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Romance कायाकल्प [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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नीलम इस घटना के एक सप्ताह बाद बैंगलोर आई। अकेले नहीं आई थी, साथ में मेरे सास और ससुर भी थे। एक बड़ी ही लम्बी चौड़ी रेल यात्रा करी थी उन लोगों ने! नीलम के लिए तो एकदम अनोखा अनुभव था! खैर, गनीमत यह थी की उनकी ट्रेन सवेरे ही आ गई, और छुट्टी के दिन आई, इसलिए उनको वहाँ से आगे कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा! रेलवे स्टेशन पर मैं ही गया था सभी को रिसीव करने... संध्या घर पर ही रह कर नाश्ता बनाने का काम कर रही थी।

घर आने पर हम लोग ठीक से मिले। अब चूंकि वो दोनों पहली बार अपनी बेटी के ससुराल (या की घर कह लीजिए) आये थे, इसलिए उन्होंने अपने साथ कोई न कोई भेंट लाना ज़रूरी समझा। न जाने कैसी परम्परा या पद्धति निभा रहे थे... भई, जो परम्पराएँ धन का अपव्यय करें, उनको न ही निभाया जाए, उसी में हमारी भलाई है। वो संध्या के लिए कुछ जेवर और मेरे लिए रुपए और कपड़ों की भेंट लाये थे। घर की माली हालत तो मुझे मालूम ही थी, इसलिए मैं खूब बिगड़ा, और उनसे आइन्दा फिजूलखर्ची न करने की कसमें दिलवायीं। इतने दिनों बाद मिले, और बिना वजह की बात पर बहस हो गई। खैर! ससुर जी ने कहा की इस बार फसल अच्छी हुई है, और कमाई भी.. इसलिए देन व्यवहार तो करने का बनता है.. और वैसे भी उनका जो कुछ भी है, वो दोनों बेटियों के लिए ही तो है! अपने साथ थोड़े न ले जायेंगे! रुढ़िवादी लोग और उनकी सोच!

नीलम अब एक अत्यंत खूबसूरत तरुणी के रूप में विकसित हो गई थी.. इतने दिनों के बाद देख भी तो रहा हूँ उसको! वो मुझे मुस्कुराते हुए देख रही थी।

मैंने आगे बढ़कर उसकी एक हथेली को अपने हाथ में ले लिया, “अरे वाह! कितनी सुन्दर लग रही है मेरी गुड़िया... तुम तो खूब प्यारी हो गई हो..!” कह कर मैंने उसको अपने गले से लगा लिया। नीलम शरमाते हुए मेरे सीने में अपना मुँह छुपाए दुबक गई। लेकिन मैंने उसको छेड़ना बंद नहीं किया,

“मैं तुम्हारे गालों का सेब खा लूँ?”

“नहीईई.. ही ही ही..” कह कर हँसते हुए वो मेरे आलिंगन से बाहर निकलने के लिए कसमसाने लगी..

“अरे! क्यों भई, मुझे पप्पी नहीं दोगी?”

नीलम शर्म से लाल हो गई, और बोली, “जीजू, अब मैं बड़ी हो गई हूँ।“

“हंय? बड़ी हो गई हो? कब? और कहाँ से? मुझे तो नहीं दिखा!” साफ़ झूठ!

दिख तो सब रहा था, लेकिन फिर भी, मैंने उसको छेड़ा! लेकिन मेरे लिए नीलम अभी भी बच्ची ही थी।

“उम्म्म... मुझे नहीं पता। लेकिन मम्मी मुझे अब फ्रॉक पहनने नहीं देती... कहती है की तू बड़ी हो गई है...”

“मम्मी ऐसा कहती है? चलो, उनके साथ झगड़ा करते हैं! ... लेकिन उससे पहले...” कहते हुए मैंने उसकी ठुड्डी को ऊपर उठाते हुए उसके दोनों गालों पर एक-एक पप्पी ले ही ली। शर्म से उसके गाल और लाल हो गए और वो मुझसे छूट कर भाग खड़ी हुई।

संध्या इस समय सबके आकर्षण का केंद्र थी, इसलिए मैंने कुछ काम के बहाने वहाँ से छुट्टी ली, और बाहर निकल गया। सारे काम निबटाते और वापस आते आते दोपहर हो गई.. और कोई डेढ़ बज गए! सासु माँ के आने का एक लाभ होता है (मेरे सभी विवाहित मित्र इस बात से सहमत होंगे) – और वह है समय पर स्वादिष्ट भोजन! वापस आया तो देखा की सभी मेरा ही इंतज़ार कर रहे हैं। खैर, मैंने जल्दी जल्दी नहाया, और फिर स्वादिष्ट गढ़वाली व्यंजनों का भोग लगाया। और फिर सुखभरी नींद सो गए।

शाम को चाय पर मैंने नीलम से उसके संभावित रिजल्ट के बारे में पूछा। उसको पूरी उम्मीद थी की अच्छा रिजल्ट आएगा। मैंने ससुर जी और नीलम से विधिवत नीलम की आगे की पढाई के बारे में चर्चा करी। स्कूल और एक्साम की बातें करते करते मुझे अपना बचपन और उससे जुडी बातें याद आने लगीं। पढाई वाला समय तो जैसे तैसे ही बीतता था, लेकिन परीक्षा के दिनों में अलग ही प्रकार की मस्ती होती थी। दिन भर क्लास में बैठने के झंझट से पूरी तरह मुक्ति और एक्साम के बाद पूरा दिन मस्ती और खेल कूद! मजे की बात यह की न तो टीचर की फटकार पड़ती और न ही माँ की डांट! बेटा एक्साम दे कर जो आया है! पूरा दिन स्कूल में रहना भी नहीं पड़ता। और बच्चे तो एक्साम से बहुत डरते, लेकिन मैं साल भर परीक्षा के समय का ही इंतज़ार करता था – सोचिये न, पूरे साल में यही वो समय होता था जब भारी-भरकम बस्ते के बोझ से छुटकारा मिलता था। एक्साम के लिए मैं एक पोलीबैग में writing pad, पेंसिल, कलम, रबर, इत्यादि लेकर लेकर पहुँच जाता। उसके पहले नाश्ते में माँ मुझे सब्जी-परांठे और फिर दही-चीनी खिलाती ताकि मेरे साल भर के पाप धुल जायें, और मुझ पर माँ सरस्वती की कृपा हो! पुरानी यादें ताज़ा हो गईं!

खैर, जैसा की मैंने पहले लिखा है, मैंने नीलम और ससुर जी को यहाँ की पढाई की गुणवत्ता, और इस कारण, सीखने और करियर बनाने के अनेक अवसरों के बारे में समझाया। उनको यह भी समझाया की आज कल तो अनगिनत राहें हैं, जिन पर चल कर बढ़िया करियर बनाया जा सकता है। बातें तो उनको समझ आईं, लेकिन वो काफी देर तक परम्परा और लोग क्या कहेंगे (अगर लड़की अपनी दीदी जीजा के यहाँ रहेगी तो..) का राग आलापते रहे।

मैंने और संध्या ने समझाया की लोगों के कहने से क्या फर्क पड़ता है? अच्छा पढ़ लिख लेगी, तो अपने पैरों पर खाड़ी हो सकेगी.. और फिर, शादी ढूँढने में भी तो कितनी आसानी हो जायेगी! हमारे इस तर्क से वो अंततः चुप हो गए। नीलम को भी मैंने काफी सारा ज्ञान दिया, जो यहाँ सब कुछ लिखना ज़रूरी नहीं है.. लेकिन अंततः यह तय हो गया की नीलम अपनी आगे की पढाई यहीं हमारे साथ रह कर करेगी। सासु माँ ने बीच में एक टिप्पणी दी की दोनों बच्चे उनसे दूर हो जाएँगे.. जिस पर मैंने कहा की आपकी तो दोनों ही बेटियाँ है.. कभी न कभी तो उन्हें आपसे दूर जाना ही है.. और यह तो नीलम के भले के लिए हैं.. और अगर उनको इतना ही दुःख है, तो क्यों न वो दोनों भी हमारे साथ ही रहें? (मेरी नज़र में इस बात में कोई बुराई नहीं थी) लेकिन उन्होंने मेरी इस बात बार तौबा कर ली और बात वहीँ ख़तम हो गई।

शाम को हमने पड़ोसियों से भी मुलाकात करी – देवरामनी दम्पत्ति नीलम को देख कर इतने खुश हुए की बस उसको गोद लेने की ही कसर रह गई थी! नीलम वाकई गुड़िया जैसी थी!

मेरे सास ससुर बस तीन दिन ही यहाँ रहने वाले थे, इसलिए मैंने रात को बाहर जा कर खाने का प्रोग्राम बनाया – जिससे किसी को काम न करना पड़े और ज्यादा समय बात चीत करने में व्यतीत हो। नीलम ख़ास तौर पर उत्साहित थी – उसको देख कर मुझे संध्या की याद हो आती, जब वो पहली बार बैंगलोर आई थी। सब कुछ नया नया, सम्मोहक! जो लोग यहाँ रहते हैं उनको समझ आता है की बिना वजह का नाटक है शहर में रहना! अगर रोजगार और व्यवसाय के साधन हों, तो छोटी जगह ही ठीक है.. कम प्रदूषण, कम लोग, और ज्यादा संसाधन! जीवन जीने की गुणवत्ता तो ऐसे ही माहौल में होती है। एक और बात मालूम हुई की अगले दिन नीलम का जन्मदिन भी था! बहुत बढ़िया! (मुझे बिना बताये हुए संध्या ने नीलम के जन्मदिन के लिए प्लानिंग पहले ही कर रखी थी)।

खैर, खा पीकर हम लोग देर रात घर वापस आये। मेरे सास ससुर यात्रा से काफी थक भी गए थे, और उनको इतनी देर तक जागने का ख़ास अनुभव भी नहीं था। इसलिए हमने उनको दूसरा वाला कमरा सोने के लिए दे दिया और नीलम को हमारे साथ ही सोने को कह दिया। उन्होंने ज्यादा हील हुज्जत नहीं करी (क्योंकि हम तीनों पहले भी एक साथ सो चुके हैं) और सो गए।

“भई, आज तो मैं बीच में सोऊँगा!” मैंने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करते हुए कहा।

“वह क्यूँ भला??” संध्या ने पूछा!

“अरे यार! इतनी सुन्दर दो-दो लड़कियों के साथ सोने का मौका बार बार थोड़े न मिलता है!”

“अच्छा जी! साली आई, तो साहब का दिल डोल गया?”

“अरे मैं क्या चीज़ हूँ! ऐसी सुंदरियों को देख कर तो ऋषियों का मन भी डोल जाएगा! हा हा!”

“नहीं बाबा! दीदी, तुम ही बीच में लेटो! नहीं तो जीजू मेरे सेब खायेंगे!” नीलम ने भोलेपन से कहा।

मैं और संध्या दो पल एकदम से चुप हो गए, और फिर एक दूसरे की तरफ देख कर ठहाके मार कर हंसने लगे (नीलम का मतलब गालों के सेब से था.. और हमने कुछ और ही सोच लिया)।

“मेरी प्यारी बहना! तू निरी बुद्धू है!”

कहते हुए संध्या ने नीलम के दोनों गालों को अपने हाथों में लिया और उसके होंठों पर एक चुम्बन दे दिया।

“आई लव यू!”

“आई लव यू टू, दीदी!” कह कर नीलम संध्या से लिपट गई।

“हम्म.. भारत मिलाप संपन्न हो गया हो तो अब सोने का उपक्रम करें?”

“कोई चिढ़ गया है लगता है...” संध्या ने मेरी खिंचाई करी।

“हाँ दीदी! जलने की गंध भी आ रही है... ही ही!”

“और नहीं तो क्या! अच्छा खासा बीच में सोने वाला था! मेरा पत्ता साफ़ कर दिया!”

“हा हा!”

“हा हा!”

“अच्छा... चल नीलू, सोने की तैयारी करते हैं। तू चेंज करने के कपड़े लाई है?”

“हैं? नहीं!”

“कोई बात नहीं.. मैं तुमको नाईटी देती हूँ.. वो पहन कर सो जाना। ओके?” कह कर संध्या ने अलमारी से ढूंढ कर एक नाईटी निकाली – मैंने पहचानी, वो हमारे हनीमून के दौरान की थी! अभी तक सम्हाल कर रखी है इसने!

नीलम ने उसको देखा – उसकी आँखें शर्म से चौड़ी हो गईं, “दीदी, मैं इसको कैसे पहनूंगी? इसमें तो सब दिखता है!”

“अरे रात में तुमको कौन देख रहा है.. अभी पहन लो, कल हम तुमको शौपिंग करने ले चलेंगे! ठीक है?”

“ठीक है..” नीलम ने अनिश्चय से कहा, और नाईटी लेकर बाथरूम में घुस गई। इसी बीच संध्या ने अपने कपड़े उतार कर एक कीमोनो स्टाइल की नाईटी पहन ली (यह सामने से खुलती है, और उसमें गिन कर सिर्फ दो बटन थे। और सपोर्ट के लिए बीच में एक फीता लगा हुआ था, जिसको सामने बाँधा जा सकता था – ठीक नहाने वाले रोब जैसा), और मैंने भी संध्या से ही मिलता जुलता रोब पहना हुआ था (बस, नीलम के कारण अंडरवियर अभी भी पहना हुआ था, जिसको मैं रात में बत्तियां बुझने पर उतार देने के मूड में था)। खैर, कोई पांच मिनट बाद नीलम वापस कमरे के अन्दर आई।
 
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कुछ लिख लेता हूँ
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नीलम का परिप्रेक्ष्य

जीजू बिस्तर के सिरहाने पर एक तकिया के सहारे पीठ टिकाये हुए एक किताब पढ़ रहे थे। दूसरी तरफ दीदी अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने एक स्टूल पर बैठ कर अपने बालों में कंघी कर रही थी।

‘दीदी के स्तन कितने बड़े हो गए हैं पिछली बार से!’ मैंने सोचा। बालों में कंघी करते समय कभी कभी वो बालों के सिरे पर उलझ जाती, और उसको सुलझाने के चक्कर में दीदी को ज्यादा झटके लगाने पड़ते.. और हर झटके पर उसके स्तन कैसे झूल जाते! हाँ! उसके स्तनों को निश्चित रूप से पिछली बार से कहीं ज्यादा बड़े लग रहे थे। उसके पेट पर उभार होने के कारण थोड़ा मोटा लग रहा था, और उसके कूल्हे कुछ और व्यापक हो गए थे। कुल-मिला कर दीदी अभी और भी खूबसूरत लग रही थी। मैं मन्त्र मुग्ध हो कर उसे देख रही थी। अचानक मैंने देखा की दीदी ने आईने से मुझे देखते हुए देख लिया... प्रतिक्रिया में उसके होंठों पर वही परिचित मीठी मुस्कान आ गई।

“आ गई? चल.. अभी सो जाते हैं.. जानू.. बस.. अब पढ़ने का बहाना करना बंद करो! हे हे हे!” दीदी ने जीजू को छेड़ा।

यह बिस्तर हमारे घर में सभी पलंगों से बड़ा था। इस पर तीन लोग तो बहुत ही आराम से लेट सकते थे। जीजू ने कुछ तो कहा, अभी याद नहीं है, और बिस्तर के एक किनारे पर लेट गए, बीच में दीदी चित हो कर लेटी, और मैं दूसरे किनारे पर! मैं दीदी से कुछ दूरी पर लेटी हुई थी, लेकिन दीदी ने मुझे खींच कर अपने बिलकुल बगल में लिटा लिया। कमरे में बढ़िया आरामदायक ठंडक थी (वातानुकूलन चल रहा था), इसलिए हमने ऊपर से चद्दर ओढ़ी हुई थी। कमरे की बत्तियों की स्विच जीजू की तरफ थी, जो उन्होंने हमारे लेटते ही बुझा दी।


मेरा परिप्रेक्ष्य

मैंने अपने बाईं तरफ करवट लेकर संध्या को अपनी बाँह के घेरे में ले कर चुम्बन लिया और ‘गुड नाईट’ कहा – लेकिन मैंने अपना हाथ उसके स्तन ही रहने दिया। संध्या को मेरी किसी हरकत से अब आश्चर्य नहीं होता था, और वो मुझे अपनी मनमानी करने देती थी। उसको मालूम था की उसके हर विरोध का कोई न कोई काट मेरे पास अवश्य होगा। लेकिन नीलम की अनवरत चलने वाली बातें हमें सोने नहीं दे रही थीं।

बैंगलोर कैसा है? लोग कैसे हैं? यहाँ ये कैसे करते हो, वो कैसे करते हो..? कॉलेज कैसा होता है? बाद में पता चला की वह पूरी यात्रा के दौरान सोती रही थी.. इसीलिए इतनी ऊर्जा थी! अब चूंकि मेरे दिमाग में शैतान का वास है, इसलिए मैंने सोचा की क्यों न कुछ मज़ा किया जाय।

नीलम के प्रश्नों का उत्तर देते हुए मैंने संध्या के दाएँ स्तन को धीरे धीरे दबाना शुरू कर दिया (मैं संध्या के दाहिनी तरफ था)। मेरी इस हरकत से संध्या हतप्रभ हो गई और मूक विरोध दर्शाते हुए उसने अपने दाहिने हाथ से मेरे हाथ को जोर से पकड़ लिया। लेकिन मुझे रोकने के लिए उतना बल अपर्याप्त था, इसलिए कुछ देर कोशिश करने के बाद, उसने हथियार डाल दिए। नीलम ने करवट ले कर संध्या के बाएँ हाथ पर अपना हाथ रखा हुआ था, इसलिए संध्या वह हाथ नहीं हटाना चाहती थी। अब मेरा हाथ निर्विघ्न हो कर अपनी मनमानी कर सकता था। कुछ देर कपड़े के ऊपर से ही उसका स्तन-मर्दन करने के बाद मैंने उसकी कीमोनो का सबसे ऊपर वाला बटन खोल दिया। संध्या को लज्जा तो आ रही थी, लेकिन इस परिस्थिति में रोमांच भी भरा हुआ था। इसलिए उसने इस क्रिया की धारा के साथ बहना उचित समझा।

जब उसने कोई हील हुज्जत नहीं दिखाई, मैंने नीचे वाला बटन भी खोल कर सामने बंधा फीता भी ढीला कर दिया। कीमोनो वैसे भी साटन के कपड़े का था – बिना किसी बंधन के, उसके कीमोनो के दोनों पट अपने आप खुल गए। नीलम को वैसे तो देर सबेर मालूम पड़ ही जाता की उसकी दीदी के शरीर का ऊपरी हिस्सा निर्वस्त्र हो चला है, लेकिन जब उसने अपने हाथ पर संध्या की नाईटी का कपड़ा महसूस किया तो उसको उत्सुकता हुई। उसने बिना किसी प्रकार की विशेष प्रतिक्रिया दिखाते हुए अपनी बाईं हथेली से संध्या के बाएँ स्तन को ढक लिया।

संध्या इस अलग सी छुवन को महसूस कर चिहुँक गई,

'अरे! नीलम का हाथ मेरे स्तन पर!'

संध्या आश्चर्यचकित थी, लेकिन वह यह भी समझ रही थी की नीलम उसके स्तन को सिर्फ ढके हुए थी, और कुछ भी नहीं। साथ ही साथ वह अपने जीजू से बातें भी कर रही थी – और उधर उसके जीजू का हाथ संध्या के दाहिने स्तन का मर्दन कर रहा था। लेकिन चाहे कुछ भी हो – अगर किसी स्त्री को इतने अन्तरंग तरीके से छुआ जाय, तो उसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही है। संध्या ने अनायास अपने स्तन को आगे की ओर ठेल दिया, जिसके कारण उसके स्तन का पर्याप्त हिस्सा मेरे और नीलम दोनों के ही हाथ में आ गया। संभव है की संध्या की इस हरकत से नीलम को किसी प्रकार की स्वतः-प्रेरणा मिली हो – उसने भी संध्या के स्तन को धीरे-धीरे दबाना और मसलना शुरू कर दिया। संध्या के चूचक शीघ्र ही उत्तेजित हो कर उर्ध्व हो गए।

इस समय हम तीनों का मन कहीं और था। हम तीनों ही कुछ देर के लिए चुप हो गए। यह चुप्पी नीलम ने तोड़ी –

“जीजू – दीदी! मैं आपसे कुछ माँगूं तो देंगे?”

“हाँ हाँ! बोलो न?” मैंने कहा।

“उस दिन आप दोनों लोग बुग्यल पर जो कर रहे थे, मेरे सामने करेंगे?”

‘बुग्याल पर? .. ओह गॉड! ये तो सेक्स की बात कर रही है!’

संध्या: “क्या? पागल हो गई है?”

मैं: “एक मिनट! नीलम, हम लोग बुग्यल पर सेक्स कर रहे थे। सेक्स किसी को दिखाने के लिए नहीं किया जाता। बल्कि इसलिए किया जाता है, क्योंकि दो लोग - जो प्यार करते हैं – उनको एक दूसरे से और इंटिमेसी, मेरा मतलब है की ऐसा कुछ मिले जो वो और किसी के साथ शेयर नहीं करते। जब तुम्हारी शादी हो जायेगी, तो तुम भी अपने हस्बैंड के साथ खूब सेक्स करना।“

नीलम: “तो फिर आपने मेरे यहाँ रहने के बावजूद दीदी का ब्लाउज क्यों खोला?”

मेरा हाथ उसकी यह बात सुन कर झट से संध्या के बाएँ स्तन पर चला गया, जिस पर नीलम का हाथ पहले से ही उपस्थित था।

मैं: “व्व्वो.. मैं... तुम्हारी दीदी का दूध पीता हूँ न, इसलिए!”

मैंने बात को सम्हालने के लिए बेवकूफी भरी बात कही।

संध्या: “धत्त बेशर्म! कुछ भी कहते रहते हो!”

नीलम: “क्या जीजू.. आप तो इतने बड़े हो गए हैं.. फिर भी दूध पीते हैं?”

मैं: “अरे! तो क्या हो गया? तेरी दीदी के दुद्धू देखे हैं न तुमने? कितने मुलायम हैं! हैं न?”

नीलम: “हाँ.. हैं तो!”

मैं: “तो.. बिना इनको पिए मन मानता ही नहीं.. और फिर दूध तो पौष्टिक होता है!”

नीलम: “लेकिन दीदी को तो अभी दूध तो आता ही नहीं..”

मैं: “अरे भई! नहीं आता तो आ जायेगा! पहले से ही प्रैक्टिस कर लेनी चाहिए न!”

संध्या: “तुम कितने बेशर्म हो! देख न नीलू, तुम ही बताओ अब मैं क्या करूँ? अगर न पिलाऊँ, तो तुम्हारे जीजू ऐसे ही उधम मचाने लगते हैं। वैसे तुझे पता है की वो ऐसे क्यों करते हैं?

नीलम: “बताओ..”

संध्या: “अरे तुम्हारे जीजू अपनी माँ जी का दूध भी काफी बड़े होने तक पीते रहे। उन्होंने बहुत प्रयास किया, लेकिन ये जनाब! मजाल है जो ये अपनी मां की छाती छोड़ दें!”

नीलम: “तब?”

संध्या: “तब क्या? माँ ने थक हार कर ने अपने निप्पल्स पर मिर्ची या नीम वगैरह रगड़ लिया। और जब भी ये जनाब दूध पीने की जिद करते तो तीखा लगने के कारण धीरे धीरे खुद ही माँ का दूध पीना छोड़ते गए।“

नीलम: “लेकिन अभी क्यों करते हैं?”

संध्या: “आदतें ऐसे थोड़े ही जाती हैं!”

मैं: “अरे यार! कम से कम तुम तो मिर्ची का लेप मत लगाने लगना।“

मेरी इस बात पर संध्या और नीलम खिलखिला कर हंस पड़ीं!

संध्या: “नहीं मेरे जानू.. मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी! आप मन भर कर पीजिये! मेरा सब कुछ आपका ही है..”

मैं: “सुना नीलू..” कहते हुए मैंने संध्या के एक निप्पल को थोड़ा जोर से दबाया, जिससे उसकी सिसकी निकल गई। नीलम को वैसे तो मालूम ही है की उसके दीदी जीजू कहीं भी अपने प्यार का इजहार करने में शर्म महसूस नहीं करते... फिर जगह चाहे कोई भी हो!

नीलम (हमारी छेड़खानी को अनसुना और अनदेखा करते हुए): “जीजू दीदी.. मैं आप दोनों को खूब प्यार करती हूँ। उस दिन जब मैंने आप दोनों को.... सेक्स... (यह शब्द बोलते हुए वह थोडा सा हिचकिचा गई) करते हुए दूर से देखा था। मैं बस इतना कह रही हूँ की आज मुझे आप पास से कर के दिखा दो! यह मेरे लिए सबसे बड़ा गिफ्ट होगा।”

संध्या: “लेकिन नीलू, तेरे सामने करते हुए मुझे शरम आएगी।“ हम सभी जानते थे की यह पूरी तरह सच नहीं है।

नीलम: “प्लीज!”

संध्या: “लेकिन तू अभी बहुत छोटी है, इन सब बातों को समझने के लिए!”

नीलम: “मैं कोई छोटी वोटी नहीं हूँ! और तुम भी मुझसे बहुत बड़ी नहीं हो। मैं अभी उतनी बड़ी हूँ, जिस उम्र में तुमने जीजू से शादी कर ली थी! और जीजू, अगर आप दीदी के बजाय मुझे पसंद करते तो?”

मैं (मन में): ‘हे भगवान्! छोटी उम्र का विमोह!’

मैं (प्रक्तक्ष्य): “अगर मैं तुमको पसंद करता तो मैं इंतज़ार करता – तुम्हारे बड़े होने का!”

नीलम: “जीजू! मैं बड़ी हूँ... और... और... मैं सिर्फ देखना चाहती हूँ – करना नहीं। आप दोनों लोग उस दिन बहुत सुन्दर लग रहे थे। प्लीज़, एक बार फिर से कर लो!”

मैं: “जानती हो, अगर किसी को मालूम पड़ा, तो मैं और तुम्हारी दीदी, हम दोनों ही जेल के अन्दर होंगे!”

नीलम: “जेल के अन्दर क्यों होंगे? मैं अब बड़ी हो गई हूँ... वैसे भी, मैं किसी को क्यों कहूँगी? अगर आप लोग यह करेंगे तो मेरे लिए। किसी और के लिए थोड़े ही!“

मैं: “अब कैसे समझाऊँ तुझे!”

मैं (संध्या से): “आप क्या कहती हैं जानू?”

संध्या (शर्माते हुए): “आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं? बिना कपड़ो के तो मैं पड़ी हूँ!”

ऐसे खुलेपन से सेक्स की दावत! मेरा मन तो बन गया! वैसे भी, नींद तो कोसों दूर है.. मैं रजामंदी से मुस्कुराया।

नीलम (संध्या से): “दीदी, तुम मुझे एक बात करने दोगी?”

संध्या: “क्या?”

नीलम ने संध्या के ऊपर से चद्दर हटाते हुए उसके निप्पल को अपने मुँह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। नीलम के मुँह की छुवन और कमरे की ठंडक ने संध्या के शरीर में एक बिलकुल अनूठा एहसास उभार दिया। उसके दोनों निप्पल लगभग तुरंत ही इस प्रकार कड़े हो गए मानो की वो रक्त संचार की प्रबलता से चटक जायेंगे! उसकी योनि में नमी भी एक भयावह अनुपात में बढ़ गई। अपने ही पति के सामने उसके शरीर का इस प्रकार से अन्तरंग अतिक्रमण होना, संध्या के इस एहसास का एक कारण हो सकता है। संध्या वाकई यह यकीन ही नहीं कर पा रही थी की वह अपनी ही बहन के कारण इस कदर कामोत्तेजित हो रही थी। उसकी आँखें बंद थी। कामोद्दीपन से अभिभूत संध्या, नीलम को रोकने में असमर्थ थी – इसलिए वह उसको स्तनपान करने से रोक नहीं पाई।

लेकिन जिस तरह से अप्रत्याशित रूप से नीलम ने यह हरकत आरम्भ करी थी, उसी अप्रत्याशित तरीके से उसने रोक भी दी। नीलम ने संध्या को देखते हुए कहा,

“आई ऍम सॉरी, दीदी! पता नहीं मेरे सर में न जाने क्या घुस गया! सॉरी? माफ़ कर दो मुझे!”

संध्या की चेतना कुछ कुछ वापस आई, और वह उठ कर बैठ गई। इस नए अनुभव से वह अभी भी अभिप्लुत थी। संध्या और नीलम दोनों ही काफी करीब थीं – लेकिन इस प्रकार की अंतरंगता तो उनके बीच कभी नहीं आई। संध्या को यह अनुभव अच्छा लगा – अपने स्तानाग्रों का चूषण, और इस क्रिया के दौरान दोनों बहनों के बीच की निकटता। संध्या ने आगे बढ़ कर नीलम को अपने गले लगा लिया – उसने भी नीलम के कठोर हो चले निप्पल को अपने सीने पर महसूस किया ...

‘ये लड़की कब बड़ी हो गई!’

संध्या: “नीलू!”

नीलम (झिझकते हुए): “हाँ?”

संध्या: “प्लीज़, सॉरी मत कहो!”

नीलम: “नहीं दीदी! तुम मुझे इतना प्यार करती हो न... एक दम माँ जैसी! इसलिए इन्हें पीने का मन हुआ..। सॉरी दीदी!“

“तू माँ का दुद्धू अभी भी पीती है? उनको भी मिर्ची वाला आईडिया दूं क्या?” संध्या ने नीलम को छेड़ा।

नीलम (शरमाते हुए): “नहीं पागल... धत्त! ...लेकिन जीजू भी तो तुम्हारा दूध पीते हैं, और तुम माँ बनने वाली हो न, इसलिए मेरा मन किया। ... लेकिन इनमे तो दूध नहीं है.. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो!”

संध्या: “हम्म.. नीलू... अब बस! सॉरी शब्द दोबारा मत बोलना मुझसे! ठीक है?”

नीलम ने सर हिला के हामी भरी।

संध्या: “गुड! अब ले... जी भर के पी ले..”

नीलम: “क्या... मतलब?”

संध्या: “अरे पागल! ये बता, क्या तुमको इसे पीना अच्छा लगा?”

नीलम ने नज़र उठा कर संध्या की तरफ देखा और कहा, “हाँ दीदी, बहुत अच्छा लगा!”

संध्या: “फिर तो! लो, अब आराम से इसे दबा कर देखो और बेफिक्र होकर पियो! मुझे भी अच्छा लगेगा!” संध्या ने अपने निप्पल की तरफ इशारा किया।

“क्या सचमुच? मुझे लगा की तुमको अच्छा नहीं लगा! ..और... मुझे लगा की तुम मुझसे गुस्सा हो!”

“पगली, मैं तुमसे कभी भी गुस्सा नहीं हो सकती!” कहते हुए संध्या ने अपना कीमोनो पूरी तरह से उतार दिया, और मेरी तरह मुखातिब हो कर बोली, “ये दूसरा वाला आपके लिए है...”
 

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कुछ लिख लेता हूँ
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पता नहीं क्यों, नीलम इस बार कुछ हिचकिचा गई। जब कुछ देर तक उसने कुछ नहीं किया, तो संध्या ने खुद ही उसका हाथ पकड़ कर खुद ही अपने स्तन पर रख दिया। स्वतः प्रेरणा से उसने धीरे धीरे से चार पांच बार उसके स्तन को दबाया, और फिर अपना मुँह आगे बढ़ा कर उसका एक निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगी। मैंने भी संध्या का दूसरा स्तन भोगना आरम्भ कर दिया। उधर संध्या का हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से मेरे लिंग पर फिरने लगा – वो तो पहले से ही पूरी तरह से उन्नत था।

कमरे में अभी भी कुछ संभ्रम था - इतना तो तय है की मुझे यह सब कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन अब मुझे और हमको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। इतना तो तय था की संध्या को नीलम के साथ अपनी निजता को बांटना बहुत अच्छा लग रहा था। संध्या के स्तन इस तरह से अनावृत हो जाने से नीलम के मन में एक और चाहत जाग गई – वह बिस्तर से उठी और जा कर एक बत्ती जला आई। पूरी रौशनी से नहाये हुए संध्या के नग्न स्तनों को आज वह खूब करीब से देखना चाहती थी।

“दीदी, तुम कितनी सुन्दर हो!”

संध्या को अपने पेट में एक मीठी सी गुदगुदी जैसी महसूस हुई – यहाँ दो लोग, जिनको वो बहुत प्रेम करती है, और जो उसको बहुत प्रेम करते हैं, एक साथ बैठ कर उसके रूप का इस अन्तरंग तरह से आस्वादन कर रहे हैं। उसने बड़े प्रेम से एक एक हाथ से नीलम और मेरे गले में गलबाहें डालीं, और हमको अपने स्तनों की तरफ खींचा। नीलम उसके निप्पल को मुँह में भर कर चूसने लग गई; मैंने पहले उसके निप्पल के चहुँओर पहले तो मन भर कर चाटा, और फिर इत्मीनान से उसको चूसना आरम्भ किया। कुछ ही मिनटों के स्तनपान के बाद, संध्या का शरीर अचानक ही एक कमानी के जैसे हो गया और वह बिस्तर पर निढाल हो कर गिर गई और हांफने लगी..

“दीदी, क्या हुआ?” नीलम ने चिंता और सहानुभूति से पूछा।

संध्या कुछ बोली नहीं, बस हाँफते हाँफते मुस्कुराई। मुझे मालूम था की क्या हुआ.. इसलिए मैंने मैदान नहीं छोड़ा। मेरा हाथ उसकी कमर को टटोल रहा था। अगले पांच सेकंड में मेरी उंगलियाँ उसकी योनि रस से गीली हो चली चड्ढी के ऊपर से उसकी योनि का मर्दन कर रही थीं। मेरी इस हरकत से उसकी योनि से और ज्यादा रस निकलने लगा।

नीलम को सेक्स का कोई बहुत ज्ञान तो था नहीं – उसको संभवतः बस उतना ही पता था जितना की उसने हमको करते हुए देखा था। और कोई कितनी देर तक सिर्फ स्तनपान कर सकता है? कुछ देर में नीलम थक गई (या बोर हो गई) और संध्या से अलग हो गई। इतनी देर में मेरा लिंग भी अपने निर्धारित कार्य के लिए तैयार हो चला था – नीलम से यह बात छुपी नहीं।

“जीजू, अब आप दीदी के साथ ‘सेक्स’ करिए न?”

किसी के सामने निर्वस्त्र वैसे भी आसान नहीं होता। और यहाँ पर स्थिति थोड़ा भिन्न थी – यहाँ पर एक जिज्ञासु लड़की मुझे अपनी पत्नी के साथ उसके सामने सेक्स करने को कह रही थी। खैर, संध्या को लगभग नग्न देख कर मेरी खुद की अभिज्ञता कुछ कम हो गई थी – लिहाज़ा, मैंने भी अपने कपड़े उतारे, और साथ ही साथ यह आलोकन भी किया की हम तीनों में सिर्फ नीलम ही है जिसने सारे कपड़े पहन रखे हैं।

“नीलू, यह तो बहुत बेढंगा लगता है की हम दोनों के कपड़े उतर रहे हैं, और तुमने सब कुछ पहना हुआ है। तुम भी तो उतारो!”

“जीजू... ये भी क्या पहना है मैंने! सब कुछ तो दिख रहा है!”

मैंने आगे कोई जिद नहीं करी। लेकिन जो कुछ नीलम ने आगे किया, उसको देख कर हम दोनों ही मुस्कुरा उठे। उसने जल्दी से अपनी नाईटी उतार फेंकी और अपने जन्मदिन वाले सूट (अर्थात पूर्णतः नग्न) में हमारे सामने बिस्तर पर बैठ गई। आज पहली बार नीलम का वयस्क रूप मैंने और संध्या ने देखा था। नीलम की छाती पर अब संतरे के आकार के दो स्तन बिलकुल तन कर खड़े हो गए थे, और उसके शरीर पर बहुत ही शोभन लग रहे थे। उसके निप्पल गहरे भूरे रंग के थे, और उनके बगल हलके भूरे रंग का कोई डेढ़ इंच व्यास का areola विकसित हो गया था।

“अब करिए..?” नीलम कितनी उतावली हो रही थी हमको सेक्स करते देखने के लिए!

मेरे मन में द्वंद्व छिड़ गया - क्या यह ठीक होगा? कहीं इसके दिमाग पर बुरा असर न पड़े! बुरा असर क्यों होगा? आखिर यह शिक्षा तो सभी को चाहिए ही न! ऐसी कोई छोटी भी तो नहीं है! जल्दी ही इसकी शादी भी इसके परिवार वाले ढूँढने लग जायेंगे! उसके पहले इसको सेक्स के बारे में मालूम हो जाय तो अच्छा है।

अब कहानी आगे बढ़ने से पहले एक सवाल का जवाब आप ही लोग दीजिए : अगर कोई सुन्दर सी लड़की अगर इस तरह अन्तरंग तरीके से आपके सामने निर्वस्त्र हो जाय, तो उसका कुछ तो आदर होना चाहिए की नहीं? मैंने आगे बढ़ कर उसके दोनों चूचुकों पर एक एक चुम्बन ले लिया। नीलम सिहर उठी। मुझे मालूम था की संध्या नीचे लेटी हुई है.. लेकिन नीलम को कुछ तो यादगार व्यक्तिगत अनुभव होना ही चाहिए! मैंने नीलम की कमर पकड़ कर अपनी तरफ खींचा, और फिर इत्मीनान से उसके स्तनों को बारी बारी से अपने मुंह में भर कर चूसने लगा। कमरे में नीलम की हाय तौबा गूंजने लगी। उसको नज़रंदाज़ कर के मैं साथ ही साथ उसके दोनों नितम्बों को मसल भी रहा था।

“जीजू... बस्स्स्स! आह! म्म्मेरे साथ.. न्न्न्हीं.. दी..दी.. के साथ..” वो उन्माद में न जाने क्या क्या बड़बड़ा रही थी। लेकिन मैंने बिना रुके तबियत से उसके स्तनों को कोई दस मिनट तक चूमा और चूसा। उत्तेजनावश उसके स्तन इस समय साइज़ में कोई बड़े लग रहे थे, और और दोनों चूचक वैसे तन कर खड़े हो गए जैसे रबर-वाली पेंसिल के रबर! एकदम सावधान! खैर अंततः मैंने नीलम को छोड़ा – वो बुरी तरह से हांफ रही थी। दोनों निप्पल इस कदर चूसे जाने से लाल हो गए थे, और उसके शरीर पर, ख़ास तौर पर स्तनों, पेट और नितम्बों पर लाल निशान पड़ गए थे।

“हैप्पी बर्थडे!” मैंने मुस्कुराते हुए बस इतना ही कहा। नीलम उत्तर में शर्मा गई।

“ह्म्म्म... तो जीजा और साली आपस में ही बर्थडे बर्थडे खेले ले रहे हैं? अपनी दीदी को ट्रीट नहीं दोगी?” संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

“ट्रीट?”

संध्या भी लगता है अपने स्तन पिए जाने का हिसाब बराबर करना चाहती थी। वह उठ कर अपना हाथ नीलम के स्तनों पर रख कर उनको धीरे धीरे सहलाने लगी। नीलम के स्तन छोटे छोटे तो थे, लेकिन संध्या के स्तनों जैसे प्यारे से थे। नीलम की सिसकियाँ निकल पड़ीं। संध्या को अभी ठीक से आईडिया नहीं था – उसने नीलम के एक निप्पल को जोश में आकर कुछ ज्यादा ही जोर से मसल दिया।

नीलम: “सीईईई... क्या कर रही हो दीदी! आराम से करो न! जीजू ने वैसे ही मेरी जान निकाल दी है।”

संध्या यह इशारा पा कर अब खुल कर नीलम के स्तनों से खेलने लग गई। कुछ तो मेरे सिखाई विद्या, और कुछ उसकी खुद की जिज्ञासा... कभी नीलम के प्रोत्साहन से संध्या भी स्तन-रस-पान करने लगी। नीलम के चूचुक को प्यार से रगड़ने के बाद उसके स्तनों को चूसना शुरू कर दिया, तो वो एकदम गरम हो गई थी। मैं क्या करता? मैंने संध्या के पेट और नाभि के आस पास चूमना और चाटना शुरू कर दिया। कमरे में नग्न पड़े तीन जिस्म अब सुलग उठे थे। कुछ ही पलों के बाद नीलम अपने जीवन की प्रथम रति-निष्पत्ति का अनुभव कर के गहरी गहरी साँसे भरने लगी। उसकी योनि के स्राव से निकलती नमकीन सी खुशबू हम दोनों ने महसूस करी। नीलम इन सबसे बेखबर, अपनी आँखें बंद किये मानो जैसे सपनो की दुनिया में खोई हुई थी - उसकी साँसे तेजी से चल रही थीं, और होंठ कांप रहे थे। वो अभी अभी अनुभव किये नए आनंद के सागर के तल तक गोते लगा रही थी।

“वैरी हैप्पी बर्थडे नीलू!” कहते हुए संध्या ने नीलम को होंठों पर चूम लिया, और आगे कहा, “... कैसा लगा?”

“आअह्ह्ह्ह दीदी! एकदम अनोखा!” नीलम ने गहरी सांस भरी। “... अब आप लोग करो न प्लीज!”

हम लोग तो तैयार थे – बस दर्शक (नीलम) के रेडी होने की बात जोह रहे थे। संध्या के हरी झंडी दिखाते ही मैंने उसको छेड़ना शुरू कर दिया। गर्भधारण करने से स्त्रियों के शरीर में कई सारे परिवर्तन होने लगते हैं। उनमें से एक है - एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन रसायनों के स्तर में वृद्धि! ये दोनों रसायन स्त्रियों के शरीर को कुछ इस तरह से बदल देते हैं की उनमें गर्भावस्था के दौरान कामेच्छा काफी बढ़ जाती है। इनके कारण गर्भाशय में रक्त का प्रवाह और प्राकृतिक चिकनाई बढ़ जाती है, और स्तनों और निपल्स में संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है। कहना गलत न होगा, की बहुत सी स्त्रियाँ (जिनका स्वास्थ्य इत्यादि ठीक हो) गर्भधारण के उपरान्त यौन संसर्ग का और अधिक आनंद उठाती हैं! लिहाजा, संध्या जो पहले से ही रति का अवतार है, अब और भी कामुक हो गई थी।

संध्या : “उफ़.. आप क्या कर रहे हैं?”

मैं : “अरे भई! मौके का सही फायदा उठा रहा हूँ। तुम्हारी बहन के लिए अच्छा सा गिफ्ट ला रहा हूँ...”

कहते हुए मैंने संध्या को टांगों से खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया, और उसके स्तन दबाने लगा। संध्या ने अपनी आंखें बंद कर रखी थी। वैसे भी उसके स्तन उत्तेजनावश पहले ही सख्त हो चुके थे।

संध्या बोली, “हाय! क्या करते हो? आराम से! आपका हाथ बहुत कड़क पड़ता है! ‘ये’ बहुत सेंसिटिव हो गए हैं अब! पहले ही तुम दोनों ने चूस चूस कर इनका हाल बुरा कर दिया है.. अब बस...”

मैंने कहा, “अरे! लेकिन ये सब नहीं करूंगा तो नीलम क्या सीखेगी?” कह कर मैं फिर उसके स्तनों का मर्दन करने लगा।

संध्या बोली, “प्लीज़ जानू ! दर्द होता है! अब आप सीधा मेन काम करिए.. मैं पूरी तरह से तैयार हूँ..”

तैयार तो थी! मैंने संध्या को अपनी बाँहो में भर लिया, और उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कुछ देर तक ऐसे ही उसके पूरे शरीर को चूमा। अब संध्या पूरी तरह से तैयार थी। उसके लिए ये फोरप्ले कुछ ज्यादा ही हो गया था।

मैं उसके पेट पर हाथ फिराते हुए उसकी चड्ढी के अन्दर ले गया। उसकी योनि उत्तेजनावश जैसे पाव रोटी की तरह सूजी हुई थी। मैंने चड्ढी के अन्दर से उसकी योनि को सहलाने लगा। संध्या ने अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ देर ऐसे ही छेड़खानी करने के बाद मैंने उसकी चड्ढी भी उतार दी और अपनी तर्जनी और अंगूठे की मदद से उसकी योनि के होंठों को खोलने और बन्द करने लगा, और साथ ही साथ उसके भगशिश्न को भी छेड़ने लगा। संध्या के मुँह से कामुक कराहें निकलने लगी, और वो मस्त होकर मेरे लिंग को अपने हाथ में पकड़ कर दबाने और सहलाने लगी।

“बोलो संध्या रानी! चुदने का मन हो रहा है या नहीं?”

“छी! जानू.. आप बहुत गंदे हो!”

“अरे बोल न! ऐसे क्यों शर्मा रही है? बोल न... चुदने का मन हो रहा है?” संध्या समझ गई की बिना ‘डर्टी-टॉक’ किये मैं कुछ नहीं करूंगा.. इसलिए उसने पीछा छुडाने के लिए कहा,

“हाँ जानू.. बहुत मन हो रहा है।“

अब आप लोग ही सोचिए – एक लड़की पूरी तरह से नंगी दो लोगों के सामने भोगे जाने हेतु पड़ी हुई है, लेकिन फिर भी माकूल या मुनासिब व्यवहार नहीं छोड़ रही है! भारतीय लड़कियाँ वाकई कमाल होती हैं। मुझे मालूम था की इससे अधिक वो और कुछ नहीं कहेगी। मैंने संध्या को सावधानी पूर्वक बिस्तर पर वापस लिटाया और अपने लिंग को उसकी योनि की दरार पर कई बार फिरा कर गीला कर लिया। उसकी योनि से कामरस मानों बह रहा था। जब वो अच्छी तरह से गीला हो गया, तब मैंने अपने लिंग को पकड़ कर उसकी योनि के भीतर धीरे से ठेल दिया। मेरे लिंग का सुपाड़ा उसकी योनि में भीतर तक घुस गया – इतनी चिकनाई थी अन्दर। संध्या के मुँह से आह निकल पड़ी।

आगे हम एक दूसरे को चूमते हुए वही पुरानी आदि-कालीन क्रिया करने लगे। पहले धीरे धीरे और फिर बाद में तेजी से मैं अपने लिंग को संध्या की योनि के अन्दर-बाहर करने लगा। कुछ देर बाद संध्या ने अपनी टांगें ऊपर की तरफ मोड़ ली और मेरी कमर के दोनों तरफ लपेट ली। अब मेरा लिंग संध्या की योनि में तेजी से अन्दर-बाहर हो रहा था – इस गति में आयाम कम, लेकिन आवृत्ति बहुत ही अधिक थी। मैं अब तेज-तेज धक्के मार रहा था। काम का नशा अब हमारे सर चढ़ गया था। संध्या भी आनंद लेते हुए मेरे हर धक्के का स्वाद ले रही थी।

संध्या ने मेरे नितम्बों को अपने हाथों में थाम रखा था और उनको पकड़े हुए ही वो भी नीचे से मेरे धक्कों के साथ-साथ अपने नितम्ब की ताल दे रही थी। योनि सुरंग में पहले से ही काम-रस की बाढ़ आई हुई थी, और इतने मर्दन के बाद अब मेरा लिंग बिना रुके हुए आराम से अन्दर बाहर फिसल रहा था। इस सम्भोग का आनंद संध्या महसूस करके, और नीलम अवलोकन करके ले रहे थे। इस नए परिवेश में मैंने भी संध्या को किसी पागल की भांति भोग रहा था।

मैंने पूछा, “जानेमन, अच्छा लग रहा है?”

संध्या बोली, “हमेशा ही लगता है! आपका लंड इतना तगड़ा है, और आपके चुदाई का तरीका इतना शानदार! बहुत अच्छा लग रहा है। बस आप तेज-तेज करते रहो।”

गन्दी बात! वाह! उसके मुंह से यह बात सुन कर मैंने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी। मैं वाकई उसको ‘चोदने’ लग गया। मेरा लिंग सटासट उसकी योनि में तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था। संध्या मस्ती में ‘आअह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह’ करती रही। कोई पांच मिनट चले इस घमासान के बीच अचानक ही संध्या ने मुझे कस कर अपनी बाँहो में भर लिया। मैं समझ गया की इसका काम तो हो गया। और अगले ही पल उसने एक जोर से आह भरी और आखिरी बार अपने नितम्ब को मेरे लिंग पर ठेला, और फिर बिस्तर पर अपने पैर पसार कर ढेर हो गई। मैंने भी जल्दी जल्दी धक्के लगाए और आखिरी क्षण में लिंग को उसकी योनि से बाहर निकाल कर उसके पेट पर अपनी वीर्य की कई सारी धाराएँ छोड़ दीं।

फिर मैं गहरी साँसे भरता हुआ संध्या के बगल लेट गया और कुछ देर तक सांसों को संयत करता रहा। संध्या भी मेरे बगल अपनी आँखें बंद करके लेटी हुई थी। इस पूरे वाकए को नीलम खामोशी से (और विस्मय के साथ भी) देखती रही। मैंने उसकी तरफ मुखातिब हो कर कहा,

“नीलू, ज़रा क्लोसेट से मेरी एक रूमाल निकाल कर देना तो!”

वो तो जैसे किसी सम्मोहन से जागी। फिर मेरी अलमारी से उसने एक रूमाल निकाल कर मुझे सौंप दिया। मैंने रूमाल से संध्या के पेट पर गिरा वीर्य और अपना लिंग साफ़ किया और उठ कर बाथरूम के अन्दर फेंक दिया। वापस आकर मैं फिर से उसकी बगल में लेट गया, और उसके स्तनों पर हाथ फेरने लगा।

संध्या : “हो गई तुम्हारे मन की?” यह प्रश्न नीलम के लिए था।

नीलम ने कुछ नहीं कहा।

“बोल न? गिफ्ट कैसा लगा?”

“दीदी! मैं नहीं करूंगी यह सब कभी भी..” नीलम ने रुआंसी आवाज़ में कहा, “... बाप रे! मैं तो मर जाऊंगी!”

“नीलू बेटा!” मैंने कहा, “जब तुम्हारे हस्बैंड का लंड तुम्हारे अन्दर जाएगा न, तब तुम यह कहना भूल जाओगी!”

कह कर मैंने संध्या को अपनी बाँहो में भर लिया, और कुछ देर तक ऐसे ही नीलम को समझाते रहे। फिर संध्या ने कहा, “मैं तो थक गई हूँ... चलो अब सो जाते हैं!” और कह कर अगले कुछ ही पलों में वो सो गई। नीलम भी संध्या के बगल चुपचाप पड़ी रही। मैं कब सोया कुछ याद नहीं।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अगला अपडेट कब तक आने की उम्मीद है

लिख दिया अपडेट भाई।
मेरी इंग्लिश वाली कहानी लिखते लिखते इसको अपडेट करना याद ही नहीं रहा।
और उधर कोई यही कहानी चेप कर नया थ्रेड खोल लिया है 😂
खैर, कोई बात नहीं। यह कहानी किन किन लोगों ने, और कहाँ कहाँ पोस्ट करीं हैं अपने नाम से, कि क्या कहूँ।
 
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Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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इस गति में आयाम कम, लेकिन आवृत्ति बहुत ही अधिक थी।


शब्दों की कलाकारी। शानदार, जानदार, अप्रतिम।

अंत में इतना ही _ लगे रहो बहादुरों।

आशु ।
 
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Chetan11

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Amazing update. A great storyteller is someone whose writing brings the scene in front of the eyes of the reader. Keep going
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Amazing update. A great storyteller is someone whose writing brings the scene in front of the eyes of the reader. Keep going

Many thanks my friends 😊
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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शब्दों की कलाकारी। शानदार, जानदार, अप्रतिम।

अंत में इतना ही _ लगे रहो बहादुरों।

आशु ।
बहुत ही शानदार अपडेट है
Amazing update. A great storyteller is someone whose writing brings the scene in front of the eyes of the reader. Keep going

मित्रों बहुत बहुत धन्यवाद 😊😊
 
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