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Incest काला इश्क़ दूसरा अध्याय: एक बग़ावत

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,803
31,030
304


भाग - 5


अब तक आपने पढ़ा:

कुछ पल चलते-चलते मानु मेरे नज़दीक आता गया और फिर अगले ही पल उसका बायाँ हाथ मेरे बाएँ काँधे तक पहुँच गया| मानु की इस प्रतिक्रिया से मैं अचंभित थी क्योंकि उसने आजतक मुझे ऐसे नहीं छुआ था| इस बार जब मैंने हैरान हो कर मानु की तरफ देखा तो पाया की वो मेरी ही तरफ देख रहा है| मानु का चेहरा इस वक़्त एकदम सफ़ेद था! उसके चेहरे पर दुःख के भाव थे और मुझे उसके दुखी होने का कारण समझ नहीं आ रहा था| मानु को यूँ दुखी देख मुझे डर लगने लगा था की कहीं उसके साथ कुछ गलत तो नहीं हो गया?! लेकिन इससे पहले की मैं कुछ पूछ पाती मानु एकदम से रुक गया और मेरी ओर मुँह कर, मेरी आँखों सेआँखें मिलाये मुझे देखने लगा|


अब आगे:


मानु ने अपने दोनों हतहों से मेरे चेहरे को थामा और मेरी आँखों में देखते हुए बोला; "कीर्ति......." इतना बोल मानु खामोश हो गया, मानो मेरी आँखों में झांकते हुए कहीं खो गया हो| मानु की ये ख़ामोशी मुझे चुभ रही थी इसलिए मैंने उसके दोनों हाथों पर अपने हाथ रखे और उसे प्यार से पुकारा; "मानु? क्या हुआ?"

मेरी आवाज़ सुन वो असली दुनिया में लौटा और जबरदस्ती अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला; "वादा कर...कभी मुझसे नहीं होगी!" मैं उस समय तक भावों को समझने में पूरी तरह परिपक्व नहीं थीं इसलिए मैं मानु के दिल में उठे जज्बात समझ न पाई और उसकी बातों में आते हुए वादा कर बैठी; "वादा करती हूँ की कभी तुझसे नाराज़ नहीं हूँगी|"



इतना सुनना था की मानु की आँखों से ख़ुशी के आँसूँ बह निकले और उसने मुझे आज पहलीबार कस कर अपने गले लगा लिया| उसके इस स्पर्श में रत्तीभर भी वासना नहीं थी, ये तो बस निश्छल प्यार था जिसे मैं आज पहलीबार महसूस कर रही थी|

कुछ पल गले लगने के बाद मानु ने मेरे मस्तक को चूमा और फिर बिना कुछ कहे मेरा हाथ पकड़ कर अपनी बाइक की तरफ चल पड़ा| मेरे लिए आज का ये दिन खुशियों से भरा था मगर कुछ ऐसी भी खुशियां थीं जो मैं समझ नहीं पा रही थी|



हम दोनों सीधा मेरे घर पहुँचे और मानु ने सारा झूठ बोलकर मुझे झूठ बोलने से बचा लिया, वो जानता था की मैं झूठ बोलने में कोई न कोई गलती करुँगी! अच्छा हुआ जो मनौ था वरना मैंने तो कोई न कोई ब्लंडर कर देना था!





स्कूल खुलने में एक हफ्ता रह गया था और मैं नई क्लास में जाने की ख़ुशी और स्कूल में मस्ती करने के सपनों में खोई हुई थी| मानु ने भले ही साइंस ली थी और अब वो दूसरे सेक्शन में पढता मगर लंच में तो हम दोनों मिलकर कैंटीन के समोसे खाते ही| अब चूँकि हम दोनों ने घर से झूठ बोलकर बाहर जाते थे तो स्कूल से लौटते हुए हम दोनों कहीं न कहीं निकल जाते या फिर एक-आध दिन स्कूल ही बंक मार लेते|

इधर मैं अपने इन ख़्वाबों की दुनिया में खोई थी तो उधर क़िस्मत ने मुझे मेरे जीवन का सबसे पहला झटका देने की तैयारी कर ली थी|



रविवार का दिन था और मैं हमेशा की तरह देर से उठी| अंगड़ाई लेते हुए मैं बाहर आई तो मेरी माँ मुझे रोज़ की तरह ताने मरते हुए बोलीं; "उठ गई महारानी जी?! दिन सर पर चढ़ा आया है मगर इस लड़की की नींद पूरी नहीं होती! अब उठी है तो जा कर जल्दी से नहा, वरना बाथरूम में एक घंटा लगाएगी!" मुझे माँ के तानों की आदत थी इसलिए मैं कुछ नहीं बोली और उबासियाँ लेते हुए अपने कपड़े ले कर धीरे-धीरे नहाने के लिए बाथरूम की तरफ जाने लगी|

पूरा एक घंटा ले कर मैं नहाई और जब बाथरूम से बाहर आई तो मेरी माँ मुझे डाँटते हुए बोलीं; "तू करती क्या है एक घंटा बाथरूम में? आधा दिन बीत गया और अभी मैडम जी का नहाना हुआ है! कब तू नाश्ता करेगी और कब तू खाना खायेगी! अपनी ये सुस्ती वाली आदत सुधार ले वरना मार खायेगी मेरे से!

सारा दिन बस यहाँ-वहाँ बैठेगी, कार्टून देखेगी और रोटियाँ तोड़ेगी! बिना कहे तुझसे एक काम नहीं होता! अरे मानु को देख! तेरी उम्र का है और अकेला पढ़ने कोटा गया है!" जैसे ही माँ ने कहा की मानु पढ़ने के लिए कोटा गया है मेरे पॉंव तले ज़मीन खिसक गई! "क्या? मानु कोटा चला गया?" मैं चौंकते हुए माँ से सवाल किया तो उन्होंने बताया की आज सुबह तड़के ही वो और उसके पापा कोटा गए हैं जहाँ मानु का एडमिशन होगा| अब मानु ने कोटा में रहकर इंजीनियरिंग की तैयारी करनी थी, वहीं पर वो ग्यारहवीं और बारहवीं भी पढ़ेगा|



मानु बिना मुझे मिले गया था, इतने दिनों में उसने मुझे ज़रा भी भनक नहीं होने दी की वो मुझे छोड़ कर कोटा पढ़ने जा रहा है| ये बात सोच-सोच कर मुझे गुस्सा आने लगा था और अपने इस गुस्से में मैं मानु से किया अपना वादा भी भूल गई| दरअसल मानु से मेरा लगाव इतना था की मैं उसके बिना स्कूल जाने की कल्पना ही नहीं कर सकती थी|

खैर, मैंने फैसला कर लिया की इस धोके के लिए मैं अब मानु से कभी बात नहीं करुँगी| गुस्से के आवेश में मैंने फैसला तो ले लिया लेकिन जल्द ही मुझे इसका बहुत पछतावा हुआ!





स्कूल शुरू हुए और मुश्किल हुई पढ़ाई के कारण मैं पढ़ाई में व्यस्त हो गई| मानु के सिवा मुझे किसी पर भरोसा था नहीं इसलिए मेरा मानु के साथ मिलकर स्कूल बंक करने का प्लान हमेशा-हमेशा के लिए ठप्प हो गया! मैं सर झुका कर स्कूल जाती और थकी मांदी सर झुकाये घर लौट आती| मेरी कुछ सहेलियाँ शनिवार को पिक्चर जाने का प्रोग्राम बनाती मगर मेरी माँ ने किसी के साथ भी जाने से मनाही कर रखी थी इसलिए मैं कहीं न जाती|

वहीं आदि भैया का कॉलेज पूरा होने जा रहा था और वो नौकरी ढूँढने में व्यस्त थे इसलिए अब उनके पास भी मुझे घुमाने ले जाने का समय नहीं था| पिताजी तो थे ही बहुत व्यस्त, उन्हें एक संडे मिलता था और उस दिन मुझे उन्हें कहीं बाहर ले जाने के लिए बोलने की मनाही थी| यदा-कदा कोई शादी या कोई समारोह होता तो हम वहाँ जा पाते लेकिन वहाँ मैं किसी को जानती-पहचानती नहीं थी इसलिए किसी से घुल-मिल न पाती|

कहीं घूमने न जा पाने का सारा मैं ठीकरा मानु के सर फोड़ती और उसे मन ही मन खूब गालियाँ देती|



इसी बीच रक्षाबंधन का त्यौहार आया और मेरी माँ ने कहा की मैं मानु को राखी भेज दूँ मगर मैं गुस्से से भरी हुई थी इसलिए मैंने पलट कर गुस्से में जवाब दिया; "मैंने नहीं भेजती उसे कोई राखी-वाखि! वो गया था मुझे बता कर की मैं कोटा जा रहा हूँ? वहाँ जा कर एक फ़ोन भी किया उसने मुझे? इतना ही नहीं होता की माफ़ी माँग ले, तो मैं क्यों उसे राखी भेजूँ!" मेरी गुस्से में कही बता सुन माँ मुझे समझाने की कोशिश की, पर मैं अपनी ज़िद्द पर अड़ी रही और मैंने मानु को राखी नहीं भेजी|





‘नौखई’ हमारे राज्य का एक पर्व है जिसे किसान चावल की फसल कटने पर बहुत धूम-धाम से मनाते हैं| हर साल इस दिन पिताजी हमें गॉंव ले जाया करते थे| नौखई गणेश चतुर्थी के अगले दिन मनाया जाता है और इस दिन हमारा पूरा परिवार इकठ्ठा होता था| जब मैं छोटी थी तब 2-3 हफ्ते पहले ही सारा परिवार धान के खेतों में कटाई के लिए पहुँचता था|

नए-नए कपड़े पहन कर हम सब धान की फसल की पूजा करते और फिर इसी फसल से चावल से बनी चीजें बनाई जाती हैं, जिसे पूरा परिवार एक साथ बैठ कर खाता है| नई फसल के चावलों की वो सौंधी-सौंधी सी महक सूँघ कर ही पेट में चूहे दौड़ने लगते थे| ऊपर से मेरी माँ नए चावलों की खीर बनाती थीं वो भी मिटटी की हाँडी में, जिसकी खुशबु सूंघते हुए मैं रसोई में आ जाती और हाँडी पर नजरें गड़ाए बैठी रहती की कब खीर पकेगी और मैं कटोरी भर-भरकर पीयूँगी!



नौखई मनाने के मेरे दो ही कारण थे, पहला था नए चावलों से बनी हुई चीजों को खा कर पेट भर लेना और दूसरा था 'जुहर भेट'| शाम के समय घर के सभी बड़े-बूढ़े इकठ्ठा होते थे और हम छोटों को उनके पैर छू कर आशीर्वाद लेना होता था| आशीर्वाद तो मिलता ही था साथ में मिलते थे तौह्फे और चूँकि मैं सबसे छोटी थी तो मुझे बहुत सारे तौह्फे मिलते थे| पैसों से ले कर नए-नए कपड़ों तक सब कुछ, कई बार तो इतने तौह्फे मिलते थे की आदि भैया को मेरे तौह्फे उठाने पड़ते थे|



इस बार हम नौखई मनाने गॉंव नहीं जा पाए क्योंकि पिताजी को इस बार छुट्टी नहीं मिली| ज़ाहिर है इस बात पर मैं बहुत गुस्सा हुई और अपने माँ-पिताजी से बोल-चाल बंद कर दी! एक बस भैया थे जो शाम को लौट कर मुझे मनाने की कोशिश करते| जबकि माँ-पिताजी को मेरे गुस्सा होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ा| माँ ने जब मेरे गुस्सा होने की बात मनौ की मम्मी जी को बताई तो उन्होंने मुझे मनाने की ठानी|

रविवार का दिन था और चूँकि मेरी स्कूल की छुट्टी थी इसलिए मैं नाश्ता कर के कार्टून देख रही थी| "मुन्नी ज़रा मेरी मदद कर देगी|" आंटी जी की आवाज़ जैसे ही मेरे कानों में पड़ी मैं बिजली की रफ़्तार से उठी और उनके साथ उनके घर आ गई| आंटी के घर आने का फायदा ये था की यहाँ मुझे मेरी पसंद का खाना खाने को मिलता इसलिए मैं उनके साथ आ गई थी| आंटी जी के घर में घुसते ही मुझे दही वड़ा आलू दम की खुशबु आ गई! दरअसल मुझे खुश करने के लिए अंकल जी मेरे लिए दही वड़ा आलू दम लाये थे| दही वड़ा आलू दम दो dishes नहीं बल्कि एक dish है| आलू दम का तीखापन दही और वड़े के कारण कम हो जाता है और एक जबरदस्त तीखा, हल्का मीठा, खट्टा स्वाद आपकी जुबान पर घुलने लगता है!



खा-पी कर अंकल जी तो किसी से मिलने चले गए इधर आंटी जी ने मुझे अपने साथ व्यस्त करने के लिए एक काम दे दिया| दरअसल उन्हें करनी थी घर की सफाई और इसमें उन्हें मेरी थोड़ी मदद चाहिए थी| आंटी जी अपने वाले कर्म की सफाई में लग गईं और मुझे उन्होंने मानु के कमरे की सफाई करने को कहा| मानु का कमरा बंद पड़ा था इसलिए उसमें धुल-मिटटी इकठ्ठा हो गई थी| एक तो मैं वैसे ही मानु से नाराज़ थी ऊपर से आंटी जी ने मुझे उसी का कमरा साफ़ करने को कहा था इसलिए मैं आसानी से तो ये काम करने वाली थी नहीं; "आंटी जी, दही वड़ा आलू दम खा कर इतना धुल-मिटटी भरा काम नहीं होगा! मुझे तो छप्पन भोग चाहिए!" मेरी बात सुन आंटी जी हँस पड़ीं और बोलीं; "मुन्नी, आज नौखई है न तो आज मैंने तेरे लिए तेरी पसंद के नए चावलों की खीर बनाई है और तेरे अंकल जी गए हैं कुछ ख़ास लेने के लिए|" इतना सुनना था की मैं ख़ुशी से उछल पड़ी और अपनी चुन्नी को अपने चेहरे तथा सर पर बाँध कर मानु के कमरे में सफाई करने घुस गई|



सबसे पहले मैंने कपड़ा उठा कर डस्टिंग शुरू की, डस्टिंग करते-करते मुझे अलमारी दिखी और याद आया की अलमारी के ऊपर मानु ने वो कहानियों वाली किताब छुपाई थी| 'मानु तो यहाँ है नहीं, तो क्यों न उसकी किताब का फायदा उठाया जाए!' मन में आये इस ख्याल के कारण मैं कुर्सी लगा कर अलमारी के ऊपर रखे समान को एक-एक कर नीचे उतार कर रखने लगी|

आखिर मुझे वो किताब मिल ही गई, मैंने फटाफट वो किताब उठाई और अपने कुर्ते में छुपाने लगी की तभी उस किताब से एक कागज निकल कर नीचे गिरा| किताब अपनी कमर में खोंस कर मैंने वो कागज उठा कर देखा तो पता चला की वो तो एक चिट्ठी थी जो मानु ने मेरे लिए लिखी थी!!!!



“कीर्ति,

मुझे माफ़ कर देना की मैंने तुझसे अपने कोटा जाने की बात छुपाई| लेकिन मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं तुझे ये सच बता कर तेरा दिल तोड़ूँ इसलिए चुपचाप बुजदिलों की तरह मुँह छुपाये चला गया|

लेकिन मेरा यक़ीन मान मेरा इरादा तुझे कोई धोका देने का नहीं था| मैं तो जाना ही नहीं चाहता था मगर पापा ने जबरदस्ती की कि मुझे इंजीनियरिंग करने के लिए कोटा जाना ही पड़ेगा| उन्हें मनाने के लिए मैंने यहीं के कॉलेज में पूछताछ कि, भुबनेश्वर के सारे कोचिंग सेण्टर के चक्कर लगाए ताकि कैसे न कैसे कर के मैं यहीं रह कर पढ़ूँ| वो जो मैं सारा समय कोचिंग सेण्टर जाता था न वो मैं अलग-अलग कोचिंग सेण्टर में ट्रायल लेने के लिए जाता था इसीलिए तुझे समय नहीं दे पाता था|



मेरा दसवीं का रिजल्ट आया की पापा मेरे पीछे पड़ गए की मुझे इंजीनियरिंग करने के लिए कोटा जाना होगा| वो तो मैं जाना नहीं चाहता था इसलिए आदित्य भैया से बात कर तरह-तरह के जुगाड़ बिठाने लगा ताकि यहीं रह कर पढ़ सकूँ|

लेकिन मेरे सारे तिगड़म नाकामयाब निकले और पापा ने मुझे कोटा भेजने की सारी तैयारियाँ कर लीं| उस दिन बीच पर मैं तुझे सच कहना चाहता था मगर उस दिन तू बहुत खुश थी और मैं ये बात बता कर तेरी आँखों में आँसूँ नहीं लाना चाहता था इसलिए मैं ये बात कहते-कहते रुक गया|



हम दोनों का रिश्ता दोस्ती से शुरू हुआ था, वो तो हमारे माता-पिता ने जबरदस्ती हमें भाई-बहन के रिश्ते में बाँध दिया| लेकिन मैंने तुझे कभी अपनी बहन नहीं माना, मेरे लिए तू दोस्त ही थी...बल्कि दोस्त से कुछ ज्यादा! अब ये न पूछना की दोस्त से कुछ ज्यादा का क्या मतलब है क्योंकि मैं भी नहीं जानता की ये रिश्ता क्या कहलाता है!

हम साथ खेले, साथ लाडे, साथ खाते-पीते थे, पता नहीं वो कौन सी ताक़त थी जो मुझे तेरी तरफ खींचती रहती थी| मैं किसी को भी नाराज़ देख सकता था मगर जब तू नाराज़ होती थी तो लगता था जैसे रब रूठ गया हो| तेरे नाराज़ होने से मैं इतना डरता था की उस दिन से तुझसे कभी नाराज़ न होने का वचन तक माँग लिया|

मैं जानता हूँ मेरे यूँ अचानक बिना तुझसे मिले जाने पर तुझे बहुत गुस्सा आया होगा और तू मुझसे नाराज़ हो गई होगी मगर ये बात पूरी तरह सच नहीं है| जाने से पहले मैं तुझसे मिलने आया था, तेरे घर में नहीं बल्कि तेरे कमरे की पीछे वाली खिड़की पर....जहाँ से मैं रोज़ तुझे सुबह सोते हुए देखता था| अब तू ही घोड़े बेच कर सो रही थी तो इसमें मेरा क्या कसूर?! आगे से कमरे के पीछे वाले खिड़की बंद कर के सोना!



तू सोच रही होगी की मैंने ये चिठ्ठी तुझे या किसी और को देने के बजाए इस किताब में क्यों छुपाई? तो इसका जवाब है की अभी तक तूने जो पढ़ा वो एक-एक शब्द मेरे दिल से निकला है, अगर कोई दूसरा इसे पढ़ लेता तो पता नहीं इसका क्या अर्थ निकालता इसलिए मैंने ये चिठ्ठी जानबूझ कर अपनी इस कहानियों वाली किताब में छुपाई ताकि मेरे जाने के बाद तू ये किताब लेने आये और तुझे ये चिठ्ठी मिल जाए|

अब तू सोच रही हो गई की मुझे कैसे पता की तू ये किताब लेने आएगी? तो मैडम जी जब पिछलीबार अपने इस किताब को छेड़ा था न तो आपने किताब उलटी रख दी थी, जिससे मुझे शक हो गया की किसी ने तो मेरी किताब को हाथ लगाया है! अब अगर मम्मी-पापा को ये किताब मिली होती तो वो मुझे पीट देते, उनके अलावा एक तू ही थी जो मेरे कमरे में आई थी इसलिए मुझे यक़ीन हो गया की तूने ही मेरी किताब उठाई होगी|

वैसे मुझ पर भरोसा कर के एक बार किताब माँगी होती तो मैं खुद तुझे दे देता! फिर खुद तेरे घर में शिकायत कर देते की तू ये सब पढ़ती है!!! :lol1:





पता नहीं अब हमारी क़िस्मत में मिलना कब होगा, पर उम्मीद करता हूँ की जब भी हम मिलेंगे तू मुझे भूली नहीं होगी! अपने इस 'कुत्ते-कमीने' दोस्त को याद रखना और मेरा इंतज़ार करते रहना!



आशा करता हूँ की ये चिठ्ठी तुझे मिल जाए, वरना तू सच से अनजान रहकर मुझे ही गलत समझेगी|



मैं अपने हॉस्टल का पता भी लिख रहा हूँ, अगर कभी तेरा मन हो तो मुझे चिठ्ठी लिख देना!

तेरी चिठ्ठी के इंतज़ार में,



मानु

मकान नंबर XXXXX
गली नंबर XXXXX
सड़क XXXX
कोटा – XXXXX
राजस्थान”


मानु की इस चिठ्ठी को पढ़ कर मुझे बहुत सारे झटके एक साथ लगे थे| इस चिट्ठी ने जहाँ एक तरफ मुझे ग्लानि महसूस कराई तो दूसरी तरफ मानु की जज्बातों को पढ़ कर मैं सवालों से घिर गई!



हमारा रिश्ता दोस्ती से कुछ ज्यादा का है, इसका क्या मतलब था?...मानु क्यों मुझे सवेरे सोते हुए देखता था?...कहीं मानु मुझसे प्यार तो नहीं करने लगा?...पर हम दोनों तो भाई-बहन हैं...तो हम प्रेमी कैसे बन सकते हैं?...अगर किसी को ये बात पता चल गई तो क्या होगा?


जारी रहेगा अगले भाग में!
Emotional update guruji :cry:
 
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Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,803
31,030
304


भाग - 6


अब तक आपने पढ़ा:


हमारा रिश्ता दोस्ती से कुछ ज्यादा का है, इसका क्या मतलब था?...मानु क्यों मुझे सवेरे सोते हुए देखता था?...कहीं मानु मुझसे प्यार तो नहीं करने लगा?...पर हम दोनों तो भाई-बहन हैं...तो हम प्रेमी कैसे बन सकते हैं?...अगर किसी को ये बात पता चल गई तो क्या होगा?


अब आगे:


उस
समय मेरी इतनी उम्र नहीं थी की मैं इन सवालों का जवाब ढूँढ सकूँ और सबसे बड़ा ये डर की अगर ये बात खुल गई तो मेरी ज़िन्दगी तबाह हो जायेगी|



हमारे गॉंव में लड़कियों को बहुत ही सख्त नियम-कानून से बाँध कर रखा जाता है| लड़की ने घर की चौखट लाँघि नहीं की उसके पिताजी उसे मरा मान कर उसका जीते जी क्रियाकर्म कर देते हैं| फिर भले ही वो लड़की मरते मर जाए मगर उसका परिवार उससे कोई सरोकार नहीं रखता!

मैं हमारे गॉंव की इस प्रथा स परिचित थी इसलिए मुझे इस बात का अधिक भय था की अगर मेरे पिताजी ने मुझे घर से निकाल दिया तो मेरा क्या होगा? मैं तो जीते जी मर जाऊँगी!



डर और अपने भविष्य की चिंता में मैंने सबसे पहले तो छत पर जा कर इस चिठ्ठी को जला कर राख कर दिया तथा इस राख को गमले की मिटटी में मिला दिया! चिठ्ठी तो मैंने जला दी मगर मानु की बातों ने जो मेरे दिल में सवाल खड़े किये थे उनका जवाब मैं ढूँढ न सकी|

जब इंसान को सवालों का जवाब नहीं मिलता तो वो दूसरों से अपने सवालों का जवाब पूछता है| अब ले-दे कर मेरे पास एक ही तो सच्चा दोस्त था और ये सारे सवाल उसी ने मेरे दिमाग में खड़े किये थे इसलिए मानु से तो मैं इन सवालों का जवाब पूछ नहीं सकती थी इसलिए मैंने अपना दिमाग लगाया|

मेरी दोस्त अंजलि, अरे वही जो मुझे 'वो वाली' किताबें देती थी...उसे मैंने बात घुमा फिरा कर पूछी| मैंने उसे कहा की मेरी एक दोस्त है जिसे उसके मुँह-बोले भाई ने प्रोपोज़ किया है|



"अरे तो इसमें प्रॉब्लम क्या है? लड़का-लड़की से प्यार करता है, इज़हार कर रहा है तो दोनों को 'मज़े' करने चाहिए|…” अंजलि एकदम बिंदास हो कर बोली|



"अरे वो ऐसी लड़की नहीं है, सीधी-साधी है...और...प्रॉब्लम ये है की दोनों भाई-बहन हैं! भाई-बहन के बीच ऐसा कैसे हो सकता है?" मैंने अंजलि की बात काटते हुए बोली|



"अरे सेक्स में कोई भाई-बहन नहीं होता, बस दो जिस्म होते हैं जिन्हें बस प्यार चाहिए| ये सब जो भी तू बोल रही है ये बस अट्रैक्शन है, एक बार दोनों ने सेक्स कर लिया न तो धीरे-धीरे प्यार-व्यार का भूत अपने आप उतर जायेगा| उम्र के इस पड़ाव पर एक लड़की को सेक्स चाहिए होता है, उसी तरह लौंडों के भी जिस्म में आग लगी होती है| जब ये आग ठंडी हो जाती है तो समझ आ जाता है की प्यार-व्यार कुछ नहीं था|” अंजलि ने मुझे बड़े इत्मीनान से अपनी बात समझाई| पता नहीं उसकी बातों में ऐसा क्या जादू था की उस समय मैं उसकी बातों से संतुष्ट हो गई|



घर आ कर मैंने इस बात पर बहुत सोचा पर मेरा मन नहीं मान रहा था की मानु मेरे साथ सेक्स करना चाहता है! हाँ लेकिन अंजलि की ये बता मेरे दिल में घर कर गई थी की एक भाई-बहन के बीच सेक्स का रिश्ता पंप सकता है| अंजलि से ले कर मैंने आज तक जितनी कहानियों वाली किताबें पढ़ीं थीं उनमें भाई-बहन के बीच सेक्स वाली कहानियाँ थी, मेरा किशोर मन इन कहानियों को सच मानता था इसलिए मुझे ये विश्वास हो गया की भाई-बहन सेक्स करते हैं|



इस सोच ने मेरी मनोदशा को आगे चल कर बहुत प्रभावित किया था|





खैर, मानु ने तो अपने प्यार का इजहार जलेबी जैसे शब्दों में कर दिया था| वो बात अलग है की मेरा दिमाग अब भी मुझे प्यार में बह जाने से रोके हुए था|

मेरे स्कूल में सभी लड़कियों की बॉयफ्रेंड थे, यहाँ तक की आठवीं-नौवीं में पढ़ने वाली लड़कियों के भी बॉयफ्रेंड थे| वहीं अंजलि तो मुझसे दस कदम आगे चल कर अपने बॉयफ्रेंड के साथ सेक्स भी कर चुकी थी| क्लास की सभी लड़कियाँ जब अपने-अपने बॉयफ्रेंड के किस्से सुनाती तो मुझे बहुत अकेलापन महसूस होता| मैं भी चाहती थी की मेरा बॉयफ्रेंड हो मगर माँ-पिताजी की बंदिशों के कारण मैं बॉयफ्रेंड बनाऊँ भी तो कैसे बनाऊँ?

फिर एक डर और भी था, जो की अंजलि के कारण पैदा हुआ था| दरअसल, जब अंजलि ने बताया की वो अपने बॉयफ्रेंड के साथ सेक्स कर चुकी है तो मुझे बहुत जिज्ञासा हुई की पहला अनुभव कैसा होता है? "मत पूछ यार! पहलीबार जब लंड अंदर जाता है तो बहुत दुखता है! ऐसा लगता है की कोई जबरदस्ती चाक़ू चूत में घोंप रहा हो! पहलीबार जब झिल्ली टूटती है तो खून भी निकलता है| जब मेर झिल्ली टूटी थी तब तो खूबसारा खून-खच्हड़ हो गया था! दो दिन तक मेरी छूट सूज कर लाल हो गई थी, चलने में दिक्कत होती थी सो अलग! मम्मी को मेरी ये बिगड़ी हुई चाल देखकर शक हो रहा था इसलिए मैंने सामने से ही बहाना बना दिया| जब तू अपनी फटवायेगी तो दो-तीन दिन की छुट्टी ले लिओ ताकि आराम कर सके!" अंजलि की बातों ने मुझे उस दर्द का आभास अभी से करा दिया था जिस वजह से मैं सेक्स करने से डर रही थी|



परन्तु अपने आस-पास सभी को प्रेम की नदी में डुबकी लगाते देख मेरा भी मन अब थोड़ा-थोड़ा बहकने लगा था| जब मन भटका तो मुझे मानु की याद आई और मेरे दिमाग में प्रेम के कीड़ों ने चुहलबाज़ी करनी शुरू कर दी!



मैंने फिल्मों में देखा था की हीरो-हेरोइन एक दूसरे को प्रेम-पत्र लिखते हैं| प्रेम पत्र लिखने के नाम से ही मेरे पेट में तितलियाँ उड़ने लगी थीं| अब मैं प्रेमपत्र लिखने की कोई विशेषज्ञ तो थी नहीं पर प्रेमपत्र लिखने की फील (feel) पूरी लेनी थी इसलिए वैजन्तीमाला बन सज-धज कर पहुँच गई छत पर| रविवार का दिन था और शाम को पिताजी और आदि भैया बहार गए हुए थे| माँ शाम के खाने की तैयारी कर रहीं थीं इसलिए मुझे अभी सताने वाला कोई था नहीं|

छत पर चादर बिछा कर मैं पेट के बल लेट गई और कलम हतः में पकड़ सोचने लगी की आखिर लिखूँ तो लिखूँ क्या? जैसे मानु ने गोल-मोल बातें लिखी थीं, मुझे भी वैसे ही लिखना था ताकि कहीं अगर मानु की बात का मतलब कुछ और निकलता तो वो मेरे पत्र को मेरा प्रेम का इज़हार न समझे|



मेरे प्रिय….. प्रियतममेरे मानु’ मैं बार-बार शब्द लिख कर काटे जा रही थी क्योंकि समझ ही नहीं आ रहा था की क्या लिखूँ? क्या करूँ?! पहली बार प्रेम पत्र लिख रही थी and I didn’t want to sound desperate!

आधा कागज मैंने शब्दों को काट-काट कर काला कर दिया था मगर एक ढंग की लाइन नहीं लिख पाई थी| दिमाग कुछ लिखने में तो मदद कर नहीं रहा था पर मेरी इस व्यथा पर उसने गाना गुनगुना शुरू कर दिया था;

"मेहरबान लिखूँ, हसीना लिखूँ, या दिलरुबा लिखूँ

हैरान हूँ कि आप को इस ख़त में क्या लिखूँ

ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर के तुम नाराज़ न होना

कि तुम मेरी ज़िन्दगी हो कि तुम मेरी बंदगी हो!" गाने के ये बोल मेरी सिचुएशन पर बिलकुल परफेक्ट बैठते थे|



'मानु,



तुम्हारा पत्र मिला और पढ़कर कैसा लगा ये समझपाना मुश्किल है|’ अभी इतना ही लिख पाई थी की तभी पीछे से मेरी माँ आ धमकी और मुझे झिड़कते हुए बोलीं; "यहाँ छत पर लेटे हुए क्या कर रही है?" माँ की कड़क आवाज़ सुन मैं हड़बड़ा कर उठी और अपना आधा-अधूरा प्रेम-पत्र मैंने फट से छुपा लिया| "प्...पढ़ रही थी!" मैंने माँ से नजरें चुराते हुए कहा| मेरी माँ पढ़ी-लिखी नहीं थीं इसलिए मैं उन्हें बुद्धू बनाते हुए बोली|

“पढ़ाई ही करियो! कुछ और किया तो टांगें तोड़ दूँगी तेरी!” माँ मुझे हड़का कर कपड़े ले कर नीचे चली गईं| माँ की इस एक धमकी ने मेरे कान खड़े कर दिए थे इसलिए माँ के जाते ही मैंने डर के मारे अपनी इस अधूरी चिट्ठी को जला कर, राख को मिटटी में मिला दिया!



रात के समय भैया और पिताजी लौटे तो मैंने पाया की पिताजी का मूड बहुत खराब है! मुझे जिज्ञासा हुई की बात क्या है मगर पिताजी मेरे सामने बात नहीं नकारना चाहते थे, अतः उन्होंने मुझे अपने कमरे में भेज दिया; "कीर्ति, तू जा कर अपने कमरे में पढ़ाई कर!" पिताजी ने थोड़ा गुस्से से कहा और मैं फुर्र्र से अपने कमरे में घुस गई और दरवाजा बंद कर अपने कान दरवाजे से लगा बाहर की बातें सुनने की कोशिश करने लगी|



"माँ-बाप इतनी मुश्किल से नाम बनाते हैं मगर ये बच्चे एक पल में सारी इज्जत मिटटी में मिला देते हैं|" पिताजी गुस्से से दाँत किटकिटाते हुए बोले| मैं कमरे के भीतर थी मगर मैंने दरवाजे के इस ओर से पिताजी के दाँत किटकिटाने की आवाज को महसूस किया था|



"क्या हुआ कीर्ति के पिताजी? क्यों इतना गुस्सा हो? सुबह बिना कुछ कहे आदित्य को अपने साथ ले कर चले गए और सूर्यास्त के बाद लौटे हो?!" मेरी माँ पिताजी को ठंडा पानी देते हुए बोलीं|



"मेरे दोस्त मानिक को जानती हो न तुम, उसकी बेटी जिसे उसने इतने नाज़ों से पाला वो उसके मुँह पर कालिक पोत कर दूसरी ज़ात के लड़के के साथ भाग गई!" ये कहते हुए पिताजी ने गुस्से से गिलास टेबल पर पटक कर रखा|



"हाय राम! सुमन ऐसा कैसे कर सकती है?! इतनी सीधी-साधी लड़की थी..." मेरी माँ अस्चर्य से भरकर अपने मुँह पर हाथ रखे हुए बोली|



"नाज़ों से जिसे पाला, उस लड़की ने एक पल नहीं सोचा अपने बाप के बारे में?! क्या फायदा ऐसे बच्चों का जो अपने माँ-बाप के न हो सकें?! लानत है ऐसे बच्चों पर जो अपने माँ-बाप के मुँह पर कालिक पोत देते हैं!

तुम नहीं जानती कीर्ति की माँ, बेचारा मानिक एकदम से टूट गया था और फूट-फूट कर रो रहा था| मुझसे उसकी ये हालत देखि नहीं जा रही थी, मैंने किसी तरह उसे सँभाला और फिर हमने थाने में रिपोर्ट दर्ज़ की| इधर मैंने आदित्य को सारा दिन-दोपहरी बीएस-स्टैंड और रेलवे स्टेशन दौड़ा दिया ताकि अगर दोनों कहीं मिल जाए तो वो उन्हें पकड़ कर घर ले आये, लेकिन ये बेचारा भी थक कर लौटा|

अब कल मानिक के बड़े भैया आएंगे और कल के कल ही हम सुमन का पिंडदान कर देंगे ताकि उस लड़की से मानिक का पिंड छूटे! कल के बाद सुमन से मानिक का कोई नाता नहीं रहेगा! जान छूटे ऐसे एहसान फरामोश बच्चों से!" पिताजी गुस्से तिलमिलाते हुए बोले|



इस हादसे ने मेरे ऊपर बहुत गहरा प्रभाव डाला था| पिताजी की बातें सुन मेरे जिस्म को डर का ठंडा झोंका छू गया था| अभी तो मैंने प्रेम-पत्र भी नहीं लिखा था और इस काण्ड के बारे में सुनकर ही मैं काँप गई थी!

कहीं अगर मेरा और मानु का प्यार परवान चढ़ गया और पिताजी को पता चल गया तो पिताजी तो मुझे जान से ही मार देंगे! इस एक काण्ड ने मेरे दिमाग में जो प्रेम के कीड़े कुलबुलाए थे उनपर मट्टी का तेल डालकर आग लगा दी थी!

मैंने खुद को सँभाला और प्रेम की नदिया के किनारे खड़े हो कर सभी को गोता लगाते हुए देखने का फैसला किया|





कुछ दिन बीते और मानु का जन्मदिन आ ने वाला था| जब मानु यहाँ था तब आज के दिन मेरी माँ मानु का मन पसंद खाजा बनाती थीं और हम दोनों आंगन में बैठ कर लड़ते-झगड़ते हुए खाजा खाते थे| इस बार मानु यहाँ नहीं था और मुझे आज उसकी कमी महसूस हो रही थी| चिठ्ठी लिखने की मुझ में हिम्मत तो थी नहीं इसलिए मैंने मानु को कुछ गिफ्ट भेजने की सोची मगर इसके लिये मेरे पास पैसे नहीं थे!

आदि भैया को उस टाइम एक छोटी नौकरी मिली थी तो मैंने उनसे प्यार से मदद माँगी; "आदि भैया...वो...मानु का जन्मदिन आ रहा है| वो तो यहाँ...है नहीं...तो...मैं...सोच रही थी की...एक शर्ट..." इतना कह मैं खामोश हो गई| आदि भैया से बात करते समय मुझे अपना दिमाग इस्तेमाल नहीं करना पड़ता था, मेरे दिल में जो बात होती थी मैं फट से बक देती थी मगर आज मुझे यूँ कतराते देख भैया मुस्कुराये| अगले ही पल उन्होंने अपना पर्स निकाला और 500/- का नोट मुझे देते हुए बोले; "सोच समझ कर खर्चा करियो और माँ-पिताजी को मत बताइयो वरना तेरे साथ-साथ मुझे भी डाँट पड़ेगी!"



भैया से पैसे मिलना मेरे लिए किसी ख़ुशी से कम न था इसलिए मैं ख़ुशी से कूद पड़ी और भैया के दायें गाल पर kissi कर के कपड़े पहन कर तैयार हो गई| इधर भैया ने माँ से मुझे अपने साथ ले जाने का बहाना बनाया और मुझे कपड़ों की दूकान पर छोड़ कर अपने काम से चले गए| मैंने फटाफट मानु के लिए कमीज पसंद की और उसे gift wrap करवा कर पोस्ट ऑफिस पहुँच गई और मानु को भेज दिया|

कमीज पा कर मानु को कैसा लगा ये उस बुद्धू ने मुझे बताया ही नहीं और इधर मैं बुद्धू मानु का जवाब जानने को मरी जा रही थी|


जारी रहेगा अगले भाग में!
Bdiya update guruji
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प्रिय मित्रों,

मेरी माँ का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण मैं आगे नहीं लिख पा रहा हूँ| आप सभी से दर्ख्वस्त है की आप सभी मेरी माँ के जल्दी स्वस्थ होने की प्रार्थना करें| 🙏
:pray:
 

Akki ❸❸❸

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भाग - 7

अब तक आपने पढ़ा:


भैया से पैसे मिलना मेरे लिए किसी ख़ुशी से कम न था इसलिए मैं ख़ुशी से कूद पड़ी और भैया के दायें गाल पर kissi कर के कपड़े पहन कर तैयार हो गई| इधर भैया ने माँ से मुझे अपने साथ ले जाने का बहाना बनाया और मुझे कपड़ों की दूकान पर छोड़ कर अपने काम से चले गए| मैंने फटाफट मानु के लिए कमीज पसंद की और उसे gift wrap करवा कर पोस्ट ऑफिस पहुँच गई और मानु को भेज दिया|

कमीज पा कर मानु को कैसा लगा ये उस बुद्धू ने मुझे बताया ही नहीं और इधर मैं बुद्धू मानु का जवाब जानने को मरी जा रही थी|



अब आगे:


कोटा
जा कर मानु एकदम से बदल गया था, न वो घर फ़ोन करता था न कोई चिट्ठी-पत्री लिखता था| अब जब वो अपने मम्मी-पापा को ही नहीं पूछता तो मुझे क्या ही याद करता होगा?! रविवार के दिन अंकल-आंटी ही उसे उसकी हॉस्टल वाली आंटी जी के यहाँ फ़ोन कर उसका हाल-चाल लेते थे| लाड-साहब इतने व्यस्त थे की त्योहारों पर भी घर नहीं आते थे| एक-आध बार अंकल आंटी ही उससे मिलने कोटा गए थे|



मानु की ये लग्न और मेहनत रंग लाई और उसकी इंजीनियरिंग पूरी होते ही उसे बैंगलोर में एक बड़ी MNC में नौकरी मिल गई| मुझे लगा था की लाड़साहब अब तो घर आएंगे और मैं उसे खूब पीटूँगी मगर ये फन्नेखां तो सीधा ही बैंगलोर पहुँच गए और नौकरी ज्वाइन कर ली! कुछ महीने बीते होंगें की उसने अंकल-आंटी को भी अपने पास बैंगलोर बुला लिया और एक बड़े दो बैडरूम हॉल किचन के फ्लैट में अपनी ज़िन्दगी बीताने लगा|

इधर मैं अपनी अलग कश्मकश से जूझ रही थी!





माणिक अंकल के घर में घटे इस एक काण्ड ने मेरे सर पर पिताजी का दबाव बढ़ा दिया था| मेरे माँ-पिताजी दोनों मुझ पर नज़र रखने लगे थे की मैं कहीं कोई इश्कबाज़ी के चक्क्र में तो नहीं पड़ रही? सारा दिन मुझे बस किताबों में घुसा रहना पड़ता था| इस समय मुझे मानु की कमी बहुत खल रही थी क्योंकि अगर वो यहाँ होता तो जर्रूर मुझे किसी न किसी बहाने से घुमाने ले ही जाता|



टेक्नोलॉजी में आई तीव्रता के साथ अब सबके पास मोबाइल आ गया था| जिनके पास अच्छे पैसे थे उनके पास महँगे मोबाइल थे तो जिनके पास कम पैसे होते थे उनके पास नोकिआ के ब्लैक एंड वाइट कीपैड वाले फ़ोन थे|

मेरे घर में पिताजी के पास था नोकिआ 1100 जिसमें मैं रात को साँप वाला गेम खेला करती थी| आदि भैया के पास था वो रिलायंस का फ़ोन जिसमें नीले रंग की रौशनी जलती थी जो उन्हें उनकी कंपनी से मिला था| माँ या मेरे पास कोई मोबाइल नहीं था क्योंकि पिताजी के अनुसार हम दोनों ने किससे बात करनी होती थी?!



जब टेक्नोलॉजी में तीव्रता आई तो हमारी वो अतरंगी कहनियों का रूप भी बदला और उनकी जगह ले ली अश्लील वीडियोस ने जिनमें सेक्स साफ़-साफ़ दिखाई देता था| यानी आजतक हम जो पढ़कर कल्पना करते थे वो सब हमारे सामने घटित होता था| फर्क था तो बस ये की कहानियाँ पढ़ हम अपने मन पसंद हीरो-हेरोइन के साथ सेक्स करने की कल्पना करते थे और यहाँ वीडियो में हरबार एक नया चेहरा होता था|



एक दिन की बता है, मैं स्कूल पहुँची तो अंजलि मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गर्ल्स टॉयलेट में खींच लाई| मैं उससे पूछती रही की क्या बात है मगर वो कुछ न बोली और मुझे खामोश रहने का इशारा करती रही| टॉयलेट में पहुँच, दरवाजा अंदर से बंद कर अंजलि ने अपनी स्कर्ट में हाथ डालकर अपना नया-नवेला फ़ोन निकाला और मुझे दिखाते हुए बोली; "आजतक तूने बस कहानियाँ पढ़ी थीं न, ले आज साक्षात् देख ले की सेक्स क्या और कैसे होता है?!" ये कहते हुए उसने फ़ोन में लगाए वो काले वाले हेडफोन्स जिन्हें हम लीड कहते थे और एक वीडियो क्लिप चला कर मुझे दिखाने लगी|

सच कहती हूँ, वो पल मेरे लिए बड़ा मजेदार था| मैं ज़िंदगी में पहलीबार साक्षात् सेक्स होते हुए देख रही थी| आजतक मैंने बस लंड की कल्पना ही की थी मगर फ़ोन की इस छोटी सी स्क्रीन पर लंड का असली आकार देख मैं दंग रह गई! "इतना बड़ा होता है? ये...कैसे...जाता होगा?" मैं खुसफुसाते हुए बोली|



मेरा ये बचकाना सवाल सुन अंजलि खी-खी कर हँसने लगी और बोली; "हाय! इतना बड़ा तो क़िस्मत वाली लड़कियों को नसीब होता है! और जब ये जाता है न तो बड़ा सुकून मिलता है!" ये कहते हुए अंजलि अपनी बुर स्कर्ट के ऊपर से खुजाने लगी|

वहीं दूसरी तरफ, कहानियाँ पढ़ कर जो चुनचुनाहट मुझे अपनी योनि पर होती थी, आज वो वीडियो देखने से बहुत बढ़ गई थी! मुझे पता ही नहीं चला कब मेरा हाथ मेरी योनि के पास पहुँचा और मैंने अपनी योनि सहलानी शुरू कर दी| दो मिनट की क्लिप देखते-देखते मेरे जिस्म का ताप एकदम से बढ़ गया था और मैं अपने स्खलन के एकदम नज़दीक पहुँच गई थी की तभी क्लिप खत्म हो गई! न हीरो स्खलित हो पाया, न हीरोइन स्खलित हो पाई और न ही मैं स्खलित हो पाई! उस समय मेरा हाल ऐसा था की कोई आ कर अगर मेरे भीतर अपना लिंग डाल दे तो मैं मोक्ष पा जाऊँ!



"क्या यार?! जब मज़ा आने लगा तभी तेरी ये वीडियो खत्म हो गई!" मैं मुँह बिदकाते हुए बोली| मेरी ये थोड़ी सी झुंझुलाहट देख अंजलि के चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई, मेरे स्तनों पर चुटकी काटते हुए वो बोली; "पूरी वीडियो देखनी है तो संडे को मेरे घर आ जा और एक घंटे की पूरी वीडियो देख ले और चाहे तो 'वो' भी कर लियो!" अंजलि ने मुझे एक घंटे की वीडियो देखने का निमंत्रण दिया था जिससे मेरे मन में लालच पैदा हो गया था| अभी तक मैंने जो भी कहानियाँ पढ़ी थीं उनमें कभी कोई समय नहीं लिखा होता था की लड़का-लड़की ने कबा तक सेक्स किया| मैं बस अंदाजा लगाती थी की जितनी देर मुझे कहानी पढ़ने में लगती है उतनी ही देर में सेक्स खत्म हो जाता होगा पर जब अंजलि ने कहा की एक घंटे की पूरी वीडियो है तो मैं आस्चर्यचकित हो गई की भला एक घंटा कोई कैसे सेक्स कर सकता है?!

परन्तु जो भी कहो इस एक वीडियो ने मेरे भीतर कामुकता को इस कदर जगा दिया था की अब तो सपनों में भी बस यही वीडियो आ रही थी| जब भी खाली बैठती तो दिमाग में वो वीडियो फिर से प्ले (play) होने लगती और मेरा मन 'संतुष्टि' की माँग करने लगता|



मैं बड़ी बेसब्री से संडे आने का इंतज़ार कर रही थी ताकि अंजलि के घर जाने का जो मैंने वादा किया था उसे निभा सकूँ| अंजलि का निमंत्रण तो मैंने स्वीकार लिया था लेकिन बाद में मैं इस जुगत में लग गई की कैसे मैं अंजलि के घर जाऊँ?! 'माँ-पिताजी से कहूँगी तो वो पूछेंगे की कहाँ जा रही है? और क्यों जा रही है? पढ़ाई का बहाना कर दूँ?!' मन में ये सवाल-जवाब चल रहे थे पर घर पर झूठ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी| 'क्या होगा अगर पकड़ी गई तो?' मन मुझे ये बात बोल-बोलकर डरा रहा था|

लेकिन कहते हैं की, जब आपका मन गलत काम करने का हो तो सारे रास्ते आसान हो जाते हैं| मुश्किलें तो बस अच्छा काम करने में आती हैं, वही मेरे साथ भी हुआ!



रविवार के दिन माँ-पिताजी को किसी रिश्तेदार के यहाँ जाना था इसलिए वो सुबह ही निकल गए| भैया की आज छुट्टी थी इसलिए वो अभी सो रहे थे और उनके उठने पर मुझे उनके लिए नाश्ता बनाना था| अगर मुझे अंजलि के घर जाना था तो यही सही समय था और बस भैया ही मुझे उसके घर छोड़ सकते थे|

जब भैया उठे तो मैंने उन्हें बढ़िया चाय-नाश्ता करवाया और फिर सीधा अपनी माँग उनके सामने रख दी| भैया मेरा अकेलापन समझते थे इसलिए उन्होंने मना नहीं किया और मुझे तैयार होने को कहा| जब मैं तैयार हो कर आई तो भैया ने मुझे साथ में 2-3 किताबें लेने को कहा ताकि अगर वापसी में माँ-पिताजी जल्दी आ गए तो हमारे पास झूठ बोलने के लिए कारण हो की भैया मुझे अंजलि के घर पढ़ने के लिए ले गए थे|



अंजलि का घर हमारे घर से थोड़ी दूरी पर ही था, लेकिन आजतक मुझे उसके घर जाने का कही मौका ही नहीं मिला| शुक्र है की उसने मुझे अपने घर का एड्रेस अच्छे से समझा दिया था इसलिए हम आराम से पहुँच गए| मेरा स्वागत नाजलि की मम्मी ने किया, पैरेंट-टीचर मीटिंग के दौरान मैं आंटी से मिली थी और चूँकि मैं पढ़ाई में अंजलि से अच्छी थी इसलिए आंटी के सामने मेरी अच्छी छबि पहले से ही बनी हुई थी| "मैं शाम को 4 बजे आऊँगा|" इतना कह भैया ने आंटी से चलने की इजाजत ली|

मेरे हाथ में किताब थी इसलिए अंजलि ने पढ़ाई का बहाना बनाया और मेरा हाथ पकड़ मुझे अपने कमरे में ले आई| हमने किताबें खोल कर रख दी ताकि अगर आंटी जी आएं तो उन्हें लगे की हम पढ़ रहे हैं| फिर एक किताब के भीतर फ़ोन में वीडियो चला कर हम देखने लगे| वीडियो देखते-देखते हम दोनों के जिस्म गर्म होने लगे थे और कुछ ही देर में वासना हमारे सर पर चढ़ चुकी थी| जिसके फल स्वरूप हमारे चेहरों पर लालिमा आ चुकी थी, कान लाल होने लगे थे और साँसें तेज़ होने के कारण हमारे स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे! माहौल इतना गर्म था की अगर कोई लड़का अभी आ जाए तो हम दोनों ही उस पर चढ़ जाएँ!

मैं किसी और के घर में हूँ इस कर के मैं अपने हतहों को अपना जिस्म छूने से रोके हुए थी मगर ये घर था अंजलि का इसलिए वो बेख़ौफ़ अपने स्तनों को दबा रही थी और अपनी चूत को कपड़ों के ऊपर से खुजला रही थी| मैंने एक-आध लेस्बियन सेक्स वाली कहानी पढ़ीं थीं और ये वीडियो देख मैं इस वक़्त इतनी गर्म हो चुकी थी की अगर अंजलि मुझे लेस्बियन सेक्स के लिए कहती तो मैं तैयार हो जाती मगर नियति को कुछ और ही मंज़ूर था!





करीब एक घंटे बाद आंटी जी आईं और हमने फट से वीडियो बंद कर किताब ऐसे बंद की ताकि उन्हें पता न चले की यहाँ दो जवान लड़कियाँ पढ़ाई की बजाए चुदाई का ज्ञान अर्जित करने में लगी हैं!

"बेटा, मैं कुछ काम से बाहर जा रही हूँ और मुझे लौटने में 2 घंटे लग जायेंगे तो तबतक तुम दोनों आराम से पढ़ो| मैंने तुम्हारे लिए परांठे बना दिया हैं तो जब भूख लगे खा लेना| और तू सुन ले अंजलि, जब भैया जागे तो उसे भी खाने को दे दियो...ये नहीं सारा टाइम पढ़ाई में ही निकाल दे!" इतना कह आंटी जी चली गईं| घर का दरवाजा बंद कर अंजलि फुदकती हुई मेरे पास आई, उसके चेहरे पर छत्तीस इंची मुस्कान तैर रही थी जो की बताती थी की जर्रूर दाल में कुछ काला है!



मैं उससे कुछ पूछ पाती उससे पहले ही अंजलि ने अपने फ़ोन में एक वीडियो लगाई और मुझे देते हुए बोली; "ये वाली देख, ये पूरे एक घंटे की हैं और इतनी जबरदस्त है की तेरी नदी बह निकलेगी| तू बैठ कर आराम से इसे देख और चाहे तो बाथरूम में जाके 'फ्री' भी हो जाइयो| मैं तब तक भैया को उठा कर कुछ खिला-पीला कर आती हूँ|"

अंजलि की बात से मुझे लगा की वो सच में अपने भैया को खाना खिलाने जा रही है, अब मुझे क्या पता की वो खाने के बजाए अपने भैया को अपना सबकुछ खिलाने-पिलाने जा रही है!!!



अब मैं तो आई ही यहाँ ये वीडियो देखने के लालच में थी इसलिए कान में लीड लगा, मैं लग गई वीडियो देखने| इस वीडियो में एक लाडला-लड़की बड़े प्यार से सम्भोग कर रहे थे| लड़का बड़े प्यार से लड़की को छू रहा था, चूम रहा था और बड़े कामुक अंदाज़ में लड़की के अंगों को सहला रहा था|

दस मिनट इन दृश्यों को देख कर मैं भट्टी की तरह जलने लगी थी, अब मुझे चाहिए थी संतुष्टि और इसके लिए मुझे जाना था बाथरूम ताकि मैं खुद को संतुष्टि दे कर आराम पाऊँ|



मैं बाथरूम जाने के लिए उठी तो मैंने कमरे के बाहर देखा और पाया की चारों तरफ घुप्प अँधेरा है! बाहर का मौसम एकदम से घिर आया था, मतलब बादलों ने सारा आसमान घेर कर अँधेरा कर दिया था| मैंने कमरे के बाहर झाँका तो पाया की सारे कमरों के दरवाजे खुले हैं और सभी की लाइट बंद है| अब मुझे लगता था अँधेरे से डर क्योंकि आजतक मैं कभी अकेली घर में नहीं रही थी| मुझे लगा कहीं अंजलि मुझे घर में बंद कर कहीं चली तो नहीं गई?! कुछ सेकंड पहले जो जिस्म में वासना की आग लगी थी वो एकदम से बुझ गई थी और अब मुझे अकेलेपन के डर ने घेर लिया था|

सबसे पहले मैंने घर का मुख्य दरवाजा देखा जो की अंदर से बंद था, यानी की अंजलि घर में ही थी| मैंने नजरें इधर-उधर दौड़ाईं मगर सब जगह अँधेरा ही था| तभी मैंने ऊपर की तरफ देखा तो मुझे पहली मंजिल पर बने कमरे में से रौशनी आती नज़र आई| अपने मन की तसल्ली करने के लिए मैं दबे पॉंव ऊपर चढ़ी, मैंने देखा की कमरे का दरवाजा बंद है पर कमरे की खिड़की खुली है जिसमें से रौशनी आ रही थी| जैसे ही मैंने खिड़की से अंदर झाँका तो जो दृश्य मैंने देखा, जो बातें मैंने सुनी...वो सब देख-सुन मेरे होश फाख्ता हो गए!



अंजलि: जल्दी-जल्दी करो भैया...मेरी कच्छी तक पूरी गीली हो चुकी है!

अंजलि अपने भाई की बाहों में कैद उससे चुदाई करने की विनती कर रही थी|

अंजलि का भाई: तेरी सहेली ऊपर आ गई तो?

अंजलि का भाई अपने दोनों हाथों की उँगलियों को अंजलि के कूल्हों पर गाड़ते हुए बोला|

अंजलि: सससस....वो नहीं आएगी, वो ब्लू फिल्म देखते हुए अपनी मुनिया शांत कर रही होगी!

अंजलि के भाई ने जो अपनी उँगलियाँ उसकी गांड पर गड़ाई थीं उस कारण अंजलि सीसियाते हुए बोली|

अंजलि का भाई: तू सच में बहुत चालाक है! तूने जानबूझ कर अपनी सहेली को यहाँ बुलाया ताकि चाची उसके सहारे हम तीनों को अकेला छोड़ कर काम से बाहर जाएँ और हम दोनों अपना चुदाई का काम आराम से कर सकें!

अंजलि के भाई ने आंटी को चाची कहा था यानी की वो अंजलि का चचेरा भाई था!

अंजलि की चलाकी भरी चाल से मुझे यहाँ अपने घर बुलाना और फिर अपने ही चचेरे भाई से चुदवाने की बात दो बमों के समान मेरे कानों में फटे और मैं जड़वत हो गई! उस पल मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ? मन में गुस्सा धधकने लगा था और मुझे अंदर जा कर चिल्लाने के लिए उकसा रहा था| मन कर रहा था की मैं कमरे के दरवाजे को लात मारकर खोलूँ और अंजलि पर ज़ोर से चिल्लाऊँ; 'तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरा इस्तेमाल कर अपनी मम्मी को उल्लू बना अपने भाई से चुदाई करवाने की?'



उधर कमरे के भीतर का माहौल एकदम से गरमा गया था| अंजलि के भाई ने उसके होठों पर आक्रमण कर दिया था और बहुत तेजी से उसके होठों का रस निचोड़ रहा था|



अब ये दृश्य देख कर मेरा गुस्सा काफ़ूर हो गया और वासना की आग फिर से धधकने लगी तथा मैंने इस मौके का लुत्फ़ उठाने की सोची| अब रोज़-रोज़ तो मुझे यूँ लाइव (live) चुदाई देखने को मिलती नहीं न?!


अंजलि का चचेरा भाई बड़ी तीव्रता से अंजलि के होठों का रस पी रहा था| वहीं अंजलि भी पीछे नहीं थी, वो भी अपने चचेरे भाई के चुम्मों का जवाब दे रही थी|

करीब मिनट भर की ये होंठ चुसाई के बाद अंजलि ने "उम्म्म....मममहहह्णम्म" का स्वर निकाल अपने चचेरे भाई को रुकने का इशारा किया| अंजलि के चचेरे भाई ने kiss तोडा और अंजलि की आँखों में देखने लगा| फिर अगले ही पल उसने अपने अधीन हाथ की उँगलियों से अंजलि के निचले होंठ को पकड़ लिया और उसकी आँखों में देखते हुए उसकी प्यास को परखने लगा|



अपने निचले होंठ को यूँ पकड़े जाने पर अंजलि कामुकता की अग्नि में जलते हुए अपने भाई को देखने लगी और उसे आगे बढ़ने का मूक इशारा करने लगी| अपने चचेरी बहन का इशारा समझ अंजलि के चचेरे भाई ने अंजलि को पलंग पर बिठाया और उसे एकदम से पीछे धकेल कर गिरा दिया और खुद उसके ऊपर छ गया|


इधर अंजलि की कामुकता चरम पर थी इसलिए उसने सीधा अपने चचेरे भाई का लंड पजामे के ऊपर से पकड़ लिया और उसे धीरे-धीरे दबाने लगी| वहीं दूसरी तरफ अंजलि के चचेरे भाई को जल्दी थी ही नहीं, वो तो अंजलि की गर्दन को चूम रहा था...उसके जिस्म की महक को सूँघने में लगा हुआ था|




"बास...करो...भाई!" अंजलि सीसियाते हुए बुदबुदाई| अंजलि की चूत में लगी थी आग और से वहाँ अपने चचेरे भाई का डंडा चाहिए था|अगर मेरे साथ विदेवी देख कर वो इतनी गर्म न होती तो मजे से अपने चचेरे भाई की इस चुसाई और चुम्मियों का आनंद लेती|


"तो मेरी बहन को मेरा लंड चाहिए?" अंजलि का चचेरा भाई उसकी आँखों में देखते हुए एक शैतानी मुस्कान के साथ बोला, जिसके जवाब में अंजलि ने छोटे बच्चों की तरह हाँ में गर्दन हिलाई|

अंजलि के चचेरे भाई ने अपना पजामा नीचे सरकाया और अपना फनफनाता हुआ काला मूसल लंड बाहर निकाल दिया!

मैं अपनी ज़िंदगी में पहलीबार इतनी नज़दीक से एक आदमी का लंड देख रही थी और वो भी इतना बड़ा की डर के मारे मेरी चीख ही निकलने वाली थी की मैंने फौरन अपने होठों पर दोनों हाथ रख अपनी आवाज़ अपने गले में घोंट ली|


उधर कमरे के भीतर अपने भाई का काला-काला लंड देख अंजलि की चूत में जैसे सुरसुरी गूँज उठी, उसने आव देखा न ताव फट से अपनी कच्छी और पजामा निकाल कर दरवाजे की तरफ फेंक दिए| अंजलि के पजामे के निकलते ही मुझे उसकी काली-काली, बिना बालों वाली चिकनी चूत नजर आई और न चाहते हुए भी मैं उसकी खुली हुई चूत की तुलना अपनी अनछुई बुर से करने लगी| कहाँ उसकी काली-काली चूत और कहाँ मेरी 'पेटी पैक' गोरी-गोरी गुलाबी बुर!


खैर, कमरे के भीतर का तापमान अब बहुत बढ़ चूका था| दोनों चचेरे भाई-बहन मादरजात नंगे हो चुके थे और अब दोनों ने करनी थी चुदाई! अंजलि के चचेरे भाई ने अपना फौलादी लंड पकड़ कर पहले तो अंजलि की चूत के ऊपर रगड़ा और भी धीरे से उसकी चूत के भीतर सरका दिया|



मुझे नहीं लगा था की अंजलि की चूत पूरा पंड ले पाएगी मगर उसकी चूत इतनी खुल चुकी थी की वो अपने भाई का मूसल एकबार में ही जड़ तक पूरा ले गई!!!


इस समय मेरी अस्चर्य की कोई सीमा नहीं थी! मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था की इतनी छोटी सी चूत इतना बड़ा मूसल अपने भीतर समा सकती है?!

पहलीबार जड़ तक लंड अंदर ठाँसने के बाद अंजलि के चचेरे भाई ने 3-4 थाप बड़ी जोरदार मारे! वो साला अपना लंड एक बार में पूरा निकालता और फिर एक ज़ोर के झटके के साथ अंजलि की चूत में ठाँस देता!



उसका हर एक झटका पहले वाले से तीव्र होता और बेचारी अंजलि का पूरा शरीर मानो काँप सा जाता| "सससस आह!" कर के अंजलि बार-बार सिसकारती और उसकी ये सिसकारियाँ सुन अंजलि के चचेरे भाई के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ जाती|


"ससस...तेज़...कर....आह!!" अंजलि सीसियाते हुए बोली| उसकी आवाज़ सुनकर ऐसा लगता था मानो वो चुदाई के लिए अपने ही चचेरे भाई से मिन्नत कर रही हो| मुझे हैरानी हो रही थी की भला एक लड़की चुदाई के लिए मिन्नत कैसे कर सकती है?! परन्तु मेरी इस हैरत का जवाब मुझे समय आने पर मिल ही गया|


बहरहाल, अपनी प्यारी चचेरी बहन की बात मानते हुए अंजलि के चचेर भाई ने अपने लंड को पिस्टन की तरह चलाना शुरू किया| जैसे एक ट्रैन धीरे-धीरे अपनी गति पकड़ती है, वैसे ही अंजलि का चचेरा भाई अपनी गति पकड़ रहा था|

शुरूआती घस्से कुछ धीमे थे, अंजलि का चचेरा भाई पूरा लंड अंदर ठाँसता और फिर पूरा बाहर निकाल कर फिर जड़ तक अंदर ठाँस देता| वहीं अंजलि को जैसे ही अपने चचेरे भाई का लंड अपनी चूत में पूरा महसूस होता वो अपने स्खलन की तरफ एक कदम बढ़ जाती और अपने चचेरे भाई के दोनों कूल्हों पर अपने दोनों हतहों के नाखून धँसा कर उसे अपने से और ज्यादा चिपका लेती|



अंदर जब चुदाई की भट्टी जल रही हो तो ज़ाहिर है की उसकी आँच बाहर तक आएगी ही| कमरे के बाहर छुप कर खड़ी मैं इस लाइव चुदाई को देख वासना से जल रही थी| अंजलि के चचेरे भाई का लंड देख जो मैं पहले डर गई थी, वो डर अब कहीं गायब हो चूका था| मेरा दाहिना हाथ अपने आप सरकते हुए मेरी बुर के ऊपर पहुँच गया था और मैंने पाजामे के ऊपर से ही अपनी बुर को ज़ोर से रगड़ना शुरू कर दिया था|



उधर कमरे के भीतर, दोनों चचेरे भाई-बहन के भीतर चुदाई की आग तेज़ हो रही थी जिसके परिणाम स्वरूप, अब चुदाई वाली ये ट्रैन अपनी पूरी रफ़्तार पकड़ चुकी थी| अंजलि के चचेरे भाई ने अंजलि दोनों टांगें मोड़ कर अपने सीने से टिकाई और लम्बे-लम्बे...जोरदार धक्के लगाने लगा|



धक्कों की रफ़्तार इतनी तेज़ थी की अंजलि के स्तन बड़ी तेज़ी से आगे-पीछे डोल रहे थे| अंजलि के इन स्तनों को यूँ झूमते देख अंजलि के चचेरे भाई का आनंद दुगना हो रहा था इसलिए उसने एकदम से अपनी तीव्रता बढ़ा दी|

"आह....माँ....ममम....आह्ह...ससस....और...ररर...तेज़..ज़्ज़्ज़...!!!" अंजलि अपनी इस ज़ोरदार ठुकाई से मदमस्त हो कर कराही| उधर अपनी चचेरी बहन की ये कराह सुन अंजलि के चचेरे भाई के इंजन में जैसे दुगनी जान आ गई और वो बड़बड़ाते हुए बोला; "फफ....ककक....आह...बहन....चोद....हम्म्म!!!" अंजलि के चचेरे भाई के मुँह से ये गाली सुन मुझे हँसी आ गई; "साला कमीना खुद अपनी चचेरी बहन को चोद रहा है और खुद ही को गाली दे रहा है!" मैं खुसफुसाते हुए बोली|


वहाँ कमरे के भीतर 10 मिनट के अंदर ही चुदाई अपने आखरी अंजाम पर पहुँच गई और अंजलि झड़ने के करीब पहुँच गई| बिस्तर पर बिछी चादर को अपने दोनों हाथों में जकड़ अंजलि झड़ गई; "आंन्ह्ह...माँ....मममम...मैं..." इतना बोल अंजलि बहुत बुरी तरह झड़ी और एकदम से पस्त हो कर किसी लाश की तरह ढीली हो गई!

उधर अंजलि का चचेरा भाई भी झड़ने के करीब था इसलिए उसने अपना लंड अपनी चचेरी बहन की चूत से निकाला और हाथ से मुट्ठियाते हुए झड़ने लगा तथा अपना सारा माल अंजलि की चूत के ऊपर गिरा बगल में गिर कर पस्त हो गया|




कमरे के भीतर दोनों चचेरे भाई-बहन झड़े और इधर कमरे के बाहर मेरा भी पानी छूट गया जिससे मेरी पैंटी गीली हो गई| इस लाइव चुदाई को देखने के बाद मुझे संतुष्टि मिल गई थी इसलिए मैं नीचे आ गई और बाथरूम में जा कर फ्रेश हो गई|


जब बुर शांत हुई तो दिमाग ने काम करना शुरू किया और मैंने अंजलि का फ़ोन जिससे मैंने ये लाइव चुदाई रिकॉर्ड की थी उसे देख मेरे चेहरे पर शैतानी भरी मुस्कान आ गई!

जारी रहेगा अगले भाग में!
Bdiya update guruji :love2:
Garma garam :hot:


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Asleel gifs :D
Vse ye kis video ka scene h :hide:
 
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Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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भाग - 8

अब तक आपने पढ़ा:


जब बुर शांत हुई तो दिमाग ने काम करना शुरू किया और मैंने अंजलि का फ़ोन जिससे मैंने ये लाइव चुदाई रिकॉर्ड की थी उसे देख मेरे चेहरे पर शैतानी भरी मुस्कान आ गई!


अब आगे:

10 मिनट बाद दोनों चचेरे भाई-बहन ऊपर से एक साथ उतरे, अंजलि का चचेरा भाई घर से बाहर निकल गया और अंजलि दरवाजा बंद कर मेरे पास आ गई| दोनों चचेरे-भाई बहन भोग-विलास का जो खेल खेलकर आये थे उससे अंजलि के चेहरे पर ग्लानि का कोई भाव नहीं था...थी तो केवल संतुष्टि...सुकून!



"बड़ी खुश लग रही है तू?" मैंने आँखें तार्रेर कर अंजलि को देखते हुए पुछा| लेकिन मेरी बात सुन उसके चेहरे पर एक अर्थपूर्ण मुस्कान आ गई| अंजलि ने कोई जवाब नहीं दिया था इसलिए मैंने जानबूझ कर बात को कुरेदते हुए फिर पुछा; "खिला आई अपने भैया को...?" मैंने अपने सवाल पर बहुत ज़ोर देते हुए पुछा और जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी|

मेरे सवाल से अंजलि थोड़ी चौकन्नी हो गई थी इसलिए उसने बात बदलने की कोशिश की; "हाँ| अच्छा तू बता, तूने देख ली सारी वीडियो या अभी बाकी है?...वैसे एक और वीडियो है जो मैंने तेरे लिए ख़ास बचा कर रखी थी|" अंजलि ने अपना फ़ोन माँगा ताकि वो एक और ब्लू फिल्म का लालच दे कर मेरा ध्यान भटका दे| लेकिन मैं उसके झाँसे में नहीं आई और उसके फ़ोन से रिकॉर्ड की हुई उसी की ब्लू फिल्म उसे चला कर देते हुए बोली; "कहीं तू इसकी बात तो नहीं कर रही?"



जैसे ही अंजलि ने अपने मोबाइल में अपना चुदाई वाला वीडियो देखा तो वो एकदम दंग रह गई और आँखें फाड़े मुझे घूरने लगी! परन्तु मेरे चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी, ऐसी मुस्कान जो किसी जेलर के चेहरे पर होती है जब उसकी जेल में कोई मशहूर गुनहगार आता है|

"कब से चल रहा है ये?" मैंने थोड़ी आवाज़ कड़क करते हुए पुछा तो अंजलि का सर शर्म से झुक गया| अंजलि को मैंने सेक्स की गुरु माता माना था, लेकिन विधि की विडंबना तो देखिये की आज एक शिष्या ही अपनी गुरु माता पर चढ़ बैठी थी!



"ए...एक साल...से!" अंजलि घबराते हुए बोली| अंजलि को डर इस बात का नहीं था की मैंने उसकी और उसके चचेरे भाई की चुदाई की वीडियो बनाई, क्योंकि ये वीडियो तो उसी के फ़ोन में थी जिसे वो जब चाहे डिलीट कर सकती थी| उसे डर था तो इस बात का की कहीं मैं ये बात सबको न बता दूँ जिससे वो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी|



"तुझे शर्म नहीं आई अपने ही चचेरे भाई के साथ मुँह काला करते हुए?" मैंने गुस्से से पुछा| जो लड़की अभी कुछ देर पहले छुप कर अपनी ही दोस्त की चुदाई का खेल देख रही थी और अपनी बुर खुजा रही थी वो एकदम से सती सावित्री बन गई थी|



इसके बाद शुरू हुई अंजलि की सेक्स भरी दास्ताँ;



"छुट्टियों में हम सब मामा के घर गए थे और वहीं आकाश भैया (अंजलि का चचेरा भाई) भी हमसे मिलने आ गए| आकाश भैया का घर पास ही के गॉंव में था और मामा के घर के पास उनका एक खेत था इसलिए आकाश भैया अक्सर आते रहते थे|

सुबह भैया और मैं खेतों पर घूमने गए थे की तभी बातों-बातों में आकाश भैया ने मुझसे पुछा; 'तुझे कुश्ती देखनी है?' मुझे लगा वो दो पहलवानों वाली कुश्ती देखने को पूछ रहे हैं इसलिए मैंने कह दिया की; 'मैंने टीवी पर WWF देखि है!' मेरा अबोधपना देख आकाश भैया ज़ोर से हँसने लगे| 'अरे बुद्धू वो तो दो आदमियों की कुश्ती होती है, मैं तो एक आदमी और एक औरत की कुश्ती की बात कर रहा हूँ!'



मैं अच्छी तरह से जानती थी की उनका क्या मतलब है मगर लाइव छुडाईदेखने का मौका मैं कैसे छोड़ती इसलिए मैंने एकदम से अबोध बनने का नाटक किया और बोली; 'वो क्या होती है?' मुझे नासमझ समझ आकाश भैया ने मेरा फायदा उठाने की सोची और बोले; 'अरे ये कुश्ती नहीं देखि तो तूने कुछ नहीं देखि! चल ऐसा कर आज दोपहर को मैं तुझे ये कुश्ती दिखाता हूँ, लेकिन ध्यान रहे ये बात किसी का न बोलियो वरना हम दोनों की तुड़ाई होगी!'



दोपहर को खाना खाने के बाद मम्मी मम्मी के साथ पड़ोस में गई थीं, पापा मामा जी के साथ खेतों पर थे और मैंने घर रह कर सोने का ड्रामा किया था| कुछ देर बाद आकाश भैया घर आये और मुझे अपने साथ चलने का इशारा किया| पहलीबार लाइव चुदाई देखने को मिलेगी ये सोच-सोच कर ही मेरा दिल कुलाचें मार रहा था| मन में हज़ारों कल्पनाएं चालु थीं की चुदाई ऐसी होगी...लंड ऐसा होगा...चूत ऐसी होगी!



दोपहर का समय था इसलिए ज्यादातर लोग या तो बाग़ में छाओं तले आराम कर रहे थे, या खेतों में छपर तले बैठे ऊँघ रहे थे| सड़क पर कोई था ही नहीं इसलिए सड़क पूरी तरह सूनसान थी जिसे किसी ने हम दोनों भाई-बहन को चुपके-चुपके निकलते हुए नहीं देखा|

10 मिनट चलकर हम आखिर एक खेत में पहुँचे जहाँ भुट्टे की फसल तैयार खड़ी थी| उस खेत में एक छप्पर था जिसके नीचे खेत का मालिक आराम किया करता था| इस खेत के पीछे वाला खेत मेरे चाचा यानी की आकाश भैया का था| हम दबे पॉंव आगे बढे और छप्पर के पीछे की दिवार के पास पहुँच कर खामोश खड़े हो गए|



छप्पर की ये दिवार छप्पर की ही तरह सूखी फसलों से बुनाई कर बनाई गई थी इसलिए हमारे लिए अंदर देखने के लिए सुराख खोजना आसान था| आकाश भैया उकड़ूँ हो कर बैठ गए और नीचे वाले छेड़ में से भीतर का नज़ारा देखने लगे| वहीं मैं खड़ी थी और ऊपर के छेड़ से छापकर के अंदर का नज़ारा ले रही थी| जो बात मैंने गौर नहीं की वो ये की चूचे आकाश भैया के सर पर अपना वजन डाले थे!



उधर छप्पर के भीतर बड़ा ही गरमा-गर्म माहौल तैयार था| छगन काका मेरे मामा जी के दोस्त थे और वो जिस औरत को पेलने वाले थे वो कोई और नहीं बल्कि मेरी ही मामी जी थीं!!!



मामी जी: ससस...बहुत खुजाती है ये तेरे नाम से!

मेरी मामी जी सीसियाते हुए अपनी चूत साडी के ऊपर से खुजाते हुए बोलीं|

छगन काका: तेरी ये खुजली एक न एक दिन मरवायेगी!

छगन काका अपना लंड धोती के ऊपर से खुजाते हुए बोले|
मामी जी: जब मारेगी तब मारेगी, अभी तो तू मेरी मार...ये मूई कल रात से पानी बहा रही है!

इस समय मामी चुदाई के लिए बहुत ज्यादा उतावली थीं इसलिए उन्होंने फट से अपनी साड़ी ऊपर उठाई और अपनी चूत का मुँह खोल कर छगन काका को दिखाते हुए चुदाई की माँग कर रही थीं|

छगन काका: अरे कल तेरी नन्द के नाने से पहले ही तो चोदा था, रात भर में पानी बहाने लगी!

छगन काका ने अपनी धोती नोच कर चारपाई पर फेंक दी और अपने लैंड को हाथ में ले कर ताव देते हुए बोले|



मैं आज पहलीबार एक आदमी का लंड देख रही थी| वैसे इसे लंड की जगह लौड़ा कहना ज्यादा सही होगा क्योंकि ये साला था ही इतना बड़ा! काले रंग का पूरा हल्बी लौड़ा जो साला इतना मोटा था की किसी भी चूत की धज्जियाँ उदा दे!

सच कहूँ तो उस काले लौड़े को देख कर मैं ऐसी बौरा गई थी की उस पल मैंने कल्पना कर ली थी की अगर ये लौड़ा मेरी छोटी सी चूत में गया तो मेरी चूत का तो भोंसड़ा बन जाएगा!



खैर, उधर छप्पर के भीतर काका-मामी मादरजात नंगे हो चुके थे| काका के लौड़े को देख जो चुनचुनाहट मेरी चूत में हो रही थी, वही चुनचुनाहट ममी जी की चूत में हो रही थी| उन्होंने आगे बढ़ते हुए काका के लौड़े को पकड़ा और अपना मुँह उस पर लगा कर चूसने लगीं!




काका का लौड़ा इतना बड़ा था की ममी जी के मुँह में पूरा आ ही नहीं सकता था इसीलिए मामी जी उनके लौड़े के सुपाड़ी को चाट-चूस रहीं थीं ताकि ये हल्बी लौड़ा आराम से उनकी चूत में समा जाये!

छप्पर के भीतर का ये दृश्य देख कर मेरा बुरा हाल होने लगा था, सारे जिस्म में जैसे चीटे काटने लगे थे इसलिए मेरा एक हाथ मेरी चूत पर चला गया और मैं लेग्गिंग के ऊपर से ही अपनी चूत को धीरे-धीरे खुजाने लगी| मेरे जैसा ही हाल आकाश भैया का था, उन्होंने भी अंदर का दृश्य देख कर अपनी पैंट के ऊपर हाथ फेरना शुरू कर दिया था|


छगन काका: अब बस भी कर, जल्दी से निपटा लेते हैं वरना तेरी नन्द यहीं आ जाएगी!

छगन काका ने अपना लौड़ा मम्मी जी के हाथों से छुड़ाया और उन्हें चारपाई पर लेटने को कहा| मामी जी चारपाई पर हमारी ही तरफ करवट ले कर लेटी थीं जिससे हम दोनों भाई-बहन को उनकी चूत साफ़-साफ़ नज़र आ रही थी|



मामी जी की काली-काली...झाटों वाली चूत थी और ऐसी ही चूत मैंने अपने स्कूल में देखि थी| दरअसल एक दिन मैं बाथरूम में घुस रही थी की तभी चपरासन आंटी बाथरूम में अकेली खड़ी हो कर अपनी चूत पर पानी मार रही थीं! मुझे देखते ही उन्होंने फटाफट कपड़े पहने और निकल गई! सच कहूँ तो मुझे उस वक़्त शक हुआ था की कहीं अभी-अभी चपरासी उनकी मार के तो नहीं गया?!

खैर, मामी जी को लगी थी चुदास इसलिए वो चारपाई पर फौरन लेट गईं और काका को जल्दी से अपना हथियार डालने का इशारा करते हुए बोलीं;

मामी जी: अरे वो इतनी जल्दी न आने वाली, उसे मैं तेरी ही लुगाई के साथ बिठा कर हगने का बहाना कर के आई हूँ|

ये कहते हुए मामी जी अपना थूक अपनी चूत पर मलने लगीं|

छगन काका: वाह री! किसी ने सही कहा है की जब चुदास लगी होती है तो इंसान का दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज़ चलता है!

छगन काका ने मामी जी की चतुराई की तारीफ की और अपना काला हल्बी लौड़ा एक ही बार में मामी जी की चूत में पेल दिया!


‘हाय!!!! आराम से!!!! आह्ह...हहममम..सससससस!!!’ मामी सीसियाई और अपनी चूत के ऊपर के हिस्से यानी अपने भगनासे को ऊँगली से रगड़ने लगीं ताकि काका के लौड़े के घुसने से उतपन्न हुए दर्द को मजे में बदल सकें!


‘क्या करूँ मेरी रानी....तेरी चूत है ही इतनी गरम की इसे देखते ही मैं बेकाबू हो जाता हूँ!' काका अपना पूरा लौड़ा मामी की चूत में पेवस्त करते हुए बोले|


मैंने आजतक जितनी भी कहानियाँ पढ़ी थीं उनमें हीरो अपनी हेरोइन को ताबड़तोड़ चोदता था| मैं इस वक़्त उसी उम्मीद में थी की छगन काका अपना लौड़ा मामी की चूत में पेलते ही ज़ोर-ज़ोर से पेलने लगेगा और मामी जी की चीखें निकलने लगेंगी मगर हुआ कुछ अलग ही!

छगन काका का लौड़ा तो बहुत मोटा-तगड़ा था मगर उनकी चुदाई में वो जोश नहीं था जिसकी मैं उम्मीद कर रही थी| काका ने अपना पूरा लौड़ा एक ही बार में पेल तो दिया था मगर वो बस आधा लौड़ा ही निकालते और बड़े धीरे से मामी जी की चूत में पेल देते|




परन्तु इतने भर से ही मामी जी के मुँह से सिसकारियों की सीटी बजने लगी थी; 'ससस...हाय....आह्ह...ह्म्मम्स...सननं..मममम!!!!'



दस मिनट इसी आसन में चोदने के बाद काका ने मामी जी को घोड़ी बनाया और सट से अपना लौड़ा उनकी चूत में उतार दिया| मुझे लगा इस बार पक्का धुएँदार चुदाई होगी मगर वो तो मामी जी के ऊपर ही लोट गए और आधा लौड़ा निकाल कर ही पेलते रहे| हैरानी की बात थी की मामी जी को इसी में बहुत मज़ा आ रहा था और वो आनंद में डूबती हुई सीसियाये जा रही थीं|

उम्र का तकाज़ा था शायद, पाँच मिनट बीते और काका पहुँच गए अपने चरम पर और उन्होंने अपना वीर्य मामी की चूत में भर दिया और उठ कर बैठ गये|



चुदाई का ये प्रोग्राम खत्म होते है आकाश भैया ने मेरी तरफ देखा और मुझे अपनी चूत को सहलाते देख उनके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई| जब मेरी उनसे नज़र मिली तो मुझे आभास हुआ की उन्होंने मुझे अपनी चूत रगड़ते देख लिया है इसलिए मैं झेंप गई और नजरें चुराते हुए घर की ओर चल दी|

आकाश भैया: आरी सुन तो?!

आकाश भैया दौड़ कर मेरे पास आये और फुसफुसाते हुए बोले|

मैं: क्या?

मैंने नजरें नीचे गाड़े हुए पुछा|

आकाश भैया: कैसी लगी कुश्ती?

भैया का सवाल सुनकर मैं और बुरी तरह झेंप गई और सोचने लगी क्या जवाब दूँ?! हाँ कहूँगी तो बात मेरे चरित्र पर आएगी और न कहूँगी तो कहेंगे की अगर अच्छी नहीं लगी तो 20 मिनट इतनी गौर से अंदर का माजरा देखते हुए अपनी चूत क्यों खुजा रही थी?!

अब कुछ न कुछ तो जवाब देना था सो मैंने एकदम से बात ही पलट दी;

मैं: आपको पता था न की मामी जी और छगन काका का चक्कर चल रहा है?

मेरी चाल कामयाब हुई और आकाश भैया अपना सवाल भूल गए;

आकाश भैया: मेरा खेत उनके खेत के पीछे ही है, एकदिन मैं ऐसे ही यहाँ से गुज़र रहा था तो सोचा की एक बार खेत की हालत देख लूँ| तभी अचानक से उस दिन मैंने तेरी मामी और छगन काका का ये लप्पा-झप्पा देखा| अगले दिन मैं इसी टाइम फिर छुपते-छुपाते आया और फिर वही गरमा-गर्म काण्ड! बा फिरतो जब मन करता है इसी टाइम आ जाता हूँ और ये लाइव कुश्ती देख कर खुद को शांत कर लेता हूँ|

आकाश भैया ने 'शांत' शब्द पर बड़ा ज़ोर डालते हुए कहा| मैं उनकी मंशा समझ गई थी की वो मेरे साथ थोड़ा फ्री होना चाहते हैं ताकि वो मेरे नज़दीक आ सकें इसलिए मैंने उन्हें रोकने के लिए सदाचार की बात छेड़ दी;

मैं: सबकुछ जानते हुए भी आप खामोश क्यों रहे? मामी जी हमारे परिवार का ही एक हिस्सा हैं, उनकी बदनामी मतलब मेरी मम्मी की बदनामी और मेरी मम्मी की बदनामी मतलब हमारे घर की बदनामी! आपको उन्हें (मामी जी को) समझना चाहिए था की वो ये सब न करें, या फिर आप छगन काका को समझा सकते थे की वो मामी जी से दूर रहे मगर आप तो यहाँ दोनों के कर्म-कांडों का आनंद ले रहे हो!

मैंने आकाश भैया को ऐसे भाषण दिया मानो मैं कोई साध्वी हूँ|

आकाश भैया: इस सब में मेरी कोई गलती नहीं है! गलती है तो तेरे मामा जी की, अगर वो अपनी बीवी को संतुष्ट नहीं कर पाएंगे तो तेरी मामी जी को बाहर तो मुँह मारना ही पड़ेगा न?! सारा दिन तो तेरे मामा जी खेतों में गधा मजदूरी करते हैं, घर आ कर वो थोड़ी सी मेहनत अपनी बीवी पर भी कर देते तो तेरी मामी जी को घर की चौखट लाँघनी नहीं पड़ती|

जिस्म की इस आग को हम आम इंसान नहीं काबू कर सकते, इसके लिए तो मुनियों का तपोबल चाहिए जो हम जैसे तुच्छ इंसानों के पास नहीं होता| ...और जो तू कह रही है की मुझे बीच में पड़ कर तेरी मामी जी या छगन काका को समझना चाहिए था, उससे पता भी है क्या होता? तेरी मामी जी कभी मुझसे नजरें नहीं मिला पातीं, चरण काका भी मुझसे मुँह छुपाये फिरते? मैं खामोश हूँ तो सिर्फ इसलिए क्योंकि मेरी ख़ामोशी से मामी जी को ख़ुशी के चंद पल मिल रहे हैं और अगर उन दोनों को चोरी-छुपे देख कर मुझे थोड़ा सा आनंद मिल जाता है तो इसमें किसका क्या जाता है?

आकाश भैया का दिया ये प्रवचन सुन मेरे पास कुछ कहने के लिए नहीं रह गया था| देखा जाए तो वो कह तो सच ही रहे थे, इंसान की 'काम' इच्छा जब बढ़ जाती है तो वो सही-गलत नहीं समझता|



मेरे पास कहने को कुछ नहीं था इसलिए मैं फिर से सर झुकाये घर की ओर चलने लगी की तभी आकाश भैया ने मुझे पीछे से आवाज़ दे कर रोका;

आकाश भैया: अरे छोड़ ये सही-गलत की बातें! अच्छा ये बता की तेरा मन करता है?

आकाश भैया ने मुस्कुराते हुए मुझसे पुछा| मैं अच्छी तरह जानती थी की उनके इस सवाल का असली मकसद क्या है, वो चाहते थे की मैं उनसे बात करते-करते खुल जाऊँ और फिर मेरा फायदा उठाएं इसलिए मैंने बचने के लिए झूठ बोल दिया;

मैं: नहीं!

परन्तु आकाश भैया ने कुछ देर पहले मुझे अपनी चूत सहलाते हुए देख लिया था इसलिए वो मेरा झूठ पकड़ते हुए बोले;

आकाश भैया: झूठ तो मत बोल यार! अभी कुछ देर पहले तो तू काका का देख कर अपनी 'वो' सहला रही थी!

जैसे ही आकाश भैया ने मेरा झूठ पकड़ा मैं शर्मा के मारे लालम-लाल हो गई और सर झुका कर उनसे बचने की तरकीब सोचने लगी| मेरे लाल-लाल गाल देख आकाश भैया ने मेरे दोनों कन्धों पर अपने हाथ रख धीरे से दबाया| उनके इस दबाव से मेरे जिस्म में झुनझुनी शुरू हो गई और कँधे से लेकर मेरे चूचों की तरफ के रोएँ खड़े होने लगे!

मैं: छ..छोडो...घर जाना है...

मैंने न चाहते हुए भी उन्हें एक प्यारी सी मुस्कान दे दी और घर जाने को पलटी| मुझे नहीं पता था की मेरा यूँ शर्माना और प्यारी सी मुस्कान देना 'ग्रीन सिग्नल' साबित होगा| आकाश भैया ने मेरी बाजू पकड़ ली और मेरी ठुड्डी ऊपर कर मेरी आँखों में देखते हुए बोले;

आकाश भैया: अंजलि...तू अब बड़ी हो चुकी है और तुझे ये सब बातें पता होनी चाहिए| मैंने तुझे ये सब इसलिए दिखाया ताकि तू मुझसे खुल कर बात कर सके| देख तेरी इस उम्र में लड़कियाँ गलत रास्ते पर भटक जाती हैं और फिर उनकी तथा उनके घर वालों की बहुत बदनामी होती है|

हम दोनों बचपन से साथ खेले हैं और हमेशा सुख-दुःख बाँटते आये हैं इसलिए प्लीज मुझसे कुछ मत छुपा|

पता नहीं कैसे पर मैं आकाश भैया के मोहजाल में फँस गई थी और उनपर विश्वास कर बैठी थी|

मैं: यहाँ नहीं...घर चल कर बात करते हैं|

मैंने शर्माते हुए कहा| मेरा ये शर्माना इस बात की ओर इशारा कर रहा था की मैं अब आकाश भैया के जाल में फँसती जा रही थी|


जारी रहेगा अगले भाग में!
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भाग - 9

अब तक आपने पढ़ा:


मैंने शर्माते हुए कहा| मेरा ये शर्माना इस बात की ओर इशारा कर रहा था की मैं अब आकाश भैया के जाल में फँसती जा रही थी|


अब आगे:


हम
दोनों भाई-बहन घर लौट आये, घर पर कोई नहीं था इसलिए हम अंदर के कमरे में आ गए| कमरे में एक पलंग था और आकाश भैया ने सबसे पहले उस पर लेट कर कब्ज़ा कर लिया तथा मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया| घर में हम दोनों अकेले थे और हमने करनी थी सेक्स से जुडी बातें, ये सोच कर ही मेरे दिल में धुक-धुक होने लगी थी!



मैंने तेरे (कीर्ति के) आलावा किसी से सेक्स की बताएं नहीं की थीं इसलिए थोड़ी सी चुल्ल तो मुझे भी थी आकाश भैया से ये बातें करने की, यही कारण था की मैं आकाश भैया के पैरों की तरफ बैठ गई|

आकाश भैया: अच्छा बता अब, तूने अभी तक क्या-क्या वाइल्ड (wild) किया है?

आकाश भैया ने सीधा सवाल पुछा तो मैंने शर्माते हुए कह दिया;

मैं: बस 'वैसी कहानियों वाली' किताबें पढ़ी हैं|

मेरा सवाल सुन भैया हँस पड़े और बोले;

आकाश भैया: मतलब की तूने अभी तक बस थ्योरी (theory) पढ़ी है, प्रैक्टिकल बस आज पहलीबार देखा!

भैया की इस बात ने मुझे भी हँसा दिया था इसलिए मैं भी हँस पड़ी|

मैं: मैं आपकी तरह बेशर्म थोड़े ही हूँ की छुप-छुपकर ये सब देखूँ!
मैंने आकाश भैया को प्यारभरा ताना मारते हुए कहा| मेरी बात सुन भैया के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई और उन्हें अब मुझसे बात आगे बढ़ाने का मौका मिल गया;

आकाश भैया: अगर मैं छुप-छुपकर न देखता तो तुझे ये ज्ञान कैसे मिलता?

आकाश भैया ने शैतानी मुस्कान लिए हुए तर्क दिया| आकाश भैया की इस बात ने मुझे निरुत्तर कर दिया था इसलिए चेहरे पर मुस्कान लिए हुए मैं सर झुका कर खामोश हो गई|



मेरी ये ख़ामोशी बात को यहीं समाप्त कर देती इसलिए आकाश भैया ने बात आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मुझे छुआ| अपना बायें हाथ आगे बढ़ाते हुए उन्होंने मेरे घुटने पर रख दिया और उसे धीरे-धीरे मीसने लगे| उनके इस मीसने का असर मेरे जिस्म पर दिखाने लगा था| मेरे जिस्म में वासना की एक चिंगारी जल चुकी थी|

आकाश भैया: जब मैं छोटा था तो बाजार से चम्पक किराए पर ला कर पढता था| जब बड़ा हुआ तो पता चला की वही दुकानदार सेक्सी कहानियों वाली किताबें भी बेचता है| जब तेरी उम्र का हुआ तो उससे सेक्सी कहानियों वाली किताबें खरीद कर पढ़ने लगा|

कहानी पढ़ते-पढ़ते मेरा वो खड़ा हो जाता था और मेरा हाथ पाने-आप वहाँ चला जाता था| फिर तो जबतक हिला न लूँ कमरे से बाहर नहीं निकलता था वरना सबको मेरी पैंट में बड़ा सा उभार दिख जाता|

आकाश भैया ने बताओं ही बातों में अपने लंड का संक्षिप्त में विवरण दे कर मेरे मन में उनका लंड देखने की प्यास जगा दी थी और अपनी इसी प्यास में बहते हुए मैं भी मुँह फाड़ कर बोल पड़ी;

मैं: जब रात में मम्मी-पापा सो जाते हैं तब मैं किताब ले कर पढ़ती हूँ और शांत हो जाती हूँ!

ये बकने के बाद मुझे अपनी बेवकूफी समझ आई और शर्म के मारे मेरे दोनों गाल लाल हो गए तथा मेरा सर फिर झुक गया!



आकाश भैया बस इसी मौके का इंतज़ार कर रहे थे इसलिए उन्होंने मौके पर चौका मारा और एकदम से बोले; ‘अच्छा एक बात बता, देख झूठ न बोलियो...तुझे काका का लंड कैसा लगा?’ मुझे उम्मीद नहीं थी की आकाश भैया इतना धड़ल्ले से मुझसे सवाल पूछेंगे इसलिए मैं अवाक हो कर उन्हें देख रही थी|

वहीं मुझसे कोई उत्तर न पाकर उन्होंने अपना हाथ मेरे घुटने से ऊपर की ओर यानी मेरी जाँघ तक पहुँचा दिया और मेरी जाँघ को धीरे-धीरे सहलाते हुए बोले; ‘बता न?’



आकाश भैया के मेरी जाँघ सहलाने से मेरी चूत के पास सनसनाहट होने लगी थी और मेरा अब मेरी जुबान पर काबू नहीं था; ‘हाँ!’ मैंने बड़े संक्षेप में जवाब दिया और आकाश भैया के हाथ पर अपना हाथ रख उन्हें रुकने का इशारा करने लगी|

भले ही मैं उन्हें रुकने का इशारा कर रही थी मगर मेरा मन चाहता था की भैया रुके न और धीरे-धीरे मेरे पूरे जिस्म को सहलाएँ! लेकिन क्या करें हम लड़कियों को थोड़ा सटी-सावित्री बनने का ढोंग तो करना ही पड़ता है वरना लड़कों लगता है की हम जाने कितनी बार ठुकवा चुकी हैं!



खैर, मेरा जवाब सुन आकाश भैया के दिल की रफ़्तार तेज़ हो गई थी| जिस बुलबुल को फँसाने के लिए उन्होंने जाल फेंका था वो बुलबुल अब उनके जाल में फँस चुकी थी| अब तो भैया को बस जाल को समेत कर बुलबुल को नोच खाना था|

'काका का लंड तो तूने दूर से देखा था....मेरा नज़दीक से देखेगी?' आकाश भैया का ये खुला प्रस्ताव सुन मैंने बिना सोचे-समझे हाँ कह दिया तथा गर्दन हाँ में हिलाते हुए अपनी स्वीकृति दे दी!



बस फिर क्या था, आकाश भैया ने मेरी जाँघ सहलानी छोड़ी और अपनी पैंट की ज़िप खोल कर अपना पहले से खड़ा लंड पैंट से बाहर निकाल लिया|




आकाश भैया का लंड तो काका के लौड़े से भी बड़ा था मगर वो काका जितना मोटा नहीं था!



बहरहाल, अपनी आँखों के सामने इतना विकराल मोटा लौड़ा फनफनाते हुए देख मेरी आँखें हैरत के मारे चौड़ी हो गईं! आकाश भैया के लौड़े में पता नहीं क्या जादुई ताक़त थी की मैं उसकी तरफ खींची चली गई और उसे अपने दाएँ हाथ से पकड़ लिया| भैया के लौड़े को हाथ में पकड़ते ही मुझे ऐसा लगा मानो वो ससुरा साँस ले रह हो क्योंकि मुझे अपनी हथेली में उस भयंकर लौड़े के दिल की धड़कन महसूस हो रही थी|

'कैसा है?' आकाश भैया ने मुस्कुराते हुए पुछा तो मेरी शर्म के मारे हालत खराब हो गई| चेहरा और कान दोनों एकदम सुर्ख लाल हो गए थे और मुँह से शब्द नहीं फूट रहे थे इसलिए मैंने बस हाँ में सर हिला दिया|



मेरे चहरे के हाव-भाव देख कर भैया समझ गए थे की मेरे भीतर वासना की आग जल रही है| इसी आग को और भड़काने के लिए भैया ने मुझे अपना लौड़ा सहलाने को कहा| अब मैं तो पहले ही सेक्स की प्यासी हो चली थी इसलिए मैंने उनका लौड़ा धीरे-धीरे सहलाना शुरू किया| मैं लौड़े की चमड़ी को धीरे-धीरे ऊपर-नीचे कर रही थी| जैसे ही लौड़े की चमड़ी नीचे होती तो भैया के लौड़े का सुपाड़ा सामने आता और उसी के साथ आती एक तेज़ गंध! ये गंध ऐसी थी जो मेरे नथुनों से होते हुए मेरे दिल में समा रही थी और मुझे हर पल बहका रही थी|

इस महक से मैं इस कदर बहकने लगी थी की मेरी भैया के लौड़े पर पकड़ हर पल सख्त होती जा रही थी| कमाल की बता ये है की भैया के लौड़े पर मेरी पकड़ जितनी कसती जा रही थी उतना ही भैया का लौड़ा फुँफकार कर सख्त होता जा रहा था|

मेरी उँगलियों और आकाश भैया के लौड़े में जैसे होड़ लगी थी की किस्में ज्यादा ताक़त है?!





मुझ गर्माते देख भैया उठ के बैठे और अपने दोनों हाथों को मेरे दोनों गालों पर रख मुझे अपनी तरफ धीरे से खींचा तथा मेरे होठों को अपने होठों की कैद में ले कर धीरे-धीरे चूसने लगे!



आकाश भैया के इस एक kiss ने जैसे मेरे जिस्म में विस्फोट किया और मैं सबकुछ भूलकर, बेकाबू हो कर उनके होठों का रस निचोड़ने लगी| मेरी आक्रामकता देख आकाश भैया समझ गए की मैं अब चुदने के लिए तैयार हूँ इसलिए उन्होंने देरी न करते हुए हमारा kiss तोडा और मेरी आखों में देखने लगे| मेरी आँखों में चुदाई के लाल डोरे तैरने लगे थे, ये तो मेरे अंदर थोड़ी शर्म बची थी जो मैंने अभी तक भैया को अपने ऊपर चढ़ने को नहीं कहा था!



चुदाई की आग तो आकाश भैया के अंदर भी लगी हुई थी, फिर मैं तो वैसे भी कुँवारी थी...मतलब कच्चा माल जिसे चखने को वो मरे जा रहे थे| मेरा हाथ पकड़ भैया मुझे घर के पीछे वाले मढ़ा (छप्पर) जिसमें भूसा रखा था वहाँ खींच लाये| दोपहर के इस समय जानवरों को खाना तो देना नहीं होता था इसलिए ये जगह चुदाई के लिए सबसे सुरक्षित थी| ऊपर से यहाँ मेरी चीख पुकार सुनने के लिए सिवाए जानवरों के कोई और नहीं था|



आकाश भैया ने फटाफट भूसे को फर्श पर बिछाया तथा उस पर एक पुरानी सी कथरी बिछा कर चुदाई लायक बिस्तर तैयार कर दिया| फिर उन्होंने फटाफट मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कथरी पर बिठाया तथा धीरे से पीछे धकेलते हुए लिटा दिया|

पहली बार चुदाई के नाम से मेरे दिल में बड़ी ज़ोर से धुक-धुक जो रही थी मगर मैंने फैसला कर लिया था की भैया के इस मनमोहक लौड़े से मैं चुदवा कर तो रहूँगी ही!



उधर आकाश भैया ने मुझे लिटा कर सीधा मेरे पजामी का नाडा खोला और उसे निकाल कर हवा में उछाल दिया| जिस प्रकार मेरे दिल में चुदाई के नाम से धुक-धुक हो रही थी, वैसे ही आकाश भैया भी चुदाई के लिए उतावले थे, तभी तो उन्होंने मेरी पजामी ऐसे हवा में फेंक दी थी!

पजामी उतरी तो भैया की दिखी मेरी गुलाबी पैंटी, मामी जी की लाइव चुदाई और आकाश भैया के लौड़े को पकड़ने से मेरी पैंटी मेरे ही रस से भीगी हुई थी| मेरी गीली पैंटी देख भैया के चेहरे पर एक अर्थपूर्ण मुस्कान आ गई| वहीं भाई को यूँ मेरी पैंटी देख मुस्कुराते देख मेरे चेहरे पर भी एक मुस्कान आ गई|



फिर हुई मुँह दिखाई...मेरा मतलब है चूत दिखाई! मेरी गोरी-गोरी चूत देख कर आकाश भैया की बाछें खिल गईं! उनके मुँह में पानी आ गया था अतः बिना देर किये उन्होंने सीधा मेरी चूत से अपने होंठ भिड़ा दिए और अपनी लपलपाती हुई जीभ मेरी चूत में प्रवेश कर दी|

कहने में मैंने पढ रखा था की चूत चटवाने में बहुत मज़ा आता है पर ये मज़ा तो किताबी ज्ञान से सौ गुना ज्यादा था! आकाश भैया किसी तज़ुर्बेकार चोदू की तरह मेरी चूत चाट और चूस रहे थे| मेरी चूत के दोनों होठों को तो वो अपने होठों से पकड़ कर खींचते और उसे अपनी जीभ से चुभलाते| कुछ दो-तीन मिनट हुए होंगें और मैं अपने पहले क्लाइमेक्स पर पहुँच गई और भरभरा कर उनके मुँह पर ही झड़ गई!



मेरी चूत से रिश्ते हुए जो रस बहा, भैया उसे किसी कुत्ते की तरह चाट गए और मेरी आँखों में देखते हुए अपनी पैंट तथा कच्छा निकाल फेंका| मेरी आँखों के सामने आकाश भैया का काला नाग...फुँफकारता हुआ अपने पूरे जोश में खड़ा था| उसे देख कर तो मेरी घिग्घी बँधने लगी थी की पता नहीं कैसे ये मेरी चूत में कैसे घुसेगा? लेकिन मुझे कैसे भी कर के आज चुदवाना था इसलिए मैंने अपना जी पक्का किया और अपनी कमर कस ली|



मैंने कहानियों में पढ़ा था की कोरी चूत देख कर आदमी पागल हो जाता है मगर मेरे आकाश भैया ऐसे कतई नहीं थे|



भैया मेरे नज़दीक आये और नीचे बैठते हुए मेरी दोनों टांगों को खोल कर अपना सुर्ख काला लौड़ा मेरी चूत के मुहाने पर रख रगड़ने लगे| 'ससस....ससस' मेरे मुख से ख़ुशी और दर्द से मिली-जुली सीत्कारें फूटने लगीं| मेरी सिसकारियाँ सुन आकाश भैया के चेहरे पर फिर एक अर्थपूर्ण मुस्कान आ गई|

कहानियों में जो पढ़ा था उसके अनुसार तो भैया किसी भी पल मेरी चूत में अपना लौड़ा हचक से पेल देना चाहिए था मगर असलियत में हुआ कुछ और ही!



आकाश भैया ने बड़े ही प्यार से अपने मूसल का अगला भाग यानी सुपाड़ा मेरी चूत के भीतर घुसाया| ये हमारा पहला स्पर्श था और इस स्पर्श ने मेरे जिस्म के सारे रोंगटे खड़े कर दिए थे! उस पल वासना की आग का ऐसा विस्फोट हुआ मेरे भीतर की मैं आगे होने वाले दर्द को भूल गई|

आकाश भैया ने कोई जल्दी न दिखाते हुए धीरे-धीरे अपने मूसल को धीरे-धीरे अंदर धकेला| उनका लौड़ा अभी कुछ सेंटीमीटर आंध्र घुसा होगा की मेरे कुंवारेपन को बचाने वाली आखरी दिवार...वो अंतिम पल आ गया जहाँ से अगर मैं चाहती तो लौट सकती थी और अपने कौमर्य को बचा कर रख सकती थी| लेकिन उस वक़्त मैं अब कुछ भूल चुकी थी क्योंकि मुझे चाहिए था बस सेक्स...वो सेक्स जिसके लिए मैंने इतने समय इंतज़ार किया था|



'थोड़ा दर्द होगा...' आकाश भैया ने मुझे सतर्क करते हुए कहा| उस वक़्त मैंने भैया के चेहरे पर अपने लिए चिंता देखि|



कहीं इन्हें मुझसे प्यार तो नहीं हो गया? मैं मन ही मन सोचने लगी और खुद पर गर्व करने लगी की मैं इतनी सुन्दर हूँ की भैया को अपने ऊपर मोहित होने पर मजबूर कर दिया|





मैंने हाँ में सर हिलाते हुए आकाश भैया को मेरे भीतर समा जाने की अनुमति दे दी थी| मेरी स्वीकृति प्राप्त कर भैया ने अपने लौड़े को बाहर खींचा और एक हल्का सा झटका मारते हुए अपना लौड़ा फिर से मेरी चूत में घुसा दिया!



'आह...हाय...ममममममअअअअअअ....आह्ह...हनननममम!!!' मैं ज़ोर से कराही और आकाश भैया को दूर धकेलने की कोशिश में अपनी पूरी ताक़त झोंक दी!

आकाश भैया जानते थे की दर्द के मारे मैं ऐसा करुँगी इसलिए वो पहले से मोर्चा सँभाले थे तथा मेरी इतनी ताक़त लगाने के बावजूद वो टस से मस न हुए|



चूत में उठे इस दर्द ने मेरी हालत जल बिन मछली सी कर दी थी| उस पल मेरे जिस्म मेरे दिमाग को कोस रहा था क्यों मैंने चुदवाने की सोची| परन्तु अब पछताय होत क्या जब चूत गई फट! अब तो मुझे बस ये दर्द सहना था, इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं था मेरे पास|

उधर आकाश भैया जानते थे की मुझे कैसे दर्द से आराम मिलेगा इसलिए उन्होंने धीरे-धीरे अपने लौड़े को मेरी चूत में आगे-पीछे करना शुरू कर दिया| जैसे ही भैया ने अपने लंड को आगे-पीछे करना शुरू किया मैंने उन्हें रोकते हुए बोली; "र..रु...रुको...थो..थोड़ा" मैं दर्द के मारे बिलबिलाते हुए बोली पर भैया ने मेरी एक न सुनी और धीरे-धीरे अपने लंड को आगे-पीछे करते रहे|



किताबी ज्ञान कहता था की कुँवारी चूत में लंड घुसने के बाद थोड़ा आराम करना चाहिए ताकि चूत लंड की अभ्यस्त हो रस छोड़ दे, जिससे उतपन्न हुए घर्षण के कारण दर्द धीरे-धीरे कम होने लगता है| लेकिन असलियत इसके ठीक उलट थी!

शुक्र है की आकाश भैया तजुर्बेकार थे, वो जानते थे की कुँवारी लड़की को कैसे हैंडल किया जाता है|



मेरे दर्द की परवाह न करते हुए आकाश भैया ने धीरे-धीरे अपने लौड़े को मेरी चूत में अंदर-बाहर सरकाना जारी रखा जिससे मेरी चूत में गर्माहट पैदा होने लगी और मेरा दर्द धीरे-धीरे मजे में बदलने लगा|

करीब 20 मिनट लगे मेरा दर्द खत्म होने में और फिर जो मज़ा आया न वो मैं तुझे (कीर्ति को) नहीं बता सकती| ये जो तू चूत में ऊँगली करती है न, इससे लाख गुना मज़ा आता है जब लंड चूत में अंदर-बाहर होता है|



20 मिनट की इस 'छोटी चुदाई' में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था और मैं मजे के मारे करहाने लगी थी|

मैं: ससस...भैया...जोर से!

मैं मजे में बहते हुए बोली|

आकाश भैया: अभी कहाँ और जोर से?! अभी तो आधा भी अंदर नहीं गया तेरे!

आकाश भैया की बात सुन मैं एकदम से चौंक गई!



‘इतना दर्द सहने के बाद भी अभी तक पूरा लंड नहीं गया अंदर? तो जब पूरा अंदर जाएगा तो मेरा क्या हाल होगा?' मैं डर के मारे मन ही मन बुदबुदाई|



मैं: क्या मतलब पूरा नहीं गया अभी तक?

ये कहते हुए मैंने थोड़ा उठा कर अपनी चूत की तरफ देखा| इस छोटी चुदाई ने मेरी चूत से खून की धारा बहा दी थी, जिसे देख कर मेरी गांड फटने लगी थी और अभी तो भैया का आधे से ज्यादा लंड बाहर पड़ा था!

आकाश भैया: पहलीबार में जड़ तक ठाँस देता तो यहाँ सब खून-खच्चड़ हो जाता और दर्द के मारे तो बेहोश हो जाती सो अलग! मेरा लौड़ा तेरी छोटी सी चूत के लिए बहुत बड़ा है इसे मेरे लौड़े की धीरे-धीरे आदत होगी|

आकाश भैया मुझे अधिक द्राना नहीं चाहते थे, वो चाहते थे की सेक्स का मज़ा हम दोनों धीरे-धीरे लें| एक ही बार में सारा मज़ा लेना हम दोनों पर भारी पद सकता था|



भैया ने मुझे प्यार से लिटा दिया और मेरी ये छोटी वाली चुदाई जारी रखी| करीब 20 मिनट लगे और मेरा रस छूटा तथा मैं कस कर आकाश भैया से लिपट गई| लेकिन आकाश भैया अभी तक झड़े थे, इस छोटी चुदाई से उन्हें ज़रा भी सुख नहीं मिला था इसलिए उन्होंने अपने हाथ से मुट्ठी मारी और अपना सारा रस मुझे दिखाते हुए भूसे पर गिरा दिया|

मुझे ये देखकर दुःख हुआ की भैया ने मेरा तो रस निकाल दिया मगर खुद को हाथ से हिलाना पड़ा| 'हाथ से तो मैं भी हिला सकती थी!' मैंने अपनी नाराज़गी दिखाते हुए कहा|



'जब लड़की झड़ती है न तो उसे कुछ समय लगता है फिर से नार्मल होने में इसलिए मैंने खुद मुट्ठ मारी| उस समय तेरे साथ जबरदस्ती कर के मैं तेरा मज़ा खराब नहीं करना चाहता था|' भैया ने बड़े प्यार से मुझे समझाते हुए कहा| मुझे ये देखकर बहुत अच्छा लगा की भैया मेरा इतना ख्याल रख रहे हैं, यही कारण था की भैया की बातें सुन मैं शर्माने लगी|



उस दिन से मैं और आकाश भैया आपस में खुल गए| हमें जब भी मौका मिलता हम सेक्स का खेल खेलने लगते| भैया ने मुझे सेक्स के सारे गुण सिखाये, अलग-अलग आसन में मेरी चुदाई की, kiss करना सिखाया, लंड चूसना सिखाया, माल खाना सिखाया, सेक्स पहले फोरप्ले (foreplay) करना सिखाया||



फिर एक वो दिन भी आया जब उन्होंने अपना मूसल जड़ तक मेरी चूत में ठाँस दिया| उस दिन मुझे कितनी संतुष्टि मिली वो मैं तुझे बता नहीं सकती?! मुझे अपनी चूत भरी-भरी महसूस हो रही थी, मानो मेरी कोख में कोई बच्चा पल रहा हो| उस दिन भैया ने मुझे ताबड़तोड़ तरीके से चोदा, मेरे सारे अंजर-पंजर ढीले कर दिए और जब वो झड़ने वाले थे तो उन्होंने मेरी चूत में ही अपना माल गिरा दिया! वो गर्म-गर्म माल मेरी चूत में ऐसा महसूस हो रहा था मानो किसी ने अमृत मेरी चूत में छोड़ दिया हो!



बस तभी से हम दोनों चचेरे भाई-बहन सेक्स के रिश्ते में बँध गए| जब भी मैं गॉंव जाती हूँ या भैया यहाँ आते हैं तो हम चुदाई करते हैं| मम्मी को हम दोनों नपर थोड़ा-थोड़ा शक हो रहा था इसलिए मैंने आज जानबूझ कर तुझे घर पर बुलाया क्योंकि तेरी मौजूदगी में मम्मी को कभी शक नहीं होता की हम दोनों भाई-बहन सेक्स का खेल खेल रहे हैं|

तुझे ब्लू फिल्म देखने में लगा कर मैं फटाफट चुदाई करवा लेना चाहती थी मगर तूने छुपकर सब देख लिया और..." अंजलि ने अपनी पूरी आत्मकथा सूना दी थी और अब उसे डर था की कहीं मैं उसका ये राज़ सभी पर जाहिर न कर दूँ इसलिए उसने अंत में नापनी बात अधूरी छोड़ दी|



"तेरा राज़ मेरे पास सुरक्षित है, मैं किसी को तुम भाई-बहन के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताऊँगी|" मैंने मुस्कुराते हुए अंजलि को आश्वस्त किया| तब जा कर अंजलि की जान में जान आई और वो एकदम से मेरे गले लग गई|


जारी रहेगा अगले भाग में!
Bdiya update guruji :love:

:sex:
'हाथ से तो मैं भी हिला सकती थी!'मैंने अपनी नाराज़गी दिखाते हुए कहा|

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Jab se Anjali ka character aya story me is line me thoda pyari lgi wo :D
 
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भाग - 10


अब तक आपने पढ़ा:


"तेरा राज़ मेरे पास सुरक्षित है, मैं किसी को तुम भाई-बहन के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताऊँगी|" मैंने मुस्कुराते हुए अंजलि को आश्वस्त किया| तब जा कर अंजलि की जान में जान आई और वो एकदम से मेरे गले लग गई|


अब आगे:


जब
आप किसी का कोई राज़ जान लेते हो तो अपना राज़ खुलने के डर से वो व्यक्ति आपके आधीन हो जाता है और किसी हद्द तक आपके प्रति ईमानदार हो खुद को आपके प्रति समर्पित कर देता है|



जब मैं अंजलि को उसी के चचेरे भाई के साथ हमबिस्तर होते हुए देख रही थी तब मैंने उसी के फ़ोन के कैमरे से उसी की चुदाई शूट की क्योंकि मैं चाहती थी की भविष्य में मैं इसका फायदा उठाऊँ| लेकिन जब दोनों चचेरे भाई-बहन की कामलीला शुरू हुई तो मेरे जिस्म में जो आग लगी उस आग से निपटने के बाद मुझे एहसास हुआ की मेरा ये सब सोचना कितना गलत है! अंजलि जैसी भी थी, थी तो मेरी दोस्त...वो दोस्त जिसने मुझे सेक्स का सारा ज्ञान दिया|



इस MMS clip का मैं बस एक ही फायदा उठा सकती थी और वो था अंजलि के पहले सेक्स के बारे में जानना क्योंकि किताबों में पढ़ी कहानियाँ मन घड़ंत होती हैं जबकि किसी के साथ बीती कहानी हमेसा सच होती है| यही कारण था की मैंने अंजलि से अकड़ते हुए उसके पहले सेक्स के बारे में पुछा था| ताकि अगलीबार जब मैं मास्टरबेट करूँ तो मैं इस कहानी को याद कर सकूँ! :P



खैर, अंजलि की राज़दार हो कर मैं उसके बहुत नज़दीक पहुँच चुकी थी, इतनी नज़दीक की अंजलि अब ख़ुशी-ख़ुशी मेरी उँगलियों पर नाचती थी|



शाम हो रही थी और माँ-पिताजी के घर आने का समय हो रहा था इसलिए उनके आने से पहले मुझे अंजलि के घर से निकलना था| शुक्र जय की मैं और भैया, माँ-पिताजी के घर लौटने से पहले आ गए वरना खूब सवाल-जवाब होते|





पैसे के तौर पर मेरे घर में हालात थोड़े नाज़ुक हो चले थे जिस कारण अब भैया पर बहुत दबाव पड़ रहा था| पिताजी चाहते थे की भैया की पक्की सरकारी नौकरी लग जाए ताकि परिवार का भविष्य सुरक्षित रहे और इसके लिए वो अनेकों जुगत लगा रहे थे| वहीं आदि भैया चाहते थे की वो प्राइवेट में नौकरी करें क्योंकि वहाँ पैसा अच्छा था जिससे हमारे परिवार का वर्तमान सुधर जाता|

दोनों बाप-बेटों की इस भविष्य और वर्तमान को ले कर घर में बहुत बहस होने लगी थी| पिताजी भैया से सरकारी नौकरी के फॉर्म भरवाने लगे, सरकारी नौकरी वाले सभी पेपर दिलवाने लगे ताकि कहीं तो भैया का सिलेक्शन हो जाए| लेकिन भैया जिसे अनेकों युवा पहले ही सरकारी की नौकरी में लग चुके थे इसलिए हर बार भैया का नंबर चूक ही जाता था|



बार-बार मिली हार से आदि भैया हताश हो चुके थे और उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी थी| आदि भैया ने अपने दोस्तों से बात कर चुप-चाप ओपन से MBA का फॉर्म भर दिया और MBA करने के लिए उन्होंने कर्ज़ा ले लिया जिसे वो थोड़ा-थोड़ा कर अपनी सैलरी से चूका रहे थे| शाम को घर आते ही भैया पढ़ाई में लग जाते थे, पिताजी जब भैया को पढ़ते देखते तो उन्हें लगता की भैया सरकारी नौकरी के किसी पेपर की तैयारी कर रहे हैं|



इधर मुझसे अपने भैया और पिताजी की ये अनबन नहीं देखि जा रही थी इसलिए मैंने भी अपना योगदान देनी की ठान ली| मैंने आस-अपडोस के 2-3 बच्चों को अपने घर गणित की टूशन पढ़ने बुला लिया| हर बच्चे के परिवार जन मुझे 300/- रुपये महीना देते थे|

माँ-पिताजी को पैसे से कोई मतलब नहीं था, उनके लिए तो बच्चों को पढ़ाना बस मेरा शौक था इसीलिए उन्होंने मुझे बच्चों को टूशन पढ़ाने से नहीं रोका| शाम के समय बच्चे मेरे घर आते और मैं उन्हें बरामदे में पढ़ाती| मेरा पढ़ाने का ढंग बहुत अलग था क्योंकि मैं हँसी-मज़ाक कर के पढ़ाया करती थी| मेरे टूशन शुरू करने के एक हफ्ते में ही मेरे पास 2 बच्चों की बजाए 3 बच्चे आने लगे|



मुझे आज भी याद है वो दिन जब पहली बार मेरे हाथ में 900/- रुपये आये! अपनी पहली कमाई को अपने हाथ में देख मैं ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी| मैं आज इतनी खुश थी की मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसूँ भर आये थे| पैसे ले कर मैं सीधा अपने पिताजी के पास पहुँची और ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें सारे पैसे देने लगी मगर मेरे पिताजी ने वो पैसे नहीं लिए| उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरे सर पर हाथ रखा और माँ से बोले; "देख रही हो भाग्यवान, हमारी छोटी सी बिटिया ने टूशन पढ़ा कर इतने सारे पैसे इक्कट्ठा किये हैं?!" ये कहते हुए पिताजी ने मेरा माथा चूम लिया|

पीछे से माँ आईं तो मैंने उन्हें सारे पैसे देने चाहे मगर उन्होंने भी पैसे नहीं लिए; "नहीं बेटा, ये पैसे तेरे हैं| इनसे तू अपने लिए कुछ ले लेना|" ये कहते हुए माँ ने भी मेरे माथे को चूमा और फिर मेरा मुँह मीठा करवाया...वो भी पहला रसगुल्ला खिला कर!



मैंने पहले तो रसगुल्ला खाया और फिर अपने माँ-पिताजी से बोली; "माँ...पिताजी...मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ इसलिए मुझे भी अब घर की थोड़ी जिम्मेदारी उठानी चाहिए न? फिर मुझे जो भी कुछ चाहिए होता है मैं आपसे माँग ही लेती हूँ तो फिर मैं ये पैसे रख कर क्या करुँगी? ये आप ही रखिये, जब मुझे कुछ चाहिए होगा तब मैं माँग लूँगी!" मेरा ये जवाब सुन माँ-पिताजी की आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भर आई क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी से इतनी बड़ी बात की उम्मीद नहीं की थी| माँ ने मुझे अपने गले लगा लिया और मुझे खूब लाड-प्यार किया|

मानु के मम्मी-पापा उन दिनों यहीं थे इसलिए जब उन्हें सब पता चला तो उन्होंने मेरी खूब तारीफ की| मेरी पहली कमाई की ख़ुशी मनाने के लिए अंकल जी ने पिताजी को अपने साथ रसोई में खींचा और दोनों ने मिलकर बड़ी स्वादिष्ट 'चुन्गडी मलाई' और भात बनाये| खाना इतना स्वाद बना था की मेरी माँ और आंटी जी तो पिताजी और अंकल जी की कुकिंग की तारीफ करते नहीं थक रहे थे|



जिन्हें नहीं पता, 'चुन्गडी मलाई' एक तरह की सब्जी होती है जो झींगे और नारियल के दूध के साथ बनाई जाती| ये सब्जी इतनी मलाईदार होती है की मुँह में घुल जाती है| ऊपर से इसमें मसाले भी तेज़ नहीं होते की खाने वाले का मुँह जल जाए, मसालों की भूमिका औसतन होती है और सारा स्वाद होता है झींगों का!



अगले महीने से मेरे पास और बच्चे पढ़ने आने लगे तो मेरी कमाई धीरे-धीरे बढ़ने लगी| कुछ महीने बीते थे और पैसे भी काफी इकठ्ठा हो गए थे इसलिए मैंने अपना मोबाइल फ़ोन लेने के लिए पिताजी से इज्जाजत माँगी| अब चूँकि ये मेरी अपनी कमाई के पैसे थे इसलिए पिताजी मना नहीं किया और आदि भैया को मुझे मोबाइल दिलाने का काम सौंप दिया|

मुझे किसी भी कीमत पर चाहिए था multimedia वाला मोबाइल ताकि मैं उससे अपनी फोटो खींच सकूँ और अंजलि से ब्लू फिल्म ले कर देख सकूँ| जब मैंने आदि भैया को बताया की मुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए तो वो मुस्कुराने लगे और बोले; "मैं और पिताजी तो अभी तक बटन वाला मोबाइल चला रहे हैं और तुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए?!" ये कहते हुए भैया ने मेरे सर पर प्यार से मारा और अपने दोस्त की मोटरसाइकिल पर बिठा कर मोबाइल खरीदने चल दिए|

अब मल्टीमीडिया चलाने वाला मोबाइल सस्ता तो होता नहीं था इसलिए पैसे कम पड़ने लगे थे, परन्तु मेरी ख़ुशी के लिए बाकी के पैसे आदि भैया ने अपनी जेब से डाले और हम मेरा नया मोबाइल ले कर घर आ गए| कैमरे वाला फ़ोन देख कर ही पिताजी समझ गए थे की फ़ोन महँगा है पर मुझे बचाने के लिए आदि भैया ने झूठ बोल दिया की उन्होंने फ़ोन जुगाड़ लगा कर खरीदा है| चलो इस बार तो मैं पिताजी से डाँट खाने से बच गई!



अब चूँकि मेरे पास कैमरे वाला मोबाइल था तो मैंने उससे छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी और फोटोग्राफी करना सीख लिया| अपने इस छोटे से 1.5 मेगापिक्सेल वाले फ़ोन से मैं प्रोफेशनल लेवल वाली फोटोग्राफी कर लेती थी! कौन सा पोज़ बनाना है, बैकग्राउंड कैसी होनी चाहिए, कैंडिड फोटो कैसे लेनी होती है आदि सब सीख गई थी|





बहराहल, मेरी ज़िन्दगी बस ब्लू फिल्म देखने, मास्टरबेट करने या कैमरे से फोटो खींचने तक ही सीमित नहीं थी|



अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए मेरी बारहवीं की परीक्षा नज़दीक आ चुकी थी| मैंने सब कुछ छोड़कर अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया| आँखों में तेल डाल-डालकर मैं रात-रात भर जाग कर पढ़ती थी| इसका स्वर्णिम परिणाम मुझे बॉर्ड की परीक्षा के रिजल्ट आने पर मिला| मैं पूरे 85% के साथ पास हुई थी और मेरे नंबर देख कर मेरे पिताजी को मुझ पर बहुत गर्व हो रहा था| वहीं आदि भैया इतने खुश थे की क्या कहूँ, उन्होंने मुझे अपने गले लगा कर खूब प्यार दिया और मेरे मस्तक को चूम कर मेरे हाथों में हज़ार रुपये रख दिए! मैं कुछ समझ पाती उससे पहले ही भैया ने माँ को रसोई से बाहर बुलाया और एप्रन पहन कर खाना बनाने घुस गए|

दरअसल हमारे घर में सभी खाने-पीने के कुछ अधिक ही शौक़ीन हैं| ख़ुशी का कोई भी मौका हो, घर के पुरुष सदस्य रसोई में घुस जाते हैं| अब भैया रसोई में घुसें तो पिताजी कैसे पीछे रहते, वो भी अपना तहमद लपेट घुस गए और दोनों बाप-बेटों ने मेरे मनपसंद की साड़ी चीजें बनाकर परोस दी| मेरे आगे इतना खाना पड़ा था मानो शादी के बाद दामाद घर आया हो!



चलो भाई, खाना पीना हो गया तो अब बारी थी मेरे जीवन में आगे क्या करना है उसका फैसला लेने की| मेरी क्लास में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे दिल्ली में स्थिति DU में पढ़ने जाने के लिए अपना बोरिया-बिस्तर लपेट चुके थे| यहाँ तक की वो बच्चे भी जिनके 60-70% वाले बच्चे भी, क्योंकि उनके पास था कोटा! वहीं मैं जानती थी की पिताजी मुझे दिल्ली जाने देंगे नहीं इसलिए मैं अपना मन मारकर बैठी हुई थी!

आदि भैया से मेरा ये उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जा रहा था पर वो ये भी जानते थे की पिताजी मुझे दिल्ली पढ़ने जाने नहीं देंगे| जब पिताजी ने भैया को इंजीनियरिंग करने के लिए कोटा (राजस्थान) जाने नहीं दिया तो वो मुझ लड़की को कहाँ अकेले दिल्ली जाने देते?!



भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!



जारी रहेगा अगले भाग में!
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31,030
304


भाग - 11

अब तक आपने पढ़ा:


भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!

अब आगे:

चाय
पीते हुए भैया ने जानबूझ कर बात छेड़ते हुए मुझसे पुछा;

आदि भैया: और कीर्ति? तो आगे क्या सोचा है?

भय का सवाल सुन मैं एकदम सन्न थी, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या जवाब दूँ?



हर बच्चे का एक सपना होता है की उसने बारहवीं पास करने के बाद क्या करना है...क्या बनना है मगर मैंने कभी इतनी दूर की सोची ही नहीं?! मेरी ख्वाइश तो बस दुनिया घूमने-फिरने, सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनने और तरह-तरह का खाना खाने पर खत्म हो जाती थीं|

खैर, भैया के सवाल का जवाब तो देना था इसलिए मैं अपना दिमाग चलाते हुए कुछ सोचने लगी;

मैं: वो...

मैं इसके आगे कुछ सोच पाती और बोलती उससे पहले ही पिताजी मेरी बात काटते हुए बोले;

पिताजी: मेरी बता मानकर ग्यारहवीं में अगर इसने (मैंने) साइंस ली होती तो मैं अपनी बेटी को डॉक्टर बनाता| आँखों का डॉक्टर....फिर धूम-धाम से अपनी कीर्ति की शादी दूसरे डॉक्टर लड़के से करता और फिर ये दोनों शादी के बाद आराम से अपनी प्रैक्टिस करते|

पिताजी ने अपना ख्याली पुलाओ बना कर हमारे सामने परोसा| पिताजी ने अपनी बेटी के लिए बहुत ऊँचा ख्वाब संजोया था मगर उनकी बेटी की मोटी बुद्धि में सइंस का 'स' अक्षर भी नहीं घुसता था| हाँ 'स' से 'सेक्स' शब्द दिमाग में अच्छे से घुस चूका था!

बहरहाल, पिताजी की बात सुन मेरा सर शर्म से झुक गया था क्योंकि मैं अपने पिताजी की ये इच्छा पूरी नहीं कर पाई थी| मुझे शर्मिंदा होने से बचाने के लिए भैया ने बात सँभाली और बोले;

आदि भैया: तेरा ओपन कॉलेज तो शुरू हो जायेगा लेकिन क्लासेज तो तेरी सिर्फ संडे को होंगीं, बाकी के छः दिन क्या करेगी?

मेरे पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं अपने दिमाग को तेज़ दौड़ाने लगी ताकि कोई जवाब दे सकूँ|

वहीं पिताजी को भैया का ये सवाल अटपटा सा लगा इसलिए उन्होंने बात काटते हुए कहा;

पिताजी: क्या करेगी मतलब? घर में अपनी माँ की मदद करेगी, फिर ये बच्चों को पढ़ाती भी तो है|

पिताजी की आवाज़ में थोड़ी खुश्की थी जिसे महसूस कर मैंने डर के मारे चुप्पी साध ली|

आदि भैया: पिताजी, ज़माना बदल गया है| जो बच्चे ओपन से कॉलेज करते हैं वो अपना समय कुछ नया सीखने में लगाते हैं| जैसे आजकल कम्प्यूटर्स का ज़माना है इसलिए हर बच्चा कंप्यूटर कोर्स कर रहा है| ...

भैया ने जैसे ही नए ज़माने का ज्ञान दिया, वैसे ही पिताजी ने भैया की बात काट दी;

पिताजी: कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी ये (मैं)? इसने कौनसा नौकरी करनी है जो तू इसे कंप्यूटर कोर्स करने को कह रहा है?!

पिताजी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोले|



दरअसल पिताजी को शादी से पहले लड़कियों का नौकरी करना पसंद नहीं था| उनका मानना था की शादी से पहले नौकरी करने वाली लड़कियों का दिमाग सातवें आसमान पर होता है| घर की चार दीवारी छोड़ लड़कियाँ बाहर निकल कर बहकने लगती हैं| फैशन परस्त बन पैंट, टॉप, जीन्स और शर्ट जैसे कपडे पहनने लगती हैं| फिर ऐसी लड़कियों का लव मैरिज के चक्कर में पड़ कर खानदान का नाम खराब भी होने का खतरा होता है|

वहीं अगर लड़की शादी के बाद नौकरी करती है तो उस पर उसके परिवार की जिम्मेदारी होती है, उसके पति की जकड़ होती है इसलिए लड़कियाँ किसी गलत रास्ते नहीं भटकतीं| अब इसे मेरे पिताजी की रूढ़िवादी सोच समझिये या फिर एक पिता का अपनी बेटी के लिए चिंता करना, ये आप सब पर है|



खैर, पिताजी के गुस्से को देखते हुए भैया ने अपनी बात का रुख बदला और बड़ी ही चालाकी से अपनी बात आगे रखी;

आदि भैया: पिताजी, मैं नौकरी करने की बात नहीं कह रहा| मैं बस ये कह रहा हूँ की कीर्ति को कंप्यूटर चलाना तक नहीं आता| दसवीं तक इसने (मैंने) जो भी कंप्यूटर सीखा है वो किसी काम का नहीं| न इसे टाइपिंग आती है, न इसे ईमेल करना आता है, न इसे ऑनलाइन बिल भरना आता है, न ऑनलाइन टिकट बुक करना आता है और सिर्फ यही नहीं...ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इसे नहीं आती|

अब कल को इसकी शादी हुई और इसके पति ने इसे कोई काम बोलै तो ये क्या करेगी? मुझे फ़ोन कर के पूछेगी या फिर अपने ससुराल में ताने खायेगी?!

जब बात आती है अपनी बेटी के ससुराल की तो एक पिता बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है, वही कुछ अभी हुआ|

बेमन से ही सही परन्तु अपनी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए पिताजी मान गए|



रात में खाना खाने के बाद माँ-पिताजी अपने कमरे में सोने जा चुके थे| मैं अपने कमरे में बैठी अपने कल्पना के घोड़े दौड़ाने में लगी थी की न्य कॉलेज कैसा होगा? क्या कॉलेज में रैगिंग होगी? कॉलेज में कैसे कपडे पहनते होंगें? कंप्यूटर क्लास में मैं क्या-क्या सीखूँगी?

तभी भैया मेरे कमरे में आये, उन्हें देख मैं फौरन आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| आज हम दोनों भाई-बहन के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान तैर रही थी और ये मनमोहक मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज एक भाई ने अपनी बहन के जीवन को सँवारने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया था, वहीं मेरे चेहरे पर मुस्कान का कारण ये था की मेरी ज़िन्दगी में अब एक नई सुबह उगने वाली थी|



“आजतक तू इस घर रुपी पिंजरे में कैद थी लेकिन कल से तू खुले आसमान में पंख फैला कर अपनी ख़ुशी से उड़ पाएगी| लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखिओ की तू खुले आसमान में उड़ने के चक्कर में पिताजी के बसाये इस घरोंदे को न रोंद दे!” आदि भैया मेरे दोनों गालों पर हाथ रखते हुए बोले|

इस पूरी दुनिया में बस एक मेरे भैया ही तो हैं जो मेरे दिल की हर ख्वाइश समझते थे| बचपन से ले कर अभी तक बस एक वही हैं जो बिना मेरे बोले मेरे मन की बात पढ़ लिया करते थे और फिर कोई न कोई जुगत कर मेरी इच्छा पूरी कर दिया करते हैं| वो जानते थे की मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ और अब मुझे दुनिया देखनी चाहिए, तभी उन्होंने अपनी चालाकी भरी बातों में पिताजी को उलझा कर मेरा घर से अकेले निकलने का इंतज़ाम किया|

भैया की दी हुई ये शिक्षा मैंने अपने पल्ले बाँध ली और कभी ऐसा कोई काम नहीं किया की पिताजी का नाम मिटटी में मिल जाए या मेरे कारण कभी उनका सर शर्म से झुके!



अगली सुबह भैया और मैं सबसे पहले बैंक जाने के लिए निकले| भैया और मैं चढ़े बस में, ये पहलीबार था की मैं पिताजी के अलावा किसी और के साथ बस में चढ़ी हूँ|

जब हम सब पिताजी के साथ कहीं जाते थे तो पिताजी सबसे पहले मुझे और माँ को सीट दिलवाते थे| फिर वो आदि भैया के लिए सीट का इंतज़ाम करते थे और सबसे आखिर में स्वयं के लिए सीट ढूँढ़ते थे| कई बार तो सीट न मिलने पर पिताजी कंडक्टर की बगल में बैठ कर सफर करते थे और एक बार तो पिताजी को जो बस का गियर बॉक्स होता है उस पर बैठ कर भी यात्रा करनी पड़ी थी|



एक पिता का सबसे पहला दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है| वह सबसे पहले अपने परिवार के सुख और आराम के लिए मेहनत करता है तथा अंत में अपने लिए बैठने की कोई छोटी सी जगह तलाशता है|



खैर, भैया के साथ बस की ये यात्रा बहुत मजेदार थी क्योंकि भैया मुझे कौनसी बस कहाँ जाती है, बस में कैसे अकेले चढ़ना-उतरना है, कैसे बस में खुद का ध्यान रखना है आदि जैसी ज्ञान भरी बातें समझा रहे थे|

अंततः हम बैंक पहुँच ही गए| हर सरकारी नौकरशाह की तरह मेरे पिताजी का भी अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में था और इस बैंक को निरंतर काल तक व्यस्त रहने का श्राप मिला है! अब अगर ग्राहक का काम करने की बजाए उसे एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौडाओगे, बारह बजे लंच टाइम कह ग्राहक को भगाओगे तो बैंक में भीड़ बढ़ेगी ही न?! ऊपर से बैंक में आते हैं वो बूढ़े-बुजुर्ग जिनको घर में बस पासबुक प्रिंट कराने के लिए रखा होता है| ऊपर से ये बूढ़े अंकल लोग अपने घर की ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों की भी पासबुक इकठ्ठा कर बैंक लाते हैं!

मैं आज पहलीबार बैंक आई थी और इतने लोगों को लाइन में लगे देख मुझे कुछ समझ ही नहीं आया! "उधर ड्राफ्ट का फॉर्म रखा होगा, उसे भर तब तक मैं लाइन में लगता हूँ|" आदि भैया ने मुझे आदेश दिया और खुद जा कर लाइन में लग गए| टेबल पर से फॉर्म ले कर मैंने सुन्दर-सुन्दर हैंडराइटिंग में फॉर्म भरा और फटाफट भैया को फॉर्म दे दिया| अब हमें करना था इंतज़ार और वो भी 10-5 मिनट नहीं बल्कि पूरे 1 घंटे का इंतज़ार! अब मैंने चेक तो देखा था मगर ड्राफ्ट मैंने पहले कभी नहीं देखा था| मुझे लगा था की ड्राफ्ट कोई बहुत बड़ी चीज़ होगी मगर जब ड्राफ्ट मेरे हतः में आया तो ये लगभग चेक जैसा ही था!



ड्राफ्ट ले कर हम पहुँचे मेरी यूनिवर्सिटी और यहाँ तो बैंक से भी ज्यादा लम्बी लाइन थी! परन्तु एक अंतर् था, जहाँ बैंक में अधिकतर लोग वृद्ध थे, वहीं यूनिवर्सिटी की लाइन में सब मेरी ही उम्र की लड़कियाँ और लड़के थे| इस बार भैया ने मुझे लाइन में लगने को कहा और खुद पीछे आराम से खड़े हो कर दूसरी लड़कियों को देखने लगे! देखा जाए तो ठीक ही था, फॉर्म मेरा...कॉलेज मेरा...तो जमा भी तो मैं ही कराऊँगी न?! बैंक के मुक़ाबले यहाँ काम थोड़ी रफ़्तार से हो रहा था इसलिए लगभग पौने घंटे में मेरा फॉर्म जमा हो गया| जब मैं फॉर्म भर कर आई तो भैया मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले; "लाइन में खड़े हो कर फॉर्म भरने की आदत डाल ले क्योंकि तेरे असाइनमेंट...तेरे एग्जाम फॉर्म सब ऐसे ही लाइन में लग कर जमा होंगें|" मुझे पहले ही अपना फॉर्म खुद भरकर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए मैंने भैया की दी इस नसीहत को अपने पल्ले बाँध लिया|



कॉलेज के बाद अब बारी थी मेरे कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की| मेरे अनुसार तो ये साडी सी कंप्यूटर क्लास होने वाली थी जिसमें मुझे कंप्यूटर चलाना सीखना था मगर आदि भैया ने कुछ और ही सोच रखा था|



हम दोनों पहुँचे एक इंस्टिट्यूट के बाहर जहाँ ढेरों बच्चे अंदर जा और बाहर आ रहे थे| इतने बच्चों को देख जो पहला ख्याल मेरे दिमाग में नाय वो था; 'क्या हमारी स्टेट के सारे बच्चे मेरी तरह निरे बुद्धू हैं जो सारे के सारे यहाँ कंप्यूटर चलाना सीखने आये हैं? अब मेरे घर में तो कंप्यूटर है नहीं तो मेरा कंप्यूटर चलाना तो सीखना तो बनता है मगर इन सबके घर में कंप्यूटर नहीं?' मैं अभी अपने ख्याल में डूबी थी की भैया ने मुझे अंदर चलने को कहा|

अंदर पहुँच भैया ने रिसेप्शन पर बैठी एक सुन्दर सी लड़की से बात की और उस लड़की ने भैया को एक फॉर्म भरने को दे दिया| भैया वो फॉर्म मेरे पास ले आये और मुझे भरने को कहा| उस फॉर्म में मुझे अपने दसवीं तथा बारहवीं के नंबर भरने थे| फॉर्म भरते हुए मैंने देख उसमे कुछ courses लिखे हैं जैसे; 'C++, Java, Tally, Microsoft office आदि|' मैंने उन courses को पढ़ा तो सही मगर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा| अभी हमने फॉर्म भरा ही था की हमारे लिए एक लड़का पानी ले आया| मैं अपनी इस आवभगत को देख बड़ी खुश थी, ऐसा लगता था मानो मैं कोई मुख्य अतिथि हूँ| हमें पानी पिला कर वो लड़का मेरा फॉर्म अपने साथ ले गया| 5 मिनट बाद हमें एक केबिन में बुलाया गया, इस केबिन में एक सुन्दर सी लड़की बैठी थी| उसने हमें बैठने को कहा तथा भैया से बात करने लगी|



"हम ऑफिस असिस्टेंट के कोर्स के बारे में जानना चाहते हैं|" भैया ने बायत शुरू करते हुए कहा| उस लड़की ने हमें उस कोर्स के बारे में सब बताया पर जब उसने कहा की इस कोर्स की फीस पाँच हज़ार है तो मेरे पॉँव तले ज़मीन खिसक गई! वहीं भैया ने हार न मानते हुए उस लड़की से फीस कम करवाने में लग गए| करीब 10 मिनट की बातचीत के बाद वो लड़की पाँच सौ रुपये कम करने को मान गई| भैया ने उसी वाट उस लड़की को हज़ार रुपये एडवांस दे दिए तथा एक शर्त रख दी; "आप कोर्स की फीस पंद्रह सौ की रसीद बनाइयेगा| बाकी की फीस की रसीद अलग बना दीजियेगा|" मैं समझ गई की भैया ये पंद्रह सौ वाली रसीद पिताजी को दिखायेंगे और बाकी के पैसे वो खुद अपनी जेब से भरेंगे|



उस इंस्टिट्यूट से जैसे ही हम बाहर निकले और दो कदम चल कर बाहर सड़क की ओर बढे की 3-4 लड़कों का एक झुण्ड दौड़ता हुआ हमारी तरफ आया| इतने सारे लड़कों को अपनी ओर यूँ दौड़ कर आते देख मैं एकदम से घबरा गई और भैया के पीछे छुप गई| वहीं दूसरी तरफ भैया एकदम सतर्क हो गए थे और अकर्मक मुद्रा में थे| लेकिन बात कुछ और ही निकली!



ये सब लड़के अलग-अलग इंस्टिट्यूट के थे और हमें अपने-अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने को कह रहे थे ताकि मेरी दी हुई फीस से उनकी थोड़ी कमिशन बन जाए!

भैया ने उन्हें समझा दिया की हमने दाखिला ले लिया है| ये सुनकर वो सारे लड़के अपना दूसरा ग्राहक ढूँढने दूसरी ओर दौड़ गए! इस प्रकरण ने मुझे सिखाया की इस दुनिया में लोग दो रोटी कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते हैं|



खैर, मेरा कॉलेज का फॉर्म भरा जा चूका था, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में भी दाखिला हो चूका था| अब बारी थी इस ख़ुशी को मनाने की इसलिए भैया और मैं पहुँचे एक अच्छे रेस्टोरेंट में| भैया ने सीधा पिज़्ज़ा आर्डर किया और जबतक पिज़्ज़ा आता भैया मुझे समझाने लगे; "तू अब बड़ी हो गई है और अब समय है की तू पिताजी की छत्र छाया से निकल खुद अपनी जिम्मेदारियाँ उठाये| पिताजी की नज़र में तू आज भी एक छोटी बच्ची है...उनकी प्यारी सी नन्ही चिड़िया इसीलिये वो अपनी इस प्यारी चिड़िया को दुनिया में बेस चील-कौओं की नज़र से बचाने में लगे रहते हैं| उनके लिए एक बार तेरा घर बीएस जाए तो वो चिंता मुक्त हो जाएंगे|

लेकिन मैं जानता हूँ की तू अब बच्ची नहीं रही, तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अपने जीवन को सही रास्ते की ओर ले जा सके| जब तूने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था न, मैं तभी समझ गया था की तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अब खुद को अच्छे से सँभाल सके| देख मैं जानता हूँ की तुझे मेरे और पिताजी पर निर्भर नहीं रहना, तुझे अपना अलग रास्ता बनाना है...अपना जीवन अपने अनुसार जीना है और इस सब के लये चाहिए होता है पैसा! अब ये पैसा तुझे पिताजी से तो मिल नहीं सकता इसलिए तुझे खुद पैसे कमाने होंगें ताकि जबतक तेरी शादी न हो तू दुनिया अपने नज़रिये से देख सके...जी सके|



तुझे याद है जब पहलीबार तुझे बच्चों को पढ़ाने की फीस मिली थी? उस दिन तू कितनी खुश थी...इतनी खुस की तेरी आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भीग गई थीं| जानती है वो ख़ुशी...वो तेरी नम आँखें किस बात की सूचक थीं? वो ख़ुशी थी तेरी मेहनत से कमाए पैसों को हाथ में लेने की ख़ुशी| उस वक़्त मैंने महसूस कर लिया था की तुझे घर पर बँध कर नहीं रहना, तुझे नौकरी करनी है...पैसे कमाने हैं|

बस उसी वक़्त मैंने सोच लिया था की मेरी बहन अपनी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीएगी और अपने उसी फैसले पर अम्ल करते हुए मैं पिताजी के साथ छल कर रहा हूँ|



तेरी एकाउंटेंसी अच्छी है इसलिए मैंने तेरे लिए ऑफिस असिस्टेंट का कोर्स सेलेक्ट किया| इस कोर्स में तुझे एकाउंटेंसी कंप्यूटर में कैसे की जाती है ये सिखाया जायेगा| जब तू ये कोर्स पूरा कर लेगी तब मैं तेरी कहीं छोटी-मोटी जॉब लगवा दूँगा, जिससे तुझे एक्सपीरियंस मिलेगा| जब तेरा कॉलेज पूरा हो जायेगा न तब इसी एक्सपीरियंस के बलबूते पर तुझे अच्छी जॉब मिलेगी| लेकिन तबतक ये सब तुझे पिताजी से छुपाना होगा, उनकी नज़र में तू बस बेसिक कंप्यूटर सीख रही है| अगर तूने उन्हें सब सच बता दिया तो पिताजी बहुत गुस्सा होंगें और हम दोनों पर कभी भरोसा नहीं करेंगे|” सारा सच जानकार मेरे मन में भैया के लिए प्यार उमड़ आया| मैं एकदम से भावुक हो कर खड़ी हुई और भैया के गले लग सिसकने लगी| "थ...थैंक...यू...भैया....! आ..आपने मेरे लिए..." इससे ज्यादा मैं कुछ न कह पाई और मेरा रोना तेज़ हो गया|


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
जारी रहेगा अगले भाग में!
Bdiya update guruji :love:
Thoda emotional :weep:
Adi bhaiya :superb:
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,803
31,030
304



भाग - 12

अब तक आपने पढ़ा:


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|


अब आगे:
कहते
हैं की अगर ज़िंदगी की ईमारत झूठ की बुनियाद पर तिकी हो तो कभी न कभी ये ईमारत अवश्य ढह जाती है|


शाम के समय पिताजी ने हमसे पूरे दिन का ब्यौरा माँगा तो भैया ने कमान सँभाली और बड़े तरीके से झूठ बोल दिया; "आजका सारा काम मैंने कीर्ति से करवाया है| बैंक में इसने (मैंने) ड्राफ्ट का फॉर्म भरा, फिर

यूनिवर्सिटी की लाइन में लग कर इसने अपना कॉलेज का फॉर्म जमा किया| फिर वहाँ से हम पहुंचे कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और वहाँ मैंने इसका दाखिला करा दिया है| कल सुबह 9 बजे से 11 बजे तक इसकी क्लासेज होंगी| पूरे कंप्यूटर कोर्स की फीस 1,500/- थी तो मैंने 1000/- जमा करा दिए थे| ये रही उसकी रसीद|" भैया ने रसीद पिताजी को दी तो पिताजी ने बड़े गौर से रसीद पढ़ी और फिर अपने बटुए से 500/- निकाल कर माँ को देते हुए बोले; "कल जब तुम कीर्ति को क्लास छोड़ने जाओगी तब ये जमा करा देना और रसीद लेना भूलना मत|"

जैसे ही पिताजी ने माँ को मुझे क्लास छोड़ने जाने की बात कही वैसे ही आदि भैया की हवा टाइट हो गई क्योंकि अब माँ को सारा झूठ पता चलने का खतरा था! वहीं मुझे पता था की मुझे आगे क्या करना है!



दरअसल, मेरी माँ को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था| वो हमेशा भैया को ही आगे करती थीं, लेकिन चूँकि पिताजी ने इसबार उन्हें आगे किया था और भैया ने जाना था ड्यूटी तो मैंने सोच लिया की मैं ही इस काम की जिम्मेदारी ले लूँगी|

अगले दिन माँ मुझे छोड़ने इंस्टिट्यूट पहुँची और इतने सारे बच्चों को देख परेशान हो गईं की वो फीस कहाँ और कैसे जमा कराएँ?! "माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया| मुझे आशीर्वाद देते हुए माँ ने अपने 'स्त्रियों वाले बटुए' की ज़िप खोल कर मोड़ कर रखा हुआ 500/- का नोट निकाला और मुझे दे दिया| "वापस आ कर मैं आपको रसीद दे दूँगी तो आप पिताजी को दे कर कह देना की आपने ही फीस जमा कराई है|" मैंने माँ को मक्खन लगाने के इरादे से कहा तो माँ ने खुश होते हुए कहा की वो मेरे लिए मेरा मन पसंद खाना बना कर तैयार रखेंगी|



भैया ने रात को मुझे चुपके से फीस के बाकी पैसे दे दिए थे, तो मैंने माँ के दिए हुए पैसे उसमें मिलाये और दो रसीद बनवा ली|

चलो भई फीस तो जमा हो गई, लेकिन अब बारी थी क्लास में जाने की| शीशे के एक दरवाजे को खोल कर मैं अंदर पहुँची तो मुझे ठंडी हवा का ऐसा झोंका लगा मानो मैं हिल स्टेशन आ गई हूँ! अब मेरे सामने 4 कमरे थे जिनके दिवार और दरवाजे सब शीशे के थे| चारों कमरों में लगभग 30-40 कंप्यूटर रखे थे और इतने सारे कंप्यूटर देख कर मैं स्तब्ध थी! मेरे स्कूल में बस 10 कंप्यूटर थे और जब हमारा कंप्यूटर का पीरियड होता था तब टीचर एक कंप्यूटर पर 4-5 बच्चों का झुण्ड बैठा देती थीं| यही कारण था की कंप्यूटर कभी मेरे पल्ले पड़ा ही नहीं!



खैर, मुझे नहीं पता था की किस कमरे में जाऊँ इसलिए मैं बाहर खड़ी सोचने लगी| तभी पीछे से एक लड़की आई और उसने मुझे बताया की मुझे कौनसे कमरे में जाना है| मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ 4-5 बच्चों का झुण्ड था| मुझे एक अनजान चेहरे को देख सभी मेरी तरफ देख रहे थे| तभी उस झुण्ड से एक लड़की निकल कर आई और मेरा नाम पुछा|

हम लड़कियों की यही खासियत होती है, हम दूसरी लड़की को देखते ही समझ जाती हैं की उसे हमारी जर्रूरत है और हम बेझिझक उससे दोस्ती करने पहुँच जाती हैं| हमें लड़कों की तरह आइस ब्रेकर (ice breaker) की जरूरत नहीं होती!



इंट्रोडक्शन हुआ तो पता चला की जो लड़की मुझसे बात करने आई थी उसका नाम शशि है तथा उसने भी मेरी ही तरह ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है| संयोग से हम दोनों का कॉलेज एक ही निकला, जिससे वो मेरी अच्छी सहेली बन गई|

कुछ देर बाद टीचर आये और उन्होंने सभी को बेसिक कंप्यूटर पढ़ना शुरू किया| कंप्यूटर के मामले में मैं थी निल-बटे सन्नाटा इसलिए शशि ने मेरी खूब मदद की| कंप्यूटर की इतनी सारी जानकारी पा कर मेरा दिमाग हैंग हो चूका था, उस पर टीचर जी ने हमें टाइपिंग सुधारने के लिए टाइप करने के लिए होमवर्क दे दिया!



घर पहुँच मैंने माँ को बताया की मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखनी है, अब हमारे पास तो कंप्यूटर था नहीं इसलिए हम दोनों माँ-बेटी सोच में लग गए| हम सोच में पड़े थे की तभी अंजलि अपनी मम्मी के साथ मेरे घर पर टपक गई| उसका ये अनअपेक्षित आगमन मेरे लिए बड़ा फलदाई साबित होने वाला था|



तो हुआ कुछ यूँ था की अंजलि की मम्मी को ये समझ नहीं आ रहा था की बारहवीं पास करने के बाद वो अंजलि का क्या करें?! अंजलि के चचेरे भैया ने जो उसपर दिनरात मेहनत की थी उस कारण से अंजलि का बदन अब पूरी तरह से भर गया था! अब एक माँ जानती है की उसकी बेटी के जिस्म में जो बदलाव आ रहे हैं उनका कारण क्या है| आंटी जी ये तो समझ गई थीं की अंजलि के ऊपर कोई तो मेहनत कर रहा है मगर ये मेहनत कर कौन रहा है ये वो नहीं जानती थीं| आंटी जी तो अंजलि की शादी करवाना चाहती थीं ताकि कल को उनकी बेटी की जिस्म की आग के कारण उनका मुँह काला न हो मगर आजकल कौन शहर में पढ़ी बारहवीं पास लड़की को बहु बनाता है? इतनी जल्दी शादी करने वाले माँ-बाप को समाज शक की नज़र से देखता है, सबको लगता है की जर्रूर लड़की का कोई चक्कर चल रहा है तभी उसके माता-पिता जल्दी शादी करवा कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं|



"बहनजी, आपकी बेटी कितनी होनहार है देखो कितने अच्छे नम्बरों से पास हुई| वहीं मेरी ये नालायक लड़की (अंजलि) कितनी मुश्किल से नकल-व्क़्ल मारकर पास हुई है| मैं तो इसकी शादी करवाना चाहती थी मगर इसके पापा कह रहे हैं की लड़की को कम से कम कॉलेज करवा देते हैं| इसलिए मैं सोच रही थी की इस नालायक को कीर्ति बिटिया के साथ ही कॉलेज में डाल दें, कीर्ति के साथ रहेगी तो थोड़ा पढ़ लेगी वरना ये सारा दिन आवारा गर्दी करती रहेगी!" आंटी जी ने जैसे ही मेरा गुणगान किया वैसे ही मेरी माँ का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो गया!

बस फिर क्या था मेरी माँ ने मेरी शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए; "आजकल बारहवीं पास लड़की की शादी होती कहाँ है? ऊपर से दहेज़ इतना माँगते हैं की क्या कहें?! ये सब सोचकर ही कीर्ति के पिताजी ने इसे ओपन कॉलेज में डाला है और थोड़ा बहुत कंप्यूटर सीखने के लिए एक इंस्टिट्यूट में दाखिला भी करवा दिया है| ताकि कल को शादी हो तो कम से कम इसे (मुझे) थोड़ा कंप्यूटर आता हो और ये ससुराल में हमारा नाम न खराब करे|"



अंततः ये निर्णय लिया गया की अंजलि भी मेरे साथ कॉलेज जाएगी पर उसकी मम्मी ने उसे कंप्यूटर कोर्स कराने से ये कह कर मना कर दिया की घर में रखे कंप्यूटर पर तो अंजलि बस फिल्म देखती है तो कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी?!

जैसे ही आंटी जी ने उनके घर में कंप्यूटर का जिक्र किया मैंने अपनी माँ की तरफ देखा और इशारों ही इशारों में उनसे पूछ लिया की क्यों न मैं अंजलि के घर के कंप्यूटर पर ही टाइपिंग सीख लूँ? माँ ने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए फौरन हाँ कर दी|



मैं अंजलि के घर उससे मिलने के बहाने जाने लगी और उसी के कंप्यूटर पर अपनी टाइपिंग की प्रैक्टिस करने लगी|



कुछ दिनों बाद आखिर मेरा कॉलेज खुल गया| रविवार का दिन था और मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी|



मैंने फिल्मों में देखा था की कॉलेज का पहला दिन बड़ा रोमांचकारी होता है| कॉलेज में लड़कियाँ सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनती हैं जैसे की टॉप, जीन्स, स्कर्ट्स आदि| कॉलेज में कुछ मनचले लड़कोण का गैंग होताहै जो लड़कियों को छेड़ते हैं, सीटी बजाते हैं, नए बच्चों की रैगिंग करते हैं| लड़कियों को कैंटीन में रैगिंग के नाम पर नचाते हैं, भोले-भाले लड़कों को रैगिंग के नाम पर दूसरी लड़कियों को प्रोपोज़ करने को कहते हैं|

रैगिंग होगी इससे मैं बहुत डरती थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाई और जैसे 'प्यार किया तो डरना क्या फिल्म' में अरबाज़ खान अपनी बहन की ढाल बन कर कॉलेज के पहले दिन उसके साथ गया था, वैसे ही मैं अपने आदि भैया को अपने साथ कॉलेज छोड़ने के बहाने से ले गई|



बॉलीवुड की फिल्में देख कर ये फितूर मेरे मन में भरा हुआ था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उल्ट!



जब मैं भैया के साथ अपने कॉलेज पहुँची तो वहाँ मेरी उम्र के बच्चे कम और भैया की उम्र के बच्चे...या ये कहूँ की वयस्क ज्यादा थे| एक लड़की तो ऐसी थी जिसने लाल चूड़ा पहना हुआ था, मानो कल ही उसकी शादी हुई हो और वो हनीमून पर न जा कर कॉलेज पढ़ने आई हो| एक पल के लिए तो मन किया की मैं उसके पढ़ाई के प्रति इस कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसे सलाम करूँ मगर बाद में मुझे पता चला की वो भी अंजलि के जैसी थी!

कॉलेज के मैं गेट पर मैंने अपना एनरोलमेंट नंबर लिख कर दस्तखत किया| तभी पीछे से अंजलि आ गई और हमें छोड़ भैया घर वापस चले गए| मैंने जब अंजलि से अपने कॉलेज के सुहाने ख्वाब साझा किये तो वो पेट पकड़ कर हँसने लगी|



अब बारी थी हमारी क्लास ढूँढने की इसलिए हमने दूसरे बच्चों से क्लास के बारे में पुछा| ज्यादातर बच्चे नए थे इसलिए उन्हें भी कुछ नहीं पता था| तभी हमें एक सेकंड ईयर की लड़की यानी की हमारी सीनियर मिली| जब अंजलि ने उससे क्लास के बारे में पुछा तो वो हमें देखकर हँसने लगी! "यहाँ पढ़ाई-वढ़ाई नहीं होती! बस अपने असाइनमेंट पूरे करो और एग्जाम में नकल कर पास हो जाओ|" ये कह कर वो हँसती हुई चली गई|

अपने सीनियर की बात सुन हम दोनों स्तब्ध थीं| हमने फिल्मों में देखा था की कॉलेज में बच्चे क्लास बंक करते हैं मगर यहाँ तो सारे नियम-कानून ही टेढ़े हैं! अंजलि तो कॉलेज बंक करने को कह रही थी मगर मुझे ये सुनिश्चित करना था की वो सीनियर लड़की सच कह रही है वरना पता चला की पहले दिन कॉलेज बंक किया और प्रिंसिपल ने सीधा हमारे घर फ़ोन घुमा दिया!



ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमें आखिर एकाउंट्स की क्लास मिल ही गई मगर वहाँ कोई बच्चा था ही नहीं! पूरी क्लास में बस हम दोनों ही थे, अंजलि वापस चलने को कह रही थी मगर मैं ढीठ बनकर क्लास में बैठ ही गई| कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया की सब बच्चे यहाँ सुबह-सुबह गेट पर अपनी अटेंडेंस लगाते हैं और फिर घूमने-फिरने चले जाते हैं| फिर शशि ने हमें अपने दोस्तों से मिलवाया और सभी ने फिल्म देखने जाने का प्लान बना लिया| फिल्म देखने की बात सुन अंजलि ने फ़ट से हाँ कर दी, जबकि मैं पिताजी द्वारा पकड़े जाने के डर से घबराई हुई थी|



जब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|



मैं अपने डर के कारण खामोश थी, तभी मेरे सारे नए दोस्तों ने मुझ फूँक दे कर चने के झाड़ पर चढ़ा दिया और अपने साथ फिल्म दिखाने ले गए| हमारे ग्रुप में 7 लोग थे, जिसमें 6 लड़कियाँ और एक लड़का था| हमारे ग्रुप का नेतृत्व वो लड़का ही कर रहा था| बातों-बातों में अंजलि ने सबसे कह दिया था की मैं बड़ी पढ़ाकू हूँ और आज अपनी ज़िंदगी में पहली बार क्लास बंक कर रही हूँ इसलिए मैं थोड़ी डरी हुई हूँ| "कोई नहीं, दो हफ्ते हमारे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी!" शशि मुझे बिगाड़ने का बीड़ा उठाते हुए बोली|

शशि का मेरे जीवन पर प्रभाव कुछ अधिक ही पड़ा, उसकी सौबत में मैं झूठ बोलना, चालाकी करना और थोड़ा बहुत फैशन सेंस सीख गई थी|



हम सातों पहुँचे बस स्टैंड, चूँकि मैं इस ग्रुप की सबसे नाज़ुक लड़की थी जिसने ऐसा कोई एडवेंचर पहले नहीं किया था इसलिए वो लड़का मेरा कुछ अधिक ही ध्यान रख रहा था| बस आई और बस में उसने सबसे पहले मुझे चढ़ने दिया| फिर उसने अपना रुआब दिखाते हुए हम सभी लड़कियों को सीट दिलवाई| एक दो लड़कों को तो उसने सीट पर से उठा कर सीट दिलवाई| वो लड़के उम्र में छोटे थे इसलिए कुछ कह न पाए और चुपचाप खड़े हो गए|

जब कंडक्टर टिकट देने के लिए आया तो वो लड़का अकड़ कर उस कंडक्टर से बोला; "स्टाफ है!" ये सुनकर कंडक्टर ने भोयें सिकोड़ कर उस लड़के को देखा और अकड़ते हुए पुछा; "काहे का स्टाफ?"

"स्टूडेंट!!!" वो लड़का और चौड़ा होते हुए बोला| उस बस में काफी स्टूटडेंट थे, कहीं सारे स्टूडेंट मिलकर कंडक्टर को पीट न दें इस कर के कंडक्टर आगे बढ़ गया| अब मैंने आजतक पिताजी के साथ जब भी सफर किया है, टिकट ले कर सफर किया है इसलिए मैंने अपनी किताब से पैसे निकालकर कंडक्टर को दिए और टिकट ले ली| जैसे ही मैंने कंडक्टर को पैसे दिए वैसे ही उस लड़के समेत बाकी 6 लड़कियों ने अपना माथा पीट लिया!



जब कंडक्टर चला गया तो सभी रासन-पानी ले कर मुझ पर चढ़ गए; "तुझे क्या जर्रूरत थी अपनी टिकट लेने की? रवि ने सब सेट कर तो दिया था?!" शशि मुझे डाँटते हुए बोली| ओह...मैं तो आपको बताना ही भूल गई की उस लड़के का नाम रवि था|

"ये राजा हरीश चंद्र की पोती है!" अंजलि मुझे ताना मारते हुए बोली|



"तुम सब के लिए ये छोटी सी बात है मगर मेरे लिए नहीं! मस्ती मज़ा करना अलग बात है मगर मुफ्तखोरी मुझे पसंद नहीं| अगर हमारे पास टिकट के पैसे नहीं होते तब ये अकड़ना चलता मगर जब हम पैसे दे सकते हैं तो क्यों उस कंडक्टर का नुक्सान करना? वो बेचारा भी तो नौकरी करता है, उसे भी आगे जवाब देना होता है|

और कल को अगले स्टॉप पर टिकट चेकर चढ़ जाता तो? हम सब को इस टिकट का दस गुना जुरमाना भरना पड़ता! नहीं भरते तो सीधा घर फ़ोन जाता और फिर अगलीबार घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता!" मैंने बड़े सख्त लहजे में अपनी बात रखी| मेरी बात सुन अभी के मुँह बंद हो गए थे, वहीं रवि मेरी बातों से बहुत हैरान था|



जब हमारा स्टॉप आया तो हम सब चुपचाप उतर गए| मुझे लगा की मेरी तीखी बातें सुन अब इन सबको मुझसे दोस्ती नहीं करनी होगी इसलिए मैं अकेली पैदल पारपथ की ओर चलने लगी ताकि दूसरी तरफ पहुँच कर घर के लिए बस पकड़ूँ| लेकिन मुझे अकेले जाते देख रवि बोला; "आप कहाँ जा रहे हो कीर्ति मैडम? मॉल इस तरफ है?"

रवि के टोकने से मैं थोड़ी हैरान थी इसलिए मैं मुड़ कर उसे देखने लगी| तभी शशि मेरे पास आई और मेरा हतः पकड़ कर अपने दोस्तों की तरफ खींच लाई| "ये जो रवि है न इसके परिवार के रूलिंग पार्टी से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं इसलिए ये हर जगह अपनी धौंस दिखाता है| कोई भी काम हो, हर जगह इसकी रंगबाजी चलती है| लेकिन आज से ये सब बंद! आज से हम सब वही कहेंगे जो तू कहेगी!" शशि ने मुझे...एक नई लड़की को अपने ग्रुप की कमान दे दी थी| फिर उसने अपने सभी दोस्ती की तरफ देखा और सभी को चेताते हुए बोली; "और तुम सब भी सुन लो, आज से कोई भी ऐसी लफंडारगिरी नहीं करेगा! आज से बीएस में बिना टिकट लिए ट्रेवल करना बंद!" शशि का आदेश सभी ने राज़ी-ख़ुशी माना और मुझे ग्रुप लीडर की उपाधि दे दी|

उस दिन से 'मेरे दोस्तों' ने कभी बिना टिकट के बस यात्रा नहीं की| ग्रुप में घूमने-घामने के प्लान हम सब आपसी सहमति से बनाते थे मगर मस्तीबाज़ किस हद्द तक करनी है ये बस मैं डिसाइड करती थी!





यूँ घर में बिना बताये दोस्तों के साथ घूमने का ये पहला अनुभव मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था| जहाँ एक तरफ पिताजी द्वारा पकड़े जाने का डर था, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की ख़ुशी भी शामिल थी| इन चंद घंटों के लिए मैं एक आजाद परिंदा थी, जो अपने घर से निकल खुली हवा में साँस ले रहा था|



खैर, मॉल में घुमते हुए हम पहुँचे फिल्म देखने| रवि सबकी टिकट लेने अकेला लाइन में लगा था और बाकी की सभी लड़कियाँ झुण्ड बनाकर गप्पें लगाने में लगी थीं| जब रवि टिकट ले कर आया तो मैंने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ाये|

बजाए पैसे लेने के वो थोड़ा नाराज़ हो गया और बोला; "देख कीर्ति, जैसे बस में 5 रुपये की टिकट के लिए चिन्दीपना तुझे पसंद नहीं उसी तरह ये खाने-पीने और मौज-मस्ती के लिए पैसे लेना मुझे पसंद नहीं! जब मैं पैसे लाना भूल जाऊँ या फिर हम कोई बड़ी पार्टी करेंगे तब सब की तरह तू भी कॉन्ट्री कर दियो| लेकिन जब तक मैं पैसे न माँगूँ तब तक मुझे पैसे ऑफर मत करियो|" रवि ने थोड़ी सख्ती से अपनी बात रखी थी और उसकी ये सख्ती देख कर मैं थोड़ी डर गई थी|



दरअसल, मैं जिस घर के भीतर पली-बढ़ी थी वहाँ हम किसी के पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं करवाते| पिताजी की दिए हुए ये संस्कार मैंने अपने पल्ले बाँधे थे इसीलिए मैं रवि को पैसे दे रही थी|



"ये राजा हरिश्चंद्र स्कूल से ही खुद्दार है!" अंजलि मेरी टाँग खींचते हुए बोली और सभी ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|



"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|



मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|

जारी रहेगा अगले भाग में!
Bdiya update guruji :love:
ये सब लड़के अलग-अलग इंस्टिट्यूट के थे और हमें अपने-अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने को कह रहे थे ताकि मेरी दी हुई फीस से उनकी थोड़ी कमिशन बन जाए!

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"माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया|

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कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया

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Ye kirti Ravi ka kuch suru nhi kar dena :cry:
Ye manu kha Gayab ho gya Bangalore me:bat:
 
Last edited:

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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भाग - 13

अब तक आपने पढ़ा:


"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|


मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|


अब आगे:


मानु
को मुझे यूँ कन्फ्यूज्ड (confused) छोड़ कर गए 2 साल हो गए थे| मेरी तरह उसने भी बारहवीं पास कर ली थी और इंजीनियरिंग करने की दौड़ में शामिल हो चूका था| मानु के पापा ने हमें उसके बहुत अच्छे नम्बरों से पास होने की मिठाई खिलाई थी| परन्तु मेरे मन में बस एक सवाल था; 'क्या उसे मैं याद भी हूँ या फिर वो मुझे पूरी तरह से भूल गया?'




अगर आप किसी से प्यार करते हो तो अपने प्यार का इज़हार खुले शब्दों में करोगे या फिर शब्दों की जलेबी की पहले छोड़ कर भाग जाओगे?!



बहरहाल, अब मेरी ज़िंदगी का एक नया अध्याय शुरू हो चूका था| कॉलेज जाने के बहाने घूमने जाना मुझे भा गया था, लेकिन अपनी इस ख़ुशी को पूरा करने के लिए मुझे चाहिए थे पैसे! अब घर से पैसे माँग नहीं सकती थी क्योंकि फिर माँ-पिताजी मेरे साथ कौन बनेगा करोड़पति खेलने लगते और मेरा झूठ पकड़ा जाने पर सबसे पहले मेरी पढ़ाई छुड़ाई जाती, फिर किसी भी लड़के के गले बाँध दिया जाता|

मेरे पास पैसे कमाने का बस एक ही साधन था और वो थी मेरा दूसरे बच्चों को टूशन पढ़ाना| आप सभी ने पढ़ा की मेरी एकाउंट्स बहुत अच्छी थी, भले ही मेरे कपड़ों के कलर मैच न होते हों मगर बैलेंस शीट की दोनों साइड एसेट्स एंड लायबिलिटीज मेरी हमेशा मैच होती थी|



अतः मैंने मेरे पास आने वाले बच्चों से कहा की वो अपने घर के पास ग्यारहवीं-बारहवीं में पढ़ने वाले बच्चों से कहें की अगर कोई मुझसे एकाउंट्स पढ़ना चाहता है तो मैं बाकी टूशन सेण्टर से कम पैसों में पढ़ा दूँगी| अगले ही दिन मेरे पास पढ़ने आने वाले एक बच्चे की बहन मेरे पास एकाउंट्स पढ़ने आई| मैंने उसे एक क्लास ट्रायल के रूप में पढ़ाई और उसे मेरा एकाउंट्स पढ़ाने का अंदाज़ भा गया|



अगले दिन वो अपने साथ दो लड़कियों को और खींच लाई और ऐसे करते-करते मेरे पास ग्यारहवीं-बारहवीं के 7 बच्चे हो गए| जहाँ बाकी टूशन सेण्टर वाले प्रत्येक बच्चे से एकाउंट्स पढ़ाने के 700/- से 800/- लेते थे, वहीं मैं हर बच्चे से केवल 500/- लेती थी| अब जो बच्चे एकाउंट्स पढ़ते थे उन्हें मैथमेटिक्स भी पढ़ना होता था तो मेरी डबल कमाई होने लगी थी| फिर मेरे पास पाँचवीं से ले कर दसवीं तक के भी कुछ बच्चे मैथमेटिक्स पढ़ने आते ही थे| यानी घर बैठे-बैठे मैं 12,000/- रुपये प्रति माह कमाने लगी थी|

हर महीने की शुरुआत में बच्चे अपनी-अपनी फीस ला कर मुझे देते थे और मैं ये पैसे ले जा कर माँ को देती तथा पिताजी को शाम को हिसाब देती| जब मुझे ग्यारहवीं-बारहवीं के बच्चों ने अपनी फीस ला कर दी तो मैंने उसमें से 2,000/- रुपये चुप-चाप अलग दबा लिए! बाकी बचे पैसे मैंने अपनी माँ को हिसाब सहित दे दिए| माँ-पिताजी मुझ पर आँख मूँद कर विश्वास करते थे इसलिए उन्हें कोई शक नहीं हुआ|




मानती हूँ अपने ही माँ-पिताजी के साथ पैसों की हैर-फेर करना नैतिक रूप से गलत है मगर ये पैसे थे तो मेरी ही कमाई के न?! तो अगर मैं अपनी ही कमाई के कुछ पैसे अपने पास चुप-चाप रख रही थी तो कौन सा मैंने पाप कर दिया? आदि भैया भी तो अपनी कमाई में से कुछ पैसे अपने पास रख कर बाकी पैसे माँ को दे दिया करते थे! हाँ वो बात अलग है की माँ को पता होता था की भैया ने कितने पैसे अपने पास रखे हैं!



देखते ही देखते तीन महीने बीते और मेरा कंप्यूटर का कोर्स खत्म हो गया| अब मुझे लगा था की भैया मेरे लिए कोई नौकरी ढूँढ देंगे इसलिए मैं इंतज़ार करने लगी की कब भैया आ कर कहें की उन्होंने मेरे लिए नौकरी ढूँढ ली है| परन्तु एक महीना बीत गया और भैया ने मुझे कोई नौकरी ढूँढ कर नहीं दी| जब मैंने उनसे बात की तो भैया मेरे नौकरी करने को आतुर होते हुए देख मुझे समझाते हुए बोले; "तुझे इतनी जल्दी नौकरी नहीं मिलेगी| बारहवीं पास को बस चपरासी की नौकरी मिलती है और वो मैं अपनी बहन को करने नहीं दूँगा| अभी तू टूशन पढ़ा कर अच्छा कमा रही है इसलिए अभी अपना ये टूशन सेण्टर चालु रख| जब तू ग्रेजुएट हो जाएगी तब मैं तेरी अच्छी नौकरी लगवा दूँगा|"

भैया की बात में दम था इसलिए मैंने फिलहाल के लिए नौकरी करने की इच्छा को दबा दिया और घर पर ही अपना टूशन सेण्टर चलाती रही|



सारा हफ्ता मैं खाली रहती थी और बस संडे को कॉलेज जाती थी| टूशन से कमाए जो पैसे मैंने इकठ्ठा किये थे उनमें से थोड़ा बहुत तो मैं अपने यारो-दोस्तों के साथ खर्चती थी| लेकिन अभी भी एक चीज की कमी थी मेरे जीवन में और वो था अपनी मर्जी के कपड़े पहनना|

दरअसल मेरे पिताजी रूढ़िवादी सोच के थे इसलिए उन्होंने मेरे वेस्टर्न कपड़े पहनने पर पाबन्दी लगा रखी थी| मैं वही सूट, कुर्ते पहन कर ऊब चुकी थी| कॉलेज में आने के बाद मेरे सारे दोस्त वेस्टर्न कपड़े जैसे टॉप, स्लीवलेस, स्कर्ट पहनते थे| उन्हें देख कर मेरा भी मन करता था की मैं ऐसे कपड़े पहनू इसलिए मैंने इस ख़ुशी को पाने के लिए एक रास्ता ढूँढा|



हमेशा की तरह संडे को मैं कॉलेज के लिए घर से निकली और अंजलि तथा शशि को ले कर मैं मॉल पहुँच गई| मैं अपने साथ 2,500/- ले कर आई थी और मैंने इन पैसों से अपनी पसंद के कपड़े लेने थे| जब मैंने ये बात दोनों को बताई तो दोनों मुझे 'pretty woman' यानी प्रीती ज़िंटा बनाने में लग गईं| अंजलि मेरे लिए टॉप सेलेक्ट कर रही थी तो शशि मेरे लिए बॉटम और मैं ट्रायल रूम के पास खड़ी किसी मॉडल की तरह उनका इंतज़ार कर रही थी| अंजलि ने मुझे टी-शर्ट, वी-नैक और एक स्लीवलेस-टॉप ला कर दिया| वहीं शशि ने मुझे एक कैप्री, एक शॉर्ट्स जो सिर्फ मेरी जाँघों तक थी और एक स्कर्ट जो की घुटनों से थोड़ी नीचे तक थी ला कर दी|

मैंने ट्रायल रूम में जा कर सबसे पहले शॉर्ट्स पहनी, लेकिन ये पहनने पर मुझे इतनी शर्म आई की क्या बताऊँ?! मेरी जाँघों का ऊपरी हिस्सा तो ढक गया था मगर निचला हिस्सा साफ़ नज़र आ रह था| अपनी गोरी-गोरी जांघें देख कर मुझे इतनी शर्म आई की मैंने फौरन वो उतार दी और स्कर्ट पहनी| ये स्कर्ट चूँकि घुटनों से थोड़ी नीचे थी इसलिए इसमें मेरी बस पिंडलियाँ ही दिखती थीं| परन्तु इसमें भी एक दिक्कत थी और वो ये की आधी जाँघों के नीचे का कपड़ा लगभग पारदर्शी था!



'एक बार पहन कर तो देख, अच्छा नहीं लगा तो कोई बात नहीं!' मेरे दिमाग ने मुझे हिम्मत दी और मैंने स्कर्ट खरीदने का मन बना लिया| अब बारी थी टॉप की तो टी-शर्ट और वी-नैक इस स्कर्ट के साथ मैच नहीं हो रहे थे| एक सिर्फ स्लीवलेस ही था जो इस स्कर्ट के साथ सही जा रहा था|

दोनों पहन कर जब मैं बाहर निकली तो मुझे देख अंजलि और शशि की आँखें फ़टी की फ़टी रह गईं!


“ओह माय गॉड!!!" शशि अपने होठों पर हाथ रखते हुए ख़ुशी से चीखी|



"इतने खूबसूरत जिस्म को तू सलवार-कमीज में छुपा कर रखती थी! डफ्फर (duffer) कहीं की!!!" अंजलि ने मुझे गुस्से से डाँट लगाई|



मैंने बाहर लगे बड़े से आईने में जब खुद को इन कपड़ों में देखा तो मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ की मैं इतनी खूबसूरत हूँ?! मैं कब की जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी मगर मेरे पारम्परिक कपड़े मेरे जिस्म को हमेशा ढके रहते थे| शायद यही कारण था की स्कूल से ले कर अभी तक, किसी लड़के ने मुझे प्रोपोज़ नहीं किया...और जिसने किया भी तो ऐसा किया की मुझे समझ ही नहीं आया की वो मुझे प्रोपोज़ कर रहा है या फिर कोई पहेली सुलझाने को दे रहा है|



शशि ने अपने बैग में से ऑय-लाइनर और लिपस्टिक निकाली और खड़े-खड़े ही मेरा मेक-अप करने लगी| मैंने आजतक काजल तो लगाया था मगर कभी ऑय-लाइनर और लिप्सटसिक नहीं लगाई थी| ये एहसास मेरे लिए बड़ा दिलचस्प था, ऐसा लगता था मानो मैं कोई ब्यूटी पेजेंट में हिंसा लेने वाली मॉडल हूँ जिसका मेक-अप किया जा रहा हो|



खैर, मैंने ये कपडे पहने रहने का ही फैसला किया और बिल का भुगतान कर हम तीनों खिलखिलाती हुई दूकान से बाहर आ गईं| आज हम सब दोस्त बाहर लंच करने वाले थे मगर शशि ने सभी को फ़ोन कर के मॉल में बुला लिया| सबके आने तक हम मॉल में घुमते रहे, इस समय मॉल के हर एक लड़के की नज़र बस मुझ पर टिकी हुई थी| यूँ अचानक से सबका ध्यान अपने ऊपर पा कर मैं थोड़ा असहज महसूस करने लगी थी| अब मुझे इस सबकी आदत तो थी नहीं इसीलिए मैं थोड़ी घबराई हुई थी|



करीब आधे घंटे में बाकी सब आ गए और जैसे ही सब लड़कियों की नज़र मुझ पर पड़ी तो सारे मेरी ख़ूबसूरती की तारीफ करने लगे| वहीं मुझे इन कपड़ों में देख रवि पलकें झपकना भूल गया था| वो मुझे ऐसे घूर रहा था मानो उसे उसके सपनों की परी मिल गई हो!

"रवि को देखो, कीर्ति की ख़ूबसूरती देख कर तो आज इसकी बोलती ही बंद हो गई!" अंजलि ने रवि का मज़ाक उड़ाया तो रवि बेचारा शर्माने लगा और उसके गाल शर्म से लाल हो गए| अब सब लड़कियों के लिए रवि अच्छा टारगेट था इसीलिए सबने उस बेचारे की रैगिंग शुरू कर दी| "आज की पार्टी का बिल रवि देगा!" शशि ने जैसे ही कहा वैसे ही सब लड़कियों ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई और "रवि..रवि" का शोर मचाने लगीं| वो बेचारा इतना शर्मा रहा था की उसकी हालत पतली थी|



आमतौर पर जब हम बाहर लंच करते थे तो बिल भरने के समय सभी कॉन्ट्री करते थे| ऐसा कोई ख़ास नियम नहीं था की सभी को बराबर पैसे देने हैं, जिसके पास जितने होते थे वो दे देता था| अगर किसी के पास पैसे नहीं भी हैं तो वो बाद में दे देता था| लेकिन आज सब लड़कियों ने रवि को बलि का बकरा बनाया था इसलिए बेचारा आज फँस गया|

आखिर हम अब एक अच्छे से रेस्टोरेंट में बैठ गए और रवि ने सभी के लिए खुद खाना आर्डर किया| सब ने बड़े चाव से खाना खाया और जब बिल आया तो रवि ने बिल भरा, मेरे कारण बेचारे को 2,000/- की चपत लग गई थी!



खाना खा कर हम सब मॉल में ही घूम रहे थे| शशि, अंजलि और बाकी लड़कियों का ग्रुप गप्पें लगाने में व्यस्त था| वहीं रवि मुझसे स्माल टॉक्स (small talks) करने की कोशिश कर रहा था;

रवि: अबसे तू ऐसे ही कपड़े पहना कर|

रवि थोड़ा शर्माते हुए बोला|

मैं: नहीं यार| मेरे घर में ऐसे कपड़े पहनने पर मनाही है, ये सब तो मैंने आज कुछ न्य ट्राय करने के लिए पहने थे| अभी घर जाते समय वापस कपड़े बदलूँगी और जो कपड़े मैं घर से पहन कर निकली थी वही पहन लूँगी|

मैंने एक ठंडी आह लेते हुए कहा| मेरा भी मन इन कपड़ों को उतारने का नहीं था मगर घर में अगर ये कपड़े पहन कर जाती तो पिताजी बहुत गुसा करते और मेरा कहीं भी अकेला आना-जाना बंद कर देते|

रवि: ओह्ह!! ठीक है...लेकिन जब हम सब साथ घूमने निकलते हैं तब तो ये कपड़े पहन ही सकती है न?

रवि ने थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए पुछा|

दरअसल रवि मेरे साथ फ़्लर्ट (flirt) करने की कोशिश कर रहा था मगर डरता था की कहीं मैं उसकी बात का बुरा न मान जाऊँ और इस ग्रुप को ही न छोड़ दूँ|

मैं: हाँ|

मैंने थोड़ा शर्माते हुए कहा| हैरानी की बात थी की रवि को फ़्लर्ट करने की कोशिश करते देख नजाने क्यों मेरे गाल शर्म से लाल हो रहे थे| शायद ये एहसास मेरे लिए बिलकुल नया था क्योंकि आजतक किसी लड़के ने मेरे साथ फ़्लर्ट करने की कोशिश नहीं की थी| अब मेरे अंदर कुछ दिखता ही नहीं था किसी को तो कोई क्यों मुझ पर अपना टाइम बर्बाद करता|



उस दिन से रवि ने मेरे साथ थोड़ा-थोड़ा फ़्लर्ट करना शुरू कर दिया था|



मैं कॉलेज बंक कर घूमने की इतनी आदि हो गई थी की मुझे अब यूँ बाहर घुमते हुए पकड़े जाने का ज़रा भी डर नहीं लगता था| तभी तो बिना डरे मैं अपने दोस्तों के साथ मॉल में अपने नए कपड़े पहने घूम रही थी|

आख़िरकार मेरा ये झूठ पकड़ा गया...वो भी मेरे आदि भैया द्वारा!


खाना खा कर मैं अपने दोस्तों के साथ मॉल में घूम रही थी की तभी सामने से भैया अपने दोस्तों के साथ फिल्म देख कर निकले| अपनी बहन को वेस्टर्न कपड़ों में देख भैया एक पल को जैसे मंत्र-मुग्ध हो गए थे और अपनी ही बहन को पहचानने की कोशिश कर रहे थे| आधे सेकंड बाद जब उन्होंने अपनी बहन को पहचाना तो भैया का चेहरा फीका पड़ गया|

इधर जैसे ही मैंने आदि भैया को देखा मेरे पॉंव तले ज़मीन खिसक गई! पिताजी से ज्यादा मुझे आज भैया से डर लग रहा था की कहीं भैया यहाँ मुझे सबके सामने डाँट न दें|




आज़ाद पवन में उड़ती उन्मुक्त चिड़िया औंधे मुँह ज़मीन पर आ गिरी थी!



"ग...गाइस (guys)...म...मेरे भैया...आ..." डरके मारे मेरे मुख से ये बोल फूटे| आदि भैया को देख अंजलि की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई क्योंकि वो जानती थी की मेरे घर पर कितनी पाबंदियाँ लगी हुई हैं, ऐसे में भैया का मुझे यूँ कॉलेज की क्लास के बजाए मॉल में घूमते हुए देखना मतलब था घर में मेरी पिटाई होना!



उधर भैया ने मेरी इज्जत की लाज रखी और सभी से अच्छे से "Hi-Hello" की| मैंने एक-एक कर सभी का तार्रुफ़ भैया से कराया और भैया ने भी हँस कर सभी से बात की| सभी को लग रहा था की सब कुछ सामान्य है मगर मैं जानती थी की घर जा कर मैं भैया से जर्रूर पिटूंगी!




घर में बस एक भैया ही तो थे जो सबसे झूठ बोलकर मुझे पढ़ा रहे थे और मैं बेवकूफ उन्ही के साथ छल कर रही थी|



खैर, भैया ने सबसे अपने चलने की इजाजत माँगी और मुझे बिना कुछ कहे अपने दोस्तों के साथ निकल गए| इधर न तो मेरे कुछ समझ में ना रहा था की मैं आगे क्या करूँ और न ही मेरे गले से आवाज़ निकल रही थी| अंजलि मेरे दिल का समझ गई थी इसलिए उसी ने सबसे कहा की हमें निकलना है वरना सभी ने तो 5 बजे तक तफऱी मारनी थी!



मैंने सबसे पहले मॉल के बाथरूम में अपने घर वाले कपड़े पहने और नए कपड़े बैग में रख लिए तथा अपने मुँह पर लगा काजल, ऑय लाइनर और लिपस्टिक पोंछ दी| अगर मेरी माँ मेरा ये साज- श्रृंगार देख लेतीं तो अगले हफ्ते मेरे साथ कॉलेज आतीं और मेरे ही साथ बैठकर मुझे लेक्चर अटेंड करवातीं|

फिर हम दोनों सहेलियों ने घर जाने के लिए ऑटो किया ताकि भैया के घर पहुँचने से पहले मैं घर पहुँच जाऊँ| सौभाग्य से मैं जल्दी घर पहुँच गई और भैया घर पहुँचे रात 7 बजे|



मेरे झूठ का भांडा आज भैया ने फोड़ना है ये सोच कर ही मेरे कलेजे में धुक-धुक होने लगी थी| क्या होगा जब पिताजी को पता चलेगा की मैं कॉलेज बंक मारकर अपने दोस्तों के साथ आवारागर्दी करती हूँ?!

क्या होगा जब माँ को पता चलेगा की मैं घर से तो सलवार-सूट पहनकर जाती हूँ मगर मॉल में स्लीवलेस और स्कर्ट पहन कर घूमती हूँ?!

हमेशा सब कुछ पूछ कर करने वाली सीधी-साधी लड़की बिना किसी को बताये अपनी मर्जी के कपड़े खरीदे लगी है और वो भी वेस्टर्न कपड़े जिसमें तन ढकता नहीं बल्कि दिखता है?!


जारी रहेगा अगले भाग में!
Bdiya update guruji :love:

Kirti bhi pta nhi kya :verysad:
Aisa kya h skirt wgareh me
Jo salwar suit me nhi h :sigh:

Adi bhaiya ek bar fir se smjdari dikhate hue :claps:
 
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