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Romance कायाकल्प [Completed]

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mashish

BHARAT
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दिल्ली से गौचर पहुँचने में पूरे दो दिन लग गए। एक कारण तो पहाड़ी रास्ता है, और दूसरा यह की गौचर से कोई पचास किलोमीटर पहले ही से मैंने अस्पतालों में जा जा कर संध्या के बारे में पता लगाना शुरू कर दिया था। संध्या की तस्वीरों की प्रिंट मैंने दिल्ली में ही निकाल ली थीं, जिससे लोगों तो दिखाने में आसानी हो। मैं उनको सारी बातें विस्तार में बताता, यह भी बताता की नेशनल जियोग्राफिक वालों ने त्रासदी के समय डाक्यूमेंट्री फिल्माई होगी यहाँ। गौचर तक पहुँचते पहुँचते कोई पांच छोटे बड़े अस्पतालों में बात कर चुका था, लेकिन कोई लाभ, कोई सूत्र, अभी तक नहीं मिला था।


****


हर रोज़ की तरह कुंदन घर के दरवाज़े पर बाहर से ताला डाल कर काम पर चला गया। जाने से पहले उसने दैनिक सम्भोग की खुराक लेनी न भूली। कुन्दन के जाने के कोई पंद्रह मिनट के बाद अंजू ने कपडे पहने, और दरवाज़े पर घर के अन्दर से दस्तक दी। पहले धीरे धीरे, और फिर तेज़ से। किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।

कोई पंद्रह बीस मिनट तक ऐसे ही खटखटाने के बाद अंजू बुरी तरह से निराश हो गई, और निरी हताशा, खीझ और गुस्से में आ कर दरवाज़े को पीटने लगी। अंत में बाहर से आवाज़ आई,

“कौन है अन्दर?”

“मैं हूँ.. अंजू!”

“अंजू? कौन अंजू? कौन हो तुम बेटी?”

“आप..?”

“मैं यहाँ पड़ोस में रहता हूँ.. मेरा नाम रामलाल है। तुम बहुत देर से दरवाज़ा पीट रही हो। यहाँ मेरे साथ सात-आठ और लोग हैं.. तुम घबराओ मत.. मेरी बात का जवाब दो.. कौन हो तुम?”

“जी.. मैं अंजू हूँ..”

“वो तो हमने सुना.. लेकिन कौन हो?”

“जी मैं.. इनकी.. पत्नी हूँ!”

“किसकी पत्नी?” रामलाल ने जोर से पूछा, जैसे उसको सुनाई न दिया हो।

“इनकी.. कुंदन की..”

“कुंदन की पत्नी?”

“जी!”

रामलाल कुछ कहते कहते रुक गया। फिर कहा,

“लेकिन तुम अन्दर क्यों बंद हो?”

“वो ही बाहर से बंद कर के गए हैं..”

“बाहर आना चाहती हो?”

“जी.. लेकिन..”

“देखो बेटी, अगर बाहर आना चाहती हो, तो बताओ.. हम तब ही कुछ कर पाएंगे।”

“जी.. मैं आना चाहती हूँ..”

“ठीक है.. कुछ पल ठहरो, और दरवाज़े से दूर हट जाओ..”

कुछ देर के बाद दरवाज़े पर जोर की खट-पट हुई.. फिर कुछ टूटने की आवाज़ आई। नहीं दरवाज़ा नहीं, बस ताला ही टूटा था। दरवाज़ा खुल गया। अंजू को घोर आश्चर्य हुआ जब उसने देखा की घर के बाहर कम से कम बीस पच्चीस लोगों की भीड़ लगी हुई थी। वो बहुत डर गई, और अपने आप में ही सिमट कर घर के कोने में बैठ गई।

उसकी ऐसी हालत देख कर दो महिलाएँ घर के अन्दर आईं, और उसको स्वन्त्वाना और दिलासा देने लगीं। उसको समझाने लगीं की यहाँ कोई उसको कैसे भी कुछ नहीं पहुंचाएगा। खैर, कोई आधे घंटे बाद अंजू बात करने की हालत में वापस आई।

“हाँ बेटी, अब बोल! तू कह रही थी की तू कुंदन की पत्नी है?”

“ज्ज्जी...”

अंजू को लग गया की कुछ गड़बड़ तो हो गई है। उसकी स्त्री सुलभ छठी इन्द्रिय कह रही थी कुछ भारी गड़बड़ थी। अगर वो कुंदन की पत्नी थी, तो कोई पडोसी उसको जानते क्यों नहीं थे?

“कब हुई तेरी शादी?”

इस बात का क्या उत्तर देती वो!

“आप मुझे नहीं जानते?” उसने एक तरीके से विनती करते हुए रामलाल से पूछा। मन ही मन भगवान् से प्रार्थना भी करी की काश उसको ये लोग जानते हों!

“उसका उत्तर मैं बाद में दूंगा, पहले ये बता की तू आई कब यहाँ?”

“चार दिन पहले!”

“कहाँ से?”

“मैं अस्पताल में थी न.. कोमा में.. कोई दो साल के आस पास..”

“कोमा में..?”

“ज्जी..”

“तो क्या तुमको याद नहीं है की तुम कौन हो?”

“नहीं..”

“और तुम्हारा नाम?”

“उन्होंने ही बताया..”

“अच्छा?”

“हाँ!”

“और यह भी बताया की तुम उसकी पत्नी हो?”

“जी..” इस पूरे प्रश्नोत्तर के कारण अंजू का दिल बहुत धड़क रहा था।

‘हे प्रभु! हे भगवान एकलिंग! बचा लो!’

“और तुम दोनों पति पत्नी के जैसे रह रहे हो – पिछले चार दिनों से?”

इस प्रश्न का भला क्या उत्तर दे अंजू? वो सिमट गई – कुछ बोल न पाई। लेकिन रामलाल को अपना उत्तर मिल गया।

“अब कृपा कर के मेरे प्रश्नों के उत्तर बताइए! क्या आप मुझे जानते हैं?”

“बिटिया,” रामलाल ने पूरी गंभीरता से कहा, “मैं अपनी पूरी उम्र यहाँ रहा हूँ.. इसी कस्बे में! और मेरे साथ ये इतने सारे लोग। मैं ही क्या, यहाँ कोई भी तुमको नहीं जानता। लेकिन तुम्हारी बातों से मुझे और सबको समझ में आ रहा है की क्या हुआ है तुम्हारे साथ..”

रामलाल ने आखिरी कुछ शब्द बहुत चबा चबा कर गुस्से के साथ बोले। और फिर अचानक ही वो दहाड़ उठे,

“हरिया, शोभन.. पकड़ कर घसीटते हुए लाओ उस हरामजादे को..”

अंजू हतप्रभ रह गई! घसीटते हुए? क्यों? उसने डरी हुई आँखों से रामलाल को देखा।

कहीं इसी कारण से तो कुंदन उसको घर में बंद कर के तो नहीं रखता था? कहीं उसको पड़ोसियों से खतरा तो नहीं था? रामलाल ने जैसे उसकी मन की बात पढ़ ली।

“बिटिया.. घबराओ मत! इस बात की मैं गारंटी देता हूँ, की तू उस कुंदन की पत्नी नहीं है.. उस सूअर ने तेरी याददाश्त जाने का फायदा उठाया है, और तेरी... इज्ज़त से भी... खिलवाड़ किया है… पाप का प्रायश्चित तो उसे करना ही पड़ेगा..”

‘पत्नी नहीं.. फायदा उठाया... इज्ज़त से खिलवाड़..’

“..उसकी तो अभी तक शादी ही नहीं हुई है.. उस नपुंसक को कौन अपनी लड़की देगा?” रामलाल अपनी झोंक में कहते जा रहा था।

‘शादी नहीं.. नपुंसक..?’

अंजू को लगा की वो दहाड़ें मार कर रोए.. लेकिन उसको तो जैसे काठ मार गया हो। न रोई, न चिल्लाई.. बस चुप चाप बुत बनी बैठी रही.. और खामोश आंसू बहाती रही।

हाँलाकि अंजू अब किसी बात का कोई जवाब नहीं दे रही थी, लेकिन फिर भी रामलाल और कंपनी ने सारे घटना क्रम का दो दूनी चार करने में बहुत देर नहीं लगाई। उनको मालूम था की कुंदन केदारनाथ यात्रा करने गया था, और वहां वो भी त्रासदी की चपेट में आ गया था। वहीँ कहीं उसको यह लड़की मिली होगी – जाहिर सी बात है, इसका नाम अंजू नहीं है। उसने अपने आपको उस लड़की का पति बताया होगा, जिससे अस्पताल वाले खुद ही उस लड़की को उसके हवाले कर दें, और वो बैठे बिठाए मौज करे!

तब तक हरिया और शोभन कुंदन को सचमुच में घसीटते हुए लाते दिखे। माब-जस्टिस के बारे में तो सुना ही होगा आप लोगो ने? खास तौर पर तब, जब मामला किसी लड़की की इज्ज़त का हो। भीड़ का पारा ऐसी बातों से सारे बंधन तोड़ कर चढ़ता है, और जब तक अत्याचारी की कोई भी हड्डी सलामत रहती है, तब तक उसकी पिटाई होती रहती है। हरिया और शोभन ने लगता है कुंदन को वहां लाने से पहले जम कर कूटा था।

अंजू ने देखा – कुंदन का सर लहू-लुहान था, उसकी कमीज़ फट गई थी, और कुहनियाँ और बाहें रक्तरंजित हो गई थी। घसीटे जाने से उसकी पैन्ट भी जगह जगह से घिस और फट गई थी। सवेरे का आत्मविश्वास से भरपूर कुंदन इस समय वैसे ही डरा हुआ लग रहा था, जैसे हलाल होने के ठीक पहले कोई बकरा। अंजू ने उसको देखा तो मन घृणा से भर उठा। कुंदन ने उसकी तरफ देखा – पता नहीं उसको अंजू दिखी या नहीं, लेकिन उसकी व्याकुल और कातर निगाहें किसी भी हमदर्दी भरी दृष्टि की प्यासी हो रही थीं। कोई तो हो, जो इस अत्याचार को रोक सके!

लेकिन लगता है की किसी को भी कुंदन पर लेशमात्र की भी दया नहीं थी। वहां लाये जाते ही भीड़ उस पर पिल पड़ी – बरसों की पहचान जैसे कोई मायने नहीं रखती थी। जिस गति से कुंदन पर लातें और घूंसे बरस रहे थे, उसी गति से उस पर भद्दी भद्दी गालियों की बौछार भी हो रही थी। कस्बे के चौराहे पर कुंदन के साथ साथ उसके पूर्वज, और पूरे खानदान की इज्ज़त नीलाम हो रही थी।

“मादरचोद, इस मरियल सी छुन्नी में बहुत गर्मी आ गई है क्या?” कोई गरजा।

अंजू ने उस तरफ देखा। कुंदन को वही एक तरफ पेड़ से टिका कर बाँध दिया गया था। वो इस समय पूरी तरह से नंगा था। वो कहते हैं न, आदमी शुरू की मार की पीड़ा से डरता है.. बाद मैं गिनती भी कहाँ याद रह जाती है? कुंदन एकदम निरीह सा लग रहा था! वो कुछ बोल नहीं पा रहा था, लेकिन उसकी आँखें चिल्ला चिल्ला कर अपने लिए रहम की भीख मांग रही थीं।

“अरे सोच क्या रहे हो.. साले को बधिया कर दो! वैसे ही नपुंसक है.. गोटियों का क्या काम?” किसी ने सुझाया।

ऐसा लग रहा था की न्यायपालिका वहीँ कस्बे के चौराहे पर खुल गई थी।

“सही कह रहे हो.. अबे शोभन.. ज़रा दरांती तो ला.. इस मादरचोद का क्रिया-करम यहीं कर देते हैं..” एक और न्यायाधीश बोला।

अंजू की आँखों की घृणा यह सब बातें सुन कर अचानक ही पहले तो डर, और फिर कुंदन के लिए सहानुभूति में बदल गई। ठीक है कुंदन ने उसके साथ वो सब कुछ किया, जो उसको नहीं करना चाहिए था, लेकिन उसने अंजू की जान भी तो बचाई थी। एक क्षणिक अविवेक, और स्वार्थ की भावना के कारण जो कुछ हो गया, उसकी ऐसी सजा तो नहीं दी सकती। कम से कम अंजू तो नहीं दे सकती।

“नहीईईईईईईईईईईईई!” वो जोर से चीखी! “बस करो यह सब! जानवर हो क्या सभी?”

एकाएक जैसे अफीम के नशे में धुत्त भीड़ को किसी ने झिंझोड़ के जगा दिया हो। सारे न्यायाधीश लोग एकाएक सकते में आ गए।

“जिसको अपनी उम्र भर जाना, उसके साथ यह सब करोगे? कोई मानवता बची हुई है? इसको तुम नपुंसक कहते हो? तो तुम लोग क्या हो? मर्द हो? ऐसे दिखाते हैं मर्दानगी?”

अंजू चीखती जा रही थी.. अचानक ही उसकी आवाज़ आना बंद हो गई। जिस वीभत्स दृश्य से वो अभी दो-चार हुई थी, उसके डर से अंजू का गला भर गया। उसकी हिचकियाँ बंध गई, और वो रोने लगी। कुंदन अचेत होने से पहले बस इतना समझ पाया की उसकी जान बच गई थी।


****
superb update
 

mashish

BHARAT
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मैं शाम को नीलम से बात कर रहा था की जिस प्रोजेक्ट को करने निकला हूँ, वो अगर ठीक से हो गया, तो हम दोनों की ज़िन्दगी बदल जाएगी! उत्तर में नीलम ने मुझसे कहा की उसको पूरा यकीन है की मेरा प्रोजेक्ट ज़रूर पूरा होगा। मैंने हंस कर उसकी बात आई गई कर दी। अगर उसको मालूम होता की मेरा प्रोजेक्ट क्या है, तब भी क्या वो ऐसे कहती? सच में हम दोनों की ही ज़िन्दगी बदल जाएगी! यह बात मैंने पहले सोची ही नहीं। अगर वाकई संध्या जीवित है, और उसको मिल जाती है, तो नीलम और मेरे वैवाहिक जीवन में बहुत सी जटिलताएं आ जाएँगी! और तो और, हमारे विवाह पर ही एक सवालिया निशान लग जायेगा।

यही सब सोचते सोचते मैं सो गया।

अगले दिन एक घंटे के सफ़र के बाद हम गौचर के इलाके में पहुंचे। मेरी उत्तराँचल यात्रा के समय में मैं यहाँ से हो कर गुजरा था। पुरानी बातें वापस याद आ गईं। एक वो समय था, जब मैंने संध्या को पहली बार देखा था.. और एक आज का समय है, मैं संध्या को ढूँढने निकला हूँ।

गौचर का सरकारी अस्पताल ढूंढ निकालने में मुझे अधिक दिक्कत नहीं हुई। लेकिन सरकारी अस्पताल में से सूचना निकालना बहुत ही मुश्किल काम है। इसी चक्कर में कल इतना समय लग गया था। रिसेप्शन पर दो बेहद कामचोर से लगने वाले वार्ड बॉयज बैठे हुए थे। देख कर ही लग रहा था की उनका काम करने का मन बिलकुल भी नहीं है; और वो सिर्फ मुफ्त की रोटियाँ तोडना चाहते हैं।

“भाई साहब,” मैंने बड़ी अदब से कहा, “एक जानकारी चाहिए थी आपसे।“

“बोलिए..” एक ने बड़ी लापरवाही से कहा।

“यह तस्वीर देखिए..” मैंने संध्या की तस्वीर निकाल कर रिसेप्शन की टेबल पर रख दी,

“इस लड़की को देखा है क्या आपने?”

उसने एक उचाट सी नज़र भर डाली और कहा, “नहीं! क्या साब! सवेरे सवेरे आ गए यह सब करने! देखते नहीं – हम कितना बिजी हैं..”

“अरे एक बार ठीक से देख तो लीजिए!” मैंने विनती करी।

इस बार उसने भारी मेहनत और अनिच्छा से तस्वीर पर नज़र डाली – जैसे मैंने उसको एक मन अनाज की बोरी ढोने को कह दिया हो।

“क्या साब! एकदम कंचा सामान है..” उसके शब्द कपटता से भरे हुए थे, “इसको यहाँ अस्पताल में क्यों ढूंढ रहे हैं?”

इसी बीच दूसरे वार्ड बॉय ने शिगूफा छोड़ा,

“ऐसे सामान तो देहरादून में भी नहीं मिलते हैं.. आहाहाहा!”

“सही कह रहे हो.. जी बी रोड जाना पड़ेगा इसके लिए तो..”

और दोनों ठठा कर हंसने लगे। उन दोनों निकम्मों की धूर्ततापूर्ण बातें सुन कर मेरे शरीर में आग लग गई। मेरा बायाँ हाथ विद्युत् की गति से आगे बढ़ा और पहले वाले वार्ड बॉय की गर्दन पर जम गया; दाहिना हाथ उससे भी तेज गति से उठा और उसका उल्टा साइड दूसरे वाले वार्ड बॉय के गाल पर किसी कोड़े के सिरे के जैसे बरसा।

तड़ाक!

वह थप्पड़ इतना झन्नाटेदार था की अस्पताल की पूरी गैलरी में उसकी आवाज़ गूँज उठी। वैसे भी सवेरा होने के कारण अधिक लोग वहां नहीं थे।

“लिसन टू मी यू बास्टर्ड्स! तुम जैसे हरामियों को मैं दो मिनट में ठीक कर सकता हूँ। समझे!”

मैंने पहले वार्ड बॉय के टेंटुए को दबाया, दूसरा वाला अभी अपने गाल को बस सहला ही रहा था।

“तमीज से बात करोगे, तो ज़िन्दगी में बहुत आगे जाओगे.. नहीं तो जिंदगी भी आगे नहीं जा पाएगी..”

मैं दांत पीस पीस कर बोल रहा था। मेरी संध्या की बेईज्ज़ती करी थी उसने। वो तो मैं सब्र कर गया, नहीं तो दोनों की आज खैर नहीं थी।

“ए मिस्टर.. ये क्या हो रहा है..”

मैंने आवाज़ की दिशा में देखा – एक अधेड़ उम्र की नर्स या मैट्रन तेजी से मेरी तरफ आ रही थी.. लगभग भागते हुए। मैंने पहले वार्ड बॉय को गर्दन से पकडे हुए ही पीछे की तरफ धक्का दिया, और उस नर्स ले लिए रेडी हो गया। अगर ज़रुरत पड़ी, तो इसकी भी बंद बजेगी – मैंने सोचा।

“ये अस्पताल है.. अस्पताल.. तुम्हारे मारा पीटी का अड्डा नहीं.. चलो निकालो यहाँ से..” उसने दृढ़ शब्दों में कहा।

“मैट्रन.. मुझे मालूम है, ये अस्पताल है! और मेहरबानी कर के इन दोनों को भी यह बात सिखा दीजिए। ये दोनों महानिकम्मे ही नहीं, बल्कि एक नंबर के धूर्त भी हैं..”

लगता है मैट्रन को भी उन दोनों की हरकतों की जानकारी थी.. मैंने उसके चेहरे पर कोई आश्चर्य के भाव नहीं देखे। उल्टा उसने उन दोनों वार्ड-बॉयज को घूर कर खा जाने वाली नज़र से देखा। दोनों सकपका गए।

“तुम दोनों ने मेरा जीना हराम कर दिया है.. दफा हो जाओ.. एडमिनिस्ट्रेशन से कह कर मैं तुम लोगो को सस्पेंड करवा दूँगी नहीं तो..”

दोनों निकम्मे सर पर पांव रख कर भागे।

“अब बताइए.. इन दोनों की किसी भी बात के लिए आई ऍम सॉरी! आप यहाँ कैसे आये?”

“जी मैं यहाँ अपनी पत्नी की तलाश में आया हूँ...”

“पत्नी की तलाश? यहाँ?”

“जी.. एक बार गौर से यह फोटो देखिए..” मैंने संध्या की तस्वीर मैट्रन को दिखाई,

“आपने इसको कभी देखा अपने अस्पताल में?”

मैट्रन ने तस्वीर देखी – उसकी आँखें आश्चर्य से फ़ैल गईं।

“ये ये.. फोटो.. आपको..”

“जी ये फोटो मेरी पत्नी की है.. उसका नाम संध्या है! आपने देखा है इसको?”

मैट्रन की प्रतिक्रिया देख कर मुझे कुछ आस जागी – इसने देखा तो है संध्या को। मतलब यही अस्पताल था डाक्यूमेंट्री का! मतलब मैं सही मार्ग पर था। मंजिल दूर नहीं थी अब!

“आपकी पत्नी? ये?”

“जी हाँ! आपने देखा है इसको?” मैंने अधीर होते हुए कहा।

“लेकिन लेकिन.. ये तो अंजू है.. कुंदन की पत्नी!”

“कुंदन? अंजू?”

‘हे प्रभु! रहम करना!’

“मैट्रन प्लीज! आप प्लीज मेरी बात पूरी तरह से सुन लीजिए.. प्लीज!”

मैंने हाथ जोड़ लिए।

मैट्रन आश्चर्यचकित सी भी लग रही थी, और ठगी हुई सी भी! ऐसा क्यों? मैंने सोचा। मेरी बात पर उसने सर हिलाया और मुझे वहां लगी बेंच पर बैठने का इशारा किया। वो मेरे बगल ही आ कर बैठ गई।

“मैट्रन, देखिए.. मेरा नाम रूद्र है..” कह कर मैंने उनको सारी बातें विस्तारपूर्वक सुना दीं। बस नीलम और मेरी शादी की बात छोड़ कर। मेरी बात सुन कर मैट्रन को जैसे काठ मार गया। वो बहुत देर तक कुछ नहीं बोली।

“आपने मेरी पूरी बात सुन ली है.. अब प्लीज आप बताइए.. ये अंजू कौन है?”

“जी ये लड़की, जिसकी तस्वीर आपके पास है, हमारे यहाँ भर्ती थी – जब ये यहाँ थी, तब से वो कोमा में थी। जिस डाक्यूमेंट्री की आप बात कर रहे हैं, शायद यहीं की ही हो.. मैं कह नहीं सकती.. लेकिन वो लड़की हूबहू इस तस्वीर से मिलती है। एक कुंदन नाम का मरीज़ भी भर्ती हुआ था उसी लड़की के साथ.. वो खुद को उसका पति कहता था। और उसको अंजू!”

“तो फिर?”

“वो अंजू को ले गया..”

“ले गया? कहाँ? कब?”

“अभी कोई पांच-छः दिन पहले.. रुकिए, मैं आपको उसका डिटेल बताती हूँ..”

‘पांच छः दिन पहले! हे देव! ऐसा मज़ाक!’

कह कर वो एक रिकॉर्ड रजिस्टर लेने चली गई। जब वापस आई, तो उसके पास एक नहीं, दो दो रजिस्टर थे।

“यह देखिए..” उसने एक पुराना रजिस्टर खोला, और उसमे कुंदन के नाम की एंट्री दिखाई, फिर दूसरे में अंजू के नाम की एंट्री दिखाई – दोनों में ही एक ही दस्तखत थे। मतलब वो सही कह रही है। एंट्री रिकॉर्ड में पता भी एक ही था, और फ़ोन नंबर भी। अंजू के डिस्चार्ज की तारिख आज से एक सप्ताह पहले की थी।

“देखिए मिस्टर...”

“रूद्र.. आप मुझे सिर्फ रूद्र कहिए..”

“रूद्र.. हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई.. लेकिन हमारे पास क्रॉस-चेक करने का कोई तरीका नहीं था.. उस बदमाश ने कहानी ही ऐसी बढ़िया बनाई थी! काश आप हमारे पास पहले आ जाते..”

“मैट्रन! इसमें आपकी कोई गलती नहीं है.. मैं खुद ही संध्या को भगवान के पास गया हुआ समझ रहा था.. मैं तो बस इतना चाहता हूँ की वो सही सलामत हो, और मेरे पास वापस आ जाय..”

“रूद्र.. आपके पास कोई सबूत है की ये लड़की आपकी पत्नी है?”

“जी बिलकुल है.. ये देखिए..” कह कर मैंने अपना और संध्या दोनों का ही पासपोर्ट दिखा दिया। ‘स्पाउस’ के नाम के स्थान पर हमारे नाम लिखे हुए थे, और दोनों पासपोर्ट में तस्वीरें हमारी ही थीं। शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।

“थैंक यू मिस्टर रूद्र.. दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है..” कह कर उन्होंने मेरा पता लिख लिया और मुझसे मेरा फ़ोन नंबर माँगा, जिससे की अगर कोई ज़रूरी बात याद आये तो मुझे बता सकें! उन्होंने अपना नंबर भी मुझे दिया।

अगर यह कुंदन कहीं गया न हो, तो अभी कोई देर नहीं हुई है। लगता तो नहीं की वो कहीं जाएगा।

****
nice update
 

tuba javed

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बहुत बहुत धन्यवाद मित्र! कहानी तभी अच्छी है, जब वो पसंद आए!
आपने मेरी अन्य कहानियाँ पढ़ीं? यदि नहीं, तो गुज़ारिश है कि उनको भी पढ़ें!
मिलते हैं, जल्दी ही!
aap jis tarah se story me character ko develop karte hai wo bahoot hi badiya hai

aap pura time late hai apni baat ko explain kerne me or aap sath hi sath reasonable bhi hote hai

jaise ke kafi story me sex ke time sabhi batate hai hi sabhi ka 10 inch plus hota hai or takriban sabhi 25 minutes se bhi jayada time tak lage rehte hai


aapki sub se badiya baat hai ki aap kahani ko badiya se develop karte hai jis ke karan agar sex scene agar kam ho to bhi story me maja aata hai

abhi tak maine aapki sabhi story (hindi wali) read ki hai or sabhi me uper likhi baat common hai

meri favorite hai संयोग का सुहाग
story kafi emotional kar gayi thi

or ye hamare samaj me kafi commom bhi hai ke dehaj ke liye girl's side walo ko kafi muskile uthani parti hai
 
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tuba javed

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or agar aap new story likhna chahte hai to request hai ki aap brother & sister ke uper likhe

jaise ki dono kaise ek sath paida hue, ek sath school me gaye

ab jub dhire dhire dono puberty ke or jane lage to dono ek dusre se attaract hone lage or dhire dhire dono me pyar ho gaya

kaise dono ek dusre se shadi karna chahte hai or kaise un dono ke parents ko time laga unke pyar ko sumajhne me


waise ye sirf ek request hai baki aapki jo bhi story hogi wo jaroor hi bahoot se readers ki favorite hogi

waiting for new story
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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aap jis tarah se story me character ko develop karte hai wo bahoot hi badiya hai

aap pura time late hai apni baat ko explain kerne me or aap sath hi sath reasonable bhi hote hai

jaise ke kafi story me sex ke time sabhi batate hai hi sabhi ka 10 inch plus hota hai or takriban sabhi 25 minutes se bhi jayada time tak lage rehte hai


aapki sub se badiya baat hai ki aap kahani ko badiya se develop karte hai jis ke karan agar sex scene agar kam ho to bhi story me maja aata hai

abhi tak maine aapki sabhi story (hindi wali) read ki hai or sabhi me uper likhi baat common hai

meri favorite hai संयोग का सुहाग
story kafi emotional kar gayi thi

or ye hamare samaj me kafi commom bhi hai ke dehaj ke liye girl's side walo ko kafi muskile uthani parti hai

Tuba दोस्त! बहुत बहुत शुक्रिया! जब पाठक पढ़ कर बताते हैं कि क्या अच्छा लगा, और क्या नहीं, तो बढ़िया लगता है।
जान कर अच्छा लगा कि आपको मेरे लिखने की स्टाइल पसंद आई, और मेरी कहानियाँ भी।

'संयोग का सुहाग' अच्छी कहानी लिख गई - दरअसल वो एक सामाजिक कहानी है। दहेज़ उसका एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन फ़िर शादी के बाद पति पत्नी के पारस्परिक प्रेम, सम्मान और विश्वास की भी कहानी है। सोचा कि सेक्स तो सभी लिख ही रहे हैं। मैं साथ में एक दो सन्देश भी देता चलूँ।
इसी दहेज़ और उससे उपजी सामाजिक समस्या 'जबरिया ब्याह' पर आधारित है 'आज रहब यहि आँगन'. मुझे वो कहानी बहुत पसंद है। मेरी बीवी ने लिखी थी।
बाकी कहानियों में उतने सन्देश तो नहीं, लेकिन प्रेम करने की आवश्यकता पर बल अवश्य दिया है।

मेरी सबसे सुन्दर कहानी होने वाली थी 'वो छोकरी'.
कहानी थी एक मुस्लिम लड़की और एक हिन्दू लड़के, और सामजिक असमानता पर आधारित।
सुनने में लगता होगा कि वही पुराने ढर्रे पर आधारित होगी, लेकिन ऐसा नहीं था। वो असल में महिला सशक्तिकरण और आत्मसम्मान की कहानी थी।
लेकिन शायद किसी को इस बात पर ऐतराज़ हो गया कि उस कहानी में हिन्दू/मुस्लिम शब्द क्यों है? लोगो ने सोचा होगा कि मैं कोई दंगा करवाना चाहता हूँ।
इसलिए जब मॉडरेटर्स ने ऐतराज़ किया, तो मैंने कहानी बंद कर दी। यहाँ लिखने के पैसे थोड़े ही मिलते हैं कि अपना अपमान भी बर्दाश्त करूँ!

आपने इन्सेस्ट लिखने को कहा है। वो तो मैं नहीं लिखूँगा। बहुतेरे हैं यहाँ जो वो सब लिखते हैं। इसलिए मुझे तो बख्शिए!
बस एक कहानी लिखी है इस पर और वो है 'मंगलसूत्र'! लेकिन उसको पढ़ेंगे तो समझेंगे कि वो असल में रोमांटिक कहानी है। इन्सेस्ट उसमे प्रासंगिक है।

साथ बने रहिए। मेरी इंग्लिश की कहानियाँ भी मस्त होती हैं। उनको पढ़िए।

धन्यवाद!
 

tuba javed

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mughe संयोग का सुहाग kahani aachi lagi

mere bhi kafi friends or family relateves (Both boy and girl) ki shadi maine attend ki hai... is liye mughe pata hai ki us time kya kya hota hai

or aapki dusri kahani आज रहब यहि आँगन thori length me choti hai (ye koi katax nahi comparison hai baki ke mukable) wo bhi aachi hai .... us kanahi ka mughe ye matlab samaj me aaya ki ek samajik kuruti ko mitane ke liye aapne dusri samajik kuruti ko paida kar diya

jaise ki ek bird ko cage me bund karke koi us bird ko bole ki maine tujhe jungle ki sari problems se bacha liya

kahani to आज रहब यहि आँगन bhi aachi hai lakin agar wo thori or lunbi hoti to sayad wo bhi bahoot jayada asardar hoti


or mughe sirf hindi me hi story read karna pasand hai (meri education bhi english medium me hui hai, but mujhe in sub kamo ke liye hindi hi pasand hai

or maine aapse brother & sister pe ek incest story ki liye is liye kaha kyu ki aap har ek chorcter ke emotions ko badiya tarike se explain karte ho

is form pe or bhi incest story hai but wo thore der bad wahi romantic se hardcore ke taraf shift ho jate hai
 
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कुछ लिख लेता हूँ
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or maine aapse brother & sister pe ek incest story ki liye is liye kaha kyu ki aap har ek chorcter ke emotions ko badiya tarike se explain karte ho

is form pe or bhi incest story hai but wo thore der bad wahi romantic se hardcore ke taraf shift ho jate hai

धन्यवाद भाई! लेकिन क्या करूँ! मुझसे हो ही नहीं पाता।
इन्सेस्ट मेरे लिए सोचना भी बहुत मुश्किल वाला काम है। इसलिए वो लिख पाना बहुत ही मुश्किल होगा।
इससे बेहतर है कि मर्डर मिस्ट्री लिखूँ 😂
 
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Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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धन्यवाद भाई! लेकिन क्या करूँ! मुझसे हो ही नहीं पाता।
इन्सेस्ट मेरे लिए सोचना भी बहुत मुश्किल वाला काम है। इसलिए वो लिख पाना बहुत ही मुश्किल होगा।
इससे बेहतर है कि मर्डर मिस्ट्री लिखूँ 😂

मैं भी शायद इंसेस्ट वाली आपकी कहानी (यदि आप लिखें तो) को पढ़ नहीं पाऊंगा।

सुहाग सेज पीएचडी वाले लेखक से आशाएं अलग ही हैं।

😂😂😂

आशु
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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मैं भी शायद इंसेस्ट वाली आपकी कहानी (यदि आप लिखें तो) को पढ़ नहीं पाऊंगा।

सुहाग सेज पीएचडी वाले लेखक से आशाएं अलग ही हैं।

😂😂😂

आशु

सुहाग सेज पीएचडी 🤣🤣🤣🤣🤣
 
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Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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ससुराल (?) में क्या पहनेगी?... शादी के बाद कोई शलवार-कुरता पहनता है क्या!!... विवाहिता को साड़ी पहननी चाहिए... संस्कार भी कोई चीज़ होते हैं!... विधर्मी लड़की!...’ इत्यादि इत्यादि प्रकार की उन्होंने हाय तौबा मचाई! उनको मनाने में कुछ समय और चला गया। मैंने समझाया की संध्या के ससुराल में सिर्फ पति है – ससुर नहीं! तो ससुराल नहीं, पाताल बोलिए! यह भी समझाया की साड़ी अत्यंत अव्यावहारिक परिधान है...

ससुराल नहीं पाताल।

😀😅😆

आशु
 
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