संध्या ने मन ही मन खुद को सम्हाला – उसका पति तो अब बँट ही गया था, लेकिन अच्छी बात यह थी कि वो बँटा था तो भी उसकी खुद के बहन के साथ। वो बहन जिसको संध्या खूब प्यार करती है... वो पति जो उसको खूब प्यार करता है... वो बहन जो संध्या को खूब प्यार करती है... और वो रूद्र जो नीलम को खूब प्यार करते हैं! जब उन तीनों में ही इतना प्रगाढ़ प्रेम है, तो फिर मन मुटाव का सवाल ही कहाँ से आता है? वो अभी जा कर उन दोनों से बात करेगी और माफ़ी मांगेगी... और विनती करेगी कि वो उसको अपने साथ रहने दें! उसको यकीन है कि वो दोनों मना नहीं कर सकेंगे!
संध्या रूद्र और नीलम को ढूंढते हुए कमरे से बाहर निकली और सीधा बैठक की तरफ गई। वहां कोई भी नहीं था, तो वो वापस अपने कमरे की तरफ आने लगी। तब जा कर उसने देखा कि छोटे वाले कमरे में कोई है। उसने कमरे के अन्दर झाँका, तो अन्दर का दृश्य देख कर चमत्कृत रह गई।
नीलम और रूद्र पूर्णतः नग्न अवस्था में आलिंगनबद्ध होकर सो रहे थे। नग्न तो थे ही, लेकिन संध्या को समझ आ रहा था कि यह निद्रा कुछ समय पहले ही संपन्न हुई रति-क्रिया के बाद के सुख के कारण प्रेरित हुई है। रूद्र बिस्तर पर कुछ नीचे की तरफ, नीलम की ओर करवट करके लेटे हुए थे। उनका बायाँ पाँव नीलम के ऊपर था, और इस अवस्था में उनका लिंग स्पष्ट दिख रहा था। उस समय उनके लिंग का शिश्नाग्रछ्छद पीछे की तरफ खिसका हुआ था, और इससे उनके लिंग का गुलाबी हिस्सा साफ दिखाई दे रहा था।
नीलम पीठ के बल चित्त लेटी हुई थी। आज पहली बार संध्या ने नीलम के यौवन रस से भरे अनावृत्त सौंदर्य को पहली बार देखा था। जब छोटी थी, तब वो ऐसी सुन्दर तो बिलकुल ही नहीं दिखती थी! अभी जैसी लगती है, उससे तो कितनी भिन्न! लेकिन अब देखो... कितनी अधिक सुन्दर हो गई है! उसके स्तनों की मादक गोलाईयां – मन करता है कि उनका रस निचोड़ लिया जाए! और कैसा सुन्दर, भोला चेहरा, भरे भरे रसीले होंठ! और ऊपर से ऐसा फिट शरीर! कैसी सुन्दर है ये!
‘हाँ...’
नीलम के पाँव कुछ खुले हुए थे, जिस कारण उसकी योनि भी थोड़ी सी खुली हुई थी। नीलम की योनि के होंठ उसकी खुद की योनि के होंठों के समान ही फूले हुए थे – या संभवतः थोड़े से अधिक ही फूले हुए थे। कुछ कुछ तो अभी हुए घर्षण के कारण हुआ होगा... लेकिन इतना तो तय है कि नीलम की योनि भी पूरी तरह से परिपक्व हो गई थी। वहाँ से अभी कुछ देर पहले ही संपन्न हुए सम्भोग का रस निकल रहा था। संध्या का संदेह सही था। खैर, कैसा संदेह? पति-पत्नी क्या प्रेम नहीं करेंगे? प्रेम सम्बन्ध नहीं बनाएँगे? दांपत्य जीवन में प्रेम का एक बड़ा रूप रति है। वही तो हो रहा था।
संध्या ने उन दोनों को वात्सल्य भाव से देखा, ‘कैसा सुन्दर और आकर्षक जोड़ा है दोनों का।‘
संध्या से रहा नहीं गया। वो दबे पांव आगे बढ़ते हुए नीलम और रूद्र के पास पहुंची और चुपके से नीलम के एक चूचक को हलके से अपनी उंगली और अंगूठे के बीच दबाया। प्रतिक्रिया स्वरुप, लगभग तुरंत ही उसका चूचक खड़ा हो गया। नीलम के होंठों पर हलकी सी मुस्कान भी बन गई।
‘ऐसे मुस्कुराते हुए कितनी प्यारी लगती है..! सोच रही होगी की इन्होने छुआ है...’
संध्या ने दूसरे स्तन के चूचक के साथ भी वही किया। समान प्रभाव! उत्सुकतावश उसने रूद्र के लिंग को भी हलके से सहलाया – पुष्ट अंग तुरंत ही उत्तेजना प्राप्त कर के आकार में बढ़ने लगा।
‘इन्होने शायद वो जड़ी ले ली..’ संध्या ने मुस्कुराते हुए सोचा।
लिंग के बढ़ते ही रूद्र कुनमुनाते हुए जागने लगे। संध्या झट से कमरे से बाहर हो ली।
***
“नीलू?”
नीलम चौंकी। दीदी उसको बुला रही थी। उसकी आवाज़ क्षीण थी, लेकिन गुस्से में नहीं लग रही थी। दुःख में भी नहीं लग रही थी। एक तरह से शांत लग रही थी। नीलम बस अभी अभी जगी थी, और अपने कपड़े पहन रही थी। शायद कमरे से आने वाली आवाज़ दीदी को सुनाई दे गई, इसलिए उसने उसको पुकारा है। इसका मतलब दीदी ने सब कुछ देख भी लिया है..
“जी, दीदी!”
“ज़रा यहाँ आ मेरी बच्ची।“
दीदी की आवाज़ तो शांत ही लग रही थी। खैर, ऐसा तो नहीं है कि वो कभी भी दीदी के सामने जाने से बच सके। और बचे भी क्यों? दीदी है उसकी। सगी दीदी! और तो और, उसने भी तो रूद्र से पूरी रीति के साथ शादी करी है; जायज़ शादी करी है। वो क्यों डरे? अगर दीदी गुस्सा हुई तो वो उससे माफ़ी मांगेगी। उनके पैर पकड़ेगी। दीदी को उसे माफ़ करना ही पड़ेगा।
नीलम उठी।
मैंने उसका हाथ पकड़ लिया – मेरे दिल में एक अबूझ सा डर बैठा हुआ था। नीलम ने एक प्यार भरी मुस्कान मुझ पर डाली, और कहा,
“जानू, आप चिंता क्यों करते हैं? दीदी हैं मेरी। आज एक काम करिए, आप बाहर घूम आइए। प्लीज! आज अभी यहाँ मत रहिए। मैं दीदी से बात करती हूँ। ओके?”
कह कर नीलम ने मेरे होंठों पर एक चुम्बन दिया और मेरे जाने का इंतज़ार करने लगी। मैं अनिश्चय से कुछ देर तक बिस्तर पर बैठा रहा, लेकिन फिर नीलम का आत्मविश्वास देख कर उठ खड़ा हुआ। मैंने बाहर जाने से पहले एक बार नीलम को देखा – न जाने क्यों लग रहा था कि उसको मैं आखिरी बार देख रहा था – और घर से बाहर निकल गया। दिल बैठ गया।
नीलम अंततः बेडरूम में पहुंची।
नीलम की पदचाप संध्या ने सुन ली, और उठ कर बिस्तर पर बैठ गई।
“यहाँ आओ.. मेरे पास। मेरे पास बैठो।“
नीलम धीरे धीरे बिस्तर तक पहुंची, और झिझकते हुए एक तरफ बैठ गई। लेकिन उसकी नज़र नीची ही रही।
“नीलू, मेरी बहन, मेरी तरफ देख!”
नीलम ने अंततः संध्या ने आँख मिलाई। संध्या के होंठो पर एक मद्धिम मुस्कान थी।
“मेरी बच्ची, मुझे माफ़ कर दे। मेरा मन तुम्हारे और रूद्र के प्रति कुछ देर के लिए मैला हो गया था।“
“नहीं दीदी, आप ये कैसे बोल रही हैं?” नीलम क्या सोच कर आई थी, और क्या हो रहा था।
“बोल लेने दे। तू बाद में बोल लेना। मैंने ने आज तक रूद्र के चरित्र में किसी भी तरह का खोट नहीं देखा। उन्होंने मेरी किसी भी इच्छा को अपूर्ण नहीं रखा। तुम भी उनकी पत्नी हो... तुम भी उनके साथ रही हो, और तुम भी यह बात जानती हो। रूद्र... पति धर्म को निभाने में कहीं भी चूके हैं? जब भी किसी भी प्रकार की समस्या, या कठिनाई आई, तो ढाल बन कर वो मेरे सामने आ गए! मुझे हर कठिनाई से बचाते रहे, और रास्ता दिखाते रहे। उन्होंने मुझे हर तरह से खुश रखने का प्रयास किया। आज तक एक कटु शब्द तक नहीं बोला उन्होंने मुझसे। वह तो इतने अच्छे हैं, कि मेरी हमउम्र स्त्रियां... मेरी सहेलियां मुझसे ईर्ष्या करती हैं।“
कह कर संध्या ने नीलम पर मुस्कुराते हुए एक गहरी दृष्टि डाली।
“... और आज... जब उनके पास ऐसे कठिन चुनाव का समय आया तो, मैं उनको अकेला छोड़ दूं? नहीं मेरी बहन.. बिलकुल नहीं। तुम उनकी पत्नी हो, और हमेशा रहोगी। मैं वापस हमारे गाँव चली जाऊंगी.. और वहीँ रहूंगी! तुम दोनों कभी कभी मुझसे मिलने आ जाना.. आओगी न बच्चे?”
संध्या की ऐसी बात सुन कर नीलम का दिल टूट गया। आँखों से आंसुओं की अनवरत धरा बहने लगी। दुःख के मारे उसका रोना छूट गया और रोते हुए हिचकियाँ बंध गईं।
“दीदी, ये आप कैसी बाते कर रही हैं? आपको क्या पता नहीं है कि रूद्र का पहला प्यार आप हैं? ... और अगर आज उनके पास ऐसा कठिन समय आया है तो वो इसीलिए है, क्योंकि वो आपसे बहुत प्यार करते हैं। मैं सपने में भी आप दोनों को अलग करने का सोच भी नहीं सकती हूँ। मैं तो यूँ ही अनायास ही आप दोनों के बीच आ गई! दीदी आप ही उनका पहला प्यार हैं, और आप ही का उन पर ज्यादा अधिकार है। आप फिर से उनसे शादी कर लो। मैं उनसे तलाक ले लूंगी।“
कहते कहते नीलम की हिचकियाँ बंध गईं।
“ले पाओगी तलाक? सच में? अरी पगली.. कैसी बातें करती है? तू अनायास हमारे बीच में आ गई? अनायास? अरे मेरी सयानी बहन, अगर तू न होती, तो सच कह रही हूँ, रूद्र भी न होते। मेरा सुहाग न होता। उनको अँधेरे से निकाल कर लाने वाली तू है.. सच कहूँ? उन पर अगर किसी का हक़ है, तो वह सिर्फ तुम्हारा है! लेकिन मुझे यह भी मालूम है, की रूद्र हम दोनों से ही बहुत प्यार करते हैं! ज़रा कुछ देर रुक कर यह सोच, हम दोनों कितने भाग्यशाली हैं कि हम दोनों को ही उनका प्यार मिला, उनका साथ मिला। ख़बरदार तुमने कभी रूद्र से अलग होने की सोची।“
ऐसे भावनात्मक वार्तालाप करते हुए दोनों ही बहने फूट फूट कर रोने लगीं। ऐसे ही रोते रोते संध्या ने कहा,
“क्या तुम सच्चे दिल से इनसे प्यार करती हो?”
“दीदी यह कोई पूछने वाली बात है? मैं इनसे बहुत प्यार करती हूँ। अगर वो कहे तो मैं तो उनके लिए अपनी जान भी दे सकती हूँ...”
“तो मेरी सयानी बहन, अब मेरी बात सुन... अगर अब से हम तीनों ही एक साथ रहें, तो क्या तुम्हे कोई प्राब्लम है?”
“क्या? क्या? क्या सच में दीदी? मैं इनसे और आपसे अलग नहीं हो पाऊंगी? सच में दीदी, मैं आप दोनों से अलग नहीं हो सकती... अगर आप दोनों के साथ रहने को मिल गया, मैं आपकी बहुत आभारी रहूंगी और आप जो कहोगी, मैं वो सब कुछ करूँगी.. आपकी नौकरानी बनकर रहूंगी.. आप बस मुझे इनसे और अपने आप से अलग मत करना।“
“अरे पगली! वो मेरे पति हैं, और तुम्हारे भी पति! ये नौकर नौकरानी वाली बातें मत करना कभी! मेरी बात ध्यान से सुन.. मैं बहुत भाग्यशाली हूँ, कि तू मेरी बहन है – मेरी छुटकी! मत भूलना की मैंने तुझे अपनी छाती पिलाई है.. मैं तुझसे दो साल ही बड़ी सही, लेकिन तुझे माँ जैसा प्रेम भी करती हूँ... मेरी प्यारी बहन, हम दोनों बहनें अब से एक ही पति की पत्नी बनकर रहेंगी! ठीक है?”
“बिलकुल दीदी.. बिलकुल! थैंक यू! थैंक यू! थैंक यू!!”
माहौल एकदम से हल्का हो गया। दोनों हो बहने मुस्कुराने लगीं।
संध्या और नीलम ने शायद ही कभी सेक्स के विषय में बात करी हो, लेकिन आज परिस्थितियाँ एकदम भिन्न थीं। बात के बारे में पहल संध्या ने ही करी –
“प्यारी बहना, एक बात बता...”
“क्या दीदी?”
“तुझको.. enough तो मिल जाता है न..?”
“क्या दीदी?”
“अरे.. इनका ‘प्यार’.. और क्या?”
“क्या दीदी! ही ही ही..”
“अरे बोल न?”
“Enough तो कभी नहीं मिलता...”
“क्या? क्या ये तुझे satisfy नहीं...”
“अरे नहीं दीदी! ऐसा कुछ भी नहीं है... इनके तो छूने भर से satisfaction मिल जाता है.. लेकिन ये कुछ इस तरह से करते हैं कि मन भरता ही नहीं...”
संध्या समझ गई कि नीलम क्या कह रही है.. साफ़ सी बात थी कि नीलम जम कर सेक्स का आनंद उठा रही थी, और संध्या खुद मानों रेगिस्तान में भटक रही थी। एक पल को उसका मन फिर से इर्ष्या से भर गया। एक भिन्न प्रकार की इर्ष्या – सौतिया डाह! नीलम ने संध्या के चेहरे को देखा – उसको समझ में आ गया कि संध्या के मन में क्या चल रहा है।
“दीदी, अब तो आप घर वापस आ गई हो... अब क्या चिंता!”
“अरे, तेरा ‘मन’ भरते भरते इनके पास मेरा भरने की ताक़त बचेगी भला?”
“आपका क्या दीदी, ही ही!” नीलम भी तरंग में आ गई थी।
“हा हा! मेरी मियान!”
“ही ही दीदी! कैसा कैसा बोल रही हो!”
“अरे इसमें कैसा कैसा वाला क्या है... मियान ही तो कहा है... चूत थोड़े ही कहा... अब तेरा ही देख न.. कुछ सालों पहले तक तेरी पोकी ठीक से दिखती तक नहीं थी.. और अब तो एकदम रसीली हो गई है! फूल कर बिलकुल कुप्पा!”
“दीदी!”
“अरे! मुझसे क्या शर्माना? मेरी भी ऐसी ही हालत हो गई थी मेरी बहना! इनके बेदर्द लिंग ने इतनी कुटाई करी मेरी सहेली की कि साल भर तक ठीक से ले भी नहीं पाती थी.. लेकिन बाद में आदत हो गई, और जगह भी बन गई!”
नीलम शर्माते हुए संध्या की बात सुन रही थी और साथ ही साथ कुछ सोचती भी जा रही थी।
“अरी! मन ही मन क्या सोच सोच कर मुस्कुराए जा रही है?”
“कुछ नहीं दीदी... मैं सोच रही थी कि हम दोनों बहनों का कितना कुछ साझा है – माँ बाप भी एक और पति भी..”
“हा हा! वो तो है!”
“दीदी, हम लोग कैसे करेंगे?”
“कैसे करेंगे का क्या मतलब?”
“मतलब, उन पर पहला हक़ तो आपका ही है..”
“किसी का पहला दूसरा हक़ नहीं है... हम तीनो का ही हम तीनो पर एक सा हक़ है। इन्होने मुझे यही समझाया है कि शादी में पति और पत्नी दोनों बराबरी के होते हैं.. और कोई छोटा बड़ा नहीं।“
“हम्म.. मतलब की हम तीनो एक साथ?”
“और क्या? सोच.. हम तीनो एक साथ एक बिस्तर पर!”
“नंगू पंगु?” नीलम ने बचे हुए आंसू पोंछते हुआ कहा।
“हाँ..” संध्या मुस्कुराई, “और उनका छुन्नू.. हम दोनों के अन्दर बारी बारी से! सोच!”
“ही ही.. दीदी, वो उसको लंड कहते हैं..”
“तुझे भी सिखा दिया?”
“हाँ..”
“हम दोनों मिल कर रूद्र की सेवा करेंगी, और हम दोनों मिल कर उनको इतनी ख़ुशी देंगी कि उनसे सम्हाली न जा पाए!”
“हाँ दीदी! उन्होंने बहुत सारे दुःख झेले हैं।“
“अब और नहीं! अब बिलकुल भी और नहीं!”
“दीदी... क्यों न आज हम सब मिलकर रात बिताएँ?”
“मन तो मेरा भी यही है.. लेकिन इनसे भी तो पूछना पड़ेगा... क्या पता, क्या क्या सोच लिया होगा इन्होने!”
“अरे क्या सोचेंगे? किस आदमी को अपने बिस्तर पर दो दो सेक्सी लड़कियाँ नहीं चाहिए?”
“हा हा हा हा... हाँ.. इन्होने हमारे हनीमून पर एक विदेशी लड़की के साथ कर लिया था...”
“क्या कह रही हो दीदी?”
“हाँ! और वो भी मेरे सामने!”
“अरे! और आपने कुछ कहा नहीं? रोका नहीं?”
“अरे कैसे रोकती? इतनी सेक्सी सीन थी कि क्या बताऊँ! वो सीन देख कर मेरे बदन में ऐसी आग लग गई थी कि कुछ कहते, करते न बना!”
“मतलब इन्होने चार चार लड़कियों को...”
“चार? चार मतलब?”
“जब जनाब की हड्डियाँ टूटी हुई थीं, तब इन्होने अपनी नर्स की योनि को भी तर किया...”
“क्या? हा हा!”
“हाँ दीदी... ये तो उससे शादी भी करना चाहते थे.. अगर मैंने ही इनको प्रोपोज़ न कर दिया होता तो ये तो गए थे हाथ से...!”
“बाप रे... कौन थी वो लड़की?”
दोनों बहनें फिर फ़रहत की बातें, और इधर उधर की गप-शप करने लगीं। पुरानी बातों को याद करने लगीं। जो भी गिले शिकवे, डर और संदेह बचे हुए थे, सब निकल गए!
मुझे फोन पर sms मिला – ‘Honey, fuck Di tonite. Fuck her brains out, and then we will talk. Luv’
समय देखा, रात के साढ़े दस बजे थे। मुझे मालूम नहीं था कि दोनों बहनें आपस में क्या कर रही थीं – झगड़ा या प्यार! कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। खाने पीने का भी कुछ ठिकाना नहीं मालूम हो रहा था, इसलिए मैंने बाहर ही खाना खा लिया – खाना क्या खाया, बस पेट में कुछ डाल लिया। भूख तो वैसे भी नहीं लग रही थी।
नीलम का sms पढ़ कर कुछ दिलासा तो हुई। मतलब बात खराब तो बिलकुल भी नहीं हुई है।
‘fuck Di...? बिल्कुल! संध्या जैसी लड़की तो मुर्दे में भी कामेच्छा जगा सकती है.. ये तो सिर्फ मैं ही हूँ... उसका पति!’
मैं जल्दी जल्दी डग भरते हुए घर पहुंचा – तब तक तो मेरा शिश्न तीन चौथाई खड़ा भी हो गया था। दरवाज़ा खोला तो देखा कि नीलम एक मद्धिम बल्ब से रोशन ड्राइंग रूम में मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। उसने मुझे देखा और फिर मेरे लोअर के सामने बनते हुए तम्बू को। उसने एक हाथ की तर्जनी को अपने होंठो पर ऐसे रखा कि मैं कुछ न कहूँ, और दूसरे हाथ की तर्जनी से इशारा कर के अपनी तरफ बुलाया। उसके पास मैं जैसे ही पहुँचा, उसने एक ही बार में मेरा लोअर और चड्ढी खींच कर नीचे उतार दिया और ‘गप’ से मेरे उत्तेजित लिंग को अपने मुँह में भर लिया। कुछ ही देर के चूषण के बाद मेरा लिंग पूरी तरह से तैयार हो गया। यह देख कर उसने मुझे छोड़ दिया और फुसफुसाती हुई आवाज़ में कहा,
“कस के चोदना उसे... कम से कम तीन चार बार! समझ गए मेरे शेर? अब जाओ..”
यदि कोई कसर बची रह गई हो तो नीलम की यह बात सुन कर पूरी हो गई। मास्टर बेडरूम का दरवाज़ा बंद था, और उसके अन्दर में से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, और न ही अन्दर बत्ती जलती हुई लग रही थी। अन्दर जाते जाते मैंने अपने सब कपड़े उतार दिए। अन्दर गया तो देखा कि हाँलाकि बत्ती बंद थी, लेकिन बाहर से हलकी हलकी रोशनी छन कर आ रही थी, और उसी रौशनी से संध्या का नग्न शरीर प्रतिदीप्त हो रहा था।
लम्बे लम्बे डग भरता हुआ मैं बिस्तर तक पहुंचा और चुपचाप, बिना कोई ख़ास हलचल किए संध्या के बगल पहुंचा। वैसे देखा जाय तो जो मैंने आगे उसके साथ करने वाला था, उससे तो संध्या की नींद में कहीं अधिक ख़लल पड़ने वाला था। वैसे अगर मुझे पहले से मालूम होता तो यह सब इन दोनों बहनों का स्वांग था। खैर, बहुत ही मजेदार स्वांग था। मैंने उंगली को संध्या की चूत पर हलके से फिराया – वो तुरंत ही गीली हो गई।
‘ह्म्म्म कैसे सपने देख रही है यह..!’ मैंने सोचा।
अब देरी किस बात की थी... मैंने संध्या की जांघें फैलाई, और फिर अपने लंड को संध्या के प्रवेश-द्वार पर टिकाया। लिंग में बलपूर्वक रक्त का संचार हो रहा था। लिंग इतना ठोस था कि एक ही बार में वो सरसराते हुए पूरे का पूरा संध्या के भीतर तक समां गया। मुझे ऐसा लगा कि सोते हुए भी संध्या की योनि पूरी अधीरता से मेरे लिंग का स्वागत कर रही थी। मैंने लिंग को बाहर खींचा, और वापस उसके अन्दर ठेल दिया – यह इतने बलपूर्वक किया था कि संध्या की नींद खुल गई। और उसको तुरंत ही अपनी योनि में होने वाले अतिक्रमण का पता भी चल गया।
संध्या ने तुरंत ही अपना कूल्हा चला कर मेरी ताल में ताल मिलाई। बिना किसी रोक रूकावट के मेरा लिंग सरकते हुए उसकी योनि की पूरी गहराई तक घुस गया। मीठे मीठे दर्द से संध्या कसमसा गई और उसने मुझे जोर से पकड़ लिया। उत्तेजना के अतिरेक से वह कभी मेरी पीठ पर हाथ फिराती, तो कभी नाखून भी गड़ा देती थी। एक अलग तरह का जंगलीपन था आज उसमें। मुझ में भी था! इसके कारण मुझे चुभन का दर्द नहीं, बल्कि मजा आ रहा था। मैं उन्माद में आ कर धक्के लगाने लगा। मैंने संध्या के चूतड़ों को पकड़ लिया और तेजी से उसकी योनि की पूरी गहराई तक जा जा कर उसकी चुदाई करने लगा।
बीच-बीच में हम एक दूसरे के होंठों को भी चूमते और चूसते। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। संध्या भी मेरी ताल पर अपनी कमर आगे पीछे कर रही थी, जिससे हम लोग जोरदार चुदाई कर रहे थे। कोई पांच मिनट के बाद मैंने पोजीशन बदलने की सोची। मैं संध्या को पेट के बल लिटा कर उसको घोड़ी के पोजीशन में ले आया और पीछे से अपने लिंग को उसकी योनि में घुसा दिया। मैंने उसकी कमर को मजबूती से पकड़ा हुआ था, और धक्के लगाने के साथ-साथ उसकी कमर को भी अपने तरफ खींचने लगा। उसकी योनि की भरपूर चुदाई हो रही थी। नीलम अगर यह दृश्य देखती, तो उसको मुझ पर गर्व होता।
कुछ देर में मुझे लगा कि स्खलन हो जायेगा, इसलिए मैं थोड़ा रुक गया। लेकिन लिंग को उसकी योनि से निकाला नहीं। संध्या बिस्तर पर घोड़ी बनी अपनी साँसें संयत करने लगी। मैं पीछे से ही संध्या के ऊपर झुक गया और उसके स्तनों को सहलाने लगा, साथ ही उसकी पीठ पर छोटे छोटे चुम्बन जड़ने लगा। इसी बीच संध्या को चरम सुख मिल गया। मैंने अपने लिंग से उसके अन्दर से निकाला नहीं था। ज्यादा देर रुक भी नहीं सकता था, क्योंकि मुझे भी उसमें वीर्य छोड़ने का मन हो रहा था।
मैंने संध्या को बिस्तर के साइड में बैठा दिया, कुछ ऐसे जैसे संध्या का एक पैर नीचे था और दूसरा बिस्तर पर ही रह गया। मैंने उसकी कमर को अपने बांहों में जकड़ा और अपना लिंग उसकी योनि पर टिका कर एक ही बार में अन्दर घुसा दिया।
उसी समय नीलम ने कमरे में प्रवेश किया। पूरी तरह से नंगी!
“दीदी का हो गया जानू.. अब मेरी बारी है!”
मैं एक पल को नीलम की बात समझ नहीं पाया – उसके यूँ ही अचानक से प्रकट हो जाने से एक तो मैं चौंक गया था, और ऊपर से मुझे अचरज हुआ की वो यह ऐसे कैसे बोल रही है। मुझे ऐसे अचंभित देख कर दोनों बहने एक साथ ही हंसने लगीं। तब जा कर मुझे समझ आया की यह इन्ही दोनों की मिलीभगत है और दोनों मुझ से मजे ले रही हैं! मैंने इशारे से नीलम को बिस्तर पर बुलाया, और संध्या के जैसे ही बैठने को कहा। फिर संध्या को छोड़ कर नीलम की योनि में प्रविष्ट हो गया। बस एक ही बात मेरे दिमाग में आई,
‘दुनिया में कहीं स्वर्ग है, तो बस, यहीं है!’
उपसंहार –
पिछला साल मेरे जीवन का सबसे रंगीन, सबसे खुशनुमा, और प्रेम से सराबोर समय रहा। मेरी दोनों ही पत्नियों ने अपनी अपनी पढ़ाई ख़तम करी। स्नातक की डिग्री के साथ ही उन दोनों को एक और डिग्री मिली – माँ बनने की! एक समय था जब मैं पूरी तरह अकेला हो गया था और आज मेरे घर में कुल जमा पांच लोग हैं - दो बीवियाँ और दो बच्चे!! पास पड़ोस के लोग शुरू शुरू में हमको अजीब निगाहों से देखते थे, लेकिन फिर सभी को हमारी परिस्थितियों का पता चला तो उनका बर्ताव भी सामान्य हो गया। संध्या, नीलम और मैं - हम तीनो मिल कर सम्भोग का भरपूर आनंद लेते हैं। जीवन में अगर प्रेम है, तो सब कुछ है।
समाप्त!