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Romance कायाकल्प [Completed]

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mashish

BHARAT
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मुझसे मेरे दोस्त अक्सर पूछते हैं की मैं और रूद्र कब मिले, कैसे मिले.. शादी के बाद का प्यार कैसा होता है, कैसे होता है... आदि आदि! उनको इसके बारे में बताते हुए मुझे अक्सर लगता की कभी मैं और रूद्र एक साथ बैठ कर इसके बारे में बात करेंगे और पुरानी यादें ताज़ा करेंगे! अभी दो दिन पहले मैं रेडियो (ऍफ़ एम) पर एक बहुत पुराना गीत सुन रही थी – हो सकता है की आप लोगों में भी कई लोगों ने सुना हो!

और आज घर वापस आकर मैंने जैसे ही रेडियो चलाया, फिर वही गाना आने लगा:

'चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाएँ हम दोनों!'

मेरे ख़याल से यह दुनिया के सबसे रोमांटिक दस बारह गानों में से एक होगा...!

मुझे पता है की अब आप मुझसे पूछेंगे की संध्या, आज क्या ख़ास है जो रोमांटिक गानों की चर्चा हो रही है? तो भई, आज ख़ास बात यह है की आज रूद्र और मेरी शादी की दूसरी सालगिरह है! जी हाँ – दो साल हो गए हैं! इस बीच में मैंने इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की, और कुछ इस कारण से और कुछ रूद्र की जान-पहचान के कारण से मुझे बैंगलोर के काफी पुराने और जाने माने कॉलेज में दाखिला मिल गया। आज मैं बी. ए. द्वितीय वर्ष की छात्रा हूँ, और समाज विज्ञान की पढाई कर रही हूँ। शुरू शुरू में यह सब बहुत ही मुश्किल था – लगता था की कहाँ आ फंसी! इतने सारे बदलाव! अनवरत अंग्रेज़ी में ही बोल चाल, नहीं तो कन्नड़ में! मेरी ही हम उम्र लड़कियाँ मेरी सहपाठी थीं... लेकिन उनमे और मुझमे कितना सारा अंतर था! कॉलेज के गेट के अन्दर कदम रखते ही नर्वस हो जाती। दिल धाड़ धाड़ कर के धड़कने लगता। लेकिन रूद्र ने हर पल मुझे हौसला दिया – मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक! हर प्रकार का! वो अपने काम में अत्यधिक व्यस्त होने के बावजूद मुझसे मेरे विषयों के बारे में चर्चा करते, जब बन पड़ता तो पढ़ाते (वैसे हमारे पड़ोसियों ने मुझे पढ़ाने में बहुत सहयोग दिया है.. आज भी मैं श्रीमति देवरामनी की शरण में ही जाती हूँ, जब भी कहीं फंसती हूँ)। और तो और, सहेलियां भी बहुत उदार और दयालु किस्म की थीं – वो मेरी हर संभव मदद करतीं, मुझे अपने गुटों में शामिल करतीं, अपने घर बुलातीं और यथासंभव इन नई परिथितियों में मुझे ढलने के लिए प्रोत्साहन देतीं।

इसका यह लाभ हुआ की मेरी क्लास के लगभग सभी सहपाठी मेरे मित्र बन गए थे। शिक्षक और शिक्षिकाएँ भी मेरी प्रगति में विशेष रूचि लेते। वो सभी मुझे ‘स्पेशल स्टूडेंट’ कह कर बुलाते थे। मैंने भी अपनी तरफ से कोई कोर कसार नहीं छोड़ी हुई थी – मैं मन लगा कर पढ़ती थी, और मेरी मेहनत का नतीजा भी अच्छा आ रहा था। कहने की कोई ज़रुरत नहीं की मुझे अपना नया कॉलेज बहुत पसंद आया...। नीलम के लिए भी रूद्र और मैंने अपने प्रिंसिपल से बात करी थी। उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया था की अगर नीलम में प्रतिभा है, तो वो उसे अवश्य दाखिला देंगे। नीलम इस बार इंटरमीडिएट का एक्साम् लिखेगी, और उसके बाद रूद्र उसको भी बैंगलोर ही लाना चाहते हैं, जिससे उसकी पढाई अच्छी जगह हो सके।

आप लोग अब इस बात की शिकायत न करिए की कहानी से दो साल यूँ ही निकाल दिए, बिना कुछ कहे सुने! इसका उत्तर यह है की अगर लोग खुश हों तो समय तो यूँ ही हरहराते हुए निकल जाता है। और रोज़मर्रा की बातें लिख के आपको क्या बोर करें? अब यह तो लिखना बेवकूफी होगा की ‘जानू, आज क्या खाना बना है?’ या फिर, ‘आओ सेक्स करें!’ ‘आओ कहीं घूम आते हैं.. शौपिंग करने!’ इत्यादि! यह सब जानने में आपको क्या रूचि हो सकती है भला?

इतना कहना क्या उचित नहीं की यह दो साल तो न जाने कैसे गुजर गए?

व्यस्तता इतनी है की अब उत्तराँचल जाना ही नहीं हो पाता! इंटरमीडिएट की परीक्षा देने के बाद सिर्फ दो बार ही जा पाई, और रूद्र तो बस एक बार ही जा पाए! उनको इस बीच में दोहरी पदोन्नति मिली है। जाहिर सी बात है, उनके पास समय की बहुत ही कमी हो गई है... लेकिन यह उन्ही का अनुशासन है, जिसके कारण न केवल मैं ढंग से पढाई कर पा रही हूँ, बल्कि सेहत का भी ढंग से ख़याल रख पा रही हूँ। सुबह पांच बजे उठकर, नित्यक्रिया निबटा कर, हम दोनों दौड़ने और व्यायाम करने जाते हैं। वहाँ से आने के बाद नहा धोकर, पौष्टिक भोजन कर के वो मुझे कॉलेज छोड़ कर अपने ऑफिस चले जाते हैं। मेरे वापस आते आते काम वाली बाई आ जाती है, जो घर का धोना पोंछना और खाना बनाने का काम कर के चली जाती है। मैं और कभी कभी रूद्र, सप्ताहांत में ही खाना बनाते हैं.. व्यस्त तो हैं, लेकिन एक दूसरे के लिए कभी नहीं!

उधर पापा ने बताया की खेती में इस बार काफी लाभ हुआ है – उन्होंने पिछली बार नगदी फसलें बोई थीं, और कुछ वर्ष पहले फलों की खेती भी शुरू करी थी। इसका सम्मिलित लाभ दिखने लग गया था। रूद्र ने अपने जान-पहचान से तैयार फसल को सीधा बेचने का इंतजाम किया था.. सिर्फ पापा के लिए नहीं, बल्कि पूरे कसबे में रहने वाले किसानो के लिए! बिचौलियों के कट जाने से किसानो को ज्यादा लाभ मिलना स्वाभाविक ही था। अगले साल के लिए भी पूर्वानुमान बढ़िया था।

खैर, तो मैं यह कह रही थी, की इस गाने में कुछ ख़ास बात है जो मुझे रूद्र से पहली बार मिलने, और हमारे मिलन की पहली रात की याद दिलाती है। सब खूबसूरत यादें! रूद्र ने वायदा किया था की वो आज जल्दी आ जायेंगे – अगले दो दिन तो शनिवार और रविवार हैं... इसलिए कहीं बाहर जाने का भी प्रोग्राम बन सकता है! उन्होंने मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया। लेकिन उनका जल्दी भी तो कम से कम पांच साढ़े-पांच तो बजा ही देता है!

मैं कुर्सी पर आँखें बंद किए, सर को कुर्सी के सिरहाने पर टिकाये रेडियो पर बजने वाले गानों को सुनती रही। और साथ ही साथ रूद्र के बारे में भी सोचती रही। इन दो सालों में उनके कलम के कुछ बाल सफ़ेद हो (पक) गए हैं.. बाकी सब वैसे का वैसा ही! वैसा ही दृढ़ और हृष्ट-पुष्ट शरीर! जीवन जीने की वैसी ही चाहत! वैसी ही मृदुभाषिता! कायाकल्प की बात करते हैं.. इससे बड़ी क्या बात हो सकती है की उन्होंने अपने चाचा-चाची को माफ़ कर दिया। उनके अत्याचारों का दंड तो उनको तभी मिल गया जब उनके एकलौते पुत्र की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गई। जब रूद्र को यह मालूम पड़ा, तो वो मुझे लेकर अपने पैत्रिक स्थान गए और वहाँ उन दोनों से मुलाकात करी।

अभी कोई आठ महीने पहले की ही तो बात है, जब रूद्र को किसी से मालूम हुआ की उनके चचेरे भाई की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गई। रूद्र ने यह सुनते ही बिना एक मिनट देर किये भी उन्होंने मेरठ का रुख किया। हम दोनों ही लोग गए थे – उस दिन मैंने पहली बार इनके परिवार(?) के किसी अन्य सदस्य को देखा था। इनके चाचा की उम्र लगभग साठ वर्ष, औसत शरीर, सामान्य कद, गेहुंआ रंग... देखने में एक साधारण से वृद्ध पुरुष लग रहे थे। चाची की उम्र भी कमोवेश उतनी ही रही होगी.. दोनों की उम्र कोई ऐसी ख़ास ज्यादा नहीं थी.. लेकिन एकलौते पुत्र और एकलौती संतान की असामयिक मृत्यु ने मानो उनका जीवन रस निचोड़ लिया था। दुःख और अवसाद से घिरे वो दोनों अपनी उम्र से कम से कम दस साल और वृद्ध लग रहे थे।

उन्होंने रूद्र को देखा तो वो दोनों ही उनसे लिपट कर बहुत देर तक रोते रहे... मुझे यह नहीं समझ आया की वो अपने दुःख के कारण रो रहे थे, या अपने अत्याचारों के प्रायश्चित में या फिर इस बात के संतोष में की कम से कम एक तो है, जिसको अपनी संतान कहा जा सकता है। कई बार मन में आता है की लोग अपनी उम्र भर न जाने कितने दंद फंद करते हैं, लेकिन असल में सब कुछ छोड़ कर ही जाना है। यह सच्चाई हम सभी को मालूम है, लेकिन फिर भी यूँ ही भागते रहते हैं, और दूसरों को तकलीफ़ देने में ज़रा भी हिचकिचाते नहीं।

रूद्र को इतना शांत मैंने इन दो सालों में कभी नहीं देखा था! उनके मन में अपने चाचा चाची के लिए किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था, और न ही इस बात की ख़ुशी की उनको सही दंड मिला (एकलौते जवान पुत्र की असमय मृत्यु किसी भी अपराध का दंड नहीं हो सकती)! बस एक सच्चा दुःख और सच्ची चिंता! रूद्र ने एक बार मुझे बताया था की उनका चचेरा भाई अपने माता पिता जैसा नहीं है... उसका व्यवहार हमेशा से ही इनके लिए अच्छा रहा। रूद्र इन लोगो की सारी खोज खबर रखते रहे हैं (भले ही वो इस बात को स्वीकार न करें! उनको शुरू शुरू में शायद इस बात पर मज़ा और संतोष होता था की रूद्र ने उनके मुकाबले कहीं ऊंचाई और सफलता प्राप्त करी थी। लेकिन आज इन बातो के कोई मायने नहीं थे)। रूद्र ने उनकी आर्थिक सहायता करने की भी पेशकश करी (जीवन जैसे एक वृत्त में चलता है.. अत्याचार की कमाई और धन कभी नहीं रुकते.. इनके चाचा चाची की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी), लेकिन उन्होंने यह कह कर मना कर दिया की जब ईश्वर उन दोनों को उनके अत्याचारों और गलतियों का दंड दे रहे हैं, तो वो उसमे किसी भी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न नहीं करेंगे। उनके लिए बस इतना ही उचित है की रूद्र ने उनको माफ़ कर दिया। मुझसे वो दोनों बहुत सौहार्द से मिले... बल्कि यह कहिये की बहुत लाड़ से मिले। जैसे की मैं उनकी ही पुत्र-वधू हूँ... फिर उन्होंने मुझे सोने के कंगन और एक मंगलसूत्र भेंट में दिया। बाद में मुझे मालूम हुआ की वो माँ जी (मेरी स्वर्गवासी सास) के आखिरी गहने थे। उस दिन यह जान कर कुछ सुकून हुआ की हमारे परिवार में कुछ और लोग भी हैं।
awesome update
 
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mashish

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Lagta hai writer ji aapne kafi treveling ki hai jo aapki story main bhi dikh rha hai aur treveling ke sath bha ka geyan kya khene all update superb
 
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कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Lagta hai writer ji aapne kafi treveling ki hai jo aapki story main bhi dikh rha hai aur treveling ke sath bha ka geyan kya khene all update superb
हाँ भाई। traveling तो बहुत की है। लगभग पूरा भारत देश देखा है।
बस दुर्भाग्य है कि अभी तक नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम और त्रिपुरा नहीं देख सका।
 
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हाँ भाई। traveling तो बहुत की है। लगभग पूरा भारत देश देखा है।
बस दुर्भाग्य है कि अभी तक नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम और त्रिपुरा नहीं देख सका।
koi nahi bo bhi dekh lenge aap writer ji
 
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कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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पूरी रात मुझे नींद नहीं आई... मुझे क्या, संध्या को भी रह रह कर नींद आई।

मुझे डर लग रहा था की कहीं नींद की कमी से उसका अगले दिन का एक्साम न गड़बड़ हो जाय.. लेकिन संध्या ने मुझे दिलासा दिया की वो भी ख़ुशी के कारण नहीं सो पा रही है। और इससे एक्साम पर असर नहीं पड़ेगा। मैंने अगले दिन से ही संध्या का और ज्यादा ख़याल रखना शुरू कर दिया – बढ़िया डॉक्टर से सलाह-मशविरा, खाना पीना, व्यायाम, और ज्यादा आराम इत्यादि! डॉक्टर संध्या की शारीरिक हालत देख कर बहुत खुश थी, और उसने संध्या को अपनी दिनचर्या बरकरार रखने को कहा – बस इस बात की हिदायद दी की वो कोई ऐसा श्रमसाध्य काम या व्यायाम न करे, जिसमे बहुत थकावट हो जाय। उन्होंने मुझे कहा की मैं संध्या को ज्यादा से ज्यादा खुश रखूँ। उन्होंने यह भी बताया की क्योंकि संध्या की सेहत बढ़िया है, इसलिए सेक्स करना ठीक है, लेकिन सावधानी रखें जिससे गर्भ पर अनचाहा चोट न लगे। उन्होंने यह भी कहा की इस दौरान संध्या बहुत ‘मूडी’ हो सकती है, इसलिए उसको हर तरह से खुश रखना ज़रूरी है। मुझे यह डॉक्टर बहुत अच्छी लगी, क्योंकि उन्होंने हमको बिना वजह डराया नहीं और न कोई दवाई इत्यादि लिखी। गर्भधारण एक सहज प्राकृतिक क्रिया है, कोई रोग नहीं। बस उन्होंने समय समय पर जांच करने और कुछ सावधानियां लेने की सलाह दी।

हमने जब उसके घर में यह इत्तला दी, तो वहाँ भी सभी बहुत प्रसन्न हुए। उसकी माँ संध्या को मायके बुलाना चाहती थीं, लेकिन संध्या ने उनको कहा की मैं उसका खूब ख़याल रखता हूँ, और बैंगलोर में देखभाल अच्छी है। इसलिए वो यहीं रहेगी, लेकिन हाँ, वो बीच में एक बार मेरे साथ उत्तराँचल आएगी। नीलम यह खबर सुन कर बहुत ही अधिक उत्साहित थी। इसलिए संध्या ने उसको अपनी गर्मी की छुट्टियाँ बैंगलोर में मनाने को कहा। नीलम का अप्रैल के अंत में बैंगलोर आना तय हो गया। मुझे इसी बीच तीन हफ़्तों के लिए यूरोप जाना पड़ा – मन तो बिलकुल नहीं था, लेकिन बॉस ने कहा की अभी जाना ठीक है, बाद में कोई ट्रेवल नहीं होगा। यह बात एक तरह से ठीक थी, लेकिन मन मान नहीं रहा था। खैर, मैंने जाने से पहले संध्या की देखभाल के सारे इंतजाम कर दिए थे और देवरामनी दंपत्ति से विनती करी थी की वो ज़रुरत होने पर संध्या की मदद कर दें। इसके उत्तर में मुझे लम्बा चौड़ा भाषण सुनना पड़ा की संध्या उनकी भी बेटी है, और मैंने यह कैसे सोच लिया की मुझे उनको उसकी देखभाल करने के लिए कहना पड़ेगा? संध्या के एक्साम अप्रैल के मध्य में ख़तम हो गए, और अप्रैल ख़तम होते होते मैं भी बैंगलोर वापस आ गया।

जब घर का दरवाज़ा खुला तो मुझे लगा की जैसे मेरे सामने कोई अप्सरा खड़ी हुई है! मैं एक पल को उसे पहचान ही नहीं पाया।

"संध्या! आज तुम कितनी सुन्दर लग रही हो।"

"आप भी ना..." संध्या ने शर्माते हुए कहा।

संध्या तो हमेशा से ही सुन्दर थी, लेकिन गर्भावस्था के इन महीनों में उसका शरीर कुछ ऐसे बदल गया जैसे किसी सिद्धहस्थ मूर्तिकार ने फुर्सत से उसे तराशा हो। बिलकुल जैसे कोई अति सुन्दर खजुराहो की मूरत! सुन्दर, लावण्य से परिपूरित मुखड़ा, गुलाबी रसीले होंठ, मादक स्तन (स्पष्ट रूप से उनका आकार बढ़ गया था), सुडौल-गोल नितंब, और पेट के सामने सौम्य उभार! हमारा बच्चा! और इन सबके ऊपर, एक प्यारी-भोली सी सूरत। आज वह वाकई रति का अवतार लग रही थी। और हलके गुलाबी साड़ी-ब्लाउज में वह एकदम क़यामत ढा रही थी। मैंने भाग कर बिना कोई देर किये अपना कैमरा निकला और संध्या की ना-नुकुर के बावजूद उसकी कई सारी तस्वीरें उतार लीं। मैंने मन ही मन निर्णय लिया की अब से गर्भावस्था के हर महीने की नग्न तस्वीरें लूँगा... बुढापे में साथ में याद करेंगे!

तीन हफ्ते हाथ से काम चलाने के बाद मैं भी संध्या के साथ के लिए व्याकुल था। मैंने संध्या के मुख को अपने हाथों में ले कर उसके होंठों से अपने होंठ मिला दिए। संध्या तुरंत ही मेरा साथ देने लगती है : मैं मस्त होकर उसके मीठे होंठ और रस-भरे मुख को चूसने लगता हूँ। ऐसे ही चूमते हुए मैं उसकी साड़ी उठाने लगता हूँ। संध्या भी उत्तेजित हो गई थी - उसकी सांसे अब काफी तेज चल रही थीं। उन्माद में आकर उसने मुझे अपनी बाहों में जकड लिया। चूमते हुए उसकी सांसो की कामुक सिसकियां मुझे अपने चेहरे पर महसूस होने लगीं। मै इस समय अपने एक हाथ से उसकी नंगी जांघ सहला रहा था। इस पर संध्या ने चुम्बन तोड़ कर कहा,

“जानू, बेड पर चलते हैं?”

मैंने इस बात पर उसको अपनी दोनों बाहों में उठा लिया और उसको चूमते हुए बेडरूम तक ले जाकर, पूरी सावधानी से बिस्तर पर लिटा दिया। अब मैं आराम से उसके बगल लेट कर उसको चूम रहा था – अत्यधिक घर्षण, चुम्बन और चूषण से उसके होंठ सुर्ख लाल रंग के हो गए थे। हम दोनों के मुँह अब तक काफी गरम हो गए थे, और मुँह ही क्या, हमारे शरीर भी!

मैंने संध्या की साड़ी पूरी उठा दी – आश्चर्य, उसने नीचे चड्ढी नहीं पहनी हुई थी। मैंने उसको छेड़ने के लिए उसकी योनि के आस-पास की जगह को देर तक सहलाता रहा – कुछ ही देर में वो अपनी कमर को तड़प कर हिलाने लगी। वह कह तो कुछ भी नहीं रही थी, लेकिन उसके भाव पूरी तरह से स्पष्ट थे – “मेरी योनि को कब छेड़ोगे?”

पर मैं उसकी योनि के आस पास ही सहला रहा था, साथ ही साथ उसको चूम रहा था। संध्या की योनि में अंतर दिख रहा था – रक्त से अतिपूरित हो चले उसके योनि के दोनों होंठ कुछ बड़े लग रहे थे। संभव है की वो बहुत संवेदनशील भी हों! उसका योनि द्वार बंद था, लेकिन आकार बड़ा लग रहा था। अंततः मैंने अपनी जीभ को उसकी योनि से सटाया और जैसे ही अपनी जीभ से उसे कुरेदा, तो उसकी योनि के पट तुरंत खुल गए। अंदर का सामान्यतः गुलाबी हिस्सा कुछ और गुलाबी हो गया था। यह ऐसे तो कोई नई क्रिया नहीं थी – मुख मैथुन हमारे लिए एक तरह से सेक्स के दौरान होने वाला ज़रूरी दस्तूर हो गया था.. लेकिन गर्भवती योनि पर मौखिक क्रिया काफी रोचक लग रही थी। कुछ देर संध्या की योनि को चूमने चाटने के बाद,

“जानू, तेरी चूत तो क्या मस्त लग रही है... देखो, फूल कर कैसी कुप्पा हो गई है!”

“आह्ह्ह! छी! कैसे गन्दी बात बोल रहे हैं! बच्चा सुनेगा तो क्या सीखेगा? जो करना है चुपचाप करिए!” मीठी झिड़की!

“गन्दी बात क्या है? चूत का मतलब है आम! ये भी तो आम जैसी रसीली हो गई है..”

“हाँ जी हाँ! सब मालूम है मुझे आपका.. आप अपनी शब्दावली अपने पास रखिए.. ऊह्ह्ह!” मैंने जोर से उसके भगनासे को छेड़ा।

साड़ी का कपड़ा हस्तक्षेप कर रहा था, इसलिए मैंने उठ कर संध्या का निचला हिस्सा निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उसकी साड़ी और पेटीकोट दोनों ही उसके शरीर से अलग हो गए।

“इतनी देर तक, इतनी मेहनत करने के बाद मैंने साड़ी पहनी थी... एक घंटा भी शरीर पर नहीं रही..” संध्या ने झूठा गुस्सा दिखाया।

“अच्छा जी, मुझे लगा की तुमको नंगी रहना अच्छा लगता है!”

“मुझे नहीं... वो आपको अच्छा लगता है!”

“हाँ... वो बात तो है!” कह कर मैंने उसकी ब्लाउज के बटन खोलने का उपक्रम किया। कुछ ही पलों में ब्लाउज संध्या की छाती से अलग हो गई। संध्या ने नीचे ब्रा नहीं पहनी थी। मैंने एक पल रुक कर उसके बदले हुए स्तनों को देखा – संध्या की नज़र मेरे चेहरे पर थी, मानो वो मेरे हाव भाव देखना चाहती हो। गर्भाधान के पहले संध्या के स्तनाग्र गहरे भूरे रंग के थे, और बेहद प्यारे लगते थे। इस समय उनमें हल्का सा कालापन आ गया था – आबनूस जैसा रंग! और areola का आकार भी कुछ बढ़ गया था। सच कहता हूँ, किसी और समय ऐसा होता तो निराशा लगती, लेकिन इस समय उसके स्तन मुझे अत्यंत आकर्षक लग रहे थे। प्यारे प्यारे स्तन!

“ब्यूटीफुल!” कह कर मैंने अपने मुँह से लपक कर उसके एक निप्पल को दबोच लिया और उत्साह से उसको पीने लगा। संध्या आह-आह कर के तड़पने लगी और मेरे बालों को कस के पकड़ने लगी।

“आह.. जानू जानू.. इस्स्स्स! दर्द होता है.. धीरे आह्ह... धीरे!” वो बड़बड़ा रही थी।

“स्स्स्स धीरे धीरे कैसे करूँ? कितनी सुन्दर चून्चियां हैं तेरी..” कह कर मैंने उसके स्तनाग्र बारी बारी से दाँतों के बीच लेकर काटने लगा।

“मैं तो इनमें से दूध की एक एक बूँद चूस लूँगा!”

“जानू! सच में.. आह! दर्द होता है.. कुछ रहम करो.. उफ़!”

संध्या ने ऐसी प्रतिक्रिया कभी नहीं दी.. सचमुच उसको दर्द हो रहा होगा। मैंने उसके स्तनों को इस हमले से राहत दी। संध्या दोनों हाथों से अपने एक एक स्तन थाम कर राहत की सांसे भरने लगी, और कुछ देर बाद बोली,

“अब आप इन पर सेंधमारी करना बंद कीजिए.. हमारे होने वाले बच्चे की डेयरी है यहाँ!”

“हैं? क्या मतलब? मेरा पत्ता साफ़? इतना बड़ा धोखा!!”

“ही ही ही...” संध्या खिलखिला कर हंस पड़ी, “अरे बाबा! नहीं.. ऐसा मैंने कब कहा? सब कुछ आप का ही तो है... लेकिन एक साल तक आप दूसरे नंबर पर हैं... आप भी दूध पीना.. लेकिन हमारे बच्चे के बाद! समझे मेरे साजन?” कह कर उसने दुलार से मेरे बालों में हाथ फिराया।

“बस.. एक ही साल तक पिलाओगी?”

“हाँ.. उसको बस एक साल... लेकिन उसके पापा को, पूरी उम्र!”

“हम्म... तो अब मुझे जूनियर की जूठन खानी पड़ेगी..”

“न बाबा... खाना नहीं.. बस पीना...”

संध्या की बात पर हम दोनों खुल कर हंसने लगे।

“ठीक है... मम्मी की चून्चियां नहीं तो चूत ही सही..” कह कर मैंने संध्या की योनि पर हमला किया।

“जानू...!” संध्या चिहुंक उठी, “लैंग्वेज! ... बिलकुल बेशरम हो!”
 

avsji

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मैंने नए अंदाज़ में संध्या की योनि चाटनी शुरू की – जैसे बाघ पानी पीता है न? लप-लपा कर! ठीक उसी प्रकार मेरी जीभ भी संध्या की योनि से खेल रही थी... संध्या की सांसें प्रतिक्रिया स्वरुप तेजी से चलने लगी.. उत्तेजना में वो कसमसा मुझे प्रोत्साहन देने लगी.. वह उत्तेजना के चरम पर जल्दी जल्दी पहुँच रही थी, और इस कारण उसका शरीर पीछे की ओर तन गया था – धनुष समान! उसके हाथ मेरे सर पर दबाव डाल रहे थे। मैने उसके हाथों को अपने सर से हटा कर, उसकी उँगलियों को बारी बारी से अपने मुंह में ले कर चूसने चाटने लगा। संध्या उन्माद में कराह उठी – उसकी कमर हिलाने लगी... ठीक वैसे ही जैसे सम्भोग के दौरान करती है। उसके हाथों को छोड़ कर मैंने जैसे ही उसकी योनि पर वापस जीभ लगाई उसकी योनि से सिरप जैसा द्रव बहने लगा, और उसके बदन में कंपकंपी आने लगी। मै धीरे धीरे, स्वाद ले लेकर उस द्रव को चाट रहा था। बढ़िया स्वाद! नमकीन, खट्टा, और कुछ अनजाने स्वाद – सबका मिला-जुला।

संध्या मुँह से अंग्रेजी का ओ बनाए हुए तेजी से साँसे ले रही थी – इस कारण हलकी सीटी सी बजती सुनाई दी। मैंने सर उठा कर उसकी तरफ देखा – संध्या ने आंखे कस कर मूंदी हुई थी, और कांप रही थी। मैने वापस उसकी योनि का मांस अपने होठों के बीच लिया और होंठों की मदद से दबाने, और चाटने लगा। इस नए आक्रमण से वो पूरी तरह से तड़प उठी। मैंने विभिन्न गतियों और तरीकों से उसकी योनि के दोनों होंठों और भगनासे को चाट रहा था। उसी लय में लय मिलाते हुए संध्या भी अपनी कमर को आगे-पीछे हिला रही थी। संध्या दोबारा अपने चरम के निकट पहुँच गई। लेकिन उसको प्राप्त करवाने के लिए मुझे एक आखिरी हमला करना था – मैंने उसकी योनि मुख को अपनी तर्जनी और अंगूठे की सहायता से फैलाया, और अपने मुँह को अन्दर दे मारा। जितना संभव था, मैंने अपनी जीभ को उसकी योनि के भीतर तक ठेल दिया – उसकी योनि की अंदरूनी दीवारें मानो भूचाल उत्पन्न कर रही थीं – तेजी से संकुचन और फैलाव हो रहा था। शीघ्र ही उसकी योनि के भीतर का ज्वालामुखी फट पड़ा। मुझे पुनः नवपरिचित नमकीन-खट्टा स्वाद एक गरम द्रव के साथ अपनी जीभ पर महसूस हुआ। मै अपनी जीभ को यथासंभव उसकी योनि के अंदर तक डाल देता हूँ।

“आआह्ह्ह्ह!” संध्या चीख उठती है।

उत्तेजनावश वो अपने पैरों से मेरी गरदन को जकड़ लेती है और कमर को मेरे मुंह ठेलने की कोशिश कर रही थी। मैं अपनी जीभ को अंदर-बाहर अंदर-बाहर करना बंद नहीं करता। उसका रिसता हुआ योनि-रस मैं पूरी तरह से पी लेता हूँ। संध्या का शरीर एकदम अकड़ जाता है; रति-निष्पत्ति के बाद भी उसका शरीर रह रह कर झटके खा रहा होता है। जब उत्तेजना कुछ कम हुई तो संध्या की सिसकारी छूट गई,

“स्स्स्स...सीईइइ हम्म्म्म”

अंततः मैं उसको छोड़ता हूँ, और मुस्कुराते हुए देखता हूँ। संध्या संतुष्टि और प्रसन्नता भरी निगाहों मुझे देखती है। मैंने ऊपर जा कर उसको एक बार फिर से चूमा, और उसके सर पर हाथ फिराते हुए बोला,

“जानू.. लंड ले सकोगी?”

संध्या ने सर हिला कर हामी भरी और फिर कुछ रुक कर कहा, “जानू... बच्चा सुनता है!”

मैं सिर्फ मुस्कुराया। इतनी देर तक यह सब क्रियाएँ करने के कारण, मेरा लिंग अपने अधिकतम फैलाव और उत्थान पर था। मुझे मालूम था की बस दो तीन मिनट की ही बात है.. मैं बिस्तर से उठा और संध्या को उसके नितम्ब पकड़ कर बिस्तर के सिरे की ओर खिसकाया। कुछ इस तरह जिससे उसके पैर घुटने के नीचे से लटक रहे हों, और योनि बिस्तर के किनारे के ऊपर रहे, और ऊपर का पूरा शरीर बिस्तर पर चित लेटा रहे। मैं संध्या को घुटने के बल खड़ा हो कर भोगने वाला था। यह एक सुरक्षित आसन था – संध्या के पेट पर मेरा रत्ती भर भार भी नहीं पड़ता।

सामने घुटने के बल बैठ कर, मैंने संध्या की टांगों को मेरी कमर के गिर्द घेर लिया और एक जांघ को कस कर पकड़ लिया। दूसरे हाथ से मैंने अपने लिंग को संध्या की योनि-द्वार पर टिकाया और धीरे धीरे अन्दर तक घुसा दिया। लिंग इतना उत्तेजित था की वो संध्या की योनि में ऐसे घुस गया जैसे की मक्खन में गरम छुरी! इस समय हम दोनों के जघन क्षेत्र आपस में चिपक गए थे – मतलब मेरे लिंग की पूरी लम्बाई इस समय संध्या के अन्दर थी। जैसे तलवार के लिए सबसे सुरक्षित स्थान उसका म्यान होती है, ठीक उसी तरह एक उत्तेजित लिंग के लिए सबसे सुरक्षित स्थान एक उतनी ही उत्तेजित योनि होती है – उतनी ही उत्तेजित... गरम गीलापन और फिसलन लिए! काफी देर से उत्तेजित मेरे लिंग को जब संध्या की योनि ने प्यार से जकड़ा तो मुझे, और मेरे लिंग को को बहुत सकून मिला। हम दोनों प्रेमालिंगन में बांध गए।

इस अवस्था में मुझे बदमाशी सूझी।

मैंने संध्या के पेट पर हाथ फिराते हुए कहा, “मेरे बच्चे, मैं आपका पापा बोल रहा हूँ! आपकी मम्मी और मैं, आपको खूब प्यार करते हैं... मैं आपकी मम्मी को भी खूब प्यार करता हूँ... उसी प्यार के कारण आप बन रहे हो!”

संध्या मेरी बातों पर मुस्कुरा रही थी.. मैंने कहना जारी रखा, “जब आप मम्मी के अन्दर से बाहर आ जाओगे, तो हम ठीक से शेक-हैण्ड करेंगे... फिलहाल मैं आपको अपने लिंग से छू रहा हूँ.. इसे पहचान लो.. जब तक आप बाहर नहीं आओगे तब तक आपका अपने पापा का यही परिचय है..”

संध्या ने प्यार से मेरे हाथ पर एक चपत लगाई, “बोला न, आप चुप-चाप अपना काम करिए!”

“देखा बच्चे.. आपकी माँ मेरा लंड लेने के लिए कितना ललायित रहती है?”

“चुप बेशरम..”

मैंने ज्यादा छेड़ छाड़ न करते हुए सीधा मुद्दे पर आने की सोची – मैं सम्हाल कर धीरे धीरे संध्या को भोग रहा था। हलके झटके, नया आसन, और संध्या की नई अवस्था! रह रह कर चूमते हुए मैं संध्या के साथ सम्भोग कर रहा था। संध्या ने इससे कहीं अधिक प्रबल सम्भोग किया है, लेकिन इस मृदुल और सौम्य सम्भोग पर भी वो सुख भरी सिस्कारियां ले रही थी... कमाल है! वो हर झटके पर सिस्कारियां या आहें भर रही थी!

‘अच्छा है! मुझे बहुत कुछ नया नहीं सोचना पड़ेगा!’

मैंने नीचे से लिंग की क्रिया के साथ साथ, संध्या के मुख, गालों, और गर्दन पर चुम्बन, चूषण और कतरन जारी रखी। और हाथों से उसके मांसल स्तनों का मर्दन भी! चौतरफा हमला! अभी केवल तीन चार मिनट ही हुए थे, और जैसे मैंने सोचा था, मैं संध्या के अन्दर ही स्खलित हो गया। कोई उल्लेखनीय तरीके से मैंने आज सम्भोग नहीं किया था, लेकिन आज मुझे बहुत ही सुखद अहसास हुआ! संध्या ने मुझे अपने आलिंगन में कैद कर लिया... और मैंने उसे अपनी बाँहों में कस कर भींच लिया।

“जानू हमरे...” कुछ देर सुस्ताने के बाद संध्या ने कहा, “... आज वाला.. द बेस्ट था..” और कह कर उसने मुझे होंठों पर चूम लिया।

मैंने उसको छेड़ा, “आज वाला क्या?”

“यही..”

“यही क्या?”

“से...क्स...”

“नहीं.. हिन्दी में कहो?”

“चलो हटो जी.. आपको तो हमेशा मजाक सूझता है..” संध्या शरमाई।

“मज़ाक! अरे वाह! ये तो वही बात हुई.. गुड़ खाए, और गुलगुले से परहेज़! चलो बताओ.. हमने अभी क्या किया?”

“प्लीज़ जानू...”

“अरे बोल न..”

“आप नहीं मानोगे?”

“बिलकुल नहीं...”

“ठीक है बाबा... चुदाई.. बस! अब खुश?”

“हाँ..! लेकिन... अब पूरा बोलो...”

“जानू मेरे, आज की चुदाई ‘द बेस्ट’ थी!”

“वैरी गुड! आई ऍम सो हैप्पी!”

“मालूम था.. हमारा बच्चा अगर बिगड़ा न.. तो आपकी जिम्मेदारी है। ... और अगर इससे आपका पेट भर गया हो तो खाना खा लें?“
 
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