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बहुत पहले मैंने एक फिल्म देखी थी... “अ फ्यू गुड मेन”... उसमें जैक निकोल्सन का किरदार एक डायलॉग बोलता है...
“There is nothing on this earth sexier, believe me, gentlemen, than a woman you have to salute in the morning. Promote 'em all, I say, 'cause this is true: if you haven't gotten a blowjob from a superior officer, well, you're just letting the best in life pass you by.”
वैसे तो यह एक लैंगिकवादी सोच है, लेकिन पुरुष वर्ग इस बात की सच्चाई से इनकार नहीं कर सकता। जब स्त्री रति संभोग क्रिया में पहल करती है, तो पुरुष अत्यधिक उत्तेजना प्राप्त करने में समय नहीं लगाता। यही हाल मेरा भी इस समय था.. संध्या ने इस खेल की पहल करी थी। यह उसका एक नया ही रूप था... मुझे पहले लगता था की उस पर मेरा किसी प्रकार का दबाव हो सकता है, और इसीलिए वह मेरी बातें मान रही हो। लेकिन, जब वह अपनी स्वेच्छा से ऐसी कामुक ड्रेस पहन कर मुझे सम्भोग के लिए ऐसे लुभा रही है, तो इसका मतलब कुछ तो बदला है! और उसका यह बदला हुआ रूप मुझे बहुत लुभा रहा था।
संध्या ने मुंह नहीं खोला तो मैंने ही उसके दोनों गालो को दबा कर उसके होंठ खोल दिए और अपनी उंगली उसके मुंह में डाल दी। मरता क्या न करता! संध्या ने पहले तो बेमन से, और फिर उत्सुक स्वेच्छा से मेरी उंगली चाट कर साफ़ कर दी।
“क्यों? मज़ा आया? है न स्वादिष्ट तुम्हारा ‘चूत-रस’?” मेरे इस तरह कहने से संध्या के गाल शर्म से सुर्ख हो गए।
“तुम बोलो या नहीं.. है तो स्वादिष्ट!” कह कर मैंने वही उंगली अपने मुंह में डाल कर कुछ देर चूसा।
इंटिमेसी / अंतरंगता / निजता.. इन सबके मायने हमारे लिए बहुत बदल गए थे, इन कुछ ही दिनों में!
मैं बिना कुछ पहने ही सो गया था। और इस समय मेरे लिंग का बुरा हाल था, और स्पष्ट दिख भी रहा था। वह इस समय एकदम सख्त स्तम्भन की स्थिति में था। संध्या ने अब तक मेरी उत्तेजना महसूस कर ली होगी, इसलिए उसका हाथ मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर चल-फिर और दौड़ रहा था। कभी वह यह करती, तो कभी मेरे वृषणों के साथ खेलती।
“यू हैव अ वैरी नाइस पुसी डिअर!” मैंने वापस अपनी उंगली को उसकी योनि पर फिराया, “... इट इस सो हॉट... एंड वेट! यू आर सो रेडी टू फ़क!”
कह कर मैंने अपनी मध्यमा उंगली को उसकी योनि के अन्दर तक ठेल दिया और एक पम्पिंग एक्शन से उसको अन्दर बाहर करने लगा... इसमें एक ख़ास बात यह थी की एक तरफ तो मेरी मध्यमा उसकी योनि के अन्दर बाहर हो रही थी, वहीँ दूसरी तरफ बाकी उंगलियाँ रह रह कर उसके भगनासे को सहला रही थीं।
दोहरी मार! संध्या की साँसे इसके कारण भारी हो गई, और रुक रुक कर चलने लगीं। उसका चेहरा उत्तेजना से तमतमा गया। कभी वह मुंह खोल कर सांस भारती, तो कभी अपने सूखे होंठों को जीभ से चाटती.. उसका सीना भारी भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे हो रहा था।
“कैसा लग रहा है, जानू?” मैंने पूछा।
“आह! सोओओ गुड! उम्म्म्मम...!” वह बस इतना ही कह पाई।
“ह्म्म्म... सो द लिटिल गर्ल इस ग्रोन नाउ! लुक अट हर पुसी... आल जूसी एंड हॉट!” मैं रह रह कर अपनी उंगली की गति कभी धीमी, तो कभी तेज़ कर देता। संध्या कभी सिसियती तो कभी रिरियाती। कुछ ही देर में रति-निष्पत्ति के चरम पर पहुँच कर उसका शरीर कांपने लगा। उसकी बाहें मेरी गर्दन पर कस गईं और उसका माथा मेरे माथे पर आकर टिक गया। इस पूरे प्रकरण में पहली बार मैंने संध्या के होंठ चूमे!
“मज़ा आया हनी?”
संध्या उन्माद के आकाश में तैरते हुए मुस्कुराई।
“देखो न.. तुमने मेरी क्या हालत कर दी है! कितना कड़ा हो गया है मेरा लंड!” कह कर मैंने संध्या का एक हाथ अपने लिंग पर लाकर रख दिया। संध्या की उंगलियाँ स्वतः ही उस पर लिपट गईं। उधर मैं संध्या के टेडी के ऊपर से ही उसके निप्पल को बारी बारी से चूमने और चूसने लगा। फिर दिमाग में एक आईडिया आया।
संध्या को पकड़े पकड़े ही मैं बिस्तर पर लेट गया और संध्या को अपने लिंग पर कुछ इस तरह से स्थापित किया की उसकी योनि मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर सिर्फ चले, लेकिन उसको अन्दर न ले। संध्या भी इस इशारे को समझ गई, उसने अपनी ड्रेस काफी ऊपर उठा दी – अब उसके स्तन भी दिख रहे थे, और पूरे उत्साह के साथ मेरे लिंग को अपनी योनि-रस से भिगाते हुए सम्भोग करने लगी। बहुत ही अलग अनुभव था यह.. लिंग को योनि की कोमलता और गरमी तो मिल ही रही थी, साथ ही साथ कमरे की ठंडी हवा भी। योनि का कसाव और पकड़ नदारद थी, लेकिन दो शरीरों के बीच में पिसने का आनंद भी मौजूद था।
संध्या के लिए भी उन्मादक अनुभव था – इस प्रकार के मैथुन से उसके जननांगों के सभी कोमल, संवेदनशील और उत्तेजक भाग एक साथ प्रेरित हो रहे थे। साथ ही साथ, मेरे ऊपर आकर मैथुन क्रिया को नियंत्रित करना उसके लिए भी एक अलग अनुभव रहा होगा... पिछली बार तो वह शर्मा रही थी, लेकिन इस बार वह एक अभिलाषा, एक प्रयोजन के साथ मैथुन कर रही थी। यह क्रिया अगले कोई पांच-छः मिनट तो चली ही होगी.. मेरे अन्दर का लावा बस निकलने को व्याकुल हो गया। मेरा शरीर अब कांपने लग गया था।
“जानू.. निकलने वाला है!”
मेरे बस इतना ही बोलने की देर थी की संध्या ने अपनी बाहें मेरी गर्दन पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर कर जोर से चूमने चूसने लगी। उसके ऐसा करते ही एक विस्फोट के साथ वीर्य का पहला खेप स्खलित हो गया और फिर उसके बाद ही ताबड़ तोड़ चार पांच बड़ी गोलिकाएं और निकलीं। संध्या ने इस क्रिया के दौरान अपने कूल्हे चलाने जारी रखा। और मेरे स्खलन के कुछ ही देर बाद संध्या का शरीर भी कुछ अकड़ा और एक बार फिर झटके खाते हुए वो भी शांत पड़ने लगी और मुझ पर निढाल होकर गिर गई। मेरा शरीर अभी भी उत्तेजना में कांप रहा था.. मैंने संध्या को अपने में जोर से भींच लिया – कभी उसके होंठ चूमता, तो कभी गाल, तो कभी माथा! मेरी हरकतों पर मीठी मीठी सिसकियाँ निकल जातीं। इस अनोखे सम्भोग की संतुष्टि उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।
जब हमारी उत्तेजना का ज्वार कुछ थमा, तो मैंने कहा, “देखो न.. मैंने कहा था न की साँवली लड़कियाँ सेक्स में बहुत तेज़ होती हैं... और... गोरी लड़कियों को सिखाना पड़ता है! याद है?”
संध्या को पहले कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर मेरा इशारा समझ कर मुस्कुरा दी। उसके गाल सेब के जैसे लाल हो गए।
“There is nothing on this earth sexier, believe me, gentlemen, than a woman you have to salute in the morning. Promote 'em all, I say, 'cause this is true: if you haven't gotten a blowjob from a superior officer, well, you're just letting the best in life pass you by.”
वैसे तो यह एक लैंगिकवादी सोच है, लेकिन पुरुष वर्ग इस बात की सच्चाई से इनकार नहीं कर सकता। जब स्त्री रति संभोग क्रिया में पहल करती है, तो पुरुष अत्यधिक उत्तेजना प्राप्त करने में समय नहीं लगाता। यही हाल मेरा भी इस समय था.. संध्या ने इस खेल की पहल करी थी। यह उसका एक नया ही रूप था... मुझे पहले लगता था की उस पर मेरा किसी प्रकार का दबाव हो सकता है, और इसीलिए वह मेरी बातें मान रही हो। लेकिन, जब वह अपनी स्वेच्छा से ऐसी कामुक ड्रेस पहन कर मुझे सम्भोग के लिए ऐसे लुभा रही है, तो इसका मतलब कुछ तो बदला है! और उसका यह बदला हुआ रूप मुझे बहुत लुभा रहा था।
संध्या ने मुंह नहीं खोला तो मैंने ही उसके दोनों गालो को दबा कर उसके होंठ खोल दिए और अपनी उंगली उसके मुंह में डाल दी। मरता क्या न करता! संध्या ने पहले तो बेमन से, और फिर उत्सुक स्वेच्छा से मेरी उंगली चाट कर साफ़ कर दी।
“क्यों? मज़ा आया? है न स्वादिष्ट तुम्हारा ‘चूत-रस’?” मेरे इस तरह कहने से संध्या के गाल शर्म से सुर्ख हो गए।
“तुम बोलो या नहीं.. है तो स्वादिष्ट!” कह कर मैंने वही उंगली अपने मुंह में डाल कर कुछ देर चूसा।
इंटिमेसी / अंतरंगता / निजता.. इन सबके मायने हमारे लिए बहुत बदल गए थे, इन कुछ ही दिनों में!
मैं बिना कुछ पहने ही सो गया था। और इस समय मेरे लिंग का बुरा हाल था, और स्पष्ट दिख भी रहा था। वह इस समय एकदम सख्त स्तम्भन की स्थिति में था। संध्या ने अब तक मेरी उत्तेजना महसूस कर ली होगी, इसलिए उसका हाथ मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर चल-फिर और दौड़ रहा था। कभी वह यह करती, तो कभी मेरे वृषणों के साथ खेलती।
“यू हैव अ वैरी नाइस पुसी डिअर!” मैंने वापस अपनी उंगली को उसकी योनि पर फिराया, “... इट इस सो हॉट... एंड वेट! यू आर सो रेडी टू फ़क!”
कह कर मैंने अपनी मध्यमा उंगली को उसकी योनि के अन्दर तक ठेल दिया और एक पम्पिंग एक्शन से उसको अन्दर बाहर करने लगा... इसमें एक ख़ास बात यह थी की एक तरफ तो मेरी मध्यमा उसकी योनि के अन्दर बाहर हो रही थी, वहीँ दूसरी तरफ बाकी उंगलियाँ रह रह कर उसके भगनासे को सहला रही थीं।
दोहरी मार! संध्या की साँसे इसके कारण भारी हो गई, और रुक रुक कर चलने लगीं। उसका चेहरा उत्तेजना से तमतमा गया। कभी वह मुंह खोल कर सांस भारती, तो कभी अपने सूखे होंठों को जीभ से चाटती.. उसका सीना भारी भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे हो रहा था।
“कैसा लग रहा है, जानू?” मैंने पूछा।
“आह! सोओओ गुड! उम्म्म्मम...!” वह बस इतना ही कह पाई।
“ह्म्म्म... सो द लिटिल गर्ल इस ग्रोन नाउ! लुक अट हर पुसी... आल जूसी एंड हॉट!” मैं रह रह कर अपनी उंगली की गति कभी धीमी, तो कभी तेज़ कर देता। संध्या कभी सिसियती तो कभी रिरियाती। कुछ ही देर में रति-निष्पत्ति के चरम पर पहुँच कर उसका शरीर कांपने लगा। उसकी बाहें मेरी गर्दन पर कस गईं और उसका माथा मेरे माथे पर आकर टिक गया। इस पूरे प्रकरण में पहली बार मैंने संध्या के होंठ चूमे!
“मज़ा आया हनी?”
संध्या उन्माद के आकाश में तैरते हुए मुस्कुराई।
“देखो न.. तुमने मेरी क्या हालत कर दी है! कितना कड़ा हो गया है मेरा लंड!” कह कर मैंने संध्या का एक हाथ अपने लिंग पर लाकर रख दिया। संध्या की उंगलियाँ स्वतः ही उस पर लिपट गईं। उधर मैं संध्या के टेडी के ऊपर से ही उसके निप्पल को बारी बारी से चूमने और चूसने लगा। फिर दिमाग में एक आईडिया आया।
संध्या को पकड़े पकड़े ही मैं बिस्तर पर लेट गया और संध्या को अपने लिंग पर कुछ इस तरह से स्थापित किया की उसकी योनि मेरे लिंग की पूरी लम्बाई पर सिर्फ चले, लेकिन उसको अन्दर न ले। संध्या भी इस इशारे को समझ गई, उसने अपनी ड्रेस काफी ऊपर उठा दी – अब उसके स्तन भी दिख रहे थे, और पूरे उत्साह के साथ मेरे लिंग को अपनी योनि-रस से भिगाते हुए सम्भोग करने लगी। बहुत ही अलग अनुभव था यह.. लिंग को योनि की कोमलता और गरमी तो मिल ही रही थी, साथ ही साथ कमरे की ठंडी हवा भी। योनि का कसाव और पकड़ नदारद थी, लेकिन दो शरीरों के बीच में पिसने का आनंद भी मौजूद था।
संध्या के लिए भी उन्मादक अनुभव था – इस प्रकार के मैथुन से उसके जननांगों के सभी कोमल, संवेदनशील और उत्तेजक भाग एक साथ प्रेरित हो रहे थे। साथ ही साथ, मेरे ऊपर आकर मैथुन क्रिया को नियंत्रित करना उसके लिए भी एक अलग अनुभव रहा होगा... पिछली बार तो वह शर्मा रही थी, लेकिन इस बार वह एक अभिलाषा, एक प्रयोजन के साथ मैथुन कर रही थी। यह क्रिया अगले कोई पांच-छः मिनट तो चली ही होगी.. मेरे अन्दर का लावा बस निकलने को व्याकुल हो गया। मेरा शरीर अब कांपने लग गया था।
“जानू.. निकलने वाला है!”
मेरे बस इतना ही बोलने की देर थी की संध्या ने अपनी बाहें मेरी गर्दन पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर कर जोर से चूमने चूसने लगी। उसके ऐसा करते ही एक विस्फोट के साथ वीर्य का पहला खेप स्खलित हो गया और फिर उसके बाद ही ताबड़ तोड़ चार पांच बड़ी गोलिकाएं और निकलीं। संध्या ने इस क्रिया के दौरान अपने कूल्हे चलाने जारी रखा। और मेरे स्खलन के कुछ ही देर बाद संध्या का शरीर भी कुछ अकड़ा और एक बार फिर झटके खाते हुए वो भी शांत पड़ने लगी और मुझ पर निढाल होकर गिर गई। मेरा शरीर अभी भी उत्तेजना में कांप रहा था.. मैंने संध्या को अपने में जोर से भींच लिया – कभी उसके होंठ चूमता, तो कभी गाल, तो कभी माथा! मेरी हरकतों पर मीठी मीठी सिसकियाँ निकल जातीं। इस अनोखे सम्भोग की संतुष्टि उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।
जब हमारी उत्तेजना का ज्वार कुछ थमा, तो मैंने कहा, “देखो न.. मैंने कहा था न की साँवली लड़कियाँ सेक्स में बहुत तेज़ होती हैं... और... गोरी लड़कियों को सिखाना पड़ता है! याद है?”
संध्या को पहले कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर मेरा इशारा समझ कर मुस्कुरा दी। उसके गाल सेब के जैसे लाल हो गए।