दिल्ली से गौचर पहुँचने में पूरे दो दिन लग गए। एक कारण तो पहाड़ी रास्ता है, और दूसरा यह की गौचर से कोई पचास किलोमीटर पहले ही से मैंने अस्पतालों में जा जा कर संध्या के बारे में पता लगाना शुरू कर दिया था। संध्या की तस्वीरों की प्रिंट मैंने दिल्ली में ही निकाल ली थीं, जिससे लोगों तो दिखाने में आसानी हो। मैं उनको सारी बातें विस्तार में बताता, यह भी बताता की नेशनल जियोग्राफिक वालों ने त्रासदी के समय डाक्यूमेंट्री फिल्माई होगी यहाँ। गौचर तक पहुँचते पहुँचते कोई पांच छोटे बड़े अस्पतालों में बात कर चुका था, लेकिन कोई लाभ, कोई सूत्र, अभी तक नहीं मिला था।
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हर रोज़ की तरह कुंदन घर के दरवाज़े पर बाहर से ताला डाल कर काम पर चला गया। जाने से पहले उसने दैनिक सम्भोग की खुराक लेनी न भूली। कुन्दन के जाने के कोई पंद्रह मिनट के बाद अंजू ने कपडे पहने, और दरवाज़े पर घर के अन्दर से दस्तक दी। पहले धीरे धीरे, और फिर तेज़ से। किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
कोई पंद्रह बीस मिनट तक ऐसे ही खटखटाने के बाद अंजू बुरी तरह से निराश हो गई, और निरी हताशा, खीझ और गुस्से में आ कर दरवाज़े को पीटने लगी। अंत में बाहर से आवाज़ आई,
“कौन है अन्दर?”
“मैं हूँ.. अंजू!”
“अंजू? कौन अंजू? कौन हो तुम बेटी?”
“आप..?”
“मैं यहाँ पड़ोस में रहता हूँ.. मेरा नाम रामलाल है। तुम बहुत देर से दरवाज़ा पीट रही हो। यहाँ मेरे साथ सात-आठ और लोग हैं.. तुम घबराओ मत.. मेरी बात का जवाब दो.. कौन हो तुम?”
“जी.. मैं अंजू हूँ..”
“वो तो हमने सुना.. लेकिन कौन हो?”
“जी मैं.. इनकी.. पत्नी हूँ!”
“किसकी पत्नी?” रामलाल ने जोर से पूछा, जैसे उसको सुनाई न दिया हो।
“इनकी.. कुंदन की..”
“कुंदन की पत्नी?”
“जी!”
रामलाल कुछ कहते कहते रुक गया। फिर कहा,
“लेकिन तुम अन्दर क्यों बंद हो?”
“वो ही बाहर से बंद कर के गए हैं..”
“बाहर आना चाहती हो?”
“जी.. लेकिन..”
“देखो बेटी, अगर बाहर आना चाहती हो, तो बताओ.. हम तब ही कुछ कर पाएंगे।”
“जी.. मैं आना चाहती हूँ..”
“ठीक है.. कुछ पल ठहरो, और दरवाज़े से दूर हट जाओ..”
कुछ देर के बाद दरवाज़े पर जोर की खट-पट हुई.. फिर कुछ टूटने की आवाज़ आई। नहीं दरवाज़ा नहीं, बस ताला ही टूटा था। दरवाज़ा खुल गया। अंजू को घोर आश्चर्य हुआ जब उसने देखा की घर के बाहर कम से कम बीस पच्चीस लोगों की भीड़ लगी हुई थी। वो बहुत डर गई, और अपने आप में ही सिमट कर घर के कोने में बैठ गई।
उसकी ऐसी हालत देख कर दो महिलाएँ घर के अन्दर आईं, और उसको स्वन्त्वाना और दिलासा देने लगीं। उसको समझाने लगीं की यहाँ कोई उसको कैसे भी कुछ नहीं पहुंचाएगा। खैर, कोई आधे घंटे बाद अंजू बात करने की हालत में वापस आई।
“हाँ बेटी, अब बोल! तू कह रही थी की तू कुंदन की पत्नी है?”
“ज्ज्जी...”
अंजू को लग गया की कुछ गड़बड़ तो हो गई है। उसकी स्त्री सुलभ छठी इन्द्रिय कह रही थी कुछ भारी गड़बड़ थी। अगर वो कुंदन की पत्नी थी, तो कोई पडोसी उसको जानते क्यों नहीं थे?
“कब हुई तेरी शादी?”
इस बात का क्या उत्तर देती वो!
“आप मुझे नहीं जानते?” उसने एक तरीके से विनती करते हुए रामलाल से पूछा। मन ही मन भगवान् से प्रार्थना भी करी की काश उसको ये लोग जानते हों!
“उसका उत्तर मैं बाद में दूंगा, पहले ये बता की तू आई कब यहाँ?”
“चार दिन पहले!”
“कहाँ से?”
“मैं अस्पताल में थी न.. कोमा में.. कोई दो साल के आस पास..”
“कोमा में..?”
“ज्जी..”
“तो क्या तुमको याद नहीं है की तुम कौन हो?”
“नहीं..”
“और तुम्हारा नाम?”
“उन्होंने ही बताया..”
“अच्छा?”
“हाँ!”
“और यह भी बताया की तुम उसकी पत्नी हो?”
“जी..” इस पूरे प्रश्नोत्तर के कारण अंजू का दिल बहुत धड़क रहा था।
‘हे प्रभु! हे भगवान एकलिंग! बचा लो!’
“और तुम दोनों पति पत्नी के जैसे रह रहे हो – पिछले चार दिनों से?”
इस प्रश्न का भला क्या उत्तर दे अंजू? वो सिमट गई – कुछ बोल न पाई। लेकिन रामलाल को अपना उत्तर मिल गया।
“अब कृपा कर के मेरे प्रश्नों के उत्तर बताइए! क्या आप मुझे जानते हैं?”
“बिटिया,” रामलाल ने पूरी गंभीरता से कहा, “मैं अपनी पूरी उम्र यहाँ रहा हूँ.. इसी कस्बे में! और मेरे साथ ये इतने सारे लोग। मैं ही क्या, यहाँ कोई भी तुमको नहीं जानता। लेकिन तुम्हारी बातों से मुझे और सबको समझ में आ रहा है की क्या हुआ है तुम्हारे साथ..”
रामलाल ने आखिरी कुछ शब्द बहुत चबा चबा कर गुस्से के साथ बोले। और फिर अचानक ही वो दहाड़ उठे,
“हरिया, शोभन.. पकड़ कर घसीटते हुए लाओ उस हरामजादे को..”
अंजू हतप्रभ रह गई! घसीटते हुए? क्यों? उसने डरी हुई आँखों से रामलाल को देखा।
कहीं इसी कारण से तो कुंदन उसको घर में बंद कर के तो नहीं रखता था? कहीं उसको पड़ोसियों से खतरा तो नहीं था? रामलाल ने जैसे उसकी मन की बात पढ़ ली।
“बिटिया.. घबराओ मत! इस बात की मैं गारंटी देता हूँ, की तू उस कुंदन की पत्नी नहीं है.. उस सूअर ने तेरी याददाश्त जाने का फायदा उठाया है, और तेरी... इज्ज़त से भी... खिलवाड़ किया है… पाप का प्रायश्चित तो उसे करना ही पड़ेगा..”
‘पत्नी नहीं.. फायदा उठाया... इज्ज़त से खिलवाड़..’
“..उसकी तो अभी तक शादी ही नहीं हुई है.. उस नपुंसक को कौन अपनी लड़की देगा?” रामलाल अपनी झोंक में कहते जा रहा था।
‘शादी नहीं.. नपुंसक..?’
अंजू को लगा की वो दहाड़ें मार कर रोए.. लेकिन उसको तो जैसे काठ मार गया हो। न रोई, न चिल्लाई.. बस चुप चाप बुत बनी बैठी रही.. और खामोश आंसू बहाती रही।
हाँलाकि अंजू अब किसी बात का कोई जवाब नहीं दे रही थी, लेकिन फिर भी रामलाल और कंपनी ने सारे घटना क्रम का दो दूनी चार करने में बहुत देर नहीं लगाई। उनको मालूम था की कुंदन केदारनाथ यात्रा करने गया था, और वहां वो भी त्रासदी की चपेट में आ गया था। वहीँ कहीं उसको यह लड़की मिली होगी – जाहिर सी बात है, इसका नाम अंजू नहीं है। उसने अपने आपको उस लड़की का पति बताया होगा, जिससे अस्पताल वाले खुद ही उस लड़की को उसके हवाले कर दें, और वो बैठे बिठाए मौज करे!
तब तक हरिया और शोभन कुंदन को सचमुच में घसीटते हुए लाते दिखे। माब-जस्टिस के बारे में तो सुना ही होगा आप लोगो ने? खास तौर पर तब, जब मामला किसी लड़की की इज्ज़त का हो। भीड़ का पारा ऐसी बातों से सारे बंधन तोड़ कर चढ़ता है, और जब तक अत्याचारी की कोई भी हड्डी सलामत रहती है, तब तक उसकी पिटाई होती रहती है। हरिया और शोभन ने लगता है कुंदन को वहां लाने से पहले जम कर कूटा था।
अंजू ने देखा – कुंदन का सर लहू-लुहान था, उसकी कमीज़ फट गई थी, और कुहनियाँ और बाहें रक्तरंजित हो गई थी। घसीटे जाने से उसकी पैन्ट भी जगह जगह से घिस और फट गई थी। सवेरे का आत्मविश्वास से भरपूर कुंदन इस समय वैसे ही डरा हुआ लग रहा था, जैसे हलाल होने के ठीक पहले कोई बकरा। अंजू ने उसको देखा तो मन घृणा से भर उठा। कुंदन ने उसकी तरफ देखा – पता नहीं उसको अंजू दिखी या नहीं, लेकिन उसकी व्याकुल और कातर निगाहें किसी भी हमदर्दी भरी दृष्टि की प्यासी हो रही थीं। कोई तो हो, जो इस अत्याचार को रोक सके!
लेकिन लगता है की किसी को भी कुंदन पर लेशमात्र की भी दया नहीं थी। वहां लाये जाते ही भीड़ उस पर पिल पड़ी – बरसों की पहचान जैसे कोई मायने नहीं रखती थी। जिस गति से कुंदन पर लातें और घूंसे बरस रहे थे, उसी गति से उस पर भद्दी भद्दी गालियों की बौछार भी हो रही थी। कस्बे के चौराहे पर कुंदन के साथ साथ उसके पूर्वज, और पूरे खानदान की इज्ज़त नीलाम हो रही थी।
“मादरचोद, इस मरियल सी छुन्नी में बहुत गर्मी आ गई है क्या?” कोई गरजा।
अंजू ने उस तरफ देखा। कुंदन को वही एक तरफ पेड़ से टिका कर बाँध दिया गया था। वो इस समय पूरी तरह से नंगा था। वो कहते हैं न, आदमी शुरू की मार की पीड़ा से डरता है.. बाद मैं गिनती भी कहाँ याद रह जाती है? कुंदन एकदम निरीह सा लग रहा था! वो कुछ बोल नहीं पा रहा था, लेकिन उसकी आँखें चिल्ला चिल्ला कर अपने लिए रहम की भीख मांग रही थीं।
“अरे सोच क्या रहे हो.. साले को बधिया कर दो! वैसे ही नपुंसक है.. गोटियों का क्या काम?” किसी ने सुझाया।
ऐसा लग रहा था की न्यायपालिका वहीँ कस्बे के चौराहे पर खुल गई थी।
“सही कह रहे हो.. अबे शोभन.. ज़रा दरांती तो ला.. इस मादरचोद का क्रिया-करम यहीं कर देते हैं..” एक और न्यायाधीश बोला।
अंजू की आँखों की घृणा यह सब बातें सुन कर अचानक ही पहले तो डर, और फिर कुंदन के लिए सहानुभूति में बदल गई। ठीक है कुंदन ने उसके साथ वो सब कुछ किया, जो उसको नहीं करना चाहिए था, लेकिन उसने अंजू की जान भी तो बचाई थी। एक क्षणिक अविवेक, और स्वार्थ की भावना के कारण जो कुछ हो गया, उसकी ऐसी सजा तो नहीं दी सकती। कम से कम अंजू तो नहीं दे सकती।
“नहीईईईईईईईईईईईई!” वो जोर से चीखी! “बस करो यह सब! जानवर हो क्या सभी?”
एकाएक जैसे अफीम के नशे में धुत्त भीड़ को किसी ने झिंझोड़ के जगा दिया हो। सारे न्यायाधीश लोग एकाएक सकते में आ गए।
“जिसको अपनी उम्र भर जाना, उसके साथ यह सब करोगे? कोई मानवता बची हुई है? इसको तुम नपुंसक कहते हो? तो तुम लोग क्या हो? मर्द हो? ऐसे दिखाते हैं मर्दानगी?”
अंजू चीखती जा रही थी.. अचानक ही उसकी आवाज़ आना बंद हो गई। जिस वीभत्स दृश्य से वो अभी दो-चार हुई थी, उसके डर से अंजू का गला भर गया। उसकी हिचकियाँ बंध गई, और वो रोने लगी। कुंदन अचेत होने से पहले बस इतना समझ पाया की उसकी जान बच गई थी।
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