• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance कायाकल्प [Completed]

Status
Not open for further replies.

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,023
22,399
159
बहुत पहले मैंने एक फिल्म देखी थी... “अ फ्यू गुड मेन”... उसमें जैक निकोल्सन का किरदार एक डायलॉग बोलता है...

“There is nothing on this earth sexier, believe me, gentlemen, than a woman you have to salute in the morning. Promote 'em all, I say, 'cause this is true: if you haven't gotten a blowjob from a superior officer, well, you're just letting the best in life pass you by.”

वैसे तो यह एक लैंगिकवादी सोच है, लेकिन पुरुष वर्ग इस बात की सच्चाई से इनकार नहीं कर सकता। जब स्त्री रति संभोग क्रिया में पहल करती है, तो पुरुष अत्यधिक उत्तेजना प्राप्त करने में समय नहीं लगाता। यही हाल मेरा भी इस समय था.. संध्या ने इस खेल की पहल करी थी। यह उसका एक नया ही रूप था... मुझे पहले लगता था की उस पर मेरा किसी प्रकार का दबाव हो सकता है, और इसीलिए वह मेरी बातें मान रही हो। लेकिन, जब वह अपनी स्वेच्छा से ऐसी कामुक ड्रेस पहन कर मुझे सम्भोग के लिए ऐसे लुभा रही है, तो इसका मतलब कुछ तो बदला है! और उसका यह बदला हुआ रूप मुझे बहुत लुभा रहा था।

संध्या ने मुंह नहीं खोला तो मैंने ही उसके दोनों गालो को दबा कर उसके होंठ खोल दिए और अपनी उंगली उसके मुंह में डाल दी। मरता क्या न करता! संध्या ने पहले तो बेमन से, और फिर उत्सुक स्वेच्छा से मेरी उंगली चाट कर साफ़ कर दी।

“क्यों? मज़ा आया? है न स्वादिष्ट तुम्हारा ‘चूत-रस’?” मेरे इस तरह कहने से संध्या के गाल शर्म से सुर्ख हो गए।

“तुम बोलो या नहीं.. है तो स्वादिष्ट!” कह कर मैंने वही उंगली अपने मुंह में डाल कर कुछ देर चूसा।

इंटिमेसी / अंतरंगता / निजता.. इन सबके मायने हमारे लिए बहुत बदल गए थे, इन कुछ ही दिनों में!

मैं बिना कुछ पहने ही सो गया था। और इस समय मेरे लिंग का बुरा हाल था, और स्पष्ट दिख भी रहा था। वह इस समय एकदम सख्त स्तम्भन की स्थिति में था। संध्या ने अब तक मेरी उत्तेजना महसूस कर ली होगी, इसलिए उसका हाथ मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर चल-फिर और दौड़ रहा था। कभी वह यह करती, तो कभी मेरे वृषणों के साथ खेलती।

“यू हैव अ वैरी नाइस पुसी डिअर!” मैंने वापस अपनी उंगली को उसकी योनि पर फिराया, “... इट इस सो हॉट... एंड वेट! यू आर सो रेडी टू फ़क!”

कह कर मैंने अपनी मध्यमा उंगली को उसकी योनि के अन्दर तक ठेल दिया और एक पम्पिंग एक्शन से उसको अन्दर बाहर करने लगा... इसमें एक ख़ास बात यह थी की एक तरफ तो मेरी मध्यमा उसकी योनि के अन्दर बाहर हो रही थी, वहीँ दूसरी तरफ बाकी उंगलियाँ रह रह कर उसके भगनासे को सहला रही थीं।

दोहरी मार! संध्या की साँसे इसके कारण भारी हो गई, और रुक रुक कर चलने लगीं। उसका चेहरा उत्तेजना से तमतमा गया। कभी वह मुंह खोल कर सांस भारती, तो कभी अपने सूखे होंठों को जीभ से चाटती.. उसका सीना भारी भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे हो रहा था।

“कैसा लग रहा है, जानू?” मैंने पूछा।

“आह! सोओओ गुड! उम्म्म्मम...!” वह बस इतना ही कह पाई।

“ह्म्म्म... सो द लिटिल गर्ल इस ग्रोन नाउ! लुक अट हर पुसी... आल जूसी एंड हॉट!” मैं रह रह कर अपनी उंगली की गति कभी धीमी, तो कभी तेज़ कर देता। संध्या कभी सिसियती तो कभी रिरियाती। कुछ ही देर में रति-निष्पत्ति के चरम पर पहुँच कर उसका शरीर कांपने लगा। उसकी बाहें मेरी गर्दन पर कस गईं और उसका माथा मेरे माथे पर आकर टिक गया। इस पूरे प्रकरण में पहली बार मैंने संध्या के होंठ चूमे!

“मज़ा आया हनी?”

संध्या उन्माद के आकाश में तैरते हुए मुस्कुराई।

“देखो न.. तुमने मेरी क्या हालत कर दी है! कितना कड़ा हो गया है मेरा लंड!” कह कर मैंने संध्या का एक हाथ अपने लिंग पर लाकर रख दिया। संध्या की उंगलियाँ स्वतः ही उस पर लिपट गईं। उधर मैं संध्या के टेडी के ऊपर से ही उसके निप्पल को बारी बारी से चूमने और चूसने लगा। फिर दिमाग में एक आईडिया आया।

संध्या को पकड़े पकड़े ही मैं बिस्तर पर लेट गया और संध्या को अपने लिंग पर कुछ इस तरह से स्थापित किया की उसकी योनि मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर सिर्फ चले, लेकिन उसको अन्दर न ले। संध्या भी इस इशारे को समझ गई, उसने अपनी ड्रेस काफी ऊपर उठा दी – अब उसके स्तन भी दिख रहे थे, और पूरे उत्साह के साथ मेरे लिंग को अपनी योनि-रस से भिगाते हुए सम्भोग करने लगी। बहुत ही अलग अनुभव था यह.. लिंग को योनि की कोमलता और गरमी तो मिल ही रही थी, साथ ही साथ कमरे की ठंडी हवा भी। योनि का कसाव और पकड़ नदारद थी, लेकिन दो शरीरों के बीच में पिसने का आनंद भी मौजूद था।

संध्या के लिए भी उन्मादक अनुभव था – इस प्रकार के मैथुन से उसके जननांगों के सभी कोमल, संवेदनशील और उत्तेजक भाग एक साथ प्रेरित हो रहे थे। साथ ही साथ, मेरे ऊपर आकर मैथुन क्रिया को नियंत्रित करना उसके लिए भी एक अलग अनुभव रहा होगा... पिछली बार तो वह शर्मा रही थी, लेकिन इस बार वह एक अभिलाषा, एक प्रयोजन के साथ मैथुन कर रही थी। यह क्रिया अगले कोई पांच-छः मिनट तो चली ही होगी.. मेरे अन्दर का लावा बस निकलने को व्याकुल हो गया। मेरा शरीर अब कांपने लग गया था।

“जानू.. निकलने वाला है!”

मेरे बस इतना ही बोलने की देर थी की संध्या ने अपनी बाहें मेरी गर्दन पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर कर जोर से चूमने चूसने लगी। उसके ऐसा करते ही एक विस्फोट के साथ वीर्य का पहला खेप स्खलित हो गया और फिर उसके बाद ही ताबड़ तोड़ चार पांच बड़ी गोलिकाएं और निकलीं। संध्या ने इस क्रिया के दौरान अपने कूल्हे चलाने जारी रखा। और मेरे स्खलन के कुछ ही देर बाद संध्या का शरीर भी कुछ अकड़ा और एक बार फिर झटके खाते हुए वो भी शांत पड़ने लगी और मुझ पर निढाल होकर गिर गई। मेरा शरीर अभी भी उत्तेजना में कांप रहा था.. मैंने संध्या को अपने में जोर से भींच लिया – कभी उसके होंठ चूमता, तो कभी गाल, तो कभी माथा! मेरी हरकतों पर मीठी मीठी सिसकियाँ निकल जातीं। इस अनोखे सम्भोग की संतुष्टि उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।

जब हमारी उत्तेजना का ज्वार कुछ थमा, तो मैंने कहा, “देखो न.. मैंने कहा था न की साँवली लड़कियाँ सेक्स में बहुत तेज़ होती हैं... और... गोरी लड़कियों को सिखाना पड़ता है! याद है?”

संध्या को पहले कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर मेरा इशारा समझ कर मुस्कुरा दी। उसके गाल सेब के जैसे लाल हो गए।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,023
22,399
159
प्रिय पाठकों, अगर आप मेरी माने, तो वैवाहिक जीवन का सुख तो यही है – हर पल बढ़ता पारस्परिक प्रेम और सामंजस्य, अपने जीवन की अंतरंगता को किसी और से ता-उम्र बांटना, सुखमय जीवन के सपने साथ में संजोना.. और संतुष्टि प्रदान करने वाली यौन क्रीड़ा! भला विवाह में इससे अधिक किसी को और क्या चाहिए? लोग-बाग़ दहेज़ मांगते हैं, खानदान मांगते हैं, होने वाले रिश्तेदारों में रुतबा मांगते हैं.. भला यह कोई शादी है? यह तो, आज कल वो कहते हैं न, सिर्फ और सिर्फ एक ‘अलायन्स’ है। अलायन्स... अरे हम लोग कोई राजे-रजवाड़े हैं क्या, जो राजनीतिक दृष्टि से सम्बन्ध बनाएँ? अलायन्स तो यही हुआ न? खैर... मेरी तो बस यही समझ है की शादी तो बस स्वयं के लिए करनी चाहिए!

लेकिन लोग बाग़ तो अपने माँ बाप का हवाला देते हैं.. कहते हैं कि माँ बाप के लिए शादी कर रहे हैं। वाह भाई! शादी के लड्डू खुद खाओ, और नाम माँ बाप का लगाओ! एक बार मैंने किसी लड़के के मुंह से सुना... वो लड़की वालो को कह रहा था, “जी मैं तो शादी अपनी माँ के लिए कर रहा हूँ... कोई ऐसी मिले जो उनका ख़याल रख सके! माँ बहुत बीमार रहती हैं! कोई उनको अपना मान कर उनकी सेवा कर सके! बस! मेरी तो बस यही उम्मीद है लड़की से!”

मेरा उस लड़के से बस इतना ही कहना है की भाई, अगर अपनी माँ की सेवा करनी है तो तेरे खुद के हाथ-पैर टूट गए हैं क्या? कर भाई सेवा! बहुत पुण्य कमाएगा। माँ बाप की सेवा तो सबसे भला काम है जीवन का! लेकिन तू उस काम को करने के लिए किसी और की मदद क्यों चाहता है? खुद क्यों नहीं कर लेता? अरे खुद नहीं हो रहा है तो एक आया रख ले, किसी जानी मानी अच्छी एजेंसी से.. या फिर एक नर्स! फुल-टाइम के लिए! या फिर दोनों! यह उम्मीद करना की बीवी आकर तेरी अम्मा की सेवा करने लगेगी, न केवल गलत है, बल्कि मैं तो कहता हूँ की एक तरह का अत्याचार है! जो काम तू खुद नहीं कर पा रहा है, वो तू दूसरे से क्यों उम्मीद करता है?

पति पत्नी का साथ उम्र भर का होता है.. लेकिन वह उम्र भर तभी चलता है जब उन दोनों में एक दूसरे के लिए सम्मान, और प्रेम हो। सामंजस्य बैठाया जा सकता है.. लेकिन अगर यह दोनों सामग्री विवाह में न हो तो चाहे कितने भी मन्त्र फूंक लो, चाहे कितनी ही कुंडली का मिलान कर लो, और चाहे कितने ही ग्रह शांत करा लो, प्रलय तो निश्चित ही है!

ओह मैं भावनाओं की रौ में बह गया! माफ़ करना!!

सम्भोग की निवृत्ति के बाद हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपनी सफाई करी और फिर कपड़े बदल कर अपनी साइकिल उठा कर द्वीप के पश्चिम दिशा की तरफ चल दिए.. जिससे सूर्यास्त के दर्शन हो सकें। संध्या ने मुझे बताया था की सूर्यास्त ऐसा सुन्दर हो सकता है, उसको मालूम ही नहीं था। पहाड़ों पर क्या सूर्योदय और क्या सूर्यास्त! सब एक जैसा ही दिखता है। हम दोनों जल्दी ही एक साफ़ सुथरे निर्जन बीच पर पहुँच गए.. ऐसा कोई निर्जन भी नहीं था.. कोई पांच छः जोड़े वही बैठे हुए थे, सूर्यास्त के इंतज़ार में।

संध्या और मैं बाहों में बाहें डाल कर सुनहरी रेत वाले इस बीच के एक तरफ बैठ गए।

“जानू, मैं आपसे एक बात कहूं?”

“हाँ.. पूछो मत, बस कह डालो” मैंने रोमांटिक अंदाज़ में कहा।

“मैं आपके साथ ही रहना चाहती हूँ.... हनीमून के बाद भी।“

“हयं! तो और कहाँ रहने वाली थी? अरे भई, हम लोग हस्बैंड-वाइफ हैं.. साथ ही तो रहेंगे?”

“नहीं वो बात नहीं... बोर्ड एक्साम्स के लिए पढना भी तो है। इतने दिनों से कॉलेज नहीं गई हूँ.. और जो भी कुछ पढ़ा लिखा था, वो सब गायब है! हा हा!”

“हा हा! अच्छा, कब हैं एक्साम्स?”

“मार्च – अप्रैल के महीने में ही होंगे.. लेकिन आप कुछ न कुछ कर के मुझे अपने साथ रखिए न, प्लीज!”

“अरे! यह भी कोई कहने वाली बात है? एग्जाम तो वही जा कर देने होंगे... लेकिन उसके पहले के लिए एक काम तो कर ही सकते हैं.. आपके प्रिंसिपल से पूछ के ‘होम-स्कूल’ की अनुमति ले सकते हैं.. वो अलाऊ कर दें, तो फिर बस एग्जाम देने के लिए आपको मार्च में वापस जाना होगा... उतना तो ठीक है न? उसके बाद फिर से यहाँ? ओके?”

“हाँ... ठीक तो है... लेकिन हो जाएगा न?”

“अरे क्यों नहीं? मुझसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं क्या वहां? मैं कन्विंस कर लूँगा आपके प्रिंसिपल को! और जहाँ तक पढाई की बात है, हमारे पड़ोसी बहुत ही क्वालिफाइड हैं.. उनसे कह कर दिन में आपकी पढाई का इंतज़ाम कर दूंगा... कुछ कोर्स तो मैं ही पढ़ा सकता हूँ.. मुझे नहीं लगता कोई प्रॉब्लम होगी। क्या पता आप टापर हो जाएँ! हा हा!”

संध्या मुस्कुराई।

“वैसे आप आगे क्या करना चाहती हैं? मेरा मतलब कैरियर के बारे में कुछ सोचा है? आप कह रही थी न.. हमारी सुहागरात को, की आप कुछ करना चाहती हैं.. कुछ बनना चाहती हैं?”

“करना तो चाहती हू, लेकिन क्या करूंगी.. कुछ मालूम नहीं..!”

“अच्छा, मैं आपसे कुछ सवाल पूछूंगा... आप सोच कर उसमें जो पसंद है बताइयेगा.. ओके?”

“ओके..”

“खूब पैसे चाहिए, की रुतबा?”

“उम्म्म्म...” संध्या ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहा, “..आप!”

मैं मुस्कुराया, “खूब मेहनत या फिर आराम?”

“मेहनत.. लेकिन आपका साथ चाहिए।“

“ओके! नौकर, या अपना खुद का बॉस?”

“अपना खुद का..”

“नौकरी या बिजनेस...”

“नौकरी या बिजनेस...”

“पता नहीं...”

“हम्म.. मेरे मन में यह बकवास करते करते एक ख्याल आया। क्यूँ न आप अपना खुद का बिजनेस शुरू करो? साथ में ग्रेजुएशन की पढाई करते रहना? अगर दिमाग में बढ़िया आईडिया हो, तो बिजनेस ज़रूर करना चाहिए। पैसे की जो ज़रुरत होगी, वो मैं करूंगा... मेरे बहुत से दोस्त भी है, अगर वो आपके बिजनेस आईडिया से सहमत हों, तो वो भी पैसे लगा सकते हैं। बैंगलोर वैसे भी उद्यमियों का शहर है! प्रोफेशनल हेल्प मिल जाएगी। सोचना... कोई जल्दी नहीं है! ओके?”

“बाप रे! आप मुझ पर इतना भरोसा करते हैं?”

“देखो, जानू, भरोसा तो मुझे आप पर है.. लेकिन जब तक आईडिया सॉलिड नहीं होगा, मैं पैसे नहीं लगाऊँगा!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

“लेकिन... मुझे तो अभी तक कुछ मालूम ही नहीं! क्या करना है, क्या नहीं..”

“तो क्या हुआ.. अभी कोई जल्दी नहीं है.. अपना टाइम लीजिये.. जब समझ आयें तभी कुछ करेंगे! ओके?”

मैंने संध्या के बालों में अपने हाथ से सहलाया.. और फिर आगे कहा, “देखो, यह बात सच है की कम उम्र में शादी करने से बहुत सी समस्याएँ खड़ी हो जाती है। लेकिन मैं आपसे आज कुछ वायदे करता हूँ। पहला तो यह की आपको अपने व्यक्तितत्व के विकास के लिए पूरा समय, और सहयोग दूंगा। आपको जो भी कुछ करना है, जो भी कुछ बनना है, उसमें मैं पूरी मदद करूंगा। आप पर किसी भी तरह की पारिवारिक जिम्मे*दारी तब तक नहीं आने दूंगा, जब तक आप उसके लिए पूरी तरह से तैयार न हों – मतलब पढाई लिखाई पूरी करनी होगी, और उसके बाद आपका अगर मन हो तो आप अपना पूरा ध्यान कैरियर पर लगाइए। और बच्चा तभी जब आप तैयार हों।“

अब तक आसमान में जीवंत और चटक गुलाबी, लाल, नारंगी और पीले रंगों की छटा छा गई। सूरज का लाल गोला धीरे धीरे बादलों के पीछे से नीचे आ रहा था।

संध्या ने मेरी तरफ उचक कर मेरे होंठों को चूम लिया।

“थैंक यू!” उसने कहा।

मैंने उसकी आँखों में देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “नो! थैंक यू!”

मैंने उसकी आँखों में ध्यान से देखा – आंसू से संध्या की आँखें डबडबा गईं थीं। संध्या कोशिश कर रही थी की आंसू न निकालें, लेकिन फिर भी एक-एक बूँद आँखों से निकल कर उसके गालों पर ढलक ही गई। मैंने बिना कुछ कहे संध्या का हाथ थाम लिया... निशब्द भाषा में बस यह कहने के लिए की मैं उसके साथ हूँ... जीवन की कड़वी सच्चाईयाँ अभी दूर थीं... जो इस समय हमारे पास था वह था हम दोनों का साथ और यह सुन्दर सूर्यास्त!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,023
22,399
159
“आई लव यू!” कहते हुए संध्या का गला भर आया। उसने बड़े प्रयत्न से अपना गला साफ़ किया और स्वयं पर नियंत्रण किया।

“पता है आप मेरे कौन है?” भावुक माहौल था.. नहीं तो किसी न किसी तरह की चुहलबाजी ज़रूर करता।

“आप मेरे कृष्ण है! मेरे सम्पूर्ण पुरुष! जब ज़रुरत हुई तब प्रेमी, जब ज़रुरत हुई तब सारथी, और जब ज़रुरत हुई तब सखा! मैंने सच में कोई बहुत पुण्य के काम किए होंगे, जिसके कारण मुझे आप मिले।“

“बाप रे!”

“सच में!”

“आई लव यू!”

“आई लव यू टू!!”

मैंने संध्या को अपनी बाहों के घेरे में कस कर दुबका लिया – जैसे मेरा आलिंगन उसके लिए सबसे सुरक्षित स्थान बन जाय.. हम दोनों वैसे ही काफी देर तक सूर्यास्त का अद्भुत् नज़ारा देखते रहे। सूरज ढलने के साथ साथ ही धीरे धीरे सांझ का धुंधलका बढ़ने लगा, और उसके साथ ही आसमान में गहरे लाल, काले नीले इत्यादि रंग उभरने लगे। कई लोग अब जाने की तैयारी कर रहे थे और जो लोग रुके हुए थे, उनकी भी बस पार्श्व आकृति ही दिख रही थी।

“अभी कैसी हो जानू?” मैंने पूछा।

“मैं ठीक हूँ!”

“घर बात करना है?”

“मेरा घर तो आप हैं!”

“ओहो! मेरा मतलब माँ से? या नीलम से? ... बात करनी है वहाँ? वहां कॉल किए दो दिन हो गए शायद?”

“हाँ! मुझे तो ध्यान ही नहीं रहा! आपके संग तो मैं सब कुछ भूल गई हूँ!”

“अच्छी बात है... ये लो फ़ोन.. बात कर लो!”

“आप नहीं करेंगे?”

“अरे.. कॉल मैं ही लगा कर आपको दे दूंगा.. ओके?”

मैंने उत्तराँचल कॉल लगाया। चूँकि फ़ोन तो शक्ति सिंह जी के ही पास रहता है, इसलिए उनको ही उठाना था।

“हल्लो!” मैंने कहा..

“हल्लो रूद्र.. कैसे हैं आप बेटा?”

‘बेटा!’ रिश्ते में तो हम बाप-बेटा ही तो हैं! वो अलग बात है की उम्र में कोई खास अंतर नहीं है।

“जी.. पापा..” मैंने हिचकिचाते हुए कहा, “हम दोनों ठीक हैं..”

“स्वास्थ्य ठीक है आप दोनों का? मौसम कैसा है वहाँ?”

“स्वास्थ्य एकदम ठीक है... मुझे लगा था की ठन्डे गरम के कारण कहीं जुकाम न हो जाय, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहाँ का मौसम तो गरम ही है.. चारों ओर समुद्र से घिरा है, इसलिए बारहों मास ऐसे ही रहता है यहाँ। .. और आप कैसे हैं? माता जी कैसी हैं?”

“हम सब ठीक हैं बेटा.. आप लोगो की बहुत याद आती है। बस और क्या!”

मैं इसके उत्तर में क्या ही बोलता! “लीजिये, संध्या से बात कर लीजिए..” कह कर मैंने संध्या को फ़ोन थमा दिया।

लाडली बेटी का फ़ोन आते ही वहां पर सब लोग आह्लादित हो गए होंगे – मैंने सोचा।
 
Last edited:

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,023
22,399
159
संध्या का परिप्रेक्ष्य

कैसे सब कुछ इतनी जल्दी बदल जाता है! एक सप्ताह भर पहले तक ही मैं माँ पापा को छोड़ कर कहीं जाने की सोच भी नहीं सकती थी.. और आज का दिन यह है की उनकी याद भी नहीं आई! क्या जादू है! सहेलियों की बातों, कहानियों और फिल्मों में देखा सुना तो था की प्यार ऐसा होता है, प्यार वैसा होता है.. लेकिन, अब समझ में आया की प्यार कैसा होता है! प्यार का एहसास तो हमेशा ही नया रहता है - हमेशा ताज़ा!

पापा से कुछ देर बात करने के बाद माँ फ़ोन पर आई.. उनसे बात करनी शुरू ही की थी की ‘इनका’ हाथ मेरे स्तनों पर आ टिका! ‘हाय’ मेरे मुंह से अनायास ही निकल पड़ा। उधर से माँ ने पूछा की क्या हुआ.. अब उनको क्या बताती? मैं जैसे तैसे उनसे बात करने की कोशिश कर रही थी, और उधर मेरे पतिदेव मेरे स्तनों से खेल रहे थे – वो बड़े इत्मीनान से मेरे स्तन दबा और धीरे धीरे सहला रहे थे। चाहे कुछ भी हो, ऐसा करने से स्त्रियों के चूचक कड़े होने ही लगते हैं। मेरे भी होने लगे। शरीर में जानी पहचानी गुदगुदी होने लगी। मैं अन्यमनस्क सी होकर बाते कर रही थी, लेकिन सारा ध्यान उनके इस खेल पर ही लगा हुआ था। वे कभी मुझे चूमते, तो कभी मेरे बालों को सहलाते, तो मेरे स्तनों से खेलते! अंततः उनका हाथ मेरी पैंट के अन्दर और उनकी उंगली मेरी योनि की दरार पहुँच गई। उनके टटोलने से मैं बेबस होने लग गई.. माँ क्या कह रही थी और फिर कब नीलम फ़ोन पर आ गई, मुझे कुछ याद नहीं! मदहोशी छाने लगी। सच में मैं रूद्र की दासी हो गई हूँ.. अगर वो उस समय मुझे नग्न होने को कहते तो मैं तुरंत हो जाती... बिना यह सोचे की वहां पर और लोग भी उपस्थित थे। इतना तो तय है की मैं उनकी किसी बात का विरोध कर ही नहीं सकती!

खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ.. नीलम ने अपने जीजू से बात करने को कहा तो मैंने फ़ोन इनको दे दिया।

“मेरी एंजेल कैसी है?”

इन्होने प्रेम और वात्सल्य भरी बात कही.. एक बात तो है, ये जो कहते हैं, उनकी आँखे भी वही कहती हैं। न कोई लाग लपेट, और न कोई फरेब! सच्चा इन्सान!

उधर से नीलम ने कुछ बात कही होगी, तो ये मुस्कुरा रहे थे.. बहुत देर तक मुस्कुरा कर सुनने के बाद इन्होने कहा, “अरे तो फिर हमारे पास आ जाओ! दो से भले तीन! है न?”

फिर उधर से नीलम ने कुछ कहा होगा, जिसके उत्तर में इन्होने ‘आई लव यू टू’ कहा, और बाय कर के फ़ोन काट दिया।

“क्या बाते हो रही थीं जीजा साली में? रोमांटिक रोमांटिक... ईलू ईलू वाली!” मैंने ठिठोली करी।

“हा हा हा! अरे जो भी हो रही हो... आपको इससे क्या? हमारी आपस की बात है! आपको क्यों बताएँ? हा हा!” फिर कुछ देर रुक कर, “.. जानू, क्यों न एग्जाम के बाद वहां से सभी लोग यहीं बैंगलोर में रहें? नीलम की पढाई भी अच्छी जगह हो जायेगी.. और आपके माँ पापा भी आराम से रह लेंगे! क्या कहती हो?”

“आप को लगता है की माँ पापा आयेंगे यहाँ?”

“क्यों! क्या प्रॉब्लम है?”

“वो लोग बहुत पुराने खयालो वाले हैं, जानू! बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते!”

“हंय! इसका मतलब वो लोग यहाँ आयेंगे तो कहीं और से पानी लाना पड़ेगा?”

“आप भी न... हमेशा मजाक करते रहते हैं! ठीक है, आप ट्राई कर लीजिए.. आ जाते हैं तो इससे अच्छा क्या?” मैंने कहा, और आगे जोड़ा, “... और अभी आप मेरे साथ क्या कर रहे थे? बदमाश! माँ और नीलम ने क्या कहा, मुझे कुछ याद नहीं!”


**************
 

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
आज सुबह से ही बदली वाला मौसम था – सूरज बादलो के साथ लुका-छिपी खेल रहा था। हल्की बयार और ढले हुए तापमान से मौसम अत्यंत सुहाना हो गया। मन में आया की क्यों न अगर ऐसे ही मौसम रहे, तो आज दिन भर बीच पर ही आराम किया जाय? आखिर आये तो आराम करने ही है! मैंने संध्या को यह बात बताई तो उसको बहुत पसंद आई – वैसे भी हिमालय की हाड़ कंपाने वाली ठंडक से छुटकारा मिलने से वह वैसे भी बहुत खुश थी। संध्या ने भी कहा की आज बस आराम ही करने का मन है... खायेंगे, सोयेंगे और हो सका तो रात में फिल्म देखेंगे, इत्यादि... मेरे लिए आज का यह प्लान एकदम ओके था।

हमने जल्दी जल्दी फ्रेश होने, और ब्रश करने का उपक्रम किया। ब्रेकफास्ट के लिए आज मैंने रिसोर्ट के सार्वजानिक क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया – कम से कम कुछ और लोगों से बातचीत करने को मिलेगा। नाश्ते पर हमारे साथ एक तमिल जोड़ा बैठा। हमारी ही तरह उनकी भी अभी अभी ही शादी हुई थी और वे हनीमून के लिए आये थे। उनसे बात करते हुए पता चला की दोनों ही बंगलौर में काम करते हैं! लड़का लड़की दोनों की उम्र पच्चीस से सत्ताईस साल रही होगी। खैर, हमने अपने फ़ोन नंबर का आदान प्रदान किया और मैंने शिष्टाचार दिखाते हुए उन दोनों को अपने घर आने का न्योता दिया। नाश्ता कर के हम होटल के रिसेप्शन पर चले गए और उनसे प्लान के बारे में पूछा।

वहां पर रिसेप्शनिस्ट ने बताया की बहुत से लोग आज यही प्लान कर रहे हैं.. उसने हमको काला-पत्थर बीच जाने को कहा.. एक तो वहां बहुत भीड़ भी नहीं रहेगी और दूसरा वह रिसोर्ट से आरामदायक दूरी पर था। आईडिया अच्छा था। फिर मेरे मन में एक ख़याल आया – मैंने रिसेप्शनिस्ट से पूछा की दो साइकिल का इन्तेजाम हो सकता है? क्यों न कुछ साइकिलिंग की जाय – वैसे भी इतने दिनों से किसी भी तरह का व्यायाम नहीं हुआ था.. बस आराम! खाओ, पियो, सोवो, और सेक्स करो! ऐसे तो कुछ ही दिन में तोन्दूमल हो जायेंगे हम दोनों।

रिसेप्शनिस्ट ने कहा कि साइकिलें हैं, और कुछ ही देर में हमारे सामने दो साइकिल (एक लेडीज और एक जेंट्स) मौजूद थीं। बहुत बढ़िया! संध्या को पूछा की उसको साइकिल चलाना आता है? उसने बताया की आता है.. उसने छुप छुपा कर सीखी है। भला ऐसा क्यों? पूछने पर संध्या ने कहा की पहले तो माँ, और फिर पापा दोनों ही उसको मना करते थे। माँ कहती थीं की लड़कियों की साइकिल नहीं चलानी चाहिए... उससे ‘वहाँ’ पर चोट लग जाती है। कैसी कैसी सोच! न जाने क्यों हम लोग अपनी ही बच्चियों को जाने-अनजाने ही, दकियानूसी पाबंदियों में बाँध देते हैं!

खैर, साइकिल चलाने और चलाना सीखने का मेरा खुद का भी ढेर सारा आनंददायक अनुभव रहा है। जब मैं छोटा था, उस समय मेरठ में वैसे भी साइकिल से स्कूल जाने का रिवाज था। स्कूल ही क्या, लोग तो काम पर भी साइकिल चलाते हुए जाते थे उस समय तक! लड़का हो या लड़की... ज्यादातर बच्चे साइकिल से ही स्कूल जाते थे। पांचवीं में था, और उस समय मैंने साइकिल चलाना सीखी।

शुरू शुरू में मोहल्ले के कई सारे मुंहबोले भइया और दीदी मुझे साइकिल चलाना सिखाने लगे - कैसे पैडल पर पैर रखकर कैंची चलाते है... कैसे सीट पर बैठते है... कैसे साइकिल का हैंडल सीधा रखते हैं... इत्यादि इत्यादि! शुरू शुरू में कोई न कोई पीछे से कैरियर पकड़ कर गाइड करता रहता... साईकिल चलाते समय यह विश्वास रहता की अगर बैलेंस बिगड़ेगा तो कोई न कोई मुझे गिरने से बचा ही लेगा। ऐसे में न जाने कब बड़े आराम से अपने मोहल्ले मे साइकिल चलाना सीख लिया... पता ही नहीं चला।

एक वह दिन था और एक आज! न जाने कितने बरसों के बाद आज साइकिल चलाने का मौका मिलेगा! कभी कभी कितनी छोटी छोटी बातें भी कितने मज़ेदार हो जाती हैं! मैंने हाफ-पैन्ट्स और टी-शर्ट पहनी, चप्पलें पहनी और एक बैग रखा.. जिसमें फ़ोन, सन-स्क्रीन लोशन, कैमरा, किताब, मेरा आई-पोड, पानी की बोतलें, चादर और खाने का सामान था। संध्या ने हलके आसमानी रंग का घुटने तक लम्बा काफ्तान जैसा पहना हुआ था और उसके अन्दर नारंगी रंग की ब्रा और चड्ढी पहनी हुई थी.. क्या बला की खूबसूरत लग रही थी! बालों को उसने पोनीटेल में बंद लिया था – उसकी मुखाकृति और रूप लावण्य अपने पूरे शबाब पर था।

कोई पंद्रह बीस मिनट की साइकिलिंग थी.. तो मैंने सोचा की रस्ते में इसको चुटकुले सुनाते चलूँ...

हरयाणवी जाट का बच्चा साइकिल चलाते-चलाते एक लड़की से टकरा गया।
लड़की बोली: क्यों बे! घंटी नहीं मार सकता क्या?
जाट का बच्चा कहता है: री छोरी, बावली है के? पूरी साइकिल मार दी इब घंटी के अलग ते मारुं के?

संध्या: “हा हा! ये तो बहुत मज़ेदार जोक था! .... आप तो सुधर गए!”

मैं: “सुधर गया मतलब? अरे मैं बिगड़ा ही कब था?”

संध्या: “आपके ‘वो’ वाले जोक्स की केटेगरी में तो नहीं आता यह!”

मैं: “अच्छा! तो आपको ‘वो’ जोक सुनना है? तो ये लो...

संध्या: “नहीं नहीं बाबा! आप रहने ही दीजिये!”

मैं: “अरे आपकी फरमाइश है..! अब तो सुनना ही पड़ेगा.. शादी के फेरे लेने के बाद लड़की ने झुक कर पंडित जी के पैर छुए और कहा "पंडित जी कोई ज्ञान की बात बता दीजिए।" पंडित जी ने उत्तर दिया "बेटी, ब्रा अवश्य पहना करो.. क्योंकि जब तुम झुकती हो तो ज्ञान और ध्यान, दोनों ही भंग हो जाते हैं।“”

“हा हा हा!”

“हा हा हा हा हा!”

ऐसे ही हंसी मज़ाक करते हुए कुछ देर बाद हम दोनों काला पत्थर बीच पर पहुँच जाते हैं। वहाँ पर हमारे अलावा कोई चार पांच जोड़े और मौजूद थे.. लेकिन सभी अपने अपने आनंद में लिप्त थे।

एक साफ़ सुथरा (वैसे तो सारे का सारा बीच ही साफ़ सुथरा था) स्थान देख कर अपना चद्दर बिछाया और बैग रख कर मैं कैमरा सेट करने लगा। उसके बाद संध्या की ढेर सारी तस्वीरें उतारीं.. मैं उसको सिर्फ ब्रा-पैंटीज में कुछ पोज़ बनाने को बोला, तो वह लगभग तुरंत ही मान गई। किसी मॉडल की भांति सुनहरी रेत और फिरोज़ी पानी की पृष्ठभूमि में मैंने उसकी कई सुन्दर तस्वीरें उतारी। उसके बाद मैंने भी सिर्फ अपनी अंडरवियर में संध्या के साथ कुछ युगल तस्वीरें एक और पर्यटक से कह कर उतरवाई।

यह सब करते करते कोई एक घंटा हो गया हमको बीच पर रहते हुए.. बादल कुछ कुछ हटने लगे थे, इसलिए मैंने संध्या को कहा की मैं उसके शरीर पर सनस्क्रीन लोशन लगा देता हूँ.. नहीं तो वो झुलस कर काली हो जायेगी। मैंने संध्या को पानी की एक बोतल पकड़ाई और वह चद्दर पर आ कर लेट गई। सूरज इस समय तक ऊर्ध्व हो गया था। उसमें तपिश तो थी, लेकिन फिर भी, समुद्री हवा, और लहरों का गर्जन बहुत ही सुखकारी प्रतीत हो रहे थे। हम दोनों चुप-चाप इस अनुभव का आनंद लेते रहे, और कुछ ही देर में मैंने संध्या और अपने के पूरे शरीर पर सनस्क्रीन लगा लिया।

कुछ देर ऐसे ही लेटे लेटे संध्या बोली, “आप ग़ज़ल पसंद करते हैं?”

“ग़ज़ल!? हा हा! हाँ... जब भी कभी बहुत डिप्रेस्ड होता हूँ तब!”

“डिप्रेस्ड? ऐसी सुन्दर चीज़ आप डिप्रेस्ड होने पर पसंद करते हैं?”

“सुन्दर? अरे, वो कैसे?”

“अच्छा, आप बताइए, ग़ज़ल का मतलब क्या है?”

“ग़ज़ल का मतलब? ह्म्म्म... हाँ! वो जो ग़मगीन आवाज़ में धीरे धीरे गाया जाय?”

“ह्म्म्म अच्छा! तो आप जगजीत सिंह वाली ग़ज़ल की बात कर रहे हैं? फिर तो भई शाल भी ओढ़ ही ली जाय!”

हम दोनों इस बात पर खूब देर तक हँसे... और फिर संध्या ने आगे कहना शुरू किया,

“एक बहुत बड़े आदमी हुए थे कभी... रघुपति सहाय साहब! जिनको फ़िराक गोरखपुरी भी कहा जाता है! खैर, उन्होंने ग़ज़ल को ऐसे समझाया है – मानो कोई शिकारी जंगल में कुत्तों के साथ हिरन का पीछा करे, और हिरन भागते-भागते किसी झाडी में फंस जाए और वहां से निकल नहीं पाए, तो वह डर के मारे एक दर्द भरी आवाज़ निकालता है। तो उसी करूण कातर आवाज़ को ग़ज़ल कहते हैं। समझिये की विवशता और करुणा ही ग़ज़ल का आदर्श हैं।“

“हम्म... इंटरेस्टिंग! कौन थे ये बड़े मियां फ़िराक?”

“उनकी क्वालिफिकेशन ससुनना चाहते हैं आप? मेरिटोक्रेटिक लोगो में यही कमी है! अपने सामने किसी को भी नहीं मानते! अच्छा.. तो रघुपति सहाय जी अंग्रेजों के ज़माने में आई सी एस (इंडियन सिविल सर्विसेज) थे, लेकिन स्वतंत्रता की लड़ाई में महात्मा गाँधी के साथ हो लिए। उनको बाद में पद्म भूषण का सम्मान भी मिला है। समझे मेरे नासमझ साजन?”

“सॉरी बाबा! लेकिन वाकई जो आप बता रही हैं बहुत ही रोचक है! आपको बहुत मालूम है इसके बारे में! और बताइए!”

“ओके! ग़ज़ल का असल मायने है ‘औरतों से बातें’! अब औरतों से आदमी लोग क्या ही बातें करते हैं? बस उनकी बढाई में कसीदे गढ़ते हैं! शुरू शुरू में ग़ज़लें ऐसी ही लिखते थे... ‘नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिये, पंखडी एक गुलाब की सी हैं।‘”

“किस गधे ने लिखी है यह! आपकी तो दो-दो गुलाब की पंखुड़ियाँ हैं!”

“हा हा हा! वेरी फनी! इसीलिए पुराने सीरियस शायर ग़ज़ल लिखना पसंद नहीं करते थे। इसको अश्लील या बेहूदी शायरी कहते थे। लेकिन जैसे जैसे वक्त आगे बढ़ा, और इस पर और काम हुआ, जीवन के हर पहलू पर ग़ज़लें लिखी गई।“

“अच्छा – क्या आपको मालूम है की उर्दू दरअसल भारतीय भाषा है?”

आज तो मेरा ज्ञान वर्धन होने का दिन था! मैं इस ज़रा सी लड़की के ज्ञान को देख कर विस्मित हो रहा था! क्या क्या मालूम है इसको?

“न..हीं..! उसके बारे में भी बताइए?”

“बिलकुल! जब मुस्लिम लोग भारत आये, तब यहाँ – ख़ास कर उत्तर भारत में खड़ी-बोली या प्राकृत भाषा बोलते थे.. और वो लोग फ़ारसी या अरबी! साथ में मिलने से एक नई ही भाषा बनने लगी, जिसको हिन्दवी या फिर देहलवी कहने लगे। और धीरे धीरे उसी को आम भाषा में प्रयोग करने लगे। उस समय तक यह भाषा फ़ारसी में ही लिखी जाती थी – दायें से बाएँ! लेकिन जब इसको देवनागरी में लिखा जाने लगा, तो इसको हिंदी कहने लगे। लेकिन इसमें भी खूब सारी पॉलिटिक्स हुई – उस शुरु की हिंदी से संस्कृत बहुल शब्द हटाए गए तो वह भाषा उर्दू बनती चली गई, और जब फारसी और अरबी शब्द हटाए गए तो आज की हिंदी भाषा बनती चली गई। लेकिन देखें तो कोई लम्बा चौड़ा अंतर नहीं है।“

“क्या बात है! लेकिन आप ग़ज़ल की बात कर रही थी?”

“हाँ! तो उर्दू की बात मैंने इसलिए छेड़ी क्योंकि ग़ज़ल सुनने सुनाने का असली मज़ा तो बस उर्दू में ही हैं!”

“आप लिखती है?”

“नहीं! पापा लिखते हैं!”

“क्या सच? वाह! क्या बात है!! तो अब समझ आया आपका शौक कहाँ से आया!” संध्या मुस्कुराई!

“आप क्या करती हैं? बस पापा से सुनती हैं?”

“हाँ!”

“लेकिन आपको गाना भी तो इतना अच्छा आता है! कुछ सुनाइये न?”

“फिर कभी?”

“नहीं! आपने इतना इंटरेस्ट जगा दिया, अब तो आपको कुछ सुनाना ही पड़ेगा!”

“ह्म्म्म! ओके.. यह मेरी एक पसंदीदा ग़ज़ल है ... मीर तकी मीर ने लिखी थी – कोई दो-ढाई सौ साल पहले! आप तो तब पैदा भी नहीं हुए होंगे! हा हा हा हा!”

संध्या को ऐसे खुल कर बातें करते और हँसते देख कर, और सुन कर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था!

“हा हा! न बाबा! उस समय नहीं पैदा हुआ था! बूढ़ा हूँ, लेकिन उतना भी नहीं...”

“आई लव यू! एक फिल्म आई थी – बाज़ार? याद है? आप तब शायद पैदा हो चुके होंगे? उस फिल्म में इस ग़ज़ल को लता जी ने बहुत प्यार से गाया है!”

“बाज़ार? हाँ सुना तो है! एक मिनट – आप भी कुछ देर पहले कह रही थीं की ग़ज़ल औरतों की बढाई के लिए होती है.. और अभी कह रही हैं की लता जी ने गाया?”

“अरे बाबा! लेकिन लिखी तो मीर ने थी न?”

“हाँ! ओह! याद आया! ओके ओके ... प्लीज कंटिन्यू!”

“तो जनाब! पेशे-ख़िदमत है, यह ग़ज़ल...” कह कर संध्या ने गला खंखार कर साफ़ किया और फिर अपनी मधुर आवाज़ में गाना शुरू किया,

“दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया... दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया,
हमे आप से भी जुदा कर चले... दिखाई दिए यूं....”

संध्या के गाने का तो मैं उस रात से ही दीवाना हूँ! लेकिन इस ग़ज़ल में एक ख़ास बात थी – वाकई, करुणा और प्रेम से भीगी आवाज़, और साथ में उसकी मुस्कुराती आँखें! मैं इस रसीली कविता... ओह! माफ़ करिए, ग़ज़ल में डूबने लगा!

“जबीं सजदा करते ही करते गई... जबीं सजदा करते ही करते गई,
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले... दिखाई दिए यूं....
परस्तिश कि या तक के ऐ बुत तुझे... परस्तिश कि या तक के ऐ बुत तुझे,
नजर में सबो की खुदा कर चले... दिखाई दिए यूं....”

संध्या गाते गाते खुद भी इतनी भाव-विभोर हो गई, की उसकी आँखों से आंसू बहने लगे ... उसकी आवाज़ शनैः शनैः भर्राने लगी, लेकिन फिर भी मिठास में कोई कमी नहीं आई... मैंने उसके कंधे पर हाथ रख अपनी तरफ समेट लिया।

“बहोत आरजू थी गली की तेरी... बहोत आरजू थी गली की तेरी...
सो या से लहू में नहा कर चले... दिखाई दिए यूं....
दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया... दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया,
हमे आप से भी जुदा कर चले... दिखाई दिए यूं....”

ग़ज़ल समाप्त हो गई थी, लेकिन मेरे दिल में एक खालीपन सा छोड़ कर चली गई।

“आई लव यू!” संध्या बोली – लेकिन इतनी शिद्दत के साथ की यह तीन शब्द, तीन तीर के जैसे मेरे दिल में घुस गए... “आई लव यू सो मच!” उसकी आवाज़ में रोने का आभास हो रहा था, “मुझे आपके साथ रहना है... हमेशा! आपके बिना तो मैं मर ही जाऊंगी!”
very romantic update & nice gazal
 

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
संध्या ने मेरे मुँह की बात छीन ली। उसकी बात सुन कर मेरी खुद की आँख से आंसू की बूँद टपक पड़ी। हाँ! मर्द को दर्द भी होता है, और मर्द रोते भी हैं.. प्यार कुछ भी कर सकता है। मैं कुछ बोल नहीं पाया – कुछ बोलता तो बस रो पड़ता। मैंने संध्या को जोर से अपने में भींच लिया। जो उसका डर था, वही मेरा भी डर था। इतनी उम्र निकल जाने के बाद, मेरे साथ पहली बार कुछ ठीक हो रहा था।

आप कहेंगे की ‘अरे भई, अच्छी पढाई लिखाई हुई, अच्छी नौकरी है, अच्छा कमा रहे हो – घर है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है! फिर भी कैसे गधे जैसी बात कर रहे हो! यह सब अच्छी बाते नहीं हुई?’

तो मैं कहूँगा की ‘बिलकुल! यह सब अच्छी बाते हैं! लेकिन यह सब मैं इसलिए कर पाया की मेरे मन में एक प्रतिशोध की भावना थी! जिनके कारण मेरा बाल्यकाल उजड़ गया, उनको नीचा दिखाना मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य बन गया। भोगवादी परिमाणों और मापदंडो पर ही मेरा जीवन टिका हुआ था! एक अजीब तरह का चक्रव्यूह या कहिये भंवर! जिसमें मैं खुद ही घुस गया, और न जाने कितने अन्दर तक चला गया था। लेकिन संध्या ने आते ही मुझे ऐसा अनोखा एहसास कराया की मानो पल भर में उस भंवर से बाहर निकल आया।‘

‘अब समझ आया इस खालीपन का रहस्य! मैं अब तक बिना वजह का बोझ, जो अपने सर पर लिए फिर रहा था, वह न जाने कहाँ मेरे सर से उतर गया था। मुझे संध्या और उसके परिवार के रूप में एक अपना परिवार मिल गया था, जिसको मैं किसी भी कीमत पर सहेज कर रखना चाहता था।‘

“आई ऍम सॉरी जानू! मैं आपको रुलाना नहीं चाहती थी। ... मैं भी कितनी गधी हूँ... इतने अच्छे मूड का सत्यानाश कर दिया।“

“नहीं जानू! सॉरी मत बोलो! और ऐसा कुछ भी नहीं है। बस, आपके आने से यह समझ आ गया की मैं क्या मिस कर रहा था मेरी लाइफ में! यू आर वेरी प्रेशियस फॉर मी! और मुझे भी आपके ही साथ रहना है।“

कह कर मैंने संध्या को और जोर से अपने में दुबका लिया। मुझे मेरे जीवन में साफ़ उजाला दिख रहा था।

हम दोनों काला पत्थर बीच पर कम से कम छः घंटे तो रहे ही होंगे.. उस समय तो पता नहीं चला, लेकिन वापस रिसोर्ट आने पर जब आँखें थोड़ी अभ्यस्त हुईं, तो साफ़ दिख रहा था की संध्या और मैं, सूरज की तपन से पूरी तरह से गहरे रंग के हो गए। वैसे भी भारतीय लोगों की त्वचा धूप को बढ़िया सोखती है, लिहाजा हम दोनों काले कलूटे बन गए थे। लेकिन एक अपवाद था... संध्या ने टू-पीस बिकिनी पहनी हुई थी, इसलिए जो हिस्सा (दोनों स्तन, जघन क्षेत्र और नितम्बो का ऊपरी हिस्सा) ढका हुआ था, वह अभी भी अपने मूल, हलके रंग का था। इसको बिकिनी टैन कहते हैं। संध्या ने कपड़े उतारे तो यह बात समझ आ गई। लेकिन शायद संध्या ने देखा न हो, इसलिए उसने किसी भी तरह का विस्मय नहीं दिखाया। खैर नहा-धोकर हमने पकौड़े और चाय मंगाया, और खा-पीकर दोपहर में एक छोटी सी नींद सो गए।

जब मैं उठा तो देखा की सामने संध्या कमर पर अपने हाथ टिका कर, और कूल्हा एक तरफ निकाल कर बड़ी अदा से खड़ी हुई थी। उसने कोका-कोला रंग का काफी पारदर्शक नाइटी (जिसको टेडी भी कहते हैं) पहना हुआ था। कमर से बस कुछ अंगुल ही नीचे तक पहुंचेगा लम्बाई में। स्तनों के ऊपर से जाने वाले स्ट्रैप बहुत पतले थे। स्तन पर बस यही कपड़ा था, इसलिए उसके अन्दर से चमकदार निप्पल साफ़ दिख रहे थे... और नाभि भी। उसने टेडी के नीचे चड्ढी पहनी हुई थी... एक बहुत ही सेक्सी ड्रेस!

“ओहो! हू इस अ बिग गर्ल नाउ? कम हियर!”

संध्या मुस्कुराते हुए मेरे पास आई।

“न्यू ड्रेस?” मैंने संध्या की ड्रेस को छूते हुए कहा।

“यस! न्यू! ओनली फॉर यू!” उसने तुकबंदी वाले अंदाज़ में कहा।

“ह्म्म्म... आई लाइक दिस वन!” और फिर हँसते हुए मैंने कहा, “... एंड आई सी दैट यू आर वेअरिंग सम प्रीटी पैंटीज अंडरनीथ इट!”

“यस! वांट टू सी इट?”

मैंने सर हिला कर हामी भरी।

संध्या ने हँसते हुए टेडी का निचला किनारा पकड़ कर ऊपर उठा दिया। उसकी गहरे कोका कोला रंग की चड्ढी साफ़ दिखने लगी। उसकी चमक और बनावट देख कर मुझे लगा की शायद सिल्क की बनी होगी। सिल्क! एक अत्यंत अन्तरंग कपड़ा! पुरुष, सिल्क पहनी हुई स्त्रियों को छूने की परिकल्पना करते रहते हैं। एक तरीके का सेक्स-सिंबल! प्लेबॉय जैसी मगज़ीनों में सिल्क पहनी हुई लड़कियों को देख कर अनगिनत लडको और आदमियों में हस्त-मैथुन किया होगा! वही सिल्क! वही परिकल्पना!

“ओह! दे आर रियली प्रीटी पैंटीज!” मेरी आँखों में एक इच्छा जाग गई, “विल यू माइंड, अगर मैं इसको छू कर देख लूं?”

“ओके!”

कह कर संध्या ने अपनी ड्रेस को कुछ और ऊपर उठा दिया.. चड्ढी का पूरा हिस्सा दिखने लगा। मैंने उंगली से चड्ढी के ऊपर से ही संध्या की योनि का आगे वाला हिस्सा छुआ, और दूसरे हाथ से उसके नितम्बो के ऊपर से।

“फील्स गुड?” संध्या ने पूछा।

“ओह! दैट फील्स अमेजिंग! सो नाइस! सो स्मूद.. सो सेक्सी!” मैंने हँसते हुए पूछा, “डू दे मेक यू फील सेक्सी, हनी?”

“सेक्सी? ओह यस! दे डू!”

“आई ऍम श्योर! इट इस सो स्मूद! हम्म्म्म!” अपनी उंगली को संध्या के पैरों के बीच में दबाते हुए मैंने कहा, “ज़रा अपने पैर फैलाइये.. देखूं तो ‘वहां’ पर छूने पर यह कैसी लगती हैं!”

“ओके!”

कहते हुए संध्या ने अपने पैर थोड़ा और खोले। और मैं बढाई करते हुए उंगली से योनि के ऊपर से उसकी चड्ढी का मखमली एहसास महसूस करने लगा।

“डोंट दे फील नाइस?” संध्या ने अपनी आवाज़ थोड़ी कामुक बना कर पूछा।

“दे श्योर डू! नॉट ओन्ली नाइस, बट आल्सो अमेजिंग!” कहते हुए मैंने संध्या की योनि की झिर्री के ऊपर से अपनी उंगली रगड़ कर फिरानी शुरू की। “आई रियली लाइक हाउ योर पैंटीज फील हियर, डार्लिंग!”

संध्या खिलखिला कर हंसने लगी.. और साथ ही साथ मेरी उंगली की हरकतों को भी देखती रही। मैंने कुछ देर आहिस्ता आहिस्ता सहलाने के बाद अपनी उंगली की लम्बाई को उसकी योनि की पूरी दरार के अन्दर फिरानी शुरू कर दी।

“आह्ह्ह! आई रियली लाइक हाउ इट फील्स व्हेन आई रब योर पैंटीज हियर, हनी! दिस इस वेयर दे फील बेस्ट टू मी। तुझे अच्छा लगता है?“

“हा हा... हाँ! उम्म्म्म!!” कहते हुए उसने अपने नितंब मटकाए, जिससे मेरी उंगली ठीक से उसकी दरार में फिट हो जाय।

“आई कैन नॉट स्टॉप फीलिंग यू! इस दैट ओके?”

संध्या हंसी।

“यू कैन फील अस मच अस यू वांट!”

“थैंक्स डिअर!” कह कर मैंने कुछ और दृढ़ता से योनि के ऊपर से दबाना और सहलाना आरम्भ कर दिया।

और फिर, “विल यू लेट मी सी हाउ दिस थिंग अंडर योर पैंटीज फील?” कह कर बिना किसी उत्तर का इंतज़ार किए, मैंने संध्या की चड्ढी के अन्दर हाथ डाल कर, उसकी योनि की दरार की पूरी लम्बाई पर अपनी उंगली सटा कर थोड़ा बल लगाया। योनि के दोनों होंठ खुल गए और उनके बीच मेरी उंगली स्थापित हो गई।

“आह! दिस फील्स सो वार्म... एंड नाइस! डस इट फील गुड टू यू टू?” मैंने पूछा।

संध्या खिलखिला कर हंस पड़ी, “यू आर अ नॉटी बॉय!”

“आई ऍम श्योर दैट इट फील्स गुड एंड सेक्सी बोथ..! आई बेट इट डस!”

“सेक्सी? हाउ?” संध्या भी इस खेल में शामिल हो गई थी।

“हियर! लेट मी चेक..!” कह कर मैंने अपनी उंगली उसकी योनि के अन्दर प्रविष्ट कर दी।

इतनी देर तक सहलाने रगड़ने के बाद अंततः उसकी योनि से रस निकलने ही लग गया था। मैंने अपनी गीली उंगली उसकी योनि से बाहर निकाल कर उसको दिखाया, “सी! हाउ वेट दिस इस? डू यू नो व्हाट इट मीन्स?”
“व्हाट?” संध्या ने अनभिज्ञता दर्शाते हुए पूरे भोलेपन से पूछा।

“इट मीन्स दैट यू फील सेक्सी इनसाइड, यू नॉटी गर्ल!” कह कर मैंने संध्या को नितंब से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और उसकी कमर के गिर्द अपनी बाहें लपेट लीं। संध्या ने भी खड़े खड़े मेरे गर्दन के गिर्द अपनी बाहें लपेट लीं।

“आर यू हविंग फन?” मैंने अपना हाथ वापस संध्या की नम और गर्म गहराई में डालते हुए पूछा।

“यस! हा हा! यू आर फनी!” मेरी किसी हरकत से उसको गुदगुदी हुई होगी..

मैंने कुछ देर सहलाने के बाद उसकी चड्ढी को दोनों तरफ से पकड़ कर धीरे धीरे नीचे की तरफ खींचना शुरू किया, “आई विल टेक दीस क्यूट पैंटीज... अदरवाइज, दे विल गेट वेट! ... इस दैट ओके?”

“ओके” संध्या के ओके कहते कहते उसकी चड्ढी उतर चुकी थी।

मैंने संध्या को अपनी जांघो के आखिरी सिरे पर बैठाया जिससे उसका योनि निरिक्षण किया जा सके। उस तरह बैठने से वैसे ही उसकी जांघे फ़ैल गई थीं, लिहाजा उसका योनि मुख कुछ खुल सा गया और उससे रिसते रस के कारण चमक भी रहा था।

“नाउ लुक अट दैट!” मैंने प्रशंसा करते हुए कहा, “सच अ क्यूट पुसी यू हैव!”

“पुसी? आप इसको बिल्ली कह रहे हैं?” संध्या इस शब्द के नए प्रयोग को समझ नहीं सकी।

“पुसी मीन्स चूत, जानेमन! तेरी चूत बहुत क्यूट है!” मैंने बहुत ही नंगई से यह बात फिर से दोहराई। एक बात तो है, अंग्रेजी में ‘डर्टी-टॉक’ करना बहुत मज़ेदार होता है... न जाने क्यों हिंदी में वही बातें बोलने पर अभद्र सा लगता है! खैर!

“देखो न! कैसे हाईलाइट हो रही है...” दिन भर धुप सेंकने के कारण चड्ढी से ढंका हुआ हिस्सा अभी भी गोरा था, और ऊपर नीचे का बाकी हिस्सा साँवला हो गया था.. इसलिए ऐसा लग रहा था की जैसे अलग से उसकी योनि पर लाइट डाली जा रही हो! मैंने अपने दोनों अंगूठे से उसके होंठों को कुछ और फैलाया और अपनी उंगली को अन्दर के भाग पर फिराया.. और फिर अपनी उंगली को चाट लिया।

“ह्म्म्म... सो वैरी टेस्टी!”

“स्टॉप टीसिंग मी!” संध्या कुनमुनाई।

“यू डोंट बिलीव मी? हियर यू आल्सो टेस्ट योर ओन जूसेस...” कह कर मैंने उसके रिश्ते हुए रस का एक और अंश अपनी उंगली पर लगाया और उसके होंठों के सामने रख दिया, “डोंट बी शाई! लिक इट!”
hot update
 

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
“आई लव यू!” कहते हुए संध्या का गला भर आया। उसने बड़े प्रयत्न से अपना गला साफ़ किया और स्वयं पर नियंत्रण किया।

“पता है आप मेरे कौन है?” भावुक माहौल था.. नहीं तो किसी न किसी तरह की चुहलबाजी ज़रूर करता।

“आप मेरे कृष्ण है! मेरे सम्पूर्ण पुरुष! जब ज़रुरत हुई तब प्रेमी, जब ज़रुरत हुई तब सारथी, और जब ज़रुरत हुई तब सखा! मैंने सच में कोई बहुत पुण्य के काम किए होंगे, जिसके कारण मुझे आप मिले।“

“बाप रे!”

“सच में!”

“आई लव यू!”

“आई लव यू टू!!”

मैंने संध्या को अपनी बाहों के घेरे में कस कर दुबका लिया – जैसे मेरा आलिंगन उसके लिए सबसे सुरक्षित स्थान बन जाय.. हम दोनों वैसे ही काफी देर तक सूर्यास्त का अद्भुत् नज़ारा देखते रहे। सूरज ढलने के साथ साथ ही धीरे धीरे सांझ का धुंधलका बढ़ने लगा, और उसके साथ ही आसमान में गहरे लाल, काले नीले इत्यादि रंग उभरने लगे। कई लोग अब जाने की तैयारी कर रहे थे और जो लोग रुके हुए थे, उनकी भी बस पार्श्व आकृति ही दिख रही थी।

“अभी कैसी हो जानू?” मैंने पूछा।

“मैं ठीक हूँ!”

“घर बात करना है?”

“मेरा घर तो आप हैं!”

“ओहो! मेरा मतलब माँ से? या नीलम से? ... बात करनी है वहाँ? वहां कॉल किए दो दिन हो गए शायद?”

“हाँ! मुझे तो ध्यान ही नहीं रहा! आपके संग तो मैं सब कुछ भूल गई हूँ!”

“अच्छी बात है... ये लो फ़ोन.. बात कर लो!”

“आप नहीं करेंगे?”

“अरे.. कॉल मैं ही लगा कर आपको दे दूंगा.. ओके?”

मैंने उत्तराँचल कॉल लगाया। चूँकि फ़ोन तो भंवर सिंह जी के ही पास रहता है, इसलिए उनको ही उठाना था।

“हल्लो!” मैंने कहा..

“हल्लो रूद्र.. कैसे हैं आप बेटा?”

‘बेटा!’ रिश्ते में तो हम बाप-बेटा ही तो हैं! वो अलग बात है की उम्र में कोई खास अंतर नहीं है।

“जी.. पापा..” मैंने हिचकिचाते हुए कहा, “हम दोनों ठीक हैं..”

“स्वास्थ्य ठीक है आप दोनों का? मौसम कैसा है वहाँ?”

“स्वास्थ्य एकदम ठीक है... मुझे लगा था की ठन्डे गरम के कारण कहीं जुकाम न हो जाय, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहाँ का मौसम तो गरम ही है.. चारों ओर समुद्र से घिरा है, इसलिए बारहों मास ऐसे ही रहता है यहाँ। .. और आप कैसे हैं? माता जी कैसी हैं?”

“हम सब ठीक हैं बेटा.. आप लोगो की बहुत याद आती है। बस और क्या!”

मैं इसके उत्तर में क्या ही बोलता! “लीजिये, संध्या से बात कर लीजिए..” कह कर मैंने संध्या को फ़ोन थमा दिया।

लाडली बेटी का फ़ोन आते ही वहां पर सब लोग आह्लादित हो गए होंगे – मैंने सोचा।
nice update
 

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
संध्या का परिप्रेक्ष्य

कैसे सब कुछ इतनी जल्दी बदल जाता है! एक सप्ताह भर पहले तक ही मैं माँ पापा को छोड़ कर कहीं जाने की सोच भी नहीं सकती थी.. और आज का दिन यह है की उनकी याद भी नहीं आई! क्या जादू है! सहेलियों की बातों, कहानियों और फिल्मों में देखा सुना तो था की प्यार ऐसा होता है, प्यार वैसा होता है.. लेकिन, अब समझ में आया की प्यार कैसा होता है! प्यार का एहसास तो हमेशा ही नया रहता है - हमेशा ताज़ा!

पापा से कुछ देर बात करने के बाद माँ फ़ोन पर आई.. उनसे बात करनी शुरू ही की थी की ‘इनका’ हाथ मेरे स्तनों पर आ टिका! ‘हाय’ मेरे मुंह से अनायास ही निकल पड़ा। उधर से माँ ने पूछा की क्या हुआ.. अब उनको क्या बताती? मैं जैसे तैसे उनसे बात करने की कोशिश कर रही थी, और उधर मेरे पतिदेव मेरे स्तनों से खेल रहे थे – वो बड़े इत्मीनान से मेरे स्तन दबा और धीरे धीरे सहला रहे थे। चाहे कुछ भी हो, ऐसा करने से स्त्रियों के चूचक कड़े होने ही लगते हैं। मेरे भी होने लगे। शरीर में जानी पहचानी गुदगुदी होने लगी। मैं अन्यमनस्क सी होकर बाते कर रही थी, लेकिन सारा ध्यान उनके इस खेल पर ही लगा हुआ था। वे कभी मुझे चूमते, तो कभी मेरे बालों को सहलाते, तो मेरे स्तनों से खेलते! अंततः उनका हाथ मेरी पैंट के अन्दर और उनकी उंगली मेरी योनि की दरार पहुँच गई। उनके टटोलने से मैं बेबस होने लग गई.. माँ क्या कह रही थी और फिर कब नीलम फ़ोन पर आ गई, मुझे कुछ याद नहीं! मदहोशी छाने लगी। सच में मैं रूद्र की दासी हो गई हूँ.. अगर वो उस समय मुझे नग्न होने को कहते तो मैं तुरंत हो जाती... बिना यह सोचे की वहां पर और लोग भी उपस्थित थे। इतना तो तय है की मैं उनकी किसी बात का विरोध कर ही नहीं सकती!

खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ.. नीलम ने अपने जीजू से बात करने को कहा तो मैंने फ़ोन इनको दे दिया।

“मेरी एंजेल कैसी है?”

इन्होने प्रेम और वात्सल्य भरी बात कही.. एक बात तो है, ये जो कहते हैं, उनकी आँखे भी वही कहती हैं। न कोई लाग लपेट, और न कोई फरेब! सच्चा इन्सान!

उधर से नीलम ने कुछ बात कही होगी, तो ये मुस्कुरा रहे थे.. बहुत देर तक मुस्कुरा कर सुनने के बाद इन्होने कहा, “अरे तो फिर हमारे पास आ जाओ! दो से भले तीन! है न?”

फिर उधर से नीलम ने कुछ कहा होगा, जिसके उत्तर में इन्होने ‘आई लव यू टू’ कहा, और बाय कर के फ़ोन काट दिया।

“क्या बाते हो रही थीं जीजा साली में? रोमांटिक रोमांटिक... ईलू ईलू वाली!” मैंने ठिठोली करी।

“हा हा हा! अरे जो भी हो रही हो... आपको इससे क्या? हमारी आपस की बात है! आपको क्यों बताएँ? हा हा!” फिर कुछ देर रुक कर, “.. जानू, क्यों न एग्जाम के बाद वहां से सभी लोग यहीं बैंगलोर में रहें? नीलम की पढाई भी अच्छी जगह हो जायेगी.. और आपके माँ पापा भी आराम से रह लेंगे! क्या कहती हो?”

“आप को लगता है की माँ पापा आयेंगे यहाँ?”

“क्यों! क्या प्रॉब्लम है?”

“वो लोग बहुत पुराने खयालो वाले हैं, जानू! बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते!”

“हंय! इसका मतलब वो लोग यहाँ आयेंगे तो कहीं और से पानी लाना पड़ेगा?”

“आप भी न... हमेशा मजाक करते रहते हैं! ठीक है, आप ट्राई कर लीजिए.. आ जाते हैं तो इससे अच्छा क्या?” मैंने कहा, और आगे जोड़ा, “... और अभी आप मेरे साथ क्या कर रहे थे? बदमाश! माँ और नीलम ने क्या कहा, मुझे कुछ याद नहीं!”


**************
lovely update sayed update uper niche ho gaye
 

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
बहुत पहले मैंने एक फिल्म देखी थी... “अ फ्यू गुड मेन”... उसमें जैक निकोल्सन का किरदार एक डायलॉग बोलता है...

“There is nothing on this earth sexier, believe me, gentlemen, than a woman you have to salute in the morning. Promote 'em all, I say, 'cause this is true: if you haven't gotten a blowjob from a superior officer, well, you're just letting the best in life pass you by.”

वैसे तो यह एक लैंगिकवादी सोच है, लेकिन पुरुष वर्ग इस बात की सच्चाई से इनकार नहीं कर सकता। जब स्त्री रति संभोग क्रिया में पहल करती है, तो पुरुष अत्यधिक उत्तेजना प्राप्त करने में समय नहीं लगाता। यही हाल मेरा भी इस समय था.. संध्या ने इस खेल की पहल करी थी। यह उसका एक नया ही रूप था... मुझे पहले लगता था की उस पर मेरा किसी प्रकार का दबाव हो सकता है, और इसीलिए वह मेरी बातें मान रही हो। लेकिन, जब वह अपनी स्वेच्छा से ऐसी कामुक ड्रेस पहन कर मुझे सम्भोग के लिए ऐसे लुभा रही है, तो इसका मतलब कुछ तो बदला है! और उसका यह बदला हुआ रूप मुझे बहुत लुभा रहा था।

संध्या ने मुंह नहीं खोला तो मैंने ही उसके दोनों गालो को दबा कर उसके होंठ खोल दिए और अपनी उंगली उसके मुंह में डाल दी। मरता क्या न करता! संध्या ने पहले तो बेमन से, और फिर उत्सुक स्वेच्छा से मेरी उंगली चाट कर साफ़ कर दी।

“क्यों? मज़ा आया? है न स्वादिष्ट तुम्हारा ‘चूत-रस’?” मेरे इस तरह कहने से संध्या के गाल शर्म से सुर्ख हो गए।

“तुम बोलो या नहीं.. है तो स्वादिष्ट!” कह कर मैंने वही उंगली अपने मुंह में डाल कर कुछ देर चूसा।

इंटिमेसी / अंतरंगता / निजता.. इन सबके मायने हमारे लिए बहुत बदल गए थे, इन कुछ ही दिनों में!

मैं बिना कुछ पहने ही सो गया था। और इस समय मेरे लिंग का बुरा हाल था, और स्पष्ट दिख भी रहा था। वह इस समय एकदम सख्त स्तम्भन की स्थिति में था। संध्या ने अब तक मेरी उत्तेजना महसूस कर ली होगी, इसलिए उसका हाथ मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर चल-फिर और दौड़ रहा था। कभी वह यह करती, तो कभी मेरे वृषणों के साथ खेलती।

“यू हैव अ वैरी नाइस पुसी डिअर!” मैंने वापस अपनी उंगली को उसकी योनि पर फिराया, “... इट इस सो हॉट... एंड वेट! यू आर सो रेडी टू फ़क!”

कह कर मैंने अपनी मध्यमा उंगली को उसकी योनि के अन्दर तक ठेल दिया और एक पम्पिंग एक्शन से उसको अन्दर बाहर करने लगा... इसमें एक ख़ास बात यह थी की एक तरफ तो मेरी मध्यमा उसकी योनि के अन्दर बाहर हो रही थी, वहीँ दूसरी तरफ बाकी उंगलियाँ रह रह कर उसके भगनासे को सहला रही थीं।

दोहरी मार! संध्या की साँसे इसके कारण भारी हो गई, और रुक रुक कर चलने लगीं। उसका चेहरा उत्तेजना से तमतमा गया। कभी वह मुंह खोल कर सांस भारती, तो कभी अपने सूखे होंठों को जीभ से चाटती.. उसका सीना भारी भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे हो रहा था।

“कैसा लग रहा है, जानू?” मैंने पूछा।

“आह! सोओओ गुड! उम्म्म्मम...!” वह बस इतना ही कह पाई।

“ह्म्म्म... सो द लिटिल गर्ल इस ग्रोन नाउ! लुक अट हर पुसी... आल जूसी एंड हॉट!” मैं रह रह कर अपनी उंगली की गति कभी धीमी, तो कभी तेज़ कर देता। संध्या कभी सिसियती तो कभी रिरियाती। कुछ ही देर में रति-निष्पत्ति के चरम पर पहुँच कर उसका शरीर कांपने लगा। उसकी बाहें मेरी गर्दन पर कस गईं और उसका माथा मेरे माथे पर आकर टिक गया। इस पूरे प्रकरण में पहली बार मैंने संध्या के होंठ चूमे!

“मज़ा आया हनी?”

संध्या उन्माद के आकाश में तैरते हुए मुस्कुराई।

“देखो न.. तुमने मेरी क्या हालत कर दी है! कितना कड़ा हो गया है मेरा लंड!” कह कर मैंने संध्या का एक हाथ अपने लिंग पर लाकर रख दिया। संध्या की उंगलियाँ स्वतः ही उस पर लिपट गईं। उधर मैं संध्या के टेडी के ऊपर से ही उसके निप्पल को बारी बारी से चूमने और चूसने लगा। फिर दिमाग में एक आईडिया आया।

संध्या को पकड़े पकड़े ही मैं बिस्तर पर लेट गया और संध्या को अपने लिंग पर कुछ इस तरह से स्थापित किया की उसकी योनि मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर सिर्फ चले, लेकिन उसको अन्दर न ले। संध्या भी इस इशारे को समझ गई, उसने अपनी ड्रेस काफी ऊपर उठा दी – अब उसके स्तन भी दिख रहे थे, और पूरे उत्साह के साथ मेरे लिंग को अपनी योनि-रस से भिगाते हुए सम्भोग करने लगी। बहुत ही अलग अनुभव था यह.. लिंग को योनि की कोमलता और गरमी तो मिल ही रही थी, साथ ही साथ कमरे की ठंडी हवा भी। योनि का कसाव और पकड़ नदारद थी, लेकिन दो शरीरों के बीच में पिसने का आनंद भी मौजूद था।

संध्या के लिए भी उन्मादक अनुभव था – इस प्रकार के मैथुन से उसके जननांगों के सभी कोमल, संवेदनशील और उत्तेजक भाग एक साथ प्रेरित हो रहे थे। साथ ही साथ, मेरे ऊपर आकर मैथुन क्रिया को नियंत्रित करना उसके लिए भी एक अलग अनुभव रहा होगा... पिछली बार तो वह शर्मा रही थी, लेकिन इस बार वह एक अभिलाषा, एक प्रयोजन के साथ मैथुन कर रही थी। यह क्रिया अगले कोई पांच-छः मिनट तो चली ही होगी.. मेरे अन्दर का लावा बस निकलने को व्याकुल हो गया। मेरा शरीर अब कांपने लग गया था।

“जानू.. निकलने वाला है!”

मेरे बस इतना ही बोलने की देर थी की संध्या ने अपनी बाहें मेरी गर्दन पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर कर जोर से चूमने चूसने लगी। उसके ऐसा करते ही एक विस्फोट के साथ वीर्य का पहला खेप स्खलित हो गया और फिर उसके बाद ही ताबड़ तोड़ चार पांच बड़ी गोलिकाएं और निकलीं। संध्या ने इस क्रिया के दौरान अपने कूल्हे चलाने जारी रखा। और मेरे स्खलन के कुछ ही देर बाद संध्या का शरीर भी कुछ अकड़ा और एक बार फिर झटके खाते हुए वो भी शांत पड़ने लगी और मुझ पर निढाल होकर गिर गई। मेरा शरीर अभी भी उत्तेजना में कांप रहा था.. मैंने संध्या को अपने में जोर से भींच लिया – कभी उसके होंठ चूमता, तो कभी गाल, तो कभी माथा! मेरी हरकतों पर मीठी मीठी सिसकियाँ निकल जातीं। इस अनोखे सम्भोग की संतुष्टि उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।

जब हमारी उत्तेजना का ज्वार कुछ थमा, तो मैंने कहा, “देखो न.. मैंने कहा था न की साँवली लड़कियाँ सेक्स में बहुत तेज़ होती हैं... और... गोरी लड़कियों को सिखाना पड़ता है! याद है?”

संध्या को पहले कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर मेरा इशारा समझ कर मुस्कुरा दी। उसके गाल सेब के जैसे लाल हो गए।
very hot update
 

mashish

BHARAT
8,032
25,908
218
प्रिय पाठकों, अगर आप मेरी माने, तो वैवाहिक जीवन का सुख तो यही है – हर पल बढ़ता पारस्परिक प्रेम और सामंजस्य, अपने जीवन की अंतरंगता को किसी और से ता-उम्र बांटना, सुखमय जीवन के सपने साथ में संजोना.. और संतुष्टि प्रदान करने वाली यौन क्रीड़ा! भला विवाह में इससे अधिक किसी को और क्या चाहिए? लोग-बाग़ दहेज़ मांगते हैं, खानदान मांगते हैं, होने वाले रिश्तेदारों में रुतबा मांगते हैं.. भला यह कोई शादी है? यह तो, आज कल वो कहते हैं न, सिर्फ और सिर्फ एक ‘अलायन्स’ है। अलायन्स... अरे हम लोग कोई राजे-रजवाड़े हैं क्या, जो राजनीतिक दृष्टि से सम्बन्ध बनाएँ? अलायन्स तो यही हुआ न? खैर... मेरी तो बस यही समझ है की शादी तो बस स्वयं के लिए करनी चाहिए!

लेकिन लोग बाग़ तो अपने माँ बाप का हवाला देते हैं.. कहते हैं कि माँ बाप के लिए शादी कर रहे हैं। वाह भाई! शादी के लड्डू खुद खाओ, और नाम माँ बाप का लगाओ! एक बार मैंने किसी लड़के के मुंह से सुना... वो लड़की वालो को कह रहा था, “जी मैं तो शादी अपनी माँ के लिए कर रहा हूँ... कोई ऐसी मिले जो उनका ख़याल रख सके! माँ बहुत बीमार रहती हैं! कोई उनको अपना मान कर उनकी सेवा कर सके! बस! मेरी तो बस यही उम्मीद है लड़की से!”

मेरा उस लड़के से बस इतना ही कहना है की भाई, अगर अपनी माँ की सेवा करनी है तो तेरे खुद के हाथ-पैर टूट गए हैं क्या? कर भाई सेवा! बहुत पुण्य कमाएगा। माँ बाप की सेवा तो सबसे भला काम है जीवन का! लेकिन तू उस काम को करने के लिए किसी और की मदद क्यों चाहता है? खुद क्यों नहीं कर लेता? अरे खुद नहीं हो रहा है तो एक आया रख ले, किसी जानी मानी अच्छी एजेंसी से.. या फिर एक नर्स! फुल-टाइम के लिए! या फिर दोनों! यह उम्मीद करना की बीवी आकर तेरी अम्मा की सेवा करने लगेगी, न केवल गलत है, बल्कि मैं तो कहता हूँ की एक तरह का अत्याचार है! जो काम तू खुद नहीं कर पा रहा है, वो तू दूसरे से क्यों उम्मीद करता है?

पति पत्नी का साथ उम्र भर का होता है.. लेकिन वह उम्र भर तभी चलता है जब उन दोनों में एक दूसरे के लिए सम्मान, और प्रेम हो। सामंजस्य बैठाया जा सकता है.. लेकिन अगर यह दोनों सामग्री विवाह में न हो तो चाहे कितने भी मन्त्र फूंक लो, चाहे कितनी ही कुंडली का मिलान कर लो, और चाहे कितने ही ग्रह शांत करा लो, प्रलय तो निश्चित ही है!

ओह मैं भावनाओं की रौ में बह गया! माफ़ करना!!

सम्भोग की निवृत्ति के बाद हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपनी सफाई करी और फिर कपड़े बदल कर अपनी साइकिल उठा कर द्वीप के पश्चिम दिशा की तरफ चल दिए.. जिससे सूर्यास्त के दर्शन हो सकें। संध्या ने मुझे बताया था की सूर्यास्त ऐसा सुन्दर हो सकता है, उसको मालूम ही नहीं था। पहाड़ों पर क्या सूर्योदय और क्या सूर्यास्त! सब एक जैसा ही दिखता है। हम दोनों जल्दी ही एक साफ़ सुथरे निर्जन बीच पर पहुँच गए.. ऐसा कोई निर्जन भी नहीं था.. कोई पांच छः जोड़े वही बैठे हुए थे, सूर्यास्त के इंतज़ार में।

संध्या और मैं बाहों में बाहें डाल कर सुनहरी रेत वाले इस बीच के एक तरफ बैठ गए।

“जानू, मैं आपसे एक बात कहूं?”

“हाँ.. पूछो मत, बस कह डालो” मैंने रोमांटिक अंदाज़ में कहा।

“मैं आपके साथ ही रहना चाहती हूँ.... हनीमून के बाद भी।“

“हयं! तो और कहाँ रहने वाली थी? अरे भई, हम लोग हस्बैंड-वाइफ हैं.. साथ ही तो रहेंगे?”

“नहीं वो बात नहीं... बोर्ड एक्साम्स के लिए पढना भी तो है। इतने दिनों से कॉलेज नहीं गई हूँ.. और जो भी कुछ पढ़ा लिखा था, वो सब गायब है! हा हा!”

“हा हा! अच्छा, कब हैं एक्साम्स?”

“मार्च – अप्रैल के महीने में ही होंगे.. लेकिन आप कुछ न कुछ कर के मुझे अपने साथ रखिए न, प्लीज!”

“अरे! यह भी कोई कहने वाली बात है? एग्जाम तो वही जा कर देने होंगे... लेकिन उसके पहले के लिए एक काम तो कर ही सकते हैं.. आपके प्रिंसिपल से पूछ के ‘होम-स्कूल’ की अनुमति ले सकते हैं.. वो अलाऊ कर दें, तो फिर बस एग्जाम देने के लिए आपको मार्च में वापस जाना होगा... उतना तो ठीक है न? उसके बाद फिर से यहाँ? ओके?”

“हाँ... ठीक तो है... लेकिन हो जाएगा न?”

“अरे क्यों नहीं? मुझसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं क्या वहां? मैं कन्विंस कर लूँगा आपके प्रिंसिपल को! और जहाँ तक पढाई की बात है, हमारे पड़ोसी बहुत ही क्वालिफाइड हैं.. उनसे कह कर दिन में आपकी पढाई का इंतज़ाम कर दूंगा... कुछ कोर्स तो मैं ही पढ़ा सकता हूँ.. मुझे नहीं लगता कोई प्रॉब्लम होगी। क्या पता आप टापर हो जाएँ! हा हा!”

संध्या मुस्कुराई।

“वैसे आप आगे क्या करना चाहती हैं? मेरा मतलब कैरियर के बारे में कुछ सोचा है? आप कह रही थी न.. हमारी सुहागरात को, की आप कुछ करना चाहती हैं.. कुछ बनना चाहती हैं?”

“करना तो चाहती हू, लेकिन क्या करूंगी.. कुछ मालूम नहीं..!”

“अच्छा, मैं आपसे कुछ सवाल पूछूंगा... आप सोच कर उसमें जो पसंद है बताइयेगा.. ओके?”

“ओके..”

“खूब पैसे चाहिए, की रुतबा?”

“उम्म्म्म...” संध्या ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहा, “..आप!”

मैं मुस्कुराया, “खूब मेहनत या फिर आराम?”

“मेहनत.. लेकिन आपका साथ चाहिए।“

“ओके! नौकर, या अपना खुद का बॉस?”

“अपना खुद का..”

“नौकरी या बिजनेस...”

“नौकरी या बिजनेस...”

“पता नहीं...”

“हम्म.. मेरे मन में यह बकवास करते करते एक ख्याल आया। क्यूँ न आप अपना खुद का बिजनेस शुरू करो? साथ में ग्रेजुएशन की पढाई करते रहना? अगर दिमाग में बढ़िया आईडिया हो, तो बिजनेस ज़रूर करना चाहिए। पैसे की जो ज़रुरत होगी, वो मैं करूंगा... मेरे बहुत से दोस्त भी है, अगर वो आपके बिजनेस आईडिया से सहमत हों, तो वो भी पैसे लगा सकते हैं। बैंगलोर वैसे भी उद्यमियों का शहर है! प्रोफेशनल हेल्प मिल जाएगी। सोचना... कोई जल्दी नहीं है! ओके?”

“बाप रे! आप मुझ पर इतना भरोसा करते हैं?”

“देखो, जानू, भरोसा तो मुझे आप पर है.. लेकिन जब तक आईडिया सॉलिड नहीं होगा, मैं पैसे नहीं लगाऊँगा!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

“लेकिन... मुझे तो अभी तक कुछ मालूम ही नहीं! क्या करना है, क्या नहीं..”

“तो क्या हुआ.. अभी कोई जल्दी नहीं है.. अपना टाइम लीजिये.. जब समझ आयें तभी कुछ करेंगे! ओके?”

मैंने संध्या के बालों में अपने हाथ से सहलाया.. और फिर आगे कहा, “देखो, यह बात सच है की कम उम्र में शादी करने से बहुत सी समस्याएँ खड़ी हो जाती है। लेकिन मैं आपसे आज कुछ वायदे करता हूँ। पहला तो यह की आपको अपने व्यक्तितत्व के विकास के लिए पूरा समय, और सहयोग दूंगा। आपको जो भी कुछ करना है, जो भी कुछ बनना है, उसमें मैं पूरी मदद करूंगा। आप पर किसी भी तरह की पारिवारिक जिम्मे*दारी तब तक नहीं आने दूंगा, जब तक आप उसके लिए पूरी तरह से तैयार न हों – मतलब पढाई लिखाई पूरी करनी होगी, और उसके बाद आपका अगर मन हो तो आप अपना पूरा ध्यान कैरियर पर लगाइए। और बच्चा तभी जब आप तैयार हों।“

अब तक आसमान में जीवंत और चटक गुलाबी, लाल, नारंगी और पीले रंगों की छटा छा गई। सूरज का लाल गोला धीरे धीरे बादलों के पीछे से नीचे आ रहा था।

संध्या ने मेरी तरफ उचक कर मेरे होंठों को चूम लिया।

“थैंक यू!” उसने कहा।

मैंने उसकी आँखों में देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “नो! थैंक यू!”

मैंने उसकी आँखों में ध्यान से देखा – आंसू से संध्या की आँखें डबडबा गईं थीं। संध्या कोशिश कर रही थी की आंसू न निकालें, लेकिन फिर भी एक-एक बूँद आँखों से निकल कर उसके गालों पर ढलक ही गई। मैंने बिना कुछ कहे संध्या का हाथ थाम लिया... निशब्द भाषा में बस यह कहने के लिए की मैं उसके साथ हूँ... जीवन की कड़वी सच्चाईयाँ अभी दूर थीं... जो इस समय हमारे पास था वह था हम दोनों का साथ और यह सुन्दर सूर्यास्त!
awesome update
 
Status
Not open for further replies.
Top