रूद्र की खजुराहो वाली उपमा मेरे दिमाग में हमेशा बनी रही। इन्टरनेट और अन्य जगहों से उसके बारे में मैंने बहुत सी जानकारी इकट्ठी कर ली थी.. इसिये जैसे ही रूद्र ने दिसम्बर की छुट्टियाँ मनाने के लिए जगह चुनने की पेशकश करी, मैंने तुरंत ही खजुराहो का नाम ले लिया। रूद्र ने आँख मारते हुए पूछा भी था की
‘जानेमन, क्या चाहती हो? अब क्या सीखना बाकी है?’
उनका इशारा सेक्स की तरफ था, यह मुझे मालूम है.. लेकिन मैंने उनकी सारे तर्क वितर्क को क्षीण कर के अंततः खजुराहो जाने के लिए मना ही लिया। लेकिन रूद्र भी कम चालाक नहीं हैं, उन्होंने चुपके से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को भी हमारी यात्रा में शामिल कर लिया।
खजुराहो के मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का सुन्दर और उत्कृष्ट मिसाल हैं! मंदिरों की दीवारों पर उकेरी विभिन्न मुद्राओं को दिखाती मनोहारी प्रतिमाएँ दुलर्भ शिल्पकारी का उदाहरण हैं। खजुराहो मध्यप्रदेश राज्य में स्थित एक छोटा सा गाँव है। मध्यकाल में उत्तरी भारत के सीमांत प्रदेश पर मुसलमानी आक्रांताओं के अनवरत आक्रमण के कारण बड़गुज्जर राजपूतों ने पूर्व दिशा का रुख किया, और मध्यभारत अपना राज्य स्थापित किया। ये राजपूत महादेव शिव के उपासक थे। उन्हीं शासकों द्वारा नवीं से ग्यारहवीं शताब्दी के बीच खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कराया गया। कहते हैं इन मंदिरों की कुल संख्या पच्चासी थी, जिन्हें आठ द्वारों का एक विशाल परकोटा घेरता था और हर द्वार खजूर के विशाल वृक्ष लगे हुए थे। इसी कारण इस जगह को खजुराहो कहते थे। आज उतनी संख्या में मंदिर नहीं बचे हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों की धर्मान्धता और समय का शिकार हो कर अधिकांश मंदिर नष्ट हो गए हैं। आज केवल बीस-पच्चीस मंदिर ही बचे हैं। हर साल लाखों की संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक खजुराहों आते हैं व यहाँ की खूबसूरती को अपनी स्मृति में कैद कर ले जाते हैं।
खजुराहो के मंदिरों को ‘प्रेम के मंदिर’ भी कहते हैं। कहिये तो इन मंदिरों का इतना प्रचार यहाँ की काम-मुद्रा में मग्न देवी-देवताओं प्रतिमाओं के कारण हुआ है। ध्यान से देखें तो इन मूर्तियों में अश्लीलता नहीं, बल्कि प्रेम, सौंदर्य और सामंजस्य का प्रदर्शन है। खजुराहो के मंदिरों को आम तौर पर कामसूत्र मंदिरों की संज्ञा दी जाती है, लेकिन केवल दस प्रतिशत शिल्पाकृतियाँ ही रतिक्रीड़ा से संबंधित हैं। प्रतिवर्ष कई नव विवाहित जोड़े परिणय सूत्र में बँधकर अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत यही से करते हैं। लेकिन सच तो यह है की न ही कामसूत्र में वर्णित आसनों अथवा वात्स्यायन की काम-संबंधी मान्यताओं और उनके कामदर्शन से इनका कोई संबंध है।
खजुराहो मंदिर तीन दिशाओं में बने हुए हैं - पश्चिम, पूर्व और दक्षिण दिशा में। ज्यादातर मंदिर बलुहा पत्थर के बने हैं। इन पर आकृतियाँ उकेरना कठिन कार्य है, क्योंकि अगर सावधानी से छेनी हथोडी न चलाई जाय, तो यह पत्थर टूट जाते हैं। खजुराहो का प्रमुख एवं सबसे आकर्षक मंदिर है कंदारिया महादेव मंदिर। आकार में तो यह सबसे विशाल है ही, स्थापत्य एवं शिल्प की दृष्टि से भी सबसे भव्य है। समृद्ध हिन्दू निर्माण-कला एवं बारीक शिल्पकारी का अद्भुत नमूना प्रस्तुत करता है यह भव्य मंदिर। बाहरी दीवारों की सतह का एक-एक इंच हिस्सा शिल्पाकृतियों से ढंका पड़ा है। कंदरिया’ - कंदर्प का अपभ्रंश! कंदर्प यानी कामदेव! सचमुच इन मूर्तियों में काम और ईश्वर दोनों की तन्मयता की चरम सीमा देखी जा सकती है... भावाभिभूत करने वाली कलात्मकता! सुचित्रित तोरण-द्वार पर नाना प्रकार के देवी-देवताओं, संगीत-वादकों, आलिंगन-बद्ध युग्म आकृतियों, युद्ध एवं नृत्य, राग-विराग की विविध मुद्राओं का अंकन हुआ है। अन्दर की तरफ मंडपों की सुंदरता मन मोह लेती है। बालाओं की कमनीय देह की हर भंगिमा, और हर भाव का मनोरम अंकन हुआ है। उनके शरीर पर सजे एक-एक आभूषण की स्पष्ट आकृति शिल्पकला के कौशल को दर्शाती है। स्पंदन, गति, स्फूर्ति सब जैसे गतिमान और जीवंत से लगते हैं! मैं एकटक उन मूर्तियों को देखती रही!
मंदिर के गर्भगृह में संगमरमर का शिवलिंग स्थापित है, और उसकी दीवारों पर परिक्रमा करने वाले पथ पर मनोरम शिल्पाकृतियाँ बनी हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर चारों दिशाओं में देवी-देवताओं, देवदूतों, यक्ष-गंधर्वों, अप्सराओं, किन्नरों आदि का चित्रण किया गया है। सीढ़ी सादी भाषा में कहें तो खजुराहो मंदिर, ख़ास तौर पर कंदरिया महादेव मंदिर हिन्दू शिल्प और स्थापत्य कला का संग्रहालय है। शिल्प की दृष्टि से देश के अन्य सारे निर्माण बौने हैं! मैं इन मंदिर को देखते हुए मैं बार-बार अभिभूत हो रही थी। मंत्रमुग्ध सी निहार रही थी!
विशालता और शिल्प-वैभव में कंदरिया महादेव का मुकाबला करते लक्ष्मण मंदिर है। इसके प्रांगन में चारों कोनों पर बने उपमंदिर आज भी हैं। इस मंदिर के प्रवेश-द्वार के शीर्ष पर भगवती महालक्ष्मी की प्रतिमा है। उसके बाएँ स्तम्भ पर ब्रह्मा एवं दाहिने पर शिव की मूर्तियाँ हैं। गर्भगृह में भगवान विष्णु की लगभग चार फुट ऊँची प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में आप नरसिंह और वाराह अवतारों का रूप देख सकते हैं। मंदिर की दीवारों पर विष्णु के दशावतारों, अप्सराओं, आदि की आकृतियों के साथ-साथ प्रेमालाप, आखेट, नृत्य, मल्लयुद्ध एवं अन्य क्रीड़ाओं का अंकन किया गया है।
दिन भर इन मंदिरों का भ्रमण करने, थोड़ी बहुत खरीददारी करने और रात का साउंड एंड लाइट शो देखने के बाद जब हम वापस आये तो बहुत थक गए थे! सच कहूं, तो यहाँ आने को लेकर रूद्र मेरी अपेक्षा कम उत्साहित थे। हमने कमरे में ही माँगा लिया और खाना खा पीकर जब हम बिस्तर पर लेटे तो दिमाग में इस जगह के शासकों – चंदेल राजपूतों की उत्पत्ति की कहानी याद आने लगी। चंदेल राजा स्वयं को चन्द्रमा की संतान कहते थे। कहानी कुछ ऐसी है - बनारस के राजपुरोहित की विधवा बेटी हेमवती बहुत सुंदर थी.... अनुपम रूपवती! एक रात जब वह एक झील में नहा रही थी तो उसकी सुंदरता से मुग्ध होकर चन्द्रमा धरती पर उतर आया और हेमवती के साथ संसर्ग किया। हेमवती और चंद्रमा के इस अद्भुत मिलन से जो संतान उत्पन्न हुई उसका नाम चन्द्रवर्मन रखा गया, जो चंदेलों के प्रथम राजा थे।
कहानी अच्छी है, और प्रेरणादायी भी! प्रेरणा किस बात की? अरे, क्या अब यह भी बताना पड़ेगा?
“जानू?”
“ह्म्म्म?”
“हेमवती और चन्द्रमा वाला खेल खेलें?”
“नेकी और पूछ पूछ! लेकिन सेटअप सही होना चाहिए!”
“अच्छा जी! मैंने तो मजाक किया था, लेकिन आप तो सीरियस हो गए!” मैंने ठिठोली करी।
रूद्र ने खिड़की खोल दी। चांदनी रात तो खैर नहीं थी, लेकिन चांदनी की कमी भी नहीं थी। उसके साथ साथ ठंडी हवा भी अन्दर आ रही थी। लेकिन, अगर शरीर में गर्मी हो, तो इससे क्या फर्क पड़ता है? सोते समय मैंने शिफॉन की नाइटी पहनी हुई थी – इसका सामने (मेरे स्तनों पर) वाला हिस्सा जालीदार था। उसकी छुवन और ठंडी हवा से मेरे निप्पल लगभग तुरंत ही तीखे नोकों में परिवर्तित हो गए। रूद्र के कहने पर मैं खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गई - क्षण भर को मुझे जाने क्यों लगा की मैं वाकई हेमवती हूँ, वाराणसी के उसी ब्राह्मण पंडित की पुत्री! खुली खिड़कियों से आती हुई चांदनी हमारे कमरे को मानो सरोवर में तब्दील किये जा रही थी और मैं चंद्रमा की किरणों में नहा रही थी, अंग-अंग डूबी हुई। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं!
‘न जाने कितनी स्त्रियों को यह अनुभव हुआ हो!’
मैंने मुड़ कर रूद्र को देखा – वो भी तल्लीन होकर चांदनी में नहाए मेरे रूप का अनवरत अवलोकन कर रहे थे।
‘बॉडी लाइक खजुराहो इडोल्स!’
मैं धीरे धीरे खजुराहो की सपनीली दुनिया की नायिका बनती जा रही थी। राग-रंग से भरी हुई... आत्मलीन नायिका! मुझे लगा जैसे की मेरा शरीर किसी कसे हुये वीणा की तरह हो गया हो – उंगली से छेड़ते ही न जाने कितने राग निकल पड़ेंगे! मन अनुरागी होने लगा। क्या यह बेचैनी खजुराहो की थी? लगता तो नहीं! रूद्र तो हमेशा साथ ही रहते हैं, लेकिन आज वाली प्यास तो बहुत भिन्न है! न जाने कैसे, रूद्र के लिये मानो मेरी आत्मा तड़पती है, शरीर कम्पन करता है... अब यह सब सिवाय प्यार के और क्या है?
“कब तक यूँ ही देखेंगे?”
“पता नहीं कब तक! तुम वाकई खजुराहो की देवी लग रही हो! ये गोल, कसे और उभरे हुए स्तन, पतली कमर, उन्नत नितंब! ...बिलकुल सपने में आने वाली एक परी जैसी!”
“अच्छा... आपके सपने में परियां आती हैं?” तब तक रूद्र ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया।
वो मुझे बहुत प्यार से देख रहे थे – आँखों में वासना तो थी, लेकिन प्यार से कम! उनकी आँखों में मेरा अक्स! उनकी आँखों के प्रेम में नहाया हुआ मेरा शरीर! सचमुच, मैं हेमवती ही तो थी!
रूद्र ने क्या कहा मुझे सुनाई नहीं दिया – बस उनके होंठ जब मेरे होंठों से मिले, तो जैसे शरीर में बिजली सी दौड़ गई! मैं चुपचाप देखती हूँ की वो कैसे मेरे हर अंग को अनावृत करते जाते हैं, और चूमते जाते हैं। बस कुछ ही पलों में मैं अपने सपनों के अधिष्ठाता के साथ एक होने वाली थी।
‘बस कुछ ही पलों में....’
रूद्र मेरे निप्पलों को बारी बारी मुंह में भर कर चूस, चबा, मसल और काट रहे थे। मेरी साँसे तेजी से चलने लगीं। मेरा पूरा शरीर कसमसाने लगा। आज रूद्र कुछ अधिक ही बल से मेरे स्तन दबा रहे थे – ऐसा कोई असह्य नहीं, लेकिन हल्का हल्का दर्द होने लगा।
“अआह्ह्ह! आराम से...”
"हँ?" रूद्र जैसे किसी तन्द्रा से जागे!
“आराम से जानू... आह!”
“आराम से? तू इतनी सेक्सी लग रही है... आज तो इनमें से दूध निचोड़ लूँगा!” कह कर उन्होंने बेरहमी से एक बार फिर मसला।
"आऊ! अगर... इनमें... दूध होता... तो आपको... मज़ा... आआह्ह्ह्ह! आता?" मैंने जैसे तैसे कराहते हुए अपनी बात पूरी करी। मैं अन्यमनस्क हो कर उनके बालों में अपनी उँगलियाँ फिरा रही थी।
उन्होंने एक निप्पल को मुंह में भर कर चूसते हुए हामी में सर हिलाया। कुछ देर और स्तन मर्दन के बाद मेरी दर्द और कामुकता भरी सिसकियाँ निकलने लगी। लोहा गरम हो चला था... लेकिन रूद्र फोरप्ले में बिजी हैं!
“अब... बस...! आह! अब अपना ... ओह! लंड.. डाल दो! प्लीज़! आऊ! अब न... अआह्ह्ह! सताओ...!”
रूद्र जैसे बहरे हो गए थे। अब वो धीरे-धीरे चूमता हुए मेरे पेट की तरफ आ कर मेरी नाभि को चूमने, चूसने और जीभ की नोक से छेड़ने लगे, दूसरे हाथ से वो मेरी योनि का जायजा लेने लगे। और फिर अचानक ही, उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठाया और लाकर बिस्तर पर पटक दिया। कपड़े मेरे तो न जाने कब उतर चुके थे... रूद्र के कहने पर मैंने अपनी योनि पर से बाल हटवा लिए थे – स्थाई रूप से! रूद्र अभी पूरी तन्मयता के साथ बेतहाशा मेरी योनि को पागलों की तरह चूस रहे थे। अपनी जीभ यथासंभव अन्दर घुसा घुसा कर मेरा रस पी रहे थे। मैं बेचारी क्या करती? मैं आनन्द के मारे आँखें बंद करके मजा ले रही थी, और इस बात पर कुढ़ भी रही थी की अभी तक उन्होंने लिंग क्यों नहीं घुसाया। अब मुझसे सहन नहीं हो पा रहा था।
जैसे रूद्र ने मेरे मन की बात सुन ली हो – उन्होंने योनि चूसना छोड़ कर एक बार मेरे होंठों पर एक चुम्बन लिया और फिर खुद भी निर्वस्त्र हो कर मुख्य कार्य के लिए तैयार हो गए। रूद्र ने एक झटके के साथ ही पूरा का पूरा मूसल मेरे अन्दर ठेल दिया – मेरी उत्तेजना चरम पर थी, इसलिए आसानी से सरकते हुए अन्दर चला गया। उत्तेजना जैसे मेरे वश में ही नहीं थी - मैंने नीचे देखा – मेरी योनि की मांसपेशियों ने लिंग-स्तम्भ को बहुत जोर से जकड़ रखा था। रूद्र ने हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। और मैं मुँह भींचे, उनके लिंग की चोटों को झेल रही थी।
मैंने कहा, “आप तेज-तेज करो... जितनी तेज कर पाओ.. आह!”
रूद्र ने अपनी गति बढ़ा दी और तेज़-तेज़ झटके मारने लगे। जाहिर सी बात है, इतनी तेज गति से सेक्स करने पर हमेशा जैसा मैराथन संभव नहीं था। उनकी गति और भी तेज हो गई थी, क्योंकि मैं भी अपनी कमर हिला-हिला कर उनका साथ दे रही थी। आख़िरकार एक झटके के साथ रूद्र का ढेर सारा वीर्य मेरे अन्दर भर गया। जब वो पूरी तरह से निवृत्त हो गए तो हम दोनों लिपट गए।
मैंने उनको चूमते हुए कहा, “बाहर मत निकलना!”
रूद्र उसी तरह मुझे अपने से लपेटे लेटे रहे और बातें करते रहे। अंततः, उनका लिंग पूरी तरह से सिकुड़ कर बाहर निकल गया। मैं उठा कर बाथरूम गई, और साफ़ सफाई कर के रूद्र के साथ रजाई के अन्दर घुस गई।
“मैं आपसे एक बात कहूं? ... उम्म्म एक नहीं, दो बातें?”
“अरे, अब आपको अपनी बात कहने से पहले पूछना पड़ेगा?”
“नहीं.. वो बात नहीं है.. लेकिन बात ही कुछ ऐसी है!”
“ऐसा क्या? बताओ!”
“आपने एक बार मुझे कहा था न.. की अगर मेरे पास कोई बिज़नस आईडिया होगा, तो आप मेरी हेल्प करेंगे?”
“हाँ.. और यह भी कहा था की आईडिया दमदार होना चाहिए... कुछ है क्या दिमाग में?”
“है तो... आप सुन कर बताइए की बढ़िया है या नहीं?”
“मैं सुन रहा हूँ...”
“एक फैशन हाउस, जिसमे ट्रेडिशनल से इंस्पायर हो कर कंटेम्पररी जेवेलरी मिलें? खजुराहो ओर्नामेंट्स! कैसा लगा नाम? पुरानी मूर्तियों, और चित्रों से प्रेरणा लेकर नए प्रकार के गहने? मेटल, वुड, स्टोन, और बोंस – इन सबसे बना हुआ? क्या कहते हैं? कॉम्प्लिमेंटरी एक्सेसोरीस, जैसे स्टोल, बेल्ट्स, और बैग्स भी रख सकते हैं!”
“ह्म्म्म... इंटरेस्टिंग!” रूद्र ने रूचि लेटे हुए कहा... “अच्छा आईडिया तो लग रहा है.. इस पर कुछ रिसर्च करते हैं। एक स्टोर के साथ साथ इन्टरनेट पर भी बेच सकते हैं... ठीक है... मुझे और पता करने दो, और इस बीच में अपने इस आईडिया को और आगे बढाओ... ओके? हाँ, अब दूसरी बात?”
“दूसरी बात... उम्म्म.. कैसे कहूं आपसे..!”
“अरे! मुझसे नहीं, तो फिर किससे कहोगी?” रूद्र ने प्यार से चूमते हुए कहा।
मैं मुस्कुराई, “मुझे इनमें,” कहते हुए मैंने रूद्र का हाथ अपने एक स्तन पर रखा, “दूध चाहिए...”
“हैं? वो कैसे होगा?”
“अरे बुद्धू... मैं माँ बनना चाहती हूँ...”