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Romance कायाकल्प [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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जैसा की मैंने पहले भी लिखा है, यह एक विक्टोरियन शैली में बनाया गया बंगला था, जिसमें चार बड़े बड़े हाल नुमा कमरे थे। हर कमरे ही छतें ऊंची-ऊंची थीं, जिनको लकड़ी की मोटी मोटी शहतीरें सम्हाले हुई थी। बिस्तर पहले के ही जैसे साफ़ सुथरे थे। किस्मत की बात थी, एक कमरा खाली मिल गया हम लोगों को। होटल के सभी कमरों में मेहमान थे, लेकिन फिर भी वहां का माहौल बहुत शांत था। ड्राईवर को खाने के लिए पैसे दे कर संध्या और मैं अपने कमरे में आ गए। पहले की ही भांति मैंने वहां के परिचारक को कुछ रुपये दिए और गरमा-गरम खाना बाहर से लाने को कह ही रहा था की संध्या ने माना कर दिया – उसने कहा की हम दोनों बाहर ही चले जायेंगे।

खैर, मेरे लिए तो यह भी ठीक था। सामान तो कुछ खास था नहीं, इसलिए हम दोनों बाहर चले आये। दुकाने ज्यादातर बंद हो रही थीं, लेकिन एक दो दुकाने, जो लगभग सभी प्रकार की वस्तुएं बेच रही थीं, अभी भी खुली थीं। वहां जा कर संध्या के लिए हमने एक और जोड़ी शलवार कुर्ता खरीदा, और फिर खाने के लिए चल दिए। छोटी जगह पर कोई खासमखास इंतजाम तो रहता नहीं, लेकिन फिर भी उस छोटे से ढाबे में दाल तड़का, आलू की सब्जी और रोटियाँ खा कर अपार तृप्ति का अनुभव हुआ। खाने के बाद हम लोग तुरंत ही होटल में नहीं गए – संध्या के कहने पर वहां की मुख्य सड़क से अलग हट कर नीचे की तरफ जाने वाली सड़क की और चल दिए। उसने ही मुझे बताया की अलकनंदा नदी यहाँ से बहती है।

मैंने कोई प्रतिरोध नहीं किया – इतनी देर के बाद संध्या ने वापस कुछ कहना बोलना शुरू किया था – मेरे लिए वही बहुत था। बात उसी ने शुरू करी,

“आप अपना ख़याल नहीं रखते न?”

अब मैं उसको क्या बताता! उसके जाने के बाद मुझ पर क्या क्या बीती है, यह तो मैं ही जानता हूँ। और, वह सब बातें मैं संध्या को कैसे कह दूं?

“कैसे रखता? आपकी आदत जो है..” यह वाक्य बोलते बोलते गले में फाँस सी हो गई।

“मेरे कारण..” वो कुछ और कहती की मैंने उसको बीच में टोक दिया,

“जानू.. किसी के कारण कुछ भी नहीं हुआ.. जो हुआ, वो हुआ.. इसमें न किसी की गलती है, और न ही किसी का जोर! वो कहते हैं न.. आगे की सुध ले.. तो हम लोग भी आगे की ही सुध लेते हैं.. भगवान को जो करना था, वो कर दिया.. ज़रूर कुछ सिखाना चाहते थे, जिसके लिए यह सब हुआ!”

संध्या कुछ देर चुप रही।

हम लोग टहलते हुए जल्दी ही नदी के किनारे पहुँच गए। अलकनंदा अपनी मंथर गति से बहती जा रही थी। नदी की कर्णप्रिय ध्वनि से आत्मा तक को आराम मिल रहा था। हम लोग चुपचाप उस आवाज़ का देर तक आनंद लेते रहे... चुप्पी संध्या ने ही तोड़ी,

“पिछली बार जब हम यहाँ आये थे, तो मेरा मन हुआ था कि आपको यहाँ लाया जाए...”

“हम्म... तो फिर लाई क्यों नहीं?”

“आपको ठंडी लग जाती न... इसलिए..” संध्या मुस्कुराई।

ओह प्रभु! इस एक मुस्कान के लिए मैं अपना जीवन कुर्बान कर सकता हूँ! कितने सारे कष्ट सहे हैं बेचारी ने! हे मेरे प्रभु – प्लीज.. अब यह मुस्कान मेरी संध्या से कभी मत छीनना!

“अच्छा जी! आपको नहीं लगती?”

“नहीं! बिलकुल भी नहीं.. मैं तो पहाड़ों की बेटी हूँ.. याद है?” संध्या की मुस्कान बढती जा रही थी!

“हाँ! याद है... इन्ही पहाड़ों ने मेरा दिल और दिमाग दोनों ले लिया!”

“हैं! तो मुझे क्या मिला?”

“... और आपको दे दिया..”

“हा हा! बातें बनाना कोई आपसे सीखे!”

हम दोनों अब तक नदी के किनारे एक बड़े से पत्थर पर बैठ कर अपनी टाँगों को पानी में डाले हुए सौम्य मालिश का आनंद उठा रहे थे।

“आपने बताया नहीं की आप यहाँ इतनी जल्दी कैसे आ गए?”

“संध्या – भगवान् के खेल तो बस भगवान् ही जानता है! बस यह कह लो की हमको मिलना था वापस, इसीलिए भगवान् ने कोई युक्ति लगा कर मिला दिया... सोचने समझने जैसी बात ही नहीं है.. कोई और मुझे यह कहानी सुनाता तो मैं कहता की फेंक रहा है.. लेकिन, अब जब यह खुद मेरे साथ हुआ है, तो और कुछ भी नहीं कह सकता! अभी कोई सप्ताह भर पहले की बात है – मैं घर पर बैठा टीवी देख रहा था। वहां नेशनल जियोग्राफिक में उत्तराँचल त्रासदी के ऊपर कोई डाक्यूमेंट्री चल रही थी। उसी में मैंने झलक भर आपको देखा।“

उसके बाद मैंने संध्या को सब कुछ सिलसिलेवार तरीके से बता दिया। वो मंत्रमुग्ध सी मेरी बात सुनती रही।

“समझ ही नहीं आया की आँखों का देखा मानूं या दिल का कहा सुनूं, या फिर दिमाग पर भरोसा करूँ! मैंने तो इस बार बस भगवान् पर भरोसा कर के यह सब कुछ किया.. और देखो.. यहाँ तक आ गया..”

सारी बात पूरी करते करते मेरी आँखों से आंसूं गिर गए। संध्या ने कुछ कहा नहीं – बस मेरी बाँह को पकड़ कर मुझसे कस कर चिपक गई।

“अब तुम मुझे छोड़ कर कहीं मत जाना..” बहुत देर के बाद मैंने बहुत ही मुश्किल से अपने दिल की बात संध्या को कह दी, “चाहे कुछ हो जाय..”

“नहीं जाऊंगी जानू.. कहीं नहीं! आपको छोड़ कर मैं कहीं नहीं जाऊंगी!”

कह कर संध्या मुझसे लिपट गई, और हम दोनों एक दूसरे के आलिंगन में बंधे भाव-विभोर हो कर रोने लगे। कुछ देर बाद जब हम दोनों आलिंगन से अलग हुए तो संध्या ने कहा,

“अब मैं रोऊंगी भी नहीं.. आप मुझे मिल गए.. अब क्या रोना?”

मैंने भी अपने आंसू पोंछे, और कहा, “सही है.. अब क्यों रोना! .... चलें वापस?”

संध्या ने उत्तर में मुझे नज़र भर कर देखा, और हलके से मुस्कुराई,

“जानू..” उसने पुकारा।

संध्या की आवाज़ में ऐसा कुछ था जिसने मेरे अन्दर के प्रेमी को अचानक ही जगा दिया। मैं इतनी देर से उसके अभिवावक, और रक्षक का रोल अदा कर रहा था। लेकिन संध्या की उस एक पुकार ने ही मेरे अन्दर के प्रेमी को भी जगा दिया।

“हाँ?”

“आपको शकुंतला और दुष्यंत की कहानी मालूम है?”

“हाँ..” क्या कहना चाहती है!

“आप मेरे दुष्यंत हो?”

“हाँ.. अगर आप मेरी शकुंतला हो!”

“मैं तो आप जो कहें वो सब कुछ हूँ..”

“लेकिन, मैं तो नहीं भूला .. भूली तो आप..”

संध्या मुस्कुराई, “वो भी ठीक है.. चलो, मैं ही दुष्यंत.. हा हा!”

“हा हा..”

“आप भी तो भूल गए होंगे..!”

“नहीं.. मैं कै..” मेरे पूरा कहने से पहले ही संध्या ने अपना कुरता उतार दिया।

“आप नहीं भूले?” वो मुस्कुराते हुए अपनी ब्रा का हुक खोल रही थी।

संध्या से मैंने इतने दुस्साहस की उम्मीद नहीं करी थी। एकदम नया था यह मेरे लिए। और आश्चर्यजनक भी। सुखद आश्चर्यजनक!

“ह्म्म्म.. अंगूठी किधर है?” मैंने भी ठिठोली करी।

“अंगूठी? हा हा.. आप फिलहाल तो इन अंगूरों से याददाश्त वापस लाइए.. अंगूठी आती रहेगी..” वो मुस्कुराई।

“बस अंगूर ही मिलेंगे?”

“नहीं जानू.. शहद भी...”

तब तक मेरा लिंग तन कर पूरी तरह तैयार हो चला था। शलवार का नाडा संध्या खोल ही चुकी थी, तो उसको उतारने का उपक्रम मैंने कर दिया। साथ ही साथ उसकी चड्ढी भी उतर गई।

“इन अंगूरों में रस कब आएगा?”

पूर्ण नग्न हो कर संध्या वहीँ पत्थर पर पीठ के बल लेट गई। उस पत्थर के वृत्त पर लेटने से संध्या का शरीर भी कमानीदार हो गया – अर्द्ध चांदनी में उसके शरीर का भली भांति छायांकन हो रहा था। यह सोच लीजिए जैसे खुलेआम एक बेहद निजी अनावृत्ति! उसके नग्न शरीर को सिर्फ मैं देख सकता था और कोई नहीं। हलकी चांदनी उसके शरीर के हर अंग को दिखा भी रही थी, और छुपा भी रही थी। उसके गाल, उसकी नाक, उसके होंठ, उसके कंधे, और उत्तेजना से जल्दी जल्दी ऊपर नीचे होते उसके स्तन! सपाट, तना हुआ पेट, और उसके अंत में सुन्दर नितम्ब! कुल मिला कर संध्या के शरीर में बहुत अंतर नहीं आया था – हाँ, कम खाने पीने से वो कुछ पतली तो हो गई थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं तो हफ्ते भर में ठीक न हो जाय। अस्पताल में सचमुच उसकी अच्छी देखभाल हुई थी।

वो मुस्कुराई, “जब आपका रस अन्दर जाएगा..”

मैंने संध्या के क्रोड़ की तरफ देखा – उसका योनि मुख – उसके दोनों होंठ फूले हुए थे। घने बालों के बीच से भी यह दिख रहा था। फूले हुए, रसीले भगोष्ठ!

“सचमुच भूल गया!”

“तो अब आप याद कर लीजिए, और मुझे भी याद दिला दीजिए..” संध्या ने बहुत ही धीमी आवाज़ में यह कहा – फुसफुसाते हुए नहीं, बस दबी हुई आवाज़ में!

“एक तरह से हमारी दूसरी सुहागरात!” उसने एक आखिरी प्रहार किया..

मुझे उस प्रहार की वैसे भी कोई आवश्यकता नहीं थी। मैंने संध्या के पैर थोड़े से फैलाए। और अपनी उंगली को उसकी योनि की दरार पर फिराने लगा। संध्या एक परिचित छुवन से कांप गई। इतने अरसे से दबी हुई कामुक लालसा इस समय उसके अन्दर पूरे चरम पर थी। कुछ देर योनि की दरार पर उंगली चलाने के बाद मैंने अपनी उंगली को अन्दर की तरफ प्रविष्ट किया – उंगली जैसे ही अन्दर गई, संध्या की योनि ने तुरंत ही उसके इर्द गिर्द घेरा डाल कर उसे कस कर पकड़ लिया। मैं मुस्कुराया।

“उ उंगली उंगली नहीं जानू..” संध्या हांफते हुए बोली।

संध्या की इस बात पर मेरा लिंग जलने सा लगा। मेरे तने हुए जलते लिंग को अगर मैं अमूल बटर की ब्रिक से लगा देता तो उसमें लिंग की मोटाई के समान ही एक साफ़ छेद हो जाता। खैर, मैंने अपनी उंगली को बाहर खींचा और उंगली और अंगूठे की सहायता से उसके योनि-पुष्प की पंखुड़ियों को अलग करने लगा। संध्या के उत्तेजक काम रसायनों की महक हमारे आस पास की हवा में घुल गई।

स्वादिष्ट!

मैंने उसकी खुली हुई योनि को अपने मुख से ढंका और उन रसायनों का आनंद उठाने लगा। संध्या का रस, नीलम के रस जैसा मीठा नहीं था। खैर, इस बात की मैं कोई शिकायत तो करने वाला नहीं था। मैंने धीरे धीरे से संध्या की पूरी योनि को चूसना चाटना आरम्भ कर दिया। उतनी जल्दी तो उसकी योनि काम रस बना भी नहीं पा रही थी। जल्दी ही जब इस क्रिया से उसका रस समाप्त हो गया, तब मैं कभी दाहिने, तो कभी बाएँ होंठ को चूसने लगा। हार मान कर उसकी योनि पुनः काम रस का निर्माण करने लगी। और मैं उस रस को सहर्ष पी गया।

संध्या बड़े प्यार से मेरे बालों में हाथ फिराती हुई मेरा उत्साह-वर्धन कर रही थी। आज एक अरसे के बाद मैं संध्या की योनि चाट रहा था, इसलिए मुझे बहुत रोमांचक आनंद आ रहा था। थोड़ी ही देर बाद मेरा लिंग खड़ा हो गया।

मैंने कहा, “जानू, लगाता है कि आज तुम मूड में हो।”

संध्या ने फुसफुसाते और कराहते हुए कहा, “आ ह हाँ, इतने दिनों बाद अपने कामदेव से मिली हूँ.. आज तो मैं सचमुच बड़े मूड में हूँ। आप मुझे चोदिये, और जम कर चोदिये.. जैसे मन करे वैसे.. जितनी बार मन करे, उतनी बार...।”

“तब तो आज खूब मज़ा आयेगा।”

कह कर मैं वापस संध्या की योनि को चाटने में मग्न हो गया। वो सचमुच बहुत ज्यादा जोश में आ चुकी थी। थोड़ी ही देर में संध्या स्खलित हो गई..

फिर आई उसके भगनासे की बारी। मैंने उसके उस छोटे से अंग को देर तक कुछ इस तरह से चूसा जैसे कोई स्त्री अपने प्रेमी के लिंग को चूसती है। इस क्रिया का संध्या पर नैसर्गिक प्रभाव पड़ा – वो अपने नितम्ब गोल गोल घुमा कर और उछाल कर मुख मैथुन का पूरा आनंद उठा रही थी। खैर, जब तक मैंने उसके भगनासे से अपना मुँह हटाया, तब तक संध्या तीन बार और स्खलित हो गई। संध्या की संतुष्टि भरी आहें वातावरण में गूँज रही थीं।

“ओह गॉड!” उसने कामुकता भरी संतुष्टि से कराहा।

मैंने संध्या को रतिनिष्पत्ति का पूरा आनंद उठाने दिया। मुझे शंका थी की कहीं संध्या की आहें और कराहें सुन कर कोई आस पास न आ गया हो। उस जगह निर्जनता तो थी, लेकिन इतनी नहीं की कोई इतनी ऊंची आवाज़ न सुन सके। खैर, कोई देखता है, तो देखे! क्या फर्क पड़ता है! मैंने अपने भी कपडे उतार दिए। मेरा लिंग तो पूरी तरह से तना हुआ था।

मैंने अपने आप को संध्या की टाँगों के बीच व्यवस्थित किया और उसकी टाँगों को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया। फिर मैंने उसकी योनि के होंठों को फैला कर अपने शिश्नाग्र को वहां व्यवस्थित किया। कोई दो ढाई साल बाद संध्या की चुदाई होने वाली थी (कुंदन वाला कुछ भी मान्य नहीं होगा) – इसलिए मुझे सम्हाल कर ही सब कुछ करना था।

संध्या को खुद भी इस बीते हुए अरसे का एहसास था – इसलिए वो भी उत्तेजना के मारे एकदम पागल सी होने लगी। खुले में सम्भोग करने जैसी हिमाकत वो ऐसे नहीं कर सकती थी।

“शुरू करें?” कह कर मैंने लिंग को उसकी चूत में फंसा कर एक जोर का धक्का लगाया। संध्या के मुँह से चीख निकल पड़ी। उसकी योनि सचमुच ही पहले जैसी हो गई थी – संकरी और चुस्त! मैंने नीचे देखा तो सिर्फ सुपाड़ा ही अन्दर गया था – बाकी का पूरा का पूरा अभी अन्दर जाना बचा हुआ था।

“क्या बात है रानी! आपकी चूत तो एकदम कसी हुई है! ठीक उस रात के जैसे जब हम दोनों पहली बार मिले थे! असल में, उस से भी ज्यादा कसी हुई...।”

पीड़ा में भी संध्या की खिलखिलाहट निकल गई।

“आप जो नहीं थे, इसके कस बल खोलने के लिए...”

“कोई बात नहीं... अब आपकी ये शिकायत दूर कर दूंगा..”

“वो मुझे मालूम है... अब शुरू कीजिए..”

“क्या?” मैंने छेड़ा।

“चुदाई...” उसने फुसफुसाते हुए कहा और मेरे लिंग को अपनी योनि के मुहाने पर छुआ दिया।

मैंने धीरे धीरे लिंग को अन्दर घुसाया; संध्या की कराह निकल रही थी, लेकिन उसके खुद में ही उसको ज़ब्त कर लिया। संध्या की चूत सचमुच संकरी हो गई थी। नीलम से भी अधिक कसावट लिए! उस घर्षण से लिंग के ऊपर की चमड़ी पीछे खिसक गई – अब मेरा मोटा सुपाड़ा संध्या की योनि की दीवारों को रगड़ रहा था। हम दोनों का ही उन्माद से बुरा हाल हो गया। मैं अन्दर के तरफ दबाव देता गया जब तक लिंग पूरी तरह से संध्या के अन्दर समां नहीं गया।

“देख तो! मेरा लंड कैसे तेरे अन्दर फिट हो गया है...”

संध्या ने सर उठा कर देखा और बोली, “ओ भगवान! शुक्र है की पूरा अन्दर आ गया.. मेरे अन्दर की खाली जगह आखिरकार भर ही गई! उम्म्म.. मुझे डर लग रहा था की शायद न हो पाए! अब बस.. आप जोर से चोद डालिए मुझे... यह भी तो बहुत आतुर हो रहा है..."

मैंने संध्या की दोनों टाँगे अपने कन्धों पर रख लिया।

“तैयार हो?”

"हाँ... आप ऐसे मत सताइए! मेरे पूरे शरीर में आग सी लगी हुई है। बुरी तरह...”, संध्या ने कहा।

"क्या सच में!” मैंने पूछा।

मेरे इतना कहने की देर थी कि संध्या नीचे से खुद ही धक्के लगाने लगी। मैंने कुछ नहीं कहा, बस संध्या को तेजी के साथ चोदना शुरु कर दिया। हम दोनों ही बहुत जोश में थे और तेजी से मंथन कर रहे थे। अति उत्तेजना के कारण सिर्फ पाँच मिनट में ही संध्या चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। संध्या की योनि से कामरस निकलता हुआ देख कर मेरा जोश भी बढ़ गया और मैंने भी अपनी गति बढ़ा दी। मैं उसको तेजी से चोदने लगा। हाँ, यही शब्द ठीक है! जो हम कर रहे थे, वो विशुद्ध सम्भोग था, जिसका सिर्फ एक और एक ही उद्देश्य था – और वो था हमारे शरीरों की काम पिपासा को शांत करना। और इसका सटीक शब्द चुदाई ही था। आगे दो तीन मिनटों में मेरे लिंग ने भी वीर्य छोड़ दिया और संध्या की योनि भरने लगी। पूरी तरह से स्खलित हो जाने के बाद मैंने अपना लिंग उसकी योनि से बाहर निकाला, और हट गया। संध्या ने मुझको अपनी तरफ़ खींच लिया, और मेरा लिंग चाटने लगी।

एक और नई बात!

“आज तो मज़ा आ गया।” जब संध्या ने अपना काम ख़तम किया तो मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया।
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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“भैना, और मजा आएगा... आप ये जड़ी लिया करें!”

हम दोनों ही चौंक कर आवाज़ की दिशा की तरफ देखने लगे। एक लड़का, किशोरावस्था में ही रहा होगा वह, अपने कंधे पर एक झोला लटकाए हमारी ही तरफ देख रहा था। जाहिर सी बात है, उसने यह बात भी हमको ही कही थी।

वो न जाने कब से हमारी रति-क्रिया देख रहा होगा, इसलिए मैंने तो अपनी नग्नता छुपाने की कोई कोशिश नहीं करी, लेकिन संध्या अपने आप में ही सिमट सी गई।

“कौन है?” मैंने पूछा।

“जी मैं जड़ी-बूटी बेचने वाला हूँ... तरह तरह की जड़ी-बूटियाँ बेचता हूँ.. आप लोगों को देखा तो रुक गया।“

“अच्छा तो तू दूसरों को चुदाई करते हुए देखता है?”

“नहीं भैना! लेकिन आप लोग भी तो खुले में...” वो झिझकते हुए बोला।

“अच्छा अच्छा! ठीक है! क्या जड़ी बेच रहे हो?”

“है तो भैना यह कामवर्धक जड़ी.. अरे! पूरी बात सुन तो लीजिए!”

संभवतः उसने मेरे चेहरे पर उत्पन्न होने वाले झुंझलाने वाले भाव देख लिए थे,

“यह जड़ी शुद्ध शिलाजीत, इलाइची, अश्वगंधा और चन्दन से बनी है.. शुद्ध है! आप चाहें तो चख कर देख लें.. ऐसा स्वाद आपने कभी नहीं चखा होगा.. इसका नियमित इस्तेमाल करें.. दीदी खुश हो जाएँगी! ... और आप भी!”

“अभी खुश नहीं थीं?”

“थीं भैना.. खुश थीं... लेकिन और हो जाएँगी! आपका ब्वारू लम्बी देर तक कड़क रहेगा..”

“अच्छा..” अपनी मर्दाना ताकत पर ऐसी टिपण्णी होते सुन कर मुझे अच्छा नहीं लगा, “तू खाता है ये जड़ी?”

“भैना, महँगी जड़ी है.. उतना तो नहीं खा पाता!”

“उतना नहीं..? अरे! तुझे क्या ज़रुरत हुई इस जड़ी की?”

“भैना, मेरी भी घरवाली है! उसको भी खुश रखना होता है न!”

“तेरी शादी हो गई? अरे!”

“हाँ! एक साल हो गया भैना।“

“अरे तू खुद इतना छोटा लग रहा है.. तेरी ब्वारी की उम्र क्या है?”

“यही कोई पंद्रह की, भैना!”

“अरे! बच्ची से..!?”

“बरबरि है भैना वो.. बच्ची नहीं..” कहते हुए वो मुस्कुराया! “मुझे एक बार अपना ब्वारू देखने देंगे? .. मैं वैद्य भी हूँ...”

कह कर वो मेरे लिंग को पकड़ कर, खींच कर, दबा कर जांच करने लगा। न तो उसने मेरी सहमति की परवाह करी और न ही किसी हील हुज्जत की। जब वो अपनी जांच से संतुष्ट हो गया तो बोला,

“बहुत गुंट अंग है भैना आपका... थोड़ा सा बांग है.. लेकिन उससे कोई दिक्कत नहीं होगी। आप चाहें तो उसके लिए एक अर्क दे सकता हूँ.. उससे मालिश कर के थोड़ा सा सीधा हो जायेगा.. वैसे उसकी कोई ख़ास जरूरत नहीं है.. आप बस यह जड़ी खाया करें। आप तो ज़रूर लीजिए.. अच्छा स्वास्थ्य है, असर अधिक आएगा..”

“अच्छी बात है.. अब अपनी दीदी की भी जांच कर के बता।“

“जी..” कह कर वो लड़का संध्या की जांच करने लगा।

“अरे... ये... कक्या..”

अचानक से हुए इस घटनाक्रम से संध्या भी अचकचा गई। लेकिन मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ, और एक तरह से बढ़िया भी लगा कि संध्या एक पल को तो हिचकी, लेकिन उसके बाद उसने कोई विरोध नहीं किया, और उस वैद्य/लड़के को अपनी जांच करने दी। लड़के ने संध्या के भिन्न भिन्न स्थानों पर दबा कर न जाने किस बात का जायजा लिया, उसके सीने पर कान लगा कर कुछ देर धडकनों को सुना, पेट और कमर को दबा कर जाँचा, और अंत में कहा,

“दीदी भी आपकी ही तरह एकदम गुंट है, भैना। आपको बस थोड़ा पूरक की जरूरत है। मेरा मतलब ज़रुरत तो नहीं है, लेकिन अगर लेंगे तो अच्छा रहेगा। यह जड़ी न केवल वीर्य वर्द्धक है, बल्कि आरोग्य और लम्बी आयु के लिए भी ठीक है..“

“ह्म्म्म.. अच्छा.. अगर मैं इसको अभी खरीद लूं, तो बाद में क्या होगा? मतलब एक पुडिया से तो कुछ नहीं होने वाला न?”

“बाद के लिए या तो मैं आपको इसको बनाने की विधि बता दूंगा, या फिर आप मुझे कोई पता बता दीजिए, जिस पर मैं आपको डाक से भेज दूंगा..”

“अच्छी बात है..” कह कर मैंने उसको हमारे साथ होटल आने के लिए बोला।

हमने अपने कपडे पहने, और साथ में होटल चल दिए, जहाँ पर मैंने उससे जड़ी ली, उसको पैसे दिए और सो गए।
 

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'Heading Back home... with huge huge surprise. Love You!'

नीलम अपने फ़ोन के स्क्रीन पर रूद्र के इस मैसेज को बार बार पढ़ रही थी. ऐसा नहीं है कि रूद्र सिलसिले में कभी बाहर नहीं गए - लेकिन ऐसा विचित्र व्यवहार उन्होंने पहले कभी नहीं किया। वो बिना किसी चूक के उससे हर दिन कम से कम बार बात अवश्य करते थे। लेकिन इस बार तो बात ही नहीं हो पाई। बस कभी कभी कोई sms भेज देते थे। और तो और, उसका भी फ़ोन एक बार भी नहीं उठाया! क्या हो गया? क्या सरप्राइज है! उसके मन में कई सारे सवाल थे, लेकिन उनके जवाब रूद्र ही दे सकते थे। तब तक तो इंतज़ार करना ही होगा। अच्छी बात यह थी कि वो बस कुछ ही देर में आने वाले थे।

चार दिन हो चले थे - जैसे चार महीने बीत गए हों! उनके बिना तो मन लगता ही नहीं! इस बार बोलूँगी कि जब वो बाहर जाया करें, तो मुझे भी साथ ले जाया करें! उनका अनवरत साथ उसके लिए शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक - उसके तीनों ही प्रकार के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक था।

अगले sms में फ्लाइट नंबर लिखा हुआ था। रूद्र हमेशा ही उसको अपनी फ्लाइट का नंबर लिख कर भेजते थे। एक दिन मज़ाक मज़ाक में उन्होंने कहा था कि अगर कभी मेरी फ्लाइट क्रैश हो जाय तो कम से कम तुमको मालूम तो रहे कि पूछ-ताछ कहाँ करनी है! उनकी इस बात पर नीलम खूब रोई थी; पूरा दिन खाना भी नहीं खा सकी। रूद्र की लाखों मनुहार के बाद ही उसके गले से खाने का एक निवाला उतर सका।

उसने फिर से फ़ोन की स्क्रीन पर sms पढ़ा। रूद्र का सन्देश, मनो खुद ही रूद्र खड़े हों, और वो उन्हें देख रही हो। शादी सचमुच ही जीवन बदल देती है। रूद्र और नीलम की शादी वैसी नहीं थी, जैसी उसने कभी कल्पना करी थी। न जाने कैसे कैसे सपने संजोती हैं लड़कियाँ अपनी शादी को ले कर... लेकिन यहाँ तो.. सब कुछ एक तरफ़ा मामला ही था; रूद्र ने जैसे बस उसकी इच्छा रख भर ली। उन्होंने इस मामले में न कभी अपनी तरफ से कोई पहल करी और न ही कभी इस प्रकार की गर्मी ही दिखाई, जो अक्सर मंगेतर जोड़े दिखाते और महसूस करते हैं। संभव है कि उनके मन में किसी तरह का अपराध-बोध रहा हो। यह शंका उन्होंने सुहागरात में जाहिर भी कर दी थी। नीलम समझ सकती है - दीदी के जाने के बाद, उन्ही की छोटी बहन के साथ... पहले उसको भी यह अपराध-बोध था। कैसे अपने ही जीजा से प्रेम! सोचने वाली बात यह कि उनको वो पहले दाजू कह कर बुलाती थी...! दाजू और अब..! और ऊपर से पड़ोसियों की कुरेदती हुई निगाहें! फिर उसने निर्णय कर लिया कि बस, बहुत हुआ। यदि प्रेम करना गुनाह है, तो होता रहे। रूद्र को वो अवश्य ही अपने मन की बात कहेगी। आगे जो होना होगा, प्रभु की इच्छा!

उन दोनों के सम्बन्ध की ऊष्णता विवाह के बाद ही तो हुई। यह संभवतः उनके अंदर जगा हुआ एक अधिकार भाव और एक संलिप्त भाव था। दोनों ही बातें, जो विवाह के बंधन में बंध कर होती हैं। विवाह सचमुच एक मायावी सम्बन्ध है - और उसके परिणाम रहस्यमय! आर्थिक और सामाजित स्तर पर देखा जाय, तो उसके पिता की प्रतिष्ठा एक मामूली व्यक्ति की ही थी। मामूली रहन-सहन, मामूली समाज में उठना बैठना, और मामूली आशाएँ और उद्देश्य। पर ऐसे मामूली परिवेश में भी उसने जीवन का एक अहम् रहस्य सीखा था – और वह यह कि अपने जीवन से संतुष्ट रहे, और सुखी रहे। रूद्र में उसको जीवन के रहस्य को साकार करने का यन्त्र मिल गया था। और यह सब कुछ उनकी संपत्ति के कारण नहीं था – संपत्ति न भी होती, तो भी कुछ ख़ास प्रभाव नहीं होना था। प्रभाव था उनके स्नेह का, और उनके प्रेम का! वो संतुष्ट थी, सुखी थी। विवाह के बाद उसको अपने ही अन्दर छुपे हुए कितने ही सारे रहस्य पता चले थे! उन रहस्यों के उजागर होने पर उसको रोमांच भी होता, आश्चर्य भी होता, और लज्जा भी आती। लेकिन फिर भी मन नहीं भरता। रूद्र भी हर संभव तरीके से उसको सुखी रखते थे! ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं, कि विवाह के उपरान्त उसके देह भी भरने लगी है! पुरुष के रसायनों का कैसा अद्भुद प्रभाव होता है!

वो लज्जा से मुस्कुरा दी।

‘पुरुष के रसायन... हा हा’ नीलम मन ही मन हंस दी।

ये भी तो अपने रसायन उसके अन्दर डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं! यह बात तो है, दोनों चाहे कितने भी थके हुए हों, बिना सहवास किए रह नहीं पाते! सहवास करने के बाद की ऊर्जा और ताजगी! रूद्र के साथ की बात याद कर के नीलम के शरीर का पोर-पोर दुखने लगता है। उसका मन करता है कि जल्दी से रूद्र आ जाएँ, और उसे अपने आलिंगन में भींच लें; इतनी जोर से कि उसकी एक एक हड्डी चटक जाए।
 

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कुछ लिख लेता हूँ
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हवाई-अड्डे से निकल कर मैंने और संध्या ने टैक्सी करी और घर की ओर चल दिए। घर की तरफ जाते हुए –

“नीलम है घर पर?” संध्या ने पूछा।

मैंने सिर्फ सर हिला कर हामी भर दी.

“उसकी पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है?”

“अच्छी चल रही है..” अब मैं उसको क्या बताऊँ कि पढ़ाई लिखाई के साथ साथ और भी बहुत कुछ चल रहा है, और वो भी बहुत ही अच्छे से!

“उसको कैसा लगेगा!” यह प्रश्न जैसे संध्या ने खुद से ही किया था।

“कैसा लगेगा? ये क्या बात हुई जानू! वो बहुत खुश हो जाएगी.. और कैसा लगेगा! मैं आपको बता नहीं सकता कि वो कितनी दुखी रही है!”

“हाँ.. आप सही कह रहे हैं! हम दोनों सिर्फ सगी बहनें ही नहीं है.. हमारा रिश्ता बहुत ही गहरा है..”

“इस बात में कोई शक नहीं..”

‘रिश्ता तो गहरा ही है!’

“क्या हुआ जानू.. आप ऐसे सूखा सूखा क्यों बोल रहे हैं?”

“नहीं कुछ नहीं.. थक गया हूँ बस! और कुछ भी नहीं..” अब अपनी सफाई में और क्या ही बोल सकता था?

“ओह अच्छा! कोई बात नहीं.. घर चल कर आपको अच्छी सी चाय पिलाती हूँ, और फिर बढ़िया स्वादिष्ट खाना.. ओके?”

मैं सिर्फ मुस्कुराया! सच में! अगर घर जा कर सचमुच ऐसा ही हो, तो फिर समझो कि मेरी लाइफ सेट हो गई! घर की तरफ बढ़ते हुए मेरे दिल की धडकनें बहुत तेज हो गईं, गला सूखने सा लगा और बहुत घबराहट हो गई. लगभग कांपती उँगलियों से मैंने कॉल-बेल का बटन दबाया।

कोई बीस सेकंड (जो की मुझे घंटे भर लम्बे लगे) के बाद दरवाज़ा खुला।

“आ गए आ... दीदी? दीदी..??? दीदी!!!! दीदी!!!! तुम जिंदा हो?!!!!!”

नीलम के समक्ष जो परिदृश्य था, वह उसकी समझ से परे था। किसी की भी समझ से परे हो सकता है; लेकिन इस बात के लिए नीलम तैयार ही नहीं थी।

“ओह भगवान्! तुम जिंदा हो! ओह! ओह भगवान्!”

ऐसा कह कर नीलम संध्या को कस कर अपने आलिंगन में भर लेती है। संध्या भी खुश हो कर और भावविभोर हो कर नीलम को अपनी बाहों में भर कर उसका चुम्बन लेने लगती है।

“तुम जिंदा हो दीदी! तुम जिंदा हो।“ संध्या के आलिंगन में बंधी हुई नीलम सुबकने लगी थी। उसकी आँखों से ख़ुशी के आंसू बन्हने लगे थे। “तुम जिंदा हो।“

“हाँ मेरी बच्ची! मैं जिंदा हूँ!” संध्या भी रोए बिना नहीं रह सकी। “मैं जिंदा हूँ!”

इस समय दोनों ही बहने वर्तमान में नहीं थीं। वो दोनों ही उस भयावह अतीत को याद कर रही थीं, जिसको उन्होंने साथ में झेला था। वह अतीत जिसने उनके माँ बाप को लील लिया था। वह अतीत जिसने उन दोनों को अलग कर दिया था। और वह अतीत, जिसने अनजाने में ही दोनों के वर्तमान को भी बदल दिया था। उस भयंकर अतीत को याद कर दोनों ही फूट फूट कर रोने लगीं; एस समय उन दोनों के लिए ही इस बात से बढ़ कर कुछ नहीं था कि वो दोनों ही जीवित थीं, और एक बार फिर से एक दूसरे के साथ थीं। न जाने कितनी ही देर दोनों बहने एक दूसरे को अपनी बाहों में लिए खड़ी रहीं, और फिर आखिरकार दोनों ने अपना आलिंगन छोड़ा।

“बस कर मेरी बच्ची... बस कर! ... कैसी है तू?” संध्या ने बड़े लाड से पूछा, और बड़े प्यार से नीलम के चेहरे को अपने दोनों हाथ में लिए निहारने लगी।

“अरे! तेरी शादी हो गई?” संध्या ने नीलम की मांग का सिन्दूर देख लिया।

“वाआह्ह्ह! कब?” संध्या ने लगभग चहकते हुए कहा।

यह प्रश्न जैसे वज्र की तरह गिरा – नीलम पर भी, और मुझ पर भी। इस प्रश्न पर नीलम के पूरे शरीर को मानो लकवा मार गया।

“आपने बताया क्यों नहीं?” संध्या ने शिकायती लहजे में मुझ पर प्रश्न दागा।

“वो मैं.. मैं..”

“हाँ हाँ ठीक है.. बहाने मत बनाइए। अब आ गई हूँ, तो सब कुछ डिटेल में सुन लूंगी! कहाँ हैं तेरे हस्बैंड?”

स्वतः प्रेरणा से नीलम ने इस प्रश्न पर मेरी तरफ देखा, और मैंने उसकी तरफ। मैंने ‘न’ में सर हिला कर एक दबा छुपा इशारा किया।

“व्व्वो वो दीदी.. तुम आओ तो सही। बैठो, फिर बताती हूँ सब।“

“हा हा.. ठीक है।“ कह कर हँसते हुए संध्या अन्दर आ गई और सोफे पर बैठ गई। “कहाँ तो मैं सोच रही थी कि मैं तुझे सरप्राइज दूँगी, और कहाँ तूने मुझे ही इतना बढ़िया सरप्राइज दे दिया...!”

“म्म्ममैं चाय बनाती हूँ!” नीलम अपना बचाव करते हुए बोली।

“अरे नहीं! नीलू, तू बैठ। चाय मैं बनाऊँगी।“

कह कर संध्या ने नीलम का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठाया, और खुद रसोई में चली गई।

संध्या ने जाते ही नीलम भी उठ खड़ी हुई।

“कहाँ जा रही हो, नीलम?” मैंने पूछा।

“'अपने' कमरे में...” उसने थोड़े से उदास और रुआँसे स्वर में कहा। उसकी आवाज़ में मुझे शिकायत की भी एक झलक सी महसूस हुई।

“अपने कमरे में? अपने?” मुझे समझ आ गया कि नीलम दूसरे कमरे में जाने वाली है। “नीलू.. इधर आओ.. प्लीज!” कह कर मैंने उसको अपनी बाँहों में भर लिया।

नीलम उदास सी मेरे बाहों में आ गई। तो मैंने कहना जारी रखा।

“हमने शादी करी है.. वो भी विधिवत। तुम मेरी बीवी हो। ठीक संध्या की ही तरह। इसलिए इस कमरे पर, इस घर पर, मुझ पर और मेरी हर चीज़ पर तुम्हारा उतना ही अधिकार है, जितना की संध्या का है!”

“आप समझ नहीं रहे हैं... बहन से सौतन तो बना जा सकता है, लेकिन सौतन से बहन नहीं। आपको मुझे पहले ही बता देना चाहिए था।“

नीलम ने बुझे हुए स्वर में कहा।

“आपने सोचा भी है, कि सच्चाई जानने के बाद दीदी क्या सोचेगी? क्या करेगी?”

“नीलू, मैं कैसे बताऊँ कि क्या हुआ! मैं तुमको बताना चाहता था, लेकिन मैं खुद ही श्योर नहीं था। इसलिए पहले नहीं बता सका। अगर संध्या न मिलती तो तुम्हारे मन पर क्या बीतती? मैं तो अभी यह भी बताने की हालत में नहीं हूँ की संध्या को ढूँढने के लिए मैंने क्या क्या पापड़ बेल दिए। यह तो बस भोलेनाथ की ही कृपा है कि वो मुझे मिल सकी। ... और... और कहाँ तक संध्या के सोचने का सवाल है.. तो संध्या के सोचने का क्या? मैं उसको सब कुछ सच सच बताऊंगा। जो सच्चाई है, वो उसे स्वीकारना ही होगा। उसको... संध्या को तुम्हें इसी रूप में, इसी रिश्ते में स्वीकारना ही होगा..।“

“क्या स्वीकारना होगा, जानू?” संध्या के ‘जानू’ कहने पर नीलम और मैं दोनों ही चौंक कर उसकी तरफ देखने लगे। न जाने क्यों, मुझे पुनः अपराध बोध हो गया।

“सब स्वीकार है.. फिलहाल आप दोनों यह चाय स्वीकार कीजिए। वहां मुरुक्कु रखे हुए थे, वो भी मैं ले आई। नीलू, आज डिनर के लिए क्या सोचा है?”

“वो दीदी..”

“संध्या.. जानू..,” मैंने झिझकते हुए यह कहा, “अभी चाय पी लो, डिनर का देख लेंगे। ओके?”

हमने चुपचाप चाय पीनी शुरू करी। मुझे यह तो मालूम था कि नीलम और मेरी कहानी मुझे ही संध्या को सुनानी पड़ेगी, लेकिन यह कितना कठिन होगा, यह मुझे नहीं मालूम था।

“जानू,” मैंने दुनिया भर की हिम्मत इकठ्ठा कर के बोलना शुरू किया, “आपको एक बात बतानी है.. बहुत ज़रूरी..”

“हाँ, बोलिए न! मैं भी तो मरी जा रही हूँ सब कुछ सुनने के लिए! कितना कुछ है सुनने के लिए! तीन साल यूँ ही उड़ गए! मुझे तो कुछ याद भी नहीं। अब आप दोनों को ही तो बताना है सब कुछ।“ संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “.. और इसकी शादी के बारे में भी.. किस से शादी कर ली?”

“तो ठीक है.. सबसे पहले नीलम की शादी से ही शुरू करते हैं..”

हिम्मत बटोरी, लेकिन फिर भी ठिठक नहीं गई। ऐसी बातें सहजता से कैसे कही जा सकती हैं।

“जानू... नीलम से... शादी... मेरा मतलब हैं, नीलम से मैंने शादी कर ली..”

संध्या को लगा जैसे उसके पैरों तले की ज़मीन ही निकल गई हो। ‘शादी कर ली है..! यह कैसे मुमकिन है?’ संध्या की शकल देख कर साफ़ दिख रहा था कि उसको यकीन ही नहीं हुआ है।

“शादी कर ली है..?”

मैंने हामी में सर हिलाया।

“नीलम से?”

मैंने फिर से सर हिलाया।

संध्या ने अविश्वास के साथ नीलम की तरफ देखा। वो सर झुकाए, किसी मुजरिम की भांति बैठी हुई थी, और खामोशी के साथ आंसू टपका रही थी। आज सच में हम सभी का जीवन बदल गया था।

“क्या सच में? आप और नीलम?”

“हाँ जानू.. हम दोनों ने शादी कर ली.. लेकिन इस बात को पूरा समझने के लिए आपको सब कुछ बहुत पेशेंटली सुनना पड़ेगा..”

मुझे दिख रहा था कि मेरे इस खुलासे के बाद संध्या बहुत ही व्यथित हो गई थी, लेकिन जितनी ही जल्दी यह सारी बात सामने आ जाय, उतना ही अच्छा था।

मैंने संध्या को सब कुछ बताना शुरू किया – शुरू से – जब मैं त्रासदी के बाद, उनकी तलाश में उत्तराँचल गया था। मैंने बताया की कैसे दर दर भटकने के बाद एक दिन अनायास ही नीलम मिली। उसकी कैसी बुरी हालत थी। एकाध दिन और न मिलती, तो कभी न मिलती। नीलम से ही मुझे बाकी जानकारी मिली कि कैसे मम्मी, पापा और संध्या तीनो ही नहीं रहे।

मैं नीलम को ले कर वापस आ तो गया, लेकिन जीने की सारी इच्छा अब समाप्त हो गई थी। यंत्रवत हो गया था। अब जीवन में न कोई उद्देश्य नहीं दिख रहा था, और न ही कोई औचित्य। आत्महत्या का भी ख़याल आया, लेकिन कायर की तरह मरने में क्या रखा था। इन सब के बीच में हर बात पर से ध्यान हटने लगा – न स्वास्थय पर नज़र, और न ही परिवार पर। नीलम घर पर थी, लेकिन फिर भी उससे न बराबर ही बात होती थी – उस पूरे समय तक मैं उसका पूरी तरह से प्रमाद करता रहा था। एक तरह से मन में यह ख़याल आता ही रहा कि संध्या के स्थान पर वो क्यों न रही! नीलम का चेहरा मुझे उत्तराखंड की त्रासदी की ही याद दिलाती थी।

और फिर मेरा एक्सीडेंट हो गया। ऐसा एक्सीडेंट जिसने मुझे मृत्यु के मुहाने तक पहुंचा दिया। मैं बोल रहा था, लेकिन एक्सीडेंट की बात सुन कर संध्या के दिलोदिमाग में एक झंझावात चलने लगा।

‘रूद्र का एक्सीडेंट! मेरे रूद्र का एक्सीडेंट!! हे भगवान्! यह क्या क्या हो गया मेरे पीछे!’

मैं बोल रहा था – मुझे नहीं मालूम की क्या क्या बीता नीलू पर, लेकिन जब अंततः मेरी चेतना वापस आई, तब मैंने उसको अपने बगल, अपने साथ पाया। डॉक्टर और नर्स सभी लोगों ने कहा की उन्होंने मेरे बचने की कोई उम्मीद ही बाकी नहीं रखी थी। लेकिन नीलम, जैसे सावित्री के समान ही मुझे यमराज के पाश से छुड़ा लाई। ये वही नीलम थी, जिसकी मैंने इतने समय तक उपेक्षा करी। ये वही नीलम थी, जिसको मैंने बात बात में दुत्कार दिया, ये वही नीलम थी जिसने मेरी हर कमी को मेरी हर उपेक्षा को नज़रंदाज़ कर के सिर्फ मेरा साथ दिया। नीलम ने जिस तरह से मुझे सहारा दिया, मेरी टूटी हुई ज़िन्दगी को वापस पटरी पर लाया, मेरे पास और कोई विकल्प ही नहीं था। मैं सच में तुम्हारा कोई विकल्प नहीं चाहता था – कभी भी नहीं। मेरा तो सब कुछ ही तुम्हारे साथ साथ ही चला गया था। मैंने तो एक अँधेरे में डूबता जा रहा था, और न जाने कब तक डूबता रहता, अगर नीलम ने आ कर मुझे सम्हाल न लिया होता।

ये जो तुम मुझे इस हाल में देख रही हो, वो मेरा पुनर्जन्म है, और उसका सारा श्रेय सिर्फ नीलम को जाता है। तुम्हारे बाद यदि मेरा कोई विकल्प हो सकता था – एक नेचुरल विकल्प, तो वो सिर्फ और सिर्फ नीलम ही हो सकती थी। यह कहते कहते मुझे फरहत की याद हो आई.. वो भी एक विकल्प थी। लेकिन नेचुरल नहीं!

“सच में?” संध्या मंत्रमुग्ध सी हो कर बोली। उसने नीलम की तरफ देखते हुए बहुत मद्धम आवाज़ में कहा, "मेरी प्यारी नीलू... तू कब से इतनी सयानी हो गई?"

इतना कह कर वो उठ खड़ी हुई और हमारे (?) शयन कक्ष की ओर जाने लगी।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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“मैं कुछ देर आराम करना चाहती हूँ.. और शायद सोचना भी.. आप लोग मुझे कुछ देर डिस्टर्ब मत करिए.. प्लीज!”

उसने बिना किसी की भी तरफ देखे कहा और अन्दर चली गई। बस इतनी गनीमत थी कि उसने अन्दर से दरवाज़ा बंद नहीं किया।

सोने का तो सवाल ही नहीं था। बिस्तर पर पड़े पड़े संध्या कुछ परिचित की तलाश कर रही थी। उसका शयन कक्ष बिलकुल बदल गया था। हाँ, वो कमरा, वो अलमारी, ये बिस्तर आदि तो वही थे, लेकिन इस समय कितने अलग से लग रहे थे। अपरिचित। बिलकुल अपरिचित। उसको ऐसा लग रहा था, कि जैसे किसी और के कमरे में लेटी हुई हो! अलमारी खोल कर अन्दर देखने की हिम्मत ही नहीं हुई – पति ही अपना नहीं रहा तो किस हक़ से किसी और की अलमारी खोले? किस हक़ से?

हाँ, किस हक़ से वो रूद्र और नीलम के बिस्तर पर लेटी हुई है? उसको समझ ही नहीं आ रहा था कि इस पूरे घटनाक्रम पर वो क्या प्रतिक्रिया दे! उसको लगा कि शायद उसको गुस्सा आएगा, लेकिन वो भी नहीं आ रहा था। रूद्र - उसका पति जिस पर उसे हमेशा ही गर्व रहा है। वह खुद को कितना सुहागिन मान कर इतराती रही है, गर्व से फूली हुई फिरती रही है। वह पति अब किसी और का है!

किसी और का? किसी और का कैसे है? नीलम तो भी अपनी है। उसकी खुद की बच्ची! खुद की बच्ची? हुँह! इतनी ही बच्ची रहती तो उसके पति पर डोरे डालती? उसके पति को ले उडती? अचानक ही संध्या को इतना गुस्सा आया कि उसका मन हुआ कि उस डायन को अभी के अभी अपने पति के सामने झाड़ू से पीट डाले!

उसके मस्तिष्क में नीलम और रूद्र की छवि जाग गई – एक दूसरे से गुत्थम गुत्था! एक दूसरे से गुत्थम गुत्था और नग्न! पूर्ण नग्न! रूद्र नीलम के ऊपर चढ़े हुए! उसको उस छवि की कल्पना से उबकाई आ गई! शर्म नहीं आती... किसी और के साथ! फिर उसको एक दूसरा विचार आया। किसी और के साथ कहाँ? नीलम तो अब रूद्र की पत्नी है। उनकी विवाहिता! तो कल जो उसके साथ हुआ? कल रात क्या था? अब संध्या तो उनकी विवाहिता नहीं रही! तो क्या था वह सब? रेप? ओह! नहीं नहीं! कल तो उसके खुद के आमंत्रण पर ही तो रूद्र ने उसको भोगा था! तो अब उसका और रूद्र का क्या रिश्ता है? और कैसे संध्या उनकी विवाहिता नहीं है?

यह विचार आते ही संध्या की कुछ व्यावहारिक बुद्धि जागी।

रूद्र ‘उसका पति’ कैसे है! वो तो सभी के अनुसार मर चुकी थी। व्यावहारिकता के हिसाब से मर चुकी है, विधि के हिसाब से मर चुकी है.. मर चुकी है, मतलब रूद्र भी उसके वैवाहिक बंधन से मुक्त हो चुके थे। और फिर नीलम ने उनको तब सम्हाला जब वो नितांत अकेले थे। वो भी तो नहीं थी। जब उनका एक्सीडेंट हुआ, तो वो कहाँ थी? उनको किसके भरोसे छोड़ गई थी? ऐसे में नीलम ने ही तो सम्हाला! उससे ज्यादा किया। कहीं ज्यादा! पता नहीं अगर वो खुद वहां होती, तो क्या कर पाती! डाक्टरों ने नीलम को सावित्री का रूप बताया – सावित्री का! सती सावित्री! सती – वो स्त्री, जो पूरी तरह पवित्र हो। नीलम पवित्र है। पूरी तरह। गन्दगी खुद उसके अपने दिमाग में है, जो ऐसी फूल जैसी, ऐसी गुड़िया जैसी बच्ची को तकलीफ देने की सोची भी। दोनों ही रीति रिवाजों के बंधनों में बंधे हुए पति-पत्नी हैं। उनके बारे में वो ऐसा बुरा सोच भी कैसे सकती है?

पल भर में ही उसका सारा क्रोध शांत हो गया। कितना कष्ट हुआ होगा उन दोनों को ही, जब खुद उसने उन दोनों का साथ छोड़ दिया। रूद्र पूरी तरह से उसके लिए ही सपर्पित थे; नीलम उनके लिए समर्पित है; और रूद्र भी नीलम के प्रति समर्पित हैं। उनका विवाह झूठा तो नहीं है। भले ही भाग्य ने दोनों को इतने दुःख दिए, लेकिन एक दूसरे के संग से दोनों सुखी हैं! मन का बंधन क्या टूटता है कभी?

किस तरह से, किस मुश्किल से दोनों ने एक दूसरे से शादी करने का निर्णय लिया होगा। कितना कठिन रहा होगा उन दोनों के लिए ही। आज वो जो अचानक ही उनके हँसते खेलते जीवन में आ गई, तो ये दोनों अब कैसे खुश रहेंगे? उसके रहने से कितनी पीड़ा होगी मन में उनके?

वो प्यारी सी बच्ची! कैसे उसने उसके ही सुहाग की रक्षा करी थी! और एक वह है कि उसको ही अभियुक्त बना कर अपने कुंठित न्यायलय के कठघरे में खड़ा करने चली थी! छि:! कितना ओछापन!

संयोग से ही सही, नीलम को रूद्र मिल गया। भले ही पहले रूद्र उसका पति था, लेकिन अब वह उस का नहीं, नीलम का पति है। सच तो यह है कि नीलम ने उसके इस छोटे से परिवार की रक्षा की, उसको सजाया, और सँवारा। और वह उस पर ही आक्रोश में भर कर इस सजे सजाए गृहस्थी में आग लगाने जा रही थी! कितना छोटा मन है उस का!


****


संध्या को वापस आया देख कर नीलम को जो ख़ुशी मिली थी, वो उसके सामने उसके और मेरे सम्बन्ध के उजागर होने से काफूर हो गई! और संध्या को ऐसे उखड़े हुए व्यवहार करते देख कर मेरा और नीलम – दोनों का ही दिल टूट गया। यह तो मुझे मालूम था कि संध्या को आश्चर्य होगा, लेकिन उससे गुस्से की उम्मीद नहीं थी। मुझे लगा था कि वो शायद समझ जाएगी। और बेचारी नीलम को तो संध्या के अस्तित्व के बारे में ही कुछ नहीं मालूम था। उसको तो थोड़े ही अंतराल में न जाने कितने धक्के लग गए। वो ऐसे ही मुझसे अलग बहुत देर तक नहीं रह पाती, और अब तो उसकी हालत ही खराब हो गई।


जब संध्या ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया, तब नीलम के धैर्य का बाँध पूरी तरह से ढह गया – वो दबी घुटी आवाज़ में हिचकियाँ ले ले कर रोने लगी। मैंने नीलम को अपने गले से लगाया और उसको चूमा। साफ़ जाहिर था कि नीलम के मन में सिर्फ और सिर्फ अशांति थी। नीलम ने मुझे कस कर पकड़ कर अपने गले लगाया हुआ था। कुछ ऐसे जैसे की उसने पहले नहीं किया था।


****


काफी प्रयास कर के मैंने नीलम को शांत कराया और उसको छोटे बेडरूम में ले गया, जिससे वो भी कुछ आराम कर सके। नीलम इतने दिन मेरे बिना कैसे रही होगी, यह मैं समझ सकता था – मैं खुद भी उसके बिना इतना समय कैसे रहा यह बताना मुश्किल काम है। यह समय उसके लिए अत्यंत ही यातना भरा था। क्या सोचा था, और क्या हो गया!


नीलम को मैंने काफी मना कर बिस्तर पर ही लिटा लिया। उसको इस समय प्रेम की आवश्यकता थी.. तनाव, ग्लानि और क्रोध या ऐसे ही मिले जुले भाव जो उसके मन में उठ रहे थे, उनके निवारण के लिए प्रेम की आवश्यकता थी।


नीलम ने एक शर्ट पहनी हुई थी। वो जब बगल में लेटी तो मैंने उसकी शर्ट का बटन खोलना शुरू कर दिया। उसका मन कहीं और ही लगा हुआ था। उसको अपनी नग्नता का एहसास तब जा कर हुआ, जब उसकी शर्ट पूरी तरह से खुल गई और उसको मैंने अपने आप में समेट लिया। तब जा कर उसने महसूस किया कि मेरी उंगलियाँ लगातार उसके स्तनों के उभारों के उतार-चढ़ाव का अध्य यन करने में लगी हुई थी।


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संध्या ने मन ही मन खुद को सम्हाला – उसका पति तो अब बँट ही गया था, लेकिन अच्छी बात यह थी कि वो बँटा था तो भी उसकी खुद के बहन के साथ। वो बहन जिसको संध्या खूब प्यार करती है... वो पति जो उसको खूब प्यार करता है... वो बहन जो संध्या को खूब प्यार करती है... और वो रूद्र जो नीलम को खूब प्यार करते हैं! जब उन तीनों में ही इतना प्रगाढ़ प्रेम है, तो फिर मन मुटाव का सवाल ही कहाँ से आता है? वो अभी जा कर उन दोनों से बात करेगी और माफ़ी मांगेगी... और विनती करेगी कि वो उसको अपने साथ रहने दें! उसको यकीन है कि वो दोनों मना नहीं कर सकेंगे!

संध्या रूद्र और नीलम को ढूंढते हुए कमरे से बाहर निकली और सीधा बैठक की तरफ गई। वहां कोई भी नहीं था, तो वो वापस अपने कमरे की तरफ आने लगी। तब जा कर उसने देखा कि छोटे वाले कमरे में कोई है। उसने कमरे के अन्दर झाँका, तो अन्दर का दृश्य देख कर चमत्कृत रह गई।

नीलम और रूद्र पूर्णतः नग्न अवस्था में आलिंगनबद्ध होकर सो रहे थे। नग्न तो थे ही, लेकिन संध्या को समझ आ रहा था कि यह निद्रा कुछ समय पहले ही संपन्न हुई रति-क्रिया के बाद के सुख के कारण प्रेरित हुई है। रूद्र बिस्तर पर कुछ नीचे की तरफ, नीलम की ओर करवट करके लेटे हुए थे। उनका बायाँ पाँव नीलम के ऊपर था, और इस अवस्था में उनका लिंग स्पष्ट दिख रहा था। उस समय उनके लिंग का शिश्नाग्रछ्छद पीछे की तरफ खिसका हुआ था, और इससे उनके लिंग का गुलाबी हिस्सा साफ दिखाई दे रहा था।

नीलम पीठ के बल चित्त लेटी हुई थी। आज पहली बार संध्या ने नीलम के यौवन रस से भरे अनावृत्त सौंदर्य को पहली बार देखा था। जब छोटी थी, तब वो ऐसी सुन्दर तो बिलकुल ही नहीं दिखती थी! अभी जैसी लगती है, उससे तो कितनी भिन्न! लेकिन अब देखो... कितनी अधिक सुन्दर हो गई है! उसके स्तनों की मादक गोलाईयां – मन करता है कि उनका रस निचोड़ लिया जाए! और कैसा सुन्दर, भोला चेहरा, भरे भरे रसीले होंठ! और ऊपर से ऐसा फिट शरीर! कैसी सुन्दर है ये!

‘हाँ...’

नीलम के पाँव कुछ खुले हुए थे, जिस कारण उसकी योनि भी थोड़ी सी खुली हुई थी। नीलम की योनि के होंठ उसकी खुद की योनि के होंठों के समान ही फूले हुए थे – या संभवतः थोड़े से अधिक ही फूले हुए थे। कुछ कुछ तो अभी हुए घर्षण के कारण हुआ होगा... लेकिन इतना तो तय है कि नीलम की योनि भी पूरी तरह से परिपक्व हो गई थी। वहाँ से अभी कुछ देर पहले ही संपन्न हुए सम्भोग का रस निकल रहा था। संध्या का संदेह सही था। खैर, कैसा संदेह? पति-पत्नी क्या प्रेम नहीं करेंगे? प्रेम सम्बन्ध नहीं बनाएँगे? दांपत्य जीवन में प्रेम का एक बड़ा रूप रति है। वही तो हो रहा था।

संध्या ने उन दोनों को वात्सल्य भाव से देखा, ‘कैसा सुन्दर और आकर्षक जोड़ा है दोनों का।‘

संध्या से रहा नहीं गया। वो दबे पांव आगे बढ़ते हुए नीलम और रूद्र के पास पहुंची और चुपके से नीलम के एक चूचक को हलके से अपनी उंगली और अंगूठे के बीच दबाया। प्रतिक्रिया स्वरुप, लगभग तुरंत ही उसका चूचक खड़ा हो गया। नीलम के होंठों पर हलकी सी मुस्कान भी बन गई।

‘ऐसे मुस्कुराते हुए कितनी प्यारी लगती है..! सोच रही होगी की इन्होने छुआ है...’

संध्या ने दूसरे स्तन के चूचक के साथ भी वही किया। समान प्रभाव! उत्सुकतावश उसने रूद्र के लिंग को भी हलके से सहलाया – पुष्ट अंग तुरंत ही उत्तेजना प्राप्त कर के आकार में बढ़ने लगा।

‘इन्होने शायद वो जड़ी ले ली..’ संध्या ने मुस्कुराते हुए सोचा।

लिंग के बढ़ते ही रूद्र कुनमुनाते हुए जागने लगे। संध्या झट से कमरे से बाहर हो ली।


***


“नीलू?”

नीलम चौंकी। दीदी उसको बुला रही थी। उसकी आवाज़ क्षीण थी, लेकिन गुस्से में नहीं लग रही थी। दुःख में भी नहीं लग रही थी। एक तरह से शांत लग रही थी। नीलम बस अभी अभी जगी थी, और अपने कपड़े पहन रही थी। शायद कमरे से आने वाली आवाज़ दीदी को सुनाई दे गई, इसलिए उसने उसको पुकारा है। इसका मतलब दीदी ने सब कुछ देख भी लिया है..

“जी, दीदी!”

“ज़रा यहाँ आ मेरी बच्ची।“

दीदी की आवाज़ तो शांत ही लग रही थी। खैर, ऐसा तो नहीं है कि वो कभी भी दीदी के सामने जाने से बच सके। और बचे भी क्यों? दीदी है उसकी। सगी दीदी! और तो और, उसने भी तो रूद्र से पूरी रीति के साथ शादी करी है; जायज़ शादी करी है। वो क्यों डरे? अगर दीदी गुस्सा हुई तो वो उससे माफ़ी मांगेगी। उनके पैर पकड़ेगी। दीदी को उसे माफ़ करना ही पड़ेगा।

नीलम उठी।

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया – मेरे दिल में एक अबूझ सा डर बैठा हुआ था। नीलम ने एक प्यार भरी मुस्कान मुझ पर डाली, और कहा,

“जानू, आप चिंता क्यों करते हैं? दीदी हैं मेरी। आज एक काम करिए, आप बाहर घूम आइए। प्लीज! आज अभी यहाँ मत रहिए। मैं दीदी से बात करती हूँ। ओके?”

कह कर नीलम ने मेरे होंठों पर एक चुम्बन दिया और मेरे जाने का इंतज़ार करने लगी। मैं अनिश्चय से कुछ देर तक बिस्तर पर बैठा रहा, लेकिन फिर नीलम का आत्मविश्वास देख कर उठ खड़ा हुआ। मैंने बाहर जाने से पहले एक बार नीलम को देखा – न जाने क्यों लग रहा था कि उसको मैं आखिरी बार देख रहा था – और घर से बाहर निकल गया। दिल बैठ गया।

नीलम अंततः बेडरूम में पहुंची।

नीलम की पदचाप संध्या ने सुन ली, और उठ कर बिस्तर पर बैठ गई।

“यहाँ आओ.. मेरे पास। मेरे पास बैठो।“

नीलम धीरे धीरे बिस्तर तक पहुंची, और झिझकते हुए एक तरफ बैठ गई। लेकिन उसकी नज़र नीची ही रही।

“नीलू, मेरी बहन, मेरी तरफ देख!”

नीलम ने अंततः संध्या ने आँख मिलाई। संध्या के होंठो पर एक मद्धिम मुस्कान थी।

“मेरी बच्ची, मुझे माफ़ कर दे। मेरा मन तुम्हारे और रूद्र के प्रति कुछ देर के लिए मैला हो गया था।“

“नहीं दीदी, आप ये कैसे बोल रही हैं?” नीलम क्या सोच कर आई थी, और क्या हो रहा था।

“बोल लेने दे। तू बाद में बोल लेना। मैंने ने आज तक रूद्र के चरित्र में किसी भी तरह का खोट नहीं देखा। उन्होंने मेरी किसी भी इच्छा को अपूर्ण नहीं रखा। तुम भी उनकी पत्नी हो... तुम भी उनके साथ रही हो, और तुम भी यह बात जानती हो। रूद्र... पति धर्म को निभाने में कहीं भी चूके हैं? जब भी किसी भी प्रकार की समस्या, या कठिनाई आई, तो ढाल बन कर वो मेरे सामने आ गए! मुझे हर कठिनाई से बचाते रहे, और रास्ता दिखाते रहे। उन्होंने मुझे हर तरह से खुश रखने का प्रयास किया। आज तक एक कटु शब्द तक नहीं बोला उन्होंने मुझसे। वह तो इतने अच्छे हैं, कि मेरी हमउम्र स्त्रियां... मेरी सहेलियां मुझसे ईर्ष्या करती हैं।“

कह कर संध्या ने नीलम पर मुस्कुराते हुए एक गहरी दृष्टि डाली।

“... और आज... जब उनके पास ऐसे कठिन चुनाव का समय आया तो, मैं उनको अकेला छोड़ दूं? नहीं मेरी बहन.. बिलकुल नहीं। तुम उनकी पत्नी हो, और हमेशा रहोगी। मैं वापस हमारे गाँव चली जाऊंगी.. और वहीँ रहूंगी! तुम दोनों कभी कभी मुझसे मिलने आ जाना.. आओगी न बच्चे?”

संध्या की ऐसी बात सुन कर नीलम का दिल टूट गया। आँखों से आंसुओं की अनवरत धरा बहने लगी। दुःख के मारे उसका रोना छूट गया और रोते हुए हिचकियाँ बंध गईं।

“दीदी, ये आप कैसी बाते कर रही हैं? आपको क्या पता नहीं है कि रूद्र का पहला प्यार आप हैं? ... और अगर आज उनके पास ऐसा कठिन समय आया है तो वो इसीलिए है, क्योंकि वो आपसे बहुत प्यार करते हैं। मैं सपने में भी आप दोनों को अलग करने का सोच भी नहीं सकती हूँ। मैं तो यूँ ही अनायास ही आप दोनों के बीच आ गई! दीदी आप ही उनका पहला प्यार हैं, और आप ही का उन पर ज्यादा अधिकार है। आप फिर से उनसे शादी कर लो। मैं उनसे तलाक ले लूंगी।“

कहते कहते नीलम की हिचकियाँ बंध गईं।

“ले पाओगी तलाक? सच में? अरी पगली.. कैसी बातें करती है? तू अनायास हमारे बीच में आ गई? अनायास? अरे मेरी सयानी बहन, अगर तू न होती, तो सच कह रही हूँ, रूद्र भी न होते। मेरा सुहाग न होता। उनको अँधेरे से निकाल कर लाने वाली तू है.. सच कहूँ? उन पर अगर किसी का हक़ है, तो वह सिर्फ तुम्हारा है! लेकिन मुझे यह भी मालूम है, की रूद्र हम दोनों से ही बहुत प्यार करते हैं! ज़रा कुछ देर रुक कर यह सोच, हम दोनों कितने भाग्यशाली हैं कि हम दोनों को ही उनका प्यार मिला, उनका साथ मिला। ख़बरदार तुमने कभी रूद्र से अलग होने की सोची।“

ऐसे भावनात्मक वार्तालाप करते हुए दोनों ही बहने फूट फूट कर रोने लगीं। ऐसे ही रोते रोते संध्या ने कहा,

“क्या तुम सच्चे दिल से इनसे प्यार करती हो?”

“दीदी यह कोई पूछने वाली बात है? मैं इनसे बहुत प्यार करती हूँ। अगर वो कहे तो मैं तो उनके लिए अपनी जान भी दे सकती हूँ...”

“तो मेरी सयानी बहन, अब मेरी बात सुन... अगर अब से हम तीनों ही एक साथ रहें, तो क्या तुम्हे कोई प्राब्लम है?”

“क्या? क्या? क्या सच में दीदी? मैं इनसे और आपसे अलग नहीं हो पाऊंगी? सच में दीदी, मैं आप दोनों से अलग नहीं हो सकती... अगर आप दोनों के साथ रहने को मिल गया, मैं आपकी बहुत आभारी रहूंगी और आप जो कहोगी, मैं वो सब कुछ करूँगी.. आपकी नौकरानी बनकर रहूंगी.. आप बस मुझे इनसे और अपने आप से अलग मत करना।“

“अरे पगली! वो मेरे पति हैं, और तुम्हारे भी पति! ये नौकर नौकरानी वाली बातें मत करना कभी! मेरी बात ध्यान से सुन.. मैं बहुत भाग्यशाली हूँ, कि तू मेरी बहन है – मेरी छुटकी! मत भूलना की मैंने तुझे अपनी छाती पिलाई है.. मैं तुझसे दो साल ही बड़ी सही, लेकिन तुझे माँ जैसा प्रेम भी करती हूँ... मेरी प्यारी बहन, हम दोनों बहनें अब से एक ही पति की पत्नी बनकर रहेंगी! ठीक है?”

“बिलकुल दीदी.. बिलकुल! थैंक यू! थैंक यू! थैंक यू!!”

माहौल एकदम से हल्का हो गया। दोनों हो बहने मुस्कुराने लगीं।

संध्या और नीलम ने शायद ही कभी सेक्स के विषय में बात करी हो, लेकिन आज परिस्थितियाँ एकदम भिन्न थीं। बात के बारे में पहल संध्या ने ही करी –

“प्यारी बहना, एक बात बता...”

“क्या दीदी?”

“तुझको.. enough तो मिल जाता है न..?”

“क्या दीदी?”

“अरे.. इनका ‘प्यार’.. और क्या?”

“क्या दीदी! ही ही ही..”

“अरे बोल न?”

“Enough तो कभी नहीं मिलता...”

“क्या? क्या ये तुझे satisfy नहीं...”

“अरे नहीं दीदी! ऐसा कुछ भी नहीं है... इनके तो छूने भर से satisfaction मिल जाता है.. लेकिन ये कुछ इस तरह से करते हैं कि मन भरता ही नहीं...”

संध्या समझ गई कि नीलम क्या कह रही है.. साफ़ सी बात थी कि नीलम जम कर सेक्स का आनंद उठा रही थी, और संध्या खुद मानों रेगिस्तान में भटक रही थी। एक पल को उसका मन फिर से इर्ष्या से भर गया। एक भिन्न प्रकार की इर्ष्या – सौतिया डाह! नीलम ने संध्या के चेहरे को देखा – उसको समझ में आ गया कि संध्या के मन में क्या चल रहा है।

“दीदी, अब तो आप घर वापस आ गई हो... अब क्या चिंता!”

“अरे, तेरा ‘मन’ भरते भरते इनके पास मेरा भरने की ताक़त बचेगी भला?”

“आपका क्या दीदी, ही ही!” नीलम भी तरंग में आ गई थी।

“हा हा! मेरी मियान!”

“ही ही दीदी! कैसा कैसा बोल रही हो!”

“अरे इसमें कैसा कैसा वाला क्या है... मियान ही तो कहा है... चूत थोड़े ही कहा... अब तेरा ही देख न.. कुछ सालों पहले तक तेरी पोकी ठीक से दिखती तक नहीं थी.. और अब तो एकदम रसीली हो गई है! फूल कर बिलकुल कुप्पा!”

“दीदी!”

“अरे! मुझसे क्या शर्माना? मेरी भी ऐसी ही हालत हो गई थी मेरी बहना! इनके बेदर्द लिंग ने इतनी कुटाई करी मेरी सहेली की कि साल भर तक ठीक से ले भी नहीं पाती थी.. लेकिन बाद में आदत हो गई, और जगह भी बन गई!”

नीलम शर्माते हुए संध्या की बात सुन रही थी और साथ ही साथ कुछ सोचती भी जा रही थी।

“अरी! मन ही मन क्या सोच सोच कर मुस्कुराए जा रही है?”

“कुछ नहीं दीदी... मैं सोच रही थी कि हम दोनों बहनों का कितना कुछ साझा है – माँ बाप भी एक और पति भी..”

“हा हा! वो तो है!”

“दीदी, हम लोग कैसे करेंगे?”

“कैसे करेंगे का क्या मतलब?”

“मतलब, उन पर पहला हक़ तो आपका ही है..”

“किसी का पहला दूसरा हक़ नहीं है... हम तीनो का ही हम तीनो पर एक सा हक़ है। इन्होने मुझे यही समझाया है कि शादी में पति और पत्नी दोनों बराबरी के होते हैं.. और कोई छोटा बड़ा नहीं।“

“हम्म.. मतलब की हम तीनो एक साथ?”

“और क्या? सोच.. हम तीनो एक साथ एक बिस्तर पर!”

“नंगू पंगु?” नीलम ने बचे हुए आंसू पोंछते हुआ कहा।

“हाँ..” संध्या मुस्कुराई, “और उनका छुन्नू.. हम दोनों के अन्दर बारी बारी से! सोच!”

“ही ही.. दीदी, वो उसको लंड कहते हैं..”

“तुझे भी सिखा दिया?”

“हाँ..”

“हम दोनों मिल कर रूद्र की सेवा करेंगी, और हम दोनों मिल कर उनको इतनी ख़ुशी देंगी कि उनसे सम्हाली न जा पाए!”

“हाँ दीदी! उन्होंने बहुत सारे दुःख झेले हैं।“

“अब और नहीं! अब बिलकुल भी और नहीं!”

“दीदी... क्यों न आज हम सब मिलकर रात बिताएँ?”

“मन तो मेरा भी यही है.. लेकिन इनसे भी तो पूछना पड़ेगा... क्या पता, क्या क्या सोच लिया होगा इन्होने!”

“अरे क्या सोचेंगे? किस आदमी को अपने बिस्तर पर दो दो सेक्सी लड़कियाँ नहीं चाहिए?”

“हा हा हा हा... हाँ.. इन्होने हमारे हनीमून पर एक विदेशी लड़की के साथ कर लिया था...”

“क्या कह रही हो दीदी?”

“हाँ! और वो भी मेरे सामने!”

“अरे! और आपने कुछ कहा नहीं? रोका नहीं?”

“अरे कैसे रोकती? इतनी सेक्सी सीन थी कि क्या बताऊँ! वो सीन देख कर मेरे बदन में ऐसी आग लग गई थी कि कुछ कहते, करते न बना!”

“मतलब इन्होने चार चार लड़कियों को...”

“चार? चार मतलब?”

“जब जनाब की हड्डियाँ टूटी हुई थीं, तब इन्होने अपनी नर्स की योनि को भी तर किया...”

“क्या? हा हा!”

“हाँ दीदी... ये तो उससे शादी भी करना चाहते थे.. अगर मैंने ही इनको प्रोपोज़ न कर दिया होता तो ये तो गए थे हाथ से...!”

“बाप रे... कौन थी वो लड़की?”

दोनों बहनें फिर फ़रहत की बातें, और इधर उधर की गप-शप करने लगीं। पुरानी बातों को याद करने लगीं। जो भी गिले शिकवे, डर और संदेह बचे हुए थे, सब निकल गए!

मुझे फोन पर sms मिला – ‘Honey, fuck Di tonite. Fuck her brains out, and then we will talk. Luv’

समय देखा, रात के साढ़े दस बजे थे। मुझे मालूम नहीं था कि दोनों बहनें आपस में क्या कर रही थीं – झगड़ा या प्यार! कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। खाने पीने का भी कुछ ठिकाना नहीं मालूम हो रहा था, इसलिए मैंने बाहर ही खाना खा लिया – खाना क्या खाया, बस पेट में कुछ डाल लिया। भूख तो वैसे भी नहीं लग रही थी।

नीलम का sms पढ़ कर कुछ दिलासा तो हुई। मतलब बात खराब तो बिलकुल भी नहीं हुई है।

‘fuck Di...? बिल्कुल! संध्या जैसी लड़की तो मुर्दे में भी कामेच्छा जगा सकती है.. ये तो सिर्फ मैं ही हूँ... उसका पति!’

मैं जल्दी जल्दी डग भरते हुए घर पहुंचा – तब तक तो मेरा शिश्न तीन चौथाई खड़ा भी हो गया था। दरवाज़ा खोला तो देखा कि नीलम एक मद्धिम बल्ब से रोशन ड्राइंग रूम में मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। उसने मुझे देखा और फिर मेरे लोअर के सामने बनते हुए तम्बू को। उसने एक हाथ की तर्जनी को अपने होंठो पर ऐसे रखा कि मैं कुछ न कहूँ, और दूसरे हाथ की तर्जनी से इशारा कर के अपनी तरफ बुलाया। उसके पास मैं जैसे ही पहुँचा, उसने एक ही बार में मेरा लोअर और चड्ढी खींच कर नीचे उतार दिया और ‘गप’ से मेरे उत्तेजित लिंग को अपने मुँह में भर लिया। कुछ ही देर के चूषण के बाद मेरा लिंग पूरी तरह से तैयार हो गया। यह देख कर उसने मुझे छोड़ दिया और फुसफुसाती हुई आवाज़ में कहा,

“कस के चोदना उसे... कम से कम तीन चार बार! समझ गए मेरे शेर? अब जाओ..”

यदि कोई कसर बची रह गई हो तो नीलम की यह बात सुन कर पूरी हो गई। मास्टर बेडरूम का दरवाज़ा बंद था, और उसके अन्दर में से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, और न ही अन्दर बत्ती जलती हुई लग रही थी। अन्दर जाते जाते मैंने अपने सब कपड़े उतार दिए। अन्दर गया तो देखा कि हाँलाकि बत्ती बंद थी, लेकिन बाहर से हलकी हलकी रोशनी छन कर आ रही थी, और उसी रौशनी से संध्या का नग्न शरीर प्रतिदीप्त हो रहा था।

लम्बे लम्बे डग भरता हुआ मैं बिस्तर तक पहुंचा और चुपचाप, बिना कोई ख़ास हलचल किए संध्या के बगल पहुंचा। वैसे देखा जाय तो जो मैंने आगे उसके साथ करने वाला था, उससे तो संध्या की नींद में कहीं अधिक ख़लल पड़ने वाला था। वैसे अगर मुझे पहले से मालूम होता तो यह सब इन दोनों बहनों का स्वांग था। खैर, बहुत ही मजेदार स्वांग था। मैंने उंगली को संध्या की चूत पर हलके से फिराया – वो तुरंत ही गीली हो गई।

‘ह्म्म्म कैसे सपने देख रही है यह..!’ मैंने सोचा।

अब देरी किस बात की थी... मैंने संध्या की जांघें फैलाई, और फिर अपने लंड को संध्या के प्रवेश-द्वार पर टिकाया। लिंग में बलपूर्वक रक्त का संचार हो रहा था। लिंग इतना ठोस था कि एक ही बार में वो सरसराते हुए पूरे का पूरा संध्या के भीतर तक समां गया। मुझे ऐसा लगा कि सोते हुए भी संध्या की योनि पूरी अधीरता से मेरे लिंग का स्वागत कर रही थी। मैंने लिंग को बाहर खींचा, और वापस उसके अन्दर ठेल दिया – यह इतने बलपूर्वक किया था कि संध्या की नींद खुल गई। और उसको तुरंत ही अपनी योनि में होने वाले अतिक्रमण का पता भी चल गया।

संध्या ने तुरंत ही अपना कूल्हा चला कर मेरी ताल में ताल मिलाई। बिना किसी रोक रूकावट के मेरा लिंग सरकते हुए उसकी योनि की पूरी गहराई तक घुस गया। मीठे मीठे दर्द से संध्या कसमसा गई और उसने मुझे जोर से पकड़ लिया। उत्तेजना के अतिरेक से वह कभी मेरी पीठ पर हाथ फिराती, तो कभी नाखून भी गड़ा देती थी। एक अलग तरह का जंगलीपन था आज उसमें। मुझ में भी था! इसके कारण मुझे चुभन का दर्द नहीं, बल्कि मजा आ रहा था। मैं उन्माद में आ कर धक्के लगाने लगा। मैंने संध्या के चूतड़ों को पकड़ लिया और तेजी से उसकी योनि की पूरी गहराई तक जा जा कर उसकी चुदाई करने लगा।

बीच-बीच में हम एक दूसरे के होंठों को भी चूमते और चूसते। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। संध्या भी मेरी ताल पर अपनी कमर आगे पीछे कर रही थी, जिससे हम लोग जोरदार चुदाई कर रहे थे। कोई पांच मिनट के बाद मैंने पोजीशन बदलने की सोची। मैं संध्या को पेट के बल लिटा कर उसको घोड़ी के पोजीशन में ले आया और पीछे से अपने लिंग को उसकी योनि में घुसा दिया। मैंने उसकी कमर को मजबूती से पकड़ा हुआ था, और धक्के लगाने के साथ-साथ उसकी कमर को भी अपने तरफ खींचने लगा। उसकी योनि की भरपूर चुदाई हो रही थी। नीलम अगर यह दृश्य देखती, तो उसको मुझ पर गर्व होता।

कुछ देर में मुझे लगा कि स्खलन हो जायेगा, इसलिए मैं थोड़ा रुक गया। लेकिन लिंग को उसकी योनि से निकाला नहीं। संध्या बिस्तर पर घोड़ी बनी अपनी साँसें संयत करने लगी। मैं पीछे से ही संध्या के ऊपर झुक गया और उसके स्तनों को सहलाने लगा, साथ ही उसकी पीठ पर छोटे छोटे चुम्बन जड़ने लगा। इसी बीच संध्या को चरम सुख मिल गया। मैंने अपने लिंग से उसके अन्दर से निकाला नहीं था। ज्यादा देर रुक भी नहीं सकता था, क्योंकि मुझे भी उसमें वीर्य छोड़ने का मन हो रहा था।

मैंने संध्या को बिस्तर के साइड में बैठा दिया, कुछ ऐसे जैसे संध्या का एक पैर नीचे था और दूसरा बिस्तर पर ही रह गया। मैंने उसकी कमर को अपने बांहों में जकड़ा और अपना लिंग उसकी योनि पर टिका कर एक ही बार में अन्दर घुसा दिया।

उसी समय नीलम ने कमरे में प्रवेश किया। पूरी तरह से नंगी!

“दीदी का हो गया जानू.. अब मेरी बारी है!”

मैं एक पल को नीलम की बात समझ नहीं पाया – उसके यूँ ही अचानक से प्रकट हो जाने से एक तो मैं चौंक गया था, और ऊपर से मुझे अचरज हुआ की वो यह ऐसे कैसे बोल रही है। मुझे ऐसे अचंभित देख कर दोनों बहने एक साथ ही हंसने लगीं। तब जा कर मुझे समझ आया की यह इन्ही दोनों की मिलीभगत है और दोनों मुझ से मजे ले रही हैं! मैंने इशारे से नीलम को बिस्तर पर बुलाया, और संध्या के जैसे ही बैठने को कहा। फिर संध्या को छोड़ कर नीलम की योनि में प्रविष्ट हो गया। बस एक ही बात मेरे दिमाग में आई,

‘दुनिया में कहीं स्वर्ग है, तो बस, यहीं है!’



उपसंहार –


पिछला साल मेरे जीवन का सबसे रंगीन, सबसे खुशनुमा, और प्रेम से सराबोर समय रहा। मेरी दोनों ही पत्नियों ने अपनी अपनी पढ़ाई ख़तम करी। स्नातक की डिग्री के साथ ही उन दोनों को एक और डिग्री मिली – माँ बनने की! एक समय था जब मैं पूरी तरह अकेला हो गया था और आज मेरे घर में कुल जमा पांच लोग हैं - दो बीवियाँ और दो बच्चे!! पास पड़ोस के लोग शुरू शुरू में हमको अजीब निगाहों से देखते थे, लेकिन फिर सभी को हमारी परिस्थितियों का पता चला तो उनका बर्ताव भी सामान्य हो गया। संध्या, नीलम और मैं - हम तीनो मिल कर सम्भोग का भरपूर आनंद लेते हैं। जीवन में अगर प्रेम है, तो सब कुछ है।


समाप्त!

 

Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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संध्या ने मन ही मन खुद को सम्हाला – उसका पति तो अब बँट ही गया था, लेकिन अच्छी बात यह थी कि वो बँटा था तो भी उसकी खुद के बहन के साथ। वो बहन जिसको संध्या खूब प्यार करती है... वो पति जो उसको खूब प्यार करता है... वो बहन जो संध्या को खूब प्यार करती है... और वो रूद्र जो नीलम को खूब प्यार करते हैं! जब उन तीनों में ही इतना प्रगाढ़ प्रेम है, तो फिर मन मुटाव का सवाल ही कहाँ से आता है? वो अभी जा कर उन दोनों से बात करेगी और माफ़ी मांगेगी... और विनती करेगी कि वो उसको अपने साथ रहने दें! उसको यकीन है कि वो दोनों मना नहीं कर सकेंगे!

संध्या रूद्र और नीलम को ढूंढते हुए कमरे से बाहर निकली और सीधा बैठक की तरफ गई। वहां कोई भी नहीं था, तो वो वापस अपने कमरे की तरफ आने लगी। तब जा कर उसने देखा कि छोटे वाले कमरे में कोई है। उसने कमरे के अन्दर झाँका, तो अन्दर का दृश्य देख कर चमत्कृत रह गई।

नीलम और रूद्र पूर्णतः नग्न अवस्था में आलिंगनबद्ध होकर सो रहे थे। नग्न तो थे ही, लेकिन संध्या को समझ आ रहा था कि यह निद्रा कुछ समय पहले ही संपन्न हुई रति-क्रिया के बाद के सुख के कारण प्रेरित हुई है। रूद्र बिस्तर पर कुछ नीचे की तरफ, नीलम की ओर करवट करके लेटे हुए थे। उनका बायाँ पाँव नीलम के ऊपर था, और इस अवस्था में उनका लिंग स्पष्ट दिख रहा था। उस समय उनके लिंग का शिश्नाग्रछ्छद पीछे की तरफ खिसका हुआ था, और इससे उनके लिंग का गुलाबी हिस्सा साफ दिखाई दे रहा था।

नीलम पीठ के बल चित्त लेटी हुई थी। आज पहली बार संध्या ने नीलम के यौवन रस से भरे अनावृत्त सौंदर्य को पहली बार देखा था। जब छोटी थी, तब वो ऐसी सुन्दर तो बिलकुल ही नहीं दिखती थी! अभी जैसी लगती है, उससे तो कितनी भिन्न! लेकिन अब देखो... कितनी अधिक सुन्दर हो गई है! उसके स्तनों की मादक गोलाईयां – मन करता है कि उनका रस निचोड़ लिया जाए! और कैसा सुन्दर, भोला चेहरा, भरे भरे रसीले होंठ! और ऊपर से ऐसा फिट शरीर! कैसी सुन्दर है ये!

‘हाँ...’

नीलम के पाँव कुछ खुले हुए थे, जिस कारण उसकी योनि भी थोड़ी सी खुली हुई थी। नीलम की योनि के होंठ उसकी खुद की योनि के होंठों के समान ही फूले हुए थे – या संभवतः थोड़े से अधिक ही फूले हुए थे। कुछ कुछ तो अभी हुए घर्षण के कारण हुआ होगा... लेकिन इतना तो तय है कि नीलम की योनि भी पूरी तरह से परिपक्व हो गई थी। वहाँ से अभी कुछ देर पहले ही संपन्न हुए सम्भोग का रस निकल रहा था। संध्या का संदेह सही था। खैर, कैसा संदेह? पति-पत्नी क्या प्रेम नहीं करेंगे? प्रेम सम्बन्ध नहीं बनाएँगे? दांपत्य जीवन में प्रेम का एक बड़ा रूप रति है। वही तो हो रहा था।

संध्या ने उन दोनों को वात्सल्य भाव से देखा, ‘कैसा सुन्दर और आकर्षक जोड़ा है दोनों का।‘

संध्या से रहा नहीं गया। वो दबे पांव आगे बढ़ते हुए नीलम और रूद्र के पास पहुंची और चुपके से नीलम के एक चूचक को हलके से अपनी उंगली और अंगूठे के बीच दबाया। प्रतिक्रिया स्वरुप, लगभग तुरंत ही उसका चूचक खड़ा हो गया। नीलम के होंठों पर हलकी सी मुस्कान भी बन गई।

‘ऐसे मुस्कुराते हुए कितनी प्यारी लगती है..! सोच रही होगी की इन्होने छुआ है...’

संध्या ने दूसरे स्तन के चूचक के साथ भी वही किया। समान प्रभाव! उत्सुकतावश उसने रूद्र के लिंग को भी हलके से सहलाया – पुष्ट अंग तुरंत ही उत्तेजना प्राप्त कर के आकार में बढ़ने लगा।

‘इन्होने शायद वो जड़ी ले ली..’ संध्या ने मुस्कुराते हुए सोचा।

लिंग के बढ़ते ही रूद्र कुनमुनाते हुए जागने लगे। संध्या झट से कमरे से बाहर हो ली।


***


“नीलू?”

नीलम चौंकी। दीदी उसको बुला रही थी। उसकी आवाज़ क्षीण थी, लेकिन गुस्से में नहीं लग रही थी। दुःख में भी नहीं लग रही थी। एक तरह से शांत लग रही थी। नीलम बस अभी अभी जगी थी, और अपने कपड़े पहन रही थी। शायद कमरे से आने वाली आवाज़ दीदी को सुनाई दे गई, इसलिए उसने उसको पुकारा है। इसका मतलब दीदी ने सब कुछ देख भी लिया है..

“जी, दीदी!”

“ज़रा यहाँ आ मेरी बच्ची।“

दीदी की आवाज़ तो शांत ही लग रही थी। खैर, ऐसा तो नहीं है कि वो कभी भी दीदी के सामने जाने से बच सके। और बचे भी क्यों? दीदी है उसकी। सगी दीदी! और तो और, उसने भी तो रूद्र से पूरी रीति के साथ शादी करी है; जायज़ शादी करी है। वो क्यों डरे? अगर दीदी गुस्सा हुई तो वो उससे माफ़ी मांगेगी। उनके पैर पकड़ेगी। दीदी को उसे माफ़ करना ही पड़ेगा।

नीलम उठी।

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया – मेरे दिल में एक अबूझ सा डर बैठा हुआ था। नीलम ने एक प्यार भरी मुस्कान मुझ पर डाली, और कहा,

“जानू, आप चिंता क्यों करते हैं? दीदी हैं मेरी। आज एक काम करिए, आप बाहर घूम आइए। प्लीज! आज अभी यहाँ मत रहिए। मैं दीदी से बात करती हूँ। ओके?”

कह कर नीलम ने मेरे होंठों पर एक चुम्बन दिया और मेरे जाने का इंतज़ार करने लगी। मैं अनिश्चय से कुछ देर तक बिस्तर पर बैठा रहा, लेकिन फिर नीलम का आत्मविश्वास देख कर उठ खड़ा हुआ। मैंने बाहर जाने से पहले एक बार नीलम को देखा – न जाने क्यों लग रहा था कि उसको मैं आखिरी बार देख रहा था – और घर से बाहर निकल गया। दिल बैठ गया।

नीलम अंततः बेडरूम में पहुंची।

नीलम की पदचाप संध्या ने सुन ली, और उठ कर बिस्तर पर बैठ गई।

“यहाँ आओ.. मेरे पास। मेरे पास बैठो।“

नीलम धीरे धीरे बिस्तर तक पहुंची, और झिझकते हुए एक तरफ बैठ गई। लेकिन उसकी नज़र नीची ही रही।

“नीलू, मेरी बहन, मेरी तरफ देख!”

नीलम ने अंततः संध्या ने आँख मिलाई। संध्या के होंठो पर एक मद्धिम मुस्कान थी।

“मेरी बच्ची, मुझे माफ़ कर दे। मेरा मन तुम्हारे और रूद्र के प्रति कुछ देर के लिए मैला हो गया था।“

“नहीं दीदी, आप ये कैसे बोल रही हैं?” नीलम क्या सोच कर आई थी, और क्या हो रहा था।

“बोल लेने दे। तू बाद में बोल लेना। मैंने ने आज तक रूद्र के चरित्र में किसी भी तरह का खोट नहीं देखा। उन्होंने मेरी किसी भी इच्छा को अपूर्ण नहीं रखा। तुम भी उनकी पत्नी हो... तुम भी उनके साथ रही हो, और तुम भी यह बात जानती हो। रूद्र... पति धर्म को निभाने में कहीं भी चूके हैं? जब भी किसी भी प्रकार की समस्या, या कठिनाई आई, तो ढाल बन कर वो मेरे सामने आ गए! मुझे हर कठिनाई से बचाते रहे, और रास्ता दिखाते रहे। उन्होंने मुझे हर तरह से खुश रखने का प्रयास किया। आज तक एक कटु शब्द तक नहीं बोला उन्होंने मुझसे। वह तो इतने अच्छे हैं, कि मेरी हमउम्र स्त्रियां... मेरी सहेलियां मुझसे ईर्ष्या करती हैं।“

कह कर संध्या ने नीलम पर मुस्कुराते हुए एक गहरी दृष्टि डाली।

“... और आज... जब उनके पास ऐसे कठिन चुनाव का समय आया तो, मैं उनको अकेला छोड़ दूं? नहीं मेरी बहन.. बिलकुल नहीं। तुम उनकी पत्नी हो, और हमेशा रहोगी। मैं वापस हमारे गाँव चली जाऊंगी.. और वहीँ रहूंगी! तुम दोनों कभी कभी मुझसे मिलने आ जाना.. आओगी न बच्चे?”

संध्या की ऐसी बात सुन कर नीलम का दिल टूट गया। आँखों से आंसुओं की अनवरत धरा बहने लगी। दुःख के मारे उसका रोना छूट गया और रोते हुए हिचकियाँ बंध गईं।

“दीदी, ये आप कैसी बाते कर रही हैं? आपको क्या पता नहीं है कि रूद्र का पहला प्यार आप हैं? ... और अगर आज उनके पास ऐसा कठिन समय आया है तो वो इसीलिए है, क्योंकि वो आपसे बहुत प्यार करते हैं। मैं सपने में भी आप दोनों को अलग करने का सोच भी नहीं सकती हूँ। मैं तो यूँ ही अनायास ही आप दोनों के बीच आ गई! दीदी आप ही उनका पहला प्यार हैं, और आप ही का उन पर ज्यादा अधिकार है। आप फिर से उनसे शादी कर लो। मैं उनसे तलाक ले लूंगी।“

कहते कहते नीलम की हिचकियाँ बंध गईं।

“ले पाओगी तलाक? सच में? अरी पगली.. कैसी बातें करती है? तू अनायास हमारे बीच में आ गई? अनायास? अरे मेरी सयानी बहन, अगर तू न होती, तो सच कह रही हूँ, रूद्र भी न होते। मेरा सुहाग न होता। उनको अँधेरे से निकाल कर लाने वाली तू है.. सच कहूँ? उन पर अगर किसी का हक़ है, तो वह सिर्फ तुम्हारा है! लेकिन मुझे यह भी मालूम है, की रूद्र हम दोनों से ही बहुत प्यार करते हैं! ज़रा कुछ देर रुक कर यह सोच, हम दोनों कितने भाग्यशाली हैं कि हम दोनों को ही उनका प्यार मिला, उनका साथ मिला। ख़बरदार तुमने कभी रूद्र से अलग होने की सोची।“

ऐसे भावनात्मक वार्तालाप करते हुए दोनों ही बहने फूट फूट कर रोने लगीं। ऐसे ही रोते रोते संध्या ने कहा,

“क्या तुम सच्चे दिल से इनसे प्यार करती हो?”

“दीदी यह कोई पूछने वाली बात है? मैं इनसे बहुत प्यार करती हूँ। अगर वो कहे तो मैं तो उनके लिए अपनी जान भी दे सकती हूँ...”

“तो मेरी सयानी बहन, अब मेरी बात सुन... अगर अब से हम तीनों ही एक साथ रहें, तो क्या तुम्हे कोई प्राब्लम है?”

“क्या? क्या? क्या सच में दीदी? मैं इनसे और आपसे अलग नहीं हो पाऊंगी? सच में दीदी, मैं आप दोनों से अलग नहीं हो सकती... अगर आप दोनों के साथ रहने को मिल गया, मैं आपकी बहुत आभारी रहूंगी और आप जो कहोगी, मैं वो सब कुछ करूँगी.. आपकी नौकरानी बनकर रहूंगी.. आप बस मुझे इनसे और अपने आप से अलग मत करना।“

“अरे पगली! वो मेरे पति हैं, और तुम्हारे भी पति! ये नौकर नौकरानी वाली बातें मत करना कभी! मेरी बात ध्यान से सुन.. मैं बहुत भाग्यशाली हूँ, कि तू मेरी बहन है – मेरी छुटकी! मत भूलना की मैंने तुझे अपनी छाती पिलाई है.. मैं तुझसे दो साल ही बड़ी सही, लेकिन तुझे माँ जैसा प्रेम भी करती हूँ... मेरी प्यारी बहन, हम दोनों बहनें अब से एक ही पति की पत्नी बनकर रहेंगी! ठीक है?”

“बिलकुल दीदी.. बिलकुल! थैंक यू! थैंक यू! थैंक यू!!”

माहौल एकदम से हल्का हो गया। दोनों हो बहने मुस्कुराने लगीं।

संध्या और नीलम ने शायद ही कभी सेक्स के विषय में बात करी हो, लेकिन आज परिस्थितियाँ एकदम भिन्न थीं। बात के बारे में पहल संध्या ने ही करी –

“प्यारी बहना, एक बात बता...”

“क्या दीदी?”

“तुझको.. enough तो मिल जाता है न..?”

“क्या दीदी?”

“अरे.. इनका ‘प्यार’.. और क्या?”

“क्या दीदी! ही ही ही..”

“अरे बोल न?”

“Enough तो कभी नहीं मिलता...”

“क्या? क्या ये तुझे satisfy नहीं...”

“अरे नहीं दीदी! ऐसा कुछ भी नहीं है... इनके तो छूने भर से satisfaction मिल जाता है.. लेकिन ये कुछ इस तरह से करते हैं कि मन भरता ही नहीं...”

संध्या समझ गई कि नीलम क्या कह रही है.. साफ़ सी बात थी कि नीलम जम कर सेक्स का आनंद उठा रही थी, और संध्या खुद मानों रेगिस्तान में भटक रही थी। एक पल को उसका मन फिर से इर्ष्या से भर गया। एक भिन्न प्रकार की इर्ष्या – सौतिया डाह! नीलम ने संध्या के चेहरे को देखा – उसको समझ में आ गया कि संध्या के मन में क्या चल रहा है।

“दीदी, अब तो आप घर वापस आ गई हो... अब क्या चिंता!”

“अरे, तेरा ‘मन’ भरते भरते इनके पास मेरा भरने की ताक़त बचेगी भला?”

“आपका क्या दीदी, ही ही!” नीलम भी तरंग में आ गई थी।

“हा हा! मेरी मियान!”

“ही ही दीदी! कैसा कैसा बोल रही हो!”

“अरे इसमें कैसा कैसा वाला क्या है... मियान ही तो कहा है... चूत थोड़े ही कहा... अब तेरा ही देख न.. कुछ सालों पहले तक तेरी पोकी ठीक से दिखती तक नहीं थी.. और अब तो एकदम रसीली हो गई है! फूल कर बिलकुल कुप्पा!”

“दीदी!”

“अरे! मुझसे क्या शर्माना? मेरी भी ऐसी ही हालत हो गई थी मेरी बहना! इनके बेदर्द लिंग ने इतनी कुटाई करी मेरी सहेली की कि साल भर तक ठीक से ले भी नहीं पाती थी.. लेकिन बाद में आदत हो गई, और जगह भी बन गई!”

नीलम शर्माते हुए संध्या की बात सुन रही थी और साथ ही साथ कुछ सोचती भी जा रही थी।

“अरी! मन ही मन क्या सोच सोच कर मुस्कुराए जा रही है?”

“कुछ नहीं दीदी... मैं सोच रही थी कि हम दोनों बहनों का कितना कुछ साझा है – माँ बाप भी एक और पति भी..”

“हा हा! वो तो है!”

“दीदी, हम लोग कैसे करेंगे?”

“कैसे करेंगे का क्या मतलब?”

“मतलब, उन पर पहला हक़ तो आपका ही है..”

“किसी का पहला दूसरा हक़ नहीं है... हम तीनो का ही हम तीनो पर एक सा हक़ है। इन्होने मुझे यही समझाया है कि शादी में पति और पत्नी दोनों बराबरी के होते हैं.. और कोई छोटा बड़ा नहीं।“

“हम्म.. मतलब की हम तीनो एक साथ?”

“और क्या? सोच.. हम तीनो एक साथ एक बिस्तर पर!”

“नंगू पंगु?” नीलम ने बचे हुए आंसू पोंछते हुआ कहा।

“हाँ..” संध्या मुस्कुराई, “और उनका छुन्नू.. हम दोनों के अन्दर बारी बारी से! सोच!”

“ही ही.. दीदी, वो उसको लंड कहते हैं..”

“तुझे भी सिखा दिया?”

“हाँ..”

“हम दोनों मिल कर रूद्र की सेवा करेंगी, और हम दोनों मिल कर उनको इतनी ख़ुशी देंगी कि उनसे सम्हाली न जा पाए!”

“हाँ दीदी! उन्होंने बहुत सारे दुःख झेले हैं।“

“अब और नहीं! अब बिलकुल भी और नहीं!”

“दीदी... क्यों न आज हम सब मिलकर रात बिताएँ?”

“मन तो मेरा भी यही है.. लेकिन इनसे भी तो पूछना पड़ेगा... क्या पता, क्या क्या सोच लिया होगा इन्होने!”

“अरे क्या सोचेंगे? किस आदमी को अपने बिस्तर पर दो दो सेक्सी लड़कियाँ नहीं चाहिए?”

“हा हा हा हा... हाँ.. इन्होने हमारे हनीमून पर एक विदेशी लड़की के साथ कर लिया था...”

“क्या कह रही हो दीदी?”

“हाँ! और वो भी मेरे सामने!”

“अरे! और आपने कुछ कहा नहीं? रोका नहीं?”

“अरे कैसे रोकती? इतनी सेक्सी सीन थी कि क्या बताऊँ! वो सीन देख कर मेरे बदन में ऐसी आग लग गई थी कि कुछ कहते, करते न बना!”

“मतलब इन्होने चार चार लड़कियों को...”

“चार? चार मतलब?”

“जब जनाब की हड्डियाँ टूटी हुई थीं, तब इन्होने अपनी नर्स की योनि को भी तर किया...”

“क्या? हा हा!”

“हाँ दीदी... ये तो उससे शादी भी करना चाहते थे.. अगर मैंने ही इनको प्रोपोज़ न कर दिया होता तो ये तो गए थे हाथ से...!”

“बाप रे... कौन थी वो लड़की?”

दोनों बहनें फिर फ़रहत की बातें, और इधर उधर की गप-शप करने लगीं। पुरानी बातों को याद करने लगीं। जो भी गिले शिकवे, डर और संदेह बचे हुए थे, सब निकल गए!

मुझे फोन पर sms मिला – ‘Honey, fuck Di tonite. Fuck her brains out, and then we will talk. Luv’

समय देखा, रात के साढ़े दस बजे थे। मुझे मालूम नहीं था कि दोनों बहनें आपस में क्या कर रही थीं – झगड़ा या प्यार! कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। खाने पीने का भी कुछ ठिकाना नहीं मालूम हो रहा था, इसलिए मैंने बाहर ही खाना खा लिया – खाना क्या खाया, बस पेट में कुछ डाल लिया। भूख तो वैसे भी नहीं लग रही थी।

नीलम का sms पढ़ कर कुछ दिलासा तो हुई। मतलब बात खराब तो बिलकुल भी नहीं हुई है।

‘fuck Di...? बिल्कुल! संध्या जैसी लड़की तो मुर्दे में भी कामेच्छा जगा सकती है.. ये तो सिर्फ मैं ही हूँ... उसका पति!’

मैं जल्दी जल्दी डग भरते हुए घर पहुंचा – तब तक तो मेरा शिश्न तीन चौथाई खड़ा भी हो गया था। दरवाज़ा खोला तो देखा कि नीलम एक मद्धिम बल्ब से रोशन ड्राइंग रूम में मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। उसने मुझे देखा और फिर मेरे लोअर के सामने बनते हुए तम्बू को। उसने एक हाथ की तर्जनी को अपने होंठो पर ऐसे रखा कि मैं कुछ न कहूँ, और दूसरे हाथ की तर्जनी से इशारा कर के अपनी तरफ बुलाया। उसके पास मैं जैसे ही पहुँचा, उसने एक ही बार में मेरा लोअर और चड्ढी खींच कर नीचे उतार दिया और ‘गप’ से मेरे उत्तेजित लिंग को अपने मुँह में भर लिया। कुछ ही देर के चूषण के बाद मेरा लिंग पूरी तरह से तैयार हो गया। यह देख कर उसने मुझे छोड़ दिया और फुसफुसाती हुई आवाज़ में कहा,

“कस के चोदना उसे... कम से कम तीन चार बार! समझ गए मेरे शेर? अब जाओ..”

यदि कोई कसर बची रह गई हो तो नीलम की यह बात सुन कर पूरी हो गई। मास्टर बेडरूम का दरवाज़ा बंद था, और उसके अन्दर में से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, और न ही अन्दर बत्ती जलती हुई लग रही थी। अन्दर जाते जाते मैंने अपने सब कपड़े उतार दिए। अन्दर गया तो देखा कि हाँलाकि बत्ती बंद थी, लेकिन बाहर से हलकी हलकी रोशनी छन कर आ रही थी, और उसी रौशनी से संध्या का नग्न शरीर प्रतिदीप्त हो रहा था।

लम्बे लम्बे डग भरता हुआ मैं बिस्तर तक पहुंचा और चुपचाप, बिना कोई ख़ास हलचल किए संध्या के बगल पहुंचा। वैसे देखा जाय तो जो मैंने आगे उसके साथ करने वाला था, उससे तो संध्या की नींद में कहीं अधिक ख़लल पड़ने वाला था। वैसे अगर मुझे पहले से मालूम होता तो यह सब इन दोनों बहनों का स्वांग था। खैर, बहुत ही मजेदार स्वांग था। मैंने उंगली को संध्या की चूत पर हलके से फिराया – वो तुरंत ही गीली हो गई।

‘ह्म्म्म कैसे सपने देख रही है यह..!’ मैंने सोचा।

अब देरी किस बात की थी... मैंने संध्या की जांघें फैलाई, और फिर अपने लंड को संध्या के प्रवेश-द्वार पर टिकाया। लिंग में बलपूर्वक रक्त का संचार हो रहा था। लिंग इतना ठोस था कि एक ही बार में वो सरसराते हुए पूरे का पूरा संध्या के भीतर तक समां गया। मुझे ऐसा लगा कि सोते हुए भी संध्या की योनि पूरी अधीरता से मेरे लिंग का स्वागत कर रही थी। मैंने लिंग को बाहर खींचा, और वापस उसके अन्दर ठेल दिया – यह इतने बलपूर्वक किया था कि संध्या की नींद खुल गई। और उसको तुरंत ही अपनी योनि में होने वाले अतिक्रमण का पता भी चल गया।

संध्या ने तुरंत ही अपना कूल्हा चला कर मेरी ताल में ताल मिलाई। बिना किसी रोक रूकावट के मेरा लिंग सरकते हुए उसकी योनि की पूरी गहराई तक घुस गया। मीठे मीठे दर्द से संध्या कसमसा गई और उसने मुझे जोर से पकड़ लिया। उत्तेजना के अतिरेक से वह कभी मेरी पीठ पर हाथ फिराती, तो कभी नाखून भी गड़ा देती थी। एक अलग तरह का जंगलीपन था आज उसमें। मुझ में भी था! इसके कारण मुझे चुभन का दर्द नहीं, बल्कि मजा आ रहा था। मैं उन्माद में आ कर धक्के लगाने लगा। मैंने संध्या के चूतड़ों को पकड़ लिया और तेजी से उसकी योनि की पूरी गहराई तक जा जा कर उसकी चुदाई करने लगा।

बीच-बीच में हम एक दूसरे के होंठों को भी चूमते और चूसते। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। संध्या भी मेरी ताल पर अपनी कमर आगे पीछे कर रही थी, जिससे हम लोग जोरदार चुदाई कर रहे थे। कोई पांच मिनट के बाद मैंने पोजीशन बदलने की सोची। मैं संध्या को पेट के बल लिटा कर उसको घोड़ी के पोजीशन में ले आया और पीछे से अपने लिंग को उसकी योनि में घुसा दिया। मैंने उसकी कमर को मजबूती से पकड़ा हुआ था, और धक्के लगाने के साथ-साथ उसकी कमर को भी अपने तरफ खींचने लगा। उसकी योनि की भरपूर चुदाई हो रही थी। नीलम अगर यह दृश्य देखती, तो उसको मुझ पर गर्व होता।

कुछ देर में मुझे लगा कि स्खलन हो जायेगा, इसलिए मैं थोड़ा रुक गया। लेकिन लिंग को उसकी योनि से निकाला नहीं। संध्या बिस्तर पर घोड़ी बनी अपनी साँसें संयत करने लगी। मैं पीछे से ही संध्या के ऊपर झुक गया और उसके स्तनों को सहलाने लगा, साथ ही उसकी पीठ पर छोटे छोटे चुम्बन जड़ने लगा। इसी बीच संध्या को चरम सुख मिल गया। मैंने अपने लिंग से उसके अन्दर से निकाला नहीं था। ज्यादा देर रुक भी नहीं सकता था, क्योंकि मुझे भी उसमें वीर्य छोड़ने का मन हो रहा था।

मैंने संध्या को बिस्तर के साइड में बैठा दिया, कुछ ऐसे जैसे संध्या का एक पैर नीचे था और दूसरा बिस्तर पर ही रह गया। मैंने उसकी कमर को अपने बांहों में जकड़ा और अपना लिंग उसकी योनि पर टिका कर एक ही बार में अन्दर घुसा दिया।

उसी समय नीलम ने कमरे में प्रवेश किया। पूरी तरह से नंगी!

“दीदी का हो गया जानू.. अब मेरी बारी है!”

मैं एक पल को नीलम की बात समझ नहीं पाया – उसके यूँ ही अचानक से प्रकट हो जाने से एक तो मैं चौंक गया था, और ऊपर से मुझे अचरज हुआ की वो यह ऐसे कैसे बोल रही है। मुझे ऐसे अचंभित देख कर दोनों बहने एक साथ ही हंसने लगीं। तब जा कर मुझे समझ आया की यह इन्ही दोनों की मिलीभगत है और दोनों मुझ से मजे ले रही हैं! मैंने इशारे से नीलम को बिस्तर पर बुलाया, और संध्या के जैसे ही बैठने को कहा। फिर संध्या को छोड़ कर नीलम की योनि में प्रविष्ट हो गया। बस एक ही बात मेरे दिमाग में आई,

‘दुनिया में कहीं स्वर्ग है, तो बस, यहीं है!’



उपसंहार –


पिछला साल मेरे जीवन का सबसे रंगीन, सबसे खुशनुमा, और प्रेम से सराबोर समय रहा। मेरी दोनों ही पत्नियों ने अपनी अपनी पढ़ाई ख़तम करी। स्नातक की डिग्री के साथ ही उन दोनों को एक और डिग्री मिली – माँ बनने की! एक समय था जब मैं पूरी तरह अकेला हो गया था और आज मेरे घर में कुल जमा पांच लोग हैं - दो बीवियाँ और दो बच्चे!! पास पड़ोस के लोग शुरू शुरू में हमको अजीब निगाहों से देखते थे, लेकिन फिर सभी को हमारी परिस्थितियों का पता चला तो उनका बर्ताव भी सामान्य हो गया। संध्या, नीलम और मैं - हम तीनो मिल कर सम्भोग का भरपूर आनंद लेते हैं। जीवन में अगर प्रेम है, तो सब कुछ है।


समाप्त!



वाह वाह वाह

आह आह आह

मजा आ गया।

प्रिय avsji कायाकल्प के समापन की बधाई।

अब आपकी नई रचना की प्रतीक्षा रहेगी।

आशु
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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वाह वाह वाह

आह आह आह

मजा आ गया।

प्रिय avsji कायाकल्प के समापन की बधाई।

अब आपकी नई रचना की प्रतीक्षा रहेगी।

आशु

अरे यह तो पुरानी कहानी है।
कोई आईडिया हो नई कहानी के लिए तो शेयर करें मेरे साथ।
जैसे My Experience with Love मुझे लिखने को बोला गया था - वैसे ही।
 
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Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
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अरे यह तो पुरानी कहानी है।
कोई आईडिया हो नई कहानी के लिए तो शेयर करें मेरे साथ।
जैसे My Experience with Love मुझे लिखने को बोला गया था - वैसे ही।

वो छोकरी के दो अलग अलग संस्करण।

एक मेरे लिए, दूसरा आम जनता के लिए।

आपको पता है, मैं क्या कहना चाहता हूं।

😂😀😂

आशु
 
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mashish

BHARAT
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नीलम से आफिस के काम का झूठा बहाना बना कर, दो दिन बाद मैं गुड़गाँव चला गया – नेशनल जियोग्राफिक के ऑफिस, उस अफसर से मिलने, जिन्होंने मुझे अपनी तरफ से सारी मदद देने का वायदा किया था! उन्होंने मुझ पर कृपा कर के उस डाक्यूमेंट्री की सारी अतिरिक्त फुटेज, कैमरामैन और डायरेक्टर – सभी को बुला रखा था। कैमरामैन कुछ निश्चित तौर पर बता नहीं पाया – लेकिन उसका कहना था की हो न हो, यह शॉट गौचर में फिल्माया था। वह इतने विश्वास से इसलिए गौचर का नाम ले रहा था क्योंकि वहीँ पर हैलीकॉप्टर इत्यादि से त्रासदी के पीड़ित लोगों को लाया जा रहा था। सेना ने वही की एयर स्ट्रिप का प्रयोग किया था। इसलिए बहुत संभव है की गौचर के ही किसी अस्पताल की फुटेज रही हो। मैंने बाकी की फुटेज भी देख डाली, लेकिन न तो संध्या की कोई और तस्वीर दिखी, और न ही उस अस्पताल की!

मैंने उन सबसे बात कर के उनकी डाक्यूमेंट्री बनाते समय वो लोग किस किस जगह से हो कर गए, उसका एक सिलसिलेवार नक्शा बना लिया, और फिर उनसे विदा ली। इस पूरे काम में एक दिन निकल गया। अब जो हो सकता था, अगले ही दिन होना था। शाम को नीलम को फ़ोन कर के मैंने बता दिया की काम आगे बढ़ गया है, और कोई तीन चार दिन और लग जायेंगे। वो अपना ख़याल रखे, और वापसी में क्या चाहिए वो सोच कर रखे। हम खूब मस्ती करेंगे! उससे ऐसे बात करते समय मन में टीस सी भी उठ रही थी की मैं नीलम से झूठ बोल रहा था। वैसे यह उसके लिए भी एक तरह से अच्छा था – अगर उसको पता चलता की मैं संध्या की खोज में निकला हूँ, तो वो ज़रूर मेरे साथ हो लेती। और मुझे अभी तक नहीं मालूम था की जिस लड़की को मैंने टीवी पर देखा, वो सचमुच संध्या थी, या मेरा वहम। कुछ कह नहीं सकते थे। ऐसे में, अगर संध्या न मिलती, तो बिना वजह ही पुराने घाव कुरेदने वाली हालत हो जाती। नीलम बहुत ही भावुक और संवेदनशील लड़की है, ठीक संध्या के जैसे ही। और मन की सच्ची और अच्छी भी.. ऐसे लोगों को अनजाने में भी दुःख नहीं देना चाहिए। तो मेरा झूठ उसको एक तरह से रक्षा देने के लिए था।

रात में दिल्ली के एक होटल में रुका। वहां पर मेरी कंपनी जिस ट्रेवल एजेंसी का उपयोग करती थी, वहां पर फ़ोन लगा कर एक भरोसेमंद कार और ड्राईवर का इंतजाम किया – दिन रात की सेवा के लिये। वो अगले सुबह छः बजे होटल आने वाला था। शुभस्य शीघ्रम!


****


एक बार शेर को खून का स्वाद पता चल जाए, तो फिर उससे पीछा छुड़ाना मुश्किल है। कुंदन का भी यही हाल था – एक तो शिलाजीत का अत्यधिक सेवन, और उससे होने वाले लाभ – दोनों का ही लालच उसको लग गया था। अगले दो दिन उसका यही क्रम चलता रहा। वह दिन भर यौन-शक्ति वर्द्धक दवाइयों, खास तौर पर शिलाजीत का सेवन करता, और जैसे कैसे किसी भी बहाने अंजू के साथ सम्भोग!

उसी के कहने पर अंजू घर पर या तो निर्वस्त्र रहती थी, या फिर उस गुलाबी ब्रा-पैंटीज में। अंजू की किसी भी प्रकार की नग्नावस्था का प्रभाव, कुंदन पर एक जैसा ही पड़ता था। जब भी वो उसकी गोरी टाँगे और जांघें देख लेता था, तो उसका मन डोल जाता था। जब अंजू चलती, तो उसके गदराये हुए ठुमकते नितम्ब उसके दिल पर कहर बरपा देते। उसकी कठोर चूचियाँ देख कर कुंदन सोचता की ऊपर वाले ने बड़ी फुर्सत से जैसे संगमरमर को तराश तराश कर निकाला हो। नमकीन चेहरा, और रसीले होंठ! कोई देख ले तो बस चूमने का मन करे!

सम्भोग के बाद से दोनों ही एक दूसरे को बहुत प्यार से देखते। साथ में हँसी मज़ाक भी करते। कुंदन हँसी मज़ाक में कभी कभी अंजू के बाल पकड़ लेता, तो कभी कमर पकड़ कर भींच लेता। अंजू उसकी हर बदमाशी पर हंसती रहती। जब वो रोमांटिक हो जाता, तो अंजू को कहता की आज बहुत सुन्दर लग रही हो। अंजू उसकी इतनी सी ही बात पर शर्म से लाल हो जाती। रह रह कर वो अंजू के नग्न नितम्बों पर हौले से चिकोटी काट लेता, तो कभी उसकी चूंचियाँ दबा देता। उसकी इन शैतानियों पर अंजू जब उसको झूठ मूठ में मारने दौड़ती, तो वो उसको प्यार से अपनी गोदी में उठा लेता, और उसके चूचकों को मुँह में भर कर चूमने लगता।

इसके बाद होता दोनों के बीच सम्भोग!

भले ही उनकी यौन क्रिया पांच मिनट के आस पास चलती, कुंदन के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। उधर अंजू इस बात से संतुष्ट थी की कुंदन उसकी सेवा और देखभाल में कोई कसर नहीं रखता था। अपनी तरफ से खूब प्रेम उस पर लुटाता था। पिछले दो दिनों में उन दोनों ने तीन बार सम्भोग किया था – अंजू को हर बार आनंद आया था। प्रत्येक सम्भोग से एक तरीके से उसको मानसिक शान्ति मिल जाती थी। कुछ तो होता था, की संसर्ग के कुछ ही देर बाद अंजू आराम की अवस्था में आ जाती थी – और कब सो जाती थी, उसको खुद ही नहीं मालूम पड़ता।

बस दो बातें थीं जिनके कारण उसको खटका लगा रहता – एक तो यह की उसके सपनों का पुरुष हर बार दिखता था। इससे अंजू को विश्वास हो गया की वो कोई मानसिक कल्पना नहीं था – बल्कि उसके अतीत का एक हिस्सा था। कब और कैसे, उसको समझ नहीं आता। लेकिन जिस प्रकार से वो दोनों सपनों में निर्भीक हो कर सन्निकट रहते थे, उससे न जाने क्यों अंजू को लगता जा रहा था की अंजू उस पुरुष की पत्नी रही होगी।

लेकिन अगर यह सच था तो कुंदन से उसकी शादी कब हुई? अगर कुंदन से उसकी शादी हुई है, तो फिर इस घर में उसके कोई चिन्ह क्यों नहीं मौजूद हैं? घर को देख कर साफ़ लगता था की यह किसी कुंवारे पुरुष का घर है.. माना की वह इतने लम्बे अरसे तक अस्पताल में रही थी, लेकिन एक शादी-शुदा परिवार और घर में स्त्री का कुछ प्रभाव तो मौजूद रहना ही चाहिए था न?

दूसरा खटका उसको इस बात का लगता था की कुंदन हमेशा उसको पड़ोसियों से छुपा कर रखता था। उसकी इस हरकत का कोई तर्कसंगत विवरण उसके लाख पूछने पर भी उसको नहीं मिल पाता था। यह दोनों ही बातें मन ही मन में अंजू को बहुत अधिल साल रही थीं। उसको यकीन हो रहा था की कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। उसने सच का पता लगाने की ठान ली।

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awesome update
 
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