रात का समय
संध्या का परिप्रेक्ष्य
पिछले कुछ दिनों से मिल रहे अनवरत सुख के कारण मुझमें अपार स्फूर्ति और ताज़गी आ गई जान पड़ती है। नींद ही नहीं आ रही है। कमरे में बाहर से हल्का हल्का उजाला आ रहा है – ‘कितना बजा होगा?’ मैंने घड़ी में देखा : रात के साढ़े बारह ही बजे थे अभी तक।
‘ये तो सो गए जान पड़ते हैं! हमको सोए हुए कोई एक घंटा ही तो हुआ है अभी तक! और मुझे लग रहा है की जैसे न जाने कितनी देर तक सो गई!'
‘एकदम फ्रेश लग रहा है.. क्या करूँ?’
‘क्यों न खिड़की खोल दी जाए!? समुद्र का शोर बहुत सुहाना होता है।‘ ऐसा सोच कर मैं उठी और समुद्र के सामने खुलने वाली खिड़की के पल्ले खोल दिए और पर्दे हटा दिए, और वापस आकर बिस्तर पर सिरहाने की टेक लेकर बैठ गई। समुद्र की लहरों की गर्जना, रात्रिकाल की चुप्पी और रिसोर्ट की लाइटों से उठने वाले मृदुल उजासे से माहौल और भी शांतिमय हो चला था। नींद तो बिलकुल ही गायब थी, इसलिए मैं बैठे बैठे बस पिछले कुछ दिनों की बातें सोचने लग गई...
वास्तव में, यह सब कुछ एक परिकथा जैसा ही तो था! परिकथा! और परिकथा में होते हैं राजकुमार! सपनों के राजकुमार!! मेरा सपनों का राजकुमार!
एक सजीला, सुन्दर, और नौजवान राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आया और एक गरीब लड़की को अपनी रानी बना कर अपने महल में ले गया! शायद ही कोई ऐसा हो जिसने अपने बचपन में ऐसी, या इससे मिलती-जुलती कहानी न सुनी हो! और इन कहानियों को सुनते सुनते बचपन में ही लड़कियों के मन के किसी कोने में एक लालसा जागृत हो ही जाती है की एक दिन उनके भी सपनो का राजकुमार आएगा और उन्हें अपने साथ अपने महल ले जाएगा।
पर यथार्थ में क्या ऐसा कहीं होता है? मुझे तो मालूम भी नहीं की मेरे सपनो का राजकुमार कैसा होता! इसके बारे में मैंने वाकई कुछ भी नहीं सोचा था। अभी तक मैंने देखा ही क्या था? पिछले साल की ही तो बात है जब मैंने माँ और पापा को खुसुर-पुसुर करते हुए चुपके से सुना था – चर्चा का विषय था ‘मेरी शादी’! पापा मेरे लिए आये किसी विवाह प्रस्ताव की बात माँ को बता रहे थे... उस दिन मुझे पहली बार महसूस हुआ की लड़कियां अपने माँ-पापा के लिए चिंता का विषय भी हो सकती हैं। उस दिन मैंने निर्णय किया की अपने बूते पर कुछ कर दिखाऊंगी और अपनी ही पसंद के लड़के से शादी करूंगी... माँ बाप की चिंता ही ख़तम! लेकिन अगर थोड़ा गहराई से सोचो तो लगता है न, कि कैसी बचकानी बात है? एक पिछड़े इलाके के छोटे कस्बे रहने वाले औसत परिवार की लड़की भला क्या ढूंढेगी अपने लिए पति! हमको क्या अधिकार है? अपनी हैसियत के हिसाब से जैसे तैसे कोई मिल जाय, वही बहुत है। लेकिन सोचने में क्या कोई दाम लगता है? मैं भी अपने लड़कपन में कुछ भी सोचती, ओर सोच सोच कर खुश होती की यह कर दूँगी, वह कर दूँगी।
लेकिन रूद्र ने अचानक ही हमारे जीवन में आकर यह सारे समीकरण ही बदल डाले। सच कहूं तो रूद्र कोई मेरे सपनो के राजकुमार नहीं हैं... वे उससे कई गुणा ज्यादा बढ़-चढ़ कर हैं... मैं सपने में भी उनके जैसा सुन्दर वर सोच नहीं सकती थी। इसके साथ साथ ही वह एक योग्य और लायक हमसफर भी हैं। उन्होंने अपना सब कुछ अपने ही हाथों से बनाया है... उनमें इंसानियत हैं... उनमें सभी के लिए उचित सम्मान भाव है और आत्म-सम्मान भी। और सबसे बड़ी बात, जो उनके सभी प्रकार के योग्यता और धन- दौलत से अधिक है – और वह है उनका चरित्र! उन्होंने ही बताया था की उन्होंने मुझे विद्यालय जाते हुए देखा था... अगले दिन मैंने कई बार पीछे मुड़ कर देखा, की शायद वो कहीं से मुझे देख रहे हों, लेकिन वो दिखे ही नहीं। खैर, फिर उनके बारे में पता लगाने के लिए पापा ने कई लोग भेजे, और जैसे जैसे उनके बारे में और पता चला, मेरे मन में उनके लिए प्रेम और आदर दोनों बढ़ते चले गए।
पापा सभी को कहते फिर रहे थे की संध्या के लिए रूद्र के जैसा वर वो ढूंढ ही नहीं सकते थे.. मजे की एक बात यह है की रूद्र और मेरे पापा की उम्र में कोई खास अंतर नहीं है... मुश्किल से सात-आठ साल का! लेकिन वो देखने में एकदम नौजवान लगते हैं, और पापा बूढ़े! और तो और, मेरी और इनकी उम्र में तो कोई बारह तेरह साल का अंतर है! लेकिन फिर भी कभी कभी ऐसा लगता है की ये एक बच्चे ही हैं।
पापा को शुरू शुरू में उन पर बहुत शक हुआ – न जाने कहाँ से आया है? क्या पता कोई लम्पट, शोहदा या उचक्का हो – हमें ठगने आया हो? बेचारी संध्या को ब्याह कर ले जाय, और कहीं बेच दे – अखबार तो ऐसे अनगिनत किस्सों से आते पड़े हैं! मेरी फूल सी बच्ची! अगर उसको कुछ भी हो गया तो उसकी माँ को क्या जवाब देंगे! ऐसे न जाने कैसे बुरे बुरे ख्याल पिताजी को दिन-रात आते.... लोगो ने उनको समझाया की सब के बारे में सिर्फ बुरा नहीं सोचा जाता.. सतर्क रहना अच्छी बात है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सभी को बुरी और शक की निगाह से जांचा जाय। और फिर, बंगलौर में तो हमारे कस्बे और जान-पहचान के कितने सारे लोग हैं.. पता लगा लेंगे। सब कुछ। संध्या तो पूरे कस्बे की बिटिया है.. ऐसे ही उसका बुरा थोड़े न होने देंगे!
फिर आई हमारी शादी.....
हमारी शादी जैसे एक किंवदंती बन गई... पूरा गाँव शामिल हुआ – सिर्फ दिखाने के लिए नहीं, बल्कि सभी ने अपनी अपनी तरफ से कुछ न कुछ मदद भी करी। पापा ने तो सब की सब रीतियाँ निभा डालीं – कहीं भी कोई कोर कसर नहीं! सब के सब देवताओं की पूरी दया बनी रहे बिटिया और दामाद पर! ऐसी शादी होती है कहीं भला? देखने वाले हम दोनों को राम-सीता जैसी जोड़ी बताते। सभी ने मन से ढेरों आशीर्वाद दिए – सच में, भाग्य हो तो ऐसा! और सभी ने हमको बोला की शादी ऐसी होनी चाहिए!
हमारे मिलन की रात!
वैसे तो लड़की शादी के बाद ससुराल चली जाती है, लेकिन ये तो इतनी दूर रहते हैं! इसीलिए हमारे लिए घर में ही सारी व्यवस्था कर दी गई थी.. कहा जाता है की पति-पत्नी की यह पहली अन्तरंग रात उनके वैवाहित जीवन के भविष्य का निर्णय कर देता है। सुहागरात में पति-पत्नी का यह पहला मिलन शारीरिक कम, बल्कि मानसिक और आत्मिक अधिक होता है। इस अवसर पर दो अनजान व्यक्तियों के शरीरों का ही नहीं बल्कि आत्माओं भी मिलन होता है। जो दो आत्माएँ अब तक अलग थीं, इस रात को पहली बार एक हो जाती हैं।
एक बार टीवी पर मैंने वो गाना देखा था... 'आज फिर तुम पे प्यार आया है...' उसमें माधुरी दीक्षित और विनोद खन्ना के बीच प्रथम प्रणय का संछिप्त दृश्य दिखाया गया था। उस दृश्य को देख कर मेरे मन में भी एक अनजान तपन, एक बेबस इच्छा और न जाने कितने कोमल सपने अंकुर लेने लगे। रूद्र से विवाह की बात पक्की हो जाने पर वह सारे सपने परवान चढ़ गए ... लेकिन, भाभियों के बताये यौन ज्ञान ने सब पर पानी फेर दिया। ज्यादातर स्त्रियों के यौन जीवन, या कह लीजिये वैवाहिक जीवन की सच्चाई तो वैसी ही है... मुझे उनकी बातों से जो एक बात समझ में आई थी वह यह थी की स्त्रियों के लिए सेक्स का आनंद उठाने जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। पतिदेव आयेंगे, और कुछ कुछ करके सो जायेंगे! स्त्री के लिए तो बस पूरे दिन भर चौका-चूल्हा, सेवा-टहल, बस यही सब चलता रहता है। हमारी (स्त्रियों की) तो बस नींद ही पूरी हो जाय, यही बहुत है।
‘क्या रूद्र भी ऐसे ही होंगे?’ यह विचार मेरे मन में अनगिनत बार आता... लेकिन मुझे इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिल पाता.. मिलता भी कैसे? आखिर उनके बारे में मुझे मालूम ही क्या था? मन में बस डर सा लगा रहता। मेरा भविष्य तो तय हो गया था। ठीक है, रूद्र अच्छे इंसान हैं, और मैं संभवतः बहुत भाग्यशाली हूँ की मुझे उनसे विवाह कर उनकी संगिनी बनने का अवसर मिला था। परन्तु फिर भी, समाज में स्त्रियों की स्थिति और अन्य भाभियों के अनुभव – इन सबने मेरे मन में एक अनजान सा डर भर दिया था।
माँ ने हमारी सुहागरात से पहले मुझे इनकी हर बात मानने की हिदायद दे दी और फिर सभी मुझे कमरे में अकेला छोड़ कर चले गए। मैं अकेली ही डरी, सहमी सी उनका इंतजार करने लगी। समय के एक एक पल के बढ़ते हुए मेरे दिल की धड़कन भी बढती जा रही थी और इंतजार का एक-एक पल मानो एक-एक घंटे जैसा बीत रहा था। खैर, अंततः रूद्र कमरे में आये और मेरे पास आकर बैठ गए। उनकी उपस्थिति मात्र से ही मेरे शरीर का रोम रोम रोमांचित हो गया।
"मैं आपका घूंघट हटा सकता हूँ?" उन्होंने पूछा...
‘आप को जो करना है, करेंगे ही!’ ऐसा सोचते हुए मेरे दिमाग में भाभियों की बताई हुई शिक्षा, सहेलियों की नटखट चुहल और छेड़खानी और मेरी खुद की न जाने कितनी ही कोमल इच्छाएँ कौंध गईं ... मैंने सिर्फ धीरे से हाँ में सर हिलाया।
‘क्या मैं इनको पसंद आऊंगी? इन्होने तो मुझे दूर से ही देख कर पसंद कर लिया! आज इतने पास से मुझे पहली बार देखेंगे..’ वो मुझे आँखें खोलने को बोल रहे थे – लेकिन रोमांच के मारे मेरी आँखें ही नहीं खुल रही थीं। जब मेरी आँखें खुली तब इनका मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई दिया। राम-सीता का नहीं मालूम, लेकिन ये सचमुच मेरे लिए कृष्ण का रूप थे... मेरी आँखें तुरंत ही नीचे हो गयीं। फिर उन्होंने मुझे चुम्बन के लिए पूछा! कहाँ दूँ चुम्बन? गाल पर, या होंठ पर? फिल्मों में देखा है की हीरो-हेरोइन होंठों पर चूमते हैं.. लेकिन, क्या इनको यह पसंद आएगा? खैर, मैंने इनके होंठो पर जल्दी से एक चुम्बन दिया, और पीछे हट गई। शरम आ गई...।
लेकिन इनका मन नहीं भरा शायद... इन्होने मेरी ठुड्डी पकड़ कर मुझे कुछ देर निहारा और फिर मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया। मैं तो सिहर ही गई, मेरे शरीर पर किसी मर्द का यह पहला चुम्बन था। मेरा उनके होंठों के स्पर्श से ही कांप गया, गाल लाल हो गये, और रौंगटे खड़े हो गए। उनके गर्म होठों का स्पर्श – एकदम नया अनुभव! मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई। समय का सारा एकसास न जाने कहीं खो गया। कुछ याद नहीं की यह चुम्बन कब तक चला। लेकिन, उतनी देर में मेरा हाल बहुत बुरा हो चला था – मैं बुरी तरह कांप रही थी, उसके गालों से गर्मी छूट रही थी और साँसे भारी हो गई थी।
न जाने क्या सोच कर उन्होंने मेरी नथ उतार दी। पारंपरिक विवाहों में सुहागरात में पति सम्भोग से पहले अपनी पत्नी की नथ उतारता है। सम्भोग! सहसा ही मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे मुझे किसी ने नग्न कर दिया हो। डर और लज्जा की मिली-जुली भावाना के कारण सेक्स क्रिया तो दूर की बात है, उनका आलिंगन, चुम्बन और स्पर्श में भी मेरे दिल को दहला दे रही थी। मन में बस यही भावना आ रही थी की उनके सामने पूरी नंगी न होना पड़े। लेकिन जिस निर्लज्जता से उन्होंने मेरा ब्लाउज उतारा था, मैं तो समझ गई की मेरी भी दशा मेरी भाभियों जैसी ही होने वाली है। उन्होंने धीरे-धीरे एक-एक करके मेरे सारे कपड़े मेरे शरीर से उतार दिए और मुझे उसी डर की खाईं में धकेल दिया। सब कुछ बहुत ही अस्वाभाविक प्रतीत हुआ। जिस आकर (खज़ाना) को मैं अब तक सुरक्षित रखे हुए थी, वह उसी पर सीधी सेंधमारी कर रहे थे। लेकिन जब उन्होंने मुझे प्रेम से आलिंगनबद्ध कर दुलराया, तो मन में कुछ साहस आया।
और फिर वह हुआ जिसकी कल्पना मैंने अपने सबसे सुखद स्वप्न में भी नहीं करी थी... उनके होंठ, जीभ, हाथ, उँगलियों और लिंग ने एक समायोजित ढंग से मेरे सर्वस्व पर कुछ इस प्रकार आक्रमण किया की मैं सब कुछ भूल गई। मेरे यौवन के खजाने को पहली बार कोई मर्द ऐसे लूट रहा था, और उस समय होने वाले सुखद अहसास को मेरे लिए शब्दों में बयान करना नामुमकिन है। मेरे चूचक पहले भी कभी-कभी कड़े हो जाते थे – जब अधिक ठंडक होती, या फिर तब जब मैं नहाते समय अपने स्तनों पर कुछ ज्यादा ही साबुन रगड़ लेती.. लेकिन उस समय तो कुछ और ही बात थी। मेरे चुचक उनके मुँह में जाकर पत्थर के सामान कड़े हो गए थे। वह उनको किसी बच्चे की तरह चूसते हैं.... मैं तो जैसे होश ही खो देती हूँ। पता नहीं उनको मेरे स्तन इतने स्वादिष्ट क्यों लगते हैं! उनको पिए जाने पर मेरा मन भी नहीं भरता... मन में बस यही आता है की रूद्र मेरे दोनों चूचक लगातार पीते रहें। हालांकि उनके चूसने और पीने से मेरी दोनों निप्पलों में दर्द होने लगता है, लेकिन उनके ऐसा करने से जो मुझे जो असीम आनन्द का अनुभव होता है, उसके लिए यह दर्द कुछ भी नहीं।
मैंने सोते हुए रूद्र को देखा – वो एकदम से बेख़बर, एक भोले बच्चे के समान सो रहे थे। नींद में भी वो कितने मासूम और प्यारे लग रहे थे... चेहरे पर संतोष के भाव एकदम स्पष्ट। मैं मुस्कुराई... इतने दिनों में यह एक अनोखी रात थी, जब मेरे शरीर पर कपड़े थे!
‘मेरे कपड़ो के दुश्मन...!’
मैंने प्यार से सोचा और उनके गाल पर धीरे से अपनी उंगलियाँ फिराईं। मेरे स्पर्श से वे थोड़ा कुनमुनाए और फिर अपने गाल को स्वतः ही मेरी उँगलियों से सटा कर सो गए।
‘अरे मेरे मासूम साजन!’ मैंने मन ही मन सोचा और मुस्कुराई, ‘....कैसे बच्चों के समान सो रहे हो! यही बच्चा रोज़ मेरे क्रोड़ में उथल पुथल मचा देता है!’
‘और इनका लिंग! बाप रे! पहली बार उनके लम्बे तगड़े अंग को देखते ही मुझे दहशत सी हो गई! इतना मोटा! मेरे कलाई से भी अधिक मोटा! उसकी त्वचा पर नसें फूल कर मोटी हो रही थी और आगे का गुलाबी हिस्सा भी कुछ कुछ दिख रहा था... आखिर यह मुझमें समाएगा कैसे?’ उस समय मुझे पक्का यकीन हो गया की आज तो दर्द के मारे मैं तो मर ही जाऊंगी! यह सब सोचते हुए मेरी दृष्टि रूद्र के जघन भाग पर चली गई, जहाँ चद्दर के नीचे से उनका अंग सर उठा रहा था।
मेरे होंठों से एक हलकी सी हंसी छूट पड़ी, ‘हे भगवान्! क्या ये कभी भी शांत नहीं रहता?!’
मुझे याद है जब मैंने इसको पहली बार छुआ था... मैंने छुआ क्या था, दरअसल उन्होंने ही मेरे हाथ को पकड़ कर अपने आग्नेयास्त्र पर रख दिया।
आग्नेयास्त्र! हा हा! सचमुच! मानो अग्नि की तपन निकल रही थी उसमें से!! मेरी हथेली उनके लिंग के गिर्द लिपट तो गई, लेकिन घेरा पूरा बंद ही नहीं हुआ। इतना मोटा! बाप रे! और तो और, उनके लिंग की लम्बाई का कम से कम आधा हिस्सा मेरी पकड़ से बाहर निकला हुआ था। शरीर और मन की इच्छाएँ जब अपने मूर्त-रूप में जब इस प्रकार उपस्थित हो जाती हैं, और उनसे दो-चार होना पड़ता है तो डर और लज्जा – बस यही दो भाव मन में आते हैं। मैं भी डर गई...!
लेकिन उनके अंतहीन मौखिक प्रेम प्रलाप ने मेरा सारा डर खींच कर बाहर निकाल दिया! ऐसा तो कुछ भी भाभियों ने नहीं बताया था। न जाने कितनी देर बाद अंततः वह समय आ ही गया जब हम दोनों संयुक्त होने वाले थे। मन में अनजान सा डर था की उनका लिंग मेरी क्या दुर्दशा करेगा, लेकिन एक विश्वास भी था की वे मुझे कोई परेशानी नहीं होने देंगे। एक आशंका थी की अगर भाभियों की बात सच हो गई तो..? और साथ ही साथ एक चिंता थी की यदि उनकी बात सच न हुई तो..?? इस प्रकार के विरोधी भाव आते जाते गए, और फिर मैंने स्वयं को उनकी निपुणता के हवाले कर दिया।
जब उन्होंने मेरी जांघें फैला दीं तो मुझे लगा की जैसे मेरी योनि तरल हो गई है... पूरी तरह से भिन्न आभास! जब उन्होंने अपनी उँगलियों से उसको फैलाया, तब जा कर मुझे वापस आभास हुआ की मेरी योनि स्नायु, ऊतकों और पेशियों से बनी है। वो कुछ कहते, लेकिन मुझे कुछ भी सुनाई न देता! मानो, सब इन्द्रियों की संवेदनशीलता सिमट कर मेरी योनि और चूचक में ही रह गई हो।
उनका लिंग!
पहली बार उसको अपनी योनि में महसूस करना अद्भुत था! उनके जोर लगाने से वह धीरे-धीरे मेरे अन्दर आने लगा। मुझे लगा की जैसे एक नया जीव मेरे अन्दर घर बना रहा हो। भराव का ऐसा अनुभव मेरी कल्पना से परे था। मैंने नीचे देखा – अभी तो लिंग के आगे के हिस्से का सिर्फ आधा भाग ही अन्दर घुसा था! उन्होंने एक क्षण रुक कर एक जोरदार धक्का लगाया और उनके विकराल अंग का आधा हिस्सा मेरी योनि के भीतर समा गया।
"आआह्ह्ह..." ऐसी क्रूरता! मेरी चीख निकल गई – जो की मुझे भी सुनाई दी।
वो एक दो पल ठहर कर मुझे देखने लगे.. उनकी आँखों में चिंता थी – किस बात की यह तो नहीं मालूम, लेकिन इतना कह सकती हूँ की मेरे लिए नहीं। क्योंकि एक दो पल रुकने के बाद ही उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि से थोड़ा बाहर निकाला और फिर पुनः और अन्दर डाल दिया। ऐसे ही उन्होंने कई बार अन्दर बाहर किया। ह्म्म्म.. दर्द कुछ कम तो हुआ! लेकिन उनके हर धक्के से मेरी कराह ज़रूर निकल रही थी। फिर अचानक ही उन्होंने पूरे का पूरा लिंग मेरे भीतर ठेल दिया और मेरा विधिवत भोग करना आरम्भ कर दिया। वासना और आनंद के सम्मिश्रण से मेरी आँखें बंद हो गईं – सांस और कराह का आवागमन मुंह से ही हो रहा था। उत्तेजना के मारे मैंने उनके कन्धों को जोर से जकड रखा था। अजीब अजीब सी आवाजें – कुछ हमारी कामुक आहों की, तो कुछ पलंग के पाए के भूमि पर घिसने की, तो कुछ हमारे जननांगों के घर्षण की! मुझे अचानक ही मेरे अन्दर गर्म तरल की बूँदें गिरती महसूस हुईं – और ठीक उसी समय मुझे एक बार पुनः कामुक आनंद के अनोखे स्वाद का आभास हुआ। मेरी पीठ एक चाप में मुड़ गई.. और मेरे भोले साजन मेरे चुचक को एक बार फिर से पीने लग गए और मुझ पर ही गिर कर सुस्ताने लगे! मुझे नहीं मालूम था की मर्दों को स्त्रियों के स्तनों का स्वाद लेने की ऐसी इच्छा हो सकती है। मैंने उनके लिंग को अपने अन्दर मुलायम होते महसूस किया; ऊपर से उनका दुलार, चुम्बन और चूषण जारी रहा।
रति निवृत्ति जहाँ अति आनंददायक हो सकती है, वहीँ पहली बार करने पर एक प्रकार की लज्जा भी होती है। उनको तो खैर नहीं हो रही थी, लेकिन मैं शरम से दोहरी हुई जा रही थी और उनसे आँखे ही नहीं मिला पा रही थी। पता नहीं क्यों! आखिर इस खेल में हम दोनों ही बराबर के भागीदार थे, लेकिन फिर भी शरम मुझे ही आ रही थी। एक वो दिन था, और एक आज का दिन है! मैं भी किसी छंछा (निर्लज्ज स्त्री) की तरह निर्बाध यौन आनंद उठा रही हूँ।
सपनों के ब्रह्माण्ड में विचरण करते हुए अगला पड़ाव मेरी विदाई का आया...
अप्रत्याशित रूप से मुझे एक दिन पहले ही अपने पिया के घर को निकलना पड़ा। एक पल के लिये भी मुझे अपने पिता के घर को छोड़ने का मलाल नहीं हुआ। रूद्र के साथ जीवन के हसीन सपने संजोंते हुए मैंने सबसे खुशी-खुशी विदा ली। मन में कई प्रकार की खुशियाँ घर करने लगी। मुझे मालूम था की रूद्र जैसे पति को पाकर मैं धन्य हो गई थी। बंगलौर पहुँच कर मेरा ऐसा स्वागत हुआ कि मैं खुद को किसी राजकुमारी से कम नहीं मान रही थी। लेकिन इस घर का अहसास कुछ ही घंटों में मुझे अपना सा लगने लगा। मैं तो एक दिन में ही पापा का घर भूल गई। यह मेरा घर था... अद्वितीय वास्तु शिल्प से निर्मित घर! मैं दंग रह गई थी। सब कुछ जैसे मीठा स्वप्न हो! मुझे ऐसा लगा जैसे मैं एक ऐसे स्थान में हूँ, जहां रिश्तों की तपिश का संसार बसाया जा सकता है। प्रेम के इंद्रधनुषी रंगों की वितान (शामियाना) के नीचे हम दोनों की देहों के मिलन से सृष्टि सृजन को गति दी जा सकती है।
सच है.... एक वो दिन था, और एक आज का दिन है! निर्बाध यौन आनंद! जब मैं उनकी बांहों में जाती हूँ तो पूर्णतः तनाव मुक्त हो जाती हूँ। साहचर्य की कायापलट करने वाली ऊर्जा की कांति मानो मेरी त्वचा से फूट फूट कर निकलने लगी है। सचमुच, यौन क्रिया, संसर्ग के अतिरिक्त भी ऐसी प्राप्य है जो चेतना को सुकून और शरीर को पौष्टिकता देती है। कुछ लोग कहते हैं की जब स्*त्री शरीर, पुरुष रसायन प्राप्त करता है, तो देह गदरा जाती है।
मैं इस सोच पर मुस्कुराई... एक हाथ अनायास ही मेरे स्तन पर चला गया। ‘ये दोनों जल्दी ही बड़े हो जाएँ!’ मन में एक विचार कौंधा। कैसा हास्यास्पद विचार है यह... कुछ दिनों पहले तक ही मैं सोचती थी की बड़े स्तन कितने तकलीफदेय हो सकते हैं... लेकिन जिस प्रकार से रूद्र मेरे दोनों स्तनों का भोग प्रयोग करते हैं.. यदि, ये थोड़े बड़े होते तो उनको और आनंद आता। और यदि ये दोनों मीठे मीठे दूध से भर जाएँ, और रूद्र जीवन भर उनका पान कर सकें! आह!
मेरे मन में एक शरारत उठी। मैंने रूद्र से सट कर, चद्दर के अंदर हाथ बढ़ा कर उनके लिंग पर धीरे से हाथ फिराया। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसको मेरी छुवन का ही इंतज़ार था – मेरा हाथ लगते ही तुरत-फुरत उसका आकार अपने पूर्ण रूप में बढ़ गया।
‘ऐसा पुष्ट अंग! हाथ में ठीक से आता ही नहीं..! कितना सख्त हो गया है!’
मैंने पूरे हाथ को उनके लिंग पर कई बार फिराया और फिर उसको पकड़ कर हिलाने लगी। कुछ ही देर में उनका लिंग मेरी योनि में जाने के लायक एकदम खड़ा और सख्त हो गया।
दुर्भाग्य से मेरी योनि इस समय थकी हुई थी, और हमने सावधानी बरतने का प्रण भी किया था, इसलिए मैंने सोचा की क्यूँ न हाथ से ही इनको निवृत्त कर दिया जाय! मैंने रूद्र के लिंग को थोड़ा मजबूती से पकड़ कर अपनी मुट्ठी को उसकी पूरी लम्बाई पर आगे-पीछे चलाना आरम्भ कर दिया। सोते हुए भी रूद्र के गले से कामुक आहें निकलने लगीं! फिर मुझे याद आया की उनका वीर्य निकलेगा तो बिस्तर को ही खराब करेगा, अतः मैं घुटनों और कोहनी के बल इस प्रकार बैठ गई जिससे उनका लिंग मेरे मुंह के सामने रहे। कुछ देर और उनके लिंग को पकड़ कर आगे पीछे करने के बाद मैंने उसके सामने वाले हिस्से को अपने मुंह में भर लिया। अब हाथ की ही ले में मेरा मुंह भी उनके लिंग पर आगे पीछे हो रहा था। मैंने अपनी जीभ से उनके लिंग के आगे वाले चिकने हिस्से पर कई बार फिराया।
रूद्र ‘आऊ आऊ’ करते हुये मेरे सिर को अपने हाथ से सहला रहे थे। ‘हो गया सोना!’
"यस बेबी! यस!!" उन्होंने बुदबुदाते हुए मेरा हौसला बढाया।
मैंने उत्साह में आकर उनके लिंग को अपने मुंह के और भीतर जाने दिया – एक बार तो उबकी सी आ गई, लेकिन मैंने गहरी सांस भर कर उसको चूसना जारी रखा। उधर रूद्र भी उत्तेजना में आकर लेटे हुए नीचे से धक्के लगाने लगे – वो तो अच्छा हुआ की मैं अभी भी उसकी गति और भेदन नियंत्रित कर रही थी, नहीं तो मेरा दम घुट जाता। खैर, कुछ ही देर में मैं अपने मुंह में उनके लिंग की उपस्थिति और चाल की अभ्यस्त हो गई और अब मुझे इस प्रकार मैथुन करना अच्छा लगने लगा। मुझको यह क्रिया आरम्भ किये कोई चार-पांच मिनट तो हो ही गए थे.... अतः कुछ और झटके मारने के बाद वो स्खलित हो गये और मेरा मुख उनके गरम गरम वीर्य से भर गया, जिसको मैंने तुरंत ही पी लिया। कुछ ज्यादा नहीं निकला... संभवतः आज कुछ ज्यादा ही खर्च हो गया। एक अजीब स्वाद! हो सकता है की कुछ और बार ऐसे करने के बाद मैं उसकी भी अभ्यस्त हो जाऊं! रूद्र भी स्खलित होने के बाद निढाल से लेटे रहे।
‘पता नहीं उनको क्या लगा होगा! सपना या हकीकत! हा हा!’
मैं कुछ देर तक उनका सिकुड़ता हुआ लिंग मुंह में लिए ऐसे ही लेटी रही, और फिर अलग हट कर सिरहाने की छोटी मेज पर रखी बोतल से पानी पीने लगी। और फिर उनके चेहरे पर नज़र डाली... वो मुस्कुरा रहे थे। क्या ये जाग गए हैं और उनको मेरी इस हरकत का पता चल गया? या वो इसको एक सपना ही सोच कर मगन हो रहे हैं! क्या पता!
'आज की रात क्यों अनोखी हो भला?' यह सोचते हुए मैंने अपने सारे कपड़े उतारे, और अपने पिया से चिपक कर लेट गई.. रात में कब नींद आई, कुछ भी याद नहीं।