पूरी रात मुझे नींद नहीं आई... मुझे क्या, संध्या को भी रह रह कर नींद आई।
मुझे डर लग रहा था की कहीं नींद की कमी से उसका अगले दिन का एक्साम न गड़बड़ हो जाय.. लेकिन संध्या ने मुझे दिलासा दिया की वो भी ख़ुशी के कारण नहीं सो पा रही है। और इससे एक्साम पर असर नहीं पड़ेगा। मैंने अगले दिन से ही संध्या का और ज्यादा ख़याल रखना शुरू कर दिया – बढ़िया डॉक्टर से सलाह-मशविरा, खाना पीना, व्यायाम, और ज्यादा आराम इत्यादि! डॉक्टर संध्या की शारीरिक हालत देख कर बहुत खुश थी, और उसने संध्या को अपनी दिनचर्या बरकरार रखने को कहा – बस इस बात की हिदायद दी की वो कोई ऐसा श्रमसाध्य काम या व्यायाम न करे, जिसमे बहुत थकावट हो जाय। उन्होंने मुझे कहा की मैं संध्या को ज्यादा से ज्यादा खुश रखूँ। उन्होंने यह भी बताया की क्योंकि संध्या की सेहत बढ़िया है, इसलिए सेक्स करना ठीक है, लेकिन सावधानी रखें जिससे गर्भ पर अनचाहा चोट न लगे। उन्होंने यह भी कहा की इस दौरान संध्या बहुत ‘मूडी’ हो सकती है, इसलिए उसको हर तरह से खुश रखना ज़रूरी है। मुझे यह डॉक्टर बहुत अच्छी लगी, क्योंकि उन्होंने हमको बिना वजह डराया नहीं और न कोई दवाई इत्यादि लिखी। गर्भधारण एक सहज प्राकृतिक क्रिया है, कोई रोग नहीं। बस उन्होंने समय समय पर जांच करने और कुछ सावधानियां लेने की सलाह दी।
हमने जब उसके घर में यह इत्तला दी, तो वहाँ भी सभी बहुत प्रसन्न हुए। उसकी माँ संध्या को मायके बुलाना चाहती थीं, लेकिन संध्या ने उनको कहा की मैं उसका खूब ख़याल रखता हूँ, और बैंगलोर में देखभाल अच्छी है। इसलिए वो यहीं रहेगी, लेकिन हाँ, वो बीच में एक बार मेरे साथ उत्तराँचल आएगी। नीलम यह खबर सुन कर बहुत ही अधिक उत्साहित थी। इसलिए संध्या ने उसको अपनी गर्मी की छुट्टियाँ बैंगलोर में मनाने को कहा। नीलम का अप्रैल के अंत में बैंगलोर आना तय हो गया। मुझे इसी बीच तीन हफ़्तों के लिए यूरोप जाना पड़ा – मन तो बिलकुल नहीं था, लेकिन बॉस ने कहा की अभी जाना ठीक है, बाद में कोई ट्रेवल नहीं होगा। यह बात एक तरह से ठीक थी, लेकिन मन मान नहीं रहा था। खैर, मैंने जाने से पहले संध्या की देखभाल के सारे इंतजाम कर दिए थे और देवरामनी दंपत्ति से विनती करी थी की वो ज़रुरत होने पर संध्या की मदद कर दें। इसके उत्तर में मुझे लम्बा चौड़ा भाषण सुनना पड़ा की संध्या उनकी भी बेटी है, और मैंने यह कैसे सोच लिया की मुझे उनको उसकी देखभाल करने के लिए कहना पड़ेगा? संध्या के एक्साम अप्रैल के मध्य में ख़तम हो गए, और अप्रैल ख़तम होते होते मैं भी बैंगलोर वापस आ गया।
जब घर का दरवाज़ा खुला तो मुझे लगा की जैसे मेरे सामने कोई अप्सरा खड़ी हुई है! मैं एक पल को उसे पहचान ही नहीं पाया।
"संध्या! आज तुम कितनी सुन्दर लग रही हो।"
"आप भी ना..." संध्या ने शर्माते हुए कहा।
संध्या तो हमेशा से ही सुन्दर थी, लेकिन गर्भावस्था के इन महीनों में उसका शरीर कुछ ऐसे बदल गया जैसे किसी सिद्धहस्थ मूर्तिकार ने फुर्सत से उसे तराशा हो। बिलकुल जैसे कोई अति सुन्दर खजुराहो की मूरत! सुन्दर, लावण्य से परिपूरित मुखड़ा, गुलाबी रसीले होंठ, मादक स्तन (स्पष्ट रूप से उनका आकार बढ़ गया था), सुडौल-गोल नितंब, और पेट के सामने सौम्य उभार! हमारा बच्चा! और इन सबके ऊपर, एक प्यारी-भोली सी सूरत। आज वह वाकई रति का अवतार लग रही थी। और हलके गुलाबी साड़ी-ब्लाउज में वह एकदम क़यामत ढा रही थी। मैंने भाग कर बिना कोई देर किये अपना कैमरा निकला और संध्या की ना-नुकुर के बावजूद उसकी कई सारी तस्वीरें उतार लीं। मैंने मन ही मन निर्णय लिया की अब से गर्भावस्था के हर महीने की नग्न तस्वीरें लूँगा... बुढापे में साथ में याद करेंगे!
तीन हफ्ते हाथ से काम चलाने के बाद मैं भी संध्या के साथ के लिए व्याकुल था। मैंने संध्या के मुख को अपने हाथों में ले कर उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए। संध्या तुरंत ही मेरा साथ देने लगती है : मैं मस्त होकर उसके मीठे होंठ और रस-भरे मुख को चूसने लगता हूँ। ऐसे ही चूमते हुए मैं उसकी साड़ी उठाने लगता हूँ। संध्या भी उत्तेजित हो गई थी - उसकी सांसे अब काफी तेज चल रही थीं। उन्माद में आकर उसने मुझे अपनी बाहों में जकड लिया। चूमते हुए उसकी सांसो की कामुक सिसकियां मुझे अपने चेहरे पर महसूस होने लगीं। मै इस समय अपने एक हाथ से उसकी नंगी जांघ सहला रहा था। इस पर संध्या ने चुम्बन तोड़ कर कहा,
“जानू, बेड पर चलते हैं?”
मैंने इस बात पर उसको अपनी दोनों बाहों में उठा लिया और उसको चूमते हुए बेडरूम तक ले जाकर, पूरी सावधानी से बिस्तर पर लिटा दिया। अब मैं आराम से उसके बगल लेट कर उसको चूम रहा था – अत्यधिक घर्षण, चुम्बन और चूषण से उसके होंठ सुर्ख लाल रंग के हो गए थे। हम दोनों के मुँह अब तक काफी गरम हो गए थे, और मुँह ही क्या, हमारे शरीर भी!
मैंने संध्या की साड़ी पूरी उठा दी – आश्चर्य, उसने नीचे चड्ढी नहीं पहनी हुई थी। मैंने उसको छेड़ने के लिए उसकी योनि के आस-पास की जगह को देर तक सहलाता रहा – कुछ ही देर में वो अपनी कमर को तड़प कर हिलाने लगी। वह कह तो कुछ भी नहीं रही थी, लेकिन उसके भाव पूरी तरह से स्पष्ट थे – “मेरी योनि को कब छेड़ोगे?”
पर मैं उसकी योनि के आस पास ही सहला रहा था, साथ ही साथ उसको चूम रहा था। संध्या की योनि में अंतर दिख रहा था – रक्त से अतिपूरित हो चले उसके योनि के दोनों होंठ कुछ बड़े लग रहे थे। संभव है की वो बहुत संवेदनशील भी हों! उसका योनि द्वार बंद था, लेकिन आकार बड़ा लग रहा था। अंततः मैंने अपनी जीभ को उसकी योनि से सटाया और जैसे ही अपनी जीभ से उसे कुरेदा, तो उसकी योनि के पट तुरंत खुल गए। अंदर का सामान्यतः गुलाबी हिस्सा कुछ और गुलाबी हो गया था। यह ऐसे तो कोई नई क्रिया नहीं थी – मुख मैथुन हमारे लिए एक तरह से सेक्स के दौरान होने वाला ज़रूरी दस्तूर हो गया था.. लेकिन गर्भवती योनि पर मौखिक क्रिया काफी रोचक लग रही थी। कुछ देर संध्या की योनि को चूमने चाटने के बाद,
“जानू, तेरी चूत तो क्या मस्त लग रही है... देखो, फूल कर कैसी कुप्पा हो गई है!”
“आह्ह्ह! छी! कैसे गन्दी बात बोल रहे हैं! बच्चा सुनेगा तो क्या सीखेगा? जो करना है चुपचाप करिए!” मीठी झिड़की!
“गन्दी बात क्या है? चूत का मतलब है आम! ये भी तो आम जैसी रसीली हो गई है..”
“हाँ जी हाँ! सब मालूम है मुझे आपका.. आप अपनी शब्दावली अपने पास रखिए.. ऊह्ह्ह!” मैंने जोर से उसके भगनासे को छेड़ा।
साड़ी का कपड़ा हस्तक्षेप कर रहा था, इसलिए मैंने उठ कर संध्या का निचला हिस्सा निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उसकी साड़ी और पेटीकोट दोनों ही उसके शरीर से अलग हो गए।
“इतनी देर तक, इतनी मेहनत करने के बाद मैंने साड़ी पहनी थी... एक घंटा भी शरीर पर नहीं रही..” संध्या ने झूठा गुस्सा दिखाया।
“अच्छा जी, मुझे लगा की तुमको नंगी रहना अच्छा लगता है!”
“मुझे नहीं... वो आपको अच्छा लगता है!”
“हाँ... वो बात तो है!” कह कर मैंने उसकी ब्लाउज के बटन खोलने का उपक्रम किया। कुछ ही पलों में ब्लाउज संध्या की छाती से अलग हो गई। संध्या ने नीचे ब्रा नहीं पहनी थी। मैंने एक पल रुक कर उसके बदले हुए स्तनों को देखा – संध्या की नज़र मेरे चेहरे पर थी, मानो वो मेरे हाव भाव देखना चाहती हो। गर्भाधान के पहले संध्या के स्तनाग्र गहरे भूरे रंग के थे, और बेहद प्यारे लगते थे। इस समय उनमें हल्का सा कालापन आ गया था – आबनूस जैसा रंग! और areola का आकार भी कुछ बढ़ गया था। सच कहता हूँ, किसी और समय ऐसा होता तो निराशा लगती, लेकिन इस समय उसके स्तन मुझे अत्यंत आकर्षक लग रहे थे। प्यारे प्यारे स्तन!
“ब्यूटीफुल!” कह कर मैंने अपने मुँह से लपक कर उसके एक निप्पल को दबोच लिया और उत्साह से उसको पीने लगा। संध्या आह-आह कर के तड़पने लगी और मेरे बालों को कस के पकड़ने लगी।
“आह.. जानू जानू.. इस्स्स्स! दर्द होता है.. धीरे आह्ह... धीरे!” वो बड़बड़ा रही थी।
“स्स्स्स धीरे धीरे कैसे करूँ? कितनी सुन्दर चून्चियां हैं तेरी..” कह कर मैंने उसके स्तनाग्र बारी बारी से दाँतों के बीच लेकर काटने लगा।
“मैं तो इनमें से दूध की एक एक बूँद चूस लूँगा!”
“जानू! सच में.. आह! दर्द होता है.. कुछ रहम करो.. उफ़!”
संध्या ने ऐसी प्रतिक्रिया कभी नहीं दी.. सचमुच उसको दर्द हो रहा होगा। मैंने उसके स्तनों को इस हमले से राहत दी। संध्या दोनों हाथों से अपने एक एक स्तन थाम कर राहत की सांसे भरने लगी, और कुछ देर बाद बोली,
“अब आप इन पर सेंधमारी करना बंद कीजिए.. हमारे होने वाले बच्चे की डेयरी है यहाँ!”
“हैं? क्या मतलब? मेरा पत्ता साफ़? इतना बड़ा धोखा!!”
“ही ही ही...” संध्या खिलखिला कर हंस पड़ी, “अरे बाबा! नहीं.. ऐसा मैंने कब कहा? सब कुछ आप का ही तो है... लेकिन एक साल तक आप दूसरे नंबर पर हैं... आप भी दूध पीना.. लेकिन हमारे बच्चे के बाद! समझे मेरे साजन?” कह कर उसने दुलार से मेरे बालों में हाथ फिराया।
“बस.. एक ही साल तक पिलाओगी?”
“हाँ.. उसको बस एक साल... लेकिन उसके पापा को, पूरी उम्र!”
“हम्म... तो अब मुझे जूनियर की जूठन खानी पड़ेगी..”
“न बाबा... खाना नहीं.. बस पीना...”
संध्या की बात पर हम दोनों खुल कर हंसने लगे।
“ठीक है... मम्मी की चून्चियां नहीं तो चूत ही सही..” कह कर मैंने संध्या की योनि पर हमला किया।
“जानू...!” संध्या चिहुंक उठी, “लैंग्वेज! ... बिलकुल बेशरम हो!”