भाग - 13
अब तक आपने पढ़ा:
"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|
मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|
अब आगे:
मानु को मुझे यूँ कन्फ्यूज्ड (confused) छोड़ कर गए 2 साल हो गए थे| मेरी तरह उसने भी बारहवीं पास कर ली थी और इंजीनियरिंग करने की दौड़ में शामिल हो चूका था| मानु के पापा ने हमें उसके बहुत अच्छे नम्बरों से पास होने की मिठाई खिलाई थी| परन्तु मेरे मन में बस एक सवाल था; 'क्या उसे मैं याद भी हूँ या फिर वो मुझे पूरी तरह से भूल गया?'
अगर आप किसी से प्यार करते हो तो अपने प्यार का इज़हार खुले शब्दों में करोगे या फिर शब्दों की जलेबी की पहले छोड़ कर भाग जाओगे?!
बहरहाल, अब मेरी ज़िंदगी का एक नया अध्याय शुरू हो चूका था| कॉलेज जाने के बहाने घूमने जाना मुझे भा गया था, लेकिन अपनी इस ख़ुशी को पूरा करने के लिए मुझे चाहिए थे पैसे! अब घर से पैसे माँग नहीं सकती थी क्योंकि फिर माँ-पिताजी मेरे साथ कौन बनेगा करोड़पति खेलने लगते और मेरा झूठ पकड़ा जाने पर सबसे पहले मेरी पढ़ाई छुड़ाई जाती, फिर किसी भी लड़के के गले बाँध दिया जाता|
मेरे पास पैसे कमाने का बस एक ही साधन था और वो थी मेरा दूसरे बच्चों को टूशन पढ़ाना| आप सभी ने पढ़ा की मेरी एकाउंट्स बहुत अच्छी थी, भले ही मेरे कपड़ों के कलर मैच न होते हों मगर बैलेंस शीट की दोनों साइड एसेट्स एंड लायबिलिटीज मेरी हमेशा मैच होती थी|
अतः मैंने मेरे पास आने वाले बच्चों से कहा की वो अपने घर के पास ग्यारहवीं-बारहवीं में पढ़ने वाले बच्चों से कहें की अगर कोई मुझसे एकाउंट्स पढ़ना चाहता है तो मैं बाकी टूशन सेण्टर से कम पैसों में पढ़ा दूँगी| अगले ही दिन मेरे पास पढ़ने आने वाले एक बच्चे की बहन मेरे पास एकाउंट्स पढ़ने आई| मैंने उसे एक क्लास ट्रायल के रूप में पढ़ाई और उसे मेरा एकाउंट्स पढ़ाने का अंदाज़ भा गया|
अगले दिन वो अपने साथ दो लड़कियों को और खींच लाई और ऐसे करते-करते मेरे पास ग्यारहवीं-बारहवीं के 7 बच्चे हो गए| जहाँ बाकी टूशन सेण्टर वाले प्रत्येक बच्चे से एकाउंट्स पढ़ाने के 700/- से 800/- लेते थे, वहीं मैं हर बच्चे से केवल 500/- लेती थी| अब जो बच्चे एकाउंट्स पढ़ते थे उन्हें मैथमेटिक्स भी पढ़ना होता था तो मेरी डबल कमाई होने लगी थी| फिर मेरे पास पाँचवीं से ले कर दसवीं तक के भी कुछ बच्चे मैथमेटिक्स पढ़ने आते ही थे| यानी घर बैठे-बैठे मैं 12,000/- रुपये प्रति माह कमाने लगी थी|
हर महीने की शुरुआत में बच्चे अपनी-अपनी फीस ला कर मुझे देते थे और मैं ये पैसे ले जा कर माँ को देती तथा पिताजी को शाम को हिसाब देती| जब मुझे ग्यारहवीं-बारहवीं के बच्चों ने अपनी फीस ला कर दी तो मैंने उसमें से 2,000/- रुपये चुप-चाप अलग दबा लिए! बाकी बचे पैसे मैंने अपनी माँ को हिसाब सहित दे दिए| माँ-पिताजी मुझ पर आँख मूँद कर विश्वास करते थे इसलिए उन्हें कोई शक नहीं हुआ|
मानती हूँ अपने ही माँ-पिताजी के साथ पैसों की हैर-फेर करना नैतिक रूप से गलत है मगर ये पैसे थे तो मेरी ही कमाई के न?! तो अगर मैं अपनी ही कमाई के कुछ पैसे अपने पास चुप-चाप रख रही थी तो कौन सा मैंने पाप कर दिया? आदि भैया भी तो अपनी कमाई में से कुछ पैसे अपने पास रख कर बाकी पैसे माँ को दे दिया करते थे! हाँ वो बात अलग है की माँ को पता होता था की भैया ने कितने पैसे अपने पास रखे हैं!
देखते ही देखते तीन महीने बीते और मेरा कंप्यूटर का कोर्स खत्म हो गया| अब मुझे लगा था की भैया मेरे लिए कोई नौकरी ढूँढ देंगे इसलिए मैं इंतज़ार करने लगी की कब भैया आ कर कहें की उन्होंने मेरे लिए नौकरी ढूँढ ली है| परन्तु एक महीना बीत गया और भैया ने मुझे कोई नौकरी ढूँढ कर नहीं दी| जब मैंने उनसे बात की तो भैया मेरे नौकरी करने को आतुर होते हुए देख मुझे समझाते हुए बोले; "तुझे इतनी जल्दी नौकरी नहीं मिलेगी| बारहवीं पास को बस चपरासी की नौकरी मिलती है और वो मैं अपनी बहन को करने नहीं दूँगा| अभी तू टूशन पढ़ा कर अच्छा कमा रही है इसलिए अभी अपना ये टूशन सेण्टर चालु रख| जब तू ग्रेजुएट हो जाएगी तब मैं तेरी अच्छी नौकरी लगवा दूँगा|"
भैया की बात में दम था इसलिए मैंने फिलहाल के लिए नौकरी करने की इच्छा को दबा दिया और घर पर ही अपना टूशन सेण्टर चलाती रही|
सारा हफ्ता मैं खाली रहती थी और बस संडे को कॉलेज जाती थी| टूशन से कमाए जो पैसे मैंने इकठ्ठा किये थे उनमें से थोड़ा बहुत तो मैं अपने यारो-दोस्तों के साथ खर्चती थी| लेकिन अभी भी एक चीज की कमी थी मेरे जीवन में और वो था अपनी मर्जी के कपड़े पहनना|
दरअसल मेरे पिताजी रूढ़िवादी सोच के थे इसलिए उन्होंने मेरे वेस्टर्न कपड़े पहनने पर पाबन्दी लगा रखी थी| मैं वही सूट, कुर्ते पहन कर ऊब चुकी थी| कॉलेज में आने के बाद मेरे सारे दोस्त वेस्टर्न कपड़े जैसे टॉप, स्लीवलेस, स्कर्ट पहनते थे| उन्हें देख कर मेरा भी मन करता था की मैं ऐसे कपड़े पहनू इसलिए मैंने इस ख़ुशी को पाने के लिए एक रास्ता ढूँढा|
हमेशा की तरह संडे को मैं कॉलेज के लिए घर से निकली और अंजलि तथा शशि को ले कर मैं मॉल पहुँच गई| मैं अपने साथ 2,500/- ले कर आई थी और मैंने इन पैसों से अपनी पसंद के कपड़े लेने थे| जब मैंने ये बात दोनों को बताई तो दोनों मुझे 'pretty woman' यानी प्रीती ज़िंटा बनाने में लग गईं| अंजलि मेरे लिए टॉप सेलेक्ट कर रही थी तो शशि मेरे लिए बॉटम और मैं ट्रायल रूम के पास खड़ी किसी मॉडल की तरह उनका इंतज़ार कर रही थी| अंजलि ने मुझे टी-शर्ट, वी-नैक और एक स्लीवलेस-टॉप ला कर दिया| वहीं शशि ने मुझे एक कैप्री, एक शॉर्ट्स जो सिर्फ मेरी जाँघों तक थी और एक स्कर्ट जो की घुटनों से थोड़ी नीचे तक थी ला कर दी|
मैंने ट्रायल रूम में जा कर सबसे पहले शॉर्ट्स पहनी, लेकिन ये पहनने पर मुझे इतनी शर्म आई की क्या बताऊँ?! मेरी जाँघों का ऊपरी हिस्सा तो ढक गया था मगर निचला हिस्सा साफ़ नज़र आ रह था| अपनी गोरी-गोरी जांघें देख कर मुझे इतनी शर्म आई की मैंने फौरन वो उतार दी और स्कर्ट पहनी| ये स्कर्ट चूँकि घुटनों से थोड़ी नीचे थी इसलिए इसमें मेरी बस पिंडलियाँ ही दिखती थीं| परन्तु इसमें भी एक दिक्कत थी और वो ये की आधी जाँघों के नीचे का कपड़ा लगभग पारदर्शी था!
'एक बार पहन कर तो देख, अच्छा नहीं लगा तो कोई बात नहीं!' मेरे दिमाग ने मुझे हिम्मत दी और मैंने स्कर्ट खरीदने का मन बना लिया| अब बारी थी टॉप की तो टी-शर्ट और वी-नैक इस स्कर्ट के साथ मैच नहीं हो रहे थे| एक सिर्फ स्लीवलेस ही था जो इस स्कर्ट के साथ सही जा रहा था|
दोनों पहन कर जब मैं बाहर निकली तो मुझे देख अंजलि और शशि की आँखें फ़टी की फ़टी रह गईं!
“ओह माय गॉड!!!" शशि अपने होठों पर हाथ रखते हुए ख़ुशी से चीखी|
"इतने खूबसूरत जिस्म को तू सलवार-कमीज में छुपा कर रखती थी! डफ्फर (duffer) कहीं की!!!" अंजलि ने मुझे गुस्से से डाँट लगाई|
मैंने बाहर लगे बड़े से आईने में जब खुद को इन कपड़ों में देखा तो मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ की मैं इतनी खूबसूरत हूँ?! मैं कब की जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी मगर मेरे पारम्परिक कपड़े मेरे जिस्म को हमेशा ढके रहते थे| शायद यही कारण था की स्कूल से ले कर अभी तक, किसी लड़के ने मुझे प्रोपोज़ नहीं किया...और जिसने किया भी तो ऐसा किया की मुझे समझ ही नहीं आया की वो मुझे प्रोपोज़ कर रहा है या फिर कोई पहेली सुलझाने को दे रहा है|
शशि ने अपने बैग में से ऑय-लाइनर और लिपस्टिक निकाली और खड़े-खड़े ही मेरा मेक-अप करने लगी| मैंने आजतक काजल तो लगाया था मगर कभी ऑय-लाइनर और लिप्सटसिक नहीं लगाई थी| ये एहसास मेरे लिए बड़ा दिलचस्प था, ऐसा लगता था मानो मैं कोई ब्यूटी पेजेंट में हिंसा लेने वाली मॉडल हूँ जिसका मेक-अप किया जा रहा हो|
खैर, मैंने ये कपडे पहने रहने का ही फैसला किया और बिल का भुगतान कर हम तीनों खिलखिलाती हुई दूकान से बाहर आ गईं| आज हम सब दोस्त बाहर लंच करने वाले थे मगर शशि ने सभी को फ़ोन कर के मॉल में बुला लिया| सबके आने तक हम मॉल में घुमते रहे, इस समय मॉल के हर एक लड़के की नज़र बस मुझ पर टिकी हुई थी| यूँ अचानक से सबका ध्यान अपने ऊपर पा कर मैं थोड़ा असहज महसूस करने लगी थी| अब मुझे इस सबकी आदत तो थी नहीं इसीलिए मैं थोड़ी घबराई हुई थी|
करीब आधे घंटे में बाकी सब आ गए और जैसे ही सब लड़कियों की नज़र मुझ पर पड़ी तो सारे मेरी ख़ूबसूरती की तारीफ करने लगे| वहीं मुझे इन कपड़ों में देख रवि पलकें झपकना भूल गया था| वो मुझे ऐसे घूर रहा था मानो उसे उसके सपनों की परी मिल गई हो!
"रवि को देखो, कीर्ति की ख़ूबसूरती देख कर तो आज इसकी बोलती ही बंद हो गई!" अंजलि ने रवि का मज़ाक उड़ाया तो रवि बेचारा शर्माने लगा और उसके गाल शर्म से लाल हो गए| अब सब लड़कियों के लिए रवि अच्छा टारगेट था इसीलिए सबने उस बेचारे की रैगिंग शुरू कर दी| "आज की पार्टी का बिल रवि देगा!" शशि ने जैसे ही कहा वैसे ही सब लड़कियों ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई और "रवि..रवि" का शोर मचाने लगीं| वो बेचारा इतना शर्मा रहा था की उसकी हालत पतली थी|
आमतौर पर जब हम बाहर लंच करते थे तो बिल भरने के समय सभी कॉन्ट्री करते थे| ऐसा कोई ख़ास नियम नहीं था की सभी को बराबर पैसे देने हैं, जिसके पास जितने होते थे वो दे देता था| अगर किसी के पास पैसे नहीं भी हैं तो वो बाद में दे देता था| लेकिन आज सब लड़कियों ने रवि को बलि का बकरा बनाया था इसलिए बेचारा आज फँस गया|
आखिर हम अब एक अच्छे से रेस्टोरेंट में बैठ गए और रवि ने सभी के लिए खुद खाना आर्डर किया| सब ने बड़े चाव से खाना खाया और जब बिल आया तो रवि ने बिल भरा, मेरे कारण बेचारे को 2,000/- की चपत लग गई थी!
खाना खा कर हम सब मॉल में ही घूम रहे थे| शशि, अंजलि और बाकी लड़कियों का ग्रुप गप्पें लगाने में व्यस्त था| वहीं रवि मुझसे स्माल टॉक्स (small talks) करने की कोशिश कर रहा था;
रवि: अबसे तू ऐसे ही कपड़े पहना कर|
रवि थोड़ा शर्माते हुए बोला|
मैं: नहीं यार| मेरे घर में ऐसे कपड़े पहनने पर मनाही है, ये सब तो मैंने आज कुछ न्य ट्राय करने के लिए पहने थे| अभी घर जाते समय वापस कपड़े बदलूँगी और जो कपड़े मैं घर से पहन कर निकली थी वही पहन लूँगी|
मैंने एक ठंडी आह लेते हुए कहा| मेरा भी मन इन कपड़ों को उतारने का नहीं था मगर घर में अगर ये कपड़े पहन कर जाती तो पिताजी बहुत गुसा करते और मेरा कहीं भी अकेला आना-जाना बंद कर देते|
रवि: ओह्ह!! ठीक है...लेकिन जब हम सब साथ घूमने निकलते हैं तब तो ये कपड़े पहन ही सकती है न?
रवि ने थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए पुछा|
दरअसल रवि मेरे साथ फ़्लर्ट (flirt) करने की कोशिश कर रहा था मगर डरता था की कहीं मैं उसकी बात का बुरा न मान जाऊँ और इस ग्रुप को ही न छोड़ दूँ|
मैं: हाँ|
मैंने थोड़ा शर्माते हुए कहा| हैरानी की बात थी की रवि को फ़्लर्ट करने की कोशिश करते देख नजाने क्यों मेरे गाल शर्म से लाल हो रहे थे| शायद ये एहसास मेरे लिए बिलकुल नया था क्योंकि आजतक किसी लड़के ने मेरे साथ फ़्लर्ट करने की कोशिश नहीं की थी| अब मेरे अंदर कुछ दिखता ही नहीं था किसी को तो कोई क्यों मुझ पर अपना टाइम बर्बाद करता|
उस दिन से रवि ने मेरे साथ थोड़ा-थोड़ा फ़्लर्ट करना शुरू कर दिया था|
मैं कॉलेज बंक कर घूमने की इतनी आदि हो गई थी की मुझे अब यूँ बाहर घुमते हुए पकड़े जाने का ज़रा भी डर नहीं लगता था| तभी तो बिना डरे मैं अपने दोस्तों के साथ मॉल में अपने नए कपड़े पहने घूम रही थी|
आख़िरकार मेरा ये झूठ पकड़ा गया...वो भी मेरे आदि भैया द्वारा!
खाना खा कर मैं अपने दोस्तों के साथ मॉल में घूम रही थी की तभी सामने से भैया अपने दोस्तों के साथ फिल्म देख कर निकले| अपनी बहन को वेस्टर्न कपड़ों में देख भैया एक पल को जैसे मंत्र-मुग्ध हो गए थे और अपनी ही बहन को पहचानने की कोशिश कर रहे थे| आधे सेकंड बाद जब उन्होंने अपनी बहन को पहचाना तो भैया का चेहरा फीका पड़ गया|
इधर जैसे ही मैंने आदि भैया को देखा मेरे पॉंव तले ज़मीन खिसक गई! पिताजी से ज्यादा मुझे आज भैया से डर लग रहा था की कहीं भैया यहाँ मुझे सबके सामने डाँट न दें|
आज़ाद पवन में उड़ती उन्मुक्त चिड़िया औंधे मुँह ज़मीन पर आ गिरी थी!
"ग...गाइस (guys)...म...मेरे भैया...आ..." डरके मारे मेरे मुख से ये बोल फूटे| आदि भैया को देख अंजलि की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई क्योंकि वो जानती थी की मेरे घर पर कितनी पाबंदियाँ लगी हुई हैं, ऐसे में भैया का मुझे यूँ कॉलेज की क्लास के बजाए मॉल में घूमते हुए देखना मतलब था घर में मेरी पिटाई होना!
उधर भैया ने मेरी इज्जत की लाज रखी और सभी से अच्छे से "Hi-Hello" की| मैंने एक-एक कर सभी का तार्रुफ़ भैया से कराया और भैया ने भी हँस कर सभी से बात की| सभी को लग रहा था की सब कुछ सामान्य है मगर मैं जानती थी की घर जा कर मैं भैया से जर्रूर पिटूंगी!
घर में बस एक भैया ही तो थे जो सबसे झूठ बोलकर मुझे पढ़ा रहे थे और मैं बेवकूफ उन्ही के साथ छल कर रही थी|
खैर, भैया ने सबसे अपने चलने की इजाजत माँगी और मुझे बिना कुछ कहे अपने दोस्तों के साथ निकल गए| इधर न तो मेरे कुछ समझ में ना रहा था की मैं आगे क्या करूँ और न ही मेरे गले से आवाज़ निकल रही थी| अंजलि मेरे दिल का समझ गई थी इसलिए उसी ने सबसे कहा की हमें निकलना है वरना सभी ने तो 5 बजे तक तफऱी मारनी थी!
मैंने सबसे पहले मॉल के बाथरूम में अपने घर वाले कपड़े पहने और नए कपड़े बैग में रख लिए तथा अपने मुँह पर लगा काजल, ऑय लाइनर और लिपस्टिक पोंछ दी| अगर मेरी माँ मेरा ये साज- श्रृंगार देख लेतीं तो अगले हफ्ते मेरे साथ कॉलेज आतीं और मेरे ही साथ बैठकर मुझे लेक्चर अटेंड करवातीं|
फिर हम दोनों सहेलियों ने घर जाने के लिए ऑटो किया ताकि भैया के घर पहुँचने से पहले मैं घर पहुँच जाऊँ| सौभाग्य से मैं जल्दी घर पहुँच गई और भैया घर पहुँचे रात 7 बजे|
मेरे झूठ का भांडा आज भैया ने फोड़ना है ये सोच कर ही मेरे कलेजे में धुक-धुक होने लगी थी| क्या होगा जब पिताजी को पता चलेगा की मैं कॉलेज बंक मारकर अपने दोस्तों के साथ आवारागर्दी करती हूँ?!
क्या होगा जब माँ को पता चलेगा की मैं घर से तो सलवार-सूट पहनकर जाती हूँ मगर मॉल में स्लीवलेस और स्कर्ट पहन कर घूमती हूँ?!
हमेशा सब कुछ पूछ कर करने वाली सीधी-साधी लड़की बिना किसी को बताये अपनी मर्जी के कपड़े खरीदे लगी है और वो भी वेस्टर्न कपड़े जिसमें तन ढकता नहीं बल्कि दिखता है?!
जारी रहेगा अगले भाग में!