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Romance कायाकल्प [Completed]

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Chetan11

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Waiting for a blockbuster update here as welI. and I think it’s time for you to start a new thread as well. I know I am being greedy but can’t help 😀😃
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Waiting for a blockbuster update here as welI. and I think it’s time for you to start a new thread as well. I know I am being greedy but can’t help 😀😃

मेरी बची हुई कहानियों को पसंद करने वाले इक्का दुक्का ही लोग हैं।
यहाँ जब तक अपनी अम्मा न चोदो, लोग पढ़ते ही नहीं। इसलिए नया थ्रेड तो शायद ही शुरू करूँगा।
 

mashish

BHARAT
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ye baat aapne bilkul sahi kahi yaha saf suthri story koi nahi pasand karta sabko sex story hi pasand aati hai
 
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Chetan11

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मेरी बची हुई कहानियों को पसंद करने वाले इक्का दुक्का ही लोग हैं।
यहाँ जब तक अपनी अम्मा न चोदो, लोग पढ़ते ही नहीं। इसलिए नया थ्रेड तो शायद ही शुरू करूँगा।
Baat aapki sahi hai par agar sab cheez dusro ki pasand se hi kare to duniya me kuch naya aur achcha hoga hi nahi. Sab ghisa pita is chalta rahega. Kuch cheez apne liye aur apne chahne walo ke liye bhi karni chaahiye. Baaki aapki marzi
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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आज सुबह से ही बदली वाला मौसम था – सूरज बादलो के साथ लुका-छिपी खेल रहा था। हल्की बयार और ढले हुए तापमान से मौसम अत्यंत सुहाना हो गया। मन में आया की क्यों न अगर ऐसे ही मौसम रहे, तो आज दिन भर बीच पर ही आराम किया जाय? आखिर आये तो आराम करने ही है! मैंने संध्या को यह बात बताई तो उसको बहुत पसंद आई – वैसे भी हिमालय की हाड़ कंपाने वाली ठंडक से छुटकारा मिलने से वह वैसे भी बहुत खुश थी। संध्या ने भी कहा की आज बस आराम ही करने का मन है... खायेंगे, सोयेंगे और हो सका तो रात में फिल्म देखेंगे, इत्यादि... मेरे लिए आज का यह प्लान एकदम ओके था।

हमने जल्दी जल्दी फ्रेश होने, और ब्रश करने का उपक्रम किया। ब्रेकफास्ट के लिए आज मैंने रिसोर्ट के सार्वजानिक क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया – कम से कम कुछ और लोगों से बातचीत करने को मिलेगा। नाश्ते पर हमारे साथ एक तमिल जोड़ा बैठा। हमारी ही तरह उनकी भी अभी अभी ही शादी हुई थी और वे हनीमून के लिए आये थे। उनसे बात करते हुए पता चला की दोनों ही बंगलौर में काम करते हैं! लड़का लड़की दोनों की उम्र पच्चीस से सत्ताईस साल रही होगी। खैर, हमने अपने फ़ोन नंबर का आदान प्रदान किया और मैंने शिष्टाचार दिखाते हुए उन दोनों को अपने घर आने का न्योता दिया। नाश्ता कर के हम होटल के रिसेप्शन पर चले गए और उनसे प्लान के बारे में पूछा।

वहां पर रिसेप्शनिस्ट ने बताया की बहुत से लोग आज यही प्लान कर रहे हैं.. उसने हमको काला-पत्थर बीच जाने को कहा.. एक तो वहां बहुत भीड़ भी नहीं रहेगी और दूसरा वह रिसोर्ट से आरामदायक दूरी पर था। आईडिया अच्छा था। फिर मेरे मन में एक ख़याल आया – मैंने रिसेप्शनिस्ट से पूछा की दो साइकिल का इन्तेजाम हो सकता है? क्यों न कुछ साइकिलिंग की जाय – वैसे भी इतने दिनों से किसी भी तरह का व्यायाम नहीं हुआ था.. बस आराम! खाओ, पियो, सोवो, और सेक्स करो! ऐसे तो कुछ ही दिन में तोन्दूमल हो जायेंगे हम दोनों।

रिसेप्शनिस्ट ने कहा कि साइकिलें हैं, और कुछ ही देर में हमारे सामने दो साइकिल (एक लेडीज और एक जेंट्स) मौजूद थीं। बहुत बढ़िया! संध्या को पूछा की उसको साइकिल चलाना आता है? उसने बताया की आता है.. उसने छुप छुपा कर सीखी है। भला ऐसा क्यों? पूछने पर संध्या ने कहा की पहले तो माँ, और फिर पापा दोनों ही उसको मना करते थे। माँ कहती थीं की लड़कियों की साइकिल नहीं चलानी चाहिए... उससे ‘वहाँ’ पर चोट लग जाती है। कैसी कैसी सोच! न जाने क्यों हम लोग अपनी ही बच्चियों को जाने-अनजाने ही, दकियानूसी पाबंदियों में बाँध देते हैं!

खैर, साइकिल चलाने और चलाना सीखने का मेरा खुद का भी ढेर सारा आनंददायक अनुभव रहा है। जब मैं छोटा था, उस समय मेरठ में वैसे भी साइकिल से स्कूल जाने का रिवाज था। स्कूल ही क्या, लोग तो काम पर भी साइकिल चलाते हुए जाते थे उस समय तक! लड़का हो या लड़की... ज्यादातर बच्चे साइकिल से ही स्कूल जाते थे। पांचवीं में था, और उस समय मैंने साइकिल चलाना सीखी।

शुरू शुरू में मोहल्ले के कई सारे मुंहबोले भइया और दीदी मुझे साइकिल चलाना सिखाने लगे - कैसे पैडल पर पैर रखकर कैंची चलाते है... कैसे सीट पर बैठते है... कैसे साइकिल का हैंडल सीधा रखते हैं... इत्यादि इत्यादि! शुरू शुरू में कोई न कोई पीछे से कैरियर पकड़ कर गाइड करता रहता... साईकिल चलाते समय यह विश्वास रहता की अगर बैलेंस बिगड़ेगा तो कोई न कोई मुझे गिरने से बचा ही लेगा। ऐसे में न जाने कब बड़े आराम से अपने मोहल्ले मे साइकिल चलाना सीख लिया... पता ही नहीं चला।

एक वह दिन था और एक आज! न जाने कितने बरसों के बाद आज साइकिल चलाने का मौका मिलेगा! कभी कभी कितनी छोटी छोटी बातें भी कितने मज़ेदार हो जाती हैं! मैंने हाफ-पैन्ट्स और टी-शर्ट पहनी, चप्पलें पहनी और एक बैग रखा.. जिसमें फ़ोन, सन-स्क्रीन लोशन, कैमरा, किताब, मेरा आई-पोड, पानी की बोतलें, चादर और खाने का सामान था। संध्या ने हलके आसमानी रंग का घुटने तक लम्बा काफ्तान जैसा पहना हुआ था और उसके अन्दर नारंगी रंग की ब्रा और चड्ढी पहनी हुई थी.. क्या बला की खूबसूरत लग रही थी! बालों को उसने पोनीटेल में बंद लिया था – उसकी मुखाकृति और रूप लावण्य अपने पूरे शबाब पर था।

कोई पंद्रह बीस मिनट की साइकिलिंग थी.. तो मैंने सोचा की रस्ते में इसको चुटकुले सुनाते चलूँ...

हरयाणवी जाट का बच्चा साइकिल चलाते-चलाते एक लड़की से टकरा गया।
लड़की बोली: क्यों बे! घंटी नहीं मार सकता क्या?
जाट का बच्चा कहता है: री छोरी, बावली है के? पूरी साइकिल मार दी इब घंटी के अलग ते मारुं के?

संध्या: “हा हा! ये तो बहुत मज़ेदार जोक था! .... आप तो सुधर गए!”

मैं: “सुधर गया मतलब? अरे मैं बिगड़ा ही कब था?”

संध्या: “आपके ‘वो’ वाले जोक्स की केटेगरी में तो नहीं आता यह!”

मैं: “अच्छा! तो आपको ‘वो’ जोक सुनना है? तो ये लो...

संध्या: “नहीं नहीं बाबा! आप रहने ही दीजिये!”

मैं: “अरे आपकी फरमाइश है..! अब तो सुनना ही पड़ेगा.. शादी के फेरे लेने के बाद लड़की ने झुक कर पंडित जी के पैर छुए और कहा "पंडित जी कोई ज्ञान की बात बता दीजिए।" पंडित जी ने उत्तर दिया "बेटी, ब्रा अवश्य पहना करो.. क्योंकि जब तुम झुकती हो तो ज्ञान और ध्यान, दोनों ही भंग हो जाते हैं।“”

“हा हा हा!”

“हा हा हा हा हा!”

ऐसे ही हंसी मज़ाक करते हुए कुछ देर बाद हम दोनों काला पत्थर बीच पर पहुँच जाते हैं। वहाँ पर हमारे अलावा कोई चार पांच जोड़े और मौजूद थे.. लेकिन सभी अपने अपने आनंद में लिप्त थे।

एक साफ़ सुथरा (वैसे तो सारे का सारा बीच ही साफ़ सुथरा था) स्थान देख कर अपना चद्दर बिछाया और बैग रख कर मैं कैमरा सेट करने लगा। उसके बाद संध्या की ढेर सारी तस्वीरें उतारीं.. मैं उसको सिर्फ ब्रा-पैंटीज में कुछ पोज़ बनाने को बोला, तो वह लगभग तुरंत ही मान गई। किसी मॉडल की भांति सुनहरी रेत और फिरोज़ी पानी की पृष्ठभूमि में मैंने उसकी कई सुन्दर तस्वीरें उतारी। उसके बाद मैंने भी सिर्फ अपनी अंडरवियर में संध्या के साथ कुछ युगल तस्वीरें एक और पर्यटक से कह कर उतरवाई।

यह सब करते करते कोई एक घंटा हो गया हमको बीच पर रहते हुए.. बादल कुछ कुछ हटने लगे थे, इसलिए मैंने संध्या को कहा की मैं उसके शरीर पर सनस्क्रीन लोशन लगा देता हूँ.. नहीं तो वो झुलस कर काली हो जायेगी। मैंने संध्या को पानी की एक बोतल पकड़ाई और वह चद्दर पर आ कर लेट गई। सूरज इस समय तक ऊर्ध्व हो गया था। उसमें तपिश तो थी, लेकिन फिर भी, समुद्री हवा, और लहरों का गर्जन बहुत ही सुखकारी प्रतीत हो रहे थे। हम दोनों चुप-चाप इस अनुभव का आनंद लेते रहे, और कुछ ही देर में मैंने संध्या और अपने के पूरे शरीर पर सनस्क्रीन लगा लिया।

कुछ देर ऐसे ही लेटे लेटे संध्या बोली, “आप ग़ज़ल पसंद करते हैं?”

“ग़ज़ल!? हा हा! हाँ... जब भी कभी बहुत डिप्रेस्ड होता हूँ तब!”

“डिप्रेस्ड? ऐसी सुन्दर चीज़ आप डिप्रेस्ड होने पर पसंद करते हैं?”

“सुन्दर? अरे, वो कैसे?”

“अच्छा, आप बताइए, ग़ज़ल का मतलब क्या है?”

“ग़ज़ल का मतलब? ह्म्म्म... हाँ! वो जो ग़मगीन आवाज़ में धीरे धीरे गाया जाय?”

“ह्म्म्म अच्छा! तो आप जगजीत सिंह वाली ग़ज़ल की बात कर रहे हैं? फिर तो भई शाल भी ओढ़ ही ली जाय!”

हम दोनों इस बात पर खूब देर तक हँसे... और फिर संध्या ने आगे कहना शुरू किया,

“एक बहुत बड़े आदमी हुए थे कभी... रघुपति सहाय साहब! जिनको फ़िराक गोरखपुरी भी कहा जाता है! खैर, उन्होंने ग़ज़ल को ऐसे समझाया है – मानो कोई शिकारी जंगल में कुत्तों के साथ हिरन का पीछा करे, और हिरन भागते-भागते किसी झाडी में फंस जाए और वहां से निकल नहीं पाए, तो वह डर के मारे एक दर्द भरी आवाज़ निकालता है। तो उसी करूण कातर आवाज़ को ग़ज़ल कहते हैं। समझिये की विवशता और करुणा ही ग़ज़ल का आदर्श हैं।“

“हम्म... इंटरेस्टिंग! कौन थे ये बड़े मियां फ़िराक?”

“उनकी क्वालिफिकेशन ससुनना चाहते हैं आप? मेरिटोक्रेटिक लोगो में यही कमी है! अपने सामने किसी को भी नहीं मानते! अच्छा.. तो रघुपति सहाय जी अंग्रेजों के ज़माने में आई सी एस (इंडियन सिविल सर्विसेज) थे, लेकिन स्वतंत्रता की लड़ाई में महात्मा गाँधी के साथ हो लिए। उनको बाद में पद्म भूषण का सम्मान भी मिला है। समझे मेरे नासमझ साजन?”

“सॉरी बाबा! लेकिन वाकई जो आप बता रही हैं बहुत ही रोचक है! आपको बहुत मालूम है इसके बारे में! और बताइए!”

“ओके! ग़ज़ल का असल मायने है ‘औरतों से बातें’! अब औरतों से आदमी लोग क्या ही बातें करते हैं? बस उनकी बढाई में कसीदे गढ़ते हैं! शुरू शुरू में ग़ज़लें ऐसी ही लिखते थे... ‘नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिये, पंखडी एक गुलाब की सी हैं।‘”

“किस गधे ने लिखी है यह! आपकी तो दो-दो गुलाब की पंखुड़ियाँ हैं!”

“हा हा हा! वेरी फनी! इसीलिए पुराने सीरियस शायर ग़ज़ल लिखना पसंद नहीं करते थे। इसको अश्लील या बेहूदी शायरी कहते थे। लेकिन जैसे जैसे वक्त आगे बढ़ा, और इस पर और काम हुआ, जीवन के हर पहलू पर ग़ज़लें लिखी गई।“

“अच्छा – क्या आपको मालूम है की उर्दू दरअसल भारतीय भाषा है?”

आज तो मेरा ज्ञान वर्धन होने का दिन था! मैं इस ज़रा सी लड़की के ज्ञान को देख कर विस्मित हो रहा था! क्या क्या मालूम है इसको?

“न..हीं..! उसके बारे में भी बताइए?”

“बिलकुल! जब मुस्लिम लोग भारत आये, तब यहाँ – ख़ास कर उत्तर भारत में खड़ी-बोली या प्राकृत भाषा बोलते थे.. और वो लोग फ़ारसी या अरबी! साथ में मिलने से एक नई ही भाषा बनने लगी, जिसको हिन्दवी या फिर देहलवी कहने लगे। और धीरे धीरे उसी को आम भाषा में प्रयोग करने लगे। उस समय तक यह भाषा फ़ारसी में ही लिखी जाती थी – दायें से बाएँ! लेकिन जब इसको देवनागरी में लिखा जाने लगा, तो इसको हिंदी कहने लगे। लेकिन इसमें भी खूब सारी पॉलिटिक्स हुई – उस शुरु की हिंदी से संस्कृत बहुल शब्द हटाए गए तो वह भाषा उर्दू बनती चली गई, और जब फारसी और अरबी शब्द हटाए गए तो आज की हिंदी भाषा बनती चली गई। लेकिन देखें तो कोई लम्बा चौड़ा अंतर नहीं है।“

“क्या बात है! लेकिन आप ग़ज़ल की बात कर रही थी?”

“हाँ! तो उर्दू की बात मैंने इसलिए छेड़ी क्योंकि ग़ज़ल सुनने सुनाने का असली मज़ा तो बस उर्दू में ही हैं!”

“आप लिखती है?”

“नहीं! पापा लिखते हैं!”

“क्या सच? वाह! क्या बात है!! तो अब समझ आया आपका शौक कहाँ से आया!” संध्या मुस्कुराई!

“आप क्या करती हैं? बस पापा से सुनती हैं?”

“हाँ!”

“लेकिन आपको गाना भी तो इतना अच्छा आता है! कुछ सुनाइये न?”

“फिर कभी?”

“नहीं! आपने इतना इंटरेस्ट जगा दिया, अब तो आपको कुछ सुनाना ही पड़ेगा!”

“ह्म्म्म! ओके.. यह मेरी एक पसंदीदा ग़ज़ल है ... मीर तकी मीर ने लिखी थी – कोई दो-ढाई सौ साल पहले! आप तो तब पैदा भी नहीं हुए होंगे! हा हा हा हा!”

संध्या को ऐसे खुल कर बातें करते और हँसते देख कर, और सुन कर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था!

“हा हा! न बाबा! उस समय नहीं पैदा हुआ था! बूढ़ा हूँ, लेकिन उतना भी नहीं...”

“आई लव यू! एक फिल्म आई थी – बाज़ार? याद है? आप तब शायद पैदा हो चुके होंगे? उस फिल्म में इस ग़ज़ल को लता जी ने बहुत प्यार से गाया है!”

“बाज़ार? हाँ सुना तो है! एक मिनट – आप भी कुछ देर पहले कह रही थीं की ग़ज़ल औरतों की बढाई के लिए होती है.. और अभी कह रही हैं की लता जी ने गाया?”

“अरे बाबा! लेकिन लिखी तो मीर ने थी न?”

“हाँ! ओह! याद आया! ओके ओके ... प्लीज कंटिन्यू!”

“तो जनाब! पेशे-ख़िदमत है, यह ग़ज़ल...” कह कर संध्या ने गला खंखार कर साफ़ किया और फिर अपनी मधुर आवाज़ में गाना शुरू किया,

“दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया... दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया,
हमे आप से भी जुदा कर चले... दिखाई दिए यूं....”

संध्या के गाने का तो मैं उस रात से ही दीवाना हूँ! लेकिन इस ग़ज़ल में एक ख़ास बात थी – वाकई, करुणा और प्रेम से भीगी आवाज़, और साथ में उसकी मुस्कुराती आँखें! मैं इस रसीली कविता... ओह! माफ़ करिए, ग़ज़ल में डूबने लगा!

“जबीं सजदा करते ही करते गई... जबीं सजदा करते ही करते गई,
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले... दिखाई दिए यूं....
परस्तिश कि या तक के ऐ बुत तुझे... परस्तिश कि या तक के ऐ बुत तुझे,
नजर में सबो की खुदा कर चले... दिखाई दिए यूं....”

संध्या गाते गाते खुद भी इतनी भाव-विभोर हो गई, की उसकी आँखों से आंसू बहने लगे ... उसकी आवाज़ शनैः शनैः भर्राने लगी, लेकिन फिर भी मिठास में कोई कमी नहीं आई... मैंने उसके कंधे पर हाथ रख अपनी तरफ समेट लिया।

“बहोत आरजू थी गली की तेरी... बहोत आरजू थी गली की तेरी...
सो या से लहू में नहा कर चले... दिखाई दिए यूं....
दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया... दिखाई दिए यूं, के बेखुद किया,
हमे आप से भी जुदा कर चले... दिखाई दिए यूं....”

ग़ज़ल समाप्त हो गई थी, लेकिन मेरे दिल में एक खालीपन सा छोड़ कर चली गई।

“आई लव यू!” संध्या बोली – लेकिन इतनी शिद्दत के साथ की यह तीन शब्द, तीन तीर के जैसे मेरे दिल में घुस गए... “आई लव यू सो मच!” उसकी आवाज़ में रोने का आभास हो रहा था, “मुझे आपके साथ रहना है... हमेशा! आपके बिना तो मैं मर ही जाऊंगी!”
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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संध्या ने मेरे मुँह की बात छीन ली। उसकी बात सुन कर मेरी खुद की आँख से आंसू की बूँद टपक पड़ी। हाँ! मर्द को दर्द भी होता है, और मर्द रोते भी हैं.. प्यार कुछ भी कर सकता है। मैं कुछ बोल नहीं पाया – कुछ बोलता तो बस रो पड़ता। मैंने संध्या को जोर से अपने में भींच लिया। जो उसका डर था, वही मेरा भी डर था। इतनी उम्र निकल जाने के बाद, मेरे साथ पहली बार कुछ ठीक हो रहा था।

आप कहेंगे की ‘अरे भई, अच्छी पढाई लिखाई हुई, अच्छी नौकरी है, अच्छा कमा रहे हो – घर है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है! फिर भी कैसे गधे जैसी बात कर रहे हो! यह सब अच्छी बाते नहीं हुई?’

तो मैं कहूँगा की ‘बिलकुल! यह सब अच्छी बाते हैं! लेकिन यह सब मैं इसलिए कर पाया की मेरे मन में एक प्रतिशोध की भावना थी! जिनके कारण मेरा बाल्यकाल उजड़ गया, उनको नीचा दिखाना मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य बन गया। भोगवादी परिमाणों और मापदंडो पर ही मेरा जीवन टिका हुआ था! एक अजीब तरह का चक्रव्यूह या कहिये भंवर! जिसमें मैं खुद ही घुस गया, और न जाने कितने अन्दर तक चला गया था। लेकिन संध्या ने आते ही मुझे ऐसा अनोखा एहसास कराया की मानो पल भर में उस भंवर से बाहर निकल आया।‘

‘अब समझ आया इस खालीपन का रहस्य! मैं अब तक बिना वजह का बोझ, जो अपने सर पर लिए फिर रहा था, वह न जाने कहाँ मेरे सर से उतर गया था। मुझे संध्या और उसके परिवार के रूप में एक अपना परिवार मिल गया था, जिसको मैं किसी भी कीमत पर सहेज कर रखना चाहता था।‘

“आई ऍम सॉरी जानू! मैं आपको रुलाना नहीं चाहती थी। ... मैं भी कितनी गधी हूँ... इतने अच्छे मूड का सत्यानाश कर दिया।“

“नहीं जानू! सॉरी मत बोलो! और ऐसा कुछ भी नहीं है। बस, आपके आने से यह समझ आ गया की मैं क्या मिस कर रहा था मेरी लाइफ में! यू आर वेरी प्रेशियस फॉर मी! और मुझे भी आपके ही साथ रहना है।“

कह कर मैंने संध्या को और जोर से अपने में दुबका लिया। मुझे मेरे जीवन में साफ़ उजाला दिख रहा था।

हम दोनों काला पत्थर बीच पर कम से कम छः घंटे तो रहे ही होंगे.. उस समय तो पता नहीं चला, लेकिन वापस रिसोर्ट आने पर जब आँखें थोड़ी अभ्यस्त हुईं, तो साफ़ दिख रहा था की संध्या और मैं, सूरज की तपन से पूरी तरह से गहरे रंग के हो गए। वैसे भी भारतीय लोगों की त्वचा धूप को बढ़िया सोखती है, लिहाजा हम दोनों काले कलूटे बन गए थे। लेकिन एक अपवाद था... संध्या ने टू-पीस बिकिनी पहनी हुई थी, इसलिए जो हिस्सा (दोनों स्तन, जघन क्षेत्र और नितम्बो का ऊपरी हिस्सा) ढका हुआ था, वह अभी भी अपने मूल, हलके रंग का था। इसको बिकिनी टैन कहते हैं। संध्या ने कपड़े उतारे तो यह बात समझ आ गई। लेकिन शायद संध्या ने देखा न हो, इसलिए उसने किसी भी तरह का विस्मय नहीं दिखाया। खैर नहा-धोकर हमने पकौड़े और चाय मंगाया, और खा-पीकर दोपहर में एक छोटी सी नींद सो गए।

जब मैं उठा तो देखा की सामने संध्या कमर पर अपने हाथ टिका कर, और कूल्हा एक तरफ निकाल कर बड़ी अदा से खड़ी हुई थी। उसने कोका-कोला रंग का काफी पारदर्शक नाइटी (जिसको टेडी भी कहते हैं) पहना हुआ था। कमर से बस कुछ अंगुल ही नीचे तक पहुंचेगा लम्बाई में। स्तनों के ऊपर से जाने वाले स्ट्रैप बहुत पतले थे। स्तन पर बस यही कपड़ा था, इसलिए उसके अन्दर से चमकदार निप्पल साफ़ दिख रहे थे... और नाभि भी। उसने टेडी के नीचे चड्ढी पहनी हुई थी... एक बहुत ही सेक्सी ड्रेस!

“ओहो! हू इस अ बिग गर्ल नाउ? कम हियर!”

संध्या मुस्कुराते हुए मेरे पास आई।

“न्यू ड्रेस?” मैंने संध्या की ड्रेस को छूते हुए कहा।

“यस! न्यू! ओनली फॉर यू!” उसने तुकबंदी वाले अंदाज़ में कहा।

“ह्म्म्म... आई लाइक दिस वन!” और फिर हँसते हुए मैंने कहा, “... एंड आई सी दैट यू आर वेअरिंग सम प्रीटी पैंटीज अंडरनीथ इट!”

“यस! वांट टू सी इट?”

मैंने सर हिला कर हामी भरी।

संध्या ने हँसते हुए टेडी का निचला किनारा पकड़ कर ऊपर उठा दिया। उसकी गहरे कोका कोला रंग की चड्ढी साफ़ दिखने लगी। उसकी चमक और बनावट देख कर मुझे लगा की शायद सिल्क की बनी होगी। सिल्क! एक अत्यंत अन्तरंग कपड़ा! पुरुष, सिल्क पहनी हुई स्त्रियों को छूने की परिकल्पना करते रहते हैं। एक तरीके का सेक्स-सिंबल! प्लेबॉय जैसी मगज़ीनों में सिल्क पहनी हुई लड़कियों को देख कर अनगिनत लडको और आदमियों में हस्त-मैथुन किया होगा! वही सिल्क! वही परिकल्पना!

“ओह! दे आर रियली प्रीटी पैंटीज!” मेरी आँखों में एक इच्छा जाग गई, “विल यू माइंड, अगर मैं इसको छू कर देख लूं?”

“ओके!”

कह कर संध्या ने अपनी ड्रेस को कुछ और ऊपर उठा दिया.. चड्ढी का पूरा हिस्सा दिखने लगा। मैंने उंगली से चड्ढी के ऊपर से ही संध्या की योनि का आगे वाला हिस्सा छुआ, और दूसरे हाथ से उसके नितम्बो के ऊपर से।

“फील्स गुड?” संध्या ने पूछा।

“ओह! दैट फील्स अमेजिंग! सो नाइस! सो स्मूद.. सो सेक्सी!” मैंने हँसते हुए पूछा, “डू दे मेक यू फील सेक्सी, हनी?”

“सेक्सी? ओह यस! दे डू!”

“आई ऍम श्योर! इट इस सो स्मूद! हम्म्म्म!” अपनी उंगली को संध्या के पैरों के बीच में दबाते हुए मैंने कहा, “ज़रा अपने पैर फैलाइये.. देखूं तो ‘वहां’ पर छूने पर यह कैसी लगती हैं!”

“ओके!”

कहते हुए संध्या ने अपने पैर थोड़ा और खोले। और मैं बढाई करते हुए उंगली से योनि के ऊपर से उसकी चड्ढी का मखमली एहसास महसूस करने लगा।

“डोंट दे फील नाइस?” संध्या ने अपनी आवाज़ थोड़ी कामुक बना कर पूछा।

“दे श्योर डू! नॉट ओन्ली नाइस, बट आल्सो अमेजिंग!” कहते हुए मैंने संध्या की योनि की झिर्री के ऊपर से अपनी उंगली रगड़ कर फिरानी शुरू की। “आई रियली लाइक हाउ योर पैंटीज फील हियर, डार्लिंग!”

संध्या खिलखिला कर हंसने लगी.. और साथ ही साथ मेरी उंगली की हरकतों को भी देखती रही। मैंने कुछ देर आहिस्ता आहिस्ता सहलाने के बाद अपनी उंगली की लम्बाई को उसकी योनि की पूरी दरार के अन्दर फिरानी शुरू कर दी।

“आह्ह्ह! आई रियली लाइक हाउ इट फील्स व्हेन आई रब योर पैंटीज हियर, हनी! दिस इस वेयर दे फील बेस्ट टू मी। तुझे अच्छा लगता है?“

“हा हा... हाँ! उम्म्म्म!!” कहते हुए उसने अपने नितंब मटकाए, जिससे मेरी उंगली ठीक से उसकी दरार में फिट हो जाय।

“आई कैन नॉट स्टॉप फीलिंग यू! इस दैट ओके?”

संध्या हंसी।

“यू कैन फील अस मच अस यू वांट!”

“थैंक्स डिअर!” कह कर मैंने कुछ और दृढ़ता से योनि के ऊपर से दबाना और सहलाना आरम्भ कर दिया।

और फिर, “विल यू लेट मी सी हाउ दिस थिंग अंडर योर पैंटीज फील?” कह कर बिना किसी उत्तर का इंतज़ार किए, मैंने संध्या की चड्ढी के अन्दर हाथ डाल कर, उसकी योनि की दरार की पूरी लम्बाई पर अपनी उंगली सटा कर थोड़ा बल लगाया। योनि के दोनों होंठ खुल गए और उनके बीच मेरी उंगली स्थापित हो गई।

“आह! दिस फील्स सो वार्म... एंड नाइस! डस इट फील गुड टू यू टू?” मैंने पूछा।

संध्या खिलखिला कर हंस पड़ी, “यू आर अ नॉटी बॉय!”

“आई ऍम श्योर दैट इट फील्स गुड एंड सेक्सी बोथ..! आई बेट इट डस!”

“सेक्सी? हाउ?” संध्या भी इस खेल में शामिल हो गई थी।

“हियर! लेट मी चेक..!” कह कर मैंने अपनी उंगली उसकी योनि के अन्दर प्रविष्ट कर दी।

इतनी देर तक सहलाने रगड़ने के बाद अंततः उसकी योनि से रस निकलने ही लग गया था। मैंने अपनी गीली उंगली उसकी योनि से बाहर निकाल कर उसको दिखाया, “सी! हाउ वेट दिस इस? डू यू नो व्हाट इट मीन्स?”
“व्हाट?” संध्या ने अनभिज्ञता दर्शाते हुए पूरे भोलेपन से पूछा।

“इट मीन्स दैट यू फील सेक्सी इनसाइड, यू नॉटी गर्ल!” कह कर मैंने संध्या को नितंब से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और उसकी कमर के गिर्द अपनी बाहें लपेट लीं। संध्या ने भी खड़े खड़े मेरे गर्दन के गिर्द अपनी बाहें लपेट लीं।

“आर यू हविंग फन?” मैंने अपना हाथ वापस संध्या की नम और गर्म गहराई में डालते हुए पूछा।

“यस! हा हा! यू आर फनी!” मेरी किसी हरकत से उसको गुदगुदी हुई होगी..

मैंने कुछ देर सहलाने के बाद उसकी चड्ढी को दोनों तरफ से पकड़ कर धीरे धीरे नीचे की तरफ खींचना शुरू किया, “आई विल टेक दीस क्यूट पैंटीज... अदरवाइज, दे विल गेट वेट! ... इस दैट ओके?”

“ओके” संध्या के ओके कहते कहते उसकी चड्ढी उतर चुकी थी।

मैंने संध्या को अपनी जांघो के आखिरी सिरे पर बैठाया जिससे उसका योनि निरिक्षण किया जा सके। उस तरह बैठने से वैसे ही उसकी जांघे फ़ैल गई थीं, लिहाजा उसका योनि मुख कुछ खुल सा गया और उससे रिसते रस के कारण चमक भी रहा था।

“नाउ लुक अट दैट!” मैंने प्रशंसा करते हुए कहा, “सच अ क्यूट पुसी यू हैव!”

“पुसी? आप इसको बिल्ली कह रहे हैं?” संध्या इस शब्द के नए प्रयोग को समझ नहीं सकी।

“पुसी मीन्स चूत, जानेमन! तेरी चूत बहुत क्यूट है!” मैंने बहुत ही नंगई से यह बात फिर से दोहराई। एक बात तो है, अंग्रेजी में ‘डर्टी-टॉक’ करना बहुत मज़ेदार होता है... न जाने क्यों हिंदी में वही बातें बोलने पर अभद्र सा लगता है! खैर!

“देखो न! कैसे हाईलाइट हो रही है...” दिन भर धुप सेंकने के कारण चड्ढी से ढंका हुआ हिस्सा अभी भी गोरा था, और ऊपर नीचे का बाकी हिस्सा साँवला हो गया था.. इसलिए ऐसा लग रहा था की जैसे अलग से उसकी योनि पर लाइट डाली जा रही हो! मैंने अपने दोनों अंगूठे से उसके होंठों को कुछ और फैलाया और अपनी उंगली को अन्दर के भाग पर फिराया.. और फिर अपनी उंगली को चाट लिया।

“ह्म्म्म... सो वैरी टेस्टी!”

“स्टॉप टीसिंग मी!” संध्या कुनमुनाई।

“यू डोंट बिलीव मी? हियर यू आल्सो टेस्ट योर ओन जूसेस...” कह कर मैंने उसके रिश्ते हुए रस का एक और अंश अपनी उंगली पर लगाया और उसके होंठों के सामने रख दिया, “डोंट बी शाई! लिक इट!”
 
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