वो कहते हैं न की नशे में स्वयं पर वश नहीं रहता। जब मैं संध्या को पोंछ रहा था, तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। मैंने बिना सोचे समझे ‘कम-इन’ बोल दिया। और परिचारक को एक पूर्णतया नग्न युगल को देखने का आनंद प्राप्त हो गया। जब तक मुझे हम दोनों की नग्नावस्था का भान होता तब तक इतनी देर हो चली थी की कुछ करने का कोई लाभ न होता। खैर, उसके जाने के बाद मुझे एक विचार कौंधा की क्यों न संध्या की ऐसी हालत में कुछ तस्वीरें उतार ली जाएँ! मैंने झटपट अपना डी एस एल आर उठाया और संध्या की नग्नता की कलात्मक और अन्तरंग कई तस्वीरें ले डाली। उसके बाद मैं सो गया।
अब आगे...
अगली सुबह
मॉरीन ने मुझे सुझाव दिया की स्नॉर्कलिंग के लिए एक बहुत ही सुन्दर जगह है। उसको ‘इंग्लिश आइलैंड’ कहते हैं और उधर बहुत ही कम लोग जाते हैं। इस कारण से वहां का स्थानीय पर्यावरण सुन्दर है और बहुत ही अच्छे नज़ारे दिखते हैं। रकम थोड़ी अधिक लगती है, लेकिन आनंद भी बहुत आता है। मैंने सोचा, और हाँ बोल दिया। वैसे भी हम लोग यहाँ पर हनीमून के लिए आये हैं – अकेलापन तो चाहिए ही!
मैंने हल्की टी-शर्ट, स्विमिंग ट्रंक, कैप और सन-ग्लासेज पहने, और संध्या ने नायलॉन-लाइक्रा का स्विमसूट पहना – वह बिना बाँह का, V-गले वाला परिधान था, जिसको पीछे डोरी से बाँधा जाता था। इस पर बहुरंग प्रिंट्स बने हुए थे। उसके ऊपर (जिससे उसको अटपटा न लगे) संध्या ने एक लम्बी बीच मैक्सी, जिसका रंग पीला और हल्का हरा था, स्लीव-लेस, V-गले और बैक वाला परिधान पहना हुआ था। इसमें स्तनों के नीचे से रिब केज तक करीब चार इंच चौड़ा कोमल इलास्टिक लगा हुआ था। आज संध्या को इस प्रकार के परिधान में देख कर मुझे कुछ-कुछ होने लगा। मन तो यही था की उसको वहीँ पटक कर सम्भोग करने लगूं, लेकिन जैसे तैसे मैंने खुद को जब्त कर लिया। लेकिन बोट पर चढ़ने और उसके बाद आइलैंड के करीब स्नोर्केलिंग वाले स्थान तक पहुँचने तक मैंने उसकी अनगिनत तस्वीरें खींच डाली।
मॉरीन हमारी गाइड भी थी और प्रशिक्षक भी। उसने हम दोनों को स्नोर्केलिंग की विधि के बारे में बताया और उपकरणों से जानकारी कराई – ऐसा कुछ खास तो होता नहीं, बसे एक आँखों पर लगाने के लिए मास्क और साँस लेने के लिए मुँह में लगाने वाली पाइप। खैर, गोत लगाने की बारी आई तो हम तीनों ने तैराकी की पोशाक में आने का उपक्रम करना आरम्भ किया। संध्या बहुत झिझक रही थी, इसलिए मैंने उसको मैक्सी उतारने में मदद करी, और खुद की भी टी-शर्ट उतारी। मॉरीन ने टू-पीस स्विमिंग कॉस्टयूम पहना हुआ था। मैंने बोट चालक को कैमरा पकड़ा कर हम तीनों की तस्वीरें लेने को कहा – खुद बीच में खड़ा हुआ, दाहिनी तरफ संध्या और बाईं तरफ मॉरीन!
और फिर हम तीनों समुद्र में उतर गए।
उस स्थान पर मूंगा-चट्टानों की बहुतायत थी – यह अनुभव जैसे समुद्र के अन्दर झाँकने जैसा था। समुद्र का ठंडा पानी, कानों में पानी के हलचल की आवाज़, और आँखों के सामने एक अलग ही दुनिया का अद्भुत नज़ारा!! आपने ‘फाइंडिंग निमो’ फिल्म देखी है? यहाँ पर वो वाली मछलियाँ बहुत दिख रही थीं। पानी यहाँ पर बहुत गहरा था – कम से कम 20-25 फीट गहरा। विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी मछलियाँ हमारे चरों तरफ तैर रही थीं – मैंने कई बार कोशिश करी की एक को कम से कम छू लिया जाय – लेकिन मछलियाँ मुझसे कहीं तेज और चपल थीं। लेकिन यह खेल बड़ा ही मज़ेदार रहा। हमने अचानक ही एक बड़ी, ग्रे रंग की मछली देखी, जो कम से कम 3 फीट लम्बी रही होगी। ज्यादातर मछलियाँ 8 इंच से लेकर डेढ़ फीट तक की ही थीं। एक बार तो कोई सौ-डेढ़ सौ मछलियाँ हमारे इर्द गिर्द वृत्ताकार विन्यास में तैरने लगीं। उनको देखते देखते मानो समय ही रुक गया हो – न जाने कितनी ही देर वो हमारे चारो ओर चक्कर लगाती ही रही। और फिर अचानक ही सारी की सारी एक ओर निकल गईं। स्टार फिश, जेली फिश, एनिमोनी, और न जाने कौन कौन सी मछलियाँ दिखीं, जिनके नाम याद रखना अभी मेरे लिए संभव नहीं है। समुद्र तल भी साफ़ दिख रहा था – मूंगे की कई प्रकार की संरचनाएं, समुद्री सिवार, और तल पर बड़े आकार के सीपियाँ और शंख यूँ ही पड़े हुए थे। हमने कोई तीन घंटे तक इसी प्रकार से प्रकृति का आनंद उठाया। संध्या इस नज़ारे को देख कर स्तब्ध हो गई थी और अति प्रसन्न थी। खैर, हम लोग वापस बोट में बैठ कर इंग्लिश आइलैंड को चल दिए।
यह एक एकांत और छोटा टापू था और पूरी तरह निर्जन! इसके बीच में काफी पेड़ थे और इसका बीच नरम सफ़ेद रेत का बना हुआ था। मॉरीन ने बताया था की पांच मिनट में ही टापू पर पहुँच जायेंगे, इसलिए हमने कपड़े भी नहीं बदले थे, और ऐसे ही गीले गीले टापू पर पहुंचे। उस समय समुद्र में लहरें काफी ऊंची ऊंची उठ रही थी, इसलिए नाव को थोडा दूर ही लंगर दिया गया और टापू पर जाने के लिए एक बार फिर से समुद्र में कूदना पड़ा। नाविक और मॉरीन हमारे खाने पीने का सामान हमारे पास रखा, और हमें बताया की हम लोग यहाँ पर दो तीन घंटे आराम से रह सकते हैं, और दोनों टापू पर ही हमसे कुछ दूर पर बैठ कर अपना खुद खाने पीने लगे।
संध्या और मैंने सोचा की इस टापू को थोडा और देखना चाहिए, और तट पर ही चलने लगे। संध्या और उसका स्विमसूट पूरी तरह से गीला था और हवा के कारण उसको ठण्ड लग रही थी – रह रह कर उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ जा रही थी। मैंने ऐसा देखा तो पीछे से उसकी कमर में हाथ डाल कर, उसे अपनी तरफ खींच कर चलना शुरू किया। चलते चलते मैंने देखा की उसका सूट उसके नितम्बो को ढक कम, और प्रदर्शित ज्यादा कर रहा था। अतः, मैंने उसके नितंबो को थोड़े जोश से रगड़ना शुरू कर दिया।
“आप यह क्या कर रहे हैं?”
“गर्मी पैदा कर रहा हूँ, जानू! आपके कपड़े पूरी तरह से गीले हैं, और हवा भी चल रही है। ऐसे में आपको ठंड लग सकती है।"
“आप बहुत ख़याल रखते हैं मेरा!”, संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘कैसी नासमझ लड़की है यह! – ऐसी अवस्था में कोई लड़की राका डाकू को मिल जाए, तो वह भी इसी प्रकार गर्मी पैदा करेगा।‘ हम लोग चलते चलते एक एकांत वाली जगह पर आ गए – वहां पर बीच काफी चौड़ा और समतल था। सूर्य की गर्म भी अच्छी आ रही थी।
"क्या इसे उतार सकती हो?" मैंने संध्या को पूछा।
"क्यों?"
"आपकी बॉडी जल्दी सूख जायगी, अगर उसको गर्मी और हवा लगेगी।"
"लेकिन, वो लोग?”
“वो पीछे ही ठहरे हुए हैं। इधर नहीं आयेंगे... चिंता न करो!”
"अरे? ऐसे कैसे? अगर उनमे से कोई भी आ गया... और हमको ऐसी हालत में देखेगा तो क्या सोचेगा? और उनकी छोड़िए... मुझको ऐसे कोई और देखे तो मैं तो शरम से मर ही जाऊंगी!"
"आप भी क्या मरने मारने वाली बातें करती हैं? हनीमून पर आए हैं... हमको कुछ तो मज़ा करना चाहिए? और पूरे इंडिया में ऐसी सूनसान जगह नहीं मिलेगी! जितना कपड़े उतार सको, उतना ही मस्त!!" मैंने समझाया, "कोई नहीं आएगा... अब उतार दो न.."