हैं?”
इस बार थोड़ी कम हिचक से, “ल्ल्ल्लंड...”
“गुड! और कहाँ डालने वाले हैं?” कहते हुए मैंने संध्या के भगोष्ट को सहलाते हुए उसकी योनि में अपनी तर्जनी प्रविष्ट करा दी।
“अआह्हह! मेरी चूत में!”
“वेरी वेरी गुड! अब पूरा बोलो!”
संध्या फिर से सकुचा गई, “मैं रोज़ आपका लंड.... अपनी चूत में... डालने दूँगी! और.... कभी मना नहीं करूँगी।”
यह सुन कर मैंने संध्या को अपनी ओर भींच लिया और उसके सपाट पेट पर एक जबरदस्त चुम्बन दिया। हमारी ‘डर्टी टॉक’ से वह बहुत उत्तेजित हो गई थी। एक दो और चुम्बन जड़ने के बाद मैंने संध्या को बिस्तर पर पेट के ही बल पटक दिया और उसकी चड्ढी उतार फेंकी।
very nice updateसंध्या को बिस्तर पर लिटा कर मैंने उसकी दोनों जांघें कुछ इस प्रकार फैलाईं जिससे उसकी योनि और गुदा दोनों के ही द्वार खुल गए। इससे एक और बात हुई, संध्या के नितम्ब ऊपर की तरफ थोडा उभर आये और थोड़ा और गोल हो गए। सुडौल नितम्ब..! स्वस्थ और युवा नितम्ब। जैसा की मैंने पहले भी बताया है, संध्या के नितम्ब स्त्रियोचित फैलाव लिए हुए प्रतीत होते थे, जिसका प्रमुख कारण यह है की उसकी कमर पतली थी।
मैंने पहले अधिक ध्यान नहीं दिया, लेकिन संध्या के नितम्ब भी उसके स्तनों के सामान ही लुभावने थे। मैंने उसके दोनों नितम्बों को अपनी दोनों हथेलियों में जितना हो सकता था, भर लिया और उनको प्रेम भरे तरीके से दबाने कुचलने लगा। कुछ देर ऐसे ही दबाने के बाद उसके नितम्बों के बीच की दरार की पूरी लम्बाई में अपनी तर्जनी फिराई। उसकी योनि पर जैसे ही मेरी उंगली पहुंची, मुझे वहां पर उसकी उत्तेजना का प्रमाण मिल गया – योनि रस के स्राव से योनि मुख चिकना हो गया था। मैंने उसकी योनि रस में अपनी तर्जनी भिगो कर उसकी गुदा पर कई बार फिराया। हर बार जैसे ही मैं उसकी गुदा को छूता, स्वप्रतिक्रिया में उसका द्वार बंद हो जाता।
“और इस काम को क्या कहते हैं?”
“आह! ... सेक्स!”
“नहीं, बोलो, चुदाई! क्या कहते हैं?”
“चुदाई! आह!”
“हाँ! अभी पक्का हो गया। मुझे रोज़ आपकी चूत में मेरा लंड डाल कर चुदाई करने का एग्रीमेंट मिल गया है... क्यों ठीक है न?”
“आह... जीईई..!”
हम आगे कुछ और करते, की दरवाज़े पर दस्तक हुई, “रूम सर्विस!”
मैंने हड़बड़ा कर बोला, “एक मिनट!”
संध्या सिर्फ ब्लाउज पहने हुए ही भाग कर बाथरूम में छुप गई। वो तो कहो मैंने भी अपने कपड़े नहीं उतारे थे, नहीं तो बहुत ही लज्जाजनक स्थिति हो जाती। खैर, संध्या के बाथरूम में जाते ही मैंने दरवाज़ा खोल दिया। वेटर खाने की ट्रे, पानी, टिश्यु इत्यादि लेकर आ गया था। उसने अन्दर आते हुए एक नज़र फर्श पर डाली, और वहां पर साड़ी, पेटीकोट, चड्ढी यूँ ही पड़ी हुई देख कर उसने एक हल्की सी मुस्कान फेंकी – उसको शायद ऐसे दृश्य देखने की आदत हो गई होगी। उसने अब तक न जाने कितने ही नवदंपत्ति देख लिए होंगे!
उसने टेबल पर खाने की प्लेट, डिशेस, पानी इत्यादि रखा और जाते-जाते कह गया की शाम को एक ऑटोरिक्शा हमको राधानगर बीच ले जाने के लिए बुक कर दिया गया है। मैंने उसको धन्यवाद कहा और उससे विदा ली। दरवाज़ा बंद करने के बाद मैंने संध्या को बाहर आने को कहा – उसको ऐसे सिर्फ ब्लाउज पहने देखना बहुत ही हास्यकर प्रतीत हो रहा था।
“मैं इसीलिए कह रहा था की आपके कपड़ों की छुट्टी कर देते हैं.. लेकिन आप ही नहीं मानी!”
“और वो आप जो मुझे वो नए नए शब्द सिखाकर टाइम वेस्ट कर रहे थे, उसका क्या?”
“हा हा! अरे! आपने कुछ नया सीखा, उसका कुछ नहीं!”
“आप मुझे कुछ भी सिखा नहीं रहे हैं, ... बल्कि सिर्फ बिगाड़ रहे हैं! अब चलिए, मुझे कुछ पहनने दीजिये!”
“अरे, मैं तो यह ब्लाउज भी उतारने वाला था – आराम से, फ्री हो कर लंच करिए!”
“आपका बस चले तो मुझे हमेशा ऐसे नंगी ही करके रखें!”
“हाँ! आप हैं ही इतनी खूबसूरत!”
“हाय मेरी किस्मत! मेरे पापा ने सोचा की लड़की को अच्छे घर भेज रहे हैं। कमाऊ जवैं और एकलौता लड़का देख कर उन्होंने सोचा की उनकी लाडली राज करेगी! और यहाँ असलियत यह है की उस बेचारी को तो कपड़े पहनना भी नसीब नहीं हो रहा!” संध्या ने ठिठोली की।
“उतना ही नहीं, उस बेचारी के ऊपर तो न जाने कैसे कैसे सितम हो रहे हैं! बेचारी की चूत में रोज़....”
मैंने जैसे ही उस पर हो रहे अत्याचारों की सूची कुछ जोड़ना चाहा तो संध्या ने बीच में ही काट दिया, “छीह्ह! आपकी सुई तो वहीँ पर अटकी रहती है।”
“सुई नहीं... ल्ल्ल्लंड... सब भूल जाती हो!”
संध्या ने कृत्रिम निराशा में माथा पीट लिया – वह अलग बात है की मेरी बात पर वह खुद भी बेरोक मुस्कुरा रही थी। खैर, मैंने जब तक खाना सर्व किया, संध्या ब्लाउज उतार कर, और एक स्पोर्ट्स पजामा और टी-शर्ट पहन कर खाने आ गई। खाते-खाते मैंने संध्या को अपने हनीमून के प्लान के बारे में बताया – उसको यह जान कर राहत हुई की हमारे हनीमून में सिर्फ सेक्स ही नहीं, बल्कि काफी घूमना-फिरना और एडवेंचर स्पोर्ट्स भी शामिल रहेंगे।
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र! साथ बने रहिए।Waiting for next update