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Romance कायाकल्प [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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मैं तो एक समलैंगिक हूँ, और जब संध्या जैसी सुन्दर, सेक्सी लड़की मेरे सामने इस प्रकार रहे, तो मेरा मन भी कुछ तो करने का बनेगा ही। मुझे यह नहीं मालूम था की हम तीनों की इस कामुक क्रिया की निष्पत्ति कैसे होगी, लेकिन उसके बारे में कुछ सोचना भी बेकार था। मैंने संध्या के मुख से अपना स्तन मुक्त कर उसको पीछे ही तरफ धकेला, जिससे वह रेत पर पीठ के बल गिर गई। मैंने कुछ पल उसको निहारा, फिर अपना चेहरा संध्या के पास ला कर अपने होंठ उसके होंठो से सटा दिए। तुरंत ही मुझे दो अत्यंत कोमल होंठो का स्वाद मिलने लगा।

मैं नहीं चाहती थी की संध्या इस नए अनुभव से डर जाए या घबरा जाए, इसलिए मैंने उसके होंठों पर हलके हलके कई चुम्बन जड़ दिए। मैंने देखा की संध्या बुरा नहीं मान रही हैम तो थोड़ी और तेज़ी और जोश के साथ उसको चूमना आरम्भ कर दिया। मैंने उसके दोनों गाल अपने हाथो में लेकर से थोडा दबा दिया, जिससे उसके होंठ खुल गए। मैंने अपनी जीभ संध्या के मुँह में डाल कर अन्दर का जायजा लेना और चूसना शुरू कर दिया।

मैंने एक हाथ उसके गाल से हटाया तो संध्या का मुँह फिर से बंद हो गया – हो सकता है की उसको मेरा इस तरह से चूमना पसंद न आया हो। खैर, मुझे भी उसके स्तनों का स्वाद चाहिए था – मेरा हाथ इस सामय उसके एक स्तन पर टिका हुआ था, और उसको धीरे धीरे दबा रहा था। अब एक साथ ही उसके होंठों और दोनों स्तनों का मर्दन आरम्भ हो गया। संध्या का पूरा शरीर पहले से ही कामोन्माद के कारण काफी संवेदनशील हो गया था, और अब इस नए प्रहार के कारण अब वह असहज होने लगी। उसके मुँह से कराहें निकलने लगीं। फिर भी, मैंने उसके दोनों निप्पल बारी बारी से अपने मुँह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। वो अब बहुत कड़े हो गए।

फिर मैंने उसकी योनि पर अपनी उंगलियाँ सटा दी, और उसे मसलने लगी। मेरी खुद की हालत कोई ख़ास अच्छी नहीं थी – संध्या और रूद्र के मैथुन, मेरी खुद की यौन भ्रान्ति (पता नहीं की मैं समलैंगिक हूँ या इतरलैंगिक?), और अब संध्या जैसी सुंदरी को इस प्रकार दुलारने से मेरी खुद की योनि भी काम रस टपकाने लगी। मुझ पर भी संध्या के सामान ही मदहोशी छा रही थी। मुझे संध्या की योनि का स्वाद भी लेना ही था – मैंने उसके पैरों के बीच में अपना मुँह लाकर उसकी योनि से सटा दिया और जीभ से उसका रस चाटने लगी। संध्या की योनि से बहुत सारा तरल निकल रहा था – उसकी योनि का रस, जिसमे रूद्र का वीर्य भी सम्मिश्रित था! अनोखा स्वाद!

मुझे अचानक ही अपने पीछे एक और जिस्म की अनुभूति हुई – किसी ने मेरे कंधे को पकड़ कर खुद को मुझसे चिपका लिया था। और उसी के साथ ही मुझे मेरी योनि की दीवार पर अभूतपूर्व खिंचाव महसूस हुआ। मुझे समझ आ गया की क्या हुआ है – रूद्र का लिंग मेरी योनि की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर घुस रहा था। थ्रीसम का ऐसा अनुभव तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

जैसे ही उसका लिंग मेरी योनि में आगे बढ़ा मेरे मुँह से एक गहरी आआअह्ह्ह निकल पड़ी। उसका लिंग मेरी योनि की गहराइयों में उतर गया, और फिर बाहर भी निकल पड़ा – लेकिन मेरे राहत की एक भी सांस लेने से लहले ही वह वापस घुस गया। मुझे यकीन हो गया की रूद्र मेरे साथ सम्भोग कर ही लेगा, लेकिन फिर भी मैंने उसको रोकने की एक आखिरी कोशिश करी।

“रूद्र.... आह्ह्ह! आई ऍम अ लेस्बियन!”

“हह हह हह ... ट्राई स्ट्रैट सेक्स वन्स। देन डिसाइड... ओके?”

फिर शायद उसको कुछ याद आया,

“आर यू सेफ? आई मीन...”

“यस... आह! आई ऍम सेफ! एंड आर यू?”

“यस! नो एस टी डी!”

कह कर रूद्र ने धक्के लगाने आरम्भ कर दिए। क्या बताऊँ! उस वक्त मुझे ऐसा मज़ा आ रहा था जैसे की मैं आसमान मैं उड़ रही हूँ। मेरे मुँह में संध्या की क्लिटोरिस थी, जिसको मैं अपनी जीभ से सहला रही थी और उधर मेरी योनि की कुटाई हो रही थी।

“आह ऊह! इट इस हर्टिंग! इट इस सो बिग! माई वेजाइना इस स्मार्टिंग! हाऊ डस शी टेक इट इन?”

मैंने उसके आगे पीछे वाले धक्के से अपनी लय मिलानी शुरू कर दी। हर धक्के से उसका लिंग मेरी योनि के पूरी भीतर तक घुस जाता। वो जोर-जोर से मुझे भोगने लगा – और मैं संध्या को भोगना भूल गई। वह मुझे पीछे से होकर मेरे स्तनों को दबोच दबोच निचोड़ रहा था। उसके रगड़ने से मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ने लगी। उसके जोरदार धक्के मुझे पागल बना रहे थे। कोई चार पांच मिनट तक वह मुझे ऐसे ही ठोंकता रहा - उसके धक्कों से मैं निढाल होकर पूरी तरह थक गई। फिर मुझे मेरी योनि में गरम गरम वीर्य की बूँदें गिरती महसूस हुई। कम से कम बीस साल बाद किसी पुरुष ने मुझे भोगा था – लेकिन ऐसा मज़ा मुझे पूरे जीवन में कभी नहीं आया।

हम तीनों बुरी तरह से थक कर वही गिर कर एक दूसरे की बाहों में कुछ देर लेटे रहे। और फिर सुस्ताने के बाद हमने कैमरे को ऑटो-मोड में सेट कर हम तीनों की वैसी ही नग्नावस्था में विभिन्न प्रकार की तस्वीरें खींची, एक दूसरे के गले लगे और फिर अपने कपड़े पहन कर वापस रिसोर्ट जाने के लिए तैयार हो गए। अगले दस मिनट में हम लोग वापस हेवलॉक द्वीप के लिए रवाना हो गए।

जैसे जैसे हम लोग अपने रूम की तरफ आ रहे थे, मैंने देखा, की संध्या का चेहरा उतरता जा रहा था। उसके चेहरे पर उदासी, गुस्सा, निराशा, खीझ, घृणा, और जुगुप्सा जैसे मिले जुले भाव आते और जाते जा रहे थे। उसके चेहरे को देख कर मेरे खुद के मजे का नशा पूरी तरह से उतर गया था और समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ! मैं जानना चाहता था की उसके मन में क्या चल रहा है, लेकिन उस समय मैंने खुद तो जब्त कर लिया और रूम तक पहुँचने तक का इंतज़ार किया। हम दोनों जैसे ही अन्दर आये संध्या के सब्र का बाँध टूट गया,

“आपका अपनी बीवी से मन भर गया?”

“क्या! ... आप ऐसे क्यों कह रही हैं, जानू?” मुझे तो जैसे काटो खून नहीं।

“आप प्लीज सच सच बताइये... मैं बुरा नहीं मानूंगी! मुझसे आपका मन भर गया है न?”

“क्या बकवास कर रही हो?”

“बकवास नहीं है! देखिये.... आपने मुझ पर पहले कभी भी गुस्सा नहीं किया.. और आज यह भी शुरू हो गया। क्या मैं आपके लिए ठीक नहीं हूँ?“ कह कर संध्या सुबकने लगी।

“जानू, मैं आप पर नहीं, आपकी बात पर गुस्सा हो रहा हूँ! आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं? क्यों भरेगा मेरा मन आपसे? इसका तो सवाल ही नहीं उठता! आप यह सब क्या बातें कर रही हैं?” अब तक मेरी हवाइयां उड़ने लगी।

“क्या सोच रही हैं आप? क्या चल रहा है दिमाग में? प्लीज बताइए न? ऐसे मत करिए मेरे साथ!” मैं गिड़गिड़ाया।

“आप वो मॉरीन के साथ .... कर रहे थे! अब मैं इसको क्या समझूं?”

“ओह गॉड! ... शिट! तो यह बात है!?” मैंने माथा पीट लिया।

“जानू! मैंने वो सब कुछ प्लान नहीं किया था - ऑनेस्ट! गॉड प्रोमिस! वो कुछ भी नहीं है! मॉरीन कोई भी नहीं है! मैंने मॉरीन को कुछ भी नहीं कहा – वो हम दोनों को सेक्स करते देख कर खुद भी उत्तेजित हो गई..... और इसलिए उसने आपके साथ...... दरअसल, आप दोनों को ऐसी हालत में देख कर मेरा खुद पर कोई काबू ही नहीं रहा। वह सब कुछ ऐसा लग रहा था जैसे की किसी ने मुझ पर सम्मोहन डाल दिया हो। सच में जानू! प्लीज... मुझ पर विश्वास करो!” मैंने अपनी तरफ से सफाई दी।

“आप दोनों ने मेरे साथ यह करने का प्लान किया था?”

“नहीं जानू! मैंने आपको कहा न! और तो और, मॉरीन एक लेस्बियन है ... मतलब वह आदमियों से नहीं, औरतों से सेक्स करती है। पहले तो हम दोनों को सेक्स करते देख कर, और फिर आपको देखकर ... आई मीन, आप इतनी सेक्सी हैं की वह अपने आपको रोक नहीं पाई।“

“तो आपने उसको मेरे साथ यह सब इसलिए करने दिया?”

“मैंने उसको यह सब करने को नहीं कहा था जानू! प्लीज बिलीव मी!!” मेरी दलील उलटी पड़ रही थी।

“तो इसका मतलब उसने मेरे साथ वह सब कुछ यूँ ही कर लिया?”

“हाँ!” मैंने अनिश्चय के साथ हामी भरी।

“और आपने उसको रोका भी नहीं?” संध्या की आँखों से आंसू गिरने लगे।
 
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कुछ लिख लेता हूँ
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“जानू... अररर ... आपको देख कर ऐसा लग रहा था की आप भी एन्जॉय कर रही हैं.. इसलिए मैंने नहीं रोका।“ इससे बे-सर-पैर वाला बहाना या सफाई मैंने कभी नहीं दी!

“तो आपका यह कहना है की कोई भी मेरे साथ सेक्स कर लेगा.... क्योंकि मैं.... सेक्सी हूँ?”

“ऐसे कैसे कर लेगा, कोई भी! मेरे कहने का मतलब था की कोई भी आपके साथ सेक्स करना चाहेगा! आप सुन्दर हैं, जवान हैं...! कोई क्यों नहीं चाहेगा? हाँ – कुछ एक अपवाद हो सकते हैं।”

“इसका मतलब आप भी किसी सुन्दर और जवान लड़की को देख कर उसके साथ सेक्स करना चाहेंगे?”

“मैंने कहा न, कुछ एक अपवाद हो सकते हैं?”

“मतलब आप एक अपवाद हैं?”

“हाँ!”

“कैसे?”

“क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ!”

“अच्छा! और कोई कारण?”

“और हम दोनों मैरिड हैं!”

“हम्म... और?”

“और क्योंकि मैं आपसे झूठ नहीं बोलूँगा, और आपको किसी भी तरह की तकलीफ नहीं होने दूंगा!”

“अच्छा – तो आप किसी और लड़की को ‘मेरे लिहाज’ के कारण नहीं .... करेंगे! नहीं तो कर लेते?”

“जानू... मैं आपका गुस्सा समझ सकता हूँ.. लेकिन यह सब क्या है?”

“आप मुझे सीधा सीधा जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? अच्छा, सच सच बताइए, जब आप किसी सुन्दर दिखने वाली लड़की को देखते हैं, तो उसके साथ सेक्स करने का मन नहीं होता?”

“जानू, मैंने कभी आपसे मेरे पिछले अफेयर्स के बारे में छुपाया? चाहता तो छुपा लेता! आपको कैसे मालूम होता? बताइए?”

“आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?”

“क्या जवाब चाहिए आपको?”

“सच..”

“सच जानना है आपको? तो सुनो – हाँ बिलकुल मन में आता है की ऐसी लड़की दिखे तो पटक कर चोद दूं! लेकिन मुझमें और किसी रेपिस्ट या जानवर में कोई अंतर है... और वह अंतर है की मैं मानवता के बताये रास्ते पर चलता हूँ। मेरे अपने संस्कार हैं... और किसी की मर्ज़ी के खिलाफ जोर-जबरदस्ती करना गलत है।“

“.... और अगर लड़की चाहे, तो?”

“ज्यादातर लड़कियाँ ऐसे नहीं चाहती!”

“अच्छा! तो अब आपको ज्यादातर लड़कियों के मन की बातें भी पता हैं! वह! और आप ऐसा कह सकते हैं क्योंकि?”

“क्योंकि, मेरे ख़याल से, आदमी और औरतों की प्रोग्रामिंग बिलकुल अलग होती है!”

“अच्छा जी! आदमी चाहे तो कितनी ही लड़कियों की कोख में अपना बीज डालता रहे .. लेकिन औरतें बस एक ही आदमी की बन कर रहें, और उनके बच्चे पालें?”

“नहीं ... यह तो बहुत ही रूढ़िवादी सोच है! इस तरह से नहीं, लेकिन मेरे ख़याल से लड़कियाँ पहले प्रेम चाहती हैं, और फिर सेक्स!”

“अच्छा, एक बात बताइए.... अगर मॉरीन की जगह कोई आदमी होता तो?” संध्या लड़ाई का मैदान छोड़ ही नहीं रही थी।

“तो उसकी टाँगे तोड़ कर उसके हाथ में दे देता। मैं आपसे सबसे ज्यादा प्रेम करता हूँ... और आपके प्यार को किसी के साथ नहीं बाँट सकता।“ मैंने पूरी दृढ़ता और इमानदारी से कहा।

“मतलब जो मॉरीन ने किया वह गलत था.. है न?”

“नाउ दैत यू पुट इट लाइक दैत (अब जब आप ऐसे कह रही हैं तो)... यस! हाँ .. वह गलत था।“ मैंने अपना दोष मान लिया।

“आपके लिए इतना काफी नहीं था की अपनी बीवी की नुमाइश लगा रखी थी...?” लेकिन संध्या का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था, “.... शी वायलेटेड मी!” संध्या चीख उठी! दिल का गुबार उस एक चीख के साथ निकल गया... संध्या अब शांत होकर रो रही थी। मैंने उसको रोने दिया – मेरी गलती थी ... लेकिन मेरी माफ़ी के लिए उसको संयत होना आवश्यक था।

मैंने आगे बढ़ कर संध्या को अपने आलिंगन में बाँध लिया और कहा,

"श्ह्ह्ह्ह .... प्लीज मत रोइये। मेरा आपको ठेस पहुचाने का कोई इरादा नहीं था। आई ऍम सो सॉरी! ऑनेस्ट! आपको याद है न, मैंने आपको प्रोमिस किया था की मैं आपको किसी भी ऐसी चीज़ को करने को नहीं कहूँगा, जिसके लिए आप राज़ी न हों? मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, और आपको कभी दुखी नहीं देख सकता।"

ऐसी बाते करते हुए मैं संध्या को चूमते, सहलाते और दुलारते जा रहा था, जिससे उसका मन बहल जाए और वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करे। जिस लड़की को मैं प्रेम करता हूँ, वह मेरे मूर्खता भरी हरकतों से दुखी हो गई थी।

"संध्या ... मेरी बात सुनिए, प्लीज!"

“जानू, आई ऍम सॉरी! आई ऍम वेरी सॉरी! प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिये। मैंने कभी भी यह सोच कर कुछ भी नहीं किया जिससे की आपकी बेइज्जती हो। मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ – अपनी जान से भी ज्यादा! और आपकी बहुत रेस्पेक्ट भी करता हूँ। प्लीज मेरी बात पर विश्वास करिए।“

“एंड, आई ऍम रियली वेरी सॉरी! अपने मज़े की धुन में मैंने यह नहीं सोचा की आपको और आपकी भावनाओं को ठेस लग सकती है। काम के वशीभूत होकर मैंने न जाने क्या क्या गुनाह किए हैं। मैं सच कहता हूँ मेरे मन में बस एक ही धुन सवार रहती है की किसी तरह आपके साथ सेक्स किया जाय..”

मैंने कहते हुए उसके माथे को चूमा और उसके बालों को सहलाया, “... पर अब मुझे लगने लगा है की मैं अपनी परी के साथ ठीक नहीं कर रहा हूँ। मैं सच कहता हूँ की मैं आपको प्यार करता हूँ – और इसका मतलब है की सिर्फ आपके शरीर को नहीं .. आपके मन, दिल और पूरी पर्सनालिटी को! लेकिन आप मेरे पास रहती हैं तो अपने को रोक नहीं पाता – और सेक्स को स्पाइसी बनाने के लिए न जाने क्या क्या करता हूँ।“

संध्या का रोना, सुबकना अब तक ख़तम हो गया था। वह अब तक संयत हो गई थी और मेरी बातें ध्यान से सुन रही थी। उसने कुछ देर तक मेरी आँखों में देखा – जैसे, मेरे मन की सच्चाई मापना चाहती हो।

“जानू.. मैं भी आपके साथ प्यार की दुनिया बनाना चाहती हूँ। मेरा मन है की जैसे आपने मुझे अभी पकड़ा हुआ है, वैसे ही हम एक दूसरे को बाहों में जकड़े सारी जिन्दगी बिता दें। और आप मेरे साथ जितना मन करे, सेक्स करिए – जैसे मन करे, वैसे करिए। मुझे अपनी प्यार की बारिश से मेरे तन मन को इतना भर दीजिये कि मैं मर भी जाऊं तो मुझे कोई गम ना हो। ... बस, मुझे किसी और के साथ शेयर मत करिए!”

"हाँ मेरी जान! अब मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा! आई ऍम सॉरी!"

मैं संध्या को आलिंगनबद्ध किये हुए ही बिस्तर पर बैठने लगा, और संध्या भी मेरी गोद में आकर बैठ गई और अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी। वो इतनी प्यारी लग रही थी की मैंने उसके होंठों को चूम लिया।

“आई लव यू! एंड, आई ऍम सॉरी! अब ऐसी गलती कभी नहीं होगी।”

“आई लव यू टू! और आपको सॉरी कहने की ज़रुरत नहीं।”

संध्या को चूमने के साथ साथ मुझे समुद्री नमकीन स्वाद महसूस हुआ – मतलब, नहाने का उपक्रम करना चाहिए था। लेकिन उसको चूमने – उसके होंठो का रस पीने – से मेरा मन अभी भरा नहीं था। संध्या मेरी गोद में बैठी थी और हमारे होंठ आपस में चिपके हुए थे। हम दोनों ही इस समय अपनी जीभें एक दूसरे के मुंह में डाल कर इस समय कुल्फी की तरह चूस रहे थे। मैं कभी उसके गालों को चूमता, तो कभी होंठो को, तो कभी नाक को, तो कभी उसके कानो को, या फिर उसकी पलकों को। इसी बीच मैंने कब उसकी बीच मैक्सी उतार दी, उसको शायद पता भी नहीं चला (ढीला ढाला हल्का कपड़ा शरीर पर पता ही नहीं चलता)। कोई 5 मिनट के चुम्बन के आदान प्रदान के बाद जब हमारी पकड़ कुछ ढीली हुई तो संध्या को अपने बदन पर मैक्सी न होने का आभास हुआ।

“जानू, आँखें खोलो।”

“नहीं पहले आप मेरी मैक्सी दीजिये.... मुझे शर्म आ रही है।”

“अरे शरम! मेरी रानी .... कैसी शरम? तुम इस कास्ट्यूम में कितनी खूबसूरत लग रही हो! मेरी आँखों से देखो तो समझ में आएगा!”

“धत्त!”
 
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वो कहते हैं न की नशे में स्वयं पर वश नहीं रहता। जब मैं संध्या को पोंछ रहा था, तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। मैंने बिना सोचे समझे ‘कम-इन’ बोल दिया। और परिचारक को एक पूर्णतया नग्न युगल को देखने का आनंद प्राप्त हो गया। जब तक मुझे हम दोनों की नग्नावस्था का भान होता तब तक इतनी देर हो चली थी की कुछ करने का कोई लाभ न होता। खैर, उसके जाने के बाद मुझे एक विचार कौंधा की क्यों न संध्या की ऐसी हालत में कुछ तस्वीरें उतार ली जाएँ! मैंने झटपट अपना डी एस एल आर उठाया और संध्या की नग्नता की कलात्मक और अन्तरंग कई तस्वीरें ले डाली। उसके बाद मैं सो गया।

अब आगे...



अगली सुबह

मॉरीन ने मुझे सुझाव दिया की स्नॉर्कलिंग के लिए एक बहुत ही सुन्दर जगह है। उसको ‘इंग्लिश आइलैंड’ कहते हैं और उधर बहुत ही कम लोग जाते हैं। इस कारण से वहां का स्थानीय पर्यावरण सुन्दर है और बहुत ही अच्छे नज़ारे दिखते हैं। रकम थोड़ी अधिक लगती है, लेकिन आनंद भी बहुत आता है। मैंने सोचा, और हाँ बोल दिया। वैसे भी हम लोग यहाँ पर हनीमून के लिए आये हैं – अकेलापन तो चाहिए ही!

मैंने हल्की टी-शर्ट, स्विमिंग ट्रंक, कैप और सन-ग्लासेज पहने, और संध्या ने नायलॉन-लाइक्रा का स्विमसूट पहना – वह बिना बाँह का, V-गले वाला परिधान था, जिसको पीछे डोरी से बाँधा जाता था। इस पर बहुरंग प्रिंट्स बने हुए थे। उसके ऊपर (जिससे उसको अटपटा न लगे) संध्या ने एक लम्बी बीच मैक्सी, जिसका रंग पीला और हल्का हरा था, स्लीव-लेस, V-गले और बैक वाला परिधान पहना हुआ था। इसमें स्तनों के नीचे से रिब केज तक करीब चार इंच चौड़ा कोमल इलास्टिक लगा हुआ था। आज संध्या को इस प्रकार के परिधान में देख कर मुझे कुछ-कुछ होने लगा। मन तो यही था की उसको वहीँ पटक कर सम्भोग करने लगूं, लेकिन जैसे तैसे मैंने खुद को जब्त कर लिया। लेकिन बोट पर चढ़ने और उसके बाद आइलैंड के करीब स्नोर्केलिंग वाले स्थान तक पहुँचने तक मैंने उसकी अनगिनत तस्वीरें खींच डाली।

मॉरीन हमारी गाइड भी थी और प्रशिक्षक भी। उसने हम दोनों को स्नोर्केलिंग की विधि के बारे में बताया और उपकरणों से जानकारी कराई – ऐसा कुछ खास तो होता नहीं, बसे एक आँखों पर लगाने के लिए मास्क और साँस लेने के लिए मुँह में लगाने वाली पाइप। खैर, गोत लगाने की बारी आई तो हम तीनों ने तैराकी की पोशाक में आने का उपक्रम करना आरम्भ किया। संध्या बहुत झिझक रही थी, इसलिए मैंने उसको मैक्सी उतारने में मदद करी, और खुद की भी टी-शर्ट उतारी। मॉरीन ने टू-पीस स्विमिंग कॉस्टयूम पहना हुआ था। मैंने बोट चालक को कैमरा पकड़ा कर हम तीनों की तस्वीरें लेने को कहा – खुद बीच में खड़ा हुआ, दाहिनी तरफ संध्या और बाईं तरफ मॉरीन!

और फिर हम तीनों समुद्र में उतर गए।

उस स्थान पर मूंगा-चट्टानों की बहुतायत थी – यह अनुभव जैसे समुद्र के अन्दर झाँकने जैसा था। समुद्र का ठंडा पानी, कानों में पानी के हलचल की आवाज़, और आँखों के सामने एक अलग ही दुनिया का अद्भुत नज़ारा!! आपने ‘फाइंडिंग निमो’ फिल्म देखी है? यहाँ पर वो वाली मछलियाँ बहुत दिख रही थीं। पानी यहाँ पर बहुत गहरा था – कम से कम 20-25 फीट गहरा। विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी मछलियाँ हमारे चरों तरफ तैर रही थीं – मैंने कई बार कोशिश करी की एक को कम से कम छू लिया जाय – लेकिन मछलियाँ मुझसे कहीं तेज और चपल थीं। लेकिन यह खेल बड़ा ही मज़ेदार रहा। हमने अचानक ही एक बड़ी, ग्रे रंग की मछली देखी, जो कम से कम 3 फीट लम्बी रही होगी। ज्यादातर मछलियाँ 8 इंच से लेकर डेढ़ फीट तक की ही थीं। एक बार तो कोई सौ-डेढ़ सौ मछलियाँ हमारे इर्द गिर्द वृत्ताकार विन्यास में तैरने लगीं। उनको देखते देखते मानो समय ही रुक गया हो – न जाने कितनी ही देर वो हमारे चारो ओर चक्कर लगाती ही रही। और फिर अचानक ही सारी की सारी एक ओर निकल गईं। स्टार फिश, जेली फिश, एनिमोनी, और न जाने कौन कौन सी मछलियाँ दिखीं, जिनके नाम याद रखना अभी मेरे लिए संभव नहीं है। समुद्र तल भी साफ़ दिख रहा था – मूंगे की कई प्रकार की संरचनाएं, समुद्री सिवार, और तल पर बड़े आकार के सीपियाँ और शंख यूँ ही पड़े हुए थे। हमने कोई तीन घंटे तक इसी प्रकार से प्रकृति का आनंद उठाया। संध्या इस नज़ारे को देख कर स्तब्ध हो गई थी और अति प्रसन्न थी। खैर, हम लोग वापस बोट में बैठ कर इंग्लिश आइलैंड को चल दिए।

यह एक एकांत और छोटा टापू था और पूरी तरह निर्जन! इसके बीच में काफी पेड़ थे और इसका बीच नरम सफ़ेद रेत का बना हुआ था। मॉरीन ने बताया था की पांच मिनट में ही टापू पर पहुँच जायेंगे, इसलिए हमने कपड़े भी नहीं बदले थे, और ऐसे ही गीले गीले टापू पर पहुंचे। उस समय समुद्र में लहरें काफी ऊंची ऊंची उठ रही थी, इसलिए नाव को थोडा दूर ही लंगर दिया गया और टापू पर जाने के लिए एक बार फिर से समुद्र में कूदना पड़ा। नाविक और मॉरीन हमारे खाने पीने का सामान हमारे पास रखा, और हमें बताया की हम लोग यहाँ पर दो तीन घंटे आराम से रह सकते हैं, और दोनों टापू पर ही हमसे कुछ दूर पर बैठ कर अपना खुद खाने पीने लगे।

संध्या और मैंने सोचा की इस टापू को थोडा और देखना चाहिए, और तट पर ही चलने लगे। संध्या और उसका स्विमसूट पूरी तरह से गीला था और हवा के कारण उसको ठण्ड लग रही थी – रह रह कर उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ जा रही थी। मैंने ऐसा देखा तो पीछे से उसकी कमर में हाथ डाल कर, उसे अपनी तरफ खींच कर चलना शुरू किया। चलते चलते मैंने देखा की उसका सूट उसके नितम्बो को ढक कम, और प्रदर्शित ज्यादा कर रहा था। अतः, मैंने उसके नितंबो को थोड़े जोश से रगड़ना शुरू कर दिया।

“आप यह क्या कर रहे हैं?”

“गर्मी पैदा कर रहा हूँ, जानू! आपके कपड़े पूरी तरह से गीले हैं, और हवा भी चल रही है। ऐसे में आपको ठंड लग सकती है।"

“आप बहुत ख़याल रखते हैं मेरा!”, संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

‘कैसी नासमझ लड़की है यह! – ऐसी अवस्था में कोई लड़की राका डाकू को मिल जाए, तो वह भी इसी प्रकार गर्मी पैदा करेगा।‘ हम लोग चलते चलते एक एकांत वाली जगह पर आ गए – वहां पर बीच काफी चौड़ा और समतल था। सूर्य की गर्म भी अच्छी आ रही थी।

"क्या इसे उतार सकती हो?" मैंने संध्या को पूछा।

"क्यों?"

"आपकी बॉडी जल्दी सूख जायगी, अगर उसको गर्मी और हवा लगेगी।"

"लेकिन, वो लोग?”

“वो पीछे ही ठहरे हुए हैं। इधर नहीं आयेंगे... चिंता न करो!”

"अरे? ऐसे कैसे? अगर उनमे से कोई भी आ गया... और हमको ऐसी हालत में देखेगा तो क्या सोचेगा? और उनकी छोड़िए... मुझको ऐसे कोई और देखे तो मैं तो शरम से मर ही जाऊंगी!"

"आप भी क्या मरने मारने वाली बातें करती हैं? हनीमून पर आए हैं... हमको कुछ तो मज़ा करना चाहिए? और पूरे इंडिया में ऐसी सूनसान जगह नहीं मिलेगी! जितना कपड़े उतार सको, उतना ही मस्त!!" मैंने समझाया, "कोई नहीं आएगा... अब उतार दो न.."
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“ठीक है। लेकिन यह डोर आपको खोलनी पड़ेगी...” कहकर संध्या मुड़ कर खड़ी हो गई।

मैंने उसकी यह बात सुनकर आश्चर्यचकित हो गया। दिमाग में उत्तराँचल की वादियों में नग्न होकर आनंद उठाने का अनुभव याद आ गया। मैंने उसकी सूट की डोर खोली और जैसे केले का छिलका उतारते हैं वैसे ही स्विमसूट को उतार दिया। कुछ ही पलों में संध्या पूर्ण नग्न होकर बीच पर खड़ी थी। मैंने उसका सूट सूखने के लिए बीच पर फैला दिया, और उसके बाद खुद भी अपना स्विमिंग ट्रंक उतार कर पूर्ण नग्न हो गया।

हम दोनों कुछ देर ऐसे ही नंगे पुंगे वहां पर खड़े होकर पानी सुखाते रहे, लेकिन वहां ऐसे रहते हुए भी (चाहे कितने भी अकेले हों), बेढंगा लग रहा था। खैर, ऐसे निर्जन बीच पर होने का फायदा यह है की वहां पर खूब सारे समुद्री तोहफे ऐसे ही बिखरे पड़े रहते हैं। मैंने संध्या को बीच-वाक करने और सीपियाँ बीनने के लिए तैयार कर लिया,

“अरे, चलो, यहाँ पर ज़रूर अच्छे वाले शंख और सीपियाँ मिलेंगी – चल कर उनको ढूंढते हैं, और बीनते हैं।“

मैंने कहा और हम दोनों ऐसे ही पूर्ण नग्न, उस वीरान और निर्जन द्वीप पर घूमने चल दिए। अपना सब सामान उसी स्थान पर छोड़ दिया – भला किससे डरना? सूर्य की गर्मी शरीर पर बहुत अच्छी लग रही थी – अब तक सारा पानी सूख गया था और हवा भी थोड़ी सी ऊष्ण लगने लगी थी। मैंने सोचा की एक गलती हो गई – बिना किसी प्रकार के सन-स्क्रीन क्रीम के ऐसे ही बीच पर घूमने से सन-बर्न हो सकता है। कुछ और नहीं तो सांवलापन बढ़ जाएगा – खैर, यही सोच के संतुष्टि कर ली की चलो कुछ विटामिन D ही बन जायेगा शरीर में।

सबसे आनंददायक बात यह थी की संध्या इस प्रकार से नग्न होने में पूरी तरह से आश्वस्त थी – यह मैं मान ही नहीं सकता की उसको यह संज्ञान न हो की कम से कम दो अजनबी लोग कभी भी उसके सामने सामने आ सकते हैं और उसको उसकी पूर्ण नग्नता वाली स्थिति में देख सकते हैं। लेकिन मेरे साथ रहते हुए उसको अब ज्यादा आत्मविश्वास हो गया था। खैर, कोई तीन चार मिनट चलते रहते हुए ही हमको बढ़िया किस्म की बड़ी सीपियाँ और शंख मिलने लग गए – एक बार फिर से हमारे पास उनको एकत्र करने के लिए हमारे पास हाथों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था। हम लोग ऐसे ही कोई पंद्रह बीस मिनट तक घूमते रहे और फिर वापस अपने स्थान की ओर चल दिए। वापस आकर हमने खाना खाया और नर्म और गरम रेत पर लेट कर धूप सेंकने लगे और कुछ ही देर में हम दोनों को ही झपकी आ गई।

मॉरीन कब वहां आई, हमको इसका कोई ज्ञान नहीं। लेकिन उसने हम दोनों को न केवल एक दूसरे से गुत्थमगुत्था होकर सोते देखा, वरन उसी अवस्था में मेरे ही कैमरे से हमारी कई तस्वीरें भी उतार लीं।

(मॉरीन, जैसा की मैंने पहले ही बताया है, एक ऑस्ट्रेलियाई है और अंग्रेज़ी में बात करती है। हमारे वार्तालाप को अंग्रेज़ी और हिंदी, दोनों में ही लिखने की ऊर्जा नहीं है मुझमें, इसलिए यहाँ सिर्फ हिंदी में ही लिखूंगा। लेकिन कुछ शब्द अंग्रेजी के भी होंगे)

“अरे सोते हुए बच्चों, उठो... चलना भी है।“

“कक्या? ओह... मॉरीन? क्या हुआ?” मॉरीन ने मुझे ही हिला कर उठाया ... मैं हड़बड़ा गया।

“कुछ हुआ नहीं! लेकिन हमको कभी न कभी वापस भी तो चलना है न? ...और, देख रही हूँ की तुम दोनों बड़े मजे ले रहे हो! है न? हे हे हे!”

“कोई मज़ा वज़ा नहीं, मॉरीन। बस, थोड़ा धूप सेंकते सेंकते सो गए थे।“ मॉरीन के सामने ऐसे ही नग्न पड़े रहना लज्जाजनक तो था, लेकिन चूँकि वह भी ब्रा-पैंटीज में ही थी, इसलिए मैंने खुद को या संध्या को छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया। मॉरीन को जो भी कुछ देखना था, वह अब तक विस्तार से देख चुकी होगी।

“जैसा तुम कहो!” फिर उनींदी संध्या को देखते हुए उसने मुस्कुरा कर कहा, “वेल, हेल्लो ब्यूटीफुल! नींद हो गई?” फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर, “तुम्हारी पत्नी बहुत सुन्दर और सेक्सी है। तुम बहुत ही भाग्यशाली हो, दोस्त...!मेरे कहने का यह मतलब कतई मत निकालना की तुम किसी भी तरह से कम हो... लेकिन, ये बहुत सुन्दर हैं!”

“हाँ – यह बात मुझे मालूम है। इसीलिए तो मैंने इनसे शादी की है।“ हमारी बातों के बीच ही संध्या ने अपना स्विमसूट उठा कर अपने शरीर पर इस तरह से डाल लिया जिससे उसकी जाहिर नग्नता छुप जाय।

“हे! हम लोग यहाँ कुछ देर और नहीं रुक सकते? यहाँ बहुत अच्छा लग रहा है।“ मैंने आगे जोड़ा।

“बिलकुल रुक सकते हैं... लेकिन हमको एक निर्धारित समय के बाद रिसोर्ट में इत्तला देनी होती है। और यहाँ पर कोई दूरसंचार की सुविधा तो है नहीं... लेकिन.. मेरे पास एक विचार है। उसको बताने से पहले मैं तुमको एक बात बताना चाहती हूँ की जब आप लोग सो रहे थे, तो मुझे आप दोनों को ऐसे देख कर इतना अच्छा लगा की मैंने आप लोगो की ऐसी न्यूड फोटोज खींच ली...”

“क्या?!! दिखाना ज़रा!”

“आपके ही कैमरे से ली हैं... देख लीजिये।“

कह कर मॉरीन ने मेरा कैमरा मेरे हाथ में सौंप दिया। मैंने कैमरा ऑन कर, तुरंत ही रिव्यु बटन दबाया – संध्या भी अपनी छाती पर अपनी बिकिनी चिपकाए, उत्सुकतावश कैमरे की तस्वीरों को देखने मेरे बगल आ गई... इस बात से बेखबर की उसकी योनि से बिकिनी का वस्त्र हट गया है। खैर, जब हमने वो तस्वीरें देखीं तो हमको लज्जा, आश्चर्य और गर्व तीनों प्रकार के ही भाव आए।

ज्यादातर तस्वीरों में हम पूर्णतः नग्न अवस्था में आलिंगनबद्ध होकर सो रहे थे – मैं संध्या की तरफ करवट करके लेटा हुआ था, ऐसे की मेरा बायाँ पाँव संध्या के ऊपर था, और इस कारण मेरा लिंग और वृषण स्पष्ट दिख रहे थे। मेरा लिंग अर्ध स्तम्भन में खड़ा हुआ था और उसकी स्किन थोड़ी पीछे खिसकी हुई थी। संध्या चित लेटी हुई थी और उसका सारा शरीर प्रदर्शित था। उसके छोटे छोटे स्तन, और उन पर आकर्षक निप्पल! सुन्दर, स्वस्थ और पतली बाहें और सपाट पेट! उसका बायाँ पाँव थोडा अलग हो रखा था जिस कारण उसका योनि द्वार थोडा खुला हुआ था।

“थैंक्स फॉर दीस पिक्चर्स! लेकिन, आप क्या कहने वाली थीं?”

“मैं यह कह रही हूँ की आप दोनों अपने हनीमून पर आये हैं... क्यों न मैं आप दोनों के और भी अन्तरंग फोटोस कैमरे में उतारूँ..? वैसी जैसी टू-एक्स या थ्री-एक्स फिल्मों में होता है? यू नो... जैसे आपका पीनस, इनकी वजाइना (योनि) में...? क्या कहते हैं? वस्तुतः, मेरे ख़याल से आपके हनीमून की यह एक अच्छी यादगार निशानी बनेगी! इन तस्वीरों को जब आप लोग बीस साल बाद देखेंगे तो वापस एक और हनीमून करने का मन हो जायगा!”

मैंने संध्या को संछेप में मॉरीन के सुझाव के बारे में बता दिया।

“नहीं बाबा! मैं नहीं कर पाऊंगी! इनके सामने कैसे ऐसे...?”

“जानू, देखो न... इनके सामने हम दोनों ही तो नंगे ही हैं...”

“लेकिन अगर उन तस्वीरों को कोई और देख ले तो?”

“अरे कौन देखेगा? हमारे बच्चे? हा हा! तो उनको बताएँगे की हमने उनको ऐसे बनाया था।“ मैंने शरारत भरी दलील दी।

संध्या वैसे भी मेरी किसी भी बात का कोई विरोध तो करती नहीं... अतः उसने अंत में हामी भर दी। लेकिन एक शर्त पर की मॉरीन भी हमारे साथ निर्वस्त्र होकर कुछ तस्वीरें निकलवाए। मॉरीन ने कुछ सोचने के बाद हामी भर दी।
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“अच्छी बात है!” मैंने कहा, “हम लोग क्या करें?”

“सबसे पहले तो रिलैक्स होने की कोशिश करिए... आपकी पत्नी तो अभी भी नर्वस लग रही हैं। पहले इन्ही की कुछ तस्वीरें निकाल लेती हूँ... ठीक है न?” अभी भी हम तीनों में सिर्फ मॉरीन ने ही कपड़े पहने हुए थे।

मॉरीन संध्या को कभी मुस्कुराने, तो कभी कोई पोज़ बनाने को कहती – ‘हैंड्स इन एयर... हैंड्स ऑन हिप्स... लिक योर लिप्स... मेक अ पाउट.. शो सम ब्रैस्ट..’ संध्या की इन झिझक और लज्जा भरी अदाओं का असर मुझ पर होने लग गया और मेरा लिंग जीवित होने लगा। संध्या इस समय मॉरीन के निर्देशन में एक पेड़ के तने से टिक कर अपने दाहिने हाथ से खुद को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर की तरफ खींच रही थी। इसका प्रभाव यह था की संध्या की पूरी सुन्दरता अपने पूरे शबाब पर प्रदर्शित हो रही थी।

ऐसा तो मैंने कभी सोचा ही नहीं... ‘यह मॉरीन तो वाकई एक कलाकार है!’

‘पिंच योर निप्पल’ संध्या पर भी इस प्रकार के देह प्रदर्शन का अनुकूल प्रभाव पड़ रहा था। उसके निप्पल उत्तेजना से खड़े हो गए थे। ‘टर्न अराउंड... शो में सम हिप्स..’

फोटो खींचते हुए मॉरीन अब मेरी तरफ मुखातिब हुई – मैं सम्मोहित होकर संध्या के उस नए रूप को निहार रहा था और अपने उत्तेजित लिंग पर प्यार से हाथ फिरा रहा था।

मॉरीन: “एक्साइटेड? अब तुम्हारी बारी...” मेरे किसी प्रतिक्रिया से पहले ही मेरी चार-पांच फोटो उतर चुकी थी। “ये इसकी देखभाल कैसे कर पाती है? उसके लिए बहुत बड़ा है! उसके क्या, मेरे लिए बहुत बड़ा है...” एक पल को जैसे मॉरीन फोटो लेना ही भूल गई – और फिर जैसे तन्द्रा से जाग कर उसने मेरे लिंग की कुछ क्लोज-अप तस्वीरें भी ले डालीं।

फिर उसने संध्या को रेत पर लेटने को कहा और मुझको संध्या के दोनों ओर अपने घुटने टिका कर इस तरह बैठने को कहा जिससे मेरा स्तंभित लिंग संध्या के मुख के ऊपर आ जाय। अब संध्या को कुछ बताने की आवश्यकता नहीं थी – उसने स्वतः ही मेरा लिंग अपने मुँह में भर लिया और इस पूरी हरकत को मॉरीन ने पूरी निपुणता से कैमरा में कैद कर लिया। मुझसे रहा ही नहीं जा पा रहा था – मैंने अपने लिंग को संध्या के मुख में थोडा और अन्दर तक घुसेड दिया।

“एनफ़ नाउ! प्लीज लिक हर निप्पल्स...”

मैंन संध्या के ऊपर आकर उसको अपनी बाहों में कस कर चूमना शुरू कर दिया – प्रतिक्रिया स्वरुप संद्य ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और सहलाने लगी। मैं कभी उसके होंठो को चूमता, तो कभी उसके स्तनों को। मॉरीन हमारे बिकुल करीब आकर बेहद अन्तरंग तस्वीरें उतारने में व्यस्त थी। मेरी और संध्या की हालत बहुत खराब थी – मेरा लिंग इस समय ऐसा अकड़ा हुआ था जैसे की बस एक हलके से दबाव से फट जाए। संध्या की योनि भी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। मुझसे रहा नहीं जा रहा था और मैंने बिना किसी निर्देशन के संध्या के होंठ चूमते हुए अपने लिंग को संध्या के योनि द्वार पर सटा कर एक ज़ोर का धक्का लगाया .... लिंग उसकी योनि में ऐसे सरकता चला गया जैसे मोम में गरमागरम चाकू घुसा दिया गया हो। संध्या के मुँह से एक कामुक सीत्कार निकल गई।

“मेरी जान... आह! मेरी हिरनी..” मैं न जाने क्या क्या बड़बड़ाते हुए पूरी गति से संध्या के साथ सम्भोग करने में व्यस्त हो गया। हमारा खेल 3-4 मिनटों में अपने पूरे शबाब पर पहुँच गया। मैंने संध्या को भोगते हुए उसके घुटनों को ऊपर की तरफ उठा कर मोड़ दिया और उसके नितम्बों को सहलाना आरम्भ कर दिया। मैं जल्दी ही स्खलित होने वाला था, लेकिन कुछ और देर यह खेल खेलना चाहता था। इसलिए मैंने धक्के लगाना रोक कर, अपने लिंग को बाहर निकाल लिया। योनि रस से सना हुआ मेरा लिंग, सूर्य की रौशनी में शामक रहा था। मैंने संध्या के नितम्बों के नीचे अपनी हथेलियाँ रखीं और उस हिस्से को ऊपर की तरफ़ इस तरह उठाया की उसकी योनि मेरे मुख के सामने आ जाय। और फिर उसकी योनि पर अपने मुख को ले जाकर उसको चूमा। संध्या किलकारी भरने लगी।

कुछ देर चूमने के बाद, मैंने खुद को व्यवस्थित किया और अपने लिंग को संध्या की योनि में पुनः समाहित कर के धक्के लगाने आरम्भ कर दिए। अगले 2-3 मिनटों की मेहनत में मेरा वीर्य संध्या की योनि में की गहराइयों में छूट गया। आहें भरते हुए मैंने संध्या की कमर को कस कर अपने जघन क्षेत्र से चिपका लिया। संध्या भी संयत होकर गहरी साँसे भारती हुई लेट गई – मैं उसके ऊपर ही लेट गया। लेकिन उसके होंठों, आँखों, कानों, गले और स्तनों पर चुंबनो की झड़ी लगा दी। कुछ ही देर बाद मेरा लिंग सिकुड़ कर खुद ही संध्या की योनि से बाहर आ गया।



मॉरीन का परिप्रेक्ष्य

सेक्स के इस सजीव प्रसारण ने मुझे इस प्रकार मन्त्र-मुग्ध कर दिया की मैं अपनी सुध-बुध ही खो बैठी। मेरे हाथों से कैमरा गिरते गिरते बचा। मैं एक समलैंगिक हूँ, लेकिन इस इतर्लैंगिक मैथुन ने मुझे बहुत प्रभावित कर दिया था। रूद्र अब उठ कर बैठ गया था और मेरी तरफ मुखातिब था, और संध्या अपने अभी अभी संपन्न हुए मर्दन के कारण थक कर लेटी हुई थी और सुस्ता रही थी। आखिरी कुछ तस्वीरें लेटे समय मुझे झुक कर बैठना पड़ा, जिसके कारण मेरे स्तन ब्रा के कपों से थोड़ा बाहर ढलक रहे थे। रूद्र नजरें इस समय उनको ही सहला रही थी। मैंने उसकी आँखों का पीछा किया तो तुरंत समझ गई की वो कहाँ घूम रही हैं। मैं हांलाकि थोड़ा सचेत हो गई, लेकिन मैंने उनको छिपाने की कोई कोशिश नहीं की – वैसे भी मैंने वायदा किया था की हम तीनों नग्न तवीरें खिचायेंगे – तो देर-सबेर इन वस्त्रों से छुट्टी तो होनी ही थी। रूद्र ने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया और मैं यंत्रवत उसके पास आकर बैठ गई। रूद्र है भी कितने आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक! और इसकी पत्नी, संध्या, जब कम उम्र में ऐसी बला की सुन्दर है, तो फिर जब उसका यौवन पूरा निखरेगा, तब क्या होगा!!?

रूद्र ने अपनी बाहें मेरी कमर में डाल कर मुझे कस कर दबोच लिया और अपने होंठों से मेरे होंठ सटा कर चूमने लगा। इस स्त्यंत अप्रत्याशित हमले से मैं सकते में आ गई। उसने मेरे होंठ काट लिये और उनको चूसने लगा। एक क्षण को तो मैं अपनी लैंगिकता और सुध-बुध दोनों भूल गई और चुम्बन में उसका सहयोग करने लगी। उनके सम्भोग के दृश्य से मेरा शरीर पहले से ही कामाग्नि भड़क उठी थी, और अब इस चुम्बन ने मुझे दहकाना शुरू कर दिया। उसने मेरे होंठों को अपने दांतों के बीच दबा कर धीरे धीरे काटना शुरू किया, और फ़िर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी। मैंने भी भीना इनकार किये उसकी जीभ को रसीले फल के जैसे ही चूसना शुरू कर दिया।

कुछ देर तक इसी प्रकार चूमने के बाद जब उसके हाथ मेरी ब्रा को खोलने लगे... तब मैंने अपने होंठ झटक कर उससे अलग किए।

“यह क्या कर रहे हो...? बस अब बहुत हुआ... अब चलते हैं यहाँ से!” मैंने नाटक किया।

पर वह ऐसे मानने वाला नहीं था – उसने ब्रा के ऊपर से ही मेरे दोनों स्तन अपनी गिरफ़्त में ले लिया। उसकी पकड़ बहुत मज़बूत थी – और उनको इस प्रकार दबा रहा था की मेरी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी। मेरे दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। वैसे चाहती तो मैं वहां से हट सकती थी, लेकिन वस्तुतः मेरी कोशिश भी बस सतही तौर पर ही थी, और मैंने उसकी हरकतों का कोई ख़ास विरोध नहीं किया। कुछ ही पलों में उसने मेरी ब्रा खींच कर मेरे शरीर से अलग कर दी और मैं ऊपर से पूरी नंगी हो गई। मेरे स्तन उभर कर बाहर हो आये – निप्पल पहले ही उत्तेजना के मारे कठोर हो गए थे।

मेरे गोरे बदन पर तने हुये स्तनों देख कर उसकी आँखों में एक चमक आ गई। उसने मेरे स्तनों को अपनी उंगली से हल्के हल्के सहलाते हुए कहा, “तुम बहुत ख़ूबसूरत हो।“

उसने मुझे खीच कर अपनी गोद में बैठा लिया, ऐसे जिससे मेरे दोनों पांव उसकी कमर के अगल बगल होते हुए उसकी पीठ के पीछे आ गए। उसकी हिम्मत की दाद देनी होगी – इस समय वह मेरे बाएँ स्तन के निप्पल को अपने मुँह में भर कर बच्चों की तरह चूस रहा था और उत्तेजनावश मेरे होंठों पर सिस्कारियां फूटने लगी। मैंने उत्तेजनावश रूद्र के सर को अपने स्तनों में भींच लिया। मेरे दिमाग में इस समय गहरी उलझन हो रही थी – मैं समलैंगिक हूँ, इतर्लैंगिक हूँ, या उभयलैंगिक हूँ? इस लड़के ने मुझे भरमा दिया है।

अपने स्तनों के चूषण के आनंद के दौरान मेरी आँख अचानक ही खुली – देखा की संध्या मेरी तरफ कुछ अजीब से भाव से देख रही है। क्या वह गुस्सा है? लगता तो नहीं! उत्सुक? नहीं! लालसा? पता नहीं! संध्या की नज़र देख कर उसके भाव कुछ समझ नहीं आये – मैंने अपने आपको उसके किसी भी प्रकार के आवेग के लिए मन ही मन तैयार कर लिया। संध्या उठी, मेरे पास आकर मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा और आँखों में उसी प्रकार के भाव लिए मेरी तरफ गहरी दृष्टि डाली।

‘कहीं ये मेरी गर्दन तो दबाने वाली नहीं है?’ मैंरे मन में एक तनाव देने वाला विचार कौंधा। लेकिन बस एक दो क्षणों के लिए ही। मैं लगभग तुरंत ही तनाव मुक्त हो गई – संध्या की छरहरी उंगलियाँ मेरे दाहिने स्तन को छू रही थीं। ऐसे ही दो तीन बार छूने के बाद उसने मेरे स्तन को अपनी हथेली में भर कर दबाया। मेरे स्तन का आकार उसकी हथेली के लिए काफी बड़ा था, लेकिन फिर भी उसकी पकड़ दृढ़ थी। बीच बीच में वह मेरे निप्पल को अपने अंगूठे और उंगली के बीच पकड़ कर चुटकी ले रही थी।

उधर रूद्र आँखें बंद किये मजे से मेरे बाएँ स्तन का पान कर रहा था, और इधर उसकी पत्नी मेरे दाहिने स्तन से खेल रही थी। उसकी आँखों के भाव मुझे अब समझ आये – वह भी अपने पति की ही तरह मेरे स्तनों का पान करना चाहती है! मैंने रूद्र के सर को ज़रा हिलाया, तब जाकर वह अपने उन्माद से बाहर निकला, लेकिन उसकी सिर्फ आँखें ही खुली, मुँह में अभी भी मेरा निप्पल भरा हुआ था। उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा तो उसको भान हुआ की संध्या मेरे दूसरे स्तन से खिलवाड़ कर रही थी। वह मेरे निप्पल को मुँह में लिए मिलये ही मुस्कुराया, और फिर संध्या को कुछ बोला। ज़रूर उसने उसको मेरे स्तन पीने को कहा होगा क्योंकि अगले ही पल संध्या ने मेरे निप्पल को अपने मुँह में रख लिया।

संध्या के मुँह की गर्मी का एहसास रूद्र से अलग था और बहुत अच्छा भी। कुछ देर उसने अपनी जीभ से उस पर दुलराया और फिर चूसना शुरू किया। मेरे दोनों निप्पल पूरी तरह से कड़े हो गए थे, अतः संध्या को वह पूर्ण सुगमता से उपलब्ध हो गया। संध्या निप्पल को मुँह में भरे हुए अपने दोनों हाथों से मेरे स्तन को धीरे धीरे दबाने और सहलाने लगी।

"तुमको यह पसंद है?" संध्या बिना निप्पल को छोड़े मुस्कुराई। "जब तक मन करे, पियो" मैंने कहा। यह सीन बड़ा ही हास्यास्पद था – मेरे दोनों स्तनों से दोनों इस प्रकार चिपके थे जैसे अबोध बच्चे! कुछ देर चूसने के बाद रूद्र ने मेरे स्तन को छोड़ दिया और मेरे पीछे जा कर मेरी चड्ढी उतारने लगा। एक तरीके से यह सही भी था – हम तीनों में सिर्फ मैं ही थी, जिसने कुछ भी पहन रखा था। मैंने भी अपने पैर इधर उधर उठा कर उसकी मदद करी – अब हम तीनों ही पूर्ण निर्वस्त्र हो गए।
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मैं तो एक समलैंगिक हूँ, और जब संध्या जैसी सुन्दर, सेक्सी लड़की मेरे सामने इस प्रकार रहे, तो मेरा मन भी कुछ तो करने का बनेगा ही। मुझे यह नहीं मालूम था की हम तीनों की इस कामुक क्रिया की निष्पत्ति कैसे होगी, लेकिन उसके बारे में कुछ सोचना भी बेकार था। मैंने संध्या के मुख से अपना स्तन मुक्त कर उसको पीछे ही तरफ धकेला, जिससे वह रेत पर पीठ के बल गिर गई। मैंने कुछ पल उसको निहारा, फिर अपना चेहरा संध्या के पास ला कर अपने होंठ उसके होंठो से सटा दिए। तुरंत ही मुझे दो अत्यंत कोमल होंठो का स्वाद मिलने लगा।

मैं नहीं चाहती थी की संध्या इस नए अनुभव से डर जाए या घबरा जाए, इसलिए मैंने उसके होंठों पर हलके हलके कई चुम्बन जड़ दिए। मैंने देखा की संध्या बुरा नहीं मान रही हैम तो थोड़ी और तेज़ी और जोश के साथ उसको चूमना आरम्भ कर दिया। मैंने उसके दोनों गाल अपने हाथो में लेकर से थोडा दबा दिया, जिससे उसके होंठ खुल गए। मैंने अपनी जीभ संध्या के मुँह में डाल कर अन्दर का जायजा लेना और चूसना शुरू कर दिया।

मैंने एक हाथ उसके गाल से हटाया तो संध्या का मुँह फिर से बंद हो गया – हो सकता है की उसको मेरा इस तरह से चूमना पसंद न आया हो। खैर, मुझे भी उसके स्तनों का स्वाद चाहिए था – मेरा हाथ इस सामय उसके एक स्तन पर टिका हुआ था, और उसको धीरे धीरे दबा रहा था। अब एक साथ ही उसके होंठों और दोनों स्तनों का मर्दन आरम्भ हो गया। संध्या का पूरा शरीर पहले से ही कामोन्माद के कारण काफी संवेदनशील हो गया था, और अब इस नए प्रहार के कारण अब वह असहज होने लगी। उसके मुँह से कराहें निकलने लगीं। फिर भी, मैंने उसके दोनों निप्पल बारी बारी से अपने मुँह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। वो अब बहुत कड़े हो गए।

फिर मैंने उसकी योनि पर अपनी उंगलियाँ सटा दी, और उसे मसलने लगी। मेरी खुद की हालत कोई ख़ास अच्छी नहीं थी – संध्या और रूद्र के मैथुन, मेरी खुद की यौन भ्रान्ति (पता नहीं की मैं समलैंगिक हूँ या इतरलैंगिक?), और अब संध्या जैसी सुंदरी को इस प्रकार दुलारने से मेरी खुद की योनि भी काम रस टपकाने लगी। मुझ पर भी संध्या के सामान ही मदहोशी छा रही थी। मुझे संध्या की योनि का स्वाद भी लेना ही था – मैंने उसके पैरों के बीच में अपना मुँह लाकर उसकी योनि से सटा दिया और जीभ से उसका रस चाटने लगी। संध्या की योनि से बहुत सारा तरल निकल रहा था – उसकी योनि का रस, जिसमे रूद्र का वीर्य भी सम्मिश्रित था! अनोखा स्वाद!

मुझे अचानक ही अपने पीछे एक और जिस्म की अनुभूति हुई – किसी ने मेरे कंधे को पकड़ कर खुद को मुझसे चिपका लिया था। और उसी के साथ ही मुझे मेरी योनि की दीवार पर अभूतपूर्व खिंचाव महसूस हुआ। मुझे समझ आ गया की क्या हुआ है – रूद्र का लिंग मेरी योनि की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर घुस रहा था। थ्रीसम का ऐसा अनुभव तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

जैसे ही उसका लिंग मेरी योनि में आगे बढ़ा मेरे मुँह से एक गहरी आआअह्ह्ह निकल पड़ी। उसका लिंग मेरी योनि की गहराइयों में उतर गया, और फिर बाहर भी निकल पड़ा – लेकिन मेरे राहत की एक भी सांस लेने से लहले ही वह वापस घुस गया। मुझे यकीन हो गया की रूद्र मेरे साथ सम्भोग कर ही लेगा, लेकिन फिर भी मैंने उसको रोकने की एक आखिरी कोशिश करी।

“रूद्र.... आह्ह्ह! आई ऍम अ लेस्बियन!”

“हह हह हह ... ट्राई स्ट्रैट सेक्स वन्स। देन डिसाइड... ओके?”

फिर शायद उसको कुछ याद आया,

“आर यू सेफ? आई मीन...”

“यस... आह! आई ऍम सेफ! एंड आर यू?”

“यस! नो एस टी डी!”

कह कर रूद्र ने धक्के लगाने आरम्भ कर दिए। क्या बताऊँ! उस वक्त मुझे ऐसा मज़ा आ रहा था जैसे की मैं आसमान मैं उड़ रही हूँ। मेरे मुँह में संध्या की क्लिटोरिस थी, जिसको मैं अपनी जीभ से सहला रही थी और उधर मेरी योनि की कुटाई हो रही थी।

“आह ऊह! इट इस हर्टिंग! इट इस सो बिग! माई वेजाइना इस स्मार्टिंग! हाऊ डस शी टेक इट इन?”

मैंने उसके आगे पीछे वाले धक्के से अपनी लय मिलानी शुरू कर दी। हर धक्के से उसका लिंग मेरी योनि के पूरी भीतर तक घुस जाता। वो जोर-जोर से मुझे भोगने लगा – और मैं संध्या को भोगना भूल गई। वह मुझे पीछे से होकर मेरे स्तनों को दबोच दबोच निचोड़ रहा था। उसके रगड़ने से मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ने लगी। उसके जोरदार धक्के मुझे पागल बना रहे थे। कोई चार पांच मिनट तक वह मुझे ऐसे ही ठोंकता रहा - उसके धक्कों से मैं निढाल होकर पूरी तरह थक गई। फिर मुझे मेरी योनि में गरम गरम वीर्य की बूँदें गिरती महसूस हुई। कम से कम बीस साल बाद किसी पुरुष ने मुझे भोगा था – लेकिन ऐसा मज़ा मुझे पूरे जीवन में कभी नहीं आया।

हम तीनों बुरी तरह से थक कर वही गिर कर एक दूसरे की बाहों में कुछ देर लेटे रहे। और फिर सुस्ताने के बाद हमने कैमरे को ऑटो-मोड में सेट कर हम तीनों की वैसी ही नग्नावस्था में विभिन्न प्रकार की तस्वीरें खींची, एक दूसरे के गले लगे और फिर अपने कपड़े पहन कर वापस रिसोर्ट जाने के लिए तैयार हो गए। अगले दस मिनट में हम लोग वापस हेवलॉक द्वीप के लिए रवाना हो गए।

जैसे जैसे हम लोग अपने रूम की तरफ आ रहे थे, मैंने देखा, की संध्या का चेहरा उतरता जा रहा था। उसके चेहरे पर उदासी, गुस्सा, निराशा, खीझ, घृणा, और जुगुप्सा जैसे मिले जुले भाव आते और जाते जा रहे थे। उसके चेहरे को देख कर मेरे खुद के मजे का नशा पूरी तरह से उतर गया था और समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ! मैं जानना चाहता था की उसके मन में क्या चल रहा है, लेकिन उस समय मैंने खुद तो जब्त कर लिया और रूम तक पहुँचने तक का इंतज़ार किया। हम दोनों जैसे ही अन्दर आये संध्या के सब्र का बाँध टूट गया,

“आपका अपनी बीवी से मन भर गया?”

“क्या! ... आप ऐसे क्यों कह रही हैं, जानू?” मुझे तो जैसे काटो खून नहीं।

“आप प्लीज सच सच बताइये... मैं बुरा नहीं मानूंगी! मुझसे आपका मन भर गया है न?”

“क्या बकवास कर रही हो?”

“बकवास नहीं है! देखिये.... आपने मुझ पर पहले कभी भी गुस्सा नहीं किया.. और आज यह भी शुरू हो गया। क्या मैं आपके लिए ठीक नहीं हूँ?“ कह कर संध्या सुबकने लगी।

“जानू, मैं आप पर नहीं, आपकी बात पर गुस्सा हो रहा हूँ! आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं? क्यों भरेगा मेरा मन आपसे? इसका तो सवाल ही नहीं उठता! आप यह सब क्या बातें कर रही हैं?” अब तक मेरी हवाइयां उड़ने लगी।

“क्या सोच रही हैं आप? क्या चल रहा है दिमाग में? प्लीज बताइए न? ऐसे मत करिए मेरे साथ!” मैं गिड़गिड़ाया।

“आप वो मॉरीन के साथ .... कर रहे थे! अब मैं इसको क्या समझूं?”

“ओह गॉड! ... शिट! तो यह बात है!?” मैंने माथा पीट लिया।

“जानू! मैंने वो सब कुछ प्लान नहीं किया था - ऑनेस्ट! गॉड प्रोमिस! वो कुछ भी नहीं है! मॉरीन कोई भी नहीं है! मैंने मॉरीन को कुछ भी नहीं कहा – वो हम दोनों को सेक्स करते देख कर खुद भी उत्तेजित हो गई..... और इसलिए उसने आपके साथ...... दरअसल, आप दोनों को ऐसी हालत में देख कर मेरा खुद पर कोई काबू ही नहीं रहा। वह सब कुछ ऐसा लग रहा था जैसे की किसी ने मुझ पर सम्मोहन डाल दिया हो। सच में जानू! प्लीज... मुझ पर विश्वास करो!” मैंने अपनी तरफ से सफाई दी।

“आप दोनों ने मेरे साथ यह करने का प्लान किया था?”

“नहीं जानू! मैंने आपको कहा न! और तो और, मॉरीन एक लेस्बियन है ... मतलब वह आदमियों से नहीं, औरतों से सेक्स करती है। पहले तो हम दोनों को सेक्स करते देख कर, और फिर आपको देखकर ... आई मीन, आप इतनी सेक्सी हैं की वह अपने आपको रोक नहीं पाई।“

“तो आपने उसको मेरे साथ यह सब इसलिए करने दिया?”

“मैंने उसको यह सब करने को नहीं कहा था जानू! प्लीज बिलीव मी!!” मेरी दलील उलटी पड़ रही थी।

“तो इसका मतलब उसने मेरे साथ वह सब कुछ यूँ ही कर लिया?”

“हाँ!” मैंने अनिश्चय के साथ हामी भरी।

“और आपने उसको रोका भी नहीं?” संध्या की आँखों से आंसू गिरने लगे।
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“जानू... अररर ... आपको देख कर ऐसा लग रहा था की आप भी एन्जॉय कर रही हैं.. इसलिए मैंने नहीं रोका।“ इससे बे-सर-पैर वाला बहाना या सफाई मैंने कभी नहीं दी!

“तो आपका यह कहना है की कोई भी मेरे साथ सेक्स कर लेगा.... क्योंकि मैं.... सेक्सी हूँ?”

“ऐसे कैसे कर लेगा, कोई भी! मेरे कहने का मतलब था की कोई भी आपके साथ सेक्स करना चाहेगा! आप सुन्दर हैं, जवान हैं...! कोई क्यों नहीं चाहेगा? हाँ – कुछ एक अपवाद हो सकते हैं।”

“इसका मतलब आप भी किसी सुन्दर और जवान लड़की को देख कर उसके साथ सेक्स करना चाहेंगे?”

“मैंने कहा न, कुछ एक अपवाद हो सकते हैं?”

“मतलब आप एक अपवाद हैं?”

“हाँ!”

“कैसे?”

“क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ!”

“अच्छा! और कोई कारण?”

“और हम दोनों मैरिड हैं!”

“हम्म... और?”

“और क्योंकि मैं आपसे झूठ नहीं बोलूँगा, और आपको किसी भी तरह की तकलीफ नहीं होने दूंगा!”

“अच्छा – तो आप किसी और लड़की को ‘मेरे लिहाज’ के कारण नहीं .... करेंगे! नहीं तो कर लेते?”

“जानू... मैं आपका गुस्सा समझ सकता हूँ.. लेकिन यह सब क्या है?”

“आप मुझे सीधा सीधा जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? अच्छा, सच सच बताइए, जब आप किसी सुन्दर दिखने वाली लड़की को देखते हैं, तो उसके साथ सेक्स करने का मन नहीं होता?”

“जानू, मैंने कभी आपसे मेरे पिछले अफेयर्स के बारे में छुपाया? चाहता तो छुपा लेता! आपको कैसे मालूम होता? बताइए?”

“आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?”

“क्या जवाब चाहिए आपको?”

“सच..”

“सच जानना है आपको? तो सुनो – हाँ बिलकुल मन में आता है की ऐसी लड़की दिखे तो पटक कर चोद दूं! लेकिन मुझमें और किसी रेपिस्ट या जानवर में कोई अंतर है... और वह अंतर है की मैं मानवता के बताये रास्ते पर चलता हूँ। मेरे अपने संस्कार हैं... और किसी की मर्ज़ी के खिलाफ जोर-जबरदस्ती करना गलत है।“

“.... और अगर लड़की चाहे, तो?”

“ज्यादातर लड़कियाँ ऐसे नहीं चाहती!”

“अच्छा! तो अब आपको ज्यादातर लड़कियों के मन की बातें भी पता हैं! वह! और आप ऐसा कह सकते हैं क्योंकि?”

“क्योंकि, मेरे ख़याल से, आदमी और औरतों की प्रोग्रामिंग बिलकुल अलग होती है!”

“अच्छा जी! आदमी चाहे तो कितनी ही लड़कियों की कोख में अपना बीज डालता रहे .. लेकिन औरतें बस एक ही आदमी की बन कर रहें, और उनके बच्चे पालें?”

“नहीं ... यह तो बहुत ही रूढ़िवादी सोच है! इस तरह से नहीं, लेकिन मेरे ख़याल से लड़कियाँ पहले प्रेम चाहती हैं, और फिर सेक्स!”

“अच्छा, एक बात बताइए.... अगर मॉरीन की जगह कोई आदमी होता तो?” संध्या लड़ाई का मैदान छोड़ ही नहीं रही थी।

“तो उसकी टाँगे तोड़ कर उसके हाथ में दे देता। मैं आपसे सबसे ज्यादा प्रेम करता हूँ... और आपके प्यार को किसी के साथ नहीं बाँट सकता।“ मैंने पूरी दृढ़ता और इमानदारी से कहा।

“मतलब जो मॉरीन ने किया वह गलत था.. है न?”

“नाउ दैत यू पुट इट लाइक दैत (अब जब आप ऐसे कह रही हैं तो)... यस! हाँ .. वह गलत था।“ मैंने अपना दोष मान लिया।

“आपके लिए इतना काफी नहीं था की अपनी बीवी की नुमाइश लगा रखी थी...?” लेकिन संध्या का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था, “.... शी वायलेटेड मी!” संध्या चीख उठी! दिल का गुबार उस एक चीख के साथ निकल गया... संध्या अब शांत होकर रो रही थी। मैंने उसको रोने दिया – मेरी गलती थी ... लेकिन मेरी माफ़ी के लिए उसको संयत होना आवश्यक था।

मैंने आगे बढ़ कर संध्या को अपने आलिंगन में बाँध लिया और कहा,

"श्ह्ह्ह्ह .... प्लीज मत रोइये। मेरा आपको ठेस पहुचाने का कोई इरादा नहीं था। आई ऍम सो सॉरी! ऑनेस्ट! आपको याद है न, मैंने आपको प्रोमिस किया था की मैं आपको किसी भी ऐसी चीज़ को करने को नहीं कहूँगा, जिसके लिए आप राज़ी न हों? मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, और आपको कभी दुखी नहीं देख सकता।"

ऐसी बाते करते हुए मैं संध्या को चूमते, सहलाते और दुलारते जा रहा था, जिससे उसका मन बहल जाए और वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करे। जिस लड़की को मैं प्रेम करता हूँ, वह मेरे मूर्खता भरी हरकतों से दुखी हो गई थी।

"संध्या ... मेरी बात सुनिए, प्लीज!"

“जानू, आई ऍम सॉरी! आई ऍम वेरी सॉरी! प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिये। मैंने कभी भी यह सोच कर कुछ भी नहीं किया जिससे की आपकी बेइज्जती हो। मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ – अपनी जान से भी ज्यादा! और आपकी बहुत रेस्पेक्ट भी करता हूँ। प्लीज मेरी बात पर विश्वास करिए।“

“एंड, आई ऍम रियली वेरी सॉरी! अपने मज़े की धुन में मैंने यह नहीं सोचा की आपको और आपकी भावनाओं को ठेस लग सकती है। काम के वशीभूत होकर मैंने न जाने क्या क्या गुनाह किए हैं। मैं सच कहता हूँ मेरे मन में बस एक ही धुन सवार रहती है की किसी तरह आपके साथ सेक्स किया जाय..”

मैंने कहते हुए उसके माथे को चूमा और उसके बालों को सहलाया, “... पर अब मुझे लगने लगा है की मैं अपनी परी के साथ ठीक नहीं कर रहा हूँ। मैं सच कहता हूँ की मैं आपको प्यार करता हूँ – और इसका मतलब है की सिर्फ आपके शरीर को नहीं .. आपके मन, दिल और पूरी पर्सनालिटी को! लेकिन आप मेरे पास रहती हैं तो अपने को रोक नहीं पाता – और सेक्स को स्पाइसी बनाने के लिए न जाने क्या क्या करता हूँ।“

संध्या का रोना, सुबकना अब तक ख़तम हो गया था। वह अब तक संयत हो गई थी और मेरी बातें ध्यान से सुन रही थी। उसने कुछ देर तक मेरी आँखों में देखा – जैसे, मेरे मन की सच्चाई मापना चाहती हो।

“जानू.. मैं भी आपके साथ प्यार की दुनिया बनाना चाहती हूँ। मेरा मन है की जैसे आपने मुझे अभी पकड़ा हुआ है, वैसे ही हम एक दूसरे को बाहों में जकड़े सारी जिन्दगी बिता दें। और आप मेरे साथ जितना मन करे, सेक्स करिए – जैसे मन करे, वैसे करिए। मुझे अपनी प्यार की बारिश से मेरे तन मन को इतना भर दीजिये कि मैं मर भी जाऊं तो मुझे कोई गम ना हो। ... बस, मुझे किसी और के साथ शेयर मत करिए!”

"हाँ मेरी जान! अब मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा! आई ऍम सॉरी!"

मैं संध्या को आलिंगनबद्ध किये हुए ही बिस्तर पर बैठने लगा, और संध्या भी मेरी गोद में आकर बैठ गई और अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी। वो इतनी प्यारी लग रही थी की मैंने उसके होंठों को चूम लिया।

“आई लव यू! एंड, आई ऍम सॉरी! अब ऐसी गलती कभी नहीं होगी।”

“आई लव यू टू! और आपको सॉरी कहने की ज़रुरत नहीं।”

संध्या को चूमने के साथ साथ मुझे समुद्री नमकीन स्वाद महसूस हुआ – मतलब, नहाने का उपक्रम करना चाहिए था। लेकिन उसको चूमने – उसके होंठो का रस पीने – से मेरा मन अभी भरा नहीं था। संध्या मेरी गोद में बैठी थी और हमारे होंठ आपस में चिपके हुए थे। हम दोनों ही इस समय अपनी जीभें एक दूसरे के मुंह में डाल कर इस समय कुल्फी की तरह चूस रहे थे। मैं कभी उसके गालों को चूमता, तो कभी होंठो को, तो कभी नाक को, तो कभी उसके कानो को, या फिर उसकी पलकों को। इसी बीच मैंने कब उसकी बीच मैक्सी उतार दी, उसको शायद पता भी नहीं चला (ढीला ढाला हल्का कपड़ा शरीर पर पता ही नहीं चलता)। कोई 5 मिनट के चुम्बन के आदान प्रदान के बाद जब हमारी पकड़ कुछ ढीली हुई तो संध्या को अपने बदन पर मैक्सी न होने का आभास हुआ।

“जानू, आँखें खोलो।”

“नहीं पहले आप मेरी मैक्सी दीजिये.... मुझे शर्म आ रही है।”

“अरे शरम! मेरी रानी .... कैसी शरम? तुम इस कास्ट्यूम में कितनी खूबसूरत लग रही हो! मेरी आँखों से देखो तो समझ में आएगा!”

“धत्त!”
nice update
 
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कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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